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hind desh by Anand

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इसनक में

1 संपादकीय

23 सितारों से आर्े 34

2 संपादक के नाम पत्र 07

24 अटल विश्वास 35

3 चहारदीवारी 08

25 मानवता की सीख 36

4 नंदू चंदू 09

26 अवध धाम प्रभु आइए 37

5 निम्नवर्गीय परिवार और कोरोना काल 11

27 माली 38

6 खुशियों की दुकान 13

28 प्रकृ ति 39

7 अतुल के पिता 14

29 अमबर धवल बनेंर्े 40

8 मैमोरी कै पसूल 15

30 जरीला फ़ोन 40

9 वर्तमान समय में मन की मजबूती अति आवशयक 17

31 दिवाकर चाचा 41

10 आलू चीला 19

32 नर्स सेवाभाव का दूसरा नाम 43

11 आम पन्ा 20

33 इमयुनिटी बढ़ाने में हलदी 47

12 कु न्ूर 21

34 र्ृहणी 48

13 आओ परदेशी बुलाए र्ांव 23

35 चुटकु ले 49

14 भारत के पर्वत, पहाड़ी व राजय 24

36 माँ मेरी भर्वान 50

15 राष्टीय आंदोलन की महतवपूर्ण घटनाएँ 25

37 कवि और कविता 52

16 देश के प्रमुख उतपादन कांनतयां 27

38 मेरी सपनो की दुनियां 53

17 यूनेसको की विश्व विरासत में शामिल भारतीय.........28

39 विपनति का साथी र्ुललक 56

18 भारत की पहली महिला व्यनतितव 29

40 हिनद देश की पुषपवाटिका 57

19 पुसतकें जीना सिखाती हैं 30

41 मै मजदूर हँ 58

20 जिंदर्ी 31

41 संयुति परिवार 60

21 जिंदर्ी के सैर 32

42 परशुराम पराकम के प्रतीक 61

22 दुर्ा्त भवानी 33


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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021

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हम खूद को भागयिाली कहती हँ की हम इस

परिवार का हिससा हँ।वनलक हर वो साथी भागयिाली हैं

जिसके हाथ में ये पत्रिका का हर संसकरण आया। हम सब

दुनिया के कोने कोने से रहने वाली हँ, फिर भी एक दूसरे

से जोडते रहते हैं।इस पत्रिका का एक महतवपूर्ण कार्य है।

इसके लिए हम आ.डा.अर्चना जी की अभारी हँ।हमेशा की

तरह आ. अर्चना जी का समपादकीय संदेश/आहवान सुंनदर

व सकारातमक से परिपूर्ण।यह अंतराष्टीय हिंददेश पत्रिका

बहुत ही सुनदर सारर्र्भित पत्रिका है।जो र्ार्र में सार्र

के समान है ,जिसमें नवनभन् क्ेत्रों से काम करनेवाले चाहे

वह र्ृहसथी हो किसी भी क्ेत्र में काम करने वाले विद्ान

जनों को उभारने उनहें सामने लाने का एक वेहतरीन

प्रयास है।एक से एक वहकर रचनाओं नवनभन् खबरें सभी

प्रकाशित होती है।इसके लिए हम हिनददेश पत्रिका के

संचालन मंडली को बहुत बहुत धनयवाद

पललवी भूञा

(अधयक्ा/हिनददेश परिवार असम)

असम /विश्वनाथ

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 7


लघुकथा

चहारदीवारी..

"दादाजी...जलदी आइये।", उनहें लर्भर् खींचते

हुए बार्ीचे की ओर भार्ा जा रहा था विभू।

"अरे..! कया हुआ? कु छ बोलेर्ा भी!"

आश्चर्यचकित से दादाजी उसकी अँर्ुली थामे चल दिए।

बदलते परिवेश के साथ जहाँ लोर् आधुनिकता का

जामा ओढ़े हुए आस-पड़ोस से तठसथ होकर, बस अपने

घर की चहारदीवारी तक ही सीमित हो र्ए हैं। वहाँ

अपनी एक अलर् ही दुनिया बना रखी थी विभू और

दादाजी ने। उम्र कोई मायने नहीं रखती थी उनके बीच।

दोनों एक दूसरे के , वो कया कहते हैं..! बेसटमबेसट फ्ें ड थें।

बाहर बार्ीचे में खपनचियों की फे नस की झिरगी में आँखें

र्ड़ाते हुए विभू बोला,"आप भी देखिए दादाजी।" बस दादाजी

भी एक आँख बंद करके दूसरी दरार से उस ओर झाँकने लर्ें।

दादाजी ने देखा कि, साथ वाले मकान के बार्ीचे

में तनु और उसके दादाजी मिट्ी में सने हुए पौधों की

कयारियाँ ठीक कर रहे थें। बीच-बीच में तनु अपने

दादाजी पर पाइप से पानी डाल देती थी और फिर दोनों

के खिलखिलाने की आवाज़ चारों ओर र्ूँज जाती थी।

विभू और दादाजी ने एक दूसरे को कनखियों

से देखा, आँखों ही आँखों में कु छ इशारे हुए और

विभू दौड़कर अंदर से पाइप और खुरपी ले आया।

बस फिर कया था! किलकारियाँ अब फे नस के

रीता "अदा"

(दिलली)

इस ओर भी र्ूँजने लर्ी थीं। और अब बारी थी तनु और उसके

दादाजी की, दरार से झाँकने की। फे नस का र्ेट खुल चुका था

और चारों के उनमुति ठहाके आधुनिकता को मुँह चिढ़ा रहे थें।

8

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


बाल कहानी

ननदन और चनदन दोनों

सर्े भाई थे । बड़ा ननदन कक्ा नौ और छोटा चनदन

आठ मे पढ़ता था । घर मे उनहें पयार से ननदू और

चनदू कहकर पुकारते थे । पिता हॉलटीकलचर विभार् मे

नौकरी करते , दादाजी भी उसी विभार् से सेवानिवृत होकर

अपने घर मे सवइचछा से बार्वानी करते थे , बड़ा शौक था

इस काम का । उनकी कठिन मेहनत के फलसवरूप आम ,लीची

, सनतरा ,अमरूद जैसे फलों के अनेक पेड़ वर्षो से फल देने

लर्े थे । यह र्ुण उनके पुत्र के साथ ही ननदू और चनदू पोतो

मे भी आ र्ये था । विद्ालय से घर आने के बाद और छु ट्ी

के दिन ए दोनों दादाजी के साथ काम में हाथ बँटाते ।खाद-

पानी डालना , घेर-बाड़ जैसे कई काम ये खुशी-खुशी करते ।

दादाजी ने फू लों और फलों की दो नर्सरी भी

बना ली थी , जिनमें कु छ बीज जमीन और कु छ पलानसटक

की थैलियों मे डालकर पौध पैदा कर , फिर तैयार हो जाने

पर उचित समय और सथान पर रोपण करते ,ननदू और चनदू

इस काम में भी खूब दिलचसपी दिखाते । दादाजी ने फू ल

की नर्सरी का नाम बड़े पोते के नाम पर " ननदू नर्सरी "और

फल, घास-चारा वाली नर्सरी का छोटे के नाम पर " चनदू

नर्सरी " रखा । दोनों भाई इस बात से बड़े उतसानहत थे

और अपनी-अपनी नर्सरियों मे खूब मेहनत करते । जिस

दिन एक भाई किसी कारण से न आ पाता उस दिन एक

ही दादाजी के साथ दोनों नर्सरियों का काम संभालता ।

ननदू और चनदू

डॉ. सुरेनद्र दति सेमलटी

विद्ालय में भी उनके बारे इस समबनध मे

सभी परिचित थे , कयोंकि ये अपनी पौधशाला

विद्ालय में भी पौध रोपण करने के लिये ले जाया करते थे

, साथ ही उनकी देख-रेख , खाद-पानी ,निराई-र्ुड़ाई का

भी विशेर् धयान रखते । बहुत सारे फलदार पेड़ फल देने

के लायक और अनेक फु लवाड़ियाँ तैयार हो र्ई थी , इस

काम के लिये उनहें अनेक बार पुरसकार भी मिल चुका था ।

जहाँ एक ओर ननदूऔर चनदूघर के कामों मे खूब हाथ बाँटते

वहीं पढ़ाई-लिखाई में भी कभी पीछे न रहते । मात्र पढ़ाई ही नहीं

अपितु पाठ्य सहर्ामी दकयाकलापों में भी अचछा प्रदर्शन करते ।

से

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 9


जब किसी का नामकरण , चूड़ाकर्म , शादी ,

पार्टियां या पितृकर्म आदि होता तो ए दोनों भाई परिवार के

साथ या अपने आप भी नर्फट के तौर पर बाजार से कोई और

सामान न लाकर फल-फू लों की पौध ही भेंट करते , इनकी

अनुकरणीय और प्रेरणादायक पहल का प्रभाव समाज पर भी

पड़ा , बहुत से लोर्ों ने इसी रासते पर चलना उचित समझा

। इनके द्ारा दी र्ई पौध जर्ह-जर्ह अचछी प्रकार से फल-

फू ल कर लोर्ों की आवशयकता की पूर्ति भी करने लर्ी थी ।

एक दिन की बात है दोनों भाई अपने सहपाठी आर्यन के

जनम दिन पर उसके घर र्ये थे । अनय अनेक सहपाठी ,

रिशतेदार ,सर्े समबनधी भी आये थे , निश्चित समय पर सबने

अपने-अपने उपहार भेंट करते समय उसे शुभकामनाएं दी ।

जैसे ही ननदू ने र्ुलाब और चनदू ने आम की पौध बधाई देते

हुये आर्यन के हाथ में थमाई , कु छ बचिे उपहास करते हुये

नजर आये ! ननदू से न रहा र्या , बोला - " आप लोर्ों का

अभिप्राय मैं भलीभॉति समझ रहा हँ , मुझे लर्ता है आप

आँखें होते हुये भी अनधे हैं , बाजार से रुपये खर्च कर जो

नर्फट लाये हो , कॉपी ,पैन ,पेननसल , पत्र पत्रिकाओं को

बाल कहानी

छोड़कर सब बेकार और क्रभंर्ुर हैं ! और जिनहें देखकर

आप हँसते हुये उपहास कर रहे हैं वे पीढ़ियों तक लाभ देने

के साथ ही पर्यावरण को भी शुद्ध रखने में ............. । इस

उपहार को देने से नतो अभिभावकों पर आर्थिक बोझ पड़ता

है न बाजार जाने मे समय की बर्बादी होती है ,............... "।

ननदूकी बात पर र्मभीरता से मनन करने के पश्चात अपनी

सोच पर पश्चाताप करते हुये र्ौरव कहने लर्ा - ननदू ! भयया

तुमने हमारी आँख पर बँधी पट्ी खोल दी है ! हमें क्मा ....." ।

हम कौन होते हैं क्मा करने वाले ? पर हाँ यह भी सुनलो

तुमहारे इस प्रकार के आचरण का हम पर कु छ भी प्रभाव पड़ने

वाला नहीं । विद्ालय में भी तुम जैसे कु छ लोर् पीठ पीछे पेड़-

पौधों के प्रति हमारे समर्पण भाव की खिलली ........., हमको

सब पता है , समझे " ? - उतिेजना में आकर चनदू ने कहा ।

फिर तो कया था सब नकारातमक सोच

वाले बार-बार दोनों भाइयों से क्मा याचना करने लर्े ।

समय की र्नत को देखते हुये दोनों भाइयों ने

उनहें माफ किया । फिर तो सबने उनका ही अनुसरण करने

की शपथ खाई । तनातनी और वैमनसयता का माहौल

बदल कर सबको एकता के सूत्र मे बाँधने मे सफल हुआ ।

9

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


निम्नमधयवर्गीय

परिवार और

कोरोनाकाल

"पापा आप मममी को कयों डाँट दिए, अचछे-अचछे सुसवादु

पकवान कै से बनाएर्ी मममी ! आपने जो घर ख़र्च के लिए

पैसे दिए थे , वे तो कब के ख़र्च हो चुके हैं। आपको तो मममी

कु छ बताती ही नहीं कि कहीं आप का रतिचाप बढ़ न जाय,

डॉ की फीस भी तो नहीं भर पाएँर्े अभी,इसीलिए चुपचाप

आप की हर झिड़की सुन लेती है माँ लेकिन कया यह उचित

है पापा!"कविता बिटिया के मुँह से ये शबद सुनते ही सुरेश

को महसूस हुआ कि जैसे बिटिया ने ठणडे पानी से भरी बालटी

उसके ऊपर उड़ेल दी हो।विचारों की उधेड़बुन से अनायास ही

वह धरातल पर उतर आया। सवयं पर खीझ होने लर्ी। कै से

वह बात- बात पर अपना सारा ही र्ुससा नेहा पर उड़ेल दिया

करता है।उसका कया दोर् है?हाँ! यही न ...उसकी शादी एक

निम्न मधयमवर्गीय परिवार के लड़के के साथ हुई। यह समसया

के वल नेहा और सुरेश के परिवार की नहीं बनलक अधिकांश

निम्न मधयमवर्गीय परिवारों की है जो हर दिन जूझ रहे हैं।

व्यापार तो पहले से ही मनदा चल रहा था, अनायास ही

पूर्णबनदी के कारण सब चौपट हो र्या।अब छः महीने बाद

दुकानें खुल भी रही हैं तो खरीददार नर्णय ही हैं। होंर्े

भी तो कहाँ से,ख़रीददार के पास भी तो ख़ाली जेब ही है।

मधयम वर्गीय दुकानदारों के पास तो मधयवर्गीय परिवार ही

अधिकांशतः खरीददारी करने आते हैं। अब बहुत आवशयक

डॉ माधुरी भट्

समांजसेवी, शिनक्का

होने पIर ही वे कु छ खरीदने की सोच रहे हैं। ज़िंदा रहने के

लिए भोजन तो चाहिए ही , बहुत मशक्कत के बाद ही भोजन

-व्यवसथा समभव हो पा रही है।प्राइवेट महकमों में सेवारतों

की सेवाएँ समाप्त कर दी र्ई हैं।यदि किसी की बची भी हैं तो

उनहें भी तनखवाह का कु छ हिससा ही कट कर मिल रहा है।

कोरोना के भय से बचिे घरों में कै द होने के लिए मजबूर

हैं, दिनभर घर में रहने से उनहें .भूख भी अधिक लर् रही

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 11


हैं। पढ़ाई भी ऑनलाइन होने की वज़ह से मोबाइल का ख़र्च बढ़ र्या है,आख़िर कहाँ से व्यवसथा हो पाएर्ी ? जिन

परिवारों में एक से अधिक बचिे हैं, वे कै से ऑनलाइन पढ़ाई कर पाएँर्े, एक बचिे की पढ़ाई की व्यवसथा ही तो बड़ी

मुनशकल से हो पा रही है , अलर् -अलर् मोबाइल और उन i<+kbZ पर डेटा भरवाना कहाँ समभव है!

आखिर कौन सुनेर्ा मधयमवर्गीय परिवारों की Hkh v‚uykbu gksus फ़रियाद?उनके लिए

तो न ही सरकार द्ारा कु छ राहत मिल रही dh otg ls eksckby dk [kpZ है और न ही

वे किसी सवयं सेवी संसथा के सामने अपना c<+ x;k gS]vkf[kj dgk¡ ls O;oLFkk gks दुखड़ा रो सकते हैं।

ऐसी नसथनत में यदि सक्म परिवारों ik,xh \ ftu ifjokjksa esa ,d ls vf/kd के

उदार हृदयी लोर् सेंटा कलॉज बनकर उनकी cPps gSa] os dSls v‚uykbu i<+kbZ dj ik,¡xs] मदद के लिए आर्े

आएँर्े और बिना एहसान जताए उपहार सवरूप ,d cPps dh i<+kbZ dh O;oLFkk gh rks cM+h ज़रूरत की वसतुएँ

अथवा आर्थिक सहायता उनतक पहुँचाएँर्े तो उन eqf'dy ls gks ik jgh gS ] vyx &vyx लोर्ों की नसथनत तो

समभलेर्ी ही साथ ही उदारहृदयी लोर्ों के परिवारों eksckby vkSj mu ij MsVk Hkjokuk पर ईश्वर की अनवरत

कृ पा बरसती रहेर्ी।साथ ही कई जनमों के लिए पुणयों

dgk¡ lEHko gS! की र्ठरी संचित हो

जएर्ी कयोंकि इस विपदाकाल में इससे बड़ा पुणयकार्य

भला और कया हो सकता है!

ऐसे ईश्वरीय कार्य करने के पश्चात जो खुशी मिलेर्ी वह किसी

पंचसितारा होटल में बिल चुकाने

से कई र्ुणा अधिक होर्ी जिसकी झलक मुखमणडल पर बिना किसी सौंदर्य प्रसाधन के प्रयोर् किए ही झलकती रहेर्ी।

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12

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


(व्यंगय)

"खुशियों की दुकान"

दो मित्र रामलाल और शयामलाल शाम को पार्क में, हर

दिन की तरह मिले। शयामलाल ने उसे देखकर कहा "यार

रामलाल कया हुआ?तुम लंगड़ी घोड़ी की तरह कयों चल

रहे हो। रिटायर होने के बाद कया तुम कमजोर भी हो र्ये

हो?"

रामलाल ने कहा"यार बात यह है कि मेरे पैरों में कल शाम

से दर्द हो रहा है। पननि ने तो मालिश कर दी है, किनतु दर्द

तो सुरसा के मुंह की तरह,बढ़ता ही जा रहा है। "

शयामलाल "भाभी के हाथों में कया मालिश करने की

िनति भी ना रही?लर्ता है भाभी ने बादाम खाना बंद कर

दिया है और वे बूढ़ी हो र्यी हैं। "

रामलाल "हाँ, बुढापा तो आ ही र्या है, पर बुढ़ापा अके ले

ही नहीं आता मित्र, वह अपने साथ रोर्, कमजोरी और

पीड़ा का सैलाब लेकर आता है जैसे कि कोविड में प्रवासी

मजदूरों ने परिवार सहित सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर

दर्द झेला था, जैसे कि कोरोना के कारण अपनों को अपनों

ने क्ीर क्ीर मरते हुए देखा है,जैसे कि दथरथ मांझी ने

अके ले ही पहाड़ को काटकर र्ाँव में रासता बनाया था।

बुढ़ापा दर्द सहने और दर्द पी जाने का दूसरा नाम जो है। "

शयामलाल ने कहा "ठीक कहते हो भाई। कु छ लोर् अपना

दर्द इसलिए छिपा जाते हैं कि अपना दर्द बताने से लोर्

मजाक उड़ाते हैं। जैसे किसी का दर्द, दूसरों को बताने की,

लोर्ों ने दुकान खोल ली हो और दर्द बेचने का व्यापार

डाॅ •मधुकर राव लारोकर

नार्पुर (महाराष्ट)

कर रहे हों। जैसे कि बह बेटे ,मां का धयान नहीं रखते। मां

बेचारी दर्द से कराहते रहती है। जैसे कोई नेता कृ त्रिम आंसू

बहा कर, दुख जताकर, जनता को मूर्ख बनाकर जनता का

वोट ले लेता है और चुनाव जीत वह मंत्री बन जाता है।

फिर वह पांच वर्षों तक नजर नहीं आता।"

रामलाल ने कहा "सभी खेल दर्द का है।दूसरों को दर्द दो

और अपनी दुकान चालू रखो।"

शयामलाल "उचित बोलते हो मित्र। अब तो दर्द से ही

और्नध का काम लिया जाना चाहिए। जैसे महादेव ने र्रल

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 13


(व्यंगय)

पीकर संसार का कलयार किया था। सभी दर्द का बखान

करेंर्े तो खुशियां कौन बांटेर्ा। मित्र आज से हम दर्द नहीं,

खुशियाँ बांटने की दुकान खोलेंर्े और खुशियों का व्यापार

करेंर्े "

UUUUU

दोनों मित्रों के चेहरे पर खुशियाँ नजर आने लर्ी जैसे

उनकी खुशियों की दुकान खुल र्यी हो। ""

लघुकथा

अतुल के पिता

अतुल के पिता - ओहहह..... आज फिर शरीर एकदम अकड़ र्र्ई है, पूरी शरीर दर्द हो रही है.....

अतुल की माँ - अरे अब उम्र हो र्ई है, अब बुढ़ापा आ र्या है, अब वो शरीर नही है, जो पहले थी।

अतुल के पिता - हा ..... पर अब करे भी तो कया करे ? अतुल भी अब जयादा आता है नही.... बिटिया

भी नही पूछती...

अतुल की माँ - बिटिया कयो पूछे ? वो अपना परिवार देखेर्ी कि तुमको ? अपने परिवार से फु र्सत

पाएर्ी तो आएर्ी न ? जिसको देखना चाहिए, वो तो टांसफर करवाकर अपनी औरत के साथ

दूसरे शहर में बस र्या है। उसको चिंता नही होनी चाहिए, अपने माँ-बाप की ? कया इसी दिन के लिए पढ़ाया

लिखाया था कि अपने माँ-बाप को छोड़कर अपना परिवार दूसरे शहर में बसा ले ?

रोहित मिश्र,

प्रयार्राज

अतुल के पिता - जिसको जहाँ बसना है, वहाँ बसे.... जितना करम में लिखा है, उतना तो सहना ही पड़ेर्ा...

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


लघुकथा-

मैमोरी_कै पसूल

“मममा !" अचानक पीछे से आकर वैभव ने मुझे डरा ही

दिया था।

“कया हुआ मममा ?” मेरी सूजी आँखें देख अब वह सहम

र्या।

“कु छ नहीं बेटा!” उसे अपनी र्ोद में खींच लिया मैनें।

मायके में आकर , अपने कमरे में रखी चीजों में खो जाने

का भी अलर् ही मज़ा होता है जिसे मैं कभी भी लेना नहीं

छोड़ती बेशक वह मज़ा थोड़ा खट्ा, मीठा, कड़वा और

ददगीला सा हो ।

“ममा , ये कया है ?” वैभव ने सामने रकखे बॉकस की तरफ

इशारा किया जिस पर मेरे नाम के साथ तारीख भी पड़ी

थी।

पिछले साल तक माँ हमेशा मुझे चिढ़ाती थी जब भी मुझे

उस बॉकस के साथ देखती थीं । अबकी बार उस कमरे में

सब कु छ वैसा ही था पर बस वह ही नहीं थीं। फिर भी हर

ऊर्ा

भदौरिया

चीज़ के साथ मुझे वह रह-रह कर दिख रहीं थीं ।

“वैभव, यह मैमोरी कै पसूल है।” खुद को सँभालते हुए , उसे

दिखाने के लिए मैं बॉकस खोलने लर्ी।

“मैमोरी कै पसूल !!वॉव,अमेजिंर्!”कहता हुआ जोश से वह

बॉकस से एक-एक करके सामान निकाल रहा था।

लमबे बालों वाली छोटी सी र्ुड़िया, मिट्ी के कु छ छोटे

छोटे बर्तन, मेरी फे वरेट लाइटिंर् बॉल, कै रम की लाल

क्ीन जो हमेशा मेरी रहती थी , चाचा चौधरी और साबू ,

पिंकी- बिललू की कॉमिकस, साइकिल की घंटी जो दीदी की

साइकिल से जबरदसती निकलवा कर अपने में लर्वाई थी

मैनें, डाइनासोर वाला पेंसिल बॉकस, इमली के बीज,काले

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 15


लघुकथा-

चूरन का पैके ट, मेरा फे वरेट ब्ेसलेट , मेरी पहला सकू ल

मेडल और मेरी 12वीं की पहली सलेम बुक!!!

“वैभव, हमारे बचपन को हमेशा याद रखने के लिए ,तेरी

नानी ने हम दोनों बहनों के मैमोरी कै पसूल बनवाये थे।”

कहती हुई फिर से मैं माँ की याद में खो र्यी। दीदी की

शादी के बाद एक दिन माँ को मैंने पकड़ा था, दीदी का

बॉकस खोलकर आँसू बहाते हुए। "माँ, कया हुआ?"

“कु छ नहीं, तुम दोनों के सामान समेटने से फु र्सत ही कहाँ

मुझे?” मममी मुझसे झूठ बोल, अपने आँसू छु पा ले र्यीं थीं।

पर मुझे पक्का पता है कि हम दोनों बहनों की शादी के बाद

मममी भी इनहीं बॉकसेस को देखकर जीती थी।

“मममा, यू हैड ए ग्ेट चाइलडहुड टाइम..इटस रियली कू ल!!”

वैभव सच में बहुत एकसाईटेड था।

“लेटस मेक योर्स मैमोरी कै पसूल टू यंर् बॉय!” पापा कब से

खड़े अंदर का प्रोग्ाम देख रहे थे ।

“वुऊ...हऊ...दैटस माय नानू !" वैभव को लेकर पापा बॉकस

बनवाने निकल पड़े।

“वन फिजिट नसपनर, बॉल, सुपरमैन, बैटमैन मासक, लेर्ो

बलॉकस….और ना जाने कया-कया ….” दूसरे कमरे से नानू

के साथ बॉकस बनाते हुए, वैभव की आवाज़ें आ रहीं थीं।

इधर मैंने भी शुरू किया था एक बॉकस तैयार करना ,अपने

साथ ले जाने के लिए …. माँ की बिंदी, काजल की डिबबी,

सिंदूर, उनकी एवरग्ीन फे वरेट लाल चूड़ियाँ, छोटा सा

मिरर, चुनरी प्रिंट दुपट्ा... और एक फ़ोटो भी उनके

बचपन की

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


वर्तमान समय में मन की मजबूती

अति आवशयक

मन के हारे हार है,

मन के जीते जीत।

किसी ने बिलकु ल सच कहा है कि हमारी हार

तब निश्चित हो जाती है जब हम मानसिक

रूप से कमजोर पड़ जाते हैं।इसलिए हमें

हमेशा अपने मनोबल को ऊँ चा रखना

चाहिए।कयोंकि जब हमारा मन मजबूत होर्ा

तो निश्चय ही हम हर बाधाओ को चीरकर

अपनी मंजिल को पा लेंर्े।वर्तमान समय में

पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही

है। अधिकांश इंसान डरा व सहमा सा प्रतीत

होता है,परनतु हमें डरना नहीं है बनलक लड़ना

है और लड़कर जीत हासिल करनी है।और

यह तभी संभव है जब हम कोरोना के डर

को अपने मन पर हावी नहीं होने देंर्े।अपने

विचार को सकारातमक बनाए रखेंर्े, कभी

भी किसी भी पररनसथनत में हमें नाकारातमक

नहीं होना है।कयोंकि जैसे ही हमारे मन में

नाकारातमक का भाव उतपन् होर्ा वैसे ही

कोरोना हमारे ऊपर हावी होर्ा।वर्तमान

समय में कवि शंकर शैलेनद्र द्ारा

रचित निम्न पंनतियों को याद रखना है-

ये र्म के हैं चार दिन

सितम के और चार दिन

ये दिन भी जाएँर्ें र्ुजर

र्ुजर र्ए हजार दिन

हम सरकार के दिशा ननददेशों और डॉकटस्त

व विशेर्ज्ों द्ारा सुझाए र्ए उपायों

का भी भली भांति पालन करेंर्े।साथ में

मन में इस विश्वास को जर्ाए रखेंर्े-

आज है अंधेरी रात तो

कल होंर्े दिन उजाले भी

इस आस में बढ़ते जाना तुम

यह सोच सदा मुसकु राना तुम

इतना के बाबजूद भी यदि हममें

से कोई कोरोना संकनमत हो भी

जाते हैं तो कोई बात नहीं हमें अपने

हौसलों को बुलंद रखना है और होठों

पर मीठी सी मुसकान व अपने प्रभु

पर अटूट विश्वास की सब बेहतर

कु मकु म कु मारी

'काव्याकृ ति'

योर्नर्री मुंर्ेर,

बिहार

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 17


होर्ा जब आप आइसोलेशन में हो तो कया करें?

अधिकांश लोर्ों की तबीयत नबर्ड़ने का एक कारण यह भी

होता है कि जब कोई व्यनति कोरोना से संकनमत हो जाता

है तो उनहें कु छ दिनों के लिए अलर् कमरे या अपनों से दूर

अलर् सथान पर रहना होता है।ऐसी पररनसथनत में अधिकांश

लोर् अके लेपन से घबरा जाते हैं और अधिक बीमार हो जाते

हैं।इस पररनसथनत में मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप

इस अके लेपन से बिलकु ल नहीं घबराए बनलक इस समय को

अपने लिए सुअवसर मानकर इसका सदुपयोर् करें।मेरा

मानना है कि हर व्यनति में कु छ-न-कु छ विशेर्ताएँ होती है,

कु छ -न-कु छ वे रचनातमक कार्य करते हैं।किनहीं को लिखने

का तो किनहीं को पढ़ने का ,किनहीं को र्ाने का तो किनहीं

को पेंटिंर् का आदि।अधिकांश लोर्ों को मैंने कहते सुना है

कि मुझे अमुक काम करना बहुत पसंद है पर समयाभाव

के कारण मैं इसे कर नहीं पाता।तो जब आप आइसोलेशन

में होते हैं तो अपने शौक को पूरा कीजिये।अचछी-अचछी

किताबें पढ़िए,अपनी पसंद का र्ाना सुनिए,खुद से बातें

कीजिए।अभी तक आपने खूब दूसरों से बातें की,दूसरों

को सुना।आज आपके पास समय है खुद को सुनने समझने

का।धयान कीजिए अपने प्रभु से बातें कीजिए।फिर

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


idoku

सामग्ी :

आलू- 3

कॉर्न फलोर- 2 चममच

बेसन- 2 चममच

काली मिर्च पाउडर- 1/2 चममच

जीरा- 1/2 चममच

बारीक कटी मिर्च- 1

बारीक कटा हरा पयाज- 2 चममच

नमक- 1/2 चममच

तेल- आवशयकतानुसार

विधि :

आलू को अचछी तरह से धोकर छिलका छील लें और आलू

को कददूकस कर लें। कददूकस किए आलू को पानी में

डुबोकर पांच से सात मिनट तक छोड़ दें। आलू को पानी से

निकालें और पानी को पूरी तरह से निचोड़ लें। कददूकस

किए आलू को एक बाउल में डालें और उसमें कॉर्न फलोर

और बेसन डालकर अचछी तरह से मिलाएं। अर्र मिश्रण

बहुत र्ीला है तो उसमें थोड़ा-सा कॉर्न फलोर और बेसन

मिलाएं। मिश्रण में काली मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, हरी

मिर्च, हरा पयाज और नमक डालकर मिलाएं। मिश्रण अर्र

अभी भी र्ीला है तो उसमें थोड़ा-सा बेसन और मिला दें।

नॉननसटक पैन र्म्त करें और उसमें थोड़ा-सा तेल डालें। पैन

के बीच में एक बड़ा चममच मिश्रण डालें और उसे मनचाहा

आकार देते हुए फै लाएं। हलका-सा तेल और डालें। मधयम

आंच पर उसे दोनों ओर से सुनहरा होने तक पकाएं। चटनी

या सॉस के साथ र्मा्तर्म्त सर्व करें।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 19


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vke iUuk

आम पन्ा

आम पन्ा की सामग्ी

2 कचिे आम

3 टी सपून ब्ाउन शुर्र

1 टी सपून जीरा पाउडर

2 टी सपून काला नमक

1 टी सपून नमक

2 कप पानी

1 टी सपून पुदीने के पतिे

कशड की हुई आइस

आम पन्ा बनाने की वि​धि

एक सॉस पैन में पानी लें और उसमें आम डालकर उबालें।

10 मिनट तक धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक कि

वह नरम न हो जाएं।आम पन्ा

जब आम ठंडे हो जाएं तो उनहें एक चममच की मदद से

छील लें।आम पन्ा

पानी की सही मात्रा के साथ आम के र्ूदे के मिकसी में

डालकर र्ाढ़ा पेसट तैयार कर लें।

इस पेसट को पैन में निकाल लें और ब्ाउन शुर्र डालें। इसे

आंच पर पकाएं जब तक चीनी पूरी तरह घुल न जाए

।आम पन्ा

इसे लर्ातार चलाते रहें वरना यह जल भी सकता है।आम

पन्ा

जब शुर्र पूरी तरह घुल जाए, पैन को आंच से उतार लें

और इसमें जीरा पाउडर, काला नमक, नमक मिलाएं।आम

पन्ा

ड्रंक बनाने के लिए

एक लमबे नगलास में 1 या दो चममच आम का मिकसचर

लें और ठंडा पानी डालें, अब इसे अचछी तरह से मिकस

करें।आम पन्ा

पुदीने के पतिे से र्ार्निश करने के बाद सर्व करें

आम पन्ा बनाते वति धयान रखें की उसमें जयादा चीनी का

इसतेमाल न करें।

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


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बेहद रोमांचित है कु न्ूर की ये ख़ूबसूरत जर्हें, टेंशन भूल

मिलेर्ा सुकू न का एहसास

कु न्ूर की ख़ूबसूरती आपको सुकू न का एहसास दिलाएर्ी।

यहां कई ऐसी जर्हें हैं, जो पर्यटकों को काफ़ी आकरर््तत

करती हैं।

भारत में कई ऐसे हिल सटेिन हैं, जहां प्रकृ ति की

ख़ूबसूरती देख आप जीवन की सभी टेंशन को भूल जाएंर्ीं।

उनहीं में से एक तमिलनाडु में नसथत सबसे ख़ूबसूरत हिल

सटेिन कु न्ूर। कु न्ूर ऊटी से 18 किमी और कोयंबटूर से 71

किमी की दूरी पर नसथत नीलनर्री नज़ले के अंतर््तत आने

वाले एक हिल सटेिन है। दुनिया भर से यात्री कु न्ूर घूमने

आते हैं। आज हम बताएंर्े कु न्ूर की ख़ूबसूरत जर्हों के बारे

में। जब आप कु न्ूर के लिए रटप पलान करेंर्ी तो इन जर्हों

को घूमना ना भूलें।

कै थरीन वाटर फ़ॉल

कु न्ूर में नसफ़्त पहाड़ ही नहीं बनलक ख़ूबसूरत वॉटर फ़ॉल

भी हैं। पिकनिक सपॉट होने की वजह से कई टूरिसट यहां

आना बहुत पसंद करते हैं। कै थरीन वाटर फ़ॉल तक पहुंचने

के लिए आप डॉनलफ़न सड़क से होते हुए जा सकती हैं। वहीं

यह वाटर फ़ॉल काफ़ी ऊं चाई पर है, यह आसपास घने

जंर्लों से घिरा हुआ है। कै थरीन वाटर फ़ॉल के अलावा

यहां कई और भी वॉटर फ़ॉल हैं। कु न्ूर की हसीन वादियों

में अर्र आप एडवेंचर को एकलपलोर करना चाहती हैं यह

आपके लिए बेसट पलेस हो सकता है।

डॉनलफ़न नोज

दनक्र भारत में कु न्ूर चुनिंदा और मिहर हिल सटेिनों में

नर्ना जाता है। यह जर्ह ख़ास कर पहाड़ी आबो-हवा और

नीलनर्री चाय के लिए मिहर है। समुद्र तल से लर्भर्

6000 फ़ीट की ऊं चाई पर नसथत कु न्ूर के ख़ूबसूरत नज़ारों

के साथ-साथ यहां कई ऐसी जर्हें हैं जो टूरिसटों को काफ़ी

आकरर््तत करती हैं। कु न्ूर की ये जर्हें काफ़ी मिहर हैं और

एक बार यहां घूमने के बाद बार-बार आने का मन करेर्ा।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 21


i;ZVu

नाम से यह आपको अजीब जर्ह लर् सकती है, लेकिन

यह समुद्र तल से 1000 फ़ीट ऊं चाई पर नसथत है और यह

जर्ह अकसर कोहरे से ढकी रहती है। दरअसल इस जर्ह

का नाम डॉनलफ़न नोज इसलिए है, कयोंकि यह बड़ी चट्ान

डॉनलफ़न की नाक के आकार की है। पर्यटक यहां आकर

समय बिताना, फोटो नकलक करवाना पसंद करते हैं। यह

कै थरीन वॉटर फ़ॉल से काफ़ी करीब है, आप दोनों जर्हों

को आसानी से घूम सकती हैं।

Ralliah डैम

यह डैम नीलनर्री, कु न्ूर का एक सुंदर और शांत हिससा

है। जहां आपको कम से कम 1 किमी की दूरी तक टैकिं र्

करने की आवशयकता होर्ी। आसपास प्रकृ ति के सौंदर्य के

चाय का बागान

तमिलनाडु के नीलनर्री नज़ले में बसा कु न्ूर ख़ूबसूरत चाय

के बागानों के लिए भी काफ़ी मिहर है। ख़ास बात है कि

ऊटी से कु न्ूर तक का रासता हरे भरे जंर्लों से घिरा हुआ

है। पहाड़ों के आसपास सुंदर घर और सीढ़ीदार खेती देखने

को मिलेर्ी, जो आपका मन मोह लेर्ी। यही नहीं कु छ दूरी

पर कु न्ूर के चाय के बागानों से ढके पहाड़ भी दिखाई देंर्े।

जब आप कु न्ूर घूमने का पलान बनाएं तो चाय के बागानों

को देखना ना भूलें।

इसे भी पढ़ें: बड़े से बड़े जहाज को अपनी तरफ खींच लेता

था ये अदभुत मंदिर, जानें रहसय

अलावा यहां कु छ आश्चर्यजनक पनक्यों की प्रजातियां भी

देखने को मिल जाएंर्ीं, जिसे आपने शायद कभी नहीं देखा

होर्ा। यह ख़ूबसूरत डैम ना नसफ़्त आकर््तक है, बनलक सुकू न

के कु छ पल बिताने के लिए बेसट है।

हिडन वैली

कु न्ूर में ख़ूबसूरती निहारने के लिए वैसे तो कई जर्हें हैं,

लेकिन उनहीं में से एक ख़ूबसूरत हिडन वैली आपको बहुत

पसनद आयेर्ी। सुकू न के पल बिताने के साथ-साथ एडवेंचर

करने में भी ख़ास इंटेसट रखती हैं तो इस हरियाली वाली

जर्ह को एकसपलोर ज़रूर करें। हिडन वैली में आपको रॉक

कलाइम्बिंग, टैकिं र्, पर्वतारोहण आदि सपोटस्त एनकटनवटी

को एनजॉय करने का मौका मिलेर्ा।

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

आओ परदेशी बुलाए र्ाँव

आओ परदेशी बुलाये र्ाँव

लर्ते सूने हैं बार् बर्ीचे

कभी तूने थे जिसको सीचे

लर्े पसारे अब हैं छाँव

आओ परदेशी बुलाये र्ाँव |

जहाँ खेले थे होके नादान

अब सूने पड़ र्ये हैं वे मैदन

थकते जहाँ नहीं थे पाँव

आओ परदेशी बुलाये र्ाँव |

इंद्रजीत कु मार

पड़ र्ए हैं सूने,लर्ते मेले

कहीं चाट,समोसे,पेठे के ठेले

बिसर रहें हैं अब वो ठाव

आओ परदेशी बुलाये र्ाँव |

नदियाँ भी अब बहती हैं निर्मल

आता हैं उसमें मधुर सरस जल

चलते सदा हैं उसमें नाव

आओ परदेशी बुलाये र्ाँव |

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 23


Kku

भारत के पर्वत, पहाड़ियाँ व राजय

कराकोरम, कै लाश श्रेणी – भारत एवं चीन

लद्ाख श्रेणी – भारत (जममू कशमीर)

जासकर श्रेणी – जममू कशमीर

पीरपंजाल श्रेणी – जममू कशमीर

नंर्ा पर्वत (8126) – जममू कशमीर

कामेत पर्वत (7756) – उतिरांचल

नंदा देवी (7817) – उतिरांचल

धौलानर्रि (8172) – हिमाचल प्रदेश

र्ुरू शिखर (1722) – राजसथान

मांउट एवरेसट (8848) – नेपाल

खासी,जयंतिया,र्ारो पहाडियां - असम-मेघालय

नार्ा पहाड़ी – नार्ालैणड

अरावली श्रेणी – र्ुजरात, राजसथान,दिलली

माउंटआबू (1722) – राजसथान

विनधयाचल श्रेणी – मधय प्रदेश

सतपुड़ा पहाड़ी – मधय प्रदेश

महादेव पहाड़ी(धूपर्ढ़ 1350) – मधय प्रदेश

मैकाल पहाड़ी (अमरकं टक 1036) मधय प्रदेश

राजमहल पहाड़ी – झारखणड

सतमाला पहाडी – महाराष्ट

अजंता श्रेणी – महाराष्ट

महेनद्रनर्ारि पहाड़ी – उड़ीसा

महाबलेर्वर पहाड़ी – महाराष्ट

नीलनर्रि पहाड़ी – तमिलनाडू

अन्ामलाई पहाड़ी (1695) – तमिलनाडू

छोटा नार्पुर का पठार – झारखंड

बुंदेलखणड पठार – (म.प्र., उ.प्र

बघेल खणड पठार – म.प्र

तेलांर्ना पठार- आंध्र प्रदेश (नर्मदा के दनक्र)

मैसूर पठार – कर्नाटक

दोदाबेटा – के रल, तमिलनाडू

इलाइची पहाड़ियां – के रल, तमिलनाडू

डाफला पहाड़ियां – अरूणाचल प्रदेश

नमर्मी पहाड़िया – अरूणाचल प्रदेश

मिकिर पहाड़ी – अरूणाचल प्रदेश

लुशाई – मिजोरम

र्ाडविन आनसटन चोटी (के 2) जममू-कशमीर

कं चनजंघा – सिक्किम

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


Kku

राष्टीय आंदोलन की महतवपूर्ण

घटनाएं

1904 - भारतीय विश्वविद्ालय अधिनियम पारित

1905 - बंर्ाल का विभाजन

1906 - मुनसलम लीर् की सथापना

1907 - सूरत अधिवेशन, कांग्ेस में फू ट

1909 - मालदे-मिंटो सुधार

1911 - नब्रटि सम्राट का दिलली दरबार

1916 -होमरूल लीर् का निर्माण

1916 - मुनसलम लीर्-कांग्ेस समझौता (लखनऊ पैकट)

1917 - महातमा र्ाँधी द्ारा चंपारण में आंदोलन

1919 - रौलेट अधिनियम

1919 - जलियाँवाला बार् हतयाकांड

1919 - मांटेगयू-चेमसिोर्ड सुधार

1920 -खिलाफत आंदोलन

1920 -असहयोर् आंदोलन

1922 -चौरी-चौरा कांड

1927 - साइमन कमीशन की नियुनति

1928 -साइमन कमीशन का भारत आर्मन

1929 -भर्तसिंह द्ारा के नद्रीय असेंबली में बम विसिोट

1929 -कांग्ेस द्ारा पूर्ण सवतंत्रता की माँर्

1930- सविनय अवज्ा आंदोलन

1930-प्रथम र्ोलमेज सममेलन

1931- नद्तीय र्ोलमेज सममेलन

1932 - तृतीय र्ोलमेज सममेलन

1932 - सांप्रदायिक निर्वाचक प्रणाली की घोर्रा

1932 - पूना पैकट

1942 - भारत छोड़ो आंदोलन

1942 - दकपस मिशन का आर्मन

1943 - आजाद हिनद फौज की सथापना

1946 - कै बिनेट मिशन का आर्मन

1946 - भारतीय संविधान सभा का निर्वाचन

1946 - अंतरिम सरकार की सथापना

1947 - भारत के विभाजन की माउंटबेटन योजना

1947 - भारतीय सवतंत्रता प्राप्तिराष्टीय आंदोलन की

महतवपूर्ण घटनाएं

1904 - भारतीय विश्वविद्ालय अधिनियम पारित

1905 - बंर्ाल का विभाजन

1906 - मुनसलम लीर् की सथापना

1907 - सूरत अधिवेशन, कांग्ेस में फू ट

1909 - मालदे-मिंटो सुधार

1911 - नब्रटि सम्राट का दिलली दरबार

1916 - होमरूल लीर् का निर्माण

1916 - मुनसलम लीर्-कांग्ेस समझौता (लखनऊ पैकट)

1917 - महातमा र्ाँधी द्ारा चंपारण में आंदोलन

1919 - रौलेट अधिनियम

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 25


Kku

1919 - जलियाँवाला बार् हतयाकांड

1919 - मांटेगयू-चेमसिोर्ड सुधार

1920 - खिलाफत आंदोलन

1920 - असहयोर् आंदोलन

1922 - चौरी-चौरा कांड

1927 - साइमन कमीशन की नियुनति

1928 - साइमन कमीशन का भारत आर्मन

1929 - भर्तसिंह द्ारा के नद्रीय असेंबली में

बम विसिोट

1929 - कांग्ेस द्ारा पूर्ण सवतंत्रता की माँर्

1930 - सविनय अवज्ा आंदोलन

1930 - प्रथम र्ोलमेज सममेलन

1931 - नद्तीय र्ोलमेज सममेलन

1932 - तृतीय र्ोलमेज सममेलन

1932 - सांप्रदायिक निर्वाचक प्रणाली की घोर्रा

1932 - पूना पैकट

1942 - भारत छोड़ो आंदोलन

1942 - दकपस मिशन का आर्मन

1943 - आजाद हिनद फौज की सथापना

1946 - कै बिनेट मिशन का आर्मन

1946 - भारतीय संविधान सभा का निर्वाचन

1946 - अंतरिम सरकार की सथापना

1947 - भारत के विभाजन की माउंटबेटन योजना

1947 - भारतीय सवतंत्रता प्राप्

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


Kku

हरित कांनत –खाद्ान् उतपादन

श्वेत कांनत – दुगध उतपादन

नीली कांनत – मतसय उतपादन

भूरी कांनत – उर्वरक उतपादन

रजत कांनत – अंडा उतपादन

पीली कांनत – तिलहन उतपादन

कृ षर कांनत – बायोडीजल उतपादन

लाल कांनत – टमाटर/मांस उतपादन

र्ुलाबी कांनत – झींर्ा मछली उतपादन

बादामी कांनत – मासाला उतपादन

सुनहरी कांनत – फल उतपादन

अमृत कांनत – नदी जोड़ो परियोजनाएं

धुसर/सलेटी कांनत– सीमेंट

र्ोल कांनत– आलू

इंद्रधनुर्ीय कांनत– सभी कांनतयो पर ननर्रानी रखने हेतु

सनराइज/सुयषोदय कांनत– इलेकटॉनिक उद्योग के विकास

के हेतु

र्ंर्ा कांनत– भ्रष्ाचार के खिलाफ सदाचार पैदा करने हेतु

वाटर मैन ऑफ इंडिया राजेनद्र सिंह द्ारा

सदाबहार कांनत– जैव तकनीकी

सेफ्ॉन कांनत– के सर उतपादन से

सलेटी/ग्े कांनत–उर्वरको के उतपादन से

हरित सोना कांनत– – बाँस उतपादन से

मूक कांनत– मोटे अनाजों के उतपादन से

देश की प्रमुख उतपादन

काननतयां

परामनी कांनत– भिनडी उतपादन से

ग्ीन र्ॉलड कांनत– चाय उतपादन से

खाद् श्रंखला कांनत– भारतीय कृ र्कों की 2020 तक

आमदनी को दुर्ुना करने से

खाकी कांनत– चमड़ा उतपादन से

वहाइट र्ॉलड कांनत– कपास उतपादन से

N.H.काननत- सवर्णिम चतुर्भुज योजना से

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 27


Kku

यूनेसको की विश्व

विरासत में शामिल

भारतीय धरोहर सथल

1. ताजमहल - उतिर प्रदेश [1983]

2. आर्रा का किला - उतिर प्रदेश [1983]

3. अजंता की र्ुफाएं - महाराष्ट [1983]

4. एलोरा की र्ुफाएं - महाराष्ट [1983]

5. कोणार्क का सूर्य मंदिर - ओडिशा [1984]

6. महाबलिपुरम् का समारक समूह -तमिलनाडू [1984]

7. काजीरंर्ा राष्टीय उद्ान - असोम [1985]

8. मानस वनय जीव अभयारणय - असोम [1985]

9. के वला देव राष्टीय उद्ान - राजसथान [1985]

10. पुराने र्ोवा के चर्च व मठ - र्ोवा [1986]

11. मुर्ल सिटी, फतेहपुर सिकरी - उतिर प्रदेश [1986]

12. हमपी समारक समूह - कर्नाटक [1986]

13. खजुराहो मंदिर - मधयप्रदेश [1986]

14. एलीफें टा की र्ुफाएं - महाराष्ट [1987]

15. पट्दकल समारक समूह - कर्नाटक [1987]

16. सुंदरवन राष्टीय उद्ान - प. बंर्ाल [1987]

17. वृहदेश्वर मंदिर तंजावुर - तमिलनाडू [1987]

18. नंदा देवी राष्टीय उद्ान - उतिराखंड [1988]

19. सांची का बौद्ध समारक - मधयप्रदेश [1989]

21. हुमायूँ का मकबरा - दिलली [1993]

22. दार्जिलिंर् हिमालयन रेल - पश्चिम बंर्ाल [1999]

23. महाबोधी मंदिर, र्या - बिहार [2002]

24. भीमबेटका की र्ुफाएँ - मधय प्रदेश [2003]

25. र्ंर्ई कोड़ा चोलपुरम् मननदर - तमिलनाडु [2004]

26. एरावतेश्वर मननदर - तमिलनाडु [2004]

27. छत्रपति शिवाजी टर्मिनल - महाराष्ट [2004]

28. नीलनर्रि माउंटेन रेलवे - तमिलनाडु [2005]

29. फू लों की घाटी राष्टीय उद्ान - उतिराखंड [2005]

30. दिलली का लाल किला - दिलली [2007]

31. कालका शिमला रेलवे -हिमाचल प्रदेश [2008]

32. सिमलीपाल अभयारणय - ओडिशा [2009]

33. नोकरेक अभयारणय - मेघालय [2009]

34. भितरकनिका उद्ान - ओडिशा [2010]

35. जयपुर का जंतर-मनतर - राजसथान [2010]

36. पश्चिम घाट [2012]

37. आमेर का किला - राजसथान [2013]

38. रणथंभोर किला - राजसथान [2013]

39. कुं भलगढ़ किला - राजसथान [2013]

40. सोनार किला - राजसथान [2013]

41. नचतिौड़र्ढ़ किला - राजसथान [2013]

42. र्ार्रोन किला - राजसथान [2013]

43. रानी का वाव - र्ुजरात [2014]

44. ग्ेट हिमालय राष्टीय उद्ान - हिमाचल प्रदेश [2014

28

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


Kku

भारत की पहली महिला

व्यनतितव

ओलंपिक पदक जीतने वाली ➭ कर्णम मललेश्वरी

एयरलाइन पायलट ➭ दुर्बा बॅनजगी

अंतररक् में जाने वाली ➭ कलपना चावला

माउंट एवरेसट पर चढ़ने वाली ➭बछेंद्री पाल

अंग्ेजी चैनल में तैरने वाली ➭ आरती साहा

"भारत रनि" पाने वाली

संर्ीतकार ➭ एम.एस.

सुबबुलक्मी

एशियाई खेलों में र्ोलड

जीतने वाली ➭ कमलजीत

संधू

बुकर पुरसकार जीतने

वाली ➭ अरुंधति राय

डबलयूटीए शीर््तक जीतने

वाली ➭ सानिया मिर्जा

नोबल पुरसकार जीतने

वाली ➭ मदर टेरेसा

ज्ानपीठ पुरसकार प्राप्त

करने वाली ➭ आशापुण

देवी

अशोक चक पाने वाली ➭

निर्जा भानोत

राष्टपति ➭ श्रीमती प्रतिभा पाटिल

प्रधान मंत्री ➭ श्रीमती इंद्रा र्ांधी

राजयपाल ➭सरोजिनी नायडू

शासक (दिलली का सिंहासन) ➭ रजिया सुलतान

आईपीएस अधिकारी ➭ किरण बेदी

मुखयमंत्री ➭ सुचेता कृ पालानी (उतिर प्रदेश)

सुप्रीम कोर्ट की नयायाधीश ➭मीरा साहिब फातिमा बीबी

संयुति राष्ट में राजदूत ➭ विजयलक्मी पंडित

कें द्रीय मंत्री ➭ राजकु मारी अमृता कौर

मिस यूनीवर्स ➭ सुनषमता सेन

विश्व सुंदरी ➭ रीता फरिया

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 29


dkO;

पुसतकें जीना

सिखाती हैं

अंधकारमय जीवन पथ पर

जीवन जयोनत जलाती हैं

भले-बुरे का भेद बता कर

जीवन राह दिखाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

भूत-वर्तमान और भविषय के

राज सभी बताती हैं

सारे जहां का ज्ान उर में समाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

मूक रहकर भी जवाब

हर सवाल का बताती हैं

घर बैठे-बैठे सारे जहां की सैर कराती हैं

अपने चाहने वालों को मंजिल तक पहुंचाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

कबीर-सूर-तुलसी की वाणी ये बताती हैं

र्ीता-वेद-पुराण की कहानी भी सुनाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

धर्म ग्ंथों का सार भी बताती हैं

जनमानस में चेतना जर्ाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

वैर करो न आपस में तुम

मिल कर रहना सिखाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

सुपथ पर हमें चलाती

कु पथ से सदा बचाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

मीत नहीं कोई इनके जैसा

जीवन भर साथ निभाती हैं

पुसतकें हमें जीना सिखाती हैं।

सुनील कु मार

जिला- बहराइच,उतिर प्रदेश

30

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

ftanxh

जीवनमें आई थोड़ी मुनशकलें,

आई तकलीफें

पर मैं खिलखिलाते जीती र्ई जिंदर्ी

जिंदर्ी में रोये, शायद जब कु छ खोया.

पर फिर भी जीने की आश दिखाती है जिंदर्ी

जिंदर्ी में , पयार पाया

पर धोखा भी बहुत पाया

पर फिर भी, मुसकु राना सिखाती है जिंदर्ी

जिंदर्ी में बहुत उतार -चढ़ाव देखे.

पर हमेशा आर्े बढ़ना ही सिखाती है जिन्दगी

जिंदर्ी में कभी निराश हुए

कभी बहुत उदास होकर रोये.

पर हमेशा, अदरसे

प्रेरणा देती है जिंदर्ी

रचयिता

-कविता मोदी

भरूच.

जिंदर्ी, जिंदर्ी बस जिंदर्ी जिंदर्ी.

बस जिंदर्ी मुझे थामे हुए हैं

और मैं जिंदर्ीको......

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 31


dkO;

जिन्दगी के सैर

जिंदर्ी के सैर हो तुम,

बहुत यादर्ार हो तुम,

तुमको कया कहं मैं सनम,

बहुत दिलदार हो तुम -२

होते ही परिचय हो र्ई यारी,

होते ही यारी बन र्ई पयारी,

जिन्दगी के रेल हो तुम,

बहुत बड़ा मेल हो तुम,

तुमको कया कहं मैं सनम,

बहुत बड़ा जेल हो तुम -२

मिलते ही राहत बढ़ र्ई चाहत,

पयार की रिशता बन र्ई दावत,

जिन्दगी के खेल हो तुम,

बहुत बड़ा सेल हो तुम,

तुमको कया कहं मैं सनम,

बहुत बड़ा बेल हो तुम -२

दावत होते ही फै ला आयाम,

जान र्या सब तेरा नाम,

जिन्दगी का शान हो तुम,

बहुत बड़ा प्राण हो तुम,

तुमको कया कहं मैं सनम,

बहुत वरदान हो तुम -२

जिन्दगी का पयार हो तुम,

बहुत बड़ा यार हो तुम,

तुमको कया कहं मैं सनम,

बहुत मददर्ार हो तुम -२

जिन्दगी के सैर हो तुम,

बहुत यादर्ार हो तुम,

तुमको कया कहं मैं सनम,

बहुत दिलदार हो तुम -२

सर विनोद कु मार झा

एम.ए.(शिक्ा शास्त्र)

प्राचार्य, शिक्ा निके तन, दिघी

कला पूवगी, हाजीपुर,बिहार

सथान- लोहर पुर, दरभंर्ा, बिहार

32

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

दुर्ा्त

भवानी.....

विघ्न हरनि ,जर्तजननी,

हे माँ तेरी संतान करें पुकार।

तेरी भनति में रम जाऊँ मैं,

मेरी लालच की इचछा कर संहार।

- राजेनद्र कु मार मंडल

रामविशनपुर,

सुपौल

बिहार

नेक कमषों से करूँ जर्त को रौशन,

हे कष्हरणी ऐसी िनति दे अपार।

इस जनम को बनाऊं सफल,

हे िनतिदायिनी करो बेड़ा पार।

तू ही जर्तजननी, तू ही संसार,

तू ही सृनष्, तू ही जर्त का आधार।

नतमसतक हँ मैं तेरे आर्े।

हर लो मेरी मोह माया हँ लाचार।

सौंप दिया जीवन तुझे,

मातेश्वरी तेरी चरणों में नमन सहस्ों बार।।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 33


dkO;

सितारों से

आर्े

गम औ ख़ुशी के किनारों से आर्े

चलें आज हम तुम सितारों से आर्े।

जरा नूर अपना हिजाबों में ढँक लो

नज़र देख ले कु छ नज़ारों से आर्े।

ये दौलत ये शोहरत धरी हीं रहेर्ी

कि जाता नहीं कु छ मजारों से आर्े।

मधुकर वनमाली

मुजफिरपुर बिहार

ये है दौड़ अंधी,कदम रोक लेना

भले आज तुम हो हजारों से आर्े।

बेजुबांँ भर हैं लेते फकत पेट अपना

कभी सोच लेना र्ुजारों से आर्े।

34

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

अटल विश्वास

दुःख देना बहुत आसान काम है

थोड़ा मुनशकल काम कर देखो ना

ख़़ुिी भी किसी को देके देखो न

रोता मिले जो कोई,हंसा के देखो न

अपने अहम को मार जिओ और

खुश रह कर देखो न

थोड़ा मुनशकल काम कर देखो न

माँ कहती थी लोर् तो सब अचछे होते हैं

मैंने भी यह मान लिया था ,लोर् सब सचिे होते हैं

मानव का वही रूप है उतिम ,सबको बांटे जो सवषोतिम

अपना दुःख न किसी से कहते , बाँटते रहते सबके ग़म ।

वंदना राज, (कतर)

मुनशकल समय था ,मुझ पर आयी थी विपदा भारी ,

उनके साथ , दुवाओ ने हर ली पीड़ा वह सारी

दोसतों ने था साथी बन मेरा हौसला खूब बढ़ाया

जीवन पथ पर फिर मैंने कदम हिममत से बढ़ाया

यह है कु छ मानव ऐसे ,जिनसे न रिशता ना तो ख़ून का मेरा

पड़ी जरूरत जब भी मुझको ,उसने देखा मेरा न तेरा

मुझको भी यह लर्ता पयारा ,रिशता मानवता का नयारा

दुःख देख के हाँथ बढ़ता ,सवाथ्त से एकदम परे है पयारा

जब भी देखो पीड़ा में किसी को ,मदद का एक हाँथ बढ़ा दो

हँसते को तो सभी रुलाते ,रोते को एक बार हँसा दो

विश्वास मेरा अब बढ़ता जाये ,मानवता के ही र्ुण र्ाये

अचछे ही लोर् हैं दुनिया में जयादा , विश्वास अटल ना

नडर्ने पाए ।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 35


dkO;

मानवता की सीख

सकू ल बैर् बोला टिफिन बॉकस से

भैया कब अपने दिन आएँर्े,

कब हम सज धजकर फिर से

सकू ल के रासते जाएँर्े

पहले सुबह उठने से रोते थे,

अब कया करें, सोच के रोते हैं,

कया तुमने ऐसा सोचा था,

ऐसे दिन भी आएँर्े,

टीचर ऑनलाइन पढ़ाएँर्े

तभी अचानक पुसतक बोली

सुनो- सुनो! मैं हँ विद्ा की देवी

उदास ना होना मेरे बचिों,

फिर से वही दिन आएँर्े।

ये मुनशकल के दिन ही हमको,

पाठ नया सिखलाएँर्े

कै से मदद करें हम सबकी,

इसका ज्ान बताएँर्े।

घर में सुरनक्त रहकर ही

हम ये वचन निभाएँर्े

इस बीमारी से दुनिया को,

हम ही विजय दिलाएँर्े।

हम ही विजय दिलाएँर्े।

प्रकृ ति की सीख है ये,

सबको किया है मज़बूर,

बदलेर्ा वति करवट,

बरसेर्ा फ़िर से नूर।।

सुन मेरे भाई यूँ आँसू ना बहा,

ये सोच अपने घर में सुरनक्त है,

तूफ़ान से बहकर मिट्ी न बना।"

डॉ मीनू पाराशर

'मानसी'

दोहा-कतर

36

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


अवध

धाम

प्रभु

आइए

शयाम

सुनदर

श्रीवासतव

'कोमल'

अभिनंदन प्रभु राम जी, जर् के पालन हार।

अवध धाम पुनि आइये, राघवेनद्र सरकार।

राघवेनद्र सरकार, कृ पा भतिों पर करिये ।

रोर्, शोक, संत्रास, सभी भतिों के हरिये ।

कह 'कोमल' कविराय, आपका शत-शत वंदन।

प्रर्ट पधारो नाथ, आपका है अभिनंदन।

dkO;

मंर्ल छवि अभिराम प्रभु, दर्शन की है आस।

अवध नाथ प्रभु आइये, हरो सभी संत्रास।

हरो सभी संत्रास, जर्त के पालन कर्ता।

इस जीवन के राम, तुमहीं हो कर्ता-धर्ता ।

कह 'कोमल' कविराय, दूर सब करो अमंर्ल।

हरो अमंर्ल कलेि, करो सब मंर्ल-मंर्ल।

दानव मुँह फाड़े खड़ा, महारोर् विकराल ।

धनुर्-वाण ले हाथ में, प्रभु मारो ततकाल ।

प्रभु मारो ततकाल, नवर्म संकट यह टारो।

कोरोना के दुष्, राक्स को संहारो ।

कह 'कोमल' कविराय,सुखी तब होंर्े मानव।

होर्ा जब यह नष्, दुष् कोरोना दानव ।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 37


dkO;

माली

कितने श्रम और कितने लर्न से,

सींचा है माटी धूलो को,

जीवंत बनाया है उसने,

ननजगीव अचेतन फू लों को।

पतिड़ में भी मुसकाए वह,

सोच बात बाहर की,

मर्न रहे कलपनाओं में,

फिक नहीं संसार की।

आराधना प्रियदर्शनी

फू लों के रंर् से खिला हुआ,

बनर्या का रक्क माली है।

उसके सपि्त मात्र से चहकती,

हर फू ल फू ल और डाली है,

फु लवारी से घिरा हुआ,

बनर्या का रक्क माली है।

अपने मेहनती हाथों से,

पौधों में जीवन डाली है,

38

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

प्रकृ ति

प्राकृ त ने तोहफा दिया ऐसा

खुशबू से भरी वादियों जैसा

र्ुनर्ुनाती है धरती र्र्न सारा

चारों तरफ फै ला सूरज का उजियारा

पहाड़ों की रंर्त पनक्यों की संर्त

आसथा जैसे सारा ब्हांड सुंदर

यह छोटी-छोटी फू लों की कलियां

जिस पर बसता भंवरों का बसेरा

हरे भरे सुंदर लहलहाती खेतों में

होता सुबह का सवेरा है

नीले - नीले अंबर और समुंदर में

जीवन समाया जैसे इसके अंदर में

सुबह-सुबह पनक्यों का शोर

बारिश में नाचता हुआ मोर

ये हवाओं की सरसराहट

जैसी आती हुई आंधियों की आहट

बरसती बारिश की बूंदों की बौछार

लर्ता है जैसे प्राकृ त ने किया श्रृंर्ार

फू लों ने सजावट किया है

धरती में अंगड़ाई लिया है

कुं दन कु मार रजक

बलुआ , र्ुठनी, सीवान (बिहार

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 39


dkO;

समस्या

अमबर धवल

बनेंर्े-!

शरद कु मार

पाठक

--(हरदोई)

उड़ जायेंर्े प्रलय व्याधि के

अमबर धवल बनेंर्े

कु छ क्र का ये निशा प्रहर है

कु छ क्र और सहेंर्े

कल फू टेर्ी नवकिरण धरापर

प्रलय के धुनध छटेर्ें

फिर से होंर्े जन उललानसत

व्याधि के शूल हटेंर्े

या झंझा हो या प्रलयवात

या धरा प्रभनजन टुकड़ों में

कहता कौन यहां पर

कि बीज के अंश मिटेंर्े

नही मिटेर्ी सृनष् धरा से

कितने तुफान बनेंर्े

माना-कि

सारी दुनिया मिट जायेर्ी

तो फिर भी-

कु छ बीज के अंश रहेंर्े

उड़ जायेंर्े प्रलय व्याधि के

अमबर धवल बनेंर्े

जहरीला फोन

आज की इस भार्दौड़ भरे जीवन में

युवाओं ने फोन को सबकु छ मान लिया है|

मां-बाप ,दोसत ,दादा -दादी, नाना नानी

पहले बचिों को नाना-नानी, दादा-दादी से

संसकार मिलते थे ,आज के युर् में इस फोन

ने उनसे सब कु छ छीन लिया है।युवाओं

को पता भी नहीं चलता कि वह धीरे-धीरे

कै से इसकी नर्रफत में आ जाते हैं। मां-

बाप, परिवार, रिशतेदार से दूर होते चले

जाते हैं । फोन

उनकी लत

बन जाता है।

फिर बचिों को

आभास होता

है ,कि मुझे

कोई पयार

नहीं करता

,कोई बात नहीं करता। घर वालों को भी

उसकी नामौजूदर्ी का आभास नहीं होता।

ऐसा सोचते- सोचते कब बचिा मानसिक

रोर्ी बन जाता । कई युवाओं को तो फोन

में र्ेम खेलने की इतनी लत होती है कि

वह मां -बाप का पैसा भी उड़ा देते हैं। मां

-बाप घर वालों को बलैकमेल भी करते हैं

,बाद में उसके पास एक ही विकलप बचता

सीमा

रंर्ा

है आतमहतया

।फोन कब

जहर बनकर

युवाओं को

ननर्ल रहा है

किसी को पता

भी नहीं चलता

और धीरे-धीरे

युवाओं की

जिंदर्ी को

कै से बर्बाद

कर रहा है

40

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


नमन

दिवाकर चाचा

दिवाकर चाचा मेरी बड़ी ईया के सबसे बड़े बेटे है। घर

वाले उनको पयार से छोटे बुलाते हैं कयोंकि वे मेरे

पापा से छोटे हैं। मेरे बाबा को सभी

चाचा कहकर बुलाते थे कयोंकि

बड़े बाबा पहले के लोर्ों में इतनी

एकता थी कि घर में एक व्यनति

को जिस नाम से बड़े पुकारते थे

बाकी लोर् भी वही बुलाते थे।

हमारी दोनों ईया सर्ी बहने थीं

और दोनों बाबा सर्े भाई।

बड़ी ईया

की बड़ी बेटी

रामवती बुआ

और उनके

बाद दिवाकर

चाचा। ये

दोनों भाई

बहन मेरे

बाबा को चाचा कहकर बुलाये तो बाकी सदसयों ने भी

चाचा कहना शुरू कर दिया। बड़े दादा जी को सब लोर्

बबुआ जी बुलाते थे।

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ik.Ms; vfpZ

जब से मैंने होश संभाला तभी से देख रही हँ। दिवाकर

चाचा को एक कर्मठ इंसान के रूप में। जब सब लोर् सो रहे

होते तो सबसे पहले वही उठते थे। मवेशियों

को खिला-पिलाकर, खेती-बाड़ी

के सारे काम बड़ी जलदीबाजी

से कर लेते थे। अपने चारो

बचिों का भी खयाल खूब रखते

थे। जहाँ र्ाँव के बाकी बचिे

पैदल सकू ल जाते थे वहीं वे

अपने बचिों को विद्ालय खुद

ही बारी-बारी से पहुँचाने और ले

आने जाते थे।

दिवाकर चाचा

हर काम को

पूरी श्रद्धा और

लर्न से करते

थे । चाहे वो

खेती का काम

हो, मवेशियों

का काम, घरवालों का काम हो, र्ाँव वालों का काम हो

या रिशतेदारों का। हर काम को बड़े आननद और उतसाह

के साथ मैंने उनको करते देखा है। जब मैं छोटी थी तब

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 41


नमन

उनकी सिर्फ मेहरौना में दुकान थी। अब तो कई दुकानें हैं।

खेती-बाड़ी से समबंनधत जो कु छ भी उनकी दुकान में वसतुएँ

रहती जैसे खाद, बीज या कीटनाशक वे आस-पास के र्ाँव

के लोर्ों की भरसक मदद करते। बहुत बार उधार भी दे

देते थे। जब लोर्ों के पास पैसे होते तो उनका कर्ज देते थे।

हमारे र्ाँव के लोर् उनको काफी इज्जत और सममान देते हैं।

वे लोर्ों की भरसक सहायता करते थे।

हमारे र्ाँव मनिकपुर की कई बेटियाँ या रिशतेदार बस से

उतरते और उनको र्ाँव तक आने के लिए कोई सवारी नहीं

मिलती तो वे खुद ही छोड़ जाते थे। सबकी मदद करते थे।

मुझे याद है कि गर्मी के दिनों में जब सब लोर् गर्मी के

आतंक से घरों में छु पे रहते थे तब भी वे दोपहर को खाना

खाने आते थे, खाना खाकर जरा आराम भी नहीं करते।

फिर वे चिलचिलाती धूप में वापस दुकान पर चले जाते

थे। कोई पर्व या तयोहार हो, अपने परिवार का खास धयान

रखते । उनकी हर माँर् पूरी करते। वे अपने घरवालों का

धयान रखते हुए, र्ाँव तथा रिशतेदारों का भी भरपूर धयान

रखते।

जब कोई इंसान अपने परिवार का बहुत अचछे से देखभाल

कर रहा होता है, उनको अचछे संसकार दे

रहा होता है, अपने माता-पिता को संतुष्

कर रहा होता है तो निश्चित रूप से एक

सुंदर और सुखद राष्ट का निर्माण कर रहा

होता है। अपनी हर जिममेदारियों को

खुशी से निभाना बहुत बड़ी पूजा है। अपने

रिशतेदारों का धयान रखना उनके हर दुख-

सुख में खड़े रहना निश्चित रूप से किसी भी

तीर्थ से बड़ा है। हर मनुषय का यह परम्

कर्तव्य है कि अपने परिवार और रिशतेदारों

का धयान रखकर, उनकी मदद करके सुंदर

और सुखद राष्ट के निर्माण में अहम भूमिका

निभाए। कयोंकि हर व्यनति के निर्माण से

ही एक सुंदर और खुशहाल राष्ट का निर्माण

संभव है। दिवाकर चाचा मेरे रोल मॉडल

हैं। उनका जीवन हम सभी को मेहनत

करके आर्े बढ़ने का पैर्ाम देता है। आप ने सिर्फ शरीर

का त्याग किया हैं। आपके विचार आज भी समाज के लिए

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आईना हैं। आपने जो अपने समाज के लिए किया हैं वह

सभी को नेक कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। हमारी

चाची मंजू अर्थात चाचा की धर्मपनिी चाचा के कर्मठता की

काफी कद्र करती थी। मंजू चाची उनका जैसे दाहिना बाह

थी। दोनों की र्ृहसथी बेहद खुशहाल थी। उनकी बड़ी बेटी

का नाम रोज़ी है। चाचा, चाची को रोज़ी की मममी तथा

चाची चाचा को रोज़ी के पापा कहकर बुलाते थे। 2005

में जब मेरी शादी हुई थी। तब चचा ने मेरे लिए विदाई की

बनारसी साड़ी खरीदी थी। वो मैरून बनारसी साड़ी जिसे

मैं पहनकर अपने ससुराल आई थी। चाचा की याद बरबस

दिलाते रहेर्ी। हर सुबह दिनभर कड़ी मेहनत करने के लिए

आपका कभी हार नहीं मानने वाला व्यनतितव प्रेरित करता

रहेर्ा। उनका यूँ अचानक चले जाना हम सब का व्यनतिर्त

नुकसान न होकर सामाजिक नुकसान है।

चाचा तुमहारा यूँ चले जाना

बहुत खलता है

अरे ओ जिममेदार चाचा!

अरे वो दिवाकर चाचा!

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कयों भूल र्ए कु छ भी बताना!

थोड़ा दिन और रह लेते

समाज और रिशतेदारों की सेवा

और कर लेते!

भुलाए भी तुम नहीं भूलते

आँखों में तुमहारा चेहरा झलकता है

तुमहारी यादें है खुशबू सी

दिल को सुर्ननधत करती हैं।

हे ईश्वर तुमसे निवेदन है

मेरे चाचा को जन्त तुम देना

चाचा सबके दुलारे है

बहुत सारा पयार तुम देना।

हम चलेंर्े चाचा के बताए हुए रासते पर

मेरी चाची को हिममत तुम देना

चाची को रखेंर्े बड़े हिफाजत से

हे खुदा तुम चाचा को जन्त में जर्ह

देना।

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

नर्स सेवाभाव का

दूसरा नाम है

सबसे पहले नर्स से ही मिलता है

जब भी कोई बीमार हॉनसपटल जाता है

उसी से सारी जानकारी लेकर

संबंधित डॉकटर से मिल पाता है

नर्स भी देवी का इक रूप है

जो दूसरों की ज़िंदर्ी बचाती है

तभी तो ऑपरेशन थिएटर में

डॉकटर के साथ खड़ी नज़र आती है

इंजेकिन लर्ाना हो या मापना हो बुखार

बिना भेदभाव के नर्स हमेशा रहती है तैयार

लोर्ों की करती है दिन रात सेवा

छोड़ना पड़ता है उसको घरबार

वार्ड में दौड़ती फिरती है इधर उधर

जैसे चल रही हो मशीन कोई

कोई नहीं जानता लोर्ों की सेवा के लिए

वह कितनी रातों से नहीं है सोई

वार्ड में कोई कहता मेरा गलूकोस बदल दो

कोई हनडियों की पीड़ा से कराहता है

एक दम से पहुंचती है मरीज के पास

उसका कोमल हृदय एक दम से पिघल जाता है

हरी बदगी व सफे द टोपी पहनती है

खुदा का फरिशता नज़र आती है

बात करती है पयार से जब मरीजों से

आधी बीमारी वैसे ही दूर हो जाती है

नर्स सेवाभाव का ही है दूसरा नाम

निःसवाथ्त सेवा करती है सब की

कठिन वति में साथ देती है

मरीज के लिए वह तो नेमत है रब की

रवींद्र कु मार शर्मा

घुमारवीं

जिला बिलासपुर हि प्र

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 43


dkO;

रामनवमी

चैत्र शुकल रामनवमी को, प्रकट भए प्रभु राम,

माता कौशलया झूम उठी, पाकर पुत्र राम।

राजा दशरथ पिता की ,खुशी थी अपरंपार,

पूरी अयोधया हरर््तत हुई ,र्ूंज उठी जय कार।

रूप मनोहर राम का, था अति मनभावन अभिराम,

देख-देख हरर््तत हुए, माता पिता परिवार।

अतुलित अनुपम थी ,चारों भाई राम, लखन ,भरत ,शत्रुघ्न की जोड़ी,

तोड़ धनुर् दशरथ के पयारे , सीता संर् सवयंबर रचाया।

राजा जनक के घर ,चारों पुत्रों ने बयाह रचाया,

आपलौट अयोधया राम के , राज्याभिषेक की चल रही थी तैयारी।

पर कु बड़ी कु बजा की ,दुर्मति ने ऐसी चाल चलाई,

राम को 14 वर््त वन में बिताने की ,आज्ा राजा दशरथ ने सुनाई।

पिता वचन के कारण ,जिस ने छोड़ी थी अयोधया नर्री,

चोदह वर््त बिताए वन में, ऐसे थे आज्ाकारी।

राम संर् वन में र्ए थे ,भाई लखन और माता सीता,

रावण वन से हरण कर ,ले आया माता सीता।

निशदिन सीता की खोज में ,भटक रहे थे दोनों भाई,

तभी बजरंर् बली ने , सीता माता की खोज लर्ाई।

रावण को मार, राम ने सीता को छु ड़वाया,

राम- लखन ,सीता की, जय- जयकार का नारा था र्ूंजाया।

जब जब धर्म का हनन हुआ ,एक नया अवतार प्रभु ने पाया,

सवरचित

रंजना बिनानी

र्ोलाघाट असम

श्री राम प्रभु ने ,असतय पर सतय की विजय का पताका फहराया।

श्री राम जनमभूमि अयोधया में, राम जनम का हर्षोललास है मनाया।

भये प्रर्ट कृ पाला दीन दयाला कौशलया हितकारी,

हरर््तत महतारी मुनि मन हारी ,शोभा रूप बिसारी।

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


dkO;

वह आखरी

टेन

संर्ीता र्ुलाटी

दिलली

बात जाड़े की उस रात की है जब मैं जलदी से

दफतर का काम खतम कर फटाफट घर पहुंचा।

अटैची में जरूरी सामान रखा और ्राइवर

से बोला "जलदी से मुझे सटेिन छोड़ दो।

रामपुर की आखरी टेन का वति हो चला है। कल सुबह

मेरी शादी है। सुर्मा मेरी राह देखती होर्ी। ्राइवर बोला

"जी मालिक चलिए ।घर से निकले ही थे कु छ दूरी पर मैंने

देखा एक महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती सड़क पर बैठी थी

उसका लाचार पति मदद मांर्ते मांर्ते थक चुका था ।मैंने

्राइवर से र्ाड़ी रोकने को कहा महिला की हालत देखी

ना जा रही थी। वह दर्द से कराह रही थी ।मैंने ्राइवर से

कहा "जलदी से इनहे र्ाड़ी में बैठाओ और सिटी असपताल

की तरफ चलो करीब आधे घंटे में हसपताल पहुंचे ।उनहें

डॉकटरों को सौंपा और ्राइवर को फिर से सटेिन की ओर

चलने को कहा। जब मैं सटेिन पर पहुंचा टेन छू टे हुए 15

मिनट हो चुके थे और वह टेन उस दिन की आखिरी थी।

सोचा अर्ले दिन सुबह सुबह की टेन ले लूंर्ा। अर्ले दिन

सुबह टेन पकड़ी जिसने मुझे रात तक पहुंचाया ।जब मैं

अपने घर पहुंचा पहले मां बाप ने खूब सुनाया "यह तुमने

कया किया हमारी नाक कटा दी शादी की पूरी तैयारी थी

तुम ना आए। सुर्मा के पिताजी ने

उसी मंडप में अपनी आबरू बचाने को

अपनी बेटी किसी और को सौंप दी ।वह आखरी

टेन जो छु टी उसने मेरे जीवन की पटरी ही बदल दी। मेरी

सुर्मा जिसे मैंने बचपन से चाहा था अब मैंने उसे खो दिया

था। मैं वापस शहर आया अर्ले दिन सुबह वह आदमी

मिठाई लेकर आया और अपने बेटा होने का समाचार उसने

मुझे सुनाया ।मुझे समझ नहीं आया अब इस मिठाई को

खाऊं या उसे अपना दुखड़ा सुनाऊ खैर मैं मुसकाया उसकी

पीठ को मैंने थपथपाया और उसे मुबारकबाद देकर रवाना

किया ।दुख तो बहुत था पर उस र्रीब के चेहरे की खुशी

ने मेरे दुःख को घटाया और मुझे र्व्त हुआ कि मेरा जीवन

किसी के काम आया।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 45


देखिए कै से आप शीघ्र सवसथ हो जाते हैं और पहले से जयादा खुद को मजबूत पाते हैं।

इसलिए हर पररनसथनत में खुद को साकारातमक बनाए रखें, सुंदर सोचे सुंदर बने और सृनष् को खुशहाल बनाए।

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


समूदी के रूप में लें: इस मौसम में ठंडी-ठंडी समूदी का

सेवन लाभकारी साबित हो सकता है। ये शरीर को ठंडक

पहुंचाता है और डिहाइ्रेिन से बचाता है। गर्मी में के ले

और अनानास के साथ हलदी की समूदी बनाकर पीयें। सबसे

पहले बलेंडर में के ले के टुकड़े, अनानास, थोड़ा सा र्ाजर

का जूस, नींबू

का रस और एक

चममच पीसी हुई

हलदी डालकर

बलेंड करें। फिर

ठंडा करके इसे

पीयें।

इमयुनिटी बढ़ाने में

हलदी का नहीं है कोई

जोड़

lsgr

से शरीर में मौजूद नवर्ाति पदार्थ नष् हो जाते हैं जिससे

इंफे किन होने का खतरा कम हो जाता है। यह ना के वल

आपको बेहतर नींद लाने में मदद करता है, बनलक आपको

तरोताजा और अधिक ऊर्जावान बनाने में भी मदद करता

है।

हलदी नींबू पानी:

गर्मी के मौसम में

नींबू पानी पीने से

शरीर में पानी की

कमी नहीं होती

है। साथ ही, ये

इमयुनिटी बढ़ाने में भी मददर्ार है। इसमें हलदी मिलाने से

इस ड्रंक के र्ुण बढ़ जाते हैं। एक नर्लास ठंडा नींबू पानी

में हलदी और एक छोटा चममचअदरक मिलाएं। चीनी की

जर्ह शहद का इसतेमाल करें। ये सवाद के साथ सेहत के

लिए भी लाभकारी साबित होर्ा।

हलदी वाला दूध: रात को सोते समय हलदी वाला दूध पीना

किसी अमृत से कम नहीं माना जाता है कयोंकि सोते समय

बॉडी खुद को रीसटोर करती है। रोजाना हलदी दूध पीने

इमयुनिटी ड्रंक: एक कप बादाम का दूध, 1 कटे हुए खजूर/

शहद/र्ुड़ लें, साथ ही हलदी, काली मिर्च, दालचीनी और

कु छ अदरक के लचछे भी चाहिए होंर्े। सबसे पहले बादाम

के दूध में खजूर, शहद या र्ुड़ डालकर उबालें ताकि

उसका सवाद दूध में पूरी तरह घुल जाए। उसके बाद चुटकी

भर हलदी, काली मिर्च, दालचीनी और अदरक के लचछे

डालकर इसका सेवन करें।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 47


dkO;

खुशी झा

मुंबई

र्ृहिणी

हां मैं एक र्ृहिणी हुँ

अपने हीं घर की सवानमनी हुँ।

दिन रात खुशियाँ तलाशती हुँ

कै से बचिे खुश हँसे

कै से पति खुश रहें

हर वो एक मौके तलाशती हुँ

हाँ मैं एक र्ृहिणी हुँ।

इतना आसान नही होता घर चलाना,

कम हो या जयादा हर कमी को पूरी करना,

नमक भी सवाद अनुसार

चीनी को भी हो मात्रा बराबर,,

नमक और चीनी का सामंजसय मुनशकल होता है बिठाना।

हां मैं एक र्ृहिणी हुँ।

होती है हर दिन एक उलझन,

बनधे होते हैं ना जाने कितने बनधन,

कोई खुश तो कोई नाराज,

जिममेदारियो से होती है दिन की शुरुआत,

फिर भी इतने पे भी मान जाने की आस,

शक भी बहुत भरोसा भी बहुत,

रिशतों की जोड़ में होते हैं फै सले बहुत।

हां मैं एक र्ृहिणी हुँ।

कभी दुख के बादल भी घिरते हैं

फिर सुख के मेघ भी बरसते हैं

कोशिश में नाकामी कामयाबी भी मिलती है

एक र्ृहिणी सब समभाल लेती है।

हां मैं एक र्ृहिणी हुँ।

हां मैं एक र्ृहिणी हुँ।

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


पेशेंट : "डॉकटर साहब, इस प्रिसकीपिन में आपने जो

दवाइयाँ लिखी हैं, उनमे से सबसे ऊपर की नही मिल रही

हैं.

डॉकटर: " वो दवाई नही है, मैं तो पेन चलाकर देख रहा

था,चल रहा है कि नहीं ...!!!

पेशेंट: अबे कमीने...मैं 52 मेडिकल शॉप घूम के आया हँ

तेरी हैंडराइटिंर् के चक्कर में ।

एक मेडिकल वाले ने तो ये भी कहा! कल मंर्ा दू ँर्ा...

दूसरा कह रहा था....ये कं पनी बंद हो र्यी....दूसरी कं पनी

की दू ँ कया??

तीसरा कह रहा था....इसकी बहत डिमाणड चल रही है.....

ये तो बलेक में ही मिल पायेर्ी!

चौथा तो बहत ही एडवांस था...ये तो कैं सर की दवाई है...

कैं सर किसको हो र्या???

एक औरत अपनी कु छ परेशानियों को लेकर एक बाबा के

डेरे में पहुंची...!

.

बाबा ने सारी परेशानियों को बड़े र्ौर से सुना फिर बोले

-

बेटी इसका हल निकल जाएर्ा, सब ठीक हो जाएर्ा,

लेकिन इसके लिए कु छ खर्च आयेर्ा...!

औरत ने पूछा - कितना खर्च आएर्ा...?

.बाबा - तुमसे मैं जयादा तो नहीं ले सकता,

लेकिन पुराणों के अनुसार हमारे कु ल 33 करोड़ देवी

देवता हैं,

बस सबके नाम से एक-एक पैसा दान कर देना।

.औरत ने मन ही मन कै लकु लेट किया, तो

बाबा के हिसाब से कु ल खर्च 33 लाख रुपये आता था...!

.औरत भी चालाक थी, उसने कहा -

ठीक है बाबाजी, आप बारी-बारी से सबका नाम लेते

जाइए,

मैं एक-एक पैसा रखते जाऊं र्ी...!

.बाबा डेरे में अभी भी बेहोश हैं...!

टीचर - किसी ऐसे द्रव्य का नाम बताओ, जिसे जमा नहीं

सकते...?

.छात्र - र्रम पानी...!

.टीचर - कौन से महीने में 28 दिन होते हैं...?

.छात्र - सर, वो तो हर महीने में होते हैं...!

.टीचर (र्ुससे में) - जा, बाहर जाकर लाइन में सबसे

आखिर में खड़े हो जा

.

थोड़ी देर बाद टीचर (र्ुससे में) - तुझे मैंने कहा था न कि

सबसे आखिर में खड़ा हो जा

.

छात्र - सर, उस जर्ह पर पहले से ही कोई खड़ा है...!

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 49


लघुकथा

माँ मेरी भर्वान

शहर के रामबार् में एक संत द्ारा कई दिनों

से भर्वत् कथा सुनाई जा रही थी । बहुत संखया

में भक्तगण वहाँ जाकर कथा अमृत का पान कर

रहे थे। आज किसी प्रसंर् में संत ने भतिों से एक

अजीब व दुर्लभ प्रश्न किया कि कया कभी आप में

से किसी को भर्वान के दर्शन होंर्े ? मुझे नहीं

लर्ता कि होंर्े, कयोंकि इस कलियुर् में कोई

धर्म मार््त पर चलता ही नहीं ,हम कथा वाचक

भी नहीं। पूरी सभा में सन्ाटा छा र्या कया स्त्री,

कया पुरुर् सिर झुकाकर बर्ले झाँकने लर्े। तब

ही अचानक एक छ -साात वर््त का बालक ऊँ ची

आवाज में सभा मणडप से खड़ा होकर बोला - संत

जी, आप र्लत कहते हैं कि अब भर्वान किसी

को दर्शन नहीं देते ,मैं तो प्रतिदिन भर्वान के

साथ सोता हँ, खाता हँ , भर्वान के हाथों पिटता

भी हँ तो दुलार भी पाता हँ, भर्वान मेरा हर

पल का धयान रखते हैं और मैं भी भर्वान का...

संत समझने की कोशिश में असहाय से लर् रहे थे और

बालक बोले जा रहा था ... अंत में संत ने हाथ जोड़कर उस

बालक से कहा- कया तुम मुझे भी अपने भर्वान के दर्शन

करा सकते हो ? संत को बीच में ही टोकते हुए- हाँ, हाँ करा

सकता हँ । मैं, मेरे भर्वान के साथ ही आपकी कथा सुनने

आया हँ और अपनी माँ को सभा में खड़ा करने का प्रयास

करने लर्ा ... संत समझ

र्ये और नीचे उतरकर बालक की भर्वान (माता) के चरण

छु ए और उस बालक के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद

दिया । इसके बाद पुनः कथा-रस आरंभ हुआ साथ-साथ

संत की आँखों से अश्रु धारा भी अनवरत बहती रही ... इस

रहसय को भति जन नहीं समझ सके ।

--

व्यग् पाणडे

कर्मचारी

कालोनी,

र्ंर्ापुर सिटी,

स.माधोपुर

(राज.)322201

50

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


हिंददेश परिवार कर्नाटक के उद्ाटन समारोह में

सहभानर्ता और कर्नाटक इकाई को ढेरों शुभकामनाएं देने

के लिए सदसयों को सहृदय सममान एवं हार्दिक बधाइयां।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 51


dkO;

कवि और कविता

बोलो हे कविराज तुम

आज कौन सा फर्ज निभाऊँ

उठाकर कलम लिखो तुम कवि

और कविता मैं बन जाऊँ

लिखो तुम उग् विचारों को

समाज को दर्पण में दिखलाऊँ

बनकर आवाज कांनत की मैं

एक नई राह सब को दिखलाऊँ

उठा कर कलम लिखो तुम कवि

और कविता मैं बन जाऊँ

लिखो समान तुम राजा, रंक को

और समानता का मैं भेद मिटाऊँ

करो शबद संयोजन तुम ऐसा

मैं साहितय की प्रेरणा बन जाऊँ

उठाकर कलम लिखो तुम कवि

और कविता मैं बन जाऊँ

कविता पाल "बबली"

दिलली

और कविता मैं बन जाऊँ

विरह वेदना सब कहना मुझसे तुम

मैं दिल का तुमहारे दर्द मिटा पाऊँ

लिखो तुम प्रेम शबदों में इस तरह

मैं अमर प्रेम काव्य बन जाऊँ

उठाकर कलम लिखो तुम कवि

और कविता मैं बन जाऊँ

लिखो सकारातमकता तुम इस तरह

मैं नकारातमकता को दूर भर्ाऊँ

पढ़े, सुने, र्ाए जो भी मुझको

हृदय में उसके मैं उतसाह जर्ाऊँ

उठाकर कलम लिखो तुम कवि

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


viuh ckr

मेरी सपनों की दुनिया

सपना कया है?

जो बंद आँखों से देखा तो जा सकता है,

मर्र खुली आँखों से छु आ नहीं जा सकता।

सपना तो हर कोई देखता है ,किसी के आँखों में एक सपना होता है तो किसी के हजारों सपने

होतें है। किसी के सपने छोटे तो किसी के सपने बडे ़.।

बचपन से ही हम सपने बुनने लर्ते हैं, कु छ सपने और चाहत हमारे उम्र के साथ ही बढते चले जाते हैं. । इस पूरी दुनियाँ

में ऐसा कौन है जिसका कोई सपना नही है?

सभी कोई ना कोई सपना देखते हैं. ।

""" सपनों की दुनियाँ र्जब लर्तीं है,

झूठी हीं सही पर हर खुशी नसीब होती है. ।"""

T;ksfr 'keZk

आप सभी आईये मेरी इस पयारी सी छोटी सी सपनों की दुनियाँ में आपका स्वागत है.।

मेरी सपनों की दुनियाँ में सिर्फ पयार और अपनापन है,एक अनछु आ एहसास है.।

मेरी सपनों की दुनियाँ में हंसी,खुशी, सुख समपन्ता तो है ही यहाँ कोई अमीर नही है, सभी एक समान है। मौसम तो ऐसा

मनभावन है थोड़ी सी र्ुलाबी ठंड थोडी़ र्ुन -र्ुनी

सी धूप है हर और पेड़ पौधों से लहराता सावन भी किसी र्ली से र्ुजर कर हरियाली बिखेर र्या .। ये हवाएं मधुर

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 53


viuh ckr

संर्ीत लेकर हर ओर इठलाती फिरती है.।मेरी सपनों की

दुनिया में द्वेष, काम, कोध, लोभ इन का तो नामोनिशान

तक नहीं है.।

मेरी सपनों की दुनियाँ में बुरी चीजों के लिए कोई जर्ह

नहीं है, यहाँ पर किसी को र्ुससा आता नहीं तो झगड़ा भी

नहीं होता तो मारधाड़, लूटपाट, हतयायें, बलातकारी ऐसे

लोर् भी नहीं होर्ें तो घिनौना कृ तयों का तो सवाल ही नहीं

उठता।

जुर्म नहीं तो जेल भी नहीं , ना ही कोर्ट रुम ना आंतक ना

आंतकवादी ऐसा शांत और मन को लुभाने

वाला मेरा जंहा।

मेरे सपनों की दुनियाँ में कोई चीज की कमी

नहीं है वहां का वातावरण बहोत शुधद और

नैसरर््तक है इसलिए मेरी दुनिया का किसान

बहोत खुश और सुखी जीवन जीता है कयोंकि

उसको मेहनत का फल दुर्ना मिलता है.।

यहाँ के माहौल में सबजी, फल ताजा और

मधुर है ना कोई कै मिकल ना कोई जहरीला

फववारा .।

मेरी सपनों की दुनियाँ में प्रदुर्र या जहरीला

धुआं उर्लने वाले वाहनों की नो पारकिं र् है .

पर मेरी दुनियाँ में पूरी तरह से इकोफ्े नडली

र्ो ग्ीन वाले है जिससे ना ही प्रकृ ति को

कोई नुकसान हो और ना ही इंसानों को कोई

तकलीफ.।

मेरी सपनों की दुनियाँ का हर परिवार संयुति

परिवार है यहाँ पर कोई भी अके ले अलर् रह

कर मनमानी नहीं करता , जो छोटे है वो बडो़ का आदर

और मानसममान रखते हैं, बड़े भी अपने छोटों को दोसतों के

जैसा व्यवहार करते हैं जिससे वो अपने मन की बात खुल

कर कह सकें , घर के बड़े भी उनकी जरुरतों का धयान रखते

हैं इसलिए घरों में मनमुटाव होता ही नहीं आंनद के साथ

भरपूर जोश में जीते हैं.।

मेरे इस पयारे से आशियाने में वृधाश्रम,अनाथालय इस

की तो कलपना ही नहीं है.। जब माहौल और मौसम इतना

खूबसूरत और पयारा होर्ा तो बिमारियों का नाम भी

सुनाई नहीं देर्ा मजे की बात ये है यहाँ पर असपताल का

अनसततव ही नहीं है पर एक रोर् है प्रेम रोर् सभी को है.।

मेरी जान से पयारी दुनियाँ में नकारातमकता, प्रतिसपधा्त,

रंर् भेद, जाती भेद इन चीजों को पहचानते ही नहीं है.।

राजा ही प्रजा है, प्रजा ही राजा है यहाँ पर र्ंदी

राजनीति का तो नामोनिशान नहीं है.

मेरी सपनों की दुनियाँ में एक ही धर्म है वो है इंसान का

और एक ही जाती है

मानवजाति इससे श्रेष्ठ

और कु छ नहीं है.।

मेरे इस पयारे से आशियाने में

वृधाश्रम,अनाथालय इस की तो

कलपना ही नहीं है.। जब माहौल

और मौसम इतना खूबसूरत और

पयारा होर्ा तो बिमारियों का नाम

भी सुनाई नहीं देर्ा मजे की बात ये

है यहाँ पर असपताल का अनसततव

ही नहीं है पर एक रोर् है प्रेम रोर्

सभी को है.।

मेरी जान से पयारी दुनियाँ में

नकारातमकता, प्रतिसपधा्त, रंर् भेद,

जाती भेद इन चीजों को पहचानते ही

नहीं है.।

""" सपनों की दुनिया में

हम खोते चले र्ए,

मदहोश न थे पर

मदहोश होते चले र्ए. """

मेरी सपनों की दुनियाँ

से विपरीत आज की ये

दुनियाँ है यहाँ पर किसी

को किसी की जरूरत

नहीं है सभी अपनी घमंड

से भरी जिंदर्ी जी रहे

हैं. यहाँ तो पयार जैसा

कोई खेल नहीं कोई भी

कभी भी किसी का दिल

तोड़ चला जाता है कोई

अहमियत ही नहीं है उन एहसासों की.

देखा है एक खवाब अभी खयालों में बसर हैं

मेरे सपनों की दुनियाँ में हर चीज मुकममल हैं

तू भी सजा एक सपना खवाबों में ही सही

खवाब देखो तो सही दुआंऐ हम भी करेंर्े

चारों तरफ खुशियाँ हो वादियाँ दुलहन सी सजी

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


viuh ckr

ये हकीकत हो, सच हो, कोई खवाब नहीं

पूरी हर मन्ते होती है राम मंदिर भी सपना था

आज धारा 370 हटा ये भी सच होना ही था

बदलते भारत की एक नई तसवीर देखो

जो ना हुऐ कई सालों में आज बदल र्या देखो

कल मैंने देखा शिक्ा व्यवसथा भी बदलीं

सैनय ताकत में आई कईं र्ुना की बढोतरी

बदलता वही है जो खवाब देखता है

इतिहास ऐसे ही कोई थोडे ़ ना रचता है

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 55


संसमरण

विपनति का साथी

र्ुललक

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र्ुललक का नाम सुनते ही सन् 1978 की वो भयावह

घटना याद हो जाती है जब मैं सात वर््त की थी। बहुत छोटी

होने के बावजूद भी वह भयावह मंजर आंखों के सामने

चलचित्र की तरह आज भी घूमता है। मेरे घर से डकै त सारे

सामान उठा ले र्ए थे।

उस रात टेन लेट होने के कारण पिताजी ऑफिस से

काफी देर से आये थे। अममा-पिताजी मैं और दोनों भाई एक

कमरे में ही र्हरी नींद में सो रहे थे।

हम पांचों सदसयों के अलावा अलमारी पर हम भाई-

बहन की किताबें और र्ुललक पड़े हुये थे।

डकै तों ने हमारा दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था।

दरवाजे के बाहर बहुत मात्रा में लाल मिर्च और नुकीले ईंट

पतथर पड़े हुए थे।

दूसरे कमरे से घर के सारे बॉकस और जरूरी सामान,

कार्जात,नकदी पैसे, जेवर सब डकै त उठा ले र्ए थे। साथ

ही बड़े पिताजी के घर से भी सारे सामान उठा लिये थे।

दोनों घरों की हालत बिलकु ल दयनीय हो चुकी थी।

कौन सा पाउडर डकै तों ने डाला कि घर के किसी

सदसय की नींद नहीं खुली-- कोई नहीं समझ पा रहा था।

जान बच र्ई --यही हम लोर् खुशकिसमती समझ रहे

थे। सुबह उठते ही दोनों घर की हालात देखकर हाहाकार

सुनीता रानी राठौर

ग्ेटर नोएडा (उतिर प्रदेश)

मच र्या था।

पुलिस को खबर करने की भार्-दौड़ और पैसों की

जरूरत आ पड़ी थी। सुबह की घड़ी--बैंक जाने का समय

नहीं था।

विपनति की उस घड़ी में हम तीनों भाई-बहनों का

र्ुललक काम आया। अठन्ी-सिक्के जोड़- जोड़कर पिताजी

पुलिस थाना की ओर रवाना हुए।

कु छ देर में ही हमारा घर पुलिस छावनी में तबदील हो

र्या। आर्े की कार्रवाई में बड़े लोर् व्यसत हो र्ए थे।

हम तीनो भाई -बहन अपने पयारे र्ुललक को धनयवाद

अदा कर उसके टूटे भार् को पयार से सहेज रहे थे कयोंकि

हमारा र्ुललक विकट घड़ी में सचिा साथी बन कर मददर्ार

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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021


viuh ckr

मैं . र्व्त के साथ आप सबको जानकारी देना चाहती हँ

कि हमारे हिंददेश परिवार से ही पुषप वाटिका विद्ालय

जुड़ा है। उस हिंददेश परिवार से जो हमारी संसथानपका व

अधयक् महोदया श्रीमती अर्चना पाणडेय के सफल नेतृतव मे

दिन दूनी रात चौर्ुनी उन्नत कर रहा है ! अपनी यह संसथा

भारत के साथ-साथ विदेशों में भी अचछा कार्य कर रही है

। अनय देशों में इसकी ईकाइयों का र्ठन हो रहा है। इसका

मुखय कारण है इस परिवार का उद्ेशय ' इसका उद्ेशय

है पूरे विश्व को सुंदर, खुशहाल व समृद्ध बनाना है। हर

समय यहाँ सकारातमकता की बातें होती हैं .। यही उद्ेशय

हमारे विद्ालय का भी है । यहाँ बचिों को संसकार,अधयातम

सनातन धर्म की जानकारी, कीड़ा ,योर्, नृतय ,संर्ीत ,व

हर वह शिक्ा जिससे बचिे का भविषय उज्जवल हो, सार्थक

हो सुंदर हो ,दी जाएर्ी। आप सभी र्ुणी जनों की ओर से

मैं माँ शारदे से प्रार्थना करूं र्ी कि वह हमारे विद्ालय के

हर सदसय को सदबुनद्ध दे कर्मठ बनाये । वाणी में मिठास

दे ज्ान दे जिससे हम पूरे विश्व के साथ तालमेल बनाते

हुए एक सुंदर सृनष् का निर्माण कर सकें । हम जानते हैं कि

एकता व नम्रता में ताकत है। अतः इसी कथन को अपनाते

हुए आर्े बढेंर्े। और हमें पूरा विश्वास है कि इस प्रकार

हमारा विद्ालय पूरे विश्व में हमारे हिनददेश परिवार का

नाम रोशन करेर्ा और सवयं भी अपना एक सथान बना

पायेर्ा। जिससे पूरे विश्व का कलयार होर्ा। धरती खुशियों

से भर जाएर्ी।

धनयवाद

पुषपा बुकलसरिया

प्रीत मासी

अधयक्

पुषप वाटिका

विद्ालय पटल।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 57


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मैं मज़बूर हं

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जब दिन भर वो मेहनत करता है

तभी उसका परिवार पलता है

खुद भूखा रहकर भी

बचिों की हर मांर्ें पूरी करता है

अपने परिवार का पेट भरने के लिए

वो ना जाने कितनी रातें नहीं सोता है

दो वक़त की रोटी के लिए वो

ना जाने कया-कया करता है

उसे पता है, अपनी हैसियत

दो जून रोटी की खातिर कितनी मशक्कत करता है

र्ृहसथी संभालने के लिए

बीबी भी घर-घर बरतन मांजती है

बचिे पढ़ नहीं पाते एक अचछे सकू ल में

कांपी किताबें उनहें मयससर नहीं

फटी साड़ी पहनने को मजबूर है पनिी

ऩयी साड़ी खरीदे कै से पैसों के लिए हाथ तंर् है

थक जाता है जब काम के बोझ से

नींद आती है र्हरी तब सपने संजोता है

देखता है खबाव अपने मुनिया के

पढ़ाई की , फिर बड़ा अफसर बनने की

किं चित उसके व्याह की और ससुराल विदाई की

पर, ये कया सहसा निद्रा भंर् होती है

और वह धरा पर आ जाता है

कया उसे सपने देखने का भी हक नहीं ?

टाट की मड़ई अब टपकने लर्ी है

कहां से लाए पैसे ,कि मरममत कराए

साहकार का उधार भी अब खासा हो चला है

कै से चुकता करेर्ा, यह सोच दिल घबरा रहा है

घरवाली भी बीमार रहने लर्ी है

खाये बिना मुनिया कमजोर हो चली है

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021

पड़ोसी भी तंज़ कसने लर्े हैं

काम में भी अब अवरोध बढ़ने लर्े हैं

नंर्े पांव, पैदल चलकर

अपने नसीब पर रोने को मजबूर है

कभी नमक रोटी,

तो कभी भूखे पेट सोने पर मजबूर है

ईश्वर भी नहीं सुनता प्रार्थना उसकी

किससे करे शिकायत ,कौन सुनता है

उसकी मजबूरी और लाचारी

आश्वासनों के सहारे कब तलक चलेर्ी

यूं ही घ़िसट़ - घ़िस़ट़़कर

जिन्दगी की ये र्ाड़ी

हां मैं मज़बूर हं

कयोंकि एक मज़दूर हं

राजीव भारती


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हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 59


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विश्व परिवार दिवस पर

विशेर् -

संयुति परिवार--

संयुति परिवार का आननद तो पूछो उनसे,

जो जनमें हैं 1990 के पहले।

हो सकता है २ -4 परिवार

आज भी मिले।

तब -

संयुति परिवार होते थे, सारे सदसय खास होते थे।

हाँ !

हुकम सिर्फ एक बड़े

का ही चलता।

फोन सिर्फ एक ही होता।

बसते पर बैठ कर कयारी में,

मर्न हो कर सवाद लेकर,

जो बन र्या खा लेते थे।

जो मिल र्या पहन लेते थे।

सब भाई बहन मिल

परतंर् उड़ाते,

लुका छु पी - र्ुट्ी

लंगड़ी टांर् खेलते थे।

ताश, कै रेम बोर्ड व लूडो

और न जाने कितने खेल खेलते थे।।

बड़ों के साथ पूजा पाठ करते थें।

ताई चाची भांभी के पीहर को अपना ही ननिहाल मानते

और मौज उड़ाते ।

ये रिशते तो हम आज भी हैं अपनाते '।

कितना मिठास इन रिशतों में,

कितना अपना पन इन रिशतों मे।

विद्ालय के शिक्क भी

60

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021

होते परिवार का हिससा।

अड़ोसी-पड़ोसी होते

परिवार का हिससा।

इतना कु छ करके भी

समय मिला पढ़ने का,

सिलाई कढ़ाई करने का ।'

अबकी पीढ़ी के लिए

तो यह है आश्चर्य।

कयोंकि एकल परिवार में कहाँ यह है संभव ?

आइए कु छ फु र्सत से

र्हराई . से र्मभीरता से

हैं विचार करते,

कौन है इसके लिए

जिममेदार?

और कोशिश करें

बीते संयुति परिवार

की परमपरा को

अपना लें हम

ताकि

नयी पीढ़ी को हो जाय आसान

समझने में हमारी सभयता,

संसकृ नत और रीति रिवाज।

पुषपा बुकलसरिया

प्रीत मासी।


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'परशुराम' पराकम के प्रतीक

'परशु' प्रतीक है पराकम का। 'राम' पर्याय है सतय सनातन

का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराकम के कारक

और सतय के धारक। शास्त्रोति मानयता तो यह है कि

परशुराम भर्वान विषरु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें

आपादमसतक विषरु ही प्रतिबिंबित होते हैं, परंतु मेरी

मौलिक और विनम्र व्याखया यह है कि 'परशु' में भर्वान

शिव समाहित हैं और 'राम' में भर्वान विषरु। इसलिए

परशुराम अवतार भले ही विषरु के हों,

किं तु व्यवहार में समननवत सवरूप शिव

और विषरु का है। इसलिए मेरे मत में

परशुराम दरअसल 'शिवहरि' हैं।

पिता जमदननि और माता रेणुका ने तो

अपने पांचवें पुत्र का नाम 'राम' ही रखा

था, लेकिन तपसया के बल पर भर्वान

शिव को प्रसन् करके उनके दिव्य अस्त्र

'परशु' (फरसा या कु ठार) प्राप्त करने

के कारण वे राम से परशुराम हो र्ए।

'परशु' प्राप्त किया र्या शिव से। शिव

संहार के देवता हैं। परशु संहारक है,

कयोंकि परशु 'शस्त्र' है। राम प्रतीक हैं

विषरु के । विषरु पोर्र के देवता हैं

अर्थात्‌राम यानी पोर्र/रक्र का

शास्त्र। शस्त्र से धवनित होती है िनति। शास्त्र से प्रतिबिंबित

होती है शांति। शस्त्र की िनति यानी संहार। शास्त्र की शांति

अर्थात्‌संसकार। मेरे मत में परशुराम दरअसल 'परशु' के

रूप में शस्त्र और 'राम' के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं। एक

वाकय में कहँ तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समनवय का

नाम है, संतुलन जिसका पैर्ाम है।अक्य तृतीया को जनमे

हैं, इसलिए परशुराम की शस्त्रिनति भी अक्य है और शास्त्र

संपदा भी अनंत है। विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य

धनुर्ों की प्रतयंचा पर के वल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते

थे। यह उनकी अक्य िनति का प्रतीक था, यानी शस्त्रिनति

का। पिता जमदननि की आज्ा से अपनी माता रेणुका का

उनहोंने वध किया। यह पढ़कर, सुनकर हम अचकचा जाते

हैं, अनमने हो जाते हैं, लेकिन इसके मूल में छिपे रहसय को/

सतय को जानने की कोशिश नहीं करते।

यह तो सवाभाविक बात है कि कोई भी पुत्र अपने पिता

के आदेश पर अपनी माता

का वध नहीं करेर्ा। फिर

परशुराम ने ऐसा कयों

किया? इस प्रश्न का उतिर

हमें परशुराम के 'परशु' में

नहीं परशुराम के 'राम' में

मिलता है। आलेख के आरंभ

में ही 'राम' की व्याखया करते

हुए कहा जा चुका है कि

'राम' पर्याय है सतय सनातन

का। सतय का अर्थ है सदा

नैतिक। सतय का अभिप्राय है

दिव्यता। सतय का आशय है

सतत्‌सानतवक सतिा।

परशुराम दरअसल 'राम' के रूप में सतय के संसकरण हैं,

इसलिए नैतिक-युनति का अवतरण हैं। यह परशुराम का

तेज, ओज और शौर्य ही था कि कार्तवीर्य सहस्ाजु्तन का वध

करके उनहोंने अराजकता समाप्त की तथा नैतिकता और

नयाय का धवजारोहण किया। परशुराम का कोध मेरे मत

में रचनातमक कोध है।जैसे माता अपने शिशु को कोध में

थपपड़ लर्ाती है, लेकिन रोता हुआ शिशु उसी माँ के कं धे

पर आराम से सो जाता है, कयोंकि वह जानता है कि उसकी

मां का कोध रचनातमक है। मेरा यह भी मत है कि परशुराम

ने अनयाय का संहार और नयाय का सृजन किया।

हिंददेश पत्रिका | 1-15 मई 2021 61


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