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Ek Mamuli Aadmi

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एक मामूली आदमी

लेखक

अशोक लाल

एक मामूली आदमी

1 | P a g e ©All Rights Reserved by Ashok Lal


दृश्य एक

दिन। उमेश, पंदित राधेश्याम और गोस्वामी का वाताालाप।

उमेश : (हतप्रभ होकर) ये क्या कह रहे हैं आप, राधेश्याम जी?

राधेश्याम : गोस्वामी जी, अब तुम्हीं समझाओ इसे।

गोस्वामी : बेटे उमेश। तुमने जो सुना वो ठीक ही सुना। हममें से कोई भी व्यदि स्वगावासी...मतलब

तुम्हारे दपता की तेरहवीं पर जीमने नहीं आएगा। बस।

उमेश : लेदकन क्यों? आदिर कोई वजह भी तो होगी?

राधेश्याम : वो हमसे ना पूछो। बस हम नहीं आएँगे, ये बात पक्की है।

उमेश : मुझे दवश्वास नहीं हो रहा है!...आप लोग कै से कर सकते हैं ऐसा? पंदितों के दबना तेरहवीं

कै से मनेगी?...िैर! कु छ छोटे पंदितों को ही भेज िीदजए।

राधेश्याम : वाह! यानी हम छोटे को ओछा समझकर उन्हें अधमा के मागा पर धके ल िें? जी

नहीं। हममें से कोई नहीं आएगा।

गोस्वामी : दबल्कु ल। धमा की रक्षा का सवाल है। समाज में ब्राह्मण का स्थान सवोच्च है। कोई उसके

स्थान को नकारे, दवशेषकर एक ब्राह्मण, और वो भी जान-बूझकर, तो इसे कै से सहन दकया जा सकता है?

उमेश : लेदकन मैं तो ब्राह्मण ह ँ। दिर मेरे साथ ऐसा अन्याय क्यों?

गोस्वामी :

अन्याय तुम्हारे दपता ने दकया था। घोर अन्याय।

राधेश्याम : ईश्वर बहुत दवराट हृियी और क्षमाशील है। नराधम पापी भी यदि अदन्तम क्षणों में

नारायण का नाम ले ले तो सीधे बैकु ं ठ जाता है। लेदकन तुम्हारे दपता की तो अदन्तम दिनों में बुदि ही भ्रष्ट हो गई थी।

गोस्वामी : ठीक कहा, राधेश्याम जी, आपने। सत्य वचन। इसी कारण भगवान ने हमें प्रेररत दकया दक

धमा की रक्षा हेतु हम कु छ उद्यम करें। सो हम कर रहे हैं। समझे आप?

उमेश : जी नहीं, गोस्वामी जी, मैं कु छ नहीं समझा। (हाथ जोड़कर) मैं हाथ जोड़कर दवनती करता ह ँ

दक मुझे पूरी बात बताइए। आपका संके त दकस ओर है, मुझे दबल्कु ल नहीं पता।

राधेश्याम : (व्यंग्य से) अच्छा!! आप इतने भोले हैं या हमें मूिा बनाने की चेष्टा कर रहे हैं? या

दिर अपनी दिनचय ा में इतने व्यस्त रहते हैं दक आपको अपने दपता की गदतदवदधयों का कोई ज्ञान ही नहीं रहा!

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उमेश : ये बात सच है, पंदित जी, दवश्वास कीदजए। मैं सचमुच इतना व्यस्त रहता ह ँ दक मुझे समय

ही नहीं दमलता। अदन्तम कु छ महीनों में तो हालत और भी बुरी थी। और अगर मैं कभी जल्िी लौट भी आता था तो

बाबूजी घर पर नहीं दमलते थे। आपको पता है न...उनकी मृत्यु भी घर में नहीं हुई थी।

गोस्वामी :

प्राप्त होती है।

पता है। ये िंि भी भगवान का ही दिया था। अपनों के बीच मृत्यु तो पुण्य करने वालों को ही

उमेश : लेदकन मैंने ऐसा क्या दकया है दजसका िंि आप मुझे िे रहे हैं?

राधेश्याम : माता-दपता के पापों का िंि सन्तान को भुगतना पड़ता है। लेदकन दवश्वास करो, ये

िंि तुम्हारे दलए नहीं है।

गोस्वामी :

जब तुम अपनी तेरहवीं के दलए आओगे तो हम कभी मना नहीं करेंगे। अवश्य आएँगे।

राधेश्याम : के वल तुम ही नहीं, और कोई भी सिस्य हो तुम्हारे पररवार का, चाचा-ताऊ,

पत्नी, बच्चे दकसी की भी तेरहवीं हो, तुम तुरन्त चले आना, दन:संकोच। हम तुम्हें कभी दनराश नहीं करेंगे। ये हमारा

वचन है।

गोस्वामी : और ये भी हमारा वचन है दक तुम्हारी $िादतर हम तुम्हारे दपता के दलए प्राथाना भी करेंगे

दक ईश्वर उन्हें क्षमा करे, उनकी भ्रष्ट और िूदषत आत्मा को शुि करे और शादन्त िे। लेदकन इस समय समाज और

दबरािरी के सामने हम कोई अनुदचत उिाहरण प्रस्तुत नहीं कर सकते।

उमेश : बहुत परेशानी में िाल दिया है आपने मुझे। कम-से-कम वो कारण तो बताइए दजसके चलते

आप मेरे दपताजी से इतना रुष्ट हो गए हैं, और उनका बदहष्कार कर रहे हैं?

गोस्वामी : हमसे अधमा की चच ा क्यों करवाते हो, उमेश? िुदनया से पूछ लो...उनके ि$फ्तर में जाकर

उनके सहयोदगयों से पूछ लो...तुम्हें कारण पता चल जाएगा।

राधेश्याम : अच्छा, भैया...अब हमारे पास समय नहीं है। एक नए मदन्िर की स्थापना के दलए

जाना है। इसदलए क्षमा करना! चलो, पंदित जी।

िोनों चले जाते हैं। उमेश हतप्रभ िड़ा उनकी दिशा में िेिता रहता है।

उमेश : (अचानक िशाकों से) मेरी परेशानी समझ रहे हैं न आप? इतने साधारण...इतने मामूली

आिमी थे मेरे बाबूजी दक उनकी दकसी को परवाह ही नहीं है...वो तो $िैर, जीते जी भी नहीं थी दकसी को, तो उनके

मरने के बाि क्या होगी?...तीस साल तक एक मामूली-सी नौकरी में लगे रहे। $कलम दघसते-दघसते हेिक्लका बन गए

म्युदनदसपल कापोरेशन में। न कोई एम्बीशन, न कोई इदनदशएदटव और न कोई इंट्रेस्ट...यहाँ तक दक कोई $िास शौक

भी नहीं रहा...पान-दसगरेट, िारू-वारू कु छ भी नहीं...एकिम सपाट द जन्िगी। इसदलए मौत भी इतनी ही सपाट...

दसवाय एक स्पीिब्रेकर के दक पंदितों को नाराज़ कर गए...अब उनकी तेरहवीं पर कोई आएगा या नहीं, पता नहीं।

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शवयात्रा में तो झोपड़पट्टी के कु छ लोग शादमल हो गए थे। पता नहीं क्यों?... शायि यू ँ ही तमाशा िेिने। लेदकन

अब?... सबसे झु ँझलाने वाली बात तो यह है दक यह भी नहीं पता दक इतने मामूली आिमी के $द िलाि इन पंदितों

के पास क्या बात हो सकती है। बचपन में जैसे मुझे होमवका िे िेते थे बाबूजी ...मेरे िेलने-कू िने पर बैन लगाकर! ऐसा

लगता है दक होमवका ही िे गए हैं वो। होमवका । ह ँ!

(अन्धकार)

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दृश्य दो

रात। उमेश घर के द्वार पर िस्तक िेता है। उसकी पत्नी रमा िरवाज़ा िोलती है।

रमा : (िरवाज़ा िोलते-िोलते)...बहुत िेर कर िी?

उमेश : बहुत थक गया ह ँ, रमा। ज़रा चाय बना िो प्लीज़।

रमा : अभी लाई। (अन्िर चली जाती है।)

उमेश दनढाल होकर बैठ जाता है। उसकी नज़र दपता की तस्वीर पर पड़ती है दजस पर िू लों

की माला है। बगल में धूप, अगरबत्ती और जलता हुआ िीया है। कु छ पल िेिने के बाि।

उमेश : (िशाकों से) यह बाबूजी के मेदिकल कािा के िोटो का एनलाजामेंट है। मैं यह तस्वीर िेिता

ह ँ तो याि ही नहीं पड़ता दक बाबूजी कब से ऐसे लगने लगे थे? उनकी दचता को, पुत्र होने के नाते, मैंने ही आग िी थी।

लेदकन याि नहीं पड़ता दक उस व$ि मैंने उनका चेहरा िेिा हो...मुझे तो बस िो-तीन पुरानेवाले चेहरे याि आते हैं

उनके । बचपन में मेरी माँ गुज़री थी, तब का। दिर उसके थोड़े दिनों बाि जब मैं स्ट्रैचर पर लेटा हुआ था। एपेंदिसाइदटस

के ऑपरेशन के दलए और बाबूजी उसे धके ल रहे थे। और हाँ, जब मैं पहली ििा हॉस्टल के दलए दनकला था घर

से...ट्रेन में दबठाकर टा-टा कर रहे थे बाबूजी। साथ में घड़ी भी िेिते जा रहे थे बार-बार...क्योंदक ऑदिस पहुँचना था

उन्हें।

रमा चाय लेकर आती है।

रमा : हो गया सब इन्तज़ाम?

उमेश : (चाय का घू ँट लेकर) वाकई चाय की ज़रूरत थी मुझे...अच्छी बनी है...हाँ, सॉरी।...क्या

कह रही थी तुम?

रमा : मैं कह रही थी, सारे इन्तज़ाम हो गए न तेरहवीं के ?

उमेश : नहीं...राधेश्याम जी और गोस्वामी जी ने मना कर दिया है आने से।

रमा : (हैरत से) अरे! क्यों?

उमेश : पता नहीं...बस नहीं आएँगे।

रमा : अच्छा!...$िैर। छोटे-मोटे ब्राह्मणों को ही बुला लो। हमारा काम तो उन्हीं से चल जाएगा।

उमेश : चल जाता। उन्होंने छोटे-मोटों को भी मना कर दिया है आने से।

रमा : हैं!...लेदकन क्यों?

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उमेश : पता नहीं! पूछा तो टाल गए। बाबूजी की दकसी बात से नाराज़ हो गए लगते हैं।

रमा : वैरी सरप्राइदजंग़। हम लोग तो इतने ऊँ चे गोत्रवाले हैं...लेदकन अब होगा क्या? दबना पंदितों

को दजमाए तेरहवीं कै से मनेगी?

उमेश : कल सुबह जाऊँ गा बाबूजी के ऑदिस! शायि वहीं कु छ पंदित दनकल आएँ...उन्हीं से

ररक्वेस्ट करूँ गा। बाबूजी के कु लीग रहे हैं, मान तो जाएँगे ही।

रमा : और अगर न माने तो?

उमेश : मानेंगे क्यों नहीं स्साले...िाना दिला रहे हैं हम उन्हें। माँग थोड़े ही रहे हैं उनसे कु छ।

रमा : तो दिर राधेश्याम और गोस्वामी जी ने क्यों मना कर दिया?

उमेश : कहा न पता नहीं।...हो सकता है िुन्िक रही हो कोई।

रमा : िुन्िक? िुन्िक क्यों होगी? िोनों इतने चक्कर लगाया करते थे बाबूजी के । यह अचानक

क्या हो गया?

उमेश : (दचढ़कर) मुझे क्या पता, क्या हो गया?...कोई बात बताते भी थे बाबूजी हमें?...कु छ भी

शेयर करते थे हमारे साथ?

रमा : अब छोटी-छोटी बातें कोई क्या शेयर करे?

उमेश : तो बड़ी-बड़ी बातें क्या थीं उनकी लाइि में? रंग-भेि नीदत?... इकोलोदजकल

इमबैलेन्स?...अगर होतीं तो भी वो हमसे शेयर नहीं करते, यू.एन.ओ. में जाते।

रमा : इतने दचड़दचड़े क्यों हो रहे हो?

उमेश : तुम बात ही ऐसी कर रही हो। ‘छोटी-छोटी बातें।’ मामूली द जन्िदगयों में कोई बड़ी बात नहीं

हुआ करती है, मैिम!

रमा : दसवाय मौत के ।

उमेश : ना। मौत भी कोई बड़ी और एक्स्ट्राऑदिानरी चीज़ नहीं होती है। बाबूजी जैसे लोग दजतने

चुपके से जीते हैं उतने ही चुपके से मर जाते हैं।

रमा : लेदकन मुसीबत छोड़ जाते हैं...उनके दलए जो पीछे द जन्िा बच गए हैं। िाना दिला रहे हैं

और कोई आने को तैयार नहीं। हमारे दलए उनकी मौत एक्स्ट्राऑदिानरी हुई या नहीं? िुदनया क्या सोचेगी? तुम्हारे बाप

अछू त थे या आतंकवािी?

उमेश : ओह, शट अप! क्या बक रही हो उल्टा-सीधा?

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रमा : चलो दिर तुम ही सीधा-सािा जवाब िो। पंदित जी नहीं होंगे तो तेरहवीं कै से मनेगी? पास-

पड़ोसवाले क्या सोचेंगे?

उमेश : उसकी दचन्ता मत करो। कह िेंगे दक पंदितों की हड़ताल चल रही है। िाना बन्ि दकया

हुआ है सबने। हड़तालों की तो आित है लोगों को...मान जाएँगे। या ज़्यािा हुआ तो हम $िुि ही िाने बैठ जाएँगे।

हम भी तो ब्राह्मण हैं। कह िेंगे बाबूजी की अदन्तम इच्छा थी, सो हम उसी का पालन कर रहे हैं। बस...

रमा : मुझे लगता है तुम कहीं पागल न हो जाओ।

उमेश : (ठंिी साँस भरकर) आधा तो हो ही गया ह ँ। बाकी आधे का कल सुबह ि$फ्तर जाकर पता

चलेगा। (व$क्िे के बाि) सचमुच, रमा समझ में नहीं आ रहा है दक आ$द िर चक्कर क्या है? मरते-मरते ऐसा क्या

कर िाला बाबूजी ने दक हमें उसकी सज़ा भुगतनी पड़ रही है? कल कोदशश करूँ गा पता करने की।

रमा : ज़्यािा गड़े मुिे न उिािऩा। वरना कहीं लेने के िेने न पड़ जाएँ। समझे? अब उठो और

हाथ-मु ँह धोकर आराम करो। आज कोई $िास सीररयल भी नहीं है...जल्िी सो जाएँगे। जब तक अपना बेटा यहाँ था

तो उसकी वजह से हमारी आितें ठीक रहती थीं–टाइम से िाना, टाइम से सोना...

उमेश : हाँ, सो तो है...लेदकन बोदििंग में पता नहीं क्या हाल होंगे मास्टर स्वप्नेश के ?...दच_द यों

से तो लगता है कािी परेशान है घर से िूर।

रमा : घर में होता तब भी यह ही कहता...अटेंशन-कै दचंग दिवाइस यू नो?...वहाँ रहकर तो

दिदसप ंद लि हो जाएँगे बच्चू...िेि लेना।

उमेश : मेरी तरह? हमेशा बीवी की आज्ञा का पालन करने वाला, है न?

रमा : अब उठ रहे हो या नहीं?

उमेश : (उठते हुए) उठ रहा ह ँ, उठ रहा ह ँ।

उमेश अन्िर चला जाता है। रमा िशाकों की ओर मुड़ती है और कहती है–

रमा : (िशाकों से) माि कीदजएगा, बात कु छ अजीब-सी है। मैं तेरहवीं की इतनी दिक्र कर रही ह ँ,

मगर कु छ ऐसे जैसे उसका बाबूजी से कोई मतलब न हो। जब मेरी शािी हुई थी न...तब शुरू-शुरू में, एक बहुत

आज्ञाकारी और सुशील बह का रोल अिा करना पड़ा था। सासू जी थीं ही नहीं, इसदलए आज्ञाकारी बनने में ज़्यािा

तकलीि भी नहीं हुई। िूसरे, कु छ अपने घर के संस्कार भी ऐसे दमले थे। िस्र्ट इम्प्रेशन कािी अच्छा पड़ा था मुझ पर,

बाबूजी का। बड़े अ$िे क्शनेट और बहुत के यर करने वाले। लेदकन जब मेरा बेटा स्वप्नेश पैिा हुआ, इन ररकॉिा टाइम,

तो बाबूजी इस तरह दबहैव करने लगे जैसे यहाँ के इंचाजा हों। हर बात में मीन-मे$ि। ये करो, वो मत करो। बच्चे को ये

दिलाओ, वो मत दिलाओ। ऐसे सुलाओ, ऐसे दबठाओ, ऐसे उठाओ। सुन-सुनकर मैं थक गई। अपनी बीवी के मरने

के बाि उमेश को बचपन से क्या पाल दलया, वो अपने-आपको माँ, िाई, आया सब कु छ समझने लगे। लेदकन शुक्र है

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दक उनका बॉदसज़्म ज़्यािा दिन नहीं चल पाया। मैंने बच्चे को सँभालने के दलए एक आया रि ली जो उनकी भी बॉस

दनकली। उसी की वजह से उनका लगाव कम हुआ और धीरे-धीरे पूरी तरह $ित्म हो गया। थैंक गॉि! मैंने नौकरी की

तो स्वप्नेश प्ले-स्कू ल गया। उसके बाि स्कू ल और अब िायनली बोदििंग। बोदििंग के दलए भी मैंने ही द जि की थी, यू

नो? मैं नहीं चाहती थी दक मेरा बच्चा क्लकोंवाले माहौल में पले-बढ़े। िूर बोदििंग में रहेगा तो िूर की सोचेगा और

इंदिपेंिेंट बनेगा। आई िोंट वॉण्ट माई सन टू दबकम ए पापाज़ बॉय। लाइक दहज़ िािर।

उमेश वापस आता है।

उमेश : आई एम रेिी, ममी। अब तुम भी जल्िी करो। कल बेटा आएगा तो कहेगा मम्मी दकतनी

इनदिदसदप्लंि हो गई हैं।

रमा : हॉस्टल से पहली ििा घर आ रहा है और आते ही तेरहवीं अटेंि करनी पड़ रही है।

उमेश : कोई बात नहीं। अगले दिन उसे चाइनीज़ िाना दिला िेंगे या पीत्ज़ा मँगा िेंगे। जो भी वो

चाहे। दिल्म-दवल्म भी दििा िेंगे, कोई अच्छी-सी। लेदकन उसका तेरहवीं पर होना दबल्कु ल करेक्ट लगता है। आफ्टर

ऑल ही इज़ दि ओनली ग्रैंिसन ऑि पंदित ईश्वर चन्र अवस्थी। अच्छा चलो, अब जल्िी करो। टुमारो इज़ ए लाँग

िे।

िोनों अन्िर जाते हैं। अन्धकार।

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दृश्य तीन

महापादलका का ि$फ्तर। ऑदिस में आमतौर पर होने वाला शोर–टाइपराइटर, घंटी, चाय

के दलए पुकारती आवाजें आदि। प्रकाश आने पर शोर धीमा होता है। हेिक्लका बग्गा का कमरा। उमेश िस्तक िेता है।

दिर अन्िर आता है।

बग्गा : (िीझकर) क्या बात है भई? परेशान कर रिा है आप लोगों ने। पदललक से दमलने का

टाइम तीन बजे से होता है। आप सवेरे-सवेरे चले आ रहे हैं। िेिते नहीं दकतना दबज़ी ह ँ। इतना काम छोड़ गए हैं दपछले

बड़े बाबू दक...$िैर, बोदलए क्या बात है?

उमेश : जी, मैं अवस्थी साहब का बेटा ह ँ...उमेश चन्र अवस्थी।

बग्गा : ओहो! अवस्थी जी के बेटे हैं आप? अच्छा, अच्छा! तो बहुत िुशी हुई जी आपसे

दमलकर। लेदकन आपके $िािर की िैथ का बहुत अिसोस है। $िैर, अब जो िुदनया में आया है, उसे जाना भी ज़रूर

है। एक दिन हम भी चले जाएँगे। ग्रेच्युटी और प्रॉदविेंट िं ि छोड़ के । अवस्थी जी के भी का$गज़ तैयार हो रहे

हैं...बाहर दतवारी जी बैठते हैं, वही इनचाजा हैं। उनसे दमल लीदजए मेरा नाम लेके –रामनारायण बग्गा। एकिम पोज़ीशन

बता िेंगे आपको...

था...

उमेश : जी, शुदक्रया! मैं आपसे बाबूजी की तेरहवीं के दसलदसले में भी कु छ बात करना चाहता

बग्गा : तेरहवीं? सॉरी, सर। इस मामले में ऑदिस की तो कोई ररसपॉदन्सदबदलटी नहीं है। वो तो

आपको अपनी कॉस्ट पर ही करनी पड़ेगी, उमेश जी।

उमेश : जी, वो तो मैं करूँ गा...अपनी कॉस्ट पर ही करूँ गा...लेदकन बात वो नहीं है...मैं तो आपको

इन्वाइट करना चाहता ह ँ...

बग्गा : ओह, आई सी...ज़रूर-ज़रूर...कोदशश करूँ गा आने की। कब रिी है तेरहवीं?

उमेश : जी, रिी नहीं है...परसों हो रहे हैं तेरह दिन पूरे, इसीदलए परसों है तेरहवीं।

बग्गा : ओह, आई सी...आई सी। टाइम क्या रिा है, आई मीन कब हो रहा है, परसों?

उमेश : टाइम रिा है...सुबह ग्यारह बजे।

बग्गा : ग्यारह बजे? आदिस आवजर में? िैर, कोई बात नहीं। इतने पुराने कु लीग थे अवस्थी

जी...मैं पूरी कोदशश करूँ गा आने की। कदमश्नर साहब से भी ररक्वेस्ट करूँ गा। अगर मान गए तो कोई प्रॉललम ही नहीं

होगी। ऑदिदशयल दवद जट हो जाएगी हमारी...शायि वैन का इन्तज़ाम भी हो जाए...और कु छ?

उमेश : दसिा एक बात और पूछनी थी, बग्गा साहब...

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बग्गा : पूदछए, लेदकन प्लीज़ जरा जल्िी...इतना काम छोड़ गए हैं दपछले बड़े बाबू...आइ मीन,

बहुत काम पड़ा हुआ है मेरे पास, िेदिए...हाँ पूदछए।

उमेश : अवस्थी जी कै से इंसान थे?

बग्गा : बहुत ही ग्रेट आिमी थे।

उमेश : अच्छा! कै से, दकस तरह?

बग्गा : ये तो पता नहीं, उमेश जी। लेदकन मरने के बाि आिमी के दलए ऐसा ही बोला जाता है। ये

भी कहा जाता है दक िलाँ के मरने से जो जगह िाली हुई है उसे कोई नहीं भर सकता। जबदक मैं उसी कु सी पर बैठा

हुआ ह ँ जो आपके दपताजी $िाली छोड़ गए हैं...ये सब िुदनयािारी की बातें हैं, यू नो?

उमेश : यस सर, आई नो...थैंक्यू। थैंक्यू वेरी मच। (जाने लगता है।)

बग्गा : दतवारी जी से दमल लीदजएगा...मेरा नाम लेके –राम नारायण बग्गा।

उमेश चला जाता है। बग्गा अपनी िाइलों में व्यस्त हो जाता है। अन्धकार। ि$फ्तर के िूसरे

भाग में प्रकाश। दतवारी की कु सी। उमेश उनके दनकट पहुँचकर कहता है।

उमेश : नमस्कार, दतवारी जी।

दतवारी :

(दबना सर उठाए) नमस्कार।

उमेश : जी, मुझे बग्गा साहब ने भेजा है आपके पास।

दतवारी : बग्गा? आजकल बहुत ज़्यािा ही लोगों को भेज रहा है ये लकड़बग्घा। नया-नया मु$ग ा

ज़्यािा ही बाँग िेता है न! बोलो, क्या बात है?

उमेश : जी, मैं उमेश चन्र अवस्थी ह ँ, दपछले हेिक्लका साहब का बेटा।

दतवारी : (अचानक उठकर, ज़बिास्ती हाथ दमलाते हुए) दछ: दछ: दछ: दछ:! मन करता है जूता मारूँ ,

अपने मु ँह पर। मैंने आपको पहचाना क्यों नहीं? अभी दमले तो थे हम...िस-बारह साल पहले... आपके बच्चे के मु ंिन

पर। कदहए, कै से हाल हैं? मैं तो बहुत बीमार चल रहा ह ँ...िाँसी, जुकाम, सिी...मौसम बिल रहा है न? बैदठए तो

सही...बोदलए क्या लेंगे?...ठंिा? गरम? कु नकु ना?

उमेश : जी, कु छ नहीं, थैंक्यू...मैं बाबूजी की तेरहवीं के दसलदसले में आया था...

दतवारी : ज़रूरत ही नहीं थी आने की। मैं तो िुि पहुँच जाता। दविाउट िे ल।...परसों ही है न?

उमेश : जी!

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दतवारी : िेिा?...सारा दहसाब लगा के रिता ह ँ, मैं तो कै लेंिर में। (दििाते हुए) ये िेदिए, लाल

स्याही से गोला बना हुआ है ग्यारह तारी$ि पे। बना हुआ है न?

उमेश : (िेिकर) जी हाँ, बना हुआ है...कािी बड़ा।

दतवारी : बड़े बाबू थे न, इसदलए बड़ा बनाया...आगे छोटा भी है, उन्नीस पे...हमारे चपरासी राम

दिलावन की बरसी है उस दिन।

उमेश : बीच में एक क्रॉस भी लगा हुआ है, सोलह तारी$ि पे।

दतवारी : उस दिन एक शािी है, लेदकन मैं नहीं जाऊँ गा। हमारा झगड़ा चल रहा है लड़कीवालों से।

मैंने कहा था सारा अरेंजमेंट एन-वन टेंट हाउसवालों से कराओ, लेदकन उन्होंने दकसी और से करा दलया। बेवकू ि हैं।

लुट जाएँगे, िेिना। आप दकससे करवा रहे हैं, भैया जी?

उमेश : दकसी से नहीं, दतवारी जी। छोटा-सा आयोजन है, घर में ही हो जाएगा।

दतवारी : ठीक है, कोई बात नहीं, लेदकन आगे कभी ज़रूरत पड़े तो बताइएगा। (एक कािा िेते हुए)

ये कािा रि लीदजए। ए-वन टेंट हाउस मेरे भांजे का है। बहुत कन्सेशन दमल जाएगा आपको। घर की बात है न...यहाँ के

ज़्यािातर ठेके ए-वन को ही जाते हैं।

उमेश : आइ सी।...

दतवारी :

तो दिर क्या लेंगे? ठंिा? गरम? कु नकु ना?

उमेश : जी, कु छ नहीं...धन्यवाि। बस वो...हाँ, ग्यारह बजे की है।

दतवारी :

क्या?

उमेश : तेरहवीं।

दतवारी : ओह हाँ, आप तो तेरहवीं के दलए बुलाने आए थे...घर में कर रहे हैं आयोजन। पंिाल-

वंिाल की ज़रूरत नहीं है। $िैर, कोई बात नहीं...मैं तब भी आऊँ गा। दविाउट िे ल। यह तो मेरा मानवीय कताव्य है।

जहाँ तक दवभागीय कताव्य है उसके बारे में भी बता िू ँ। िैथ की िाइल िोल ली है मैंने अवस्थी जी की। आपको दसिा

इतना करना है दक िैथ सदटादिके ट की एक िोटोकॉपी मुझे िे िें...दविाउट िे ल। या परसों तो आ ही रहा ह ँ, तब ही िे

िीदजएगा।

उमेश : मगर...

दतवारी :

चुपके से िे िीदजएगा। िुदनया के काम तो चलते ही रहते हैं न...

उमेश : अच्छा। थैंक्यू...अब मैं चलू ँ।

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दतवारी :

उमेश : जी, कु छ नहीं।

दतवारी :

नहीं-नहीं, बैदठए। यह बताइए दक लेंगे क्या आप? ठंिा? गरम? कु नकु ना?

दमठाई, नमकीन, चटपटा?...कु छ तो लीदजए न, प्लीज़!

उमेश : जी नहीं, दतवारी जी...सचमुच दबल्कु ल मन नहीं है।

दतवारी : हाँ। आजकल कहाँ होता होगा आपका मन, इन सब चीज़ों के दलए...सूना-सूना लगता

होगा सब संसार। जैसे दक हमें लगता है, यहाँ ऑदिस में...ऊपर से िेिो तो सब कु छ वैसा ही है, लेदकन दिर भी कु छ

बिल गया है। बहुत आित हो गई थी न हमें अवस्थी जी की।

उमेश : जी।

दतवारी : इतनी िाइलें रहती थीं उनकी टेबल पर दक पता नहीं चलता था दक कहाँ वो शुरू हुए और

कहाँ िाइलें...बहुत चुपचाप रहते थे हमेशा...घर से ि$फ्तर और ि$फ्तर से घर...अन्िर ही बैठते थे। बग्गा यहाँ बैठता

था जहाँ मैं बैठा ह ँ...और मैं वहाँ। वो कोनेवाली सीट अक्सर $िाली रहती है। हमारे $िरे बाबू की है। बहुत ही

मस्तमौला आिमी हैं। आए, आए, नहीं आए नहीं आए। यूदनयन में हुआ करते थे पहले। लेदकन अब भी रौब है। पीते-

दपलाते भी हैं। $िैर...

उमेश : मेरे दपताजी से आपके सम्बन्ध कै से थे?

दतवारी : सम्बन्ध?...आपके दपताजी से? बहुत अच्छे थे...कम-से-कम मेरी तरि से तो। वो भी

ब्राह्मण थे, मैं भी ब्राह्मण ह ँ तो सम्बन्ध तो अच्छे होने ही थे न...लेदकन वो शायि इन सब बातों को ज़्यािा मानते नहीं

थे...और आ$द िरी दिनों में थोड़ा सनक गए थे।

उमेश : लड़ाई-झगड़ा करने लगे थे लोगों से?

दतवारी : न, न, न...ऐसा स्वभाव नहीं था उनका। बहुत ही शान्त आिमी थे वो। धमा-युि में भी

दवश्वास नहीं था। बदल्क कोई िूसरा उनसे झगड़ता था तो भी कु छ नहीं बोलते थे। चुपचाप सह लेते थे सब कु छ। जैसे

उस दिन, कोई छ:-सात महीने पहले, कािी हंगामा हो गया था ि$फ्तर में...

अँधेरा। ि$फ्तर का रोज़मर ा का शोर। टेलीिोन, टाइपराइटर की आवाज़ें। ‘छोटू एक कप

चाय लाना’। ‘अबे, तुझे एररयजर दमले हैं सबको चाय दपला।’ ‘मेरी मादचस कहाँ गई?’ ‘तेरी दकतनी के जुअल लीव

बाकी हैं?’ ‘िरे बाबू आज भी नहीं आए।’ ‘कु छ पौआ है दमदनस्ट्री में क्या?’...’एक नई पोस्ट िाली हो रही है लॉ

सेक्शन में!’ व$गैरह-व$गैरह। िुबारा प्रकाश आने पर छह माह पुराना दृश्य। उमेश अनुपदस्थत। अवस्थी जी, बग्गा तथा

दतवारी अपने पुराने स्थानों पर। एक-िो चपरासी, टाइदपस्ट, तीन-चार अन्य क्लका तथा मुख्यद्वार से प्रवेश करता हुआ

जे.जे. कॉलोनी की मदहलाओं और बच्चों का एक समूह। उन पर नज़र पड़ते ही एक क्लका सबसे कहता है।

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क्लका 1 : (िबी आवाज़ में) लो, भैया...आ गई मुसीबत। पदललक से दमलने का दिन माने

झोपड़पट्टीवालों का दिन। सुबह-सुबह आन मरती हैं, साली।...चलो दबज़ी दििो वरना दचपट जाएँगी ये औरतें...

हैं...

औरत :

जे.जे. कॉलोनी की औरतें कु छ िेर इन्तज़ार करती हैं, दिर धीरज िोकर कहती हैं।

(क्लका को पुकारकर) ऐ, भैया...कु छ हमारी भी सुनवाई होएगी दक नहीं? बहुत िेर से िड़े

क्लका 1 : हाँ-हाँ। क्यों नहीं?...तुम्हीं लोगों के दलए तो बैठे हैं हम यहाँ... (पुकारकर) ओए छोटे, चाय

नहीं लाया अभी तक?...(औरतों से), हाँ, बोलो, क्या बात है?

औरत 1 :

क्लका 1 :

औरत 3 :

क्लका 1 :

औरत 3 :

पास के मैिान का?

हम बसन्त दवहार के पास वाली जे.जे. कॉलोनी दपररए िरसनी दबहारवाले हैं।

अरे इतना भी नहीं जानू ँगा?...हमीं ने तो पक्की करवाई थी तुम्हारी झोपड़पट्टी।

अजी हाँ। तुमने करवाई थी...वो तो इलेक्सन आ गया था सो हो गई पक्की।

दिर भी, हुई तो हमारे ही हाथों से। $िैर छोड़ो...िटािट काम की बात बोलो।

तुम्हारा महकमा बाग-बगीचे और सिाई वगैरह का है न?...तो बताओ क्या हो रहा है हमारे

औरत 2 : अजी मैिान कहाँ है? वहाँ तो गि ढे हुए पड़े हैं। दजनमें बरसात का पानी भर गया हैगा। इत्ते

मच्छर-मक्िी हो गए हैं दक पूछो मत।

क्लका 1 :

वो तो इसदलए हो गए हैं दक वहाँ तुम सब लोग...

औरत 1 : हाँ-हाँ हगते-मूतते हैं। जेई कै ना चाह रये हो न तुम? तो तुम्हीं बताओ, भैया, कहाँ हगें-मूतें?

पुरानी वाली टरट्टयाँ तुमने तोड़ िई और नई वाली अभी तक बनाई नहीं हैं। ऐसे में लोग कहाँ जाएँ।

औरत 2 :

हमने तो कही थी ‘अभी मत तोड़ो।’ पर दकसी ने कान ही नहीं दिया।

औरत 3 : अिसर जी बोले थे दचन्ता मत करो, यहाँ की काया पलट हो जाएगी, सात दिन में सब कु छ

नया बन जाएगा...लेदकन िो साल हो गए, अभी तक दतनका नहीं दहला वहाँ पे।

औरत 2 : इलेक्सन के बाि दकसी की सकल ही दििाई नहीं िी। नेता जी ने कहा था बच्चों के दलए

पारक बनेगा, घास लगेगी, दबंच लगेगी, झूले लगेंगे...

क्लका 1 :

तो झूले पे बैठके करम का इरािा है तुम्हारा? (सब हँसते हैं। व$क्िा।)

औरत 1 : झूले पे तो भैया, अपनी महतारी और घरवाली को दबठाना। हमें तो बस इतना बता िो दक

वहाँ पारक कब बन रहा है–और साथ में टरट्टयाँ भी?

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औरत 1 : मच्छर-मक्िी के कारन बहुत बीमाररयाँ िै ल रही हैं कालुनी में। चम्पा के बेटे को िमा हो

गया है। रूकमनी की दबदटया का पनपना ही बन्ि हो गया है...िस साल की उम्र में िे िड़े दसकु ड़ रहे हैं उसके । सबको

दिन-भर छींकें आती रहती हैं, आँिें जलती रहती हैं...नाकें बहती रहती हैं...िस्त लग रहे हैं...

क्लका 1 : बस, बस, बस! ये कोई $िैराती अस्पताल है क्या? बीमाररयाँ दगनानी हैं तो मेदिकल

इंस्टीट यूट जाओ। ये म्युदनदसपल कापोरेशन का ि$फ्तर है। समझीं। यहाँ हर काम कायिे से होता है।

औरत 1 :

तो हम कब कह रहे हैं बेकायिा करो। लेदकन करो तो सही।

क्लका 1 : कर रहे हैं, कर रहे हैं। लेदकन तुम लोग करने तो िो। जािू का िंिा तो है नहीं हमारे पास दक

घुमाते ही बन गया तुम्हारा पाका और टरट्टयाँ...थोड़ा सब्र तो...

औरत 3 :

सबर? िो साल से और क्या कर रहे हैं, भैया?

क्लका 1 : थोड़ा और कर लो...इलेक्शन आ ही रहे हैं दिर से...इस बार यह काम भी हो जाएगा

तुम्हारा। तुम तो वोट बैंक हो भई, सरकार के । हमसे ज़्यािा पूछ तुम्हारी है। हम तो नौकर हैं, हुकु म के गुलाम। बहरहाल

पोज़ीशन यह है दक मेरा दिपाटामेंट यानी हॉदटाकल्चर तब तक अपना काम शुरू नहीं कर सकता जब तक कं स्ट्रक्शन

वाले ज़मीन सपाट न कर िें। समझीं? इसदलए अगली दिड़की पर जाओ और वहाँ पता करो।

औरतें िूसरी दिड़की पर पहुँचती हैं।

क्लका 2 : मास्टर प्लान के दहसाब से तो हमें तीन साल पहले ही, ज़मीन सपाट करके हॉदटाकल्चर

वालों को िे िेनी चादहए थी। लेदकन मेनटेनेंस वालों ने अभी तक हमें बुलिोज़र और मशीनें सप्लाई नहीं कीं तो हम

क्या कर सकते हैं? आप अगली दिड़की से पता कीदजए।

औरतें तीसरी दिड़की पर पहुँचती हैं।

क्लका 3 : हाँ, हाँ ये ही मेनटेनेंस है। हमारी पोज़ीशन यह है...सारी मशीनें और बुलिोज़र $िै क्टरी में

पड़े हुए हैं–मरम्मत के दलए। ईयर क्लोद जंग पर कु ल िस परसेंट मशीनें वदकिं ग ऑिार में थीं जो वी.आई.पी. एररयाज़ को

अलॉटेि हैं। बाकी के दलए क्या कहें और दकससे कहें? िाइनेन्सवाले पैसा नहीं िेते, और इंजीदनयसा स्ट्राइक पर हैं। तुम

लोग ऐसा करो दक िो-तीन महीने बाि पता करो। वैसे तुम्हें सैनेटरी दिपाटामेंट में भी अपनी दशकायत करनी चादहए।

उन्हीं का काम है सिाई करवाना, मक्िी-मच्छर और कू ड़े और गटर की। लेदकन उसके इनचाजा िरे साहब आज आए

नहीं हैं।

क्लका 1 :

आज?...कभी आते भी हैं वो? (सब हँसते हैं।)

क्लका 2 : इन्हें बता िो, िरे साहब से दमलना हो तो िारू के ठेके पे चली जाएँ... वहाँ िरे-िोटे का

िका समझ में आ जाएगा इन्हें। (और ज़्यािा ज़ोर से हँसते हैं।)

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औरत 1 : (दचल्ला के ) अरे सरम नहीं आवे मसिरी करने में? साि-साि बताओ दक अगर साि-

सिाई हो जावे, जमीन भी सपाट हो जावे उसके बाि तो वहाँ पारक बनेगा न? (चुप्पी)

क्लका 1 :

क्लका 2 :

क्लका 3 :

(आपस में) कहीं वो मदन्िरवाली बात...?

नहीं, नहीं...वो कहाँ सुनी होगी?

कु छ लोगों की बहुत ज़बान चली है ऑदिस में!

औरत 2 : अरे बोलते क्यों नहीं?...पारक बनेगा न? और भी सबर कर लेंगे मगर ये तो पक्का बता िो।

(चुप्पी) हमने कु छ ऐसा सुना है दक उस मैिान में कोई मदन्िर-वदन्िर बनने की बात चल रही है...सो वो तो सही नहीं है

न?...बोलते क्यों नहीं (सनसनी)

क्लका 1 :

क्लका 3 :

क्लका 2 :

इनको लीगल की दिड़की पर भेज िो। वो ही बता िेगा।

हाँ। हाँ...ऐसा करो, वहाँ चली जाओ...उस दिड़की पर।

वो कानूनवाले हैं–कायिे से बता िेंगे।

औरतें चौथी दिड़की पर पहुँचती हैं।

क्लका 4 : िेिो बाई, हमारे पास िु रसत नहीं है दक पूरा के स तुम्हारे साथ दिस्कस करें...वैसे भी तुम्हें

समझ में नहीं आएगा। स्टे ऑिार का मतलब जानती हो?

औरत 1 :

हाँ, जानते हैं...अिालत से हम भी लाए थे।

क्लका 4 : तो बस, सुना है उस पाका वाली ज़मीन पर कोई ट्रस्ट स्टे ला रहा है, मदन्िर बनवाने के दलए।

ये हो गया तो तुम्हारा तो भला-ही-भला।

जाएँगे?

सभी औरतें : हे भगवान!

औरत 1 :

औरत 2 :

क्लका 4 :

औरत 3 :

वहाँ मदन्िर कै से बन सकता है भई! वो जगह तो पाका और टरट्टयों के दलए है।

पहले भी वहाँ टरट्टयाँ ही थीं...

तो क्या हुआ? हवन कराके और गंगा-जल दछड़क के शुि हो जाएगी।

लेदकन मदन्िर बनेगा तो भीड़-भड़क्का होगा, भोग लगेगा, शोर बढ़ेगा। दिर हम लोग कहाँ

क्लका 4 : मुझे क्या पता कहाँ जाओगी? मैंने तो जो पोज़ीशन है वो बता िी। आगे भगवान तुम्हारे

पड़ोस में होगा, उससे कह िेना अपनी दवपिा। मुझे ब$ख्शो।

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औरत 1 : (हाथ जोड़कर) ऐ भैया, तुम दवपिा न िो तो भगवान की ज़रूरत ही क्या है? हम हाथ

जोड़कर कहती हैं, हम पे िया करो। वहाँ मदन्िर न बनवाओ। बहुत छोट-सी जगह है, वो भी हमसे दछन जाएगी। अभी

तो गन्िगी थोड़ी िूर है, दिर हमारी चौिट पे ही आ जाएगी। मर जाएँगे हम जीते जी।

औरत 3 :

क्लका 2 :

जो महत्ता मन के दलए पूजा-पाठ की होती है वही तन के दलए हाजत की होती है!

मदन्िर से तो धरम-करम बढ़ेगा, पूजा-पाठ होगा, और मन को शादन्त दमलेगी।

औरत 2 : (चीिकर) अरे कै से दमलेगी? पेट में गू भरा होगा तो कहाँ भागते दिरेंगे? मदन्िर तो सेठ-

साह कारों के चोंचले हैं। पूजा-पाठ तो कहीं भी कर सके हैं लेदकन हाजत के दलए कहाँ जाएँगे हम? कब तक बैठते रहेंगे

अपना बिन उघाड़कर िुले में...दकतना बेसरम बनाओगे हमें? अपने घर की औरतों को एक दिन रि के िेिो हमारे

यहाँ। सारी पूजा-पाठ और धरम-करम भूल जाएँगी। अरे पहले तन का धरम तो पूरा कर लेने िो। उसके बाि ही मन का

धरम दनभेगा।

औरत 1 : बुलाओ अपने अिसर जी को। हम बताएँगे मन की सादन्त क्या होती है। बस्ती की सारी

औरतें यहाँ धरना िेकर बैठेंगी, उनका और तुम सबका दघराव करेंगी और तब तक के दलए तुम्हारा हगना-मूतना बन्ि

कर िेंगी जब तक दक तुम्हारी पतलून िराब नहीं हो जाती। समझे?

कु छ पल को तनाव भरी $िामोशी।

क्लका 3 : ओ$फ्िोह! क्या मुसीबत ले ली हमने! अवस्थी जी कहाँ हैं? उन्हें बुलाकर लाता ह ँ, वो ही

सँभालें इन्हें। (जाने के दलए बढ़ता है।)

बग्गा : (मसलहतन उसे रोकते हुए) रुको। अवस्थी जी क्या सँभालेंगे इन्हें? उन्हीं की ढील का तो

नतीजा है। मैं कदमश्नर साहब को बुलाकर लाता ह ँ। (चलते-चलते दतवारी से) दतवारी जी, इन्हें समझा िेना ज़रा।

बग्गा चला जाता है। दतवारी औरतों के दनकट आता है।

दतवारी : (गला िँिारकर) िेिो माताओ और बहनो, इतना गुस्सा अच्छी बात नहीं है। थोड़ा ठंिे

दिल से बात करनी चादहए न। हम लोग तो मामूली नौकर हैं सरकार के । और सरकार तुम्हारी है। तुम्हारा ध्यान रिती

है। तुम्हारे भले के दलए सोचती है। तुम्हारी सेवा करती है। लेदकन तुम्हें भी उसके बारे में सोचना चादहए न थोड़ा-बहुत।

ध्यान रिना, बड़े साब बहुत बड़े आिमी हैं। बहुत दबज़ी रहते हैं। इसदलए बहुत इज़्ज़त से पेश आना। और बहुत कम

शलिों में अपनी बात कहना। उल्टा-सीधा दबलकु ल नहीं बोलना–जैसे अभी बोली थीं–धरना, घेराव, पतलून व$गैरह।

ठीक? और यहाँ दकसी की दशकायत भी नहीं करना...भले ही तुम लोग वोट बैंक हो, सरकार के प्यारे हो, लेदकन सारी

िाइलें हमारे पास ही रहती हैं और सारे काम हमारे हाथों से ही होते हैं। समझ गई ंन? ठीक। बस अब चुप। कदमश्नर

साहब आ रहे हैं।

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एक ओर से कदमश्नर का प्रवेश। साथ में उसका पी.ए. तथा बग्गा। तभी िूसरी ओर से

राधेश्याम और गोस्वामी का प्रवेश। कदमश्नर उन्हें िेिकर सबसे ‘एक दमदनट’ कहता है और रास्ता बिलकर।

कदमश्नर :

िोनों : नमस्कार।

नमस्कार पंदित जी, नमस्कार।

कदमश्नर : आप लोग चलकर मेरे कमरे में बैदठए, मैं अभी आया...बस िो दमनट में। (चपरासी से)

जगिम्बा, इन्हें मेरे कमरे में दबठाओ और कु छ कोक-पेप्सी मँगवाओ।

जगिम्बा उन्हें लेकर जाता है। कदमश्नर औरतों की ओर वापस लौटता है।

कदमश्नर : (हाथ जोड़कर आिर से) घबराइए मत! मुझे सब पता है दक समस्या क्या है। दप्रयिशानी

दवहार के पास वाली ज़मीन पाका के दलए है और मास्टर प्लान का दहस्सा है। जन सुदवधाओं का एक ललॉक भी बनना

तय हुआ था वहाँ, इस बात से भी कोई इनकार नहीं। लेदकन कॉपोरेशन को बहुत-सी तकनीकी उलझनें और परेशादनयाँ

होती हैं। इस शहर में दसिा आप की ही एक जे.जे. कालोनी नहीं है। िो हज़ार से ज़्यािा बदस्तयाँ हैं और ये संख्या दिन-

ब-दिन बढ़ती जा रही है। हर रोज़ औसतन तीन सौ पररवार, रोज़ी-रोटी की तलाश में इस शहर में आते हैं और दिर

ज़्यािातर यहीं बस जाते हैं। आबािी करोड़ों में पहुँच चुकी है। ऐसे में आप कै से उम्मीि कर सकती हैं दक दकसी

चमत्कार से समस्याएँ दमनटों में सुलझ जाएँगी? दिर भी सरकार और कॉपोरेशन को धन्यवाि िें दक आपकी झोपदिय़ाँ

पक्की करवा िीं। थोड़ा धीरज रदिए। हम से जो बन पड़ रहा है वो कर रहे हैं और करेंगे। आपके बार-बार यहाँ आने से

और इस तरह शोर-शराबा करने से कोई िायिा नहीं होगा। उल्टे काम दबगड़ जाएगा। और सरकार को मजबूर होकर

बहुत स$ख्त किम उठाने पड़ेंगे। समझे आप लोग? जो कु छ भी होगा, आपके भले के दलए होगा। बस अब जाएँ

प्लीज़...जय दहन्ि।

औरतें हाथ जोड़े, दबना कु छ बोले, चुपचाप बाहर दनकल जाती हैं। कु छ पल $िामोशी।

इस िौरान अवस्थी जी भी आकर िड़े हो चुके हैं। कदमश्नर अचानक मुड़कर क्रोध में कहता है।

कदमश्नर : (क्रोदधत स्वर में) हि होती है बेवकू िी की। दकसने कही इनसे यह बात दक पाका -वाका कु छ

नहीं बनेगा और मदन्िरवाले स्टे ऑिार लाने की सोच रहे हैं? (कोई जवाब नहीं िेता।) बोदलए... इतनी कॉदन्ििेदन्शयल

बात लीक कै से हुई?...(अब भी कोई कु छ नहीं कहता। कदमश्नर अवस्थी को सम्बोदधत करता है) दमस्टर अवस्थी,

आपका अपने स्टाि पर इतना भी कं ट्रोल नहीं है? दकसने बना दिया आपको यहाँ का हेिक्लका ?

अवस्थी :

सौरी, सर।

कदमश्नर : इस भुलावे में मत रदहएगा दमस्टर अवस्थी, दक आपके ररटायरमेंट में छह-सात महीने बचे हैं

तो आप पर कोई एक्शन नहीं दलया जा सकता। मैं कोई भी के स थोपकर ग्रेच्युटी, पेंशन सब रुकवा सकता ह ँ।

अवस्थी :

यस सर।

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कदमश्नर : यस सर, सॉरी सर! सॉरी सर, यस सर! इसके अलावा कु छ और भी सीिा है आपने? पता

नहीं कै से अच्छी सी. आर. लेकर प्रोमोट हो जाते हैं लोग। चदलए, मु ँह क्या ताक रहे हैं, इस के स की िाइल िीदजए।

अवस्थी :

यस सर।

कदमश्नर : जल्िी कीदजए (अवस्थी िाइल िेता है। कदमश्नर िाइल पढ़ता है और तब थोड़ी आवाज़

कम करके बोलता है।) अवस्थी साहब। कम-से-कम अब जो मैं बताऊँ वो ध्यान से सुदनएगा। िाइल पर ज़रा ढंग की

नोदटंग्स कररए। मदन्िर का िायरेक्ट रेिरेन्स अभी मत लाइएगा। दलि िीदजए दक आज जे.जे. कॉलोनी के नुमाइन्िों से

बातचीत हुई और उन्होंने माँग की दक उनके पासवाली ज़मीन को दकसी पदवत्र जगह के दलए इस्तेमाल दकया जाए

दजससे जन-साधारण का लाभ हो...समझ गए...या...

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

यस सर।

दिर यस सर। समझे दक नहीं?

आई दवल ट्राइ माई लेवल बेस्ट, सर।

अपना लेवल बैस्ट रहने िीदजए। जैसा कहा गया है, वैसा कर िीदजए। समझे दक नहीं?

िाइल अवस्थी की तरि िें कता है।

यस सर।

कदमश्नर : ये िाइल अपने पास रदिएगा, लॉक एंि की में। अब के कोई बात लीक हुई तो आपके

दलए ठीक नहीं होगा। ररटायरमेंट के बाि की द जन्िगी भी भारी पड़ जाएगी। (जाते-जाते) मेरे ऊपर क्या-क्या प्रेशर रहते

हैं, मालूम तो सब है आपको, मगर आपको क्या?

कदमश्नर के पीछे-पीछे बग्गा और पी. ए. जाते हैं। कु छ पल सब जड़ िड़े रहते हैं। अवस्थी

झुककर िाइल उठाता है, झाड़ता है, सँभालते हुए भारी किमों से अपने के दबन में जाता है। िाइल उठाते व$ि

अवस्थी की जेब से िवा की गोदलयों का पत्ता दगरता है। पत्ता दतवारी उठाता है। अवस्थी के पीछे-पीछे के दबन में जाता

है। इनके अलावा सब पर प्रकाश लुप्त। अवस्थी गहरी साँस लेता है, ििा से तड़पकर पेट पकड़ता है, सहारा लेकर िूसरे

हाथ से जेब टटोलता है। दतवारी िवा का पत्ता िेता है। अवस्थी आभार प्रकट करता है। गोली मु ँह में िालकर मेज़ पर

रिा दगलास उठाकर पानी पीता है और गोली दनगल जाता है। अन्धकार। प्रकाश आने पर पुन: दपछला दृश्य। वतामान।

दतवारी जी और उमेश और अन्य सभी अपनी पुरानी दस्थदत में।

दतवारी : तो बस जी, ऐसे थे आपके दपताजी। एकिम गऊ...शान्त और चुपचाप। बुझे-बुझे। मगर सुना

है दक पच्चीस साल पहले बड़ी रौनक रहती थी उनके चेहरे पर। हमेशा दिले-दिले रहते थे। दिर उन्हीं दिनों आपकी

माताजी का िेहान्त हो गया। और सब कु छ बिल गया। स्त्री के चले जाने के बाि जीवन की रौनक भी चली जाती है।

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आिमी एकिम बुझ जाता है...$फ्यूज़ हो जाता है...(िोन आता है।) ‘दतवारी!... ओहो लक्ष्मी जी आप!...औ हाँ...’

(िोन रिता है।) रि दिया नहीं तो अवस्थी जी का समाचार उन्हें तो िे ही िेना चादहए था।

उमेश : ये लक्ष्मी जी कौन हैं?

दतवारी : होती थीं इसी ऑदिस में...बहुत चंचल, बहुत...िैर! हाँ तो भैया जी, मैं कह रहा था दक स्त्री

का बहुत ही महत्त्व होता है जीवन में...आ$द िरी दिनों में कु छ रौनक आई थी अवस्थी जी के चेहरे पर। वो कहते हैं

न...बुझने से पहले...वो जो होती है, मोमबत्ती...शमा... भड़कती ज़रूर है...बस, वैसे ही। (अचानक िरे आता है।) लो

जी लो...िरे बाबू भी आ गए। (िरे से ऊँ चे स्वर में) आइए, आइए िरे बाबू...आज ि$फ्तर कै से चले आए?

आज...कहीं ड्राई िे तो नहीं है? (िरे आकर दतवारी से हाथ दमलाता है) इनसे दमदलए...ये हैं उमेश अवस्थी जी के

बेटे...और मैं दतवारी।

िरे : (बड़ी गमाजोशी से उमेश से हाथ दमलाते हुए) मु ँह-िेिी बात करने की मुझे आित नहीं है,

उमेश जी। बहुत अिसोस है मुझे आपके िािर का। मैं आना चाह रहा था आपसे दमलने। चलता भी था आपके घर की

तरि लेदकन रास्ता कहीं और ही मुड़ जाता था हमेशा।

उमेश : जी।

िरे : बहुत िुशी हो रही है आपको िेिकर...हालाँदक मौका बहुत ग़म का है। $िैर...चदलए मेरे

साथ। बैठकर चाय-वाय पीते हैं।

दतवारी : चाय ही दपलाना िरे बाबू, वाय नहीं। (िरे और दतवारी हँसते हैं) हमें पता है आपने अच्छे-

अच्छे सन्तों को दबगाड़ दिया, अब इन पे रहम करना। आप भी, उमेश जी, अपना ध्यान रदिएगा।

िरे : दकसी ने पूछा तो नहीं मेरे बारे में, दतवारी जी?

दतवारी : क्या बात करते हैं, जनाब। दकसमें इतनी दहम्मत है? सबको पता है दक आप कहाँ होते

हैं...वो क्या शेर बोलते हैं आप?

िरे : ‘हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी, कु छ हमारी $िबर नहीं आती’।

दतवारी : हाँ, जी, हाँ...यही। तो बस, आपको अपनी $िबर आती नहीं और िूसरा कोई $िबर लेता

नहीं...एंजॉय कीदजए। अरे हाँ, लक्ष्मी का िोन आया था दक...

िरे : दक वो शाम को आएँगी!

दतवारी :

हाँ, जी हाँ...अपनी $िबर आए न आए मगर उनकी $िबर रहती है आपको...

िरे : शुदक्रया...आइए, उमेश जी।

िरे : (पुकारते हुए) छोटे! िो चाय लाना। हमारी वाली...स्पेशल।

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है।

िोनों िरे की मेज़ पर जाते हैं। प्रकाश अन्य स्थानों से लुप्त और िोनों पर के दन्रत हो जाता

उमेश : (कु छ पल की चुप्पी के बाि) तो...यहीं बैठते हैं आप?

िरे : जी हाँ।...अगर ि$फ्तर आता ह ँ तो यहीं बैठता ह ँ।

उमेश : िील्ि वका ज़्यािा रहता है आपको?

िरे : आपको पता नहीं है दक मेरा दिपाटामेंट क्या है...सेनेटरी दिपाटामेंट यानी कू ड़ा-कचरा,

नाली-गटर और शौचालय। इसदलए ि$फ्तर के लोग मेरे साथ भी छु आछू त का सलूक करते हैं। पता है दकस नाम से

बुलाते हैं मुझे? टट्टी मल। या हग्गू इंस्पेक्टर। और अँग्रेज़ीवाले कहते हैं ओह दशट! कु छ पुराने ठेके िार जब मुझसे कहते

हैं दक कभी $गरीब$िाने पे तशरीि लाइए...तो मैं कहता ह ँ कभी मेरे पै$िाने पे तशरीि लाइए (हँसता है। उमेश कु छ

झेंपा हुआ है।) माि कीदजए, मेरे अल्िाज़ आपको बहुत क्रू ि और दघनौने लग रहे होंगे...लेदकन इतने लम्बे तजुबे के

बाि मैं इस नतीजे पर पहुँचा ह ँ दक यही द जन्िगी की सबसे बड़ी हकीकत है–एस्थेदटक्स की सबसे आ$द िरी

मंद जल–जहाँ पहुँचकर कला और कलाकार िोनों एक हो जाते हैं। दक्रएशन और दक्रएटर का िका दमट जाता है। और

चाहे दकतने ही $िूबसूरत अल्िाज़ इस्तेमाल कर लें, लेदकन दशट हमेशा दशट ही रहता है। रीअल, प्योर, अल्टीमेट,

दशट...

छोटू चाय लेकर आता है और दगलास रिकर चला जाता है। एक-िो घू ँट तक $िामोशी।

िरे : अब आप कु छ बोदलए, उमेश जी। वरना मेरी दशटी दिलॉसिी िुबारा शुरू हो

जाएगी...शराब के दबना मुझ पर इसी तरह के िौरे पिऩे लगते हैं।

उमेश : मैं क्या बोलू ँ, िरे साहब! मैं तो दसिा सुनने के दलए ही आया ह ँ...अपने िािर को लेकर

बहुत सारे सवाल हैं दिमा$ग में। आपने इतने बरस काम दकया है उनके साथ...आप तो बहुत कु छ जानते होंगे उनके

बारे में?

िरे : क्या आयरनी है! बेटा अपने बाप के बारे में एक अजनबी से पूछ रहा है। वैसे शायि जानने

के दलए एक ज़ादवए और नज़र की ज़रूरत होती है। बरसों साथ काम करके भी हम दकसी को पहचानने तो लगते हैं

लेदकन जानने का िावा नहीं कर सकते। सच पूदछए तो दपछले पन्रह-बीस बरस से मैं दसिा उन्हें पहचानता था दक ये

श्री ईश्वरचन्र अवस्थी हैं। उन्हें जानने का शिा हादसल हुआ दसिा आ$द िर के छ: महीनों में। है न अजीब बात!

उमेश : क्या जाना आपने उनके बारे में?

िरे : बहुत ज़्यािा नहीं, थोड़ा-सा। लेदकन बहुत $िास।

उमेश : क्या?...मुझे बताइए, प्लीज़...

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िरे : ...मेरा $ख्याल है आज नहीं...दिर कभी। तेरहवीं के बाि।...दकसी शाम आ जाइएगा मेरे

पै$िाने पर...आइ मीन $गरीब$िाने पर। वहीं बैठकर सुनाऊँ गा दकस्सा, क्योंदक वहीं से मैंने उन्हें जानना शुरू दकया

था...पीते-दपलाते हैं आप? या सूिी हैं?

उमेश : जी, बस कभी-कभार थोड़ी-बहुत।

िरे : िेसी या दवलायती? मेरा $ख्याल है, दसिा दवलायती, है न?

उमेश : जी हाँ।

िरे : हाँ, लग रहा था शक्ल से...िैर, तो तेरहवीं परसों की है न?

उमेश : जी हाँ, सुबह ग्यारह बजे।

िरे : ठीक है, मैं पहुँच जाऊँ गा...यहाँ का कोई काम रुके तो बताइएगा। सब िरते हैं मुझसे। दमस्टर

दशट ह ँ न। घबराते हैं दक मैं कहीं उनसे दचपट न जाऊँ ।

उमेश : अच्छा...तो आप आएँगे न? इस बार रास्ते को मुिऩे मत िीदजएगा, प्लीज़।

िरे : शदमान्िा करने की कोदशश मत कीदजए...बहुत ही बेशमा ह ँ। लेदकन आऊँ गा ज़रूर।

उमेश : ओ. के . सर। सी. यू.।

िरे : बाय...िुिा हादिज।

उमेश जाता है–अँधेरा।

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दृश्य चार

िरे उठकर िशाकों से मु$िादतब होता है, प्रकाश-वृत्त में।

िरे : क्या बताता उमेश को मैं? वो भी तेरहवीं के िो दिन पहले। मेरे तो न कभी बीवी हुई न बेटा।

बेटे को बाप के बारे में क्या जानना चादहए, क्या नहीं, मुझे कतई अन्िाज़ा नहीं है। िूसरे नाम िरे है, तो बात भी िरी-

िरी दनकलती है मु ँह से। इस बात में िो राय नहीं हो सकती दक अवस्थी साहब के बारे में कु छ $िास यािें हैं जो दसिा

मेरे दहस्से में हैं। कु छ ही रोज़ के दलए सही, मगर तब अवस्थी साहब और मैं मशीन में लगे हुए अलग-अलग पुजों जैसे

नहीं रह गए थे। उनको जानने का मु$ख्तसर सिर शुरू हुआ अस्पताल में, िॉक्टर के चैम्बर के बाहर।

अवस्थी और िरे िॉक्टर के चैम्बर के बाहर इन्तज़ार कर रहे हैं कािी िेर से। एक अजनबी

भी उन्हीं के नज़िीक बैठा अ$िबार पढ़ रहा है। और उसके पास िो-तीन और व्यदि। िरे कािी बेचैन है...उससे ये

इन्तज़ार झेला नहीं जा रहा।

िरे : अवस्थी साहब, आपको याि है दक इस $िादिम ने ही यूदनयन की तरि से ज़ोर लगवाकर

ये रूल बनवाया था–ये हर तीसरे बरस कम्पलसरी मेदिकल चेकअप का रूल?

अवस्थी :

जी हाँ।

िरे : अब ये रूल हमीं को भुगतना पड़ रहा है। तीन-चार दिन लग जाते हैं इसमें।

अवस्थी :

हाँ। ऑदिस के काम में कािी हजा हो जाता है, मगर रूल इज़ रूल।

िरे : काम में हजा तो आपका होता होगा।...हमें तो कम्ब$ख्त पारसाई के तीन-चार दिन बहुत

भारी पड़ जाते हैं...इन्तहा है बोररयत की। इम्तहान है! एक्स-रे, ललि टेस्ट...व$गैरह-व$गैरह, दिर ररज़ल्ट का इन्तज़ार।

अवस्थी :

ये तो है।

िरे : होगा वही...ले-िेकर मुझे यही नसीहत दमलेगी दक पीना-दपलाना छोड़ो...और आपको

आपके पेट ििा की गोदलयाँ। (अवस्थी मौन रहता है।)

अजनबी :

व्यदि :

(अ$िबार पढ़ते-पढ़ते, पास बैठे एक व्यदि से) क्या दशकायत है आपको?

कोई $िास नहीं।...बस सर ििा रहता है।...शायि आँिों में ही कु छ...

अजनबी : क्या बात कर रहे हैं!...आपको क्या बताएँ...दक आप के ब्रेन में भी कु छ हो सकता है...कोई

ट यूमर वगैरह। मेरे िोस्त गुप्ता को हुआ था!...

अजनबी :

नसा की आवाज़, ‘दमस्टर सी. बी. शम ा’! व्यदि उठकर चला जाता है!

(दिसककर िूसरे व्यदि के पास जाकर।)...और आप को?

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व्यदि 2 :

अजनबी :

व्यदि 2 :

जी?

क्या हुआ है?...

बस जी ऐसे ही कु छ...

अजनबी : कोई सीक्रे ट बीमारी है क्या? (िूसरा व्यदि चुप)...आपको क्या बताएँ! सीक्रे ट बीमाररयाँ तो

जानलेवा होती हैं।...(उस व्यदि के कान में कु छ कहता है! वो व्यदि उठकर चला जाता है)

िरे : (परेशान होकर इधर-उधर घूमते हुए) हि भी होती है (अजनबी से उसका अ$िबार लगभग

छीनते हुए) जनाब, आपसे तआरूा ि तो नहीं है, मगर...आपने बहुत पढ़ दलया अ$िबार। हम भी ज़रा सुदिायाँ िेि

लें...पता लगा लें दक शहर के िामन में कु छ ताज़ा नज़ारे हैं क्या? (अजनबी भौंचक्का-सा) आप परेशान न होइए। आप

हमारे हेिक्लका अवस्थी साहब से बातें कीदजए। बहुत दिलचस्प आिमी हैं। हरेक की बात सुन लेते हैं। आप बदतयाइए।

िरे बे$ियाली और बेचैनी में अ$िबार के पन्ने पलटता है। बीच में कभी िॉक्टर के कमरे

के िरवाज़े को िेिता है। कभी अवस्थी और अजनबी की बातों को सुनता है।

अजनबी : अब आपको क्या बताएँ बड़े बाबू?...यहाँ बैठते हैं तो बस ऐसे-वैसे ही $ख्याल आते

हैं...आपका क्या है...ऐसे ही कु छ रूटीन-सा या कु छ...

अवस्थी :

रूटीन ही होगा। बस पेट में ज़रा ििा रहता है...

अजनबी : रूटीन? अब आपको क्या बताएँ हमारा एक िोस्त होता था कपूर। अब तो रहा नहीं। बस

आपके बराबर ही उम्र रही होगी। आपको मालूम है उस पर क्या गुज़री? (अवस्थी चुप रहता है।)... अच्छा-$िासा

दििता था...मगर, आपको क्या बताएँ... बस पेट में थोड़ा-बहुत ििा रहता था...साथ-साथ धीरे-धीरे सुस्ती सी छाती जा

रही थी...हमेशा थकान-सी, भारीपन-सा।

अवस्थी अब ध्यान से सुनता है...और धीरे-धीरे बहुत परेशान होता जाता है।

अजनबी : कभी-कभी बहुत ज़ोर से मरोड़ का ििा उठता था। अब आपको क्या बताएँ...मगर कलज़

रहता था, भूि-वूि लगनी बन्ि हो गई थी...कु छ ज़बरिस्ती करके िा लो तो दिसेंटरी...उधर कपूर कहते रहे कोई

दिक्र की बात नहीं है। तुम दिट हो। छोटे-मोटे मामूली-से अल्सर हैं। जो जी चाहे िाओ-दपयो...मालूम सब था िॉक्टरों

को, मगर क्योंदक कु छ इलाज तो था नहीं, तो दछपा गए...अब आपको क्या बताएँ क्या हुआ था उसे...

अवस्थी :

अजनबी :

(सहमा हुआ-सा) जी...क्या हुआ था?

गैदस्ट्रक कै न्सर।

अवस्थी घबराकर परेशान। उठकर कु छ िूर दसमटकर बैठ जाता है। अजनबी भी उठकर,

लगभग पीछा-सा करता हुआ...उसी के पास बैठता है।

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अजनबी : वाकई...गैदस्ट्रक कै न्सर...आ$द िरी स्टेज पर। बस िॉक्टरी जाँच के पाँच-छ: महीने में

चल बसा कपूर। ररस-ररस के ...अब आपको क्या बताएँ।

िरे अ$िबार को समेटता है, अजनबी को वापस िेने के दलए...अचानक नज़र अवस्थी

पर, दजनका चेहरा दबल्कु ल उड़ा हुआ है।

िरे : अरे अवस्थी जी, क्या हुआ?...ठीक तो हैं? वाकई बहुत िेर कर िी िॉक्टरों ने...

नसा की आवाज़ ‘दमस्टर ईश्वरचन्र अवस्थी’ अवस्थी मुदश्कल से लिख़ड़ाकर उठता

है...िरे मिि करता है। दिर अपने-आप बहुत भारी किमों से िॉक्टर के चैम्बर की तरि चला जाता है।

िरे : (अ$िबार वापस करता हुआ) जनाब आपको क्या बताएँ साहब। मैंने आपसे कहा था दक

अवस्थी साहब हेिक्लका हैं...यानी वहम करना उनकी ऑदिदशयल ि यूटी है। मगर आप हैं दक... $िैर! आप

अ$िबार पद ढए...हालाँदक आपका अ$िबार भी कािी बकवास है।

चुप्पी...िरे घड़ी िेिता है...उठकर बेचैनी में चहलकिमी करता है। बैकग्राउंि में घड़ी की

ज़ोर से दटक-दटक-दटक...अँधेरा। प्रकाश बिलता है, िरे प्रकाशवृत्त में।

िरे : (िशाकों से) कािी िेर तक तो इन्तज़ार दकया अपनी बारी आने का। मगर अवस्थी साहब ने

कु छ इतनी िेर लगाई दक मैं भाग िड़ा हुआ। बाि में ररज़ल्ट स दमले तो वही-के-वही। यानी नसीहतें–पीना कम, िुराक

ज़्यािा। अब आप िेि लीदजए... तन्िुरुस्त और िुशोिुराम ह ँ...बग़ैर उनकी एक भी नसीहत माने।... अवस्थी साहब

का भी ऐसा ही रहा होगा कु छ।

...वहम के बािल छँटने के बाि वो भी अच्छे ही लग रहे थे...बदल्क पहले से ज़्यािा स्माटा

और एनरजेदटक!...उन्होंने ही पहल की मेरा साथ पाने की। उनकी प्रॉललम शायि थी ही अके लापन...इसीदलए मुझ

जैसे एमौरल आिमी में, जो दक शराबी, कबाबी और अव्वल नम्बर का औरत$िोर है, उन्हें वो िोस्त नज़र आने लगा

दजससे वो दिल की बात कह सकते हों। इस भरोसे से दक वो दसिा मुझ तक ही रहेगी...हुआ यू ँ दक अस्पताल के वाकये

के तीन-चार दिन बाि...मुझे शाम को अचानक याि आया दक वो ड्राइ-िे था...और जेब भी $िाली थी...हमारे

ि$फ्तर का चपरासी जगिम्बा हमेशा कु छ बोतलें दछपा के रिता है, साइि दबज़नेस के तौर पर...उधार भी िे िेता

है...िौरन ि$फ्तर पहुँचा...सब लोग जा चुके थे...मगर दकस्मत से जगिम्बा दमल गया...क्योंदक अवस्थी साहब अभी

तक वहीं थे...मैंने बोतल ली, थैले में रिी...और चलते-चलते यू ँ ही िुआ-सलाम करने अवस्थी साहब के कमरे में

चला गया। वो गुमसुम बैठे छत की ओर ताक रहे थे। (हलका प्रकाश) जोश का एक शेर याि आया : ‘इतने चुप तो

कभी न थे ऐ जोश, सच बताओ ये माजरा क्या है?’ मगर कु छ जमा नहीं, क्योंदक चुप तो वो हमेशा ही रहते थे। बदल्क

उस दिन तो पहली बार इतना बोले। $िैर साहब...तो मैं अन्िर गया।

है।

प्रकाश िरे से लुप्त होकर अवस्थी पर पड़ता है। िरे हाथ में थैला दलये िा$द िल होता

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िरे : नमस्कार, अवस्थी साहब! आप अभी तक यहीं...इस नामुराि जगह? घर नहीं जा रहे?

अवस्थी :

घर?...ओह घर!! आप घर जा रहे हैं क्या?

िरे : हम $िाना$िराबों के घर कहाँ होते हैं, अवस्थी साहब। मकान या कोठररयाँ होती हैं

दजसमें जाकर बस सो जाते हैं...अगर कहीं दकसी नाली में बेहोश न पड़े रह जाएँ तो!!

अवस्थी :

ऐसा भी होता है आपके साथ?

िरे : हमेशा नहीं...कभी-कभी।

अवस्थी :

बहुत पीते हैं?

िरे : पता नहीं, मुझे तो हमेशा कम ही लगती है।

अवस्थी :

क्यों पीते हैं आप?

िरे : (छोटे से व$क्िे के बाि) क्यों पीता ह ँ!!...ये तो कभी सोचा नहीं, अवस्थी साहब। बस

शायि कु छ भूलने के दलए...या शायि ये याि करने के दलए दक मैं अभी द जन्िा ह ँ। क्यों पूछ रहे हैं आप?

अवस्थी :

बस ऐसे ही...अभी कहाँ जा रहे हैं?

िरे : पहले तो अपने पै$िाने...आइ मीन $गरीब$िाने जाऊँ गा, वहाँ कु छ मूि बनाऊँ गा और

दिर कु छ आवारागिी, मस्ती और दिलिरेबी...िो सौ रुपए में जो कु छ भी हो सकता होगा, करूँ गा... जगिम्बा से

उधार दलये हैं अभी।

अवस्थी :

क्या...क्या...मैं चल सकता ह ँ आपके साथ?

िरे : (अदवश्वास के साथ) जी?...क्या िरमाया आपने?

अवस्थी :

...क्या मैं चल सकता ह ँ आपके साथ?...अगर कोई ऐतराज़ हो तो रहने िीदजए...

िरे : नहीं, नहीं...ऐतराज़ की बात नहीं है, अवस्थी जी। मुझे तो बस थोड़ी हैरत हो रही है। मेरा

मज़ाक तो नहीं उड़ा रहे हैं न आप?

अवस्थी :

जी नहीं।

िरे : ये भी जानते हैं दक मैं दकस तरह का आिमी ह ँ। अगर आप बच्चे होते तो आपकी माँ मेरे

साथ आपको िेलने नहीं िेतीं।

अवस्थी :

जानता ह ँ...

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िरे : तो ठीक है, चदलए।...मगर आवारगी का एक रूल है–सवाररयाँ अपने सामान की िुि

द जम्मेिार।

अँधेरा। एक िूसरा प्रकाश-वृत्त। िरे उसमें प्रवेश कर कहता है।

िरे : (िशाकों से) मैंने सोचा दक बुजुगावार बोर करे े ंगे। उनकी कं जूसी तो शायि झेल भी ली

जाए, मगर कहीं नसीहतें िेने लगे तो सारा नशा ही उतर जाएगा। बहरहाल उनके अन्िाज़ ने कु छ मजबूर-सा कर दिया

और मैंने उन्हें साथ ले दलया।

प्रकाश बिलता है। िरे के कमरे पर प्रकाश। िोनों िा$द िल होते हैं।

िरे : आइए, अवस्थी साहब बैदठए...यही है हमारी चारिीवारी...यहीं पर राज करते हैं, यहीं मज़ार

बनेगा...और मरते िम तक लब पर एक ही िुआ होगी दक : ‘मेरे िुिा मुझे इतना तो मोतबर कर िे, मैं दजस मकान में

रहता ह ँ उसको घर कर िे।’ (दगलासों में पैग बनाते हुए) ज़रा इधर-उधर नज़रें िौड़ाइए...कु छ नहीं दमलेगा आपको।

अगर ग़ादलब ने पहले न कह दिया होता तो यह शेर मेरे िीवान में होता : ‘कोई वीरानी सी वीरानी है, िश्त को िेि के

घर याि आया।’ आिाब। कै सा लगा आपको?

अवस्थी :

मुझे तो कभी शौक नहीं रहा शेरो-शायरी का।

िरे : ओहो। ये तो बड़े िु:ि की बात है। मुझे आपसे हमििी है क्योंदक ये शौक लड़कपन से लगे

तभी रास आते हैं...चदलए दबसदमल्लाह कीदजए...चीयसा! चीयसा यु लाइि।

िरे पीता है। अवस्थी जी दगलास को कु छ पल घूरते हैं। िरे नोदटस करता है और पूछता है।

िरे : क्या हुआ?...सोच क्या रहे हैं?

अवस्थी :

(चौंककर) जी?...कु छ नहीं...

तेज़ी से पीता है। पीते ही िन्िा लग जाता है। दिर दकसी तरह अपने-आपको सँभालता है।

िरे : ज़्यािा स्ट्रांग हो गया?...सोिे से पीने की आित है आपको?

अवस्थी :

आित?...मैं तो आज पहली बार पी रहा ह ँ, िरे साहब!

िरे : (चौंककर)...पहली बार!! (अवस्थी हाँ में गिान दहलाता है, िरे सर ठोंक कर कहता है)

ऑह गॉि! ये आपने क्या दकया?...आपकी मम्मी मुझे द जन्िा नहीं छोड़ेंगी...लेदकन $िैर... शायि आमना-सामना ही

न हो उनसे। वो होंगी स्वगा में ं और मैं नका में। लेदकन पहले बता िेते तो अच्छा रहता। कु छ पूजा-पाठ करके

बाकायिा शुरुआत करते। मैं गंिा-वंिा बाँधता आपको जैसे नृत्य और संगीत के उस्ताि बाँधते हैं शादगािों के ...$िैर

पीदजए...चीयसा...चीयसा टु योर लॉस्ट वदजादनटी।

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िोनों पीते हैं। अवस्थी को पुन: िन्िा लगता है। इस बार िरे गम्भीर होकर उन्हें िेिता है।

अवस्थी के पुन: सामान्य होने पर।

िरे : (गम्भीर) एक बात पूछूँ, अवस्थी जी?

अवस्थी :

पूदछए।

िरे : तकरीबन वही सवाल िोहरा रहा ह ँ जो आपने मुझसे दकया था...अचानक आज, उम्र की

इस मंद जल में आपने शराब पीने का िै सला क्यों दकया?

अवस्थी :

दलए ज़हर है ये...

इसदलए...क्योंदक पहले कभी पी नहीं थी। मैं िेिना चाहता था कै सी होती है...हालाँदक मेरे

िरे : दिर क्यों पी रहे हैं?

अवस्थी :

द जन्िा ह ँ तभी ज़हर चि सकता ह ँ। मरने के बाि तो नहीं चि सकता न।

िरे : (ज़ोर से हँसते हुए) वाह, वाह, अवस्थी जी। क्या बात है! आप तो शायरी करने लगे।

बेशक, बेशक!! द जन्िा हैं तभी तो ज़हर भी चि सकते हैं! वाह, बहुत अच्छे। पीदजए, पीदजए। चीयसा टू ि टेस्ट ऑि

पॉयजन।

हुए।

िोनों पीते हैं। अवस्थी को एक बार दिर िन्िा लगता है। िरे िाने का पैके ट आगे बढ़ाते

िरे : ऐसे नहीं। साथ में कु छ नमकीन-वमकीन िाते रदहए। दिर ठसका नहीं लगेगा।

अवस्थी :

अवस्थी एक दनवाला उठाता है, कु छ पल सोचता है, दिर वापस रिता है।

िाया नहीं जाएगा...

िरे : दिर भी, कोदशश करके ...थोड़ा-सा िा लीदजए...पीने के साथ ज़रूरी होता है।

अवस्थी :

नहीं...दबल्कु ल भी मन नहीं है। कािी दिनों से यही हाल है।

िरे : अब घास-िू स िाएँगे तो क्या होगा?...दचकन लीदजए...िा लेते हैं न नौन-वेज?

अवस्थी :

नहीं...कभी नहीं िाया...

िरे : तो दिर रहने िीदजए...लेदकन थोड़ा कु छ और तो ज़रूर िाइए।

अवस्थी :

दचकन...कै सा होता है िाने में?

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िरे : बहुत लज़ीज़। $िास तौर पर अगर इसे मुगर कहा जाए तो। ट्राइ करेंगे? (बढ़ाते हुए) अब

पूरी तरह ही $िराब क्यों न कर िू ँ आपको? लीदजए।

अवस्थी दचकन पीस लेकर िाने की कोदशश करता है दिर वापस रि िेता है।

अवस्थी : (वापस रिते हुए) नहीं, िरे साहब, आप कह रहे थे न...शौक अगर लड़कपन से लगे तभी

रास आते हैं...नाओ इट स टू लेट...

िरे : नो सर। इट स नेवर टू लेट। लेट से $ख्याल आया दक...घर में $िबर कर िी थी न आपने?

ऐसा तो नहीं कहीं...आपका बेटा और बह दिक्र कर रहे हों?

अवस्थी : दिक्र?...हुँह...दिक्र तो करते हैं वो लेदकन मेरी नहीं। बदल्क मेरे पास-बुक की, मेरे पी. एि.

और ग्रेच्युटी की...कई बार सुनी हैं उनकी बातें। आज भी सुनी थीं सुबह। (कु छ िेर तक चुपचाप पीते हैं। अचानक)...मैं

बहुत पैसा $िचा करना चाहता ह ँ, िरे साहब...लेदकन मुझे आता नहीं है $िचा करना। आप बताइए...कै से करूँ ?

िरे : जी?

अवस्थी :

मुझे पता नहीं कै से $िचा करूँ । मगर अपना पैसा िुि ही $िचा करना चाहता ह ँ।

िरे : वाह, क्या दिलचस्प प्रॉललम है। अवस्थी साहब स्कू टर तो इस व$ि दमलेगा नहीं और

टैक्सीवाला भी मीटर से नहीं जाएगा। इस पर अगर आप ये ज़ादहर कर िें दक आप परिेसी हैं, तो पूरी जेब साि।

अवस्थी :

(जेब थपथपाकर) नहीं होगी। बहुत पैसा दनकाला है मैंने आज बैंक से...पूरे पचास हज़ार।

िरे : (सचमुच िरकर) तौबा इलाही!...पचास हज़ार!

अवस्थी :

हाँ पचास हज़ार रुपए...

िरे : तो इतनी िेर से मैं एक ‘लाइव बॉम्ब’ को साथ में दलये घूम रहा ह ँ। दकसी को पता चल

जाता तो सबसे पहले मुझे जान से मारता। क्योंदक मैं आपसे ज़्यािा जवान और तन्िरुस्त ह ँ। उसके बाि ही आपका

और आपकी जेब का सिाया करता और दिर ये जा और वो जा... लेदकन ये तो आपने हि ही कर िी, अवस्थी

साहब। इतना रुपया जेब में रिकर घूम रहे हैं आप? ये तो सरासर इदन्वटेशन है दक आ लुटे ेरे मुझे मार। सचमुच

कमाल कर दिया आपने...सच कह रहे हैं न?

अवस्थी :

जी हाँ। दबल्कु ल सच कह रहा ह ँ। (जेबों से नोटों की गि दियाँ दनकालने लगता है)

िरे : (लगभग ची$िते हुए) मत दििाइए! मत दििाइए! (प्लेट में रिा चाकू उसे िेते हुए) ये

चाकू भी उधर रदिए, वरना मेरी नीयत $िराब हो जाएगी। जगिम्बा को पता है आप मेरे साथ ि$फ्तर से दनकले थे।

इसदलए आपकी लाश कहीं भी िें कू ँ , पुदलस मुझ तक पहुँच जाएगी। इसके अलावा, लोगों को शराब दपलाकर बब ाि

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करने का तजु ाबा तो है मुझे, लेदकन जान लेने के मामले में मैं भी वदजान ह ँ और दिलहाल वदजान ही बना रहना चाहता

ह ँ। इसदलए मेहरबानी करके आप चुपचाप बैठे रदहए।

अवस्थी :

(दिर जेब से पैसा दनकालने का उपक्रम) हाँ, मगर आप िेि तो लीदजए...

िरे : (उठकर बाहर की ओर बढ़ता हुआ) प्लीज़ प्लीज़...मुझे $ितरनाक हि तक यकीन है आप

पर, लेदकन िुि अपने पर नहीं है। इसदलए मैं यहाँ नहीं रुकू ँ गा। और हाँ, मैं आपको घर भी नहीं जाने िू ँगा। आप अन्िर

से लॉक करके सोइए। कोई भी आए िरवाज़ा मत िोदलए। और सुबह होने पर सही-सलामत अपने घर चले

जाइए...इन वन पीस! अच्छा, िुिा हादिज।

अवस्थी :

(जल्िी से उठकर) आप कहाँ जा रहे हैं?

िरे : अपने सोने का इन्तज़ाम करने। दकसी ट्रैंक्युलाइज़र की तलाश करने।...

अवस्थी : (जेब में हाथ िालकर िवाओं के पत्ते दनकालता है) मेरे पास ट्रैंक्युलाइजर है। (एक पत्ता

बढ़ाते हुए) ये लीदजए...काम्पोज़ की गोदलयाँ। इसमें...

िरे : (व$क्िे के बाि) आप काम्पोज़ दलया करते हैं?

अवस्थी :

लीदजए।

अगर मुझे िे िेंगे तो दिर आप क्या करेंगे?

कु छ नहीं...अब मुझे इनकी ज़रूरत नहीं रही...मैं तो इन्हें िें कने वाला था। इसदलए आप ले

िरे : शुदक्रया! लेदकन ट्रैंक्युलाइज़र से मेरी मुराि गोदलयों से नहीं... गोलाइयों से थी।

अवस्थी :

गोलाइयों से?...मतलब?

िरे : रहने िीदजए...आप नहीं समझेंगे।

अवस्थी :

क्यों नहीं समझू ँगा? आप समझाइए।

िरे : आपको अच्छा नहीं लगेगा समझकर।

अवस्थी :

लगेगा। अब मुझे सब कु छ अच्छा लगेगा।

िरे : ये आप नहीं बोल रहे हैं...शराब बोल रही है। सुबह सर पकड़कर कोसेंगे दक कै सा दगल्ट

और हैंगओवर िे दिया िरे के बच्चे ने...अब जाने िीदजए मुझे।

अवस्थी :

कहाँ?...आप जा कहाँ रहे हैं?

िरे : कीतान करने...एक िेवी का मदन्िर है पड़ोस में।

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अवस्थी :

मैं भी चलू ँगा आपके साथ...

िरे : उसका कोई भरोसा नहीं है (घड़ी िेिकर) हो सकता है िुि ही दनकल पड़ी हो दकसी भि

की तलाश में। आप अब आराम कीदजए।

अवस्थी :

नहीं। मैं साथ चलू ँगा।

िरे : जी नहीं। दबलकु ल नहीं चलेंगे आप। मैं कोई द जम्मेिारी नहीं ले सकता आपकी।

अवस्थी :

लेदकन आपने तो कहा था, सवाररयाँ अपने सामान की िुि द जम्मेिार। कहा था न?

िरे : जी हाँ, कहा था...लेदकन उस व$ि मुझे पता नहीं था दक सवारी के पास इतना भारी और

इतना $ितरनाक सामान है। मुझे तो अपनी जान प्यारी है।

जाकर िड़ा हो जाता है।

अवस्थी :

अवस्थी जेब से नोटों की सारी गि दियाँ दनकालकर नीचे पटक िेता है और िरवाज़े पर

चदलए अब...

िरे : ये वहाँ कहाँ पहुँच गए? मैं आपके साथ नहीं चल रहा ह ँ अवस्थी साहब, आप मेरे साथ

चल रहे हैं। पीछे आइए।

िरे आगे िरवाजे पर और अवस्थी पीछे।

िरे : (दबना पीछे मुड़े) अच्छा कु छ शतें हैं...मैं आपको कहीं भी ले जाऊँ , आप चुपचाप चलेंगे?

अवस्थी :

चलू ँगा।

िरे : कु छ भी ऐसा दििाऊँ जो अच्छा न लगे दिर भी िेिेंगे।

अवस्थी :

िेिू ँगा।

िरे : अगर कहीं दपटने की नौबत आए तो आप मुझे छोड़कर भागेंगे नहीं।...

अवस्थी :

नहीं भागू ँगा।

िरे : अगर मैं भागने लगू ँ तो आप रोकें गे नहीं।

अवस्थी :

नहीं रोकँ ूगा।

िरे : ठीक है। चदलए।

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बाहर जाता है। अवस्थी िो-तीन किम पीछे चलता है। दिर तेज़ी से वापस आकर सारी

गि दियाँ उठाकर जेब में ठूँसता हुआ बाहर भाग जाता है। सुिि और आनन्ि से भरा हुआ बालसुलभ संगीत।

अन्धकार। संगीत जारी रहता है। कु छ िेर बाि एक प्रकाश-वृत्त में िरे का प्रवेश।

िरे : (िशाकों से) उसके बाि शाम और भी दिलचस्प हो गई। हालाँदक हमजाम होने के बाि कु छ

हि तक बेतकल्लुिी-सी हो गई थी अवस्थी साहब से, दिर भी घर से दनकलने के बाि–मैं, जी हाँ, मैं–थोड़ा दझझक-

सा रहा था...मगर अवस्थी साहब ने ही मुझे मेरी शतों की याि दिलाई और कहा दक मैं उन्हें वो सब जगह दििाऊँ जो

उन्हें नहीं िेिनी चादहए! तो साहब, पहले हम गए एक शालीन से नाइट क्लब, दिर एक सस्ते-से कै बरे ज्वायंट। और

दिर...$िैर हम जहाँ भी गए अवस्थी साहब चौकन्ने होकर, बदल्क पागलों की तरह, नज़ारे िेिते रहे...यहाँ तक दक

मुझे िुि थकान-सी होने लगी, नींि आने लगी। बाि में, शायि रात के आ$द िरी पहर में, जब हम टैक्सी की तलाश

में सड़कों पर घूम रहे थे तो अचानक अवस्थी साहब गुनगुनाने लगे। वाकई। अवस्थी साहब गुनगुनाने लगे। मुझे तो

यकीन ही नहीं आया।...गीत दजतना दिलगुिाज़ था उतना ही उिास। जैसे उन्हें कोई भी शौक रास न आया हो, जैसे

$िुि$िरेबी के दकसी सामान में उनकी दिलचस्पी न रह गई हो।

अवस्थी :

िरे और अवस्थी थके -थके किमों से लौट रहे हैं। अवस्थी साहब टूटा-िू टा गीत गा रहे हैं।

(गाता है)

चाहे हो उम्र लम्बी, छोटी है द जन्िगानी

थोड़ा सा प्यार कर ले, थोड़ा तो प्यार कर ले

सुन ऐ हसीन कमदसन,

जब तक हैं गमा साँसें

जब तक है लब पे लाली,

जब तक है ये जवानी

थोड़ा-सा प्यार कर ले, थोड़ा तो प्यार कर ले।

िरे वतामान में वापस।

िरे : (िशाकों से) उस शाम अवस्थी साहब से नज़िीकी मुलाकात का इनाम ये था दक मैंने जाना

दक वो िनीचर का टुकड़ा नहीं, या कु सी पर बैठी हुई द जन्िा लाश नहीं, बदल्क धड़कते हुए दिलवाले एक इन्सान थे।

अगर कभी मौका दमला और अगर उमेश जी ने चाहा तो उनसे बाँट लू ँगा ये शाम। मगर क्या वो अपने दपता को समझ

पाएँगे? मुझे तो शक है। $िैर...।

पूरे मंच पर प्रकाश। ऑदिस में के वल िरे अपनी मेज़ पर अके ला बैठा है। घड़ी िेिता है।

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लक्ष्मी :

बड़ी िेर हो गई!

अचानक जल्िी-जल्िी लक्ष्मी आती है।

(आते-आते) सॉरी, िरे साहब, वैरी सॉरी।

िरे : कोई बात नहीं, लक्ष्मी। (एक दलिािा बढ़ाते हुआ) ये लो भई अपनी अमानत!

लक्ष्मी : ...थैंक्यू वेरी मच!...आपकी वजह से छह महीने में सेट ल हो गया रेद जगनेशन के बाि...नहीं

तो...। बड़े िोए-िोए से लग रहे हैं।

िरे : लक्ष्मी तुम्हें मालूम है, अपने अवस्थी साहब नहीं रहे।

लक्ष्मी :

(चौंककर) क्या?

िरे : और परसों उनकी तेरहवीं है।

लक्ष्मी :

ओह!...(चुप। व$क्िा)

िरे : अब लक्ष्मी...तुम िोई-िोई लग रही हो!

लक्ष्मी : ...नहीं नहीं। (व$क्िा) चदलए आप भी क्या याि करेंगे। आपको कहीं चाय-वाय दपलाती

ह ँ...आई मीन दसिा चाय दपलाती ह ँ, ...अगर आप फ्री हों तो।

लू ँ।

िरे : अरे वाह!...नेकी और पूछ-पूछ!...मगर आज अचानक ये िे वर क्यों?

लक्ष्मी :

अवस्थी सर की कु छ स्पेशल यािों का बोझ है सीने पर...सोचती ह ँ आज कु छ हलका कर

िरे : लकी दमस्टर अवस्थी। आज उन्हें कािी दहचदकयाँ आ रही होंगी... जब वो द जन्िा थे तब

तो शायि ही दकसी ने उनको इतना याि दकया हो...

लक्ष्मी :

तो चलें?

िरे : हाँ, चदलए, वाय नहीं चाय सही...आपकी यािों के बोझ को उठाने के दलए मेरा हस्सास

दिल, मेरे मज़बूत कन्धे और मेरे मुस्तैि कान हाद जर हैं। चदलए...

अवस्थी की ररकािेि और गू ँजती हुई आवाज़ में मगर मदिम स्वर में–’चाहे हो उम्र लम्बी,

छोटी है द जन्िगानी, थोड़ा सा प्यार कर ले, थोड़ा तो प्यार कर ले...’

(सम्भादवत मध्यान्तर)

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अंक दो–

दृश्य पााँच

अन्धकार। मदिम स्वर में अवस्थी के गीत का अन्तरा–’सुन ऐ हसीन कमदसन...’। धीरे-धीरे

प्रकाश आता है। रेस्टोरेंट मे े ं चाय की टेबल पर िरे और लक्ष्मी, बातों में मशगूल।

लक्ष्मी : आपको पता नहीं याि है दक नहीं...कु छ महीने पहले मेदिकल टेस्ट के बाि अवस्थी सर 6-

7 दिन लगातार ऑदिस नहीं आए थे। उन्हीं दिनों ररज़ाइन करना चाह रही थी और िामा पर उनके दसगनेचसा और

स्टैम्प की ज़रूरत थी। बड़ी मुदश्कल से ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उनके घर पहुँची। िरवाज़ा सर ने ही िोला।

लक्ष्मी :

अवस्थी :

$फ्लैशबैक। प्रकाश बिलता है। अवस्थी जी लक्ष्मी के दलए िरवाज़ा िोलते हैं।

गुि मादनिंग, सर।

आओ, आओ। मैं अपनी लीव ऐप्लीके शन भेजने की ही सोच रहा था...

लक्ष्मी : ऑदिस में बहुत ताज्जुब कर रहे थे सब लोग दक तीस साल की सदवास में आप कभी

ऐलसेंट नहीं रहे...वो भी इस तरह 6-7 दिन लगातार, दबना दकसी इंदटमेशन के । आपके न आने से सारा काम ठप्प पड़ा

हुआ है...वैसे ठप्प तो पहले भी रहता था सर, दकसी-न-दकसी की वजह से, है न? (जोर-से हँसती है।)

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

मैं िेता ह ँ ऐप्लीके शन...तैयार है। (जाने के दलए मुड़ता है।)

िे िीदजए...लेदकन मैं इसके दलए नहीं आई थी, सर।

(रुककर उसकी ओर मुड़ते हुए) तुम्हें ि$फ्तरवालों ने नहीं भेजा?

लक्ष्मी : ना, मैं तो अपने काम से आई ह ँ। हरेक से आपका ऐड्रेस पूछा। कोई जानता ही नहीं था। दिर

आपकी िाइल दनकलवाई तब जाकर दमला। लेदकन कमाल है, सर, तीस साल से आप काम कर रहे हैं लेदकन दकसी

को आपका ऐड्रेस ही नहीं मालूम।

अवस्थी :

काम क्या है?

लक्ष्मी : बहुत ही मामूली-सा, सर, लेदकन मेरे दलए बहुत इम्पॉटेंट। आपके दसग्नेचसा चादहए अपने

इस्तीिे पर और साथ में आपका स्टैम्प भी।

अवस्थी :

इस्तीिे पर?

लक्ष्मी : जी हाँ। मुझे एक नया जॉब दमल गया है सर।...बहुत एक्साइदटंग। इसदलए मैंने ररज़ाइन कर

दिया है। आप दबना इंदटमेशन के छु ट्टी पर हैं तो आपकी जगह ऑदिदशयेट भी नहीं कर रहा है कोई...इसीदलए मुझे

यहाँ आना पड़ा, आपके पास...वैसे क्या बात हो गई, सर घर में सब ठीक-ठाक तो है न?...या $िाली ि$फ्तर से बोर

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होकर आप घर में बैठ गए दक बस एनि इज़ एनि। (जोर-से हँसती है। अवस्थी उसकी हँसी पर ध्यान िेते हैं।) कमाल

है सर, आपका...आपने तीस साल वहाँ काट दिए। मेरा तो िेढ़ साल में ही िम घुट गया...अगर कु छ दिन और रह गई

तो ऑक्सीजन मास्क लगाना पड़ेगा। (ज़ोर से हँसती है, अवस्थी ध्यान िेता है।)

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

नहीं भरा!

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लाओ, कहाँ है तुम्हारा लेटर और िामा? िामा भी लाई हो ना साथ?

जी हाँ, सर (दनकालकर िेती है) ये रहा।

(ऐप्लीके शन के साथ नत्थी िामा को पढ़ता है। दिर वापस िेते हुए कहता है।) ये तो ठीक

(घोर दनराशा से) ओह नो!...लेदकन इसमें क्या कमी है, सर?

(दििाते हुए) ये िेिो...ये वाले कॉलम नहीं भरे हैं तुमने।

(िेिते हुए) लेदकन ये मेरे के स में ऐप्लीके बल नहीं हैं सर।

लेदकन िामा तो पूरा भरना ही पड़ता है न? रूल इज़ रूल।

लक्ष्मी : (दशकायती लहजे में) लेदकन रूल का मतलब ये तो नहीं होना चादहए सर दक काम रुक

जाए...िैर छोद िए...मैं कल इसे पूरा भरकर रिू ँगी...कु छ भी दलि िू ँगी। आप ऑदिस आ रहे हैं न...या कल भी?

(ज़ोर से हँसती है।)

अवस्थी : (वापस लेने के दलए हाथ बढ़ाते हुए) ज़रा दििाओ। (िेिकर) ठीक है...मैं साइन दकए िेता

ह ँ...स्टैम्प भी लगा िेता ह ँ लेदकन तुम बाि में ज़रूर भर लेना। ठीक?

लक्ष्मी : (िुशी से उछलते हुए) ओह, सर! यू आर ग्रेट। यू आर ररअली ग्रे ेट...मैं बाि में ज़रूर भर

लू ँगी, सर...थैंक्यू, थैंक्यू वेरी मच।

अवस्थी का$गज़ लेकर अन्िर चला जाता है। लक्ष्मी बहुत िुश-िुश इन्तज़ार करने लगती

है। दिर जैसे हलकी सिी का अहसास होता है। वो अपने हाथ में दलये एक बैग से एक स्वेटर दनकालती है और पहन

लेती है। पहनने के बाि अहसास होता है दक स्वेटर कन्धे से िटा हुआ है। वो चूदिय़ों में लगा एक से$फ्टी-दपन

दनकालकर कन्धे पर लगाती है। इस बीच अवस्थी जी लौटकर उसे िेिते रहते हैं। लक्ष्मी...

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

(का$गज़ लेते हुए) थैंक्स अगेन, सर। अच्छा अब मैं चलू ँ?

कहाँ जाओगी यहाँ से?

(हँसती है।) अरे, आप भूल गए?...आज तो वदकिं ग िे है। ऑदिस ही जाऊँ गी।

ओह, हाँ...रुको, मैं भी चलता ह ँ तुम्हारे साथ।

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लक्ष्मी :

अवस्थी :

अच्छा?...आप भी चल रहे हैं ऑदिस?

नहीं। दसिा बाज़ार तक...एक दमनट, ज़रा कोट पहन आऊँ ...ठंि हो गई थोड़ी...

अवस्थी अन्िर जाता है और कोट पहनकर वापस आता है। कोट का कॉलर उलट गया है

दजसे लक्ष्मी नोट करती है, बढ़कर हँसते हुए ठीक करती है।

लक्ष्मी :

अवस्थी :

अवस्थी :

एक दमनट...आपका कॉलर...(ठीक करके ) हाँ। अब ठीक है।

चलो...

िोनों बाहर आते हैं। प्रकाश बिलता है। रास्ते में एक जगह अवस्थी रुककर पूछता है।

यहाँ गमा कपड़ों की कोई अच्छी िूकान है क्या?...रेिीमेि स्वेटर व$गैरह।

लक्ष्मी : है न। मेन रोि पर–बस स्टॉप के पास–आ रही थी तब नोदटस दकया था–इतनी बड़ी िूकान

है! आपको क्या लेना है? स्वेटर?

अवस्थी :

लक्ष्मी :

पुराना हो गया।

है)

अवस्थी :

लक्ष्मी :

हाँ।

एक अच्छा-सा मिलर भी $िरीि लीदजएगा अपने दलए। (इशारा करते हुए) ये तो बहुत

हाँ...पन्रह-बीस साल तो हो ही गए इसे।

तो बस, अब ररटायर कर िीदजए इसे। बेचारा िु:िी हो गया होगा आपसे। (ज़ोर से हँसती

अवस्थी : ररटायर तो $िैर मैं भी हो रहा ह ँ। मुझे अपने दलए कु छ नहीं लेना है। एक स्वेटर $िरीिना

है, लेिीज़, बहुत अच्छा-सा।

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

दकसके दलए?...अपनी बह के दलए...? साइज़ मालूम है उनका? (हँसती है।)

नहीं...लेदकन अपने बराबर ही समझ लो।

ठीक है, वहीं ट्राइ कर लेंगे...लेदकन एक शता है।

क्या?

लक्ष्मी : आप अपने दलए एक मिलर ज़रूर $िरीिेंगे, मेरी पसन्ि का। बोदलए $िरीिेंगे न?

अवस्थी : ठीक है, िरीिँ ूगा।

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लक्ष्मी : और एक अच्छी-सी टोपी भी। (अवस्थी इनकार करता है।) प्लीज़, मेरे कहने से...नहीं तो मैं

लेिीज़ स्वेटर नहीं $िरीिवाऊँ गी आपको। (ज़ोर से हँसती है।)

अवस्थी :

लक्ष्मी :

ठीक है चलो।

(दवजय-घोष के साथ) येऽऽ! िैट ज़ दि दस्पररट। चदलए।

सुिि संगीत। प्रकाश बिलता है। इस िौरान िोनों बाहर जाकर शॉदपंग बैग के साथ लौटते

हैं। अवस्थी के सर पर एक बहुत आधुदनक युवकों वाली नई टोपी है और गले में एक वैसा ही नया मिलर। िेिने में

दकसी हि तक हास्यास्पि। लक्ष्मी बुरी तरह हँस रही है। अवस्थी टोपी उतारने लगता है। लक्ष्मी उसे रोकते हुए कहती

है।

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

अरे, अरे, ये क्या कर रहे हैं आप? उताररए मत इसे...

नहीं, बस...(उतार लेता है।)

(छीनकर दिर लगाते हुए) प्लीज़ पहने रदहए इसे। बहुत जँच रहे हैं आप।

तो दिर हँस क्यों रही हो तुम?

लक्ष्मी : वो तो मेरी आित है...दबना दकसी वजह के ही िी-िी करती रहती ह ँ दिन-भर...आप

परवाह मत कीदजए...। बस इसे पहने रदहए...। अच्छा अब मैं चलू ँगी, सर, वरना लेट हो जाऊँ गी।

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

एक दमनट। (बैग बढ़ाते हुए) ये लेती जाओ अपना स्वेटर।

मेरा स्वेटर? (हँसते हुए) अपना स्वेटर तो मैं पहने हुए ह ँ, सर...

हाँ...लेदकन ये भी कािी पुराना हो गया है...ररटायर कर िो इसे...

(अटपटी) ओह नो। सर, प्लीज़...ये मत कीदजए।

क्यों?...तुमने मेरे दलए मिलर $िरीिा...टोपी $िरीिी...मैंने तुम्हारे दलए ये स्वेटर िरीिा।

लेदकन इन सब के पैसे आपने दिये थे सर। मैंने नहीं।

अवस्थी : पैसा इसमें कहाँ से आ गया? इससे क्या िका पड़ता है दक पैसे दकसने दिये?...मैं एक िोस्त

के संग स्कू ल जाया करता था...रास्ते में अमरूि के पेड़ पड़ते थे...अमरूि मुझे बहुत अच्छे लगते थे...वो मुझे तोड़ के

िे िेता था...उसका कि मुझसे लम्बा था न, इसदलए!...चलो, इसे िे यरवेल दग$फ्ट समझकर ही ले लो।

लक्ष्मी :

अवस्थी :

(भीगे स्वर में) िे यरवेल सर!...अभी तो मेरे ररलीव होने में बहुत टाइम है।

तुम्हारे पास टाइम हो भी तो कौन जाने मेरे पास मौका न हो...ले लो। प्लीज़।

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हो गई?

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

(लेते हुए) ठीक है, सर। थैंक्यू।

शायि थैंक्यू तो मुझे कहना चादहए।

(अब भी थोड़ी अटपटी-सी)...थैंक्यू वेरी मच, सर। अब मैं चलू ँ, सर?

कहाँ जा रही हो तुम?

(हँसने की कोदशश में) आप दिर भूल गए, सर...ऑदिस।

ओह, हाँ। मैं तो भूल ही गया था।

(हँसती हुई) आप कै से भूल सकते हैं? दसिा एक ह$फ्ते में 30 साल की हैदबट कै से $ित्म

(झेंपी हुई हँसी) ये दपछला ह$फ्ता था ही बहुत लम्बा। (व$क्िा) वैसे अगर आज...

जी?

अगर आज ऑदिस न जाओ, तो?

ये आप कह रहे हैं, सर?

हाँ, मुझे भी दवश्वास नहीं हो रहा। लेदकन अगर हो सके तो प्लीज़...

प्रकाश बिलता है। वतामान। लक्ष्मी और िरे चाय की मेज़ पर।

िरे : और तुम रुक गयीं।

लक्ष्मी :

आपने कै से जाना, ऑदिस की गॉदसप से?

िरे : नहीं, नहीं, नहीं। अब भी िोई-िोई-सी लग रही हो न, इसदलए।

लक्ष्मी : हाँ...आवाज में द जि भी थी...ररक्वेस्ट भी। मैं मना नहीं कर पाई एंि आइ िोंट ररग्रेट इट।

बहुत ही इंट्रेदस्टंग...नहीं, नहीं इम्पॉरटेंट दिन बीता।

िरे : बताओ भी क्या हुआ?

लक्ष्मी : यू ँ नो...शरारती तो ह ँ ही मैं...सबसे पहले मैं उन्हें जू ले गई। बहुत एंजॉय दकया–सर ने भी

और मैंने भी...दिर एक बहुत अच्छे-से रेस्टॉरेंट में हमने िाना िाया...हमने क्या? िाया तो दसिा मै ै ंने ही। $िुि

तो कु छ भी नहीं िाया उन्होंने–बस मुझे िाते िेिकर िुश होते रहे और ज़बरिस्ती दिलाते रहे।

िरे : द जि और ररक्वेस्ट की कॉकटेल बनाके ? (हँसता है।)

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लक्ष्मी :

िाने के बाि, गैस वॉट? हम लोग दिल्म िेिने गए...वो भी, ‘हम हैं राही प्यार के ’।

िरे : मगर वो भी दसिा तुमने ही िेिी और वो सोते रहे।

लक्ष्मी :

अरे! आपको कै से पता?

िरे : कु छ अन्िाज़ा, कु छ तजुबाा। $िैर, आगे बताओ।

लक्ष्मी : उसके बाि मैं सर को अप्पूघर ले गई।...वहाँ पहुँचकर तो वो पागल ही हो गए। एकिम

छोटे-से बच्चे बन गए। कोई गेम, कोई झूला उन्होंने नहीं छोड़ा। बदल्क िो-िो बार लाइन में घुस गए। सब लोग हैरत से

उन्हें िेिते रहे। $िास तौर पर बच्चे। बहुत मज़ा आया। दिर मैंने कहा दक बहुत िेर हो गई है, अप्पूघर बन्ि होने वाला

है...और मुझे घर जाना है। उन्होंने कहा दक ठीक है, बस एक-एक कॉिी और पी लें साथ-साथ। हम वहीं एक $िाली-

से रेस्टॉरेंट में बैठ गए। एक कोने में। िूसरी तरि एक पररवार बैठा हुआ था...थोड़े-से बच्चों के साथ। उनमें से दकसी

एक का बथािे था शायि।

लक्ष्मी बैठे हैं।

प्रकाश-वृत्त लुप्त होता है। हलका, संदक्षप्त-सा संगीत। एक कोने में प्रकाश। अवस्थी और

लक्ष्मी : आज तो बहुत ही मज़ा आया, सर! ररअल सरप्राइज़। आप ऐसी िे यरवेल िेंगे मुझे और

इतनी अच्छी दग$फ्ट भी, मैं तो सोच भी नहीं सकती थी।

अवस्थी :

मुझे भी बहुत अच्छा लगा। एक दिन बहुत अच्छा बीता। थैंक्यू।

लक्ष्मी : मुझे थैंक्स िेकर शदमान्िा न कीदजए सर। आपकी वजह से दकतना एंजॉय दकया

मैंने...दकतना िाया, दकतना घूमी और दकतनी अच्छी दिल्म िेिी...लेदकन आप तो पूरी दिल्म में सोते रहे थे,

सर...$िर ाटे भर रहे थे, $िरा-$िरा (ज़ोर से हँसती है)

अवस्थी : वो तो बस...कल रात बहुत िेर हो गई थी। वैसे भी दिल्म में तो सब कु छ नकली होता है

न? लाइि तो होती नहीं है, इसदलए... (लक्ष्मी अचानक हँस पड़ती है।)

अवस्थी :

क्या?...हँस क्यों रही हो?...ग़लत कहा मैंने?

लक्ष्मी : (हँसी पर काबू पाने की कोदशश करते हुए) नहीं दबल्कु ल सही कहा आपने...मैं तो दकसी

और बात पर हँस रही थी...कु छ याि आ गया था अचानक। (पुन: ज़ोर से हँस पड़ती है। दिर दकसी तरह रोककर)

सॉरी, सर...अब नहीं हँसू ँगी।...आप बुरा मत मादनएगा, प्लीज़।

अवस्थी :

लक्ष्मी :

नहीं, नहीं...मुझे तो अच्छी लगती है तुम्हारी हँसी...और हँसो।

नहीं, सर। अब बस...बहु ुत ही गन्िी आित है मेरी...

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अवस्थी : हँसो न प्लीज़।...एक बार दिर याि कर लो दकस बात पर हँसी थीं तुम, दिर मुझे भी

बताओ।

लक्ष्मी : नहीं, सर, आपको नहीं बता सकती। (हँसती है)

अवस्थी : बताओ, बताओ, लक्ष्मी।

लक्ष्मी : कै से बताऊँ , सर...आप ग़ुस्सा हो जाएँगे...सर पे िंिा मार िेंगे मेरे... (हँसती है)

अवस्थी : नहीं, ...लेदकन अगर तुम नहीं बताओगी तो बुरा लगेगा मुझे...

लक्ष्मी : ऐक्चुअली...आप वो लाइि की बात कर रहे थे न सर, तो मुझे याि आया दक मैंने सारे

ऑदिसवालों को दनकनेम्स िे रिे हैं...टाइटल्स, यू नो? (हँसती है)

अवस्थी : अच्छा? जैसे?...

लक्ष्मी : जैसे दतवारी जी का ‘पंिाल’।

अवस्थी : पंिाल? वो क्यों?

लक्ष्मी : हमेशा पंिाल-वंिाल लगवाने की बात करते हैं न, ए-वन टेंट हाउस की तरि से?...सरकार

से तो दसिा तन$ख्वाह लेते हैं। असल काम पंिाल का करते हैं। अपने भांजे की आड़ में।

अवस्थी : (हँसता है) अच्छा?...और...?

लक्ष्मी : और? हाँ, बताइए ‘मकड़ी’ दकस का होगा।

अवस्थी : ‘मकड़ी...मकड़ी’ नहीं तुम्हीं बताओ।

लक्ष्मी : आपके दिप्टी...बग्गा साहब का।

अवस्थी : अच्छा?...क्यों?

लक्ष्मी : हमेशा जाल बुनते रहते हैं न...मकड़ी की तरह। कब आप हटें, कब वो हेिक्लका बनें और

कै से कदमश्नर साहब की चमचादगरी करें।

अवस्थी : अच्छा?...(ज़ोर से हँसता है)...अच्छा, अब मेरा टाइट ल बताओ। मेरा भी तो कु छ नाम

रिा होगा तुमने?

लक्ष्मी : जी हाँ रिा था...लेदकन अब पता चला वो दबलकु ल रांग था, ...आप तो बहुत ही हँसमुि

हैं, सर! िु ल ऑि लाइि। इसदलए अब नहीं बताऊँ गी।

अवस्थी : बताओ, बताओ...मुझे बुरा नहीं लगेगा। प्लीज़...

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लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

कोई उतार-चढ़ाव।

ठीक है, बताती ह ँ...लेदकन है दबलकु ल रांग...मैंने आपका नाम रिा था ‘ममी’।

ममी...मम्मी?

वो पापा-मम्मी वाली मम्मी नहीं...ईदजप्ट की ममी। प्लास्टर चढ़ी हुई, न कोई लाइि, न

अवस्थी : ओह...वो ममी! ईदजप्ट वाली ममी।...बहुत सही टाइट ल। (ज़ोर से हँसता है। लक्ष्मी भी

हँसती है। हँसते-हँसते अवस्थी को िाँसी आ जाती है। कु छ बेचैन। ििा। चुप्पी।)

लक्ष्मी :

आई एम सॉरी, सर!

अवस्थी : नहीं, नहीं। मैंने दबलकु ल बुरा नहीं माना। मैं तो दसिा ये सोच रहा था दक मैं ममी कै से बन

गया? कब बन गया? क्यों बन गया?

लक्ष्मी :

अवस्थी :

आप ममी नहीं हैं, सर! मैं कह रही ह ँ न? दबलकु ल $गलत टाइट ल था।

शायि अपने बेटे की वजह से...

लक्ष्मी : अपने बेटे को ललेम मत कीदजए। आप तो उसके पापा हैं...उसने थोड़े ही कहा था आपसे

ममी बनने को। (हँसने की कोदशश करती है।)

अवस्थी : नहीं-नहीं। मैं उसे िोष नहीं िे रहा। वाइि के जाने के बाि...बस उसी का ध्यान रिा दक वो

कहीं पहुँच जाए। दिर धीरे-धीरे वो तो कहीं पहुँच गया, मैं वहीं ठहर गया...और पत्थर हो गया। मैंने तो मुड़कर भी नहीं

िेिा–जैसे कहादनयों में होता है।

चुप्पी। संगीत। कु छ पलों बाि।

लक्ष्मी : (घड़ी िेिते हुए) अब चलें, सर। (अवस्थी चुप। उठकर अवस्थी के पास जाती है।) सर!

(अवस्थी चुपचाप भावहीन आँिों से लक्ष्मी को ताकता है।)...सर...सर!...क्या हो गया आपको अचानक? (तनाव,

व$क्िा)...क्या बात है सर!...

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

मुझे...मुझे...मालूम है क्या हुआ है?...

अचानक क्या हुआ, सर?...

(लम्बी साँस लेकर)...वो...नहीं, कु छ नहीं...अचानक तो कु छ भी नहीं।

लक्ष्मी : लगता है आप बहुत थक गए हैं सर! (अवस्थी इनकार में सर दहलाता है) मेरी वजह से

बेकार इतना घूमे-दिरे। क्या ज़रूरत थी मुझे िे यरवेल ट्रीट िेने की?

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अवस्थी : थकान िे यरवेल ट्रीट की नहीं है...उसमें तो मुझे बहुत मज़ा आया... लेदकन दिर भी कु छ है

दजसकी मुझे तलाश है...जो मुझे दमल नहीं रहा। अपने िु:िों की कै ि से परे क्यों नहीं झाँक सकता मैं?...अच्छा बताओ

तुम इतनी िुश कै से रहती हो? मैं भी इतना िुश होना चाहता ह ँ। मुझे बताओ।

लक्ष्मी :

मैं क्या बता सकती ह ँ सर, आई एम जस्ट ए स्ट यूदपि गला।

अवस्थी : बताओ, बताओ। बस चाहे एक दिन के दलए मगर मैं तुम्हारी तरह जीना चाहता ह ँ। मैं ऐसे

ही तो नहीं मर सकता। बताओ न?

लक्ष्मी :

दमलती है।

सर, आपकी उम्र में तो लोग पूजा-पाठ करते हैं। भगवान का नाम लेते हैं। इसी में शादन्त

अवस्थी : नहीं दमलती। बहुत दकया है मैंने ये सब कु छ...लेदकन मुझे कभी शादन्त नहीं दमली।...वो

शादन्त तो एक मजबूरी है...अपने को $िरेब िेने का एक बहाना...मुझे तो वो िुशी चादहए, जो तुम में है। बताओ।

पूदछए।

लक्ष्मी :

लेदकन आपको तो इतनी िुशी दमली हुई है, सर! आपका बेटा है, बह है, पोता है। उनसे

अवस्थी : हाँ हैं, वो सब हैं। लेदकन...(चुप्पी)। जब मैं छोटा था तो एक बार नहर में िूब रहा था। मेरे

दपताजी दबलकु ल पास थे, इसदलए मुझे िेि दलया। नहीं तो मेरे मु ँह से ची$ि भी नहीं दनकल रही थी। आज दिर ऐसा

लग रहा है दक मैं िूब रहा ह ँ...और सब, मेरा बेटा, मेरी बह ...सब बहुत िूर हैं कहीं। और अब भी मेरे मु ँह से ची$ि नहीं

दनकल रही। कोई आवाज़ भी नहीं। उनसे क्या पूछूँ, कै से पूछूँ?

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

लक्ष्मी :

अवस्थी :

क्या कर सकता है?

सॉरी, सर!

तुम ही बताओ न...ऐसा क्या करती हो दक इतना िुश रहती हो?

मैं क्या बताऊँ , सर, मैं तो बस...

प्लीज़...बताओ। क्या करती हो?

कु छ भी तो नहीं, सर! उठती ह ँ, बैठती ह ँ, िाती ह ँ, पीती ह ँ, सोती ह ँ। और क्या?

कु छ तो $िास होगा? तुम मुझसे दछपा रही हो।

कु छ नहीं दछपा रही...सर, आप अपना ध्यान ऑदिस में क्यों नहीं लगाते?

वहाँ क्या िुशी दमलेगी मुझे? वहीं तो कु सी पर बैठे-बैठे ममी बन गया ह ँ। ऑदिस में कोई

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लक्ष्मी : तो दिर आप ररज़ाइन कर िीदजए–जैसे मैं कर रही ह ँ। मैंने तो अब तय कर दलया है दक अब

वो ही काम करूँ गी दजसमें मुझे िुशी दमले। जैसे दक नया जॉब, इतना एक्साइदटंग है दक बस...(अपने बैग से एक

दिलौना दनकालकर चाबी भरते हुए। कलाबादजयाँ दििाने वाला दिलौना) ऐसे दिलौने बनते हैं वहाँ...दिलौने की

िै क्ट्री है। इतने सारे बच्चे इन दिलौनों से िेलते हैं और िुश होते हैं। दकतनी बड़ी बात है। मुझे भी लगेगा दक मैं भी

उनके साथ िेल रही ह ँ–जैसे पाका में िेला करती थी अपनी सहेदलयों के साथ (दिलौना चलता है–कलाबाद जयाँ

दििाता है।) िेदिए...(कलाबाद जयाँ िेिकर ताली बजाती है) बच्चे िुश नहीं होंगे इसे िेिकर? वो िुश होंगे, तो मैं

भी िुश रह ँगी।

अवस्थी : हाँ...मैं समझ सकता ह ँ...मगर मेरे दलए ऑदिस में कु छ नहीं है। और न ही मैं ररज़ाइन कर

सकता ह ँ।...मेरे पास मोहलत ही कहाँ है? और िुशी मुझे तब ही दमलेगी जब मैं कु छ ऐसा कर पाऊँ जो मैं करना

चाहता ह ँ।

इस बीच अवस्थी िुि वो दिलौना उठाकर चाबी भरता है। दिलौना चलता है,

कलाबाद जयाँ दििाता है। दिलौना रुकने पर दिर चाबी भरता है, और इस बार उसे थोड़ा-सा चलने के बाि उठा लेता

है। बची हुई चाबी तेज़ी से अनवाइंि करती है। अवस्थी की आँिों में एक अद्भुत-सी चमक, एक जोश। अवस्थी

दिलौना उठाकर सीने से जकड़ लेता है। और अब ऐसा लगता है जैसे वो लक्ष्मी से कम और अपने-आप से ज़्यािा

बात कर रहा है।

अवस्थी : (उठकर जाते हुए) अभी चाबी पूरी तरह $ित्म नहीं हुई है। अब भी कु छ हो सकता है। अब

भी मैं कु छ-न-कु छ कर सकता ह ँ। अगर मैं चाह ँ तो।

अवस्थी एक हारे हुए आिमी-जैसे नहीं, बदल्क जोशीली, लक्ष्यपूणा चाल से चलकर जाता

है। बैकग्राउंि में बथािे पाटी में ‘हैपी बथा िे टु यू’ गाया जा रहा है। प्रकाश बिलता है। वतामान।

लक्ष्मी : (‘हैप्पी बथा िे टु यू’ गुनगुनाती है)...ऐसा लगा जैसे ‘हैपी बथा िे’ बेजान ममी में दिर जान

आ जाने की िुशी में गाया जा रहा हो... अवस्थी सर को अगर तब कोई राह दमली, तो उनकी अपनी तलाश से। मैं तो

उस पल ज़्यािा-से-ज़्यािा एक हमसिर थी...शायि वो भी नहीं...अब आपको पता लगा न दक क्या बोझ था मुझ पर?

िरे : (कु छ िोया हुआ) हैं...क्या?

लक्ष्मी :

मेरे मेमवाजर !...सुन भी रहे थे आप?

िरे : मैं तो उस बथािे पाटी में शरीक-सा हो गया था...लक्ष्मी, मुझे लगता है दक शायि अवस्थी

साहब भी हम सब लोगों की तरह एक कै ि में थे।

लक्ष्मी : कै ि?

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िरे : हाँ, अपने-आपको कु छ दनराला, कु छ $गैर-मामूली समझने की कै ि। उस शाम तुम्हारे

मािा त उन्हें उस कै ि से कु छ मोहलत दमल गई थी।

लक्ष्मी :

मैं कु छ समझी नहीं।

िरे : मैं भी क्या $िाक समझता ह ँ?...बस अन्िाज़ा लगाता ह ँ।

लक्ष्मी :

अच्छा...अब मैं चलू ँ?

िरे : रुको न कु छ िेर।...मुझे अवस्थी साहब की द जन्िगी की दजग सॉ पज़ल कु छ सुलझती हुई

लग रही है।...

लक्ष्मी :

उस को सुलझाते-सुलझाते आप मुझे उलझा िेंगे।...िेर हो रही है... चलना चादहए।

िरे : एक चाय मेरी तरि से!...

लक्ष्मी :

बाय!...(उठती है।)...

नहीं अब जाना है।...वैसे भी अब आपके दलए वाय का व$ि है। (हँसकर)... वाय

िरे : (िड़े होकर) तेरहवीं पर आओगी क्या?...

लक्ष्मी : हाँ...इसदलए नहीं दक आना चादहए।...बदल्क इसदलए दक आना चाहती ह ँ!...न जाने क्यों

ऐसा लगता है जैसे वहाँ मुलाकात होगी उनसे।

है।

अन्धकार। नेपथ्य में गीत : चाहे हो उम्र लम्बी...।

दृश्य छह

प्रकाशवृत्त में िरे। हाथ में शराब का दगलास।...एक घू ँट पीता है–दिर िशाकों से बात करता

िरे : ...अवस्थी साहब की द जन्िगी की दजग सॉ पज़ल कु छ सॉल्व होती हुई लगती है।...ये

वादकए उस रोज़ के बाि के ही होंगे जब बेजान ममी में दिर से जान पड़ गई थी।...तभी जब उस दिन मैं ऑदिस

हस्बमामूल लेट पहुँचा, तो अवस्थी साहब ऐसे तपाक से दमले जैसे बहुत िेर से इन्तज़ार कर रहे हों मेरा!

हैं।

अवस्थी :

$फ्लैश बैक। ऑदिस। िरे का प्रवेश। अवस्थी एक िाइल दलये तपाक-से िरे से दमलते

अच्छा हुआ आप आ गए, िरे साहब! आप ज़रा मेरे साथ चलेंगे, प्लीज़?

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लू ँ।

िरे : अरे दकबला अवस्थी साहब? अभी तो पहुँचा ह ँ रात का थका-माँिा...ज़रा पहले चाय पी

अवस्थी :

माि कीदजएगा...चाय ज़रूर पी लीदजए। मगर थोड़ी जल्िी है।

िरे : छोटू! जल्िी से हमारी वाली िो चाय लाना। (अवस्थी से) आप चाय लेंगे न?...एक!

अवस्थी :

नहीं, नहीं, शुदक्रया।

िरे : बैदठए तो सही कम-से-कम। (िोनों बैठते हैं।) जब तक चाय आती है, ये बताइए दक आपके

साथ चलना कहाँ है? वैसे मैं आपको आगाह कर िू ँ दक दिन के व$ि मैं उतनी दिलचस्प कम्पनी नहीं हुआ करता

दजतना दक रात को...

तो...

है।

अवस्थी :

नहीं नहीं, वो बात नहीं...मैं आपको के स समझाए िेता ह ँ...(चाय आती है।)

िरे : बग्गा साहब को लीदजए न साथ...मेरा महकमा तो आपको मालूम ही है...कहीं दचपक गया

अवस्थी :

इसीदलए तो न...

िरे : मेरे नातवाँ बिन पर इतना बोझ!

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

कदमश्नर :

बेदिक्र रदहए...िोनों सवाररयों के सामान का दजम्मेिार मैं ह ँ। आइए...

कदमश्नर का कमरा। अवस्थी और िरे िरवाज़े पर। अवस्थी हलके से िरवाज़ा िटिटाता

(अन्िर से) कम इन।

अवस्थी अन्िर आता है िरे के साथ। वहाँ कदमश्नर के साथ बग्गा भी बैठा है।

गुि मादनिंग, सर!

हाँ, बोलो अवस्थी! मगर यस सर और सॉरी सर के अलावा कु छ और।

यर सर! (व$क्िा) सर...

हाँ, हाँ, बोदलए। मैं सुन रहा ह ँ।

सर, हम ऐक्शन ले रहे हैं...

कौन-सा के स है?

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अवस्थी :

दप्रयिशानी दवहार के मैिान का।

बग्गा : (कदमश्नर से) मैंने इन्हें समझाया था दक ट्रस्ट का स्टे आने वाला है। तब तक िाइल क्लोज़

कर िेते हैं।

कदमश्नर : भई, ठीक ही तो कहा बग्गा ने। स्टे में कु छ कॉम्पदलके शन आ गए हैं...मगर मदन्िर का

मामला है तो दिले नहीं होगा।

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

कदमश्नर :

अवस्थी :

मदन्िर नहीं, सर...पाका । और उसके दलए तो...

क्या कहा आपने?

जी वो मास्टर प्लान में पाका का ऐप्रूवल है, और सैंक्शन भी है।

लो जी, अब इनकी सुनो...दबलकु ल जे. जे. कॉलोनीवालों जैसी बात कर रहे हैं।

सर, हमने जे. जे. कॉलोनीवालों से तो वािा दकया था...

कदमश्नर : अरे उनसे कह दिया था बलवा रोकने को। दमस्टर अवस्थी, प्लीज़ मेरा टाइम मत वेस्ट

कीदजए। ट्रस्ट का बहुत प्रेशर है। और इलेक्शन वैसे ही आने वाला है। बनवाना तो मदन्िर ही पड़ेगा। मगर िं ि ररलीज़

हो गए हैं पाका के नाम से। दबना ररटेन ऑिाजर के आप अपने लेवल पर ही क्लोज़ कर िें पाका की िाइल।...और अगर

आप से नहीं होता तो बग्गा को हैंिओवर कर िें।

अवस्थी :

मगर...

बग्गा : यस सर!

बग्गा लगभग िींचकर अवस्थी को बाहर ले जाता है। पीछे-पी ेछे िरे।

बग्गा : कमाल करते हो जी आप? साहब का मूि नहीं िेिा? पंदित बार-बार चक्कर लगा रहे

है ै ं...िोन आ रहे हैं। बेचारों पर दकतना प्रेशर है। ऐसा करो...आप मदन्िर की िाइल िोल लो...और ये पाका वाली

िाइल मुझे िे िो। मैं इस पर नोदटंग करके क्लोज़ करने को पुटअप कर िेता ह ँ।

अवस्थी इतनी मजबूती से िाइल बग्गा के बढ़े हुए हाथ से और िूर करता है...और इतनी

तेज़ी से जाता है दक बग्गा हतप्रभ रह जाता है...और िरे भी...

बग्गा : कमाल है। (िरे से) अरे क्या हो गया है बुढ़ऊ को? मारा जाएगा...तुम ही कु छ समझाओ

इसे...बड़े आिदमयों का मामला है...ररटायरमेंट तो ररटायरमेंट, परलोक भी $िराब हो जाएगा। मैं तो अवस्थी के भले

की ही बात कर रहा ह ँ। हाथ-पाँव वैसे ही कीतान कर रहे हैं...िील्ि जॉब दकया तो लुढ़क जाएगा।

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अन्धकार। ‘चाहे हो उम्र लम्बी...’ की धुन। प्रकाश आने पर। अवस्थी और िरे आदिस में

अवस्थी की टेबल पर सामने कु छ ललू-दप्रंट वगैरह हैं।

िरे : अवस्थी साब। इतने टाइम में हो नहीं पाएगा ये...

अवस्थी :

कु छ चीज़ें अगर टाइम कम हो तब ही पूरी हो पाती हैं...

बग्गा प्रवेश करता है। साथ में पंदित राधेश्याम और गोस्वामी भी।

बग्गा : आइए, पंदित जी, आइए। सौभाग्य से अवस्थी जी ऑदिस में ही हैं...नहीं तो आजकल तो

बस साइट पर ही दमलते हैं, चाहे धूप हो या बरसात।

राधेश्याम-गोस्वामी : नमस्कार, अवस्थी जी...बहुत दिनों बाि िशान हुए।

अवस्थी :

आइए, बैदठए!

बग्गा : पंदित जी...ठंिा या गमा?

राधेश्याम : बग्गा जी, उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। आज तो बस अवस्थी साहब के िशान

हो गए तो जैसे तृदप्त हो गई।

गोस्वामी : आप सज्जनों को तो ज्ञात भी नहीं होगा। हम लोग अपनी दशक्षा-िीक्षा समाप्त करके दिल्ली

आए तो आिरणीय अवस्थी जी ने ही राधेश्याम जी और मेरी सहायता की। मागािशान दकया।

गोस्वामी :

आिरणीय सिस्य।

अवस्थी :

बग्गा : छोटू...

अवस्थी :

कान्यकु लज ब्राह्मण हैं अवस्थी जी...बहुत ही उत्कृ ष्ट गोत्र। हमारी दबरािरी के अत्यन्त

(बग्गा से) कु छ दमठाई वगैरह मँगा लो पंदित जी के दलए...

हाँ तो पंदित जी, कै से कष्ट दकया?

गोस्वामी : कष्ट? कष्ट शलि तो, आिरणीय अवस्थी जी, आपकी तरह हमारे शलिकोष में भी नहीं

है।...के वल जनकल्याण के प्रदत कताव्य के पालन में कोई दवघ्न आए तब ही आत्मा को कष्ट होता है।

राधेश्याम : परन्तु अवस्थी जी की छत्र-छाया और कृ पा-दृदष्ट बनी रहे तो जनकल्याण में दवघ्न

कै सा?...अरे ये तो...इस क्षेत्र के दनवादसयों का सौभाग्य है दक पूज्यनीय अवस्थी बाबू जैसे महान पुरुष यहाँ के बड़े बाबू

हैं।

अवस्थी कु छ बेचैन-सा घड़ी िेिता है।

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िरे : शास्त्राथा छोड़कर...अगर आप दहन्िी में बोलें तो हमारे भी कु छ पल्ले पड़े।

बग्गा : िरे!! ज़रा मौका िेि के बोला करो...जी पंदित जी, आप क्या कह रहे थे?

राधेश्याम : सुना है, अवस्थी जी आपका शरीर कु छ अस्वस्थ है इन दिनों।

अवस्थी : शरीर का क्या है! वैसे आजकल जीदवत ही नहीं, जीवन्त भी ह ँ। लगता है दक बस साँस ही

नहीं चल रही, बदल्क जी भी रहा ह ँ।

गोस्वामी : हमारी तो परमदपता से सिैव यही प्राथाना रही है दक वो आपको दचरायु करे। दिर भी

आपकी अवस्था में, अवस्थी जी, व्यावहाररक बात यही है दक दनकट ही, अपने इष्ट िेव का भव्य मदन्िर हो।

राधेश्याम : (िु सिु साकर) के वल यही नहीं। अपने ओहिे से दनवृदत्त पाने के पश्चात आप

हमारा मागािशान करें, हमारे ट्रस्टी बनकर।

अवस्थी : (कु छ बेचैन-सा, जल्िी में)...राधेश्याम जी, गोस्वामी जी, कृ पया मुझे क्षमा करें...मगर मैं

बहुत व्यस्त ह ँ...और इतना व्यस्त पहले कभी नहीं रहा।...और हाँ, रही मदन्िर की बात...तो वो मेरे हाथ में नहीं है।

राधेश्याम : बड़े बाबू, आपकी दवनम्रता के दलए हमारे मन में बहुत श्रिा है। मगर कदमश्नर

साहब ने स्वयं हमसे कहा है दक ये के स सेक्शन में ही है...और अवस्थी जी, आप ही के हाथ में है।

गोस्वामी : आपको आपका कताव्य समझाना तो सूया को िीपक दििाने के समान होगा।...सड़क के

दकनारे एक भव्य मदन्िर बनवा िीदजए और आस-पास कु छेक पक्की िुकानें।

राधेश्याम : ...वी. आई. पी. पादकिं ग की जगह भी...क्योंदक आजकल समाज का उच्च-वगा भी

मदन्िरों में बहुत श्रिा रिता है। िशान की रेट भी अच्छी चल रही है।

गोस्वामी : झोपड़पट्टी को ओझल रिने के दलए वनस्पदत लगवा िीदजए, उससे मदन्िर और िरररों के

बीच, पारस्पररक मय ािाएँ भी बनी रहेंगी।

िरे : वाह-वाह-वाह!...सुलहान अल्लाह!

बग्गा : िरे...तमीज़ से पेश आ। बीच में मत बोल।

िरे : मैं तो िाि िे रहा ह ँ, जनता के दलए इस ऊँ चे ज़ज्बे की।

अवस्थी : पंदित जी...बात ये है दक मास्टर प्लान में मदन्िर का, िुकानों का, कोई प्रस्ताव नहीं है।

बदल्क जगह वैसे ही इतनी छोटी है दक दजन जन-सुदवधाओं को िेने का दनणाय है उसमें, उनमें ही थोड़ी परेशानी हो रही

है।

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िरे : पंदित जी...जन-सुदवधाओं का मतलब समझे न आप...यानी पा$िाने...शौचालय। यानी

अब के मेरा दहस्सा भी है प्लान में। पंदित जी, मुझे लगता है दक प्लान में ही ज़मीन अपदवत्र हो गई है अब आपके काम

की कहाँ?

राधेश्याम : अवस्थी जी, कृ पा करके इन सज्जन को हम से अदशष्ट बातें करने से रोदकए!

अवस्थी :

गोस्वामी :

अवस्थी :

मगर िरे बाबू ठीक कह रहे हैं...शौचालय इत्यादि योजना में है।

अवस्थी जी,...आपका मतलब है दक आप उसके पक्ष में हैं, मदन्िर के नहीं?

प्रश्न पक्ष या दवपक्ष का तो है ही नहीं...

िरे : ज़रूरत का है।...आप ही बताइए, पंदित जी। प्राथाना करने के दलए मदन्िर ज़्यािा ज़रूरी है

या हाजत के दलए पा$िाना।...अपने-आपको ज़रा हाजत के व$ि की कै दियत में लाकर सोदचए।

पंदित गुस्से से उठ जाते हैं।

राधेश्याम : अवस्थी, ये छोटा-सा बाबू हमसे अभर और असभ्यतापूणा व्यवहार दकए जा रहा

है...और तुम िर के मारे उसी का पक्ष ले रहे हो।

गोस्वामी :

वातावरण िूदषत कर दिया इसने...और वो भी आपकी शह पाकर...

बग्गा : पंदित जी,...बैदठए-बैदठए...नाराज़ न होइए (नाश्ता आता है।) पहले ज़रा कु छ नाश्ता-वाश्ता

कीदजए।

राधेश्याम : इस वातावरण में हम से जलपान करने को कह रहे हो?

बग्गा : कु छ तो...थोड़ी दमठाई ही...

गोस्वामी :

पहले स्नान करना पड़ेगा।

हमें तो इस आिमी की बातें सुनकर ही ऐसा लगता है दक अगले कौर को मु ँह में िालने से

िरे : क्यों साहब?...आप के बिन को पदवत्रता की कु छ ज़्यािा ही ज़रूरत पड़ती है क्या?...उधर

दबचारी औरतों को तन उघाड़कर रास्ते में नुमाइश लगानी पड़ती है।...तो उसका कु छ भी नहीं?

अवस्थी : िरे साहब, कृ पया आप चुप रहें।...अच्छा, पंदित जी। (िड़ा हो जाता है, घड़ी िेिता है।)

कािी िेर हो रही है काम को अब।...समय दमला तो आपसे भेंट करूँ गा।

राधेश्याम : (िड़ा होकर तैश में) हमारे इतने घोर अपमान के बाि...प्रश्न ये नहीं है दक तुम्हारे

पास भेंट का समय है दक नहीं...वरन हमारे पास तुम्हारे दलए समय है दक नहीं। अपने ही नहीं, पूरी दबरािरी के पैरों पर

कु ल्हाड़ी चला िी है तुमने।

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गोस्वामी : (िड़े होकर) तूने तो लुदटया ही िुबो िी...ब्राह्मण होकर भी ब्राह्मण का अपमान करता है।

पता नहीं वो परमदपता भी तुझे कभी क्षमा कर पाएगा या नहीं दजसके नाम पर ब्राह्मण-समाज तेरा दतरस्कार करता है।

िरे : और मैं नमस्कार करता ह ँ इस यकीन के साथ दक आप जा रहे हैं। वैसे कभी िु रसत हो तो

गु$फ्तगू के दलए मेरे पा$िाने में तशरीि लाइए।

गोस्वामी :

म्लेच्छ! नीच!!

राधेश्याम : याि रहे, अवस्थी! हम अपनी महान संस्कृ दत के कणाधार हैं। समाज में हमारा

स्थान कोई नहीं छीन सकता।...अरे िेश के बड़े-बड़े नेता, मन्त्री, प्रधानमन्त्री, सब महापुरुष...हम साधु-सन्तों की

अगवानी में चल रहे हैं। उन्हीं की छत्रछाया में जी रहे हैं। मामूली-सा हेि क्लका !! ...तू चीज़ ही क्या है?

पंदित जाते हैं।...पीछे-पीछे बग्गा...’पंदित जी सुदनए तो...’ कहते हुए। अवस्थी चलने के

दलए तैयार। उधर िरे आराम से नाश्ते के दलए बैठता है।

िरे : (हँसता हुआ) एक बात कह ँ। ये पंदित यहाँ से सीधे जाएँगे शौचालय ही।...और तब

समझे े ंगे मेरी बात। चलो अच्छा हुआ, नाश्ते पर उनके पदवत्र हाथ नहीं लगे। अब मैं ही कु छ...

अवस्थी : िरे साहब, जल्िी।...नहीं, नहीं...। नाश्ता कर लीदजए, साइट पर मेरी वजह से आपका भी

कु छ िाना-पीना नहीं हो पाता।

िरे : (बैठकर िाता हुआ) आप भी बैठ जाइए, अवस्थी साहब, िो-एक दमनट को।...िाने-पीने

से याि आया दक छोद िए पाका या मदन्िर का चक्कर। वहाँ क्यों न एक ठेका या बार बनवा िी जाए और पास में

शौचालय? ठेका बना तो झोपड़पट्टी के झगड़े-वगड़े भी $ित्म... आलम साहब का शेर है न...

अवस्थी :

जो मैकिे में गए थे, वो साथ-साथ आए।

गए जो िैरो हरम में जुिा-जुिा दनकले।

(िुि ही) वाह-वाह!

थोड़ी जल्िी कर सकें तो...

िरे : (िाते-िाते) ओह याि आया।...आपको तो शेरो-शायरी का शौक ही नहीं है। लेदकन

साहब अगर मैं एक चीज़ और नहीं सुनाऊँ गा मौके की तो मेरे पेट में ििा रह जाएगा।

मैकिा अस्ल में एक ऐसा मु$क $किस है मु$काम,

दजसके िरवाज़े पे दलक्िा है मुहलबत का पयाम।

ये मुसलमान है, ये दहन्िू है, ये दसि...

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लेंगे।

मैकिे में कभी होता ही नहीं ऐसा कलाम।’

चदलए, अवस्थी साहब, अब मैं तैयार ह ँ।

िोनों उठकर जाने लगते हैं। बग्गा वादपस आ रहा है।

बग्गा : आप िोनों तो मुझे भी मरवाओगे।...मैं साहब से क्या कह ँगा?... पता नहीं वो क्या एक्शन

िरे : (जाते-जाते) बग्गा जी, आप भी बहुत ही $गैर-शायराना आिमी हैं।

अन्धकार।

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दृश्य सात

पाका की साइट। बाररश। अवस्थी साहब तेज़ी से इधर-उधर काम सुपरवाइज़ कर रहे हैं...िरे

एक छाते के नीचे बैठा िेि रहा है। जे. जे. कॉलोनी की औरतें अवस्थी के इिा-दगिा हैं। अवस्थी के ऊपर छाता रिने

की कोदशश कर रही हैं, लेदकन अवस्थी उसमें से बार-बार दनकल जाता है अपने जोश में।

औरत :

बड़े बाबू! छाते के नीचे रहो न, भीग गए और कहीं कु छ हो-हुआ गया तो...

िरे : अवस्थी साहब! ठीक कह रही हैं ये...

अवस्थी :

ज़्यािा-से-ज़्यािा क्या हो सकता है...

अवस्थी दिसल के दगर पड़ता है। कोई सहारा िेकर उसे उठाता है। अचानक अवस्थी के

पेट मे े ं ििा की मरोड़। अवस्थी तड़प के वहीं बैठ जाता है। िरे भी वहीं।

औरत :

औरत :

सँभल के बड़े बाबू! जान है तो जहान है...

अपने बैग से गोली दनकालकर िा लो...

अवस्थी अपने बैग में से एक गोली दनकालता है, एक औरत उसको पानी िेती है। गोली

िाने के बाि बहुत नम्रता से अवस्थी औरत का शुदक्रया अिा करता है।

औरत :

अवस्थी :

अब आराम करो...हम हैं न काम करने के दलए...

काम के मामले में बहुत स्वाथी ह ँ मैं...

उठने की कोदशश करता है। औरतें उसे बैठाती हैं। अचानक कु छ गु ंिे तेज़ी से आते हैं। एक

बड़ा िािा–कु छ चमचे! हाथ में लादठयाँ। आते ही गु ंिे शोर मचाते हैं–’रोको सालो...काम रोको!’

िािा : (ज़ोर से) सुना है बड़ा बाबू आया हुआ है–कहाँ है साला!

िरे : ...उनसे दमलना है तो ि$फ्तर में आइएगा। इस व$ि बड़े बाबू दबज़ी हैं!

िािा : (धक्का िेता है–िरे लिख़ड़ाकर दगरता है।) अबे हट दबज़ी की औलाि!

अवस्थी िरे को उठाने जाता है। िािा पीछे से कॉलर से अवस्थी को पकड़ता है–और ज़ोर

से, झटके से अपनी तरि िींचता है। अचानक झोपड़पट्टी वालो में शोर-शराबा-सा। ‘पुदलस को बुलाओ, पुदलस

को...’। गु ंिे धमकाते हैं–’अबे चुप!...मालूम नहीं असली सरकार हम हैं।’

िािा : (अवस्थी को सामने के कॉलर से पकड़कर–ऊपर से नीचे िेिता है। व्यंग्यात्मक हँसी!) तो

तू है बड़ा बाबू!...तेरे हाथ-पाँव तो वैसे ही कीतान कर रहे हैं!...(चमचे हँसते हैं।)

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िािा अवस्थी को धक्का िेता है। अवस्थी दगर जाता है!... झोपड़पट्टी के लोगों में

कोलाहल! अवस्थी कॉलर ठीक करता हुआ उठता है।

िरे : (िािा के पास जाकर) माि कीदजएगा...अभी हम सब लोग काम में दबज़ी हैं!

चदलए...(अवस्थी के साथ जाने लगता है।)

िािा : (अवस्थी का कॉलर पकड़ते हुए) अबे बुढ़ऊ। भाग मत–िरपोक की औलाि।

औरत :

िर–और बड़े बाबू को! सारा ऑदिस िरता है इनसे तो!

चमचे : (औरत से) ...चुप।

िािा : एक पाँव तो तेरा वैसे ही कब्र में लटका है–िूसरा मैं लटका िेता ह ँ।...बता साले...ये काम

बन्ि करवाएगा दक नहीं!...बोल! (धमकाता हुआ।)...जान प्यारी है दक नहीं...बोल साले...जान प्यारी है दक नहीं!...

अवस्थी का कॉलर पकड़कर प्रकाशवृत्त में लाता है। अवस्थी का चेहरा िशाकों के सामने!

चारों तरि गु ंिे। अवस्थी मुस्कु राता है!

अवस्थी :

(मुस्कु राता हुआ) ...मुझे अपनी जान प्यारी है दक नहीं।...

मुस्कु राते हुए दिर अपना कॉलर ठीक करने का उपक्रम करता है। िािा की दगर$फ्त हलकी

पड़ती जाती है।...सब गु ंिे एक-िूसरे की तरि िेिते हैं।...िािा धीरे-धीरे कॉलर छोड़कर िूर होता जाता है–जैसे

मुस्कु राहट से िर गया हो! उसे िेिकर चमचे भी! िरे आकर अवस्थी को िेिता है...अब भी अवस्थी मुस्कु रा रहा

है।...

िरे : (दिक्र में) अवस्थी साहब! चाहे हो उम्र लम्बी...छोटी है द जन्ि$गानी।...

अवस्थी :

(मुस्कु राता हुआ)...यही तो...

िरे हतप्रभ। अन्धकार। काम करने का कोलाहल।

संगीत...’चाहे हो उम्र लम्बी...’ की धुन!

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दृश्य आठ

पाका का उद्घाटन समारोह। कदमश्नर िायस पर। पीछे बग्गा िड़ा है, पास में ही िरे। ऑदिस

के अन्य लोग नीचे बैठे हैं। उन्हीं के पीछे िरे और जे.जे. कालोनी के लोग। अवस्थी कहीं पीछे पूरे जलसे में तकरीबन

ऊँ घता हुआ-सा बैठा रहता है।

बग्गा : (िु सिु साता हुआ िरे से)...तो तुम्हारे अवस्थी ने अपनी द जि पूरी कर ही ली। एक बात

बताऊँ । आने वाले सारे हेिक्लकों की द जन्िगी िराब कर रहा है अवस्थी। कहीं आम जनता ये समझने लगे दक

हेिक्लका जैसा मामूली आिमी भी कु छ कर सकता है, तो बेकार उससे उम्मीिें बढ़ जाएँगी पदललक की।...

कदमश्नर :

कदमश्नर इशारे से बग्गा और िरे को बुलाता है।

िेि रहे हो! वो बैठा हुआ है अवस्थी!! कहीं कु छ गड़बड़ न करे।

बग्गा : नहीं सर! इतनी दहम्मत नहीं है उसमें। क्यों िरे?

िरे : दहम्मत का तो मालूम नहीं, लेदकन ऐसी नीयत नहीं है।

कदमश्नर :

कानािू सी चलवा िी है दक पाका अवस्थी ने बनवाया है। जैसे पैसा उसके बाप ने दिया हो।

बग्गा : सर जी! झोपड़पट्टी वाले होते ही ऐसे हैं।...मैं भी िरे से कह रहा था दक...

कदमश्नर : सब भूल जाते हैं साले, नाशुकरे।...मैंने िुि एल.जी. साहब से साइन नहीं दलये थे प्लान

पर?...दमदनस्ट्री से लैंि नहीं दलया?...सैंक्शन नहीं ली? एक तो मेहनत करो और िूसरे ये सब सुनने को दमले। लोगों को

दसस्टम का कु छ मालूम तो है नहीं।...अरे एक मामूली-सा हेिक्लका कर ही क्या सकता है?

बग्गा : वेरी राइट, सर।...मैं भी िरे से यही कह रहा था दक...कदमश्नर साहब की लीिरदशप न हो

तो, ररस्पैक्टेि सर, यहाँ पर पत्ता भी नहीं दहल सकता।

कदमश्नर का मोबाइल िोन बजता है।

कदमश्नर : (िोन पर नम्बर िेिकर, ‘ओह!’...अटैन्शन में िड़े होकर) नमस्कार, सर।...नहीं सर, कोई

गड़बड़ नहीं है।...िेर कहाँ सर!! िस बजे का तो टाइम ही दिया था...अभी तो बस ग्यारह ही बजे हैं!...कै सी बातें कर रहे

हैं आप।...ये वाली ज़मीन तो ब्राह्मणों ने ही ररजेक्ट कर िी थी, सर।...जी हाँ, झोपड़पट्टी वाले उसे गन्िे-सन्िे कामों के

दलए इस्तेमाल कर रहे थे।... आपको नाराज़ करके हम कहाँ जाएँगे, सर! उससे भी अच्छी ज़मीन का इन्तज़ाम दकया है

मदन्िर के दलए।...जी हाँ, वो ही वाली...प्राइमरी स्कू ल वाली ज़मीन।...नहीं, सर, कोई अड़ंगा नहीं आएगा। यस सर!

इलेक्शन तक काम पूरा हो जाएगा।...आप आराम से आइए सर! ...जय दहन्ि! (िोन बन्ि करता है।) ...मन्त्री जी का

था! बस आ रहे हैं!...सुना तुमने, दकस झंझट में िाल दिया है अवस्थी ने।...बग्गा, अब ये प्राइमरी स्कू ल वाला, आई

मीन मदन्िर का मामला तुम िायरेक्टली अपने चाजा में ले लो। समझे?

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बग्गा : थैंक यू, सर! मैं भी िरे से ये ही कह रहा था दक...

कदमश्नर : िरे!...आप की द जम्मेिारी ये है दक अवस्थी को आप दकसी भी तरह की शरारत करने से

रोकें ।...ये नहीं दक ऐन इनौगरेशन के व$ि अपनी ग्रेटनेस की, अपने शहीि होने की, िास्तान छेड़ िे। उसको समझा िें

दक अगर उसने कु छ भी ऐसा दकया तो उसके दलए ठीक नहीं होगा। दिस इज़ ि लास्ट वादनिंग।

िरे : बेदिक्र रदहए, सर! वो अपनी मामूदलयत को ही अपनी कामयाबी मानते हैं–महान और

शहीि दसिा बड़े आिमी ही होते हैं!

कदमश्नर :

पीछे सायरनों की आवाज़। कदमश्नर और बग्गा उसी तरि लपकते हैं!

मन्त्री जी आ रहे हैं...

िरे : (िशाकों से) जाइए...और मन्त्री जी की महानता का बिान कीदजए... यही तो बाबुओं की

ि यूटी है।

हैं।

िरे अवस्थी के पास बैठता है! कदमश्नर और बग्गा मन्त्री जी को िायस पर दलवाकर लाते

कदमश्नर : ये हम लोगों का सौभाग्य है दक वो महान व्यदि दजसने आप झोपड़पट्टी वालों को ये जन-

सुदवधाएँ और ये सुन्िर पाका दिलवाए हैं, वो स्वयं ही िेवतास्वरूप इसके उद्घाटन के दलए पधारे हैं। मैं उनसे अनुरोध

करूँ गा दक वो हमें प्रोत्सादहत करने के दलए िो शलि अवश्य कहें...

मंत्री : भाइयो और बहनो! कदमश्नर साहब ने व्यदिगत रूप से मुझे धन्यवाि दिया है इस सुन्िर

पाका के बनने पर। हालाँदक उन्होंने स्वयं अपनी लगन से ररकॉिा टाइम में ये काम करवाया है। लेदकन मैं दकसी भी

व्यदि दवशेष को इसका श्रेय नहीं िे सकता। अगर श्रेय दकसी को दमलना चादहए तो वो हमारी जनता को। क्योंदक वही

मेरी अपनी, मेरी पाटी और सरकार की शदि का स्रोत है। िेश का पयाावरण और जन-सुदवधाएँ बहुत आवश्यक हैं।

लेदकन ये बात कभी न भूलनी चादहए दक हमारे िेश की संस्कृ दत हज़ारों साल पुरानी है। उस पर अनेक हमले हुए

लेदकन वो अब भी जीदवत है। आज जनता-जनािान में ऐसा वातावरण बन गया है दक हम अपनी आया-संस्कृ दत को

दिर से उजागर कर सकें ! हमारा कताव्य बनता है दक हम साधुओं की छत्र-छाया में िेश की प्राथदमकता को समझें। और

दिर बहुमतीय जनता के माध्यम से, सरकार के माध्यम से, िेश के भदवष्य को सुनहरे भूत की ओर ले जाएँ। मैं कदमश्नर

साहब को याि दिलाना चाह ँगा दक वो जल्िी-से-जल्िी इस राष्ट्रीय भावना पर ध्यान िें। इन्हीं शलिों के साथ मैं ये पाका

और जन-सुदवधाएँ जनता के नाम, $िासतौर से दप्रयिशानी दवहार की जनता के नाम करता ह ँ।

ज़ोर से तादलयाँ। ‘बड़े लोग’, ऑदिसवाले और अन्य जनता चली जाती है।...िरे िेिता है

दक अवस्थी वहीं बैठा ऊँ घ रहा है

िरे : (अवस्थी को बहुत हलके से थपथपाता हुआ) अवस्थी साहब!...अवस्थी साहब!

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अवस्थी :

सा आ रहा था कोई।

अवस्थी थोड़ा-सा हड़बड़ाकर उठता है। चारों तरि िेिता है।...मुस्कु राता है।

ओह हो...तमाशा $ित्म। मुझे उठाने का शुदक्रया, िरे साहब! हालाँदक सपना बड़ा मीठा-

िरे : चदलए...कहीं सेदलब्रेट करते हैं...

अवस्थी :

आप चदलए।...मैं अपने सपने पाका में ही सैदलब्रेट करूँ गा। आप चदलए।

फ्लैश बैक से वापसी। प्रकाशवृत्त में िरे। संगीत–’चाहे हो उम्र लम्बी।’ हाथ में शराब का

$िाली दगलास है। और िरे, कु छ िलसिाना अन्िाज़ में, कु छ नशे में, िशाकों से कहता है।

िरे : (िशाकों से) ये मेरी आदिरी मुलाकात थी अवस्थी साहब से।...उनके जीते जी।...वैसे ठीक

ही कहा था लक्ष्मी ने...न जाने क्यों ऐसा लगता है दक तेरहवीं पर उनसे मुलाकात होने वाली है। (िशाकों से) आप से तो

होगी ही।

अँधेरा! संगीत!

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दृश्य नौ

अवस्थी का घर। तेरहवीं का दिन। उमेश और रमा बहुत व्यस्त नज़र आते हैं। इन्तज़ाम करते

हुए–अवस्थी की तस्वीर लगाना, माला पहनाना, चािर दबछाना, धूप-बत्ती लगाना, पानी, कै सेट प्लेयर, उस पर भजन

का कै सेट, इत्यादि। इसी काम के िौरान वात ालाप। तैयारी में उमेश और रमा का अपने-आपको शीशे में िेिना, बाल

ठीक करना वग़ैरह भी शादमल है।

उमेश : (ज़ोर से मगर प्यार से) स्वप्नेश! बेटा स्वप्नेश! प्लीज़ हरी अप।...टाइम हो रहा है। लोग

आने लगेंगे कु छ िेर में।...जल्िी।

स्वप्नेश :

(नेपथ्य से)...हाँ िैिी...मैं जल्िी ही कर रहा ह ँ।

रमा : (उमेश से) लेने िो न उसे अपना टाइम। कल रात को सोते-सोते कािी िेर हो गई थी बेचारे

को। मगर हाँ, उसके हॉस्टल के दकस्से हैं मज़ेिार।

उमेश : लगता है अब कािी एंजॉय करने लगा है। मगर एकाध बार बाबूजी का द जक्र आया तो

थोड़ा उिास-सा हो गया, नहीं?

रमा : थक गया था बेचारा! उिास-वुिास कु छ नहीं!...वैसे उसकी दशकायत ठीक थी। उसकी बथा

िे के दलए हमें कु छ एक्स्ट्रा पैसे भेजने चादहए थे, फ्रें ि ज़ पाटी-वाटी एक्सपेक्ट करते हैं...

उमेश : आज कु छ एक्स्ट्रा िाना बनवा लेना चादहए था...पंदित नहीं आ रहे हैं। तो न सही, कहीं

दभजवा िेते िान में।

रमा : तो बनवा लेते, कोई मैंने मना दकया था। हमें कोई प्रैदक्टस थोड़ा ही है तेरहवीं करने की। वैसे

तेरहवीं पर बनता दसिा पंदितों का है।...वो नहीं आ रहे तो हम क्या करें? बेकार के ताम-झाम का िायिा?

उमेश : तो चलो ठीक है।...इस बार ऐसे ही चलने िो। वैसे ज़रा लास्ट दमनट नज़र िाल लो

अरेंजमेंट स पर।

रमा : आई दथंक िे आर क्वाइट नाइस।...ऐसा करते हैं दक रामायण और गीता की कॉपीज़ बाबूजी

की तस्वीर के पास रि िेते हैं।

उमेश : वेरी गुि आइदिया।...यू आर ग्रेट।...एटमॉसदियर बन जाता है इन टचेज़ से (व$क्िा) कु छ

भी कहो ब्राह्मणों को दमस करेंगे।

रमा : दिर वही!! तुमने इतना ट्राइ तो कर दलया।

उमेश : बाबूजी के ऑदिस में भी दकसी ने कु छ नहीं बताया। बस अिसोस करते रहे।

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रमा : लोग भी बस ऐसे ही होते हैं।

उमेश : (अचानक) अरे स्वप्नेश, जल्िी आओ न। (रमा से) बुलाओ न उसे। कम-से-कम िंिवत

कर ले अपने िािा की तस्वीर के सामने। अभी से हज़रत कायिे नहीं सीिेंगे तो जब मेरी तस्वीर होगी न बाबूजी की

जगह, तो तुम्हें कं िोलेन्स का मैसेज़ भेज िेंगे टका-सा, अमेररका से।

रमा : ओह हो, कै सी अशुभ बातें कर रहे हो! तुम भी बस, न मौका िेिते हो न...

स्वप्नेश का प्रवेश। उम्र करीब बारह साल।

रमा : ओह हो! गुि मॉदनिंग। ज़रा िेिो, अपना बेटा दकतना स्माटा लग रहा है।

स्वप्नेश :

थैंक्यू, ममी!

उमेश : वेरी गुि। अच्छा बेटे को मालूम है न दक आज क्या है?

स्वप्नेश : ओह यस, िैिी! जब से मैं आया ह ँ कोई तेरह बार बता चुके हैं दक िािा जी की तेरहवीं

है।...ममी, मुझे बहुत ज़ोर से भूि लग रही है।

उमेश : ओफ्िोह! कु छ िेर रुक नहीं सकते?

रमा : अब क्या करे ये भी, बच्चा है...मैं जल्िी से सैंिदवच बना िेती ह ँ। (जाती है)

स्वप्नेश :

िैिी, बहुत सारे लोग आएँगे?

उमेश : नहीं, बेटे। छोटा-सा ही िं क्शन कर रहे हैं। बाबूजी के स्टेटस का। बस उन्हीं के ऑदिस के

कु लीग्स वगैरह।

स्वप्नेश : वो िनी लुदकं ग पंदित तो आएँगे ही। है न?

उमेश : नहीं...

स्वप्नेश :

ग्रेट। नहीं तो बहुत ही बोर करते हैं...

उमेश : ऐसा नहीं कहते। उनकी अपनी अलग इम्पोटेन्स होती है। मुझे तो उनकी कमी िल रही है।

पता नहीं लोग क्या कहेंगे।

स्वप्नेश :

तो दिर बुलाया क्यों नहीं उन्हें?...

उमेश : (अटपटा-सा) वो बस ज़रा कु छ...

रमा की आवाज ‘स्वप्नेश’!

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उमेश : ममी बुला रही है। जल्िी जाओ और िटािट नाश्ता $ित्म करो, अन्िर ही।

स्वप्नेश :

हाँ, जा रहा ह ँ। वैसे पंदित आते तो कु छ पूरी-वूरी बनती।

स्वप्नेश जाता है। उमेश एक लम्बी साँस लेता है राहत की। रमा आती है।

रमा : चलो अब तैयारी पूरी है। मैं ठीक लग रही ह ँ न?

उमेश : हाँ...तुम्हें एक दलिािा दिया था न रिने को...

रमा : िैथ सदटादिके ट वाला? दिया तो था तुम्हें। अपनी जेब िेिो।

उमेश : (चेक करता है) हाँ, हाँ, है। थैंक यू।

रमा : बाई िी वे...उस पर वजह क्या दलिी है िैथ की।

उमेश : नेचुरल कॉज़ेज़...कादिाएक अरेस्ट...िॉक्टर लोग और क्या दलिेंगे?... असली वजह कब

मालूम होती है दकसी को?... शायि एक्ज़ॉस्शन हो गया होगा बाबूजी को...रात-दबरात इधर-उधर घूमते रहे थे...िाना-

पीना भी छोड़ रिा था...बदल्क नाता ही तोड़ दलया था हमसे।...कु छ तो टाइम दबता लेते हमारे साथ!!

प्रकाश िूसरे कमरे में स्वप्नेश पर। वो िाते-िाते िशाकों से बात करता है।

स्वप्नेश : (िशाकों से) बहुत याि आ रही है िािा जी की। जब मेरे हॉस्टल जाने में थोड़ा ही टाइम बचा

था, तब तो कमाल ही कर दिया था उन्होंने। रोज़ाना कु छ-न-कु छ स्पेशल चीज़ दिलाते थे, द जि कर करके । िेिते रहते

थे मुझे िाता हुआ...िुश होते रहते थे।...दकतना दबज़ी रहते थे...मगर दिर भी मुझे जू दििाने ले गए...अप्पू घर ले गए।

ममी कहती थी दक हॉस्टल जाने से पहले ही मेरी आितें दबगाड़ िेंगे वो।...ओह हो! मैं ममी-िैिी को ये बताना तो भूल

ही गया... (अपने दकसी बैग में उसी तरह का दिलौना दनकालता है जैसा लक्ष्मी ने अवस्थी को दिया था।) ये प्रैज़ेंट

िािा जी ने मुझे मेरी बथािे पर हॉस्टल भेजा था।...दकतना क्यूट है ये, है न?...मुझसे कु छ छोटे बच्चों के दलए होते हैं

वैसे इस टाइप के दिलौने। मगर बेचारे िािा जी को क्या मालूम? पता नहीं उन्हें क्यों ये इतना पसन्ि आ गया।...मगर

हाँ, लगा मुझे भी बहुत अच्छा, इसको हॉस्टल में ररसीव करना।

उमेश की आवाज़, ‘स्वप्नेश!! लोग आ रहे हैं, जल्िी आओ’। स्वप्नेश िाना समाप्त करके

बैठक की तरि भागता है। वहाँ उमेश और रमा िोनों िरवाज़े की तरि जा रहे हैं। बाहर कोलाहल-सा लगता है। कु छ

लोग आ रहे हैं। स्वप्नेश िेिता है दक वो $गलती से दिलौना हाथ में ही ले आया है।...इधर-उधर िेिता है दक कहाँ

रिे। समझ में नहीं आता। दिर हड़बड़ी में जहाँ अवस्थी जी की तस्वीर रिी है वहीं रि िेता है। एक नज़र दठठक के

अवस्थी जी की तस्वीर िेिता है...दिर तेज़ी से िरवाज़े पर जाता है अपने माँ-बाप के पास।

तेरहवीं का दृश्य लगभग मूक-सा है। थोड़ी औपचाररकताओं की िु सिु साहट-सी रहती

है...जो कािी हि तक हास्यास्पि है। िरे और बग्गा के अलावा ऑदिस के सभी क्लका आते हैं और बारी-बारी से,

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थोड़ा नाटकीय अन्िाज़ में, उमेश से हाथ दमला के , गले दमल के , रमा से सर झुका के नमस्कार करके , स्वप्नेश का

कन्धा थपथपा के एक-एक करके , अवस्थी की तस्वीर को नमस्कार करके , तस्वीर की एक तरि बैठते जाते हैं।

मेहमानों के अस्पष्ट-से जुमले कु छ इस प्रकार के : ‘बहुत भले आिमी थे आपके िािर। उनकी िैथ का बहुत अिसोस

है।’ उमेश और रमा का जवाब : ‘अब भगवान की यही मरज़ी थी’...

जे.जे. कालोनी की औरतें, बच्चे इत्यादि आते हैं, लेदकन उमेश उन्हें इशारे से रोकता है दक

कु छ िेर बाि अन्िर आएँ। िरे आकर कु छ िेर हाथ पकड़े रहता है उमेश के हाथ दमलाने के बाि...कु छ बोलता नहीं है

और उसके बाि रमा और स्वप्नेश से नमस्ते करता हुआ अपना स्थान लेता है। अचानक बहुत जल्िी में कदमश्नर और

उसके पीछे-पीछे बग्गा आते हैं। पहले जे.जे. कॉलोनीवालों पर एक नज़र िालकर हाथ जोड़कर उमेश के पररवार के

सामने से कु छ यन्त्रचादलत-से दनकलकर, घड़ी िेिते हैं। दिर तेज़ी से, दबना अवस्थी की तस्वीर पर नज़र िाले, उसको

नमस्कार करके कदमश्नर बैठता है। अन्य लोग, िरे के अलावा, जो कदमश्नर के आने पर िड़े हो गए थे, अब दिर बैठ

जाते हैं। उमेश, रमा और स्वप्नेश भी आकर तस्वीर की िूसरी तरि बैठते हैं।...अब जो कदमश्नर करता है–बैठे-बैठे

पहलू बिलना, घड़ी िेिना, एकटक दकसी भी ओर िेिना, इत्यादि, सब क्लका दबलकु ल ह -ब-ह उसकी नकल करते

हैं। िरे के अलावा, जो इस नाटक को िेिकर कु छ मुस्कु राता-सा है। अचानक कदमश्नर घड़ी िेिकर उठकर िड़ा हो

जाता है, नमस्कार करता है और तेजी से िरवाज़े की ओर। उसकी िेिा-िेिी सब।...उमेश भी तेजी से उठकर उन्हें

िरवाज़े तक छोिऩे जाता है। िरे पहले-जैसे ही बैठा रहता है।

जैसे ही बाकी सब लोग दनकलते हैं, लक्ष्मी आती है...उमेश को नमस्कार करके , िरे की

तरि िेिकर रमा और स्वप्नेश के पास जाकर नमस्कार करती है। अवस्थी की तस्वीर िेिती है कु छ िेर, बहुत ध्यान

से। अचानक उसकी नज़र दिलौने पर पड़ती है, दजसे स्वप्नेश ने वहाँ रिा था।...जाकर उसे उठाती है...और दिर उसे

गले से लगाकर िू ट-िू टकर रोने लगती है।...िरे जाकर उसे ढाँढस बँधाता है। उमेश और रमा में कनदियों में

बातें...कािी आश्चया दक लक्ष्मी को इतना अिसोस क्यों है?...स्वप्नेश जाकर लक्ष्मी से दिलौना लेता है...लगभग

छीनता हुआ-सा।...लक्ष्मी पीठ थपथपाकर स्वप्नेश को सान्त्वना िेना चाहती है।...मगर स्वप्नेश पीछे हटता है।

...उमेश इशारे से जे.जे. कॉलोनी की औरतों इत्यादि को बुलाता है...वो सब अन्िर आकर

अवस्थी की तस्वीर के सामने िंिवत-सा करती हैं...और कु छ िेर उसके सामने हाथ जोड़कर आँि मू ँिकर बैठती

हैं।...उमेश और रमा को ऐसा लगने लगता है जैसे बाकी सबके पास तो अवस्थी की कु छ-न-कु छ याि वसीयत में है,

दसवाय उनके ।...एक िालीपन की अनुभूदत।... उमेश हतप्रभ-सा िरवाज़े पर िड़ा है। जे.जे. कालोनी के लोग वापस

जा रहे हैं हाथ बाँधे, सर झुकाए। जाते व$ि उनमें से एक औरत का बैग, जो अवस्थी के पास हमेशा ही रहता था

बगल में िबा हुआ, उमेश को िेती है।

औरत : छोटे साहब, ये बड़े बाबू का बैग।...उनसे बस जुड़ा रहता था।...हमें तो दसिा इतना मालूम है

दक इसमें उनकी िवाएँ वगैरह रहती थीं...। आप उनके बेटे हो...अब तो ये आपका ही है।

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औरतें जाती हैं।...उमेश के बैग को रिने में वो िुल जाता है। सामान दगर जाता है। बहुत

सारे करेन्सी नोट स, पासबुक, िवाइयाँ...िॉक्टरी नुस्िे, एक्स-रे/कै ट स्कै न की तस्वीरें और ररपोटा। उमेश ररपोटा िेिता

है।

उमेश : (ररपोटा िेिकर, अदवश्वास के साथ, टूटता हुआ) गैदस्ट्रक कै न्सर!

एक असहाय दृदष्ट से रमा को जो उसकी तरि ही जा रही है, और अन्य सबको िेिता

है...और वहीं ढेर-सा हो जाता है। जैसे ही रमा उसको हाथ लगाती है। सान्त्वना िेने के दलए, उमेश दबलि-दबलिकर

रोने लगता है।... स्वप्नेश और रमा भी उमेश को इस हालत में िेिकर रोने लगते हैं। िरे और लक्ष्मी उनके पास जाकर

उन्हें सान्त्वना िेते हैं। वो भी सकते में हैं।

उमेश : (दबल्कु ल टूटे स्वर में, िरे और लक्ष्मी से) आपको पता था क्या...पता था बाबूजी

के ...कै न्सर का...? (लक्ष्मी कु छ कहना चाहती है, मगर रुँ धे हुए गले से कु छ आवाज नहीं दनकलती।)

िरे : नहीं।...उनकी वजह से उस कैं सर का तो पता चला, जो हम सब में िै ला है, लेदकन िुि

उनका...$िैर!! धीरज रिो।... अवस्थी साहब अब दजतने तुम्हारे पास हैं...पहले शायि कभी न रहे हों।...धीरज

रिो।...

उमेश : (दबलिता हुआ)...िरे साहब, वो सब बाबूजी के बारे में जो आप बताने वाले थे...वो

बताएँगे न मुझे? जल्िी ही?...

िरे : हाँ हाँ, ज़रूर।...तुम्हारा हक है वो तो।...वसीयत है तुम्हारी।

पाका का चौकीिार आता है...एक िू ल और एक पैदकट दलये।...वो उमेश और रमा को

नमस्कार करता है। कोई उत्तर नहीं। मगर बाकी सबको इस हालत में िेिकर, धीरे-धीरे आगे बढ़ता है अवस्थी की

तस्वीर की ओर। नमस्कार करके ...िू ल अवस्थी की तस्वीर के पास रिता है।

चौकीिार : पारक का पहला िू ल! आप होते तो तोिऩे भी नहीं िेते...मगर ये दिला तो आप

ही के दलए न...(उमेश से)...साहब, मैं पारक का...

उमेश : हाँ, चौकीिार हो। तुम्हें कै से भूल सकता ह ँ, भाई? तुम ही ने तो $िबर िी थी...

चौकीिार : साब, एक $गलती हो गई है। (पैदकट िोलकर उसमें से अवस्थी की टोपी और

मिलर दनकालता है।) बड़े बाबू की ये िो चीजें मेरे पास रह गई थीं, साब।...

उमेश टोपी और मिलर छीन-सा लेता है।

चौकीिार : (धीमे स्वर में) हैं तो ये आपकी ही, साब...मगर...मगर मैं भी कु छ रिना चाहता ह ँ,

बड़े बाबू की दनशानी।

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उमेश : मैं तुम्हें बहुत सारे मिलर, टोदपयाँ...सब िे िू ँगा। मगर ये...

चौकीिार : (व$क्िा) साब, बात दकसी टोपी या मिलर की नहीं है...

उमेश : (ज़ोर से आक्रोश में) ये मेरी अमानत है...कहे िुदनया उन्हें एक मामूली आिमी और उनसे

जुड़ी चीज़ों को छोटा...मगर मैं उनकी हर दबिरी चीज़, हर याि को समेटना चाहता ह ँ...ये वसीयत हैं मेरी...दसिा

मेरी...(दबलिता है)

ढाँढस बँधाता है।

चौकीिार हाथ जोड़े उमेश के सामने िड़ा है। िरे चौकीिार को िेिता है, जाकर उमेश को

िरे : दकसी शायर के कलाम की तरह, यािें पूरी िुदनया का दवरसा होती हैं।

उमेश : (नम्र पड़ता हुआ) अच्छा! तुम ये मिलर रि लो। मगर ये टोपी नहीं िू ँगा, ये तो मेरी पगड़ी

है, मेरी इज़्जत, मेरे सर का साया, मेरी द जम्मेिारी का अहसास। ये मुझे रिने िो।

चौकीिार मिलर को लेकर, अवस्थी की तस्वीर को नमस्कार करता है, आकाश की तरि

िेिकर और बाकी सबको...और धीरे-धीरे िरवाज़े के बाहर। अँधेरा। प्रकाश बिलता है। चौकीिार प्रकाश-वृत्त में।

चौकीिार : (गले में मिलर पहनता हुआ, िशाकों से) उस दिन की तस्वीर दिमा$ग से उतरती

ही नहीं है। बाररश हो रही थी...रात का व$ि था। और अच्छी-$िासी सिी-सी हो गई थी। अपना राउंि कर रहा था

पारक में...अचानक गाने की आवाज़ सुनी।...मैंने सोचा पता नहीं कौन शराबी घुस गया है।

$फ्लैश बैक। प्रकाश बिलता है। अब चौकीिार के गले में मिलर नहीं है। बाररश के

साउंि-ट्रैक में दमला-जुला गीत ‘चाहे हो उम्र लम्बी...’, की आवाज़।

चौकीिार : अरे कौन है?...कौन है भाई? पारक में क्या कर रहा है? (गाने की आवाज़ $ित्म।

चौकीिार उस आवाज़ की तरि आगे बढ़ता है। झूले पर धीमा प्रकाश। उस पर अवस्थी दनश्चल झूल रहा है।) बड़े बाबू,

आप!! ठंि पड़ रही है घर जाइए! बड़े बाबू...बड़े बाबू...

$फ्लैश बैक $ित्म। प्रकाश बिलता है। प्रकाश-वृत्त में चौकीिार, गले में मिलर।

चौकीिार : (िशाकों से) कै से भूल सकता ह ँ उस छदव को? बड़े बाबू के चेहरे की चमक

को...उस द जन्िा मुस्कु राहट को?...अच्छा चलू ँ...ि यूटी का टाइम हो गया है।

गाना गाते हुए जाता है, दजसमें धीरे-धीरे सब चररत्र भी शादमल हो सकते हैं!

सुन ऐ हसीन कमदसन!

जो आने वाला दिन है,

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आता नहीं कभी भी

बस आज है रवानी

थोड़ा-सा प्यार कर ले, थोड़ा तो प्यार कर ले...

चाहे हो उम्र लम्बी, छोटी है द जन्िगानी...छोटी है

द जन्िगानी...

प्रो. अशोक लाल

शायरों, कलाकारों और सरकारी मुलाद ामों के मध्यवगीय पररवार में 6 मई, 1946 को जन्म। दपता दवनोि तादलब

शायर थे तो मां राज प्रभाकर, दहन्िी की दविुषी। आठ भाई बहनों में एक अशोक लाल की पहली ारूरत थी पढ़

दलिकर नौकरी करना। भौदतकशास्त्र और मैनेजमेन्ट के स्नातक लाल इन्टरनैशनल माके दटंग के व्यवसाय के ऊं चे पिों

पर भी रहे। 2000-2010 के िशक में एम.िी.आई. गुिग़ांव और अन्य मैनेजमेन्ट स्कू लों में प्रोिे सर रहे और अब

दवद ादटंग प्रोिे सर।

शायरी बचपन से शुरू कर िी थी, नाटक दलिना 1975 में शुरू दकया। पत्नी कु मकु म से मुलाकात मंच पर हुई। नाटक

दलिने का हुनर लगता है भवसुर जगिीश माथुर से दमला। 80 के िशक में टी.वी. और दिल्मों में लेिन शुरू दकया।

‘तेरा नाम मेरा नाम’, ‘अपना सपना’, और ‘दनमंत्रण’ आदि दिल्में और टी.वी. के दलये ‘बनिू ल’, ‘समय’, ‘अनुपमा’

वगै ैरह। 13वीं सिी के महान चीनी नाटककार कु आन हान दचन्ग के नाटकों पर आधाररत रेदियो सीरी ा ‘चीनी

चाशनी’ आकाशवाणी के दलये।

रचनाएं : ‘शत्रु’, दिल्ली सादहत्य कला पररषि से पुरस्कृ त, ‘रदव और रदव’, ‘राजा नाहर दसहं’ (नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा

प्रकादशत), ‘आठवां िे रा’, ‘सर जी’, ‘िो िुनी एक’ वगैरह मौदलक नाटकों में से हैं, और ‘चच ा गली गली’, ‘िेिा

अनिेिा’, ‘जन्तु परन्तु’ (मृणाल पाण्िे के साथ), ‘ख़ूबसूरत’, और ‘मां ररटायर होती है’ अनूदित नाटकों में से कु छ।

‘चीनी चाशनी’-13वीं सिी के महान चीनी नाटककार कु आन हान-दचन्ग के आठ चुदनंिा नाटकों का रूपान्तरण

(नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकादशत)।

अन्य प्रकादशत : ग्रामीण और शहरी सतत दशक्षा की मुदहम के तहत िो पुदस्तकाएं ‘सहारा एक िूजे का’ और ‘बड़े

बाबू’ और िो अनूदित पुस्तकें ‘सृजनशील जीवन और दशक्षा’ और ‘अपनी िुदनया आप बिदलये’ और अंग्रे ाी में

म ामून ‘बुि ग़ादलब’ और नाटक ‘दि एदनमी दवदिन’ (‘शत्रु’ का तजु ामा)।

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संपका : 164, मुदनरका एन्कलेव, नई दिल्ली - 110067। िोन - 2610 6891

ई मेल– ashokumkum@gmail.com

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