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Divya Prakash First Edition.pdf

Divya Shakdwipiya Brahman Samiti Presents Its First Edition of "Divya Prakash"

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ऩरयवाय एक ऐसी सॊस्था है जो<br />

ककसी व्मक्तत के साभाक्जक औय<br />

भानससक ववकास भें फहुत भहत्वऩूणण<br />

बूसभका ननबाती है. मे कहना गरत नह ॊ<br />

होगा कक व्मक्तत की भौसरक ऩहचान<br />

उसके ऩरयवाय भें ह ननहहत होती है. बायत के सॊदबण भें अगय फात की जाए, तो मे वह याष्ट्र<br />

है, जहाॊ हभेशा से ह भूल्मेआ औय बावनाओॊ का वृहद भहत्व यहा है. जीवन का कोई बी ऺेत्र ऐसा नह ॊ है जहाॊ आऩसी रयश्तेआ<br />

की उऩमोगगता को कभ आॊका जा सके . फच्चे के ऩैदा होने से रेकय, उसकी सशऺा-द ऺा, वववाह आहद सबी कामणक्रभेआ भें<br />

ऩरयवाय औय सॊफॊगधमेआ की बूसभका फेहद भहत्वऩूणण यहती है.<br />

रेककन जैसे-जैसे सभम फदरता है, ऩरयक्स्थनतमाॊ बी अऩना रुख दूसय ओय भोड़ रेती हेऄ. एक सभम था जफ अऩने<br />

ऩरयवाय को अऩनी ऩहचान औय ऩारयवारयक सदस्मेआ को अऩनी क्िम्भेदाय सभझने वारेआ की कोई कभी नह ॊ थी. रोग एक-<br />

दूसये की खुशी के सरए ह जीते थे, रोगेआ की प्राथसभकताएॊ आज की अऩेऺा बफल्कु र अरग थीॊ. कृ वष की प्रधानता के कायण<br />

अगधकतय रोग ऩरयवाय सभेत खेती भें ह सॊरग्न यहते थे औय राब का उगचत फॊटवाया ककसी बी तयह के भनभुटाव को ऩैदा<br />

होने नह ॊ देता था. ऩरयणाभस्वरूऩ ऩरयवाय के सबी सदस्म एक ह छत के नीचे प्रेभ-बाव के साथ यहते हुए, हय सुख-दुख को<br />

साझा कय रेते थे. रेककन वतणभान क्स्थनत ऩहरे की अऩेऺा बफल्कु र अरग है.<br />

वैश्वीकयण औय उदाय कयण जैसी नीनतमेआ ने बायतीम सभाज को ऩूय तयह से ऩरयवनतणत कय हदमा है. एक ओय तो<br />

इनके आने से आगथणक उन्ननत की सॊबावनाएॊ फढ़ गई हेऄ, तमेआकक इन नीनतमेआ ने व्मक्तत को ऐसे अनेक भौके प्रदान ककए हेऄ,<br />

क्जनके उगचत उऩमोग से वह खुद को दूसयेआ से फेहतय साबफत कय सकता है.<br />

वह ॊ दूसय ओय इन नीनतमेआ की वजह से बायत भें एक ऐसे आगथणक ऩरयवेश का ननभाण हुआ है, जो ननक्श्चत तौय<br />

ऩय व्मक्ततगत हहतेआ की ऩूनतण के सरए तो राबकाय है, रेककन हभ इस फात को नकाय नह ॊ सकते कक आज जो आऩसी<br />

रयश्तेआ औय ऩरयवायेआ के भहत्व के कभी आई है वह इन नीनतमेआ का ह ऩरयणाभ है. सॊमुतत ऩरयवाय जो कबी बायतीम सभाज<br />

की ऩहचान हुआ कयते थे, आज ऐसे हारात आ गए हेऄ कक इनकी अवधायणा ह ऩूय तयह सभाप्त हो चुकी है.<br />

व्मक्ततगत भहत्वाकाॊऺाओॊ का कद हदनेआहदन फढ़ता जा यहा है. फड़ी उॊ चाई तक ऩहुॊचने के सरए व्मक्तत उन रयश्तेआ<br />

को ऩीछे छोड़ देता हेऄ क्जनके सहाये उसने अऩनी ऩूया फचऩन व्मतीत ककमा था.<br />

फड़े-फड़े ऩरयवायेआ की फात छोड़ बी द जाए, तो भाता-वऩता का साथ बी भनुष्ट्म को यास नह ॊ आ यहा. वह उन रोगेआ<br />

के भहत्व को ह नकायने रगा है क्जन्हेआने उसे इस काबफर फनामा कक वह स्वतॊत्र होकय ननणणम रे सकें . वह अऩने कर को<br />

फेहतय फनाने के सरए उनसे दूय जाने से बी नह ॊ हहचककचाता. इसी भानससकता का ह ऩरयणाभ है कक ऩाश्चात्म देशेआ की तजण<br />

ऩय बायत भें बी एकर ऩरयवायेआ की प्रधानता फढ़ गई है. गाॊवेआ की अऩेऺा शहयेआ भें सॊमुतत ऩरयवायेआ के ववरुप्त होने की<br />

प्रवृक्त्त इसीसरए अगधक है तमेआकक ग्राभीण जीवन आज बी साधायण औय कृ वष प्रधान है, क्जस वजह से रोगेआ की आकाॊऺाएॊ<br />

बी सीसभत हेऄ. वह अऩने ऩरयवाय के भहत्व को सभझते हेऄ. उनकी आगथणक क्स्थनत इतनी सशतत नह ॊ होती कक वह अऩने<br />

ऩरयवाय से अरग हो सकें , घय के रोग जो बी कभाते हेऄ, सफ सभर-फाॊट कय खाते हेऄ. इस फात से कोई पकण नह ॊ ऩड़ता कक<br />

ऩरयवाय के सदस्मेआ की सॊख्मा ककतनी है. सीसभत धन औय आम के स्त्रोतेआ की कभी की वजह से उनका ऩूया जीवन ऩरयवाय<br />

का ऩेट बयने की जुगत भें ह फीत जाता है.<br />

रेककन शहय हारात ऩूय तयह से ऩरयवनतणत औय कापी अगधक जहटर हो चुके हेऄ. महाॊ रोगेआ के ऩास आम के स्त्रोतेआ<br />

D i v y a S h a k d w i p i y a B r a h m a n S a m i t i ‘ s “ D i v y a P r a k a s h ” Page 17

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