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नवयुग प्रवर्तक श्री गुरुजी - Shri Golwalkar Guruji

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<strong>नवयुग</strong> ूवतकौी गुजी( मूल मराठ से अनुवादत )चं. प. िभिशकरलोकहत ूकाशन, लखनऊwww.golwalkarguruji.org


• ूकाशकलोकहत ूकाशनसंःकृ ित भवन, राजेि नगर,लखनऊ – 226004• तृतीय संःकरणकाितक पूणमा,संवत ् 20608 नवबर 2003• मूयः . 100.00मुिकःनूतन आफसेट मुिण के िसंःकृ ित भवन, राजेि नगर,लखनऊ – 226004www.golwalkarguruji.org


ूकाशकयसुवयात लेखक ौी चं. प. उपाय बापूराव िभिशकर के ारा मराठ भाषा मिलखत एवं भारतीय वचार साधना, पुणे के सहयोग से ूकािशत ौी गुजी कजीवनी (ितय संःकरण) का यह हद अनुवाद पाठक के िलए ूःतुत करने म हमअपार हष और सतोष हो रहा है। हद भाषा पाठक के िलए ौी गुजी क जीवनीूकािशत करने क आवँयकता ौी शेषाि जी आद ये अिधकारय ने ूकट कथी। तदनुसार राीय ःवयंसेवक संघ के ितय सरसंघचालक ौी गुजी क जीवनीहद भाषा म ूकािशत करने का सुअवसर लोकहत ूकाशन को ूा हआ ु इसिलएूकाशन ःवयं को गौरवावत अनुभव कर रहा है।ौी गुजी का जीवन अनेकवध पहलुओं से सुसमृ था। आयामक ेऽ के वे ौेाता थे। संघ कायकताओं के िलए मयादा पुषोम ःवयंसेवक थे। हदू रा के ूितउनका जीवन पूणतः समपत था। उनके जीवन का ूयेक ण और उजा का ूयेककण एकमाऽ संघकाय हेतू ह बीता। कला-वान क अनेक शाखा-उपशाखाओं के वेमम थे। उनके जीवन क अनेक ूेरक घटनाऍं और कायकताओं तथा जनता के िलएउनके ारा समय-समय कया गया उ-बोधन इस जीवनी म ूभावी ढंग से ूकटहआ ु है।उनके जीवनी क अनेक ूेरक घटनाओं क इसम अिभय है। 1948-49 क ूथमसंघबंद भारतीय शासन के ारा बना शत हटायी जानेका सफल ूयास, वाथ ेऽ,ौिमक ेऽ, वनवासी-िगरवासी, उपेत बधुओं का ेऽ, राजिनित और अथिनित काेऽ सेवा काय आद अनेक समाज जीवन के ेऽ म संघ के मौिलक वचार, यवहारका ूभाव िनमाण करने का ौी गुजी ने सफल ूयास कया। गोवध बंद के बारे मजनजागरण और आदोलन, संघ िनमाता के नागपुर ःथत ःमृित मदर किनिमित, देश-वदेश के हदओं ू के िलए सुूितत आधार हेतु व हदू परष कःथापना, अिधकांश धमाचाय को, जो अपने मठ-मंदर म यःत थे, समाज ूबोधनहेतु जनता से यापक सपक के िलए ूवृ करना आद बात उहं के कायकाल महई। ु चीन के आबमण क सूचना अनेक वष पूव देकर भारतीय शासन को सजगताबरतने हेतु उहने ूेरत कया, 1962,1965 और 1971 के यु ूसंग म शासन सेपूण सहयोग कया, पाकःतानी और बंगलादेशी घुसपैठय क भारत वरोधी कायवाहके बारे म शासन को सतक कया, कँमर का भारत म विधवत ् वलय करने मसरदार पटेल को महवपूण सहयोग कया और चीन के आबमण के पात नेपाल काभारतीय गणराय से धािमक एवं सांःकृ ितक आधार पर संबंध सुढ करने का ूयासकया।www.golwalkarguruji.org


ूेरक घटनाओं के साथ-साथ समय-समय पर समःयामःत कठण परःथितय म ौीगुजी ने कायकताओं का जो बहमूय ु ूबोधन कया था उसका वणन भी मंथ म है।1942 के भारत छोडो आदोलन व 1947 के मातृभूिम वभाजन के दघर ु ूसंग परजहां उहने समयोिचत मागदशन कया था वहं ौेय महामा जी क हया केउपरात संघकाय पर मरणातक आघात करने के कांमेसी साधार और उनकेसहूवािसय के ूयास को िनंफल बनाने हेतु भी सफल नेतृव ूदान कया था।उसी ूकार 1949 म नागपुर और जौनपुर म, 1954 म िसंद (वदभ) म, 1960 मइंदौर म और 1972 म ठाण (महारा) म भारत के सभी कायकताओं का मागदशनकया था।हम वास है क अनेक ूेरक जीवनूसंग, समयोिचत उ-बोधक मागदशन औरूय संपक के ारा लोग को संघकाय म ूवृ करने का उनका अपूव कौशल, इसपावन ऽवेणी संगम म मु अवगाहन करने का सुअवसर इस जीवनी के ारा पाठकको ूा होगा। ौी गुजी के आयामक जीवन के संबंध म उनके ये गुभाई ौीअिमताभ महाराज से उपलध जानकार ःव. ौी बाबुराव चौथाईवाले ने िलपब कथी। क जीवनी के संदभ म अय साहय परौमपूवक एकऽ कर, उनका यथोिचतउपयोग करने के िलए ौी बापूराव िभशीकर को उपलध करा देनेवाले सवौी बापूराववराडपांडे, राम बडाले, कौशलि जी आद कायकताओं के ूित हम कृ त है। मूलमराठ मंथ का हद म धाराूवाह सरल भाषांतर नागपुर के ौी बालासाहेब सकदेव,ौी पाकर भाटे और ौी मधुकर हार ु ने कया है। पऽकारता को जीवनवृ के पम ःवीकारने वाले ौी पाकर भाटे अनेक वष तक नागपुर के दैिनक युगधम केूमुख संपादक रहे तथा राीय-अतराीय सामियक ू पर वपुल लेखन काय कयाहै। वतमान म व संवाद के ि नागपुर के ूमुख के नाते काय कर रहे है।ौी ू. मु. बालासाहेब सकदेव अनेक वष उ. ू. व बंगाल म संघ के ूचारक रहकरकु छ दन राश व युगधम के सपादन से जुड़े रहे और बाद म नागपुर केधरमपेठ महावालय म हद के ूायापक के प म सेवािनवृ हए। ु प. पू. ौीगुजी समम-दशन के खड के सपादन म भी उनका योगदान रहा।मराठ व अंमेजी म ःनातकोर ौी मधुकर जयदेव हार ु नागपुर के धरमपेठ उचतरमायिमक वालय म िशक रहे तथा संघ का पंजाब पव नाम क पुःतक िलखी।वतमान म व संवाद के ि नागपुर म कायरत है।उपयु ितन सु॑द के ूित ऋण-िनदश तथा हादक कृ तता य करना हम अपनाकतय समझते ह।www.golwalkarguruji.org


कृ तता दैिनक ःवदेश के पूव सपादक ौी माणकचंि बाजपेयी के ूित भी हैजहने पूर पुःतक को बारकसे पढ़कर मथ क भाषा को परमाजत कया।ऐितहािसक घटनाओं के ितिथबम एवं तयामकता क से बहुमूय सुझाव केारा हम उपकृ त करने वाले ौी देवेिःवप अमवाल भी हमारे धयवाद के पाऽ ह।पूय ौी गुजी के ूय सपक म आये सहाविध य आज भी हमारे बीचवमान ह। इस जीवनी का अवगाहन करते हए ु यद कोई महवपूण तय उनकेयान म आते ह जह समिलत कर लेने से ौी गुजी के यव के कसीअनछए ु पहलू पर ूकाश पड़ता हो तो उह िभजवाने का क कर जससे अगलेसंःकरण म समिलत कर पुःतक क गरमा को बढ़ाया जा सके ।- लोकहत ूकाशन, लखनऊwww.golwalkarguruji.org


अनुबमणकाूःतावना ...............................................................................................................३ूकाशकय.............................................................................................................. ११ पृभूिम ......................................................................................................... १०२ िशा और संःकार............................................................................................ १४२.१ माता क गोद म....................................................................................... १४२.२ जमजात ूितभा ......................................................................................१५२.३ एक मािमक ूसंग .....................................................................................१७३ काशी म अययन एवं अयापन ........................................................................ १९३.१ असीम ान-पपासा................................................................................... १९३.२ शाररक साधना........................................................................................२०४ जीवन क दशा ..............................................................................................२३४.१ ‘हमालय’ क पुकार’ ................................................................................. २४४.२ संघ म पदापण ........................................................................................ २७५ सारागाछ आौम म.........................................................................................३०५.१ गु क खोज म........................................................................................ ३१५.२ दा महण ............................................................................................. ३४५.३ कु छ सुखद संःमरण ..................................................................................३८५.४ कमेऽ म पदापण .................................................................................... ४१६ जीवन काय का िनधारण ................................................................................. ४३६.१ संघ-संःथापक.......................................................................................... ४३६.२ एक अनुपम काय-पित का वकास ............................................................ ४५६.३ ौी गुजी – जीवन काय का िनय .............................................................४६६.४ डाटर जी का यापक आकलन ...................................................................४९६.५ मजागत-सेवाभाव.................................................................................... ५२७ सरसंघचालक क दाियव क ःवीकृ ित ............................................................... ५४७.१ उरािधकार का चयन............................................................................... ५४७.२ डाटर जी क वरासत ............................................................................५७www.golwalkarguruji.org


७.३ जीवन काय के अनुप यव परवतन ..................................................... ६१८ ररंजत देश वभाजन.....................................................................................६४८.१ परःथित का आहवान.............................................................................. ६५८.२ ‘१९४२’.................................................................................................... ६७८.३ ौी गुजी क यापक सोच ......................................................................... ६९८.४ रा के संकट क घड़ म ............................................................................७१८.५ देश वभाजन के कगार पर ........................................................................ ७३८.६ ःवयंसेवक क ऐितहािसक भूिमका ..............................................................७५८.७ ौी गुजी का तेजःवी उदाहरण...................................................................७७८.८ एक वर सहकार का वेषण .................................................................. ७९८.९ अतम सय नहं : ौी गुजी ...................................................................८०८.१० ौी गुजी क सतक ता ............................................................................८०९ गांधीजी क हया: संघ वरोधी अिभयान ............................................................ ८४९.१ अमृतभरा दय ........................................................................................ ८४९.२ राीय सामंजःय क आवाज........................................................................८८९.३ अन परा का ूारंभ .............................................................................. ९०९.४ कारागार बना यान मंदर ..........................................................................९३९.५ ‘वःतृत कारागार’ ..................................................................................... ९५९.६ याय क माँग......................................................................................... ९७९.७ सरकार क अयाचार नीित ....................................................................... १०११० सयामह-पव क साथक फलौुित .................................................................. १०४१०.१ ‘अधम से धम’ का संघष ....................................................................... १०४१०.२ सरकार क आँख खुलने लगीं...................................................................१०६१०.३ ूितबध अचानक य हटाया गया? ........................................................ ११११०.४ सरकार ने भी ःवीकारा...........................................................................११४१०.५ गृहमंऽी ने भी ःवीकारा ......................................................................... ११५११ ःवागत पव: अचूक मागदशन ....................................................................... ११७११.१ ूखर राीय ..................................................................................... १२०११.२ भीषण घड़ म शांित क मूित................................................................. १२२www.golwalkarguruji.org


११.३ लआय पर सतत ............................................................................. १२४१२ आपदमःत के आशा ःतंभ .......................................................................... १२९१२.१ जनश को आवाहन............................................................................ १२९१२.२ असम म भूकप .................................................................................. १३३१२.३ विभन परःथितय म........................................................................ १३४१२.४ भारतीय जनसंघ का उदय......................................................................१३५१२.५ चुनावी कोलाहल से दरू .......................................................................... १३६१२.६ चुनाव परणाम के परूेआय म............................................................... १३८१२.७ हमारा वोट कसे ?................................................................................ १३९१२.८ वापस न बुला सकने का दंूभाव ु ........................................................... १३९१२.९ दो अ-सय ....................................................................................... १४०१२.१० एकदलीय तऽ कसी भी आवरण म ःवीकाय नहं......................................१४११२.११ हदू-वरोधी थैली के चटे-बटे ............................................................. 142१२.१२ उिचत चयन के िलए............................................................................. 142१३ ःवदेशी और गो-रा अिभयान...................................................................... 144१३.१ ःवदेशी भाव जागरण ............................................................................ 144१३.२ बातकारय के ूित ........................................................................... 148१३.३ साधुओं के सम ................................................................................. 149१३.४ ऐितहािसक हःतार संमह ..................................................................... 151१४ सजग रा ूहर......................................................................................... 162१४.१ चुनावी जय-पराजय के परे ..................................................................... 162१४.२ भाषावार राय-रचना............................................................................. 167१४.३ पंजाब के संदभ म................................................................................ 169१४.४ गोवा मु के समय ............................................................................. 172१४.५ कँमीर वलयन ................................................................................... 175१४.६ डॉ.मुखज का बिलदान .......................................................................... 178१४.७ ईशाय भारत ...................................................................................... 179१४.८ राजनीितक ेऽ म समवय ................................................................... 181१४.९ पतृ-वयोग ......................................................................................... 183www.golwalkarguruji.org


१५ य से बड़ा काय..................................................................................... 185१५.१ ५१व जमदन का अपूव संदेश ............................................................... 185१५.२ डॉ. अंबेडकर ारा बौ मत क दा ....................................................... 191१५.३ ॄदेश के ूमुख से .............................................................................. 194१५.४ अमेरका से अपेा ............................................................................... 196१६ यु कालीन दशा-दशन ............................................................................... 200१६.१ ूेरणाःथान का िनमाण.......................................................................... 200१६.२ एक अपूव मधुर िमलन के ि ................................................................. 203१६.३ चीन के आबमण के सदभ म............................................................... 206१६.४ महाराजा का ूेरक सदेश...................................................................... 215१६.५ सरकार िनणय क पऽ म ूितबया ....................................................... 217१६.६ आबामक भूिमका हो............................................................................. 217१७ राीय पुनजागरण के विभन काय के िलए मागदशन..................................... 223१७.१ ौिमक ेऽ म ..................................................................................... 231१७.२ कु छ ू व उर.................................................................................. 233१७.३ राजनीितक ेऽ के कायकताओं के िलए.................................................... 235१७.४ िशा ेऽ के बारे म ............................................................................ 237१७.५ वैक हदमंच का शुभारंभु .................................................................. 243१७.६ परष के ूमुख सूऽ ............................................................................ 248१७.७ ौी गुजी ने भी जयघोष कया............................................................... 251१८ क सर क अशुभ छाया ................................................................................. 256१८.१ शयबया........................................................................................... 260१८.२ िनयबम फर से ूारभ ...................................................................... 264१८.३ पूव पाकःतान म अयाचार के समय..................................................... 271१९ अंितम अयास वग .................................................................................... 276१९.१ यापक िचंतन मंथन............................................................................. 278२० महाूयाण ................................................................................................. 287२१ बादल से िघरा सूय .................................................................................... 299२१.१ हदव का जागितक दशनु ................................................................... 299www.golwalkarguruji.org


२१.२ सामाजक ववाद से परे........................................................................ 301२१.३ सवसमावेशक ................................................................................ 302२१.४ समम हद जीवन ू - ......................................................................... 304२१.५ चुनाव के बारे म चेतावनी .....................................................................३०७२१.६ वरोिधय के ूित भी स-भाव ............................................................... ३०९२१.७ स-गुण क उपासना कर...................................................................... ३१२२२ रा क ौांजिल ....................................................................................... ३१४२२.१ नेताओं के ौासुमन.............................................................................३१५२२.२ समाचार पऽ क ौाजिल ...................................................................३१७२३ ःनेहल मागदशक ......................................................................................३२३२३.१ समाज के साथ एकरस, एकप ...............................................................३२३२३.२ मतभेद होने पर भी मनभेद नहं .............................................................३२६२३.३ परवार का ह भाव.............................................................................. ३२७२३.४ अदय आमचेतना ..............................................................................३३०२३.५ आमवेषण क .......................................................................... ३३१२३.६ संघ नेतृव क अभंग धारा ....................................................................३३२२३.७ कायमनता ह जीवन ...........................................................................३३४२३.८ वळादप कठोराण मृदिन कु सु ू मादप ....................................................... ३३५२३.९ िनय-िनयिमत संःकार पर जोर .............................................................३३६२३.१० जगमऽ ............................................................................................३३८२३.११ गांधी जी का ौापूवक ःमरण ...............................................................३३८२३.१२ बहमुखी ूितभा ु ....................................................................................३४०२३.१३ मूल काय पर एकाम .......................................................................३४३परम पूजनीय ौी गुजी का जीवनपट.................................................................... ३४४ौी गुजी क जमपऽका .....................................................................................३४८२४ परिश-१ .................................................................................................३४९२५ परिश-२.................................................................................................३५१२५.१ गुजी मेरे मरज थे..............................................................................३५१२५.२ उकृ हद...................................................................................... ३५२www.golwalkarguruji.org


२५.३ दैदयमान गुणावली ............................................................................ ३५३२५.४ राजनैितक दशनकार............................................................................. ३५४www.golwalkarguruji.org


१ पृभूिमराीय ःवयंसेवक संघ के जनक ःव. डॉ. के शव बिलराम हेडगेवार ने िनरतर 15 वषतक अवराम परौम करके संघ को अखल भारतीय ःवप दया। 1940 के संघिशा वग म भाग लेने हेतु आये कायकताओं के सम अपना अंितम भाषण देते हए ुडॉटर जी के उ-गार थे क म यहां हदू रा का लघु प देख रहा हं। ू बाद म 21जून 1940 को डाटर जी ने ौी माधव सदािशव गोलवलकर उपाय ौी गुजी केकं ध पर संघ का सारा दाियव सपकर इहलोक क अपनी याऽा समा कर सबसेबदा ली।डाटर जी के बाद ौी गुजी संघ के ितय सरसंघचालक बने और उहने यहदाियव 1973 क 5 जून तक अथात लगभग 33 वष तक संभाला। ये 33 वष संघऔर रा के जीवन म अयंत महवपूण रहे। 1942 का भारत छोडो आंदोलन, 1947म देश का वभाजन तथा खडत भारत को िमली राजनीितक ःवाधीनता, वभाजनके पूव और वभाजन के बाद हआ ु भीषण रपात, हद ू वःथापत का वशालसंया म हदःथान आगमनु , कँमीर पर पाकःतान का आबमण, 1948 क 30जनवर को गांधीजी क हया, उसके बाद संघ-वरोधी वष-वमन, हंसाचार क आंधीऔर संघ पर ूितबध का लगाया जाना, भारत के संवधान का िनमाण और भारतके ूशासन का ःवप व िनितय का िनधारण, भाषावार ूांत रचना, 1962 म भारतपर चीन का आबमण, पंडत नेह का िनधन, 1965 म भारत-पाक यु, 1971 मभारत व पाकःतान के बच दसरा ूयु और बंगलादेश का जम, हंदओं के ुअहंदकरण ू क गितविधयाँ और राीय जीवन म वैचारक मंथन आद अनेकवधघटनाओं से या यह कालखड रहा। इस कालखड म परम पूजनीय ौी गुजी नेसंघ का पोषण और संवधन कया। भारत भर अखंड ॅमण कर सवऽ काय कोगितमान कया और ःथान-ःथान पर य- य को जोड़कर सपूण भारत मसंघकाय का जाल बछाया। डाटर जी ने सूऽप म संघ क वचार-ूणाली बतायीथी। उसके समम ःवप को अयंत ूभावी ढंग से ौी गुजी ने उ घाटत कया।वपुल पठन-अययन, गहन िचंतन, आयामक साधना व गुकृ पा, मातृभूिम केूित िनःवाथ समपणशीलता, समाज के ूित असीम आमीयता, यय को जोडनेक अनुपम कु शलता आद गुण के कारण उहने सवऽ संगठन को तो मजबूतबनाया ह, साथ ह हर ेऽ म देश का पररव वैचारक मागदशन भी कया। भारतका रा-ःवप, उसका सुिनत जीवन-काय और आधुिनक काल म उसके पुनथानक वाःतवक दशा के सबध म उनके ठोस व तयपरक वचार तो इस देश केिलए महान वचार-धन ह िस हए ह। ु इस ूकार उनका जीवन अलौकक एवं<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १०


ऋषतुय था। अयामक ी के महान ् योगी कतु समप भगवान क पावनअचना के िलए जनसामाय के बीच रहकर उनके हत क िचंता करनेवाला यहमहापुष एकांत-ूय तथा मु होने पर भी अपने दाियव और कतय-बोध से राऔर समाज-जीवन म अयंत सबयता का परचय देनेवाला वलण ूितभा का धनीथा। रा- जीवन के अंगोपांग क आदशवाद ःथित क टोह लेनेवाला वह यवथा। संघ के वशु और ूेरक वचार से राजीवन के अंगोपांग को अिभभूत कयेबना सश, आमवास से परपूण और सुिनत जीवन काय पूरा करने के िलएसम भारत का खड़ा होना असंभव है, इस जद और लगन से उहने अनेककायेऽ को ूेरत कया। व हंद ू परष, ववेकानंद िशला ःमारक, अखलभारतीय वाथ परष, भारतीय मजदर ू संघ, वनवासी कयाण आौम, िशशु मंदरआद ववध सेवा संःथाओं के पीछे ौी गुजी क ह ूेरणा रह है। राजनीितक ेऽम भी डॉ. ँयामाूसाद मुखज को उहने पं. दनदयाल उपायाय जैसा अनमोल हरासपा। ताकािलक संकट के िनवारणाथ समय-समय पर िभन-िभन सिमितय कागठन कर उह काय-ूवृ कया। ःवयं को कसी भी आस अथवा ईषणा का कभीकोई ःपश तक नहं होने दया। इसीिलए ौी गुजी के वैचारक मागदशन कराजीवन पर एक यापक एवं अिमट छाप पड़ है। राीय वचार, जीवन ी औरजीवन िना का कयाणकार वरदान जन लोग ने ौी गुजी के कायकाल म महणकया ऐसे सहाविध लोग आज देश भर म कायरत ह। अराीय और दोषपूण वचारूणाली से पूवकाल म ूभावत लोग अपने ॅम का िनवारण होने के कारण संघ कवचारधारा से जुड़ते जा रहे ह। उचतम शासकय ःतर से संघ के व लगाये गयेआरोप भी िमया और िनराधार साबत हए ह। वैसे ह ःवाथ साढ़ राजनीितुारा संघ को बदनाम करने हेतु कया जानेवाला अपूचार भी िनंूभावी होकरिशिथल पड़ता गया है। यह नहं अपूचार करनेवाले लोग ह जनता क िनगाह सेउतरते गये और अपनी वासाहता खो बैठे।कतु ौी गुजी वरोध क जरा भी परवाह न करते हए ु िनभयता से अपने अितूाचीन सांःकृ ितक रावाद का वचार जनता के बीच ूःतुत करते रहे। ौी गुजी नेके वल कहा ह नहं बक वशु रािना रखने वाले सह य खड़े कये, यहउनक वशेषता थी। अपूचार के कारण ौी गुजी अनेक बार ववाद का वषय बने।उनके ारा ूितपादत अनेक मत को वकृ त प म ूचारत कर राजनीितक लाभउठाने का भी वरिधय ारा ूयास कया गया। कं तु घृं घृं पुनरप पुनः चदनंचा गंधम ् के याय से ौी गुजी कभी वचिलत या ूुध नहं हए। ु उहने अपनाःतर बनाये रखा। उनके िनमल मन म कभी ेषभावना ूवेश नहं कर सक। उहनेकभी कसी का बुरा नहं चाहा। हद ू जीवन-वचार और उस वचार के मूत ूतीक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११


ःवप हदरा के पुनथान के उेँय से वे कभी डगे नहं। यवहार म अयंतुःनेहशील ौी गुजी िसात के मामल म अयत आमह थे। आमवःमृित अथवाआम-वंचना क ओर ले जोनेवाला अथवा रा क ूिता को ठेस पहँचाने वाला कोईुसमझौता उह ःवीकार नहं हआ। ुऐसे यव के ूित लोग म जासा पैदा हो, यह ःवाभावक ह है। ौी गुजी कोकक रोग से जजर अपना शरर यागे लगभग 24 वष हो रहे है, फर भी संघःवयंसेवक के अंतःकरण म ौी गुजी क अनेक ूेरक ःमृितयाँ आज भी ताजा ह।इतना ह नहं, तो पूजनीय ौी गुजी ारा समय-समय पर एक िा के प म जोवचार य कये गये उनका भी उकटता ले ःमरण कराने वाली परःथित आजदेश म िनमाण हो रह है। ूयेक देश का समाज और उसक गुणवा ह राीयगौरव का आधार माने जाते है। के वल शासन सा म परवतन से यह गुणवािनमाण नहं होती। सातय से चारय िनमाण करनेवाले गुण का संःकार करानेवालीयवःथा का होना अयावँयक है, यह वचार ौी गुजी आमहपूवक रखते थे। इसकअनुभूित हम आपातकाल के बाद के कालखंड म हई। सभी काय और परवतन काुके िबद य ह है। य यद अछा नहं रहा तो अछ योजना व यवःथाुभी वह बबाद कर डालता है। भारत के संवधान के वषय म जो ववाद उठ खड़ा हआ ुहै, उस संदभ म ौी गुजी ारा मानवी गुणवा पर बल दये जाने का वचार हअयंत साथक ूतीत होता है। डाटर हेडगेवार और ौी गुजी, इन दो कतृ ववानतथा येयसमपत महापुष के उरािधकार के प म सरसंघचालक पूजनीयबालासाहेब देवरस ने भी संघ को सपूण समाज के साथ समरस बनाने क दशा मसेवाकाय पर अिधक बल देकर उलेखनीय काय कया है। संघ के वरोिधय ने इनतीन म वैचारक िभनता का आभास िनमाण कर ॅम फै लाने का ूयास कया कं तुःवयं बालासाहेब ने इस ॅामक ूचार का अनेक ूसंग पर ःप शद म िनराकरणकया। वे कहा करते क ौी गुजी का चयन डाटर जी ने ःवयं कया था और उसीतरह ौी गुजी ने मेरा चयन कया है, बस यह एक तय हमारे बीच वैचारकिभनता का ॅम फै लानेवाल को पूण और सश उर है।ौी गुजी का समम चरऽ िलखना हो तो वह एक बहत बडा मंथ हो जायेगा। उनकेुवचार का संकलन ह करना हो अथवा उनके चुने हए पऽ को ह ूकािशत करना होुतो सैकड़ पृ भी कम पड़गे। वैसे देखा जाए तो ौी गुजी के संघजीवन म उनकािनजी अथवा वैयक कु छ था ह नहं। जस तरह डाटर जी ने यगत घर-गृहःथी बसाने का कोई वचार नहं कया, उसी ूकार ौी गुजी ने भी अपनीयगत गृहःथी नहं बसायी। संघ को, पयाय से रा को अपना परवार माना।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १२


उनके ईर-िन जीवन म वरा समाजपुष उनका आराय देव बना और जीवन भरवे उसी क िनंकाम सेवा भभाव से करते रहे। गीता के कमयोग को अपने जीवनम उतारा। संघवचार और अपनी मातृभूिम को गौररव ूा कराने के िलए ूभावीूय क पराकाा ह उनके 67 वषय जीवन का अिभन अंग रहा। जस देह सेयह सेवा नहं हो सकती उस देह के ूित मोह उनके मन को कभी ःपश नहं करपाया। कक रोग अपना काम करेगा, कं तु मुझे अपना अंगीकृ त काय करते रहनाचाहये। ऐसा वे हँसकर कहा करते थे। ौी गुजी का जीवन वरागी कतुकतयूवण था। ऐसे रासमपत महान ् कमयोगी जीवन के बारे म जासुओं कासमाधान करने तथा रा क नयी पीढ़ को यगत तथा समाज जीवन के हर ेऽम िचरंतन ूेरणा ोत के प म वमान एक महान ् आदश जीवन का परचयकराने के उेँय से ह यह एक ूयास है।∗<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १३


२ िशा और संःकारकई लोग ऐसे होते है जह धनी और कितमान परवार म जम लेने के कारणजमतः महानता का परवेश ूा होता है। राीय ःवयंसेवक संघ के पछले तीनसरसंघचालक के घरान को इस ूकार क महानता क पृभूिम ूा नहं थी। ौीगुजी का जम अयंत सामाय ःथितवाले परवार म हआ। ु ौी गुजी मूलतयाककण के गोलवली नामक गाँव के पाये घराने के थे। पाये अथात ् पुरोहतयवसाय से सब। यह घराना ककण से ूथम पैठण आया और बाद म नागपुरःथानांतरत हआ। ु पूजनीय ौी गुजी के पतामह ौी बालकृ ंण पंत नागपुर आये।इस ःथानांतरण से उनका पुरोहती-यवसाय से सबध टट ु गया इसिलये गोलवलकरपाये से के वल गोलवलकर उपनाम ह शेष रहा। ौी गुजी के पता ौी सदािशवरावको बचपन से ह पतृ-वयोग का आघात सहन करना पडा। अतः िशा अधूरछोडकर आजीवका चलाने के िलए उह बाय होना जड़ा। अनेक वष तक दरिता मगृहःथी चलाने क यातना का उह सामना करना पड़ा। नागपुर के कामठ म ह ौीगुजी के पता ौी सदािशवराव को डाक-तार वभाग म नौकर िमली। ौी गुजी कमाताजी नागपुर के ह रायकर घराने क थीं, नाम था लआमीबाई। यवहार म ौीसदािशवराव भाऊजी और ौीमती लआमीबाई ताई नाम से सबोिधत कये जाते थे।ताई- भाऊजी दपी को कु ल चार पुऽ-र ूा हए। ु कतु ूथम दो पुऽ एक-एकवष क आयु म ह काल के मास बने। जब तीसरा पुऽ हुआ तो उसका नाम अमृतरखा गया। कं तु अमृत भी आयु के पिहव साल म सनपात का िशकार होकर कालका मास बना।२.१ माता क गोद मौी गुजी अपने माता-पता क चौथी संतान के प म जमे। उनका जम माघकृ ंण एकादशी (वजया एकादशी) (दण म अमात मास होते है) वबम संवत ्1962 तथा आंल ितिथ 19 फरवर 1906 को तड़के साढ़े चार बजे नागपुर के ह ौीरायकर के घर म हआ। ु उनका नाम माधव रखा गया। परनेतु परवार के सारे लोगउह मधु नाम से ह सबोिधत करते थे। बचपन म उनका यह नाम ूचिलत था।ताई-भाऊजी क कु ल 9 संतान हई ु थीं। उनम से के वल मधु ह बचा रहा और अपनेमाता-पता क आशा का के ि बना। मधु जब के वल 2 वष का था तभी उनके पताौी सदािशवराव ने डाक-तार वभाग क नौकर छोड़कर िशक का पेशा अपनाया।अयापक क यह नौकर उह छीसगढ़ म सरायपाली नामक देहात म िमली।सरायपाली माम रायपुर से 90 मील और रायगढ़ से 60 मील क दर ू पर है। उन<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १४


दन यातायात का कोई साधन न होने से ऐसे ःथान पर जाने के िलये या तो पैदलचलकर या फर घोड़े पर जाना होता था। आज क परभाषा म हम जसे अयंतपछड़ा और आधुिनकता से कटा ेऽ कहते ह, ऐसे ेऽ म मधु को बचपन बतानापड़ा। कं तु यद कसी का जीवन उम बनाना हो तो ूितकु लता पर मात करनेवालीकु छ अनुकू लता भी ईर उसे ूदान करता है। हाँ, उसे धारण करने क मता उसय म होनी चाहए। यह मता ौी गुजी म बचपन से ह थी। और इसीिलएमाता-पता ारा कये गये सुसंःकार को वे शीयता से महण करते गये। भाऊजी जहाँःवािभमानी, ानदान म आःथा रखनेवाले एक सचरऽ िशक थे, वहं ताईजी एकअयंत धमपरायण सुगृहणी और आदश माता थी। मधु जब 2 वष का था तभी सेउसक िशा ूारंभ हो गई। भाउजी पढ़ाते और मधु उसे आसानी से कं ठःथ कराताजाता। ताईजी क शालेय िशा नहं हो पाई थी कं तु संःकारम कथाओं का वपुलभंडार उनके पास था। उस सारे ान- भंडार का लाभ उकृ ःमरणशवाले मधु नेउठाया। बचपन म कस ूकार के सुसंःकार उह ूा हए ु इसका उलेख आगेचलकर सरसंघचालक के नाते पुण म दये अपने एक भाषण म उहने कया था।उस भाषण म उहने कहा था – “बचपन का ःमरण होते ह मेरा मन अनेक मधुरःमृितय से भर उठता है। वे सार घटनाएँ मनः चुओं के सामने एक-एक करकेउभरने लगती ह। सुबह तड़के मुझे नींद से जगाया जाता। उसी समय मेर माँ एकओर अपने हाथ से घर का कामकाज करती थीं और अपने मुँह से कोई न कोई ःतोऽगान करती हई ईर का नामःमरण भी करती थीं। ताई के मधुर मंगल ःवर मेरेुकान म गूँजते। ूभात के शांत और ूसन ण म मधुर ःवर के कान म गूँजनेसे मेरे बाल मन पर कतनी गहर और पवऽ छाप पड़ होगी ? ”२.२ जमजात ूितभामाधव के बायकाल क अनेकवध घटनाएँ इस बात का वास दलाती ह क माधवम कु शाम बु, ान क लालसा, असामाय ःमरण श, अय के दःख दद के ुिनवारणाथ जूझने क वृ, सहनिशलता क पराकाा, िनरहंकारता और मन किनमलता जैसे गुण का समुचय बचपन से ह वकिसत हो रहा था। ूयेक गुण काआकषण व सीखने क तीो अिभिच भी माधव म दखलाई पड़ती थी। राीयःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक पद का दाियव ौी गुजी पर आया तब लोग कोउनक अमुय गुण-सपदा क पहचान वशेष प से हई। कं तु इन सारे गुण काुवकास और संवधन उनके छाऽ-जीवन म ह हआ ु था, यह बात उनके जीवन चरऽ सेःप होती है। उदारणाथ पठन-पाठन, अ-भुत ःमरण श और कं ठःथ करने ककला, हंद व अंमेजी भाषाओं पर समान ूभुव जैसे गुण का बजारोपण उनके<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १५


बायकाल म ह हो चुका था। ूाथिमक िशाकाल म ह उनके पठन-पाठन का दायराकाफ वःतार पाने लगा था। ववध ूकार क पुःतक को पढ़ने के ूित उनकाकाफ लगाव था। जब वे मायिमक िशा महण कर रहे थे तभी उनका आंलनाटककार शेसपीयर के सारे नाटक का पठन हो चुका था। अपने सहपाठय को वेइन नाटक क कथाएँ अयंत रोचक ढ़ंग से सुनाया करते थे। का म जब िशकपाय पुःतक पढ़ा रहे होते तब गुजी कोई दसर ह पुःतकू पढ़ रहे होते कं तु काम या चल रहा है इसक ओर भी उनका यान रहता। का म माधव के हाथ मअय पुःतक देखकर िशक ने सोचा क उसका यान पढ़ाई क ओर नहं है। अतःएक दन का म माधव को सबक िसखाने के इरादे से िशक ने पाय पुःतक कापाठ पढ़ रहे छाऽ को बीच म रोक कर आगे का हःसा पढ़ने का आदेश माधव कोदया। माधव ने बना हचक पाय पुःतक हाथ म ले ली और अपने वगबंधु ने जहाँसे पढ़ना बद कया था ठक उस वाय से अगला हःसा पढ़ना शु कर दया। यहदेखकर का के छाऽ और िशक चकत रह गये। माधव को सबक िसखाने कािशक का दांव वफल हो चुका था।ूाथिमक शाला मे ह भाऊजी अपने माधव को अंमेजी भी िसखाने लगे थे। माधव नेइस वषय म भी इतनी शीयता से ूगित क क जब ूाथिमक क चौथी का म थेतभी वे अपने नागपुर ःथत मामा को अंमेजी म पऽ िलखा करते थे। पताजी कनौकर हंदभाषी ूदेश म थी और बार-बार ःथानांतरण के कारण रायपुर, दग ु , खंडवाआद अनेक ःथान का पानी माधव को पीने को िमला। इस अविध म वे हंद भाषासे अछ तरह परिचत हो गये। मातृभाषा के नाते मराठ का ान तो उह था ह।अनेक ःथान पर वाःतय का एक परणाम यह भी हआ ु क िभन-िभन भाषा-भाषीलोग के सपक म वे आये। मन म संकु िचतता नहं रह और यह मानिसकता बनीक सभी भारतीय भाषाएँ अपनी ह ह। राीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक केनाते ौी गुजी को जीवन भर अनिगनत, असंय भाषण देने पड़े। उनका वृ वअयंत ओजःवी और ःफू ितदायक रहा करता था। इस वृ व-गुण का वकास भीशालेय जीवन से ह हआ ु था। वषय क पूण तैयार कर वृ व-ःपधा म ूथमबमांक का पुरःकार पाने का पराबम भी उह ने बचपन म कर दखाया था। खूबखेलना, खूब पढ़ना, िमऽ को यथासंभव मदद करना, नॆता बरतना, अपने जमेआनेवाले घरेलू काम खुशी से करना, अय लोग के सुख-दख ु से समरस होना, इसूकार शालेय जीवन का काल उहने साथक कर दखाया। भावी कतृ वसपनजीवन क नींव इसी कालखंड म रखी गई।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १६


ौी गुजी के पताजी ने एक बार कहा था क माधव एक बड़ा कतृ वशाली यबनेगा, यह तो उसके शालेय जीवन म ू उसक गुणवा से ह अनुभव होता था।कतु वह इतना महान ् बनेगा, यह कपना हमने नहं क थी। संतान म अके लामाधव ह बचा इसका भी अब मुझे कोई दःख ु नहं रहा, यक संघ ःवयंसेवक केप म हजार बचे ह मान हम पुऽ-प म ूा हए ह। यह कहते समय ौी भाऊजीुके चेहरे पर अपने अलौकक पुऽ के बारे म अिभमान ूकट होता और नेऽ धयता केआँसुओं से भर आते। कतु यह भी यान म रखना होगा क िनःपृहता, कतयिना,धमिना, परौमशीलता और ान क उपासना आद सारे गुण जो गुजी म ूकटहए ु वे उनके आदश माता-पता के ारा उन पर कये गये सुसंःकार के कारण हसंभव हए ु थे। इसका कृ ततापूवक उलेख ौी गुजी ने अनेक बार कया है। ौीभाऊजी क लगन और ढ़िनयी वृ क कपना एक घटना से आ सकती है।अयापन का यवसाय अपनाते समय भाऊजी ने के वल मैशक क परा ह उीणक थी। बीच म काफ कालखंड बीत चुका था। कं तु उहने ःनातक बनने क ठानी।मैशक होने ते बीस साल बाद इंटरमीडएट क परा म वे उीण हए और ःनातकुक उपािध महण करने के िलए उह और सात वष लगे। िशक क नौकर तोउहने पूण जमेदार के साथ िनभायी कं तु बाक बचे समय म वे ान-दान काकाय अवरत करते रहे। माताजी ताईजी तो िनय क इतनी पक थीं क 1934 मउहने ौी बाबाजी महाराज नामक एक सपुष के साथ ूयाग से आलंद तकलगभग 1 हजार मील क पदयाऽा क और ऽवेणी संगम के पवऽ गंगाजल से संतानेर क समािध का अिभषेक कराया। इस ूवास म एक दघटना म उनक सारुपीठ जल जाने से दाह वेदना होती रह परतु उसे सहन करते हए भी वे चलती रहं।ु२.३ एक मािमक ूसंगपताजी का जैसे-जैसे ःथानांतरण होता था वैसे-वैसे शालाएँ भी बदलती जाती थीं।माधव ने 1922 म चांदा (अब चंिपुर) के जुबली हाईःकु ल से मैशक क पराउीण क। भाऊजी क इछा थी क माधव मेडकल कालेज म ूवेश लेकर डाटरबने। इसीिलए भार आिथक तनाव को सहन करते हए उहने माधवराव को पुणेुःथत फयुसन कॉलेज क वान शाखा म अययन हेतु ूवेश दलाया। इंटर साइंसके बाद ह मेडकल कॉलेज म ूवेश िमल सकता था। कं तु इसी बीच मुबई सरकारने एक आदेश िनकालकर के वल मुबंई राय के िनवासी-छाऽ के िलये ह कॉलेज मूवेश सीिमत करने क घोषणा क। मयूदेश और बेरार उन दन मुबंई राय काघटक नहं था। इसीिलए तीन माह म ह माधवराव को अधूर िशा छोड़कर पुणे सेनागपुर लौटना पड़ा। माधवराव को डाटर बनाने का भाऊजी का सपना साकार नहं<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १७


ुूहो सका। नागपुर लौटने पर ईसाई िमशनर ारा संचािलत हःलॉप कॉलेज क वानशाखा म उहने ूवेश िलया और 1924 म इंटर क परा वशेष ूावय ूा करउीण क। कॉलेज जीवन के इन ूथम 2 वष म एक उकृ खलाड़ और मेधावीछाऽ के प म उहने याित अजत क। इस काल क एक संःमरणीय घटना है।ूाचाय गाडनर ने पढ़ाते समय बाईबल के एक ूसंग का संदभ ूःतुत कया। यहकॉलेज चूँक ईसाई िमशनरय ारा संचािलत था, अतः वहाँ बाईबल का अययनअिनवाय था। माधवराव ने बाईबल का बड़े यानपूवक गहराई से अययन कया था।उनक ःमरण श भी काफ तेज़ थी। सरसंघचालक बनने के बाद भी वे अपनेभाषण तथा वातालाप म बाईबल के अनेक सदभ तथा ईसा मसीह के जीवन कअनेक घटनाओं और वचन को उ-धृत कया करते थे। का म ूाचाय गाडनर ारादया गया सदभ गलत है ऐसा ूतीत होते ह माधवराव ने उठकर उह टोका औरकहा, महाशय आप गलत सदभ दे रहे ह। वहाँ जस सदभ क आवँयकता थी उसेमुँहजबानी उ-धृत कर सुनाया तो ूाचाय महोदय हका-बका रह गये। कतुबाईबल का मुझसे अिधक ान इस वाथ को है, यह बात ूाचाय महोदय कोकै से मंजूर होती ? सो उहने तुरत बाईबल क पुःतक मंगवायी और ःवयं उससदभ क छान-बीन क। उह यह जानने म देर नहं लगी क छाऽ माधवराव ने जोकहा था वह ठक था। पुःतक म मूल सदभ म हू-ब-ह वह िनकला जैसे माधवरावूने उ-धृत कया था। अपनी भूल को खलाड़-वृ से ःवीकार कर ूाचाय महोदय नेमाधवराव क पीठ थपथपायी। इन दो वष के कॉलेज जीवन म अनेक बार का सेअनुपःथत रहकर भी माधवराव अय पुःतक का पठन कया करते थे। शाला हो याकॉलेज, के वल परा उीण होने के िलए ह अययन करने क उनक मनोवृ नहंथी। ानाजन क भूख िमटाने के िलए उनका पठनकाय अहोराऽ चलता रहता था,कतु इसके बावजूद शालेय अथवा कॉलेज के अययन क उपेा भी उहने कभीनहं क। सुवयात अंध वंशीवादक ौी सावलाराम के साथ उनक गाढ़ िमऽता थी।अतः इसी कालखंड म वंशीवादन क कला भी उहने हःतगत कर ली थी।इंटरमीडएट क परा उीण होने के बाद माधवराव जी के जीवन म एक नये औरदरगामी ू परणाम वाले अयाय का ूारंभ हआ। यह अयाय बनारस हंदववालय म ूवेश के साथ शु हआ। ु∗<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १८


३ काशी म अययन एवं अयापनबनारस म महामना पं. मदनमोहन मालवीय ारा ःथापत तथा उनके अनुपम कतृ वता ूतीक हद ू ववालय उन दन देशभर के युवक को अपनी ओर आकषतकरनेवाला एक अनोखा ूकप था। 1916 म इस ववालय क ःथापना हई और ुानाजन क भावना से सभी ूांत और विभन भाषा-भाषी हजार छाऽ ने उसमूवेश िलया। यह कहना अनुिचत नहं होगा क मालवीयजी ने ूाचीन गुकु ल पितके आधार पर ह िशा का यह आधुिनक आौम खड़ा कया था। मालवीयजी का इसिशा संःथान क ःथापना के पीछे मूल उेँय हद ू दशन, वा और कला कयोित पुनः ूकािशत करने और उसका लाभ नयी पीढ़ को िनरतर उपलध करानेका ह था। यह ववालय सवाग परपूण हो, इस से मालवीयजी ने काफपरौम कया। ौी माधवराव गोलवलकर ने बी. एस-सी. के छाऽ के प म इसववालय म ूवेश िलया। एक लाख मंथ के संमह से यु मंथालय, रय वनौीसे आछादत परवेश, गंगा का पवऽ तट, वातावरण क िनमलता औरःवाःयूदता, सुसजत ूयोगशाला, वशाल बडांगण, उकृ यायामशाला आद सेयु सपूण परसर माधवराव जी को खूब भाया। 1926 म उहने बी. एस-सी. कऔर 1928 म ूाणशा वषय म एम. एस-सी. क पराएँ ूथम ौेणी म उीणकं। ववालयीन चार वष का कालखंड उहने कस तरह यतीत कया इसे अगरएक वाय म बताना हो तो यह कहा जा सकता है क इन चार वष म माधवराव नेमनःपूवक अययन तो कया ह, कतु साथ ह अपनी अतःूवृ के अनुसार वेआयामक जीवन क ओर अिधक झुके । इस कालखंड म ववालय के मंथालयका जतना उपयोग माधवराव ने कया उतना शायद ह कसी अय छाऽ ने कयाहो। उहने संःकृ त महाकाय, पााय दशन, ौी रामकृ ंण परमहंस व ःवामीववेकानंद क ओजःपूण एवं ूेरक वचार-संपदा, िभन-िभन उपासना पंथ के ूमुखमंथ तथा शाीय वषय के अनेक मंथ का आःथापूवक पठन कया।३.१ असीम ान-पपासापुःतक पढ़ने के ूित उनका लगाव इतना जबरदःत था क बी. एस-सी. के अतमवष म एक लबी बीमार क अवःथा म भी उनके हाथ म सदा कोई न कोई पुःतकबनी रहती थी। शरर म तेज बुखार रहते समय भी उनका पढ़ना जार रहता था।उनक पढ़ने क गित भी काफ तेज होती थी। बड़े-बड़े मंथ भी एक दन म वे पूरापढ़ लेते थे। पढ़ने के िलए देर रात तक जागना तो उनक आदत बन गई थी। अनेक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १९


बार तो यह देखा गया क सायंकाल खेल के मैदान से लौटने पर भोजन महण करनेके पात ् वे पढ़ने के िलए बैठते तो सुबह होते तक पढ़ते रहते। फर थोड़ा सा वौामलेकर दसरे दन के सारे बयाकलाप के िलए वे ूसनिच उसाह के साथ तैयार होूउठते। उनके कमरे म यऽ-तऽ पुःतक बखर पड़ दखाई देतीं। उनका झुकावआयामक जीवन क ओर था, इसिलये नागपुर म हःलॉप कॉलेज म पढ़ते समयह वे हद शामंथ का अययन करने नील िसट हाईःकू ल के मुयायापक ौीूमुले के यहाँ जाया करते थे। काशी म अयाम चचा, वेदात मंथ का पठन-िचंतन-मनन और मालवीय जी के सहवास का उनके जीवन पर गहरा ूभाव पड़ा। थोड़-बहत ुपूजा-अचना, यान-धारणा, आसन, ूाणायाम, यगत ऐहक जीवन के ूितउदासीनता, सम के सुख-दःख का आमीयतापूण वचार आद के प म यह ूभावुगोचर होने लगा। यह भी संभव है क इसी कालखंड म अपने भावी जीवन केसबध म उनके मन म वचार उठने लगे ह। ववालयीन छाऽ-जीवन का यहकालखंड अयंत आिथक संकट का सामना करते हए उहने यतीत कया कतुुउनके चेहरे पर कभी यमता या िचंता के भाव कसी ने नहं देखे।३.२ शाररक साधनाौी गुजी के संघमय उरायुंय का ह के वल जह परचय है उह उनके पूवायुंयक कु छ बात बहत आयजनक ूितत हगी। यह सभी को वदत है क ौी गुजीुका आहार अयंत अप था। वह कतना अप था इसक हम कपना नहं करसकते। एक घटना से इसका अनुमान लगा सकते ह। कलका का ूसंग है। वहाँ केएक सुूिस डॉटर से ौी गुजी का वैकय परण कराया गया। डॉटर कोअनुभव हवा ु क सामायतः ःवःथ होने पर भी रचाप बहत ु कम था। इसिलएडाटर ने आहार के बारे म पूछताछ क। आहार के ववरण पर उहने कै लरज़ काहसाब लगाया और उह आय का धका लगा। वे एकदम कह उठे, “यह कै से संभवहै ? इतनी कम कै लरज पर आप कै से जीवत रह सकते है ? I can’t believe youare a living man! ” इस पर गुजी व सभी हँस पड़े। “ौी गुजी यंग से बोले,परतुम हँ यह तो सय है नाू? ” जीने के िलए जतना आवँयक है उतना ह वे अनसेवन करते थे। बलकु ल सामाय जन के समान वे सीधा-सादा जीवन बताते थे। वेिमताहार भी थे। मंगलूर के एक आयुवद पंडत के अनुसार, जो ःवयं भी एक मानेहए ु योगसाधक थे, “ौी गुजी के शरर क यौिगक ःथित ऐसी थी क उसे आहारक आवँयकता ह कम लगती थी।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २०


परतु कशोरावःथा और तणाई म ौी गुजी ने भरपूर यायाम कया था। उनकाआहार भी अछा रहता था। जब उनका काशी म वाःतय था तब तैरकर गंगा पारकरना उनका अयंत ूय खेल था। यायाम शाला म जाकर लाठ-काठ, दड-बैठकआद यायाम करते थे। मलखंभ पर कये जानेवाले यायाम का उहने अयास कया था और उसम उहने ूवणता ूा क थी। एक बार यायामशाला म उहनेएक बंगाली पुवक को मलखभ क ओर देखते हए ु खड़ा पाया। गुजी ने उससे पूछा,“ या देख रहे हो ? मलखभ सीखना है या ? ” और लंगोट कसने को कह कर उसेमलखभ के पाठ िसखाये। कॉलेज म पढ़ानेवाले िशक का यह कौशय देखकर वहलड़का आयचकत हो गया। यायाम से ौी गुजी का शरर सुढ़ बन गया था।आगे संघ-काय के िलए जो अिनयिमत जीवन उह जीना पड़ा, उसम पूव आयुंय केइन अयास और बाद क योगसाधना का उह अपने आपको कायम रखने के िलएबहत उपयोग हआ।ु ुएक समय उनका आहार भरपूर था और कभी-कभी वे बाजी लगाकर भी खाना खातेथे, यह कसी को बताया तो उस पर कोई वास नहं करेगा। एक बार भरपेट भोजनकरने के पात ् फर से उतना ह भोजन करने क वे हमत रखते थे। नागपुर केिनकट के काटोल ःथान क घटना है। वहाँ के एक िमऽ के यहाँ ौी गुजी गये थे।भोजन करके ह वे बाहर िनकले थे। जस िमऽ के यहाँ गये थे उनके यहाँ भोजन कासमय था। िमऽ और उनक पी ने बहत आमह कया तबु वे भोजन के पल परबैठ गये और सपूण तैयार भोजन समा कर डाला। ज़ब िमऽ क पी फर से रोटबनाने के िलए आटा माँड़ने लगी तब ‘अब नहं चाहये’ कह कर हाथ धोने के िलएउठ खड़े हए। ु यह कहने क जरत नहं क यह घटना एक अपवाद ह थी।ौी गुजी वािथकाल म ान के भोा थे। वािथय या िशक ारा ‘कुं जी’ काउपयोग कया जाना उह बलकु ल पसद नहं था। एक बार एक िशक ने ‘कुं जी’का उपयोग कर जो अथ बतलाया वह गलत था। ौी गुजी उठ खड़े हए और उहनेुिशक के यान म ला दया क उहने गलत अथ बतलाया है। िशक ने कुं जी काआधार लेकर अपने को सह ठहराने का ूय कया। परतु ौी गुजी ने जोर देकरबतलाया क, “ ऐसा हो तो ‘कुं जी’ म दया हआ अथ भी अशु है।ु ” इतना कहकर हवे के नहं, अपतु आगे कहा, ‘कुं जी’ से पढ़कर िसखानेवाले िशक के हाथ के िनचेपढ़ने क मेर बलकु ल इछा नहं। ” यह ूकरण मुयायापक के पास ले जायागया। अथ गलत बताया गया है यह उनके यान म आया। उहने उस िशक के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २१


पास से वह वषय हटा िलया पर ौी गुजी को बतलाया क “का म िशक काऐसा अपमान नहं करना चाहए। ”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २२


४ जीवन क दशाएम.एस-सी. क परा उीण करने के पात ् ौीमाधवराव ने शोध-ूबध िलखनेहेतु ‘मःय-जीवन ’ का वषय चुना और इस वषय के वशेष अययन हेतु वे मिासके मःय संमहालय म जाकर रहे। कं तु उनका यह शोध-काय पूरा नहं हो पायायक उसी समय उनके पता भाऊजी सेवािनवृ हए। अपने इस पुऽ को मिासुवाःतय के खच हेतु पैसा भेजना उनके िलए असंभव हो गया। इसिलए अपना शोधकाय अधूरा छोड़कर एक वष म ह उह नागपुर लौटना पड़ा। अययन का सवालएक ओर रख द तो भी माधवराव के मन म उस समय जो वचार उफन रहे थेउनका संदेश मिास के वाःतय म कये गये उनके पऽ-यवहार से िमलता है। उसमकाशी म चार वष के वाःतय म हए ु संःकार, देश क घटनाओं का तण मन परहोनेवाला ःवाभावक परणाम, जीवन क साथकता के िलए कसी िनत माग काचयन हेतु मन म चल रहा संघष आद बात का ूकटकरण हआ है। ुमाधवराव केजीवन का यह महवपूण अयाय था। इस कावखंड म उनके मन म उठ रहे वैचारककोलाहल को उनके भावी जीवन को िमली दशा का आकलन करने क ी सेसमझना होगा। इसम एक मौिलक महव क बात यह है क एक वशेष शोध-कायम लगे, िशणोर यावहारक जीवन क देहलीज पर खड़े इस युवक के मन मयगत महवाकांा अथवा सुख-सुवधाओं से भरा जीवन बताने क भावनायकं िचत भी ूवेश नहं कर पायी। सामायतः यह आयु नौकर, पैसा, घर-गृहःथीबसाने के सपन म रममाण होने क मानी जाती है। कतु माधवराव ने अपने िमऽके नाम जो वःतृत पऽ इस कालखंड म िलखे, जो सामायतः 14-15 पृ वाले होतेथे, उनम अपने ःवयं क यगत आशा-आकांाओं के सबध म जरा सा भीउलेख नहं होता था। पऽ क वषयवःतु मुयतः सैातक वचार और जीवन कसाथकता के सह माग सबधी मन म उठनेवाले वचार के वेषण से संबंिधतहोती थी। माधवराव के मन म चल रहे वैचारक संघष और वचार क दशा जाननेके िलए उन पऽ के कु छ अंश यहाँ उ-घृत करना उिचत होगा।भगतिसंग, सुखदेव और राजगु ने अयाचार सांडस क हया कर द। इस समाचारपर अपनी ूितबया य करते हए माधवराव जनवरु1929 के ूथम साह मअपने िमऽ बाबूराव तेलंग को सबोिधत पऽ म िलखते ह- “लाहौर का वःफोट सुना।अतीव धयता अनुभव हई। ु आंिशक प म य न हो, उम वदेशी शासक ाराकये गये राीय अपमान का परमाजन हआ। यह संतोष क बात है। मने आपकेुसाथ अनेक बार वबंधुव, समता, शांित आद वषय पर चचा क है। मार-काट,उपिव, वेष, बदला लेने क दभावना ु आद का िनषेध कर आपको दोषी ठहराया है,<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २३


आपसे झगड़ा कया है। वह म इस ूकार का पऽ िलख रहा हँ ू, यह देखकर आपकोआय होगा। एक ओर बदला लेने क कामना और तणाई का जोश तो दसर ओर ूवेदात का शांत कतु अचल सूऽ। इन दोन के बीच उस समय इतना भीषण संघषमन म चल रहा था क म वचिलत हो उठा। मन अशांत हो गया। इसी अवःथा मकापई दन गुजरे और दो-तीन बार शरर म वर चढ़ आया, खांसी ने जोर पकड़ा,काफ दबलता ु महसूस हई ु , आँख खंची-खंची रहने लगीं। मेर शाररक यािधयाँलोग को नजर आने लगीं तो मःयालय के िनरक ने जबरन मुझे डाटर केसामने इलाज हेतु ूःतुत कर दया। आगर सावधानी नहं बरती तो रोग गंभीर पधारण कर सकता है, यह चेतावनी मुझे डाटर ने द। म घबराया तो नहं, परइजेशस आद इलाज तुरत शु कर दये।”यह बमार दो माह तक चली। कं तु उससे मु होते ह माधवराव के मन क बेचैनीभी शांत हो चुक थी। अब उह अपने जीवन-काय का ःप बोध हो चुका था। उसीपऽ म उहने िलखा है- “ लोग म राीय चेतना जगानी होगी। हंद और मुसलमानूके बीच वाःतवक सबध का ान करना होगा। ॄाण-अॄाण के बीच के वादको खम करना होगा। म कोई बड़ा नेता अथवा कायकता नहं हँ। कं तु हरेक को इसूकाम म सहयोग देना ह चाहये। ”राीय ःवयंसेवक संघ से सपक ःथापत होने से पूव ौी माधवराव गोलवलकर जीके मन को ःवतंऽ प से दशाबोध हआ था। परःथित के िनरणुऔर िचंतन सेएक िनःःवाथ, िनरपे, जासु यासंगी, िनमलिच, अयामूवण, सैकड़ मथ कोपढ़कर आधुिनक व ूाचीन शा के तुलनामक अयेता, महावालयीन देहलीज कोपारकर िनकले इस जागृत युवक को हआ ु यह कय-बोध था। लगभग 11 वष बादयह युवक डाटर हेडगेवार जी ारा ूारंभ राीय चेतना जगाने के काय क धुराअपने कं ध पर लेकर 33 वष तक अखंड-अयाहत कु शलतापूवक संभालता है; इसमआय य होना चाहए ? उसक मनोभूिमका पूव से ह तदनुकू ल थी।४.१ ‘हमालय’ क पुकार’ऐसा दखाई देता है क महावालयीन देहलीज को पार करने के बाद भी 5-6 वषतक माधवराव के मन म उठा तूफान पूर तरह शांत नहं हो पाया था। शांत वअवचल हमालय का आकषण उह इस समःयामःत जीवन से दर एकांत म जाकरूमो क साधना करने के िलए बार-बार ूेरत कर रहा था। ववाहब होकर अय<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २४


लोग के समान गाहःथ जीवन बताने क कपना तक उनके मन को ःपश नहं करपाई। वन म के वल यह दवधा थी क एकांत म रहकर मो साधना क जाए अथवाुसामाय जन के बीच रहकर उनक समःयाओं का समाधान कया जाए। अपने भीतरपरःपर वरोधी ूतीत होनेवाली वृय का यह खेल माधवराव एक संशोधक कअिल भूिमका से देख सकते थे, उसका वेषण कर सकते थे।उनका ववेक पूणतया जागृत था। अपने िमऽ ौी तेलंग को द. 20 माच 1929 कोवखे एक पऽ म वे कहते ह- “ भौितक मानवी-जीवन के तार के साथ अपना तारिमलाने क मुझे तिनक भी इछा नहं है। म तो चाहता हँ क उससे भी अिधक शुूःवर म वलीन करने के िलए जतना हो सके उतना उसे तान दँ। इसके िलए तनावूतो सहना ह पड़ेगा। इसका अथ यह है क सवसामाय जगत ् से अलग रहना पड़े तोभी उसम कोई आप नहं, कतु जीवन का तार उस ःवगय संगीत से बेसुरा नहो। ”यह जानते हए भी क सुख क ओर ले जाने वाला यह माग कं टकाकण और बीहड़ुहै, वे डटे रहे। असफलता क आशंका से आरंभ म हमत हार जानेवाला लचर मनउनका नहं था। इसी पऽ म वे आगे िलखते ह- “ इस अिनत और खतरनाक राहके िसवा अय कोई माग नहं है। रंभा को मात देकर कोई वजयी शुक ॄपद ूाकर लेता है और उसी राह पर चलनेवाला एकाध वािमऽ मेनका से हारकरअधःपितत हो जाता है। यह मामला ऐसा ह है। कतु के वल इतने माऽ से इस मागको छोड़कर यह कहना क म जनसाधारण के कचड़भरे माग से ह चलूँगा, भीताहोगी। अंितम सुख क साधना करते समय उसके साथ अिनवाय प से अपने हःसेम आनेवाले दःख का सामना करने और उन पर वजय पाने के िलए कम से कमुआमहपूवक उसके साथ दो-दो हाथ करने के िलए भी िस रहना चाहए। कोई दसरा ूकम खतरे वाला माग है ह नहं। ”ऐहक बात से िचवृय को हचा लेने के ूयास म बार-बार उनके मन म सभीबंधन तोड़कर सीधे हमालय क ओर चले जाने का वचार आता था। परंतु दसर के ुदःख से याकु ल होनेवाला उनका मन उह इस बात के िलए िधकारताुहआ कहता ुथा क “अके ले अपने सुख के िलए सब को छोड़कर तुम कहाँ जा रहे हो ? ” कं तु यहसंघष भी धीरे-धीरे शांत हो गया। द. 28 फरवर 1929 को ौी तेलंग को िलखे अपनेएक पऽ म वे कहते ह, “ म संयास क दा तो ले चुका हँ ू, परतु वह अभी पूणनहं हई ु है। हमालय चले जाने का मेरा पहले का वचार कदािचत शु नहं था। इस<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २५


संसार म रहकर ह दिनयादार ु के याघात को सहते हए ु तथा उसके सभी कतय-कम को यवःथत प से िनभाते हए ु म अब अपने रोम-रोम म िनय संयःतवृ को या करने का ूयास कर रहा हँ। ू अब म हमालय नहं जाऊँ गा, हमालयह ःवयं मेरे पास आयेगा, उसक शांत िनरवता मेरे ह भीतर रहेगी। उसे ूा करनेके िलए अब और कहं जाने क आवँयकता नहं है। ”उनके जीवन वषयक वचार ने यह जो िनत मोड़ ूा कया उसी के अनुसारउहने अपना सपूण जीवन संघ-मय यतीत कया। ऐसा नहं है क अत केूसंग फर कभी आये ह नहं। कतु उहने जो माग अंगीकृ त कया उससे वे कभीडगे नहं। मिास म गवेषणा काय परःथितवश अधूरा छोड़कर वे नागपुर आये औरसंयोग ऐसा रहा क जस काशी हद ू ववालय म उहने चार वष तक िशामहण क थी, वहं उह ूाणशा के ूायापक के प म सेवा ूदान करने काअवसर िमला। 1930 म ौी माधवराव गोलवलकर अपनी पसद के ववालय मूायापक के नाते िनयु हए। यहाँ बताये तीन वष काु कालखंड माधवराव जी केजीवन म अयंत महवपूण और भावी जीवन क दशा िनधारत करने वाला रहा।ूथम उलेखनीय बात याने जस ‘गुजी’ नाम से वे आगे जीवन भर जाने गये वहनाम अथवा उपािध उह काशी म ूायापक के नाते अयापन करते समय उनकलोकूयता के कारण छोऽ ने उह ूदान क। युवा माधवराव यप ूाणशा केूायापक थे तथाप आवँयकता पड़ने पर अपने छाऽ तथा िमऽ को अंमेजी,अथशा, गणत, दशन जैसे अय वषय भी पढ़ाने को तपर रहते थे। ऊँ ची का मये वषय पढ़ाने के िलए उह ःवतः इनका अययन करना पड़ता था; कतु इसकारण वे इसे न झंझट समझते थे और न कभी टालमटोल ह करते थे अपतु कसीभी भांित पुःतक उपलध कर, यद पुःतकालय म नहं िमलीं तो उह खरदकर,उनका विधपूवक अययन करते थे। इसके अितर अपने होनहार छाऽ-िमऽ कबकाया फस भर देने अथवा उनक पुःतक खरद देने म उनके वेतन का बहतांश ुयय हो जाता था। उनके इस िमलनसार, सहायताथ सदा तपर रहने क वृ केकारण िमऽ तथा छोऽ म वे अयंत लोकूय और आदर के पाऽ बने थे। इसःनेहादर के कारण ह उह ‘गुजी’ संबोधन ूा हआ ु था। यह नाम संघ-जीवन मढ़ हआ और आगे चलकर देश भर म मायता ूा कर गया। उनक दाढ़ और जटाुक कहानी अलग और बाद के कालखंड क है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २६


४.२ संघ म पदापणदसर ू ूमुख बात याने तीन वष के काल म ौी गुजी को राीय ःवयंसेवक संघ काूय परचय ूा हआ। संघ के ःवयंसेवक ने उनके साथ िनकट सबध बनानेुका ूयास कया। 1929 म नागपुर से काशी अययनाथ गये ौी भैयाजी दाणी जैसेयुवक ने वहाँ शीय ह राीय ःवयंसेवक संघ क शाखा खोली। ूायापक के नाते ौीमाधवराव गोलवलकर के गुण से अिधकािधक लाभ ूा करने का भैयाजी दाणी नेूयास कया। परणामःवप ौी माधवराव भी यदा-कदा शाखा म आने लगे। ये लोगअययन म माधवराव क मदद लेते थे और संघःथान पर उनके भाषण काआयोजन भी करते थे। ौी माधवराव के साथ इन ःवयंसेवक का बताव ऐसा थामान वे काशी ववालय म खुली इस संघ शाखा के पालक और चालक ह।भैयाजी दाणी के साथ ौी गुजी के अयंत घिन सबध ःथापत हो गये। भैयाजीदाणी ववालय क अपनी िशा पूर कर सके इसका अिधकांश ौेय ौी गुजी कोह दया जा सकता है। राीय ःवयंसेवक संघ म माधवराव का ‘गुजी’ नाम ढ़करने म ौी भैयाजी दाणी का बड़ा योगदान रहा है। ौी गुजी जब संघ केसरसंघचालक बने तब ौी भैयाजी दाणी कु छ वष तक संघ के सरकायवाह थे। काशीम ौी गुजी का संघ-परचय के वल सतह था। कतु संघ के ःवयंसेवक कयेयिना और लगन देखकर वे दंग रह जाते। संघ के अनुशासन से भी वे ूभावतहए। ु महामना पं. मदनमोहन मालवीय जी क ौी गुजी पर वशेष कृ पा थी। ौीगुजी भी अनेक बार ःवयंसेवक को मालवीय जी से भट कराने अपने साथ ले जातेऔर उह मालवीय जी का आशीवाद ूा होता। मालवीय जी के मन म संघकाय केूित स-भावना होने के कारण ह उहने ववालय के परसर म शाखा के िलएआगे चलकर जगह और कायालय हेतु एक छोटा भवन भी उपलध करा दया था।जब ौी गुजी काशी म ूायापक थे उहं दन 1932 म डाटर हेडगेवार जी नेउह तथा एक अय संघूेमी ूायापक ौी स-गोपाल को नागपुर संघ शाखा कावजयादशमी महोसव देखने के िलए आमंऽत कया। इन अितिथय का पुंपहारपहनाकर ःवागत भी कया तथा नागपुर के आसपास क संघ शाखाओं को दखानेक यवःथा भी क। उनके इस वाःतय म डाटर जी अपने यगत सहवास मउह संघकाय क सुःप कपना करा द। नागपुर से काशी लौटने पर ौी गुजीकाशी ःथत संघशाखा क ओर अिधक आःथापूवक यान देने लगे।काशी ववालय म अयापन का काय करते समय ह ौी गुजी को संघकाय काूाथिमक परचय हआ ु और हद ू संगठन के काय के ूित उनके मन म आःथा पैदाहई। इधर संघ के ेऽ म कायकताओं के मन म यह वचार उठने लगे क यद ऐसाु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २७


य संघ से जुड़ जाए तो उसे एक ौे गुणवा वाला कायकता उपलध हो सके गा।वान ् और वपुल मंथ के अयेता होने के नाते उनक याित थी ह, कतु संघठनखड़ा करने के िलए चारय, िनःःवाथता, यय को अपनी ओर सहज आकषतकरने क शैली, सहनशीलता, मन क िनमलता, दसर ू के सुख-दःख ु से समरस होनेक वृ, िसांत के ूित ढ़ िना, मूलगामी िचतन आद जन गुण कआवश◌्यकता ् होती दै उन सारे गुण का आवंकार भी उनके दैनंदन जीवन मदखलाई ु पड़ता था। अयाम िचंतन, यान-धारणा यगत सुखसाधन के ूितउदासीनता और सादा भोजनऔर रहन- सहन तो उनके जीवन के वशेष पहलू थे ह।हाथ म िलये गये काय के ूित एकामता तो उहने छाऽ-जीवन म ह हःतगत करली थी। काशी हद ू ववालय क ह एक घटना है- एक बार पढ़ई करते समयउनके पैर को बछ ू ने काट िलया तो गुजी ने शांत िच से दंश कये हःसे मचीरा लगाकर खून बहने दया और बाद म पपोटेिशयम परमगनेट िमिौत जल म पैररखकर पुनः अपनी पपढ़ई म मन हो गये ! िमऽ ने उनसे पूछा क ‘तुह बछ ू नेकाट िलया है फर भी तुम कै से पढ़े जा रहे हो ? ’ इस पर ौी गुजी ने मजाक मउर दया- ‘बछ ू ने पैर को काटा है, िसर को तो नहं ! तब पढ़ाई म बाधा आनेका या कारण है ? ’कभी-कभी तो वे मन म ठान लेते क भोजन नहं कँ गा तो लगातार अनेक दनतक वे अन ःपश तक नहं करते थे। फर भी उनके िनयकम म कोई अंतर नहंआता था। पढ़ाई करते हए ु राऽ म देर रात तक जागरण का भी उनके ःवाःय परकोई असर दखाई नहं पड़ता था। एक तरह से उहने अपनी इिय पर वजय ूाकर ली थी। आगे चलकर जब वे संघ के सरसंघचालक बने तब अनेक बार शरर मवर होने पर भी िनयोजत कायबम म वे ूसनता से सहभागी होते थे। अयसहयोिगय को अपनी अःवःथता क जरा भी कपना न होने पाये इसिलए उसाहऔर ूसनता से वे कायबम म भाग लेकर उह पूण दाियव के साथ िनभाते थे।आमबन के अयासपूवक वकास से ह उहने यह वृ आमसात क थी। कतुइसका यह अथ नहं क वे अपने शरर ःवाःय क उपेा करते थे। शरर से इकाय करवाने के ूित वे सदैव तपर रहते थे। इिय के दास बनने क बजायःवामी बनकर कै से जया जा सकता है, इसका वलत उदाहरण उहने ःवयं अपनेजीवन म ूःतुत कर दखाया। डॉटर हेडगेवार जी ने भी इसी सूऽ को अपनाकरअपने शरर के कण-कण को संघकाय के िलए वसजत कया था।काशी ववालय के कालखंड म ौी गुजी ने ःवाभावकतया वशाल िमऽ परवारिनमाण कया और इनम से कसी भी िमऽ को वे कभी भूले नहं। संघकाय के िनिम<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २८


भारत-ॅमण के दौरान जब कभी कोई पुराना िमऽ िमलता था तो ौी गुजी उसकेसाथ पुरानी ःमृितय क चचा म मन हो जाते थे। वह िमऽ ःवयं ौी गुजी कःमरण श, सौजय और ःनेहपूण यवहार को देखकर दंग रह जाता। िनयमपालनतथा अनुशासन के ूित िनभय आमह भी उनके ूित आदर भाव को बढ़ाता था। जबौी गुजी शोध-काय के िनिम मिेस म थे, तब एक बार हैदराबाद का िनजामशाहमःयालय देखने के िलए आया। िनयमानुसार शुक दये बना उह ूवेश देने से ौीगुजी ने इंकार कर दया। काशी म भी एक कायबम म िनयम तोड़कर अय मागसे भीतर ूवेश करनेवाले एक अहंकार ूायापक को रोकनेवाले ःवयंसेवक का भी ौीगुजी ने ह साथ दया था। ये सारे गुण संघकाय म उपयोगी िस होनेवाले थे। ौीगुजी क ओर डाटर हेडगेवार जी का यान आकषत हआ और संघकाय कुजमेदारय को संभालने क से ौी गुजी को तैयार करने के ूयास उहनेशु कर दये। डाटर जी क य क परख कतनी योय थी यह भावी काल नेिस कर दखाया।बढ़तीौी गुजी के वल तीन वष के िलए ह ूयापक िनयु कये गये थे। ये महवपूणतीन वष बीतते देर न लगी और काशी छोड़कर 1933 म वे पुनः नागपुर लौट आये।∗<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी २९


५ सारागाछ आौम मूायापक माधवराव गोलवलकर उपाय ौी गुजी क काशी से नागपुर वापसी केबाद ५ वष के कालखंड मान दो महान ् यय के बीच कभी परःपर अनुकू ल तोकभी ूितकू ल दशा म खींचनेवाली उनक इछा शय का, मन को हैरान करदेनेवाले चढ़ाव-उतार का एक वलण खेल था। एक यव राीय ःवयंसेवक संघके साथ अतबा एकप बना हआ ु डॉ. हेडगेवार जी का था, तो दसरा ू यवूकांड पंडत, अयाम ूवण, अपने मत पर ढ़ रहनेवाले तथा अपनी ःवतंऽ बुसे वचार करने क ूवृवाले ौी गुजी का था। डाटर जी और ौी गुजी के बीचपरचय होकर २ वष का काल बत चुका था। अनेक असामाय गुण के धनी ौीगुजी क परख डाटर जी ने कर ली थी और उह संघप बनते देखने के िलएडाटर जी आतुर थे। एक ःवछद कलकल िननाद करने वाले वय िनझर कोअनुशासनब करने और तट म बाँधकर रापुष क सेवा म लगाने का यह संकिलतूयास था। ौी गुजी के शड म ह कहना हो तो- “उस महापुष के अतःकरण मरा क ददशा को देखकर होनेवाली तीो यथा और उनक पूण समपणशीलता ने हुमुझे झुकने के िलए ववश कया। और मेर यह शरणागित अयंत सुखद थी।”नागपुर लौटने के बाद ौी गुजी अपने मामा ौी रायकर के यहाँ रहते थे। उन दनताईजी और भाउजी नागपुर से २५ मील दर ू रामटेक म रहते थे। सेवा-िनवृ केपात ् भाउजी ने रामटेक म ह एक मकान खरद िलया था। अतः ौी गुजी माता-पता से िमलने असर रामटेक आया जाया करते थे। घर क आिथक ःथितसामाय थी। अतः आिथक िनभरता के िलए ौी गुजी अपने मामा क कोिचंगलास म छाऽ को पढ़ाने का काम करने लगे। इसी समय उहने वकालत क परापास करने हेतु लॉ कॉलेज म ूवेश िलया। ौी गुजी पर संघ-काय का अिधकािधकदाियव सपकर उह संघ के अिधक िनकट लाने का डाटर जी का ूयास यथाबमचलता रहा।उन दन नागपुर के तुलसीबाग म संघ क ूमुख शाखा लगती थी। १९३४ म ौीगुजी को शाखा का कायवाह िनयु कया गया। इसी वष संघकाय के ूचाराथडाटर जी ने ौी गुजी को मुंबई भेजा। १९४० के पूव अकोला म के वल एक बारसपन १९३५ के संघ िशा वग के सवािधकार का दाियव भी उन पर सपा गया।ौी गुजी ने इस दाियव का अयंत कु शलता से िनवाह कया। वग के तेजःवीवातावरण को देखकर डाटर जी बहत ु आनदत हए। ु नागपुर म ौी गुजी हमेशा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३०


डाटर जी के पास जाया करते थे और उनक बैठक म भाग लेते थे। १९३५ मउहने वकालत क परा उच ौेणी म उीण क और कु छ दन तक ‘मा.स.गोलवलकर वकल’ इस नाम क पटका भी एक मकान को सुशोिभत करती रह।इन दो वष के कायकाल म उनके वृ माता-पता ने अपने इकलौते पुऽ को ववाह केिलए अनेक बार मनाना चाहा। ववाह का ू उपःथत होते ह ौी गुजी उसे हँसीम टाल देते। कं तु एक दन पता भाउजी को उहने कहा क “ ववाह करने क मेरकोई इछा नहं है। घर-गृहःथी से मुझे सुख िमलेगा ऐसा मुझे नहं लगता। फर भीयद आपका आदेश हो तो म ववाह करने के िलएतैयार हँ। ू ” ौी गुजी के इस उरपर भाउजी ने अपने पुऽ क मानिसकता को यान म रखते हए फर कभी ववाह काुआमह नहं कया। कँ तु माता ताईजी क मनःःथित अयंत नाजुक थी। ‘मधु’ केववाह पर ह वंश परपरा का आगे जार रहना संभव था। ताईजी यह नहं चाहती थींवंश यह खंडत हो जाए। ःवािभकतया ववाह सबधी उनका आमह बना रहा। एकदन ऐसा ह आमह कये जाने पर गोलवलकर वंश के इस एकमाऽ ‘दप’ ने अयंतःप शद म अपने मन क बात कह कर उह िनर कर दया। ौी गुजी ने कहाक- “ताई, तू मुझसे वंश खंडत होने क बात मत कह। यद मुझ जैसे अनेक केवंश न होकर भी समाज का कु छ भला होता हो तो वह आज क परःथित मआवँयक ह है। वंश न होने क मुझे जरा भी िचंता नहं है।” इस उर को सुनकरपुऽ-वसल माँ ःतध रह गई और फर कभी माता-पता ने ौी गुजी से ववाह कबात नहं छेड़।५.१ गु क खोज मइसी कालखंड म ौी गुजी के जीवन म एक नया मोड़ आ रहा था और उसकापरणाम सभी के िलए िचता उपन करनेवाला था। डाटर जी से सपक बढ़ रहाथा और संघकाय म अिधकािधक सहभाग भी वे ले रहे थे परतु ौी गुजी अभीसंघकाय से पूणतया समरस नहं हो पाये थे। उनका अिधक झान नागपुर केधतोली ःथत रामकृ ंण आौम क ओर था। इस आौम के ूमुख ःवामीभाःकरेरानंद के साथ ौी गुजी का काफ िनकटता का सबध ूःथापत हआ ुथा। दैनंदन जीवन के अयावँयक काय िनबटाने के बाद का अिधकांश समय उनकाआौम म ह बीतता। आौम म अयाम-िचंतन और यान धारणा के ूित उनकाआकषण दन ूितदन बढ़ता गया। आमसााकार के िलए वे तड़पने लगे। डाटरजी भी उनक यह मनःःथित देखकर िचंितत थे। उनक िचंता का कारण यह था क<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३१


एक ओर जहाँ रा को मु करने क चुनौती है और सारा समाज गुलामी कदरवःथा ु से गुजर रहा ह वहं दसर ू ओर ौी गुजी जैसा मेघावी तण यगतमो-सुख क कामना कर रहा है। डाटर जी ने ःवयं अपना सारा जीवन मातृभूिमक सेवा म योछावर कर दया था और उह ऐसी ह धारणा वाले बुमान, कमवीरतण चाहए थे। तण के सम उहने अपना जीता-जागता उदाहरण ूःतुत कयाथा। कतु वे ौी गुजी को मना नहं सके थे। इस सबध म यह कहा जा सरताहै क कु छ महान यय के जीवन क इस ूकार क उथल-पुथल म भी शायदिनयित का ह कोई सूऽ रहता हो! भारतीय ऋष-मुिनय, रामकृ ंण-ववेकानद जैसेआधुिनक िाओं, महारा क संत परपरा अथवा योगी अरवद, रमण महष जैसेिस पुष ने परमोच सुख ूाि क एक अवःथा बतलायी है। ःवानुभव से उहनेबताया है क इस अवःथा म मन क सार अशांित, खंचाव-तनाव, “कम ् कमकमकमित” सबधी सदेह हमेशा के िलए दर होकर कसी भी बा परःथित परून रहने वाले शात, ःवयंपूण सुख का अमृतमय अखंड आनंद य ूा कर सकताहै। इस अवःथा क अनुभूित कर लेने के पात ् ह ौी गुजी का योगी-यवसंघकाय म पूणतया समपत हो, यह िनयित क योजना रह होगी।इतना सच है क कसी अनुभूित सपन स ु के चरण म बैठकर, उनके सानयम रहकर उनक सेवा म आनंदमय आमसााकार हेतु एकाम साधना करने क ओरौी गुजी का झान अयंत तीो हो चुका था और इसीिलए एक दन अपने माता-पता, मामा के परवार, िमऽ, डाटर जी और संघ कायताओं तथा नागपुर मवकालत करनेवाले सभी सहयोगी िमऽ को बना बताये वे स ु का कृ पा-ूसाद पानेके िलए चल दये। यह घटना १९३६ के शरदकाल क है।ौी गुजी ने जन सपुष क ओर ूःथान कया उनका नाम था ःवामी अखंडानंद।ौी रामकृ ंण परमहंस ने जन इने-िगने तण को अपने साथ लेकर उनसे कठोरसाधना करवाई थी तथा एक महान ् जीवनकाय का उह बोध कराया था उनम ःवामीअखंडानंद भी थे। ःवामी ववेकानद भी इहं के साथी थे। भारत के आयामकजीवनादश क पुनः ूःथापना करना और चार ओर फै ले दरिनारायण क भौितकेऽ म सेवावृ उपासना करना यह उनका अंगीकृ त काय था। इस भगीरथ ूयास कोभारत के राीय ःवप क अनुभूित और उसके िनयत जीवनकाय के सााकार कासुढ़ अिधान ूा था। ऐसा बताया जाता है क एक बार ःवामी अखंडानंद जबहमालय क ूवास पर िनकले तब माग म मुिशदाबाद जले म भीषण अकाल केकारण वहाँ के लोग क ददशा उनसे देखी नहं गई। उनका मन कणा से भर गयाुऔर उनके कदम वहं पर क गये। उहने सारगाछ म ह अपना डेरा जमाया और<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३२


सेवा काय ूारंभ कया। इस सेवाकाय के चलते ह वहाँ आौम का िनमाण हआ। ुसारगाछ का शादक अथ है- हरे-भरे-घने वृ क लबी पंयाँ। इस नाम कोसाथक करनेवाला ह यह ःथान था। ूाकृ ितक सौदय से सपन इस परसर म हपहले ‘वनोद कु ट’ बनी जसम ःवामी जी का वाःतय था। धीरे-धीरे इस आौम कावःतार होकर सेवा के ि, पाठशाला, औषधालय, उपासना ःथली आद िनिमत होतेगये। भगवत ्-ःवप अपने समाज वांधव- ‘दरिनारायण’ क सेवा करने क ूेरणा सेबने इस आौम म ौी गुजी पहँचे। ु रामकृ ंण आौम, नागपुर म ‘दा’ ूा करनेक इछा रखनेवाले साधक को, जनम ौी गुजी भी एक थे, ःवामी अखंडानंद जीने ‘सारगाछ आौम’ म आने के िलये कहा था। नागपुर के आौम म ःवामीअमूतानंद, जह अिमताभ महाराज के नाम से जाना जाता था, ौी गुजी केयव से काफ ूभावत थे। उनके ह शद म, “ौी गुजी को देखकर मुझे ऐसालगा मान मेरे सामने एक अनपुंज खड़ा है जस पर के वल कु छ राख जमी है। वहराख छँटते ह उनके यव का तेज अिधक ूखरता से ूकट होगा।”उहने ौी गुजी को सारगाछ आौम जाने क ूेरणा द। नागपुर आौम के ूमुखःवामी भाःकरेरानंद ने भी अनुकु लता दशायी। सारगाछ आौम के ःवामीअखंडानंदजी से पऽ-यवहार कर उनक समित भी ूा कर ली गई। फर या था,एक दन अचानक ौी गुजी आमसााकार के दैवी आकषण से सारगाछ क ओररवाना हो गये। इसक जानकार उनके के वल दो-तीन िलकटःथ िमऽ को ह थी।बाक सारे अनिभ थे। नागपुर म चचा चल पड़ क ौी गुजी कहाँ गये हगे ? ौीगुजी के इस ूकार अकःमात ् चले जाने से डाटर जी को धका लगना ःवाभावकह था। उनका मानस ौी गुजी को संघकाय से जोड़ना चाहता था। ौी गुजी के इसअकःमात ् ूःथान के बारे म उनके सहयोगी वकल िमऽ ौी दोपंत देशपांडे को हमाऽ जानकार थी। अपने इस योजना के बारे म जो वःतृत पऽ ौी गुजी ने अपनेमाता-पता के नाम िलखकर रखा था, वह भी ौी देशपांडे के मायम से ह उन तकपहँचाने क यवःथा क गई थी। तभी ौी गुजी के सारगाछ चले जाने का खुलासाुलोग को हआ। ु कं तु तब तक काफ देर हो चुक थी। ौी गुजी सारगाछ पहँच ु चुकेथे। अब इसके बाद वे कै सा माग अपनाते ह इसक ूतीा करने के अितर औरकोई उपाय नहं था।डाटर जी भी देशपांडे जी से जब कभी िमलते तो पूछते- ‘कहये, आपके िमऽसारगाछ से कब लौटने वाले ह ?’ लगता है, डाटर जी का मन कहता था क ौीगुजी नागपुर अवँय लौटकर आयगे। डाटर जी के घर म िनय चलनेवाली बैठकम भी बीच-बीच म ौी गुजी का वषय अवँय िनकला करता और गुजी क वा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३३


और गुणवा क ूशंसा डाटर जी के मुख से सुनी जाती। उनके ूित उपहास अथवाआलोचना का एक शद भी डाटर जी के मुख से कभी नहं िनकला। उनका ढ़वास था क ौी गुजी अवँय लौटगे और संघकाय म जुटगे।५.२ दा महणउधर ौी गुजी ने आौम म ूवेश कया और बाहर क सार दिनया को वे भूल गये।ुगु क सेवा और एकाम साधना ह उनका जीवन बन गया। भारत क आयामकपरपरा म गु-िशंय सबध बड़ा वलण होता है। सभी संत ने सदा स-गु कमहमा गायी है। ौी गुजी ने तन-मन से गु सेवा ूारंभ क। आौम क साफ-सफाई से लेकर ःवामीजी के कपड़े धोने, बतन माँजने आद कसी भी ूकार के कामको उहने कभी कम नहं आँका। मनुंय म जरा भी अहंकार क भावना हो तो वहइस ूकार क सेवा से दर हो जाता है। गु क कृ पा से ह जीवन म साथकता है।ूगु भी अपने िशंय को हर कसौट पर कसकर परखता है। आौम के वाःतय म ौीगुजी हर कसौट पर थरे उतरे। ौी गुजी के जीवन का यह अयाय जतनाआकःमक था उतना ह रहःयमय भी था। आगे चलकर ौी गुजी संघकाय सेएकप हो गये और उहने अपनी गुसेवा, साधना और आमानुभूित के बारे म कभीकोई चचा नहं क। इसिलए उनके आौम-जीवन के बारे म जो कु छ भी थोड़-बहत ुडानकार िमल पायी वह उनके गुबंधु ःवामी अिमताभ महाराज के ारा ह समय-समय पर हई चचा के दौरान िमली।ुसन ् १९४९ म ौी गुजी मैसूर के रामकृ ंण िमशन तथा वामंदर को देखने गये थे।उस समय ःवामी अिमताभ महाराज ने गुजी के ःवागताथ भाषण म कहा- “ौीगुजी ने अयंत परौम और येयपूक सारगाछ आौम म रहकर साधना क थी।उस समय उनके सहवास के आधार पर ह म कह सकता हँ क राीय ःवयंसेवकूसंघ ने ‘नरेि’ को ह नेता के प म ूा कया है।” ःवामी अिमताभ महाराज नेमयूदेश म नमदा के कनारे मोहपुरा म आौम ःथापत कर वनवासी बधुओं कसेवा के काय हाथ म िलया। वहाँ संघ क शाखा भी लगती है। ौी गुजी के साथउनके सबध अयंत आमीयता के रहे। दोन के बीच पऽ-यवहार भी हआ करता ुथा। ौी गुजी ारा ःवामीजी को िलखे पऽ क भाषा और भाव म अलौककतादखाई देती है। द. ३० िसतबर १९६० को अिमताभ महाराज के नाम िलखे पऽ कयह पं देखये- “कल रात बोलते-बोलते सारगाछ आौम के वाःतयकाल कअमृतमय ःमृितयाँ ताजी हो उठं। मन क या अवःथा हई ु , उसे शद म य नहं<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३४


कर पा रहा हँ। ू वह असीम भाय मुझे आपके कारण ह ूा हो सका। उसका ःमरणहोते ह कृ तता से अतःकरण भर जाता है। कतु यह वषय कोई कोरे शद मय करने योय नहं होने के कारण कु छ िलख नहं पा रहा हँ। इन शद म उसूमहान भाव-जगत ् क के वल कपना ह क जा सकती है। ”उपलध जानकार से यह ात होता है क सारगाछ म पहँचने के बाद ौी गुजी नेुःवयं को गु क सेवा म झक दया। उनका अिधकािधक समय गु के साथ हबीतता और इस बीच उनके कपड़े धोना, उह नहलाना, चाय बनाकर पलाना, भोजनक यवःथा करना, उनका बःतर ठक करना आद सब ूकार के काम ौी गुजीकया करते। ःवामी अखंडानंद जी वयोवृ थे और ौी गुजी ारा िनरलस भाव सेक जानेवाली सेवाओं से अयंत ूसन थे। सेवा करने और उनके अनुभव को सुननेका अवसर उह िमलता। वृावःथा के कारण ःवामीजी ूायः अःवःथ हो जाते औरतब गुजी रात-रात भर उनके िसरहाने बैठकर जागते रहते। इस समय अपने इसूय िशंय के साथ ःवामीजी का मु संवाद चलता। आौम म रहते समय ौी गुजीने दाढ़ बढ़ा ली थी और िसर के के श भी कटवाये नहं थे। दाढ़ और जटा उनकेमुखकमल क शोभा बढ़ाते थे। ऐसे ह एक दन ःवामीजी ने उनके बखरे हए ुमुलायम बाल पर अपना ःनेहपूण हाथ फे रते हए ु कहा, “ये बाल खूब फबते है।देखना, इह कभी कटाना नहं।” अपने गु क इस इछा का ौी गुजी ने आजीवनपालन कया। उनक दाढ़ और जटा का रहःय सारगाछ के महामा के इस इसआिशवाद म है। सारगाछ आौम म गु क अहोराऽ सेवा म ५-६ मास बीत गये।गुकृ पा के जस आनंदमय ण क ौी गुजी बाट जोह रहे थे वह ण अभी तकनहं आ पाया था। ःवामी जी का ःवाःय दनदन बगड़ता जा रहा था।इसी समय ःवामी अखंडानंदजी ने ःवामी अिमताभजी को पऽ भेजकर नागपुर सेसारगाछ बुलवा िलया। ौी गुजी और अिमताभ महाराज ारा गु क सेवा म एकऽबताये दन उनके जीवन का एक ःमरणीय कालखंड रहा है। दा महण करने केिलए ौी गुजी के मन क यमता अिमताभ महाराज से िछपी नहं थी और इधरःवामी अखंडानंद जी असर कहते सुने जाते क ‘अब म कु छ ह दन का मेहमानहँ। ू ’ आखर एक दन ःवामी अखंडानंदजी के चरण दबाते समय अिमताभ महाराज नेःवामीजी से कहा- “गोलवलकर जी के माता-पता काफ वृ हो चुके ह, अतः उहशीय मंऽ-दा देकर वकालत का यवसाय करने दया जाए।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३५


इस पर ःवामी जी ने जो उर दया उसम एक वाय उनके िा होने का परचयदेता है। ःवामी जी ने कहा- “उसे दा तो दे द जाएगी कतु यह कौन कह सकताहै क वह वकालत का ह यवसाय करेगा ?”यह सच है क सारगाछ से लौटने के बाद गुजी ने वकालत का पेशा नहं अपनाया।उनके जीवन को एक नयी दशा िमल चुक थी। कतु इसम कोई सदेह नहं कसारगाछ आौम म ूा अनुभव से ह उनका जीवन समृ बना था। गु क सेवाऔर साधना के इस कालखंड म ौी गुजी ने ःवयं ःवामी अखंडानंदजी के जीवन मयान, समािध और साधना का ूायक देखा था। आौम म आने वाले देशी-वदेशीअितिथय क देखभाल करते समय य ववध ूितबयाओंको सुनने का अवसर भीउह िमला। वेदात दशन के अनेकवध पहलुओं को अिधकार पुष के मुख से सुननेका मौका िमला और ःवयं को भी वाचन, मनन और िचंतन का अवसर िमला।एक दन अिमताभ महाराज ने अपने गुदेव से कहा- “अब मुझे आा दजये।नागपुर जाना मेरे िलए आवँयक है।”इस पर ःवामी जी बोले- “देखूँ भला तुम कै से जाते हो ?” फर कु छ ककर उहनेकहा, “तुह यह रहना होगा। अब म अिधक दन नहं जी पाऊँ गा।”अिमताभ जा चक गये। उहने डरते-डरते ह कहा, “माधवराव को अब दा दे दजाए।” तुरंत उर िमला, “ठक है, ठाकु र जी से (रामकृ ंण परमहंस से) पूछ लेता हँ। ू ”(अिमताभ महाराज के नाम िलखे जानेवाले पऽम ौी गुजी भी ौी रामकृ ंण परमहंसका उलेख ठाकु रजी के नाम से ह कया करते थे।)इस संवाद के तीन दन बाद ह ःवामीजी ने ःवयं कहा, “कल गोलवलकर को दाद जाएगी।”िनयोजत कायबमानुसार यह दा-विध वनोद कु ट म ह सपन हई। दा ूाुकरने के बाद ौी गुजी को देवदशन के िलए भेजा गया। यह ूभात क वेला थी औरअिमताभ महाराज पूजा कर रहे थे। ौी गुजी को समाधान मुिा म मंदर म आतादेखकर उह संतोष हआ। अिमताभ जी के अनुसारुमहासागर के समान शांत तथा गंभीर दखाई दे रहे थे।”“ौी गुजी उस समय ूशांत<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३६


ूदा ूा होने के पात ् अपने मनम जो भावोिमयाँ उमड़ पड़ं उनका ौी गुजी नेिननिलखत शद म वणन कया है, “सुवणार म अंकत करने योय मेरे जीवनका वह संःमरणीय दन था यक असंय जम के पात ् ूा होने वाला सौभायमुझ पर ूसन हआ ु था। स-गु क असीम कृ पा उस दन मुझ पर हई ु थी।सचमुच उस दन के अनुभव अयंत पवऽ ह जो शद म य कर पाना संभव नहंहै। स-गु का वह ःपश, उनका वह ूेम, अपना दैवी ूसाद मुझे देते समय उनकासपूण आवभाव, इनम से कसी का भी मुझे वःमरण होना असंभव है। मेरा साराशरर कपत हो रहा था। मुझे अनुभव हआ ु क म सपूणतः बदल गया हँ। ू एकिमनट पूव म जो था, वह म नहं रहा हँ। (“Red letter day for me to be noteddown in words of gold! For, did not the fortune of countless millions of birthssmile upon me and confer upon me the bliss of being graced by the Master?Indeed the experiences of that day are very sacred, too sacred for words. Ican never forget the touch, the love, whole bearing of the Master as heconferred upon me this favour of the blessed and all the time I trembled. I feelchanged. I am not what I was a minute ago!”)१३ जनवर १९३७ को मकर संबमण के शुभ पव पर ौी गुजी ने दा ूा क।बाद म २४ जनवर क संया को पू. बाबा ने सेब मंगवाया और इस वषय म सूचनादेने लगे। परंतु बीच म क कर बोले, “तुहारा सब ूकार का कयाण हो। तुझेआमदशन हो यह मेर ौीगु महाराज से ूाथना है। मुझ म जो अछाई है वह मतुझे दे रहा हँ ू, तुझ म जो बुराई है वह मुझे दे। मुझे सुख क चाह नहं है। मुझे दःख ुचाहए। मुझे तेरा कभी भी वःमरण न हो, यह मेर भगवान से ूाथना है। मेरातुह आिशवाद है। आज क संया का सदा ःमरण करते रहो। सुख या है ? देखो,अपने िलए भगवान ने कतने क सहे ह। ौीकृ ंण का जम होते ह माँ का दधू नपीते हये ु उह माँ को छोड़कर वाले के घर म रहना पड़ा। वहाँ वे बड़े हए ु परतु वहाँभी उह सुख नहं िमला। हमेशा असुर ारा ढाये गये संकट का सामना करना पड़ा।उनके दःख ु के सामने अपने दःख ु या है! इसिलए म दःख ु क इछा करता हँ ू।”यगत सुख क अपेा बलकु ल ह न करते हए ु और संकट से पःत न होते हए ुईरशरणता से जीवन जीने का यह जो बोध पू. बाबा ने उःफू तता से दया, उसकाौी गुजी को कभी भी वःमरण नहं हआ। ुदा ूाि के बाद भी ौी गुजी ने सारगाछ आौम म ह िनयमानुसार गुसेवाजार रखी। इस जीवन से वे पूणतया समरस हो गये। यगत सुख सुवधा,कठणाई आद का वचार उह ःपश तक नहं कर पाया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३७


५.३ कु छ सुखद संःमरणसंयोग से ह ौी गुजी के सारगाछ आौम के कालखंड के संबंध म दो संःमरणकलका के संघचालक डॉ. सुजत धर को ूा हए। ु घटना इस ूकार हई। ु कलकाम अखल भारतीय वाध परष का एक कायबम आयोजत होने वाला था। उसमूमुख अितिथ के नाते उपःथत रहने के िलए ःवामी िनरामयानद जी को आमंऽतकरने डॉ. धर उनके आौम म गये थे। उनसे वातालाप करते समय ःवामीजी के मुखसे सहज उलेख हआ क वे ःवयं सारगाछुकहा, “ःवामीजी, हमारे गुजी भी कु छ समय वहाँ रहे थे।”“कौन गुजी ?”“हमारे राीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक।”आौम म रह चुके ह। तब डॉ. धर ने“वे गोलवलकर ? आजकल उनका वाःतय कहाँ है ? मने सुना है क कभी-कभी वेकलका भी आते ह। उनसे कहए क उह जब फु रसत हो तब म सााकार करनेआऊँ गा।”फर कु छ दन के बाद ूवास म ौी गुजी का कलका आगमन हआ। ु तब डॉ. धरने ःवामी िनरामयानद क इछा उह बतलायी। ौी गुजी अपने गुबधु काउलेख सुनते ह तोमांिचत हो उठे और बोले, “उह सूिचत करो क वे आने कतकिलफ न उठाय, म ह उनके दशनाथ आौम म आ रहा हँ। ू ” डॉ. धर ने ौी गुजीका सदेश ःवामी िनरामयानदजी को सूिचत कया। ौी गुजी जद-जद तैयारहए। गुबधु केुसााकार का दिनवार ु आकषण उनक हलचल से ूकट हो रहा था।हम लोग आौम क ओर चल पड़े। आौम क ओर जानेवाली गली जरा संकर होनेसे मोटर आम रःते के कनारे खड़ कर हम लोग पैदल ह आौम क ओर जानेलगे। ःवामी िनरामयानद जी ूवेश ार के बाहर ःवागत के िलए खड़े थे। उनकोदेखते ह गुजी अरशः उनक ओर दौड़ने लगे। दसर ओर से ःवामी जी भी दौड़े।ूदोन का सााकार हआ ु और दोन ने परःपर आिलंगन दया। सब लोग आौम मपहँचे। ु दोन गुबधु भाव-वभोर होकर परःपर बातचीत कर रहे थे, बाबा के संःमरणकथन कर रहे थे।ःवामी जी : ःमरण है तुह ? (एक ःथान क ओर अंगुिल िनदश कर) “यहाँ बाबा(ौी स-गु ःवामी अखंडानंदजी) लेटे हए थे। उनका िसर मेर गोद मु“बाबा का सारा सामान रहाँ है ? घड़, कमडलु ... ”ौी गुजी - सब कु छ है।था।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३८


ःवामी जी – बाबा का वःमरण तो नहं हआ है ु ? आज तुम जो कु छ हो वह के वलबाबा के कारण हो।ौी गुजी – हाँ, आज म जो कु छ हँ ू वह के वल बाबा के कारण ह हँ। ूौी ःवामी जी – तुम बाबा के पास से, उनके पास जो कु छ था वह सारा महण करचुके हो !डॉ. धर चकत होकर सारा रहःयमय संवाद सुन रहे थे। जो बात ौी गुजी ने कभीपूछने नहं द, ूकाश म नहं आने द, उस पर अकःमात थोड़ा-सा ूकाश पड़ रहाथा।फर दसर ू मंजल पर सब लोग गये। ःवामी जी ने कहा, “बाबा क जमशती आरह है। उस समय बाबा के जीवन और काय के वषय म जानकार देनेवाला मंथ तीनखंड म ूकािशत करने का संकप है, उसम तुहारा एक वःतृत लेख अवँय होनाचाहए। इसके साथ ह कु छ धन क भी यवःथा करनी पड़ेगी। बेलूर मठ धन देनेको तैयार नहं है।” बाद म डॉ. धर को मालूम हआ क उस मंथ के िलए ौी गुजीुने टंकिलखत १६ पृ का एक वाःतृत लेख िलख कर भेज दया। डॉ. धर ने वह लेखढँढने ू का ूयास कया, परतु ौी गुजी का नाम कहं भी नहं था। पूछताछ करनेपर ःवामी जी ने कहा, “ह हैज के ट हज वड, इससे अिधक कु छ बतलाऊँ गा तो वेमेरे िलर पर डंडा मारगे।”* * * *और एक मािमक घटना ःवामीजी से ात हई। ौी गुजी केुआौम म ूव होने केबाद कु छ समय बीता था। ःवामी अखडानंद के चरण म ःवयं को संपूणतः समपतकर देने के बाद क यह घटना है।एक आौमवासी को अपने पता क गंभीर बीमार का समाचार तार ारा ूा हआ। ुघर जाने के िलए बाबा से अनुा लेने का साहस नहं होने पर भी अयआौमवािसय के आमह के कारण उसने बाबा से घर जाने क अनुमित माँगी। बाबानाराज हो गये। तब ौी गुजी ने, जो बाबा के पैर दबा रहे थे, कहा- “आप को उसेडाँटना नह चाहए था। बेचारा वह बहत दःखी है। ु ु ” बाबा बगड़कर बोले- “तू कौनहोता है मुझे बताने वाला ?” कतु गुजी ने अपना वनयपूण िनवेदन जार रखा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ३९


उनक अवचल ौा एओवं िनरलस सेवा का ह परणाम था क बाबा ने उस िशंयको बुलाकर उससे आमीयतापूवक पूछताछ क और घर जाने के िलए ियाद कयवःथा करवा द। परंतु वह िशंय तब तक घर नहं जाने का िनय कर चुका था।ौी गुजी के सारगाछ के वाःतय म ःवामी अखंडानंदजी ने उनके सबध म एकबार जो उ-गार य कये थे वे कसी भवंयवाणी के सश लगते ह। एकआौमवासी ने बाबा से कहा, “वह जो नया एम.एस-सी. िशंय आया है ना, उसने सारेपीतल के बतन ऐसे माँजे है क वे सोने के पाऽ के समान चमक रहे ह।”बाबा बोले, “हाँ, परतु यान रखो वह जस के म म हाथ डालेगा उसका सोना ह होजाएगा !”बाबा क गुजी ने जो सेवा क उस वषय म ःवामी जी ने कहा, “सोने के पूव बाबाके पैर दबाने पड़ते थे। यह काम गुजी िनयमपूवक करते। बाबा को गहर नींद लगनेपर ह अपना ःथान छोड़ते थे। बाबा ूातः ४ बजे जागते थे। तपूव ह गुजी उठचुके होते। बाबा के खड़ऊं वे बाबा के चरण के िनकट रख देते। हम लोग को आयहोता था यह य कभी सोता भी है या नहं ?”ःवामी अखंडानंद जी ःवाःय दनदन बगड़ता ह जा रहा था। मधुमेह और दयरोग से वे मःत थे। और फर एक दन देर रात तक ःवामी जी अपने दोन िशंयको अयाम के सारे रहःय सुनाते रहे। रात के साढ़े तीन बज चुके थे। अिमताभमहाराज ने उह अब वौाम करने क सलाह द तो वे कहने लगे, “अब अंितम समयआता दखाई दे रहा है। इसके बाद तुम शायद मेर वाणी नहं सुन पाओगे।” अिमताभमहाराज ने ौी बाबा से पूछा, ‘माधवराव क हमालय जाने क इछा अितशय ूबलहै।‘ ौीमान ् बाबा बोले,’यह डाटर हेडगेवार के साथ रहकर काम करेगा ऐसा लगता है।शु भाव से समाज सेवा म। वह हमालय का दशन अवँय करे, परंतु एकांतवास नकरे इसका यान रखना।‘उस दन के बाद ःवामीजी का ःवाःय संभल नहं सका। बीच-बीच म वेमूछत हो जाते और मूछा दर होने पर उठकर बैठ जाते। तब उह कठनाई सेूिलटाया जाता। इस बमार म गुजी ने अपनी भूख-यास-वौाम आद सब कु छभूलकर ःवामी जी क सेवा क। कभी-कभी गुजी को भोजन करने का अवकाश नहं<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४०


िमलता था तथा कभी-कभी दो-तीन दन तक दन-रात जागना पड़ता था। फर भी वेःवामी जी क सेवाम द रहते थे। आगे चलकर जब ौी गुजी डाटर जी क बीमार के समय नािसकसे देवलाली म उनके साथ थे, उस समय भी ौी गुजी ने ऐसा ह तपरता औरलगन से डाटर जी क सेवा क थी। डॉटरजी को उस समय डबल िनमोिनया होगया था। संघ िशा वग म भी सामाय ःवयंसेवक क बीमार क अवःथा म उसकसेवा म वे रात-रात भर जागते रहते थे। इस वलण सेवा भाव के कारण लोग काउनके ूित अित आदर भाव अिधकािधक वृंगत होता गया। समपत सेवाभावना काूय उदाहरण उहने दिनया को ूःतुत कया था।ु५.४ कमेऽ म पदापणइस सेवा शुौुषा और वैकय उपचार के बावजूद ःवामीजी का ःवाःय िनरंतरबगड़ता रहा। उह बड़ कठनाई से कलका लाया गया। वहाँ द. ७ फरवर १९३७को दोपहर ३ बजकर ७ िमनट पर उनका िनवाण हो गया। ःवामी जी ने अपने इनूय िशंय से अतम बदाई ली। ःवामी अखंडानंद जी के साथ ौी गुजी नेआमसााकार और आयामक ान-पपासा क तृि के िलए लगभग ५-६ माहयतीत कये थे। अब वे महापुष तो नहं रहे कतु जाने के पूव अपने िशंय केजीवन को आयामकता का शात अिधान ूदान कर गये। ःवामी जी केदेहावसान के बाद वे कु छ दन वहं रहे। उस समय उनक मनोदशा क कपना नहंक जा सकती। अब उह भावी माग खोजना था। यगत घर-गृहःथी बसाने कावचार तो उनके मन म उठने का ू ह नहं था कतु इस जीवन का या कर ?यह ू उनके मन को उेिलत कर रहा था। आखर एक दन गुजी नागपुर लौटआये। यह १९३७ के माच माह का ूसंग है।ौी अिमताभ महाराज ने ौी गुजी के संबंध म बतलाया क ौीमान ् बाबा केमहासमािधःथ हो जाने के बाद कलका म ौी गुजी को ौी रामकृ ंण परमहंस केिशंय अभेदानंद जी, ःवामी ववेकानद के मंझले भाई ौी उपेिनाथ द और ौीरामकृ ंण देव के समय के परिचत सभी के पास वे ले गये। ःवामी अभेदानंद ौीगुजी को देखकर बहत ु ूसन हए ु और अपने एक िचऽ पर हःतार कर उह देतेहए ु कहा, ‘तुम यागी के समान जीवन-यापन करोगे।’ ौी गुजी के बचपन के एकसहपाठ ने, जो सारगाछ आौम म रहते थे, बेलूर मठ म रहने का िनय ूकटकया। ौी गुजी ने भी अपना वह मंतय ूकट कया। तब ौी अिमताभ महाराज ने<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४१


उह अलग ले जाकर कहा क तुह रामकृ ंण िमशन म नहं रहना है। ौी गुजी नेचक कर कहा, ‘आप सच कह रहे ह ? आपको कै से मालूम हआ ु ?’ ौी अिमताभमहाराज ने अखंडानंद जी से हआ ु वातालाप बताया। ौी गुजी ने कहा, ‘मुझे भीगुदेव ने यह आदेश दया है क जब भी कोई कठनाई आए, म आपसे परामशिलया कँ । अब आपक मेरे बारे म या योजना है ?’ ौी अिमताभ महाराज ने कहा,‘म तुमको जहाँ से लाया हँ ू, वहं ले जाकर सप दँगा। ू ’ौी गुजी को साथ लेकर ौी अिमताभ महाराज नागपुर लौटे। एक मास रामकृ ंणआौम म रहकर ःवामी ववेकानंद के िशकागो यायान का मराठ अनुवाद करायामानो परम ौेय बाबा जी के ारा ूा हई दा क यह गुदणा थी। तपातुौी गुजी के मामा ौी रायकर को बुलवाकर उनसे ौी महाराज जी ने कहा क वेउनको डाटर साहब के पास पहँचा द। इस तरह डाटर साहब को भावी सरसंघचालकुक उपलध हो गई।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४२


६ जीवन काय का िनधारणसारगाछ से लौटने के बाद ौी गुजी ूायः उदास रहा करते थे। इस बात म कोईसंदेह नहं लगता क ौी गुजी के मन म अपने कायेऽ और काय के सबध मवचार का तुफान उठ रहा होगा। डाटर हेडगेवार जी के साथ उनका सपक १९३१ सेह था। संघकाय भी उहने िनकटता से देखा था। डाटरजी के साथ चचाएँ भी हई ुथी। अपना देश, अपना समाज, रा के सम उपःथत चुनौितयाँ तथा उनके िनवारणके माग के सबध म कु छ दशा-ान तो उह पहले ह हो चुका था। उहं के शदम कहना हो तो “डाटरजी मेरे तक कठोर, गहन, दगम ु अंतःकरण म कै से ूवेश पागये, इसका मुझे पता तक नहं चल पाया।” वैसे गुजी भले ह अपने आपको तक -कठोर बु का तथा गहन अंतःकरण वाला कहते ह तथाप सामाजक दःख को ुदेखकर िवत होनेवाला मखन से भी मुलायम अतःकरण उहने पाया था। औरफर रामकृ ंण, ववेकानंद, अखंडानंद और रामकृ ंण आौम क परपरा भी य कोके वल यगत मो साधना म ह लगे रहना नहं िसखाती थी और इस सीख काअिमट छाप गुजी के अतःकरण पर भी पड़ थी। ःवामी ववेकानंद ने समाज केदन-दःखी दिलत को दरिनारायण मानकर उनक सेवा म ह जीवन का होम चढ़ानेुका आहवान कया था। इसीिलए ःवामी अखंडानंदजी ने सारगाछ म आौम कःथापना क थी। यहाँ ूा संःकार ने ह ौी गुजी को समाज से न टटने ु औरसमाज के बीच रहकर ह सेवाभावना से कममय जीवन क ूय ूेरणा द हो तोउसे अःवाभावक नहं कहा जा सकता। सा क राजनीित म गुजी को कभी कोईिच नहं रह। आयामक अिधान को सुरत रखकर अपनी मातृभूिम को समूचेव म गौरवशाली ःथान ूा कराने का जो सूऽ ःवामी ववेकानंद ने ूितपादतकया था, उसी ओर ौी गुजी का ःवाभावक झान था। इस सूऽ से मेल रखनेवालासमाज को संगठत तथा संःकार-ूवण बनाने का काय संघ के प म खड़ा होता हआ ुउह दखाई दे रहा था। इस काय म अपने शरर को चंदन सा िघसते हए डाटर जीुके जीवन को भी वे देख रहे थे।६.१ संघ-संःथापकडाटर हेडगेवार जी ारा ःथापत और अपना सवःव लगाकर वृंगत पोषत वसंविधत राीय ःवयंसेवक संघ वाःतव म देश का कायाकप करने का एक दयकाय है। १९२५म उहने काफ वचारपूवक संघ क ःथापना क थी। उसके पूव जन-जागरण और रा को दासता से मु कराने क दशा म चल रहे ूायः सभी काय म<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४३


सहभागी हो कर उहने ूय अनुभव ूा कया था। बचपन से ह उनके दय मदेशभ क ूखर भावना वमान थी। अपने देश पर वदेशी ॄटश का चलनेवालाराज उनके अतःकरण को सदा यिथत करता था। ःवाधीनता आदोलन सवऽ फै लरहा था। बायकाल म ःवाधीनता क ललक कभी नागपुर के सीताबड के कले परलगा यूिनयन जैक उतारकर वहाँ भगवा वज फहराने क वलण कपना म तोकभी शाला म ‘वदेमातरम’ ् के उ-घोष के प म डाटरजी के जीवन म अिभयहई थी। ुबड़े होने पर ःवाधीनता के िलए चलाये जा रहे विभन आदोलन म उहने खुलकरहःसा िलया। मूलप म उम-ःवभाव के होने के कारण डाटरजी सवूथम सशबांितकार आदोलन क ओर आकृ हए। ु बंग-भंग के बाद अनेक युवक इस आंदोलनक ओर आकषत हए थे। लोकमाय ितलक काु‘के सर’ और िशवरामपंत परांजपे का‘काल’ समाचार पऽ इन तण के ःफू ित-के ि थे। बंगाल म कायरत बांितकारय केआंदोलन म सहभागी बनने के उेँय से ह डाटर जी ने कलका नेशनल मेडकलकालेज म ूवेश िलया था। तन मन से िनःःवाथ देश सेवा करना डाटर जी काःथायी भाव था। ूथम महायु के समा होने तक वे बांितकारय के आंदोलन सेजुड़े रहे। कतु ूदघ अनुभव के बाद उह यह समझते देर नहं लगी क मुठ भरलोग के गु संगठन ारा सपूण देश म जड़ जमाकर बैठे शशाली ॄटश शासनको न कया जा सकना संभव नहं है। इसके िलए सपूण समाज म देशभ ूखरभावना और ःवाधीनता ूाि क तीो आकांा जागृत करनी होगी। बांितकारआदोलन का दाहक माग समाजश को जागृत करने म उपयोगी नहं हो सकता।डॉटर जी ने बांितकार आदोलन का अपने जीवन का अयाय समा कया औरकांमेस के ःवाधीनता-आदोलन म वे कू द पड़े। उस समय वे कांमेस म ितलक जी केसाथ खड़े रहे। वदभ म ितलक-समथक नेताओं का उहने साथ दया। तदथ अखबारचलाये, दौरे कये और उेजक भाषण भी दये। इससे उनका परचय ेऽ बढ़ा।डाटर जी ने अपने सामने लोकसंमह का लआय रखा था। डाटर क परा पासकरने के बाद भी न तो उहने वह पेशा अपनाया और न ह घर-गृहःथी बसाने केचकर म वे पड़े।१९२० क नागपुर कांमेस और बाद म महामाजी के नेतृव म ूारंभ हआ असहयोगुआंदोलन डाटर जी के जीवन म हो रहे परवतन का एक महवपूण चरण था। १९२०म नागपुर म आयोजत कांमेस अिधवेशन क अयता लोकमाय ितलक ःवीकारकर, इस दशा म वदभ म यापक तैयारयाँ हो चुक थीं। कतु ितलकजी केआकःमक देहावसान से सार परःथित बदल गई। डाटर जी ने डा. मुंजे के साथ<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४४


पाडचेर जाकर अरवद बाबू को अयता करने के िलए मनाने का ूयास कया।कतु अरवद बाबू ारा अःवीकार कये जाने से इसम सफलता नहं िमल सक।फर भी डाटर जी ने कांमेस अिधवेशन म उसाह से भाग िलया। ःवयंसेवक दल कादाियव उहने अछ तरह िनभाया। इतना ह नहं तो खलाफत आंदोलन केसंभावत परणाम क कपना से िचतत होते हए भी असहयोग आंदोलन म अमणीुरहकर हःसा िलया। यायालय म ओजःवी बयान दया और ‘राजिोह’ के आरोप मकारावास क सजा भी काट। ःवाधीनता ूाि का आंदोलन अपने सारे मतभेद कोदर ू रखकर चलाया जाना चाहए। उनक यह भूिमका थी। जेल से मु होने पर उहदखाई दया क कांमेस ारा खलाफत आंदोलन को अपनाये जाने से मुःलमसाूदाियकता को अिधक बढ़ावा ह िमला है। हद समाज पर उनके आबमण बढ़ूगये है। मुःलम के अनुनय क कांमेस क नीित आमघाती िस हो रह है।असहयोग आंदोलन से ूय प म कोई लाभ तो नहं िमला, उटे हंसाचार केकारण उसे अकःमात ् वापस लेने क घोषणा कर द गई। परणामःवप लोग म घोरिनराशा फै ल गई और लोग फर से रा के िलए याग क भावना को भूलकरःवाथसाधना म मन होने लगे।६.२ एक अनुपम काय-पित का वकासडाटर जी को आदोलन के दौरान जो ववध ूकार के अनुभव आये, नेताओं ारासतह वचार करने क जो ूवृ देखने को िमली और रा के सबध म गहराई सेसवागीण मूलगामी िचंतन के अभाव का अनुभव हआ ु - इन सब बात से उहने कु छठोस िनंकष िनकाले और उसके आधार पर ह अयंत वचारपूवक एक नयी पित सेरायापी संगठन खड़ा करने का उहने संकप िलया। उनके िनंकष इितहास तथाअनुभव पर आधारत ःप और असंदध थे। उनका ूथम िनंकष था, भारत कपराधीनता के िलए दसर ू को दोष देने क अपेा राीय दबलता ु को ह जमेदारमाना जाए। हम पर आनेवाली समःत संकट-परपरा क जड़ म हमार अपनी दबलता ुहै। अतः समःयाओंके मूल कारण राीय दबलता का परहार करना आवँयकता है।ुइस के िलए समाज म राीय चारय का अभाव दर ू कर उकट देशभ के संःकारक यवःथा करनी होगी। उनका दसरा ू िनंकष था, अंमेज क सा का के वल वरोधकरना ह देशभ नहं है। लोग के मन म इस रा के मूलःवप क वधायककपना को अंकत करना होगा और रा के ूित एकाम-भाव जागृत करना होगा !इसके अभाव म अंमेज के यहाँ से चले जाने के बाद भी समःयाओं का अंत नहं होपायेगा; यक लोग चारय, अनुशासन और देशभ के अभाव म ःवाथ-साधनाऔर परःपर कलह म ह लगे रहगे। इसिलए उनके सामने वधायक आदशवाद<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४५


ूःतुत करना आवँयक है। तीसरा महवपूण वचार ड़ाटर जी ने अयंत िनभकताके साथ लोग के सामने रखा क अपना यह रा, जसक आमा हद ू संःकृ ित है,एक इितहासिस ूाचीन हद ू रा है। इस रा म हद ू समाज िनभयता से, गौरवके साथ और अपने सांःकृ ितक आदश का अनुकरण करते हए ु ःवािभमान के साथ रहसके , इतना सामयशाली उसे बनाना होगा ताक कोई भी हदू समाज और हदूरा क ओर बुर नजर से न देख सके । यह सामय राभ से ओतूोत येयवादसंगठन के ारा ह ूा हो सके गी। वे यह भी अनुभव करते थे क के वल ओजःवी,उेजक भाषण ारा अथवा सभाओं म ूःताव पास करने माऽ से ऐसा संगठन खड़ानहं कया जा सके गा। इसिलए दैनंदन संःकार देने वाली शाखा पित को उहनेअपनाया। यह अिभनव पित तो डाटर हेडगेवार जी क ूितभा क देश को ूाअमूय देन ह मानी जाएगी। शाखा पित के बना इतना बड़ा संगठन खड़ा होनाअसंभव ह था। काफ वचारमंथन के बाद डाटर जी ने ‘संघकाय को ह जीवन काय’के प म अपनाकर अपना सवःव लगाकर जीवन का एक-एक ण और श काएक-एक कण संघ काय के िलए यतीत कया।६.३ ौी गुजी – जीवन काय का िनयसंेप म संघ क ःथापना और उसके वःतार क यह पृभूिम है। इसके ूेरणा-के िऔर संगठनामक काय के जीवंत आदश के प म डाटर जी का ह यव सबकेसामने था। ौी गुजी जब सारगाछ से नागपुर लौटे तब डाटर जी ने उह उनकेजीवन-काय का सााकार तकाया। डाटर जी के िनमल और येय समपत जीवनसे सुर िमलते गये और दोन जीवन एकप हो गये। यह देखकर सभी चकत रह गयेक के वल तीन वष क अविध म ह इतना दरगामी परणामकार चमकार कै से होूगया। गुजी जब वापस लौटे तो सवािधक खुशी डाटर जी को हई। गुजी नेुसारगाछ म िनरतर यान-धारणा और अपने गुदेव से दा-ूसाद पाकर जोआम-बल अजत कया था, वह डाटरजी क ी म कम महवपूण अथवाउपेणीय नहं था। उनक इछा यह थी क गुजी क सार गुण-सपदा, उनकासारा तपोबल, उनके सारे भौितक और आयामक ान का पूण उपयोग संघ-कायके प म देश क, रा क सेवा म हो। ौी गुजी संघकाय को ह जीवन-काय के पम अंगीकृ त कर। ौी गुजी के नागपुर लौटने के बाद डाटर जी के साथ उनक भट-वाताओं का बम शु हो गया। इन भट-वाताओं म डाटर जी ने पुनः एक बार ौीगुजी के सम यह भूिमका ूःतुत क क आयामक जीवन का अनुभव ूाकये हए ानी य को के वल यगत सुखानुभूित म ह रमने क बजाय समाजुऔर रा क उथान म अपनी सार श लगानी चाहए। इस बार डाटर जी क यह<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४६


भूिमका गुजी के अतःकरण म पैठ गई। डाटर जी का जीवन तो वे ःवयं देख हरहे थे। संकु िचत ‘म’ का लोप होकर सम प बना वह वरागी और कमयोगी काजीवन था। डाटर जी अपने ःवयं के िलए कु छ नहं चाहते थे। फर भी कु छ दनतक गुजी क ःवछंदता कायम रह। वे कभी रामकृ ंण आौम म जाते, कभीबांसुर-वादन म रमते और कभी िमऽ मडली म गप-शप म लगे रहते तो कभीपुःतक के ढेर के बीच एकांत म पढ़ने अथवा यान-धारणा म मन रहते। इसकेबावजूद संघ के साथ उनक िनकटता भी बढ़ती जा रह थी।इहं दन ौी गुजी के नाम से ‘वी ऑर अवर नेशनहड ु डफाइड’, जसके बारे मःवातंयवीर सावरकर के ८0 व जमदवस के उपलआय म आयोजत सैिनककरणसाह म द. १५ मई १९६३ को बोलते हए ुौी गुजी ने कहा था क “राीयःवयंसेवक संघ म ‘वी’ या ‘आह कोण’ पुःतक का िनयमपूवक वाचन कया जाताहै। ौी बाबाराव सावरकर ारा िलखत “रािममांसा” पुःतक को सं प देते हए ु(we) ‘वी’ पुःतक मने ह िलखी थी। ौी बाबाराव क आा से मने उस पुःतक काहंद भाषांतर* भी कया था और उसे एक गृहःथ को सप दया था। ौी बाबाराव केइस ऋण को कृ ततापूवक ूगट प म ःवीकार करना मुझे उिचत लगता है।” गुजीको धीरे-धीरे संघकाय म लगा कर डाटर जी ने १९३८ म उह नागपुर के संघ िशावग का सवािधकार बनाया।ौी गुजी ारा संघकाय य ःवीकार कया गया, इस वषय पर उहने बकु ल हूकाश नहं डाला ऐसा नहं ह। ‘वी ऑर अवर नेशनहड ु डफाइड’ मंथ के संबंध म१९३९ म पछली पीढ़ के सुूिस मराठ लेखक और दैिनक ‘तण भारत’ (नागपुर)के संपादक ःव. ग.य. माडखोलकर उपाय भाउसाहेब के साथ ौी गुजी क ूदघ चचा हई। ु इस अवसर परडॉ. हेडगेवार ःवयं उपःथत थे। मंथ के वषय म चचा पूर होने पर ौी गुजी केअनुमित से भाउसाहेब ने ौी गुजी से एक यगत ू पूछा। ौी गुजी केमहािनवाण के बाद नागपुर के दैिनक तण भारत म (दनांक १६/ ६ / ७३) ‘ऽकोणीसंगम’ शीषक से एक वःतृत लेख भाऊसाहेब ने िलखा। उसम इस यगत ू काऔर उस पर ौी गुजी ारा दये गये उर का उलेख है। वह महवपूण होने सेमूल लेख म से वह हःसा य का य यहाँ उत कया जा रहा है।ृमाडखोलकर िलखते ह, ‘मने पूछा, ऐसा मने सुना है क आप बीच म संघ का यहाँका काम छोड़कर बंगाल म रामकृ ंण आौम म गये थे और वहाँ आपने ःवामी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४७


ुूुववेकानद के गुबधु से दा भी महण क। परतु फर आप रामकृ ंण आौमछोड़कर पुनः संघ म कै से आ पहँचे ु ? आपको ऐसा नहं लगता क आौम कभूिमका से संघ क भूिमका बकु ल िभन है ?” मेरा यह ू सुनते ह ौी गुजीएकदम ःतध हो गये। उहने कु छ ण अधमीिलत से वचार भी कया।मान वे उस उमनी अवःथा म पहँच ु गये ह। कु छ समय पात उहने धीरे-धीरेबोलना ूारंभ कया- ’उहने कहा, “आपने यह बकु ल अनपेत ू पूछा है। परंतु आौम और संघ कभूिमका म अंतर है या नहं यह मुझसे अिधक डाटर साहब ह अिधक अिधकार सेबतला सक गे, यक बांितकार आदोलन के कालखंड म वे कलका रह चुके ह औरउनके बांितकारय से घिन संबंध भी थे। आपने भिगनी िनवेदता का आबामकहद धम ू- ‘Aggressive Hinduism’ मंथ पढ़ा भी होगा। उसी ूकार बांितकारय सेउनका कतना िनकट का संबंध था, यह भी आपको मालूम होगा ऐसा म समझता हँ। ूमेरा झान अयाम के समान ह रा संघठन के काय क ओर भी ूारंभ से ह है।वह काय संघ म रहकर अिधक परणामकारता से म कर सकूँ गा, ऐसा अनुभवबनारस, नागपुर और कलका के वाःतय म मुझे हआ। इसिलए मने संघकाय म हुःवयं को समपत कर दया। मुझे लगता है क ःवामी ववेकानंद के तव ान,उपदेश या काय पित से मेरा यह आचरण सुसंगत है। मुझ पर उनका जतना ूभावहआ है उतना दसर कसी वभूित के जीवन या उपदेश का नहं हआ है। मुझेवशवास है क संघ म रहकर उहं का काय म आगे चलाऊँ गा।” इस ूकार तकवश करते समय ौी गुजी क आँख म जो आमवास क चमक खेल रह थीवह म कभी भी नहं भूलूँगा ।” डाटर साहब भी बकु ल गंभीर हो गये थे। ”िभन-िभन दशाओं के बीच झूल रहे जीवन का यह िनणायक संबमण काल था।यह कहना गलत न होगा क १९३८ का संघ िशा वग ह उनके जीवन क दशािनधारत करनेवाली िनणायक घटना रह। इस वग के िनिम ौी गुजी क सारसंघानुकू ल गुण-संपदा ूभावी ढंग से ःवयंसेवक और कायकताओं के सम ूःतुतहई ु । संघ िशा वग म सवािधकार के नाते अनुशासनूयता, ःवयंसेवक के ूितवासय, अनुपम सेवाशीलता, असीम कायमता, सदा ूसन वृ, वापूणवृ व, गहरा अययन व िचंतन आद गुण का ूय दशन-अनुभव सभीःवयंसेवक एवं कायकताओं को ूा हआ और यह सब डाटर जी क अपेानुसार हुहआ ु , इसक उह बहत ु खुशी थी। संघ क ी से ौी गुजी को वे जैसा बनतादेखना चाहते थे वह इस संघ िशा वग से संभव हआ। ूमुख बात तो यह है कुइसके बाद उह डाटरजी का अखंड सहवास ूा हआ। अपने नेता का जीवन वेु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४८


अयंत िनकटता से देखते और तदनुप अपने जीवन म परवतन लाते और इसूकार ःवयं ौी गुजी के जीवन म आवँयक इ परवतन होता गया। इसका ूमुखकारण यह था क भावी जीवन म कौन सा माग अपनाया याए इस सबध मअिनतता क ःथित अब खम हो चुक थी। डाटरजी के जीवन को ह आदशमानकर वे उसका अनुकरण करने का ूयास करते । भारत क सार भौितकसमःयाओं और आमक ू का हल एकमेव संघकाय म ह है, इस ूकार क ौाउनक सुःथर हो चुक थी। माग िनत होने पर उस पर आगे बढ़ने क ौी गुजीक श भी वलण थी और इस श का परचय उनक छाऽ दशा, ूायापकयसेवा, सारगाछ आौम म साधना- ऐसे अनेक चरण म िमल चुका था। के वल जीवन-माग के चयन और िनधारण का ह ू शेष रहा था- वह भी हमेशा के िलए हल होगया। परणामःवप अपाविध म ह ‘डाटर जी के बाद कौन ?’ इस ू का उरभी मन ह मन म सबको िमल गया।६.४ डाटर जी का यापक आकलनइसका ूथम सााकार १९३९ के फरवर माह म डाटर जी ारा िसंद म आयोजतकायकताओं क महवपूण बैठक म हआ। दस दन तक चलनेवाली इस बैठक मुडाटर जी और उनके ूमुख सहयोगी कायकता उपःथत थे। संघकाय क ूगित,संघशाखा क कायपित, आा और ूाथना ओद अनेक वषय पर खुलकर चचाऔर सवसमित से आवँयक िनणय लेना ह इस बैठक का उेँय था। डाटर जी केदाय हाथ माने जाने वाले ौी अपाजी जोशी और ौी बालासाहब देवरस इस वचार-विनमय म शािमल थे। नये सहयोगी के प म ौी गुजी को इस बैठक म आमंऽतकया गया था। बैठक म एक-एक वषय बम से िलया जाता जस पर खुलकर चचाहोती। बैठक म उपःथत हर कायकता अपनी-अपनी बु-मित और इछानुसारसबधत वषय पर अपने-अपने वचार खुलकर रखता और सुझाव देता और अतम डाटर जी चचा का समापन करते हए ु या मा है और या अमा, इस सबधम अपना िनणय सुनाते। ूितदन आठ-आठ घंट तक चलनेवाली इस बैठक केकामकाज क यह पित थी। इस बैठक क कायवाह म ौी गुजी ने खुलकर अपनेवचार ूःतुत कये- अनेक वषय पर उनके वचार काफ आबामक और तीआण हआ ुकरते थे। कतु एक बार डाटर जी ारा समालोचना के बाद जो िनणय दया जाताउसे वे तथा अय सभी कायकता शांत-वृ और मन से ःवीकार करते।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ४९


इस बैठक के सबध म एक बार चचा के दौरान मा. अपाजी जोशी ने बताया क-“संघःथान पर वज को ूणाम करने के बाद ःवयंसेवक को और कसे ूणाम करनाचाहये- इस सबध म सुिनत पित िनधारत करने के वषय म ौी गुजीऔर मेरे वचार एक दसरे से मेल नहं खाते थे। ौी गुजी ने जहाँूसे संवैधािनक संके त के आधार पर अपने वचार ूःतुत कये वहं संघ कअयंत ूङावी ढंगपारवारक पित क रचनानुसार कौन सी पित ठक रहेगी, इस पर म जोर दे रहाथा। आखर डाटर जी ने जो िनणय दया वह मेरे वचार के अनुकू ल था। गुजी कासुझाव अःवीकृ त कर दया गया। उस समय म बारक नजर से गुजी के चेहरे कओर देख रहा था कं तु उनके चेहरे पर नाराजी के कोई भी भाव मुझे नजर नहं आये।बाद म परःपर वाता म भी कभी कोई कटता ु का परचय नहं िमला। इतना संयम,मन का संतुलन और नेता के ूित ौा और वास देखकर हम सभी मुध रह गये।िसंद के इस वग म डाटर जी मुझसे पुछा- ‘य अपाजी, भावी सरसंघचालक केप म ौी गुजी आपको कै से ूतीत होते ह ?’ तब म ने बैठक म चचा के समयअपने िनरण के िनंकष क सा ूःतुत करते हए ु तुरत कहा- ‘अित उम,’सवथा उिचत।”डाटर जी के मन म यह ू उठना ःवाभावक था क भावी सरसंघचालक कौन रहेसंघ क ःथापना से अब तक कये गये लगातार अवराम परौम के कारण वे थकचुके थे। १९३२ से उनका ःवाःय दनदन िगरता जा रहा था। के वल ढ़ इछाशके बल पर ह वे अपने िनधारत कायबम सपन कर पाते थे। काय-वृ हेतुअहोराऽ ूय करते थे, कतु बैठक म कसी को यह महसूस नहं होने देते कउह शाररक यथा के कारण कोई क हो रहा है। वे हमेशा ूसन और ूफु लतचेहरे से वचरण करते थे। कतु ःवयं अपनी शाररक-यािध से परिचत होने केकारण वे काय वःतार क से भावी यवःथा-योजना क उपेा नहं कर सकतेथे। अयंत परौमपूवक खड़े कये गये इस संगठन को यद अपने लआय क ओरबढ़ाना और वःतारत करना हो तो उसके िलए समपत और गुण-सपन नेतृव कपरपरा आवँयक होती है। य काम खड़े करते ह कतु उसे येयवाद कोणसे आगे बढ़ानेवाले लोग नहं िमले तो वह काय अधूरा ह रह जाता है तथा न होजाता है। ःथान-ःथान पर डाटर जी को यह देखने को िमला था। संघ का ऐसा नहोने पाये, इस से उनका िचतत होना ःवाभावक ह था।ौी गुजी ने १९३८ के बाद संघकाय को ह अपना जीवन-काय ःवीकार कर डाटरजी के साथ रहते हए अपना सारा लआय संघकाय क वृ पर जब के ित कया तोुडाटर जी क िचता दर ू हो गई। िसंद के वग म उनक संकपत योजना को उनके<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५०


जे अनुभवी सहयोगी तथा संघकाय के िलए समपत ौी अपाजी जोशी जैसेकायकता से हादक समथन भी िमल गया। िसंद क इस बैठक म संघ क दैनंदनशाखाओं म िलये जानेवाले कायबम के ःवप को अखल भारतीय बनाने क सेूाथना से लेकर आा तक सभी बात म उिचत परवतन कया गया। आज क संघक संःकृ त ूाथना िसंद क बैठक म ह ःवीकार क गई। िसंद बैठक म िलये गयेदरगामी महव के िनणय क इस कड़ म डाटर जी ारा भावीूसरसंघचालक कामन ह मन चयन भी एक महवपूण ूसंग माना जा सकता है। इसे हम िसंद बैठकक देन कह सकते है।िसंद क बैठक समा होने के बाद डाटर जी ने गुजी को बंगाल म संघकाय आरंभकरने हेतु कलका भेजा। ौी गुजी लगभग १ माह तक कलका म अखंड ॅमणकरते रहे। वाहन खच अथवा अय यय के िलये उनके पास अिधक धन नहं था,अतः वे रोज २०-२५ मील पैदल ह ॅमण करते थे। आखर १९३९ क वष ूितपदाको कलका म संघ क ूथम शाखा शु करने म गुजी सफल रहे। गुजी कलकाम अिधक दन तक वाःतय नहं कर पाये। संघ का मींमकालीन िशा-वग िनकटथा। डाटर जी ने अपैल माह म ौी गुजी को नागपुर वापस बुलवा िलया और इसवष भी संघ िशा वग के सवािधकार का दाियव ौी गुजी पर सपा गया। १९३५से पुणे म भी संघ िशा वग का आयोजन ूारंभ हो चुका था और तब ऐसी योजनाबनी थी क डाटर जी पहले पखवाड़े म १५ दन पुणे के वग म रहगे और दसरे ूपखवाड़े म नागपुर के वग म उसके समापन तक रहगे। परतु उनका ःवाःय साथनहं दे रहा था और उह वौाम क अयािधक आवँयकता थी। कं तु नागपुर कासंघ िशा वग समा होते ह पुणे म ‘भगवा झडा’ मराठ िचऽ-पट के उ-घाटन हेतुउपःथत रहना उहने माय कर िलया था। अतः यह तय कया गया क पुणे मउ-घाटन कायबम के बाद लौटते समय नािसक के िनकट देवलाली म डाटर जीकु छ दन तक वौाम करगे। इस ूवास म डाटर जी के साथ गुजी भी थे। पुणेका कायबम शानदार ढंग से सपन हआ। ु पुणे से लौटने के पूव डाटर जी कोबदाई देने के िनिम कायकताओं क एक बैठक आमंऽत क गई। इस बैठक मडाटर जी ने ौी गुजी से हंद म बोलने के िलए कहा। तपात िनधारतकायबमानुसार वौाम लेने के िलए डाटर जी गुजी के साथ देवलाली गये।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५१


६.५ मजागत-सेवाभावकं तु देवलाली म उह बुखार आने लगा और वर क तीोता कम होने के बजायबढ़ने लगी। नािसक के वशेष डाटर ने उनके ःवाःय क जाँच क- औषधोपचारभी चल रहा था कतु सुधार के कोई लण नजर नहं आने से डाटर वग भीिचतत हो उठा- वे कु छ ूमाण म िनराश हो चुके थे। कतु ौी गुजी बनावचिलत हए ु डाटर जी क सेवा-शुौुषा म लगे रहे। उहने डाटर जी क सेवा मकोई कसर बाक नहं रखी। बुखार तेज होने से डाटर जी होश खो बैठते थे- अचेतअवःथा म वे बड़बड़ाते थे। सनपात क अवःथा म रोगी ूायः अंटसंट बड़बड़ाता है।कतु इस अवःथा म भी डाटर जी के मुख से संघकाय के अितर अय कसीवषय का कोई शद नहं िनकला। गुजी पूरे समय उनके पास बैठे रहते। दो-ढाई वषपूव सारगाछ म अपने गुदेव ःवामी अखंडानंदजी क जस तमयता से सेवा क थीवैसे ह सेवा वे डाटर जी क कर रहे थे।उनक सेवा सफल रह और डाटर जी के ःवाःय म सुधार होने लगा। खतरा टलगया और डाटर जी पर असीम ूेम करने वाले हजार ःवयंसेवक के चेहर पर सेिचंता के बादल छँटकर खुशी क लहर दौड़ पड़। ौी गुजी क णसेवा के सबधम और भी एक घटना उलेखनीय है। नागपुर के धतोली भाग के ौी वामनराववाडेगांवकर नाम के अंध सजन से ौी गुजी के इतने िनकट के संबंध थे क उहसाइकल के सामने के डंडे पर बठाकर नागपुर म ःथान-ःथान पर ले जाने हेतु ौीगुजी सदा िस रहते थे। वाडेगांवकर ने एक अंध वालय ूारंभ कया था। १९३४-३५ के आसपास वामनराव पर एक बहत बड़ शयबया करवाने क बात आयी। वेुःवयं अधे, परावलंबी। ऐसी ःथित म इतनी बड़ शय बया होने पर अपनी शुौूषाकौन करेगा ? इसक िचंता उनके मन म िनमाण हई। ु बकु ल िनकट के िमऽ केनाते उहने ौी गुजी को शयबया के वषय म सूिचत कया। िमऽ ूेम के खाितरशयबया के पूव ह ौी गुजी वामनराव के यहाँ रहने आ गये। मुबई मशयबया के समय उनके समीप ह रात-दन रहे। वामनराव ग-ग होकर कहाकरते, “अजी, इस एम.एस-सी. हए ु महापंडत ने मेर सेवा-शुौुषा इतनी मृदता ु से कक आमरण म उसे भूल नहं सकूँ गा। वशेष प से मल-मूऽ-वसजन विध म भीजब वे मेर सहायता करने लगते तब तो म लजा से गड़ जाता। जब म हर बारआनाकानी करने लगता तो उनका एक ह उर रहता, “उसम या है ? या म अपनेदेह क साफ-सफाई नहं करता हँ ू ? तुहार और मेर देह म या भेद है ?” यहूसंग बतलाते समय वामनराव क आँख से अौु का ूवाह बहने लगता और गलां ध जाता। वैसे वामनराव को संघ के संबंध म बकु ल ूेम नहं था। परतु ौी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५२


गुजी सरसंघचालक हए ु तब से ‘अपना संघ’ ऐसा शद ूयोग अपने आप उनके मुखसे सुनाई देने लगा। ौी गुजी म ूारंभ से ह सेवावृ कै सी रोम-रोम म रमी थी,यह िनदिशत करने के िलए इस ूसंग का यहाँ िनवेदन कया है। कतने ह सामायःवयंसेवक और कायकताओं को भी उनक इस सहज सेवावृ का अनुभव आ चुकाहै।ौी गुजी को डाटर जी क इस बीमार म उनके येय-समपत जीवन क कसौटपर अतबा प से खरे उतरे डाटर जी के दशन हुए। ौी गुजी ने ःवयं डाटरजी के अनोखेपन का वणन करते हए ु एक बार बताया था क तेज बुखार म होशगंवाने पर य या बड़बड़ायेगा, कहा नहं जा सकता; कतु ऐसी अवःथा म भीडाटर जी के मुख से संघकाय सबधी िचता ूकट होती रह। संघकाय उनकेअतमन म कतना गहरा पैठ चुका था- इसका दशन अचेतावःथा म उनके मुख सेसंघ और रा सबधी उ-गार से िमला और डाटर जी के ूित ौा से उनकामन ओतूोत हो गया। परणामःवप संघ, डाटर जी और गुजी म तादायःथापत हआ ु और संघकाय का अिधकािधक दाियव लेने के िलए गुजी पूण समपतभाव से सन हो गये।ःवाःय म सुधार होते ह डाटर जी गुजी के साथ ७ अगःत को नागपुर लौटे औरगुजी पर अिधकािधक दाियव सपने क दशा म उनक हलचल शु हो ग।कायकताओं क बैठक म इसके संके त भी वे देने लगे और राबधनमहोसव परउहने सरकायवाह के पद पर ौी गुजी क िनयु क घोषणा भी कर द। डाटरजी का िगरता ःवाःय तथा काय का वृंगत ःवप सहन करने म उनकअसमथता से यह ःप दखाई दे रहा था क अब ौी गुजी को ह नेतृव कासपूण दाियव संभालना होगा।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५३


७ सरसंघचालक क दाियव क ःवीकृ ितवैसे देखा जाए तो सरकायवाह के नाते ौी गुजी का कायकाल काफ छोटा रहा-के वल दस माह ह वे इस दाियव पर रहे। इस समय काय ूगितपथ पर था। वदभ,मयूदेश और महारा म तो शाखाओं का वःतार हो चुका था, कतु पंजाब,दली, कराची पटना, कलका, लखनऊ आद दरःथ ू शहर म भी तण कायकताकसी न कसी िनिम पहँच ु चुके थे। वहाँ भी संघकाय आरंभ हो चुका था। संघ कोयथाथ प म अखल भारतीय ःवप ूा होने लगा था। ःवयंसेवक क संया भीलाख से ऊपर पहँच ु चुक थी। काय को उिचत माग पर आगे बढ़ाने, अिधक ःथानपर वःतारत करने तथा कायकताओं का उसाह बनाये रखने के िलए डाटर जी कासवऽ संचार आवँयक था। कतु ःवाःय उनका साथ नहं दे रहा था। भले ह ऊपरसे अपने यवहार म वे कसी को इसका अनुभव नहं होने देते थे, कतु िनकटवतकायकताओं क ी से उनक यथा िछपी नहं रह सक। डाटर जी अब अिधकूवास नहं कर सकते थे। एक ओर डाटर जी क ःवाःय क िचथी तो दसर ू ओरकायवःतार तथा चन रहे काय के ढ़करण क िचता भी थी। इस ूकार ौी गुजीको दगना ु उरदाियव सहालना था।ौी गुजी इस सार परःथित को समझ रहे थे ऐर अपनी सब शयाँ लगाकरचुनौितय से जूझ रहे थे। कायकताओं के साथ उनका ूय सपक बढ़ने लगा। इसबढ़ते सपक म डाटर जी क ूेरक श कतनी महान ् है इसका अिधकाअिधकआकलन उह होने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता चला, डाटर जी क पीठ का दददःसह ु होता गया।७.१ उरािधकार का चयनआखर कु छ िमऽ ने डाटर जी से आमह कया क वे बहार के राजगीर नामकःथान पर कु छ दन तक वाःतय कर वहाँ के रोगिनवारक गरम पानी के झरने मःनान आद का उपचार महण कर। िमऽ के आमह पर डाटर जी राजगीर गये। वेचाहते थे क गुजी भी उनके साथ चल; कतु नागपुर म बढ़ते हए ु काय कोसहालने के िलए ौी गुजी का कना आवँयक था। इसिलए वधा के जलासंघचालक तथा डाटर जी के जे सहयोगी मा. अपाजी जोशी उनके साथ राजगीरगये। कतु राजगीर का इलाज कोई वशेष लाभदायक नहं रहा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५४


इस समय तीय महायु ूारंभ हो चुका था। देश क ःवाधीनता के िलएछटपटानेवाले डाटर जी क आंतरक अःवःथता बढ़ती जा रह थी। रात-रात भरउह नींद नहं आती थी। तीन वष के कालखंड म शहर ेऽ म तीन ूितशत औरममीण ेऽ म एक ूितशत गणवेशधार तण ःवयंसेवक खड़े करने के कालबकायबम का आहवान डाटर जी ने इसी राजगीर के अपने वाःतय म पऽ िलखकरसमःत कायकताओं से कया था। इस ूितशत के पछे उनका या मानस था इसकापता चल पाना मुँकल था, कतु आगे चलकर १९४२ म देश म जो परःथितिनमाण हई ु उसे देखते हए ु यह वचार मन म उठना ःवाभावक है क कहं इसूचड युवाश के मायम से डाटर जी ःवाधीनता संमाम के अंितम ःवणम पृिलखने को आतुर तो नहं थे ? डाटर जी ारा दये गये कालब कायबम के अनुसारकायवृ के िलए ौी गुजी और डाटर जी के अय तण सहयोगी कायकतागणकटब होकर काम म जुट गये। कतु िनयित क योजना कु छ और ह थी।डाटर जी ने कायवृ के लआय के संबंध म राजगीर से जो पऽ िलखा था, उसकाकारण था चंिपुर (वदभ) म होनेवाले ूौढ़ ःवयंसेवक का िशवर। ऐसे िशवर मडाटर जी ःवयं उपःथत रहकर मागदशन कया करते थे। इस बार इस ूथा कापालन नहं हो पा रहा था। इसिलए उहने िशवर के अिधकारय को अपनीअसमथता य करने वाला पऽ िलखा : “इस समय म उपःथत नहं रह रकूँ गा,इसका मुझे दःख ु है। अप सब लोग उसाह से काय बढ़ा रहे हगे। परतु इस बैठकम संकप कर क अपने ूांत के मामीण वभाग म एक ूितशत और शहर म तीनूितशत ःवयंसेवक क संया होगी। ” यह लआय तीन वष म पूण हो ऐसी अपेाभी उहने य क थी। संघ क कायवृ क कपना का ःपीकरण देते हए ु ौीगुजी ने कहा क एक ूितशत और तीन ूितशत म िगना जानेवाला ःवयंसेवकनेतृव करने म सम हो ऐसी उससे अपेा है। उसक गुणवा ऐसी हो क वह ६०-७० लोग को अपने साथ ले जा सके और िमऽ व मागदशक के नाते उनका वाससंपादन कर सके । इससे संघ क योजनानुसार काम करनेवाला अयंत वशालसंगठत सामय यवहारतः खड़ा हो सके गा और अपने हाथ म पारे सूऽ रखकर लोगक ःवातंयकांा को सुिनत मोड़ दे सके गा। इसीिलए ऐसा कहने क इछा होतीहै क १९४२ तक यह हो सका होता तो १९४२ म कु छ िनणायक कदम संघवासपूवक उठा सकता। ऐसी श न होने कारण ह तीय महायु के महवपूणकालखंड म भी वदेशी सा पर िनणायक ूहार करने का कदम सरसंघचालक जी नहंउठा सके । कायवृ के िलए संपूण समय देने वाले कायकताओं क बहत ु बड़“ूचारक योजना” माऽ इस समय कायावत हई। ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५५


१९४० का अूैल माह आया और डाटरजी संघ िशा वग के बारे म सोचने लगे। यहतय हआ ु क ूितवष क भाँित १५ दन पुणे के वग म रहा जाए और इधर नागपुरके वग का दाियव ौी गुजी सहाल। डाटर जी पुणे के वग म गये और वहाँ केसारे कायबम ठक ढंग से सपन हए। ु पुणे वग म आए ःवयंसेवक से भावपूणवदाई लेकर डाटर जी नागपुर लौटे। कतु जस दन वे नागपुर पहँचे ु उसी दनउह बुखार चढ़ आया – बुखार काफ तेज था। तुरत उपचार शु हआ। ु कतु वरउतरने का नाम ह न ले रहा था और ःवाःय दनदन अिधक बगड़ता चला गया।ौी गुजी संघ िशा वग का सारा दाियव सहालते हए ु डाटर जी के औषधोपचारऔर सेवा-सुौूषा क ओर भी यान देते थे। उनका एक-एक दन अयंत मानिसकदबाव म दाियव-वहन क िचता म बीतता। वग क समाि के बाद उनका सारायान डाटर जी के उपचार पर के ित हो गया। कतु इस बार उनक सेवा औरपरौम को सफलता ूदान करना शायद ईर को ःवीकृ त नहं था। डाटर जी कोपहले मेयो अःपताल म और बाद म नागपुर के संघचालक ौी बाबासाहब घटाटे केिसवल लाइस ःथत ूासाद म लाया गया। वर क तीोता कायम थी। पीठ का ददअस था। अंत म द. २० जून को डाटर ने हताश होकर कहा क ‘लबर पंचर’करना होगा। इस समय तेज बुखार के बावजूद डाटर जी सजग थे। वे जान गये थेक उनक अतम घड़ अब आ चुक है। अपने बाद संघ का दाियव सरसंघचालकके नाते कौन सहालेगा, यह उहने वहाँ उपःथत सभी कायकताओं के सम घोषतकर दया। उहने ौी गुजी को अपने पास बुलाया और कहा, अब आप ह संघ काकाय सहाल। ूथम यह माय कजये और फर मेरे शरर का जो करना होकजये।उरािधकार क यह भाषा सुनकर गुजी ने अयंत दःखत ु ःवर म कहा, “डाटर जीयह आप या कह रहे ह? आप इस बीमार से शीय अछे हो जायगे।”इस पर डाटर जी ने हँसते हए ु कहा- “यह तो ठक है, परंतु मने जो कु छ कहा हैउसे अवँय यान म रखये।”उस एक ऐितहािसक ण म डाटर जी ने सरसंघचालकव का उरािधकार सपदया। उहने ौी गुजी के हेथ सब सूऽ दे दये। ड़ाटर जी का लबर पंचर कयागया। पर बुखार और तेज हो गया और रचाप बढ़ गया। अयािधक वेदना के कारणडाटर जी अचेत हो गये। उसी अचेतावःथा म दसरे ू दन शुबवार द. २१ जून को<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५६


ूातः ६ बजकर २७ िमनट पर डाटरजी क आमा उस यथा-जजर देह को छोड़करअनंत म वलीन हो गई।७.२ डाटर जी क वरासतराीय ःवयंसेवक संघ के िलए यह बहत ु बड़ा आघात था। संघ का काय महारा औरमयूदेश के बाहर दरू -दरू तक फै लता जा रहा था। कायवृ क से वातावरणउसाहवधक था। १९४० के संघ िशा वग म आये िभन-िभन भाषा-भाषीःवयंसेवक को देखकर डाटर जी ने अपने ९ जून के अंितम दयःपश भाषण म येउ-गार िनकाले थे- “आज अपने सामने म हदू रा क छोटसी ूितमा देख रहाहँ। ू पुणे के संघ िशा वग म म पंिह दन तक रहा और वहाँ मने ूयेकःवयंसेवक से ःवयं परचय कर िलया था। म समझता था क यहाँ भी ऐसा ह करसकूँ गा, कतु आप जानते ह ह क पछले कछ दन से म ण-शया पर पड़ा हँ। ूइस कारण से म आपक सेवा तिनक भी नहं कर सका। इसीिलए आप सबके एकऽदशन करने आज म यहाँ आया हँ। ू म यहाँ कु छ अिधक बोल नहं पाऊँ गा। मेराआपसे इतना ह कहना है क हमम से ूयेक ःवयंसेवक को चाहए क वह संघ-काय को ह अपने जीवन का ूमुख काय समझे और इसी माग पर चलते-चलतेअपने हदू समाज को इतना समृ और शशाली बनाये क दिनया ु क कोई शहदू समाज क ओर ितरछ नजर से देखने का साहस न जुटा पाये। ‘संघ काय हमेरे जीवन का काय है’ इस मंऽ को अपने दय म अंकत कर सारे कायकता अपने-अपने ःथान पर लौट।”डाटर जी का यह अवःमरणीय भाषण अपने दय म अंकत कर सारे कायकताअपने-अपने ःथान पर लौटे ह थे क के वल दस दन बाद डाटर जी के देहावसानका दःखद ु समाचार उह ूा हआ। ु डाटर जी ने अब सदा के िलए सबसे बदाई लेली थी। डाटर जी के महाूयाण का समाचार सुनकर देशभर के लाख ःवयंसेवकःतध रह गये। उन पर मानो वळाघात हआ ु था।जस येयवाद संगठन को डाटर जी ने लगातार १५ वष तक अपने खून-पसीने सेसींचकर अहोराऽ अथक परौम से खड़ा कया था, उस संगठन का दाियव आब ौीगुजी पर आ पड़ा था। डाटर जी ने अयंत वास के साथ काय का दाियव उनपर सपा था। फर भी संघ के िनमाता के िनधन से हए ु वळाघात से संगठन कोसँवारना तथा काय को ूगितपथ पर आगे बढ़ाना कोई आसान काम नहं था यकडाटर जी के जीवन क पृभूिम और ौी गुजी के जीवन क पृभूिम म मह अंतर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५७


था। डाटर जी का सारा जीवन ह सावजिनक और राजनीितक काय म बीता था।संघ के बाहर भी उह चाहनेवाले िमऽ तथा नेता माननेवाले अनुयाियय क संयाबहत ु बड़ थी। राजनीितक ेऽ म संघ के ूित ईंया क भावना िनमाण होती दखाईदे रह थी। सा क राजनीित म लगे कतु हदतववाद ु अनेक लोग चाहते थे कयह संगठन उनक इछानुसार काय करे। गुजी तो संघ म नये ह थे और वेमूलतया आयामक ूवृ के थे। राजनीित अथवा सावजिनक काय के साथ उनकाकभी सबध नहं आया था। संघ के बाहर के ेऽ म वे अपरिचत ह थे। ऐसीःथित म कोई आय नहं था क संघ क भावी यवःथा के सबध म बन माँगेअनाहत ू परामश देनेवाले आगे आते।संघ के हतिचंतक समझे जानेवाले अनेक लोग ने यह आमहपूवक सुझाव ूःतुतकया क अब डाटर जी के बाद संघ का सूऽसंचालन कसी एक य के हाथ मरखने क बजाय कु छ जे लोग का एक सलाहकार मंडल बनाया जाए। संघ के ूमुखकायकता ौी गुजी के नेतृव को न ःवकार करइसके िलए कस सीमा तक ूयकये गये इसका एक ूय अनुभव माननीय ौी अपाजी जोशी बताया करते थे।डाटर जी के देहावसान के बाद उनके चहेते एक हदववाद ु वकल महाशयअपाजी के यहाँ आये और डाटर जी क मृयु पर गहरा शोक य करने के बादअपाजी से कहने लगे - “अपाजी, आप तो डाटर जी के दाहने हाथ थे। अतःसंघकाय क धुरा अब आपको ह संभालनी चाहए। यह काम गुजी से नहं होपायेगा।”इस पर अपाजी ने उह जो उर दया वह एक ओर जहाँ उनके दय क वशालताका दशन कराता है वहं इस बात पर भी ूकाश डालता है क डाटर जी ने कसूकार का संगठन खड़ा कया था। अपाजी ने उस वकल महाशय से कहा, “म अगरडाटर जी का दाहना हाथ था तो गुजी उनके दय थे। डाटर जी का चयन सवथाउिचत है। इस सबध म उहने मुझसे भी परामश कया था।”डाटर जी क मृयु के बाद दस-बारह दन म ह ौी गुजी क िनयु कोववादाःपद बनाने का यह ूयास हआ ु , उसक दाल नहं गल पायी। सभी ने अनुभवकया क ौी गुजी को नये सरसंघचालक के प म अिधकृ त प से ःवीकार कयाजाना चाहए। इसके पूव अकोला म पांच संघचालक क एक बैठक हई। ु जसम वधाके ौी अपाजी जोशी, वदभ के ौी बापू साहब सोहनी, नागपुर के ौी बाबासाहबपाये, ौी बाबासाहब घटाटे, महारा ूांत के संघचालक ौी काशीनाथ पत ने भाग<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५८


िलया। बैठक म परःथित का आकलन कया गया। डाटर जी ारा उरािधकारसबधी िलया गया िनणय ह सवथा उिचत होने तथा ूायापक माधवरावगोलवलकर के प म कया हआ ु चुनाव सवकृ होने क बात सभी ने मान ली।इस सवसमत िनंकष के बाद सभी ने ौी गुजी के नेतृव म अपना वास यकया और तय कया गया क डाटर जी क तेरहवीं के दन ौंजिल सभा म नयेसरसंघचालक के प म ौी गुजी के नाम क अिधकृ त घोषणा क जाए।िनधारत कायबमानुसार रेशीमबाग ःथत डाटर जी क पवऽ समािध क साी मनये सरसंघचालक के नाम क ूकट घोषणा करने तथा दवंगत सरसंघचालक डाटरजी के ूित ौांजिल अपत करने का कायबम सपन हआ। ु इस कायबम म ूथमनागपुर ूांत के संघचालक माननीय बाबासाहब पाये ने नूतन सरसंघचालक किनयु क घोषणा करते हए ु भाषण दया। संघ क एकचालकानुवितव क पितऔर २० जून को ःवयं डाटर जी ारा द गई संघ क भावी यवःथा सबधीजानकार ूःतुत करते हए ु उहने अपने भाषण म कहा क “आ सरसंघचालक कअंितम इछानुसार माननीय माधवरावजी गोलवलकर राीय ःवयंसेवक संघके सरसंघचालक िनयु कये गये ह और अब वे ह हम सबके िलए डाटर हेडगेवारजी के ःथान पर ह। म अपने नये सरसंघचालक को अपना ूथम ूणाम समपतकरता हँ। ू ”डाटर जी के वयोवृ चाचा ौी आबाजी हेडगेवार ने अपने सं, भावनापूण कतुूेरक भाषण म कहा क “हमारे डाटर जी हम छोड़कर नहं गये ह, उह हममाधवराव गोलवलकर के प म आज भी देख रहे ह – उनके ूयेक आदेश कोडाटर जी का ह आदेश मानकर हम सबको उसका पालन करना है।”इस कायबम म नये सरसंघचालक के प म ौी गुजी का भी भाषण हआ। ु यहभाषण गुजी के आमवास, नॆता और डाटर जी के ूित गहर ौा कािनदशक तथा उसाहवधक था। सरसंघचालक के नाते उनका यह ूथम भाषण था।अपने दाियव को वनॆतापूवक ःवीकार करते हए ु ौी गुजी ने अपने भाषण म कहाक “डाटर जी जैसे महापुष के सामने जो नतमःतक नहं हो सकता वह जीवन मकु छ भी नहं कर सकता। ऐसे महान य क पूजा करने म म अयंत गव काअनुभव करता हँ। ू चंदन-पूंप आद से पूजा करना तो घटया माग है। जसक पूजाकरना हो, उसके समान बनने का ूय करना चाहये – यह उसक सची पूजा है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ५९


‘िशवो भूवा िशवं यजेत’ ् – यह हमारे धम क वशेषता है। डाटर जी नेसरसंघचालकव का कठन दाियव मुझ पर सपा है। कतु यह तो वबमादय कावह िसंहासन है जस पर यद गड़रये का लड़का भी बैठा दया जाय तो वह भीउिचत याय ह करेगा। आज इस िसंहासन पर आढ़ होने का ूसंग मुझ जैसेसामाय य पर आया है। कतु डाटर जी मुझ जैसे य से भी वे ह बातकहलाएँगे जो सवथा उिचत हगी। हमारे महान ् नेता के पुय ूताप के फलःवप मेरेहाथ से उिचत बात ह हगी। अब हम पूण वास के साथ अपने काय म दिचहो जाय तथा इस संघकाय को पहले जैसी िना तथा दने ू उसाह से आगे बढ़ाएँ।”यह कोई कोरा अपदेश नहं था। डाटर जी क मृयु के बाद सावजिनक नेताओं केजो शोकसंदेश आये; ःवयंसेवक के शोक और िचंता य करनेवाले जो पऽ आये –उन सभी का उर भेजते समय ौी गुजी ने अयंत ढ़ता और संयम का परचयदया। उनके पऽ का आशय यह होता था क “यह रोते बैठने का समय नहं है।डाटर जी के अधूरे काय को पूण करने के िलए हम अपने दःख ु को िनगलकरकायवृ म तपर रहना होगा।”संघ के वरोिधय क चाल और मसूब से गुजी पूणतया सतक थे और इसिलयेउहने सरसंघचालक के नाते ३ जुलाई के अपने ूथम भाषण म ह वरोिधय कोचेतावनी भी दे डाली। उहने अपने भाषण म कहा- “हमारे डाटर जी ने मतभेद केकोलाहल म डूब जानेवाला पलपला संगठन हमारे अधीन नहं कया है। हमारासंगठन एक अभे कला है। इसक दवार पर चंचु-ूहार करनेवाल क चच वहंटटकर ु िगर जाय, इतनी ढ़ और मजबूत परकोटाबंद ःवयं डाटर जी ने कर रखीहै।”इसके बाद २१ जुलाई को डाटर जी के मािसक ौा दवस पर आयोजत कायबम मभी ौी गुजी का ओजःवी भाषण हआ। ु संघ पर य-पूजक और ूितबयावाद होनेका आरोप लगानेवाल को मुँहतोड़ उर देते हए ु अपने भाषण म ौी गुजी ने कहा-“कु छ लोग संघ पर यह आरोप लगाते ह क हम ःवयंसेवक यपूजक ह। परंतुइसका हम दःख ु नहं है। कं तु डाटर जी के पात ् भी सारे ःवयंसेवक पूववत ् कायकर रहे ह, यह इसी बात का ूमाण है क डाटर जी ने हम अंधौा नहं अपतुतविना और रा-िना िसखाई है। हम पर जतने जोर से आघात हगे उतनी हअिधक श से रबर क गद क तरह उछलकर हम लोग ऊपर क ओर उठगे। हमार<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६०


श बाधाओं को चीरकर आगे बढ़ती जायेगी और एक दन वह समूचे रा म छाजायेगी।”७.३ जीवन काय के अनुप यव परवतनऐसा रहा राीय ःवयंसेवक संघ के आ सरसंघचालक के महाूयाण और ौी गुजीारा उनके आदेश का ःवीकार कये जाने का अयाय। भारत के कसी भी संगठन केइितहास म अनोखा तथा अतीय िस होनेवाला यह घटना-बम था। इस काल मसंघ का कोई िलखत संवधान नहं था और न ह संघ के नये सरसंघचालक किनयु के संबंध म कोई पित ढ़ हई ु थी। कं तु डाटर जी जो करगे वह उिचत हहोगा और संगठन क अंितम सफलता के िलए पोषक ह होगा- यह ढ़ ौा सभी मथी। डाटर जी ने ःवयं १५ वष तक अथक ूयास से यगत महवाकांा,अहंकार, मतभेद आद सामायतया संगठन क एकता म सुरंग लगानेवाली हनूवृय को कसी भी ूकार अपने जीवन म कोई महव न देनेवाले येयवादकायकताओं क मजबूत ौृ ंखला खड़ क थी। इसी का आयजनक सााकारशांितपूण ढंग से हए ु संबमण के प म सभी को िमला। ऐसे संगठन को वृंगतऔर ूभावशाली बनाने का दाियव ौी गुजी के कं ध पर आ पड़ा था। डाटर जीका चयन कतना योय था और १९४० के बाद देशातगत बदलती परःथित मसंघनौका को योय दशा म सफलतापूवक आगे बढ़ाने क अंगभूत मता ौी गुजीम कतनी वलण थी- यह उनके ततीस वष के कायकाल म बमशः िनणायक पम िस हो गई। यह तो नहं कहा जा सकता क सरसंघचालक बनते समय ौी गुजीम कोई ःवभावगत दोष नहं थे अथवा यावहारक से उनम और डाटर जी मकसी भी ूकार का अंतर नहं था। कं तु ौी गुजी क महानता इसी बात म है कउहने डाटर जी के आदश का सतत िचंतन कया और उस आदश के अनुप अपनेदोष और किमय को दरू कर अपने जीवन को तदनुप ढालने का ूय कया।उदाहरण के िलए कहना हो तो शु-शु म ौी गुजी क बोल-चाल म कु छ कठोरतापरलत होती थी। उनक जहवा म कु छ पैनापन था। कु छ ूसंग पर उनके शदम उमता झलकती थी। दसर ू के दोष, अमता अथवा काम म ढलाई को वे सहननहं कर पाते थे। कं तु धीरे-धीरे उनम वनॆता, मृदलता ु और मधुरता आने लगी।भाषा अित मधुर बनी। यवहार म उमता का ःथान ःनेहािता और सहंणुता ने लेिलया। ःवाथ तो उह कभी ःपश भी नहं कर पाया था। कतु िनःःवाथता के साथह संगठन के िलये आवँयक गुण क भी उह पूण कपना थी। डाटर जी भीमूलतया उम ःवभाव के थे। कं तु संघकाय को ह अपना जीवनकाय मान लेने के बादउहने अपने अलौकक मनोबल से संगठन के िलये आवँयक गुण के साथ-साथ<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६१


अपने ःवभाव म भी अनुकू ल परवतन लाया था। अपने आपको संघमय जीवन केजीवत आदश के प म ूःतुत कया था। ऐसा ह परवतन ौी गुजी के जीवन मभी हम दखाई देता है। धीरे-धीरे ौी गुजी रा कयाण हेतु सभी को उनके गुण-दोष सहक आमसात ् करनेवाले ःनेह के सागर बने। कायकताओं को वेअिधकारवाणी से बता सकने योय बने क “म जैसा हँ ू वैसा ह मुझे ःवीकार करो”(अथात ् यूज मी ऐज आई एम ्) ऐसा कोई कह न सके । दोष को दरू करना ह होगातथा समाज को अपने साथ लेने के िलए आवँयक गुण को धारण करना होगा। संघका कायकता ऐसा ह गुणसपन होना चाहये। कथनी और करनी म अंतर कोउहने कभी कोई ःथान नहं दया।िसात के मामले म डाटर जी क भाँित गुजी भी कसी भी ूकार का समझौताःवीकार नहं करते थे। ‘यह अपना हदू रा है’- डाटर जी सीना तानकर यहघोषणा करते थे। यह वचार संघ क काय पित का मूलाधार है। डाटर जी नेकाफ सतक ता से इसका पोषण कया। इस मामले म वे कसी के आगे न दबे, नझुके । बाद म ौी गुजी के कायकाल म अनेक लोग ने अपने राजनीितक ःवाथवशजाितगत-ःवाथ, आबामक राीयता, वेष और ईंया तथा मानवतावाद क थोथीकपना क आड़ लेकर इस ःवयंिस सय को झुठलाने का ूयास कया औरअपूचार का सहारा िलया। कं तु ऐसे अपूचार और वरोधी वातावरण क जरा भीिचता न करते हए ु ौी गुजी देश भर म िनभयता के साथ हदू रा का उ-घोषकरते रहे। हरेक मंच से उहने परम वैभवशाली रा के िलए आधारभूत इस सय काूबल समथन कया। ढ़ाथ म अहदओं ू के साथ वातालाप म भी उनका समाधानकरते समय संघ-वचार का सूऽ उहने अबािधत रखा। उहने सदा इस बात कोआमहपूवक रखा क ववध ेऽ म काय करनेवाले संघ ःवयंसेवक क हदू रा केःवप पर अटट ू ौा होनी चाहए और उसे अिधकािधक ूखरता के साथ ूकटकरना चाहये। इतना ह नहं, हदू जीवनवचार को उसके सभी अंगोपांग कहतःप करने का महान ् काय भी ौी गुजी ने कया। काल क गित और आवँयकताका यान भी उहने रखा। परःथित के अनुसार कभी आबामक तो कभी धीमे ःवरम राीय ःव को ःप और पु कया. इन सब बात को यान म रखने पर यहवचार मन म उठता है क या भावी काल के संके त को समझकर ह कहं डाटरजी ने ौी गुजी जैसे अयाम-ूवण, भाषा-व, वान ् और आयु म तण काअपने उरािधकार के प म चयन तो नहं कया था?<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६२


ौी गुजी के असामाय वैचारक तथा संघटनामक नेतृव म 1940 के जून माह मसंघ का ूवास ूारभ हआ। ु यह ूवास कै सा रहा, यह हम ौी गुजी के यव,संघकाय क ूगित और देश क परःथित के सदभ म अगले अयाय म देखगे।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६३


८ ररंजत देश वभाजनडाटर हेडगेवार क मृयु के बाद जब संघ काय का दाियव ौी गुजी के कं ध परआया, तभी भारत ओर सपूण व के इितहास के इितहास म एक दरगामी ू परणामकरनेवाला दशक ूारंभ हआथा। ु १९३९ म तीय वयु ूारंभ हो चुका था औरमहायु के पाररंिभक ् काल म नाजी तानाशाह एडाफ हटलर क चौतरफा वजय होरह थी। ॄटश साॆायवाद के िलए यह ूाणघातक संकट मानो भारत जैसे गुलामीक ौृ ंखला से बँधे देश के िलए उन बंधन को तोड़कर ःवतंऽ होने के िलए एकअछा अवसर था, इसे भाँपना कोई कठन बात नहं थी। डाटर जी ने इसे भाँपिलया था और इसीिलये जीवन के अतम काल म इस परःथित का लाभ कै सेउठाया जाए इसका वचार उनके मन को बेचैन कये हए ु था। इसीिलये संघशशीयाितशीय देशयापी बने, यह उकट इछा वे बार-बार य कया करते थे। देशम इस परःथित को लेकर यापक वचारमंथन चल रहा था। कं तु इंलैड क इससंकचमःत अवःथा का लाभ कस ूकार उठाया जाए, इसे लेकर अलग-अलग रायय क जा रह थी। गांधी, नेह, सुभाष- इन सभी के वचार म िभनता थी।यप यह सभी ःवीकार करते थे क इंलैड क नाक दबाने का यह अयंत अछाअवसर है, कतु कौन सा माग अपनाया जाए इस मामले म सवसमत राय नहंबन पा रह थी। सुभाष बाबू ने इस काल म डाटर जी से भट करने का दो बारूय कया कतु डाटर जी का ःवाःय अयंत खराब होने के कारण दभाय ु सेयह भट न हो सक। डाटर जी यह अछ तरह जानते थे क इस परःथित कािनणायक लाभ उठाने के िलए जतने शसपन और रायापी संगठन कआवँयकता है वैसा ःवप संध का अभी बना नहं है। नये सरसंघचालक ौी गुजीको भी इसका ान था।संघकाय का फै लाव महारा के बाहर कु छ अय ूदेश म भले ह हआ ु कतु देश केबहत ु बड़े भाग म अभी तक संघ का वचार पहँच ु नहं पाया था। न तो वहाँ कायकताभेजे जा सके थे और न ह वहाँ संघ क शाखाएँ खड़ हो सक थीं। संघकाय केवःतार सबधी डाटर जी क उकटता और बीमार क अवःथा म राजगीर सेकायवृ के कालब कायबम का आहवान भी वाःतव म इस अतराीय परःथि◌ित ्के सदभ म ह था। इसिलये नये सरसंघचालक के सम संघकाय का वःतार औरसंगठन क मजबूती का काम ह सवािधक महव का और आवँयक था। ोटशसाॆायवाद सा क कु छ ितरछ नजर इस संगठन पर भी पड़ थी। और इसिलयेसंघ के गणवेश और समता आद कायबम म परवतन करना आवँयक हो गया था।पूण ःथित ता ठक आकलन कर ौी गुजी ने संघकाय के वःतार को नई गित<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६४


ूदान क। शासन ारा काय के बा ःवप पर डाले गये ूितबध को अःवीकारकर उहने अनावँयक संघष को आमंऽत नहं कया। ूितबध को िनरथक बनानेक लचीली नीित उहने अपनायी। संघ के समता कायबम के गणवेश तथा आाओंम जो परवतन कया गया वह इसी काल म हआ। ु नये गणवेश के प म सफे द शट,खाक हाफ पट, काली टोपी और सफे द जूत का ूचलन ूारंभ हआ। ु पहले समता केिलए संघ म अंमेजी आाओं क उपयोग कया जाता था। उनके ःथान पर संःकृ तआाओं का ूचलन होने लगा। ःवयंसेवक क रचनाओं के िलए गण, वाहनी,अनीकनी आद नये नाम ूचिलत हए। ु ‘बड’ का नामकरण घोष हआ। ु उसे नया सुरिमला। एक तरह से इस अवसर का लाभ उठाकर गुजी ने समता और संचलनकायबम का ‘भारतीयकरण’ कर डाला। ूितबध सरकार कागजात म धरे रह गयेऔर संघकाय पर उनका कोई दंपरणाम ु नहं हो सका। संघ का नेतृव ःवीकार कयेजाने के बाद कु छ माह के भीतर ह ॄटश सा क वब से गुजी का नेतृवपहली बार कसौट पर कसा गया जसम वे आयजनक ढंग से सफल रहे।८.१ परःथित का आहवानौी गुजी को ऐसी ऊपर कठनाइय क कभी कोई िचता नहं रह। उनके सामनेूमुख चुनौती तो ितगित ु ,से काय का वःतार करने क थी। इसके िलए उहनेदेशयापी ूवास ूारंभ कया। कं तु ःथान-ःथान पर संघ का काय खड़ा हो सके यहकसी अके ले य के ूवास से कै से संभव हो पाता? दैनंदन शाखाएँ कौन चलाता?इसके िलए तो संघ के िनयकम म िनंणात यय को वहाँ भेजकर ःथानीयकायकता खड़े करना अयावँयक था। अतः वचारपूवक कायवःतार क योजना तैयारक गई। इस योजना के अतगत बड़े पैमाने पर संघ के ूचारक देश म सवऽ भेजेजाने थे। इसके पूव भी संघकाय हेतु कायकता बाहर िनकले थे। काय का वःतार भीउहने कया था। कतु ये कायकता कहं छाऽ के प म, कहं िशक के प म तोकहं अय िनिम से बाहर गये थे। पूण समय देकर काम करनेवाले ौी बाबा साहबआपटे, ौी दादाराव परमाथ जैसे िगनती के थोड़े ह ूचारक थे। अब यह जो योजनाबनी थी वह विभन ूांत म पूरा समय संघ का ह काय करनेवाले ूचारक भेजनेक थी। इस योजना को कायप म परणत करने के िलए १९४१ म ौी गुजी नेःथान-ःथान पर अपने ूवास म तण ःवयंसेवक के अंतःकरण को छनेवाले ू अयंतभावना-ूधान भाषण दये। इनके मायम से हर ःवयंसेवक के मन म यह बात वेगहराई से पैठाने का ूय करते क यह काय फु सत म करने का नह है- इसके िलएअिधकािधक समय देना होगा। इस सबध म उनके मन क बेचैनी १९४२ म वषूितपदा के दन कये गये उनके भाषण म य उ-गार म ूकट होती है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६५


इस समय अपने भाषण म उहने जो आहवान कया था, संघ के इितहास म वहएक वशेष महव रखता है। अतः भाषण का कु छ अंश यहाँ उ-घृत करना समीचीनहोगा। अपने उस भाषण म ौी गुजी ने कहा- “हमारा अहोभाय है क हम आजजैसी संकटपूण परःथित म उपन हए ु ह। संकटकाल को हम पवकाल ह समझनाचाहए। रा के इितहास म शतादय के पात आनेवाला यह सुवण-अवसर आजहमार ओर बढ़ा आ रहा है। इस समय यद हम सोते रहे तो हम जैसे अभागे दसरे ूनहं हगे। संसार म उसी का नाम अमर होता है जो संकट काल म कु छ कर दखाताहै। इसिलए ूसन एवं िनभय होकर संकट से संघष करना होगा। अपने सवौे स-गुण को ूकट करने का सवम अवसर यह है।”“पितत रा का पुनथान अिधक से अिधक एक पीढ़ म ह हो जाना चाहए। कतुहमार अवःथा या है? पूरे १७ वष तक परौम करने के बाद भी आज हमारा कायछोटा है। सयवाद होने के कारण हमारा संघ अपनी ूिता अवँय पूण करेगा। एकबार हमारे मुख से जो शद िनकल गया उसे हम सय करके ह िगखायगे, भले हहमारा यगत जीवन न हो जाय। उसक हम परवाह नहं। एक वष के िलए अपनेयगत जीवन के सारे वचार ःथिगत कर दजये। इस अिसधारा ोत को अपनाकरएक वष के िलए संयासी बन जाइये। अपने ूित चाहे जतना कठोर बनना पड़े,इसके िलए तैयार हो जाइये। इस समय घर-बार या धन-दौलत क िचता न हो। हमअपना सारा समय, सारा यान, सार श इसी काय पर के ित करना है। अयसभी यगत बात को भुला दजये। उनको मन के ार के समीप भी मत आनेदजये। ऐसी दता रखकर हम सभी को अपूव परौम तथा काय करने के िलएिस रहना होगा।”ौी गुजी का यह आहवान ःवयंसेवक के अंतःकरण को छु गया। इसी समय ौीबालासाहब देवरस ने भी पूणकािलक ूचारक िनकालने हेतु ूय क पराकाा क।‘अभी नहं तो कभी नहं’ – (नाऊ ऑर नैवर) यह उनक घोषणा थी। परणामःवपःथान-ःथान पर सैकड़ तण ःवयंसेवक पूणकािलक ूचारक िनकलने हेतु आगेआये। रा के िलए याग करने क भावना का एक दय ूवाह देखने को िमला।अनेक ने नौकर, ववाह, रँतेदार आद का मोह यागकर कायेऽ म छलांग लगाद। अनेक ने अपनी घर-गृहःथी, बाल-बच का वचार कु छ काल के िलए ःथिगतरखा और पूरा समय संघकाय के िलए देने क तैयार दशायी। मयभारत म ूचारकके प म गये ौी भैयाजी दाणी ऐसे ह घर-गृहःथीवाले थे। १९४२ के जून माह से<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६६


िभन-िभन ूांत म ूचारक भेजने का काय ूारंभ हआ। ु इसके साथ ह काय कगित भी तेज हो उठ।इहं दन देश म जो घटनाएँ हो रह थीं उनक ओर ौी गुजी का पूरा यान था।ॄटश साॆाय पर संकट अिधक गहराया था। यूरोप म जमनी ने और पूव क ओरजापान ने ॄटेन को भार िशकःत द थी। इसी संकट के समय ॄटश सरकार नेसर ःशेफड बस को भारत भेजा और भारत को अिधक ःवायता, जसम देशवभाजन का ूःताव भी अतिनहत था, ूदान करने क योजना भारत केराजनीितक नेताओं के सम रखी। यह योजना काँमेस को ःवीकार नहं हई ु औरःवतंऽता ूाि के िलए देश का वातावरण अिधकािधक गरम होने लगा। नेताजीसुभाषचंि बोस ने भारत के बाहर से रंगून और िसंगापुर म ःवाधीनता-यु का बगुलफूँ का। आजाद हंद फौज खड़ क और ‘चलो दली’ का नारा गुँजाया। इधर भारत मगांधी जी ने ‘अंगेजो भारत छोड़ो’ का नारा बुलद कया तथा इस मांग क पूित केिलए आंदोलन शु कया। ःवाधीनता-ूाि के िलए िनणायक संघष का वातावरण देशभर म तैयार हआ। ु८.२ ‘१९४२’कतु ऐसे सुनहरे अवसर का लाभ उठाने के िलए जो रायापी संगठत शआवँयक होती है वह देश म कहं नहं थी। कांमेस ने गांधीजी के नेतृव म आंदोलनक घोषणा तो कर द कतु आंदोलन के ःवप और कायबम क कोई योजना ःपनहं क और नह यह ूयास कया क देश भर म बखर पड़ शय को इसराीय आंदोलन म सहभागी बनाकर एक सूऽ म गूँथा जाय। कहा जाता है क द. ९अगःत १९४२ को आंदोलन पर वचार करने के िलए कांमेसी नेताओं को एकसाथबैठने माऽ क कपना ह गांधी जी ने द थी। आंदोलन क ूय िसता के लाएछह माह क अविध िनत करने का उनका वचार था। कतु ॄटश सरकार नेगांधी जी को यह अवसर उपलध नहं होने दया। अखल भारतीय कांमेस के ूमुखनेता जैसे ह मुंबई पहँचे ु उह िगरतार कर िलया गया। सरकार के इस कृ य सेउेजत जनता ने बना कसी तैयार के ःवयंःफू ित से आंदोलन छेड़ दया। सारे नेतातो जेल म बंद थे और आंदोलन बना नेतृव के चल पड़ा। बना नेता के दशाहनआंदोलन भड़क तो सकता है कतु वह अिधक काल तक टक नहं पाता और अपनेआप बना कसी ठोस सफलता के समा हो जाता है। इस आंदोलन का भी यह हालहआ। ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६७


इस बात म कोई संदेह नहं क ऐसे आंदोलन म शािमल हआ ु जाय या नहं तथाइसके अछे बुरे संभावत परणाम या हगे इसका वचार ौी गुजी ने भी कयाथा। संघ क अयप श, आदोलनकताओं क योजना-वहनता और दशाशूयतातथा आंदोलन म एकसूऽता के अभाव के कारण रायापी संघष के अिधक काल तकचल पाने क संभावना आद सभी पहलुओं का उहने वचार कया था। कसी भीविधंणु संगठन का भावना म बहकर कु छ भी कर बैठना और उवःत हो जाना कोईदरदिशता ू नहं मानी जा सकती। और यह वचार पका हो जाने के कारण संघ नेसंगठन के नाते इस आंदोलन म भाग न लेने का िनणय िलया। इसके िलए उससमय अनेक लोग ने उसे दोष भी दया, उसक खली भी उड़ाई। कं तु संगठन केसवौे नेता के प म ौी गुजी का िनणय कतना सह और उिचत था यह बाद कघटनाओं से िस हो गया। ौी गुजी ने डाटर जी के सूऽ को अपनाकर संघःवयंसेवक को यशः आंदोलन म भाग लेने क छट ू दे द। तदनुसार अनेकःवयंसेवक ने इस आंदोलन म यशः भाग िलया। इतना ह नहं, ःथान-ःथान परभूिमगत कायकताओं क समुिचत देख भाल करने का दाियव भी संघ के ःवयंसेवकने उम ढंग से िनभाया। कहं भी आंदोलन का तेजोभंग अथवा उसका वरोध करनेजैसा कोई काय संघ के ःवयंसेवक ने नहं कया। िचमूर-काड म अमणी और फाँसीक सजा ूा करनेवाले बांितवीर संघ के ःवयंसेवक ह थे। जन अनेक भूिमगतकायकताओं को सुरत रखने म संघ के कायकताओं ने मदद क उनम बांितिसंहनाना पाटल, कसनवीर, साने गुजी, अणा आसफअली, अयुतराव पटवधन,कुं दनलाल गु आद का समावेश है। ये लोग कोई संघ-वचार को माननेवाले नहं थेतथा १९४२ के बाद भी उनक गणना संघ-वरोिधय म ह होती थी। कतु उहसुरा ूदान करते समय वैचारक मतभेद क िचंता ःवयंसेवक ने नहं क।संगठनामक श को बढ़ाना और इसके िलए सवऽ संघ-शाखाओं का जाल बछाना,यह काय संघ ने महवपूण माना और उसी पर सारा यान के ित कया। उन दनएक विश येय के िलए काम करनेवाले संघ जैसे संगठन के नेताओं को परःथितका मुयांकन कर अयंत जमेदारपूण िनणय समय-समय पर लेने पड़ते थे। उनकदेशभ क ूखरता, साहस तथा याग क िसता पर संदेह करते रहना अनुिचतऔर िनरथक है। संघकाय म अहोराऽ जुझनेवाले हजार युवक वलत देशभ कभावना और समपत बु से ह काम करते थे। कसी वशेष आंदोलन म भाग लेनेका िनणय तकालीन परःथित के अनुसार संघ नेताओं को ह लेना था। लोकशका जागरण और अनुशासनबता का मूल उेँय आखर रांे के गौरव को बढ़ाने केिलए ह था। संघ इसी उेँय से लोकश के जागरण और अनुशासनबता पर जोरदया करता था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६८


८.३ ौी गुजी क यापक सोच१९४२ के आदोलन के बारे म ौी गुजी क या सोच थी, इस वषय म वयातौिमक नेता ौी दोपंत ठगड़ जी क अपनी कु छ ःमृितयाँ यहाँ देना उपयु रहेगा।“१९४२ के िसतबर के अंत म मंगलोर का कायबम संपन कर ौी गुजी मिासजानेवाले थे। १९४२ के आंदोलन के कारण अनेक ःवयंसेवक और ूचारक के भीमन म खलबली मची हई ु थी। सबके मन म यह ू था क ऐसे आपाकाल केसमय भी संघ िनंबय रहनेवाला हो तो अब तक संिचत श का उपयोग ह या?उन दन म कालीकट म ूचारक था। अतः मुझसे कहा गया क मंगलोर िनकट होनेसे म वहाँ जाकर ौी गुजी को उन सबके वचार से अवगत कराऊँ । अतः म ौीगुजी से िमला।” उस भट का यौरा देते हए ु दोपंत ठगड़ कहते ह-मने गुजी को उपयु वचार अवगत कराए। गुजी ने जो उर दये वे सारप मिनननुसार ह- (१) संघ ने ूारंभ से ह कु छ परहेज पालन करने का िनय कया है।इसीिलए डाटर साहब जब सयामह म भाग लेने के िलए ूःतुत हए ु तब उहनेःवयंसेवक को आदेश दया क वे बाहर रहकर संघशाखा का काम िनयमपूवकचलाएँ। संघ को उहने आंदोलन के बाहर रखा।(२) फर भी आज क आपात ् ःथित म यद उन सारे परहेज को तोड़ने से ःवातंयूाि िनकट आनेवाली हो तो ये परहेज तोड़ने म भी कोई आप नहं यकसंघकाय और ये परहेज येय के िलए ह और ःवराय अपना िनकट का लआय है।(3) कांमेस ने यह आंदोलन शु करने के पूव संघ या अय संगठन को वास मिलया होता तो अछा होता। परंतु उहने वैसा नहं कया। उसके कारण बोिधत होनेका कोई कारण नहं है। यह आंदोलन जस ःवातंय के िलए है वह के वल कांमेसवालको ह िमलनेवाला नहं है, सबका ःवातंय है। इसिलए इस वषय म संःथागतअहंकार रखने का कारण नहं।(४) परंतु कांमेसी नेताओं ने आंदोलन का आदेश देने के पूव अपनी से भी जोतैयार करनी चाहए थी, वह भी नहं क यह िचंता क बात है। इसिलये बना तैयारक (Unprepared) अवःथा म ह जनता को अंमेज सरकार के सामने जाना पड़ा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ६९


कोई भी सुयवःथत योजना नहं थी। यह भी नहं कहा जा सकता क बांितकाल मसब घटनाएँ बकु ल पूव िनयोजत योजना के अनुसार ह हगी। फर भी कु छिनत योजना तो होनी ह चाहये और उसम परवतन करने क बार आई तो वैसाकरने क पहल (इिनिशएटव) भी नेताओं के हाथ म रहनी चाहए। आज वैसी पहलनेतृव के हाथ म नहं रह है। इसिलये परःथित और आंदोलन का दशा-िनदश,जो लोग क ःवयंःफू ित से िमलता, उसक श नेतृव म नहं रह है। बांितआंदोलन का इतना योजनावहन होना आमघाती है।(५) ऐसा होते हए भी संघ ारा इस ूसंग पर आंदोलन म कू द पड़ने का िनयुकरने से येय-ूाि होनेवाली हो तो वैसा करने म कोई आप नहं होनी चाहये।परतु इस बारे म बारक से िनरण करने के पात ् मेरे यान म ऐसा आया कहमारे पूण श से भाग लेने पर भी हम येय के िनकट नहं पहँच सक गे। ु(६) संघ क वतमान श के बारे म कु छ लोग के मन म अितरंजत कपनाएँ ह।वशेषतः जन ेऽ म संघ का काम अछा है उन लोग को लगता है क देश केशेष भाग म भी संघ काय क ःथित उतनी ह अछ होगी। परतु वैसा नहं है।आंदोलन क सफलता के िलये अपनी श के साथ ह अय भी कु छ अनुकु लःथितयाँ आवँयक ह जैसे, सव साधारण जनता क सहानुभूित, पुिलस, सेना आदमहव के वभाग म सरकार के ूित असंतोष आद। ूय कृ ित का समय आयातो इस बारे म संबंिधत लोग क ूितबया या रहेगी यह बतलाना कठन है। फरभी बांित के िलये आवँयक परःथितयाँ अपने अनुकू ल रहगी ऐसा मान कर चलनेपर भी मेरा अनुमान है क हमने सब श दाँव पर लगाकर आंदोलन कया होता तोभी यह आंदोलन एक सीिमत भाग म ह सफल हो सकता था। बेलगाँव से गदयातक का ह ेऽ उसम आता। परतु इतना करने के बाद भी हम येय के िनकट नहंपहँच सकते। ुवःतुःथित यह है क अपना ूभाव ेऽ के वल देश के मय भाग तक सीिमत है।बात सफल होने पर जो भाग ःवतंऽ होगा उस पर सब ओर से सेना भेजना शऽु केिलए संभव होगा और ऐसी ःथित म सरकार सेना भीतर घुसी तो सवसाधारणजनता म उनके अयाचार से िनराशा भीषण माऽा म बढ़ेगी। सोचे हये परणाम सेुबकु ल वपरत परणाम हो सकता हे। ःवतंऽ होनेवाला भाग अगर एक कनारे पररहा तो एक बाजू से तो िनभय रह सकते ह और शऽु-सेना का ूितकार करने के िलएबहत समय िमल सकता है।ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७०


ऐसी अवःथा म संघ के आंदोलन म उतरने से लाभ होनेवाला नहं ऐसा मुझे लगताहै। एक संःथा के नाते हम सुरत रह यह भावना मेरे मन म नहं है परंतु रणनीितका वचार कर तो इस समय आंदोलन करने से जनता म िनराशा के िसवा कु छहािसल नहं होगा।यहाँ पर ये अंकत करना अूासंिगक नहं होगा क ूारंभ से ह ौी गुजी का यहआमह रहा है क रािनमाण का वचार करनेवाले कायकता भू-राजनीित (Geopolitics)वषय को आमहपूवक पढ़ और इस से वे ‘हंटंगटन’ नामक लेखक काउलेख करते थे।८.४ रा के संकट क घड़ म१९४२ का आंदोलन खलबली मचा कर चला गया। भारतीय जनता म ःवतंऽता कआकांा कतनी तीो है इसक जानकार भी अंमेज शासक को इस आंदोलन सेिमली। कं तु फर भी आंदोलन के ठंडा पड़ने, नेताओं के जेल म बंद रहने और सामनेूय कोई सुिनयोजत कायबम नहं रहने से ःवाभावकतया लोग म हताशा औरिनराशा क भावना फै ली। इसके अितर इस यु का रागरंग भी अब बदलने लगाथा और तथाकिथत िमऽ रा का पलड़ा भार होने लगा था। सुभाष बाबू को अपनीसेना के साथ भारत म ूवेश करना और दली क ओर कू च कर पाना असंभव होगया था। इस सार परःथित म लोग म नयी आशा और उसाह का संचार करने केिलये संघ का मायम से अिधकािधक श जुटाने का भगीरथ ूयास ौी गुजी केनेतृव म चलता रहा। उनके ूयास को जनसमथन भी अछा िमलने लगा। १९४२ केबाद के काल म ूात-ूात म संघ क शाखाओं का तेजी से वःतार होता गया। ौीगुजी ने ःथान-ःथान पर योय कायकता संघकाय के िलये ूा कये। सवऽ संघशाखाओं म ःवयंसेवक क बाढ़ दखाई देने लगी। के वल बंगाल, असम, उड़सा,तिमलनाडु जैसे कु छ अपवाद को छोड़कर सभी ूांत म संघकाय म वशेष ूगित हई। ुउर भारत म संघ श का वशेष अनुभव होने लगा। कतु इसी समय ःवतंऽताूाि के राीय उेँय के अलग-अलग धाराओं म बँटने के संके त भी िमलने लगे थे।१९४० से ह मुःलम लीग ने भारत म हदू और मुसलमान को दो अलग-अलग राबताकर मुसलमान के िलये पृथक् राय क माँग उठानी शु कर द थी। बैरःटरमोहमद अली जना ने ऐसी भूिमका अपनायी क कांमेस हदओं ु क संःथा है, उसे<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७१


देश के करोड़ मुसलमान क ओर से बोलने का कोई अिधकार नहं है। १९४५ ममहायु तो थम गया और भले ह तथाकिथत िमऽ रा क वजय हई ु हो फर भीॄटश को भारत म इपनी सा बनाये रखना असंभव ूतीत होने लगा था। कांमेसके नेता पाकःतान क माँग को ःवकार करने को बकु ल तैयार नहं थे। इसी मुेपर राजाजी जैसे ूमुख नेता ने कांमेस छोड़ द थी। फर भी कांमेस अपनीपाकःतान-वरोधी भूिमका छोड़ने के िलए तैयार नहं थी। यु समा होने के बादकांमेसी नेताओं क जेल से रहाई हो गई और ॄटश सा ने फर वाता का दौर शुकया। इन वाताओं म कांमेस, मुःलम लीग और अंमेज सरकार के ूितिनिध ूमुखप से शािमल कये जाते। कांमेस और मुःलम लीग म, अथात ् हदू औरमुसलमान म एकमत न हो पाने के कारण भारतीय जनता को ःवतंऽता का अिधकारदेने सबधी िनणय नहं हो पा रहा था। वैसे इसके पीछे ॄटश शासक क भारतके वभाजन क कु टल नीित ह कारणीभूत थी। वे मुःलम लीग को कांमेस से दरूरखकर अलग रा क मांग के िलये उकसा रहे थे।रा क भवंय सबधी इस खींचतान म ौी गुजी ने अयंत ःप और ढ़भूिमका अपनायी। अपने भाषण म वे ःप तौर पर कहते क मातृभूिम अखंड बनींरहनी चाहए तथा यह कोई सौदेबाजी का वषय नहं हो सकता। १९४५-४६ म ौीगुजी का भाषण सुनने के िलए सभाओं म ूचड भीड़ जमा होती। शाखाओं का जालभी तेजी से फै लता जा रहा था। शु-शु म तो अनेक नेता पाकःतान िनमाण केसवाल को मज़ाक म उड़ा देते और उसक खली उड़ाते थे। कं तु बाद म अंमेजशासक और मुःतम लीग के बीच मेल बढ़ने के कारण लोग गंभीरता से सोचने केिलये ववश हए ु क कहं देश के वभाजन का खतरा तो मोल नहं लेना पड़ेगा?इस समय तक ौी गुजी क ूेरणा और मागदशन म हजारो कायकताओं के अथकपरौम से देश म संघ क शखाएं फलने-फू लने लगी थीं। ूचड माऽा म तण वगसंघ क ओर आकषत हआ। ु पूरे देश म मुसलमान के उपिव शु हए। ु देश-वभाजनक चचा से खलबली मची हई ु थी। देश क जनता संघश को ऐसी समथ, सुसंगठतश के प म देखने लगी थी जो रा क अखंडता को बनाए रखते हए ु उसेःवाधीनता ूा कराएगी और बाद म देश को सह माग पर आगे बढ़ा सके गी।मुःलम दहशतवाद का िनणायक उर राीय भावना का जागरण व राभ काूबल ूभावी संगठन ह हो सकता है, अनुनय अथवा ताकािलक समझौते से कु छ भीसाय नहं होगा – यह बात राीय हदू समाज के मानस म पैठने म ौी गुजी केसुःप, िनभय तथा भावोकट ूितपादन ने अपूव सफलता ूा क थी। येयवादऔर ूयवाद का वायुमंडल सवऽ िनमाण हो गया था। कतु अनेक वष के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७२


कारावास से मु होकर अब चचा के दौर म फँ से, संघष का भरोसा खो बैठे, थकेराजनीितक नेता येनके न ूकारेण सा हिथयाने के िलये अधीर हो बैठे थे। फर भीकांमेस अब तक देश क अखंडता का आमह रखे हए ु थी। १९४५ के कांमेस-अिधवेशनने वभाजन क कपना को ठकरा ु दया था। देश क अखंडता बनाये रखने के िलयेआवँयक हआ ु तो ूाण-यौछावर करने का आासन गांधी जी ने अपने भाषण मदया था। उनके इस आासन पर लोग को भरोसा था।इसिलये अपने देशयापी ूवास म ौी गुजी अपने भाषण म कहा करते थे कदहशतवाद, गुंडागद, छोटे-बड़े अयाचार, दंगे आद कराने क धमकय अथवा ूयाससे कसी को वचिलत नहं होना चाहए। आमरा का आिधकार सभी को कानूननूा है। १९४६ म नागपुर के वजयादशमी महोसव म ौी गुजी ने जो भाषण दयाउसम चार ओर क संघषमय परःथित के सदभ म उहने कहा था “ूितकार नकरने क भाषा मेर ी म कोई पराबमी वृ क ोतक नहं है। आज के संघषमयकाल म या ूितकार न करने से देश का कोई कयाण होगा? मुझे तो संघषअिनवाय दखाई देता है। आप भले ह ूितकार न कर, परतु उतने से ह आप परआबमण करने के िलए तैयार बैठे लोग अपनी काली-करतूत से बाज थोड़े हआनेवाले ह? यह कभी न भूिलये क काली मंदर म बिल के िलए ले जाया जानेवालाअजापुऽ (बकरा) भी अूितकार क ह साात ् मूित होता है। हम कोई बिल के बकरेनहं बनना है। आमरा ूयेक य और समाज का ूकृ ितिस अिधकार है। अतःयह कहना क सुरा का दाियव सरकार का होने से कोई भी कानून को अपने हाथम न ले, मूलतः अवैध है।”८.५ देश वभाजन के कगार परइस ूकार क ूेरणा का परणाम यह हआ ु क समाज म अयाचार का साहस केसाथ सामना करने क मानिसक िसता होने लगी। ॄटश शासक के उकसाने सेवघटनकार शयाँ भी इस समय िसर उठाने लगी थीं। यु म वजय के बादइंलैड म सा-परवतन हो चुका था। भारत को ःवतंऽता ूदान करने के िलएअनुकू ल ौिमक दल ( लेबर पाट) ौी एटली के नेतृव म साढ़ हआ ु था। १९४६ मचुनाव क घोषणा हो चुक थी। कांमेस अखंड भारत के समथन म और मुःलम लीगने पाकःतान िनमाण के समथन म ये चुनाव लड़े। उस समय के वल मुःलम केिलये ह सुरत सीट रखी गई थीं। इनम से अिधकांश सीट मुःलम लीग ने जीतीं।देश भर के मुसलसान ने पाकःतान के समथन म मतदान कया। हंदू मतदाता पूर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७३


तरह कांमेस के साथ रहे। के वल वायय सीमा ूांत ह अपवाद रहा। यहाँ यह यानम रखना होगा क भारत के भीतर भाग म भी मुसलमान ने पाकःतान का ूचडसमथन कया था। जन ूदेश को पाकःतान म शािमल करने क मुःलम लीगमांग कर रह थी उनम उर ूदेश, बहार, के रल अथवा मिास ूेसीडेसी का समावेशनहं था। कतु इन ूदेश के मुसलमान ने भी लीग का ह सवािधक समथन कया,जब क सीमावत वायय ूांत म लीग को पराजय सहनी पड़। वहाँ मुःलममतदाताओं ने कांमेस को समथन दया था। ॄटेन क साढ़ ौिमक दल क सरकारने ःवतंऽता ूदान करने का कायबम सुिनत करने के िलये भारत म के बनेटिमशन भेजा। इस िमशन क योजना के संदभ म कांमेस तथा लीग क यायाओं ममूलभूत अंतर उभरने से लीग ने इसे ठकराया। ु के ि क अंतरम सरकार म लीगीमंऽय ने हर कदम पर कांमेस मंऽय के सम बाधाएँ खड़ कं। लेबर पाट कसरकार भी भारत को अखंड बनाए रखने क इछक ु नहं थी।बैरःटर जना ने पाकःतान के िनमाण हेतु दबाव बढ़ाने तथा वभाजन-वरोिधयको भयिभत करने के उेँय से द. १६ अगःत १९४६ को सीधी कायवाह (डायरेटएशन) दवस के प म घोषत कया। इस दन ःथान –ःथान पर दंगे भड़कायेगये। बंगाल म कलका, ढाका, नोआखाली आद ःथान पर सीधी कायवाह के नामपर जो नृशंस हयाकाड हए ु इसके कारण कहं घबराहट क तो कहं ूोभ कूितबयाय िनमाण हई। ु बहार का ूोभ कांमेसी नेताओं ने बलपूवक दबा दया।सवऽ अयािधक आतंक और दहशत फै ल गयी। गृह-यु और भीषण रपात कोआमंऽत करने क बजाय पाकःतान दे दया जाए और इस मुसीबत से बचा जाए,यह वचार कांमेस के नेताओं के मन म उठने लगा। जहाँ-जहाँ मुःलम बहसंया ु मथे वहाँ-वहाँ हदओं ु पर अयाचार और आबमण बढ़ने लगे। सौभाय से इस समयपंजाब म संघ क श अछ थी। ौी गुजी पाकःतान िनमाण के व न के वलबोलते थे बक उपिव-मःत ेऽ म जाकर जनता का धीरज भी बँधाते रहे। इनउपिव के दन म ौी गुजी ने पंजाब और िसंध ूदेश का बार-बार दौरा कया। इसूवास म उनक सभाओं म ूचड संया म जनता उपःथत रहती थी। उनका यहूयास रहता था क पाकःतान बनने न पाये और लोग घबराकर अपना घर-बारछोड़कर अयऽ न भाग। इस समय तक तो गांधी जी ने भी पाकःतान के िनमाणऔर देश के वभाजन के िलए अपनी सहमित नहं दशायी थी। कांमेसी नेताओं कोगुजी यह सलाह देते रहे क कसी भी हालत म वभाजन को ःवीकार न कयाजाए। मुःलम गुंडािगर का सफलता से मुकाबला करने के िलये हदू जनता समथहै। थोड़ा क सहन करना पड़ेगा कतु वभाजन को िनत प से टाला जा सकताहै। गांधी जी अपने वचन से डगगे नहं यह वास असंय लोग को था। कं तु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७४


आखर ३ जून १९४७ को वभाजन क ूय घोषणा हो गई। इसके कु छ ह दनपूव गुजी ने पंजाब म अपने एक भाषण म कहा था- “हम पाकःतान को नहंजानते, न ह हम वह ःवीकार है। हम तो संगठत प से आमवासपूवक खड़ेरहकर आवँयक संघष करते हए ु अपने-अपने ःथान पर डटे रहना चाहये। यद हमसंघष से डरकर अपनी मातृभूिम को याग दगे तो इितहास हमारे बारे म यह िलखनेसे नहं हचके गा क ‘इन लोग को वभाजन का, अपनी ूयतम मातृभूिम केअंगवछेद का कोई दःख ु नहं हआ। ु इन लोग ने अपने ूाण को अपनी मातृभूिमतथा उवल, पराबमी परंपरा से बढ़कर समझा।’ यद ऐसा हआ ु तो िनय जािनएक हमारे समाज म यह मनोदबलता ु सदा के िलये छा जायेगी। इसिलये जी जान सेूितकार करते हए ु हम अंत तक अपने-अपने ःथान पर ह डटे रहने का ूय करनाचाहए।”८.६ ःवयंसेवक क ऐितहािसक भूिमकाौी गुजी ने संघ के हजार ःवयंसेवक को ढाल के प म ूःतुत कर सभी म सुराक भावना और धैय बढ़ाने का ूयास कया। जसका परणाम िनत प से समाजका मनोबल बढ़ाने म सहायक िस हआ। ु कतु लॉड वेवल को हटाकर लाये गयेलॉड माउं टबेटन ने ‘फू ट डालो और तोड़ो’ क अपनी सरकार क परपरागत नीितअपनाकर मुःलम लीग का प िलया और बाद म वभाजन को ःवीकार करने केिलए कांमेसी नेताओं पर दबाव डालते रहे। वभाजन ःवीकार करने से खंडत भारतक ह य न हो, ःवतंऽता आँख के सामने खड़ दखाई दे रह थी पर वभाजन कोठकराने ु से न जाने और कतने समय तक संघष करना पड़ता इसका कोई भरोसानेताओं को दखाई नहं दे रहा था। धीरज खो बैठे नेताओं ने संघष टालने कमानिसकता म वभाजन का वकप मंजूर कर िलया। ौी गुजी अयंत दःखी ु हए। ुनेहजी ने डॉ. अबेडकर क यह सलाह नहं मानी क वभाजन के साथ हअपसंयक क अदला-बदली भी क जाए। यह आभास भी िनमाण कया गया कपाकःतान म हदू सुरत रह सक गे। वैसे वभाजन क घोषणा के पूव हरावलपंड, अमृतसर, लाहौर आद ःथान पर माच माह म हदओं ु पर होनेवालेअयाचार ने उम प धारण कर िलया था। कं तु हंदओं ु ने न के वल इस आघात कोसहन कया वरन ् अनेक ःथान पर आबमण का मुंहतोड़ जवाब भी दया। संघ केनेतृव म ःथान-ःथान पर सुरा दल खड़े कये गये। जहाँ हदुओं क संया के वल२० या ३० ूितशत थी वहाँ पर भी हदओं ु ने बड़ तेजःवता दखाई।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७५


ऐसी दोलायमान परःथित म भी पंजाब के फगवाडा और संगर म िनयमानुसार संघके अिधकार िशा वग १९४७ म जुलाई के तीसरे साह म ूारंभ हए। ु ौी गुजीदोन ह वग म गये और वहाँ क परःथित पर कायकताओं से उहने चचा क।दोन वग म कु ल िमलाकर ३७०० कायकता आये थे। चलते वग म संघष औरअयाचार क खबर भी िमलती रहं। दनांक ३ जून क घोषणा के पूव जो परःथितथी उसम अब एकदम परवतन हो चुका था। इसिलए ःवयंसेवक को जो मागदशनपहले दया गया था- उसम उिचत परवतन आवँयक हो गया था। ऐसी ःथित मवग का समारोप पहले कया गया तथा कायकताओं को यह सूचना भी द गई क वेयथाशीय अपने ःथान पर वापस जाकर अपने हद ु बधु, भिगनी और माताओं कोजान-मान के साथ सुरत ढंग से भारत पहँचाने ु क यवःथा कर तथा अखर हदूके रवाना होने तक अपने ःथान पर डटे रह और उसके पात ् ह ःवयं भारत कओर चले आय। कायकता अपने-अपने ःथान पर लौटे। इन कायकताओं म से कईलोग पुनः कभी दखाई नहं दये- अपने समाज क रा म वे वीरगित को ूा हए। ुउस घोर संकटकाल म संघ के ःवयंसेवक ह सुरा के एकमेव आशाके ि बने।वभाजन के इस कालखड पर लेख, पुःतक आद िलखनेवाल ने संघ ःवयंसेवक कवीरता, पराबम और समाज क रा म ूाण के बिलदान क ूशंसा क है। इस कायम ःवयंसेवक ने ‘अपने-पराये’ का कोई भेद नहं कया। कांमेस के अनेक नेता संघ-ूद सुरा- कवच के फलःवप ह ःवतंऽ भारत म सुरत पहँच ु पाए।संघ ःवयंसेवक क इस वीरता और अ-भुत पराबम-पव का ौी गुजी ने अपने मुखसे बखान कभी नहं कया और न ह इसका ौेय लुटने का कोई ूयास कया। वहसारा इितहास अभी तक अात है। ःवयंसेवक के बिलदान को वे समाज क राथिनभाया गया आवँयक कतय ह मानते थे। संघ क ूेरणा से पंजाब रलीफ कमेटक ःथापना हई ु और उसके मायम से हदू वःथापत क सब ूकार कसमःयाओं का िनराकरण करने का ूयास कया गया। यह सारा भयानक-पव समाहोने के बाद एक बार दली म पऽकार ने इस सबध म ढेर सारे ू पूछकर ौीगुजी से ःवयंसेवक के पराबमपूण घटनाओं के बारे म जानना चाहा कतु ौीगुजी ने उह यह उर दया क- “संघ ने या कया, इसक वापनबाजी हमनहं करना चाहते। यक अपनी मातृभूिम और अपने समाज बांधव क सेवा कवापनबाजी कै सी? यह हमारा आ कतय है। कं तु इतना बता दँू क उन सारघटनाओं क यद जानकार जी गई तो हरेक के रोम-रोम से संघ क जय-जयकार कविन के िसवा अय विन सुनाई नहं देगी।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७६


८.७ ौी गुजी का तेजःवी उदाहरणगुजी सभी उपिवमःत ेऽ से िनरंतर सपक बनाये हए ु थे। १५ अगःत को देशका वभाजन हो गया। उसके पूव ८ अगःत तक ौी गुजी ने िसंध का ूवास कयाथा। पंजाब का ूवास भी हो चुका था। पंजाब के उस समय के आतंकत, असुरतऔर अःथर वातावरण म अमृतसर से अंबाला तक सब जला ःथान पर ौी गुजीने कै सा ूवास कया होगा इसक कपना ह शरर पर रगटे खड़े कर देनेवाली है।एक ह उदाहरण का यहाँ उलेख कया तो भी ःवयं के ूाण संकट म डालकर वेःथान-ःथान पर कै से पहँचे ु हगे, अपने आप-मःत बंधुओं से िमलने क कतनी तीोउकं ठा उनके दय म रह होगी यह बात यान म आ सके गी। यह ूवास वषा सेउवःत हए ु राःत और रेलवे माग से कया गया। कभी इंजन म बऐठना पड़ा तोकभी मालगाड़ के गाड के साथ बैठकर मंजल पार करनी पड़। जालंधर से लुिधयानाके माग म चहेडू नाम का पुल था। वहाँ पहँचने ु पर ऐसा दखाई दया क आगे काूवास असंभव है यक पुल टट ु गया है और रेल क पटर नीचे झूल रह है। पुलके नीचे बाढ़ का पानी ूचड विन करता हआ ु बह रहा था। पुल के िनकट पहँचने ुपर ौी गुजी के साथ जो कायकता थे उनके सामने ू िच खड़ा हआ। ु पुल पारकरने का धोखा न िलया जाय, ऐसी आम राय य हई। ु परतु पल भर का भीवचार न करते हए ु ौी गुजी ने पटर पर पैर रखा और सर-सर कदम बढ़ाते हए ुउहने देखते –देखते पुल तेजी से पार कर िलया। िनपाय हो कर अय कायकताओंको भी हमत बटोर कर यह कड़ कसौट सफलता से पार करनी पड़। ौी गुजी कासारा यान था, आगे कै से पहँचा ु जाय। कठणाइयाँ उनक िगनती म ह नहं थीं। एकबार ौी गुजी के िनजी सहायक डॉ. आबाजी थे ने बतालाया था क उस ूवास काःमरण होते ह आज भी रगटे खड़े हो जाते ह।१९६० म इंदौर म हए ु कायकताओं के सम अपने एक भाषण म ौी गुजी ने इसकालखंड के बारे म कु छ उलेख कया था। संघ का िनय काय कतना महवपूण हैऔर ताकािलक समःया अथवा संघष से वचिलत होना कतना अिनकार है इसीसदभ म ौी गुजी ने उ कालखंड का उदाहरण दया था। उस भाषण के कु छ अंशौी गुजी क मानिसकता को ःप करते ह। उहने ९ माच १९६० को अपने भाषणम कहा था- “देश म समय-समय पर िनमाण होनेवाली परःथित के कारण मन मतूफान उठता है। १९४२ म भी अनेक के मन म तीो आंदोलन था। उस समय भी संघका िनय काय चलता रहा। ूय प से संघ ने कु छ न करने का संकप कया।परंतु संघ के ःवयंसेवक के मन म उथल-पुथल चल ह रह थी। संघ अकमय लोग<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७७


क संःथा है, इसक बात म कु छ अथ नहं है, ऐसा के वल बाहर के लोग ने ह नहंतो कई अपने ःवयंसेवक ने भी कहा। वे बड़े भी हए। ु ”“इसके बाद देश भर म फर से एक अःथर-सी परःथित लोग अनुभव करने लगे।मुसलमान ने मार-पीट और दंगा-फसाद शु कर दया था। वभाजन के पूवरंग ककृ ंणछाया फै लने लगी थी। उस संकट का ढ़ता से मुकाबला करने का वचार अपनेलोग के मन म आया और फर काय-वःतार म वे जुट गए। परंतु काफ वलब होचुका था। जब नाक म पानी घुसने लगे तब तैरना सीखने का वचार मन म आने सेया लाभ? पता नहं, अपने समाज को या हो गया है। यास लगने पर कु आं खोदनेका वचार करने क खराब आदत अपने समाज को कै से लगी? उस समय भी लोगबोलने लगे क संगठन होना चाहए। परणामःवप पंजाब क संघ-शाखाओं म बहत ुबाढ़ आई थी। मुझे ःमरण है, मने उस समय भी कहा था क पाडुरोग म रोगी मोटाहो जाता है। परतु उसके ःथूल शरर का बोझ मृयु का पूविचह होता है। उसकेमुख का गौरवण वाःतव म ववण रहता है। ऐसे पाडुरोगी के पु दखनेवाले शररसे महकाय नहं हो सकता। उस समय भी नहं हआ। ु कु छ अप सा काय हआ ु औरसंकट का यथाश ूितकार हआ। ु ”ौी गुजी के उपयु भाषण से उन अनेक ू का भी परो उर िमल जाता है जो१९४७ म हए ु वभाजन के संदभ म अनेक लोग ने बाद के कालखड म खड़े कये।यह पूछा गया क अगर संघ को मातृभूिम क अखंडता अपने ूाण से भी अिधकूय थी तो संघ ने अपना सवःव दाँव पर लगाकर वभाजन के व तीोतर संघषय नहं कया? ःप प म कहना हो तो यह कहा जा सकता है क संघ क उससमय ःवयं क इतनी श नहं थी क अपने बलबूते जन-आदोलन चलाकरवभाजन रोक पाता। फर भी संघ ने वभाजन टालने क दशा म यथासंभव ूयअवँय कया। यद कांमेस के नेताओं और गांधीजी ने वभाजन को ःवीकार कर देशक ओर से ॄटश सरकार और मुःलम लीग के साथ कोई समझौता नहं कयाहोता तो समाज को साथ लेकर संघ देश के वभाजन को रोकने के संघष म सफलतासे जूझ सकता था। कतु वभाजन को सरकार ःतर पर ःवीकार कर िलया गया थाऔर इसिलए अिधक कु छ कर पाना संभव नहं था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७८


८.८ एक वर सहकार का वेषणराीय ःवयंसेवक संघ के कु छ वर कायकताओं के वचार इस से मननीय ह।हंदओं ु क रा और वःथापत क सेवा पर ह संघ ने संतोष य मान िलया, ऐसाू एक बार संघ के दणांचल ूचारक ौी यादवराव जोशी से पूछा गया। उस समयक परःथित के िननिलखत पहलू ौी यादवराव जी ने रख-“(१) वभाजन रोकने लायक संघ क श, लोग म जागृित और संगठन उस समयनहं था।(२) ॄटश ने भारत छोड़कर जाने के बारे म जो घोषणा क थी वह इतनी ह थीक वे जून १९४८ के अंत तक सा का हःतातरण कर दगे। इसम देश-वभाजन काकोई ूःताव नहं था। माउं टबेटन घोषत योजना के १० माह पूव ह यानी, १५ अगःत१९४७ को ह देश वभाजन के साथ सा हःतातरण का िनणय इसिलए कर सकायक कांमेस ने देश वभाजन क ःवीकृ ती दे द थी। यद कांमेसी नेता और ८-१०माह ठहरते तो संघूेरत हदू श दहशत को समा कर सकती थी और देश कावभाजन रोका जा सकता था। परंतु ूारंभ म वभाजन का उसाह से वरोधकरनेवाले नेह, पटेल आद नेताओं और अंत म ःवयं गांधीजी ने भी सन ् १९४७ मवभाजन को ःवीकार करने का मन बना िलया था। फर भी वभाजन वरोधी ूचारौी गुजी ारा चालू रखा गया। कांमेस और संघ क श एकजुट होती तो िचऽएकदम बदला हआ ु दखाई देता। दभाय ु से संघ को अपना राजनीितक ूित मानकर उसे ह न करने क नीित कांमेस ने अपनायी।(३) सभी संघवरोधी शय को लगता था क संघ वभाजन के वरोध म बगावतका झडा फहरायेगा और इस ूखर रावाद श को न करने का सुअवसर उहिमलेगा। यद ूितकार कया होता तो गृहयु और शहादत के िसवा कु छ भी पलेनहं पड़ता। कांमेस का ूचार ऐसा था क सैकड़ वष बाद खंडत ःवप म य नहो ःवतंऽता ूा हो रह है; इसके अितर वभाजन हआ ु तो भी वह ःथायी प सेटकनेवाला तो है नहं। यह अःथायी बात है और फर से देश एक होगा। इसिलएआज वभाजन का वरोध करनेवाले एक ूकार से ःवातंय-ूाि का ह वरोधकरनेवाले ह। संघ ने ूितकार कया होता तो संघ को ःवातंय का वरोधी करार देकरउसे न करने का ूयास सरकार ने और कांमेस पर वास रखनेवाले लोग ने भीआवेश से कया होता। ःवातंयूाि का आकषण बहत ु बड़ा था। संघ का वरोधःवातंय से नहं, वभाजन से है, यह आवाज बहत ु ीण िस हई होती। ु संघ हदूरा के वचार क अंितम वजय चाहनेवाला और उसके िलए काम करनेवाला संगठनहै। वभाजन ःवीकार करनेवाल का असली प उजागर करने का महकाय संघ के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ७९


ारा होना आवँयक था। ूय सबय वरोध करना संभव नहं हआ ु तो भीवभाजन-वरोधी भूिमका पु करने का ूयास ौी गुजी ने अवरत चालू रखा था।संगठन को मजबूत रखना और कायश बढ़ाना यह माग ौी गुजी को राहत क से योय लगा। मुझे भी लगता है क ौी गुजी क भूिमका पूणतः योय थी।हंदू-हंदू के बीच का उम कलह का संकट भी टल गया। वभाजन क जो वेदना होनीथी वह तो सहना ह पड़। कतु उस समय वभाजन रोकने के िलये कु छ नहं कयाजा सका यह टस ःथायी प से चुभने-वाली है।”उस विचऽ एवं दवधापूण ु परःथित का तटःथ वचार करनेवाले कसी भी य कोौी यादवराव जी का यह वेषण सामंजःयपूण लगेगा।८.९ अतम सय नहं : ौी गुजीवभाजन के सबध म बोलते समय ौी गुजी के मुख से बार-बार उनक यथा,वेदना य होती थी। वभाजन वःतुःथित बन चुका था कतु ौी गुजी ने उसे‘अतम सय’ कदाप नहं माना। अखड मातृभूिम ह सदैव उनक उपाःय देवतारह। मातृभूिम क खंडत ूितमा पुनः अखड बनाने का ःवन ूयेक देशभ केदय म पलता रहे; इस सदभ म एक घटना काफ उ-बोधक है। १९५५ म जबपरम पूजनीय ौी गुजी से पूय पेशावर मठाधीश ौी वेशतीथ ःवामी जी ने एकू पूछा, ‘भारत या फर कभी अखड होगा?’ ौी गुजी ने तकाल उर के प म-गंगे च यमुने चैव गोदावर सरःवित।नमदे िसंधु कावेर जलेःमन ् सनिधं कु ।।ोक कहा और कहा क हम अपनी िसधु नद को नहं भूल सकते। ःवामी जी केअगले ू पर क यह कै से होगा? ौी गुजी ने उर दया क हदओं ु के असंगठनव दबलता ु के कारण ह वभाजन हआ। ु उस कारण को दरू करने से देश फर सेअखड हो सके गा।८.१० ौी गुजी क सतक तावभाजन क योजना बयावत हई। ु नेताओं के भरोसे बैठ लाविध जनता कोजघय अयाचार सहने पड़े। िचतौड़ का जौहर भी फका पड़ जाए ऐसा बिलदान हआ। ुलाविध लोग को जमभूिम का याग करना पड़ा। उनक यथा दयवदारक थी।उह संघ ने यथासंभव दलासा दया। हंदू समाज के तारणहार के प म ौी गुजी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८०


के ूित यापक प म ौा िनमाण हई ु , कं तु इसी समय िनयित का घटना-चबकु छ अलग दशा से घुमने लगा। उन घटनाओं क ओर मुड़ने के पूव ौी गुजी नेभारत सरकार ारा जो महवपूण काम करवा िलया उसके संबंध म कु छ कहनाआवँयक है यक वभाजन के बाद िसंध म पैदा हई ु अशांत ःथित से उस कामका संबंध था। सामायतः अगःत मास म िसंध म वशेष गड़बड़ नहं हई। ु परतुिसतबर मास म भारत से मुसलमान के जथे पंजाब और िसंध म पहँचे। ु उहनेभारत म मुसलमान पर भीषण अयाचार होने क अितशयोपूण कहािनयाँ ूःतुतकं। फलःवप िसतंबर मास म िसंध म मुसलमान ने हंदओं ु पर अयाचार करनाूारंभ कर दया।इस दंगामःत काल म द. १० िसतंबर को कराची क िशकारपूर कालोनी म एक बम-वःफोट हआ। ु इस घटना का बहाना बनाकर पाकःतानी शासन ने हंदओं ु किगरतारय का िसलिसला शु कर दया। इसी समय अथात द. १२ िसतंबर कोदली क भंगी कालोनी म महामा गांधी जी से ौी गुजी क भट हई ु थी।ःवयंसेवक के समेलन म गांधीजी का भाषण भी हआ ु था। बम वःफोट और यहगांधी-गुजी भट इन दोन घटनाओं के भड़कले और उभाड़नेवाले समाचार कराची के‘डान’ नामक समाचार पऽ ने बड़े-बड़े शीषक देकर एकऽ छापे थे। “कराची म बमवःफोट : पाकःतान न करने का भारत का ूय” और “महामा गांधी का संघ केःवयंसेवक को मागदशन : यद पाकःतान अपनी इसी नीित पर चलता रहेगा तोभारत-पाक संघष होगा।” ऐसे िशषक इन समाचार को ‘डान’ ने दये थे।बम-वःफोट के बाद अिधवा खानचंद गोपालदास जी और अय १९ ःवयंसेवक कोिगरतार कया गया। इन संघ कायकताओं क मु कस ूकार क जाय, यह ूउपःथत हआ। ु यह ःप था क भारत सरकार और पाकःतान सरकार के बीचसामंजःय होने पर ह ःवयंसेवक क मु संभव है और बना शासकय सहयोग केकु छ भी कर पाना संभव नहं है। ौी गुजी ने भारत सरकार के मऽय औरअिधकारय से संपक साध कर जो परामश दया उससे अंत म यह कठन कायसफल हो सका। सरदार पटेल गृहमंऽी थे और गृहमंऽालय के कु छ ूमुख अिधकार भीौी गुजी के ूित स-भाव रखनेवाले थे यक हंदू-वःथापत को संघ-कायकताओंने कतनी कठनाई से सुरत भारत लाया यह उह ात था। भारत म आयेवःथापत क जो ववध ूकार से सेवा संघ ने क उसके ूित कृ तता का भावथा। दो सरकार परःपर के राजनीितक कै दय क अदला-बदली (exchange ofpolitical prisoners) कर सकती ह, इस ूथा का आधार लेकर पाकःतान के हंदूकै दय और भारत के मुसलमान कै दय क अदला-बदली करने क योजना ौी गुजी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८१


ने सुझायी और वह गृहमंऽालय ने ःवीकार क। अदला-बदली का दन िनत हआ ुऔर अदला-बदली का ःथान भी फरोजपुर तय हआ। ुऐसा लगा क बै. खानचंद गोपालदास जी के साथ अय १९ लोग को भी फरोजपुरम लाया गया होगा। परंतु समाचार िमला क के वल बै. खानचंद को ह लाया गया हयक उस समय ौी कु रेशी नामक के वल एक पाकःतानी कै द भारत सरकार कहरासत म था। एक के बदले एक को ह छोड़ने का पाक सरकार ने तय कया था।वभाजन के समय यह कु रेशी बड़ा कु यात हआ ु था। फरोजपुर म इन मु कै दयके ःवागताथ ौी गुजी के ःवयं क जाने क योजना संघ के कायकताओं ने बनायीथी। अय ःवयंसेवक भी वहाँ जानेवाले थे। बहत ु भय कायबम होने वाला था।परंतु एन सौके पर गंभीर समःया उपःथत हो गयी। कु रेशी के बदले म के नलखानचंद जी क मुता यद भारत सरकार ने मान ली तो शेष १९ लोग का छटकारा ुूायः असंभव होगा इसका ान ौी गुजी को था। इसिलए कु रेशी के बदले मखानचंद जी के साथ अय १९ लोग क मुता भी पाक को करना चाहए ऐसाआदेश भारत सरकार के गृह मंऽालय क ओर से भेजे जाने क आवँयकता थी। बहत ुह कम समय पास म था। ौी गुजी अयंत यिथत हो उठे। ःवागत के िलए आयेःवयंसेवक म ौी लालकृ ंण आडवाणी भी थे। सब के मन िनराशामःत थे, परंतु ऐसादखाई दया क ौी गुजी के मन को िनराशा ने जरा भी ःपश नहं कया है।उहने एकदम कहा, “हम अब भी कु छ कर सकते ह” और डॉ. आबाजी थे क ओरमुड़कर कहा, “आबा, काकासाहब गाडगील को फोन लगाओ, म उनसे बात करता हँ। ू ”उस समय पंजाब म रापित का शासन था। ौी िभड़े नामक चीफ सेबे टर थे। सरदारपटेल कहं बाहर गये हए ु थे, इसिलए काका साहब गाडगील अःथायी प से गृहमंऽीपद संभाल रहे थे। ौी गुजी ने काका साहब से बातचीत क। उसके बाद तकालपाक-शासन को संदेश भेजा गया क कु रेशी के बदले म खानचंद जी सहत सभी २०लोग क मुता हई ु तो ह कै दय क अदला-बदली होगी अयथा नहं होगी। उसदन के िलए अदला-बदली का कायबम ःथिगत हआ। ु परंतु भारत सरकार के कड़ेख का योय परणाम हआ। ु पाक शासन क तीो इछा थी क कु रैशी मु हो।अतः भारत सरकार क मांग के अनुसार कु रेशी के बदले म सभी २० लोग को मुकरना पाक शासन को ःवीकार करना पड़ा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८२


इस उथल-पुथल म लगभग एक मास बीत गया। बै. खानचंद जी सहत सारेःवयंसेवक बंधु सुरत भारत पहँचे। ु उनका भय ःवागत कया गया।भारत सरकार का सहयोग संपादन कर इस ूकरण म ौी गुजी ने बहत ु महवपूणभूिमका संपन क । सरदार पटेल, काकासाहब गाडगील और ौी िभड़े से ौी गुजीके यगत ःनेह संबंध, ःवयंसेवक क मुता हेतु उनक तीो याकु लता, योयसमय पर कड़ा ख ःवीकारने का उनका परामश और काम सफल होगा ह यहउनका संपूण वास आद गुण के दशन इस ूसंग से हए। ु ौी लालकृ ंण आडवाणीने तो यहाँ तक कहा क ौी गुजी क योजकता और िनय का यह जो अनुभवहआ ु वह मन पर वलण परणाम करनेवाला और कभी मनःपटल से न िमटसकनेवाला िस हआ। ुिसंध के ह संबंध म ौी लालकृ ंण आडवाणी ारा बताया गया और एक ूसंगउलेखनीय है। वभाजन के पूव द. ५ से ८ अगःत ौी गुजी का िसंध ूांत मूवास हआ ु था इसका उलेख ऊपर कया जा चुका है। इस ूवास के समय काँमेस केअय आचाय कृ पलानी जी संयोग से कराची म थे। कराची के संघचालक एडवोके टखानचंद गोपालदास जी क आचाय कृ पलानी जी से गाढ़ िमऽता थी। ौी गुजीचाहते ह तो कृ पलानी से उनक भट सहज करवायी जा सकती है ऐसा सूिचत कयागया। ौी गुजी क इस सुझाव पर ूितबया अयत तीखी थी। उहने कहा,“आचाय जी से कहो क अब िमल कर या करना है?” यह कहते समय उनकेअंतःकरण क वेदना और वभाजन क ःवीकृ ित के संबंध म ोभ ूयेक शद म सेूितबंबत हो रहा था। उनसे और कु छ कहने क हमत कसी को नहं हई ु औरअथात ् भट भी नहं हो पायी।इस ूवास के पात ौी गुजी कँमीर गये। ौी शंकराचाय जी ारा ःथापत मंदरका ौापूवक दशन कया। लौटने पर उहने ूधानमंऽी पं. नेह जी से िमलकरअपने काँमीर-ूवास क जानकार उह द। सरदार पटेल से भी ौी गुजी िमले।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८३


९ गांधीजी क हया: संघ वरोधी अिभयानसमाज के सहयोग से संघ के ःवयंसेवक वःथापत बांधव क सेवा म दन-रात जुटेथे। ौी गुजी ने एक सावजिनक िनवेदन ूकािशत कर समाज को सहयोग हेतुआवाहन कया। पंजाब सहायता सिमित और बंगाल म वाःतुहारा सहायता सिमित केारा सैकड़ िशवर चलाये जा रहे थे। सह बांधव को इन िशवर म सहारा दयागया। इस अशांत और तनावपूण वायुमडल म देश को ौी गुजी के उुंग यवका असाधारण पहलू देखने को िमला। उनके अंतःकरण क वशालता का वलोभनीयदशन समूचे रा को हआ ु । ूितबयामक वचार का जरा भी ःपश न होने देते हए ुभवंयकालीन िनरामय िनमाण और सुयवःथा ूःथापत करने क आकांा से इसमहान ् यव ने कतनी वधायक ःनेहमयता संपादत क है, इसका ूय परचयवभाजन के बाद के चार-पांच महन म उनक गितविधय, आचरण-यवहार औरवय से रा क जनता को िमला।९.१ अमृतभरा दयइस संदभ म उनके एक भाषण माऽ का उलेख करना पया होगा। वह दन थामकर संबमण का। १४ जनवर १९४८ को ौी गुजी मुंबई म थे। मुंबई शाखा क ओरसे आयोजत उसव म वे बोले थे। खडत भारत क राजनीितक ःवतंऽता और सापरवतन का जो नया पव देश म ूारंभ हआ ु था, उस संबंध म संघ क भूिमका कोउहने अयंत ःप शद म ूःतुत कया था। उनके इस भाषण को पछले चार-पांच माह के अनुभव क पृभूिम ूा थी। उह दखाई दे रहा था क वःथापत मकतना ोभ है। वे यह देख रहे थे क भीषण रपात के कारण भयभीत साधारप के लोग म दंग और हंसाचार के िलये संघ पर दोष मढ़ने क वृ तीो होतीजा रह है। संघ के ूित ेष-भावना पैदा क जा रह थी। ूधानमंऽी पं. नेह के मनम संघ के ूित कोई स-भावना नहं है इसका अनुभव वे ःवयं पं. नेह से एकभटवाता म ले चुके थे। संघ क श को न करने का वचार साधार दल म पनपरहा था। कांमेस, मुःलम समाज और कयुिनःट सब िमलकर संघ के व अप-ूचार तथा झूठे-अनगल आरोप लगाने म जुट गये थे। यह सब जानते हए ु भी ौीगुजी ने अपने मुंबई के भाषण म ःनेहमयता, रा कयाण के िलये सहयोग,माशीलता और िनवरता का आासन देनेवाला ःवर ूकट कया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८४


ौी गुजी ने कहा, “शांत िच से वचार करने पर हमारे यान म आयेगा क मनुंयके जीवन म अनेक ूकार के ूयोग होते रहते ह। उनम सफलता-वफलता, सुख-दःख ु ,वजय-पराजय के ूसंग आना ःवाभावक ह है। ूयोग क सफलता-वफलता कोिस होने के िलए कु छ समय तो लगेगा ह- अयथा ूयोग करनेवाले के साथअयाय होगा। जो कु छ हो रहा है, वह उिचत हो या अनुिचत, हम ूुध न होते हए ुअपना काय करते रहना चाहए। समःयाओं के मूल म जाकर वचार करना चाहए।अंतःकरण म कसी भी ूकार के ेष अथवा बदले क भावना न रखते हए ु परःपर-शऽुता क भावना का याग करते हए ु शांत िच से ूगित का माग अपनाना चाहए।”अपने इस भाषण म ौी गुजी ने कहा, “ोभ देनेवाली सभी बात को हजम कर हमआगे बढ़गे। अपने दय के अमृत म बोध के वष को नहं घुलने दगे। अपने चारओर जो लोग दखाई देते ह, वे कै से भी ह, अपने रा के , अपने समाज के ह ह।उनक वचार-ूणाली कै सी भी य न हो, उहने भी कु छ अछे काम कये ह, यागभी कया है। इसिलये हम शांतिच से वचार करना चाहए। हम अपनी ःनेहपूणउदारता और बंधुव क भावना उनके ूित नहं तो कनके ूित ूकट करगे? कसी केकहने अथवा करने से मन म िनमाण होनेवाले ोभ को दय म जरा भी ःथान नदेते हए ु फर से िसर उठानेवाले भेद को िमटाकर “वयं पंचािधकं शतं” क आमीयभावना से एकसूऽ-ब रा के िनमाण म अपनी सार श लगा देनी चाहए और इसूयास म हम अपने ूाण से भी अथ धोना पड़े तो उसक िचता नहं करनी चाहए।”अजातशऽुव तथा अमृतमय भावना का आचरण अके ले ौी गुजी का ह नहं वरन ्उनके चैतयूद नेतृव म देश भर म शशाली प म खड़े सूऽब संगठन का भीथा। सा-परवतन का यह कालखंड दली म भय और शंका से मःत था। इस कालम नागरक जीवन को सुरत रखने, इतना ह नहं तो कांमेस का शासन भीसुरत रखने के िलए संघ ने सब ूकार का सहयोग दया। दली क भंगी कालोनीम गांधी जी के िनवास ःथान क सुरा का दाियव भी संघ के ःवयंसेवक नेिनभाया। गांधी जी भी संघःथान पर जाकर ःवयंसेवक से िमले और अपने भाषण मउहने संघकाय क सराहना भी क। गांधी जी को अपना अनशन छोड़ने के िलएराजी कराने हेतु जार संयु वि पर दली ूांत के संघचालक लाला हंसराज गुने खुशी से अपने हःतार कये। संघ के कारण कहं भी शांित भंग, ूोभ भड़कनेअथवा उपात होने क कोई घटना नहं हई। ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८५


संघ के भय कायबम और ौी गुजी के मुख से अमृतमय संगठनमंऽ को सुनने केिलए उन कायबम म एकऽत होनेवाली लाविध जनता को देखकर साधार ेऽ मयह भावना फै ली क यह कांमेस के िलये बड़ चुनौती ह खड़ हो रह है। इसिलएसंघ को हर ूकार से दबाने के ूय शु हए। ु इसके कु छ कटु अनुभव १९४७ केनवबर मास म िमल चुके थे। ूथम अनुभव पुणे के िनकट िचंचवड म द.१ व २नवबर को आयोजत लगभग १ लाख ःवयंसेवक के समेलन पर अचानक ऐनसमय पर शासन क ओर से पाबंद लगाने का था। वाःतव म गृहमंऽी सरदारवलभभाई पटेल ःवयं इस समेलन म ूमुख अितिथ के नाते उपःथत रहनेवाले थे।इसिलये सवऽ वशेष उसाह का वातावरण बन गया था। मुंबई सरकार ने ूितबंध काआदेश जार कया तो अनेक को भार िनराशा हई। ु इस अनावँयक और अयायकाररोक से अनेक कायकताओं म ोभ भी पैदा हआ। ु कतु शासकय आदेश काउलंघन कर समेलन का आयोजन करने का आमह न तो ौी गुजी ने कया औरन ह कसी ःवयंसेवक कायकता ने। वकप के प म महारा म तेरह ःथान परौी गुजी के कायबम आयोजत कये गये और वे सभी कायबम शानदार ढंग सेसपन हए। ु इन तेरह ःथान पर दये अपने कसी भी भाषण म ौी गुजी नेिचंचवड समेलन पर पाबंद के व न तो अपनी नाराजगी य क और न हशासन क कोई आलोचना क। उनके भाषण का ूमुख सूऽ यह रहा क अपनासमाज असंगठत होने के कारण ह उसे अनेक संकट से गुजरना पड़ रहा है। समाजयद संगठत नहं हआ ु तो ःवतंऽ भारत भी संकट-मःत हो जायेगा। वभाजन केिलये समाज क असंगठत अवःथा और आम-वःमृित को ह उहने जमेदारठहराया।दसर ू घटना थी दली म नवबर के अंत म सपन मुयमंऽी-समेलन म हई ुचचा और वचार-विनमय। इस समेलन म राय के मुयमंऽी तथा राय केगृहमंऽी भी उपःथत थे। इस समेलन म चचा का ूमुख वषय मान राीयःवयंसेवक संघ ह था। चचा का ूमुख मुा यह था क राीय ःवयंसेवक संघ‘हंसामक’ गितविधय म िल है, इसिलये उसे रोकने के िलये कठोर पग उठायेजाने चाहये। आखर समेलन म यह िनणय िलया गया क संघ क सार हलचलपर पाबंद लगाने क बजाय के वल अपराधी य के व कारवाई क जाए। इसकेसाथ ह संघ क गितविधय पर बारक नजर रखने क बात भी तय क गई। उसमेलन म हई ु चचा क जानकार समूचे रा को ४ फरवर १९४८ को संघ परूितबंध लगाने सबधी जार सरकार आदेश म दये गये यौरे से िमली। इसी माहक तीसर घटना थी मेरठ म हए ु कांमेस के अिधवेशन म राीय ःवयंसेवक संघ<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८६


का ह चचा का ूमुख वषय बना रहना। इस अिधवेशन म अनेक वाओं ने संघ परूितबंध लगाने क मांग क। इस दशा म शासकय वचार-चब का संके त देने-वालीघटना भी उलेखनीय है। द. २९ जनवर को ूधानमंऽी पं. नेह ने अमृतसर कसभा म घोषणा क क ‘हम संघ को जड़मूल से न करके ह रहगे।’ इस भाषण कासमाचार पढ़ने के बाद ौी गुजी ने कहा क “संघ पर होनेवाले सभी आघात को हमवफल करगे। हमारा (संघ का) काय कसी क कृ पा से नहं बढ़ा। कसी क बुर से वह समा भी नहं होगा। यह काय कहं कागजी ूःताव से खड़ा नहं हआ। ुअतः कागजी आदेश से उसे न नहं कया जा सकता।” उनके उ उ-गार कोपरखने का समय अयंत िनकट आ पहँचा ु है, शायद इसक कपना ौी गुजी को भीन रह हो।वाःतव म आगे क घटनाओं से यह बात साफ हो जाती है क संघ पर हंसा-दंगाफै लाने तथा जाितवाद आद होने का जो आरोप लगाया जा रहा था- वह राजनैितकथा। कांमेस ने देश को अखड बनाये रखने का अिभवचन दया था परतु देशवभाजन ःवीकार कर जनता के साथ वासघात कया था। इस कारण लोग के मनम कांमेस के ूित तीो असतोष िनमाण हआ ु था। देश-वभाजन के भीषण दन महदु समाज क रा करने हेतु संघ ारा कये गये अूितम साहस और बिलदान केकारण समाज का संघ पर वास और उसक जनूयता बहत ु बढ़ गई थी। देश केअय भाग म भी मुसलमान ारा भड़काये गये दंग के समय हदु समाज क राके िलए संघ के ःवयंसेवक ह ढाल बने थे। परतु दभाय ु का वषय है क देश केऐसे संबमण काल म संघ ारा बढ़ाये गये सहयोगी हाथ को ःवीकार करने क बजायवह भवंय म राजनैितक ूितःपध बन सकता है। इस भय से आरोप लगाकर उसेन करने का षयऽ रचा गया।अखबार म अथवा कांमेसी नेताओं के भाषण म संघ पर जाितवाद, साूदाियक,ूितबयावाद, फै िसःट होने सबधी जो आरोप लगाये जाते थे उनक िचंता संघ मकोई नहं करता था। इन आरोप का संघकाय क गित पर भी कोई ूभाव नहं पड़ा।कतु ३० जनवर को जो दभायपूण ु घटना हई ु उसका संघ-वरोिधय ने पूरा-पूरालाभ उठाया और संघ क अन-परा का समय अकःमात ् आ खड़ा हआ। ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८७


९.२ राीय सामंजःय क आवाजउस दन सायंकाल ौी गुजी मिास म संघ ारा िनमंऽत ूितत नागरक कसभा म उपःथत थे। नागरक से वातालाप चल रहा था। चाय क यािलयां सभी केसम रखी जा रह थीं। ौी गुजी के हाथ म भी चाय क याली थी। वे उसे मुंह सेलगाते इसके पूव ह अकःमात ् यह दःखद ु समाचार सुनने को िमला क दली केबड़ला भवन म ूाथना के समय कसी ने गोली चलाकर गांधीजी क हया कर डाली!यह खबर सुनते ह गुजी ने चाय क याली नीचे रख द और कु छ ण तकिचंतामन ःथित म ःतध बैठे रहे। फर उनके मुंह से यिथत उ-गार िनकले- ‘देशका दभाय ु है यह।’ अगला सारा ूवास कायबम र कर वे तुरत वमान ारा सीधेनागपुर लौटे। मिास से रवाना होने के पूव ह उहने पं. नेह, सरदार वलभभाईपटेल व ौी देवदास गांधी के नाम तार भेजकर अपनी शोक संवेदना य क। साथह आदरणीय महामा जी क दःखद ु मृयु पर शोक ूकट करने के िलये तेरह दनतक संघ शाखाएँ बद रखने का आदेश भी गुजी ने सवऽ ूसारत कया। नागपुरलौटते ह उहने तुरत ूधानमंऽी पं. नेह तथा सरदार पटेल के नाम महामा जीक दभायपूण ु मृयु पर अपनी यथा को ूकट करनेवाले पऽ भेजे। पं. नेह के नामिलखे पऽ का कु छ अंश इस ूकार है :-“विभन ूवृय के लोग को एक सूऽ म परोकर उनका सह मागदशन करने वालेएक कु शल कणधार पर कया गया आबमण कसी एक य के ूित वासघातनहं, समुचे रा के ूित वासघात है। इसम कोई संदेह नहं क आप याने वतमानशासनािधकार उस देशिोह पर उिचत कायवाह करगे ह। वह कायवाह कतनी भीकठोर य न हो, उस ित क तुलना म सौय ह होगी जो इस समय उठानी पड़है। इस वषय म म अिधक या कह सकता हँ ू? आज हम सबके िलए परा क घड़है। वतमान ूोभक परःथित म संतुिलत ववेकबु, मधुरवाणी और राहत केूित एकातक िना सहत सावधानी से सारे बयाकलाप करते हए ु रानौका को पारले जाने का उरदाियव हम सब पर है।”सरदार पटेल के नाम ूेषत अपने पऽ म ौी गुजी ने िलखा- “उस महान संगठक केआकःमक ितरोधान से अपने कं ध पर जो उरदाियव आ पड़ा है उसे हम कु शलतासे वहन करना होगा। तदथ उस आमा क पवऽ ःमृितय को संजोकर रखना होगाजसने परःपर वरोधी ूकृ ित के लोग को एक सूऽ म गूँथकर उन सब को येयमागपर चलाया। आइये, हम स-भाव, संयतवाणी तथा ॅातृभाव के ारा श संिचत करिचरतन एकाम राजीवन के िनमाण हेतु ूयशील ह।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८८


इन पऽ के अंत म ौी गुजी ने िलखा क संघ का गठन भी इसी आःथा औरआधार पर कया गया है और परमदयालु परमेर से ूथना है क वशु एवंशमान राजीवन के िनमाण हेतु इस रा के सपूत को वह सह मागदशन एवंूेरणा दे।इन दोन पऽ क भावना अयंत िनमल, दवंगत के ूित पूण आदर व ौा यकरनेवाली और राीय संकटकाल म सहकाय का मनःपूवक आासन देनेवाली है। संघके ःवयंसेवक के नागपुर तथा अय ःथान पर शोकसभाओं का आयोजन कर गांधीजी के ूित अपनी वनॆ ौांजिलयाँ अपत कं। ौी गुजी ने असोिसयेटेड ूेस ाराएक संदेश ूसारत कया। उसम भी रा क एकता, परःपर ःनेह और सेवाभावना कोटकाये रखने क बात ह कह। कतु इस भीषण दघटना ु के बाद संघ के वअपूचार का बाजार गम हो उठा! ऊल-जलूल अफवाह फै लाई जान लगीं और सवऽसंघ के व ूोभक वातावरण बनाने का ूयास कया गया। ौी गुजी क स-भावना को समादर िमलना तो दरू रहा, उटे शासन ने संघ को गांधी जी क हया सेजोड़ने क घृणत भूिमका अपनायी।ौी गुजी ने अपने एक वय म संघ के ःवयंसेवक को िनदश दया क“गलतफहमी से िनमाण होनेवाली सब ूकार क परःथित म सभी ःवयंसेवक कोअपना यवहार ःनेहपूण ह रखना चाहए। उह यह यान म रखना चाहए कगलतफहमी के िशकार बनकर लोग ारा दया गया ऽास भी अपनी मातृभूिम कानाम जगत ् म उवल करने वाले महापुष के ूित देशवािसय म असीम ूेम औरआदर भावना का ह ोतक है।”दभाय ु से ौी गुजी का इतना सावक िनवेदन भी वृ-पऽ म उिचत ःथान नहं पासका। संघ के व ोभ भड़काने का बम जार रहा। महारा म इस काड कोॄाण-अॄाण ववाद के प म उभाड़ा गया। परणामःवप असंय लोग के घरपर हमले हए ु , आगजनी, लुट-पाट का िसलिसला चल पड़ा। भार ित हई। ु महाराएवं आसपास के ूदेश म हजार परवार िनराधार बने एवं कु छ लोग क आहित ु भीहई। ु देशभर म संघ ःवयंसेवक और कायकताओं को भार यातनाएं सहनी पड़ं। फरभी कसी ने कोई ूितकार नहं कया और न ह कसी के ूित कटु शद का ूयोगकया। सब कु छ शांित से सहन कया। इसके पीछे डर या भय क कोई भावना नहंबक राहत म संघ ारा ूदिशत अभूतपूव संयम का भाव ह था। ौी गुजी नेूितकार न करने का आदेश सवऽ भेजा था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ८९


जनोभ क आंच ूय ौी गुजी तक पहँची। ु उस समय ौी गुजी ने जसअसामाय धैय, संयम और वशाल दयता का परचय दया, वह उनके ारा क जारह समाज परमेर क उपासना क वशुता का ह परचायक था। ूसंग बड़ातनावपूण था। १ फरवर १९४८ के दन सुबह ौी गुजी के नागपुर ःथत िनवासःथनके सामने हजार लोग जमा हो गये और मकान पर पथर पकने लगे, अनगलआरोप सहत अश ्-लील नारेबाजी होने लगी। ूसंग क गंभीरता को देखते हए ु ौीगुजी क सुरा के िलए ःवयंसेवक उनके पास आये और हमलावर को ठकानेलगाने क अनुमित माँगने लगे। इस पर ौी गुजी ने उन ःवयंसेवक से कहा, “मेरेिनवास के सामने मेर सुरा के िलए अपने ह बांधव का र बहे यह म नहंचाहता। मेर सुरा के िलए यहाँ कसी को कने क आवँयकता नहं है, आप सभीअपने-अपने घर को लौट जाय।”९.३ अन परा का ूारंभइसी समय ौी गुजी के िनवास पर पुिलस का पहरा लगा दया गया कतु उसेसायंकाल हटा िलया गया। नागपुर के िचटणीस पाक म हई ु आम सभा म संघ वरोधीवषवमन कया गया। तब पुनः ःवयंसेवक को उपिव भड़कने क आशंका हई। ु कोईअनहोनी न होने पाये इसिलए ःवयंसेवक ने ौी गुजी को कसी अय सुरतःथान पर चलने क सलाह द। इस पर ौी गुजी ने जो उर दया वह उनकअंतःकरण क थाह देनेवाला है। बाहर इतना ूोभजनक उमाद वातावरण होने केबावजूद ौी गुजी के मन को अपनी सुरा का वचार यकं िचत भी ःपश नहं करपाया। उहने अपना सवःव समाजपुष के अधीन कर दया था। उहने कायकताओंसे कहा, “ऐसा दखाई देता है क चहँ ु ओर क परःथित और संकट को देखकर आपसारे वचिलत हो उठे ह। आपके मन वुध ह। अतः यह उिचत होगा क आप सबलोग यहाँ से जाय और मुझे शांितपूवक यहं रहने द। मेर िचंता आप जरा भी नकर। आपका आमह है क म यहाँ से अयऽ चलूँ, पर य? आज तक जस समाजके िलए म काय कर रहा हँ ू, अगर वह मुझे नहं चाहता तो म कहाँ और य जाऊं ?जो कु छ होना होगा होने दजये। अब मेर संया का समय हो गया ह आप सभीयहां से अपने-अपने घर लौट जाय।” इतना कहने के बाद ौी गुजी संया करने केिनिम भीतर के कमरे म चले गये। कतु जैसी क कायकताओं को आशंका थी,ऐसा कोई उपिव फर नहं हो पाया यक ौी गुजी के िनवास ःथान पर पुनःपुिलस का पहरा लग चुका था और हमलावर के िलये ौी गुजी के िनवास ःथान कओर जाना असंभव हो गया था। दोपहर के समय कु छ उपिवकारय ने रेशीमबाग<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९०


ुःथत डॉटर जी क समािध को ित पहँचाई ु थी। जन डॉटर जी ने रा औरहदू समाज के उकष के िलये हँसते-हँसते अपना सारा जीवन होम कर दया थाउहं क समािध पर मृयु के आठ वष बाद कु छ नासमझ हदू बधुओं ने पाशवीहमला कया था।ौी गुजी के घर पर पुिलस पहरे का अथ द. १ फरवर क मयराऽ के बाद ःपहआ। ु ौी गुजी रात के १२ बजे तक जाग रहे थे। कहाँ या हआ, ःवयंसेवक परकै से-कै से अयाचार हए ु , इसक जानकार उह िमलती रह। शायद वे और कसीघटना क िचंता म मन थे। जो कु छ घटनाएँ हो रह थीं उनसे वे यिथत तो थे ह।मय राऽ के बाद पुिलस क गाड़ उनके मकान के सामने आकर क। ौी गुजी केनाम िगरतार का वारंट जार कया गया था और राीय ःवयंसेवक संघ केसरसंघचालक को गांधी जी क हया के आरोप म िगरतार कर िलया गया। इसआरोप को सुनकर ौी गुजी हँसे कतु जरा भी अःवःथ नहं हए। ु अयंतशांितपुवक वे उस पुिलस अिधकार के साथ कारागृह म जाने के िलए तैयार हो गये।वहाँ उपःथत कायकताओं से वदा लेते समय उहने कहा, “संदेह के बादल छँटजायगे और िनंकलंक होकर हम बाहर िनकलगे। तब तक अनेक ूकार के अयाचारहगे। उह अयंत संयम के साथ सहन करना होगा। मेरा यह वास है क संघ केःवयंसेवक इस अन-परा म िनत प से खरे उतरगे।”पुिलस क गाड़ चल पड़। भारतीय दंड संहता क धारा ३०२ और १२० के अतगतिगरतार ौी गुजी जेल के सींकच म बंद कर दये गये। सा का ःवाथ जबअिनयंऽत हो उठता है तब कतनी ववेकशूयता िनमाण होती है तथा याय औरईर को पैर तले कु चलने का मोह संवरण करने क सूझ भी नहं रह पाती, इसकाःवाधीनता ूाि के आरंिभक काल का यह जीता जागता उदाहरण है। ौी गुजी किगरतार क खबर हवा क तरह सवऽ फै लते देर नहं लगी। संघ के सरकायवाह ौीभैयाजी दाणी ने सभी शाखाओं को तार भेजकर सुिचत कया क गुजी कोिगरतार कर िलया गया है। हम हर ःथित म शांित और संयम का परचय देनाचाहए। (गुजी, इन ्-टड, बी काम एट ऑल काःट)इसके बाद सरकार क ओर से संघ के व कु छ और कदम उठाये गये। द.२फरवर को के ि सरकार ने संघकाय को अवैध घोषत करने वाला अयादेश जारकया। के ि सरकार के इस परपऽक म संघ पर हंसामक कायवाह करने के आरोपलगाये गये और कहा गया क- “हंसा के इस उम आवंकार का कड़ाई से िनयंऽण<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९१


करना सरकार अपना कतय मानती है। इस कतय क पूित के ूथम पग के प मसंघ को अवैध घोषत कया जा रहा है।”बाद म ४ फरवर को सपूण देश म संघ पर ूितबध लगाये जाने क अिधकृ तघोषणा भी कर द गई। देश भर म संघ के कायकताओं और ःवयंसेवक किगरतारय का दौर चला। तीस हजार से अिधक िगरतारयां क गई। इस समयसारे देश का वातावरण संघ-वरोधी अफवाह, अनगल आरपो तथा वकृ त वष-वमनसे भरा जा रहा था। संघ को खम करने क भाषा सवऽ छटभैये ु नेता भी बोलने लगेथे। इस सीमा तक अफवाह फै लायी ग क “गुजी का गांधी-हया म ूय हाथथा। मुंबई म हई ु िशनात म मदनलाल ने गुजी को पहचान िलया!” कारागार म ौीगुजी को यह समाचार ात हो चुका था क संघ पर ूितबध लगा दया गया है।द. ५ फरवर को जब उनके वकल िमऽ ौी दोपंत देशपांडे उनसे िमलने गये तो ौीगुजी ने उनके पास संघ को वसजत कये जाने सबधी वय िलखकर दयाऔर कहा क वे इसे ूकािशत करा द। इस वय म ौी गुजी ने िलखा था- “ूारंभसे ह राीय ःवयंसेवक संघक यह नीित रह है क सरकार िनयम का पालन करते हए ह ु अपने कायबम कयेजाय। इस समय सरकार ने उसे अवैध घोषत कर दया है, अतः म यह उिचतसमझता हँ ू क ूितबंध हटाये जाने तक संघ को वसजत कर दँ।ू तथप सरकार नेसंघ पर जो आरोप लगाय ह उह म पूणतया अःवीकार करता हँ। ू ”ौी देशपांडे ने संघ को वसजत कये जाने सबधी ौी गुजी के आदेश को सवऽतार ारा सूिचत करने का ूयास कया। कं तु ये सारे तार नागपुर म ह रोक िलयेगये। फर भी अय माग से यह आदेश सवऽ पहँचाया ु गया और संघ वसजन कासमाचार वृ-पऽ म छप गया। इससे भी मजेदार बात यह है क संघ का वसजनसबधी समाचार सवूथम ६ फरवर को पाकःतानी अखबार ‘डान’ म ह ूकािशतहआ। ु बाद म भारत के अखबार ने उसे ूकािशत कया। इस समय कु छ लोग नेसमझा क संघ समा हो गया। संघ वरोिधय ने यह जानकर चैन क साँस ली होगीक संघ का रायापी संगठन दफना दया गया है। कतु ौी गुजी क गांधीहयाकाड म आरोपी के प म िगरतार एक सरासर मूखतापूण कृ य है इसकाअनुभव सरकार को होते देर नहं लगी। ौी गुजी से पूछताछ के िलए तकालीनड.आई.जी. हराचद जेल म पहँचे और ु जेलर साहब से ौी गुजी को उपःथत करनेको कहा। हया और षयंऽ क धाराओं म िगरतार के कारण ौी गुजी काफघबड़ा गये हगे, ऐसा मानकर उन पर रौब जमाने के िलए वशालकाय ड.आई.जी.<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९२


महोदय टेबल पर जूत सहत पैर रखकर बैठ गये और िसगरेट फूँ कने लगे। ौीगुजी को जब लाया गया तब उनको देखकर ड.आई.जी. महोदय ने ताना कसा-“ओहो, आप ह गु गोलवलकर ह! आप सरसंघचालक ह! आप तो बड़े दबले ु -पतलेह।” ौी गुजी ने छटते ू ह उर दया- “डाटर हेडगेवार ने सरसंघचालक का कोईआकार-ूकार िनत नहं कया था अयथा आपको या कसी भसे को सरसंघचालकके पद पर बठा देते।”ौी गुजी का िनभयतापूण हथौड़ामार उर सुनकर अिधकार महोदय एकदम चकेऔर अपने दोन पैर नीचे उतारकर जेलर साहब से कहने लगे- “अरे जेलर साहब,गुजी के िलए कु स लगाइए।” ौी गुजी के बैठने के बाद ड.आई.जी. महोदय नेपूछा क “गुजी, महामा गांधी क हया के बारे म आप या जानते ह?” ौी गुजीने कहा “म आपको य बताऊँ गा? जो कु छ बताना होगा अदालत म बताऊँ गा औरअदालत म पं. नेह और सरदार पटेल को भी हाजर करवाऊँ गा।” तब तक सरकारभी जान चुक थी क ौी गुजी को या संघ को इस कांड़ म घसीटने का ूयास करनेसे अपने को अदालत के सामने मुँह क खानी पड़ेगी। इसिलए सरकार ने ७ फरवरको ह उन पर से गांधी हया संबंधी अिभयोग अकःमात ् वापस ले िलया और उहहया का षयंऽकार न मानकर साधारण ःथानब बंद ह माना जाने लगा। सुरा-कानून के अंतगत ६ माह क नजरबंद का नया आदेश सरकार ने जार कया।९.४ कारागार बना यान मंदरकारागार म ौी गुजी क मनःथित अयंत शांत थी। ःथानब कै द के नाते अपनेअिधकार या ह और कौन सी सुवधाएं माँगी जा सकती ह, यह वचार उहने कभीमन म नहं लाया। ूारंभ म कई दन तक उह अखबार भी उपलध नहं करायेगये। आगे चलकर वह सुवधा द गई। कतु कारागृह के वाःतव के दौरान अखबारपढ़ने के ूित उनका कभी कोई लगाव नहं रहा। उसी ूकार ूारंभ म कई दन तकजेल म के वल एक दर, एक चादर और दो कबल से ह उहने अपना कामचलाया। कभी कसी वःतु क मांग नहं क। सहज िमलनेवाली वःतुओं म ह उहनेसंतोष माना। एक बार उनका चँमा खराब हो गया तो उह पढ़ने म क दोने लगा।फलःवप उह िसरदद क बमार लग गई। कतु उहने जेल अिधकारय से नतो चँमा दःती ु क मांग क और न ह िसरदद क िशकायत। कारागृह म अपनेकमरे म और आसपास के परसर म वे अयंत ःवछता बनाये रखते थे। कागज केटकड़े ु को भी इधर-उधर नहं िगरने देते थे। अपनी सेवा के िलए तैनात कै द को भी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९३


उहने ःवछता का पाठ िसखाया। अपने से पहले वे उसी को नहलाते थे। अयकै दय और पहरेदार के साथ भी उनका यवहार आमीयता पूण होता था। वे उनकघरेलू बात म ची लेते थे। कारागृह के एकांतवास म उह कोई कठनाई अनुभवनहं हई। ु बक इसके वपरत पूवकाल म सारगाछ आौम के वाःतय म जसतरह यान-धारणा, उपासना, अयाम मंथ के पठन म वे अिधकांश समय बतायाकरते थे वह अवसर ठक ११ वष बाद सरकार क कृ पा से उह ूा हआ ु था।कारागृह म उनक दनचया कु छ इस ूकार होती- वे ूातः ५ बजे जाग उठते,ूातविधसे िनवृ हो कर कमरे म टहलते हए ु गीता का पाठ करते और तपात ् वेकु छ घंटे संया-वंदन, यान-धारणा आद म बताते और भोजन के समय तकानेर, तुकाराम क गाथा, वामीक रामायण और तुलसीकृ त रामचरतमानस,महाभारत, दास-बोध आद मंथ का पठन करते। ःनान से पूव वे िनय योगासनकरते और अपने सहयोिगय को भी यह सब िसखाते कतु उह सचा आनंद तोयान-धारणा म ह िमलता। उनक यान-धारणा के सबध म वातालाप के दौरानौी अपाजी जोशी ने बताया क “ौी गुजी को यानमन अवःथा म बैठे मने ःवयंअपनी आंख से देखा है। उस समय उनक मुिा अयंत ूसन होती और ऐसा ूिततहोता मान वे समािध-सुख के सागर म डूब गये ह। उह िनय ह ईर कासााकार हआ ु था। यह तो डाटर जी के सहवास का चमकार था जो उह उसयगत सुख के आकषण से हटाकर रा औप समाज क सेवा म जीवन समपतकरने के िलए बाय कर सका। संघ का यह मह भाय था।”ौी गुजी यान धरणा के समय जस तरह पालथी मारकर एकामिच से बैठा करते,उसी तरह वे पढ़ते समय भी बैठा करते । उह लेटकर या चहल-कदमी करते हए ुपढ़ते कभी कसी ने देखा नहं। ःथानबता के इस कालखड म ौी गुजीईरिचंतन से शेष समय म मन ह मन विभन संघ शाखाओं तथा वहाँ केःवयंसेवक का िचंतन-ःमरण करते। इस सबध म ौी गुजी ने ःवयं अपने एकभाषण म इसका उलेख करते हए ु बताया था क - “मुझे चहारदवार म जाकरबैठना पड़ा। वहाँ म अके ला था। मेरे सामने ूितदन २४ घटे होते थे। इनम से कईघटे म एक-एक ःथान को याद करने, वहाँ के ःवयंसेवक के चेहर को अपनी ओखके समुख लाने तथा मान बैठक म म उनसे परचय कर रहा हँ ू, इस ूकार केकापिनक िचऽ देखने म खो जाता था। इस ूकार अय का िचंतन लेशकारकहोता है। मेरे अंतःकरण को भी लेश हआ ु कतु भावनाओं के इस संघष क उपेाकर म इ कतय को ह करता रहा।” संघकाय और ःवयंसेवक के साथ तमयताका यह अ-भुत उदाहरण है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९४


कारावास म भी ौी गुजी का आमवास अदय रहा। द. १५ फरवर के बाद ौीअपाजी जोशी, बाबासाहेब घटाटे, बछराज़ यास, बापू साहब सोहनी आद ूमुखकायकताओं को भी उनके साथ लाकर रखा गया। एक बार कसी ने उनसे पूछा- “संघका काय तो हम लोग ूामाणकता से और वशु भावना से करते ह, फर भी हमपर यह संकट य आया?”इस पर ौी गुजी का उर था- “संघ क श के कारण ह यह संकट आया है औरश के ूभाव से ह वह दरू हो जायेगा। संकट क इस कसौट पर यद संघ खराउतरता है तो उसक अिधक उनित होगी।”उनके इस आमवास का दशन एक और उर से िमलता है। मय ूदेश केकारागृह म ःथानब अनेक ःवयंसेवक ने अपनी िगरतार के व उचयायालय म ‘बंद ूयाीकरण’ यािचका दायर क। िगरतार के जो कारण सरकारक ओर से ूःतुत कये गये वे िनराधार होने के कारण उच यायालय केयायािधश ने उनक धजयां उड़ाई। ःवयंसेवक क रहाई का बम चल पड़ा। तबौी गुजी के सािथय ने उनसे भी आमह कया क वे ‘बंद ूयाीकरण’ यािचकाारा अपनी रहाई करवा ल परंतु ौी गुजी ने ःप शद म ऐसा करने से इकारकर दया। उहने कहा, “जहने मुझे िगरतार कया है वे ह जब उह उिचतूतीत होगा ःवयं मुझे रहा करगे। अपनी रहाई के िलये म ःवयं कोई ूय नहंकँ गा।”९.५ ‘वःतृत कारागार’६ अगःत १९४८ को उनक िगरतार क अविध समा हो रह थी, परंतु फर भीइसम संदेह था क सरकार उनको रहा करेगी यक सरकार यद चाहे तो ६ मासक अविध और बढ़ा सकती थी। कं तु सरकार क ओर से ऐसा कोई ूयास नहं हआ ुऔर आखर ौी गुजी िनधारत समय पर रहा कर दये गये और वे पुनः नागपुरःथत अपने घर लौटे। यह समाचार पाकर सवऽ ःवयंसेवक और संघ के शुभिचंतकम आनंद छा गया। अब यह आशा ूकट होने लगी क संघ पर ूितबंध हटावाने काकोई माग िनकाला जायेगा। कतु यह आनंद और आशा अपकािलक िस हई ुयक ौी गुजी क रहाई के तुरंत बाद ह समाचार िमला क सरकार ने उनकगितविध पर कड़े बंधन लगा दये ह जो इस ूकार थे-<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९५


(१) वे नागपुर नगरपािलका क सीमा के भीतर रह तथा जलािधकार क अनुमित केबना बाहर न जाय।(२) कसी सभा म भाषण न द।(3) कसी भी दैिनक, सााहक या मािसक पऽ म जलािधकार क अनुमित के बनाूय या परो प से कु छ भी न िलख।(४) ूातीय या के िय सरकार के ूित असंतोष उपन करनेवाली कोई कारवाईूय या परो प म न कर तथा ऐसे यय से सबध भी न रख। विभनवग म ेष या शऽुता उपन करके शांित भंग न कर।सरकार के उ आदेश पर अपनी ूितबया य करते हए ु ौी गुजी ने के वल इतनाकहा क “मेर रहाई से यह हो पाया है क अब म बड़े कारागृह म आ गया हँ। ू मेरेिलए कारागृह क दवार अिधक वःतारत कर द गई ह ( only my prison wallshave been extended)।” सरकार ारा लगाई पाबंदय म चौथी पाबंद को पढ़कर ौीगुजी मुःकराए यक उसम सरकार के ूित असंतोष उपन करनेवाले यय सेसबध न रखने क बात कह गयी थी। इस शत म िछपी हाःयाःपदता क ओरयान खींचने के िलये उहने एक पऽ िलखकर सरकार से मांग क क “सरकार केूित ूय या अूय ऐसी कारवाईयाँ करनेवाल क सूची मेरे पास भेजी जाएताक उनके साथ सबध न रखने म सुवधा हो।”इन शत म संभवतः भूल से ह ‘कसी को पऽ भी न िलख’ क शत िलखना रह गयाथा। उसी का लाभ उठाकर ौी गुजी ने ११ अगःत को ूधानमंऽी पं. नेह तथासरदार वलभभाई पटेल को पऽ िलखकर संघ पर लगाये अकारण ूितबंध पर अपनीिचता य क। ौी गुजी ने पं. नेह के नाम िलखे अपने पऽ म कहा- “यह सयहै क म उस समय यह नहं समझ पाया क म तथा मेरे असंय िमऽ िगरतारतथा नजरबंद य कये गये। म बाद म क गई उस कायवाह को भी नहं समझपाया जो उस संगठन के सबध म क गई जसका म ूितिनिधव करता हँ। ू मकई बार ूकट कये गये इस तक से अपने को समझाने का ूय करता हँ ू कअयत असाधारण परःथित के फलःवप वह असंयिमत कायवाह क गई। म इसबात पर वास नहं करना चाहता क उच तथा उरदायी पद पर ःथत यउेजत हो सकते ह, जदबाजी कर सकते ह और मानिसक सतुलन खो सकते ह।कं तु यह िनंकष मुझे बाय हो कर ःवीकार करना पड़ा है यक छः महने कनजरबद क अविध के बाद जब बहत ु से ऐसे ूमाण ूकाश म आ चुके ह जो मुझेया मेरे काय को उन सारे गभीर आरोप से दोषमु करते ह जो हमारे मथे मढ़े<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९६


गये थे अब मेरे व एक आदेश जार कया गया जसके ारा मुझे नागपुर म हरहने के िलए बाय कर दया गया।”म सवशमान ् परमामा का कृ त हँ ू क उसने मेरे मन को कलुषत होने नहं दयाऔर म अपने ःनेह, सौहाद तथा आमीयता क भावना से परपूण हँ। ू मुझे आशाऔर वास है क मेरे पुराने सहयोगी कायकताओं क भी यह भावनाएँ हगी। मःनेह के इस संदेश को सभी तक पहँचा ु देता और सभी से यह कहता क वे क औरयथा क भावना से दय को मिलन न होने द। कं तु मेरे ऊपर लगाये गये इनूितबध ने मुझे इस आवँयक कतयपालन से रोक दया है। इन अयाय-पूणूितबंध म डाले जाने के ःथान पर यद मुझे अपनी ःथित ःप करने और इससंकट के समय सरकार के साथ सहयोग और ूेम क मेर भावना का आपको वासदलाने का अवसर दया गया होता तो म उसे उिचत समझता। अपने-अपने राःते परचलते हए ु भी हम सब भारत माता क सेवा म एकप हो सकते ह।“इस अविध म हम सदा के िलए हादक मैऽीपूण सबध क आशा कर और उसकेबीच कु छ महन के वे भयंकर दःःवन ु न आने द जो हमारे पारःपारक ूेम मकटता ु उपन कर सक ।”९.६ याय क माँगसरदार पटेल के नाम िलखे पऽ म भी इसी ूकार ःनेहमय सहयोग क भावना यक गई थी। कतु िसतबर क २४ तारख तक न तो नेह जी से न सरदार पटेलक ओर से ह कोई पऽोर ूा हआ। ु इसिलये द. २४ िसतबर को ौी गुजी नेपुनः दोन के नाम पऽ भेजे। इस कालाविध म भारत सरकार ने हैदराबाद के भारतीयसंघ म वलय का ू सफलता से हल कर िलया था। अपने पऽ के ूारंभ म ह इसघटना का गौरवपूण उलेख कर ौी गुजी ने पं. नेह से याय क सीधी-सीधी माँगक थी। इस सबध म उहने अपने पऽ म िलखा- “संघ पर ूितबंध लगाए लगभगआठ मास यतीत हो चुके ह तथा इस वषय पर सब ूकार क छानबीन क जाचुक है। मुझे वास है क अब आपको भलीभाँित अनुभव हो गया होगा क संघ परलगाये गये आरोप िमया तथा िनराधार ह। अतएव यह वषय तो अब के वल यायका ह ू है और अपनी सरकार से याय क आशा करना हमारा अिधकार है।” इसीपऽ म कयुिनःट क कु टल एवं हंसक गितविधय क चचा करते हए ु ौी गुजीने िलखा- “संघ वसजत कये जाने के कारण इस बीच के समय म बुमान<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९७


नवयुवक कयुिनम के जाल म फँ सते जा रहे ह। ॄा, हद चीन, जावा तथापड़ोस के दसरे ू राय म भी कु छ आतंकपूण घटनाएँ हई ु ह, उनसे इस आगामीवभीषका क कपना क जा सकती है। इस संकट का सुढ़ ूितरोधक संघ आजवमान नहं है। कयुिनःट ने संघ को अपने पथ का सबसे बड़ा रोड़ा समझा औरइसीिलए वे सदा उसके व वषवमन तथा कु सत ूचार करते रहे। आशा है आपशातिच से इस समःया पर वचार करगे और ऐसा वायुमंडल िनमाण करने मसहायक हगे जसम संघ अपने सांःकृ ितक आधार पर समानपूवक काय करता हआ ुइस नई वभीषका का मुँह तोड़ने म सरकार का हाथ बँटा सके । संघ पर लगाये गयेआरोप को असंदध प से वापस लेने से ह वैसा वातावरण िनमाण हो सकता है।”सरदार पटेल के नाम िलखे अपने पऽ म भी ौी गुजी ने कयुिनःट संकट काउलेख करते हए ु पऽ के अंत म िलखा क “के वल परःथित क पुकार सुनते हए ुआप िनणय ल। म और मेरे सब साथी परःथित को काबू म लाकर अपने देश कोअजेय बनाने के िलए आपसे सहकाय करने के िलए पहले से ह ूयशील ह।”इसके बाद पं. नेह और सरदार पटेल दोन के पऽ आये। सरदार पटेल का पऽ ११अगःत के पऽ के उर म था तो पं. नेह का पऽ २४ िसतबर के पऽ के जवाब केप म था। सरदार पटेल ने अपने पऽ म िलखा- “राीय ःवयंसेवक संघ ने संकटकाल म हदू समाज क सेवा क इसम कोई संदेह नहं। ऐसे ेऽ म, जहाँ उनकसहायता क आवँयकता थी, संघ के नवयुवक ने य तथा बच क रा क तथाउनके िलये काफ काम कया। कतु मुझे वास है क संघ के लोग अपनेदेशभपूण काय को कांमेस के साथ िमलकर ह कर सकते ह, अलग रहकर यावरोध करते हए ु नहं। जहाँ तक आप पर लगे ूितबंध का सवाल है म मय ूातक सरकार से पूँछ-ताँछ कर रहा हँ। ू ”यह जानना रोचक होगा क हैदराबाद म क गई कायवाह के िलए ौी गुजी ाराूेषत अिभनदन के िलए उह धयवाद देते हए ु सरदार पटेल ने आगे या कहा?उहने कहा क “हमारा असली काय तो अब ूारंभ हआ ु है । हम शतादय क हािनक भरपाई करना है। हम कोई संदेह नहं क इस कायवाह के समान ह उस काय मभी आप जैसे िमऽ क सदछा एवं स-भावना हम ूा होती रहेगी।”नेह जी ने अपने पऽ म िलखा क- “संघ साूदाियक है। संघ के नेता जो कु छबोलते ह, वह कृ ित म दखाई नहं देता।” इस पऽ म संघ पर लगाये गये आरोप के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९८


िनराधार और झुठे िस होने तथा संघ पर से ूितबंध हटाये जाने संबंधी ौी गुजीक मांग का कोई उलेख नहं था।देश के अनेक ूमुख तथा वचारशील नागरक भी यह अनुभव करने लगे थे क संघके साथ अयाय हआ ु है। संघ-वरोधी तूफान थम चुका था और संघ के िनदष होनेक बात तथा संघ क देशभ और याग भावना क ूशंसा भी खुलकर करने केिलये लोग सामने आने लगे थे। देशहत का वचार करने वाले िनंप लोग सरकारको संघ पर से ूितबंध हटाने क सलाह देने लगे। संघ पर लगी पाबंद हटाने कमांग को लेकर रापित और ूधानमंऽी के नाम लाख पऽ भेजे गये। कारण चाहे जोहो, १३ अटबर ू को सरकार ने ौी गुजी क गितविधय पर लगाई गई सारपाबंदयाँ हटा लीं। ौी गुजी नागपुर से बाहर जा सकते थे। उहने तय कया कराजधानी दली म जाकर सरकार के ूमुख के साथ ूय वातालाप कर संघ परहए ु अयाय का िनराकरण कराया जाए। अतः वे द. १७ अटबर ू को दली पहँचे। ुदली आगमन पर हजार नागरक ने उनका भय ःवागत कया। ौी गुजी दलीआ रहे ह, यह वाता कसी भी अखबार म ूकािशत न होने के बावजूद दली रेवेःटेशन पर उनका उःफू त एवं भय ःवागत हुआ। यह वाःतव म इसी बात काोतक था क अपूचार और िनंदनीय आरोप के बावजूद ौी गुजी और संघ के ूितलोग के ूेम और ौाभाव म कोई कमी नहं आयी थी।ःवाभावकतया अब सबक नजर दली क घटनाओं क ओर लगीं। दली केवाःतय म पहले ह दन १७ अू बर को ौी गुजी ने गृहमंऽी सरदार पटेल से भटक। यह चचा अपूण रहने के कारण २३ अू बर को दबारा ु भट क गई। इन दोनमुलाकात म सरदार पटेल का यह आमह रहा क “संघ कांमेस म विलन हो जाए।”ौी गुजी ने ःप शद म इसे अःवीकार कर दया। तब ौी पटेल ने ूातीयसरकार के साथ वचार-विनमय करने क आवँयकता बताते हए ु कु छ और समयमाँगा और अपने मुंबई ूवास पर चले गये। ौी गुजी ने नेहजी व सरदार पटेल केसाथ अपने वातालाप व पऽयवहार म यह भूिमका ली क चूँक के ि सरकार ने हसंघ पर ूितबंध लगाया है और चूँक संघ पर लगाये गये सारे आरोप झूठे औरिनराधार िस हए ु ह, अतः यह के ि सरकार का दाियव है क वह या तो संघ परसे ूितबंध हटाए या यायालय म आरोप िस करे। दोन प अपनी-अपनी भूिमकापर अड़े रहे और मूल ू बना हल िनकले अधर म लटका पड़ा रहा। यायूाि केिलये ौी गुजी दली म ह जमकर बैठे। उनके इस दली िनवास म दली,पंजाब, उर ूदेश, राजःथान आद से भार संया म ःवयंसेवक आकर गुजी से<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ९९


िमलने लगे। संघ के बाहर के य भी आकर गुजी से भट करने लगे। पऽकार भीौी गुजी से िमलकर यह ू पूछते क संघ अब कौन सा कदम उठने जा रहा है?इस बीच ३० अु बर को सरदार पटेल ने अचानक ौी गुजी के पास मौखक संदेशिभजवाकर सुिचत कया क “इससे आगे वचार विनमय संभव नहं, अतः आपनागपुर वापस चले जाय।” इस संदेश का अथ समझने म ौी गुजी को देर नहंलगी। सरकार संघ पर पाबंद का ू अधर म लटकाये रखने क नीित अपनाए हई ुथी। अतः अब सावजिनक तौर पर कु छ हलचल ूारंभ करने क आवँयकता िनमाणहई। ु ौी गुजी दली छोड़ने के िलए कतई तैयार नहं थे। उहने २ नवबर कोदली म ह एक पऽकार-परष आमंऽत क और संघ पर लगाये आरोप कािनराकरण करने वाले दो वःतृत पऽक ूकाशनाथ दये। संघ को राजनीितक दल मपांतरत करने का ू उहने ःपतः ठकरा ु दया। पवऽ सांःकृ ितक ेऽ मकायरत संगठन को बना कसी बाधा के काम करने क सुवधा िमलनी चाहये, यहआमह भी उहने कया। ौी गुजी ने अभी तक याय-ूाि क आशा नहं छोड़ थीऔर इसिलये उहने दली छोड़ने क सरकार सलाह भी ठकरा ु द थी।द. ३ नवबर से १३ नवबर तक पूरे दस दन दली म ह रहकर ौी गुजी नेसरकार क यायबु जागृत करने का भरसक ूयास कया। ूधानमंऽी पं. नेह औरगृहमंऽी सरदार पटेल दली लौट आये। ौी गुजी ने उनके साथ पऽयवहार जाररखा। द. ३.११.४८ को पं. नेह को िलखे पऽ म सरकार को उपलध संघ-वरोघीतथाकिथत ूमाण को चुनौती देते हए ु उनसे भट के िलये समय माँगा। इन पऽ मौी गुजी के शद म अब कु छ अिधक तीखापन नजर आने लगा था। बाद मदनांक ५ नवबर को ौी गुजी ने सरदार पटेल के नाम भी एक वःतृत पऽ भेजा।इस पऽ म संघ पर लगी पाबंद उठाए जाने के सबंध म सरकार ारा टालमटोल कारवैया अपनाए जाने तथा संघ ःवयंसेवक के धीरोदा संयम का उलेख तो है हकतु सरकार क ओर से क गई अपेा-भंग क गहर वेदना भी झलकती है। इसबात का उलेख करना इसिलए महवपूण ूतीत होता है क खंडत मातृभूिम कोःवतंऽता ूा होने के बाद देश को मजबूत नींव पर खड़ा करने के िलये देशूेम कखाितर ौी गुजी ने अपने अंतःकरण म कतनी वशालता धारण क थी, इस परउकृ ूकाश पड़ता है। ौी गुजी के शद ह उनके अंतःकरण क वशालता का बोधकराते ह। उनके शद ह- “देश क नाजुक अवःथा को देखकर और उवल भवंयके िनमाण के िलए वघटन न करने क आवँयकता को म रखकर मने शांततासे चलने क सब ःवयंसेवक बधुओं को सूचना द और शातमय माग से समझौता<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१००


हो इस िनिम ूय कया। राजनैितक ेऽ म कायम और वतमान काल मशासनाढ़ संःथा कांमेस और सांःकृ ितक ेऽ म असामाय बधुभाव, ढ़ राूेमतथा ःवाथशूयता को िनमाण करने म सफलता पाने वाला राीय ःवयंसेवक संघइनके बीच म वैमनःय न हो, वे परःपर पूरक ह और इनका कहं पवऽ िमलन होइसिलए मने अपनी पूर श से ूय कया। सहकाय का हाथ आगे बढ़ाया। मुझेअयंत दःख ु से कहना पड़ता है क मेर स-भावनाओंक आपक ओर से उपेा कगई। दोन ूवाह के संयोग क मेर ईचछा अतृ ह रह है। हो सकता है क परमकणामय परमामा मेरे िलए कसी अय माग क ओर संके त कर रहा हो औरसंभवता उसी म इस देवभूिम भारतवष के भायोदय के बीज ह।”आज जब पछे मुड़कर देखते ह तो ऐसा लगता है क काश! दो ूवाह का यह संगम,यह िमलन उस समय हो पाता तो? ौी गुजी क अपेा सफल हो पाती तो? कतुकपना करने से या होगा? ौी गुजी ारा ‘वयं पंचािधकं शतम’ ् क भावना सेआमीयतापूण सहयोग का आगे बढ़ाया हआ ु हाथ नेह-पटेल जैसे दगज केनेतृववाली सरकार ने अवचार वृ से ठकरा ु दया और ौी गुजी को दसरा ू पृथक्माग अपनाने के िलये ववश कर दया। इस अलग माग को अपनाने से पूव एक बारपुनः साढ़ उच पदःथ नेताओं से खुले दल से वातालाप करने क इछा भी ौीगुजी ने य क। कतु पं. नेह और पटेल दोन ह इसके िलये तैयार नहं हए। ुद. ८ व द. १२ को ौी गुजी ने पुनः पं. नेह के नाम दो पऽ और द. १३ कोसरदार पटेल के नाम एक पऽ िलखा। कतु सरकार क ओर से बार-बार यह रटलगाई जाती रह क ‘पाबंद हटाना संभव नहं है। ःवयंसेवक का यवहार नेताओं कनीित से मेल नहं खाता। अतः भटवाता से कोई लाभ नहं होगा। ौी गुजी कोतकाल नागपुर वापस लौट जाना चाहये।’ द. १२ को सरकार क ओर से ूसारतएक ूेस नोट म तो यहां तक धमक द गई क अगर ौी गुजी नागपुर वापस नहंजायगे तो उह िगरतार कर िलया जायेगा।९.७ सरकार क अयाचार नीितौी गुजी भी यह जान चुके थे क सरकार क ओर से सारे दरवाजे ूायः बंद हो चुकेह और अगर वे दली न छोड़ने के अपने िनय पर डटे रहे तो उनक िगरतारकसी भी समय हो सकती है। इस बात म संदेह क कोई गुंजाइश नहं रह थी कवातालाप से हल िनकालने और याय ूा करने का पव अब समा हो चुका है।अतः शांितपूण माग से सरकार ूितबंध के आदेश को ठकराकर ु पुनः कायारंभ करना<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १०१


होगा। इसक कपना भी ौी गुजी ने कायकताओं को दे द। इतना ह नहं तोःवयंसेवक के नाम एक खुला पऽ भी उहने िलखकर तैयार रखा। साथ ह सवऽूसारत करने के िलये एक संदेश भी अपने ह हाथ िलखकर रखा। द. १३ को हराऽ म पुिलस क गाड़ लाला हंसराज गु के िनवास ःथान पर पहँची ु और ौीगुजी को िगरतार कर ले गई। आय क बात तो यह है क ःवतंऽता आंदोलन केसमय जस कानून को ‘काला-कानून’ कहा जाता था, उसी १८१८ के ‘बंगाल ःटेटूजनस एट’ का सहारा ःवतंऽ भारत क के ि म ःथत कांमेस सरकार नेमातृभूिम के एक महान ् सेवक को िगरतार करने के िलए िलया! ौी गुजी कोवमान से नागपुर लाकर नागपुर के कारागृह म रखा गया।सरकार क इस कृ ित के कारण परःपर वातालाप से हल िनकालने का माग बंद होगया और संघ क ओर से याय ूाि के िलये ूितबंध-वरोधी सयामह कारायापी आंदोलन अपरहाय हो गया।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०२


<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०३


१० सयामह-पव क साथक फलौुितदली-वाताएँ वफल हो गई और याय क माँग जानबूझकर उपेत क गई औरसंघ के व अपूचार करने का बम जार रहा। तब संघ के पास सय का आमहलेकर आगे बढ़ने के िसवा और कोई चारा नहं था। ौी गुजी ने ःवयंसेवक के नामिलखे एक वःतृत पऽ म दली-वाताओं क समूची पृभूिम ःप क। इस पऽ म भीसंःथागत अहंकार अथवा यगत ूिता के िलए कु छ करने का भाव जरा भी ूकटनहं हआ ु , बक हम जो भी करने जा रहे है वह वशु देशूेम क भावना से देश-हत म ह है यह वचार य कये ह। उस पऽ म उहने कहा, “िनरंकु श उपीड़नके आगे घुटने टेकना ःवतऽ भारत के नागरक के समान के ूित अपमान है औरहमारे सय ःवतऽ राय के आदर को एक धका है। देशूेमी नागरक के प मयह हमारा पवऽ कतय है क ऐसे िनरंकु श उपीड़न के आगे झुकने से अःवीकारकर द। इसिलए हम अपने कतय का पालन करना है, खड़े रहना है और राय औरनागरक के अिधकार और समान क पु करना है।” इस तरह सयामह अिभयानसबधी िनणय क पूव सूचना देते हए ु ःवयंसेवक को इस अिभयान के समय शांितबनाये रखने और कसी भी ःथित म मन म कटता ु का भाव न आने पाये, इस से सतक रहने का आवाहन भी ौी गुजी ने कया। इस के साथ आंदोलन हेतुजो ‘संदेश’ ौी गुजी ने ूसारत कया वह तो ‘समर का शंखनाद’- ‘लेरयन काल’नाम से इितहास म अंकत हो चुका है। उस संदेश का अंितम अंश हम यहाँ उ-घृतकर रहे ह ताक पूरे संदेश क कपना आ सके । वह ःफू ितूद, ओजःवी और सभी मवास जागृत करनेवाला अंश इस ूकार है:-१०.१ ‘अधम से धम’ का संघष“अपना काय ौे है, महान ् है, ईरय है। इसक पूित म मानवता का उचतमआवंकार है, भगवान का सााकार है।”“अतः उठो और दस मास से ःथिगत अपने काय का पुनरारभ करो। दस मास कअकमयता क ित-पूित करो। सय हमारे साथ है। अयाय को सहते रहना उसकाभागी बनकर पाप करना है। अयाय का परमाजन हम कर। अंतःकरण म यायपूणसय के अिधाता ौी परमामा को ढ़ वास से धारण कर समःत ूाणश से<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०४


भारत माता का यान कर, उसक संतान के ूेम से ूेरत होकर उठो, काय उठाओ,बढ़ाओ और यशः ूाि तक कहं भी न कते हए ु आगे बढ़ते चलो।”“यह धम का अधम से, याय का अयाय से, वशालता का ुिता से तथा ःनेह कादता ु से सामना है। वजय िनत है यक धम के साथ ौी भगवान और उनकेसाथ वजय रहती है।”“तो फर दयाकाश से जगदाकाश तक भारत क जयविन ललकार कर उठो औरकाय पूण करके ह रहो।” “भारत माता क जय।”संघ क शाखाएं पुनः आरंभ करने के िलये देशयापी आंदोलन छेड़ा जाने-वाला है,इसक भनक सरकार को िमल चुक थी। इस चचा से कांमेस के उच पदःथ नेतामानो खिसया गये। सरदार पटेल ने ५ दसबर को वािलयर क एक सभा म कहा,“कु छ लोग बताते ह क संघ सयामह करने जा रहा है। कतु वे लोग कभीसयामह नहं कर सक गे। उनका सयामह कसी भी दशा म सफल नहं हो सकतायक इनके मन वकार से मःत रहते ह। हमने उह कांमेस म समिलत हो जानेक सलाह देकर उनका दय-परवतन करने का ूयास कया, कतु उहने शआजमाने का माग अपनाया ह। म उह चेतावनी देता हँ ू क इस ढ़ंग क चुनौितयका सामना करने के िलये हम तैयार ह।”सरकार क ओर से ऐसी धमकयां देना जार था क ९ दसबर को सरकायवाह ौीभैयाजी दाणी के नेतृव म देशभर म शाखाएँ ूारंभ कर सयामह आंदोलन ूारंभ होगया। ूितबंध संघ शाखा लगाने पर था। अतः ूितबंध का आदेश तोड़कर सवऽ संघशाखाएँ शु करना- यह सयामह आदोलन का ःवप था। ‘भारत माता क जय’तथा ‘संघ अमर रहे’ के नारे लगाते हए ु ःवयंसेवक के जथे ःथान-ःथान पर शाखालगाने के िलए आगे बढ़ते थे और पुिलस उह िगरतार कर लेती। पुिलस काहःतेप होने तक शाखा के िनयकायबम चालू रहते। िगरतार के समय ूितकारनहं करना और शांित बनाए रखने के अनुशासन का कड़ई से पालन कया जाता।सयामह देखने के िलये असंय जनता उमड़ने लगी। िगरतार ःवयंसेवक कोपुिलस-गाड़ म बठाकर कारागृह रवाना कर दया जाया। इस सयाघ3ह के कारणसंघ पर लगी पाबद देशभर म जनचचा का वषय बन गई। हजार दवार “संघ परआरोप िस करो या ूितबंध हटाओ” क माँग से रंग गयीं। उसी ूकार संघ पर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०५


लगाये गये आरोप का खंडन करते हए ु उसक राीय भूिमका को ूकट करनेवालेपऽक ःथान-ःथान पर लाख क संया म वतरत कये जाने लगे। सयामहआंदोलन के ूित ःवयंसेवक म वलण उसाह था। सयामह म सहभागी बनने केिलये माग म आनेवाली सभी बाधाओं को दरू कर हजार क संया म ःवयंसेवकसयामह म भाग लेने लगे। सैकड़ ने अपनी नौकरय पर लात मार द, असंयछाऽ ने अययन ःथिगत कर दया। कसी ने भी अपनी शाररक- पारवारक औरअय ूकार के क क िचंता नहं क। ९ दसबर से ूारंभ इस सयामह के थमनेके कोई िचह दखाई नहं दे रहे थे। संघ के ूित जनता का समथन और सहानुभूितदनदन बढ़ती जा रह थी।१०.२ सरकार क आँख खुलने लगींसरकार समझ बैठ थी क अनुभवहन युवक का यह आंदोलन कु छ दन म अपनेआप समा हो जायेगा। सरकार को यह अपेा भी नहं थी क सयामहय कसंया २-४ हजार तक भी पहंच ु पायेगी। संघ के इस सयामह क ओर ःवयंूधानमंऽी पं. नेह कस से देख रहे थे, यह उनके एक भाषण म य कयेगये उ-गार से ःप होता है। जयपुर म कांमेिसय क एक सभा म उहने कहाक- “यह संघ के बच का दरामह ु ह। सरकार इस आंदोलन को कु चलने के िलयेअपनी सार श लगा देगी। संघ को फर से िसर नहं उठाने दगे।” पं. नेह के इसकथन म माऽ कु छ सचाई थी। यह सयामह ‘संघ के बच का है!’ यक सयामहका सूऽ संचालन करने वाले २० से २५ वष क आयु वाले तण ह थे। कसी नेता याकसी सुूितत राजनीितक दल का आिशवाद भी उसे ूा नहं था। ःवयं ौी गुजीभी इस समय तुलनामक से अय नेताओं क अपेा छोट उॆ के ह थे।कतु ‘इन बच ने’ जस कपना-श, अनुशासन-ूयता और याग बु व देशभ का परचय दया वह असामाय ह था। सरकार ने बल ूयोग से सयामहआंदोलन को कु चलने का भी ूयास कया। पंजाब और मिास राय म तोसयामहय के साथ बबरता बरती गई और िनघृ ण अयाचार कये गये। सरकारबबरता के कु छ नमूने इस ूकार थे। पंजाब म जहाँ सयामहय को कड़ाके क सदम तालाब, नदय व नहर म फ का गया वहं मिास, हावड़ा, आगरा, जोधपुर, बरेली,बसर, वािलयर आद ःथान पर बबर लाठचाज कर अनेक के िसर फोड़े गये! औरयह भी खुली जगह म नहं, बक कारागृह क बंद कोठरय म!! सरकार ने यहकपना भी नहं क थी क सतहर हजार से अिधक सयामहय को जेल म बंदकरना पड़ेगा! इतनी ूचड संया म सयामहय क जेल म यवःथा कर पाना भी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०६


उसके िलये असंभव सा हो गया। अतः कई ःथान पर तो सयामह ःवयंसेवक कोपुिलस गाड़ म बठाकर राऽ के घने अंधकार म शहर से ४०-५० मील दरू बीहड़जंगल म ले जाकर ठठरती ु ठंड म छोड़ दया जाता था। अनेक ूकार के क औरअयाचार सहन करते हए ु भी ःवयंसेवक कहं भी उेजत या ूुध नहं हए ु , बकशांित के साथ सब कु छ सहते रहे। कु छ ःथान पर भूख हड़ताल जैसे आमलेश केमाग को अपनाया। कतु गाधीजी के नाम का दन-रात जप करनेवाले साधारयऔर कांमेिसय ने भी कभी कपना नहं क होगी, इतने सुंदर, सुयवःथत औरशांितपूवक ढंग से सयामह करने का अ-भुत परचय संघ के ःवयंसेवक ने दया।मिास म शांितपूण ढंग से सयामह करने वाल पर िनमम लाठचाज क घटना कखुली िनदा िलबरल पाट के ट.आर. वकटराम शाी और लोकसभा सदःय ःवामीवकटाचलम ् ने क। आगे चल कर ौी यंकटराम शाी संघ पर लगी पाबंद उठाने केिलए मयःथता करने हेतु ूःतुत हए। ु जनता का संघ के ूित समथन औरसहानुभूित बढ़ती ह जा रह थी। ःथान-ःथान पर ‘बंद हटाओ’ ‘संघ पर से अयायदरू करो’ आद मांगो को लेकर जुलूस िनकलने लगे।सयामह थमने का नाम नहं ले रहा था और ःवयंसेवक म उसाह क कोई कमीभी नजर नहं आ रह थी। ऐसे गुणसपन युवक को अकारण सहनी पड़ रहयातनाओं को देखकर अनेक सूवृ लोग के मन यिथत होने लगे। अनेक ऐसे नेतायह अनुभव करने लगे क कु छ न कु छ सुलह का माग िनकलना चाहए। के िसरकार के गृह मंऽालय को पऽ भेजकर इस मामले म मयःथता क तैयार दशायीगई। जनवर के ूारंभ म पुणे से ूकािशत मराठ दैिनक ‘के सर’ के संपादक ौी ग.व. के तकर को सरकार ने िसवनी जेल म जाकर ौी गुजी से भट क अनुमित देद। तदनुसार ौी के तकर ने दो बार- १२ व १९ जनवर को ौी गुजी से भटकर देशक परःथित से उह अवगत कराया तथा यह सुझाव भी दया क अगर सयामहःथिगत कर दया जाए तो संघ पर से पाबंद हटाने क से कु छ हलचल करनाआसान हो जाएगा। ौी गुजी ने इस सुझाव को ःवीकार कर सयामह ःथिगत करनेसबधी आदेश िलखकर के तकर को दया। सयामह-आंदोलन के सूऽ संचालनकरनेवाले कायकताओं तक वह आदेश पहँचाया ु गया और आखर २२ जनवर १९४९को सयामह-आंदोलन ःथिगत कर दये जाने क अिधकृ त घोषणा क गई। ९ दसंबर१९४८ को ूारंभ देशयापी सयामह पव उवल यश-संपादन कर ःथिगत हआ। ु इसबीच सभी लोग के यान म यह बात आ गयी क संघ को आसानी से कु चल डालनेका दंभ िनरथक है और संघ ने जस ववेक और समझदार क भूिमका अपनायी है,वह कोई िनबलता के कारण नहं बक वशु देशूेम के कारण अपनायी है। गांधी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०७


जी के सयामह-तंऽ का उनके अनुयाियय को भी लजत कर सकनेवाले ढंग सेउपयोग कर संघ ने एक बड़ नैितक वजय संपादत क थी। लगभग दो लाखःवयंसेवक सयामह हेतु ूःतुत हए ु जनम ७७०९० ःवयंसेवक िगरतार होकरविभन अविध के िलए कारागृह म रहे। ःवाभावकतः जनमत जागृत होकर संघ केूित सहानुभूित क लहर सवऽ चल पड़। समाचार पऽ म भी इस लहर का ूितबबूकट होने लगा।दनांक २२ जनवर १९४९ को अबाला से ूकािशत होनेवाले ‘द शयुन’ ने सरकारक सोच का सामायतः समथन करते हए ु भी यह कहा क “रा. ःव. संघ के नेता नेआदोलन को बना शत ःथिगत कर ूकरण के अंितम िनपटारे के िलए माग ूशःतकया है। अब आगे के कदम उठाने का काय सरकार का है जसे ूितबध हटा देनाचाहए....।”कलका के ‘ःटेसमैन’ ने द. २२ जनवर १९४९ के अपने संपादकय म यह िलखकरक ‘संघष का ढंग भी संघ के नेताओं को धयवाद देने योय था’-सरकार को इसबात क अनुभूित करा द क संघ पर लगे ूितबंध के कारण देश के युवक का बलकस ूकार यथ जा रहा है। उसने िलखा- “कानून भंग करने के आंदोलन म भागलेने के कारण आज भारत के अनेक अछे लोग को जेल म डाल दया गया है। वेसब देश क उम सेवा करने म समथ ह। उनके पास आदश है, शारारक बल है तथासेवा के ःतुय काय को करने के िलए ःवाथ-याग क भावना भी है। ये सभी देशका गौरव बढ़ने क मता िलए हए ु ह। ऐसी युवा श को जेल म सड़ते रखना कहाँतक उिचत है?”यहाँ इस बात का वशेष प से उलेख करना होगा क ौी गुजी ने मयःथताकरने के इछक ु महानुभाव को कसी ूकार क कठनाई न होने पाये, इस स-भावना से ह सयामह ःथिगत करने के िलए िलखत अनुमित ौी के तकर को सपीथी। यह एक ूकार क सुजनता ह थी। आदरणीय यय के शद का आदर करनेहेतु अपने आमह को एक ओर रखने म उह जरा भी हचक महसूस नहं हई। ुसयामह ःथिगत करने के िनणय से मयःथ के िलए माग खुल गया। ौी के तकरके बाद मिास के उदारमतवाद नेता ौी ट.आर. यंकटराम शाी ने, जो एकिनंप, िनःपृह, सेवाभावी और वान ् कायकता के प म याितूा थे, माच १९४९म कारागृह म ौी गुजी से दो बार भट क। ूथम भट म तय हआ ु क संघ का एक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०८


िलखत संवधान शीय ह तैयार कया जाए। बाहर के कायकताओं ने जस अिलखतयवःथा से संघकाय चल रहा था, उसे िलपब कर ौी यंकटराम शाी को सपा।ौी शाी जी उस संवधान को लेकर कारागार म पहँचे ु और ौी गुजी को उसेदखाकर आवँयक संशोधन करने को कहा। ौी गुजी ने बना संवधान के पनेखोले उस पर हःतार कर दये जसे देखकर शाी जी वःमत हए ु बना नहं रहे।उनके उ-गार थे क लोकतंऽ क भावना का यह कतना ौे ूदशन है जहाँ नेता काअपने अनुयाियय पर यह ूबल वास है क उहने जो कु छ कया होगा, ठक हकया होगा। संघ का संवधान तैयार होते ह उसे सरकार के पास भेजने क अनुमितदसर ू भट म ौी गुजी ने दे द। कतु शाीजी क मयःथता म ूेषत संवधानको सरकार ने ःवीकृ त नहं कया। सरकार क ओर से कहा गया क वह संवधानःवयं ौी गुजी ह सरकार को भेज। पऽ को परःपर पहँचाने ु म अपनायी गई ढलाईके कारण अूैल-मई- ये दो माह बना कसी ूगित के यूँ ह बीत गये। अपनीमयःथता शायद सरकार को पसंद नहं इस वचार से ौी यंकटराम शाी कु छकाल तक शांत रहे।इस बीच सरकार क ओर से संघ के संवधान पर अनावँयक आपयाँ ूःतुत करतेहए ु कालापयय क नीित अपनायी गयी। तब सरकार क अड़यल-वृ और उसकेकारण हजार ःवयंसेवक के कारागृह म पड़े रहने से ौी गुजी अःवःथ हो उठे।संवधान म सरकार क ओर से उठाई गई सभी आपय का िनराकरण करते हए ुएक वःतृत पऽ ौी गुजी ने सरकार को भेजा। संघ पर लगाए गये आरोप का दो-टक ु जवाब देने वाला ौी गुजी का मूल पऽ काफ तीखा और चुनौती भरा था। यहपऽ उहने १७ मई को भारत सरकार के गृहमंऽी के नाम अंमेजी म िलखा था। जबसरकार ने ौी गुजी का यह पऽ ौी शाी के पास भेज दया तब ौी शाी जी नेजनता के सम संपूण वःतुःथित को ःप करनेवाला अपना वय ूकािशत करनेका िनय कया।इस ूकार पऽ-यवहार के चलते ौी गुजी को िसवनी जेल से हटाकर बैतूल केकारागृह म लाया गया। िसवनी के कारागृह म ौी गुजी क यवःथा उन जैसे महान ्नेता के िलए आवँयक सुवधाओं से पूण नहं थी। वहाँ क यवःथा के बारे म ौीके तकर ने ूय आँख से जैसा देखा, वैसा हबह ू ू वणन कया। उससे सरकार केसंकु िचत मनोवृ ह ूकट होती है। उन पर के वल १० . महने का ह खच कयाजाता! िनयमानुसार िमलनेवाली सुवधाओंसे उह वंिचत रखा गया। बैतूल कारागृह कयवःथा तो और भी कदायी थी। बंद हटाने के िलए मयःथता करनेवाले<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१०९


मौिलचि शमा ने उनसे बैतूल कारागृह म ह भट क थी। ौी गुजी के माता-पताभी बैतूल म ह ौी गुजी से िमलने गये थे। इन भट-मुलाकात का जो वृ ूकािशतहआ ु उनसे ौी गुजी के िगरते ःवाःय, कारावास म उनके साथ कया जानेवालाबताव और संघ के सबध म सरकार क टालमटोल और दरामह ु नीित आद सारबात पर ूकाश पड़ता है। परणामःवप हतिचंतक क तीो ूितबयाएँ ूकट होनेलगीं। ौी गुजी ने कभी भी यगत सुख-सुवधाओं क कोई िचता नहं क।कारावास म एक बंद को ूा होनेवाले अिधकार का अययन कर तदनुसार सुख-सुवधाओं क मांग भी उहने नहं क। उनक िचता का एकमाऽ वषय था- हदूसमाज को एकरस सुसंगठत बनाकर देश के सामय को बढ़ानेवाले संघ के खंडतकाय को पुनः ूारंभ कया जाये। उनक यह सुिनत और पक धारणा थी कसंघकाय का अय कोई वकप नहं है। संघ का प याय और सय का होने केबावजूद सरकार अपना दरामह ु छोड़ने के िलए तैयार नहं हो रह है यह देखकरःवयंसेवक के मन म ोभ और संताप क भावना पैदा होने लगी। सावजिनककायकता और िनंप समाचार-पऽ संघ का प लेकर सरकार क अयायकारभूिमका के वरोध म खुलकर बोलने और िलखने लगे। वदेश म भी भारत सरकारक िनंदा और आलोचना क जाने लगी। लदन म ‘वड’ नामक पऽ ने लोकतंऽ म इसूकार के नागरक ःवाधीनता के अपहरण क आलोचना करते हए ु िलखा- “जसॄटश राय क सब भांित िनदा क जाती थी, उसम भी नागरक ःवतंऽता कागला नेह के इस फािसःट राय क तरह कहं भी घटा गया हो यह हम याद नहंआता।” संघ पर पाबंद के वरोध म कोई नया जन आंदोलन ूारंभ करने का वचारभी सरकार नीित क ूितबया के प म य कया जाने लगा। संघ को अबराजनीितक दल के प म सामने आना चाहए, ऐसा सुझाव भी संघ के हतिचंतकनागपुर से ूकािशत दैिनक ‘हतवाद’ के संपादक ौी ए.ड.मण जैसे लोग देने लगे।एक नयी तनावपूण ःथित बनती जा रह थी और संघ के ूित जनता क सहानुभूितदन-दन बढ़ती जा रह थी। भारत सरकार को भी यह आभास होने लगा क जनमतउसके वरोध म होता जा रहा है। तब अचानक जून माह क समाि पर सरकार नेभारतीय जनािधकार सिमित के अय पं. मौिलचि शमा को ौी गुजी से िमलकरिलखत प म कु छ मु के जवाब लाने के िलए ूवृ कया। ौी शमा ने पहलेगृहमंऽी सरदार पटेल, संघ के सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी और ौी बालासाहब देवरससे भट क और बाद म बैतूल जाकर सरकार क म आपजनक मु को पुनःौी गुजी के सम रखा। अब ौी गुजी अपनी ओर से भारत सरकार को कसी भीूकार का कोई िलखत ःपीकरण देने के िलए तैयार नहं थे। उहने तय कर िलयाथा क अब आगे सरकार के साथ कोई पऽ-यवहार नहं करगे। उधर परःथित के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११०


बढ़ते दबाव के आगे झुककर सरकार पहले जैसे अड़यल रवैये अथवा दरामह ु परकायम रहना नहं चाहती थी। सरकार यह जान चुक थी क ूितबंध हटाये बना औरकोई चारा नहं है। अतः इसके िलए वह कोई नया िनिम ढँढ ू रह थी।१०.३ ूितबध अचानक य हटाया गया?पं. मौिलचि शमा क इस भट के बाद ौी गुजी ने उह (शमाजी को) एकयगत पऽ िलखा। इस पऽ म सरकार ारा उठायी गयी आपय के सबध मसंघ क भूिमका को पुनः एक बार ःप कया गया था। यह पऽ दनांक १० जुलाई१९४९ का है। इसम राीय ःवयंसेवक संघ और भारतीय संवधान, रावज, हंसाचारऔर गुता का आरोप, संघ म कायकार मंडल का चुनाव, ूिता, बाल ःवयंसेवकका ू, सरसंघचालक क िनयु, संघ म जाित वशेष का वचःव और हसाब रखनेक पित- इस ूकार आठ मु पर संघ क भूिमका ःप क गई है। पं. मौिलचिशमा के नाम द. १० जुलाई को िलखे इस पऽ को ह आधार मानकर भारत सरकारने संघ पर १८ मास से लगे ूितबध को ःवयं ह वापस ले िलया। इतनी जद-जद म ूितबध हटाने के सरकार के िनणय के पीछे एक अयंत महवपूण कारणरहा। ौी वकटराम शाी जी ने एक ूदघ वय तैयार कर समाचार पऽ को दनांक१३ जुलाई के पहले ूकािशत न करने क सूचना द थी। उस पऽ म सरकार क नीितकस ूकार अयायपूण एवं मूलभूत नागरक अिधकार क अवहेलना करनेवाली है-इसका ःप ददशन था। ौी वकटराम शाी जी जैसे देशमाय, उदारमतवालेमयःथ य का इस ूकार का िनणय देश के सामने आने से सरकार क तो औरबेइजती हौनेवाली थी। इससे बचने के िलए दनांक १२ जुलाई को ह ूितबध हटानेका िनणय िलया गया। फर भी मिास के ‘द हदू’ ने 13 जूलाई को शाी जी केवय का पूण पाठ छाप ह दया। इधर ूितबध भी हट गया। उधर शाी जी कावय लोग के सामने आने के कारण से सरकार का असली चेहरा भी उजागर होगया।अपना अतम िनंकष देने के पूव उहने संघ संबंधी उन अनेक आपय काःपीकरण दया जो सरकार ने ौी गुजी के साथ हए ु पऽ-यवहार म उठाई थीं।अवयःक को संघ म ूवेश तथा राीय ितरंगे झडे के संबंध म ौी गुजी ारा दयेगये ःपीकरण से ौी शाी जी ने सहमित य क। बाद म संघ के ूमुख के पूवूमुख ारा चुने जाने के संबंध म, जसे सरकार ने अलोकतांऽक और ‘फािसःट’(तानाशाह) कहा था, ौी शाी जी ने उर दया- “कसी सरकार या राय को तो<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १११


फािसःट कहा जा सकता है कं तु कसी िनजी संगठन को नहं जसम ूवेश के िलएकसी को बाय नहं कया जा सकता। जसक इछा हो वह उसम जाये या जाने सेइकार कर दे अथवा ूवेश लेने के बाद भी यागपऽ देकर बाहर आ जाये। इस देशम ऐसी अनेक संःथाएँ ह जहाँ के ूमुख अपने उरािधकार को मनोनीत करते ह।संःथा के सब सदःय ारा वह िनवािचत नहं कया जाता। भावजगत ् म सावजिनकिनवाचन कोई औिचय नहं रखता।”साूदाियकता के आरोप के संबंध म शाी जी कहते ह- “संघ म सभी ूकार एवंवग के हंदओं ु को ूवेश है। उनके विभन कायबम म सभी समुदाय के लड़केबना कसी भेदभाव के समिलत होते ह। इस संगठन के उेँय और ूकृ ित ह ऐसीहै क उसम अहदओं ु के िलए ूवेश नहं है।.....घोर साूदाियकता के बीच रहतेहए ु मुझे यह कहने म कोई संकोच नहं है क रा.ःव. संघ इस अनेकधा वभाजतहंदु समाज को संघब करने क दशा म अछा काय कर रहा है। यह बात उनअिन ूवृय को रोकने म भी सहायक हो सकती ह जो हमार आँख के सामनेपनप रह ह और जसक ओर सरकार ारा यान दया जाना आवँयक है।”समाचार पऽ क इस टपणी पर, जो वाःतव म सरकार सूऽ से ह िनकली थी, क“(संघ का) संवधान तो ठक है कं तु इस पर वास नहं कया जा सकता क संघके नेता उसका यथावत ् पालन करगे,” ौी शाी जी ने कहा- “यह तो कसी भीसंगठन के ूित यादती होगी क पहले से ह यह सोचकर क शायद उसके सदःयआगे चलकर कसी अवैधािनक गितविध म भाग ल, उसे काम ूारभ ह न करनेदया जाय।” समाचार पऽ क एक दसर ू टपणी के संदभ म क “यप वे अपनेसंगठन को अराजनैितक घोषत कर रहे ह कतु एक रात म वे बदल सकते ह,”उहने कहा- “हाँ, वे वैसा कर सकते ह और यद उहने वैसा कया तो वह कोईअपराध नहं होगा। बक मुझे वास है क उनम इतनी समझदार है क वे ऐसीगलती करना ह नहं चाहगे।”आगे ौी शाी जी कहते ह- “अपने िनणय पर पहँचने ु के पहले मने िनन बात परयान दया है- यह क पूववत सरकार के काल म बीस वष से अिधक समय तकउहने खुलेआम बना कसी आप के काम कया है; यह क सावजिनक ेऽ केगणमाय लोग ने उसके कायबम या उसव म कम-अिधक ूमाण म खुलकर भागिलया है; यह क अनेक सरकार अिधकारय ने भी उनके काय म बना कसी केआप उठाये भाग िलया है; यह क हमार सरकार ने भी तब तक उनके व कोई<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११२


कदम उठाना उिचत नहं समझा जब तक महामा गांधी क हया नहं हो गई औरउसम उन लोग का हाथ होने और अय के भी जीवन के िलए खतरा होने का संदेहनहं हआ। ु मुझे लगता है क उस संदेह के िलए अब कोई आधार शेष नहं बचा है।जो बंद ूयाीकरण यािचका ूःतुत कर सकते थे वे उस मायम से यायालय कसहायता ूा करने म सफल हए ु ह और कु छ आरोप भी जसम रा.ःव. संघ का हाथमाना गया था, यायालय म टक नहं पाये ह। मुझे लगता है क यद ूितबंध हटादया गया और संगठन को उसी तरह काय करने दया गया जैसा वतमान समःयाखड़ होने के पूव पछले बीस वष से अिधक समय से वह करता आ रहा है, तोराय अथवा सावजिनक सुरा को कसी भी ूकार का खतरा उपन नहं होगा।”“अंत म, इस आशा के साथ म समा करना चाहँगा ू क सरकार यह सोचे क कसूकार ूितबंध हटाकर वह रा.ःव. संघ को पूववत ् काय करने दे। मेरे मतानुसारूितबंध को जार रखना और उसके ूमुख लोग को जेल म िन रखना न तोयायसंगत है, न ववेकपूण और न ह लाभदायक।”सरकार ारा अचानक बंद हटाने के पीछे और एक कारण संभव है। द. २८ मई१९४९ को ौी गुजी ने बालासाहब देवरस के नाम एक पऽ अपनी सेवा म रत एककै द के मायम से बाहर िभजवाया जो मयूदेश क सरकार के हाथ लग गया।उससे सरकार को यह भनक लग गयी क संघ पुनः एक जन आदोलन करने कसोच रहा है। इस आदोलन से ह सरकार क छव जनता म मिलन हई ु थी, अतःपुनः आदोलन का मौका देना बुमानी नहं होगी, ऐसा उह लगा होगा। अपने पऽम ौी गुजी ने िलखा था-“सरकार क ओर से यह सब होगा यह मने ौी वकटराम शाी को पहली भट मबता दया था। कं तु उहने कहा था क ‘वह सब मुझ पर छोड़ द।’ उनकेआमवास से लगा क शायद सरकार के कु छ ूमुख यय के साथ उनक कोईिनणायक बातचीत हई ु होगी। इसिलए, और अय से भी, अपने से सहानुभूितरखनेवाले इन सपुष को ूय करने दया जाय और मेर बाधा न रहे यह सोचकरमने उह समित दे द।”“कतु मुझे लगता है क यह मामला तब तक नहं सुलझेगा जब तक सवऽ सूचनाभेजकर पुनः एक बार जोरदार आदोलन नहं कया जाता। इसका यह अथ नहं हैक एकदम जदबाजी क जाय। पहले ऐसी योजना बने जससे आदोलन लबे समय<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११३


तक चल सके और फर योय समय देखकर आदोलन आरभ कया जाय। इसकेसाथ-साथ अनेक ूकार क हड़ताल भी करवाई जा सकं तो उम होगा। एक अछावय तैयार हो जसम इस बात का उलेख कया जाय क कै से शाीजी जैसेमयःथ के परामश एवं समित से संवधान तैयार कर सरकार के पास भेजा गयाऔर कै से सरकार अपनी पुरानी ह बात क रट लगाते हए ु अपने दरामह ु पर अड़ हई ुहै। उस वय को देशभर म बँटवाने क यवःथा क जाय और घोषणा क जाय कजनता के एकऽीकरण के यायपूण अिधकार क ूःथापना हेतु ूय करने केअितर और कोई माग नहं बचा है और चूँक सरकार के अड़यल रवैये ने सारेराःते बद कर दये ह इसिलए हम पुनः शातपूण आदोलन शु कर रहे ह। कसीअात ःथान से डाक के ारा उस वय क ूितयाँ के िय व ूातीय सरकार कोिभजवा कर पहले के समान आदोलन करना चाहए, ऐसा मुझे लगता है।”“यह मेरा मत है कतु आप बाहर रहे अपने ूमुख सहयोिगय से योय परामश करजो उिचत हो वह िनत कर। न इधर के , न उधर के , ऐसी जो ऽशंकु वत ् ःथितमयःथ के कारण िनमाण हई ु है उसे समा कर।”यहाँ यह बात यान म रखना आवँयक है क राीय ःवयंसेवक संघ के संवधान कोिलखत प म देने हेतु अपनी ःवीकृ ित देने अथवा संवधान के कु छ मु पर उठाईगई आपय का वचार करते समय ौी गुजी ने सरकार क कोई ‘शत’ ःवीकारनहं क। कु छ लोग ने ःवाथवश इस ूकार का ूचार भी करना चाहा क संघ नेसरकार को कु छ आासन दये ह उन शत पर ह पाबद हटाई गई है। कतु जबौी गुजी और सरकार तथा मयःथ के बीच हआ ु सारा पऽ-यवहार ूकािशत होगया तब संघ ारा सरकार शत को ःवीकार कये जाने सबधी सारे दंूचार ु कहवा िनकल गई। संघ का जो काय अिलखत संवधान के अनुसार चल रहा था उसेह िलखत प म दया गया- इसके अलावा अय कोई भी ‘शत’ ःवीकार कये जानेका ू ह नहं था। सरकार ने ःवयं अपनी ओर से बना कसी शत के ूितबंधहताया, यह बात भी ःप हो गई।१०.४ सरकार ने भी ःवीकाराकहावत है क “हाथ कं गन को आरसी या?” ःवयं सरकार को ह इस सय को खुलेतौर पर ःवीकार करना पड़ा। मुंबई वधानसभा म १४ अु बर १९४९ को उस सरकार<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी११४


के गृह एवं राजःव मंऽी ने सूरत जले के ललूभाई माखनजी पटेल के ू के उरम बताया क-(१) रा.ःव.संघ का ूितबंध बना कसी ूकार क शत के उठाया गया, और(2) संघ के नेता के ारा सरकार को कसी भी ूकार का वचन नहं दया गया है।यहाँ यह बताना तय संगत होगा क अपनी जाँच ारा यह ःप हो जाने के बाद कसंघ पर आरोपत अनेक अपराध म संघ का कोई हाथ नहं है, सरकार सारे अनुिचतएवं अयायपूण हथकडे अपना रह थी। आँख खोल देनेवाले इस तय के उपरातभी क महामा गांधी क हया सहत अय अपराध म भी, जनका जोरदारडमडम पीटा जाता रहा, सारे देश म कहं भी कसी भी ःवयंसेवक के व एक भीआरोप पऽ ूःतुत नहं हआ ु , मुकदमा चलाने क बात तो दरू रह। इस संदभ मसरदार पटेल ारा पं. नेह को २७ फरवर १९४८ को, अथात महामा जी क हयाके उपरात एक माह के अदर ह जो पऽ िलखा गया वह इस सारे मामले म सरकारके बेईमानी का िनदनीय दःतावेज है। सरदार पटेल ने िलखा- “बापू क हया कजाँच म हो रह ूगित पर मने ूायः ूितदन यान दया है..... सभी अपरािधय नेअपनी गितविधय के लबे और वःतृत वय दये ह। ..... उन वय से यहबात भी ःप प से उभर कर आती है क इस सारे मामले म संघ कहं भी संिलनहं है।”१०.५ गृहमंऽी ने भी ःवीकारासंघ पर से ूितबंध हटने के बाद गृहमंऽी सरदार वलभभाई पटेल ने ौी गुजी केपऽ के उर म एक पऽ भेजकर अपनी ूसनता और शुभकामना य क। इस पऽका कु छ अंश इस ूकार है:-“……..जैसा आपने अपने सावजिनक भाषण म कहा है, देश क ःथित वैसी ह हैऔर घटनाओं का चब इस ूकार चल रहा है क हम सबको वतमान काल औरभवंय पर रखनी चाहये, न क भूतकाल पर। मुझे आशा है क आप संघ औरकाँमेस और सरकार के वषय म इस िनयम पर चलगे।”“संघ पर से पाबंद उठा लेने पर मुझे जतनी खुशी हई ु है इसका ूमाण तो उस समयजो लोग मेरे िनकट थे वह बता सकते ह। मुझे इस बात पर वशेष ूसनता है क<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी११५


इस ूकार एक बार फर ईर ने मुझे यह अवसर दे दया है क संघ के भवंय केवषय म जो वचार मने सालभर पहले जयपुर व लखनऊ क आमसभाओं म ूगटकये थे, उनको पूरा करने का ूय कर सकूँ ।”“आशा है, आप ःवःथ हगे। म आपको अपनी शुभकामना भेजता हँ। ू ”संघ पर ूितबंध हटाये जाने क घोषणा द. १२ जुलाई को सायंकाल आकाशवाणी सेक गई और द. १३ जुलाई को ौी गुजी को बैतूल कारागृह से मु कया गया। ौीगुजी मयाह म जब नागपुर रेवे ःटेशन पहँचे ु तो वहाँ उपःथत ३० हजार सेअिधक जनसमूह ने हषविन से उनका ःवागत कया। समूचा वायुमंडल भारतमाताक जय-विन से गूँज उठा! अन-परा म सफल होकर आनेवाले अपने पुऽ का जबःवयं पताजी ने पुंपमाला पहनाकर ःवागत कया तो यह ँय देखकर उपःथत कआँख से आनंदाौु फू ट पड़े। ऩागपुर म तीन-चार दन तक कने के बाद ौी गुजीौी ट. आर. यंकटराम शाी से िमलने हेतु मिास गये और उनके ूित अपनीकृ तता य क। ूितबंध हटते ह ौी शाी जी ने नागपुर के पते पर अिभनंदन-तार भेजा था- ‘All is well that ends well’ –अत भला तो सब भला। ौी गुजी केनाम अिभनंदन-पऽ और तार क झड़ लग गई थी। ौी गुजी मिास, पुणे औरमुंबई का ूवास कर नागपुर लौटे। ूितबंध काल म मदद करनेवाल से ूय भटकरउनके ूित अपनी कृ तता य क। इसम पुण के ौी ग.व. के तकर का भीसमावेश था। इस सारे ूवास म ःथान-ःथान पर जनता ने ौी गुजी का अभूतपूवःवागत कया। इस ूवास म ौी गुजी के ूित उकट ूेम क अिभय कादयःपश दशन हआ। ु*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११६


११ ःवागत पव: अचूक मागदशनूितबध काल म पूरे १८ मास ौी गुजी अपने ूय ःवयंसेवक से िमल नहं पायेथे। जनसपक खंडत हो चुका था। ःवयंसेवक और जनता म भी ौी गुजी कादशन करने और ूितबध हटने के बाद वे कौन सा मागदशन करते ह, यह जाननेक उसुकता थी। अतः देशयापी संचार आरंभ करना आवँयक ह था। सब के मनम एक ह ू था क संघ पर ूितबंध के अयाय से कौन सी सीख ली जाये? ौीगुजी के मन म कांमेस सरकार ारा अपनाई गई दमन नीित क या ूितबया है?शासनकताओं के ूित ौी गुजी कन शद का ूयोग करगे? आखर इन सभी ूका िनवारण ौी गुजी के भाषण म जस ढंग से हआ ु , उससे उनके अंतःकरण कवशालता, उदारता, उकट देशभ, कसी के भी ूित मन म बैर अथवा ेष केअभाव और हदू संःकृ ित के आदश के अनुप आचरण का ह सााकार हआ। ु ौीगुजी का भाषण सुनकर लाविध ौोताओं के मुख से ौी गुजी के ूित धयो-गारह िनकले।ौी गुजी का यह भारत-ॅमण १९४९ के अगःत माह म ूारंभ हआ ु तो जनवर१९५० तक जार रहा। इस बीच वे जहाँ-जहाँ गये वहाँ-वहाँ जनता ारा उनका उःफू तःवागत कया गया। २० अगःत को उर भारत के ूवास हेतु दली क ओर ूःथानकरने के पूव थोड़ा समय िनकालकर वे मुंबई जाकर सरदार पटेल से भट कर आये।सरदार पटेल का ःवाःय अछा नहं होने क खबर उह िमल चुक थी। सरदारपटेल के साथ लगभग एक घंटा वातालाप होता रहा। इस भट के समय संघ केतकालीन सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी भी ौी गुजी के साथ थे। इस भट म सरदारपटेल ने ईसाई िमशनरय क गितविधय का उलेख करते हए ु हदू समाज कपाचन-श बढ़ाने क आवँयकता ूितपादत क। पाकःतान बनने के बाद उपनसमःयाओं और घटनाओं का भी सरसर तौर पर उलेख करते हए ु उहने कहा,“बीती को बसारकर अब देश के भवंय का यान रखना चाहये।”लगभग पाँच माह तक ौी गुजी के भारत-ॅमण म सवऽ उनका जो भय ःवागतहआ ु उसका ववरण भले ह कतना रोचक य न हो, ःथानाभाव के कारण उसे यहाँूःतुत करना संभव नहं ह। के वल उदाहरण के िलए राजधानी दली म हए ु ःवागतका वणन ूःतुत करना ह पया होगा। राजःथान, पंजाब, उर ूदेश, आंी, मिास,कनाटक, महारा, गुजरात आद राय के ूमुख शहर म भी दली जैसा ह भय<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी११७


ःवागत कया गया। दली म हए ु ूचड एवं शानदार ःवागत का परणाम यह हआ ुक ःवाभावकतः सारे व का यान ौी गुजी के यव क ओर आकषत हआ। ुॄटश ॄॉडकाःटंग कापरेशन (बी.बी.सी.) ने यह अिभमत य कया क,- “ौीगुजी भारतीय ितज पर उदत एक चमकते िसतारे ह। इतना ूचड जनसमुदायआकृ करनेवाले भारत म दसरे ू य पं. नेह ह ह।” भारतीय समाचार पऽ म भीौी गुजी के ःवागत के समाचार सुखय म ूकािशत हए। ु १९५६ म ौी ना.ह.पालकरारा िलखत ‘ौी गुजी : य और काय’ नामक पुःतक म दली म हए ु ःवागतका ववरण इस ूकार है :-“दली ःटेशन पर तथा उसके बाहर दरू -दरू तक इतनी भीड़ थी मान सपूणराजधानी ह गुजी के दशनाथ उमड़ पड़ हो। जय-जयकार के घोष से सारा आकाशगूँज उठा तथा फू ल से माग क सूरत बदल गयी। सपूण राजधानी गुजी केःवागताथ सजायी गयी थी। ःथान-ःथान पर ःवागत-ार खड़े कये गये थे। सायंकालरामलीला मैदान म गुजी के सावजिनक ःवागत समारोह म ५ लाख से अिधक ी-पुष एकऽत हए ु थे। उस समय नगर म ऐसा लग रहा था क मान सभी मागरामलीला मैदान क ओर जा रहे ह। मंच क भयता तथा कायबम का आयोजन भीअितय था। गणवेशधार ःवयंसेवक शांित के साथ जनता का ःवागत करते तथाउह यथा-ःथान बैठाते थे। पुिलस क मदद के बना ह सभा म शांित औरअनुशासन बनाये रखने म ःवयंसेवक क सफलता ःपृहणीय थी। दनांक २३ अगःतको दली क इस सभा म नागरक क ओर से ौी गुजी को समान-पऽ भटकया गया। मानपऽ के उर म ौी गुजी ने वहाँ उपःथत जनसमुदाय कोसबोिधत कया।”ःथान-ःथान पर ौी गुजी का ःवागत इस ूकार अयंत शानदार ढंग से हआ। ुअपनी मु के बाद भारत-ॅमण पर िनकले ौी गुजी का भारत क कोट-कोटजनता ने जैसे वरा तथा हादक ःवागत कया, उसका उदाहरण इितहास म िमलनाकठन है। ःथान-ःथान पर हए ु ःवागत के उर म जो उ-गार ौी गुजी ने ूकटकये, वे उनक अितशय उदारता, दय क वशालता और सहंणु वृ के हपरचायक ह। लगातार अठारह मास तक अपने तथा लाख ःवयंसेवक के ऊपर होतेरहे अपार क तथा अपमान को सहकर भी इस अवसर पर उहने सरकार अथवाअय कसी य के व लेशमाऽ भी कटता ु य नहं क और न ह इस अवसरको उहने अपने ूचार का साधन बनाया। अयंत धैयपूवक तथा हमालय सशमहानता से उहने अपने वय म कहा, “संघ बंद के इस मामले को अब यहंसमा कर दजये। जनके बारे म लगता हो क उहने आप पर अयाय कया है,<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११८


उनके ूित मन म कटता ु का अंश भी मत आने दजये। दाँत यद जीभ को काट लेया टाँग टाँग से लड़ पड़े तो हम न तो उन दाँत को उखाड़ फ कते ह, और न ह पैरको काट डालते ह। जहने हम पर अयाय कया वे भी अपने ह ह। अतः बीती कोबसारकर हम माशीलता ूकट करनी चाहये। नींद पूर करके जागने वाला यऔर अिधक उसाह से काम म जुट जाता है, उसी भांित हम भी समाज कवभेदकार, संकु िचततापूण तथा अय परःथितय को दरू करने के िलए दने ू उसाहसे उसी काय का ूारंभ करना चाहये जसे हम पहले भी कर रहे थे। यह काय करतेसमय कसी के ूित अपने मन म ेषबु उपन नहं होने देना चाहये।”सवऽ अपने भाषण म यह वचार उहने ूकट कये। इसके साथ ह देश किचताजनक परःथित का िचऽण करते हए ु संघ को जो काय करना है, उसक ःपऔर वधायक भूिमका भी ूःतुत क। ःवयंसेवक पर आघात करनेवाले ःवकयजनह थे, यह बताते समय वे कहते थे क “अगर यह आघात कसी परकय या वदेशीने कये होते तो संघ क श का अनुभव जर करा दया जाता। अखर हमने भीअपनी माँ का दधू पया है इसक अनुभूित तो उसे करा द जाती।” समाज और राका िचऽ बदलना हो तो भारतीय संःकृ ित के गुण को अंगीकृ त कर संगठत होनापड़ेगा- यह संघ का मूल वचार वे बार-बार ूितपादत करते रहे। उहने लोग कायान भारत क आयामक ूकृ ित क ओर आकृ कया। उनके उ-गार से यहबात ःप हो जाती थी क इस सारे ःवागत या समान को वे गोलवलकर नामककसी य का ःवागत या समान नहं मान रहे ह। वैसा भाव उनके मन को छूभी नहं पाया था।ौी गुजी के इस ूवास के दौरान पंजाब के सोनीपत का एक ूसंग उलेखनीय है।वहाँ एक ःवयंसेवक ने भावावेश म आकर “ौी गुजी अमर रह”- ‘राीय ःवयंसेवकसंघ अमर रहे’ इस ूकार के नारे लगाये। जस ःवयंसेवक ने ये नारे लगाये उसेगुजी ने रोका और अपनी नाराजगी य क। बाद म ौी गुजी ने कहा, “कसी भीय अथवा संगठन के सबध म ऐसे नारे नहं लगाये जाने चाहए यक कोईभी य अथवा संगठन कभी अमर नहं होता, के वल रा ह िचरंजीवी अथवा अमरहो सकता है। अतः नारा लगाना हो तो ‘भारत माता क जय’ यह एक माऽ उ-घोषहमारा होना चाहये।” कसी य या संःथा क नहं बक सभी को अपने रा कभ और सेवा उकटता से करनी चाहए यह उनक एकमाऽ आकांा थी। गीता केतेरहव अयाय म ेऽ-लण का जो ववरण है, उसम पहला ह लण-‘अमािनव’ बताया गया है। ौी गुजी के जीवन म इसी का दशन होता है। कसीःथान पर य के नाते अपना ःवागत कया जा रहा है, इसक कपना माऽ से वे<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी ११९


यिथत हो उठते। संघ ूिस से सदा दरू रहा और इस ूिस परागमुखता कागलत अथ भी लगाया गया। ूिस से दरू रहनेवाला कोई काय गु ह हो सकता है-यह समीकरण बठाने का ूयास होता रहा। तब राजधानी दली और अयऽ भी ौीगुजी ने ूिस परागमुखता क संःकृ ितक भूिमका लोग को समझाकर बताई।ःवागत करने हेतु जुट भीड़ को वे यह बताते क ‘यह जो ःनेह आप बरसा रहे ह,वह संघ पर ह है। संघकाय क यह महा है। अतः इसी (संघ) काय से देश कािचऽ बदलेगा इस अपेा से यह ःनेह अब सबय सहयोग म पातरत होनाचाहये।’११.१ ूखर राीय इस ूगट िचतन म ौी गुजी को जनमानस म उभरे और एक नये ू के कारणसंघ क सपूण वचारधारा को ह नये संदभ म ःपता के साथ ूःतुत करना पड़ा।ौी गुजी जब कारागृह म थे उहं दन उनसे यह ू कया गया था क जबमुसलमान को उपना एक ूदेश काटकर दे दया गया और हदू-मुःलम झगड़ यादंग का मूल कारण ह न हो चुका है, तब संघ क या आवँयकता रह गई है?वःतुतः यह ू अनावँयक था, फर भी संघ के वाःतवक ःवप को समझाने केिलए िनिम प म ौी गुजी ने इस ू का उिचत उपयोग कर िलया। संघ केसबध म उस समय और आज भी अनेक बुजीवी-वचारशील माने जानेवाले लोगयह ॅात धारणा पाले हए ु है क संघ मुःलम-ेा या मुःलम-वरोधी है औरमुःलम का अनावँयक आतंक अपनी श के बल पर रोकनेवाली संःथा है। देशवभाजन के बाद चार ओर अशांित और तनावपूण वातावरण म भी ौी गुजी ने इसू पर अयंत संतुिलत वचार य कये थे। ौी गुजी ारा इस ू के उर मय वचार ःप और मूलगामी थे क उनका यहाँ थोड़ा वःतार से उलेख करनाअनुिचत नहं होगा। ौी गुजी ने कहा, “जहने मुझसे यह ू पूछा है उह मनेःप बताया है क आपका यह कोण ह पूणतः गलत है। पहली बात तो यह हैक संघ कसी के साथ संघष करने अथवा संघष का ूितकार करने के िलए खड़ा नहंहआ। ु दसर ू बात यह है क राीय चारय िनमाण करने के संघ के ूमुख काय कओर आपका यान नहं गया है। शाररक संघष का मुकाबला करने के िलए सामयखड़ा करने क जहाँ तक बात है, उसके िलए देश म अखाड़े, यायामशालाएँ आदसंःथाएँ ह ह। उनके ारा वह काय हो सकता है। इस एक मामुली काम के िलएइतना बड़ा रायापी संगठन खड़ा करने क कोई आवँयकता नहं थी। पर या<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२०


अपने समाज का के वल यह दःख ु है? अपने समाज का गहराई से िनरण करने केबाद अपने यान म आयेगा क राीय-चारय सपन नागरक िनमाण करने कजमेदार राीय ःवयंसेवक संघ ने ूारभ से ह महण क है। यह काय कभी समानहं होता। वह अखंड चलता रहता है। वतमान पीढ़ को जैसी उसक आवँयकताहोती है उसी ूकार वह आनेवाली पीढ़य के िलए भी होती है। भारत का ूयेकय अपने देश के िलए ूय करने म संलन है ऐसा ँय हमेशा दखाई देनाचाहये। इसिलये संघ का काय परःथित-िनरपे है। हाथ म लाठयाँ लेकर गुंड केसमान इधर-उधर घूमना या जातीय दंगे भड़काना कदाप संघकाय नहं है!”“व शांित भी हमारे सामने लआय है। वह तो हमारा जीवन-काय है और वह हम पूराकरना चाहए। आयामक जीवन के आधार पर व को शांित का पाठ देना औरसपूण मानव-समूह म एकता का भाव िनमाण करना हमारा सचा काय है । परंतुयह कब संभव होगा? जब हम अपने सांःकृ ितक जीवन का तवान आमसात ् करचारयसपन करोड़ लोग को एक सूऽ म गूँथकर उह उच येय क ूाि केिलए कटब करने म सफल हगे।”ॄटश राजसा का अंत, देश का दभायशाली ु वभाजन, तीन वष म ह ःवतंऽभारत क िचंताजनक ःथित और राीय ःवयंसेवक संघ क नये संदभ म भूिमकाआद के बारे म बदलती परःथित के अनुसार ौी गुजी को काफ कु छ कहना पड़ा।के वल ःवयंसेवक के सम ह नहं, सपूण समाज के बीच भी कहना पड़ा। इससंवाद का ूारंभ हम उनके इस ूवास म ःथान-ःथान पर दये गये भाषण म हपरलत होता है। महामा गांधी क हया, देशभर म हई ु इस दघटना ु कूितबया, संघ पर सरकार का अयायकार रोष, सवऽ बढ़ती हई ु आदशहनता औरइस कारण राीय ूगित के माग म उपन होनेवाली बाधाएँ देखकर ौी गुजी कामन अयंत यिथत हो उठा था। यगत मान-अपमान अथवा गौरव समारोह मउह जरा भी िच नहं थी। ूा अवसर का लाभ उठाकर अपने इस भारत-ॅमण मलोग के सम ूखर राीय वचार रखने काह उहने ूयास कया। उनके भाषण मयह वास ूकट होता था क संघ के माग से ह देश म ःथरता, वैभव और ूिताक ूाि क जा सके गी।उर भारत के ूवास म द. ३० अगःत को दली के वाःतय म ौी गुजी नेूधानमंऽी पं. नेह से भट क। संघ पर से पाबद हटने के बाद ूधानमंऽी के साथसंघ नेता क यह ूथम भट थी। ःवाभावकतया उसका ःवप औपचारक रहा। कं तु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १२१


इसके बाद पुनः २३ िसतबर और २९ नवबर को दो बार ौी गुजी पं. नेह सेिमले। ये दोन भट-वाताएँ लबी चलीं। दोन नेताओं ने देश क परःथित सबधीअपने-अपने वचार का आदान-ूदान कया। ौी गुजी ने संःकृ ित और रावाद,अहदओं ु का राजीवन म ःथान, संघकाय का ःवप और उेँय, सहंणुता,अहंसा इयाद वषय पर मु दय से अपने वचार य कये तथा नेह जी केू के उर दये। इन भट-वाताओं के बावजूद दभाय ु से पं. नेह का मन संघ केूित ःवछ नहं हआ ु और वे संघ पर हमेशा फािसःट और साूदाियकता का आरोपलगाते ह रहे। बाद के कालखंड म पं. नेह के साथ भट करने का कोई अवसर नहंआया यक ःवयं पं. नेह ह गुजी से िमलना नहं चाहते थे।इहं दन पं. नेह ारा संघ का वरोध य करनेवाली एक महवपूण घटना हई ु ,जो संघ और कांमेस के बीच के सबध क से सुदरपरणामी ू ,िस हई। ु घटनाय रह क सरदार पटेल क इछानुप कांमेस के ह कु छ नेताओं ने संघ ःवयंसेवकके िलए कांमेस के ार खुले करने क दशा म हलचल ूारंभ क। इस मुे को लेकरकांमेस म दो गुट िनमाण हए। ु राजष टंडन और पं. ारकाूसाद िमौ ःवयंसेवक केकांमेस-ूवेश का खुला समथन करने लगे। गुजरात के ौी ओंकारूसाद ठाकु र ने तोटंडन जी के मत का समथन करते हए ु एक लेख भी ूकािशत कया। इस लेख मउहने कहा था क “अगर संघ के अनुशािसत ःवयंसेवक कांमेस म आ जाय तोकांमेस क सार गंदगी हट जाएगी।” जस समय यह चचा चल रह थी उन दन पं.नेह वदेश याऽा पर गये हए ु थे परतु उनके वापस लौटने पर कांमेस कायकारणीने एक ूःताव पारत कया। इस ूःताव म कहा गया था क “संघ के ःवयंसेवकयद चाहते ह तो वे कांमेस म शािमल हो सकते ह। कतु कांमेस म शािमल होने केबाद वे कांमेस सेवादल के अलावा अय कसी भी ःवयंसेवी संगठन म भाग नहं लेसक गे।” पं. नेह क उपःथित म पारत इस ूःताव का अथ ःप था क संघ केसंवधान म भले ह ःवयंसेवक को यह छट ू द गई हो क वे हंसा म वास यादेशबा िना न रखनेवाले कसी भी राजनीितक दल म भाग ले सकते ह, फर भीकांमेस का आमह यह रहा क कांमेस म आना हो तो संघकाय को ितलांजिल देनीहोगी। इस ूकार संघ ःवयंसेवक के िलए कांमेस के दरवाजे बद कर दये गये।११.२ भीषण घड़ म शांित क मूितसंघ के ूित ेषभाव रखनेवाले कु छ लोग ने इस ‘ःवागत-पव’ म उपिव मचाने केूयास भी कये। िमरज, कोहापुर, सांगली आद ेऽ म पथराव, हलड़बाजी ु और ौी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२२


गुजी को चोट पहँचाने ु के िलए कये गये ूयास का वशेष प से उलेख करनाहोगा। कोहापुर म तो भीषण ूसंग टल गया। ौी गुजी जैसेह कोहापुर म पहँचे ुतो संघ वरोिधय ने उनके व नारेबाजी, पुतले जलाना, उह हमलावर भीड़ के घेरेम फँ साने का ूयास करना आद कृ य कये। कं तु ौी गुजी क भावमुिा यह थीमान उह इसक कु छ भी कपना या जानकार नहं है। अयंत तनावपूण वातावरणम भी धीर गंभीर और शांत रहते हए ु वे सारे कायबम िनधारत समय पर तपरतासे पूण करते रहे। कोहापुर म देवी के दशन भी वे कर आये। बाद म कोहापुर सेसांगली का ूवास था। शासकय अिधकारय ने ौी गुजी को लोहे क जािलयवालीगाड़ म बठाकर कोहापुर क सीमा तक सुरत पहँचाया। ु इस गाड़ पर भी पथरावहआ ु जनम बड़े-बड़े पथर का ूयोग कया गया था।कोहापुर से सांगली तक का ूवास ौी गुजी ने ूिस िसने िनमाता एवं िनदशकौी भालजी पढ़रकर क गाड़ म कया। हमेशा क भांित वे सामने क ओर साइवर केबाजूवाली सीट पर बैठे। ौी बाबाराव िभड़े भी पछली सीट पर बैठे थे। माग म िमरजक ओर से आनेवाली एक सड़क कोहापुर-सांगली माग से आकर िमलती है। वहाँकु छ ःवयंसेवक साइकल से यह खबर देने के िलए पहँचे ु थे क आगे सांगली केिनकट उपिवकार भार संया म खेत म िछपकर बैठे ह जनका गुजी क गाड़रोककर उनपर हमला करने का इरादा है। इन ःवयंसेवक ने यह सुझाव दया क ौीगुजी क गाड़ (कार) को सामने नहं रहना चाहए। उस कार के आगे ःवयंसेवक सेभर एक बस चले और उसके पछे ौी गुजी क कार। कतु ौी गुजी ने इससुझाव को ठकराते ु हए ु कहा-“नहं, कार ह आगे रहेगी, आप लोग यथ म िचताकर रहे ह। कु छ नहं होगा” और ौी गुजी क गाड़ आगे बढ़। कार आते देखिछपकर बैठे उपिवकार कार को रोकने के िलए सड़क पर आने लगे। कतु ौीबाबाराव ने साइवर को ःप सूचना दे रखी थी क कार तेजी से चलाना और कसीभी परःथित म रोकना नहं। उपिवकार भीड़ यह समझ बैठ थी कार भीड़ देखकरगित धीमी करते हए ु आखर कने के िलए ववश होगी। कतु भीड़ को देखते ह ौीबाबाराव ने पुनः साइवर को सूचना द क तेज गित से चलो और बना रोके गाड़ कोआगे बढ़ाओ। साइवर ने वैसा ह कया। गाड़ क गित और तेज कर द। जैसे-जैसेगाड़ िनकट आने लगी हमलावर भीड़ ूाण बचाने सड़क के दोन कनार पर हट गईऔर उनके बीच से कार सुरत प से िनकल गई! हमलावर देखते ह रह गये। उहहमला करने का मौका नहं िमल पाया। इस सारे काल म जब कार व बस म बैठेसभी लोग ःवाभावक प से अयत तनावमःत थे, ौी गुजी शातता क ूितमूितबने बैठे रहे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२३


सांगली म ौी गुजी क सुरा क सार तैयारयाँ क गई थीं। जैसे ह वे सांगलीपहँचे ु , ौी गुजी को सुरत देखकर िचंतामन कायकताओं ने राहत महसूस क।सांगली म भी पथराव, नारेबाजी क कु छ घटनाएँ ह ु कतु सभी कायबमयोजनानुसार सपन हए। ु सावजिनक सभा म भाषण देते हए ु ौी गुजी ने तनावपूणपरःथित और उपिव का उलेख तक नहं कया और न हं उनके चेहरे पर िचंताक झलक ह दखाई द। सांगली क ःवागत सभा म भी उहने संघ का वधायकवचार ूितपादत कया। ौी गुजी क धीरोदाता और िनभयता का यह दशनकायकताओं के िलए वलण परणामकार तथा संःमरणीय रहा।कोहापुर-सांगली क इन घटनाओं से ौी गुजी यिथत अवँय हए ु कतु मन कशांित और संतुलन को उहने ढहने नहं दया। मन म कसी के ूित बोध कभावना ूवेश नहं कर पायी और न ह इन घटनाओं के िलए उहने कसी परदोषारोपण कया। इस घटना पर आगे चल कर ‘पुषाथ’ मािसक म अपने लेख मउहने कहा- “जह अपना मान कर गले से लगाना है, जनक सेवा करना है वहयह अपना समाज है। वह चाहे तो फू ल क माला पहनाए या जूत क! वह ूशंसाकरे या िनंदा, गािलयाँ दे या कु छ भी करे, आखर है तो वह अपना ह। हमार परालेने के िलए वह अनेक बार अछा-बुरा बताव करता है; कतु वह तो के वल पराह है। वाःतव अंतःकरण से वह अपना ह है। वह अपने साथ आयेगा। इतना ह नहंतो अपनी अलौकक िना के कारण अपना अनुयायी बनकर हमेशा हमारे पीछेचलेगा। समाज परमेर का ह प है और परमेर ने कह रखा है क म अपने भका दास हँ। ू आवँयकता है हम अपने आपको सचे भ के प म ूःतुत कर।”११.३ लआय पर सतत ौी गुजी ने आयामक परपरा ूा हदओं ु क भ-भावना को सामाजक-कतयपूित क दशा म मोड़ने का अखंड ूयास कया। इसके िलए उहने अपनेसेवामय जीवन का आदश ूःतुत कया। संघबंद के वपरत कालखंड म अथवासंघबंद हटने के बाद वजयोलास के ‘ःवागत-पव’ म उहने अपने िच का संतुलनऔर समव कभी भी ढहने नहं दया। इन ताकािलक बात म न फँ सते हए ु संघ केवाःतवक जीवनकाय क ओर ःवयंसेवक तथा समाज का यान आकषत करने काूयास सभी उपलध अवसर तथा मायम से उहने कया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२४


ःवागत समारोह क सवऽ धूम चल रह थी फर भी दैनंदन चलनेवाली शाखाओंतथा ःवयंसेवक पर उिचत संःकार क यवःथा पुनः ठक ढंग से खड़ करने कआवँयकता ौी गुजी अनुभव कर रहे थे।साथ ह कायकताओं के मन म उठ रहे ू पर ौी गुजी ने बहत ु गभीरता औरगहराई से वचारमंथन कया। वे अनुभव कर रहे थे क कायकताओं के मन म संघ-वचार एवं संघ क काय-पित के ूित उकट ौा पुनः ःथापत करना आज कपहली आवँयकता है। इसिलए १९४९ के अु बर माह म जब कु छ दन तक उनकावाःतय नागपुर म था, तब कायकताओं के सम लगातार पाँच दन (द. १९ से२२) तक उहने अपने मौिलक वचार ूःतुत कये। इस वचार मंथन का ूयोजनबताते हए ु ौी गुजी ने कहा- “अनेक के अतःकरण म यह शंका आती है क अपनेदेश क परःथित को देखते हए ु पूव-पित से काम करने क कु छ आवँयकता है यानहं? इसका हम अवँय वचार करना चाहए।”नागपुर के कायकताओं का मागदशन करने के पात ् ौी गुजी उर भारत के ूवासपर िनकले और वहाँ ूचारक के अनेक िशबर म इन ू पर अपने वचार खुलकररखे। उर ूदेश म जौनपुर और सीतापुर म आयोजत ूचारक िशबर म ौी गुजीारा ूःतुत वचार उसी समय लखनऊ से ‘येय दशन’ नामक पुःतका के प मूकािशत हए। ुइन बौक एवं चचा सऽ म राजसा और राजनीित क सीमाओं को ःप करते हए ुौी गुजी ने कहा, “राजनीित जीवन का अपतम अंग है, जीवन को या करनेवालासाधन नहं। कई लोग के मन म वचार आया क ‘यथा राजा तथा ूजा’ के अनुसारतो जनता के मन के ऊपर ूभाव करने के िलए सा लेना ह चाहए। कतुआजकल तो जनतंऽ का जमाना है। अब तो ‘यथा राजा तथा ूजा’ हो गया है। ूजादबल ु है तो राजा भी दबल ु होगा। ूजा यद भयातुर, वासहन, चरऽहन तथाअभारतीय तव से ूेम करनेवाली होगी तो राजा भी वैसा ह होगा। अतः सय तोयह है क ूजा के अिधान पर राजा का िनमाण हो, न क राजा क सा के आधारपर ूजा के मागदशन का वचार।”आसेतु हमाचल हदु संगठन क आवँयकता पर बल देते हए ु ौी गुजी ने कहा कहमारा समाज अभी भी जाित भेद और ूात भेद का िशकार है, असंगठत है, दबल ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२५


है, आमवःमृित म डूबा हआ ु है। उसम ःवाथ भरा हआ ु है। जब तक वह राभ सेओतूोत और चारऽवान नहं होगा तब तक जनतंऽ सफल कै से होगा? राजसाूभावी कै से होगी?उहने कहा क राभ समाज के िनमाण का काय के वल राजनीित से नहं होगा।रा संःकृ ित से बनता है। वशु संःकृ ित को सामने रखकर उसे अिधक से अिधकतेजःवी बनाकर, शु कर, िभन-िभन ॅमामक वचार को हटाकर शु राकपना के आधार पर वशु राीय कोण से समाज और रा के उथान का जोकाय हमने िलया है, उसे ह संःकृ ित कहा है।ःवतंऽता ूाि के बाद क राजनीित के चरऽ पर ूकाश डालते हए ु ौी गुजी ने कहाक, “सभी संःथाएँ समाज के भेद को उभाड़ कर अपनी रोट पर ह अिधक घीचुपड़ने क इछा से िभता को बढ़ाने क कोिशश म लगी ह। नयी-नयी िभनताएँपैदा करती जा रह ह।.... अखल भारतीय नेतृव के दावेदार भी इन भेद से ऊपरनहं उठ पाये ह।”ौी गुजी ने ू कया क जब देश म यगत और राीय चारऽहनता है, तबतक परवतन कै से होगा? रा के चारऽक पतन के िलए दलगत राजनीित कोउरदायी ठहराते हए ु उहने कहा क ‘सव साधारण रित से चारय जो दखाई नहंदेता उसका कारण यह है क लोग वचार करते हए ु कसी न कसी दल क ी सेवचार करते ह, चाहे वह राजनीितक हो या आिथक। वे दल क महा को ह अिधकमानकर उसको बढ़ाना और उसी के ारा रा का कयाण करना चाहते ह। रा केिलए भला-बुरा या होगा इसका वचार नहं करते। लोग चुनाव म देश का भलाकरने के भाव से नहं, दलगत ःवाथ लेकर आते ह। आज जीवन के सभी ेऽ मआसेतु हमाचल फै ले हए ु रा के बारे म पूण कपना नहं है। सेवा क सपूण ूवृभी दलगत ःवाथ म फँ स गई है। दलीय ःवाथ और अनुशासन ह समुख रह जाताहै। ...दल बनाकर दलगत ःवाथ से ऊपर उठने क बात असभव है।’सुसंगठत चरऽवान जीवन क आवँयकता को सवपर बताते हए ु ौी गुजी ने कहा,‘चरऽ या ःनेह का आधार एकामता है..... एकामता का भाव ह सुसंगठत प देसके गा। संःकृ ित को रा क आमा जानकर उसे ह हम जगाना चाहते ह। इसकेिलए सा क आवँयकता नहं। इितहास बताता है क सा के कारण बनी एकता<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२६


शीय न हो जाती है। मनुंय के अदर ौे जीवन उपन करने का काय सा केारा नहं हो सकता।’“राजसा के ऊपर हमारा जीवन िनभर होता तो परकय के आबमण होते ह हमसमा हो जाते। जब तक हम इस सांःकृ ितक धारा को जागृत रख सक गे तब तकजीवत रहगे।...ूजा यद संःकृ ित को मानती है तो भला और कसका राय होसकता है? अतः सपूण ूजा को सांःकृ ितक आधार पर सुसंगठत करने से कायहोगा। हम तो रा म अपनी संःकृ ित के आधार पर चेतना उपन करते हए ु उसकेकयाण क ह कामना करते ह। हमम से कसी को मंऽी बनने क इछा तो है नहं।भारत म चलनेवाले ूयेक काय पर यद हम अपना रंग चढ़ाना चाहते ह तो हम इसठोस िचरंतन काय को ह अपनाना चाहए। जैसे सूय के ूकाश से चिमा ूकािशतहोता है उसी ूकार ूजा के ूकाश से ह सा को जीवन, ूकाश और ूभाव िमलताहै। सूय के अदर क ूभावान चैतययु श के समान हम ूजा के सवःव, उसकआशा आकांा के मूत प बन। फर उसके ूकाश से चमकनेवाली सा और कौनसा ूकाश दे सके गी?”संघ काय क मूल भूिमका का ःमरण दलाते हए ु ौी गुजी ने कहा, “अपना काय तोमूितकार का है जहाँ राामा पूण ूभाव से ूकािशत है। यह काय वघटनकारपितय का गुलाम बनकर नहं हो करता। वछनता के ःथान पर एकामताउपन कर, अराीयता के ःथान पर राीयता जागृत कर, अभारतीयता के ःथान परभारतीयता का मंऽ पलाकर हम नव चैतय परपूण समाज का िनमाण करना है।आज हमार सार समःयाएँ ःवाथ के कारण ह।...बड़े-बड़े य भाषा, ूात, पंथ,मत का अिभमान रखते ह और अखल भारतीय नेता कहलाते ह। कतु हमारे यहाँबचा भी कहता है क यह सारा भारत मेरा है।”अपनी ऋष से भवंय म झाँकते हए ु उहने कहा क, “रा का चैतय कसी नकसी प म ूगट होगा ह। बीज बो दया है वटवृ अवँय खड़ा होगा।” अब राजीवन के ूयेक ेऽ म संघ के ःवयंसेवक ारा खड़े कये वशाल संगठन ने संघको अनेक शाखा-ूशाखाओंवाले वटवृ का प दे दया है। ौी गुजी क भवंयवाणीसय हई ु है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२७


ूितबंधकाल के पात ् संघ क वैचारक भूिमका को ठक ढंग से ूःतुत कर काय केूित ूखर ूेरणा जागृत करने का जो कठन काय कारावास से मु होने के बाद ौीगुजी ने अयंत दरू - के साथ ूारंभ कया, उसका यह ौीगणेश ह है। इस कायके सबध म आगे वःतार से वचार कया जाना है, अतः यहाँ अिधक गहराई मजाने का मोह हम टालना होगा। हाँ, इतना अवँय कहा जा सकता है क अंमेज कसा समा हो जाने के बाद परःथित म हए ु परवतन को यान म रखते हए ुःवतंऽता के सदभ म संघ क जो वचार ूणाली ौी गुजी ने उस कालखंड मअसंदध प से ूितपादत क, उसी आधार पर आज संघ खड़ा है। उसी जीवन-रसका पान कर संघ का वट-वृ वःतारत हआ ु है।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२८


१२ आपदमःत के आशा ःतंभसन ् १९५० का पुवाध। देश का वभाजन होकर तीन वष बीत चुके थे। इन तीन वषके कालखंड म पम बंगाल राय का दौरा करते समय ौी गुजी ने जो देखा, सुनातथा ूय अनुभव कया, उसके फलःवप वे बहत ु ह यिथत हए ु थे। अपने बंधुओंक दखद ु अवःथा देखकर उनका दय िवत हो उठा था। सामाजक समरसता उनकेदय का ःथायी भाव होने के कारण वे बहत ु ह दःखी ु हए ु थे।भारतीय नेताओं ने पाकःतान के िनमाण क सध करते समय अपने हदू बंधुओंके भवंय का तिनक भी वचार नहं कया। अिनत आशावाद पर ह वे िनभर रहे।जो हआ ु , वह कभी होगा नहं, यह उनक मनोधारणा थी। कतु यह धारणा गलतिस हई। ु पम पाकःतान से वःथापत हदओं ु के वशाल जथे बाढ़ क भांितआए और उनक संपूण यवःथा म संघ ने भरसक ूय कर अपना संपूण सहयोगूदान कया। पूव पाकःतान म लगभग डेढ़ करोड़ हदू शेष थे। उह धोर यातनाएँद जा रहं थीं। परणामतः हदओं ु का जीवन इतना असुरत हआ ु और अयाचारइस हद तक पहँचा ु क लाख हदू बेघर होकर आमरा हेतु पम बंगाल म आपहंचे। ु असीम यातनाओं से उह संघष करना पड़ा।१२.१ जनश को आवाहनभारत सरकार क से वे िनवािसत ‘वदेशी’ थे, शरणाथ थे। पाक शािसत ूदेश मउनके िलए दो ह वकप थे- धमातर या मृयु। कतु उहने हदू के नाते हजीने का िनय कया था। इस कारण आपदाओं से जूझते हए ु वे कसी तरह भारतम आ पहँचे। ु आय क बात यह थी क अपनी सरकार न तो उनक सुरा काूयास कर रह थी, न ह आबाद क अदला-बदली का वचार उसके मन म उभरतादखाई दे रहा था। कतनी घोर वड़ंबना थी यह!ये वे लोग थे जनसे ःथानातरण के बारे म न पूछा गया, न ह उनक कोई िचंताक गयी। बस, कलम क एक नोक से उह उनक मातृभूिम से वंिचत कर दयागया। जो कल ःवदेशीय थे वे आज परदेसी बना दए गये। उनके जान-माल, इजततथा ःवािभमान क हमारे नेताओं को कोई परवाह नहं थी। इस गंभीर तथा उमसमःया का िनवारण के वल सरकार ह कर सकती थी। सरकार ःतर पर ह उसका<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१२९


हल संभव था। कं तु के वल सरकार का मुँह ताकते हए ु बैठना ौी गुजी को मायनहं था। उहने आवाहन कया क समाज का भी उरदाियव है क वह अपनेवःथापत-पीड़त बधुओं क सहायता हेतु ःवयंूेरणा से अमसर होकर अपना कतयिनभाए।सेवा का यह काय करने के िलए राीय ःवयंसेवक संघ के तवावधान म ‘वाःतुहारासहायता सिमित’ का गठन कया गया। संघ के अकृ ऽम सामाजक ःनेह भाव कायह एक ःवाभावक आवंकार था। वभाजन पूव तथा वभाजन के बाद जब भीराजीवन संकटमःत रहा, संघ सदा ह सेवा काय म अमसर रहा है। इस समय यहूेरणा कायावत हई। ु ौी गुजी ःवयं इस ूेरणा के ोत बने।पूव पाकःतान ःथत हदओं ु क भीषण अवःथा से संबंिधत एक िनवेदन ौी गुजीने तुरत ूकािशत कया। इस िनवेदन म समाज को अपने कतय का िनवाह करनेका आवाहन कया गया। ौी गुजी कलका से दली पहंचे। ुसमय क पुकार को देखते हए ु उहने अवलंब रा के नाम एक संदेश वनॆ िनवेदनके प म ूकाशनाथ दया। ूःतुत िनवेदन म पाकःतान ःथत हदओं ु कदरावःथा ु का वणन कर सहायता ूदान करने का आवाहन कया गया था। ७ माच१९५० को यह िनवेदन ूकािशत कया गया। ‘वाःतुहारा सहायता सिमित’ क ःथापना८ फरवर को ह हो गयी थी। ौी गुजी ने सिमित के कायकताओं को िनःःवाथ सेवाका महामंऽ दया था।पम बंगाल, असम तथा उड़सा म संघ काय का ःवप बहत ु सीिमत था। यहसमःया गंभीर तथा राीय ःतर क थी और सरकार सहायता क अपेा रखनेवालीथी। इस कारण दली से ूकािशत कये गये आवाहन म ःप प से कहा गया थाक सरकार दवधा ु क मनोवृ याग कर ठोस तथा िनणायक उपाय क योजनाकर। इस आवाहन का एक अंश है-“अिनतता, दवधा ु भर मनोवृ तथा दबलता ु ह बढ़ती रहेगी तो डेढ़ करोड़िनंूाण िनदष भारतीय के वनाश का पाप भारत सरकार के माथे पर होगा। सरकारक ूिता िमट म िमल जायेगी। अतएव सांूदाियकता के दल-दल म न फँ सते हए ुिनभयता पूवक कदम उठाया जाय, समःया चाहे पुिलस कायवाह क हो या हदू-<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३०


मुसलमान क जनसंया क अदला-बदली क। हदओं ु और भारत-िनवासीमुसलमान का बराबर से (संया बल सापे) ःथानातरण हो, तदथ सुिनत उपाययोजना शीयाितशीय कायावत क जाय जसके फलःवप हमारे सहोदर डेढ़ करोड़हदओं ु क रा हो सके तथा भवंय म वे शांितपूण सुखमय जीवन यतीत करसक ।”“साथ ह म अपने देशवािसय से बनती करता हँ ू क वे अपना ोभ, भावनोिेकसंयिमत ढंग से ूगट कर। जन गितविधय ारा शांित भंग होकर सरकार के मागम अड़चन, कावट पैदा हो सकती ह, उह वजत कर। हम चाहए क हम कसी भीअसामाजक, देश वघातक तथा अवांछनीय कृ य के िशकार न बन।”ौी गुजी के इस संदेशामक िनवेदन पऽ को अखबार ने खुले दल से ूाथिमकतादेकर ूकािशत कया। इसके पात ् नागपुर पहंचने ु पर द. १४ माच को ौी गुजी नेउपयु आशय का एक िलखत आवाहन पुनः ूकािशत कया जसम देशवािसय सेवःथापत क सहायता के िलए हाथ बंटाने का आमह कया गया था। ौी गुजी केूयेक शद म उनके दय क टस, ममता तथा अपार ःनेह का भाव ूगट हआ ुथा। तकालीन राीय समःया क गंभीरता का परचय इस िनवेदन क वशेषता थी।आम जनता को सतक करते हए ु ौी गुजी ने कहा,“यह तो सरकार क जमेदार है ऐसा सोचकर िनंबय बैठे रहना भारतवािसय कोशोभा नहं देता। समाज को चाहए क वह संपूण श के साथ सरकार का कायभारहलका करने म अपना हाथ बँटाए।”सरकार कामकाज म बाधा उपन करना ौी गुजी को कतई माय नहं था। उनकभूिमका सदैव सहायता क रह। ू चाहे वःथापत का हो या संघ पर लगे ूितबंधका, राय पुनरचना का हो या ूाकृ ितक आपदाओं या वदेशी आबमण का, माऽसरकार का वरोध करने का सूऽ उहने कभी नहं अपनाया। देशभ, लोककयाणतथा राीय एकामता का पोषण- इन िनकष पर आधारत उनका मागदशन रहाकरता था।पूव पाकःतान से आये िनवािसत क कण कहािनयाँ दल दहला देनेवाली थीं। उहसुनकर आंतरक पीड़ा का अनुभव होता था और ऐसे समय िच का ूुध होना भी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी १३१


ःवाभावक ह था। फर भी ौी गुजी उेजत नहं हए। ु आपे के बाहर क जानेवालीआबामक ूितबयाओं को उहने बढ़ावा नहं दया। वे बार-बार कहा करते थे कहम संयम के साथ वधायक कोण अपनाते हए ु ू का हल ढँढ़ना ू चाहए।पूव भारत म राीय ःवयंसेवक संघ क श कम थी। फर भी संघ के ःवयंसेवकने िनःःवाथ सेवाकाय का एक अनूठा आदश समाज के सामने रखा। ौी गुजी ाराकये गये आवाहन का परणाम ःवप समूचे देश के कोने-कोने से धन, व, अनाजतथा जीवकोपाजन के िलए आवँयक वःतुओं का ूवाह वाःतुहारा सहायता सिमितक ओर बहने लगा। पूव पाकःतान म अयाचार का तांता लगभग सालभर चलतारहा। वःथापत क बाढ़ पम बंगाल क दशा म बढ़ती रह। इन वःथापत केिलए िशवर का िनमाण कर उह अन, व, बतन आद आवँयकताओं क पूितकरना, उनके ःवाःय क ओर यान देना, अथपादन क सुवधाएँ उपलध कराना,बालक क िशा के िलए पाठशालाएँ चलाना आद कायकलाप सिमित ारा अखंडप से चल रहे थे। पम बंगाल तथा असम म ःथत िशवर म ८० हजार बंधुओंको आौय ूा हआ ु , डेढ़ लाख लोग को व दए गये तथा १ लाख से अिधक लोगके िलए अनाज और दधू का ूबंध कया गया। इस काय म संघ के ५ हजारकायकता दन-रात जुटे हए ु थे।उपयु कालखंड क एक और उपलध यहां उलेखनीय ूतीत होती है। इन दनसंघ पर से ूितबंध हटने के पात ् गृहमंऽी सरदार वलभभाई पटेल देश-ःथित परवशेष चचा करने हेतु ौी गुजी से वातालाप कया करते थे। ौी गुजी उनके िलएवासपाऽ बने हए ु थे। जब भी कोई वशेष घटना देश म होती, ौी गुजी अपनीराय तथा संघ क भूिमका से उह अवगत कराते थे।जब पूव पाकःतान से आए वःथापत का ू उम तथा ूोभक बना तब सारे देशम ूितबयाएँ ूितविनत होने लगीं। ौी गुजी ने सरदार वलभभाई पटेल को द.५ अूैल को जो पऽ िलखा उसम उहने कहा, “अपने देश म शांित भंग होना यापरःथित का लाभ उठाने के िलए सरकार के व भावनाएं भड़काना सवथाअनुिचत होगा। शांित को बनाए रखना यह हमार नीित है तथा इसी भाव को मन मधारण कर हम पीडत क सेवा कर रहे ह।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३२


द. १२ अूैल को ौी गुजी दली पहंचे। ु ःवयं ौी वलभभाई पटेल से िमलकरसहायता सिमित के काय से उह अवगत कराया।ौी वलभभाई पटेल यह सुनकर बहत ु ूसन हए ु और उहने ौी गुजी से पूवभारत म संघकाय का अिधक वःतार करने का मानस य कयाद. ३० अूैल १९५० को दली के आनद पवत मैदान पर संघूेमी नागरक ाराौी गुजी को १ लाख १ हजार १ सौ १ . क धनरािश संघकाय के हेतु समपत कगयी। ौी महाशय कृ ंण इस कायबम के मनोनीत अय थे। उपःथत गणमायनागरक को संबोिधत करते हए ु ौी गुजी ने कहा, “संघ को के वल पैसा देकरआमसंतु न रह। ःवयं संघमय बनने का ूयास कर।”१२.२ असम म भूकपवाःतुहारा सहायता सिमित का काम करने म कायकता गण यःत थे। कतु उनकसेवाशीलता क मान परा लेने क िनसग को इछा हई। ु द.१५ अगःत को असमम भूकप का जबरदःत ूकोप हआ। ु ूकृ ित के इस आकःमक ूकोप नेअसमवािसय को झंझोड़ दया। भूकप के कारण ॄपुऽ नद का माग ह बदलगया। इसके फलःवप अनिगनत मकान धराशायी हो गये, जमीन म दस-बारह फटचौड़ दरार बन गई, नद पर बने पुल वःत हो गए। सवऽ ऽाह-ऽाह मच गयी।करोड़ पय क हािन हई। ुसदैव के अनुसार अपने ःथायी सेवाभाव का ःमरण कर संघ के कायकता सहायताकरने हेतु दौड़ पड़े। ‘भूकप पीड़त सहायता सिमित’ क ःथापना क गयी। यायमूितकामायाराम बआ इस सिमित के अय थे। ौी गुजी ने पऽ भेजकर ःवयंसेवकको अपनी संपूण श दाँव पर लगाकर पीड़त क सेवा करने के िलए ूोसाहतकया। िसतबर मास म ौी गुजी सिमित के काय का अवलोकन करने के िलएअसम पहंचे। ु इस ूवास के समय उहने ःवावलंबन का संदेश समःत असमवािसयको दया।“समाज यद संगठत तथा अनुशासनब हो तोह अनेक गंभीर संकट का सामनावह कर पाएगा” ौी गुजी के मागदशन क यह दशा थी। संकट क घड़ आने पर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३३


हर समय सरकार या बाहर सहायता पर िनभर रहने क ूवृ उह पसंद नहं खी।साथ ह ‘एक दल’ के प म रहकर काम करना भी उह ःवीकार नहं था। उनक यहकपना थी क ःवयंसेवक समाज म घुलिमल कर, उसे साथ लेकर काम कर।सिमित के सहायता काय क ौी गुजी ने ूशंसा क। एक वशेष िनवेदन ूकािशतकर जन ःवयंसेवक ने बाढ़ से िघरे गांव तक तैरते हए ु पहँचकर ु पीड़त बंधुओं तकसहायता पहँचाई ु , उसक भू-भू ूशंसा भी क। अपने ूाण क परवाह न करते हए ुःवयंसेवक का जुट जाना, समपत होना, अन,व आद के वतरण म अनुशासनका ूदशन करना उह बहत ु आछा लगा। वे ूसन थे।१२.३ विभन परःथितय म१९५० का वष समा होने के कगार पर था। इसी समय १५ दसंबर को गृहमंऽीवलभभाई पटेल का दःखद ु िनधन हआ। ु यह समाचार जब ूा हआ ु तब नागपुर मसंघ के के िय कायकार मंडल क महवपूण बैठक चल रह थी। ःव. वलभभाईपटेल के दय म संघ के ूित जो ःनेहभाव था उससे सभी कायकता परिचत थे।बैठक म शोक ूःताव पारत कर बैठक समा क गयी। ौी गुजी इस रापुष केूित अपना आदरभाव य करने तथा उनके अतम दशन हेतु मुंबई जाना चाहतेथे। मयूदेश के मुयमंऽी पं. रवशंकर शुल के साथ हवाई जहाज से वे मुंबईपहंचे। ु संघ क ओर से ौी गुजी ने लौहपुष वलभभाई पटेल के पािथव शरर परपुंपचब चढ़ाया। बाद म उहने अपने शोक संदेश म कहा,“ौी वलभभाई पटेल क मृयु देश पर हआ ु एक असहनीय आघात है। हम लोगउनके ूेमभाजन रहे ह। इस कारण यह हमारा कतय है क हम अपने देश कोबलसंपन बनाकर अंतगत कलह तथा बा आबमण से देश क रा कर। ऐसा ढ़संकप करना ह उनके ूित सह ौांजिल िस होगी।”कारावास से मु पाने के पात ् डेढ़ वष का समय सवसामाय प से बीता। जगह-जगह सकार होते तो कभी-कभार पथर भी बरसाए जाते। कतु ौी गुजी अवचलथे। सकार के फू ल वे िनवकार तठःथ भाव से ःवीकार करते थे। साथ ह पथरको भी फू ल मानकर उनका ःवागत करने म उह आनंद आता। ूाकृ ितक आपदाओंसे पीड़त बांधव क सेवा, संघकाय का ूसार तथा वैचारक व संघटनामक ूेरणा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३४


देने का काय वे करते रहे। इन सभी कायकलाप का सूऽ एक ह था : अपनेसांःकृ ितक आदश क आधारकिशला पर अपने हदू रा को बलशाली, गुणसंपनतथा परम वैभव के िशखर पर वराजमान करना हमारा कतय है। साथ ह हमदखय ु के दःख ु का परहार और राीय दाियव के िनवाह क मता ूदान कर लोगको काय ूवृ करना है।१२.४ भारतीय जनसंघ का उदयसमाज पुष को ह के वल ौी गुजी ने अपना उपाःय देवता माना था। ौी गुजी जोभी करते उसम उनका एक ह िनत मंतय रहा करता था- ःवयं को तथा संघ कोराजनीित से, सा ःपधा से दरू रखना। कं तु भारत का संवधान २६ जनवर १९५० सेकायावत हआ। ु तदनुसार पहला आमचुनाव १९५२ म हआ। ुचुनाव नजदक आने पर देश का वातावरण गम हो गया। ःवतंऽता ूाि के साथ हराजनीित समूचे सावजिनक जीवन पर छा गयी। संघ के भीतर भी गभीर अतूारभ हो गया। भीतर और बाहर दनो ओर से ौी गुजी पर दबाव पड़ने लगे कसंघ को राजनीित म भूिमका िनभानी चाहए। ूितबध काल म ःवयं सरदार पटेल नेइस बारे म काफ आमह कया था। कतु गुजी राजनीित से अलग रहने क अपनीभूिमका पर चटान क तरह अडग रहे। ूितबध उठने के बाद संघ के अनेककायकताओं के मन म भी यह ू उठा क या राजनीित से अलग रह पाना संभवहोगा? पछले अयाय म हम बता चुके ह क ौी गुजी ने ऐसे ू का बहत ु हतक यु समाधान करते हए ु सा और दल क राजनीित से अलग रहकर िनंकामसांःकृ ितक संगठन साधना क आवँयकता का ूितपादन कया था।कतु जीवन म सा क भूिमका ूभावी होती जा रह थी। कांमेस और के ियसरकार म पं. नेह और सरदार पटेल के बीच वैचारक दर ू बढ़ती जा रह थी।कांमेस अय पद के िलए नेह और पटेल के बीच छायायु म पटेल समिथतूयाशी राजष पुषोमदास टडन ने नेह समिथत आचाय कृ पलानी को हरा दया।इसके पूव पूव पाकःतान म हदओं ु पर भार अयाचार होने पर लाख क संयाम हदू शरणाथ प. बंगाल म आ गये। इस ू पर भी नेह और पटेल का मतभेदउभर कर सामने आ गया। सरदार पटेल इन शरणािथय के पुनवास के िलएपाकःतान से भूिम मांगने के पधर थे जबक नेहजी ने पाकःतान के ूधानमंऽी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३५


िलयाकत अली खान के साथ ८ अूैल १९५० को अयत अपमानजनक समझौते परहःतार कर दये जसके वरोध म बंगाल के डॉ. शामाूसाद मुखज और के .सी.िनयोगी ने नेह मंऽमडल से याग पऽ दे दया। ये दनो मंऽी सरदार पटेल कनीितय के समथक थे। उनके हटने से सरकार म सरदार क ःथित थोड़ कमजोरहई। ु कतु कांमेस संगठन पर उनक पकड़ मजबूत थी। दसरा ू ूदशन कांमेस अयके चुनाव म हो गया। सरदार का ःवाःय तेजी से िगर रहा था और १५ दसबर१९५० को उनके िनधन के साथ सरकार और संगठन दोन पर नेहजी का िनंकं टकवचःव हो गया। नेहजी क हठधम के सामने पुषोमदास टडन को अय पदसे यागपऽ देना पड़ा और पं. नेह ूधानमंऽी के साथ-साथ काँमेस अय भी बनबैठे। ारकाूसाद िमौ जैसे कई पटेल समथक नेता खुले विोह के राःते पर उतरआये।तेजी से बदलते इस घटनाचब के कारण संघ के कायकताओं का एक वग एवं अयरावाद तव एक रावाद राजनीितक दल क ःथापना क आवँयकता तीोता सेअनुभव करने लगे। इसी छटपटाहट म से मई १९५१ म जालंधर म कु छ संघकायकताओं क पहल पर भारतीय जनसंघ क ःथापना हई। ु लगभग उसी समयबंगाल म डॉ. शामाूसाद मुखज ने भी जनसंघ क शाखा ःथापत क। उहने ौीगुजी से बार-बार भट करके आमह कया क संघ को नये राजनीितक दल को पूरासहयोग देना चाहये। ौी गुजी ःवयं कभी इस मत के नहं थे क संघ राजनीित मकू दे और संघ के संगठन को राजनीित से पूणतया अलग रखते हए ु कु छ चुने हए ु ौेकायकताओं को राजनीित के ेऽ म ूयोग करने के िलए मु कर दया। ौी गुजीक ओर से यह छट ू िमलते ह िसतबर से अू बर १९५१ म विभन ूात मभारतीय जनसंघ क शाखाओं का जाल बछ गया और १२ अू बर १९५१ को दलीम पहले राीय समेलन म अखल भारतीय जनसंघ का ूादभाव ु हो गया और वहअपना घोषणा पऽ लेकर चुनाव म उतर गया।१२.५ चुनावी कोलाहल से दरूकतु ौी गुजी को चुनाव ूचार के कोलाहल म कोई रस नहं आता था। उटे वेएक दसरे ू के व आरोप-ूयारोप को सुनकर यिथत होते थे। उन दन उनकामन बहत ु अशांत था। इसिलये वे इस सािभमुखी चुनावी वातावरण से परे रहने कासंकप ले, वे पुणे के पास िसंहगढ़ नामक िशवाजी कालीन दग ु पर िनवास करने चले<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३६


गये। यहां लोकमाय ितलक के िनवास ःथान पर द. २५ दसबर १९५१ से १८जनवर १९५२ तक, याने २५ दन वे रहे।इस कालाविध का उपयोग ौी गुजी ने गीता, उपिनष तथा अय मौिलक मंथ कापठन करने के िलए कया। िचंतन, मनन, पठन म ह वे यःत रहा करते थे। अपनीसहयोगी मंडली के साथ बैठकर वे िनय ूित गीता के एक अयाय का पठन,तदपरात ु चचामक ववेचन भी करते थे।सुबह-शाम कले पर घुमने जाना, परबमा करना, यान धारणा करना यह उनकादन-बम रहा था ूकृ ित के ववधा प का सााकार करना भी उनक वशेषअिभिच थी। िसंहगढ़ के ऊँ चे टले पर पासन क ःथित म बैठकर सूयदय औरसूयाःत देखते समय पूव-पम क ःवणम तथा गुलाल भर आभा म उह ॄाडका प शायद दखाई देता हो, कह नहं सकते। कतु ऐसे समय ौी गुजी केमुखमडल पर ःवण क आभा दखाई देती थी। मान सूयतेज ने मुख को आलोकतकर िलया हो। आंतरक आनदानुभूित के फलःवप वे सदैव ूसनिच दखाई देते।मकर संबमण के उसव पव पर ौी गुजी ने गढ़ पर रहनेवाले अय लोग को अपनेिनवास पर आमंऽत कया। अपने हाथ उह लडू बाँटे। पूछताछ क।चुनावी धूमधाम-कोलाहल से परे रहने हेतु ौी गुजी िसंहगढ़ पर रहे जर, कतुचुनाव क राजनीित म संघ क भूिमका या होगी? यह ू पूछा जाने लगा। संघ केजो ःवयंसेवक अब मतदाता क उॆ के थे, वे चुनाव से परे रह नहं सकते थे। संघक भी यह अपेा नहं थी। इस कारण संघ के सरकायवाह माननीय भैयाजी दाणी नेइस दशा म मागदशन करते हए ु कहा, “संघ के ःवयंसेवक राीय संःकार म पले-बढ़ेह। अतएव उह ुि, संकु िचत तथा सांूदाियक संघष से हटकर रहना होगा। इसीूकार लोग ेषमूलक ववंस म िच रखते ह, उह कसी ूकार क सहायता न द।संघ का काय िनःःवाथ देशसेवा का है। उसी क ओर हम यान द। साथ ह जो पदेशहत चाहता है उसी के प म मतदान कर।”चुनाव समा होते ह ौी गुजी पुन भारत-ॅमण कर संघ का वःतार करने तथाएकता का संदेश सवऽ पहंचाने ु के िलए िनकल पड़े। िसंहगढ़ क पथरली सीढ़याँ<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३७


उतरते समय भवंय म संघ को या करना है, इस क योजना उनके मन म तैयारथी। ौी गुजी क भारत परबमा पुनः ूारंभ हई। ु१२.६ चुनाव परणाम के परूेआय म१९५२ के चुनाव म मनःकपत यश न आने के कारण अनेक कायकता अयािधकिनराशा क मनःःथित म थे। अपनी िनराशा उहने पऽ के मायम से ौी गुजीतक पहँचाई ु भी। ौी गुजी ने अपने उर म कायकताओं का जस ूकार मागदशनकया उसके नमूने के प म एक कायकता को िलखे पऽ का मुयांश यहाँ उ-घृतहै-“मुझे वास है क आप चुनावी राजनीित के ूित मेर अिच से भिलभाँित परिचतह। जो चुनाव म हारे ह, वे परणाम को खेल-भावना से महण कर शोक-लेश सेऊपर उठकर, जय-पराजय को समभाव तथा अनासपूवक काय करने क अपनीसंःकृ ित को सची भावना से ःवीकार कर। जहने वजयौी का लाभ कया है, उहआनद मनाने का अिधकार है, कतु गव से फू लने का नहं। पराजत लोग कोःवाभावक प से दःख ु होगा, कतु िनराश और हतोसाहत होने का कोई भी कारणनहं दखता। सदैव क भाँित यह एक ह रा के विभन दल के बीच एक खेल है,जसे पूण मैऽी एवं ॅातृव क भावना से ूणोदत होकर खेला जाना चाहए।चुनाव-ूचार म ःवाभावक प से कु छ उमता व कटता ु उपन हो ह जाती है।परतु मेरे वचार से ये सभी अवांिछत भाव तकाल समा होने चाहए और ‘हम एकरा व एक मातृभूिम क सतान ह’ – यह उकट भाव िनमाण होना चाहए। सभीको दलीय भावनाओं से उठकर पारःपारक सहयोग से समाज हत के काय म जुटनेहेतु कृ तसंकप होना चाहए। वःतुतः सहमित का ेऽ बहत ु वःतृत है और मतभेदका दायरा अित सीिमत, नगय-सा है इसी के सहारे हमारा लोकतंऽीय ःवपइसको ह न कर देश म अराजकता िनमाण करने के इछक ु तव के समःतआघात सहकर भी िचरंजीवी रह सके गा, इसम संदेह नहं।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३८


१२.७ हमारा वोट कसे ?आगे सन ् १९५७ के चुनाव के पूव जनता को कस ूकार मतदान करना चाहए इससंबंध म ौी गुजी का एक लेख ‘हमारा वोट कसे?’ इस िशषक से ूकािशत हआ ु थाजसका सारांश यहाँ देना उपादेय होगा। ौी गुजी ने िलखा था-आगामी कु छ दन म देशवासी मतदान ारा लोकसभा एवं विभन वधानसभाओंहेतु ूितिनिधय का चुनाव करगे और पाँच वष के िलए उह देश का शासन सपदगे। ५ वष का समय एक दघ अविध है, जसम ूितिनिधय क ूवृय के आधारपर जनता क बड़ हािनयाँ या लाभ हो सकते ह। हमारे संवधान म ऐसे ूितिनिधयको वापस बुलाने क कोई यवःथा नहं है, जो मतदाताओं को संतु न कर सकअथवा जो चुनाव के समय जनता को दए गए आपातरय आासन से मुकर जाय।ऐसी वफलता और कभी-कभी जनेछा क मनमानी अवहेलना सामाय बात हो गईहै। इन दोन ःथितय के बावजूद, ऐसा कोई तंऽ मतदाताओं के पास नहं है क वेअपने ारा िनवािचत ूितिनिधय के वचार एवं बया-कलाप से असहमत होने परउह वापस बुला सक ।१२.८ वापस न बुला सकने का दंूभाव ुएक बार चुन जाने के बाद वे पूरे पाँच साल के िलए सुरत प से लाभूद एवंआरामदायक ग पर बैठ रह सकते ह- यह जानकर वे और उनका दल अध-िशतएवं अप-ानी मतदाताओं के समुख मायाजाल फै लाते ह ह क यद उह चुनेजाने का ःवणम अवसर ूा हो जाय, तो वे पृवी पर ःवग उतार लाएँगे। ूेम औरयु म सब उिचत होता है और चूँक चुनाव अपने ूितय के व यु कभाँित ह लड़े जाते ह, अतः चुनावी वायद क पूित मान उनके उलंघन म हसमझी जाती है। इसम कसी को कोई अनैितकता भी दखाई नहं पड़ती। अतःलुभावने झूठ के जाल म फँ सकर मतदाताओं को अपने पाले म लाने क होड़ सभीूयािशय म लग जाती है। ऐसे य और दल जनम झूठ का यह अिभयान चलानेक अिधकतम ूितभा होती है; अिधकािधक मत को अपनी ओर आकषत कर साहिथया लेते ह और उनसे कये गये वायग का पूण ितरःकार कर सा का मनमानाउपभोग करते ह। इसके कु छ अपवाद तो हो सकते ह; परतु पछले अनुभवके आधारपर ऐसे लोग के चुने जाने के अवसर रेिगःतान म हरे टापू क भाँित अयप हहोते ह।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१३९


अतः मतदाता का दाियव बहत ु बड़ा है, यक उसके पास आगामी पाँच वष के िलएदेश और समाज का भवंय मुहरबद करने क श है। एक बार कसी के प मिनणय दे देने के बाद अपनी गलती सुधारने, िनणय म परवतन करने अथवा उससेउ-भूत सवनाशी ूभाव का िनराकरण करने का कोई माग शेष नहं रह जाता। अतःइस अित महव क समःया के ूित मतदाता को अपने सपूण ववेक से ढ़तापूवकवचार करते हए ु चुनाव करना होगा।१२.९ दो अ-सयदेश के अमणी लोग मतदाताओं को समझाने बुझाने म यःत ह। इस सबध म दोूमुख िसात सामने आ रहे ह। दोन िसात उतने ह पुराने ह; जतनी कवधाियकाओं हेतु आम चुनाव क लोगतांऽक ूणाली। उनम पुरातन क ह पुनरावृहै, नवीनता कु छ नहं। समाचार पऽ के अनुसार इनम से एक है पडत नेह काूितपादन क य के गुण-दोष भूलकर दल अथात ् उनक कांमेस को चुना जायऔर दसरा ू है चबवत राजगोपालाचाय का कथन क दल क उपेा कर य कसमीा एवं उसके चरऽ का आकलन कया जाय। राजाजी ने ठक ह कहा है,यक अततः जनूितिनिधय का चरऽ ह वधाियका के अदर और बाहरसवािधक महवपूण होता है।कतु उ दोन वचार आंिशक प से ह सय ह; यक उम चरऽवान ययसे रहत तथा राहत म िनःवाथ समपण के अभाव म कोई भी दल िसफ ऊँ चीघोषणाओं, लबे-चौड़े दाव और जुलूस के आधार पर एक लकवामःत अनुपयोगी औरहािनकारक शरर से अिधक कु छ नहं हो सकता। दसर ू ओर, समान लआय औरकायबम से परःपर-सब चरऽवान, कतु कसी संगठत दल से न जुड़े हए ु लोगऐसे मशीनी पुज के समान ह, जो अपने आप म सम होते हए ु भी कसी सामूहककाय के िलए अनुपयोगी तथा उपलध-अजन के िलए अम होते ह।अतः इन दोन वचार को एक साथ लेना होगा और राीय हत के िलए समपत,ःवाथरहत, योय, सामूहक कायावयन म समथ तथा सामजःयपूण राीय वचारसे अनुूाणत चरऽवान लोग के दल को चुनना होगा। इन दोन के अतर को नपहचान पाने पर पछतावा ह हाथ लगेगा। ऐसी ःथित म मतदाता ठक से समझ लेक वह कस दल का समथन करे और कै से ूयाशी को चुने।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१४०


१२.१० एकदलीय तऽ कसी भी आवरण म ःवीकाय नहंचुनाव मैदान म उतरे ूमुख दल म से कु छ ने समाजवाद अपना आदशवाद माना है।कतु जमनी का समाजवाद नाजीवाद म और इटली का समाजवाद फासीवाद म बदलगया। इनके उथान-पतन का इितहास तथा उसके फलःवप एकदलीयअिधनायकवाद के दंूभाव ु सववदत ह। अपने देश म इसक वह दःखद ु गाथा नहंदोहरायी जाएगी, इसक कोई गारट नहं। ूयेक नागरक को बहमूय ु ःवतंऽता कसुरा सतक तापूवक करनी चाहए। उसे न तो अपनी अःमता को राजतऽीयअिधनायकवाद के हाथ िगरवी रखना चाहए और न ह ःवयं को चद ठकर परबका दास बनने क छट ू देनी चाहए। अतः, तथाकिथत समाजवाद आदश के बीचसे सावधानीपूवक लआय का सधान करना चाहए जो असामाजक व अराीयिसात म िल ह।सायवाद दल सी खेमे के समथक ह और भारत म उस ूणाली क ःथापना काःवन देख रहे ह। हाल म हंगर म घट घटनाओं से इस ूणाली क ःप कपना होसकती है। उहने अपने जीवन के चालीस वष म ऐसे रपात व सामूहकहयाकाड आद देखे ह, जनक बराबर मानव सयता के सवािधक अँधेरे एवं बबरकाल म भी नहं िमल सकती। इस आम-घोषत ूगितशील वचारधारा के भयानकूभाव औसत आदमी को दास बनाने, संवेदनाओं, भावनाओं व वचार पर कठोरिनयंऽण लाने तथा ःवातंय-दमनकार तरक से मानव को िनजव पुजामाऽ बनाकररखने म देखा जा सकता है। यह हम लोग का ूचीनतम वरासत के बलकु लूितकु ल है। वाःतव म सायवाद और समाजवाद म हम कोई भी मा नहं है,यक दोन ह उस ूितबयावाद ूबया क वकृ त सतान ह, जो सभी उपादनसाधन, सपदा तथा राजसा को चद हाथ म समेटकर जीवन के सब पहलुओं परबमशः बढ़ते जाते कठोर िनयंऽण ारा यगत जीवन को िनजव एवं िनरानदबनाना चाहते ह।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी१४१


१२.११ हदू-वरोधी थैली के चटे-बटेये दल अहदू होने पर गव करते ह। हमारे अःतव व समरसता क जड़ कोखोखला कर हमार हदू जीवन-पित के वरोधी कानून (जो गौ के ूित हमारसमानपूण भावना, संःकृ ित तथा विश धम के वरोधी ह) को मुःलम समाज केप म लागू करते ह। यह पपातपूण रवैया कांमेस ारा अपने ूयाशी-चयन ममुःलम आरण के साूदाियक कोण, उनके आदोलन को ूोसाहत करनेइयाद म उनके कु सत हदू-वरोध का सपूण वीभसता के साथ पदाफाश करताहै।यद सा क बागडोर ऐसे अहदओं ु (ूायः हदू वरोिधय) के हाथ म चली गयी,तो हदू समाज, धम व संःकृ ित और हदओं ु के अिभलाषत मानबदुओं केसमूलोछेदन का संकट पैदा हो सकता है। कभी-कभी कु छ सचमुच अछे य उनकेूयाशी बनकर चुनाव म उतर सकते ह। मतदाता यद के वल ऐसी अछाई (!) से हिनदिशत होगा तो वे ूयाशी िनत प से वजय लाभ करगे। कतु, उस दल केअनुशासन म फँ सकर उनके हदू वचार, आदश, ौा एवं गुण कसी काम नहंआएंगे और वे उस दल-तऽ म पूणपेण अःतवहन हो जायगे।१२.१२ उिचत चयन के िलएम उस महान ् हदू समाज का आहवान कर रहा हँ ू, जसके िलए अथक ूयास करनामेरा धम बन गया है। उस पुरातन-िचरतन हदु रा को जसक आराधना म दयश क सची अिभय के प म करता हँ ू, म ूाथना करता हँ ू क वे सभीआमचेतना से अनुूाणत तथा ःवतंऽ व अकु तोभय होकर अपने मतािधकार काूयोग कर तथा य एवं दल के समथन हेतु कसी के बहकावे म न आय और पथसे रंचमाऽ भी डगे बना अपने ूितिनिधय का चुनाव कर। वे सतक एवं ववेकशीलबन और संकपब होकर अपना मत ऐसे दल और य को द, जो हदू समाजतथा हदू-हत के ूित समपण भाव रखनेवाले अनुदारता से मु, ूगितकामी,वशालदय व उदारवाद, घृणारहत तथा मतभेद रखनेवाले लोग के ूित भीअवरोधी ह। अिनवायतः ूभावी हदू, उवल वैयक व राीय चरऽ-सपन,पदाढ़ या पदरहत होकर भी रा-समाज क सेवा के िलए कृ तिनय, पद, ूिता,पैसे, ूिस व यश क चाह से िनिल, समरसतापूण सामुहक कायशैली के महवके किदान, मातृभूिम व उसक सतान के ूित आःथा व समपण के भाव से<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी142


आलावत तथा अपने िनजी सुख-दःख ु को पुर तरह भुलाकर कठनतम काय केगुतर दाियव का िनवहन करने म सम हो। ऐसा आचरण करने पर ह मतदाताका वोट यथ नहं जायेगा। इस सावधानी से ह मतदाता अपनी ूय मातृभूिम-भारतमाता के पुंजीभूत वैभव समानपूण रा जीवन क सुढ़ आधारिशला रखने मसहायक होने का अलय लाभ ूा कर सक गे।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी143


१३ ःवदेशी और गो-रा अिभयान१९५२ का िसतबर मास। नागपुर म राीय ःवयंसेवक संघ क अखल भारतीयूितिनिध सभा क बैठक हई। ु इस म दो महवपूण ूःताव पारत कये गये उसमएक ूःताव ‘ःवदेशी’ के वषय म था। वदेशी सा के िनंकासन के ५ साल केपात ् संघ ारा फर से ःवदेशी को ूःताव का ूमुख मुा बनाना कहाँ तक तकसंगत है? यह ू अनेक के मन म उभरना ःवाभावक ह था। संघ ूारंभ से हःवदेशी का पुरःकार करता आया है। काँमेस ने भी महामाजी के नेतृव म ःवदेशीका अिभयान चलाया था। लोकमाय ितलक युग म ःवतंऽता आंदोलन क जोचतुःसूऽी योजना बनी थी उसम ःवदेशी एक अहम ् मुा था। डॉ. हेडगेवार जी ने तोसंघ के आचार तथा वचार का आधार ‘ःवदेशी चेतना’ को ह माना था और ःवयंऐसे सभी आदोलन म आगे बढ़कर भाग लेते थे।१३.१ ःवदेशी भाव जागरणसंघ का रा संबंधी वचार ःवदेशी, वज ःवदेशी, उसव ःवदेशी, शाररक िशाूणाली भी ःवदेशी थी। डॉटर जी ःवयं ःवदेशी का पालन करते थे। वदेशी वउहने कभी धारण नहं कये। साथ ह वदेश क वचारधाराओं को उहने कभी नहंअपनाया। आचार तथा वचार ूणाली सवथा ःवदेशी हो, यह उनका आमह रहा करताथा। संघ के ूारंिभक कालखंड म कु छ अंमेजी पितय का अनुसरण भले ह कयागया हो कतु वह ताकािलक था। संघकाय के िलए उपयु पााय पितय काताकािलक अनुसरण करने म वे हचके नहं कतु ऐसा करते समय उह मानिसकगुलामी या हनताबोध का अनुभव कभी नहं हआ। ु कारण ःप था। पााय पितयके ःथान पर ःवदेशी कायपित को अपनाने का उनका उेँय पूव से ह सुिनतथा। हआ ु भी उसी तरह जैसा क वे मनःपूवक चाहते थे। भवंय म अंमेजी आाओंका ःथान संःकृ त आाओं ने िलया। घोष भी वशु भारतीय शाीय संगीत म ढालागया।ौी गुजी ने राजीवन के संदभ म ःवदेशी वचार का संःकार ह ःवयंसेवक परकया। कतु ःवतंऽता के पात ःवदेशी क भावना लु सी हो गई। ःवदेशी काअितशयो या अयावहारक आमह नहं होना चाहए यह ौी गुजी को भी मायथा। इस कारण यद कोई डमनुमा रेतघड़ को गले म बाँधकर घूमने का आमह करे<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी144


तो इसे वे अयावहारक मानते थे। कतु इसका यह अथ कदाप नहं था क ःवदेशीके आमह म पूर ढल दे द जाये। ःवदेशी के संबंध म अपनी भूिमका ःप करते हए ुौी गुजी ने कहा, “ःवाधीनता ूा होने के पूव वदेशी शासक के ूित हमारे मन मघृणा थी, इस कारण ःवदेशी के ूित जनता के मन म ःवाभावक आकषण था।परतु अंमेज के जाते ह वदेशी वःतुओं का अिधक माऽा म ूयोग होने लगा;यक ःवाधीनता पूव ःवदेशी क भावना अंमेज वरोध दशाने का के वल एक साधनमाऽ थी। ःवदेशी के ूेम का आधर वशु तथा भावामक राूेम नहं था।”इस वचार-ूवण तथा ःवदेशी क सुिनत परभाषा करनेवाले भाषण म ौी गुजीने लोग म ःवदेशी का ूचार सजग रहकर करने के िलए कहा है। संघ ारा पारतूःताव म यह भावना य हई ु है। ूथम हम ःवयं ःवदेशी का ढ़ ोत ल और बादम लोग को इस दशा म ूवृ कर, ऐसा आदेश ःवयंसेवक को दया गया।ौी गुजी कहा करते थे क ःवदेशी से जुड़ा ूेम रा का ःथायी भाव होना चाहए।उनक अपेा रहा करती थी क सवसामाय छोट-छोट बात म भी यह भाव ूगटहो। ववाह समारोह म सूट-बूट पहनकर वदेशी ठाठ का ूदशन उह पसद नहं था।ववाह का िनमंऽण, कायबम पऽका, अिभनंदन संदेश अंमेजी म छापना उह कतईरास नहं आता था। पराधीन मानिसकता से उपन पराय का अंधानुकरण करने कूवृ से उह अयािधक िचढ़ थी। वदेश म होनेवाली ी-सदय ःपधा का अनुकरणकर जब ‘िमस इंडया’ का चयन होने लगा तब उहने एक बार कहा था, “We reallymiss India in this whole affair.”कतु वदेश म कु छ समय रहकर भारत म लौटनेवाल से उनक यह अपेा अवँयरहती थी क वहाँ के जीवन म ूगट होनेवाली सामाजक जदादली, उसाह, आपसीवास, ूेम आनंद आद गुण का परपोष वे यहाँ अवँय कर।अंधानुकरण को लआय कर एक बार उहने कहा क कतनी अ-भूत बात है कहमने पााय सयता के के वल भे बा ःवप को ह महण कया है। उनके राीयगौरव तथा ःवदेश भ क भावनाओं क ओर, जो शांितकाल या वप कःथितय म समान प से पमी लोग क ूयेक बया को अनुूाणत करती ह,हमार जाती ह नहं। कु छ दशादय पूव इंलैड को सवतोमुखी सपनता औरवैभव के बावजूद आिथक संकट का सामना करना पड़ा। इंलैड के सभी नेता इसचुनौती का सामना करने के िलए एक-मत और एक-दय होकर जुट गए। इस हेतु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी145


उहने ःवदेशी क भावना को पुनजीवत कर आिथक सवनाश से अपने देश कोबचा िलया।वे हदू जीवन-पित का आमह रखते थे। खान-पान, वेशभूषा, तीज-यौहार बोलचालआद सभी बात म ःवदेशी पित का आमह उहने अनेक बार य कया है।भोजन के एक ूसंग का संःमरण उनके ःवदेशी एवं ःवािभमानी वृ पर उमूकाश डालता है। मिास म व हदू परष के तवावधान म एक वपरष काआयोजन कया गया था। समारोप के दन सबके एकऽ भोजन क यवःथा एक मंडलकायालय म क गई थी। भोजन क तैयार ठक से हई ु है या नहं, यह देखने के िलएौी गुजी जरा जद ह उस मंडल कायालय म पहँच ु गये। उहने देखा क वहाँ तोमेज-कु स लगाकर पााय ढंग से यवःथा क जा रह है। ौी गुजी बड़े नाराजहए। ु उहने कायालय यवःथापक से पूछा क “आपके यहाँ पीढ़े आद नहं ह?”कायालय यवःथापक ने कहा, “ह य नहं। एक नहं अनेक पंगत बैठ सकती हइतने पीढ़े हमारे यहाँ ह।” तब ौी गुजी ने सूचना द क “इन मेज-कु िसय काजंजाल यहाँ से हटाओ और पीढ़े बछाकर पंगत क यवःथा करो।” सारे ूबधकतुरत काम म जुट गये। बैठने के िलए पीढ़े, थाली रखने के िलए पीढ़े, अपना,अगरबी आद लगाकर हदु ठाठ क यवःथा क गई। संतु होकर ौी गुजी नेकहा, “अब हई ु सह अथ म वपरष के भोजन क तैयार।”भारतीय पोषाक पहनने से अपनी इजत कम हो जायेगी वह हमारा उपहास होगाऐसा कहनेवाल को उनका उर था, “ूिता कपड़ पर नहं, अपनी गुणवा औरसामय पर अवलबत होती है। हम अपनी पितय का अवलबन कर तो वदेिशयम भी हमारे बारे म आदर क भावना ह िनमाण होती है।” इस संदभ म ौी गुजीअपना ःवयं का एक अनुभव सुनाते थे। वे कहते ह, “म नागपुर म ःकॉटशिमशनरय ारा संचािलत एक कालेज म पढ़ता था। एक बार हम वािथय नेपूणतः महाराीय पित के भोजन का कायबम तय कया। इसके िलए ूाचाय ओरअय दो यूरोपीय ूायापक को िनमऽण दया और उह बताया क धोती पहनकरउघाड़े बदन पीढ़े बैठना होगा। ूाचाय का ईसाईयत का अहंकार आड़े आ गया औरउहने हमारा िनमंऽण अःवीकार कर दया। कतु अय दो वयोवृ ूायापक नेिनमंऽण ःवीकार कया। यह नहं, ूाचाय को भी उहने बताया क “हमारे वाथजब स-हेतु से ूेरत होकर हम बुला रहे ह तो जाने म या अड़चन है?” ूाचाय भी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी146


तैयार हो गये। इन तीन यूरोपय ने धोती पहनकर उघाड़े बदन महाराीय पित सेहम लोग के समान ह हाथ का उपयोग करते हए ु भोजन कया। अपनी पित कायोय अिभमान व आमह रखने से उन दन भी ऐसा अछा अनुभव आ सका।”ौी गुजी का ःवदेशी संबंधी यह यापक वचार िनजी चचा व बैठक म सदा यहआ ु करता था। कालेज युवक से चचा म उहने कहा, “तण म आधुिनक फै शनहै- आिधकािधक ैण दखाई पड़ना।” अंत म ौी गुजी ने एक ह वाय कहा- “Allthis must go root and branch.” (ये सभी बात समूल न होनी चाहए)। वािथयम ैणता बढ़ना वनाश का लण है यह बताकर वे चेतावनी देते थे, “जगत ् काइितहास साी है क मनुंय म अपने शरर को कोमल बनाये रखने क ूवृ केकारण ह रा का वनाश होता है। ृांस, रोम और अय कतने ह रा इसी कारणन-ॅ हो गये। िशवाजी ारा ःथापत साॆाय भी आगे चलकर खेल-तमाश वनाच-गान के कारण ह न हआ। ु ऐसी बात म लोग फँ सते ह और पराबम भूलजाते ह।” संघ शाखा का ःवदेशी प भी उनके बोलने का वषय रहा करता था।ःवभाषा और सुसंःकार ःवदेशी जीवन का ह भाग है। ौी गुजी इन दोन के बारे मबड़े संवेदनाशील थे। एक संपन हदू गृहःथ ने अपने लड़के को अंमेजी िसखाने केिलए एक अंमेज ी क िनयु क। लड़के को अछ अंमेजी बोलनी आये, यह उसस-गृहःथ क इछा थी। इस संबंध म बोलते हए ु ौी गुजी ने कहा, “अंमेजी बोलनेक और बाद म अंमेजी वचार करने क आदत लग गई तो यह लड़का कभी सचाराभ नहं हो सके गा। अंतःकरण से अंमेज का गुलाम ह बना रहेगा।”ौी गुजी जब के रल म थे तब एक शाखा पर बाल ःवयंसेवक को एक खेल खलायागया। ौी गुजी ने बाद म एक बाल ःवयंसेवक से पूछा, “इस खेल का नाम याहै?” उसने कहा “दप बुझाना।” शाखा म इस नाम का खेल ौी गुजी को चा नहं।उहने एक वयःक ःवयंसेवक से पूछा, “इसने खेल का नाम ठक बताया?” उर हाँम आने पर ौी गुजी ने कहा, “खेल का इस ूकार का नाम नहं होना चाहए।हमार संःकृ ित म दप बुझाना अशुभ माना जाता है। हमारे यहाँ कहते ह ‘ान कादपक ूविलत करो।’ संतवाणी है क, ‘ानदप बुझने मत दो।’ खेल म भी यन हो, नाम संःकार देने वाले ह होने चाहए।” दसरे ू दन खेल का नाम बदलकर‘आहवान’ कर दया गया। ऐसी थी ौी गुजी क ःवदेशी क धारणा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी147


१३.२ बातकारय के ूितइसी वष मई महने म पुणे ःथत ‘अिभनव भारत’ नामक बांितकारय क संःथा कासमापन कायबम संपन हआ। ु ःवातंयवीर सावरकर क ूेरणा से सश ःवतंऽतासंमाम करने हेतु इस संःथा क ःथापना हई ु थी। कतु ःवाधीनता ूा होते ह इसबांितकार संःथा का ूयोजन समा हो गया। इस कारण उपयु समापन समारोहका आयोजन कया गया था। ःवतंऽता सेनानी वीर सावरकर ःवयं इस अवसर परउपःथत थे। ःव. डॉ.हेडगेवार जी का ‘अिभनव भारत’ संःथा के साथ ह बांितकारआंदोलन से गहरा संबंध रहा था। इस कारण ौी गुजी को वशेष प से आमंऽतकया गया था। इस ऐितहािसक समारोह के िलए ूचंड जनसमुदाय इकठा हआ ु था।सेनापित ौी बापट अय थे। मनोनीत अय महोदय ने ूारंभ म ह वाओं परपाबंद लगा द क हर वा के वल दस िमनट म अपने वचार रखे।आय क बात यह क ौी गुजी ने के वल दस िमनट म अपना ओजःवी भाषणसमा कया। ःवतंऽता ूा होने के पात ् भी बांित क योित मन म ूविलतरखने क आवँयकता है, यह वचार उहने ूभावी प से ौोताओं के सामने रखा।ौी गुजी कहा,“अपने समाज म ऐसे भी लोग ह जो ःवतः को अिधक बुमान मानकर ढंढोरापीटते ह क ये बांितकार िसरफरे पागल तथा गुमराह ह। वाःतवकता यह है कइन तथाकिथत बुवादय को बांितकारय क देशभ क उमता असहनीय होतीहै। जहने युवा पीढ़ के दय म बांित क वाला ूविलत करने के एक माऽयेय के िलए अपना संपूण जीवन समपत कर दया, ऐसे डॉ. हेडगेवार के दशाएमाग पर चलने का सौभाय मुझे ूा हआ ु है। इस कारण बांितकारय कोआदरपूवक अिभवादन करना मेरा अहोभाय है।”“सुःथर बांित क योित िनय ूविलत रखने क भी िनतांत आवँयकता होती है।यद हम दन-दखय ु का जीवन सुख से भरना है, वाःतवक अथ म सुखी और समृभारत क िनिमित करनी है, अराीय भावनाओं का िनमूलन कर भारत का अथातहदू रा का जीवन परपूण करना है तो आज के इस पावन अवसर पर हम अपनेमन म संकप कर, ढ़ िनय कर क यावचंिदवाकरौ इस रा का पवऽ भगवावज हम सदा के िलए फहराते रहगे।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी148


ौी गुजी हदव ु के बारे म बहत ु आमह रहा करते थे। हदव ु तो उनके दय मूविलत ऐसी ूखर वाला थी जो बढ़ती, तीो होती, कतु कदाप मिलन नहंहोती। अपने मींमकालीन संघ िशा वग म ौी गुजी ने हंदव ु पर अपने वचारके ित करते हए ु सूऽ प से कहा क हम हदव ु से छोटा कु छ भी नहं चाहएऔर अित वशालता के पीछे लगना इस समय अनुिचत होगा, िनरथक होगा। अयाितथा अितयाि इन दोन छोर को टालते हए ु काम करने म ह यावहारक बुमाहै। इस संसार म िनहत उम शय म भी मानवता जागृत करने का कायसंगठत ओर समथ हदू समाज ह कर सके गा। हदू संगठन का वचारमानवतावाद के िनकष पर संकु िचत िस होगा इस वचार को वे कोई महव नहं देतेथे। यह वचार उह सवथा अमाय था।१३.३ साधुओं के समौी गुजी के एक और भाषण क ओर हम यान देना चाहए। इसका एकमाऽ कारणयह है क दस वष के बाद जन देशहतकार योजनाओं का सूऽपात उहने कया,उनके बीजप वचार इस भाषण म हम दखाई देते ह।एक सावभौम साधु समेलन अु बर के महने म कानपुर म आयोजत कया गयाथा। ौी गुजी वशेष प से आमंऽत थे। इस अवसर का लाभ उठाते हए ु ौी गुजीने साधु-संत के सम अपनी एक आंतरक भावना ूगट क।अपने समाज म अनिगनत साधु-संयासी मठ म मठािधपित के नाते रहते है। यान-धारणा, पूजा पाठ, ईर भ के मायम से वे यगत मु या उार के िलएसाधना करते ह या अय को मागदशन करते ह। कतु अपने समाज के बारे म वेकभी सोचते दखाई नहं देते। यह समाज सुरत तथा ूगितशील कस तरह बनसकता है, यह सोच उनके मन म नहं होती। आमोार और लोकोार इन दोनवषय क सूझबूझ साधु-संत म होना िनतांत आवँयक है, यह वचार बड़े ह ूभावीढंग से ौी गुजी ने इस समेलन म रखा। उहने कहा,“भगवा वज हमार हदू संःकृ ित का महान ूतीक है। साधु-संत को चाहए क वेइस भगवे वज का संदेश घर-घर पहंचाएँ। ु इसे एक राीय ोत के प म अपनाएँ।आप समाज म ऐसी जागृित उपन कर जसके ारा समाज आमगौरव क पुन<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी149


अनुभूित कर सके । भगवा वज सावकता का ूतीक है। इसके सावक सामय केसमुख सब दु ूवृयाँ हतबल-िनबल हो जाएंगी।”इसी भाषण म ौी गुजी ने कहा क, “इस जगत ् म मानव को सुख-शांित के मागपर ले जानेवाला वचार-धन भारत के पास है। उसे दिनया ु को देने क भारत कईरूद भूिमका युग-युग से ह रह है। यह काय साधु-संत ह कर सक गे जसेउह ःवीकार करना चाहए।” इस संदभ म उहने पमी लोकतऽ और स केसायवाद, दोन वचार ूणािलय क उ-बोधक समीा करते हए ु इन दोन सेमूलतः ःवतऽ अःतव रखनेवाली भारतीय जीवनूणाली का ववेचन कया।वशेषतः दो शगुट के शीतयु के संबंध म बोलते हए ु उहने कहा, “मानव-कयाण के िलए अपने ह तवान को ौे समझने वाले दो गुट वशात कबात तो करते ह, परतु सपूण दिनया ु पर अपना ूभुव ूःथापत करने के िलएमानव-संहार के साधन जुटाने म लगे हए ु दखाई देते ह। मौका देखकर अणुश काभी उपयोग कर मानव-संहार करने के िलए ये देश िस हए ु ह। अमरका ने तोतीय महायु म जापान म अणुबम का ूय ूयोग कया था। इसके वपरतमहाभारत के अजुन का संयम देख। इसके पास पाशुपता था। अ-भुत ूभावीॄा भी था। परतु इन दोन अ का ूयोग उसने नहं कया यक मानवताका वनाश उसे करना नहं था। अजुन को मालुम था क ॄा का ूयोग करने सेआठ वष तक अकाल पड़ता है, इसिलए उसने इन अ का ूयोग टाल दया।शाो जीवनूणाली क यह वशेषता है। इसिलए साधु-संत को उस तवान काअिधकारवाणी से कथन करने क आवँयकता है जससे मानव-मानव म सचाबंधुभाव िनमाण हो सके । यह सपूण व ह मेरा घर है ऐसी जनक अनुभूित है, वेह व म शात का संदेश गुँजा सकते ह। सौभाय से ऐसे साधु, सत औरमहामा आज भी भारतवष म ह।”मनुंय माँ से जो अपेा रखता है वह अपेा सवसंग परयागी साधुजन से है, ऐसाकह कर उहने अपराध म पकड़े गये एक लडके का उदाहरण ूःतुत कया। इसलड़के को माँ ने अयािधक लाड़-यार से बगाड़ ड़ाला था। वह छोट-मोट चोरयाँकरने लगा। माँ ने उसे टोका नहं। आगे चलकर वह इतना अयःत हो गया क डाकूबन गया और पकड़ा गया। उसे फाँसी क सजा सुनाई गई। उसने माँ से िमलने कअतम इछा बतायी। माँ िमलने को आई। कु छ बतलाने का बहाना कर वह अपनीमाँ के कान के पास मुँह ले गया और दाँत से जोर से कान काट खाया। शोर गुलहआ। ु तब अपनी कृ ित का समथन करते हए ु उसने कहा, “म डाकू बना इसके िलए<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी150


मेर माँ जमेदार है। माँ ने मेरे दगुण ु के बारे म समय रहते चेतावनी देकर मुझेसावधान कर समाग पर चलने क सीख द होती तो आज मुझे फाँसी पर नहं जानापड़ता।” गुजी ने इंिगत कया क आज समाज म वमान वछनता, फू ट औरआपस के ेषभाव के कारण साधु-संयािसय क समाज जागृित के संबंध मउदासीनता और िनंबयता है। ौी गुजी को यह कहने का िनःसंदध अिधकार था।ौी गुजी तथा डॉ. हेडगेवार जी ने कभी भगवे व धारण नहं कए थे। कतु वेदोन संयासी थे। ःवयं ौी गुजी ने लोकजीवन से दरू हटकर मोसाधना का मागचुना था। कतु डॉटर जी के यह कहने पर उहने ःवतः को रा समपत करदया। समप ईर क साधना करने म ह अपना जीवन यतीत कया।ौी गुजी हमेशा समाज और वशेषतः धमपुष के समुख यह वचार रखते रहे कपतनावःथा को देखते हए ु अपने ईरद काय क ओर पात करना चाहए।परणामतः एक नया यास पीठ ‘व हदू परष’ के नाम से िनिमत हआ। ुसमेलन म समय-समय पर जो वचार उहने रखे, उसी का मूत, यवहाय प हैव हदू परष।१३.४ ऐितहािसक हःतार संमहिसतबर १९५२ म राीय ःवयंसेवक संघ क ूितिनिध सभा म गोहया बंद क माँगका पुनचार कया गया। साथ ह यह भी िनदश दया गया क इस संबंध मभारतीय जनता क तीो भावना अपने ूजातांऽक शासन के यान म लाने के उेँयसे ःवयंसेवक ारा ूचड रायापी अिभयान ूारभ कया जाए। ौी गुजी केमागदशन म ूितिनिध सभा ारा पारत इस ूःताव म कहा गया था-“यह सभा गोसंवधन संबंधी भारत सरकार क अःथर नीित के बारे म असंतोष यकरती है। अपने देश म गोवंश-संवधन का वषय न के वल आिथक से बकहमार सांःकृ ितक ौा तथा एकामता क से भी महवपूण है। वगत ५ वष सेगोहया बंद क माँग क भारत सरकार ारा लगातार उपेा हो रह है। इस सभा क से यह अयंत अनुिचत है।”“देशभर म जनमत अनुकू ल तथा संघटत कर रायकताओं को गोवंश संवधन के ूितअपने पवऽ कतय का ःमरण करा दया जाय, यह ढ़ िनय यह सभा करती है।इसिलए सभी ःवयंसेवक को यह आवाहन कया जाता है क वे सभा, मोच ारा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी 151


कोट-कोट भारतीय जनता क यह भावना ऐसी ढ़ इछा श म परणत कर ताकभारत सरकार के ूजातांऽक शासन के िलए गोवंश के वनाश पर कानून ाराूितबंध लगाना अपरहाय हो जाए।”इस ूःताव म समःत भारतीय जनता तथा विभन राजनीितक दल को सहकायदेने का आवाहन कया गया था।साथ ह गोहया बंद क मांग करनेवाले आवेदन पऽ पर जनता के हःतार अंकतकर अत म देशभर से ूा हःतार का यह संमह महामहम ् रापित को समपतकया जाए, ऐसी कायबम क योजना बनाई गई। यह भी सुझाया गया क हःतारसंकलन करते समय आम सभा, मोचा, ूदशनी, पोःटस, पऽक, लेख आद ूचार-ूसार मायम का उपयोग जनमत जागरण के िलए कया जाय। संघ के ःवयंसेवकआवेदन पऽ लेकर जब घर-घर पहंचगे ु तब सभी महानुभाव उह अपने हःतार देकरसहकाय कर, इस अथ का एक िनवेदन भी ौी गुजी ने ूकािशत कया। यह पऽकद. १३ अु बर १९५२ को ूकािशत कया गया।यह भी तय कया गया क ूयतः यह अिभयान द. २६ अु बर को गोपामी केमुहत ू पर ूारंभ हो और द. २२ नवबर को दली म उसक समाि क जाय। एकवनॆ िनवेदन भी ौी गुजी ारा ूःतुत कया गया क आंदोलन को देशयापी वूभावी बनाने के िलए जो धन लगे उसक पूित भी जनता ःवयं ह करे।इसके अितर देश म चल रहे विभन समाचार पऽ, मायवर नेतागण, लेखक,वान ् वचारक-िचंतक, धमगु, संत-महंत तथा सामाजक कायकताओं को यशःःवतंऽ पऽ भेजकर ौी गुजी ने अपनी भूिमका ःप क तथा उनके सहकाय कमाँग क।ःवतंऽता सेनानी वीर सावरकर को भी ौी गुजी ने यगत प से पऽ िलखकरउह अपने मंतय से अवगत कराया। इस पऽ के कु छ अंश यहाँ उ-घृत करनाउिचत होगा, जससे हम जान सक क गोमाता और भारतमाता के ूित उनक ौाव भावना कतनी तीो थी। साथ ह उससे ौी गुजी के दय क ःपता, पारदिशतातथा राीय वषय को उनके ारा दये जानेवाले महव का भी हम यथे ान होसके गा। ौी गुजी ने िलखाः<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी152


“अपने ौाके द के वषय म अनाःथा तथा गोवंश के समान पवऽ ौा के वषयऔर ौा-ःथान का वदेिशय ारा होनेवाला वनाश िनलजता से सहने क आदतके फलःवप लोग ने भारत माता का वभाजन होने दया। वह एक घृणाःपद, घोरपाप था। यह पाप आज भी कायम है। इस कलंक को िमटाकर ह समाधान औरशांित का अनुभव ले पाऊँ गा ऐसा कहनेवाला कोई ःवािभमानी दखाई नहं देता। इसकेवपरत वभाजन के कलंकत पाप का समथन करनेवाले बड़े-बड़े नेता अवँय दखाईदेते ह। हमार संःकृ ित के अनुसार गोमाता और भारत माता अवभ ह, एक ह ह।इस कारण गोमाता क हया को ूोसाहन देनेवाले या दलआय ु करनेवाले वाःतवकअथ म भारतमाता के भ भला कै से बन सकते ह? यह सवथा असंभव है।”ौी गुजी ारा िलखे गए पऽ, पऽक, ूितवेदन आद का देशभर म भरपूर ःवागतकया गया। यथासमय पूविनयोजत योजना के अनुसार गोपामी के शुभावसर परःथान-ःथान पर अिभयान ूारंभ हआ। ु हजार क संया म सभाओं, याऽाओं मगोहया बंद के ूःताव पारत हए। ुमुंबई के अिभयान का ूारंभ ौी गुजी क सभा से हआ। ु सहाविध लोग कउपःथित म ौी गुजी ने गोहया बंद क मांग को तक संगत बताते हए ु उसकाराीय महव वश करनेवाला भाषण दया। इस भाषण म ौी गुजी ने कहा,“पराधीनता म से उपन हर बात िमटाकर वदेशी आबामक के नामोिनशान को धोडालना, उनका िनमूलन करना कसी भी ःवतंऽ ःवािभमानयु रा का ूथम कतयमाना जाना चाहए। इसी से सोमनाथ मंदर का जीणार एक उिचत घटना है।”“जब तक हमारे रहन-सहन, वचार-पित, जीवन क ओर देखने के हमारे कोणतथा सोच-वचार पर वदेिशय क छाप रहेगी तब तक हम ःवतंऽ हए ु ह ऐसा नहंमाना जा सकता। हजार वष क पराधीनता के कारण िनिमत जो भी ू हगे उहहल कर अपने रा को संसार का सवािधक अमसर रा बनाने क उकट आकांाूयेक य के अंतःकरण म जागृत होना ह ःवाधीनता क वाःतवक अनुभूितहोगी।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी153


आज सामाय य के दय म भारत मेर मातृभूिम है यह भाव तथा धमिना कालोप होता दखाई देता है। हम अपने गौरवशाली इितहास को भी भूल रहे ह। यदऐितहािसक ौाःथान का इसी तरह वःमरण होता रहा तो भवंय म हमारे िलएएक भी ौाःथान शेष नहं रहेगा। यद दभाय ु से ऐसा हआ ु तो हम कसआधारिशला पर गगनःपश रामंदर बना पाएंगे? आकाश छनेवाली ू ऊँ ची उड़ान कै सेभर पाएँगे?“जस रा का ौाःथान न हो जाता है उस रा के अयुदय क कामना करनायथ होगा। हम अपने रा क उनित करना चाहते ह, कतु हम चार ओर मतभेद,िभन-िभन संूदाय, परःपर वरोिध तथा दलगत राजनीित और तजय वघटन हदखाई देता है। इस कारण हम ने सोचा क रा म एक सवमाय ौा-के ि िनमाणकर सब को एक ह वैचारक-भावनामक आधार पर खड़ा करना आवँयक है। अबहम यह योचना है क वह सवमाय ौा के ि कौन सा है? अपने रा म राजनीितकया पांिथक िभनता भले ह हो, एक बात िनववाद सय है क गोवंश का नाम लेतेह ौा क अतुलनीय भावना जागृत हो जाती है। इसिलए ‘गाय (गो)’ हम एकऽ लासकती है। हम सब इस दशा म वचार कर। अपने दय म गोमाता के ूित ौाभावबढ़ाएँ। अपने अंतःकरण तथा राजीवन म पराकोट क तेजःवता िनमाण कर।”मुसलमान तथा ईसाइय को भी इस आंदोलन म सहकाय देने क आवँयकता है ऐसाूितपादन ौी गुजी ने इस भाषण म कया। इस कथन ारा मुसलमान और ईसाइयके संबंध म संघ क भूिमका या है? इस ू का उर साथ-साथ िमल जाता है। ौीगुजी कहा,“आप कपना कजए क कसी को अमेरका का नागरक बनना है और इसनागरकता को पाने का उसे अिधकार भी है तो उस परःथित म अमेरका जाने परउसे कस वज का अिभमान रखना होगा? या भारत के चबांकत ितरंगे वज काअिभमान रखकर बात बन सके गी? कदाप नहं। उसे अमरका के रावज काअिभमान ह मन म रखना होगा।”“यह वज क बात हई। ु अब हम रापुष के बारे म सोच। कस रापुष का गौरवउसे करना होगा? जॉज वािशंटन और अॄाहम िलंकन का। अमेरका म हम भगवान<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी154


राम और कृ ंण क पूजा करने म कोई मनाई नहं है कतु साथ ह हम उनके राीयौा के ि को भी ःवीकार करना पड़ेगा। ”“इसी ूकार ईसाइ और मुसलमान को भी भारत के जीवन से समरस होकर रहनाहोगा। भारत का नागरकव (Civil Code) के िनयमानुसार ह उह चलना होगा,रहना होगा। यहाँ के राजीवन का आदश अनुकरणीय मानकर राीय उसव कोअपने उसव मानकर मनाना होगा। भारत के रापुष का ह उह जयजयकारकरना दोगा। म तो चाहता हँ ू क वे छऽपित िशवाजी महाराज जैसे ौे रावीर कभी जयजयकार कर। उह यह करना ह चाहए। भारतीय जीवनूवाह से समरसहोकर तथा ौे भारतीय वभूितय से ूेरणा पाकर फर चाहे वे अपनी उपासना केिलए मःजद म जाएँ और पैगंबर का नाम ल, ईसाई चच म बायबल पढ़, हम इस मकोई आप नहं होगी। यगत धम के नाते उह इसक छट ू रहेगी।”“सामूहक जीवन क से यहां के जीवनूवाह का ःवीकार उह करना ह होगा।यद इस वचारधारा को हम सब मान लगे तो अवँय ह ूगितशील राजीवन संभवहो पाएगा।”आिथक कोण को सामने रखकर ौी गुजी ने गोहया बंद का समथन कया।साथ ह राीय ौाःथान को न कर डालर क कमाई करनेवाल क उहने कड़भसना क। ौी गुजी ने मुंबई म जस तरह अिभयान के उ-घाटन का भाषणदया, उसी तरह दली म संघ के सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी ने अपने वचार रखे।द. 23 नवंबर तक गोहया बंद क मांग करनेवाले पऽक पर लोग के हःतार लेनेका काम संघ के ःवयंसेवक बहत ु ह योजनाब तरके से कर रहे थे। हर नागरकतक पहंचना ु परौम तथा लगन का काम था जसे ःवयंसेवक ने बखूबी िनभाया।कहं भी वरोध नहं हआ। ु लोग उसाह और आनंद के साथ धमकम मानकर,सामाजक कतय मानकर हःतार देते। कतु पं. नेह ने बड़ गजना के साथ कहाक यह संघ का एक राजनीितक ःटंट है! बस, पं. नेह के इस वधान को सुनते हकांमेसी नेता तथा मुसलमान और ईसाइय ने हःतार देने के िलए आगे बढ़ाया हआ ुहाथ पीछे खींच िलया। न के वल मुँह मोड़ने का ूयास हआ ु , बक कांमेस के सिचवौीमनारायण जी ने एक फतवा िनकाल कर इस आदोलन म सहयोग देने सेकांमेसजन को मना भी कर दया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी155


फर भी यापक प से राजनीितक प के सदःय के हःतार ूा हो सके ।लगभग ५४ हजार कायकताओं ने ८५ हजार माम म घूमकर लगभग २ करोड़हःतार ूा कये। यह हःतार संमह दली भेजा गया। द. ७ दसंबर को एकबृहत ् शोभायाऽा के प म उसे ूदिशत कया गया। यह शोभायाऽा डेढ़ मील लंबी थी।रामलीला मैदान पर इस शोभायाऽा का पांतर एक ूचंड आम सभा म हआ। ु डॉ.ँयामाूसाद मुखज वा के नाते इस सभा म उपःथत थे। ौी गुजी ने उन सभीका आभार ूदशन कया जहने इस राीय आंदोलन को सफल बनाने के िलए हाथबँटाया था, अपार परौम कये थे।इस आभार ूदशन के भाषण म ौी गुजी ने पं. नेह ारा इस आंदोलन को‘राजलीितक ःटंट’ घोषत करनेवाले कथन का करारा जवाब दया। उनके शद काफपैने और धारदार थे। ौी गुजी ने पं. नेह से ूितू पुछा। आचाय वनोबाजी केकथन को उ-घृत करते हए ु उहने कहा-‘आचाय वनोबा भावे कहते ह क, ‘सबै भूिम गोपाल क’। पर म पूछता हँ ू क यहभूिम गोपाल क है या गोहया करने वाल क? महष दयानंद ने भी इस काय कोअंगीकृ त कया था; अपनाया था। या उह भी राजनीितक ःटंट करना था?’ कु छदन पूव साँची म भगवान ् बु के दो िशंय क अःथय को ूितत करनेवालेकायबम के िलए पं. नेहजी पहँचे ु थे। कायबम समा होते ह नेहजी वहां से ६मील दर ू पर ःथत भेलसा म पहँचे ु और गोहया जार रखने क घोषणा कर डाली।भगवान बु क अहंसा का गौरव करने के तुरत बाद उहने गो-हया क घोषणाक।चाहे सारा संसार वरोध म खड़ा हो जाए, हदओं ु को अपने मानबंदु क रा करनीचाहए ऐसा उकट भावभीना आवाहन ौी गुजी ने अपने भाषण के अंत म कया।द. ८ दसंबर को दली के तकालीन ूात संघचालक ौी लाला हंसराज को साथलेकर ौी गुजी ने रापित से भट क। हःतार संमह रापित के सुपुद कया। डॉ.राजेि ूसाद जी ने उह आःत करते हए ु कहा क वे सरकार से इस संबंध मसहानुभूितपूवक वचार करने के िलए कहगे। वाःतव म रापित ःवयं गोहया के प<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी156


म थे। परतु संसार म कसी राीय ू के हल के िलए इतने बड़े पैमाने परहःतार एकऽ करने का अपने ढंग का अनोखा, एकमाऽ ूयास होने के उपरांत भीसरकार ने इस अिभयान क उपेा ह क।ःवतः को ूजातांऽक शासक और शासन को ूजातांऽक माननेवाल ने राकयाणतथा जनमत को के वल प के ःवाथ के िलए अपने पैरतले रद डाला। यह अिभयानपरणाम क से असफल रहा ऐसा कोई सोच सकता है। कतु यह सय नहं है।अनेक ूांत के शासन ने बमशः गोवध बंद के िलए कानून बनाए। कतु के िसरकार ने ऐसा नहं कया। यह कमी आज भी अनुभव होती है। अिभयान के अंितमदौर म ौी गुजी ने उसे असफलता के दायरे से बाहर रखने क चेा क। अिभयानसमाि के पात इस ू को उहने शासन के अंधेरे कोने म पड़ने नहं दया।रापित के समुख हःतार संमह ूःतुत करने के ठक एक साल बाद २ नवंबर१९५३ से १४ नवंबर तक पुनः एक बार जनमत क ओर शासन का यान आकषतकरने का ूय संघ के मायम से कया गया। फर से सभाओं , जुलूस औरएकऽीकरण के कायबम का आयोजन कया गया।१९५४ म कुं भ मेला ूयाग म संपन हआ। ु वह माघ का महना था। इस पवऽअवसर पर ‘गोहया िनरोध सिमित’ ारा एक वशेष कायबम आयोजत कया गया।इस कायबम क वशेषता यह थी क जस िनवाचन ेऽ से पं. नेह लोकसभा केिलए चुने गये थे उसी ेऽ के मतदाताओं के हःतार संमहत कर सरकार केयानाकषण हेतु ूःतुत कए गये। इस काय वशेष का अंतःथ हेतु नेहजी केमतदाताओं क भावना का दशन उह कराना था। गोहया बंद क मांग करनेवालेआवेदन पऽ पर नेहजी के िनवाचन ेऽ के कु छ २,५७,५८० मतदाताओं ने हःतारकये थे। पंडत जी को चुनाव म ूा कु ल मत से डेढ़ लाख से अिधक मतदाताओंने गोवध बंद के प म हःतार कये थे। इस हःतार संमह के साथ ूधानमंऽी केनाम भेजे गये ूितवेदन म िलखा था क जब संसद म गोवध बंद का वषय चिचतहोगा तब वे इस ूःताव का समथन कर। गोहया का समथन करनेवाला यहमारा ूितिनिधव कदाप नहं कर सकता।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी157


इतना सब कु छ करने के उपरात भी ूधानमंऽी जी ने अपने मतदाताओं क भावनाक कोई िचता नहं क। उनके कान पर जू तक नहं रगी। इस कुं भ मेले म ौीगुजी वशेष प से उपःथत थे। संघ के ःवयंसेवक ने हःतार संकप तथा कुं भमेले के कायबम को सफल करने का भरसक ूय कया था।१९६६ म पुर के शंकराचाय जी ने गोहया बंद क मांग के ू पर आमरण अनशनकया। इस अवसर पर ौी गुजी ने सरकार क नीित पर कठोर टपणी क। इनदन ूयेक पऽकार परष, लेख, भाषण और चचा सऽ म इस वषय का बार-बारःपश हआ ु दखाई देता है।भारत सरकार ने अभी तक गोवंश-रा के हेतु के िय कानून नहं बनाया है। वह इससंबंध म नकारामक भूिमका िनभा रह है। इस कारण ूांतीय सरकार ने भले हगोवंश बंद कानून पास कया हो, वह कायावत नहं हो पा रहा है।गोहया वरोध के िलए समय-समय पर सरकार ःतर पर बनी सिमित या आंदोलकारा बनायी गयी गोरा महािभयान सिमित के कायकलाप से ौी गुजी अयतअसंतु थे। सरकार गोरा सिमित क बैठक म जाना उह िनरथक तथा समय काअपयय लगता था। वे ऽःत होकर कहते थे क “गोहया बद करने हेतु वाःतव मएक िमनट ह पया है, छह मास चलनेवाली सिमित क या आवँयकता है।”महािभयान सिमित क चचा करते हए ु उहने एक बार कहा था क “वहाँ ऐसी चचाचलती है क लगता है जैसे हम बाजार म बैठे ह।”ौी गुजी नहं चाहते थे क सयामह या अनशन का माग अवलंबन कर गोहयािनरोध आंदोलन चले। परतु सन ् १९६६ के अंत म पुर के शंकराचाय जी ने पुर मऔर ौी ूभुद ॄचार जी ने वृदावन म अनशन ूारंभ कर दया। इससे परःथितजटल हो गयी। सन ् १९६६ म राजधानी म ूचड ूदशन हए ु थे। आंदोलन धधकउठा था। ऐसी वाताएँ ूःतुत हो रह थीं क गोहया िनरोध का अयादेश रापितजार करने जा रहे ह। परतु अयादेश न िनकालने का ह िनय कया गया। इसकेिलए कारण दया गया क सवच यायालय ारा इसके पूव दए गये िनणय कअवहेलना होगी। सवच यायालय का िनणय यह था क बुढ़े और खेती के काम केिलए िनपयोगी बैल क हया करने म कोई आप नहं है। अयादेश जार कयातो इन बैल क हया का भी वरोध होगा। सवच यायालय के इस िनणय पर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी158


तीखी टपणी करते हए ु ौी गुजी ने कहा क ‘गौ’ याने संपूण गोवंश ह अिभूेत हैजस ूकार man कहने पर woman भी आती है। परतु इस सामाय प से सवऽमानी हई ु बात को यान म न रखते हए ु बैल को गाय से अलग कया गया है। बैलक हया के बहाने गाय क हया करने से कौन रोक सकता है? यह समाचार ातहोने पर ौी गुजी ने कहा, “आखर रापित कसिलए ह? उनका शद ह ूमाणमाना जाना चाहए।”सन ् १९५२ के अगःत मास म ौी गुजी ारा दया गया संके त सह िनकला। इसमास म विभन ४० संःथाओं के ूितिनिधय क एक बैठक आयोजत क गयी थी।सयामह मुहम के िलए वशेष अनुकू लता बैठक म नहं दखायी द। इस बैठक मौी गुजी ने कहा, “गोहया के िनरोध के ूित आज जतना अनुकू ल वातावरणिनमाण हआ ु है उतना इसके पूव कभी भी िनमाण नहं हआ ु था। इस वातावरण म भीगोहया िनरोध क दशा म पग उठाने के िलए सरकार को ूवृ कया नहं जा सकातो आगामी ४-५ वष म गोहया बंद होना संभव नहं यक आगे देश के सामनेअय अनेक ू उपःथत होनेवाले ह और उनपर से लोग और सरकार का यानहटाकर उसे गोरा के ू क ओर मोड़ना असंभव होनेवाला है।”उपयु भवंयवाणी पूणतः सह िनकली। ऐसा नहं क इस ू को ूभावी बनाने काूय नहं हआ। ु परतु उसे जनमानस म और सरकार क से भी अमबम ूानहं हआ। ु आदोलन शात हो गये। अब तक भी इस ू का अतम हल पथम नहं है। गोमांस का िनयात और खेती के उपयु जानवर क हया बड़ा गंभीरू बन गया। सेयुलैरम का डंका बजानेवाले इस ू पर मुसलमान और ईसाइयको नाराज करनेवाला कोई भी कदम उठाएँगे, ऐसी संभावना नहं है। इस अिनछा कजड़ नेह क नीितय म ह यह ौी गुजी ने ूकट प से ःप बतलाया था। इससंदभ म नेहजी ारा बैरःटर जना को िलखे एक पऽ के कु छ कथन का वेउलेख करते थे। गुवाहाट म सन ् १९५५ म ूितत नागरक क सभा म बोलतेहए ु इस पऽ के वाय को उहने दोहराया था जो इस ूकार थे। “ऐसा दखता है कगोहया के वषय म कांमेस के व झूठा और बेबुिनयाद ूचार कया जा रहा है।कांमेस गोहया को कानून से बंद करनेवाली है यह कांमेस वरोधी ूचारक बतलाते ह।मुसलमान को उनके कसी भी सुूितत अिधकार से वंिचत करने क कांमेस कइछा नहं है।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी159


गोवंश का वनाश अब भी जार है। आचाय वनोबा भावे के िलए गोवंश-रा सवािधकूय वषय रहने के कारण उहने गोहया बंद के िलए सयामह कया, आंदोलनछेड़ा। कतु फर भी के ि म आसीन साधारय को गोहया बंद का रायापीकानून बनाकर उसका कठोर पालन करने क इछा नहं होती। मत क (votes)असीम लालसा का राजनीित पर वपरत परणाम हो रहा है।ितपुर म सन ् १९६७ म पिलकाड़ ानाौम के ःवामी पुषोमानदजी के साथगोहया वरोधी आदोलन के बारे म बातचीत करते समय ौी गुजी ने दो मुपरवशेष बल दया। ूथम मुा यह था क वदेशी शासन भारत म ूःथापत होने केबाद ह यहाँ गोहया ूारंभ हई। ु इसिलए अपने रा-जीवन पर वह कलंक है; गो-हयामुसलमान ने शु क और मुसलमान ने वह वरासत म आगे चालू रखी। अब हमःवतंऽ हए ु ह। ःवतंऽता ूाि के बाद पूव क राजनीितक गुलामी के काल के सारेकलंक न करना हमारा कतय है। यद यह कतय पूरा नहं कया तो हम मानिसकदासता के िशकार हगे। परतु ःवतऽता ूा होने पर गोहया बंद करना तो दरूरहा, वह अनेक गुना बढ़ है। १९४४-४५ म ह पूव क तुलना म वह ५० से १०० गुनाबढ़ थी। अंमेज के समय वदेशी सेना भारत म रहती थी इसिलए यह ूमाण बढ़ाहोगा कतु ःवतऽता के बाद यह ूमाण घटा नहं उटे वदेशी सेना के यहाँ से चलेजाने पर भी गाय क हया २० गुना बढ़ है।ौी गुजी का दसरा ू मुा यह था क सपूण भारत म के िय कानून से गोहया बंदहोना अयावँयक है। य आवँयक है इसक कारण मीमांसा बताते हए ु उहने कहा,“अंमेज ने गाय और सुअर के मांस का सेना के िलये उपयोग करना िनष मानाथा, यह यान म लेना चाहए। १८५७ का ःवातय यु भड़कने के िलए जो कारणथे वे भी हम ःमरण करना चाहए। अब सेना म सुअर के मांस पर बंद है परतुगोमांस का उपयोग मु प से कया जाता है। उरूदेश जैसे कु छ राय मगोहया पर कानून से बंद है परतु उसम संशोधन करने का भारत सरकार ने सुझावदया है। इस संशोधन से अनुपयु पशु सेना के िलए काटे जा सक गे। इससे उमजानवर भी कल कये जाने का भय िनमाण हआ ु है। गोहया िनरोध कानून िनरथकिस होने लगा है। जन कारण से हम भारत सरकार से सपूण देश के िलए एककानून बनाने क मांग कर रहे ह, उनम महव का कारण यह है क मैसूर राय जैसेूदेश म गोहया बंद का कानून होते हए ु भी राय क सीमा-पार के भाग मअंधाधुंध पशुहया क जाती है और वह मांस मैसूर ेऽ म चोर-िछपे लाकर सरे आमबेचा जाता है। इसिलए संपूण देश म लागू होनेवाला कानून चाहए।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी160


उहने यह मुा भी रखा क गो हया िनरोध के वरोध म वदेशी साओं का दबावपड़ता हआ ु दखाई देता है। उहने कहा क कु छ नेतागण ऐसा तक देते ह कगोमांस िनयात नहं कया तो हम वदेशी मुिा बड़े पैमाने पर खो बैठगे। इस तक मवदेशी सा का दबाव ःपतः दखता है। अमरक लोग को हम से पशुओं का चमड़ाऔर सःता गोमांस चाहए। उनक इछा है क अमरक गाय सुरत रह और भारतको दध ु पाउडर के िलए हमेशा उन पर िनभर रहना पड़े। अमरका इसके िलए भारतसरकार पर दबाव डाल रहा है। अमरका ने कहा है क यद भारत ने गोहया बंद कतो उसका सहयोग भारत को नहं िमलेगा। वदेशी मुिा ूा करने के िलए या हमअपने मानबदु और आदश के संबंध म समझौता कर सकते ह? ”इस वषय को जन सामाय से लेकर देश के शीषःथ नेताओं और साधारय तकपहँचानेवाले ु एक माऽ नेता के प म ौी गुजी का नाम ःमरण म रहेगा। ःवतंऽताके आंदोलन के समय महामा गांधी जी ने गो रा तथा गो पूजन को अपने कायका एक अवभाय अंग ह माना था। हदू संःकृ ित क महा के लण के नाते गोमाता के ूित ौा का उलेख तो उहने कया था कतु ःवतंऽता ूाि के पातइस वचार को आगे बढ़ाने या जनमत ूभावत करने का अवसर उह ूा नहं होसका। इसी कमी क पूित ौी गुजी ने क। कहा जा सकता है क गांधीजी क यहउकट इछा पूण करने का भरसक ूयास ौी गुजी ने कया।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी 161


१४ सजग रा ूहर१९४७ म हआ ु देश का ररंजत वभाजन, इस दःखद ु पृभूिम पर ूा राजनैितकःवाधीनता, ःवतंऽ रयासत का वलनीकरण, महामाजी क हया, नये संवधान कःवीकृ ित, तदपरांत ु १९५२ म हआ ु पहला आम चुनाव आद घटनाएँ १९४७ से १९५२तक के पाँच वष म घटं। इन घटनाओं के दरगामी ू परणाम भारतीय समाज मूितबंबत हए। ु ूितबयाएं उभरती रहं। िभन-िभन वचार क लहर जनमानस परटकराती रहं।राीय ःवयंसेवक संघ के िलए इन घटनाओं से अिल रहना, उनसे हटकर रहनासभव नहं था। वभाजन के ररंजत कालखंड म संघ के ःवयंसेवक ने हद ु ूसमाज क रा के िलए अपने ूाण क बाजी लगा द थी। गांधी हया के पातिनदष होते हए ु भी संघ को जनूोभ का िशकार होना पड़ा और उसम से संघ झुलसकर िनकला। संघ इस अनपरा म खरा उतरा। संघ पर लगा ूितबंध हटाया गया।संघकाय पुनः ूारंभ हआ। ु फर भी नये वातावरण के सदभ म संघ क भूिमका यारहेगी? यह ू अनेक के मन म उपन होना ःवाभावक था।ःवतंऽताूाि का ू हल हो चुका था। सदय से दय म या पराधीनता कपीड़ा-भावना समा हो चुक थी। अब ू था भारत के नविनमाण का। यह नविनमाण कै से होगा? इस ूकार के अनेक ू एक के बाद एक सामने आते गये। संघके अनेक कायकताओं के मन म भी ये ू बार-बार उभरते रहे। १९५२ के चुनाव काउदाहरण इस बात को ःप करने के िलए पया होगा।१४.१ चुनावी जय-पराजय के परे१९४७ के संकटमःत कालखंड म संघ के हजार कायकताओं ने अपने ूाण संकट मडालकर पाकःतानी आबमणकारय से हदू बंधुओं को बचाया था। संघ उस समयसमाज के िलए ूशंसा का पाऽ बना था। इस कारण अनेक कायकता १९५२ के आमचुनाव म भारतीय जनसंघ के ूयाशी के प म खड़े हो गये। कतु आय क बातयह रह क जब चुनाव के परणाम घोषत हए ु तब वजेताओं म एक भी कायकताका नाम नहं था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी162


सभी ूयाशी पराभूत हए। ु जन लोग ने देश के वभाजन को मायता द, देश काबँटवारा िनःसंकोच ःवीकार कया, िनवािसत क ओर यान तक नहं दया, उहबेहाल, बेघरबार, असहाय अवःथा म देखते हए ु भी जहने न आह भर न अयायको रोकने के िलए कोई ूयास कया, ऐसे लोग सा के िसंहासन पर बठाए गये।संघ के ःवयंसेवक ारा कया हआ ु याग, बिलदान, भले ह वह िनरपे हो, कम सेकम इस चुनाव के संदभ म िनराशा उपन करने के िलए पया था।परणामतः पंजाब-दली वभाग म िनराशा और वफलता क भाषा अनेककायकताओं के मुँह से सुनाई देने लगी। कायकताओं के मन म िनराशा के कालेबादल मँड़राने लगे। इन बादल क काली परछाई दय पर छाने लगी। दसर ू ओरकँमीर, भाषानुसार ूांत रचना, सेयूलर राय का आशय और ःवतंऽ भारत काएकाम राःवप, हदू के अितर अय (ईसाई और मुसलमान) समाज काभारत म ःथान, ऐसे अनेक ू राीय मंच पर चचा और िचंतन-मनन के वषय बनेथे।ःवाधीनता के बाद का ूारंिभक काल राजीवन के सभी पहलुओं व मायताओं कावचार कर भवंय क से नींव क ःथापना का था। इस कारण वाद-ूितवाद कधूल से सामाजक और राजनीितक वायुमंडल भरा हआ ु था। इस धूिमल वातावरण मसह दशा क ओर जाते हए ु राजीवन क मूलभूत समःया पर संघ क के ितकरने तथा संघबा जनता को राीय भूिमका तथा कतय से अवगत कराने का जोूय ौी गुजी ने कया, उसके िलए वतमान भारतवष को उनके ूित कृ तता काभाव दय म सँजोना चाहए।मूलतः डॉ. हेडगेवार जी ने संघ क ःथापना हदू समाज को संगठत करने तथापराधीनता के िलए कारणीभूत हए ु दोष को दरू कर उसे तेजःवी तथा बलशाली बनानेके िलए क थी। उनक धारणा थी क ःवतंऽता तो इस योजना का एक अंश माऽ है,एक मंजल है। कतु दभाय ु से खंडत भारत क ःवतंऽता ह हम ःवीकार करनीपड़।दसरे ू महायु के पात अंतराीय परःथित तथा साॆाय संभालने क असमथताके कारण इछा न होते हए ु भी ॄटश को ःवतंऽता भारत क झोली म ड़ाल देनीपड़। फर या संघ का ूयोजन समा हआ ु ? ौी गुजी ने इस ू का उर ‘नहं’<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी163


म दया और ःवतंऽ भारत म संघ को जो काय करना था उसक वशु रचना ूःतुतक। डॉटर जी के वचार तथा कायपित के सूऽ को बाधा न पहंचाते ु हए ु उहनेयह रचना पुरःकृ त क थी। साथ ह डॉटर जी के वचार तथा कायपित पर ढ़ौा पुन सुःथर करने म वे सफल रहे।इस से १९५४ के माच म ौी गुजी के साथ पूरे देश भर के जला तथा ऊपरःतर के ूचारक के खुले और ूदघ वचार-मंथन का कायबम हआ। ु द. ९ माच से१६ माच, अथात आठ दन का यह आयोजन था। िशवर के िलए नागपुर-वधा मागपर ःथत िसंद नामक गाँव चुना गया था इसका एक वशेष कारण था। संघसंःथापक डॉ. हेडगेवार जी ने १९३९ म इसी िसंद गाँव म एक बैठक आयोजत करसंघ क नयी संःकृ त ूाथना को ःवीकार कया था, साथ ह संघ क कायपित तोःथायी प ूदान कया था।अब १५ साल बाद संघ के वचार तथा कायपित के संबंध म मूलभूत िचंतन करनेहेतु इस िशवर का आयोजन कया गया था। ःथान वह-िसंद, कतु संदभ बदलीहई ु परःथित का। िसंद म हए ु इस िचंतन-मंथन का समारोप करते समय द. १६माच १९५४ के दन ौी गुजी ने १९३९ क बैठक का संदभ-ःमरण कराते हए ु कहा,“उस समय (१९३९) हम लोग ने अपने अंतःकरण म अपने काय के ूित वास ढ़कया था और िनय भी कया था क हम दनरात परौम कर इस काय कोबढ़ाएँगे। तदपरांत ु सवा वष पूरे होते-न होते डॉटर साहब क जीवन याऽा समा हई। ुकतु फर भी एकामता से काम करते हए ु हमने संघकाय को आगे बढ़ाया। संघकायवकिसत हआ। ु यद हमारे चार ओर क परःथित के परणाम-ःवप कु छ शंकाएँमन म उपन हई ु ह तो हम पुनः एक बार िनय कर क कसी भी दोष को अपनेमन म ूवेश नहं होने दगे। अपनी सवश दाँव पर लगाकर, दन-रात परौम करतेहए ु हम अपने-अपने ौेऽ म संघकाय ूभावोपादक ढंग से बढाएंगे। हम संघ का ऐसाूभाव अजत करगे क संघ के वातावरण का ःपश जसे नहं हआ ु , ऐसा एक भीय न रहे। हमार इछा माऽ से राजीवन के िभन-िभन ेऽ कायूवण हगेऔर देश क ूगित और कयाण का उेँय हम सफल करगे।”िसंद म हए ु चचासऽ का संपूण यौरा देने का यहाँ ूयोजन नहं है। कतु इस बैठकम ौी गुजी ने हदू जीवनदशन के ूकाश म ःवतंऽ भारत का जीवनोेँय या है?<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी164


व क विभन वचारधाराओं का परणाम या हो रहा है? हदू समाज के मूलतव या ह? संघ कायपित क अनुपम यशःवी वशेषताएँ या ह? आद वषयपर भाषण दये और कायकताओं से मु ूोर आद कये। अंत म ौी गुजी नेकायकताओं के समुख जो आवाहन कया वह बहत ु ह ूेरक तथा दय को ःपशकरनेवाला था। ःवतंऽता ूा होने के पात ् १९५४ म बढ़ती हई ु समःयाओं केूाथिमक कालखंड म ौी गुजी ने अयािधक लगन तथा दय क वेदना भर टसके साथ कहा, “आज देश के सामने जो संकट ह और भवंय म जो समःयाएंउपःथत होनेवाली ह, उनम से देश को उबारने क श के वल अपने ह काय मिनहत है। कसी अय काय के िलए यह संभव नहं है।”आगे सभी ूचारक को संबोिधत करते हए ु ौी गुजी ने कहा क वे अपनी यगतबात को दय से हटाकर सवःवापण कर अपना काम कर। कायकताओं को कायूवणकरने तथा याग और समपण के िलए ूवृ करने का वलण सामय ौी गुजीक वाणी, वचार तथा आचरण म था इसम कोई संदेह नहं।१९५४ के पहले से ह संघ के कायकता रा के विभन ेऽ म कायरत होने लगे थे।कतु िसंद के चचा िशवर म ौी गुजी ने ‘शाखाके ित काय’ पर सवािधक यानदेने का आमह रखा था। शाखा संघ क श तथा संःकार का के ि है। अतः शाखाशशाली होगी तो शाखा के भरोसे होनेवाले बाहर काम भी ूभावी हगे यह उनकेकथन का मुय आशय था। ौी गुजी ने संघ क कायपित को रा-पुष के पूजनका माग कहा। इसी काय म एकाम होने का आमहपूवक ूितपादन उहने कया।इस मागदशन के बाद सभी कायकता अपने-अपने ेऽ म एक नया उसाह, नयीउमंग तथा कतयिना लेकर लौटे। परणामतः भारत म संघकाय बढ़ता, पनपतादखाई दया। ौी गुजी ूारंभ से ह कायकता के काय-कौशय तथा गुण क ओरअिधक यान देते थे। यह उनका ःवभाव था। कायकता गुणवान हो, काय कु शल हो,ःवयंूेरणा से योय िनणय लेने क मता उसम हो, इहं बात पर विभनचचासऽ म वे जोर देते, यान आकषत करते थे। समाचारपऽ, िशा संःथाओं,वािथय और मजदर ू के संगठन, राजनीितक संगठन आद ेऽ म कायकता कामकरने लगे थे। उनक भूिमका का उलेख ौी गुजी ने कया। उस संबंध म अिधकववेचन आगे आयेगा ह।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी165


अनेक लोग पूछते ह क राीय ःवयंसेवक संघ ने देशभर म संघकाय का ूचार औरूसार करने के िलए इतने बड़े ूमाण म कायकता के प म यागी ूचारक कहाँ सेपाए? कसी तपःवी क भांित ये ूचारक अपने कायेऽ म वषानुवष कस बलबूते परडटे रहे? इस ू का उर हम ूा होगा उन चचाओं म जसम ौी गुजी सहजतासे वचार-विनमय कया करते थे।ौी गुजी ःवयं एक वलंत उदाहरण थे। उनके आचार-वचार एकप थे, अिभन थे।डॉटर जी क जीवनी तथा तपःवी ौी गुजी क तपःपूत, तपःवी येय-वादता औरवाणी कायकताओं के समुख ूेरणाोत थे। इन दो महान ् वभूितय के रासमपतजीवन को भी हम यान म रखना होगा। हदू जीवन-मूय, अयाम तथारापुष क परंपराओं के बारे म ौी गुजी का िचंतन सूआम, गहरा तथा मममाहहोने के कारण संघ के कायकताओं ने कस ूकार जीवन के संबंध म वचार करनाचाहए, इसका रोचक उदाहरण ारा ःफू ितूद ववेचन वे सरलता से कया करते थे।ःवतंऽता ूाि के उपरांत दस वष के कालखंड म संघकाय का वःतार करते हए ु ौीगुजी अयािधक कायमन अवँय थे कतु चार ओर हो रहं घटनाओं क ओरउनका पूरा यान था। बहत ु पैनी नजर से वे इन गितविधय का सूआम अयासकया करते थे। जानकार क बारकयाँ सदैव उनके यान म रहा करती थीं। इसीआधार पर वे जनता तथा शासन को आगाह करते थे, सतक रहने क चेतावनी देतेथे। गलत नीितय पर ूहार कर सह मागदशन करना वे अपना कतय मानते थे।इन दन ःथान-ःथान पर ौी गुजी ने जो भाषण दये उह यद ःमरण कया, छपेहए ु या संकिलत वृ क छानबीन क तो हम ात होगा क ौी गुजी देशहत केबारे म कतने सजग थे, सतक थे। वशेष प से हम यह दखाई देगा क देश केवघटन के िलए कारण बनी तथा राीय एकामता के िलए हािनकारक घटनाओं काउलेख उनके भाषण म बार-बार आया है।देशभ के ठेके दार ने हदू रा क भाषा बोलनेवाले, सामह हदू रा का समथनकरनेवाले ौी गुजी को ‘सांूदाियक’ करार दया था। इस अहंकार तथा वैचारकूदषण ू के फलःवप देश के नेताओं ने ौी गुजी क देशहतकार संकपनाओं कोअःवीकृ त कर दया। कु छ उदाहरण से यह बात ःप होगी।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी166


१४.२ भाषावार राय-रचना१९५२ के पात ् देश म भाषानुसार ूांत रचना क माँग ने जोर पकड़ा। इस ू कोउछालकर भावनाएँ भड़काने का काम कु छ नेताओं ने शु कर दया। अपने भारत कासंवधान संघामक है। रायपुनगठन आयोग के गठत होते ह तरह-तरह क माँगतथा परःपर वरोधी दाव क बाढ़ सी आ गई। ौी गुजी का ःप मत था क देशका संवधान संघामक न हो। वह ‘युिनटर’ याने एकामक हो अथात ् के ि म एकशासन और बाक सारे ूांत ूशासन क सुवधा के अनुसार। कतु इस वचार कओर शासक ने यान नहं दया। वाद-ूितवाद बढ़ने लगे। भाषा भेद और भाषा कादरािभमान ु लेकर कई ूांत एक दसरे ू के सामने ऐसे खड़े हो गये मान वे शऽु रा ह।रपात क हंसामक भाषा का भी ूयोग होने लगा।इस आंदोलन म कयुिनःट पाट ने आग म घी डालने का काम कया। कयुिनःटक अिभलाषा थी क कसी तरह राीय एकामता भंग हो। इसे पूण करने हेतु पाटके नेताओं ने यह कहना ूारंभ कया क ूयेक भाषा आधारत ूांत एक रा है तथाभारत इन रा का समूह है।इस ूकार भूतपूव ॄटश रायकताओं के पदिचह पर चलते हए ु सःती लोकूयताूा करने म लगे साूय राजनीितक नेतागण तथा देश के छोटे-छोटे टकड़े ु करउसे दबल ु बनाते हए ु सी महासा का गुलाम बनाने के िलए कटब सायवादयका कोलाहल जब परसीमा पर था तब ौी गुजी ने ढ़तम तथा िनयामक ःवरम बताने का ूय कया क भाषा के अिभिनवेश का िशकार होने से राीयएकामता के सांःकृ ितक अिधान के भंग होने का धोखा है।इसी समय मुंबई म ूांतीयता के वरोध म एक परष का आयोजन कया गया। ौीगुजी इस परष के अय थे। परष के ःवागताय थे ौी जमनादास मेहताऔर उ-घाटक थे तकालीन महापौर ौी दााभाई पटेल। इस अवसर पर ौी गुजीने अय पद से जो भाषण दया वह बहत ु ह ूखर तथा वचारूवतक था।भाषण के ूारंभ म ह उहने कहा, “म एक देश, एक राय का समथक हँ। ू एक ओरसारे संसार का राय बने ऐसा कहा जाता है और दसर ू ओर संपूण भारत एक रायहो ऐसा वचार कसी ने रखा तो कु छ लोग क भहे तन जाती ह।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी167


“वाःतव म भारत म एक ह के ि शासन होना चाहए और शासन यवःथा क से राय के ःथान पर वभाग होने चाहए। आज हमारे नेतागण महाराीय, गुजरातीआद िभन संःकृ ितय क बात करते ह। कतु हमार तो आसेतु हमाचल एक हसंःकृ ित है तथा संःकृ ित तो रा क आमा होती है। इस कारण हम देश कसंःकृ ित, परंपरा, राधम तथा कु लधम क रा करनी चाहए। देश को धमशालाबनाकर काम नहं चलेगा। सौदेबाजी क भाषा रोककर हम रा का वचार करनाचाहए।”ौी गुजी ने भाषानुसार ूांत रचना का वरोध कया। इस वरोध को उहने ःपशद म बेहचक जनता के सामने य कया। इस बारे म महारा म काफ टका-टपणी हई। ु कतु ौी गुजी ने ऐसी टपणय क ओर न हं यान दया, न हिचंता क। कसी भी परःथित म उहने अपना राीय ववेक डगने नहं दया।सदैव क भांित वे अजग रहे। ववेकशीलता क अनुभूित संयु महारा के आंदोलनके समय हई। ु ूधानमंऽी पं. नेहजी ने आंी का राय भाषा के आधार पर िनमाणकरने को मायता ूदान कर द थी। कतु महारा और गुजरात को िमलाकरवशाल भाषी राय बनाया गया। इस िनणय का वरोध करने के िलए आंदोलनिछड़े, कतु पुिलस ारा गोिलयाँ बरसाकर दमननीित का सहारा लेते हए ु आंदोलनभंग करने का ूयास कया गया। ौी गुजी ने इस दमन ूवृ का कड़ा वरोधकया। इस वरोध को अिधक ूखर बनाने हेतु उहने एक पऽक ूसारत कयाजसम उहने कहा, “सरकार गुंड क सहायता से सयामह को कु चलना चाहती है।सरकार ारा ूोसाहत गुंडाशाह को सहना असंभव है। इस गुंडागद का यद मनेवरोध नहं कया तो माना जाएगा क मने अपने कतय का िनवाह नहं कया। मकतययुत नहं रह सकता।”एक और ूसंग इस संदभ म उलेखनीय है। ूतापगढ़ पर पं. नेह ारा ौी छऽपितिशवाजी महाराज क मूित के अनावरण का कायबम आयोजत कया गया। संयुमहारा सिमित ने पं. नेह के आगमन तथा अनावरण कायबम का कड़ा वरोधकरने का िनय कया। वरोध ूदशन क तैयारयाँ बड़ गमजोशी से चालू हो गयीं।ौी गुजी को यह बात अनुिचत लगी। राीय कोण से इस ूकार के वरोधूदशन अनुिचत है, यह बात उहने ूगट प से कह। यप कांमेस शासन ारायह कायबम राजनैितक उेँय से आयोजत कया गया था और मराठ जनमानस केूित ूेमभाव तथा अपनव का आभास िनमाण करने का एक अंतःथ हेतु भी उसकेमूल म था तथाप भारत के ूधानमंऽी छऽपित िशवाजी महाराज का गौरव करने आ<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी168


रहे ह, अतएव उनके आगमन का वरोध करना ौी गुजी सवथा अनुिचत मानते थे।उनके िलए राीय गौरव सवपर था।इस अवसर पर ूकािशत एक परपऽ म ौी गुजी ने कहा, “छऽपित िशवाजी क मूितका अनावरण करने के िलए मायता देते समय पं. नेह को झुकना पड़ा है। आजतक अपनी ह अहंकार ूवृ म डूबे रहने के कारण उहने अनेक बार िशवाजी काअपमान कया था। आज संपूण भारत के शासक-सुऽधार पं. नेह, वलंब से ह यन हो, एक असामाय रापुष के ूित आदर य करने हेतु पधार रहे ह। िशवाजीमहाराज न के वल महारा के अपतु संपूण भारत के वंदनीय महापुष ह। साथ हइस युगपुष क यथाथ महा समूचे व को बताने वाला यह ूसंग है। यह एकअपूव योग हम ूा हआ ु है इसम अपशकु न नहं होना चाहए। ऐसा ूय कोई नकरे। ऐसी कृ ित करने से िशवाजी के बारे म अनादर तथा अौा का भाव ह ूगटहोगा। इस कारण म सभी बंधु, भिगनी तथा माताओं से आमहपूवक वनती करता हं ूक वे अपनी ववेक बु से काम ल। अपना ववेक जागृत रख इस कायबम म भागल।”ौी गुजी के इस वय के कारण अनुकू ल-ूितकू ल ूितबयाएँ ूकट हई। ु कतुइस परपऽक ने संयु महारा के समथक को वचार के िलए बाय कया।परःथित को नया मोड़ लेना पड़ा।१४.३ पंजाब के संदभ मआगे चलकर पंजाबी सूबे का ववाद िनमाण हआ ु और उसम से ह पंजाब औरहरयाणा, दो शासकय ूांत तैयार हए ु यह सववदत है। यह वाद जस समयपरमोच िशखर पर पहँचा ु था उस समय भी ौी गुजी ने अपनी राीय एकता कऔर सब भारतीय भाषाएँ राीय भाषाएँ ह यह भूिमका कभी नहं छोड़। भारतीयजनसंघ के उस भाग के कायकताओं को भी न पसद पड़नेवाली ःप औरिनःसंदध भूिमका उहने महण क। उहने यह मत य कया क जनकमातृभाषा पंजाबी है वे ूामाणकता से राजनीित का वचार छोड़कर पंजाबी को हअपनी मातृभाषा िलखवाएँ। पंजाबी मातृभाषा होते हए ु भी हद को मातृभाषािलखवाने क सलाह जो देते ह वे बड़ भार भूल कर रहे ह। इस मतूदशन से अनेकआयसमाजी ौी गुजी पर बहत ु नाराज हए। ु जनसंघ के लोग को भी अड़चन सी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी169


मालूम होने लगी। परतु ौी गुजी ारा जो सलाह द गयी थी वह कतनी हतकारकथी, यह समय ने िस कर दया है। आगे पंजाब म उमवाद गितविधय नेपाकःतान क शह पर जोर पकड़ा। ूय संघशाखाओं पर हमले होकर अनेकःवयंसेवक को ूाण से हाथ धोना पड़ा। फर भी संघ क भूिमका अयत संयिमतरह। िसख हदू ह ह और हदू-हदू म झगड़ा लगाकर गृहयु भड़काने का रा-िोह षयऽ सफल नहं होने देना चाहए, इस भूिमका से संघ कायरत रहा। बदलालेने के वचार को उसने कभी भी आौय नहं दया। इस नीित का पंजाब म शांितलाने क से बड़ा लाभदायक परणाम हआ ु इसम कोई संदेह नहं।दण के भाषायी ववाद को सुलझाने हेतु ौी गुजी ने राीय एकता क कसौटसामने रखते हए ु इस आधार पर ूयास कये क समःत भारतीय भाषाओं काभावजगत ् समान होने से सब राीय भाषाएँ ह ह। सन ् ६६-६७ के आस-पासतिमलनाडु म हद-वरोधी आदोलन अपने चरम पर था। तब कोयंबटर ू कसावजिनक सभा म, जसक अयता ःवतंऽ भारत के के िय मंऽमंडल म मंऽी रहचुके ौी आर.के . षमुखम ् चेटयार ने, जहने संवधान सभा म हंद का वरोधकया था, क थी, ौी गुजी ने कहा- “भारत क सभी भाषाएँ राभाषाएँ ह यक वेसब एक ह राीय भाव ूगट करती ह। कतु एक भाषायी समूह के लोग दसरे ूभाषायी समूह को लोग के साथ कस भाषा म वातालाप करगे? ऐसी सपक भाषाकोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। चूँक हद देश म सवािधक बोली और समझीजाती है इसिलए उसे सपक भाषा के प म चुनना अिधक सुवधा का रहेगा।” बादम अपने अयीय भाषण म ौी षमुखम ् चेटयार ने कहा, “If that is the attitude,then I am for Hindi. (अगर ऐसा कोण है तो म हद का समथक हँ। ू )” अूयसय बतलाने के ूसंग ौी गुजी पर इस कालखंड म अनेक बार आये। महारा-कनाटक सीमा ववाद तो बहत ु नाजुक था। परतु ूयेक अवसर पर सपूण भारतक सांःकृ ितक एकामता, हदू समाज म परःपर ूेम का पोषण और राीयअखडता के सूऽ न यागते हए ु जो हतकारक था वह ौी गुजी ने बतलाया।राहत क छोट-मोट बात म भी ौी गुजी कतने सजग थे इसके चाहे जतनेउदाहरण उनके अखंड ूवास के समय ःथान-ःथान के भाषण म से बतलाए जासकते ह। कु छ ूमुख बात का ह संेप म उलेख यहां कया है। जब उनक इससजगता का वचार मन म आता है तब के रल के वाःतय म उनके मुख से सहजतासे िनकले उ-गार ःमरण आते ह। घटना इस ूकार हई ु , तैल-ःनान के उपचार केिलए वे सन ् १९५६ म पटाबी गये थे। ूथम दन तैल-ःनान और बाद म एक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी170


घटा तैल-मदन होकर ऊंण जल से ःनान के िलए ौी गुजी को ःनानगृह क ओरले जाया गया। तब वहां के वैराज बोले, “जरा संभल कर कदम बढ़ाएँ। वशेषतःःनानगृह म सावधानी बरत अयथा पाँव फसलने क आशंका रहती है।”ौी गुजी ःनानगृह के दरवाजे तक पहँचे ु थे। पीछे मुड़कर देखते वैराज से उहनेबकु ल उःफू तता से कहा, “आपका इशारा योय है परतु गोलवलकर का जम पैरफसलकर िगरने के िलए नहं हआ ु है, सावधानी से ूयेक पग िनयपूवक आगेडालने का ःवभाव बचपन से ह बना है।” इन उ-गार से ौी गुजी के ःवभाववैिशंय पर उनके ह मुख से उम ूकाश पड़ता है। “हर वषय म सावधानी” यहसमथ रामदास ारा बतलाया गया गुण अयत वषम परःथित म भी उनकेूयेक शद से य होता दखाई देता है।भाषक ू हो या राय पुनगठन का ू; आंदोलन, हंसाचार और लोकोभ कावःफोट होने पर ह सरकार माँग को माय करती है इसका ौी गुजी को दःख ुहोता था। भाषायी आंी क मांग सरकार ने ौी पोट रामुलु क मृयु के बाद मायक यह उदाहरण था ह। एक ह भाषा के लोग का एक से अिधक राय होने म ौीगुजी का वरोध नहं था। आी म तेलंगना ःवतंऽ राय िनमाण करने क माँग नेखूब जोर पकड़ा था। यह सन ् १९७३ के ूारंभ क बात है। हंसा, सावजिनक मालमाका बड़े पैमाने पर ववंस आद ूकार कयुिनःट ारा भड़काये गये थे।इस िनिमकये गये मत ूदशन म ौी गुजी ने कहा, “आंदोलनकारय का उम आंदोलन हआ ुतो ह एकाध माँग या समःया क ओर यान देने क सरकार नीित के परणामःवप शांित और सुयवःथा क परःथित बगड़ने क संभावना है। इससे कानूनवषयक आदर ह न हो जाता है। हंसामक वःफोट होने क राह देखने का याकारण? उम माग यह है क यद माँग याय और तक संगत हो तो वह ःवीकारक जाय। यद आी और तेलंगना को पृथक् राय चाहए ह तो वे दये जा सकतेह। एक ह भाषा के दो राय रहने म कोई बुर बात नहं है, सीमा पर ःथत औरसामरक से महव के ूदेश म नये राय िनमाण करते समय अिधक सावधानरहना चाहए। रा-वरोधी शय के दबाव के नीचे असम का सात राय मवभाजन हो सकता है तो आंी के सौहादपूण म दो राय य नहं बनाये जा सकते?वःतुःथित यह है क के वल भाषक आधार पर राय क पुनरचना करना ह गलतकदम था। अब भी के वल ूशासिनक सुवधा के आधार पर, जसम समान भाषा भीएक घटक तव हो, राय क पुनरचना क जाय तो वघटनवाद ूवृय को रोकाजा सके गा। मेरा मत आज भी कायम है क एकामक (Unitary) राय पित हअपने देश क ूकृ ित से अिधक मेल खानेवाली है।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी 171


१४.४ गोवा मु के समयौी गुजी को दो और ू के संबंध म अपना मतूदशन करना पड़ा। एक ू थागोमांतक का। १९४७ म अंमेज भारत छोड़ गये कतु पोतुगीज शासक तब भी गोवाम डटे हए ु थे। इस दरामह ु के वरोध म गोवा म जन आंदोलन शु करने का िनयकया गया। इस काय के िलए पुणे म ‘गोवा वमोचन सिमित’ क ःथापना क गयी।सिमित म सभी राजनीितक दल तथा दलबा लोग को भी समिलत कया गयाथा। नीित के बतौर यह तय कया गया क सवूथम भारत सरकार गोवा कोपोतुगीज के िशकं जे से मु कराने का ूयास करे। तदनुसार सिमित ारा के ियशासन से ूाथना क गयी। बाद म गोवा मु आंदोलन ूारंभ कया गया। १९५५ महए ु इस आंदोलन म संघ के ःवयंसेवक ने उसाह से भाग िलया। पोतुगीज ारादागी गई गोिलय से राजाभाऊ महंकाल नाम का एक ःवयंसेवक मारा गया।सयामहय पर अमानुषक अयाचार कये गये। िनमम अयाचार के बावजूद भीसयामह जार रहा।इस गोवा मु के िलए पोतुगीज के उपिनवेशवाद का वरोध करने के बजाय भारतसरकार मे सयामहय पर पाबंदयाँ लगा दं। परणामतः सयामह जार रखनाअसंभव सा हो गया। गोवा मु के िलए चल रहे आंदोलन के साथ ह भारत सरकारक नीित क ओर ौी गुजी बहत ु बारक से यान दे रहे थे। द. २० अगःत १९५५को ौी गुजी ने एक परपऽ मुंबई म ूकािशत कया। इसम उहने कहा, “गोवा मपुिलस कारवाई (Police action) करने का यह सुनहरा मौका है। इस कृ ित से गोवा तोमु होगा ह अपतु हमार ूिता भी बढ़ेगी और जो रा हम हमेशा धमकाते रहतेह, उन पर भी धाक जम सके गी।”ौी गुजी कहा करते थे क “पााय रा के , वशेष प से इंलैड के दबाव केकारण भारत सरकार गोवा के ू को हल करने के िलए सती से पेश नहं आ रहहै। चाहे जो हो, हम गोवा लेकर ह रहगे यह पैनी आकांा मन म धारण कर अंगदसा साहसी कदम आगे बढ़ाना आवँयक है। यद भारत सरकार इंलैड क इछा कोतूल देती है, उसे ूाथिमकता देती है तो हम जो ःवतंऽता ूा हई ु ह उसके कोईमायने नहं रह जायगे। वह िनरथक दखावा माऽ होगी। ऐसी राजनीितक ःवाधीनताक कोई कमत नहं होती।” इस ूकार ौी गुजी अपना मंतय िनःसंदध प व<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी172


संपूण पारदिशता से ःप कया करते थे। न कसी का भय, न कसी क िचंता। यदिचंता थी तो के वल समाज और राहत क।उनका मानना था क गोवा का ू वशु राीय ू है। यद पं. नेह ःवयं ितरंगावज हाथ म िलए गोवा मु आंदोलन का नेतृव करगे तो चाहे जतने ःवयंसेवकको सयामह म भाग लेने के िलए भेजने क मेर तैयार है। कतु गोवा के ू कोराीय ू मानकर सभी रावाद शय को संगठत करने का ूयास कांमेस केनेता ने कभी कया ह नहं। उनक यह मायता रह क जो सयामह चल रहा हैवह वरोधी दल का ह है।गोवा मु के ू पर ौी गुजी क भावना अयत तीो थी। अपनी आिसधुिसधु मातृभूिम के एक अवभाय अंग गोमातक से इितहास क कतनी ःमृितयाँजुड़ हई ु ह। कं तु भारत सरकार यद शबल का उपयोग कर गोवा मु के िलएआगे कदम न बढ़ाती हो तो या करना चाहए? १९५५ के सयामह का अनुभवयान म लेकर कु छ कृ ित भारत के जनता ने ह क तो उस बात के िलए ौी गुजीसब तरह से अनुकू ल थे। संघ के कु छ तेजःवी तण ने सश कायवाह ारापोतुगीज आिधपय म रहे दादरा-नगर हवेली क मु ूय कर दखायी थी। इसलड़ाई के युवक म से एक ौी सुधीर फड़के ने अपने संःमरण म िलख रखा है कयप ौी गुजी से ूय प से वचार विनमय कर यह मु संमाम नहं हआ ुथा फर भी उनक सहमित हम ने गृहत मानी थी।ौी सुधीर फड़के ने कहा है क ूय गोवा को भी मु करने क एक योजना १९६२के आसपास उसी तण गुट ने बनायी थी। ौी सुधीर फड़के और कु छ युवाओं का डॉ.पुडिलक गायतोडे, ौी मोहन रानडे आद गोमतकय ःवातऽ वीर से िनकट कासंपक था। डॉ. गायतोडे इंलैड से भारत लौट आये थे और वे भी गोवा मु केिलए अतीव याकु ल थे। अत म एक योजना बनी क भारत से लगी हई ु सीमा केिनकट का कु छ भू भाग सश संघष ारा मु कर वहां डॉ. गायतोडे के नेतृव मःवतऽ शासन ूःथापत कया जाय। इस योजना को ौी गुजी क सहमित थी।मनुंय बल और ियबल क ओर भी यान देने को वे तैयार थे। उनसे तीन बार ौीसुधीर फड़के ने भट क। ौी गुजी क सजगता यहां भी देखने को िमली। डॉ.गायतोडे और ूधानमऽी पं. जवाहरलाल जी के बहत ु िनकट के संबंध थे। पं. नेहके वरोध के बाद भी या वे इस काय म नेतृव करगे, इसका िनःसंदघ उर डॉ.<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी173


गायतोडे से माँगने का उहने सुधीर फड़के को सुझाव दया। तदनुसार उनकासकारामक उर ूा होने पर ह योजना को हर झड दखाई गई। यह आासनभी ूा हआ ु क गोवा के भीतर ूव होने तक भारत सरकार क ओर से कावटतो आयेगी नहं अपतु सब ूकार का सहयोग और मागदशन भी िमलेगा। परतुइसके पहले क ःवयंसेवक कु छ करते भारतीय सेना ह गोवा क ओर चल पड़।कारण यह हआ ु क सन ् १९६२ के चुनाव म ौी कृ ंणमेनन भी कांमेस के उमीदवारबन गये और उह तथा कांमेस को लाभ दलाने हेतु फौजी कायवाह कर गोवा कोमु करा िलया गया और ःवयंसेवक अपना पराबम दखाने से वंिचत रह गये। कतुभारत सरकार क कायवाह का, जो भले ह देर से क गई हो, देश म ःवागत कयागया। पू. गुजी ने भी उसका ःवागत कया कतु इतना अवँय मानना पड़ेगा कभारत सरकार ने इसे राीय ू मानकर हल नहं कया था। यान देने योय बातयह है क ौी गुजी ने इस संघष क योजना म िच लेकर उसका उिचत मागदशनकया और यह बात उनके रानेतृव क मता क से लणीय है।गोवा के ःवतंऽ होते ह ूधानमंऽी पं. नेह के साथ अय राजनीितक नेताओं ने यहकहना ूारंभ कया क गोवा क पृथक् संःकृ ित को सुरत रखगे। गोवा का वलयसमीप के राय के साथ न करते हए ु उसे के ि शािसत राय घोषत कया गया।इससे अपसंयक ईसाई समाज के राजनीितक हतसंबंध िनमाण हए ु औरराजनीितक अःथरता बन गयी। यह िभन संःकृ ित क भाषा, पृथक् संःकृ ित कसंकपना ौी गुजी को पसंद नहं थी। उहने डंके क चोट पर कहा, “गोवा म यदिभन संःकृ ित होगी तो वह पोतुगीज क ह हो सकती है। गोवा भारत का ह अंगहोने के कारण वहाँ क संःकृ ित भी भारतीय संःकृ ित ह होगी, अय नहं।”ौी गुजी इस बारे म बहत ु सतक रहा करते थे क रा क सांःकृ ितक एकता भंग नहोने पाये तथा कसी िनहत ःवाथ के वशीभूत हो ूादेिशक ववधता को अलगसंःकृ ित न मान िलया जाये। उनक इस सजगता का पग-पग पर अनुभव आयाकरता था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी174


१४.५ कँमीर वलयनौी गुजी क सतक ता क अनुभूित कँमीर समःया के संदभ म भी हई। ु कँमीर काभारत के साथ जो वलनीकरण हआ ु उसका आंिशक ौेय ौी गुजी को भी जाता है।ौी गुजी ने इस दशा म भी ूयास कया था।उस अयत संकटमःत काल म ये ूयास सरदार पटेल क इछानुसार ह ौी गुजीने सफलतापूवक कये थे। सन ् १९४७ का अटबर ु का महना था। वलनीकरण केू पर कँमीर के महाराजा हरिसंह के मन क अवःथा ढलमुल ु थी। कँमीर हड़पनेक नविनिमत पाकःतान को जद थी। कँमीर महाराज क सेना का पराभव करौीनगर पर कजा करना पाकःतान के िलए सहज सुलभ था। गृहमंऽी पटेल कःवाभावक इछा थी क जमु-कँमीर भारत म रहे। अटबर ु म ह कबाइिलय केनाम क आड़ लेकर पाकःतानी सैिनक ने कँमर घाट म आबमण शु कर देया।द. २६ अटबर ु को ौीनगर म पाकःतानी वज फहराकर वजयोसव मनाने कयोजना थी। यह गु वाता भी ूा हई ु थी क महाराजा क सेना के मुसलमानसैिनक शऽु से जाकर िमलने क सोच रहे ह।ूधानमंऽी पं. नेह शेख अदला ु का प लेकर अड़े हए ु थे। वलीनीकरण के संिधपऽ पर हःतार हए ु बना कँमीर म सहायता न भेजने का उनका पका िनय था।इसम कँमीर को पाक ारा हड़प िलये जाने का धोखा बकु ल ःप था।पाकःतानी आबमणकार ौीनगर क दशा म बढ़ रहे थे और कँमीर के भवतयका वह िनणायक ण था। ूयेक ण महव का था। मेहरचंद महाजन सहायता कमांग करने के िलए दली गये हए ु थे। वहाँ पं. नेह अपनी जद पर अड़े बैठे थे।इस परःपर-वरोधी खींचातानी म महाराजा भयंकर असमंजस म पड़ गये, कोई िनयन कर सके । भारत म शािमल होने के बारे म भी उनके मन म अनेक आशंकाएँ थीं।महाराजा क मनःथित को समझते हए ु पटेल ने ौी गुजी को दतू के प ममहाराजा के पास भेजा। पटेल ने ठक ह सोचा था। ौी गुजी सह य थे। उनकेपास नीितकौशल था और उह पटेल और महाराजा का आंतरक वास ूा था। १७अटबर ु , १९४७ को ौी गुजी वमान ारा ौीनगर पहँचे। ु उहने महाराजा के सामनेिस कर दया क कँमीर को ःवाधीन राय के प म वनाये रखने का वचारमृगतृंणा है। पाकःतान उसे कदाप नहं सहन करेगा। वह मुसलमान से आंतरक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी175


विोह करा देगा और राय क मुःलम सेनाएँ वमुख हो जायगी। ौी गुजी नेमहाराजा को इस बारे म आःत कर दया क भारत कँमीर के िलए सभी ूकार कआवँयक साममी जुटा सकता है। उहने कहा क पटेल कँमीरय के सभी वग केहत का पूरा-पूरा यान रखगे। अततः महाराजा भारत म वलय के सध-पऽ परहःतार करने के िलए तैयार हो गये। १६ अटबर ु को ौी गुजी दली लौट आये।उहने पटेल को सूिचत कया क महाराजा भारत म शािमल होने के िलए तैयार ह।२६ अटुबर को समझौते पर हःतार हए ु और द. २७ को सुबह से ह भारतीयसैिनक ौीनगर के हवाई अडे पर उतरने लगे। कतु वमान उतरने लायक उधर केहवाई अडे क ःथित नहं थी। वह पूरा हमाछादत था। ौीनगर म तो अराजकताका भयानक ताडव चल रहा था। महाराजा भी जमु चले गये थे। एसी ःथित मभारतीय सैिनक का ःवागत करने के िलए संघ के सकड़ ःवयंसेवक ने हवाई अडेपर पहले से ह पहँचकर ु उसे साफ कया।उपयु भट और चचा म महाराज हरिसंह ने संघ के ःवयंसेवक क भूर-भूर ूशंसाक। उहने कहा, “संघ के ःवयंसेवक ने हम समय-समय पर अयत महवपूणसमाचार बताये थे। ूथम तो हम उन पर वास ह नहं करते थे। परतु माऽ संघके खेमे से ूा हए ु समाचार ह पूणतः वसनीय थे। पाकःतानी सेना कगितविधय के बारे म समाचार ूा करते समय संघ के ःवयंसेवक ने जो साहसदखाया, उसक जतनी ूशंसा क जाय वह थोड़ ह है।” यह बात भी ौी गुजी द.१९ को दली लौटे और सरदार पटेल से िमलकर उह ौीनगर भट का सब समाचारदया तब बताई।इस अवसर पर संघ के ःवयंसेवक का अ-भूत शौय एवं मता ूकट हई ु ।पाकःतानी आबांत के ११ अटबर ु के आबमण संपूण सीमा पर फै ल रहे थे। जमूक २० हजार मुःलम आबाद भी उनको सहयोग देने क तैयार म थी कतुःवयंसेवक ने पहले ह उस शरारत पर काबू पा िलया और जमू क रा क। जमूके बना काँमीर के बचने क कोई आशा नहं रह जाती। एक बार आतरक षयंऽके िनरःत होते ह ःवयंसेवक ौीनगर के समान ह जमू हवाई अडे को साफ औरबड़ा करने के अयंत महव के काय म जुट गये। ५०० ःवयंसेवक ने ७ दन तकलगातार चौबस घंटे काय कर हवाई अडे को भारतीय डाकोटा के उतरने योय बना<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी176


दया। भारतीय सेना के सुरत आगमन के िलए सड़क क आवँयक मरमत इतनेकम समय म पूण करने का भी कितमान ःथापत कया।ौी गुजी क कँमीर वषयक अपेा पूणतः सफल नहं हई ु और इस वषय मअपनी यथा उहने बाद म समय-समय पर य भी क। भारतीय जवान नेतथाकिथत कबाइिलय को कँमीर सीमा के बाहर मार भगाने क मुहम ितगित ु सेऔर सफलतापूवक चलाई थी। ऐसा लगता था क संपूण जमू-काँमीर आबमण-मुहोगा। ौी गुजी का मत था क पाक-अिधकृ त कँमीर संपूणतः मु हए ु बनाकँमीर म सैिनक कायवाह न रोक जाय। परतु नेहजी ने अचानक एकतरफा युबद क घोषणा कर द और कँमीर का ू संयु रा संघ म ले गये। कँमीर काू संयु रा संघ म ले जाकर हमने गलती क है ऐसा अिभूाय ौी गुजी नेतुरत ह य कया। उनका यह इशारा क ‘यू.एन.ओ.’ बड़े शसंपन रा केहत संबंधी दाँव-पेच का अखाड़ा बना है और भारत को वहाँ याय नहं िमलेगा,समय ने सह ठहराया है। कँमीर का ू हल करने के संबंध म ौी गुजीक कपना अितशय ःप थी। उनका मत था क “भारत को के वल इसी का वचारकरना चाहए क कँमीर अय सैकड़ रयासत के समान ह भारत म पूणतः वलीनकै से हो? अय ूांत के लोग को वहाँ बसाकर “कँमीरयत” का भूत िमटा डालनाचाहए। धारा ३७० र करने हेतु सरकार का मन अनुकू ल बनाना आवँयक है। इससेअय ूात के ःतर पर जमू-कशमीर को लाया जा सके गा।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी177


१४.६ डॉ.मुखज का बिलदानअय रयासत क भांित संपूण कँमीर का भारत म वलय होना आवँयक था। सहराजनीित क यह कालानुप माँग थी। कतु दभायवश ु देश का वभाजन होने केउपरात भी मुःलम तुीकरण क कांमेसी नीित बरकरार रह। शेख अदला ु केनेतृव म कँमीर को अलग राय का दजा दया गया, वहाँ के िलए िभन वज,मुयमंऽी के िलए िभन पदनाम आद बात मानी ग। कँमीर का मसला हल करनेके िलए नेहजी ने ‘जनमत संमह’ क भाषा भी ूारंभ कर द। इसके वरोध मडॉ.ँयामाूसाद मुखज ने कँमीर म आवाज उठाई क ‘एक देश म दो िनशान, दोवधान, दो ूधान नहं चलगे।’ यह उनक यायोिचत, तक संगत घोषणा थी। साथ हसंवधान से धारा ३७० र कर कँमीर पूणतः भारत म वलीन कर दया जाए, यहभी उनक माँग थी। डॉ. ँयामाूसाद मुखज को कँमीर पुिलस ने िगरतार कर जेलम रखा जहाँ उनक संदेहपूण ःथितय म मृयु हई। ुइस दघटना ु से सारा देश हल उठा। ौी गुजी को ँयामाूसाद जी क मृयु केकारण बहत ु बड़ा धका पहँचा। ु उन जैसा ःथतू भी णभर के िलए ःतंिभत साहो गया। ौी गुजी यह मानकर चले थे क डॉ. ँयामाूसाद मुखज के नेतृव मवशु रावाद क नीित राजनीित के ेऽ म पु होगी। इस हेतु अछे संःकार ममँजे हए ु कु छ सहकार भी उहने उनको उपलध करा दए थे। कतु िनयित के मनम कु छ और ह था। डॉ.ँयामाूसाद मुखज क अनपेत तथा असमय मृयु केकारण यह आशा ढह गयी।ौी गुजी का ूामाणक मत था क सयामह का नेतृव करने के िलए ःवयं डॉ.मुखज को अमसर होने क आवँयकता नहं थी। उनके िलए यह कदम धोखादायकिस हो सकता था। आगे चलकर एक भाषण म डॉ. ँयामाूसाद जी का पुय ःमरणकरते हए ु ौी गुजी ने यह जानकार द। ‘आप न जाइये’ इस अथ का संदेश ौीगुजी ने डॉ. ँयामाूसाद मुखज को भेजा था। कतु इसके ूा होने के पूव हकायबम क घोषणाएँ हो चुक थीं। कदम आगे बढ़ चुका था। अब इस कदम को पीछेलेना डॉ. मुखज जैसे संकपिन महान ् देशभ के िलए असंभव था।डॉ. मुखज क बिल चढ़ने के उपरात भी कँमीर का ू हल नहं हआ। ु १९५३ तकःथित य क य बनी रह। १९५३ म शेख अदला ु को हरासत म िलया गया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी178


कतु वष बाद सासूऽ पुनः उहं के हाथ सपे गए। शेख अदला ु ने तबला औरडगा दोन पर हाथ रखते हए ु परवारवाद और मुसलमान क संगठत श िनमाणकरने क दोहर नीित बेहचक जार रखी। जनमत संमह का वचार परःथित केदबाव के कारण पीछे चला गया। जनमत क कपना का अराीय या रावरोधीःवप ौी गुजी ने ूारंभ म ह ूगट कया था।रा एक जीवत शरर के समान होता है, इस कारण शरर के कसी भाग काःवतंऽप से वचार नहं कया जा सकता। संपूण शरर का वचार होना आवँयक है।इसिलए यद जनमत लेना ह हो तो के वल कँमीर म नहं, संपूण भारत म िलयाजाना चाहए यह ौी गुजी क ःप धारणा थी।‘कँमीर के भवंय का ू कँमीर जनता का ू है’ पं. नेह के इस मत काूितवाद करते हए ु ौी गुजी ने कहा, “कयाकु मार से लेकर कँमीर तक सारा भारतएक है। इस संपूण ूदेश पर भारतीय का हक है। कँमीर िसफ कँमीरय का है यहकहना सवथा अनुिचत है।”१४.७ ईशाय भारतईशाय भारत का ू आज भी अित वःफोटक बना हआ ु है। मेघालय, िमजोरम तथानागालैड इन राय म ईसाइय का साॆाय है। इधर असम म मुसलमान घुसपैठएबनकर अपना संयाबल बढ़ाने के ूयास म ह। ऽपुरा तथा मणपुर भी अशांत है।अणाचल के लोग को भी ूलोभन दखाकर बड़े पैमाने पर उनका ईसाईकरण कयाजा रहा है। इन सार बात का वचार कर जनता तथा सरकार को ौी गुजी हमेशासतक कया करते थे।१९५१ को मकर संबमण के अवसर पर ःवयंसेवक तथा उपःथत नागरक कोसंबोिधत करते हए ु जो भाषण उहने दया उसम नागालैड क समःया का उलेखिमलता है। असम के घुसपैठय के बारे म वे बार-बार आगाह कया करते थे। ईशायसीमा ूदेश म ईसाई िमशनर कन रावरोधी गितविधय म जुटे हए ु ह तथापरंपरागत धमिनाओं को सुरंग लगाकर वःत करने का ूयास कर रहे ह, इसकसमम जानकार भारत ॅमण के दौरान उह ूा हआ ु करती थी।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी179


नागपुर के ूधान कायालय म ौी गुजी के साथ बैठकर बातचीत करते समय देशक वतमान ःथित का ान हो जाया करता था। व हदू परष के मायम सेईशाय ूदेश म अनेक समेलन का आयोजन हआ ु , जसम ौी गुजी उपःथतरहकर समयोिचत मागदशन करते थे। इन समेलन का एकमाऽ उेँय यह था कजो हदू बचे हए ु ह वे हदू समाज से जुड़े रह। उह एकऽ लाकर उनम हदव ू काभाव जागृत रखा जाए। कतु रायकताओं ने इस से कोई योजना नहं बनाई,परणामतः यह समःया आज भी जटल बनी हई ु है। वे पूछा करते थे क नागालैडयद भारत का अवभाय घटक है तो उसका शासकय संबंध पररा वभाग से य?गृहवभाग से य नहं?ौी गुजी को यह ू सता रहा था : जनजाितयाँ तो गो-मांस खाती ह, जबक हहूगो को माता मानकर उसक पूजा करता है तो उह हदू कै से माना जा सकता है?जनजाितय के मन म इस संदेह का बीज ईसाई िमशनरय ने कु ूचार कर बोया था।ौी गुजी ने १९६७ म जोरहाट म सपन व हदू परषद के समेलन मउपःथत ारकापीठ के ौी शंकराचाय और असम के विभन वैंणव सऽ के अयूमुख सऽािधकारय से वाता क और उह इस बारे म संतु कर दया कजनजाितयाँ तो सदा-सवदा मूलतः हदू ह रह ह, पर दघकाल तक शेष समाज औरउसक संःकृ ित से उनका संवाद और संपक टट ु गया अतः हदू धम के समुिचतबोध से वे वंिचत रहे। इस ूकार उनका कोई दोष नहं है, यद वे गो-भ जैसीहमार धािमक तथा सांःकृ ितक संकपनाओं से कटे रहे, अतः हमारा कतय हो जाताहै क हम बना कसी संकोच के जनजाितय को हदू समाज का अंग मान ल।सायं के समय एक सावजिनक सभा हई। ु उसम ारकापीठाधीश ने घोषणा क कजनजाितयाँ हदू ह और उनका गोमांस-भण उनक आिथक ववशता रह है,यक उन सुदरू अतःःथ पहाड़ ूदेश म कोई अय सःता खा उपलध नहं था।आचाय ने कहा क दोष तो सांःकृ ितक से तथाकिथत उनत लोग का है।उहने जनजाितय क सुध नहं ली। दघकाल तक न तो वे इन पहाड़ ूदेश म गयेऔर न ह उहने हदू संःकृ ित और हदू परपरा के बारे म वहाँ के लोग कोकु छ बताया। जनजाित-नेता और ूितिनिध इस अिधकृ त घोषणा को सुनकर ूसनहो गये और गौरवावत अनुभव करने लगे। इससे उनक हदू अःमता के बारे मसभी शंकाएँ दरू हो गयी थीं।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी180


समेलन म ौी गुजी ने जनजाित-नेताओं के साथ बैठकर भोजन कया। इससे वेग-ग हो गये। उह वाःतवक जीवन म हदू एकामता क भावना को अनुभवकरने का एक और अवसर िमला।इस सबसे हम ात होता है क ौी गुजी राीय समःयाओं का वचार कतनीगभीरता से कया करते थे। लोग ौी गुजी से हमेशा यह ू पूछा करते थे यदराीय ःवयंसेवक संघ राजनीितक संःथा नहं है तो फर वे राजनीितक समःयाओं परटका-टपणी य करते ह? उर म वे कहा करते थे क ‘सा संपादन म संघ ककोई िच नहं है। कतु जस नीित का परणाम रा क सुरा, उसक सांःकृ ितकएकामता, ःवािभमान तथा आमवास पर वपरत होता दखाई दे, वहां मतूदशन करना हमारा कतय है।’ इस कतय का िनवाह ौी गुजी ने दता पूवककया।आगे चलकर चीनी आबमण हआ। ु उस समय सरकार ने जनता को अँधेरे म रखा।कं तु ौी गुजी ने इस समय भी सय जानकार के आधार पर सरकार तथा जनताको चेतावनी देने का अपना कतय भलीभाँित िनभाया।१४.८ राजनीितक ेऽ म समवयदेश क परःथित का ौी गुजी का आकलन सूआम था। वे आगे क सोचकर कु छयोजनाएँ सामने रखते थे। इस वषय म भारतीय मजदरू संघ के संःथापक ौी दोपंतठगड ारा किथत उनसे संबंिधत एक घटना उ-बोधक है। १९६४ के माच मास मभारतीय जनसंघ के नेता पं. दनदयाल जी ने दोपंत को पू. ौी गुजी का एकसंदेश िभजवाया क “तकाल लखनऊ जाकर वे रायसभा के िलए अपना नामांकनपऽ भर।” वाःतव म भारतीय मजदरू संघ का दैनंदन राजनीित या राजनीितक पसे संबंध नहं था। फर भी अकःमात ् यह सूचना य आई? इसका रहःय दोपंतक समझ म नहं आया। परतु उहने लखनऊ जाकर नामांकन पऽ भरा। वे रायसभा म चुनकर भी आये। इसके बाद जब दोपंत क ौी गुजी से नागपुर म भटहई ु तब ःवाभावकतः रायसभा का ू िनकला। तब ौी गुजी ने अपने मन काहेतु दोपंत को ःप प से बताया। ौी गुजी का कथन, जो दोपंत जी ने िलपीबकर रखा है, इस ूकार है- “मुझे लगता है क इस देश म तानाशाह लाने का मोहरायकताओं को होगा। मेरा अनुमान है क ऐसी वकट परःथित िनमाण होगी कजब देश म एक भी वरोधी प अके ले ःवयं के बल पर ूितकार करने क ःथित म<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी 181


नहं रहेगा, दबाये जाने का डर सबके मन म रहेगा। ऐसी परःथित म ववश होकरवरोधी लोग यह वचार करने लगगे क तानाशाह का वरोध करने के िलए सबवरोधी प एकऽ आएँ। यह सच है क वरोधी प म भी आपसी तीो मतभेद ह,परतु परःथित के कारण सबको लगेगा क एक बार सब के समिलत ूय सेतानाशाह को तो ूथम न कर डाला जाय। उसके बाद आपसी ववाद का वचारकया जा सके गा। परतु उस समय सब के सामने यह ू रहेगा क सब को एकमंच पर लाने का काम कौन करे? यक सब अपने-अपने प के कटर समथक केनाते जाने जाते ह। कसी भी प के ऐसे कटर य पर दसरे ू प के मनुंयवास नहं रख सकते।”“मेर ऐसी इछा है क यह भूिमका िनभाने का काम अपने म से कोई करे। आजअपने जो लोग राजनीित के ेऽ म है उन सबके बारे म बाहर ःवाभावकतः यहधारणा रहेगी क ये लोग विश प के हमायती ह। इसिलए उनम से कसी केिलए भी यह भूिमका िनभाना कठन होगा। तुम अब एम.पी. बन गये हो एवं कसीभी प म तुम नहं हो। अब वर नेताओं से तुहारा सहजता से परचय होगा। सबप के नेताओं से बराबर के नाते तुम यवहार कर सकोगे।”“मुझे जो अपेत है वह काम तुहारे ारा सफल होना हो तो यह आवँयक है कतुहार ूितमा पातीत रहे। तभी तुहारे विभन नेताओं से यगत संबंधिनमाण हो सक गे और तुहारे शद पर वे वास रखगे। परंतु यह संपन करने केिलए तुह बहत ु बड़ कमत चुकानी पड़ेगी। वह कमत होगी ववादाःपद, ूोभकराजनीितक ू पर बोलना बकु ल टालना। अय वषय पर बोलने का िनयकरना पड़ेगा। ये वषय दसर ू को फके लगगे, उससे तुम को ूिस नहं िमलेगी।य के नाते अपना नाम चमके इस महवाकांा का तुम म उदय हो सकता है।वैसे गुण तुमम ह। यद यह इछा तुमम िनमाण हई ु तो म तुह दोष नहं दँगा। ूदोन माग तुहारे सामने ह। कोई भी वकप ःवीकार करने का संपूण ःवातंयतुमको है। म उस वषय म कु छ भी आदेश देना नहं चाहता। यह सब इसिलए कहरहा हँ ू क आगामी परःथित के संबंध म मेरा अनुमान तुहारे यान म आये।”ौी दोपंत ने वह माग बना हचकचाहट के ःवीकार कया जो ौी गुजी कोअपेत था। उसके लगभग ११ वष बाद देश म आपात ् ःथित लागू हई ु और उससमय वरोधी प को ूितकार के िलए एकऽ लाने के काम म ौी दोपंत ने<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी182


अयत महव क भूिमका िनभायी। वशेषकर लोकसंघष सिमित ारा संचािलतआपाकाल वरोधी सयामह के दौरान जब नानाजी देशमुख और उनके बाद ौीरवीि वमा िगरतार हो गये तब सिमित के शेष नेताओं तथा चौधर चरणिसंहसरखे अय दल के नेताओं से िनरतर सपक बनाए रखने म उह उन संबंध कालाभ िमला जो रायसभा के कायकाल म ःथापत कये थे। इहं ूय म से हजनता प साकार हआ ु और तानाशाह लादनेवाला कांमेस शासन सा से युत होगया। यगत बड़पन क आकांा बाजू म रखकर ौी दोपंत ठगड ने भी ौीगुजी क इछा िशरोधाय क। यह भी ौी गुजी ारा कये हए ु चयन क अचूकताका एक ूमाण मानना पड़ेगा।१४.९ पतृ-वयोगइहं दन म ौी गुजी के यगत जीवन म एक दःखद ु घटना घट। वह थी ौीगुजी के पूय पता ौी भाऊजी का दय रोग के कारण आकःमक मृयु। इससमय ौी भाऊजी क आयु ८२ वष क थी। द. २० जुलाई १९५४ को रात के समयअपने िनधारत समय पर वे सोए और नींद के आहोश म ह उनक मृयु हो गई।उस समय ौी गुजी नागपुर म नहं थे। द. १७ को ह माता-पता का आिशवादलेकर वे महाकौशल-मयभारत के दौरे पर िनकल पड़े थे। अपने ूय पता क मृयुका समाचार लानेवाला तार उह भोपाल म द. २१ को ूा हआ। ु परणामतः अगलादौरा ःथिगत कर ौी गुजी नागपुर के िलए रवाना हो गये। कतु भोपाल से हउहने नागपुर के िलए सूचना द क ौी भाऊजी का अंितम बया-कम द. २२ तकःथिगत न करते हए ु यथाविध पूण कया जाय। ौी गुजी क अनुपःथित मअंययाऽा िनकाली गयी। हजार ःवयंसेवक तथा नागरक क उपःथित म ःव.भाऊजी के पािथव शरर को पवऽ अन के अधीन कर दया गया।द. २२ को उषःकाल के समय ौी गुजी नागपुर पहँचे। ु ‘नागोबा’ नामक एक गली मउनका यगत िनवास ःथान था। ौी भाऊजी तथा ताई (माताजी) वहां रहा करतेथे। ौी गुजी अिधकांश समय तो महाल ःथत संघ कायालय म ह रहते। के वलभोजन के िलए वे घर आया करते थे। ताई के साथ गपशप, हाःय वनोद करभोजनोपरांत वे पुनः कायालय क ओर चल पड़ते। ौी गुजी के घर ःवयंसेवक काआना-जाना रहा करता। ौी भाऊजी तथा ताई क देखभाल ःवयंसेवक ह कया करतेथे। ताई भी ःवयंसेवक म अपने माधव का प देखतीं, उनके खाने-पीने क यवःथाःवयं करतीं। भाऊजी बहत ु ह एकांतूय थे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी183


ौी गुजी को देखते ह ताई क आँख से आँसू झरने लगे। माता का शोक देखकर ौीगुजी कतने यिथत हए ु हगे? वे ताई के दःख ु को समझ सकते थे। बचपन से हौी भाऊजी ने जो असीम संःकारधन दया था शायद उनक ःमृितयाँ भी ौी गुजीके मन म जागी ह। कतु िनयायास के अनुसार उहने अपनी भावनाओं पर काबूपाया। मन शांत हआ। ुसावना के िलए आनेवाल क भीड़ तो थी ह, कतु शोक संदेश का आना भीबहत ु बड़ माऽा म था। पाँच दन नागपुर म रहने के बाद वे नािसक पहँचे। ु वहाँ ौीगुजी ने भाऊजी क ऊर बया यथाविध पूण क। नािसक तीथेऽ म अनेकःवयंसेवक ने ौी गुजी से भट क।७ अगःत को ौी गुजी नागपुर लौटे और १० अगःत से िनय के अनुसार वे संघकायाथ ूवास के िलए चल पड़े। यगत हािन-लाभ का वचार करने के िलए उनकेपास समय ह कहाँ था?*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी184


१५ य से बड़ा काय१९४० म जब ौी गुजी के कं ध पर संघ जैसे रायापी तथा येयवाद से ूेरतसंगठन का भार सपा गया तब वे ३४ वष के थे। संघकाय को अपना सवःव अपणकर वे संघ के ूचार काय म इतने यःत रहे क १६ वष का समय देखते ह देखतेबीत गया। संघकाय ितु गित से बढ़ रहा था। ौी गुजी देशभर दौरा करते हए ु हदूसंगठन क महा और संघकाय क आवँयकता को ूभावी ढंग से रख रहे थे। इसकालखंड म समूचा भारत ौी गुजी को महान ् िा, मेधावी वा, सामाजक तथाराजनीितक घटनाओं का यथाथ ान रखनेवाले देशभ नेता के प म जानने लगाथा।इसी समय ौी गुजी क ५१ वीं वषगांठ संपूण भारत वष म संपन करने का िनणयिलया गया। संघ पर ूितबध तथा उसके िनवारणाथ वशाल देशयापी सयामह मवपुल धनरािश का यय हो जाने से संघ पर ऋणभार बढ़ गया था जसका संघ केनेतृवग पर दबाव बना रहता था। इस ऋणभार से मु होने का एक ह उपाय था करा के िलए र का कण-कण और आयु का ण-ण यतीत करनेवाले ौी गुजीक ५१वीं वषगांठ को िनिम बनाकर सावजिनक सभाओं म उह ौािनिध समपतक जाय। कतु वैयक मान-समान एवं ूिस से सदैव दरू रहनेवाले ौी गुजीको इसके िलए तैयार करना एक कठन काय था। कायकता इस दशा म वचारविनमय करने लगे। सकार समारोह धूमधाम से हो ऐसा सभी ःवयंसेवक चाहते थायक ौी गुजी पर सभी जी जान से ौापूवक ूेम करते थे। ौी गुजी क हरइछा ःवयंसेवक के सर-आँख पर थी। और यह तो ५१वीं वषगांठ का मंगल,भावोकट ूसंग था। एक ओर ौी गुजी का िनमह ःवभाव और दसर ू ओरःवयंसेवक का ूेम। यह भावभीना मीठा-मीठा संघष कौन जीतेगा?१५.१ ५१व जमदन का अपूव संदेशौी गुजी सदा कहा करते थे क ःवयंसेवक को संगठन म पूणतः घुलिमल जानाचाहए। अहंकार क हवा उसके मःतंक म ूवेश न करे तथा वह आमूशंसा सेकोस दरू रहे। इसी साँचे म ौी गुजी ने ःवतः को ढाला था। उहने अपने दैनंदनजीवन म कमयोग का पालन कठोरता से कया था। िनय साधना के कारण कमयोगका आचरण करना उनका ःथायी भाव था इस कारण ःवयंसेवक क उनका सकार<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी185


करने क तीो इछा और ौी गुजी का कठोर वरोध, इन परःपर वरोधी भाव केबच कई महन तक रःसा-कशी चलती रह। जे ःवयंसेवक और ौी गुजी परूेमािधकार रखने वाले कु छ अिधकारय के अथक ूय के फलःवप ौी गुजी नेसकार समारोह के िलये मायता दे द। कतु एक आासन ूा होने के बाद ह।कौन सा आासन माँगा था उहने? यह क इन सकार कायबम के मायम सेजो िनिध संकिलत होगी, उसका उपयोग संघकाय क वृ के िलए ह कया जाएगा।कायकताओं ने हामी भर और ःवयंसेवक क इछापूित का माग ूशःत हो गया।कायबम क परेखा कु छ इस ूकार क िनत क गई। कायबम १८ जनवर १९५६से ूारंभ होगा। ःवयंसेवक घर-घर जाकर ौी गुजी तथा संघ क वचारधारा तथावचारूणाली के वषय म जानकार दगे। तपात ् ौी गुजी के िलए ौािनिध देनेक ूाथना करगे। संपूण भारत क जनसंया के एक ूितशत लोग से संपक कयाजाय। साथ ह इस अिभयान क अविध ५१ दन क ह होगी। इस योजना सेःवयंसेवक म उसाह का संचार हआ। ु१९५२ के गोहया िनरोध आंदोलन के पात ् सारे देश म जनसंपक अिभयान चलानेका यह पहला ह अवसर था। इस कायबम के िनिम आवाहन, पऽक, वृपऽीय लेख,वशेषांक, पुःतका आद वपुल साहय ूकािशत कया गया। ःव. ौी नाना पालकरने इसी अवसर के िनिम ौी गुजी का जीवन-चरऽ िलखा। इस ूचारकाल म ौीगुजी का नाम देश भर म गूँज उठा। ौी गुजी के जीवन से परिचत होते ह समाजके सुबु नागरक यह सोचने लगे क लाख युवा तथा ूौढ़ के िलये सरसंघचालकौी गुजी एक ूेरणाःथान बने हए ु ह। यह सयानुभूित भी जनता को हई ु क वे नके वल संघ का, कतु समूचे देश का कु शल नेतृव करने क अपार मता के धनीह। संपूण भारत लालाियत होकर कायबम क, ौी गुजी के दशन क एवं उनकेओजःवी भाषण क बाट जोहने लगा।िनिध संकलन के समय इस बात का सााकार हआ ु क संघ मडल के बाहर भी ौीगुजी पर ूेमवषा करनेवाले अनिगनत लोग वमान ह। अंत म लेखा-जोखा करनेपर पता चला क िनिध संकलन २० लाख से भी अिधक हआ ु है।वजया एकादशी! ौी गुजी क जमदन! सुबह से ह ौी गुजी के घर म चहल-पहल शु हो गई थी। शाो ढंग से पूजाविध सपन कर होम हवन कया गया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी186


ईर तथा अय वेदो शय का आिशवाद ूा हो इसिलए िस मंऽ घोष भीधमािधकारय ारा संपन हआ। ु सभी ूसन थे। ौी गुजी ारा अपनी माता ताईके चरण को ःपश करते ह उनके मःतक पर दो अौु बंदु माँ क आँख से िगर पड़े।यह एक अनुठा आशीवाद था िचरंजीवी, यशःवी होने का। ताई क आंख से झरनेवाले अौु आनंद के थे और दःख ु के भी यक ौी गुजी के पता ौी भाऊजी अबजीवत नहं थे। यह भी हो सकता है क ताई ने अपनी एक आँख से ःवयं के औरदसर ू आँख से ःव. भाऊजी के आशीवादपूण अौु बहाये ह। सारा वातावरण भावभीनाथा। ःवयंसेवक तथा अिधकार वग खुशी से फू ले नहं समाते थे।वदनीया ताईजी क अनुमित ूा होते ह छायािचऽ िलये गये। इस पावन पव सदाके िलए सँजो िलया गया। संया समय ौी गुजी अपने िनवास से रेशीमबाग ःथतआ सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी क समािध पर गये और उस पर पुंपापण कया।उसी दन ौी गुजी का ूथम सावजिनक सकार समारोह संपन हआ। ु देशभर मःथान-ःथान पर सयनारायण महापूजा, होम-पूजा, होम-हवन, मंऽ जागरण, अिभषेकअनुान आद कायबम वृह ूमाण म संपन हए। ुसंघ के ःवयंसेवक के साथ ह सहाविध नागरक ने भी इन समारोह म भागिलया। अिभनंदन पऽ तथा शुभेछा संदेश देनेवाले तार क तो मान वषा ह हो रहथी। पऽ और तार का ढेर लगा हआ ु था।देश के ूयेक ूात म सकार समारोह हेतु सिमितय क योजना क गयी थीजनम ूितत गणमाय नागरक को समिलत कया गया था। ौी गुजी कोसकार मूित के नाते एक माह तक ूवास करना था। सकार का िसलिसला द. ८माच को नागपुर म संपन कायबम से शु हआ ु और अंितम समारोह द ८ अूैलको दली म मनाया गया। ूयेक राय म हए ु कायबम क अयता करने केिलये ःथानीय सिमितय ने ूयात यय का चयन कया था। िनिध समपण, ौीगुजी का अभी िचंतन तथा अंत म ौी गुजी ारा सकार के उपलआय म दयागया उर- इस ूकार क कु ल योजना बनाई गयी थी।नागपुर के सकार कायबम के अय वयात इितहासत तथा संसद सदःय डॉ.राधाकु मुद मुखज थे तथा दली के वशाल कायबम क अयता भारत केपाकःतान म िनयु भूतपुव उचायु डॉ. ौी सीताराम जी ने क थी। अय ःथान<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी187


पर डॉ. धडो के शव कव, ौी. सोनोपंत दांडेकर जैसे महापंडत को अयता करने केिलये चुना गया था।संघ तथा समाज म संघ के ूित सहानुभूित और ौी गुजी क् ूित ूेमभाव दय मरखनेवाले बंधु, भिगिन तथा माताओं के सहकाय से सपन विभन कायबम मसकार के उर म ौी गुजी ने जो भाषण दये, उनम ःवतः को गौण बताकरसंघकाय को महान ् तथा सवपर बताया। नागपुर के कायबम म बड़ नॆता सेउहने कहा, “वगत कु छ दन म मेर ूशंसा-सराहना करनेवाले समाचार, लेखअखबार म ूकािशत हए ु देखकर मुझे आय हआ। ु संघ क भांित एक महान ् संगठनका ौेय कसी एक य को भला कै से िमल सकता है? संघ क ूगित म अनिगनतकायकताओं का सहभाग है। म आपका ूेमभाजन अवँय हँ ू कतु संपूण ौेय कानहं। भारत का ूयेक ःवयंसेवक तथा कायकता संघ के वकास म समान प सेसहभागी है। आप मुझ पर ूेम करते ह इसका अथ म मानता हँ ू क आप संघ परूेम करते ह। म आपसे ूाथना करता हँ ू क आप इस ूेम के साथ ह संघकाय कोअपने जीवन का एक अंग बनाएँ। समाज को संघमय बनाने क से यह आवँयकहै यक संघ का वचार रा का ह वचार है, भारतमाता के गौरव का वचार है।अपनी मातृभूिम के वषय म दय म जो ौा का भाव है उसका पुनजागरण करनेक आज आवँयकता है। यह तभी संभव होगा जब ूयेक के मन म अपनीभारतमाता के पुऽप हदू समाज तथा अित ूाचीन काल से चल रहे सांःकृ ितकराीय जीवन का िचऽ अंकत होगा। अपने दय म यद भारतमाता के ूित दयअिभमान होगा तो उसके आधार पर ह िना और चारऽक गुण का अपने जीवन मसंचार हो पाएगा। इन गुण से यु या संपन य जब िनिमत होगा तबराकयाण क सभी योजनाएं सफल हगी। इसी ूकार समपत, कतयपरायण तथाअनुशासनब जीवन से ह पवऽ राीय श िनमाण होती है। इसी श का िनमाणकरना ह संघ का एक माऽ येय है।”“अपने रा क ःथित का वचार कजए। या हमार मातृभूिम अखंड तथा एकामहै? या हमार राीय एकता सुढ़ है? या हम पता है क हमार राीयता काःवप या है? या रा का अथ एक दजे ू से िभन और बेमेल गुट क गठर होताहै? अपने देश के बारे म िचंतन करनेवाले हर य के मन म यह ू उपन होतेह। इन ू का उर संघ ने ूारंभ म ह दया है। संघ का काय य, ूात, पंथ,भाषा, प और जाित से परे तथा इन भेद से ऊपर उठकर चलता है। इन सारे भेदसे संघ पूणतः अनिभ है। मातृभूिम के ूित एक समान भ क भावना जगाकर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी188


सबको एक सूऽ म गूँथना ह संघ का उेँय है। इसिलये आप सभी महानुभाव इनुि भेद से ऊपर उठकर संघ के समावेशक यासपीठ पर एकऽ आय, यह संघ कअपेा है।”“य से काय बड़ा होता है। यद कोई सोचे क यह काय के वल मुझ पर ह िनभरहै तो यह िनरथक अहंकार होगा। इस संसार म य आते ह और जाते ह। कयाहआ ु काय ह शेष रहता है। आज अनेक य ऐसे है जो सोचते रहते ह क उनकेबाद या होगा? इसी िचंता से वे मःत ह। ॄटश रायकता भी यह बोला करते थेक उनके भारत छोड़ने के पात ् इस देश का कारोबार कै से चलेगा? कतु अपनेसमाज म ौे, बुमान तथा गुणसंपन यय क कोई कमी नहं है। यद कोईय ओझल हो जाय, काय से हट जाय या भगवान को यारा हो जाय तो अयलोग आगे आकर काय को आगे बढ़ाते ह। डॉ. हेडगेवार जी क मृयु के पात हमसभी िमलकर उनका काय आगे चला रहे ह। इस कारण मेर बनती है क आपय क ओर नहं काय क ओर देख।”“कायकताओं ने आपसे कहा होगा क ये गुजी के वचार ह। लेकन ये वचार मेरेनहं ह। अपनी भारतीय परंपरा ान का महासागर है। इस महासागर म से मने चंदबूँद उठाई ह। भारत के देहात म रहनेवाला अनपढ़ साधारण आदमी भी तव है।पााय वचारक और वान को भचका कर देने क मता रखनेवाला ान-वचार धन तो परंपरा से ह उसे ूा होता है।”“संघ क नींव म हजार यागी, िनावान कायकताओं क तपया के पथर जड़े हए ुह। संघ काय का यह संबल है। संघ हमेशा रा का ह वचार करता है और म उसेय करता हँ। ू कसी मामोफोन से अिधक मेरा ौेय नहं है।”“संघ का वचार एकतरफा है। संघ कसी राजनीितक प का वरोध नहं करता संघके वल रा का तथा हदू समाज का भावामक वचार करता है। आप चाहे कसी भीदल या प म काय कर, कतु यह न भूल क आप हदू समाज के एक अिभनअंग तथा भारतमाता के सुपुऽ ह। सौ साल पहले काँमेस का अःतव नहं था परतुउस समय भी अपने रा का अःतव था। विभन प िनमाण होते ह औरकालांतर म उनका य हो जाता है। य क भांित प आते ह और जाते ह। साथह एक बात ःप है क कसी का जम कसी प (पाट) म नहं होता, ूयुत<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी189


समाज म होता है। इस कारण हमारा ूथम कतय समाज और रा के ूित चाहए।अपने जीवन का पॅयेक ण इस कतय भावना से ओतूोत हो ऐसा ूय कर।”“संघ का काय देश म परःपर सामंजःय, िनःःवाथ सेवावृ तथा शील संवधन करनेका है। यह आजीवन चलनेवाला काय है। इस वचार ूणाली का आप ःवागत कर।यह बात कस के ारा कह जा रह है, यह बात महव क नहं है। या और कससंबंध म कहा जा रहा है, यह वचार करने का मुय वषय हो। भारतवष मअनुशासनब तथा संगठत राजीवन का िनमाण हो, इसके िलए संघ आप केसहकाय क अपेा करता है।”इस ूकार सकार समारोह म ःतुित गान कये जाने पर या ये महानुभाव ाराभूर-भूर ूशंसा सुनने के पात ् भी ौी गुजी क भाषा मृदु, मधुर, नॆता से भरहई ु रहा करती थी। म कु छ हँ ू, इस भावना का ःपश भी उनके यवहार म कभीदखाई नहं देता था। वह संयिमत, वनॆ, िमऽता और हाःयरस से परपूण सामायसा यवहार लोग के मन जीत कर उनके ूित आदर-ौा-यु आकषण उपन करजाता था। सकार समारोह तो ूसंग वशेष के िनिम होनेवाले उपबम माऽ हआ ुकरते ह। कतु इन ूासंिगक कायबम का उपर उेँय भले ह ताकािलक हो, हमउनका उपयोग दैनंदन संघकाय वःतार के िलये ूेरक तथा पोषक मानकर करनाचाहए यह उनक धारणा थी।ौी गुजी ःवयं शाखा वःतार तथा कायकताओं से संपक बढ़ाने और बनाए रखने कओर अिधक यान दया करते थे। बाक कायबम वे परःथितजय आवँयकता तथाकायवःतार क से ह पूण कया करते थे। १९४९ म देशभर म संपन हए ुअिभनंदन समारोह तथा १९५६ म हए ु वषगांठ के कायबम ारा ौी गुजी तथा संघदोन ह ूिस के ूकाश म इस तरह आलोकत हए ु क संपूण भारत संघवचार सेसुपरिचत होता दखाई दया। अिधकािधक लोग तक संघ क वचारधारा पहँच ु सक।संघ समाज के िलये आशापूित का ःथान बन गया। १९६२ तक जो ६ वष काकालखंड बीता उसम ौी गुजी के वल संघ वःतार तथा संगठन के ढ़करण के कायम ह मन रहे। इस कालखंड म उनके यगत जीवन म कोई वशेष घटना नहंहई। ु<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी190


१५.२ डॉ. अंबेडकर ारा बौ मत क दा१९५६ म वजयादशमी के अवसर पर एक ऐसी घटना अवँय हई ु जसके समाजजीवन पर दरगामी ू परणाम हए। ु ,माज म खलबली सी मच गयी। डॉ. बाबासाहबअबेडकर के नेतृव म लाख अनुसूिचत वगय बंधुओं ने बौ मत को ःवीकारकया। इस वष िनय क परपाट के अनुसार धंतोली ःथत पटवधन मैदान पर(नागपुर का एक भाग) एक ओर राीय ःवयंसेवक संघ का वजयादशमी महोसवसंपन हे रहा था तो दसर ू ओर यहां से 5 क.मी. के अंतर पर ःथत ‘दा मैदान’पर डॉ. अबेडकर क उपःथित म महार बधु बौमत क दा ले रहे थे।यह बात नहं थी क बौ मत को ःवीकार करनेवाले बंधु हदू परंपरा व संःकृ ित सेटट ू रहे थे। बौ समाज हदू समाज का ह एक अंग ह, यापक वृह हदू समाजका एक छोटा सा अंश। डॉ. अबेडकर ने जब अपने वंिचत समाज का मतातर करनेका िनय घोषत कया था तभी से ईसाई और इःलाम मजहबी नेताओं ने इससमाज को अपने मत म समा लेने हेतु भरसक ूय कए। कतु डॉ. अबेडकर नेबौमत को ःवीकारा, यह बात उनके राीय कोण को ह दशाती है। बौ मत कदा महण करने के पूव पऽकार परष म बोलते हए ु डॉ. अबेडकर ने कहा था-“एक बार मने महामा गांधी से कहा था क यप अःपृँयता के मुे पर म उनसेिभन मत रखता हँ ू पर जब समय आयेगा तब म वह राःता चुनूँगा जो देश के िलएयूनतम हािनकारक होगा। और बौमत का अंगीकार कर आज म देश को अिधकतमलाभ पहँचा ु रहा हँ ू यक बौमत भारतीय संःकृ ित का अंग है। मने इस बात कसावधानी बरती है क मेरा मतातर इस भूिम क संःकृ ित और इितहास क परपराको हािन न पहँचा ु सके ।”सकड़ वष से हदू समाज ारा इन तथाकिथत अःपृँय पर बहत ु अयाय कये गएथे। उह अपमािनत कया गया था। इसके वरोध म आंदोलन, संघष, युवाद तथाआवाहन के भरसक ूय हए ु थे। कतु इसका कोई परणाम नहं हआ ु था। समाजमानस म परवतन के कोई लण दखाई नहं दे रहे थे। समाज का एक अंग उसकेमूल, से टटना ू चाहता है, इसक कोई वेदना भी शेष हदू समाज म होती दखाई नहंदेती थी।भारत के संवधान म अःपृँयता (अछत ू मानने क ूवृ) को अवैध माना गया है।कतु लोग के ूय यवहार म से वह न नहं हई ु थी। समाज के दिलत-पड़तलोग को अब भी िनकृ मानकर अपमािनत होना पड़ रहा था। इस अवांछनीय<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी 191


परःथित क ूितबया के प म अपने परंपरागत हदू धम का याग करने कािनय डॉ. बाबा साहब अबेडकर ने कया था। इस िनणय का परणामकार ःवप१९५६ के वजयादशमी के महोसव के समय दखाई दया। डॉ. बाबा साहब का वचारसाकार प धारण कर गया।इस घटना ारा हदू समाज म जागृित आयेगी ऐसी अपेा थी, कतु ऐसा कु छनहं हआ। ु अःपृँयता का यह कलंक धो डालने क आवँयकता है यह वचार करनासमाज के िलये आवँयक था। कतु दभाय ु से ऐसा न हो पाया।इस घटना के ूित ौी गुजी क या ूितबया थी? ूयेक समःया का राीय,ःतर पर वचार करनेवाले ौी गुजी को सामुहक मतातरण कतई माय नहं था।इस तरह समूह म मतातरण करने क कपना पर उनका वास ह नहं था। द.१२ नवंबर १९५६ के ‘पांचजय’ सााहक म ूकािशत एक लेख म ौी गुजी ने इससामूहक मत परवतन के संबंध म अपनी राय य क है। वे िलखते ह, “याकसी सचे धम म सामूहक धमातरण जैसी भी बात हो सकती है? एक धम कोछोड़कर दसरे ू को अंगीकार करना एक मनोवैािनक ूबया ारा ह संभव है।...उसकेिलए आमिनरण क आवँयकता है। मूल धम के तथा उसे छोड़कर जस धम कोअंगीकार कया जानेवाला है, उसके आयामक, नैितक व यावहारक ेऽ म जीवनके जो आदश बताये गये ह उनका पूव वेषण करना आवँयक है। इसका अथ एकऐसा आमूलाम परवतन है जसम नये धम क सजीव अनुभूित हो। उसका परणामयह होता है क सभी ेऽ म जीवन का एक नया प दखाई देता है। या सामुहकधमातरण म इस ूकार का यापक एवं आमूलाम परवतन संभव है?”डॉ. बाबा साहब क ौेता से ौी गुजी अछ तरह परिचत थे। बाबा साहब केधमचब ूवतन के सात वष पात, ौी गुजी ारा िलखे हए ु लेख म ौी अबेडकरके काय के संबंध म उनक धारणा का परचय िमलता है। ौी गुजी ने िलखा है,“भारत के धम-संःकृ ित के दय संदेश के गजन से जहने सारे संसार को हलादया. झंझोड़ दया, उन ौीम ववेकानद जी ने भी यह कहा था क दन, दबल ु ,गरब और अानमःत भारतवासी को ह म ईर मानता हँ। ू ऐसे पीड़तो क सेवाकरना तथा उनके सु चैतय को जागृत कर उनका भौितक जीवन सुखपूण औरउनत करना ह सची ईर सेवा होगी।” ौी ववेकानद जी ने ‘छना ू मत’ कअयायपूण ूवृय पर तथा उनसे संलन गलत ढ़य पर कठोर ूहार कये।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी192


समाज क नई रचना करने का आवाहन कया। ववेकानंद क इहं भावनाओं को डॉ.अबेडकर जी ने िभन शद म राजनीितक तथा सामाजक संदभ म ुध होकरकहा। अान और दःख ु म सड़ रहे समाज के एक बृह भाग को अपमािनत अवःथासे ऊपर उठाकर उह आमसमान ूदान करने का असामाय काय उहने कया।अपने रा को अबेडकर जी ने उपकृ त कर रखा है। इन उपकार के ऋण को उतारनाकठन बात है।“ौीमत ् शंकराचाय जी क कु शाम बु तथा भगवान बु के दय क कणा का मेलहोने से भारत का उार होगा,” ऐसा ःवामी ववेकानद ने मागदशन के प म कहाथा। कहना पड़ेगा क बौधम का ःवीकार तथा पुरःकार कर इस मागदशन कोपूणता क ओर ले जाने क ूेरणा डॉ. अबेडकर ने द। उनको यह भी लगा कयवहार म समानता, शुिचता, कणामय ःनेह, इन सब गुण म से ूा मानवता कसेवा करने क वशु ूेरणा यह बौमत क ौा से उपन लाभ रा तथा मानवताके कयाण हेतु आवँयक है, इस तय को पहचानकर ह उहने बौ मत काआमहपूवक पुरःकार कया दखाई देता है।“ूारंभ म भगवान बु ने तकालीन ऽुटपूण धारणाओं पर टका-टपणी कर ूहारकये और समाज सुधारने तथा धम का ःवप शु करने क कोिशश क थी, धम सेअलग होने क नहं। वतमान काल म डॉ. अबेडकर ने समाज तथा धम हत केिलये समाज िचरंजीवी, दोषरहत और सुढ़ बनाने के िलए आजीवन काय कया।समाज से टटकर ु अलग होने तथा िभन पंथ िनमाण करने का उनका वचार नहंथा, ऐसी मेर ौा है। इसी कारण इस युग के भगवान ् बु के वारस के नाते मउनक पवऽ ःमृित को अिभवादन करता हँ। ू ”अःपृँयता िनवारण के िलए गांधी जी ने भी सराहनीय ूयास कया। अःपृँय यादिलत वग को हदू समाज से अलग करने के ॄटश ूयास को वफल करने केिलए गांधी जी ने १९३२ म आमरण अनशन कया। उनके िलए ॄटश सरकार कओर से कोई नाम फ के जाने के पूव ह गांधी जी ने ‘हरजन’ शद सामने रखा जसेउस समय पूरे समाज ने िशरोधाय कया। सन ् १९३३ म उहने देशयापी अःपृँयतावरोधी आदोलन ूारभ कया। कतु इतना सब करने पर भी समःया हल नहंहई। ु कानून बनाने पर भी अःपृँयता बनी रह।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी193


इस संदभ म ौी गुजी तथा संघ ने जो भूिमका ःवीकार क उसका वचार करनाउिचत होगा। संघ ने समाज परवतन के िलए एक अलग माग अपनाया। संघ कामानना है क समाज का िनरंतर तेजोभंग कर, ूाचीन परंपराओं को याय तथािनरथक मानकर या के वल विभन भेद पर ूहार कर समाज को सुधारा नहं जासकता। इससे समवय के ःथान पर संघष और कटता ु ह बढ़ेगी। एकता के ःथानपर वलगता ह दखाई देगी।संघ ने यह वचार सामने रखा क सब हदू ह ह, एक परंपरा म पले-बढ़े ह। अतःहम सब एक ह यह भाव जागृत कर सबके साथ समान यवहार करना तथा ऊँ च-नीचक भाषा का न ूयोग करना और न उचारण! आमयता क इस वशाल भूिमकाको यावहारकता क समतल भूिम पर लाने का सफल ूयास ौी गुजी ने अपनेआचरण ारा ूःतुत कया।१९५० क एक घटना है। पुणे म संघ िशा वग चल रहा था। भोजन के िलए सभीःवयंसेवक पंय म बैठे हए ु थे। भोजन परोसने का काम एक गट को दया हआ ुथा। जब भोजन परोसने क बार आई तब एक ःवयंसेवक आगे आकर परोसने केिलए संकोच कर रहा था, हचकचा रहा था। ौी गुजी के पूछने पर भी वह मौनरहा। बाद म पता चला क वह एक चमकार था। ौी गुजी ःवयं उठ खड़े हए ु औरउहने अन साममी से भरा हआ ु बतन उसके हाथ म थमाया और कहा, “पहले मेरपल पर परोसो।” उस चमकार ःवयंसेवक क हचक गायब हो गयी। वह परंपरा सेचल रहे जात-पाँत क भावना को एकदम भूल गया। एक नया वास, नया आयाम,एकामता क नयी अनुभूित उस म जाग उठ और ूसनता से वह परोसने मसमरस हो गया। ौी गुजी के ःनेहयु ूयाचरण से यह संभव हो सका। ूेम,स-भावना तथा एकामता के ूवाह म भेद को डुबो देना, वसजत कर देना ह संघका माग है। यह माग संघ म तो सफल िस हआ ु , कतु समाज के ववध ःतरपर उसक पूणता अभी बाक है।१५.३ ॄदेश के ूमुख सेॄदेश के सवच यायालय के एक यायमूित ौी उछान ् ठन ु ् दसंबर १९५६ तकभारत म थे। ‘वड बुःट कॉफरेस’ के ूितिनिध के नाते उनका दली आगमनहआ ु था। उहने ौी गुजी से भट क और संघ का िनकट परचय ूा कया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी194


नवबौ मंडली से वातालाप करने क उनक इछा थी। तदनुसार उहने दली केअितर आगरा, मुबई, पुणे, नािशक, औरंगाबाद, नागपुर आद ःथान क याऽाक। ौी गुजी से वःतार से चचा क, संघ शाखाएँ देखी। संघ के कु छ कायबम मउनके भाषण भी हए। ु उनके भाषण का सार यह था क सनातन धम वशाल है।भगवान बु ने सनातन धम का ह उपदेश कया था। इस सनातन धम के ूकाश कोजगत ् म फै लाने का काय संघ को पुनः एक बार करना चीहए। मुझे वास है कआनेवाले समय म आनेय एिशया म सनातन धम का सदेश ूसृत करने का कायराीय ःवयंसेवक संघ ारा होगा। ऐसा दखाई दया क ौी गुजी क भट सा उहबहत ु आनद हआ। ुमुबई के मकर संबमणोसव म वे समिलत हए ु और ौी गुजी का भाषण उहनेयानपूवक सुना। यगत भट राऽ को ौी गुजी के िनवासःथान पर हई। ु ितल-गुड़दया गया। आनेय एिशया म धम-संःकृ ित के रण और ूसार के िलए संगठन कआवँयकता इन वषय पर मुय प से चचा हई। ु मुबई और नागपुर म नव बौक ओर से आयोजत जनसभाओं म उछान ् ठन ु ् के ूकट भाषण हए। ु ‘वड फे लोिशपऑफ बुःस’ ् संःथा के अय होने से बौ मंडली ने उनके भाषण आयोजत कयेथे। नागपुर म उछान ् ठन ु ् ने नव बौ कायकताओं के समेलन म बोलते समय संघके कायकताओं क शैली से काम करने क सलाह द। संघ कायकताओं काएकऽीकरण संघचालक जी के िनवासःथान पर हआ ु था। इन कायकताओं के समुखबोलते हए ु उहने संघकाय पर अपना वास य कया और ौी गुजी से हई ु भटके बारे म भी अयत संतोषजनक उ-गार य कये। मिास म भी संघ क ओरसे आयोजत एक ःवागत समारोह म उहने भाषण दया।भारत से ौीलंका क ओर ूःथान करते समय पऽकार ारा पूछे गये इस ू केउर म क भारत ॅमण के संबंध म आपका या अिभूाय है और आपका सदेशया है, उहने जो कहा उस पर ौी गुजी से हई ु चचा और संघ के काय के िनकटसे कये गये दशन का ूभाव ःप ूतीत होता था। उहने कहा, “भारत म आने केपूव म समझता था क पूवकाल म भारत से वदेश म धमूचारक जाते रहे, परतुवह श अब भारत म नहं रह है। परतु मेरे भारत ूवास म अनेक येकायकताओं से िमलने का सौभाय ूा हआ ु , अनेक कायबम देखने और उनमसमिलत होने का अवसर ूा हआ। ु अब म इस िनणय पर पहँचा ु हँ ू क भारत मवह सामय आज वमान है। अपना सब कु छ समाज सेवा म समपत करनेवालेअनेक कायकताओं से मेर भट हई ु है। वा और योयता म वे बकु ल कम नहं<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी195


ह। उहने िनःःवाथ भावना से ःवयं को समाज और धम क सेवा म समपत करदया है। जगत ् के संबंध म अपना कतय वे अवँय संपन करगे।”इसम सदेह नहं है क उनके ारा नव बौ कायकताओं को राजनीितक उेँय सेूेरत न होकर संघ के सहयोग से काम करने का परामश और ‘सनातन धम’ कपरिध म बौ मत का ःथान रहने का ूितपादन ौी गुजी क भट का हसुपरणाम था।१५.४ अमेरका से अपेासन ् १९६० म भारतीय जनसंघ के नेता ौी अटलबहार वाजपेयी को अमेरका आनेका िनमऽण ूा हआ। ु अटल जी ने उसे ःवीकारने का िनणय कया। जॉन के नेडऔर रचड िनसन के बीच अय पद के िलए होनेवाले चुनाव का वह समय था।अटल जी संघ के पुराने ःवयंसेवक और ूचारक भी थे। उहने ौी गुजी को अपनेअमेरका जाने के बारे म बताया तब उनके साथ अमेरक जनता के नाम एक संदेशभेजने का िनय हआ। ु यह कपना थी क एकाध बड़े सावजिनक कायबम म अटलजी उसे पढ़कर सुनाएँ। आधुिनक जगत ् म धम क महा सुूितत करने के ौीगुजी के ूय का ह वह एक अंश था। अटलजी ने िसतबर १९६० म वॉिशंटन मआयोजत एक भय समारोह म वह सदेश अमरकय को पढ़कर सुनाया। इस संदेशम ौी गुजी कहते ह-“ःवामी ववेकानद ने अपने स-गु ौी रामकृ ंण के जीवन म ूकट हए ु शातसय का ूकट उ-घोष लोकमऽ और मानव ूिता को माननेवाले अमेरका मकया, यह परमेर क ह योजना रह होगी। जागितक घटना चब के परणामःवप ःवतंऽ जगत ् का नेतृव अमेरका क ओर आया है। ःवामी ववेकानद केस-वचार का ःमरण और उनके अनुसार आचरण कर अमेरका वह दाियव िनभासकता है।”“आज सार दिनया ु दो गुट म वभाजत है। सतह से देखनेवाल को लगता हैक इन गुट का संघष लोकतऽ और सायवाद म है, परतु यह सच नहं है।युगानुयुग से िनकृ ःतर के भौितकवाद और धम के बीच संघष चलता आ रहा है।वह संघष आज भी चल रहा है। सायवाद भौितकवाद का पृ पोषक है। सायवाद<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी196


का ूितकार कामचलाऊ भौितक यवःथा या साूदाियक मतसे नहं हो सकता।सनातन धम के सुिनत और शात अिधान पर आधारत व धम के ारा हसायवाद का सफलतापूवक सामना कया जा सकता है। दिनया ु के सभी पंथ औरवास म सामंजःय रहना और उनम सुसंवाद िनमाण होना इस समय आवँयक है।इसका अथ यह नहं है क यगत िनाओं को ितलांजली दे द जाय। उटे उनिनाओं का शात प म उदाकरण उसम अिभूेत रहता है, यह सबको समान पसे ूय लगे ऐसी वैक वचारधारा है।”“वतमान कालीन भारत अय अनेक देश के समान भौितक से समृ भले ह नहो, परतु ूदघ कालीन जीवन के चढ़ाव-उतार म भी वह अैत के शात िसांतपर अटल रहा है। वह एक बार फर अपने पैर पर खड़ा है और अपने उस िनयतकाय का सााकार करने म लगा है जसके अतगत ःवतंऽ देश को एक ऐसीवैक ूणाली ूदान कर सके गा जसके भरोसे सब िमलकर दिनया ु को िनगलने जारहे वतमान के संकट को मात दे सक गे।”“मेर ऐसी इछा है क अमेरक जनता को ःवामी ववेकानद के अमर संदेश काःमरण करना चाहए। भारत के साथ अभे िमऽता के सूऽ म ःवयं को बाँध ले।दिनया ु क धमश वजयी होगी और हमेशा चलनेवाले सैिनक संघष से दिनया ु मुहोगी, मानव को शात और समृ का लाभ होगा।”राीय ःवयंसेवक संघ क से एक महवपूण कायकता िशवर का कायबम मयूदेश के इंदौर शहर म १९६० के माच महने म आयोजत कया गया। इसके पूव१९५४ म वधा के िनकट िसंद म हए ु ूचारक के िशवर म ौी गुजी ने संघ कावचार, तवान तथा रा के संदभ म संघ क भूिमका के संदभ म िनःसंदध पसे अपने वचार ूगट कए थे, इसक जानकार पूवायाय म द गयी है।इंदौर का यह िशवर अिधक यापक था। संघ के वभाग ःतरय कायकताओं के साथह विभन ेऽ म काय करने वाले ूमुख कायकता भी इस िशवर म उपःथत थे।बीते ६ वष म हए ु संघ काय का िसंहावलोकन करना, कायकताओं के मन म उभरनेवाली शंकाओं का िनवारण करना तथा संघ का भवंय म बनने जा रह वकासयोजना के संबंध म वचार करना, यह सब इस िशवर का उेँय था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी197


संघकाय ूारंभ होकर ३५ वष क कालाविध बीत चुक थी। इस कालखंड म संघ कोअनेक भले-बुरे ूसंग म से गुजरना पड़ा था, अनेक संकट का सामना करना पड़ाथा। अतः कायकताओं के बीच खुली चचा का यह आयोजन कया गया था। ौी गुजीूारंभ से अंत तक इस िशवर म ःवयं उपःथत रहे। िनय वचार का आदान-ूदानहोता, चचाएँ होतीं, ू पुछे जाते और ौी गुजी कायकताओं का मागदशन करते।िशवर क योजना सफल रह।ूायः ऐसे िशवर या अयास वग म कायकताओं से ःप तथा िनःसंदध प सेखुली चचा करना ौी गुजी का ःवभाव था। इसी पित को अपना कर वे समवयक पित का अवलंबन कर शंकाओं का समाधान करते। बाहर क परःथित भले हवपरत या संकट मःत हो, हम समाज और देश के िलए या करना चाहए यह ौीगुजी के इदौर म दए भाषण का ूधान सूऽ रहा था। िनय कम तथा नैिमककम- इस ूकार काम के वध ःवप को सुःप करते हए ु ौी गुजी नेआमहपूवक तथा िनयामक ढंग से बताया क कसी भी परःथित म अपनीदैनंदन शाखा के कायबम म िशिथलता न आने पाए। पूर दता के साथ संःकारमशाखा उसाह के साथ चलाना काय क से िनतांत आवँयक है। देश को समःतसंकट से तारने का वह सवािधक वसनीय साधन है। इदौर के भाषण क औरएक वशेषता यह रह क हदू धम तथा परंपरा के अनुसार ह हमारा जीवन यतीतहो; हदू संःकार को जागृत कये बना काय क िनरंतरता तथा राीय चैतय कअनुभूित सवथा असंभव है, इस बात को उहने ढ़तापूवक ूितपादत कया। यहनहं, संःकार का ःवप या हो इसका भी बड़े वःतार से वणन कया। उस समयदो ू के उपर संघ क भूिमका के बारे म ौी गुजी ने ूकाश डाला। पहला ूयह था क हदू संःकृ ित के पुनजीवन म वण यवःथा का पुनजीवन अिभूेतहै या? और दसरा ू ू था क या वण यवःथा को हदू समाज जीवन का एकआवँयक और अपरहाय अंग समझना चाहए? ौी गुजी का उर िनःसंदध था।उहने कहा- “सांःकृ ितक पुनथान से वण यवःथा का पुनजीवन जुड़ा हआ ु नहंहै। जाित के हम न वरोधी और न पधर ह। हम इतना ह जानते है क समाज परआये गंभीर संकट के समय म एक महव क भूिमका उस यवःथा ने िनभायी थी।आज यद समाज को वह पित नहं चाहए तो वह न हो जायेगी और इसके बारेम कसी को भी दःु ख नहं होगा। वैसे ह वण यवःथा के बारे म कहना होगा कवह समाज क ‘अवःथा’ न हो कर के वल एक ‘यवःथा’ है। यद वह िनपयोगी होगयी है तो उसका याग करने म हचकचाने का बकु ल कारण नहं है। आवँयकता<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी198


और सुवधा के अनुसार यवःथा म परवतन हो सकता है; उपयुता पर वह िनभरहै।”संघ के ःवयंसेवक से जस अनुशासन क अपेा क जाती है, उस के अंग ूयंगका ववेचन ौी गुजी ने इतने वःतार तथा गहराई से कया क उसम हदूसंःकृ ित के कई अात पहलुओं के संबंध म कायकताओं को ान ूा हआ ु ।ौी गुजी के ववेचन का आधार आयामक था तथा कायकताओं को संघ-काय केःवप क सवकष कपना भी उहने आयामक परभाषा म ह कराई। अत मौी गुजी ने सबका आवाहन कया क रा के पुनथान के िलए असीम यागमयजीवन का ोत आनंद के साथ हम ःवीकार करना होगा। इदौर के िशवर म हए ु इनसभी भाषण ने कायकताओं को न के वल अंतमुख कया अपतु ःवतः के यगतगुणावगुण को परख ने के िलए भी ूवृ कया। ौी गुजी का यह मागदशन बहत ुह ूभावोपादक तथा संःकारम था।१९६० का वष खंडत भारत क ःवाधीनता ूा करने के साथ एक तप के पात ् कामहवपूण काल था। चीनी आबमण के संभाय संकट के साथ ह अनेक संकट औरसामाजक पतन के ँय लण का सााकार ौी गुजी ने कराया। “हमार परंपराने संकट पर मात करने का, उह पराःत करने का सामय हम दया है, इस कारणभारत का जागितक (वैक) ‘िमशन’ पूण करने के हेतु हम जी-जान से, सवःवापणकरते हए ु यद ूयशील रहे तो सफलता के बारे म मन म कोई संदेह नहं बचेगा”,इस वास के साथ ौी गुजी ने कायकताओं को ूेरत कया। िशवर समा हआ। ुकायकता शंकारहत हो ूचड उसाह से अपने-अपने काय ेऽ क ओर बढ़े। आयक बात यह है क इस वग के समा होने के ठक दो वष के बाद, जैसा क ौीगुजी ने पूवानुमान लगाया था, वदेशी आबमण का हं आघात अपने देश परहआ। ु*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी199


१६ यु कालीन दशा-दशनराीय ःवयंसेवक संघ के आ सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी का अंयसंःकार नागपुरके रेशीमबाग मैदान पर हआ ु था। जस ःथान पर उनका पािथव शरर अन कोसमपत कया गया था वहाँ एक साधारण सी समािध बनी हई ु थी।संघ का काय दन दना ू रात चौगुना बढ़ता गया। देशभर के ःवयंसेवक इस पावनसमािध के दशन करने आने लगे। इस कारण कायकताओं के मन म यह इछा जागीक इस समािध पर एक मंदर सश वाःतु का िनमाण कया जाय जो ःवयंसेवकतथा अय लोग के िलए ूेरणाःथान बने। इस काय के िलए ‘डॉ. हेडगेवार ःमृितसिमित’ का गठन कया गया। ौी गुजी इस सिमित के अय थे।१६.१ ूेरणाःथान का िनमाणःमृित मंदर के िनमाण के िलए िनिध संकलन कया गया। योजना के अनुसार ःमृितमंदर का िनमाण काय पूण हआ। ु ःवयं ौी गुजी ने इस वाःतु िनमाण क ओरबहत ु बारक से यान दया। इस समय ौी गुजी क बुमा तथा कलामकता ताएक नया पहलू यान म आया। उह भारतीय वाःतुशा का सूआम ान तो था ह,कतु सदय , कलामक िचंतन तथा ःमृित मंदर क ओर देखने क उनकभूिमका क अनुपम अनुभूित इस समय हई। ु अिभयंता से लेकर पथर तराशनेवालतक को वे आवँयकतानुसार मागदशन दया करते थे।९ अूैल १९६२ वषूितपदा के शुभमुहत ु पर ःमृित मंदर का उ-घाटन कया गया।वष ूितपदा डॉटर जी का जम दवस होने के कारण इस अवसर का चयन होनाउिचत ह था। अपने आराय डॉटर जी के ःमृितमंदर के िलए भारत के लगभगसभी ःवयंसेवकओं ने ौापूवक िनिध समपत क थी। इस कारण यह िनणय िलयागया क अखल भारतीय ःतर पर इसका उ-घाटन समारोह मनाया जाए। भारत केसभी ःवयंसेवक तथा संघ ूेमी जनता का यान इस ःमृित मंदर के िनमाण कओर लगा हआ ु था।जब ःमृित मंदर के उ-घाटन के िलए कसी ौे आयामक वभूित के नाम कचचा होने लगी तो कांची कामकोट पीठ के परमाचाय का नाम ःवाभावक प से<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी200


सामने आया। यह तो सव वदत है क परमाचाय संघ को कतना चाहते थे और हमसब यह भी जानते ह क ौी गुजी क उनके ूित कतनी ौा थी। जब परमाचायके पास यह िनवेदन पहँचा ु तो वे नागपुर जाने के िलए तुरंत तैयार हो गये। उहनेयह संदेश िभजवाया क वे लोग लगभग दो मास पूव नागपुर के िलए ूःथान करगेजससे पैदल चलकर समय से वहाँ पहँच सके । ु ौी गुजी को पता था क परमाचायपैदल ह चला करते ह कतु उह यह उिचत नहं लगा क वे इतना शाररक कउठाएँ। अतः ौी गुजी उह वैसा सूिचत करते हए ु उनसे अयत वनॆतापूवकिनवेदन कया क अपने आिशवाद ःवप वे मंऽात िभजवाने क कृ पा कर जससेसमािध पर चढ़ाकर ःमृित मंदर के उ-घाटन को ऋष हाथ क पावनता ूदान कजा सके । ौी परमाचाय ने ौी गुजी के िनवेदन के अनुसार ह मंऽात भेजा।वष ूितपदा के दन सूयदय से सूयाःत तक रेशीमबाग म सह ःवयंसेवक तथाडॉटर जी के बारे म अनय ौाभाव दय म रखनेवाले नागरक क उपःथित थी।ःमृित मंदर का सुदर िशप तो देखते ह बनता था। वुत ् दप से आलोकतःमृित मंदर के अदर भूतल से कु छ नीचे समािधःथल संगमरमर से मंडत कयागया था। फू ल क कलाकार से समािध क पवऽता तथा शोभा को देखकर, एक ओरमन पुलकत होता तो दसर ू ओर दशक अंतमुख होकर मन म सोचता क यह वहःथल है जहाँ परम पूजनीय डॉटर जी ने अपने संपूण जीवन को सिमधा के प मराय म समपत कर दया था और वे िचरिनिा म समािधःथ हो गये थे। अथक,अवौांत, िनमह, ण-ण ूितपल हदू रा के नवोथान के िलए यथाथ प सेखून का पानी होते तक-अंितम सांस पयत, शरर क िचता न कर साधना करनेवालेमहान ् साधक क यह िचरवौाम ःथली है, यह भावना वार-भाटे क भाँित अंतस ् मउमड़कर आँख म आँसू छलकाती थी। इसी समािध के ठक ऊपर ूःतर केकमानीदार गुंजनधार मंडप म काले चमकले वशेष ूःतर से बनाई गयी डॉटर जीक अध-चंिाकार आसन पर बैठ ूितमा तो ऐसी जीवंत ूतीत होती मान ःवयंडॉटर जी अपने समुख बैठे ह; काले चमकले पथर क बनी सीढ़य से चढ़ते हदशक डॉटर जी क ूितमा तक पहंचता ु था। यहां से देखने पर चार ओर मानवसमुि ठाठ मारता दखाई देता था। दशनोसुक जनता बहते हए ु ूवाह क भांित आतीऔर ःथरिच हए ु जनसागर म वलीन होती दखाई देती थी।कायबम क भयता व महा को शदांकत करना सभव नहं। सार यवःथाअनुशासनब थी। सभी लोग ौी गुजी के भाषण को सुनने के िलए उसुक थे,लालाियत था। इस अवसर पर ौी गुजी ने डॉटर जी के जीवनकाय तथा उनक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी201


असामायता पर वःतार से तथा ववधांगी ूकाश डाला। ौी गुजी ने भाषण केूारंभ म ह कहा, “ःमृित मंदर के िनमाण तथा उ-घाटन का यह अथ कदाप नहंहोता क हम यपूजक ह। संघकाय म संघ के िनमाता सवािधक आदरणीय यथे। कतु हमने उनका कभी जय-जयकार नहं कया। जय-जयकार तो रा का, ईरका तथा मातृभूिम का कया जाता है; कसी य वशेष का नहं।”“सामाय य के िलए तविचंतन हेतु कसी ःफू ितूद अवलंबन क आवँयकताहोती है। तवप बने पािथव शरर के िचंतन से तव का ह िचंतन होता है। रा कोअमर बनानेवाली असामाय कायपित डॉटर जी ने हम द और राभ क भावनासे परपूण, अंतबा वशु जीवन का आदश उहने हमारे समुख ूःतुत कया।सह युवा ःवयंसेवक को उनके जीवन से ूेरणा ूा हई। ु ऐसे वशु जीवन काःमरण जागृत रहे, इस ूेरणा से यह ःमृित मंदर बनाया गया है।”द. १० अूैल १९६२ को ूातः काल ौी गुजी का बौक वग ःवयंसेवक के िलएहआ। ु उहने कहा,“इस मंदर को के वल पूजा का ःथान न बनाइये। हम अपने ौाःथान के जीतनेिनकट रहगे, उसके समान बनने का ूयास करगे, उतने परमाण म हमार पूजासफल होगी। पूजा के इस वाःतवक प को यान म रखते हए ु हम अपने जीवन कावचार करना होगा। डॉटर जी ारा दए गये आदश के अनुसार हम अपने जीवनको ढ़ालना होगा। एक पूजाःथान िनमाण कर हम कसी महंत क भांित ग पर बैठेरहे; इस भूिमका से यह मंदर नहं बनाया गया है। ईट और पथर को जोड़करबनाए गये मंदर म मुझे कोई िच नहं है। यह हमारे िलए ूेरणाःथान बने, इसी से हम इस ःमृित मंदर क ओर देख।”इस संदभ म हम एक और बात का ःमरण होता है। डॉटर जी क समािध पर मंदरबनाने म ौी गुजी अगुवा थे, अमसर थे। उ-घाटन हेतु सपूण भारतवष सेःवयंसेवक को आमंऽत कया गया था। कतु अपने ःवयं के बारे म ौी गुजी नेकस ूकार वचार कया था, इस को जानने के िलए उनके तीन अंितम पऽ म सेदसरे ू पऽ का वचार करना होगा। इस पऽ म उहने कहा, “संघ का येय और उसयेय का दशन करानेवाले संघ िनमाता इनके अितर और कसी य का यइस नाते से महव बढ़ाना- उनके ःमारक बनाना आवँयक नहं है।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी202


इस पऽ का आशय यह था क उनक देह शांत होने के उपरात ौी गुजी का कोईःमारक न बनाया जाए। ौी गुजी नहं चाहते थे क ःमारक बनाने क परपरािनमाण हो। अपने जीवनकाल म वे डॉटर जी क ःमृित के समुख सदैव नतमःतकरहे, शरणागत रहे, कतु देहावसान के पात ् कोई दसरा ू मंदर िनमाण न हो, इसकओर भी ौी गुजी ने यान दया। अहंकार को समूल न कर अपने सवःव कासमपण डॉटर जी के चरण म करना एक परपूण समपण ह माना जाएगा। ौीगुजी ने भले ह अूय प से आा द हो क कोई अय ःमारक या समािध नबने, कतु ूेम-ौा-ःनेह का भी अपना िनजी अिधकार होता है। इस अिधकार मकसी आा क अवा भी य मानी जाती है। इसी कारण लाख ःवयंसेवक केौा ःथान डॉटर जी के पदिचह पर चले सवःव यागी-वरागी, वलण बु वूितभा से संपन ओजःवी वृ व तथा आकषक यव के धनी ौी गुजी केदेहावसान के पात ् संघ के कायकताओं ने डॉटर जी के समािध के चरण केसमुख ौी गुजी के य-प जीवन का ःमरणिचह यकुं ड के प म बनाया। ौीगुजी से मन ह मन मा माँगते हए ु िनिमत यह यकु ड जब वुत संचार केपात ् संया समय ूविलत होता है, तब दशक को ऐसी अनुभूित होती है मानूय अनकुं ड वालाओं से जीवत हो उठा हो। दन के ूकाश म ेतवण कतुसंया समय अंतगत वुत ् ूवाहत वालाओं क लपट के समान दखाई देनेवालायह ःमृितिचह एक अनोखा ह आकषण है।ौी गुजी का कोई यगत जीवन था ह नहं। परवार से जोड़नेवाला एक ह बंधनशेष था, पूय माता-ताई का। पूय पता ौी भाऊजी का १९५४ म ह देहावसान होचुका था। पता के ःवगःथ होने के पात ् ौी गुजी ताई के बारे म अिधकसंवेदनाशील हो गए थे। ताई भी कतयिन मां थी। अपने इकलौते पुऽ ने यगतपरवार के बंधन म पड़ने क अपेा रा परवार के उथान का बोझ अपने कं ध परिलया है, इस तय को वे भली भाँित जानती थीं। अब के वल माधव ह नहं अपतुसंघ के सभी ःवयंसेवक उनके िलए पुऽ समान ह थे।१६.२ एक अपूव मधुर िमलन के िौी गुजी का जब नागपुर म वाःतय रहाता था तब उनका न चूकनेवाला एक िनयबम रहता था- मोहते संघःथान पर ूाथना संपन होते ह ूमुख कायकताओं तथाबाहर गाँव से यद कोई अितिथ आए ह तो उनके साथ पैदल चलते हए ु नागोबा क<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी203


गली के अपने घर जाना। नीचे बरामदे म ौी गुजी क माता जी ताई बैठ रहतीथीं। वहं सब लोग बैठ जाते। ताई के पास ह ौी गुजी बैठते। फर ताई जी कअयता म गपशप का रंग जमा करता। हास-परहास होता। बीच-बीच म हाःय काफवारा छटता। ू ौी गुजी क वनोद-बु उनक एक अनय वशेषता थी। परतुउनका वनोद कसी को चुभनेवाला नहं होता था, कु छ िशा देनेवाला ह रहता था।इस से एक ूसंग का उलेख करना उिचत रहेगा। एक दन एक ःवयंसेवकसपीक ौी गुजी से िमलने आया। उसी दन ौी गुजी उसके घर होकर आये थे।वह ःवयंसेवक घर पर नहं था। उसके पता ने बताया क वह िसनेमा गया हआ ु है।गपशप के दौरान अिथक खींचातानी और गुदणा का वषय िनकला। इसनवववाहत ःवयंसेवक से ौी गुजी ने पुछा, “आज कल िसनेमा के टकट के दामकतने ह? पी को साथ ले जाना है तब तो िनन ौेणी का टकट नहं चलेगा?जाने-आने का वाहन खचा एवं साथ चाय-पानी का खच भी होता होगा? महने म एकिसनेमा के हसाब से साल भर म कतना खच होता होगा? और फर तंगी के नामपर क ची लगती है बेचार गु-दणा पर!” उस ःवयंसेवक को जो समझना चाहए थावह समझ गया। सभी को अपने-अपने खच क ओर देखने क एक ूा हई। ुऐसे कतने ह ूसंग ह। शाखा, ःवयंसेवक का यवहार, शाखा के संःकार का िनयके जीवन म आवंकार ऐसे नाना वषय िनकलते थे। अनेक बार लगता था क ताईक अयता म इस घटे भर क गपशप, चाय-पानी, खान-पान आद कोकायकताओं के िनमाण का कतना परणामकारक मायम ौी गुजी ने बनाया था।ौी गुजी के िलए ताई के मन म कतना ममव और अिभमान था इसके जैसे दशनइन बैठक म होते थे वैसे ह इस बात के भी दशन होते थे क ताई के ूित ौीगुजी के मन म कतनी आमीयता व पूय भाव था।ताई क अतम बीमार के समय उह लकवा मार गया था। ःवाःय नाजुक था। ौीगुजी को ूवास पर जाना था। उहने ताई से पूछा, “ूवास पर जाऊँ ?” उहने मनाकया। दसरे ू दन कु छ अछा लगने पर उहने जाने क अनुमती द। ूवास म ौीकृ ंणराव मोहरल पऽ ारा ताई के ःवाःय के बारे म सूिचत करते रहते थे। ौीगुजी का ताई को हमेशा यह आासन रहता था क “मेरे िनकट न रहने क ःथितम तू जाएगी नहं! जब ताई अयंत अःवःथ थीं तब ौी गुजी नागपुर म ह के । वेसुबह-शाम ताई के पास बैठते, बोलते, धीरज दलाते थे। ताई क मृयु के पात ्ूितदन सायंकाल का घर के बरामदे का वह संःकारदप बंद हो गया। फर ौी गुजीकायालय म ह ठहरते थे। वहं िमलनेवाले आते। राऽ तक बैठक चलती।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी204


ताई जी के जीवन तक ौी गुजी नागपुर म रह या न रह, ःवयंसेवक का उनके घरआना जाना बना रहता था। माता के दय म अपने पुऽ या संतान के ूित जोममता, ूेम या वासय का भाव ःवाभावक प से होता है, उसका िसंचन ताई सभीःवयंसेवक पर िनरंतर कया करती थीं। एक नहं अनेक माधव घर म रहा करते।ताई सबक पूछताछ करतीं। कतु दभाय ु से यह मातृछऽ द. १२ अगःत १९६२ कोःवग िसधार गया। ताई वयोवृ थी, थक चुक थीं। फर भी वह एक ूेमछऽ था ौीगुजी के िलए। इस छऽ क छाया म ह ौी गुजी भारत भर घुमा करते थे।संघकाय पर पड़नेवाली संकट क गम म यह छऽ उन पर छाया कया करता था।ताई का यह छऽ उह शांती ूदान करता था।ूवास हेतु मागःथ होने से पूव वे ताई के चरण छकर ू आिशवाद क कामना कयाकरते थे। इस कारण ताई के देहात का उह बहत ु गहरा आघात पहँचा। ु ौी गुजीके जे गुबंधु ौी अिभताभ महाराज इस समय नागपुर म ह थे।माता ौी ताई के देहावसान के पात ् ौी गुजी के दय म वर व वैराय कभावना का कसी यान क वाला क भांित ूखर प धारण करना अःवाभावकनहं था। हमालय के पवऽ परसर म जाकर एकांत वास क तीो इछा उनके मनम फर जाग उठ। कं तु तभी ौी ःवामी अखडानंद क बताई हई ु घटना का ौीअिभताभ महाराज को ःमरण हो आया। ौी गुजी के वरागी मन को परावृ करनेहेतु उहने कहा, “संघ का काय अभी अपूण है। इस काय क पूित के िलए आप कोकायालय के अपने कमरे म ह जाना पड़ेगा। हमालय क गोद म जाने क अपेासाधना के िलए अपना शेष जीवन इसी कमरे म यतीत करना उपयु होगा। म ःवयंकायालय म ह रहता हँ। ू इस कारण आप भी वहाँ चिलए।” ौी अिभताभ महाराज केकहने पर ौी गुजी कायालय क ओर चल पड़े।ऐसा ूितत होता है क ौी अखंडानंद जी ने ौी अिभताभ महाराज को अपनी मृयुके पूव ौी गुजी के भवंयकालीन जीवन के संबंध म सजग रहने क सूचना दे रखीथी। ौी बाबा ने अिभताभ महाराज से कहा था, “यह डॉ. हेडगेवार के साथ काम करेगाऐसा लगता है। समाज सेवा के काय म वशु भाव से कायरत रहकर जनता जनादनक सेवा का कममय जीवन वह अखंड़ प से करता रहेगा। एकाध बार उसे हमालयक ओर जाने क ूबल इछा होगी। ऐसे अवसर पर तुझे उसक ओर यान देनाहोगा।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी205


“बिकाौम जा कर देवतामा हमालय का दशन लेने म कोई आप नहं होगी।कतु इस ेऽ म एकांतवास म रहने क यद उसे इछा हई ु तो उसे परावृ करनेक जमेदार तुझे िनभानी होगी।”इसी का ःमरण कर ौी अिभताभ महाराज ने अपने कतय को बखूबी िनभाया।इसी समय कांची कामकोट पीठाधीश ौेय शंकराचाय ौी परमाचाय जी काशोकसंदेश ौी गुजी को ूा हआ। ु इस पऽ म सावना के साथ िलखे वचार ने ौीगुजी के वचिलत िच को पुनः ःथर होने तथा संघकाय क ओर लगाने म बहत ुसहायता क। ौी शंकराचाय जी ने िलखा था,“आपक अःथचममयी माता का देहावसान हआ। ु कतु आप क भांित कोट-कोटसपुऽ क न के वल आज कतु अनाद-काल से अनंत काल तक जमदाऽी परममंगलमयी ऐसी यह अपनी भारतमाता है। आप तो सवःव का समपण कर िनरपेभाव से भारतमाता क सेवा म रत ह ह। इस कारण आपको मातृवयोग होनाअसंभव है।”ौी गुजी ने हमालय जाने का वचार याग दया। मन म उभरे वैराय क तीोतमभावना का शमन होते ह वे पुनः काय म रम गये। अब उनके जीवन म संघकाय केअितर कोई आकषण शेष नहं था। इस के पात ् जब कभी अवसर आता, वेकामकोट पीठ के शंकराचाय के पऽ का बहत ु ह भावभीना वणन कया करते।१६.३ चीन के आबमण के सदभ म१९६२ का वष भारत के इितहास म बहत ु ह संघषमय रहा। इस वष अू बर मास मचीन ने भारत पर आबमण कया और देश का वातावरण ह बदल गया। लगभग दसवष पूव ह ौी गुजी ने इस संभाय चीनी आबमण क चेतावनी द थी। लोग औररायकताओं को यह कपना ह नहं थी क चीन भारत पर आबमण करेगा। इसकारण उह वह अकपत आकःमक ूतीत हआ। ु कनाटक ःथत िशमोगा से १९५१म ौी गुजी ने िलखा था, “चीन क ूकृ ित वःतारवाद है तथा िनकट भवंय म हउसके भारत पर आबमण करने क संभावना है।” इस चेतावनी का संदभ था चीन कितबत म चल रह सैिनक कायवाह। इन दन ौी गुजी ने अनेक बार चेतावनी के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी206


प म कहा था क भारत ने चीन को ितबत क भूिम भट कर आपरािधक भूल कहै। जो गलती अंमेज ने नहं क, वह अदरदिशता ू भारतीय शासन ने क है। वशेषप से चीन म हई ु कयुिनःट बांित व भारत के पंचमांगी तथा कयुिनःटआबमणकारय से हम सतक रहना चाहए, ऐसा वे हमेशा कहा करते थे।दनांक १८.५.५६ को ूकािशत ‘पाचजय’ सााहक म ौी गुजी ने अपने ‘ितबतका मास और कयुिनःट का मुकाय’ इस शीषक से अंकत उ-बोधक लेख म नके वल भारत को अपतु एिशया को भी सतक रहने का इशारा कया था। ौी गुजीक भवंयवाणी कतनी खर उतर इसका यह एक उदाहरण है।द. २ अूैल १९६० को महारा के पऽकार से ौी गुजी का जो वातालाप हआ ु उसकामुय वषय भारत-चीन संघष ह था। साथ ह २३ दसबर १९६२ को दली केरामलीला मैदान पर एक आमसभा म भाषण देते हए ु ौी गुजी ने कहा, “मुझे खेद हैक शासन को बार-बार चेतावनी देने पर भी कसी ने इस गंभीर समःया क ओरयान नहं दया। लगभग वगत दो महन से चीन ने भारत पर आबमण कर रखाहै। यह ‘आबमण’ है इस बात को शासन अब ःवीकार करता है। वाःतव म यहआबमण तो १०-१२ वष पुराना है। मुझ जैसे सामाय मनुंय ने लगभग १० वष पूवचीन के भारत ूवेश तथा भारतीय ूदेश म अपनी ःथित मजबूत बनाने हेतु उसकेारा कये जानेवाले भरसक ूय का उलेख कया था। साथ ह अय कु छ जानकारलोग ने भी इस संबंध म सचेत कया था। कतु हमारे नेता वबंधुव क भावनाम इतने डूबे हए ु थे क इस समःया क ओर यान देने का वचार तक हमारे मन मनहं आया।”चीन का तुीकरण करने से वह भारत से खुश रहेगा, इस कपना को मन म संजोएभारत ने एक के बाद एक-अनेक सहिलयत ू चीन को द। ितबत पर चीन ाराबलाकार का ूितकार करना तो दरू रहा, वरन ् ितबत को, जो हमार सुरा के िलएअयंत महवपूण घिन िमऽरा था, ‘चीन क भूिम’ कहकर हमने उसके साथवासघात कया। लाख म हआ ु चीनी आबमण एक लंबे अरसे तक गु ह रखागया और चीन ने १२००० वगमील का ूदेश अपने अधीन कर िलया और यह बातूकाश म आई तब यह कहा गया क वह ूदेश तो बंजर है, अनुपजाऊ है। वहाँ तोघास का एक ितनका तक नहं उगता। यह बात सवथा तक हन थी। भाई-भाई कहतेहए ु जन चीनी नेताओं को हमने गले लगाया, उहने ह हमारा गला काटा। अंततः<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी207


इस ःवन क दिनया ु से चीनी आबमण ने शासन को जागृत कर सय का मानकराया। लेकन बदनामी टली नहं। देश क संरण-िसता क दरवःथा ु चौराहे परआ गई। तेजपुर क घटना ने तो शासन क िगर हई ु नीितमा तथा धीरज के अभावको लजाःपद रित से उजागर कर दया।जब चीनी सेनाएँ अणाचल ूदेश म बोमडला पार कर चारार तथा िमसामार कओर बढ़ने लगीं तो तेजपुर के पुरे ूशासनतंऽ का मनोबल टट ु गया। जलाधीश आदकु छ उच पदःथ अिधकार जनता को शहर छोड़ने क सलाह दे ःवयं भाग खड़े हए। ुजेल तथा पागलखाने के दरवाजे खोल दये गये तथा ःटेट बक के नोट के बंडलजलाये और िसके और िचहर तालाब म फ के जाने लगे। असम के तकालीनराजःव मंऽी ौी फकन अली अहमद ने एन.सी.सी. के जवान के सामनेअसहायता ूगट क और बजलीघर को डायनामाइट से उड़ देने का आदेश भी देदया। उसी रात आकाशवाणी पर पं. जवाहरलाल नेह के मुख से वे दभाय ु पूण उ-गार िनकले क “मेरा दय तो असम के लोग के साथ पीछे छटा ु जा रहा है।” संदेशमुखर और ःप था क भारत ने हर हालत म असम को बचाने क अपनी जमेदारसे मुँह मोड़ िलया है और वहाँ क जनता को शऽु क दया पर खुला छोड़ दया है।असम क जनता आज भी पं. नेह के उस मनहस ु वाय को भूली नहं है औरशंकत रहती है क आगे भी कभी ऐसी ह ःथती आई तो भारत सरकार उह धोखातो नहं देगी? भारत के िलए मह दभाय ु और लजा क बात रह क ऐसे नाजुकमौके पर उसका नेतृव इतना लीब िनकला।बिलहार है कानू डेका, पूसाद दास तथा पजाकात सेनापित नाम के संघ केःवयंसेवक व उसके कु छ अय सािथय क जहने युवक क एक टोली गठत करसेना के अिधकारय से संपक कया तथा उनक सहायता से रात दन पहरेदार करखाली हए ु घर को बांलादेशी घुसपैठय के हाथ लुटने से बचाया। यह नहं, तालाबम फ क गई संप को बटोरने के िलए बैलगाड़यां ले कर आ रहे अराीय तव सेभी धन क रा करवाई। दसर ू ओर सवौी पूणनारायण िसंह, डॉ. दास, हरकातदास, वदेव शमा तथा नगराय दलाल ु भटाचाय आद लोग ने एक सिमितगठत कर यह िनय कया क वे हार नहं मानगे और समानातर सरकार गठतकर नेतृव ूदान करगे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी208


ौी गुजी ने चीनी आबमण शु होते ह जो मागदशन दया, उसके परूेआय मःवयंसेवक यु ूय म जनता का समथन जुटाने तथा उनका मनोबल ढ़ करने मजुट गये। उनके इस सामाियक सहयोग का महव पं. नेह को भी ःवीकार करनापड़ा और उहने सन ् १९६३ म गणतंऽ दवस के जनसंचलन म कु छ कांमेिसय कआपय के बाद भी संघ के ःवयंसेवक को भाग लेने हेतु िनमऽण िभजवाया।कहना न होगा क संघ के तीन हजार गणवेशधार ःवयंसेवक का घोष क ताल परकदम िमला कर चलना उस दन के कायबम का एक ूमुख आकषण रहा।इस आबमण के बाद पं. नेह ने कहा, “हमारे ारा ह िनिमत ःवन-संसार म सेचीन ने हम वाःतवक जगत ् म ला खड़ा कया।” इस ‘ःवन-संसार’ का नाम‘पंचशील’ था। हम सबको पराजय का यह लजाःपद इितहास याद है। इस चीनीआबमण ने दली के शासन को दहला दया। घबराहट पैदा कर द। कतु थोड़ेसमय के बाद चीन ारा एकतरफा युबंद घोषत कर द गई।इस कालखंड म चीनी आबमण, भारत-सरकार क आमघाती नीित तथा राीयसामय को बढ़ाने क आवँयकता- यह ूायः ौी गुजी के ूयेक भाषण का वषयरहा करता था। के वल आबमण का ूितकार ह नहं, अपतु हमालय क संरकूाकृ ितक दवार सुरत रखने हेतु हम ितबत को मु कराना चाहए ऐसा ूितपादनभी ौी गुजी कया करते थे।सभी भाषण म ौी गुजी ने चीन क सायवाद राज-सा, स-चीन सबध कअःपता, भारतीय कयुिनःट क दगाबाज़ी, चीन और पाक से िमऽता काखोखलापन, नेपाल से िनमल िमऽव के संबंध बनाए रखने क आवँयकता,अंतराीय राजनीित म ःवसामय के बलबूते पर गुटबंद से अिल रहने से ूाहोनेवाले लाभ आद अनेक वषय पर अपने वचार य कये। ौी गुजी ने यहांतक कहा क यद रा के नेताओं म साहस का अभाव हो तो वे सा यागकर उसकबागडोर ाऽतेज रखनेवाल के हाथ सप द।उपयु टका-टपणी करते हए ु भी उहने लोग से अनुरोध कया क वे शासन केयुूय म सहायता कर। शासन को सहकाय देने क ूाथना से ह वे भाषण काअत कया करते थे। इसी आशय का एक ूितवेदन ौी गुजी ने दनांक२९.१०.१९६२ को ूकाशनाथ ूःतुत कया था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी209


शासन क गलितय पर परदा न डालते हए ु उन पर कठोर आघात करना, शासन कोपरःथित क वाःतवकता तथा उसके कतय से अवगत कराना और अंत म ूयेकभारतीय का आवाहन करना क इस संकट के समय शासन क सहायता करना उसकाराीय कतय है, यह ौी गुजी क नीित थी।ौी गुजी ने हमेशा रा क िनयिस श क िनिमित पर अिधक जोर दया।देशभ क भावना जागृत कर भारत माता के उवल गौरव के संपादन का येयउह सवौे ूतीत होता था। ौी गुजी सदैव कहा करते थे क णक ताकािलकउेजना राषश को हमेशा के िलये सुरत नहं रख सकती। ‘नेह के हाथ मजबूतकरो’ ऐसी घोषणा ूायः कयुिनःट के खेमे से हआ ु करती थी। इस घोषणा क कड़आलोचना करते हए ु एक बार ौी गुजी ने कहा, “पहले नेह जी का दय बलवान ्बनाइये, उनके हाथ म आप ह बल आ जाएगा।” के वल शांती सैिनक भेजने याएकतरफा अछा बताव करने से चीनी आबमण का ू हल हो सके गा, इस कपनापर उनका कतई वास नहं था। इस एकतरफा शांित तथा सौजय क अनावँयकनीित को नकारते हए ु ौी गुजी ने चीन का इितहास, ःवभाव, असहंणुता औरबु रता का बहत ु ह मािमक वेषण कया।१९६२ म चीन ारा युवराम कये जाने के बाद भी छपे ु आबमण जार थे। जसभारतीय ूदेश को चीन ने अपने कजे म िलया था वह चीन के अिधकार म ह रहा।आज भी वह भूिम पुनः ूा करने के बारे म के िय शासन दवधा ु म है। भारत-चीन के बीच म मैऽीपूण संबंध ूःथापत करने के ूय भी कये जा रहे ह। ितबतको चीिनय के चंगुल से मु कराने क भाषा तो मौन सी हो गयी है।दलाई लामा को भारत ने राजनीितक आौय तो दया कतु उह भारत म रहकरितबत को मु कराने के िलये कोई भी हलचल करने क आजाद नहं ह। चीन कोपराःत करने, उसके कारनामे असफल कराने क से भारत कु छ नहं कर पाया।सीमाओं का संकु चन होता देख मुँह क खाने के अलावा अपना शासन कु छ भी न करसका। इसके वपरत चीन ने आवक श को धारण करनेवाले रा के सूची मःथान तो पाया ह, अपतु स के अितर एक और महासा के प म सार दिनया ुचीन क ओर देखने लगी। इस तय को पहचान कर ौी गुजी ने अिधक ूखरता सेअपने वचार य कये। राीय सुरा, समान तथा पौषसंपन रा जीवन के बारेम कसी भी ूकार के हनभाव (Inferiority complex) क भाषा ौी गुजी के िलए<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी210


असहनीय थी। रा म वजय का आमवास जगाने हेतु वे ओजःवी आहवान कयाकरते। ौी गुजी ने जनश को जागृत करने का माग शासन को सुझाया था।इस वनाशकार पृभूिम पर एक ह बात ूशंसनीय रह। अपनी सुरा यवःथा मिनहत कमजोरयाँ शासन तथा कांमेसी नेताओं के यान म आयीं और फलतः कृ ंणमेनन को इःतीफा देना पड़ा। भवंय म सेना क यु सजा क ओर वशेषप सेयान दया गया। इस िसता के फलःवप १९६५ म पाकःतानी आबमण कामुँहतोड़ उर दया जा सका।भारत सरकार क नीित राीय ःवयंसेवक संघ के बारे म कतनी भी नकारामक औरअपने राजनीितक ःवाथ के िलए यापक राहत क घोर उपेा करनेवाली य नरह हो, सरकार से सहयोग कर देश के कयाण-साधन का ह ूय ौी गुजी सदाकरते रहे। नेपाल और भारत के संबंध सामंजःय और सहयोग के बने रहना ौी गुजीको अयत आवँयक लगता था यक सांःकृ ितक से नेपाल भारत का हूितप है यक उसने आमह-पूवक अपना हदव ु टकाए रखा है।नेपाल से भाव बंधन ढ़ बनाने हेतुसंयोग से ौी गुजी २६ जनवर १९६३ को िशवराऽी के पावन दवस पर भगवानपशुपितनाथ के दशन के िलए काठमांडु गए हए ु थे। ऐसा िनत हआ ु क दशन आदसपन होने पर ौी गुजी नेपाल नरेश महाराजािधराज महेि वबमशाह से भटकर। तदनुसार भट का समय िनत कया गया। उसके अनुसार ौी गुजी नेमहाराजा से भट क। इस भट के समय नेपाल के तकालीन ूधानमंऽी ौी तुलसीिगर भी उपःथत थे। डॉ. तुलसी िगर के कारण ह यह भट िनत करने म संघके कायकताओं को कोई कठनाई नहं हई। ु डॉटर क िशा के िलए जब ौी तुलसीिगर बहार के दरभंगा म और बाद म कलका म िनवास करते थे तब संघ के संपकम आये थे। नेपाल नरेश को धािमक और सांःकृ ितक काय के िलए भारत म कहं भीजाने म रोक-टोक नहं थी इसिलये ौी गुजी क इछा थी क भारत म हदूसंगठन का काय करनेवाले राीय ःवयंसेवक संघ से उनका घिन परचय हो, वे संघका काय िनकट से देख।यह भट अयंत सौहादपूण वातावरण म लगभग घंटा भर चली। उस समय नेपालऔर भारत के संबंध म कु छ तनाव िनमाण हआ ु था। नेपाल और चीन क सीमापरःपर लगी हई ु है। १९६२ के चीनी आबमण और भारत क करार हार क छाया<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी 211


भारत-नेपाल संबंध पर मँडरा रह थी। उसके कारण नेपाल का चीन क ओर अिधकझुकाव हो गया था। नेपाल म उपिव िनमाण कर उपिवी लोग भारत म आौय लेतेह ऐसी नेपाल क िशकायत थी। ऐसा लगता था क नेपाल नरेश के मन म यह भीशंका ूवेश कर चुक थी क नेहजी के मन म हदू राय कहलानेवाले नेपाल केवषय म कटता ु िनमाण हई ु है। ौी गुजी क ःवाभावक इछा थी क सांःकृ ितक से एक होने के कारण भारत और नेपाल परःपर अिधक िनकट आय और वहउहने नेपाल नरेश के िनकट ूकट भी क। उस पर उनक अनुकू ल ूितबयादखायी द। ौी गुजी ने नेपाल नरेश क इस अनुकू ल मनोभूिमका क सूचना दलीके ौे अिधकारय तक पहँचाने ु का भी आशंवासन दया। भारत सरकार के गृहमंऽीौी लालबहादरु शाी द. १ माच १९६३ को काठमांडु जानेवाले थे। यह कायबम पहलेह घोषत हो चुका था। उनसे खुले मन से वातालाप करने और िमऽता के संबंध ढ़करने क आमहपूवक वनती ौी गुजी ने नेपाल नरेश से क। अयत ूसनवातावरण म यह भट संपन हई। ु तब ौी गुजी ने ऐसी इछा य क क राीयःवयंसेवक संघ का काय नेपाल नरेश ःवयं ूय देखने के िलए संघ केपूविनयोजत एकाध कायबम म उपःथत रह। यह वनती महाराजा को माय हई। ुकाठमांडु से काशी लौटते ह ौी गुजी ने ौी लालबहादरु शाी और ूधानमंऽी पं.नेह को पऽ िलखकर नेपाल नरेश से हई ु भट का वृ और अपना िनंकष उहसूिचत कया। ौी लालबहादरु को िलखे पऽ म ौी गुजी ने कहा था, “अपनी ओर सेहोनेवाले यवहार म कु छ सुधार कर, उिचत समान देकर सौहादपूण संबंध ूःथापतकरने और नेपाल क आिथक, शैक आद आवँयकताएँ यान म लेकर उिचतनीितय का अवलंब करने से नेपाल शीय ह एक समथ, अिभनदय िमऽ, सीमासंरक बंधु के नाते खड़ा हो सकता है। भारत और नेपाल के हत परःपर संबंिधत ह,इसिलये अपनी सुरा क से भी दोन देश के संबंध म सुधार होना औरिनंकपट िमऽता ूःथापत होना आवँयक है।” ौी गुजी ने यह भी सूिचत कयाक, “अब तक भारतीय अिधकारय के खे, आमीयताशूय आचरण के कारण जोकटता ु िनमाण हई ु है उसे दरू कया जाय और तदथ आवँयक हो तो उन अिधकारयके ःथान पर, जहने जानबूझकर या असावधानी से ऐसा आचरण कया है, अिधकःनेहभावपूण यय क िनयु क जाय। मुझे वास है क इस ूकार संपूणवचार कर नेपाल के भारत के साथ-अटट ू ःनेह और परःपरपूरकता के संबंध िनमाणकरने म आप सफल हगे।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी212


ूधानमंऽी पं. नेह को िलखे गये पऽ म भी उपयु भावनाएँ ौी गुजी ारा यक गयी थीं। इसके अितर चीन, कयुिनःट वःतारवाद और नेपाल का वशेषउलेख इस पऽ म है। ौी गुजी ने िलखा था, “मुझे लगता है क नेपाल सरकार कोचीन के ूित बहत ु आकषण नहं है। अंतराीय साॆायवाद सायवाद के ूित तोउसे बकु ल ूेम नहं है। इसिलये चीनी वःतारवाद के वरोध म एक ूबल श केनाते नेपाल िस हो सकता है, िसफ हम भारतवािसय को नेपाल क अनेक ूकार सेसहायता करनी होगी। अपने उेँय और नीितय के संबंध म नेपाल के मन मवास िनमाण करना आवँयक है।” इस पऽ का तकाल द. १ माच को पं. नेह जीक ओर से उर ूा हआ ु और उसम ौी गुजी के अिधकांश वचार से सहमितूकट क गयी थी। पं. नेह और ौी गुजी के बीच तावक मतभेद अवँय थे,परतु राहत क से एकाध राीय समःया पर परःपर आदर रखकर वचार काआदान-ूदान करने क मन क उदारता भी थी। नेपाल वषयक पऽ यवहार से यहदखाई देता है।आगे १९६५ के उराध म ौी अटलबहार वाजपेयी लालबहादरु शाी जी से िमले थे।उस समय ौी गुजी के नेपाल वषयक दौरे क खुलकर ूशंसा शाी जी ने क थी।उहने कहा था, “अनुकू ल पृभूिम तैयार कर नेपाल-भारत मैऽी ढ़ करने का मेरातीन चौथाई काम ौी गुजी पहले ह कर चुके थे।”परंतु नेपाल नरेश क ौी गुजी से हई ु भट का वषय यहं पर समा नहं होता।उसका और एक पहलू है और वह भारत सरकार को शोभा देनेवाला नहं है। नेपालनरेश ने ौी गुजी के साथ हई ु बात-िचत म राीय ःवयंसेवक संघ के एकाधकायबम म उपःथत रहने क अनुकू लता ूकट क थी। इसिलए महाराजािधराज कसुवधानुसार उह संघ के कायबम के िलए आमंऽत करने का ूय संघ क ओर सेूारंभ हो चुका था। १९६३ के अु बर मास म वदेश का ूवास पूरा कर नेपाल नरेशमुबई पहँचने ु वाले थे। उस समय मुबई म उनका सावजिनक सकार करने कयोजना संघ-कायकताओं ने बनायी। परतु वह समय नरेश को सुवधाजनक नहं था।इसिलये वह वचार साकार नहं हो सका। बाद म १९६४ के मकर संबमण उसव केूमुख अितिथ के नाते महाराज उपःथत रह ऐसी वनती उनसे क गयी। परंतु उसीसमय पं. नेहजी क नेपाल याऽा िनत होने से महाराज को काठमांडु म रहनाआवँयक हो गया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी213


अत म १९६५ क १४ जनवर को नागपुर के संघ के मकर संबमणोसव के िलएमहाराज पधार ऐसी वनती क गयी और महाराज ने वह ःवीकार कर ली। दसंबर१९६४ के ूारंभ म यह ःवीकृ ित ूा होते ह ौी गुजी दली गये। वहाँ रापितऔर ूधानमंऽी से भट कर संपूण कायबम के वषय म चचा करने क उनक इछाथी। रापित के साथ द.९ दसबर को भट हई ु , परतु ूधानमंऽी से भट नहं हई। ुबाद म नेपाल नरेश ने अपने कायबम का पूरा यौरा नागपुर को सूिचत कया। तबौी गुजी फर से दली गये। परतु इस बार भी ूधानमंऽी जी से भट नहं होसक। इसिलये ौी गुजी ने ूधानमंऽी के नाम पऽ िलखकर नेपाल नरेश के कायबमक सपूण जानकार उह द। इस पऽ ूाि क सूचना भी िमली। इसी बीच महाराके मुयमंऽी ौी वसंतराव नाईक से भट कर उह भी पूरा कायबम ौी गुजी नेबतलाया और पूछा क सरकार या सहयोग देगी? इस पर मुयमंऽी क ओर सेआासन दया गया क भारत सरकार क ओर से ूा होनेवाली सूचनाओं केअनुसार सब यवःथा क जाएगी। ौी गुजी २५ दसंबर से ०५ जनवर तक बहारके ूवास पर थे। उसी समय कु छ तथाकिथत ूगितवाद या वामपंथी वचार केहदवरोधी ु समाचार पऽ म नेपाल नरेश क संकपत याऽा के वषय म अयंतूितकू ल समाचार ूकािशत हए। ु इसके अितर ूधानमंऽी का भी एक वयूकािशत हआ ु जसम कहा गया क नेपाल नरेश क याऽा के वषय म उह कु छ भीमालुम नहं है। देश के ूधानमंऽी क ओर से कतनी असय भाषा!महाराजा महेि ारा संघ का िनमंऽण ःवीकार कया जाना और संघ के कायबम केिलये भारत म पधारना कांमेसी सरकार को पसंद नहं आया, यह ःप प से दखाईदेने लगा। इधर ौी गुजी घोषत कर चुके थे क नेपाल नरेश मकर संबमण केकायबम के िलये नागपुर म आनेवाले ह और उससे नागपुर म नवचैतय का संचारहो चुका था। ःवागत क कई ूकार से तैयार शु हो चुक थीं। इस संपूण उसाहपर पानी फर गया। नेपाल नरेश क इस भारत याऽा के ूित भारत सरकार काूितकू ल ख रहते हए ु भी उनका पधारना अंतराीय नीित के व होता, अतःउहने ःवाभावक प से आने म अपनी असमथता य क। अतम ूय करनेक से ौी गुजी ने रापित डॉ. राधाकृ ंणन ् को तकाल एक पऽ िलखा। इसपऽ म कहा गया था क, “नेपाल के साथ अपने संबंध अिधक अछे आधार परकायम करने क आवँयकता जानकर हम लोग यह जो काय कर रहे ह, उसके संबंधम आपको वास होगा ह। अपनी अयंत महव क उर सीमा पर नेपाल कःथित देखते हए ु ूाचीन काल से चले आ रहे इन संबंध को अिधक ढ़ करनाआवँयक है।” परतु इस पऽ का कु छ भी उपयोग नहं हआ। ु भारत सरकार का<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी214


वरोध िमटा नहं। के वल नागपुरवासी ह नहं, अपतु अपना सपूण भारतदेश एकऐितहािसक अवसर से वंिचत हआ। ु अपनी असमथता को सूिचत करनेवाला जो पऽवशेष दूत से नेपाल नरेश ारा नागपुर भेजा गया, उस पऽ के साथ ह उहने अपनाउसव का संकपत भाषण भी िलखत प म भेजा था।१६.४ महाराजा का ूेरक सदेशमहाराज महेि ने ौी गुजी के नाम भेजे गये अपने पऽ म अयत खेद ूगट करतेहए ु सूचना द क नागपुर के पवऽ मकर संबमण के कायबम म वे समिलत नहंहो पा रहे है। आगे अयंत वेदना के साथ िलखा क “आप मेर कठनाइय वमानिसक क को समझ सकते ह जो एक हदू होने के नाते उपःथत न हो सकनेसे मुझे है।”भारत के हदओं ु को एक संदेश देते हए ु ( जो उसव के अवसर पर पढ़ा गया)महाराजा ने कहा, “नेपाल सदा से ह भारत के हंदओं ु के िलए अखड ूेरणा का ोतरहा है। यह नहं, नेपाल को इस बात पर गव है क हंदओं ु पर जब-जब आप आईतब-तब उसने उह अपनी यहाँ शरण द है। नानासाहेब पेशवा सरखे भारत के पहलेःवातंयसमर के सेनािनय को नेपाल म आौय िमला है।....नेपाल ने सदा भारत केूहर क भूिमका अदा क है। दोन क संःकृ ित ूायः एक ह है और दोन समानजीवनादश से ह ूेरणा पाते ह।.....यह हम सब हंदओं ु के िलए आनंद का वषय है।यह समःत हंदु व के िलए गौरवाःपद बात है।”“हंदु धम दिनया ु का ूाचीनतम धम है। सृ क उप ूबया के संबंध म उसकअपनी ौेतम है। उसम वे सारे आवँयक सूऽ वमान ह जो सबको शांित,कयाण और सुख ूा करा देने क मता रखते ह, साथ ह इस भूपटल पर सेसंघष के सारे िचह को िमटाने क पाऽता भी उनम है। हदव ु हम सबके िलए, जोूाचीन, ौे और गौरवयु हंदु धम के अनुयायी ह, गव एवं गौरव का वषय है।”“दभायवशात ु ् मानवता आज वनाश क ओर भाग रह है और आपसी वेश औरसंघष म रत है। हंदु धम के उचतम िसात ह मनुंय को इस भयानक ःथित सेउबार सकते ह।..... इसके िलए यह आवँयक है क सब जगह के हंदु संगठत ह<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी215


और अवभाय श के प म खड़े ह। यह नहं कहा जा सकता क संघ इसआंदोलन म अपनी उपयोगी भूिमका अदा नहं कर रहा है।”“हम इस बात से ःवाभावक प से ूसनता है क यह समेलन इसी सय केआधार पर भारत के िनवािसय को सुसंगठत एवं अनुशािसत प देने हेतु ूयरतहै।...... दिनया ु के एकमाऽ ःवतंऽ और सावभौम हंदु राय नेपाल के हम नेपाली भी,जो एक से दिनया ु के सारे हंदओं ु का ूितिनिधव करते ह, सभी गितशील हंदुशय के साथ सहयोग करने के इछक ु ह। हम भगवान ् पशुपितनाथ और भगवतीानेर से ूाथना करते ह क इस उिचत काय के िलए हम शुभाशीवाद दे एवंआदश हंदु समाज एवं मानव जीवन को वाःतवकता म परणत करे।”ौी गुजी के भाषण म भी वःतुःथित का खुलासा कया गया था। संघ के इसउसव म नेपाल नरेश पधारे होते तो भारत-नेपाल सांःकृ ितक संबंध अिधक ढ़ हए ुहोते। परतु यह वःतुिन और राहत का वचार छोड़कर के वल दलीय ःवाथ कावचार साढ़ प ने कया। इससे उसक अदर ू ह ूकट हई। ु ौी गुजी ने एकवःतृत पऽक ूकािशत कर सपूण घटनाबम क जानकार ःवदेश बांधव को द।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी216


१६.५ सरकार िनणय क पऽ म ूितबयाभारत सरकार ारा महाराजा नेपाल को राीय ःवयंसेवक संघ के कायबम मसमिलत न होने के िलए बाय कये जाने क कृ ित पर देश के कई ूमुख पऽ नेतीखी ूितबया य करते हए ु सरकार क कड़े शद म भसना क।दली के दैिनक ‘हदःतान ु ’ ने िलखा “हदव ु के ूित उपेापूण शुंक व घोरउदासीनता का ख अपना कर भी सरकार या उस नेपाल से िमऽता क आशा करतीहै जहाँ के अिधकांश िनवासी कटर ौालु हदू ह? यह तो जड़ काटकर पेड़ से फू लक आशा करने जैसा है।”दली से ह ूकािशत ‘वीर अजुन ’ ने िलखा “वाःतव म यह बहत ु ह आय कबात है क हमार सरकार के ूवा इतनी बेशम से अपमानजनक झूठ म िल ह।(पहले सावजिनक रित से महाराजा के कायबम म जाने क ःवीकारो और बाद मउससे अःवीकार) या भारत सरकार यह समझ सके गी क हमार सेना म समिलकगोरखा बधुओं के मन को उनके महाराजा के साथ इस यवहार से कतना धकालगेगा!”पुणे के ‘के सर’ ने िलखा “जब मुबी म पोप आते ह तब तो रापित से लेकर नीचेतक का पूरा सरकार तंऽ दौड़ कर उनका ःवागत करता है कतु वह सरकारमहाराजा नेपाल के नागपुर जाने पर रोक लगाती है। या हमार सरकार हदू समाजसे कसी कारण से बदला लेने पर तुली है? ”ये अनपेत घटनाएँ कु छ वःतार के साथ इसिलए यहाँ द गई ह जससे यह ातहो सके क कांमेस का नेतृव कतनी गहराई से हदव ु वरोधी वशेषकर संघवरोधी राजनीितक छआछत ु ू के भाव से मिसत था। यहाँ तक क सावजिनक झूठ कासहारा लेकर रा के यापक हत को ित पहँचाने ु म भी वह नहं हचकचाया।१६.६ आबामक भूिमका हो१९६५ म जब भारत-पाक यु िछड़ा तब ौी लालबहादरु शाी भारत के ूधानमंऽी थे।कँमीर के छब नामक ूदेश म घुसकर पाकःतान ने यु ूारंभ कया था। इस<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी217


समय खुले दल से सबका सहकाय ूा करने क भूिमका ौी शाी जी ने अपनाईथी। ौी गुजी को, कसी भी राजनीितक दल से संबंिधत न होते हए ु भी, सवपीयमंऽणा सिमित म समिलत कया गया।इस बैठक का आयोजन दली म कया गया। ौी गुजी ूवास के िनिम महारा केसांगली नगर म थे। शासन क सुचनानुसार उनसे संबंध ूःथापत कर ूधानमंऽी कासंदेश उह दया गया। ौी गुजी तुरत दली पहँचे। ु इस बैठक म ौी गुजी नेकौन सी भूिमका िनभायी, इसका सावजिनक ूकटकरण उहने बैठक समा होने केपात ८ माच १९७० को विभन ेऽ म काम करनेवाले कायकताओं का उ-बोधनकरते समय पहली बार कया।ौी गुजी ने कहा, “इस बैठक म एक सजन ने यु का हेतु ःप करने का अनुरोधकया- (लेट अस डफाईन अवर वार एमस ्)। एक नेता तो बार-बार ‘युवर आम’(आपक सेना) शद का ूयोग कर रहे थे। मने हर बार उह रोककर सुझाया ‘अवरआम’ - (अपनी सेना) कहए। कतु जब तीसर बार उहने वह बात दहराई ु तबमने उनसे कहा, “आप यह या बोल रहे ह?” तब उह अपनी गलती का अनुभव हआ ुऔर उहने ‘अवर आम’ कहकर अपनी गलती को सुधारा।”“इस बैठक म मने कहा क कसी भी कमत पर हम यह यु जीतना होगा। इसवजय के िलये जो भी परौम करने पड़गे, हम करने हगे। यह ू कसी एक दलका नहं, समूचे देश का है। इस कारण दलगत कोण को कोई न उठाए। ‘युवरआम’ जैसा शद ूयोग करने का अथ अपने देश क रा करनेवाली सेना को ‘वदेशक सेना’ मानने के समान होगा। हम देश क रा के िलये शऽु से यु करना है, यहबात ःप होते हए ु भी ‘लेट अस डफाईन अवर वार एमस’, ् ऐसा कहना आयजनकहै। जो दसर ू पर आबमण करते ह उह अपने एमस, ् को ‘डफाईन’ करना चाहये।हम यु का हेतु बताने का यहाँ कोई ूयोजन नहं है। हमारा ‘एम’ (लआय) िनतहै। वह है यु म अपने समान क रा कर आबामक को करारा सबक िसखानाऔर वजय ूा करना। ‘वार एमस’ ् को ‘डफाईन’ करने क भाषा बोलना तो यु केउसाहपूण ूय म बाधा उपन करना ह होगा।”“मुझे तो ऐसा ूतीत हो रहा था क बैठक म उपःथत लोग मान िभन देश के ,रा के तथा अलग-अलग हतसंबंध के लोग ह और वे सभी एक दजे ू के मानो<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी218


वरोधी बनकर बैठे ह। मुझे ऐसा लगा क उनम मान कोई समान सूऽ ह नहं। इसिचऽ का अवलोकन करने के पात ् ऐसा कहना पड़ेगा क संसार के विभन देश केलोग राजनीितक ेऽ म काय करते समय जन सामंजःयपूण तव का ःवयं िसमानकर चलते ह। वे सवमाय बात भी हमारे देश म अनुकरणीय नहं मानी जातीं।ऐसी परःथित म संघ का काय कतना महवपूण है, यह ःप करने क कोईआवँयकता नहं है।”इसी बैठक म ौी गुजी ने एक और महवपूण सुझाव दया था और वह यह था कजमू-कँमीर व कछ क सीमा पर पाकःतान के बढ़ते चरण को रोकने के िलएभारतीय सेना को लाहोर पर आबमण करना चाहए। यह धारणा भारतीय सेनानायकक भी थी। यु के समय संघ के ःवयंसेवक तथा जनता का सहयोग सरकार कोूा हो, सरकार और सीमा पर रहनेवाले बंधुओं का मनोबल कस ूकार टका रहेआद क िचंता ौी गुजी ने क। संघ के ःवयंसेवक ने सेना को जै सहयोग दयाऔर जनता ने सेना को जो सबय सहायता ूदान क, उसे देख कर ौी गुजी बहत ुह ूसन थे। दँमन ु के ूदेश म घुसकर उस पर मात करने क युनीित उहनेसुझाई थी। सेना क लगातार हो रह गौरवशाली वजय के कारण देशभर म देशभक लहर उमड़ आई थी। अमेरका और ॄटेन ारा पाकःतान को जो यु साममी दगयी थी उसे भारतीय सेना ने तहस-नहस कर डाला था।१९६२ म चीन के साथ हए ु यु म भारत क सेना को कलंकत और अपमािनत होनापड़ा था, उस कलंक को इस वजय पव ने साफ धो डाला और अपने पराबम का ऐसाडंका बजाया क पाकःतान के पााय सहायक देश भचके रह गये। इस कारण ौीगुजी इतने ूसन थे क उनक यह ूसनता उन दन दये गये उनके हर भाषणम झलकती थी।सौभायवशात ् ूधानमंऽी ौी लालबहादरु शाी संघ को ‘अछत ू ’ नहं मानते थे। फलतःसंघ, सेना के जवान क पछाड़ सभालने म महवपूण योगदान दे सका, जनता मउसाह और याग भाव जगा सका। यप यह सय ःथित थी फर भी पमी औरसी सरकार के दबाव म आकर दली के शासक ने भारतीय सेना क वजयशालीूगित बीच म ह रोक द। शासन के इस अूयािशत िनणय के कारण ौी गुजीदःखी ु हए। ु भारत के ेष पर पलनेवाले पाकःतान को सबक िसखाने और कमर तोड़देने का सुनहरा मौका खो देना बहत ु भार भूल है ऐसा ःप ूितपादन ौी गुजी ने<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी219


कया। जब यु-वराम क घोषणा क गई तब भी उहने कहा क यह तोपाकःतान को श से पुनः तैयार होने के िलए दया गया अवसर है, मयांतर है।यु-वराम क पैरवी करते हए ु दली के शासन ने कहा क भारत का उेँय तोके वल पाकःतान क यु मता (वॉर पोटेशयल) न करने का था, न कपाकःतान क भूिम हिथयाने का। भारत के शासन क ऐसी अिभलाषा नहं है।इस वय पर ौी गुजी ने अयंत तीखी टपणी क। उहने कहा, “के वल युमता न करने क नीित-िनधारत करते समय मनुंय ःवभाव का एक मौिलकपहलू नजरअंदाज कया गया। इस ओर यान नहं दया क कोई मनुंय हंसक याआबामक इसिलए नहं बनता क उसके पास शा क िसता है, कतु सय यहहै क उसके मन म िनहत दु -बू र ूवृ उसे इस दशा म ूवृ करती है। इसीिलएजब तक यह बू र ूवृ वमान है तब तक मनुंय बार-बार श संमह करता रहेगाऔर दसर ु का अहत सोचता रहेगा। संसार के सभी आबामक रा के इितहास काअययन करने पर यह सय उजागर होता है। इस दु ूवृ का वनाश कै से होगा?यह दु ूवृ कोई जड़ वःतु नहं जसे पकड़कर न कया जा सके । दु ूवृ काआवंकार मनुंय के या मनुंय समूह के मायम से ह हआ ु करता है। इसिलए यदहम इस दता ु का वनाश करना हो तो इस ूवृ का आधार-अथात ् दु ूवृ केमनुंय समूह को ह न करना आवँयक है।”साथ ह ौी गुजी ने इस बात क ओर भी यान आकषत कया क पाकःतान कायु सामय इंलड और अमेरका पर िनभर है और इन रा का ‘वार पोटिशअल’न करना तो भारत क मता के बाहर क बात है। वदेशी भूिम क अिभलाषाभारत को नहं है- इस वधान का िनषेध करते हए ु ौी गुजी ने कहा क जस भूिमको आज पाकःतान कहा जाता है, वह अठारह वष पूव भारत का एक अिभन अंगथी। कँमीर के एक ितहाई भूभाग पर पाकःतान ारा बलात ् कजा कया गया था।इस कारण पाकःतान को पराःत करना याने अपनी भूमी फर से वापस लेना ह है।हम जब संपूण पाकःतान मु कर लगे तभी कहा जा सके गा क ःवतंऽता संमामवाःतवक अथ म पूण हआ। ु उहने ःप प से कहा क इस संबंध म ‘संसार केअय लोग या कहगे? व मत या होगा?’ इस बात का हौवा बनाने म कोईअरेथ नहं है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी220


“यद ऐसा नहं हो पाता हो तो कम से कम भारत क सेना पाकःतान म जहां तकघुसी थी, वहं पर यु वराम रेखा िनत क जाय, और संयु रा संघ ने १९४९ मजो याय कँमीर पर लागू कया था, वह भारत को भी लागू करने दे।” ऐसाूितपादन ौी गुजी ने कया। भारत सरकार ने इनम से एक भी सलाह नहं मानी।परणामतः ौी लालबहादरु शाी के िलए वदेशी दबाव को सहन करना अिनवाय साहो गया। ौी गुजी का सुझाव था क शाी जी को समझौता वाता के िलएताशकद जाने क आवँयकता नहं है। फर भी वे गये और वहां सी दबाव के तहतसंिधपऽ बनाया गया। तथाकिथत ‘आझाद कँमीर’ से भारतीय सेना को वापस लेने केू पर भी वे अडग नहं रह सके ।दभायवश ु ताशकं द म ह शाी जी क रहःयमय मृयु हई। ु भारत ने ःवदेशी दय,ःवतंऽ ूितभा और जीवन का ःवािभमानयु भारतीय ताना बाना रखनेवाला एकमहान ् नेता खो दया। रणभूिम म महान ् पराबमी सैिनक ने अपना बिलदान देकर जोपाया-कमाया, अजत कया उसे समझौता वाता क मेज पर मटयामेट कर दयागया। उस इितहास का वेषण करने का यहाँ कोई ूयोजन नहं है। लेकन जो हआ ुउससे ौी गुजी अयािधक दःखी ु हए। ुपाकःतानी आबमण के कालखंड म सपूण देश एक वशालकाय सामुहकयववाले वरा रापुष के प म खड़ा रहा, यह बात असंदध प से आनंदूदान करनेवाली थी। कतु ौी गुजी के मन म इस ताकािलक एकता के ःथायीप से टके रहने के बारे म संदेह था। उहने पूछा, “या यह िचऽ भवंय म इसीतरह बना रहेगा? अपने समाज को खोकला बनानेवाली वलगता क ूवृ औरअवगुण सदा के िलए न हो जाएंगे ऐसा हम वास के साथ कह पाएँगे?” ौी गुजीने यह ू इसिलये छेड़ा था क इसी समय संदेह पैदा करनेवाली कु छ घटनाएँ भारतम हो रह थीं।मिास म हो रहा हद-वरोधी आंदोलन, पंजाब का आपसी संघष आद कु छ घटनाओंके संदभ म ौी गुजी ने कहा, “संकट के दरू होते ह फर से अपनी आमवःमृिततथा िनंबयता क कोख म जा बैठने क हमार ूवृ अपने वनाश का एक ूमुखकारण रह है। यह सय हमारे इितहास म अंकत है। अपना समाज कुं भकण क नींदसोता है। इसिलये राीय भावना तथा एकामता क ज़ड़े के वल आबमण-कालीनताकािलक एकता म नहं, अपतु अिधक गहर कसी भावामक तवभूिम म पक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी221


करना राहत क से आवँयक है। इस ूकार क िचरंतन राीय एकामता औरभ का अिधान या हो सकता है? वशु राीयता क भावना ह वाःतवक अथम शात ूेरणा का जमःथान है। हाल ह म संकट के समय समाज के जस अजेयसामय का सााकार हम हआ ु , उसका परपूण अवंकार भी हम इसी ूेरणा सेहोगा।”*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी222


१७ राीय पुनजागरण के विभन काय के िलए मागदशन१९४९ के जुलाई मास म संघ पर लगा ूितबंध हटने के बाद ौी गुजी ने नईपरःथित के संदभ म हदू संगठन के वचार को अिधक ठोस, सुःथर औरपरपवता से परपूण करने हेतु कस तरह भगीरथ ूय कये, यह हमने विभनघटनाओं के परूेआय म देखा। चाहे संघ कायकताओं का अयास वग हो या गोहयावरोधी आंदोलन अथवा यु के समान गंभीर ूसंग, वे ‘हदू’ शदोचारण से दयम जागृत होनेवाले राीयव तथा उसके यथाथ प क ओर यान आकषत कयाकरते थे। हदू परंपरा क ूेरणा तथा एकामता का परपोष करनेवाला अथ वेसुलझा कर बताया करते थे।ौी गुजी क यह ढ़ धारणा थी क राीय जीवन के हर ेऽ म हदव ु हमानवता के कयाणकार जीवनमूय का शशाली आधार है। इसी आधार पर हदूजीवन क रचना होने पर ह रा सह अथ म तेजःवी होगा और ःवािभमान से जीसके गा। इसी तेजोमय धारणा से राजीवन के विभन ेऽ या ह, ूभावत हइसिलये वे सदैव ूयशील रहे। संघ के य िनमाण के काय को उहने एक नयाआयाम ूदान कया।हमने अनुभव कया है क संघ का काय नैसिगक ढंग से उबांत होता गया। संघ कावचार संघःथान के बाहर यापक प से पहंचाने ु का काम भी अनायास औरःवाभावक प से होता गया। डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने राजनीितक दल का कायकरने के िलए कु छ कायकताओं क माँग क। ौी गुजी ने सुयोय कायकता देकरइस माँग क पूित क। कतु संघ राजनीित से दरू रहा। राजनीित के ेऽ म पहंचे ुसंघ संःकारत कायकताओं ने राजनीित म राीय मूय के ूित िना ूःथापतकरने का ूयास कया। इसी समय ौिमक, िशा, कृ षी, सहकारता तथा वनवासीेऽ और समाचार ेऽ म भी सेवाकाय करने हेतु संघ के ःवयंसेवक अपनी-अपनीिच के अनुसार गए। ःवयंसेवक चाहे जस कायेऽ म हो, वहाँ उहने राीयमनोभूिमका और संःकार िनमाण करने का ह ूय कया।इन सब काय म संघ क भूिमका अपनी ूभुसा (डॉिमनेशन) या मोचा (ृट)बनाने क न कभी थी, न है। अपेा के वल यह है क ूयेक ःवयंसेवक अपने जीवनम संघ-वचार को वहन करे और अपने मूल श के ि से उसका संबंध बना रहे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी223


संघ का ःवयंसेवक जहाँ भी हो वहाँ उसे अपना िमऽ परवार बढ़ाने तथा उसे संघवचार से संःकारत करने का ूयास करना चाहये। साथ ह वह ःवयं अनुशासनहनन बने। संघ इस बात क अपेा नहं करता क संघ के कायकता ारा संचािलत ेऽसंघ के अिधकार ेऽ या िनयंऽण म रह।२ जुलाई १९५६ के सााहक ‘पाचजय’ म ौी गुजी का डॉ. ँयामाूसाद मुखज केसंबंध म एक लेख ूकािशत हआ ु था। इस लेख म ौी गुजी ने डॉ. ँयामाूसादमुखज के साथ हए ु वातालाप पर ूकाश डाला है। डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने जनसंघक ःथापना क थी और सहकाय के िलये सुयोय संघ कायकताओं क मांग भी कथी। इस कारण ौी गुजी ने राजनीितक दल और संघ के परःपर संबंध तथा इसवषय को लेकर मन म उपन होनेवाले संॅम आद का ःपीकरण इस महवपूणलेख म कया है। ौी गुजी ने िलखा है:“डॉ. ँयामाूसाद मुखज क संघ संबंधी अपेाओं का वचार कर मुझे उहःवाभावक प से सतक करना पड़ा। मने उह ःप प से बताया क राीयःवयंसेवक संघ को राजनीित म नहं घसीटना चाहए, यक वह कसी भीराजनीितक दल के आधीन रहकर काय नहं कर सकता। उसका वाःतवक काय राके सचे सांःकृ ितक जीवन को पलवत करना है। उहने इस ःथित को समझाऔर इस तय को ःवीकार कर िलया, पर साथ ह यह समित ूकट क क नयेराजनीितक दल को भी कसी अय संःथा के आधीन नहं रखा जा सकता। उसकेउिचत पोषण और वकास के िलए उसका पृथक् अःतव आवँयक है।”राीय ःवयंसेवक संघ और ूःतावत दल के आपसी सबध के िसलिसले म इनमूलभूत बात पर एक मत हो गया। एक अय ू जस पर सोच-वचार करनाआवँयक था- वह था दल का आदश या हो? जहाँ तक राीय ःवयंसेवक संघ कासबध है- उसके िनत आदश और ढंग ह। इसिलए यद संघ के कसी ःवयंसेवकका सहयोग ूा करना हो तो यह तभी िमल सकता है जब राजनैितक दल भी उसीआदश के अनुसार काय करने को तैयार हो।डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने भी कहा क वे हदु रा के आदश से पूणतः सहमत हऔर हदु रा को वैभव के उच िशखर पर ले जाना कसी लोकतंऽ क आधुिनककपना के व नहं समझते, यक हदु रा हदओं ु और अहदओं ु को पूण<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी224


नागरक, राजनीितक और सांःकृ ितक ःवतऽता का वास दलाता है, जब तक वेरा वरोधी हलचल म भाग न ल, अनुिचत ढंग से सा हिथयाने का ूय न करऔर रा को उसके वैभव और महानता के उच िशखर से िगराने का ूय न कर।जब इन बात का िनणय हो गया तब मने अपने कु छ सहयोिगय को जो बड़े वःतऔर अनुभवी थे- चुना। ये सहयोगी ऐसे थे जो नवीन दल क ःथापना का बोझउठाने और अपनी िनःःवाथ सेवाओं को अपण करने के िलए तैयार थे और इस नयेदल को शशाली तथा संगठत आधार पर ःथापत करके इसे लोकूय अखलभारतीय राजनीितक दल बनाने क योयता रखते थे।”संघ के युवा तथा ूौढ़ ःवयंसेवक आज अनेक संःथाओं म कायरत ह। उनम से कु छतो जनाधारत संगठन (mass organisations) ह तथा कु छ ेऽ या काय वशेष केिलए सीिमत ह। कु छ नये संगठन खड़े भी हो सकते ह। इन नयी या पुरानी संःथाओंम काम करते समय यद कसी ने ऐसा ू उपःथत कया क संघ और इस कामका या संबंध है तो ौी गुजी ारा दये गये उपयु उर क ओर अंगुिलिनदशकया जा सकता है। ौी गुजी उन ःवयंसेवक क सदा सराहना कया करते थे जोविभन ेऽ म संघ क अपेानुसार काम कर रहे थे। उदाहरण के तौर पर डॉ.ँयामाूसाद मुखज के सहकार तथा सुवयात िचंतक पं. दनदयाल उपायाय तथाभारतीय मजदरू संघ के ूितभाशाली िशपी ौी दोपंत ठगड़ के नाम उलेखनीयह। साथ ह जशपुर म वनवासी कयाण आौम क ःथापना करनेवाले ौी बालासाहेबदेशपांडे तथा ववेकानद िशला ःमारक का भय िनमाण करनेवाले ौी एकनाथजीरानडे का भी ःमरण हो आता है।संघ के जह जहाँ भेजा वहाँ वे डटकर खड़े हो गये और नविनमाण कया।ःवयंसेवक का ऐसा यवहार पहले भी रहा है और आज भी है। संघ के ःवयंसेवकजस कसी कायेऽ म पहँचे ु वहाँ क परःथित, य, संःथाओं, उनके उेँय तथाकायूणाली को संघ के येय के अनुप नींव से कलश तक उस संःथा वशेष केगठन और उसक ूगित का वचार उहने कया। िचंतन, मनन, अयास, ूयोग,कपकता तथा ूितभा के ारा माग बनाया, संःथा वकिसत क और सामाजकमायता अजत क। इसे ह संघ क मौिलक संकपना तथा राोथान के उेँय कावकासोमुख तथा यावहारक ःवप कहा जा सकता है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी225


समाज का ूयेक य संघ शाखा म आएगा या आना चाहए ऐसी कपना डॉ.हेडगेवार जी और ौी गुजी ने न कभी क, न ूगट प से कहा। उनका मानना थाक ूयेक य संःकारत, देशभपूण तथा ूचीन हदू परंपरा से ूेरणा लेकरअपना जीवन यतीत करे।उनक कामना थी क ूयेक हंदू ःवतः को देशभ के साँचे म ढाले और संगठतरहे। इन सारे िनय बढ़नेवाले और संघ-ूेरणा से चलनेवाले काम क ओर देखने कसंघ क भूिमका या है यह ू अनेक के मन म बार-बार उठता है। १९५० के बादजैसे-जैसे समाज जीवन के विभन ेऽ म ःवयंसेवक पहँचने ु लगे थे वैसे-वैसे इनकाय से संघ का या िनत संबंध है और उसका ःवप या है इसक चचासमाचार पऽ करने लगे थे। वशेषतः समाचार पऽ क अिधक िच देश कराजनीितक सा-ःपधा के समाचार म होने से भारतीय जनसंघ और संघ के बारे मवे बार-बार िलखा करते थे। उनक धारणा रह है क जनसंघ संघ का एक राजनीितकमोचा (Front) है। ौी गुजी के समय जनसंघ के बारे म यह ूचार कया जाता थाक उसम संघ के ूित िना रखनेवाले व संघ का िनयंऽण न चाहनेवाले ऐसे दो गुटह। इसिलये इस ू पर ौी गुजी ने समय-समय पर जो कहा या उहने मागदशनकया, उस पर सरसर डालना उिचत होगा।भाषावार ूांतरचना के पूव के मयूदेश के मुयमंऽी पं. रवशंकर शुल से ौीगुजी के घरेलू और आमीयता के संबंध थे। उह ौी गुजी ने एक भट म ःपप से कहा था क छोटे बच को खेल खलाने के िलये इतना बड़ा देशयापीसंगठन हमने नहं खड़ा कया है। इसके पीछे हमारा विश उेँय अवँय है। अपनेराजीवन के ूयेक अंगोपांग पर संघ के राीय वचार का सपूण ूभाव डालनाहमारे संघकाय का मुय अेँय है और वह हमने कभी भी िछपा कर नहं रखा है।अनेक ूसंग पर बड़े-बड़े कायबम म भी “Yes, we want to dominate everyaspect of our national life with our ideology”- ऐसे सरल व ःप शद म ौीगुजी संघ क आकांा य कया करते थे।इस संदभ म १९५४ म िसंद म कायकताओं क जो ूदघ ऐितहािसक बैठक संपनहई ु उसम ौी गुजी ारा य कये गये वचार मूलगामी और हमेशा के िलएमागदशक ह। द. १४ माच क राऽ म यह भाषण हआ ु था। इस भाषण म शाखाकाय और िभन-िभन ेऽ के नवीन काय के परःपर संबंध क ौी गुजी ने<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी226


याया क थी और साथ-साथ शाखा काय क परपूण मता पर वास ूकटकया था। इसिलए इस भाषण के महव का भाग यहाँ ौी गुजी के ह शद म उ-घृत करना समीचीन होगा।“पछले कु छ वष से संघ काय के साथ-साथ और भी कु छ बात चल रह ह।उदाहरणाथ कु छ वष पूव अपने ूय से वृ-पऽ, पाठशालाएँ, दवाखाने आद आरभहए ु ह। यह कोई धंधे क से नहं कए गए अपतु अपने काय के ूचार केसाधन के ह ःवप या उससे ह िनकलनेवाले उपांग ह। अनेक ःथान पर जनसेवाके काय भी कए ह। वचार आता है क यह सब काय य कए? या दैनंदनशाखा के प म जो काय चलता है उसम कसी ऽुट का अनुभव करके यह काय कएह? हम तो कहते थे क हम वृपऽीय ूचार से मतलब नहं। तथाकिथत रचनामककाय म वास नहं। फर इन सब ूकार के काय का अपने मूल काय से सामंजःयया? िसांत के प म यह म अवँय कहँगा ू क संघकाय ःवतऽ एवं सवागपूण है,उसक पूित के िलए इन बात क आवँयकता नहं। इस सबध म कोई वशेषयुवाद देने क जरत नहं। हम तो इसी वास के आधार पर काय कर रहे ह।”“कतु ू पैदा होता है क फर नवीन ेऽ म यह पदापण य? हम जीवन केसब ेऽ पर वैचारक आबमण करके काबू पाना है। संघकाय म कोई ऽुट मान करपराभव के प म ःवीकार कये गये काम नहं ह। यद यह सब पराभव म सेउपन हआ ु है तो इहे चलाने क आवँयकता नहं, यक पराभूत अतःकरण कु छनहं कर सकता, फर उसका लाभ भी या होगा? कतु सय तो यह है क यहहमारे कसी ूकार के पराभव का परणाम नहं। यद हम थोड़ा पीछे देख तो ातहोगा क हमने वृपऽ तो तब चलाये जब संघकाय जोर-शोर से बढ़ रहा था, ूितबधके प म कोई खड नहं पड़ा था। उस समय तो ऐसी ःथित थी क जहाँ कहं खड़ह वहं शाखा ःथापत हो जाती थी। िमट को हाथ म िलया तो वह सोना हो जाताथा। अतः काय क असफलता का अनुभव करके वृपऽ नहं चलाए, बक सफलताक कसी माऽातक अनुभूित के बाद आबमण क ,से ह उह आरभ कयागया। हमारा हदू रा है। इसका संवधन और संरण ह हमारे काय क नहंअपतु उसका वकास और वःतार भी हमारा लआय है। आमरा कोई बड़ा येयनहं। यद आमरा भी करनी हो तो उसका सवम उपाय आबमण ह है। िभन-िभन ेऽ म भेजे गये कायकता एक-एक ेऽ को जीतने हेतु ूेषत सेनापित केसमान ह जह संघ के दैनंदन काय से जीवत संबंध रख कर अपने याग, तपःया,<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी227


ौम तथा कौशल से हर ेऽ म नया आदष उपःथत करते हए ु काय के महान ् लआयक पूित करना है।”“वृपऽीय ेऽ को ह ल। कस ूकार आदशवहन होकर वे चल रहे ह! उनम कतनीगदग़ी तथा कतना िननःतर है! चार ओर चलनेवाली इस बुराई पर आबमण करनेके िलए ह हमने उसम ूवेश कया है। हमारे उन ेऽ म काम करनेवाले कायकताओंको जनम कई ूचारक ह और कई जीवन-िनवाह योय अपतम वेतन लेकर कायकरते ह, उनको इसी से वचार करना चाहए। कई बार जब मनुंय कोई कायआरभ करता है तो उसे उसक धुन सवार हो जाती है। बाक क बात वह भूल जाताहै। तो अपना आदश, येयवाद, जीवन क पित संघ के सवसामाय काय केअनुकू ल बना कर ह उस काय को चलाना होगा। उसे ह संघ-काय मानकर चलनाठक न होगा। यद कोई सपादन करते हए सोच ले क मेरा तो यह एक काय हैतो वह योय है जैसे क कसी को रक का काय दया तो उसे वहाँ डटकर खड़ेरहना है; फर यहाँ बौक म या चल रहा है यह सोचने क आवँयकता नहं।कतु जब तक कोई आकःमक कारण न हो या इस ूकार का िनदश न दया जायतब तक, यह सब काम हम िनय चलनेवाले संघकाय के साथ ह करने चाहए। यहतो संघकाय का Addition (सपूरक) है : Substitution (पयाय) नहं। बीमार ममनुंय को बना भोजन रखा जा सकता है या पय के प म उसे दिलया दया जासकता है। कतु ःवःथ य को भोजन के ःथान म दिलया नहं अपतु भोजन केसाथ-साथ दिलया देना चाहए। जो अपनी वचार परपरा का मूल ोत है उसके साथसबध वछेद करके यद कोई कदेगा क म उसका ूचार कँ गा तो यह सभवनहं। मूल ोत के साथ जीता जागता सौ सबध रखना होगा। और फर जहाँभी जाय वहाँ यह सोच कर काम कर क वहाँ संघकाय के अनुप उचता, ौेता,पवऽता एवं आदशवादता ूकट हो जस से हम उस ेऽ म भी कु छ बांित कर सकऔर संघ के ूित जमे हए ु जन वास म वृ कर सक । इसी से अय लोग भीअपना ःतर ऊं चा उठाने को बाय हगे। कोई यद यह सोचे क वृपऽ संघ का ूचारकरगे तो वह ूवास के कायबम को ूकािशत करने के अितर और या कर सकतेह? जहाँ तक संघ के वचार का ू है उस म तो कोई िनय बदलनेवाली बात नहं।यह हमारा समाज हैस हम इसको वैभवशाली बनाना है और इसके िलए संगठन करनाहै, यह सय है इसिलए हम बार-बार कहते ह। इस म नवीनता कहाँ से लाएँ? इसूकार ूचार क आवँयकता मालूम न होने पर भी हमने फर इन काम म यइतने कायकता लगाए? य इतना ौम, िय तथा समय लगा रहे ह? के वल इसी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी228


वास से क अपने दन ूितदन के काय को चलाते हए ु , उसम वृ करते हए ु आगेबढ़कर अय ेऽ म अिधकार कर सक और वहाँ आदश ःथापत कर सक ।”“इतना समझा तो संघकाय के अितर अय काय का यथाथ ःवप भलीभाँितसमझा जा सके गा। जनसंघ भी संघकाय क कसी ऽुट के पूण करने के िलए नहं याउसका ऐसा महव नहं क संघकाय को कु छ कम करके भी उसे चलाया जाय। वहतो उसी से चला है क राजनैितक ेऽ म ऐसे काय का िनमाण कया जाय जोपरःपर ईंया, ःपधावहन एवं ःनेहपूण रित से, उकृ प से चलते हए ु हमारेजीवन के शु आदश को यवहार म लाकर उस ेऽ के ऊपर संगठन का ूभुवःथापत करे, यहाँ तक क उसके जैसा संगठन सपूण शासन को भी अंगुिल-िनदशसे चला सके । वह यह न समझे क चलो अब तो म आजाद हो गया तथा अयनेताओं के समान थोड़ा बहत ु अपना डम ्-डम ् बजवा कर नाम कर लूँ तथा सुखचैनसे अपना जीवन बताऊँ । उहने तो उस ेऽ म परवतन करने का महनीय कायअपने उपर िलया है। उस िनय को भुला कर यद राजनीित के आकषण म अपनेजीवनादश को ॅ करने क गलती क तो बहत ु बड़ हािन होगी।”“लोग यह भी पूछते ह क इनका संघ से सबध या होगा? ःप ह उह हमनेविभन ेऽ को पादाबात करने के िलए भेजा है। दसरे ू देश म रहनेवाला अपनाराजदतू जस नीित को अपने काय और यवहार का आधार बनाता है वह उनका भीहोना चाहये। वह वहाँ जाकर शाद-ववाह करके घर नहं बसा लेता है, न अपने रासे सबध वछेद ह करता है, बक अपने रा के आदश क छाप उस देश परकै से पड़े तथा रा के हत का संरण एवं संवधन कै से हो इसी का ूय करतारहता है। वह रा का ूितिनिध होकर जाता है। इसिलए अपने यवहार के सबधम सतक रहता है क कहं उसके रा के सबध म उसके यवहार से कोई अनुिचतधारणा न बन जाय। यहाँ भी संघकाय क दैनंदन उपासना म खड नहं पड़नाचाहए। संघ के साथ अनेक राजनीितक कायकताओं का सबध आया और उसने उनसबसे यह अपेा क क वह हमार िनय चलनेवाली शाखाओं म उपःथत रह।आज भी उस अवःथा म परवतन नहं आया। बाहर चाहे जतनी गजना और नेतृवकर कतु हमार द आरम ् करने क पाऽता नहं जानी चाहए। ःवयंसेवकव केभाव से छोटे से छोटा काय करने क अपनी तैयार चाहए और उसके िलए और कोईकारण ढँढ़ने ू क आवँयकता नहं होनी चाहए। रा का भाव, उसक ूखर भावना,इसके संःकार, िशा और गुण क उपासना क आवँयकता सदैव बनी रहती है। यहतो हमारे जीवन का आधार है। हम कतना भा राजनीितक काय कर कतु अपना<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी229


सबंध संघ से नहं छोड़ना चाहए बक यह देखना चाहए क ववध ेऽ म कामकरने के परणामःवप संघकाय का ूय वःतार कतना हआ। ु हम वह अवःथालाएँ क बढ़ते-बढ़ते हम कह सक क राीय ःवयंसेवक संघ ह हदू रा है। जनकोजनसंघ म काय करने के िलए दया गया है, उनको जनसंघ का काय करने के िलएनहं अपतु जनसंघ के ारा राजनीितक ेऽ पर संघ का ूभाव पैदा करने के िलएदया गया है। सेनापित बाहर भेजा गया तो वह जो कु छ करता है उसका ौेयभेजनावाले को है और उसका पोषण तथा िनयंऽण करने का काय भी भेजनेवाले काह है। यह अयोय सबंध रहना चाहए। हम चाहे जहाँ रह, हमारा जीवन संगठनके िलए समपत है और जतना ह हम इस ःवयंपूण काय को बढ़ायगे उतनी हमाऽा म अपने जीवन के आदश सभी ेऽ म ूकट करने म सफल हगे। यह हमारेजीवन का यापक काय है और शाखा ह उस सब का मूल है। शाखा है तो सब कु छहै, शाखा नहं तो या होगा? यक रा िनमाण का िचरंतन काय और उस परजीवन सवःव योछावर करने क श और कहाँ है?”“संघ ने जीतना कया है उसम ह सब ूकार के ेऽ समा हो गए ऐसी बात नहं।हम आगे भी बहत ु कु छ करगे। म तो कई बार अपने गाँव के ेऽ म चलने-वालीशाखाओं के ःवयंसेवक के सबध म यह पूछता हँ ू क उनम अपने सहकारय कअपेा अतःकरण क भावना, देश परःथित का ान, सबको लेकर चलने कयोयता तथा नेतृव क पाऽता अिधक है या नहं। समाज के िभन-िभन ेऽ मकए जानेवाले आबमण क यह पूव सूचना है। यद समाज के सभी ेऽ म हमआबमण करना है तो सुसूऽ काय क रखनेवाली कतनी वशाल मानव शहमारे पास होनी चाहए इसका हम वचार कर। इस को अपने समुख रखकरइसक पूित के साधन बन कर ह हम सभी ेऽ म काम कर।”“कई बार लोग पूछते है क या संघ सभी ेऽ पर अंकु श (Domination) रखनाचाहता है। म पूछता हँ ू क या कु छ लोग को अपने कध पर चढ़ा कर उनक जय-जयकार करने और उनके चरण चूमने के िलए इतना परौम कया गया है? िभन-िभन ेऽ म भेजे गए कायकता एक-एक ेऽ को जीतने के िलए भेजे गए सेनापितके समान है जह संघ के दैनंदन काय से जीवंत सबध रखकर अपने याग-तपःया, ौम तथा कौशल से हर ेऽ म नया आदश उपःथत करते हए ु संघ केमहान ् लआय क पूित करनी है।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी230


“राजीवन के विभन ेऽ म चल रहे कायकलाप को सफल बनाने के िलएमागदशन करने तथा मूलतव क जड़ तक पहँच ु कर ूभावी शर-संधान करने कूितभा, बु तथा मता ौी गुजी म थी। ूाचीन, वतमान तथा भूतकाल म देश कअवःथा या थी, या है और या रहेगी, इसके संबंध म उनक ूायःचमकारक ूतीत होती है यक जैसा वे कहते वैसे ह घटनाएँ घटती थीं। ौीगुजी का मागदशन सह अथ म भवंय सूचक हआ ु करता था। ौी गुजी क बुइतनी पैनी, मममाह तथा पारदश थी क कायकता उनके दशािनदश का पालन करअवँय ह सफल होते थे।”१७.१ ौिमक ेऽ मौिमक ेऽ क ओर हम गौर करे। ौी दोपंत ठगड़ १९५० म ‘इंटक’ म शािमल हए। ुइसके पात ् ौी गुजी का समय-समय पर उह जो मागदशन ूा हआ ु उसकासारांश बताते हए ु ौी दोपंत ठगड़ ने इस ूकार कहा:-“(१) जस संःथा म आप काय हेतु जा रहे हो वहाँ के अनुशासन का पूणतः पालनकजये। संःथागत अनुशासन का पालन आपका ूथम कतय होना चाहए। यदा-कदाअनुशासन और आपक ववेक बु म संघष के आसार दखाई द तो अवलंबइःतीफा द।(२) शेड यूिनयन के आंदोलन के वषय म महामा गांधी और मास के वचार कातुलनामक अययन कर। काम और अययन साथ-साथ होना आवँयक है। इससमय मानिसक संतुलन बनाये रखना तो आवँयक है ह, कतु अययन का अभावया छट ू अनुिचत होगी।(३) कयुिनःट शेड यूिनयन क कायपित का भी अययन कर।(४) काय के िनिम होनेवाले ूवास म अपने मजदर ूकायकता के घर म ह िनवासक यवःथा कर। इसे ूथा का प द। हम यद गरब परवार म न रहे तो के वलकताबी जानकार के ारा उनके सुख-दःख क यथाथ कपना हम नहं हो पाएगी।ुऐसी ःथित म मानिसक एकपता का होना असंभव होगा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी231


(५) ३० हजार मँगनीज मजदर के ूितिनिध के नाते इंटक के जनरल कौसल केूसदःय के प म आपका चयन हआ है। अब आप एक ू का सीधा और सहुद। या आप इन तीस हजार मजदर पर उसी तरह ूेम करते ह जैसे आपक माँूआप पर करती है?उर(६) बुनकर काँमेस क सहायता करते समय राजनीितक लाभ तथा सौदेबाजी कावचार कतई मन म न आने द। अपना संपक ेऽ वःतृत करते हए बुनकर कुसमःयाओं क सह जानकार ूा करना ह अपना उेँय रहे। बुनकर को एकआिथक इकाई या अंग मानकर चल। बुनकर चाहे सवण हो या हरजन या मुसलमान,उसके जाित-धम का कतई वचार न करे। बुनकर और उसक समःयाएँ इसी परिधम हम वचार कर तथा काय क दशा तय कर।(७) आिथक ेऽ क से शेयूड काःटस ् फे डरेशन तथा अखल भारतीय खेतीहर(भूिमहन) संघ भी है। इस आिथक पहलू को यद यान म रखा तो बाक केभूिमहन मजदर के साथ समरस होने क इछा उनम जागृत होगी और साथ हूसामाजक कटता ु भी कम होगी। ”कसी नये काय ेऽ म ूवेश करते समय कौन सी सावधािनयाँ बरतनी पड़ती ह,कस अनुशासन तथा चारय क आवँयकता रहती है इस संबंध म ौी गुजी ाराकये गये मागदशन का यह ूाितिनिधक उदाहरण है।भवंय म संघ क योजनाओं के फलःवप कायेऽ क संया बढ़ती गयी।कायकता मागदशन ूा करने हेतु ौी गुजी के पास आते थे और समःया का उिचततथा समयानुकू ल हल ूा कर नये उसाह के साथ अपने कायेऽ क ओर अमसरहोते थे। ौी गुजी के पास संघ बा ेऽ से अय लोग भी आया करते थे। वाथऔर िशा यह तो ौी गुजी के ूय वषय थे ह।ौी गुजी के ूवास म आयोजत संघ कायकताओं क बैठक और वचारविनमय मवशेषतः राजनीितक ेऽ के काम का ूभाव अनेक बार ूगट होता था। उन ूसंगके अनुप सौय या कठोर शद म ौी गुजी मतूदशन करते थे। एक उदाहरणउलेखनीय है। सन ् १९६७ के जून मास म पंजाब ूांत के ूमुख कायकताओं औरूचारक क एक बैठक हई। ु इस बैठक के समारोप के भाषण म ौी गुजी ने कहा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी232


क हाल ह म संपन हए ु चुनाव के पात ् उर भारत म अपनी ह मडली शासनम उच और महव के पद पर आसीन है। िभन-िभन काम के िलए उनके पासजाने क अपनी इछा होना बकु ल ःवाभावक है। परतु मेरा ऐसा सुझाव है ककसी भी संघकायकता को अपने यगत काम के िलए उनके पास बकु ल नहंजाना चाहए। संघ-काय सवौे है, सवपर है, ईरय काय है। उसके कायकता काुि बात के िलए राजनीितक कायकताओं के सामने हाथ पसारना िनदनीय है औरअपने यगत काम के िलए उनके गले पड़ने से उनक ूामाणकता और िनंपताको आँच पहँचने ु क भी संभावना रहती है। अपना कौशय, योयता और ूामाणकताका वास जनता को दलाने के िलए उह पूरा अवसर िमलना चाहए। यद उसमउनक कु छ कमी रह तो होनेवाले परणाम भी उह भुगतने देना चाहए।राीय हत के सभी-ू पर, उदाहरणाथ असम, नसलवाद, कशमीर आद केवभेदकार आंदोलन, वदेश का अनुकरण, राीय िशा, राीय एकामता आदवषय पर जनसंघ के िनवािचत वधानसभा सदःय को अयत ढ़ता से बोलनाचाहए ऐसी सलाह ौी गुजी देते थे। जब ूवास म ःथान-ःथान पर जनसंघ केकायकता िमलने के िलए आते थे तब भी ूचिलत समःयाओं के संबंध म मागदशनमु प से वे करते थे। अय ेऽ म काम करनेवाल म मन का संॅम दरू करसंघ के मूलभूत काय और कायपित का ान उनको करा देते थे। ःवयंसेवक कबैठक म जो ूोर ःथान-ःथान पर हआ ु करते थे उनम से कु छ नमूने के तौर परयहाँ उ-घृत कये जा रहे ह। उससे आज भी ःवयंसेवक और कायकताओं को उममागदशन ूा होगा।१७.२ कु छ ू व उरू:- वाथ परष का काय करते समय हम कन बात क ओर वशेष यान देनाचाहए?ौी गुजी- वाथ परषद के कायकता को अपने संगठन का काय करते हए ु अपनीसंःथा को संघ का वैचारक व संगठनामक ‘रबू टंग सटर’ मानना चाहए। वाथपरष म काम करनेवाल को अपने संपक म आनेवाले वािथय और अय को भीिनावान ःवयंसेवक बनाने का ूय करना चाहए।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी233


ू:- अयाय ेऽ म काम करते समय कभी-कभी संघकाय से मेल नहं बैठता है।ऐसे समय या कया जाय?ौी गुजी- यद अपने को मूलकाय का महव समझ म आया हो और वहदसर ू को समझाने का ूय हमने कया हो तो वरोध को टाल सकते ह औरसमवय साध सकते ह। We should capture all fields but we ourselves shouldnot be captives.नहं होता है।ू:- अय ेऽ म काम करने के कारण बहत ु बार शाखा म जाना संभवौी गुजी- अनुपःथत रहने का मौका आ सकता है परतु अपने अिधकारयक अनुमित ली जाय और फर उिचत काम कया जाय परतु कसी भी परःथितम संघकाय क ओर दल ु नहं होना चाहए। वह काय अवचल मानकर अय सबकाम कये जायँ। फर काम कोई भी हो िसनेमा या नाटक कं पनी का खेल भी, वह होसकता है, परतु काम संघ का ह करना चाहए। अय ेऽ म काम करते समय कईबार लगाव पैदा हो जाता है और लगता है क वहाँ तो बहत ु आराम है और फर संघ-काय से दरू रहने के िलए बहाना ढँढा ू जाता है।चाहए?ू:- आंदोलन करते समय विभन संगठन को कौन सा वचार करनाौी गुजी- आंदोलन करने के पूव हम तव िनत करना चाहए। कठनाईयह है क हम अिधकार क ओर यान देते ह, कतय क ओर नहं। कलका मअमेरका ारा संचािलत शेड यूिनयन कॉलेज ारा ूकािशत एक पुःतका मुझेभारतीय मजदरू संघ के एक कायकता ने द थी। उस पुःतका म सब बात क चचाहै परतु ौिमक काम के घट म ईमानदार से काम करेगा ऐसा कहं भी उलेखनहं है। अपना आधार तो कतय ह है। अपनी परंपरा ने अपने को के वल एक हअिधकार दया है और वह है अपने कतय के पालन का। वाथ गुजन के ूितआदर ूकट कर इसके िलए कभी या कसी ने आदोलन कया है?<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी234


“सावजिनक कायबम का एक ूकार का नशा चढ़ता है, परतु ऐसे कायबम अछेहए ु तो भी ऐसा नहं समझना चाहए क उससे अपनी श बढ़ है। मपान सेणक आवेश पैदा होता है, परतु श नहं बढ़ती।”सन ् १९६६ के अूैल मास म ौी गुजी लालाहंसराज जी के साथ ौी गुलजारलालनदा से िमलने के िलए गये थे। नदा जी ने ौी गुजी पर आरोप कया क वेराजनीितक वषय पर बोलते ह। इस पर ौी गुजी ने उर दया, “अपनी राीयएकामता पर आघात करनेवाला जो भी वचार या काय होगा उसक आलोचना करनामेरा कतय है। यद शासकय काय राीय एकामता को बाधा पहँचाने ु क पित सेचलता हो तो म अवँय उसक आलोचना कँ गा।”अयाय ेऽ म काम करनेवाले अपने ःवयंसेवक का यवहार कोसा हो और वेअहंकाराद अवगुण से कै से अछते ू रह, यह वषय ौी गुजी बार-बार उठाया करते थे।सन ् १९५४ क बात है। एक बैठक म ौी गुजी ने कहा, “अयाय ेऽ म कामकरते समय जब गले म माला पड़ने लगती है और जय-जयकार सुनने को िमलता है,तब कायकता क छाती फू ल जाती है। उसे लगता है क वह लीडर बन गया! मन कोमोहत करनेवाले अहंकार का यह ूाथिमक ःवप है। संघ का कहना है क अपने-अपने ेऽ म अवँय नेतृव संपादन कर परतु ौे साधु-सत के सामने अवँयनतमःतक होने का यान रख। यह अपने यगत और सामाजक जीवन काआदश है। सावजिनक जीवन म नाम कमाओ परतु संघ के परवार म एक वनॆःवयंसेवक के नाते सदा अनुशासन क मयादा म रहो। अपना आचरण संत औरमहामाओं के संबंध म अनुशासनहन रहा तो उससे हम रास बनगे। कं स औरजरासंध इसी कारण से रास ूवृ के बने। िनरोगी समाजजीवन को उहने ःवीकारनहं कया। िनरोगी समाजजीवन म ूयेक को अनुशासन का पालन करना चाहए,अपने कतय का ःमरण रखकर योय रित से आचरण करना चाहए। इसके िलएसंघशाखा म सब ःवयंसेवक का कधे से कधा िमलाकर खड़े रहना और अपनीदैनंदन ूाथना कहना आवँयक है।”१७.३ राजनीितक ेऽ के कायकताओं के िलएसन ् १९५४ म ह वदभ के अकोला नगर म बोलते समय राजनीितक ेऽ म पाँवकै से फसलते ह इसका ववेचन करते हए ु ौी गुजी ने कहा, “आजकल लोग के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी235


मःतंक म चुनाव और सा-ःपधा क राजनीित घुस गयी है। इस राजनीित केूभाव से मनुंय मनुंय न रहकर एक राजनीितक पशु (Political animal) बनता जारहा है। राजनीित का आज का अथ हो गया है िनरतर समझौता और जोड़-तोड़करना। ऐसी ःथित म येयिन जीवन जीना राजनीितक कायकता को असंभव सालगता है। ौेय महामा जी ने कहा था क यद गोहया जार रह तो ऐसेःवातय क मुझे इछा नहं है। इतने िनःसंदध शद म गाय के वषय म अपनीौा उहने य क थी। परतु राजनीित करते समय पं. जवाहरलाल नेह जी नेकहा क गोहया मुसलमान का सुूितत अिधकार है (Well established right)।इसिलए कानून से गोहया रोक नहं जा सकती। राजनीित म मत-ूाि के िलएअिधकािधक लोग को अनुकू ल कर लेने क नीित को ूधानता िमलती है और अपनीौा और येय को गौण ःथान ूा होता है। मत के िलए ौाःपद बात कअवहेलना भी राजनीितक खेल म लोग सहन करते ह। इसीिलए अपने ौे पुष ने“वारांगनैव नृपनीितरनेकपा” कहा है।”राजनीितक ौेऽ म काम करनेवाले ःवयंसेवक के ू को ौी गुजी ारा बहत ुिनःसंदध और संघ क को ःप करनेवाले उर समय-समय पर दये गये ह।“जह राजनीितक ेऽ म िच है उह उस ेऽ म ईमानदार से काम करना चाहए।ःवयंसेवक क लेकर हम कसी भी ेऽ म काम कर सकते ह।” यह बतलाने केबाद “ःवयंसेवक क या है” इसका मूलभूत वचार उहने बतलाया। उहनेकहा, “अपना संघ-काय इस वचार से शु नहं हआ ु है क लोग जो चाहते ह वह हमकरे। उटे समाज जीवन म जो ऽुटयां ह, वे लोग को समझा कर उनका िनराकरणकरने के िलए संघ का जम हआ ु है। अपने ःवयं के जीवन म िनभयता से हदूजीवन का आवंकार करते हए ु लोग म भी वे आदश संबात करने के िलए संघ कािनमाण हआ ु है। लोग क इछानुसार नाचने क अपेा लोग का जीवन संघ-वचारसे ूभावत करने और उसम परवतन लानो का काय संघ कर रहा है। यह वाःतवम वधायक काय है। इस ूकार के काम म समय अिधक लगना बकु ल ःवाभावकहै। मनुंय जीवन म योय परवतन लाने के िलए समय तो लगने ह वाला है। यदकाम शीय हो ऐसी अपनी इछा हो तो कायकताओं क संया बढ़नी चाहए औरूयेक कायकता अिधक समय देकर काम करनेवाला होना चाहए।”ौी गुजी आमहपूवक कहा करते थे क ॅाचार का ू बहत ु जटल हो गया है,उसका संघकाय ह उपचार है। उनका सुिनत मागदशन था क “साधारय कॅता रोकने का िनणायक बल के वल सुसंगठत, शु राभ से ओत-ूोत लोकश<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी236


म ह रह सकता है। वह श िनणायक होती है। पहले जसे धम कहते थे उसी काूगट प संघ है। हम सािभलाषा नहं है। संपूण रा जीवन सुखी, समृ करने कअपनी इछा है। राजनीितक ःपधा म एक गुट बनाकर संघष करते हए ु बैठने के िलएअपना काय नहं है। िनमह-अनुमहम ूबल लोकश का िनमाण अपना काय है।”१७.४ िशा ेऽ के बारे मवािथय म बढ़ती हई ु अनुशासनहनता क समःया का अययन करने हेतु ःथापतएक उच-ःतरय सिमित ारा ौी गुजी को एक ूावली भेजी गयी थी। ौी गुजीने बड़ ह तपरतासे उर िलखे और अपनव के भाव से सिमित क ओर भेजे। इसिनिम िशा क पुनरचना के वषय म उनके मौिलक तथा मूलमाह रचनामकवचार ःप हो सके । ौी गुजी ने इस ूावली के उर म िलखा क वाथसंगठन ववालय के ःतर पर काय कर तथा राजनीितक हःतेप से दरू रह।ौी छागला के िय िशा मंऽी थे। ौी गुजी क मुंबई म उनसे भट हई ु थी। इस भटके समय िशासुधार क दशा या हो? इस वषय पर उनके बीच वातालाप हआ। ुौी. छागला महावालय म से वामहण कर बाहर िनकलने वाले वािथय सेअसंतु थे। ौी गुजी ने उह बताया क वािथय म जो ऽुटयां, चारय काअभाव, ःवािभमानशूयता, अनुशासनहनता आद दोष दखाई देते ह, उसका कारणयह है क उह अपने देश का वाःतवक या सय इितहास पढ़ाया नहं जाता। यहआदशहनता का तथा पेट-पानी हेतु ःवाथ एवम ् दशाहन बनने का एक माऽ कारणहै। नौकर िशा का ूधान लआय माना जाता है। इितहास के योय अयापन सेमातृभूिम के ूित गौरव क भावना उपन हो सकती है। साथ ह अपने देश कोगौरवशाली बनाने के िलए यागपूवक परौम करने क आकांा युवक म िनमाण होसकती है। कतु यह भी उहने ःप कर दया क आप जस शासन के मंऽी ह वहवािथय को सय इितहास पढ़ने के प म नहं है।राीय अनुशासन योजना के सूऽधार ौी. जगनाथराव भसले से भी इसी ूकार ौीगुजी का वातालाप हुआ था। इस चचा के दौरान ौी जगनाथराव ने ू पूछ करिचंता य क क “हमारे पास साधन ह, पैसा है, शासन क श है, फर भी लगनके साथ काम करनेवाले िनःःवाथ ूवृ के लोग-कायकता य ूा नहं होते? संघके पास अपया साधन ह। ‘सशन’ कु छ नहं है। साधारय कावरोध वपुल ूमाण<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी237


म है। फर भी ःवाथयाग कर अनेक वष तक या आजीवन, काय करनेवाल काूचंड समुदाय वह कै से जुटा पाता है?” ौी गुजी ने उर म कहा क “संघ अपनेकायकताओं के मन म देशूेम क उकट भावना जगाता है। अपनी मातृभूिम केसंबंध म वशु भ क भावना जागृत कये बना यव म स-गुण किनिमित तथा याग क ूेरणा युवक म िनमाण होना असंभव है।”इन दो महानुभाव ारा ौी गुजी से क गयी पूछताछ और ौी गुजी ारा उह दयेगये उर का के वल उदाहरण के नाते उलेख कया गया है। ौी गुजी के देशयापीूवास म अनेक िशा संःथाओं म जाने और िशक, िशािधकारय, पऽकार औरअय भी जासुओं से वातालाप के अनेक ूसंग उह ूा होते थे। उनसे यह ःपदखता है क भारत म ूचिलत िशा पित और कु ल िशा वषयक शासकय नीितके संबंध म वे अयत असंतु थे। विभन ःथान पर उनके ारा य िशावषयक मतूदशन म साधारणतः िननिलखत बदु ूमुखता से रहते थे।(१) आजकल जो िशा द जाती है इसम आधुिनक पााय िशा ूणाली के उमअंश नहं है या ूाचीन भारतीय पित का भावामक आशय ( Positive content) भीनहं है। हमारा एक गौरवशाली ूाचीन इितहास है और जीवन के ववध ेऽ म हमउकृ ता ूा कर चुके थे, यह भी तण वाथ को मालूम नहं रहता। वािथय केसामने कु छ भी सकारामक या भावामक येय न रखे जाने के कारण वह समयकाटने के िलये हन ःवप का कु छ तो भी पढ़ता रहता है इसका आय लगनाचाहए।(२) बकु ल ूाथिमक ःतर से ह वािथय म योय आकांा और कोण कासंःकार दया जाना चाहए। अपने अयंत ौे रापुष के जीवन और ऐितहािसकूसंग का िचऽण करनेवाला वशाल ूाचीन औप आधुिनक साहय भडार अपने िलएउपलध है। उसका िशक को इन संःकार के िलए उपयोग करना चाहए। ऋषयऔर योिगय क महान ् परंपरा म पैदा होने का अिभमान बच के मन म पैदा करनाचाहए। हम हदू नाम से जीना चाहए, हदू दखना चाहए और दिनया ु हंदूकहकर अपने को पहचाने, ऐसा ूय करना चाहए। जब अपनी परंपरा का गौरवमानगे तभी दिनया ु क म भी गौरव के वषय बनगे। हम कसी क ूितिलप-‘काबन कॉपी’ – बन यह जगत ् क भी अपने से अपेा नहं है। जसक जड़ हउखाड़ डाली गयी ह उस समाज का कोई भवंय नहं रहता है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी238


(३) राभ के सुढ़ आधार के बना मानवता और अंतरराीयता क बात करना,दोन से ह वंिचत होना है। अपने राीय तवान और वरासत का वचार कया तोदखाई देगा क मानवता का परमोच कयाण उसम समाव है। इसिनए वािथयको राषशयता के पाठ देना याने मानवी मूय को ह सुढ़ बनाना है।(४) ऐसा ूचार कया जाता है क (Earn while you learn) पढ़ते समय कमाओ।परतु भारतीय वचार बकु ल उलटा है। हम कहते है ‘कमाते समय भी सीखो’(Learn even while you earn) मनुंय जीवन भर वाथ होता है यह हमारसंकपना जीवन-येय से संलन है। दभाय ु से परःथित ऐसी है क पााय जगत ्जब धीरे-धीरे वशु जड़वाद से अयाम-वचार क ओर मुड़ रहा है तब हम उचऔर ौे जीवन से माऽ जड़वाद जीवन क दशा म फसलते जा रहे ह।(५) उपासना-सूदाय कोई भी हो वािथय को चारऽक और यम-िनयम किशा देने पर जोर देना चाहए।वैसे ह िच एकाम करने के िलए योग क भी थोड़बहत ु िशा आवँयक है। वतमान िशा ूणाली म कु छ जानकार और रोट कमानेक िशा ह के वल द जाती है।(६) संःकृ त भाषा क िशा क घोर उपेा वतमान िशा ूणाली क एक बहत ु बड़कमी है। राीय एकामता के िनमाण म संःकृ त भाषा का जो योगदान है, उसकायोय ान कहं दखाई नहं देता है। ःवकय भाषा ( विभन भारतीय भाषाएँ) केवषय म ूेम और उसका वकास करने क उकट इछा ता अभाव सरकार नीित मदखाई देता है। संःकृ त मृतभाषा न होकर जीवत भाषा है, यह सय यान म रहनाचाहए।(७) हदू िशा पित मनुंय म वमान ववध गुणवाओं के आवंकार म हसंतोष नहं मानती। वह और आगे जाती है। अपने म जो एक शात िशव तव हैउसका ान और उसका ूगटकरण ू हदू िशा पित का मूलभूत उ माना गयाहै।िशा और संःकार के बारे म ौी गुजी को दो बात बहत ु अिनकार औरिचताजनक लगती थीं। पहली बात थी घर के अिभभावक का आचरण और दसर ूबात, ईसाई िमशनरय क शालाओं म हदू बालक के मन पर हदू परंपरा क ौे<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी239


वभूितय या देवी-देवताओं के ूित पैदा क जानेवाली घृणा क भावना। एक अछेसुिशत घर क तण गृहणी को रसोई घर म अपने नह बचे को सुलाते समयबकु ल अभि गाना गाते हए ु उहने सुना था। यह घटना बतलाकर वे पूछते थे,“बचे अपने माता-पता का ऐसा अिश यवहार यद देखते हगे और ःवाभावकतःउनका अनुकरण करते हगे तो नयी पीढ़ अपने जीवनादश से य नहं ॅ होगी?”ईसाई िशा संःथाओं क वकृ त िशा का दंपरणाम ु बच के मन पर कस ूकारहोता है इसका उदाहरण ौी गुजी देते थे। आठ-नौ साल का एक लड़का छटय ु मघर आया हआ ु था। जमामी का उपवास करने को जब उसके माता-पता ने उससेकहा, तब उसने कहा, “ऐसे यिभचार मनुंय का जमदन आप य मनाते ह? हमईसामसीह का जमदन य न मनाएँ?” आठ-नौ साल का एक लड़का अपने पताजीसे ऐसे ू पूछेगा इसक या आप कपना भी कर सकते ह? इसे रोकने का एक हउपाय है, हदू साधु-संत ारा सुसंःकार ूदान करनेवाली िशा-संःथाएँ ूारंभकरना। परतु सरकार नीित के कारण उन ूय पर जो बधन आते ह उससे ौीगुजी को दःख ु होता था। एक बार उहने कहा, “ऐसी िशा संःथाएँ काम कर रहह, परतु उह ऐहक िशा देने को बाय कया जा रहा है। वािथय म ऐहकताका वातावरण पु करने के िलए ह ूोसाहन दया जाता है। अपनी धािमक संःथाएँबहत ु ह, परतु उनका कोण अयािधक उदार है। हम लगता है क राभ सेूेरत होकर काम करना िशा क ूथम आवँयकता है। कोण म वशालता बादम आ सकती है। बकु ल चुने हए ु य ह ऐसी संःथाएँ चलाने के िलए उपयोिगसाबत हो सकते ह। अयथा थोड़े अिधक पैसे अयऽ ूा होने के लोभ से यसंःथा छोड़कर चले जायगे। सेवा-भावी संःथाएँ चलाने के िलए उकट राभ सेूेरत मनुंय ह चाहए जनके िलए पैसे के लआय गौण ह। सची िचंता ऐसेकायकता ूा होने के संबंध म ह रहती है।”ौी गुजी के सवःपश तथा समुि समान गहरे-अथाह ान और िचंतन का लाभसभी को हआ ु करता था। कतु ौी गुजी के समुख तो ूय संघ क शाखा काकाय ह था। एक बार राजीवन के अंतगत जो काय चलते ह उनसे संघ का यासंबंध है यह ःप करते समय उहने ौीम-भगव गीता के नौव अयाय के दोोक उ-घृत कये थे। वे ोक थे-मया ततिमदं सव जगदयमूितना<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी240


मःथािन सवभूतीिन न चाहं तेंववःथतः ।।४।। अ.९अथ:- मुझ िनराकार परमामा से यह सब जगत ् (जल से बरफ के सश) परपूण हैऔर सब भूत मेरे अतगत संकप के आधार पर ःथत ह कतु वाःतव म म उनमःथत नहं हँ। ून च मःथािन भूतािन पँय म योगमैम।्भूतभृन च भूतःथो ममामा भूतभावनः ।।५।। अ.९अथ:- वे सब भूत मुझम ःथत ह; कतु मेर ईरय योगश को देख क भूत काधारण-पोषण करनेवाला और भूत को उपन करनेवाला भी मेरा आमा वाःतव मभूत म ःथत नहं है।इनके साथ ह,सवियगुणाभासं, सविय ववजतम।्असं सवभृचैव िनगुणं गुणभोृ च ।।१४।। अ.१३अथ:- वह सपूण इिय के वषय को जाननेवाला है, परतु वाःतव म सब इियसे रहत है तथा आसरहत होने पर भी सबका धारण-पोषण करनेवाला और िनगुणहोने पर भी गुण को भोगनेवाला है।यह ोक भी उ-घृत कया करते थे। संघ के ‘योगैय’ का आकलन जह नहं होपाता, वे गलतफहमी के कारण संघ के अंतःःथ हेतु को न समझते हए ु आरोप मढ़तेजाते ह।ौी गुजी का मानना था क राजनीित का अिधकार जीवन के सभी ेऽ पर न रहे।राजनीित समाज क धारणा करनेवाले धम से, अथात ् समाज धारणा तथा मानवीसंबंध के शात िनयम से जुड़ रहे और ूयेक ेऽ से सुसंवाद बनाए रखे। संघ काःवयंसेवक चाहे जहाँ भी कायरत हो, उसे राधम क जागृित का वःमरण न हो, यहउनक सामह अपेा रहा करती थी। ौी गुजी कसी भी संघबा ेऽ के बंधन म<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी241


जकड़े जाना पसंद नहं करते थे। संघ के अितर कसी भी अय काय क गुथी मअटके रहना उनका ःवभाव नहं था। ूथम संघ काय, बाद म अय वचार।संघ का िनयकाय करते हए ु भी ौी गुजी राीय महापुष का ःमरण करानेवालेूसंग या हदव ु का ःवािभमान जागृत करनेवाले कायकलाप म बड़े उसाह से भागलेते थे। आयामक स-गुण के आधार पर ह भारत का पुनथान संभव है ऐसीौी गुजी क ौा होने के कारण ववेकानंद जम शताद, ववेकानंद िशला ःमारकसिमित क ःथापना, अरवंद जम शताद आद काय म भाग लेकर उहने अपनादाियव िनभाया। ौी गुजी के दय म ःवामी ववेकानंद और उनके स-गु ौीरामकृ ंण परमहंस के वषय म असीम आमीयता और ौा थी। ःवामी ववेकानंद केगुबंधु ौी ःवामी अखंडानंद से ह ौी गुजी ने दा महण क थी। अतएवरामकृ ंण िमशन से उनके दघकालीन संबंध थे। परणामतः हदओं ु के पुनथान कायह काय आगे हढ़ने क तीो इछा उनके अंतमन म होना ःवाभावक ह था। इसीकारण १९६३ म ववेकानंद जमशताद के कालखंड म ःवामी ववेकानंद क जीवनीका वतमान देशःथित के संहभ म नया अथ ूितपादत कर उनके जीवनकाय कोूकािशत करनेवाले भाषण ौी गुजी ने दये। कयाकु मार के िनकट जस चटानपर ववेकानंद को अपने जीवनकाय का सााकार हआ ु था, वहाँ एक भय ःमारकखड़ा करने क एक सुदर कपना उन दन के संघ के तिमलनाडु के ूांत ूचारकौी दाजी डडोलकर के मन म ःफु रत हई। ु ौी गुजी को यह योजना ःवाभावकप से जँच गई और शीय ह वहाँ पर एक भय ःमारक के िनमाण क योजना तैयारहई। ु संकप घोषत हआ ु और इस योजना को कायावत करने क जमेवार राीयःवयंसेवक संघ के तकालीन सरकायवाह ौी एकनाथ जी रानडे पर सपी गई। देशभर म हजार ःवयंसेवक ने ःवामी जी के ूखर हदववाद ु वचार का ूचारकया। सकड़ सावजिनक कायबम व साहय वतरण के साथ-साथ ःमारक िनमाणहेतु आवँयक धनसंमह भी कया गया।ववेकानंद िशला ःमारक का भय िनमाण पूणव क सीमा पर पहँचते ु तक ौीगुजी का बहत ु बारक से उस ओर यान था। जब कभी दण के दौरे पर वे जाते,इस िनमाण काय क ूगित देखने उनके चरण इस पावन िशला क ओर चल पड़ते।वे विभन ेऽ से लाये गए ूःतर क कलामक गढ़ई को िनहारते और सूचनादेकर आगे बढ़ते। समुि क लहर का संगीत सुनते हए ु वे हर वभाग को बड़े चाव सेदेखते और ूसन दखाई देते। ौी गुजी के अंतमन का खंचाव आयामकता कओर ह होने के कारण इस सु भाव को ँय ःवप ूा होते देख ौी गुजी का<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी242


मुखमंडल अंतर म उदत अयाम सूय के तेज से आलोकत हो उठता था। एकःवन को साकार होते धेख आनंदवभोर होना उनके िलए ःवाभावक बात थी।संघ के बौक वग म ौी गुजी रामकृ ंण-ववेकानंद के जीवन के उ-बोधक ूसंगबड़ रोचकता से परोते थे। जब और जहां संभव हो साधु, संत, संूदाय ूमुख, महंतया मठाधीश से वे भट करते। हदू समाज क परःथित के संबंध म उनसे वे चचाकया करते थे। ऐसे अवसर पर ौी गुजी इन साधु-समत-महंत से सानुमह कहतेक वे य या संःथागत अहंकार का याग कर एकऽ आने क चेा कर यकयुगानुकू ल धम-जागृित करने क आज आवँयकता है। वे इन महानुभाव को उनकेधािमक और सामाजक दाियव से अवगत करा देते। ौृ ंगेर कामकोट के शंकराचायपू. चिशेखर भारती याने अयामक ेऽ क महान ् वभूित का ौी गुजी पर ूेमथा। इसका एक सूचक उदाहरण है क जब ौी गुजी के माता-पता शंकराचाय जी केदशनाथ मठ म पहँचे ु तब एकात और मौन को भंग कर उहने ौी भाऊजी औरौीमती ताई क आःथापूवक पूछताछ क। पेजावर मठ के ौी वेश तीथ ौी गुजीक ूेरणा से ह हदू जागरण के कायेऽ म उतरे। आज के वातावरण म पेजावर केपीठािधपित हदू समाज म चैतय ूदान करनेवाली एक श माने जाते ह।१७.५ वैक हदमंच का शुभारंभुौी गुजी का धािमक ेऽ से िनकटतम संबंध था। धमभाव के जागरण क अिनवायआवँयकता के समिलत ूभाव तथा ूेरणा से ौी गुजी के मन म एक कपनासाकार हई। ुइस कपना को मूत ःवप देने का दाियव संघ के ौे ूचारक ौी िशवराम शंकरउपाय दादासाहब आपटे के कमध पर सपा गया। ौी आपटे जी के सहकाय से आगेक परेखा बनाकर ूय शु हए। ु इन ूय के फलःवप १९६४ म कृ ंणजमामी के मुहत ू पर ‘व हदू परष’ क ःथापना करने का िनणय िलया गया।मुबई म पवई ःथत ःवामी िचमयाद के सादपिन आौम म आयोजत ूाथिमकबैठक म व हदू परषद क अःथायी सिमित क घोषणा क गयी। िसख पंथ केनेता माःटर तारािसंह तथा वदभ के लोकूय संतपुष तुकडो जी महाराज भी इसबैठक म उपःथत थे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी243


ौी गुजी ने ौी दादा साहब आपटे को व हदू परष के कायभार के िलए िनयुकरते समय कौम सी सूचनाएं दं इसका वचार करना उिचत होगा। ौी गुजी नेकहा, “देश-वदेश म सवऽ अनेक हदू परवार बसे हए ु ह। संसार म यऽ-तऽ बखरेहए ु इन हदू बंधूओं के िलए भारत म एक सांःकृ ितक अिधान के प म कसीसंःथा का होना िनतात आवँयक है। भारत के ूमुख, ूितत, धम-संःकृ ित परौा रखनेवाले सत ्-पुष से आप िमिलये। उनसे वचार वमश कजए। उह इसनये संकपत काय के अनुकू ल बनाइये। कन महानुभाव से िमलना, चचा करना,इसक सूची बनाइये। कु छ नाम म भी सुझाऊं गा। आप हदू महासभा के ौी व.घ.देशपांडे जी से भी संपक कर।”“व के हदओं ू के िलये आवँयक इस काय को राजनीित से सवथा दरू ह रख।साथ ह हदू महासभा या अय कसी भी दल के मंच का इस काय के िलये उपयोगन करने क सावधानी बरत। यद ये दोन शत ौी. देशपांडे जी को माय ह तो हउनका इस संकपत काय क से उपयोग हो सके गा।”द. 29 अगःत १९६४ को सांदपनी आौम म संपन हई ु इस बैठक म नई संःथा केसंबंध म सभी अंग पर वःतार से वचार कया गया। संःथा का नाम या हो? यहवचार ूाथिमक चचा का वषय रहा। ‘व’ शद पर सबक सहमित थी। कतु‘सनातन’, ‘आय’, ‘धम’, ‘हदू’, ‘समेलन’ और ‘परष’ आद शद संःथा के नामरखे जायँ या नहं, इस मुे पर मतिभनता ूगट हई। ु इस संबंध म ौेय ौी तुकडोजी महाराज ारा ूगट कया हआ ु वचार सवमाय हआ। ु ौी तुकडो जी महाराज नेकहा, “भारत म हम सनातन, हदू, आय आद नाम लेकर आपस म झगड़ते ह ह।इस कारण ‘व हदू’ शद का ूयोग यथाथ तथा मा माना जाय।” सभी ने इसमत से सहमित दशाई।ौी गुजी यानपूवक सुन रहे थे। अत म आमंऽत को संबोिधत करते हए ु ौीगुजी ने कहा,“यद हम संःथा के नाम म ‘धम’ शद का अंतभाव करते ह तो हमारे काय कमयादा के वल धम से संबंिधत वचार तथा उसके अनुसरण तक ह सीिमत रहजायेगी। हम तो धम, अथ, काम और मो चार पुषाथ का यापक वचार तथा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी244


पुरःकार करना है। हदू समाजजीवन को सभी से सुढ़-बलसंपन कर उहहदू जीवन के आदश से ूेरत करने क अपना इछा है। इस कारण अपनीसंकपत संःथा के नाम म ‘धम’ शद का ूयोग न हो। उसी ूकार ‘समेलन’ शदसे काय का यथाथ बोध नहं होता। बक ‘परष’ शद मुझे योय ूतीत होता है।”ौी गुजी के इन वचार, सुझाव से सभी सहमत हए। ु फलतः ‘व हदू परष’नामकरण सवसमित से ःवीकृ त होकर इस संकपत संःथा का ूथम चरण पूणकया गया। वशव के सभी हदओं ु के िलये आधारभूत िस होनेवाली इस वयापीसंःथा के कायारंभ म ह ूयेक छोट-बड़ बात क ओर ौी गुजी का कतनीबारक से यान था, अपने अंतःकरण के भाव को अय सहकार कायकताओं तकसंबिमत करने क उनक कतनी मता थी, इसका परचय उपःथत महानुभाव कोहआ। ु ौी गुजी क अलौकक ूेरणा से सभी ूभावत हए ु थे।‘व हदू परष’ का नामकरण बोने के पात सवसमित से यह िनणय िलयागया क परष क विधवत ् ःथापना १९६६ म कुं भ मेले के पावन अवसर पर एक‘वैक हदू समेलन’ का तीथराज ूयाग म आयोजन कर क जाय। हदू इितहासम इस घटना का असाधारण महव है। आधुिनक इितहास म व हदू परष कःथापना धम, संःकृ ित, संःकार सामाजकता और संसार के समःत हदओं ु कोअपना भावामक तथा सांःकृ ितक मंच ूा कराने क से अयंत महवपूणघटना मानी जाती है। जस समाज म िभन-िभन संूदाय, जाित-उपजाित ते लोगवमान ह तथा जो संसार म बखरा हआ ु है, अिभसरण शूय बना हआ ु है, ऐसेहदू समाज को ‘व हदू परष’ के प म एक समान मंच उपलध हआ। ुद. २२, २३, २४ जनवर १९६६ के ऽ-दवसीय समेलन के अवसर पर व भर सेूयाग म आये हदओं ु के िलए यह समेलन अभूतपूव उसाह और हदू एकामताक अनुभूित देनेवाला िस हआ। ुइस परष के ःथापना के पूव ौी दादा साहब आपटे ने यापक प से ूवास कयाथा। ौी आपटेजी ने विभन ःथान पर अपने-अपने मयादत ेऽ म कायरतधमगु, मठाधीश, महंत तथा धािमक, सामाजक ेऽ के कायकताओं से भट कर उहव हदू परष के उेँय और कायकलाप से अवगत कराया था। ौी गुजी भी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी245


अपने िनय ूवास म मायवर तथा विभन ेऽ के कायकताओं से वातालाप करपरष क सफलता के िलए ूयशील थे।ौी गुजी ने परष क सफलता का ौेयभाजन ःवतः को न मानते हए ु बताया कसंपूण व के हदू ूितिनिधय को एक परष के प म आमंऽत करने ककपना मूलतः हदू महासभा के एक कायकता ने ूगट क थी। कं तु इस संबंध मौी गुजी का अिभूाय था क इस ूकार क परष का गठन कसी भी राजनीितकदल के ारा न हो। राजनीित से परे और हदू समाज के हताथ कायरत संःथा हइसे मूतप ूदान करे, यह उनक धारणा थी।आय क बात है क जहने इस कपना को ूथम ूःतुत कया, उनसे कोसआगे ौी गुजी क ूितभा का वःतार हआ। ु मूल कपना बहत ु बड़े पैमाने पर हंदुसमेलन करने क थी। पर ौी गुजी क इछा थी क इस परष का अःतवताकािलक न हो। समेलन क सफलता से ूसनिच होकर बाद म िनंबय होनाउह पसंद नहं था। ौी गुजी ने इसी बात को यान म रखा और इसी दशा मशीयता से कायकता आगे बढ़ ऐसी ूेरणा उह द।व हदू परष का यह मंच सचमुच अतीव भायशाली था। संघ तथा ौी गुजीक ूेरणा से देश म अनेक काय ूारंभ हए ु , फले फू ले, कतु ूेरणा श औरचैतयमूित के प म ौी गुजी यशः जहाँ उपःथत रहे वह के वल व हदूपरष का मंच ह था। वहाँ भी नेता के प म नहं अपतु वनॆ कायकता के पम रहे। सांदपिन आौम क बैठक के समय ौी गुजी ने यशः हर उपःथतमायवर क सुवधाओं क ओर यान दया था। आमंऽत महानुभाव मुझसे बड़े औरअिधक योयता ूा ह, यह वनॆ भाव उनके मन म था। ःवतः के यव केसंपूण-िनःशेष वलय का इससे अिधक ूभावशाली अनुभव या उदाहरण दलभ ु हहोगा।ूयाग म अपने समारोप के भाषण म ौी गुजी ने ःवतः के बारे म जो कहा उसेसुनकर सह ौोतागण ग-ग हो उठे थे। ौी गुजी ने कहा था, “वःतुतः मुझे यहांआकर कु छ बोलने का कोई ूयोजन नहं था। कतु दो माह पूव ौीमत ् ारकापीठाधीर ौी शंकराचाय महाराज ने मुझे आा द क मुझे इस अवसर पर कु छबोलना आवँयक है। मने मा याचना करते हए ु उनसे कहा था क मेरा काम तो<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी246


मंडप को बुहारना और उसे साफ सुथरा रखना ह है। म बड़ िच से यह काम करतारहंगा ु यक म एक ःवयंसेवक हँ। ू मेरा इससे अिधक कु छ करना धृता होगी।कतु ौी शंकराचाय महाराज क अवा भी कै से करता? उनक आा का पालनकरने के अितर कोई चारा नहं था। कु छ ूसंग, कु छ बात ऐसी होती ह, जनकापयाय नहं होता। इसी कारण म आप जैसे महानुभाव क सेवा करने हेतु यहांउपःथत हआ ु हँ। ू ”इन वनॆ भाव-भीने उ-गार को सुनकर कसी को पांडव के राजसूय य के पवपर भोजनोर पल उठानेवाले तथा महाभारत यु के समय अजुन के घोड़ काखरारा करनेवाले ‘माधव’ (ौीकृ ंण) का ःमरण हआ ु हो तो कोई आय नहं।उपःथत साधु-संत के मनः पटल पर यह िचऽ संकत हआ ु होगा।इस परष क संपूण यवःथा क ओर ौी गुजी का यान के ित था। मंडप मउनक चहल-पहल चैतय िनमाण करती। कहां कोई ऽुट न रह पाए इसिलए अयकायकताओं को सूचना देना, ःवयं दसरे ू के काम म हाथ बँटाना, साथ ह एक ह मंचपर आसीन जग-गुओं, महंत तथा धमाचाय के बीच सामंजःय बना रहे, इस ओरभी वशेष यान देना, यह उनका आचरण-परखनेवाल के िलए आदश था। ौी गुजीतो सवसाधारण ःवयंसेवक क भांित ह कायरत थे।ौी गुजी क एक और वशेषता इस परष म गोचर हई। ु कसी ू या ूःतावपर मतभेद होता हआ ु दखाई दया तो ौी गुजी वनॆता से समवय साध लेते थे।धमपीठ के मूधय आचाय के उपदेश पर यथोिचत भांय करते हए ु िभन मत-मतांतर म भी समानता का अंतःथ सूऽ कस तरह वमान है, यह वे ःप कर देतेथे। ौी गुजी क दता, ूेमामह वनॆता और समवय साधने क कला के कारणपरष को एक वधायक दशा ूा हई। ु एक आयाम ूा हआ ु जसके सााकार सेउपःथत आचाय के यान म यह बात भी आई क धममथ म रापुष क सेवाह अिभूेत है।युगानुकू ल धमवचार के एकमत से मा होने का आनद सब ओर ूकट हआ। ु अयकसी ह ु ष ारा यह काय हो पाना कठन था। संसार म यऽ-तऽ बखरे हए ुआमवःमृत और िनंूभ जीवन जीनेवाले, हदू धम क जमभूिम भारत से आधारतथा मागदशन क ूाि से ूदघ काल तक वंिचत और हन भाव से मिसत<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी247


भारतवासी हदओं ु म एक तेजोमय परवतन क संजीवनी का संचार करने कउकटतम आकांा यद ौी गुजी के मन म न होती, साथ ह इस ईरय काय मवे अपने ‘अहं’ क भावना को िनःशेष विलन म कर पाते तो यह ूयाग का समेलनऐसा अनुपम यश शायद ह ूा कर पाता।व हदू परष क ःथापना एक <strong>नवयुग</strong> िनमाण करनेवाली घटना है। यह परषयाने संघ काय का वयापी ूःतुतीकरण ह था, ऐसा कहना अनुिचत नहं होगा।हदू पुनथान के िलए न के वल भारत म अपतु भारत के बाहर भी कोई छोटा-मोटा काम करना हो तो उसके िलए वैक हदू परंपरा का सूऽ महण कर कामकरने के िलए एक असीम सुवधा परष के प म उपलध हई। ु परष का कायसंघपित से ह हो ऐसा आमह नहं था। परष कन काय को करे इस संबंध म ौीगुजी ने ूयाग के उपने भाषण म मागदशन कया दै। सूऽ प से उस भाषण कासार यहां उ-घृत कया जाता है।१७.६ परष के ूमुख सूऽ(१) ूदघ पराधीनता, आमवास शूयता, परानुकरण और हनताबोध के फलःवप‘न हदःु न यवनः’ ऐसी संःकारहन अवःथा को ूा समाज को धीरे-धीरे अपनेधम, तवान तथा आचरण परंपरा क ौेता का बोध कराकर धम क पुनःूितापना का ूय कया जाय। ूारंिभक प म यूनतम संःकार ूदान करने कयवःथा क जाय। इन यूनतम संःकार का ःवप वान ् मंडली तय करे।(२) वदेश म बसे हदू बंधू हदू ह रहना चाहते ह। कतु ान तथा संःकार कउिचत यवःथा न होने कारण इस भावना क पूित नहं हो पाती। संःकारहनता केफलःवप अवछनीय पमी सयता के आद होने का भय उपन हे रहा है। अतःहमारे इन वदेशी परवार के िलए संःकार तथा ान ूदान करने क यवःथा हो।(३) हम तो अपने देश म ह ःवतः को हदू कहने से कतराते ह। हनभाव से हममःत ह। ‘म हदू हँ। ू एक हदू होने के नाते भारत क पुय पावन परंपरा क रा,संवधन तथा ूसार-ूचार करना मेरा परम पवऽ कतय है और इसे पूण करने केिलये म अमसर रहँगा ू ,’ ऐसा कहने का साहस सवऽ िनमाण होना आवँयक है। वदेशम बसे हदू बंधूओं के मन म वास िनमाण हो और वे गव से कह सक क अपना<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी248


एकमाऽ आधार भारत का हदू समाज है। इसके िलए अपने देश म वैसा वातावरणिनमाण करना होगा। इस से गोहया बंद होना आवँयक है। इसके साथ ह हमचाहए क हम हदव ु का और हदू होने का अिभमान रख। हम हदू के नातेसारे संसार म ॅमण कर।(४) हम कसी भी संूदाय का वरोध नहं करते। इसका अथ है क हम जो कु छकरना है वह ूामाणकता, ूेम तथा चरऽ क शुता के बलबूते पर तथा मानवता केूित ममव और ूेम भाव से करना होगा। संूदाय के नाम पर ःवाथ क ूवृ कोबढ़वा देना ठक न होगा। यिभचार और वनाश का दामन हम न पकड़ यह मेराआमह है। हदू धम सवसंमाहक है, इसको हम न भूल।(५) सनातन धम के मायने ह हमारा महान, ् िचरंजीवी, िसातमय आचार धम।अपनी परंपरा म िनिमत बौ, जैन, िसख आद सभी पंथ इसक परिध म अंतभूतह। जैन संूदाय के एक ौे मुिन ने अपना मत य करते हए ु जो कहा क, “जोःवयं को हदू नहं कहता, वह जैन भी कै से रह सकता है,” वह सय है। अपने सभीसंूदाय एक ह परंपरा से िनिमत हए ु है। इन संूदाय के बीच सामंजःय क भावनािनमाण कर समम समाज को वैभवसंपन बनाना हमारा कतय है।(६) पहाड़ और जंगल म रहनेवालो हमारे वनवासी बंधु दःखी ु ह। उनके दःख ु काकारण हमारा वह समाज है जो ःवतः को समझदार तथा उचवगय मानता है। इसवनवासी समाज पर अनेक वष से अयाय होता रहा है। अपने समाज का अिभनसंग होने के कारण हम हर ूकार से उनक सहायता कर अपनी भूल का परमाजनकरना चाहए।व हदू परष के अिधवेशन के सफलतापूवक समा होने के फलःवप ौी गुजीने जो भावना अपने भाषण म य क, उसे उहं के शद म िलखना उिचत होगा।ौी गुजी ने कहा था, “ढाई दन का यह ूसंग ःवणार म अंकत करने योय हैऐसा म मानता हं। ू हम सभी के िलए यह अवसर अयंत भायशाली है। वगत अनेकवष से सोया हआ ु हमारा भाय अब जाग उठा है। अब सारे व म उसका डंकाबजेगा और ऊँ चाई पर उसका वज लहराएगा। ःवामी ववेकानंद के समान महापुषने सारे संसार म संचार कर कहा था क वह दन दरू नहं जब व के मःतक परहमारा वज लहराएगा। ऐसा होगा इसम कोई संदेह नहं।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी249


ूयाग म संपन अिधवेशन क सफलता के पात ् गुजरात, महारा, असम आदराय म व हदू परष के ूादेिशक समेलन संपन हए। ु ौी गुजी इन सभीअवसर पर उपःथत थे। १९७० म असम के जोरहट नामक नगर म जो महासमेलनहआ ु था, उसम महलाओं के िलये एक वशेष कायबम क योजना क गयी थी। नागूदेश क रानी गाइडंयू इस कायबम म वशेष प से उपःथत थीं। ौी गुजी नेइस अवसर पर उपःथत महलाओं को संबोिधत करते हए ु बताया क मातृशसमाज को अपना संःकारधन देने हेतु ूयशील रहे। ौी गुजी का मागदशनमहलाओं क से बहत ु ह ूभावशाली रहा।ौी गुजी ारा दया गया भाषण पूवर ेऽ (असम, मेघालय, िमजोरम, नागालैड,मणपुर, ऽपुरा और अणाचल के समावेश से बना ेऽ) म होनेवाली संभायघटनाओं क पूवसूचना देनेवाला िस हआ। ु साथ ह इन संकट का सामना कसूकार कया जाय, इस संबंध म भी मागदशन कया गया। घुसपैठ के ारा असम कोमुसलमान क सवािधक संयावाला ूात बनाने का षयंऽ रचा जा रहा है, के ि काएक मुःलम हतिचंतक मंऽी इन घुसपैठय को फु सला रहा है, ऐसी चेतावनी भीउहने द। यह भी बताया क हाल ह म िनिमत ‘मेघालय’ ूात म ईसाइय ाराउपिव खड़ा हो सकता है। ौी गुजी ने मेघालय क िनिमित न क जाय ऐसी सूचनाशासन को द थी कतु कसी के दबाव म आकर मेघालय का िनमाण हआ। ु ौीगुजी ने जो भवंयवाणी क थी वह सय िस हई। ुइस ूयािशत संकट का मुकाबला करते समय हदू समाज को या करना होगा,इसे ःप करते हए ु ौी गुजी ने कहा-(१) जनगणना के समय मुसलमान अपनी संया बढ़ाचढ़ाकर बताते ह। ऐसा न हो,इसके िलए सतक रहकर सावधानी बरत। हर हदू को चाहए क वह अपनी गणनाहदू के नाते ह करे। शायबल, वशेषपंथ या पहाड़ जाित के नाम से अपना बोध नकराएँ, के वल ‘हदू’ ह िलख।(२) मेघालय म रहनेवाले सभी पहाड़ तथा वनवासी हदू संगठत होकर अपनानेतृव िनमाण कर। हदओं ु का अहत चाहनेवाले तव अपने समाज म दरारिनमाण कर अपसंयक ईसाइय को अपने से अिधक ूभावशाली बनाने क चेा कर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी250


रहे ह; इसिलये हम चाहए क हम इस षयंऽ क धजयां उड़ा द और िनयंऽण केसूऽ अपने हाथ म ल। इस कठन समःया का िनवारण सुसूऽ हंदु एकता पर हिनभर है।(३) व हदू परष के एक कायकता के नाते हम एक ‘गाँव’ चुने। तपात ् इसगाँव से िनरंतर संपक बनाए रख। इस गाँव म बसनेवाले अपने समाज बंधुओं किशा, धम जागृित और उनक पारवारक समःयाओं को हल करने के िलए सहायताकर। उनके साथ हलिमल कर रह। उनके साथ बैठकर खाना-पीना कर। ऐसा करने सेउनम वास का भाव जागेगा और समरसता क भावना िनमाण होगी।(४) ूा धन का यय समाजको ौेतम अवःथा ूा कराने के िलए ह कया जाय।इस ूकार सवकष ूय होने पर अहदु श पराःत होगी और भारतमाता केशशाली अंग के नाते अपना यह ूदेश सामय के साथ खड़ा रहेगा।इस ूकार ौी गुजी ने एक ऐसा वास कायकताओं के दय म उपन कयाजसके सुपरणाम वगत अनेक वष के परौम के फलःवप आज ूय मदखाई दे रहे ह।१७.७ ौी गुजी ने भी जयघोष कयाव हदू परष के समावेशक यासपीठ का उपयोग हदू समाज के विभन गुटम बढ़ हई ु दरार पाट कर ःनेहमय समरसता क भावना जगाने म होने लगा है, यहदेख कर ौी गुजी को बहत ु आनद होता था। एक बार दणांचल ूचारक और संघके सहसरकायवाह ौी यादवराव जोशी जी से यह ू पूछा गया क, “ौी गुजी ३३वष तक सरसंघचालक थे। उनके इस कायकाल का एकाध ूसंग या आप बतलासक गे जब उह िनरितशय आनंद ूा हआ ु ?” इस पर यादवराव जी ने तकाल उरदया क सन ् १९६९ म उडुपी म कनाटक ूदेश व हदू परष का दो दवसीयसमेलन हआ ु था। इस समेलन म समःत धमाचाय ारा इस आशय का ूःतावसवसमित से पारत कया गया क धमशा म अःपृँयता या अय कसी ूकारऊँ च-नीच भाव का यकं िचत भी समथन नहं है, सब हदू भाई-भाई ह, कोई भीपितत नहं है। यह ूःताव पारत होते ह ौी गुजी का दय आनंद से उमड़ पड़ा।वे कह उठे, धय है! धय है! यह ऐितहािसक ण धय है। उसका ःवागत ूचड<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी251


जयघोष और तािलय क गड़गड़ाहट से हो ऐसी सूचना उहने कायवाह का संचालनकरनेवाले कायकता ौी सूयनारायण राव को द। भाषण का बम अपकाल के िलएखडत हआ ु और अपने को न रोक पाते हए ु ौी गुजी ने समेलन के संचालक सेकहा क सभी ूितिनिधय से कहो, “तािलयाँ बजाओ”। जय घोष का आवाहन करने केिलए ौी गुजी ने ःवयं तािलयाँ बजायीं और जयघोष कया। उनका चेहरा उस समयआनद से खल उठा था। ऐसी आनंदवभोर अवःथा म उह मने कभी नहं देखा था।मुझे लगता है क वह उनके संघजीवन के (Finest hour) आनद का सवम णथा। समेलन संपन होने पर हम लोग वमान तल पर गये। वहाँ पर भी मुझे एकओर ले जाकर उहने मुझसे कहा, “यादवरावस यह समेलन और इस समेलन ककायवाह ऐितहािसक माननी पड़ेगी। इस समेलन म हए ु वचार विनमय औरभाषण का वःतृत यौरा भारत क अपनी सभी भाषाओं म ूिस होना चाहए।उसक हजार ूितयाँ छपवाकर उह सवऽ ूसृत करना चाहए।” उडुपी म, “अःपृँयताको धम म ःथान नहं है” इस आशय का जो िनःसंदध ूःताव ववध पंथ केधमाचाय और शंकराचाय क सहमित से समत हआ ु , वह समत होने के िलए ौीगुजी कम से कम ६-७ वष से ूयशील थे। जैन, बौ, िसख, वीर शैव धमगुओंसे और धमाचाय से उहने ूदघ चचा क थी। उन सब ूय के सफल होने कसाी उडुपी समेलन ने द। पूय पेजावर मठाधीश ने सभी को एक नया मंऽ दया-‘हदवः सोदराः सव’। उनके बाद के पऽ और वय म भी उह जो अतीव संतोषहआ ु , उसका ूितबब दखाई देता है।यह सऽ ौी भरणया क अयता म सपन हआ ु था। वे हरजन थे, वे सेवािनवृअिधकार भावावेग से ग-ग हो गये।सऽ समाि के बाद मंच से नीचे उतरते ह ौी भरणया ने ौी गुजी को अपनेबाहपाश ु म बाँध िलया। उनक आँख से आँसुओं क धारा बह चली। कु छ ण बादँ धे ःवर से उहने कहा, “यह बड़े सौभाय क बात है क हम लोग के िलए आपनेयह काय अपने हाथ म िलया है।” ौी गुजी ने कहा, “मुझ अके ले ने नहं सपूणहदू समाज ने इस समःया का भार िलया है।”ौी गुजी के जीवन काल म ह व हदू परष का काय अनेक देश म ूारंभ होचुका था। अब तो यह काय ढ़मूल हो कर व भर फै ल चुका है। इसका आधार हैअपने वे ःवयंसेवक जो यापार या नौकर के कारण वदेश म बसे हए ह। ौी ु गुजी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी252


चाहते थे क व म फै ले अपने ःवयंसेवक का न के वल परःपर “संपक बना रहेअपतु संघ या व हदू परष के संःकार के अनुकू ल और अनुसार ह उनकजीवन शैली रहे।” कसी अय संःथा का गठन कर यद यह संभव हो तो तदथ ौीगुजी क समित अवँय रहेगी। आकांा एक ह है क वदेशःथ हदओं ु का सूऽअखंड रहे। ौी गुजी ने वदेश म बसे हदओं ू से संपक साधन का कायभार दलीसंघ कायालय के जे ूचारक ौी चमनलाल जी के कं ध पर सपा। पऽ-यवहार तोपहले से ह िनरंतर होता था।ॄदेश से ौी गुजी को अितिथ के नाते आमंऽण ूा हआ ु था कतु शासकयनेताओं क इछा ूितकू ल होने के कारण ौी गुजी वहाँ न जा सके । ौी दादा साहबआपटे उन सभी देश का दौरा कर आए जहाँ अपने हदू बसे हए ु ह। कालांतर मसंघ के एक ूचारक ौी लआमणराव िभडे क वशेष िनयु वदेश म हदू संगठनका काय करने के िलए क गयी।वदेश म बसे हदू बंधुओं से िनरंतर संबंध, हदू आदश और वदेशी जीवन शैली काूभाव आद वषय के संबंध म उ-बोधक तथा बृह पऽ यवहार कया गया। वहदू परष वदेश म चल रहे अनेक हदू संःथाओं एवं हदू जागृित के काय काएकमाऽ मंच था। लंदन म १९७० म जमामी के अवसर पर गोपाल कृ ंण मंदर काउ-घाटन संपन हआ। ु ौी गुजी ने इस ूसंग पर एक वःतृत संदेश भेजा था।वदेश म बसे हदओं ू का मागदशन ह इस संदेश का मुय सार था। नागपुर म इससंदेश का विनमुिण ौी गुजी क आवाज म कया गया था और लंदन म कायबमके अवसर पर उसे उपःथत ौोताओं को सुनाया गया। वदेश म व हदू परषका काम सुचा तथा विधंणु प से चल रहा था। साथ ह भारत म इस वधायक,रचनामक काय के सैकड़ के ि खोले गये थे। १९७९ म दसरा ू जागितक समेलनूयाग म आयोजत कया गया और बहत ु बड़े पैमाने पर उसे ूोसाहन भी ूा हआ। ु१९८२ म सपन रायापी हदू समेलन व हदू परष के तवाधान म हसफल हए ु थे। इनम मतांतरत हदओं ु को वापस लेने के धािमक कतय का ःमरणदलानेवाला मंऽ ‘न हदू पिततो भवेत’ ् गूँज उठा। १९६६ म व हदू परष कःथापना कर ौी गुजी ने हदू जगत ् क जस आवँयकता क पूित क थी, भवंयने काल क कसौट पर उस िनणय को सह िस कर दखाया।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी253


व हदू परष क भाँित अय संःथागत तथा संगठनामक काय ौी गुजी कूेरणा से ह गितशील हो पाए। इन काय क वृ हई ु , ूभाव बढ़ा कतु इसके मूलम ौी गुजी का अथक परौम ह है यह बात तब यान म आती है जब हम उनकेारा िलखे गए सह पऽ को पढ़ते ह। ौी गुजी ने अनिगनत लोग को पऽ िलखकर धािमक, सांःकृ ितक तथा सामाजक काय करने हेतु ूवृ कया। अनेकानेकगुणवान कायकताओं को अपने गुण का उपयोग समाजहत म करने क ूेरणा द,कायश को दशा ूदान क।मंथ लेखक, मंथालय संचालक, कव, दैिनक, सााहक ूकािशत करने क इछारखनेवाले, सेवाकाय म िच रखनेवाले, अयाम के माग पर चलने के िलए उसुकवरागी, भजन पूजन करनेवाले, सेवा से िनवृ कमचार, राजनीित आद अनेक लोगूय भट कर या पऽ यवहार ारा ौी गुजी से मागदशन क अपेा कया करतेथे। ौी गुजी से परिचत हर य जानता था क वे कोई साधार नहं ह ूयुतःवयं अपरमह का ोत िलए हए ु ूचारक ह। ौी गुजी ःवयं अपने आप म मूितमान ्तव थे। उनक कथनी और करनी एकप थी। इसीिलये लोग ौी गुजी से मागदशनक अपेा करते थे। भौितक प से उनके पास दसर ू को देने के िलए कु छ भी नहंथा। जो था वह असीम-अथाह ान, ूेम, देशभ, धम-ूवणता और धािमक,अयामक, सामाजक तथा सांःकृ ितक ेऽ म पारदश, िनरपे दशादशन करानेक असीम श।ौी गुजी भी अपना दाियव समझकर समाज और रा का हत-अहत देख करउपाय और परहेज बताया करते थे। कभी-कभी कड़वा सच कहने म भी वे हचकचातेनहं थे। कटसय ु का दशन कराते समय उनके दय म ःथत ःनेहभाव का भीअनुभव होता था। संॅमावःथा म पड़े अनेक लोग ू पूछकर ौी गुजी से मागदशनक अपेा रखते थे। सामाजक समःयाओं के साथ ह पारवारक समःयाएँ भी उनकेसामने रखी जातीं और परवार के मागदशक बुजुग के नाते वे हल बताते और उसकासमान भी रखा जाता। ौी गुजी के संभाषण और पऽाचार म कभी िनराशा दखाईनहं द। उनक धारणा थी क परौम, वास, समभाव और समवचार के ारासंकट दरू कया जा सकता है। ौी गुजी के पऽ का यद अवलोकन कर तो हमदखाई देगा क उनका ईर पर अटट ू वास था, भ थी। भगवान पर ौा,मानिसक संतुलन, हदू जीवनधारा के अमरव पर वास ये गुण उनके पऽांकतअर म कू ट-कू ट कर भरे हए ु ह। यःततम कायबम म से समय िनकाल करसमाज क सजन श को फू ल क भाँित खलाने का जो महान ् काय भट-मुलाकात<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी254


और पऽ के मायम से उहने कया, वह बेजोड़ है। उनक म न कोई यमामुली या उपेणीय था, न ह कोई सकाय! पऽ भी उनके ह हःतार म िलखेजाने के कारण पाठक के दय को उनक आमीयता छू जाती।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी255


१८ क सर क अशुभ छायाौी गुजी अनुशासन के बहत ु ह पाबंद थे। पूव िनयोजत कायबम अःवःथता केकारण ःथिगत कये जाने या वलंब से ूारभ होने क कोई घटना १९४० से १९७०के तीस वष के ूदघ कालखंड म नहं घट। एक बार तेलंगना के आंदोलन के कारणसभी राःते बंद कर दये जाने से बड़ मुँकल से वे कार से हैदराबाद के बाहर िनकलपाये। कं तु नेलूर के संघ िशा वग म पहँच ु पाना फर भी संभव नहं हो पाया।वषा के कारण रेल बंद थीं। अनेक वैकपक माग भी सोचे गए कतु कोई राःतानहं िनकल पाया। इसका ौी गुजी के मन पर बहत ु असर रहा। बाद म जुलाई कबैठक म उहने कहा क, “एक राःता बाद म यान आया। यद उससे जाता तोशायद पहँच ु जाता। म नहं पहँच ु पाया, यह मेर अमता का ोतक है।” वे िनरंतरूवास कर ःवयंसेवक तथा जनसभाओं का उ-बोधन कया करते थे अखंड कायरतसमपत जीवन ह ौी गुजी क साधना थी।ऐसी ःथित म यद उह वौाम करने के िलए बाय कया जाता तो उनका ःवाःयबगड़ने लगता था। शाररक यथा शांित से सहना, कसी को इस क का पता भीन चलने देना, शरर म बुखार चाहे जतना हो फर भी िनयोजत कायबम सुचा पसे संपन करना ौी गुजी का िनय ःवभाव बन गया था। शाररक क को भीूकृ ित मानकर ूसनिच रहना और चैतय से वायुमंडल भर देना, यह उनकसाधना का फल था। ऐसा ूतीत होता था मान कोई अदय आंतरक श उनकदेह से सारे कम करवा रह है।ौी गुजी शरर से छरहरे बदन के थे, आहार सीिमत, कतु दन भर चलते रहते थे।कायबम का ताँता लगा रहता। फर भी कायबम के फलःवप या अय कसीकारण से थकावट का नाम भी उनके होठ पर नहं आता था। सदैव ूसन, वनोदबु जागृत तथा ःमरण श आयकारक। संघकाय ठक चल रहा है या नहं इसओर संपूण यान, कतु यगत सुख-दःख ु क ओर से आँख बंद, मान उनकाआंतरक यव और शरर िभन हो। हर समय अय के सुख-दःख ु क पूछताछकतु ःवतः के बारे म सवथा मौन!ौी गुजी के दैिनक आचरण से सभी अवगत थे। कतु द. ७ अूैल १९७० (शकसंवत ् १८९२) क वष ूितपदा के अवसर पर नागपुर म उपःथत होते हए ु भी ौी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी256


गुजी उसव म ःवाःय ठक न होने के कारण भाषण न दे सके । यह सुनकर सभीयिथत हए। ु वगत ३० वष म जो बात नहं हई ु थी, उसे होते देख लोग के मन मभय क अशुभ भावना ःपश कर गई। द. ६ अूैल को ौी गुजी असम तथा के रलका दौरा पूण कर नागपुर लौटे थे। कतु उनका ःवाःय ठक नहं था। ूितपल उहदेखनेवाल को ऐसा लगता क ौी गुजी शरर का संतुलन खो रहे ह। कहं वे िगर नजाय। डॉटर ारा क गई परा से भी कोई िनत अनुमान नहं िनकल पाया।दैिनक कायबम िनय के अनुसार ह चलते रहे। द. २८ अूैल से देश के १९ संघिशा वग के िलए ूदघ दौरा ूारंभ होनेवाला था। ूयेक वग म तीन बौक तथाःवयंसेवक क बैठक क िनय क परपाट थी। ौी गुजी ने ूवास करने क ठानली थी। िनय अटल था। तीस वष क अनुशािसत परंपरा िनभानी थी।ौी गुजी िनयोजत कायबम के अनुसार दौरे पर चल पड़े। एक ूात से दसरे ू ूांतक ओर दौरा होता रहा। सभी कायबम सुचा प से चलते रहे। कतु कसी केयान म एक बात आयी क ौी गुजी क छाती पर एक गाँठ उभर आयी है। बाद मपता चला क यह गाँठ तो अगःत १९६९ से ह थी। एक ूसंग वशेष के कारण इसतय का पता चला। ौी गुजी क एक पुराने संयासी िमऽ से भट हई। ु इन िमऽमहोदय ने जब ौी गुजी को ःनेहभरा आिलंगन दया तब अिधक जोर देकर छाती सेदबाते समय जेब म रखी फाउटन पेन ौी गुजी क छाती पर बनी गाँठ पर ऐसीचुभी क उह इस आकःमक वेदना को सहना कठन हो गया। अपार सहनश केधनी होते हए ु भी ौी गुजी िसहर उठे।इस गाँठ पर ूाथिमक उपचार के हेतु एक लेप लगाया गया। इसके पूव भी एक गाँठआई थी, कतु होिमओपैथी के उपचार से वह दब चुक थी। इस कारण दबारा ु ूगटहई ु यह गाँठ भी ठक हो जाएगी ऐसा वास था कतु ऐसा न हो पाया। संघ िशावग के िनिम जब ौी गुजी ूवास कर रहे थे तब उनक बगल म भी एक गाँठउभर आई। द. २ मई को इस गाँठ के अःतव का पता चला। बार-बार गाँठ काउभरना कोई अछा लण नहं था। इस समय ौाभाव दय म संजोनेवाले पुणे केसुवयात धवंतर डॉ. नामजोशी मे उनक डॉटर जाँच करवाई। सभी वैकयपरण के सारप िनणय ने डॉ. नामजोशी के मन म वमान अशुभ आशंका कपु कर द। रोग था कै सर याने कक रोग।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी257


डाटर ारा कै सर का पता लगाए जाने के कु छ वष पहले क बात है। मंगलूर केवै ौी ौीिनवास ूभु ने, जो ःवयं योगसाधक भी थे, ौी गुजी क छाती का िचऽबनाकर बाय कं धे से छाती के दसरे ू कोने तक रेखा खींचकर कहा क इस जगहकै सर हो सकता है! आगे चलकर इसी जगह पर वह हआ। ु पूरे शरर म ौी गुजीको दद हआ करता ु था, उसका मूल उहने कुं भक ूाणायाम म दोष होना बताया। ौीगुजी बादम कहा, “पहली बार इहने ह रोग के मूल का संके त दया था।” परतुइस सभावत क सर को रोकने क न ह वै जी के पास दवा थी और न ह डाटरको इस रोग के लण दखाई दये।कायकता डॉ. नामजोशी क ओर देखकर मन ह मन अपेा कर रहे थे क वे कहगे,“िचंता करने का कोई कारण नहं है। सब ठक हो जाएगा।” कतु डाटर साहब कासहमा हआ ु चेहरा देखकर िनराशा के काले बादल उनके मन पर मंडराने लगे। ःवयंौी नामजोशी अःवःथ से हो गए। उहने कक रोग क आशंका य क इसिलएउनका आमह था क ौी गुजी को मुबई ले जाकर उनक और अिधक गहराई सेजाँच क जाय। कतु ौी गुजी ने अपना ढ़संकप य करते हए ु कहा क संघिशा वग के कायबम म उनके ःवाःय के कारण कोई वन आना उिचत नहं है,ूवास तथा वग के सभी कायबम म वे पूविनयोजत योजना के अनुसार ह भागलगे। फलहाल िनजी ःवाःय क ओर यान देने के िलए उनके पास समय नहं था।ौी गुजी अगले ूवास के िलए पुण से चल पड़े। वदाई के समय कायकताओं केमन म फर से िचंता के बादल िघर आए। ौी गुजी सदा के भाँित अवचल रहे।उनके मुखमंडल पर उभरा हाःय मान ःवयंसेवक व कायकताओं से कह रहा था,“अरे भाई, शरर क िचंता छोड़ो, संघकाय को बढ़ाओ।” कायबमानुसार ौी गुजी द.१८ मई को मुबई पहंचे। ु कायकताओं ने चुपके से टाटा मेमोरयल हॉःपटल केवयात कै सर त डॉ. ूफु ल देसाई को फोन ारा सूचना द। कायकताओं औरडॉ. देसाई के अनुरोध पर राजी होते ह ौी गुजी क पुनः जाँच कराई गयी। बहत ुतक -वतक , सोच-वचार और पुनरावलोकन के पात ् डॉ. देसाई ने भी कै सर क हशंका य क। इस िनणय को सुनकर भी ौी गुजी शांत ह रहे। कोई आंतरकयथा चेहरे पर ूगट नहं हई। ु“यह कै सर का रोग कस हद तक फै ला हआ ु है और वह ठक भी होगा या नहं?”ौी गुजी ने डॉ. देसाई से पूछा। डॉ. देसाई ने कहा, “यह तो शयबया के समय ह<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी258


पता चल सके गा। शयबया न कराना याने धोखा मोल लेना होगा, हािनकारक होगा।म चाहता हँ ू क आप शयबया के िलए समित द।”डॉ. देसाई का ानगिभत िनणय सुनकर, ौी गुजी ने कु छ ण सोचा औरशयबया के िलए समित इस शत के साथ द क वह संघ िशा क समाि परजून के अंितम साह म होगी। द. १ जुलाई का दन शयबया के िलए िनतकया गया।संघ िशा वग का ूवास चल रहा था। सभी कायबम संघ परपाट के अनुसारआनंदमय वातावरण म चलते रहे- बौक, चचा संघहतैषय से भट, हाःय वनोदआद। ये कायबम होते देख कोई सोच भी नहं सकता था क ौी गुजी कै सर जैसेजानलेवा रोग से मःत ह। ऐसा आभास भी ौी गुजी के यवहार म गोचर नहंहोता था। जससे माना जा सके क जन पर कै सर के िलए शयबया होने जा रहहै, जो मृयु क कृ ंण छाया से िघरे हए ु ह, वे यह ह।इस समय सामाजक वातावरण भी ःवःथ नहं था। राजनीितक उथलपुथल के कारणसमाज आंदोिलत था। काँमेस का वभाजन होकर ौीमती इंदरा गांधी के हाथ म सासूऽ आ चुके थे। सा का श हाथ म आते ह संघ पर ूितबंध लगाने क भाषाजोश-खरोश के साथ बोली जाने लगी। संघ पर ूितबंध के िलए वातावरण का गमहोना आवँयक था। िनयित ने शासन का साथ दया। ःथान-ःथान पर मुसलमान नेदंगे-फसाद शु कर दये। कतु ूचार यह कया गया क इन दंग क जड़ म संघका हाथ है। इस गलत ूचार क आग को संघवरोधी नेताओं ने हवा द। उनका ूयथा क आग जलती रहे और लोग संघ से घृणा करने लग।कतु ौी गुजी अवचिलत रहे और ःवयंसेवक के सम दये गये अपने भाषण मइन असामाजक घटनाओं का अवयाथ ःप करते रहे। उहने कहा क अपनासंगठन अिधक वशाल, सुढ़ तथा शशाली बनाना ह इस गलत ूचार का सहउर दोगा। कतु बाहर समाज म ूकट प से उहने कोई ूितबया य नहंक।ूवास के बम म ौी गुजी द. ११ जून १९७० को दली पहँचे। ु दली म आते हउहने उपयु अपूचार क ट का जवाब पथर से देने क ठान ली। इस हेतु एक<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी259


पऽकार परष का आयोजन कया गया। देश-वदेश के पऽकार इस महवपूण पऽकारपरष म उपःथत थे। वातावरण जासा से ओतूोत था। पऽकार ने आड़े-टेढ़े ूँऩपूछे कतु सभी ू के सुलझे हए ु उर शांत रहकर ौी गुजी ने दये। संघ परलगनेवाले ूितबंध क संभावना से जुड़े ू का उर देते हए ु ौी गुजी ने कहा, “जोलोग संघ पर ूितबंध लगाना चाहते ह उह म बताना चाहँगा ु क यह कदम उनकेहत म कदाप नहं होगा।”आवँयक ूितबयाएँ य कर समाज और सरकार को सतक करने के पात ् ौीगुजी ने संघ िशा वग के िलए ूयाण कया। २७ जून को कलका का वग समाहआ। ु अपने आासन के अनुसार वे कलका से सीधे मुबई पहंचे। ु द. २९ जून कोपुनः परण करने के बाद द. ३० को उह टाटा मेमोरयल हॉःपटल म शयबयाके हेतु भरती कर िलया गया।१८.१ शयबयाद. १ जुलाई। ूातः ९-४५ का समय। ौी गुजी को ऑपरेशन िथएटर म ूव कयागया। डॉ. देसाई ने गाँठ का टकड़ा ु काटा, परणाथ भेजा। कै सर है या नहं? अनंतकु शंकाएं. आशाएं िथएटर के अदर और बाहर खड़े िचंितत कायकताओं के मुख परदखाई दे रह थीं। जीवनदाता शयकम एक ओर तैयार तथा बाहर आशा-िनराशा कासंघष। कु छ समय बीता और परण क रपोट डॉ. ूफु ल देसाई को दखाई गयी।रपोट ने कहा, ‘क सर है’। और डाटर देसाई ने शरर का कै सरमःत भाग शयबयाकर समूल न करने क बया ूारंभ क। काट-छाँट क गित बहत ु तेज थी। अपेासे अिधक कै सर क याि थी। सभी गाँठे समूल िनकाल द ग। ौी गुजी केदय म छपी ु और कई वष से उनक छाती को कु तरने और असहनीय वेदना देनेवालीये गाँठ शयकम के श के आघात होते ह बगल क शे म िगर पड़। लगभग तीनघंटे तक यह ऑपरेशन चलता रहा। पसिलय के नीचे कतनी गहराई तक छाती कोकै सर ने कु रेदा था इसक कपना करना असंभव था। डॉ. देसाई ह इस अंदर कबात को आयवमूढ़ होकर जान पाए थे।दोपहर १ बजे ौी गुजी उनके कमरे म लाया गया। उस समय वे लगभग बेहोशी कअवःथा म थे। सामाय रोिगय को शयबया के बाद जी मचलाना या असहनीयवेदना का क होता है। कतु ौी गुजी को ऐसा कोई क नहं हआ। ु दोपहर ३.३०<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी260


बजे उहने चाय पी। दसरे ू दन भोजन भी कया। िव पदाथ बह जाने के िलए जोनिलयां शरर म लगाई गई थीं, वे भी तीसरे दन िनकाल द गयीं।ःवाःय क पूछताछ के िलए लोग का आना-जाना ूारंभ हो गया। चंद दन म हअःपताल के अय रोिगय क पूछ-ताछ हेतु ौी गुजी िनकल पड़े। अय कोदलासा देना, आःत करना, हौसला बढ़ना यह उनका उेँय था। ूाथना के िलएौी गुजी समीप ह लगनेवाली शाखा म भी जाने लगे।ूितवष जुलाई म नागपुर म होनेवाली कायकारणी क बैठक इस वष १० से १२जुलाई तक मुबई म संपन हई। ु द. ११ को ौी गुजी कु छ समय के िलए बैठक मआए। इस तरह तीन साह बीते। शयबया के कारण हआ ु घाव तेजी से ठक होरहा था।अःपताल म रहने का ूयोजन अब समा हो गया था। डॉटर मंडली भी समाधानऔर खुशी का अनुभव कर रह थी।द. २६ जुलाई को ौी गुजी ने णालय से बदाई ली। णालय के वाःतय कालम उहने अनेक को अपना बना िलया था। मनुंय जुटाने का काय यहाँ भी जारथा। जो भी डॉटर, सेवक परचारक तथा अय कमचार उनके पास आते, ौी गुजीउनके सुख-दःख ु क पूछताछ कया करते थे। अपने बारे म कु छ भी न कहने यािचंता करनेवाले ौी गुजी ारा समीप के कमचारय और अय अनजान लोग कपतृतुय वासयभाव से िचंता कये जाते देखकर वे लोग भाववभोर हो जाते थे।अःपताल से बदाई लेकर जब ौी गुजी िनकले तब देखनेवाल क आँख म आंसूटपक पड़े। इतने अपकाल म ौी गुजी ूयेक संपक त ण के परवार के अंगबन चुके थे। जहने जीने क आशा ह छोड़ द थी उनम भी जीवत रहने क आशािनमाण कर वे धीर गंभीर कदम से बाहर जगत ् म आए। ौी गुजी क अनुपःथितम हर कसी को लग रहा था मान उसका अपना उनसे दरू चला गया है।डॉ. ूफु ल देसाई, जहने ौी गुजी पर शयिचकसा क थी, संघ से परिचतनहं थे। कतु ौी गुजी ने जस सहजता के साथ शयबया के समय सानंदसहकाय दया, उसे देखकर तो वे आयचकत हो गये। डॉ. देसाई ने अपने वचारऔर भावनाओं को लेख म शदब कर रखा है। वे िलखते ह, “ौी गुजी क ६५ वष<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी261


क आयु का वचार करने पर वे इतनी गहर और ूदघ शयबया का सामना कै सेकर पाएंगे यह ू मेरे मन म था। कतु जस शांित, साहस और सहकाय सेउहने सार बात हँसमुख रहकर सहं, वह एक अ-भूत घटना थी। दसरे ू ह दन वेचलने फरने लगे। वे तीन साह अःपताल म रहे। इस कालखंड म मुझे उनकेयव तथा मानिसकता या मन का अययन करने का अवसर िमला। ौी गुजीमुझसे यह जानना चाहते थे क कै सर ने उनके शरर म कतनी जगह या कररखी है और शय बया के उपरात वे कतने वष जी पाएंगे। इस संबंध म वेवाःतवकता जानने के िलए इछक ु थे। मने उह वाःतवकता से अवगत कराया।साथ ह वे कतने काल तक जीवत रहगे यह भी बताया।”“मेर ःपो सुनकर ौी गुजी ने कहा, “वाह! बहत ु अछा! इसका अथ है क मेरेपास काफ समय है जसम मुझे बहत ु सारे काम िनपटाने ह।” डॉटर को सवपरसहकाय देनेवाले वे एक असामाय रोगी थे। अयंत बू र, िनदय तथा जानलेवाशाररक और मानिसक वेदनाओं का जहने धीरज से और संतुलन न खोते हए ुसंघष कर सामना कया, अपने देशवािसय के संबंध म जनक धारणाएँ औरिनाभाव उकट थे और जनक पूित के िलए वे अंत तक अवचिलत रहे, कृ श तथादबल ु शरर रचना होते हए ु भी एक ूचंड कायश के जो धनी थे, जनका जूझने कासाहस, हमत तथा अनुशासन आद बेजोड़ थे, जहने अिन क पूव कपना करशुभ श जागृत क, ऐसे ौी गुजी एक असामाय पुष थे। ऐसे महापुष केससंग का, अपकालीन ह य न हो, मुझे लाभ हआ ु असे म अपना अहोभायमानता हँ। ू ”अःपताल के बाहर आने पर ौी गुजी लगभग एक साह तक मुबई म ह रहे। द.३ अगःत को रेल से वे नागपुर के िलए रवाना हए। ु ौी गुजी पर क गयी शयिचकसा तथा उनके ःवाःय म हो रहा सुधार क वाता सवऽ फै ल चुक थी।ौी गुजी को कै सर क बाधा हई ु है, इसका जब लोग को पता चला था तब से हसारे िचंितत थे। ःवयंसेवक, अिधकारय तथा संघूेमी जनता के िलए यह एक भारसदमा था। कतु ौी गुजी के ःवाःय पर मँड़राने वाली मृयु क छाया के कालेबादल छँट चुके ह और वे नागपुर क ओर ूःथान कर रहे ह, यह सुनकर ःवयंसेवकम आनंद क लहर दौड़ गयी। लोग फू ले नहं समाए। अपने-अपने ढंग से ःवयंसेवकने आनंद य कया। मुबई से नागपुर क ओर ूयाण करने के पूव वहाँ<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी262


ौीसयनारायण पूजा का भय आयोजन कया गया। लगभग २० हजार लोगतीथूसाद महण करने के िलए पधारे थे।नागपुर क ओर जब रेलगाड़ चली तब ूायः हर ःटेशन पर ःवयंसेवक तथानागरकगण ौी गुजी को जी भर कर देखने हेतु आँखो म आनंदाौु लेकर उपःथतथे। नागपुर पहंचने ु पर ौी गुजी माननीय बाबासाहब घटाटे के बंगले पर ह कु छसमय तक ठहरे। द. १३ अगःत को राबंधन का उसव हआ। ु इस उसव म ौीगुजी ने खड़े रहकर ४५ िमनट तक ओजःवी भाषण दया। वह मँजी हई ु जलूपातसी अखंड, ओजपूण, वचार, जानकारय से परलुत भाषा! कोई सोच भी नहं सकताथा क डेढ़ माह पूव जनके कै सर जैसे जानलेवा रोग से मःत शरर पर गंभीरशयबया का सफल ूयोग कया गया, वे यह ौी गुजी ह। सभी ौोता ःतंिभत सेरह गये। अभूतपूव वाणी और अवःमरणीय ँय!द. २२ अगःत को मुबई म डॉ. देसाई ने ौी गुजी क पुनः जांच क औरसमाधान य कया। कतु द. २१ और २२ को ौी गुजी के शरर म बुखार था।बुखार भरे शरर से काम करने और करवाने का उनका पुराना अयास था। फर वहरवैया। ौी गुजी ने बुखार क ओर यान नहं दया। द. २२ को संया समयगोरेगांव (मुबई का एक उपनगर) म ःवयंसेवक का एकऽीकरण पूव िनयोजत था।ौी गुजी ूाथना के िलए पहँचे। ु वःतुतः खार (उपनगर) के रामकृ ंण िमशन म ौीगुजी का िनवास था कतु िनकट क कसी शाखा म जाने से उहने इकार कया।गोरेगांव शाखा म ूाथना ूारंभ हई। ु कु छ ह णोपरात ऐसा दखाई दया क ौीगुजी शरर संतुलन खो रहे ह, थोड़े डगमगा रहे ह। डॉ. आबाजी थे और एकःवयंसेवक ने देखा क वे दवार का आधार ढँढ ू रहे ह। पलाध म वे दोन दौड़े और ौीगुजी को सहाल िलया। ूाथना के बाद वे बेहोश हो गये। ःवयंसेवक िचंितत होगये।इस समय यह पता चला क ौी गुजी क एक बगल म छेद बन गया है और उसमसे पानी और मवाद बह रहा है। इस ‘असर’ पर उपचार कया गया। फलःवप द.२४ को बुखार भी उतर गया। ौी गुजी इसी दन इदौर जाना था। न जाने कसूचना द गयी कतु ौी गुजी कायबम पर अडग थे। द. २५ को वे इदौर पहंचे। ुइदौर म ूांत संघचालक तथा आयुवद पं. रामनारायण शाी क देखभाल म ौीगुजी एक मास तक रहे। उनके गुबंधु ौी. अमूतानंदजी महाराज भी उनके साथ थे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी263


ौी गुजी का बायाँ हाथ सूजन के कारण फू ला हआ ु है यह बात हर कसी के यानम आती थी। ौी गुजी िचंितत थे, हाथ क सूजन के िलये नहं, अपतु जसववेकानंद िशला ःमारक क िनिमित के ूेरणाोत वे ःवयं थे, वह पूण होकर अबउ-घाटन क घड़ िनकट आ चुक थी। द. ४ िसतंबर १९७० को कयाकु मार ममहामहम रापित ौी िगर ारा इस अनुपमेय ःमारक का उ-घाटन होनेवाला था।ौी गुजी इस समारोह म समिलत होना चाहते थे। कतु यह संभव न हो पाया।द. २४ िसतंबर को ौी गुजी मुबई पहंचे ु और डॉ. ूफु ल देसाई से अपने शररःवाःय क जाँच करवाई। डॉटर ने समाधान य कया। डॉ. देसाई ने बताया,“हाथ पर आई सूजन, शयबया क सफलता का िचह है। इस कारण िचंता न करे।यथासमय मुबई आकर अपने ःवाःय क जाँच कराना और िनयिमत प से जमका सेिसंग करवाना अयंत आवँयक है।”१८.२ िनयबम फर से ूारभौी गुजी ने ूवास के बारे म पूछा। डॉ. देसाई ने कहा क अब ूवास तथा अयकायबम वे कर सकते ह, के वल सावधानी बरतना आवँयक है। अपने ःवाःय कःथित सहालते हए ु ह यह सब करना ठक होगा।ौी गुजी इसी समती क ूिता म थे। अपने काय के िलए कतना समय शेष हैयह वे जानते थे। उह जद थी एक- एक काम समा करने क। मृयु के साथअब उनक ःपधा ूारंभ हो चुक थी। ौी गुजी ने अपने शरर क िचंता कभी नहंक, न ह वे मृयु से भयभीत थे। उह िचंता के वल संघकाय क थी। डॉ. देसाई नेौी गुजी के ःवाःय के संबंध म जो मत य कया उसे सुनकर कायकता ूसनथे। वे ौी गुजी के पुनरागमन का आनंद मना रहे थे।ौी गुजी २९ िसतंबर को नागपुर आए। िनयानुसार पऽ लेखन, शाखा, लोग सेिमलना-जुलना आद कायबम म उनका समय बीतने लगा। कसी ने यद ःवाःयसंबंधी पूछताछ क तो वे एक ह वाय कहा करते, ‘मेरा ःवाःय ठक है। आपिचंता न कर।’ पऽोर म भी वे यह वाय िलखा करते थे। इस वष का वजयादशमीमहोसव द. ९,१० अटबर ू को सरदार वलभभाई पटेल के सेवा िनवृ सिचव ौी.वी. शंकर क अयता म संपन हआ। ु हमेशा क तरह वदेशी आबमण क<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी264


संभावना तथा अंतगत से रा को बलवान बनाने क आवँयकता उहनेूितपादत क। नागपुर के सभी काम िनपटाकर द. २३ को वे ूवास के िलए िनकलपड़े। इस समय वे अित ूसन और शांत थे।सामायतः हम देखते ह क लोग तवान बहत ु बताते ह कतु उसे आचरण मउतारते समय ःवतः को माहर समझनेवाले भी आपबीती के समय हतबल हो जातेह। भय से मःत हो अपने जीवत रहने क िचंता करते दखाई देते ह। ौी गुजी इसिनयम के अपवाद िस हए। ु उहने अपना ूय वेदात जीवन म उतारा। तवानऔर यवहार म अंतर तो दरू रहा, उहने संपूण एकाम समरसता ूगट कर दखाई,वह भी अनायास, ःवाभावक प म। शय िचकसा के उपरात णालय से बदाईलेते समय ौी गुजी ने डॉटर देसाई से कहा था, “मय मानव को चाहए क वहअपने ःवाःय क अनावँयक िचंता न करे। हर जीवत ूाणी कभी न कभी जाने हवाला है। इसिलए मनुंय कतने काल तक जीवत रहा, इससे भी अिधक महव इसबात का है क उसने कस तरह जीवन यतीत कया। मेरे सामने एक काय है। मुझेइस काय को पूण करना है। इस कारण मेर ईर से ूाथना है क वह मुझे अततक ःवःथ रखे।”इसके बाद ौी गुजी के जीवन का अंितम पव शु हआ। ु मृयु का ःमरण कर, उसकेकदम क आहट सुनकर भी उहने अपना समय ‘काम समा’ करने म ह यतीतकया। ौी गुजी को ऐसे शरर के ूित कोई आस नहं थी जो काम करने योयन हो।शयबया के तकाल बाद ौी गुजी ने जो िनरंतर ूवास जार रखा उससे हम ातहोता है क उह काय क गित बढ़ने क कतनी और कस िलए िचंता थी। २३अटबर ू से ७ दसबर तक के ४५ दन के ूवास क ओर हम यान द तो हम यहसयानुभूित होगी। तीन दन मुबई, तीन दन बंगलौर-ूांत ूचारक क बैठक, तीनदन नािसक, तीन दन पुणे, पुनः चार दन मुबई, नागपुर म अपकाल िनवास,तुरत दली, यहाँ से मुबई होते हए ु कनाटक के ूांतीय अिधवेशन के िलए जाना,बाद म पंढरपूर। सोलापुर से मुबई और नागपुर वापस। इस ूवास म सवऽ बैठक ,सभा संबोधन, कायकताओं से भट, काय के बारे म पूछताछ, मागदशन, भवंय महोने जा रहे कायबम का ूाप तैयार करना आद बात होती रहं।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी265


१२ नवंबर को दली म रामलीला मैदान पर २० हजार गणवेशधार ःवयंसेवक केसमुख ौी गुजी का भाषण हआ। ु शाम को डेढ़ हजार ूितत नागरक के समुदायारा ौी गुजी का ःवागत कया गया। इस समय तक ौी गुजी के कै सर कोलेकर कयुिनःट ने अपने ूचार मायम से एक समाचार हवा म उछाल दया थाक गुजी कै सर से बीमार ह और उनके अनुचर म सरसंघचारक के पद के वएःपधा शु हो गई है। इस कारण मायवर नागरक से बातचीत करते समय हाःयवनोद के प म ौी गुजी ने कहा, “म जीवत हँ। ू संघ वरोिधय क इछापूित नहंहो सक इस का मुझे खेद है, दःख ु है।” शयिचकसा के बाद हई ु ौी गुजी क यहभट दलीवािसय के िलए बहत ु ह आनंदूद रह। बहत ु लोग ौी गुजी से यगतिमले। इस डेढ़ मास के िनरंतर ूवास तथा कायबम का यौरा देने का एक माऽकारण यह है क ौी गुजी के कायकलाप क तूफानी गित हमारे यान म आवे। डॉ.देसाई ने ौी गुजी को साधारणतः तीन वष का समय बतलाया था। अतः कनयोजनाओं को पूण करने क आवँयकता है इसका ूाप बनाकर उसे पूण करने म१९७३ तक वे अवरत जुटे रहे और पूव िनयोजत ूवास तथा कायबम पूण कये।अपवाद ःवप एक घटना १९७२ क है। १९७२ के उराध म महाकौशल, महारा औरवदभ इन तीन ूांत का ूवास करना संभव नहं हआ। ु इस समय कारण भी ूबलथा।उपचार क ूितबया के फलःवप गले म दद, खाना-पीना असंभव, बोलना भीकठन, फर ूवास करना तो िनरथक ह था। इस संबंध म महारा के ूांतसंघचालक ौी. बाबाराव िभडे को िलखे एक पऽ म ौी गुजी ने िलखा, “म तीन ूांतका ूवास नहं कर पाया। यह ितपूित कस तरह और कब हो पाएगी इसके बारे मसोचने के िलए डॉ. आबा थे को कहा है। अय ूांत के कायबम क पुनरचना करइन तीन ूांत के िलए समय िनकालना होगा।” पूव िनयोजत ूवास न करना ौीगुजी को कतई पसंद नहं था। कतु इस समय ूवास करना असंभव ह था। ूवासःथिगत करने के अितर कोई चारा नहं था।ौी गुजी मृयु क यकं िचत भी िचता न करते हए ु जीवन का ूयेक ण कायक ूगित के िलए यतीत करना चाहते थे। कतु िनयित ने उनपर एक के बाद एकआघात करना शु कर दया था। ौी गुजी के पुराने सहकार एक के बाद एक संसारछोड़ कर जाने लगे थे। असहनीय िचरवयोग का दःख ु उह सहना पड़ता था।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी266


सह ऐसे परवार थे जनसे ौी गुजी के घरेलू संबंध थे। इन परवार म जसकसी क मृयु हो जाती तो ौी गुजी को पऽ ारा पता चल जाता। ौी गुजीसवािधक यिथत हए ु ौी. बाबासाहब आपटे क आकःमक मृयु के कारण। ौी.बाबासाहब आपटे संघसमपत येतम कायकता थे। संघ के पहले ूचारक, ूकांडपंडत, महान ् कमयोगी बाबासाहब आपटे डॉ. हेडगेवार के साथ ह कायारंभ करनेवालेये कायकता थे। देशभर संचार कर संघकाय क वृ करना ह उनका येय था।द. २७ जुलाई १९७२ रात म, बःतर पर नींद के आहोश म ह वे परलोक िसधारगये। इस दःखद ु घटना के समय ौी गुजी नागपुर म नहं थे। वे इदौर म थे।ूय करने के उपरात भी वे अय दशन करने म सफल नहं हो पाए। यह आघातौी गुजी के िलए असहनीय था।ूय संघकाय म रत ौी. बाबासाहब आपटे, ौी भैयाजी शहादाणी और पं. बछराजजी यास जैसे मोहरे एक के बाद एक खो देने का दःख ु शायद कम था इसीिलएिनयित ने एक और गहरा आघात ौी गुजी पर कया। जन पर ौी गुजी काअूितम ूेम था उन धािमक ेऽ म कायरत ौी हनुमानूसाद पोार क मृयु। ौीगुजी उह भाईजी कहा करते थे। भाईजी ‘कयाण’ मािसक तथा गोरखपुर के गीताूेस के ये चालक थे। ौी गुजी पर भाई जी क मृयु का परणाम बहत ु ह गहरारहा। ौी गुजी ने ऐसे सभी साथ छोड़कर चल बसे सहयोिगय के रँतेदार, परवारको पऽ िलखकर या भट देकर उह सावना द। सकड़ क संया म पऽ िलखेगये। ौी गुजी ःवयं अपनी आयु का एक-एक दन िगन रहे थे, जीते जीअिधकािधक कायवृ कर सफलता का कलश देखना चाहते थे और उह ह इतनेआघात सहने पड़े। कस तरह सहा होगा इतना दखु-भार ौी गुजी ने?अपनी देह के बारे म एक वलण अिलता का भाव ौी गुजी के मन म था। जोदेह िनःशेष होने वाला है, जस का अंततोगवा य होना िनत है, शरर के बारे मवे मन से वलग हो गए थे। के वल एक साधन के प म काय क पु के िलए वेशरर का उपयोग कर रहे थे। एक समय पंजाब ूांत के सहसंघचालक ौी धमवीरजीने ौी गुजी को पऽ िलखकर भावभीनी भाषा म उनके ःवाःय के संबंध म पूछताछक। पऽोर म ौी गुजी ने िलखा, “आपका मुझ पर जो असीम ूेम है, उसी केफलःवप आप िचंितत दखाई देते ह। कृ पया अपनी उकट भावनाओं पर काबूरखए। मन को संयिमत कर, िचंता को मन म ःथान न द। शीय ह म ूवासाथबाहर िनकल रहा हँ। ू आप के सुखद सहवास का लाभ मुझे ूा होगा ऐसी म अपेाकरता हँ। ू ”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी267


इसी कालखंड म ौी गुजी कसी न कसी िनिम हए ु ूवास क अविध म अनेकतीथेऽ व देवःथान के दशन कर आए। अनेक सपुष व साधु संत से वे िमले।१९६८ म कै सर क शयबया के पूव जब वे बिनारायण ःथत संकतन भवन केउ-घाटन के िनिम वहाँ पहँचे ु तब झूंसी आौम के ूमुख ौी ूभुद ॄचार भी ौीगुजी के साथ थे। ौी ूभुद ॄचार जी ौी गुजी को दय से चाहते थे, ूेमकरते थे। उनका ौी गुजी से पऽयवहार भी सतत होता रहता था। द. ५ मई १९७३को ौी गुजी ने ॄचार जी को एक दयःपश तथा भावोकट पऽ िलखा।बिनारायण के इस ूवास म ह ौी गुजी ने ॄकपाल तीथ पर ःवतः का ौाकमअपने हाथ कर िलया था। ौी गुजी क से उह आनंद वभोर होने का अवसरौी ूभुद ॄचार जी के मुखारवद से भागवत कथा सुनने काभायलाभ होने पर ह ूा हआ। ु भागवत कथा सुनते समय उनक आँख से ूेमाौुझरने लगते थे। इस संःमरणीय घटना का वणन एक साी के नाते ौी रजु भैया नेिलख रखा है। १९७१ के अटबर ू म महारा ूदेश का दौरा करते समय ौी गुजी नेकोहापुर, तुलजापुर, जालना के िनकट ःथत ौीराम, वेल ःथत घृंणेर आददेवी-देवताओं के दशन िलए। साथ ह ःवामी ःवपानंद, नाना महाराज आवकर, ौीबाबा महाराज तराणेकर आद सपुष से भट क। ःवामी ःवपानंद से भट होने केउपरांत ौी गुजी के मुखमंडल पर कृ ताथता का आनंद, तेज आलोकत हआ ु था, ऐसाउनके साथ उपःथत मंडली बताती ह।गोवा ःथत देवःथान के साथ ह ौी गुजी ने ११ माच १९७२ को पांडचेर केअरवंदाौम को जाकर माताजी के दशन कए। यह भट िनःशद थी। अनूठ। वाचा केबना मौन संभाषण। इस भट का बहत ु ह भावभीना वणन ौी गुजी ने इदौर केवाःतय म दया था। द. २३ माच १९७२ को एक लणीय धािमक कायबम कानपुरके दनदयाल ःमारक वालय म संपन हआ। ु ौी गुजी के हाथ छह फट ऊँ चीताँबे क धातु से बनी ौी हनुमान जी क खड़ मूित विधवत ् ूितापत क गयी।इस समय संपूण विध-पूजा, होम हवनाद के समय ौी गुजी पीतांबर पहने हए ु थे।इसी उसव म ौी गुजी का ‘परपूण मानव’ वषय पर बहत ु ह संःमरणीय भाषणहआ। ु इस भाषण को सुनकर एक वृ मायवर ने कहा, ‘आज मुझे ान केमहासागर का दशन हआ ु ’।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी268


इस वष ११ माच को ह वजया एकादशी का मुहत ू आया। यह तो ौी गुजी कवषगाँठ का दन था! ौी गुजी ने इस दन अपना सारा समय मिास के रामकृ ंणआौम म यान, नामःमरण तथा ूाथना करने म यतीत कया। संघ समपतजीवन ूारंभ होने के बाद ौी गुजी को कभी यान धारणा हेतु एकांत का लाभ नहंहो सका था। वे के वल सम प भगवान ् क अचना अहिनश कया करते थे। कतुलगता है क जीवनात के इस कालखंड म उनका मौिलक आयामक आकषणअनंत ईर क ओर अिधकािधक बढ़ता जा रहा था। जस काय को करने का आदेशउह दया गया था वह काय तो ौी गुजी ने अपना सवःव अपण कर तवान औरयवहार के परःपरावलंबी पूरक गुण से खरे िसके क भाँित िनभाया था। अब तोशरर का अत होने का समय उनके पथ म था। आमा अपने नर चोले कोछोड़ने क तैयार कर रह थी। इसीिलए उनक गित तेज हो गयी थी। हर मनोनीतकाम िनपटाने या सबल हाथ म सपने के िलए समय से दस कदम आगे ितगित ु सेवे चल रहे थे। काल उनका पीछा कर रहा था। कतु ौी गुजी ने पीछे मुड़करउसक ओर देखा तक नहं! उह बहत ु सारे काम िनपटाने थे। नये काम काबीजारोपण करना था! ईर भी उह अंगुिलिनदश कर बुला रहा था। कतु ौी गुजीआमानंद म इतने लीन थे क शाररक पीड़ा होते हए ु भी वे उस ओर यान नहंदेते थे। उनक यह अनुभूित अविछन थी, अभंग थी। योग समेलन के िलएशुभसंदेश देने हेतु उहने जो पऽ भेजा था वह बहत ु कु छ कह जाता है। वे िलखते ह–“सवौे बात यह है क जब मन को िनवकार और सव से र करने क शूा होती है तब दय म िनय उसाहपूण और सम रहकर थकान या उबासीउपन न होने देते हए ु ूचंड काय करने क मता ूा होती है तथा मानव जीवनका देवदलभ ु लआय ूा कर असीम ूसनता और अखंड आनंद क उपलध होतीहै।” यह ववेचन तो उनके यगत अनुभूित का ह िनचोड़ है। देहयाग करने केएक माह पूव जो पऽ ौी गुजी ने ौी ूभुद ॄचार को िलखा था उसम उनकेअंितम दन क मानिसकता का ूगटकरण होता है। ौी गुजी ने िलखा है, “मइतना भायवान ् नहं हँ ू क आपके मुख से भगवान ौीकृ ंण का लीला चरऽ संपूणतःौवण कर पाऊँ । कतु मन ह मन म भगवान का ःमरण करता रहता हँ। ू यह मेराअहोभाय है क इसके अितर मुझे कोई अय काम नहं है। आराम कु स पर पड़े-पड़े भगवनाम ःमरण का आनंद लेता रहता हँ। ू यद ऐसा न कया तो ‘ूयाणकालेकफवातपः, कं ठावरोधे ःमरणं कु तःते’ ऐसी अवःथा म जीवन नौका डूब जाएगी।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी269


अयामवाद, जसके बारे म उनके मन म अपार ौा थी, हदू पुनथान काशात आधार है ऐसा उनका मानना था। कसी क ईरभ के वषय म यद कोईःवयंसेवक अनुदार उ-गार िनकाले, मखौल उड़ाए, तो ौी गुजी नाराज़ हो जाते। एकछोट सी घटना से यह बात ःप होगी।१९७२ क घटना है। मथुरा म मींमकालीन संघ िशा वग चल रहा था। अनौपचारकवातालाप के बम म कसी ने मत ूदशन कया क ौीमती इंदरा गांधी का ितपितजाकर दशन करना महज़ मत (वोट) आकषत करने का दखावा माऽ है। यह आरोप‘अनुदार’ (अनचैरटेबल) है, ऐसा तुरत ूयुर देकर ौी गुजी ने कहा, “ौीमतीगांधी पर इस ूकार के उदा संःकार हए ु ह। उनक माता ौीमती कमला नेह तोअतीव ौावान थीं। वे िनय िनयमानुसार बेलूर मठ म नहं इंदरा को साथ लेकरजाया-करती थीं। अनेक ये ःवािमय को यह बात ात है। अपना समाज धमूवणहै, और ौीमती गांधी ने ितपित के मंदर म जाकर देवता क परंपरागत पित सेजो अचना क उस बया से उहने जनता क अयामक ौा ढ़कर लोकनेता काकतय ह तो िनभाया है।” राजनीितक ःपधा का जसे ःपश भी नहं हआ ु हो ऐसेअजातशऽु तथा िनमल मन से ह ऐसे उ-गार िनकल सकते ह। पं. नेह वदेश जातेसमय इंदरा गांधी को साथ ले जाते ह यह आेप भी अनुदार है ऐसा कहकर उहनेबताया क पं. नेह के जीवन म उनका िनकटतम ःनेह और कौन बचा है? अतःयद वे अपनी पुऽी को साथ ले जाते ह तो या गलत करते ह?ौी गुजी पर हई ु शय िचकसा के ढ़ई साल बाद के कालखंड म जो ऐितहािसकघटनाएँ देश म हई ु उनके बारे म भी ौी गुजी सतक थे। अपने ूवास म वे रा कःथित से ःवयंसेवक. कायकताओं और नागरक को अवगत कराते रहते औरसंघकाय क आवँयकता पर जोर देते। कसी गुट वशेष के वरोध से वचिलत नहोते हए ु हदओं ु म स-भाव, आमौा वे अपनी वाणी से जागृत करते थे। ौीगुजी ने संघ पर ूितबंध लगाने क भाषा बोलनेवाल का मुँह अपने तक शु वचारसे बंद कर दया था। उसी ूकार अनेक वपी वचारक ने संघ के अनुकू ल पैरवीकरते हए ु सरकार नीित क धजयां उड़ा द थीं। ऐसे मायवर म भूतपूव सेनापितजनरल करअपा, हदःथानी ु आंदोलन के ौी मधु मेहता, फायनेशअल एसूेस केौी गो. म. लाड ूभूित का समावेश है। ौी लाड ने कहा, ‘संघ तो सौ नंबर सोना है’(R.S.S. is pure gold)। इस कारण ूितबंध क भाषा मौन हो गयी। दसंबर १९७० मसंसद वसजत कर चुनाव क घोषणा कर द गयी।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी270


इस चुनाव म इंदरा काँमेस को अभूतपूव सफलता ूा हई। ु वरोधी प म िनराशाछा गई। चुनाव म पराभूत होने के कारण वपय का मन बेजान सा हो गया था।ौी गुजी का इस जय-पराजय से कोई सरोकार नहं था। उह इस बात का खेद हआ ुकरता था क चुनाव ूचार बहत ु ह िनचले ःतर पर कया जाता है और परणामतःकटता ु बढ़ जाती है। रत लेने-देने पर कोई िनबध नहं रह पाता। अनुिचत,असैातक, असामाजक तौर तरक को नाहक बढ़ावा िमलता है। ौी गुजी यिथतहोकर कहते, “चुनाव म होनेवाली इन अनैितक बात के कारण रा क श,नैितकता तथा राभावना का वनाश होता है। के वल चुनाव के समय ःवाथवशहोनेवाला यह यवहार तो िनरा रािोह, देशिोह है। इस दशा म कोई वचार करतादखाई नहं देता।”इस दषत ू चुनावी वातावरण क ओर इंिगत कर संघकाय क आवँयकता िस करनेहेतु एक कायकता को उहने िलखा, “यह सारा अनुिचत, अनैितक घटते देखकरअपनी जमेदार का अनुभव अिधक तीोता से होता है। इस वषा वातावरण कोशु कर देश को एकसंघ तथा समथ बनाने क मता अपने संघ काय म ह है।इसिलए अपना सवःव अपण कर वातावरण िनदष बनाने के िलए घर-घर पहँचकर ुशु राीय भाव जागृत करते हए ु रा को एक सूऽ म गूँथना अपना ूाथिमक कतयहै, इसे यान म रखना आवँयक है।”१८.३ पूव पाकःतान म अयाचार के समयचुनाव के समय उड़ धूल अब जमीन पर ःथर हो चुक थी। वातावरण शांत था।कतु पाकःतानी संकट के बादल सर पर मँडराना बमशः शु हो गया था। पाकसेनापित यााखान ने पूव पाकःतान (आज का बांगला देश) म पशुवत ् अयाचारका कहर मचा दया था। परणामतः लाख वःथापत आौय पाने के िलए भारतआने लगे। िनरािौत का भारत पर बोझ दन ूित दन बढ़ने लगा। अवामी लीग केसश ूितकार के फलःवप गृह-यु क ःथित पूव पाकःतान म िनिमत हो गयी।इस पृभूिम पर संघ िशा वग का ूवास करते समय ौी गुजी ने अपने ूयेकभाषण म पूव से हो रहे आबमण के कारण उपःथत परःथित के बारे म सतक ताका इशारा दया। २८ जून १९७१ को अपना ूवास पूण कर ौी गुजी नागपुर लौटे।इस समय तक परःथित बहत ु ह गंभीर बन चुक थी। िनवािसत क संया ३०लाख तक पहँच ु चुक थी। संघ क ूेरणा से सहायता काय ‘वाःतुहारा सहायता<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी271


सिमित’ के मायम से पहले ह ूारंभ हे चुका था। संघ ने सहायता आंदोलन चलाकर,िशवर म अनाज, व-ूावरण तथा औषिधय का यापक ूबंध कया।द. ८, ९, १० जुलाई १९७१ को नागपुर म हई ु के िय कायकारणी क बैठक म ौीगुजी ने बांगला देश क परःथित के संबंध म एक ूःताव पारत करवाकर शासनको आासन क पूित करने का आवाहन कया। सेना का ूयोग (िमिलटर ऍशन)कर अवामी लीग को सहयोग देते हए ु पूव पाकःतान यााखान के चंगुल से मुकरवाने तथा वःथापत को पुनः पूव पाकःतान म वापस भेजने क मांग देश मजोर पकड़ रह थी। ौी गुजी ने ःवयंसेवक को सतक रहकर देशरा के काय मजुट जाने और अय ूय म सहायता देने के िलए कहा। इस सूचनानूसार सभी ेऽम ःवयंसेवक सतक रहे और जनता का मनोबल बढ़ने का काय उहने कया।अू बर म जब ौी गुजी पंजाब गए तब उह ात हआ ु क जनता का मनोबलउम है, ःवयंसेवक बारक से हर छोट-मोट जानकार रखते हए ु सेवाकाय म रत ह,और सेना भी तैयार खड़ है।अंततोगवा ३ दसंबर १९७१ को पाकःतान का आबमण शु हआ। इस ु समयनागपुर म तण ःवयंसेवक का िशवर चल रहा था। ौी गुजी ने पाकःतान ाराकये गये आबमण और नागरक के दाियव के संबंध म एक वय तुरतूकािशत कया। इस वय क लाख ूितयाँ ःवयंसेवक ने घर-घर जाकर बाँट औरयु ूय के संबंध म लोग को सजग रखने का काय कया। द. ४ दसंबर १९७१के इस वय म ौी गुजी ने कहा-“यह यु क घड़ है। आबामक शऽु सेना अपनी सीमा पर आ धमका है। इस संकटक गंभीरता को सोचकर शासनकता और विभन पोपप के नेता परःपर मतभेदसे ऊपर उठकर एक राीयव क भावना से संगठत हो इस आबमण को पराःत करअपने रा को वजय ूा करा द। आज इसी ूमुख वषय को ूाथिमकता देने कआवँयकता है, इस बात को हम समझ। प िनरपे से राहत का ह सदैविचंतन करनेवाले संघ के ःवयंसेवक को भी मेरा यह आवाहन है।”नागरक को कस तरह यु ूय म सहायता करनी चाहए इसका भी ौी गुजी नेइस पऽक म मागदशन कया था। यु ूारंभ होने के कारण इस ूकार का वयिनकालना आवँयक था। कतु इस घटना के पूव ह १९७० क वजयादशमी से ह वे<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी272


नागरक और ःवयंसेवक को जागृत रहने का आवाहन कर रहे थे। द. १० अु बरको नागपुर के वजयादशमी के महोसव म, द. २२ नवंबर को दली के ःवयंसेवकके एकऽीकरण म, ८ जुलाई १९७१ को नागपुर के गुपौणमा उसव म, द. २४अू बर को जमू क सावजिनक सभा म, २६ नवंबर को जयपुर के सावजिनककायबम म ौी गुजी ने जो भाषण दये उनका ठक अययन करने पर एक बातःप हो जाती है क ौी गुजी ने भावी आबमण का संके त एक िा के नाते जानिलया था। उनक भवंयवाणी खर उतर। देश भर से २ लाख ःवयंसेवक सहायताकाय म सेना क पछाड़ सहाल रहे थे और जनता क सुरा म भी जुटे थे।सहायता के इस काय म ःवयंसेवक ने कोई कसर बाक नहं रखी।बांगला देश ःवतंऽ होने पर ौी गुजी ने इस घटना का ःवागत अवँय कया थाकतु इससे खुश होकर सावधान न रहने पर धोखा हो सकता है, ऐसी चेतावनी भीद थी। इस चेतावनी म हम उनक दरदिशता ू का सााकार होता है। संयोग क बातहै क जब पाक सेना ने बांगलादेश म शरणागित ःवीकार क, उस समय ौी गुजीबंगलौर म एक पऽकार परषद म वातालाप कर रहे थे। पऽकार ने यु के बारे मतथा भवंय म संभवनीय घटनाओं के संबंध म लगभग एक घंटे तक ू कभरमार क। ौी गुजी ने इन ू क बौछार का बड़ ूसनता से उर दया। सभीउर ःप और िनःसंदध थे। देशभर िनरंतर ॅमण, लोग से भट, चचा, सूऽ सेजानकार, ूय घटनाःथन से संपक त जनता से सीधा संपक और ःथान-ःथान परकायरत ःवयंसेवक से ूा समाचार के कारण ौी गुजी क जानकार अनुभव-िसथी और िा तथा मातृभूिम से समरसता के कारण ू चाहे कतना भी पैना य नहो, ौी गुजी का उर सटक और सय जानकार से परपूण रहता था।अयऽ एक ःथान पर ौी गुजी ने कहा क पाकःतान का वभाजन हआ ु , इसकारण हषम होने का कोई कारण नहं। इितहास म हमने पढ़ा है क हमारे देश मबहमनी राय के पाँच टकड़ ु म बँट जाने के बावजूद भी उनका ख हदू सा केव ह था। १९७१ के बाद बांगला देश म हए ु परवतन इस बात के परचायक हक वहाँ ूजातंऽ तथा सैयुलैरजम क कॄ पर सेना क तानाशाह चली। बांगलादेशसे िनवािसत का लगातार आना और मुसलमान क घुसपैठ अब भी शु है।बांगलादेश का यु समा होने पर द. २२ दसबर को ौी गुजी ने ौीमती इंदरागांधी का अिभनंदन करने हेतु उह पऽ िलखा था। इस पऽ के अत म उहने िलखाथा, “देश क एकामता, परःथित का यथाथ संकप इसी तरह सदैव रहना चाहए।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी273


के वल आपाकालीन ःथित म ह नहं अपतु राोथान के हर काय के समय इससंकप क आवँयकता है।”“अपने देश क गौरवशाली एकाम श िनमाण करने म संलन राीय ःवयंसेवकसंघ इस काय म सदैव आपके साथ है और हमेशा रहेगा। रा का ूितिनिधव करतेसमय आप इन आवँयकताओं क ओर यान दगी और अपनी राीय तथा आंतराीयनीित का िनधारण करगी, ऐसा मुझे वास है। आपके नेतृव म भारत क इसी तरहसमृ होती रहे, गौरव क अिभवृ होती रहे यह मेर कामना है।”माच म हई ु अखल भारतीय कायकार मडल क सभा म यु म ूा वजय के बारेम एक ूःताव भी पारत कया गया। बांगला देश के गौरवशाली वजय पव केपरणामःवप १९७२ म संपन वधान सभा चुनाव म ौीमती इदराजी के प नेसवािधक यश ूा कया।युबंद के पात ् ौी गुजी का मत था क पमी सीमा पर सेना को पया छट ूनहं िमल पाई। १९७२ क जुलाई म पाकःतान के साथ जो ‘िशमला समझौता’ हआ ु ,वह तो ूा वजय पर पानी फे रनेवाला ह था। इस समझौते के अनुसार भारतीयसेना ारा जीता हआ ु सारा ूदेश भारत-सरकार ने छोड़ दया। सेना को वापस आनापड़ा। आजाद काँमीर का ूदेश भारत का अवभाय अंग है, ऐसी आवेशयु घोषणारा मंऽी ने क थी। एक इंच भी सेना पीछे नहं हटेगी ऐसा आासन भी उहनेदया था। कतु राजनीित का पाँसा पलट गया और िशमला म समझौता कया।१९६५ क अपेा भारत का यह वजयपव अिधक महवपूण था। इस वजय का लाभसमझौता वाता के समय राहत म उठाया होता तो कहा जा सकता था क सेना केवीर जवान को याय ूा हआ ु , उनके बिलदान का समान रखा गया। कतु ऐसानहं हआ। ु भारतीय सेना को सभी जीता ूदेश छोड़कर लौटना पड़ा। ौी गुजी ने इसिशमला समझौते पर तीखी टपणी क। युबद क घोषणा करते समय जो अपेाएँथीं उनम से एक भी पूण न हो पायीं। कँमीर का ू भी खुला रहा और पाकःतानक अकड़ भी बनी रह। एक बार इस संदभ म बोलते समय ौी गुजी ने साधारनेताओं क अववेक पूण नीित क कड़ आलोतना करते हए ु कहा, “शऽु को शेष नहंरखना चाहए, इस रणनीित के सूऽ के अनुसार भारत का आचरण नहं है। परणामतःदेश को संकट क खाई म बार-बार िगरना पड़ता है। जीतकर भी मुँह क खानी पड़तीहै।”<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी274


इस तरह १९७१ का मसला समा हआ। ु शासन क राजनीित, उसके तौर तरकेदशाहन िस हए। ु फर भी ौी गुजी अपनी ओर से भारत को एकाम रखने काूयास अखंड प से कर ह रहे थे। हदू आदशवाद ह ूेरणा का ोत बने- इस मंऽका उचार, पुनचार करते हए ु देशभर ॅमण करते रहे। भारत के राजनीितक जीवनम उथल-पुथल मची हई ु थी। इस कारण ौी गुजी क आासक, ूेरक वाणी लोगौा से सुनते थे। कतु यह वाणी और कतने काल तक सुनने को िमलेगी? इसू का उर तो िनयित के गभ म ह था।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी275


१९ अंितम अयास वगौी गुजी का ूवास िनरंतर चल रहा था। संघ क परपाट के अनुसार आयोजतसभी कायबम म वे भाग ले कर ःवयंसेवक का मागदशन करने, रा ःथित के बारेम उ-बोधन करने आद सारे कायबम सुचा प से चला रहे थे। ौी गुजी काउसाह देखते ह बनता था। यह उनका ःवभाव था। जब भी वे नागपुर म होते तोवौाम करने के ःथान पर अहिनश कायरत रहा करते थे। मुबई के डॉ. देसाई केारा ौी गुजी के ःवाःय क जाँच िनत अंतराल से होती रहती। कतु ौीगुजी दनदन दबल ु होते जा रहे थे। कभी-कभी उह कमजोर का भी अनुभवहोता।डॉ. ूफु ल देसाई एलोपॅथी क दवाइयाँ और पं. रामनारायण शाी म शाी आयुवदक दवाइयाँ देकर ौी गुजी का शररयंऽ कायम बनाए रखने का ूयास कर ह रहेथे। कतु ौी गुजी वाःतवकता से अवगत थे। १९७२ क बात है। ौी गुजीजनवर के माह म उर ूदेश का दौरा कर रहे थे। ूवास और कायबम क भरमार,फर ूवास! वौाम का नाम नहं। इन अयािधक यःत कायबम के फलःवप वेथकावट का अनुभव कर रहे थे। सेरठ से अलीगढ़ तक मोटर के ूवास-काल म ौीगुजी ने कायकताओं से कहा, “अरे भाई, कु छ तो सोचो। मुझे इधर से उधर दौड़ा रहेहो।” अपना शररबल दन ूित दन ीण होता जा रहा है, ऐसी भावना उहने यक। गोवा के ूवास म भी उहने कहा, “ ‘म थकान का अनुभव कर रहा हँ। ू ” २५जुलाई से १८ अगःत तक ौी गुजी को इदौर म पं. रामनारायण शाी के िनवासःथान पर वौाम करना पड़ा। इस के बाद िसतबर के अत म वे राजःथान गये।वहाँ ४ अटबर ू को उह बुखार आया। कतु बुखार को साथ लेकर उहने अजमेरका कायबम संपन कया और जोधपुर होते हए ु ौी गुजी जयपुर पहँचे। ुजयपुर म ौी गुजी का ःवाःय इतना बगड़ा क कायकता िचंितत हो गये। ौीगुजी को नींद नहं आती थी। खाँसी तो थी, शौच के िलए भी बार-बार जाना पड़ताथा। थकावट बढ़ रह थी। द.९ दसबर को वे अिधक अःवःथ दखाई दये। १०३डमी बुखार था। फर भी पूविनयोजत बैठक ःथिगत न करने क सूचना ौी गुजीने द। अब तो उनके िलए बोलना भी दभर ू हो गया था। शदोचार ठक से नहं होपाता था। अततः ूाथना के पात बैठक समा क गयी।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी276


ौी गुजी का बुखार १०५ डमी तक बढ़ गया था। ौी गुजी क यह अवःथा देखकरडॉटर ने कायकताओं को डाँट फटकार करते हए ु कहा, “आप उनके ःवाःय परइतना अयाचार य कर रहे ह?” अथात ् इस ू का उर कौन दे पाता?सौभायवश द. १० दसबर को बुखार उतर गया। सुबह क चाय लेते समय ौीगुजी ने कायकताओं से कहा, “अपने मन और मःतंक का सतुलन खोने का यहमेरा पहला अवसर है। इसके पूव जीवन म ऐसा कभी नहं हआ। ु ” ौी गुजी काःवाःय अब संतुिलत था। सुबह के समय ूचारक क बैठक िनवनता से संपनहई। ु ःथानीय कायकता मे ौी गुजी को दो दन वौाम करने के िलए कहा कतुउहने इस आमह को वनॆता से नकारते हए ु अगले ूवास क तैयार क। िनयोजतसमय पर हवाई जहाज से वे मुबई पहँचे। ु बदाई के समय जयपुर के संघचालक कोूेमािलंगन देकर कायकताओं से भी उहने पूछतीछ क। इसके बाद ौी गुजी केचरण राजःथान क भूिम को कभी ःपश नहं कर पाए! जयपुर म जो बैठक ूकृ ितठक न होने के कारण वे ले नहं पाए थे उसके कारण ौी गुजी बहत ु ह यिथतथे। बाद म िलखे पऽ म उहने इस यथा को य कया।कतु इस ूकार ःवाःय के कारण कब तक अवरोध सहा जा सके गा? यह ू ौीगुजी के मन म बार-बार उठता। िनरंतर ूवास कर कायबम पूण करने क शअब उनम शेष नहं थी। डॉ. देसाई क द हई ु ःवाःय क काल मयादा अब समाहोने जा रह थी। तब ौी गुजी ने िनय कया क हदू परंपरा के अनुसार अपनेूमुख कायकताओं से आखर बार बातचीत कर ली जाय। यह वचार मन म अंकु रतहोते ह ौी गुजी ने महारा के ठाणे नगर म अखल भारतीय कायकताओं का एकअयास वग आयोजत करने का िनय कया। ूय संघकाय म रत ूचारक,अिधकार तथा रा जीवन के सभी ेऽ म काय कर रहे ःवयंसेवक को भी इसअयास वग के िलए आमंऽत कया गया था। द. २८ अू बर से ३ नवंबर तकसंपन हए ु इस वग म उपःथत कई कायकता ौी गुजी क अवःथा देखकरअयत दःखी ु हए ु थे। मन अशुभ कपना से कं पत हो उठा था। ौी गुजी जसमानिसक पीड़ा और याकु लता से संघ क कायपूित के संबंध म अपने वचार रखतेउसे सुनकर ऐसा ूितत हआ ु मान ये उनके अंितम वचार ह! यह उनका देहपअंितमं दशन है! यह अमृत वाणी, यह देवदलभ ु नेतृव अब मन के ःमृितमंदर मसमािधःथ होने जा रहा है। कायकताओं के दय को हला देनेवाली यह बैठक थी।सभी यिथत थे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी277


१९.१ यापक िचंतन मंथनठाणे का वग, जो पूय पांडुरंग शाी आठवले जी के तवान वापीठ म सपनहआ ु था, मानो कसी गु ने पािथव देह का याग कर अनंत म वलीन होने के पूवअपने िशंय को तवबोध, दशाबोध तथा शंकाओं का अंितम िनराकरण करने हेतु हिलया था। संघ का हदू जीवनादश पर अिधत शात वचार ह ौी गुजी नेःपप से रखा। आधुिनक कहलानेवाली वचारधारा तथा वैक संदभ म हदूजीवनवचार कतना महवपूण, आचरणीय, शात, बलशाली तथा सवपर सुख संपदाूदान करनेवाला है, यह बात तुलनामक पित से उदाहरण और संदभ देते हए ु ौीगुजी ने इतनी पारदिशता से समझाई क ौोता आयमुध होकर रह गये। हदूजीवन पित म िनहत मानव कयाण क मता के बारे म कोई संदेह शेष नहंरहा। कायकता िनःशंक हो गये। ौी गुजी ने ूितपादन कया क इसी तव क नींवपर आधारत जीवन के हर कायेऽ का ूाप बनाया जाय।इस वग म सवूथम ू जो उपःथत कया गया वह यह था क हम ‘हदू’ ‘हदू’का िनरंतर उ-घोष कस िलए करते ह? देश क परःथित तथा वातावरण क ओरदेखते हए ु ‘हदू’ शद का याग य न कर? ‘भारतीय’ या अय कसी अनुप शदको हम य न अपनाएं? ऐसा करने से संघ पर सांूदाियकता का आरोप नहं लगपाएगा। संकु िचत और सांूदाियक इन वशेषण का ूयोग समाज म हमेशा सुनाईदेता है, इस कारण यह शंका वचाराथ रखी गयी। ौी गुजी ने ःवयं इस ू कोउठाया और परामश के प म कहा, “यह सय है क ‘हदू’ के संबंध म अनेकूकार के ॅम िनमाण करने के ूयास कये गये ह। कु छ ेऽ म विभन ःवाथ सेूेरत होकर हदू को मुःलम वरोधी, बयन वरोधी, जैन और हरजन वरोधीमानकर अपूचार कया जाता है। यह ूचार कसी ठोस जानकार पर आधारत नहंहोता। धम, संःकृ ित, इितहास का अययन कर सोचा होता तो ऐसे असय आरोपनहं मढ़े जाते। इःलाम और ईसाई पंथ पैदा होने के पूव से ह हदू वचारधारा औरजीवनपित का अःतव है। फर हदू का अथ मुःलम-वरोधी कै से हो सकता ह?िसख, जैन आद मत तो ‘हदू’ क् अंतगत ह ह। ःवतः को हदू न माननेवालेलोग के बारे म तो यह कहना पड़ेगा क वे ःवयं को हदू न मानकर अपने हहाथ-पाँव काटने पर तुले हए ु ह। हदू कसी का भी वरोधी नहं है, हदू वचारूणाली पूणतः भावामक (Positive) ूणाली है, न क िनषेधामक (Negative)।”इस देश के रा जीवन के िलए ‘हदू’ के ःथान पर कोई अय पयायवाची<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी278


शद ूयु कया जाय ऐसा कु छ लोग का मानना है। इस संबंध म ौी गुजी नेकहा, “मान िलजए क कोई पयायवाची शद ढँढ़ ू भी िलया। कतु या इस शद केकारँ मूल अथ म परवतन हो जाएगा? या हदू के मूलाथ म बदलाव आएगा?‘आय’ शद का अथ भी वह है जो ‘हदू’ शद से विनत होता है। कु छ लोग कहतेह क ‘भारतीय’ शद का ूयोग हो, कतु इस शद को चाहे जैसा झुकाओ, मरोड़ो,िनचोड़ वह िनकलेगा जो ‘हदू’ शद म है। फर िनःसंदध होकर हम ‘हदू’ शदका ह ूयोग य न करे? ‘हदू’ शद अब ूचिलत हो गया है। हम जब अपने राक सवागीण उनित का वचार करते ह तब वह हदू धम, हदू संःकृ ित तथाहदू समाज के संरण का ह अथबोध कराता है। यद हमने ‘हदू’ शद को यागदया तो ‘रा’ नाम क कोई चीज, कोई अःमता शेष नहं रहेगी। अपना समाज दोपाँव पर चलनेवाले मनुंय ूाणय का समूह ह रह जाएगा। यद हदू शद के बारेम कसी के मन म शंका हो तो उसक वाणी म बल नहं रहेगा। इस कारण संपूणिनय के साथ हम कहना है क “हम हदू ह। यह हमारा हदू धम, संःकृ ित औरसमाज है।” इसी नींव पर हमारा रा सदय से खड़ा है। इसी रा का जीवन भय,दय, ःवतंऽ तथा समथ बनाने के िलए ह हमारा जम हआ ु है। इस वषय म हमकोई समझौता नहं करना चाहते।”संघकाय के ःवप का वणन करते हए ौी गुजी ने कहा, “संघ का काय सवयापीहै। कतु सवयापकता कसे कहते ह? ूकाश सवयापक होता है कतु ूकृ ित केसभी काय वह सपन नहं करता। ूकाश अंधःकार का नाश कर माग दखाता है।हम इस तव को भलीभांित समझ लेना चाहए। अयथा गड़बड़ होगी। ूयेक कायम यद हम संघ के नाते हःतेप करने लगे तो हम जीवन के ूयेक ेऽ के िलएएक-एक ूबंध िलखना पड़ेगा। यद ऐसा हआ ु तो समाज को संगठत करने का जोमूलभूत काय है, वह बंद पड़ जाएगा। हम के वल ूबंध के धनी बने रहगे।इस कारणहमने राजीवन का एक यापक िसात सामने रखा है। और इस िसात केआधार पर ह हर ेऽ के कायकता ूयेक काय क रचना कर।”भारतीय संःकृ ित के मूलभूत िसांतो क चचा करते हए ु ौी गुजी ने कहा, “अपनीसंःकृ ित म संपूण समाज को एक जीवमान (जैवक) शरर के प म माना गया है।सहशीषा पुषः सहाः सहपा” – याने हजार मःतक, हजार आँख, हजारपाँववाला पुष, ऐसा वणन कया है। मूलतः यह ईर का ह वणन है। कतु हमारेिलए तो समाज ह परमेर है। यह एक वरा समाजपुष है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी279


“इस समाजपुष के अनेक मुख, अनेक हाथ, आँख, पाँव ह। इसी वरा समाजपुषक आराधना करने के िलए हम बताया गया है। दसर ू बात यह है क इस वरामानव शरर के ूयेक अंश म एक ह चैतय ूवाहत होता है। इस चेतना श कोचाहे जो नाम दो, कोई फक नहं पड़ता। सवािधक महवपूण बात उसक अनुभूित कहै। इस चैतय क अनुभूित का सााकार होने से ह हमारे यवहार-कामकाज-बयाकलाप अपेानुसार सुचा प से चल सक गे। आिथक से उपादत उपभोगक साममी इस वरा पुष के िलए ह है, ऐसा हम सोच। समाज क वरा पुष केप कपना कर उसम ओतूोत िचरंतन अःतव क अनुभूित करना हमारे भारतीयिचंतन क वशेषता है।”“िचंतन क दशा से यद हम भटक गए तो संपूण मानव जाित के सुख क कपनासफल नहं होगी। एक सीधा ू पूछा जा सकता है क जो कु छ उपलध है वह सबको ूा हो ऐसा वचार भला य कया जाय? के वल अपने तक सीिमत वचार यन कर? दसरे ू को सुख िमले या दखु , हम िचंता करने का या कारण है? इनदःखय ु का हमसे या संबंध है? भारत के बाहर देश क भौितक वचारूणाली केअनुसार यद हम यह मान ल क हम पंचमहाभूत से बने िभन-िभन पंड माऽ ह,मुझम और अय जीव म कोई आंतरक संबंध महां है, तब ऐसी ःथित म दसर ू केसुख-दःख ु क भावना अपने मन म उपन होने का कोई कारण नहं।”अय देश म से ूचिलत वचार ूणािलय म िनहत अपूणता ःप करते हए ु ौीगुजी मे कहा, “आधुिनक व क वचार ूणािलयाँ भी यह मानती ह क संपूणसमाज के कयाण का वचार हम करना चाहए। उह यह पूछने क आवँयकता हैक उनके िचंतन म एकव क जो कपना है, उसका आधार या है? य यम वे कस ूकार का नाता मानते ह? उनका परःपर संबंध या, कै सा और य है?दसर ू के सुख-दःख ु क समान अनुभूित का कौन सा आधार है? महव का आधारदेनेवाला वह सूऽ कौन सा है? वदेश क या पमी देश क वचारधारा म सैाितकप से इस वषय म कोई ठोस वचार नहं है। भारतबा देश म एक ह तव मायकया गया है क सब लोग अलग-अलग उपन हए ु ह और एक-दजे ू का कोईआंतरक संबंध नहं है। इस कारण एक के ारा दसरे ू क िचंता करने का कोई कारणनहं है। जब हर कोई िभन हो तो भला एक दजे ू क िचता य कर? इसवचारधारा म ‘समाज’ शद का ूयोग अवँय कया गया है कतु ‘समाज’ का अथ,अनेक लोग का ःवाथ का एकऽीकरण ह माना गया है। इसी मयादत कोण सेःवाथपूित के िलए परःपर समझौता हआ ु और समाज बना। वदेश क वचारधारा म<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी280


समझौता है, कतु आंतरक से सब को एक सूऽ म गूँथनेवाला, समान सुख-दःख ु क चेतना का अनुभव करा देनेवाला सूऽ उनके पास नहं है।”“यह सूऽ ह अपना अःतव है। अपने अःतव म ह यह सूऽ िनहत है। हमारेशरर, इछा-आकांाएँ, चाहे िभन-िभन य न ह, सब के अंदर एक ह िचरंतनअःतव है। मूलगामी एकता ता वह ूमुख कारण है। इसी मौिलक तव के कारणह संबंध के भाव जागते ह। ूेम तथा ेष क भावना भी इसी एकाम भाव केआवंकार ह। सबका िमलकर एक अःतव-‘समाज’ का ह प हैता है, इस बात कोहम यान म रख।”ौी गुजी ने आगे कहा, “इस एकामता या एकव क भावना के दय म वराजमानहोते ह ‘समाज’ का अःतव बनता है और यह लमाज िसखी कै से हो सके गा यहवचार जागृत होता है। इसी भाव के फलःवप हम ऐसी ‘यवःथा’ िनमाण करने काूयास करते ह जीसम सबका समान ःवाथ हो। इस ूबया म हम ःवतः का ःवाथछोड़ना पड़ेगा। अपने संपूण अःतव के व तथा ःवव के वपरत होने केकारण ःवाथसंमह करना आमहया के समक पाप ह होगा। इसिलए हमःवाथयाग करना होगा। ःवाथयाग म ह हमारा हत है।”“यह वचार जस जीवन िसात म अंतभूत ह उस जीवनूणाली का नाम ‘हदू’जीवन ूणाली है। संपूण जगत ् म इतनी गहराई से य वशेष के अःतव केआधार क खोज अयऽ कहं दखाई नहं देती। हदव ु क यह वमानव को दहई ु देन है। इसी आधार पर संपूण समाज क धारणा होती है। य-य केअंतःकरण म इस एकामता को जागृत करना हमारा पहला कतय है।”“सकड़ वष के इितहास ने यह िस कर दखाया है क इसी ूकार क वचारूणालीम ःथरता है। संसार म मानवकयाण के िलए जो िभन-िभन वचार चल रहे ह वेलंबे समय तक टकनेवाले नहं ह। जागितक परःथित म बदलाव आते ह कालूवाहक ूबल लहर के थपेड़ के ूहार जब आघात करते ह तब वे या तो बदल जाते हया न है जाते ह। हदू जीवनपित यह मानती है क सभी म एक सत ् तववराजमान है और सबको जोड़नेवाली वह कड़ है। एक ह अःतव िभन-िभन पम अिभय होता है, इस कारण ूयेक य माऽ को उसक पसद और चाह केअनुप उम जीवन जीने क सुवधाएँ, साधन आद ूा करा देना हमारा कतय है।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी281


यह हमारा ःथायी वचार है। इसी कतय भावना के परणामःवप मनुंय वचारकरेगा क हम आवँयकता से अिधक जीवनावँयक वःतुओं का संमह न कर, यकआवँयकता पूित से अिधक साधन पर हमारा अिधकार नहं है, समाज का अिधकारहै। जो अिधक संमह होगा वह समाज के हताथ ह होगा। इस धारणा को ढ़ करनाह हदू वचार जागृित का दसरा ू नाम है।”“अय राजनीितक तथा आिथक यवःथा पितय का वचार इसी िनकष पर हमकरना होगा। समाज जीवन क मूल रचना का आधार भी यह है। यवःथा चाहे जोहो, समाज जीवन क धारणा ह उलका उेँय है। कतु दभाय ु से हमने इसमूलभूत िसांत को याग दया और उसके दंपरणाम ु हमारे सामने ह। दरिता चारओर फै ली दखाई देती है। लोग ॅम के िशकार होकर इस का दोष हदू जीवनपित के मथे मढ़ते ह। कतु यह सय नहं है। हदू जीवन पित का वःमरणहोने के कारण ह यह परःथित िनमाण हई ु है। अछत ू वृ (ःपृँयाःपृँय भाव) कोहदू जीवनपित का परणाम मानना गलत बात है। हदू दवन पित का यागतथा वःमरण इन दोष क जड़ है, मूल कारण है।”“समाज यवःथा का वचार बुमान ् िचंतक के िलए चचा और वादववाद का वषयहै। संघ का अथात ् हदओं ू का इस संबंध म या वचार है, इसका ववेचन करते हए ुौी गुजी ने कहा, “ऐसी सामाय धारणा दखाई देती है क जसे आधुिनक (मॉडन)जीवन कहा जाता है वह सुखपूण है। साथ ह इस सुख को अिधकािधक माऽा म पानेक ःपधा भी बयाशील है। सुख देनेवाले साधन को ूा करने क होड़ लगी हई ु हमदेखते ह। इन सुखोपभोिगय को अिनबिधत, िनरंकु श समाज जसे ‘ःवैर समाज’ कहतेह, चाहए। इसे उनत समाज का लण माना जाता है। कतु हम यह समझ लेनाचाहए क ‘परिमिसव’ वचार क छाया म ‘समाज’ नाम क वःतु ह समा हो जातीहै। शेष बचती है के वल ‘ूितःपधा िसात’। इसे हम िनरंकु श उपभोग के िलएएकऽीकरण हेतु कया हआ ु समझौता कह सकते ह। अथात ् ‘समाज’ समझौते का फलह माना जाएगा।”“इस सामाजक समझौते के साथ ःपधा जुड़ हई ु है। लोग का मानना है क ःवःथःपधा के कारण ूगित होती है। कतु मेर से कोई ःपधा ःवःथ (Healthy)नहं होती। िनःःवाथ ःपधा का होना असंभव है। ूारंभ म वशु ूतीत होनेवालीःपधा म शीय ह वकृ ितयाँ दखाई देने लगती ह। ःवःथ ःपधा अपने को अछा<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी282


बनने क ूेरणा देती है कतु ःवतः को अछा बनाने क अपेा दसर ू को बुराबनाने का ूय होता है। ःवतः को ऊँ ची बनाने क बजाय दसर ू को नीचे खींचने कःपधा शु हो जाती है। इस ःपधा का अत परःपर संघष म होता है।”“आज व म जो संघष हो रहे ह, उनक जड़ म यह ःपधा क भावना ह है। दसर ूका सुख छनकर, नकर, ःवतः को समृ करने क इछा ह इन संघष का मूलकारण है। पााय देश म उपन ‘ःवैराचरण’ और ‘ूितःपधा’ क तवहनभावनाओं से मनुंय को सुख ूा होना असंभव है।”“इसिलए हम मूलगामी वचार करना पड़ेगा क आखर मनुंय जीवन का लआय काहै? या ऐशोआराम, भौितक सुखोपभोग ह मनुंय जीवन के एक माऽ लआय ह?सामायतः सबका एक ह मत है क सुख क ूाि ह मनुंय का ूधान लआय है।कतु सुख ीण हआ ु क वह दखु का कारण बन जाता है। इसिलए मनुंय चाहता हैक सुख िचरंतन हो। सुखपूण जीवन का भी कभी अत न हो। िचरंतन सुख क यहइछा मनुंय को आकषत करती रहती है।”“मनुंय शररधार होने के कारण शाररक आवँयकताओं क पूित उसे करनी हपड़ती है। इन आवँयकताओं म ऐसे अनेक उपभोग ह जह अमाय या ितरःकृ तनहं माना जा सकता। वचारक कामत ह क शरर तथा मन ारा उपभोग क ूवृको नकारने क आवँयकता नहं है। आवँयक यह है क इस ूवृ का समाधानकरने म ह मनुंय ःवतः को डुबो न दे। यह सुख सवपर नहं है और याय भीनहं है।”“सुखी होना ह मनुंय का लआय है। ूयेक जीव माऽ ःथर सुख क कामना करताहै। सुख के अमरव का ःवन वह संजोता है। कतु िचरंतन सुख क कपनासामाय मनुंय नहं कर पाता। अपनी इंिय क वसना तृ करने म ह सुख िनहतहै, ऐसा मानकर मनुंय इस सुख के पीछे भागता रहता है। मनुंय वचारशील ूाणीहोने के कारण इंिय सुख के समाधान के िलए वह नये-नये उपाय, साधन क खोजकरता रहता है। मनुंय का पहला ूय अय ूाणय के समान ह होता है। इंियका सुख। ईर ने इंिय क रचना ह ऐसी क है क वे सुख के िलए बाहर क ओरदौड़ती रहती ह। इस कारण अंदर मुड़कर, अंतमुख होकर सचे सुख क खोज करनेके िलए वह तैयार नहं होता। वचार करने पर ऐसा दखाई देता है क इंियजयसुख दःखात ु होते ह। इसीिलए मनुंय वचार करता है क चूंक मुझम िचरंतन-<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी283


शात सुख क इछा वमान है तो फर वह कहं न कहं होना ह चाहए। यद वहबाहर न हो तो भीतर होगा ह। जसे सचा सुख माना गया है, या वह मनुंय केशररांतगत है? मन या दय म है? ऐसा ू उसके मन म उपन होता है। मनुंयअनुभव करता है क अनेक चीज ह जो ताकािलक प म उपभोग क इछा तोअवँय पूण करती ह कतु कु छ समय बाद ह उह पाने क भावना पुनः उपनहोती है। ताकािलक तृि और अनत इछा, यह इिय सुख का लण है। यहसुख ताकािलक होता है। बढ़ते हए ु उपभोग के साथ सुख क आकांा-अिभलाषा भीवृंगत होती है और जहाँ अिभलाषा है, कामना है, वहं सुख कै से िमलेगा? मनुंयपुनः वचार करता है क यद अिभलाषा क तृि म सुख नहं तो आखर वह हैकहाँ? ”“इस संबंध म भारतीय वचारक का मत है क सुख अपने अंदर ह है। अपने भीतरयव म िनहत है। बा वःतुओं म सुख नहं है। वाःतवक सुख ूा करने हेतुअपने पूवज ने गंभीर िचंतन तथा आमानुभव के आधार पर कु छ मागदशक बातबताई ह। सवूथम एक तव िनत प से सामने रखते हए ु उहने कहा क जोमन अःवःथ और अःथर है, उसे सुख का अनुभव कभी नहं होगा। सुख ूाि केिलए मन का शांत, ःथर होना आवँयक है। मन क सतह पर उठनेवाली तरंग कोउठने से रोकना होगा। पानी पर जब तरंग उठती ह, लहर िनमाण होती ह, तब उसमहमारा चोहरा दखाई नहं देता। पानी क सतह पर जब कोई तरंग नहं उठती तबहम सब कु छ दखाई देता है। मन क भी यह ःथित है। मन के ःथर होने पर हअपना मूल प उसम दखाई देता है। मन यद अःथर हो तो सुख क अनुभूितअसंभव है। इसिलए ूथम मन को शांत करना आवँयक है।”“इस आधार पर हम वचार कर क उन ूगितशील देश म, जहाँ ःपधा, ईंया, ेषकटता ु तथा दसर ू के सुख को देखकर उपन होती शऽुता वमान है, या वहाँमनुंय का मन शांत और ःथर रह सकता है? ऐसी ःथित म वासनाओं कावारभाटा रोका नहं जा सकता? फर सुख कै से िमलेगा? इसिलए हम भारत मिशा द जाती है क दसरे ू का सुख-ऐय देख कर उसके बारे म मन म ईंया काभाव उपन न हो। उसका अिभनंदन करते हए ु हम अपनी ूगित का ूय कर।दसर ू को दःखी ु कर ःवयं सुखी बनने का वचार हमारे मन को अशांत बना देगा।शरर के सुख के िलए भौितक साममी जुटाते समय अय देश का अंधानुकरण करनाउिचत न होगा। साथ ह दसर ू के दःख ु म ःवतः का सुख ढँढ़ना ू भी गलत है। दसरे ूका दःख ु देखकर अपने मन म कणा उपन होनी चाहए, दःखी ु को सुखी बनाने का<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी284


ूय होना चाहए। ऐसा करने से एक वशेष संतु का अनूठा अनुभव और सुख तोूा होता ह है, कतु साथ ह सुख क िनःःतध अवःथा भी ूा होगी।ःपधामक जीवन म यह वशु सुख नहं िमल सकता।”‘ःवैर समाज’ तो सभी से हािनकारक है। िनयमवहन अवःथा का वणन तोहमारे पुराण म भी है। कतु पौराणक काल म ऐसा अनुभव हआ ु क िनयमहनतासे अनाचार-दराचार ु ह बढ़ा। इसीिलए ऐसा सोचा गया क िनयम बनाकर उन िनयमके अनुसार ह मनुंय को चलाना चाहए। ‘ःवैर समाज’ अनाचार को बढ़ावा देनेवालीऔर मनुंय को मनुंय का शऽु बनानेवाली है।“इसीिलए हमारे शा और पूवज ने बताया है क असीम उपभोग क लालसा औरउसके तुीकरण के िलए ःपधा या होड़ से सुख ूा नहं होता। इस के िलए जीवनम संयम क आवँयकता है। य और समाज के नाते भी संयम आवँयक है।समाज को संयिमत रखना आसान काम नहं है। इसके िलए अपने यहाँ चार पुषाथक कपना क गयी है। य और समाज क से संयमशील जीवन तथाकतय का वचार कया गया है। धम य और समाज का िनयंऽण करता है। धमारा िनयंऽत होने से ह अथ और काम क आराधना होती है और इसीिसए उपभोग,सा, धन, संप तथा ऐशो-आराम क साधना धम ारा ह िनयंऽत रहनी चाहएऔर यह िनयंऽण ूःथापत करते समय मो क कामना िनरंतर मन म रहने सेअपने को सुखमय ःवप क मूल अनुभूित होगी। इस कामना का अथ है, चौथापुषाथ मो। पहले और चौथे पुषाथ के िनयंऽण म ह हमारा जीवन यतीत हो।उपभोग के साधन इन दो पुषाथ के िनयंऽण म रहने चाहए। नद का पानी दोकनार के बीच से बहता है, इसी कारण हम उसका उपयोग कर पाते ह; और नदजब कनारे क मयादा को लाँघकर बहने लगती है तब वह ववंस का कारण बनतीहै। उसी ूकार उपभोग क नद का भी धम और मो दो कनार के बीच से बहनाह सुखकारक होगा। इसीिलए ूथम और चतुथ पुषाथ के बीच से बहनेवालीजीवनधारा िनत कर यगत तथा सामाजक जीवन से संबंिधत भौितक उपभोगका वचार करना चाहए। साथ ह उसके अनुसार सामाजक यवःथा होनी चाहए।”“यह कपना संपूण मानव जाित को सुख देनेवाली है। ःपधा से उपन अिनता पररोक लगाकर तथा भौितक सुख पर संयम का अंकु श रखते हए ु अंितम लआय क ओरयान के ित कर हमने अपना जीवन यतीत कया तो ह हम वाःतवक सुख के<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी285


धनी हो सकते ह। यगत तथा सामाजक जीवन म संतोष और सुख पाने का यहएक योय माग है। यह वचार यद हम माय है तो ह हम आज क परःथित मराीय ःवयंसेवक संघ का काय समूचे संसार के समुख रखने म समथ हो सक गे।”*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी286


२० महाूयाणठाणे का अयास वग सुचा प से चल रहा था। ौी गुजी ःवाःय ठक न होतेहए ु भी कायकताओं का मागदशन कर रहे थे। कायकता मंऽमुध होकर ौी गुजी कअमृतवाणी सुनते और चाहते क यह मेधावी ानूपात अपने मःतंक पर इसी करहबरसता रहे। कतु ौी गुजी क शाररक अःवःथता और पीड़ा का वचार मन मआते ह कायकताओं के दय दःख ु से भर जाते थे। वे मन ह मन ूाथना करते कौी गुजी को ःवाःयलाभ हो और देश को उनके मागदशन से लाभावत होने काभाय ूा हो। कतु इछा और इछाओं क पूित के बीच िनयित का अँय खेलचलता रहता है। इस खेल के िनयम मनुंय के िनयंऽण म नहं होते। ईरेछाबलीयसी! जो सय है उसे मानते, ःवीकारते हए ु मनुंय को सय क ओर ह चलनापड़ता है।ठाणे का अयासवग जब चल रहा था तब ौी गुजी ूितदन मुबई जाकर चाचाणालय म डप एस-रे का उपचार भी ले रहे थे। बैठक म बोलते समय ौी गुजीको गले म बहत ु पीड़ा होती थी। असहनीय दद होता था। वे जानते थे क उनके पाससमय कम और काम यादा है। इस धरती से उठने के पूव उह अिधकािधक वचारय करने का अवसर िमलना आवँयक है यह जानकर उहने शाररक वेदनाओं कोिनगलकर जो कहना था सो कह डाला। ठाणे का वग समा होने के पात ् द. ११तक वे मुबई म ह रहे।डप एस-रे के उपचार के परणामःवप ौी गुजी का गला भुँज सा गया था।बोलना और भोजन करना कठण हो गया था। डॉटर ने सलाह द क ौी गुजी‘मौन’ धारण कर। भला यह कै से संभव था? ौालु परिचत गण, कायकता अयःथान से आएँ तो उह बोलना पड़ता था। ौी गुजी भट करने हेतु आए कायकताओं,अयागत क पूछताछ करते थे। यह उनक पित थी। ऐसे समय वे अपनीयगत वेदनाओं क ओर दल ु कया करते थे। इसी कालखंड म तीन ूांत केूवास ःथिगत कर दये गये थे। बोल नहं पाते, िलख तो सकते ह। इस कारण ौीगुजी ने देश के कोने-कोने तक, दरदराज ू ःथान तक पहँचनेवाले ु अनिगनत पऽिलखे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी287


ौी गुजी ‘डॉ. मुंजे जम शताद सिमित’ के अय थे। ःवतः के हःतार मिलखे परपऽक भेज कर काय को ौी गुजी ने गित ूदान क। डॉ. मुंजे क मूित काअनावरण करने क ूाथना करनेवाला पऽ जनरल करआपा को भेजा।ःमारक सिमित म समिलत होने के िलए जन-जन लोग से ूाथना क गई थीउनम से एक ूमुख नाम ौी राजाजी का था। ौी राजाजी ने ूथम यह कहते हए ुइकार कर दया क धनसंमह के मामल म उनके अब तक के अनुभव बहत ु कटु रहेह। कं तु यह उह ौी गुजी का यगत पऽ दया गया यह उहने अपनीःवीकृ ित ूदान करते हए ु कहा क “यद ौी गोलवलकर उस सिमित म ह तो मुझेपूरा वास है क धन के ययाद क यवःथा उिचत ढंग से ह क जायेगी।” यहघटना ःवयं इतना कु छ कह जाती है क उसके वशेष महव को अलग से समझानेक कोई आवँयकता नहं।गले का क धीरे-धीरे कम हआ। ु भोजन भी बना वेदना के होने लगा। ःवाःय मगोचर इस सुधार को देखते ह ौी गुजी का मन ूवास करने के िलए तैयार होगया। वे ूसन हए ु , मान ूवास ह उनका जीवन हो!ौी गुजी ने एक बार वनोद म कहा था, “रेल का डबा ह मेरा पता और मेरे चारओर फै ला समाज ह मेरा घर है।” वनोद म कह बात भी उनके जीवन म सय काूतीक थीं। िनय ूवास, िनय जनसंपक तथा राषशहतकार उ-बोधन ह उनकाजीवनकाय था।ौी गुजी का ूवास पुनः ूारंभ हआ। ु द. २ दसंबर से १३ दसंबर तक ौी गुजीइदौर म पं. रामनारायण शाी के िनवास ःथान पर गुबंधु ौी अमूतानंदजीमहाराज के सहवास म रहे। वौाम कया। वौाम करते हए ु भी कौन सा काम जदसे िनबटाना है, ूारंभ कये गये काय म से कौन सा अभी अधूरा है इसका ौी गुजीने िचंतन कया। तपात ् नागपुर लौटकर डॉ. मुंजे क मूित के अनावरण समारोह मभाग िलया। जनरल करआपा के रवाना होते ह ौी गुजी कणावती म आयोजतिशवर के िलए चल पड़े। द. २ को ौेऽ ूचारक क बैठक के िलए वे वापस नागपुरआए। द. ८ के बाद महाकोशल, वदभ, हरयाणा, पंजाब, कनाटक, तिमलनाडु औरआी का ूवास तथा संघ के अितर अय कायबम को भलीभांित समा कर ौीगुजी द. २० फरवर के नागपुर लौटे।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी288


योजना के दसरे ू खंड म बंगाल, असम तथा बहार राय का ूवास िनत हआ ु था।बंगाल का ूवास समा होते ह ौी ूभुद जी ॄचार के आमह पर एक वशेषकायबम हेतु वे काशी गये। वह फागुन कृ ंण एकादशी का दन था। ौी गुजी काजम दवस। इसी िनिम अनेक ूमुख कायकता काशी म उपःथत थे। कायबम काःवप बड़ा ह मनभावन था। अपने नेता क वषगांठ! जसने अपने हाथ ःवयं काौाकम भी संपन कर डाला हो, उस िनमह क वषगांठ और वह भी ौी ूभुदजीॄचार और पं. राजेर शाी िवड़ जैसे दो ये. महान ् यव क उपःथितम। ौी गुजी के ःवाःय के बारे म तो सभी जानते थे। इस कारण वातावरण मगंभीरता के साथ ह भावुकता चरम सीमा पर थी। ौी गुजी ने ौी ूभुद जी तथापं. राजेर जी के चरण पर मःतक रख उनका आशीवाद महण कया। ौी माधवरावदेशमुख ने ौी गुजी के ःवाःय लाभ हेतु ियाग का आयोजन कया था। सभी काअनुरोध था क इस ियाग क समाि ौी गुजी ारा पूणाहित ु डाल कर हो। इसूेमामह का ौी गुजी ने आदर कया। लगभग दो घंटे तक ौी गुजी ारा पूणाहित ुविध संपन करवायी गयी।ौी गुजी को ऐसे कायबम म वशेष िच नहं रहती थी। ःःय के िलए ऐसेूयोजन संभवतः उह िनरथक लगते थे। कं तु कायकताओं क भावनातु के िलए वेमान जाया करते थे। मान भले ह जाते ह कतु मन को बाहर से अिल रखकर।इस समय ौी गुजी क िगरती हआ ु ःवाःय देखकर कायकता यिथत हए। ु ौीगुजी अगले ूवास के िलए चल पड़े। उह भला कौन रोकता? उह रोकने क श,साहस कसी म भी नहं था। ूवास दगम ु ूदेश म होने से कठन था। ौी गुजी मनह मन जान चुके थे क अब फर से ूवास व कायकताओं से भट शायद ह हो पाये!यह ूवास समा कर वे नागपुर आए। और लग गया ूवास को पूण वौाम! इसकेबाद नागपुर के बाहर उनके कदम नहं पड़े। कालपुष ने राँची म ह ौी गुजी कोआगाह कर दया था। इशारा िमल चुका था। साँस फू लने के कारण उह राँची ःटेशनपर डबे म ह वौाम करना पड़ा था। फरवर मास म बंगलूर म सावजिनक सभा मपूरे एक घंटे खड़े होकर उहने अंमेजी म भाषण दया था। यह जानते हए ु क यहमेरा अंितम ूवास है- उहने फोटो आद का भी कोई वरोध नहं कया।वदाई<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी289


नागपुर आते ह पुनः उपचार ूारंभ कये गए। वायुमंडल िचता से भर गया था। यहजानते हए ु भी क अब कोई लाभ नहं है, ौी गुजी कायकताओं क इछा का आदररखा। डॉटर इलाज को उहने मायता द। डॉ. ूफु ल देसाई क सलाह के अनुसारइंजेशन लगाये गये। १४ माच को ौी गुजी का अंितम ूवास समा हआ। ु उसीतरह उनका अंितम भाषण २५ माच को हआ। ु ूसंग था अखल भारतीय ूितिनिधसभा क बैठक का। ौी गुजी बैठकर ह बोले। सार श बटोर कर वे बोलने काूयास कर रहे थे। देखने, सुननेवाल से ौी गुजी क यह दशा देखी नहं जा रहथी। सारे ह अःवःथ, ःतंिभत और भाव वहल थे। ूायः सभी क आँख म आँसूथे। ौी गुजी ४० िमनट तक बोले। अपने इस अंितम भाषण म उपःथतकायकताओं को आःत करते हए ौी गुजी ने कहा,“संगठन क ःथित का हम अब और भी वचार करना पड़ेगा। विभन कायेऽजैसे- वाथ, राजनीित, मजदरू आद म अपने कायकता काय कर रहे ह। इन कायक रचना, संवधान, िनयम, यवहार आद िभन ूकार के ह, फर भी अपनाःवयंसेवक वहाँ संगठन क धारणा लेकर जाता है और उसे वहाँ ूःथापत करने काूय करता है। हम सभी को इस बात का वचार करना चाहए क इस ूकार कूय चेा वहाँ होती है या नहं।”“ये सब जो िभन-िभन काम ह, उन सबका उ एक ह है क यह देश अपना दै,यह समाज अपना है, यह रा अपना है तथा इस रा का ौे जीवन िनमाण करनेके िलए विभन ेऽ के ये सब काय ह। अपने सामने यह रा न हो तो बाक केयवहार से भला हम या करना है?”“कु छ लोग कहगे क यद हमने अपना हदू रा का वचार कहा तो सभी लोग उसेमानगे। परतु इस सय क उ-घोषणा को कु छ लोग आज मान या न मान उससेकु छ बगड़ता नहं। हमारा कोण ःप हो और उसके सबध म अपने मन कापूण वास हो तो आमहपूवक ूितपादन करने पर सच बात को लोग मानने लगजावगे। हम सभी का अनुभव है और मुझे भी ऐसा वास है क लोग मानते ह।”“साथ ह हम यान रखना चाहए क शाखा के बना हम िभन-िभन काय नहं करपायगे। जहाँ अपनी शाखा अछ ूकार से चलती है वहाँ पर कोई भी काय उठाया तोहम उसे िनयपूवक सफल कर सकते ह। अतः संघ शाखा के कायबम, उलक आचार<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी290


पित, ःवयंसेवक का यवहार, ःवयंसेवक का ःवभाव तथा उनका गुणोकष आदबात क ओर हम यान द और उनका ूसार तथा ढ़करण करने का एकाम िच सेूय कर।”“इतना यद हम करगे तो सब ेऽ म वजय ूा करगे और जतना यह कायसुढ़ता से चलेगा और उसे हम एक अतःकरण से करगे उतना अपने िलए सवदरूवजय ह वजय है।”इसी भाषण म ौी गुजी ने आगे कहा- वह दो वष बाद ह सामने आ गया। जब१९७५ म देश म आपाकाल लगाकर सभी नागरक के मूलािधकार को िनलबतकर, राीय ःवयंसेवक संघ पर भी ूितबध लगाकर देश म तानाशाह लाने काकु चब रचा गया था। ौी गुजी ारा कया गया मागदशन आगे क परःथितय मकै सा उपयोगी हआ ु - इससे ौी गुजी क दरदिशता ू यान म आती है। अपने भाषणम ौी गुजी ने कहा था-“आज देश म ऐसी परःथित िनमाण क जा रह है जसके अतगत कु छ मुठ भरसाधार ह और शेष सपूण समाज गुलाम बन कर रहे। मानव क ूिता का जोभाव रहना चाहए था वह अब कहाँ रहा है? वह तो गुलाम याने पालतू कु ा हआ ु जारहा है। उसके अदर कोई नैितकता नहं रह है। मार भी पड़ तो उस ःथित म रोटके िलए लार भी टपकायेगा।इस ःथित म मनुंय तथा रा क अःमता और चरऽ जागृत करने तथा रा कूिता को सब ूकार से अुण रखने म समथ समाज क संगठत श खड़ करनेका बहत ु बड़ा दाियव हमार ओर आया है। यह अपने काय के वःतार और ढ़करणसे ह संभव है।”इस भाषण के समा होते ह अनेक कायकता आँख म आँसू िलए ौी गुजी केिनकट आए। ौी गुजी उन के मन क अवःथा जानते थे, कतु हाःय-वनोद केसाथ बातचीत कर कायकताओं के आँसूओं से बोझल मन को शांत करने का हउनका ूयास रहा। संभवतः इसी बैठक के समय ौी गुजी ने ये कायकताओं कसलाह लेकर मा. बालासाहब देवरस का नाम सरसंघचालक के नाते िनत कयाहोगा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी291


द. २६ माच को ौी गुजी महाल कायालय के िनकट ःथत मोहते संघःथान परूाथना के िलए गए। वगत 33 वष म ौी गुजी बना ूाथना कए कभी रहे नहं।द. २६ माच क यह ूाथना अंितम ह िस हई। ु द. २७ से अपने कमरे के िनकटबनी छत पर खड़े होकर ह ूाथना करने को उह ववश होना पड़ा। द. २६ से तो वेःवतः के हाथ ःनान भी नहं कर पा रहे थे। द. ३ अूैल १९७३ को अमावस थी।इसके पूव द. २ को ौी गुजी ने ःवतः के हःतार म तीन पऽ िलखे और कायालयूमुख ौी. पांडुरंग ीरसागर जी के हाथ सप दये। ःवाःय कभी िगरता, कभी ठकरहता था। ौी गुजी दवाइयाँ लेते कतु उनका मन इन उपचार से परे था। अिलताक भावना से वे सब कु छ ःवीकार कर रहे थे, अय क मनःशांित व समाधान केिलए।कलका के ःवयंसेवक डॉ. सुजत धर पखवाड़े म एक बार ौी गुजी का ःवाःय-परण करने हेतु आया करते थे। द. २६ को ौी गुजी ने डॉ. सुजत धर से कहा,“इस शरर को टकाये रखने का ूय य करते हो? और कतने दन उसे रखपाओगे?” डॉ. धर भला या कहते? द. ३० को फर से एस-रे िनकाला गया। डॉ.धर को यह एस-रे िनदष लगा। सब क आशाएं पलवत हई। ु ौी गुजी भी बहत ुूसन दखाई दे रहे थे। कु छ दन बाद वे चलने लगे। कमरे म टहलने लगे। शररका संतुलन भी ठक था। कदम डगमगाते नहं थे। यह सुधार १९ मई तक टका रहा।ौी गुजी को फर से साँस फू लने का क होने लगा। डॉटर तथा वै क सेदवाइय क योजना उम थी, कतु ौी गुजी का शरर दवाइय का साथ नहं देरहा था। दवाइय का कोई असर दखाई नहं दे रहा था। संभवतः अंतःथ आमकचैतय अब शरर म बंद बनकर रहने के िलए उसुक नहं था।नागपुर का संघ िशा वग ूारंभ हो चुका था। देश म अयऽ भी वग चल रहे थे। ौीगुजी का वग म जाना असंभव था। इसी कारण वे िचतत थे। ःवयंसेवक से वेिमलना चाहते थे। अततः ऐसी योजना बनाई गयी क द. १६ से वग म तृतीय वषके िलए आए हए ु ःवयंसेवक ूातशः ौी गुजी से िमल। यह बैठक २०-२५ िमनटतक चला करती थी। परचय तथा ौी गुजी का पाँच िमिनट तक बोलना, यह बैठकका ःवप था। ौी गुजी अपने पाँच िमिनट के भाषण म ःवयंसेवक को जी जानसे, ढ़ता से संघकाय करने का भावभीना आवाहन कया करते। उनका ूयेक शदःवयंसेवक के दय को ःपश कर जाता था। द. २६ तक ौी गुजी को वशेष कनहं हआ। ु कतु बाद म पुनः साँस फू लने लगी।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी292


ुौी गुजी के ःवाःय के बारे म पूछताछ करने के िलए विभन ूात से संघ केकायकता तथा अय ेऽ म काय करनेवाले महानुभाव का आना ूारंभ हआ। ुअनिगनत लोग आते और अपना ौाभाव य करते। ौी गुजी का जनसंपकवशाल था। कतने परवार, कतने लोग, िगनती करना असंभव! ौी गुजी के बारे मजो ौाभाव सु था वह अब ूगट हो रहा था। संघ के बाहर भी अनेक वयातमायवर से उनका परचय था। इस सु ौा-सरःवती क धारा अब ँयमान होरह थी। ौी गुजी एक-दो वाय से अिधक बोल नहं पाते थे। सारा देश ौी गुजीके ःवाःय के संबंध म िचंितत था। न जाने कतने लोग ने य कये, मंदर मूाथनाएँ कं, जपजाप कये, ोत रखे। भावना एक ह थी, ौी गुजी हमारे बीचःवःथ हो कर रह, उनक ओजःवी वाणी का मागदशन सारे देश को ूा होता रहे।. ३१ मई को ौी गुजी क सांस भार चलने लगी। उनके मुँह से सूचक उ-गारिनकल ने लगे। रा सेवका सिमित क संचािलका वंदनीय मौसी के लकर ३ जून कोभट करने आ तब ौी गुजी ने उनसे कहा, “म अब पूण प से तैयार हँ। ू ” अथःप था। अब म ईर के बुलावे क बाट जोह रहा हँ ू, अपनी ओर से म तैयार बैठाहँ। ू इस के अितर इन शद का दसरा ू भाव और या हो सकता था?द. ४ जून का राऽ का समय। ौी बाबूराव चौथाईवाले मािलश के िलए तेल कबोतल लेकर आए। बोतल हाथ पर औंधाई कतु तेल न िगरा। बोतल म तेल ह नहंथा। ौी गुजी ने, जो यह ँय देख रहे थे, हँसते हए ु कहा, “तेल खम हआ? ठकह है। अब कल कौन तेल लगानेवाला है?” इसका गिभत अथ जानकर ौी चौथाईवालेचक गये। ौी गुजी उरािभमुख होकर कु स म बैठा करते। इस समय इनक कमलसी सुंदर आँख अधखुले फू ल सी, अधमीिलत दखाई देतीं। ईर के िनजधाम कायान करनेवाले योगी के समान वे दखाई देते।द. ४ को बःतर पर न सोते हए ु वे कु स पर ह बैठे रहे। शरर के कवच से मुहोने का दन उनक से िनत हो चुका था। ये शुल पंचमी द. ५ जून१९७३। ौी गुजी ने ूातःकाल ःनान कया। आसन पर बैठकर संया क। साँस लेनादभर ू होने के कारण डॉ. आबाजी थे ने ऑसीजन देने का ूयास कया। कतु ौीगुजी ने एक हाथ ऊपर करते हए ु कहा, “अरे आबा, आज घंट बज रह है। यह रहनेदो।” ौी आबाजी थे आवाक् रह गये। असमंजस म पड़े वे ौी गुजी का मानसरोवरसा शांत मुख मंडल िनहारते रहे। ौी गुजी ने अपने हाथ-पाँव के नाखून िनकाले।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी293


बाद म वे कु स पर बैठे, कतु इसके पूव ह हमेशा उनके साथ रहनेवाला कमंडलुउहने दा ओर रखा। ौी गुजी हमेशा यह कमंडलु बा ओर रखा करते थे। ूवासके िलए ूःथान करते समय ह वह दा ओर रखा जाता था। डॉ. थे जी को यहसंके त बहत ु वेदनादायक लगा। ौी गुजी को वेदना हो रह थी। वे बहत ु ह बेचैन थे।डॉ. थे जी के आधार से वे लघुशंका (पेशाब) के िलए गये। हाथ पाँव धोए। शायदउह लगा हो क भगवान के पास साफ सुथरा शरर लेकर ह जाना चाहए।डॉटर ने दोपहर को ह बतला दया था क ौी गुजी का ःवाःय िनयंऽण केबाहर हो गया है। सुधार होना कठन ह। ौी बालासाहब देवरस को संदेश भेजा गया।संया समय ौी गुजी को कु स म बैठाकर ह ूाथना करने के िलए कहा गया। ७-३० बजे चाय आई कतु ौी गुजी ने मना कर दया। रात को आठ बजे वे ौीबाबूराव चौथाईवाले का आधार लेते हए ु लघुशंका के िलए ःनानगृह म गए। हाथ पाँवधोकर ौी गुजी ने ११ बार कु ले भरे। वे लगातार कु ले भरते गए। यह देखकर ौीबाबूरावजी ने ौी गुजी के हाथ से पानी भरा लोटा लेकर बगल म रख दया औरउह उठाया। कतु लौटते समय एकाएक ौी गुजी ने अपनी गदन ौी बाबूरावजी केकं ध पर टका द। एक हाथ से उह आधार देते हए ु दसरे ू हाथ से बाबूरावजी नेदरवाजा खोला। ौी गुजी एक कदम भी आगे बढ़ा न सके । ौी गुजी क िनरंतरसेवा म रहनेवाले ौी वंणुपंत मुठाल ने यह देखा और वे दौड़कर ौी गुजी के पासआए। दोन ने उह उठाया और कु स पर बठा दया। आँख बंद, हलचल बंद, के वलमंद सनबया चालू।डॉ. थे दौड़ कर आए। अय डॉटर को फोन कये गए। डॉटर ने सलाह द, “अबकोई लाभ नहं हो सकता। उह शांत िच से बदा होने द।” धीरे-धीरे बया मंद,मंदतर होने लगी। मुिा ूसन दखाई द। रात के ९ बजकर ५ िमनट हए ह ु थे कएक ूदघ अंितम साँस बाहर िनकली। ौी गुजी क आमा देह के कारावास से मुहो गई थी।चार ओर कायकता थे। सभी क आँख म आँसुओं क बाढ़। इस बाढ़ को रोक पानासवथा असंभव था। कायकताओं ने ौी गुजी का पािथव शरर सीढ़य से नीचे लाकरएक बड़े कमरे म सावधानी से रखा।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी294


ौी गुजी अब अपने बीच नहं रहे, यह वाता तेज हवा क भाँित नागपुर नगर मफै ल गई। आकाशवाणी के ि ने ौी गुजी के देहात का दःखद ु समाचार ूमुखता सेूसारत कया। अब तो सारे देश म यह समाचार वदत हो चुका था। राऽ ९.३० बजेकायालय के बाहर भार भीड़ इकठा हई। ु जसे पता चलता वह दौड़ा आता अपनेूय नेता के अंितम दशन के िलए। बाहर के गाँव से हजार क संया म ःवयंसेवकआने लगे। द. ६ को नागपुर के महाल वभाग ःथत डॉ. हेडगेवार भवन के अहाते मशोकाकु ल, ौालु नागरक, ःवयंसेवक सह क संया म उपःथत थे। सभी मौन,गंभीर। अपने दःख ु को रोक पाना सभी को असंभव सा हो गया था। ौी बालासाहबदेवरस दोपहर को पहंचे। ु ौी गुजी को देखते ह वे कं ठ हो उठे। पुंपमाला अपणकरते समय तो वे बेकाबू होकर रो पड़े। ौी गुजी के पािथव शरर पर पुंपमालाओंका अंबार लग गया था। एक ओर गीता पाठ अखंड प से चल रहा था।ौी गुजी ारा ौी पांडुरंगपत ीरसागर को दये गये तीन पऽ सब के समुख खोलेगये। िलफाफे म बंद पऽ म अंकत ौी गुजी का भावव सभी को अंतमुख करताहआ ु ूगट होने लगा। वातावरण म नीरव शांित भर हई ु थी। एक पऽ म ौी गुजी नेसंघ के सरसंघचालक के नाते नेतृव का भार ौी बालासाहब देवरस के कं ध पर सपाथा। महारा ूात संघचालक ौी बाबासाहब िभडे ने यह पऽ दरू विनेपक परगंभीर आवाज म पढ़ा। अय दो पऽ ःवयं ौी बालासाहब देवरस ने पढ़कर सुनाए।एक पऽ म ौी गुजी ने आा द थी क उनका कोई ःमारक न बनाया जाय। औरदसरे ू पऽ म ौी गुजी ने अयंत वनॆता से भावभीने शद म, दोन हाथ जोड़करूाथना क थी, जसे सुनकर तो उपःथत जनसमुदाय का दय वहल हो उठा।आँख म आँसू भर गए। सह कं ठ से िससकय क कण विन िनकल पड़।या िलखा था ौी गुजी ने? असामाय होते हए ु भी एक सामाय य क भूिमकािनभाई थी। मा याचना क थी। ौी गुजी ने अित वनॆ भाव से िलखा था, “मुझसे जाने अनजाने म यद कसी के दय को ठेस पहँची ु हो, दःख ु हआ ु हो तो म हाथजोड़कर सबसे मा माँगता हँ। ू ” अपने भाव अिधक ःप करने हेतु ौी गुजी ने संततुकाराम का एक अभंग िलखा था:शेवटची वनवणी। संतजनी परसावीवसर तो न पड़ावा। माझा देवा तुहासी।।आता फार बोलो कायी। अवघे पायी वदत<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी295


तुका हणे पड़तो पाया। करा छाया कृ पेची।।भावाथ:-ौी तुकाराम महाराज अंितम समय म पंढरपुर म जाकर वठोबा के दशन करने मअसमथ थे। अतः पंढरपुर जा रहे संत से वे िनवेदन करते ह-अंितम ये ूाथना। संतजन सुने सभी।।वःमरण न हो मेरा। कह ूभु से सभी।।अिधक और या कहँ। ू वदत सभी ौीचरण म।।तुका कहे पैर पडूँ। रहँ ू सदा कृ पा क छाँह म।।भावाथ:-ह े संतगण, मेर यह अंितम वनती कृ पयाूभु तक पहँचाय ु क उह मेरा वःमरण न हो।अिधक या कहँ ू? सभी तो ौीचरण म वदत है।तुकाराम ूभुचरण म माथा ट ेककर कहता हैक तेर कृ पा क छाँह मुझ पर सदा बनी रहे।ौी बालासाहब देवरस का कं ठ यह अभंग पढ़ते-पढ़ते अव हो गया था। एक-एकशद वे कठनाई से पढ़ पा रहे थे। वनॆता तथा कण रस क यह परसीमा थी।इस समसार के अनेक महापुष अपने अहं को साथ ले चल बसे। कतु ौी गुजीका यह उदाहरण सादगी क अनुपम गाथा है। ‘म नहं, तू ौे’ यह वनॆ भाव इसपऽ से विनत हो रहा था।कायालय के बाहर खड़े सह ःवयंसेवक तथा नागरक क मानिसक अवःथा ौीबालासाहब देवरस के समान ह दःख से ओतूोत थी। महायाऽा क तैयार हो चुकथी। एक शक पर ौी गुजी का पािथव शरर रखा गया। नूतन सरसंघचालक ौीबालासाहब देवरस ारा पुंपमाना अपण करने के बाद महायाऽा ूारंभ हई। ु ौी<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी296


ूबालासाहब और ौी गुजी पर असीम ूेम करनेवाले सह कं ठ से दन क विनफू ट पड़।अंययाऽा रेशीमबाग क ओर चलने लगी। रामधुन, ‘भारत माता क जय’, ‘ौी गुजीअमर रह’ इन धीर गंभीर घोषणाओं से आकाश गूँज उठा। ौी गुजी के पािथव शररके पीछे अपार जनसागर उमड़ पड़ा था। सभी पैदल चल रहे थे, भार कदम से। ौीगुजी का पािथव देह वहन करनेवाला माऽ एक शक ह इस महायाऽा म था। तीनलाख से अिधक लोग इस महापुष को बदाई देने इस महायाऽा म समिलत हए ुथे। ५-४५ बजे िनकली यह महायाऽा ७-४५ को रेशीमबाग पहँची। ुसंघ के ूथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के ःमृितमंदर के समुख चंदन क िचतारची गयी थी। ौी गुजी का पािथव शरर चंदन क िचता पर रखा गया। पुणे के ौीवासुदेवराव गोलवलकर ने मंऽान द। चंदन क िचता से वालाएँ आकाश क ओरउठने लगीं। देखते ह देखते चंदन क भगवे रंग क लपट ने ौी गुजी के पािथवशरर को अपने अंक म लपेट िलया। िनरंतर ३३ वष तक संघकाय के िलए समपतएक दधीिच का देह साथ लेकर वालाएँ दयलोक म के शवधाम क ओर चल पड़।ःमृित मंदर भी इन लपट से आलोकत हो गया। डॉ, हेडगेवार जी क ूितमा कसाी से उनके चरण के पास जलती अन वालाओं म एक सिमधा बनकर ौीगुजी क आमा को िनत प से शांित िमली होगी।इस समय वातावरण शांत, गंभीर, शोकमन था। बीच-बीच म िससकय क आवाजसुनाई देती थीं। कु छ ह देर बाद भगवा वज फहराया गया। संघ क ूाथना अवकं ठ से कह गई। ‘भारत माता क जय’ क घोषणा हुई। शाखा वकर होने कआा। और अपने ूय नेता को अन के अधीन कर भार दय से ःवयंसेवक तथानागरक अपने-अपने घर क ओर लौटे।अब रेशीमबाग म दो चैतयपी महापुष थे। एक पू. डॉ. हेडगेवार ःमृितमंदर केऊपर भाग पर मूितप म बैठे हए ु और दसरे, चंदन क िचता पर सिमधा बन जलेदधीिच ौी गुजी पािथव देह के अवशेष के प म। डॉटरजी के मुख मंडल पर भावथा क मेरा चयन साथक हआ। ु मेधावी माधव ने संघ क गरमा वयापी बनायीऔर देश के िलए िनरपे याग कर ःवयं तवप हो गये।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी297


और संभवता ौी गुजी को भी ौी के शव के चरण को ःपश कर िनजधाम क ओरअमसर होने म समाधान ूा हआ ु होगा। िचता धू-धूकर जल रह थी। ूाथना केःवर अभी भी वातावरण म गूँज रहे थे।ऐसा लग रहा था मान ौी गुजी संघगीत क पं गा रहे ह –“माँ तेर पावन पूजा म, म के वल इतना कर पाया”।*<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी298


२१ बादल से िघरा सूयौी गुजी जब तक जीवत थे तब तक उनके यव को ववाद म घेरने कािनरतर ूयास होता रहा। वाःतव म उनका जीवन चरऽ इतना पारदश था क कोईभी उनके जीवन क खुली कताब को पढ़ सके । ौी गुजी के दय म राहत केअितर कु छ भी नहं था। सब कु छ राापण, ‘म नहं, तू ह’ भाव मन-दय मधारण कर वे कायरत रहे। कतु राजनीित या दलगत ःवाथ क से ह जनलोग ने ौी गुजी को देखा उह वे सांूदाियक, जाितवाद, ूितगामी, सा के भूखेया उपाती और हंसाचार दखाई दये। मुसलमान और ईसाइय के ेा तथा उनकेघोर वरोधी के प म उनक ूितमा िनमाण करने का भी भरसक ूयास कया गया।२१.१ हदव का जागितक दशनुू यह है क ौी गुजी के वचार म ववादाःपद मुे या तव कौन से थे? उनतव या वचार को ववादाःपद कसने बनाया? और आज यद उहं ववादाःपदवचार क धार पैनी हो गई हो, तो उसका या कारण हो सकता है? इस सभी ूके मुँहतोड़ जवाब काल ने दे दये ह। हम इन उर के मायम से यह अनुभव होगाक ौी गुजी के अथक परौम के फलःवप भारतवष म एक आवँयक परवतन होसका। इस पवतन को ूय म लाकर, उसम िनहत मौिलक वचार सुूितत करइस देश को उहने न होने से बचाया है। अपनी आयामक गुण संपदा, वा,ूखर बुमा, ओजःवी वृ व और अपनी समःत श दाँव पर लगाकर भारतीयमन संःकारत करने का जो काय ौी गुजी ने कया वह सवथा अतुलनीय है, बेजोड़है। उनके जीवन क हर हलचल इसी एकमेव उेँय से ूेरत रहा करती थी।पराधीनता के कालखंड म ॄटश से लड़ना ह एक ूमुख ूेरणा थी। इस ूेरणा केआवरण म कई बात छप ु जाती थीं। संपूण समाज के समुख एक ह शऽु (Onecommon enemy) था, अंमेज! इस कारण समाज म िनहत आंतरक भेद गोचरमहां हो पाते थे। कतु ःवाधीनता ूा होते ह एक जबरदःत ूवाह बह िनकला।यह ूवाह था हदुओं के अहदकरण ू का। यह ूवाह मतांतरण का नहं था कतुहदू होकर भी ःवतः को हदू मानने म लजाबोध क ूवृ का था। हदू तथाहदव ु से संबंिधत बात को ितरःकरणीय मानना, देश क अवनित के िलए हदूसंःकृ ित को दोष देना, पााय का अंधानुकरण करने क ूवृ को बढ़ावा देना,<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी299


ऊपर भेद को महव देकर एकाम हदव ु के अंतःथ सय सूऽ को नगय मानना,राजनीितक ःवाथ हेतु अहदू अपसंयक समाज का अमयाद अनुनय करना,संःकार क परंपरा का टटना ू आद तय से यह ूवाह बना था। आज भी यह ूवाहअःतव म है। कतु तब तो हदू या हदव ु ु से संबंिधत तव का उपहास करतेहए ु हदू होकर भी हदव ु को नकारने क ूवृ को ूिता ूा हई ु थी। ‘हर हरन हदन ु यवनः’ जैसी ऽशंकु अवःथा धारण कर हदव ु के ःवािभमान से युतहोने को पंथिनरपेता कहा जाने लगा था।हदू अःमता िछनविछन करने के इस वघातक काय म ईसाइ िमशनर,कयुिनःट ूचारक, समाजवाद के अिभिनवेशी पुरःकता, आधुिनक िशा ूा व-गण तथा सा के भूखे राजनीित िभन-िभन हेतुओं से एकऽत होकर हदव ु कावरोध करने म जुटे हए ु थे। दभाय ु से िनभय होकर देश क वशु राीयता का उ-घोष करनेवाला तथा अपनी ूाचीन हदू परंपरा क महानता को आमवास सेबतानेवाला अमणी नेता सावजिनक जीवन म वमान नहं था। संघ क याि काफसीिमत थी।ऐसी सवथा वपरत परःथितम ौी गुजी खंडत भारत के सामाजक जीवन के मंचपर ूगट हए। ु ौी गुजी ने इस अराीय ूवृ के ूवाह को न के वल रोका अपतुउसे हदव ु के ःवािभमान क दशा देने म वे सफल रहे। इस समय देश केअहदकरण ू , अराीयकरण और वघटनामक (de-Hindunisation, denationalisationand disintegration) ूवृय क अनथकार ूबया कायरत थी। ौीगुजी ूितपादत कया करते थे क इस वघटनामक अवःथा म देश न होजाएगा। ौी गुजी के ओजःवी ूितपादन म ूायः भावामक (Positive) अिभिनवेशूमुखता से रहा करता था। हदू परंपरा क गौरवशाली वशेषताएँ, आधुिनक जगत ्को भी दशाबोध कराने क मता, हदू जीवनादश क बेजोड़ उुंगता तथा भारतवषके वैक जीवनकाय (World Mission) के संबंध म जब वे तक संगत और ूभावकारववेचन कया करते तब सुननेवाले मंऽमुध हो जाते। ौी गुजी के भाषण म दयक टस के साथ ह ओजःवी वृ व, तक संगत तथा सभी वषय को ःपश करनेवालीगहन ान से भर जानकार तथा ठोस सबूत और ूजातंऽ से लेकर तानाशाह तकक वचारधाराओं का संपूण ान रहने के कारण उनके ूितपादन क ूभावोपादकताौोताओं को वचार करने के िलए बाय कर देती थी। ौी गुजी क वाणी ौोताओं मःवव क भावना जागृत करती थी।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी300


ौी गुजी ने रा के पुनथान का जो मंऽ नगर, माम तथा दगम ु पहाड़ घाटयम गुंजत कया वह िनत ह अमोघ था, असाधारण था। हताश हदू मन मचैतय का संचार करनेवाला था। आज ‘म हदू हँ ू’ इस ःवािभमानपूण अनुभूित सेूेरत लाख लोग जमु-दली से कोचीन-कयाकु मार तक आसानी से एकऽ आसकते ह, यह बात ौी गुजी के उस ूयास का ह परणाम है जसम उहनेअहदकरण ू का ूितकार कर हदव ु का वधायक ःवािभमान जागृत कया था।२१.२ सामाजक ववाद से परेआ-सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने जब कहा था क “यह अपना हदू रा है” तबलोग ने उह पागल कहा था। १९४७ म देश ॄटश क पराधीनता से मु होने केपात ् ःवतः को ये वचारक तथा शीषःथ नेता मानने वाल ने संघ क ‘हदूरा’ क भाषा को जाितवातक, सांूदाियक, ूितगामी, देश को तोड़ने एवं वभकरनेवाली तथा अंध पुनथानवाद बताकर घोर अपूचार कया गया। संघ को नकरने का ूयास भी कया गया। परंतु हदू रा क यह भाषा सय, रा कोजीवनश ूदान करनेवाली तथा देश का मःतक गव से उनत करनेवाली है, ऐसाहमत से कहनेवाल का एक ूचंड संगठत ःवप ौी गुजी ने अपने जीवनकाल मह आसेतुहमाचल िनमाण कर दखाया। इस काय क महा के वल शद म ूगटकरना शदश के िलए असंभव है। वह अवणनीय है। अखंड, अवरत ूवास कर देशके चपे-चपे म हदव ु का तेजःवी भाव के वल एक य ारा जागृत कया जानाअपने आप म एक अनोखा और एकमाऽ उदाहरण है। हदू साूदाियकता औरूितगािमता जैसे गालीसूचक शद ौी गुजी क महान ् कतृ वश के कारणिनरथक, बेतुका होकर ूित ूहार क तरह उहं पर उलटे पड़े जहने इन शद कोहदव ु को न करने हेतु ूेपत कया था।ौी गुजी का यव ववादाःपद बनानेवाल ने यह दखाने का ूय कया ौीगुजी जाितभेद, वणभेद तथा हदू समाज क पुरानी कालबा ढ़य औरकमकाड के कटर समथक ह, पुरःकता ह। ौी गुजी को सनातन धमािभिनवेश केफलःवप आधुिनक समाज रचना व समान आकांाओं का न तो ान है, नअनुभूित। आज भी अनेक लोग ौी गुजी ारा ूितपादत वधान को तोड़ मरोड़ करसंदभ-रहत प म ूःतुत करते दखाई देते ह। संघ पर आरोप-ूयारोप करते रहनाइन वरोिधय का कायबम है। कतु संघ एक ऐसी गद है जसे जतना दबाओंउतनी ह वह ऊँ ची उछलती है। सरकार ने तीन ूितबंध के कदम से संघ को न<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी301


करना चाहा कतु संघ क जड़ देशभ के अमृत म भीगी और मातृभूिम म गहरपैठ होने के कारण संघ का वृ न तो हआ ु नहं, कतु एक वशाल वटवृ बनगया। इस वटवृ को ढ़मूल करने का काय ौी गुजी ने ह कया यह अकायसय है।समाचार पऽ म जो धूल उड़ाई गयी उसम एकमाऽ हेतु यह िस करना था क ौीगुजी पुराण-मतवाद है और संघ उसी पुरानी वःमृत संःकृ ित को पुनः ःथापतकरना चाहता है। ौी गुजी का के वल इतना ह कहना था क मनुंय का मनोवान,इसक शाररक, बौक, भाविनक तथा आयामक आवँयकताओं तथा मानवजीवन के चरम लआय का अवधान रखकर ह हमारे पूवज ने अपने समाज क रचनाक थी। वह ूदघ काल तक चली। फलःवप भारत म अयंत ौे तथा सुसंःकृ तजीवन का िनमाण हआ। ु काल-अथात ् समय के साथ यद यह समाज रचना वकृ तबनी हो तो हम कालसंगत नई रचना िनमाण करनी होगी। इस नव-िनमाण कादाियव हमारा होगा। हम उसे िनभाना पड़ेगा। ‘युगानुकू ल’ इस शद का उपयोगउसके अवयाथ के साथ ह वे कया करते थे। वे कहा करते थे क भगव-गीता नेभी कमकाड के वषय म युगानुकू ल, बांितकार वचार ूगट कया है। अपने पूवजपर अकारण घृणाःपद आरोप करना वे उिचत नहं मानते थे। ौी गुजी पुराण-मतवाद अथात ् पुराने वचार का आमह रखनेवाले थे यह कहा गया। कतु ये सारेआरोप बेिसर-पैर के और तयहन थे। उहने एक बात आमहपूवक अवँय कह कजो नयी रचना हम समाजहत के िलए कायावत करनी हो उसका आधार परंपरा सेचल रहे जीवनमूय ह ताक मनुंय अखड आनंद तथा अंितम मो का लआय ूाकर सके ।२१.३ सवसमावेशक ठाणे के अयासवग म उहने समाजवाद, सायवाद, पूँजीवाद, ूजातंऽ आद वतमानवाद का वेषण कर अत म बताया था क हदू वचार ह मानव को सुख-समृपूण जीवन ूदान कर सकता है। अःपृँयता क कपना तो इमके मन कोःपश भी नहं कर पाती थी। ौी गुजी ने परपूण मानव क हदू कपना कोअयंत ूभावोपादक शद म आधुिनक जगत ् के सामने रखा। आयामक आधारपर मानव संबंध का वचार भारत क मानवता को ूद िचरंतन तथा महवपूण देनहै तथा वतमान जगत ् क समःया अय कहं भी उपाय से हल नहं हो सकती,<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी302


इस िसांत पर वे अडग थे, िनःशंक थे। हदू समाज म इसी मूलभूत ूेरणा कोजागृत करने म वे जीवनभर कायरत रहे।‘सब म एक ह आमा’ क अनुभूित करना ह जसके जीवनकाय क मंगल ूेरणा होवह भला कसी का ेष य करे? कसी का बुरा य चाहे? ौी गुजी के मन मके वल ूेम था, ेष नहं। ईसामसीह, मोहमद पैगंबर आद बाहर संूदाय िनमाताओंके वषय म वे अतीव आदर भाव से बोला करते थे। ौी गुजी क टका-टपणीउनके ववंसक, पशुवत, ् असहंणु और रावघातक ूवृ पर ह हआ ु करती थी।ूयात पऽकार डॉ. जीलानी तथा सरदार खुशवत िसंह के साथ हआ ु ौी गुजी कावातालाप सवपरिचत है। ‘मुःलम तथा बन ूॉलेम’ या ‘मायनारट ूॉलेम’ कोहल करने का उनका माग और सा को हिथयाने हेतु तुीकरण क नीितअपनानेवाल का माग, इनम मूलभूत अंतर था। खलाफत आंदोलन के समय से हजो चाटकारता ु क नीित अपनाई गई उसका दंपरणाम ु देशवभाजन के प म ूगटहआ। ु ौी गुजी का मानना था क देश के राीय अथात ् हदू जीवनूवाह म सबकोएकप होना चाहए।पं. जवाहरलाल नेह िमिौत संःकृ ित के पधर थे। उनका मानना था क भारत कसंःकृ ित को के वल हदू संःकृ ित कहने से सबके साथ लेकर चलना कठन होजाएगा। १९५७-५८ के कालखड म ौी नेह जी से भट होने पर वातालाप के समयगंगा के ूवाह का उदाहरण देते हए ु ौी गुजी ने कहा क गंगा के ूवाह म अनेकछोटे-छोटे ूवाह आकर िमल जाते ह कतु ूवाह गंगा का ह रहता है, उसका नामनहं बदलता। हदू संःकृ ित का एक वरा ूवाह है। उसम अनेक मत-मतांतर केूवाह समािन ह। उह हदू संःकृ ित से िभन नहं माना जा सकता। नेह जी केउदार मत क जड़ हदू संःकृ ित म ह है। ौी गुजी ने यह सार बात ूसनिचहो नेह जी से कह थीं। मतभेद के कारण ौी गुजी के मन म कटता ु लेशमाऽ भीनहं रहा करती थी। कायकताओं को इस भटवाता का ववरण देते समय ौी गुजी नेकहा था, “नेह जी शु हद बोलते ह। मुझे लग रहा था क कहं म उदू या अंमेजीशद का ूयोग न कर बैठँ। ू ” इस ूकार गुण को सराहने का उनका ःवभाव था।संघ हदू समाज का ह संगठन य है? इस ू का अनेक बार दया गया उनकाउर बहत ु ह मममाह है। ौी गुजी का उर है क पहले हम अपना घर ठक कर<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी303


ल यक वह हमार पहली आवँयकता है। अय लोग को शािमल करने का ूःवाभावक प से भवंय के वकास का (Evolution) है। ऐसा एक भी उदाहरणअपलध नहं है जब ौी गुजी के संबंध म आए ईसीई या मुःलम बंधुओं ने उहधमाध या फे नेटक कहकर अपनी नाराजी य क हो। उपासना पंथ क ववधतापर ौी गुजी ने कभी आेप नहं कया। इस से हदू ह वाःतवक प से‘सेयूलर’ है, इसी तय को वे सामने रखते। अय लोग उसी कोण को अपनाएँ,ऐसा ूितपादन वे हमेशा कया करते थे। मानवता क से सेवाकाय करते समयौी गुजी ने पांिथक पृथकता को सदैव याय माना। सेवाकाय का संबंध वःथापत,अकालपीड़त, बाढ़गःत, भूचाल-मःत. दनदखी ु या रोिगय से था, उपासना पंथ याजाित, धम को ूाथिमकता देकर सेवाकाय कया गया हो ऐसी एक भी घटना उ-घृतनहं क जा सकती। मानवता क सेवा का अथ, के वल मानवताक वशु धम-पंथरहत भावना से क गयी सेवा है, यह उनक भावना थी। संकटकालीन अवःथा मधम, पंथ देखकर सेवा करना अमानवीय होगा।डूबनेवाला हदू है या ईसाइ यामुसलमान, ऐसा न सोचकर वह मनुंय है, मानव है, यह सोचना आवँयक है। हदूसंःकृ ित क यह सीख है। ौी गुजी का मन सवाथ से हदू था। उनका चारयूय-मूितमंत हदू चारय था। ऐसे उुंग मनुंय को ःवाथ के िलए ववादाःपदिस करने का ूय भला कै से टक पाएगा?२१.४ समम हद ू जीवन-राीय अःमता के जागरण ारा देश का पुनथान करने का ौी गुजी के ूयासका िनरंतर वकृ तीकरण करने का काम ःवतः को मासवाद कहलानेवाले सांूदाियकलोग ने ह ूमुखता से कया। वैचारक तथा तावक ःतर पर इस जड़वाद संूदायक टका-टपणी करते समय ौी गुजी ने कभी दयाभाव नहं दशाया। तक काकठोर कु ठाराघात कर उह पराःत करने म वे संकोच नहं करते थे। इसका एकमहवपूण कारण है। अपने देश म इहवाद, समाजवाद या काँमेसवाद कहलानेवालेलोग भले ह रहे ह फर भी भारतीयता से सवथा वलग वचारदशन देने का दावाकसी ने नहं कया। उनका कायेऽ आिथक या परःथितजय कायपूित तक हमयादत था। ताकािलक उपाय सुझाने के अितर उनके पास कोई िचंतन नहं था।धम कम घर के बाहर मामल म दखल न दे इतना ह वे लोग कहा करते थे। ससे लायी गयी सायवाद वचारधारा अपनानेवाल का ऐसा दावा था क उनका वचारजागितक ःतर का है तथा सभी ूकार के सामाजक रोग का वह रामबाण-उपाय है।मासवाद एक संपूण जीवनदशन है। इस जीवन-दशन को मायता देने और अपनाने<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी304


का अथ था भारत ारा अयाम पर आधारत जीवनमूयका याग और मनुंय कएक आिथक ूाणी के प म मायता। मासवाद का िसांत भारतीय जीवनदशन केसवथा वपरत है। ौी गुजी का कहना था क रा को अय देश के लोग कागुलाम बनाकर परावलबी बनाने से यह हदू रा नहं रह पाएगा।धमवरोधी, जड़वाद, हंसाचार, तानाशाह का समथन करने वाला असहंणुमासवाद भारत के िलए कस तरह घातक हो सकता है और उसके कारण शातहदू वचार क कस तरह घुटन होगी, यह बात ौी गुजी अिधकारपूवक देश भर मबताया करते थे। उहने सायवाद का खोखलापन िस करते हए ु यह भी बताया कसायवाद क जमभूिम स म ह वह असफल िस हआ ु है और उसम से परःपरवरोधी ूवाह फू ट रहे ह।मानव के ःवभावधमानुसार सहिलयत ू देने के िलए अब कयुिनःट देश को बायहोना पड़ रहा है। राीयता का आधार वे भी छोड़ नहं पाए। राूेम ह कसी रा केसवागीण वकास का मूल आधार हो सकता है इस तय को अब स मे ःवीकारकया है। तीय महायु के समय जमनी ने स पर आबमण कया। स के पराःतहोने के लण ःप दखाई दे रहे थे। पर स अपने सैिनक तथा जनता म राचेतना उपन कर सका। अपनी पतृभूिम के िलए (Fatherland) कया हआ उसका ुआवाहन सफल रहा। ौी गुजी यह उदाहरण देकर कयुिनःट को िनर कर देतेथे। पर १९६२ म जब चीन का भारत पर आबमण हआ ु था तब पम बंगाल मकयुिनःट ने उसका परो ढ़ंग से ःवागत कया था।ौी गुजी सरकार और समाज को सावधान करने हेतु हमेशा कहा करते क अंतराीयेऽ म भारत को चाहए क वह कसी भी सा गुट म खींचे जाने से ःवतः कोबचाए। वे कहा करते क सायवाद तो अपने को स के खूँटे से बांधने क कोिशशकरेगा, इस कारण हम सावधानी बरतनी चाहए। साथ ह एक और सय वे सामनेरखते थे। समाज का ‘ौिमक ’ और ‘अय’ ऐसा संघषामक वगकरण हदू दशन केव है। ेष भावना उभाड़कर-भड़काकर सुख-शांितपूण समाज-रचना नहं हो सकती।संपूण समाज के सुख का या समाज के संपूण सुख का वचार वभ प म नहंूयुत संयु प म ह करना चाहए। ववधता को नकारना ठक नहं है। ववधताको मानते हए ु ूयेक य के िलए वकास का अवसर ूदान करनेवाला हदू<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी305


वचार ह ौे है, इस ूकार का मौिलक तथा समथ ूितपादन मासवाद कधजयाँ उड़ते समय ौी गुजी ने कया।मानना होगा क भारत म मासवाद को िनंूभ करने म ौी गुजी के तावक तथाराीयता पर आधारत वैचारक आबमण का योगदान महवपूण तथा मौिलक था।उनका कहना था क ूयेक य क जरत पूर ह, वषमता क खाई को पाटाजाय तथा अिनबध संचय करने पर रोक लगाई जाय। यह पृभूिम होने पर भी यदकयुिनःट ौी गुजी पर नाराज ह या उन पर आरोप-ूयारोप करते रह तो यहमानना पड़ेगा क उनका सोच कयुिनःट पोथीवाद से ऊपर नहं उठ सका।<strong>नवयुग</strong> ूवतक ौी गुजी306


२१.५ चुनाव के बारे म चेतावनीौी गुजी को ववादाःपद बनाने के िलए चुनाव को भी एक अ बनाया गया।ःवाधीनता ूा होते ह अपने संपूण जीवन पर चुनाव बुर तरह छा गये। राजनीितऔर सा ःपधा का रंग पूरे समाज पर चढ़ गया। चुहे तक राजनीित का ूवेश होगया। समाज़ का कोई अंग राजनीित से अछता ू नहं रहा। छोटे-छोटे देहात म भीराजनीित ने लोग के बीच म मतभेद क दवार खड़ कर दं। गाँव गुट म बँट गये।लोग आवँयकताओं क पूित के िलए सरकार का मुँह ताकने लगे। परणामतःःवयंूेरणा बमशः ीण होती गयी। कायकता और नेताओं क से तो ‘राजनीितिनरपे’ ऐसा कु छ बचा ह नहं। ‘सेवा’ भी मतसापे बनकर रह गयी। इसपरःथित के कारण संघ के समान बलशाली संगठन क सहायता ूा हो ऐसी इछाअनेक के मन म िनमाण हई। ु इस कालखंड म ौी गुजी ने संघ को राजनीित कदलदल से संपूणतः अलग रखा। राजनीित से अलग रहने के कारण ह संघ सुचा पसे टका रह सका और बढ़ता गया। संघ के आ सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी नेूारंभ से ह दो ूमुख सूऽ परहेज के प म अपनाए थे और कायकताओं तथा अयःवयंसेवक को इन सूऽ का कठोरता से पालन करने का आमह रखा था। ये दो सूऽथे हदू रा का ूखरता से ूितपादन तथा कसी भी परःथित म इस वषय केबारे म समझौता नहं करना और सा ःपधा और दैनंदन राजनीित से अलग रहना।ौी गुजी ने न के वल इन सूऽ को अबािधत रखा अपतु उनके समथन म समथभांयकार क भूिमका िनभाई। अनेक ने संघ और भारतीय जनसंघ का संबंध जोड़करदोन के एकप और परःपरपूरक होने का ूयपूवक ूचार कया। एकाध बारअखबार क सुखय म ऐसी खबर छापी ग क ौी गुजी चुनाव म खड़े हो रहे ह।कतु ौी गुजी ढ़ता से यह ूितपादन करते रहे क िनय परवतनशील दैिनकराजनीित से जुड़ा कोई भी संगठन रा िनमाण का शात काम नहं कर सकता।ूय जनसंघ के नेताओं को भी ौी गुजी ने सचेत करते हए ु कहा था क यद वेसोचते ह क संघ के ःवयंसेवक वालंटयर क तरह जनसंघ का काम करगे तो वेइस अपेा को अपने मन से िनकाल द। जो ःवयंसेवक अयाय ेऽ म कायरत हवे यह समझ ल क उनका यवहार संघ का वचार यान म रखकर ह हो।ौी गुजी का काय मूलतः रा पुनिनमाण का था। राजनीित और रा नविनमाताऐसा दहरा ु ःवप उनका कदाप नहं था। फलःवप िनभयता से सय बोलने, सयकटु होने पर भी देशहत के िलए उसे उजागर करने और समाज को योय मागदशन३०७


करने के िलए वे ःवतंऽ थे। ौी गुजी ने राजनीितक दबाव से समझौता कभी कयाह नहं। रा के िलए हािनकारक नीितय पर टका-टपणी करते समय तथा रा केहत म कोई पयाय सुझाते समय उहने काँमेस या जनसंघ, कयुिनःट मजदरूआंदोलन या भारतीय मजदरू संघ ऐसा वचार कभी मन म आने ह नहं दया। ःव.लाल बहादरु शाी जी जब के ि म गृहमंऽी थे, तब ौी गुजी क उनसे भट हई। ुइस मुलाकात के पूव शाी जी के समुख ूदशनकारय ने ‘हदओु जागो’ ऐसेबैनस दखाये थे। असम म हो रहे घुसपैठय के अवैध ूवेश के वरोध म हजारआंदोलनकारय ने यह ूदशन कया था। ःवाभावक प से असम का ू चचा मउपःथत हआ। ु शाीजी ने सरकार क ओर से अपनी अड़चने बताई। शाीजी काकहना था क असम म अवैध ूवेश करनेवाले मुसलमान घुसपैठये ःथानीयमुसलमान म घुलिमल जाते ह। फलतः उह खोज कर वापस भेजना कठन हो जाताहै। ौी गुजी ने इस अड़चन को दरू करने हेतु उपाय सुझाते हए ु कहा क असम केमूल नागरक को सूिचत कया जाय क जो इन घुसपैठय को आौय दगे उनसेसती से िनपटा जाएगा। शासन उह माफ नहं करेगा। यद वे न मान तो उहखदेड़ दया जाय। साथ ह उनसे मतदान का अिधकार छन िलया जाए। ौी गुजी नेशाी जी को सलाह तो द, कतु यह भी कहा क आप यह काम शायद नहं करसक गे यक कांमेस पाट के चुनाव गणत म हजम होनेवाली यह बात नहं है।आखर वह हआ। ु इस समःया क उमता िनरंतर बढ़ती ह गई। मुसलमान के िलएसमान नागरक कानून (कॉमन िसवल कोड) के संबंध म अपनी मतिभनता ौीगुजी ने ःप प से य क थी। उसी ूकार भारतीय मजदरू संघ के नेता सेबातचीत करते हए ु ौी गुजी ने ढ़तापूवक कहा था क “सामूहक सौदेबाजी खुलीराहजनी ह है (कलेटव बागिनंग इज़ हायवे राबर)”।ौी गुजी ने ःवतः को तथा संघ को राजनीित से अिल रखा। पृथकता से भरेभेदभाव के वचार को तिनक भी मन म न रखते हए ु एकरसता क भावना से राका वचार कया। इसी कारण राीय एकामता के दय सााकार से अनुूाणत हई ुसुवा श का वे िनमाण कर सके । जसे रा िनमाण करना है उसे सवूथम मनुंयक वचार करना पड़ता है, मनुंय को ॅ कर कु स हिथयाने का नहं! इसीिलए ौीगुजी ने आजीवन िनःःवाथ, चारय संपन, मातृभूिम क वशु भ सेअिभमंऽत तथा कयाणकार हदू-गुण से संपन मनुंय ःथान-ःथान पर िनमाणकरने हेतु भगीरथ ूय कया। हदू परंपरा म िनहत उदा वचार और भावनाओंको फू ल क तरह खलाया। साथ ह ःवाथ, भोगवाद क वासनाओं के कचड़ से बाहरआने का पुषाथ से भरा आवाहन कया, जजीवषा (जीना और वजय ूा करने कइछा) जागृत क। यद ऐसा न होता तो संघ के सैकड़ ूचारक, तन-मनधन अपण३०८


कर काय म जुटे गृहःथाौमी, ववध ेऽ म वधायक सेवाकाय करनेवाले गुणसंपनकायकता अपने देश को भला कै से ूा होते? िनराधार समाज आधार के िलए कसकामुँह ताकता?२१.६ वरोिधय के ूित भी स-भावअपने ःवाथपूण सा क राजनीित म ौी गुजी एक अड़ंगा ह, संघ कसी भीूलोभन का िशकार नहं होता, कोई आतंक या दहशत संघ के मन को नहं डराता,यह सब देखकर ौी गुजी तथा संघ को ववादाःपद िस करने का ूय िनहतःवाथवाले लोग कर तो आय क बात नहं है। यह कहना पड़ेगा क ौी गुजी केसमान महापुष के अंतःकरण म िनहत मातृभूिम क दयता तथा हदू आदशवादसे अनुूाणत आकाश सी वशालता उह ववादाःपद बनानेवाल को दख न सक यादखाई देते हए ु भी ःवाथवश इन लोग ने इस गुणसागर क अनदेखी क। मतभेदभले ह ह, फर भी ‘वयं पंचािधकं शतम’ ् ये इस महान ् जगमऽ क आमा के शदथे। गांधीजी क दभायपूण ु हया के पात ् संघ को न करने के िलए हंसक भावनासे संघ पर आबमण हआ ु तब ‘कसी भी परःथित म शांत रहो’ यह ौी गुजी काआदेश था। संघ पर लगा ूितबंध हटने के पात ् भी उहने कहा, ‘वे भी अपने हह। भूल जाओ। उह मा करो।’ रा पर बीते हर संकट क घड़ म ौी गुजीअमसर रहा करते थे। सहायता ूदान करने के िलए उनका हाथ सबसे पहले आगेरहा करता था।कतय भावना क ूबलता के कारण सेवा करने के िलए सदा तपर रहने क बात वेकहा करते थे। सेवा भी मूक, ढंढ़ोरा पीटकर या वापन बाजी करके नहं। कये हए ुयाग क कमत वसूल करने क बात भी नहं। इस संबंध म एक संःमरणीय ूसंगवािलयर म हआ। ुमई १९७२ क घटना है। ‘राीय सुरा मोचा’ नामक एक पुःतक ौी गुजी को भटक गयी। भारत-पाक यु के समय राीय ःवयंसेवक संघ के ःवयंसेवक ारा कएगए काय क जानकार इस पुःतक म संमहत क गयी थी। पुःतक के पने उलटकरौी गुजी ने कहा, “इस ूकार क पुःतक को म ःवीकार नहं कर सकता। यद कोईपुऽ अपनी माता क सेवा करने के पात ् कहे क म इस सबध म वापन देनाचाहता हँ ू, तो या यह उिचत होगा? ःवयंसेवक ने अपनी मातृभूिम क सेवा के िलएजो कु छ कया वह तो उनका ःवाभावक कतय था। फर ऐसी सेवा का ूचार३०९


कसिलए?” भारत वभाजन के समय तथा देश म समय-समय पर उपनसंकटकालीन अवःथाओं म संघ के ःवयंसेवक ने असीम याग कर अपना कतयिनभाया, बिलदान भी कया। सब को सहायता द। जाने माने उचपदःथ को भीसहायता पहँचाई। ु कतु इस सेवा से लाभ उठाने का ूय ौी गुजी ने कभी नहंकया। संघ ारा क गयी सेवा का मूयांकन कसी ने कया है या नहं इसक संघने कभी िचंता नहं क। सेना के अिधकारय ने संघ ारा क गई सेवा क सराहनाक। सेनािधकारय के पूछे जाने पर ौी गुजी ने उह बताया, “संघ ने जो कु छ भीकया वह के वल कबड खेलकर।” ौी गुजी का उर सादगी भरा था।हदव ू का रजनीित के िलए लाभ उठाने का वचार ौी गुजी ने कभी नहं कया।उनका मानना था क व हदू परष भी कसी राजनीितक दल से अपने को नजोड़े। सरदार वलभ भाई पटेल ने ौी गुजी व संघ को काँमेस म आने क ूाथनाक थी कतु ौी गुजी ने उसे नकार दया था।राीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक ौी गुजी और ःवाधीनता ूा होने के पात ्अखंड प से सा म रह काँमेस के बीच मैऽीपूण, खुले मन के सामंजःयपूण तथापरःपर पूरक संबंध नहं रहे, यह देश का सबसे बड़ा दभाय ु रहा। इसम एक हअपवाद था ौी लाल बहादरु शाी का, जो अप काल ह रहा।ौी शाी और ौी पटेल से ौी गुजी के सामंजःयपूण संबंध थे कं तु इसका अथ यहनहं था क उनम पूण मतैय था, बक यह मानना अिधक उिचत होगा क ौीगुजी क देशभ, सामाजक वचार का उदारकरण तथा भवंय म आनेवालेसंभावत संकट का पूवानुमान और रा को सचेत करने के उनके ूय म जोूामाणकता दखाई द उससे ौी. शाी तथा ौी पटेल ूभावत थे।१९४९ म संघ पर से लगा ूितबंध उठने के पात ् ौी गुजी ने जब ूवास कया तबवे िभन-िभन मत के अमणी महानुभाव या नेताओं से िमले। इनम थे डा.बाबासाहब आंबेडकर, ौी. गोपाल ःवामी अयंगार, ौी काका साहब गाडगील, डॉ. एम.के . दर और अय अनेक। सुख-दःख ु के ूसंग म पऽ यवहार करते समय मतभेदका वचार उनके मन म कभी उठा ह नहं। संघ ःवयंसेवक के परवार म कोईदःखद ु घटना होने पर ौी गुजी जस आमीयता से पऽ िलखा करते थे उसीआमीयता से ौी फरोज गाँधी क मृयु के पात ् स-भावना से भरा एक पऽ३१०


उहने पं. जवाहरलाल नेह को भी िलखा था। ौी गुजी जगमऽ थे, न के वलभावना से बक ूय कृ ित से भी।ौी गुजी क मत था क यद देशसेवा क ूामाणक भावना हो और मन शु तथासाफ हो तो सहकाय के िलए भूिमका उपलध हो सकती है। ूधानमंऽी पं. नेह नेसंघ वरोधी ूचार बहत ु कया और सा म आने के बाद ौीमती इंदरा गाँधी ने तोसंघ का वरोध करने म पं. नेह को भी पीछे छोड़ दया। ौीमती इदरा गाँधी अपनेपताजी से संघ वरोध म दो कदम आगे ह थीं। कतु ौी गुजी ने संयम नहंखोया। ःवािभमान और िनणय- ःवातंय गँवाकर साधारय से ौी गुजी कभी नहंबोले। १९४८ म संघ पर ूितबंध लगा था। इस ूितबंध से संबंिधत जो पऽ यवहारौी गुजी ने सरकार से कया था वह इस तय का साी है। कसी क झूठ ूशंसाकरना उनका ःवभाव नहं था। यप ौी गुजी क ूधानमंऽी ौीमती इंदरा गाँधी सेभट होने का संयोग कभी नहं आया फर भी इंदराजी के बारे म ौी गुजी हमेशाआदरभाव रखकर ह बोलते थे।१९७१ म यु के पात ् ौी गुजी ने ौीमती इंदरा गाँधी के वषय म एक उलेखकया था जो उनक उदारता तथा आदरयु भावना का ौे उदाहरण है। ूसंग था ४फरवर १९७३ का, जस दन ौी गुजी बंगलौर म आयोजत एक वशाल जनसभाको संबोिधत कर रहे थे। ौी गुजी ने, “हमार समाजवाद और पंथिनरपे ूधानमंऽी”ऐसा इंदराजी का उलेख कर आगे कहा, “उह और अय लोग को ऐसा कहना पड़ाक हमारे देश क पाँच हजार वष पुरानी परंपरा है और हम कसी क धमक के आगेझुकनेवाले नहं।” “हम भी तो यह कहते ह। संघ क सदःयता पुष तक ह मयादतहै कतु हमार ूधानमंऽी इंदराजी ने एकदम ऐसा कु छ कहा मान वे संघ क हएक घटक ह, सदःया ह। तापय, संघ जस भावना को जागृत करने का वगतअनेक वष से ूय कर रहा है उहं भावनाओं का ूगटकरण ूधानमंऽी ने कयाऔर इन वचार को सुनकर मुझे बहत ु आनंद हआ ु है।”मिास क एक महला का मत था क ौी गुजी य से नहं िमलते। उनसे बोलतेतक नहं। इस संबंध म बोलते समय ौी गुजी ने कहा, “उनका कहना ठक ह है।म न कसी ी से िमलता हँ ू और न बोलता हँ। ू यह वाःतवकता है। म बोलता हँ ू,िमलता हँ ू ी म अिभय होनेवाले मातृव से।” ऐसे वशु दय से सांःकृ ितकउथान के िलए कया गया आवाहन यद भारतीय जनमानस को छू जाय, उसे३११


संःकारत करे और हदू जीवन क ओर देखने का यताथ कोण ूा हो जाए तोया यह ःवाभावक नहं है?ौी गुजी जनसभाओं म बोलते थे और उनका शद ूभावोपादक रहा करता था।कतु रा जागरण का उनका मुय मायम राीय ःवयंसेवक संघ, उसके कायकताऔर ःवयंसेवक ह थे। संघ के अयास वग, संघ िशा वग तथा ःवयंसेवक केएकऽीकरण के अवसर पर ौी गुजी ारा दये गये भाषण वपुल ूमाण म उपलधह। इन भाषण म ूायः उन गुण का ववरण रहा करता है जो हर कसी ःवयंसेवकया कायकता म होने आवँयक ह। अपनी परंपरा म गुण को कस तरह महवपूणमाना गया है, इसका रोचक ववरण ौी गुजी कया करते थे। ौी गुजी का एक सूऽथा क कायकता यद गुण संपन ह तो काम सुचा प से हो सकता है।२१.७ स-गुण क उपासना कर‘राजनीितक’ या ‘ूितबयावाद’ हदू रहने म कोई अथ नहं है। हदू परंपरा ने जोगुण-संपदा भूषणाःपद व गौरवशाली मानी हैस उसे अपना कर वाःतवक प महदू बनने का ूय हम करना चाहए इस बात पर उनका आमह रहा करता था।ौी गुजी को संघ क जो ूितमा अपेत थी वह थी गुणसंपन ःवयंसेवक काूभावशाली संघ। ौी गुजी क मातृभूिम के संबंध म धारणा थी क वह सम पपरमेर और समःत स-गुण क जननी जगमाता है। वे हमेशा कहा करते थे कहर कायकता तो हद जीवनधारा ू के संबंध म ान होना चाहए। साथ ह यवशेष क से कायकता िनरहंकार, वनॆ, परौमी, िनभय, अय के सुख-दःख ुसे एकप होनेवाला, शरर से बलवान, सबके मन, दयको भानेवाला, तवपालन मढ़, वासपाऽ, ःनेह से परपूण, सचरऽ तथा नेतृव करने म पाऽता का धनीहोना चाहए। गुणसंपनता के बारे म यह उनक धारणा थी। अपनी ूाचीन परंपरा मसे उदाहरण देकर कथाएँ सुनाकर इन गुण का महव वे ःवयंसेवक को बताया करतेथे, उनके मन को संःकारत कया करते थे।ौी गुजी कहते थे क अपने भारत के हजारो वष के इितहास म जो असंय ौेपुष हो चुके ह उनक जीवन कथाओं म संःकार का समृ भडार है। बचपन सेऐसे चरऽ का वःतृत पठन होने से और ूयेक ूसंग का योय बोध महण करनेक तीआण बुमा रहने से इन कथाओं का भरपूर उपयोग ौी गुजी के भाषण मदेखा जाता था। ौी गुजी का वृ व ौोताओं क से िनराला अनुभव रहता था।३१२


उनक तक शुता, ओजःवता, भावनोकटता और उदा स-गुण के आवाहन कावलण संगम ौोताओं पर परणाम कर जाता था। लाविध लोग मऽमुध होकरराीय समःयाओं को ःपश करनेवाले और एक नयी ूदान करनेवाले अमोघवय का ौवण करते रहते।अब तो ौी गुजी को ववादाःपद िस करनेवाले शद हवा म वलीन हो गए ह।जन महान ् सय का िनभय ूितपादन ौी गुजी ने आजीवन कया वे आज नहं तोकल ूःथापत होते दखाई दगे, यह बात पथर क लकर क तरह ःप है। इसकेसाथ ह यह वास भी है क ौी गुजी का कृ ततापूण ःमरण भवंय म पीढ़ दरपीढ़ होता रहेगा।*३१३


२२ रा क ौांजिलौी गुजी के िनधन के पात ् उनके चरऽ एवं यव को उजागर करनेवाली ौाएवं ूशंसा क जो वषा हई ु - उससे यह बात ःप हो गई क उनके पािथव शरर केभःमीभूत होने के साथ ह इनक तेजःवता को आछादत कये हए ु वाद-ववाद केबादल हटकर उनका उवल चरऽ एवं राजीवन के िलए कया गया उनका योगदानपूर गरमा के साथ चमक उठा। ौी गुजी एक महान ् राीय दशन एवं जीवनोेँयके ूभावी ूवा थे। उनके यव के विभन पहलुओं को ूकट करनेवालेराजीवन के अनेक ूमुख सत, राजनैितक व अय नेताओं तथा समाचार पऽ केौासुमन बहत ु कु छ कह जाते ह। अपनी परपाट से हटकर संसद के दोन सदन नेसंसद के कसी भी सदन के सदःय न रहनेवाले ौी गुजी को ौाजिल अपत क।संत को सत क ौाजिलआचाय वनोबा भावे ने अपनी भावनाएँ य करते हए ु कहा क उनका कोणयापक, उदार और राीय था, वे हर चीज पर राीय से वचार करते थे। उनकाआयाम म अटट ू वास था, और सभी धम के िलए उनके दय म आदर भावथा। उनम संकणता लेश-माऽ नहं थी, वे हमेशा उच राीय वचार से काय करतेथे। वे इःलाम, मसीह आद धम को बड़े आदर क से देखते थे और यह अपेाकरते थे क भारत म कोई अलग न रह जाय।पुर के जग-गु शंकराचाय ःवामी िनरजन देव ितथ ने कहा क ौी गोलवलकरजी ने धमूाण भारत से गोहया के कलंक को िमटाने के िलए सदैव आगे रहकरूयास कया। हदू संगठन के वे आकांी थे तथा हम उनके इस महान ् लआय कपूित कर उनक आकांा को साकार प देना चाहए। काचीकाम कोट पीठ केशंकराचाय ःवामी जयेि सरःवती ने कहा क ौी गोलवलकर जी जीवन के अतमण तक हदू धम, हदू संःकृ ित तथा रा क सेवा के िलए अथक ूय करतेरहे। वे सफे द कपड़े म एक तपःवी संत थे। धमसंघ के संःथापक ःवामी करपाऽी जीने कहा क उनक उकृ राभ तथा समपत भाव से रा और समाज-सेवा केेऽ म कये गये काय ूेरणादायी रहगे।जैन संत आचाय तुलसी ने अपनी ौाजिल म कहा क उनम सबयता, संगठनश और भारतीय संःकृ ित का अनुराग था। वे समालोचक और गुणमाह दोन एकसाथ थे। वे राीय चरऽ पर बल देते थे। जैन आचाय मुिन सुशील कु मार जी ने३१४


गुजी को ‘संःकृ ित के महामानव’ के प म वणन करते हए ु कहा क आज देश जसकठन परःथित से गुजर रहा है उसम ौी गोलवलकर गुजी का रहना अयतआवँयक था। समूचा रा अपने देश और संःकृ ित के िलए क गई उनक सेवा केिलए सदैव ऋणी रहेगा।२२.१ नेताओं के ौासुमनरापित ौी वी.वी. िगर ने कहा क ौी गोलवलकर अपने ढंग से अयत िनापूवकआजीवन देश क सेवा करते रहे। वे धम म िना रखनेवाले य थे और उनमसंगठन क अपूव मता थी। लोकसभा अय ौी गुदयाल िसंह ढल ने कहा कौी गुजी अपने यव, वा एवं अपने येय के ूित अथाह िना के बल परजनजीवन म, वचारक के बीच ूमुख प से माने जाते थे। रायसभा अय तथाउपरापित ौी गोपालःवप पाठक ने कहा क ौी गुजी ने अपना सपूण जीवनरासेवा म लगाया। वे गहर धािमकता वाले य थे और हदू संःकृ ित औरसयता म सुधार के िलए उहने तलीन होकर काय कया। देश क ूधानमंऽी औरसदन क नेता ौीमती इदरा गांधी ने अपने भाव ूकट करते हए ु कहा, “जो सदनके सदःय नहं थे ऐसे एक ूितत य ौी गोलवलकर जी नहं रहे। वे वान ् थे,शशाली आःथावाले य थे। अपने ूभावी यव और वचार के ूित अटट ूिना के कारण राजीवन म उनका महवपूण ःथान था।”संगठन कांमेस के ौी ँयामनदन िमौ ने कहा क वे बड़े मनीषी थे, िचतक थे,तपःपूत थे। भारतीय वा-मय के बड़े ाता थे और मुझे ऐसा लगता है क वे बड़ेकमयोगी और आमानी थे। उनका चरऽ और यव ूेरणा का ोत था।सोशािलःट पाट के ौी समरगुहा ने कहा क वे देशभ थे और उहने राीय कायम देशभ, समपण और सेवा के भाव हजार तण म वगत ४० वष तक संचारतकए। समाजवाद नेता ौी एस.एम. जोशी ने कहा क ौी गोलवलकर के िनधन सेएक तपःवी क जीवन योित बुझ गयी।रामंऽी ौी जगजीवन राम ने कहा क भारत ने सरसंघचालक ौी गोलवलकर कमृयु से एक ऐसा नेता खो दया है जो संगठन क योयता रखता था तथा जसमराीय हत को लेकर क उठाने क मता थी। अकाली दल के नेता तथा जथेदारौी संतोष िसंह ने कहा क ौी गुजी एक महापुष थे। उनके जैसे य अमर होतेह। ौी गुजी के देहावसान से िसख सूदाय को भार ित हई ु है। उनके सामने३१५


खड़े होकर हदू-िसख का भेद-भाव खम हो जाता था। िशवसेना के ौी बाल ठाकरेने कहा क कसी जहाज का नायक क भाँित ौी गोलवलकर जी संघ को अनेकसंकट से कु शलतापूवक आगे बढ़ाते ह गये।मासवाद कयुिनःट पाट के कामरेड ौी तक रहमान ने कहा क यप मने ौीगुजी के दशन कभी नहं कये तथाप देश के उवल भवंय के उनके आदश मवास रखनेवालो म ौी गुजी क ूेरणाश को मने अनुभव कया है। पटना केएक कांमेसी नेता ौी हाफजुन कु रैशी ने कहा, “वे वाःतव म महापुष थे। दरू सेदेखनेवाले लोग उनके बारे म गलत धारणा बना लेते थे। वे साूदाियक नहं थे, वेमुःलम वरोधी भी नहं थे। मुःलम वरोध के नाम पर आज तक मुसलमान कोसंघ के नाम पर बरगलाया जाता रहा है। ौी गुजी समान अिधकार और धािमकःवतऽता के पधर थे।”राीय सेवका सिमित क संचािलका ौीमती मावशी के लकर ने कहा क भारत कहदविन ु श का मानबदु चला गया है, हदु रा क इससे अपरिमत ितहई ु है। भारतीय जनसंघ के अय ौी लालकृ ंण आडवाणी ने अौुपूरत ौाजिलअपत करते हए ु कहा क गुजी आधुिनक युग के ःवामी ववेकानद थे। जो महान ्व वशाल भारत के िनमाण के िलए ढ़संकप व िना के साथ ूयशील थे। देश केलाख युवक के िलए गुजी अटल देशभ और िनःःवाथ याग के ूेरणादायकूतीक थे। ौी अटलबहार वाजपेयी ने ौी गुजी को अपनी ौाजिल य करतेहए ु कहा क आमवःमृत हदू समाज को ःवव का सााकार कराके ौी गुजीने उसे संगठत, शशाली तथा आमवास से परपूण बनाने के राकाय के िलएअपने शरर का कण-कण और जीवन का ण-ण समपत कर दया। यह उनकअखड साधना तथा अतीय संगठन कु शलता का ह परणाम है क हदू समाजआज जागृत हो गया है और अपने ऊपर होनेवाले कसी भी आबमण का ूितकारकरने म सम है।पटना क शोक सभा म अपने उ-गार य करते हए ु लोकनायक ौी जयूकाशनारायण ने कहा क ौी गुजी आयामक वभूित थे। यह एक बड़ा बोध है क हमभारतीय ह, हमार हजार वष पुरानी परपरा है, भारत का िनमाण भारतीय आधारपर ह होगा। चाहे हम कतने ह माडन य न हो जायं, हम अमरक, ृ च, इंलश,जमन नहं कहला सकते, हम भारतीय ह रहगे। यह ‘बोध’ है राीयता का बोध, जसेसह नवयुवक म जगाया था पूय गुजी ने।३१६


२२.२ समाचार पऽ क ौाजिलदेशभर के अंमेजी व हद के ह नहं वरन ् विभन भाषा-भाषी पऽकार के भीलगभग इसी ूकार के वचार लेख व अमलेख ारा ूकट कये गये। उनम सेकितपय लेख म यह बात जर सामने आई थी क वे ौी गुजी के वचार से िभनमत रखते थे कतु राजीवन के िलए ौी गुजी के विभन ूकार के योगदान कउहने मु कठ से ूशंसा क थी।लखनऊ के दैिनक ‘पायिनयर’ ने िलखा क ौी गुजी का समपत जीवन था। ढ़देशभ ौी गुजी को संकु िचत अथवा साूदाियक कहना उनके साथ अयाय करनाहै। यह उनका ह िसात था क आबमण का सामना करने म समथ औरशशाली रा तब ह बन सकता है जब रा को एकसूऽ म गूँथा जाए।मायावती ःथत रामकृ ंण आौम के ‘ूबु भारत’ ने िलखा क ौी गुजी केदेहयाग के बाद उनके ूित ववाद समा होकर राख म िमल गया और उनकािनमल चरऽ उस राख म से उठकर दमक उठा। गोलवलकर जी का जीवन एक खुलाहआ ु मथ है जसे सभी पढ़ सकते ह। हो सकता है आप कई मु पर उनसे सहमतन ह परतु आज इसका कोई महव नहं रहा। महव इस बात का है क आज आपउनम एक ऐसे य और चरऽ का दशन कर रहे ह जो िनंकलंक, िनःवाथ औरिनभय रहा। वे अपने िलए नहं, पूणतः सबके िलए जए। भला ऐसी बात इस व मकतने लोग के िलए कह जा सकती है? इससे भी अिधक ौी गोलवलकर जी ने जोसबसे बड़ सेवा भारत और उसके लोग क क, वह है उनके ारा कया हआ ु वाणीऔर यवहार म उन वशेष मूय का संरण, जनक रा के अःतव और उसकेसुयवःथत वकास के िलए आवँयकता है। जबक जाने माने राजनीितक नेतागण,नद-योजनाओं, औोगीकरण, परवार-िनयोजन, जीवन-ःतर आद क बात कर रहथे, तब वे अनुशासन, श, िनभयता, चरऽ, िनःःवाथ सेना, गितशील देशभ किशा दे रहे थे जसके बना उपयु आधुिनक लआय भारत को उवल भवंयकदाप ूदान नहं कर सकते।वाराणसी के दैिनक ‘आज’ ने िलखा क राीय ःवयंसेवक संघ पर संकणसाूदाियकता का आरोप नहं लगाया जा सकता। संघ को सबय राजनीित से दरूरखने का ौेय ौी गोलवलकर के यव तथा रा-सेवा-संबंधी उच आदश को ह३१७


है। गुजी अपने बा और अतःःवप दोन य से ऋषतुय ूतीत हगे। जब वेहदू रा क चचा करते थे तब हदव ु क उनक धारणा ःवामी ववेकानद,ःवामी रामकृ ंण तथा ौी अरवद घोष क हदव ु क कपना से ओतूोत हआ ुकरती थी।ऽवेिम ् के मलयालम दैिनक मातृभूिम के अनुसार ौी गुजी का काय इस बात काूमाण है क के वल नारेबाजी से कहं अिधक ऊँ चे ःतर पर युवक को वःतृत उचसेवा के लआय क ओर ूेरत कया जा सकता है। जो उनक वचारधारा को ःवीकारनहं करते तथा उसक आलोचना करते ह, उह भी उनके जीवन क शुता, समपणभाव, लगन और ूामाणकता के सम नतमःतक होना पड़ता है।मलयालम पऽ मनोरमा दैिनक ने िलखा क ौी गुजी क मृयु से एक शशालीय भारतीय जीवन म काल के परदे के पीछे लु हो गया है। उहने अनुशासनबतथा सुढ़ नवयुवक क पंयाँ िनमाण कं।ऽवेिम के ह दैिनक मलयालम एसूेस के अनुसार ......... ‘सवसंग परयाग हिस और वनॆता ह उथान’ इस येय पर अवचल िना रखनेवाली अपने देश मएक परंपरा है। इस ऋष-परंपरा का यह भी ढ़ संकप है क राजसा ूा करने केःथान पर समाज-श को संगठत करके देश को आगे बढ़ाया जाना चाहए। वतमानआधुिनक युग म भी यह परंपरा आबाध गित से चल रह है यह बात राजा राममोहनराय, ौी रामकृ ंण देव, ःवामी ववेकानद, गांधी जी और ौी गोलवलकर जी केजीवन से ःप प से िस हो जाती है।रांची के सााहक ‘रांची एसूेस’ ने िलखा क आधुिनक काल म देश म गाँधी जीके बाद ौी गोलवलकर ह ऐसे य थे जनके यव व कृ ितव ने लाख लोगको ूभावत कया।मिास के दैिनक तिमल ‘दनमण’ के अनुसार उहने संघ ूमुख के नाते जो सेवाक वह अतीय है। ईर भ, राभ, याग भावना, अनुशासन का भाव भरनेतथा दखय ु का दखु दरू करने तथा समाज के जागक ूहर के नाते कतय दरहने का भाव जामत करने का जो काय उहने कया है वह अतुलनीय है। ककसााहक ने िलखा क गुजी अपने येय के िलए संघष करनेवाले महापुष थे तथाउसके िलए उहने अपना सवःव अपण कर दया था।३१८


मिास के द मेल ने िलखा क संःकार, मातृभूिम के ूित ूेम तथा ःवािभमान परउनका हदू रा आधारत था।हैदराबाद के दैिनक ‘द डेकन बािनकल’ ने िलखा क ‘ौी गोलवलकर जी के प मअनेक आदश एक साथ अिभय हए ु थे। उनम हदव ु अपने ौेतम प म ूकटहआ ु था। ःवामी ववेकानद के समान ह वे भारत क आमा क साकार मूित थे। वेसचे रावाद थे जो पााय मतवाद एवं ूेरणा के िलए वदेश क ओर नहं ताकतेथे।’बंगलौर के कनड़ दैिनक ‘ूजावाणी’ के अनुसार उनके ारा ूितपादत ‘हदू रा’संूदायवाचक नहं रावाचक था। उनक धारणा थी क भारत को अपनी मातृभूिममानकर उसक संःकृ ित, परंपराओं के ूित ौा, गौरव रखनेवाले सभी भारतीय हदूह।मणपाल, कनाटक के दैिनक ‘उदयवाणी’ ने िलखा क राधम हेतु संःकृ ित के िलएअपना जीवन ह समपत कर इस उेँय क पूित के िलए कसी भी याग के िलएूःतुत एक पीढ़ का िनमाणकर ईर के साथ ईर बने माधव सदािशव गोलवलकरमान शतादय म एक बार ूकािशत होनेवाली चेतना है। ऐस से रा जीवन धयहोता है, इितहास चमकता है।मुबई के दैिनक ‘टाईस ऑफ इडया’ के अनुसार ँमौुयु ौी गुजी अपनेजीवनकाल म जहाँ अपने लोख अनुयाियय के िलए हदव ु के ऽाता एवं ववेकानदके प म पूय थे वहाँ उनके असंय आलोचक उह हदव ु के तानाशाह के प मदेखते थे। फर भी इतना तो सय है क ौी गुजी एक श दूत थे जो ऐसा सशऔर संगठत भारत चाहते थे जो अपने उवल भूतकाल के गौरवबोध से यु औरअपनी ऐितहािसक अःमता को न खोते हए ु आगे बढ़ने हेतु तपर हो।मुबई के ह मराठ दैिनक ‘महारा टाईस’ के अनुसार गोलवलकर गुजी के पीछेतो संघ क श थी परंतु उसका राजनैितक सौदेबाजी करने के िलए उपयोग करनेक कपना उह ःवन म भी नहं आई। कांमेस म समिलत होने का सरदार पटेलका आवाहन गुजी ने वनॆतापूवक अःवीकार कर दया था। अपनी िना के ूितूामाणक रहकर आजीवन समाजसेवा करनेवाले य अब कहाँ ह?३१९


मुबई के सााहक ‘लज’ के अनुसार उनक वचार ूणाली पुनथानवाद थी याजातीयवाद, यह ववा वषय है परंतु जस एकाम भाव से उहने संघ का संगोपनकया उस पर कोई भी य आेप नहं कर सकता। उनका वैयक जीवनसयःत था तथा उनक संगठन मता अतीय थी। अपने येय पथ पर चलते हए ुउनके दय म आलःय नहं था, शद क कमजोर नहं थी तथा भौह पर थकाननहं थी। यह उिचत होगा क अयाय राजनैितक नेतागण उनके उदाहरण कोअपनाएँ जो पूणतया समपण भाव का रहा है।मुबई के लोकसा ने िलखा क राजसा का मोह छोड़ना बड़े-बड़े लोग के िलएअसभव है। इसिलए सा सपादन क ःपधा म कसी भी देश के दल और विभनरा रस लेते ह। सरसंघचालक ने सा से मुँह मोड़ िलया था और उसके अनुसारःवयं आचरण कर राीय ःवयंसेवक संघ के काय क दशा िनत क थी।मुबई के ह मािसक ‘मदर इडया’ के अनुसार यास, वामक, रामदास, तुकाराम,ववेकानद एवं हजार ऋषय के ढाँचे म यह यव ढला था।या ऐसे य क मृयु हो सकती है? नहं! अपने ितरोधान से उनक ःमृित सेअपने जीवन म हमारे दय म देवव का भाव जागृत होता है। ऐसे ऋष हमसे कभीअलग नहं होते। वे सदैव जीवत रहते ह तथा दन-ूितदन हमारे और िनकट आतेरहते ह। अय ऋषय के समान ह ौी गुजी भी सनातन हदू धम के ह पुऽ थे,जनका तादाय ौी परमेर के साथ है- और जनका शुभािशवाद इस पुरातन भूिमको सदैव ूा है। ऐसे य समय-समय पर हम उचादश क ूेरणा देने हेतु हमारेबीच आते रहते ह।पुणे के दैिनक ‘के सर’ के अनुसार भगवान ारा बताये गये आमा के भगवत ् ःवपको उहने रा क आमा से एकप और उसी सनातन रा के चरण पर अपनाशरर पुंप अपत कया। गंगा अंत म जाकर जस ूकार सागर म िमलती ह ठकउसी तरह उनक वशु कायगंगा जनसागर म समा गई और उससे एकाकार हो गई।पुणे के ह सााहक ‘माणूस’ के अनुसार सा से अिल रहकर राजसा पर अंकु शरखनेवाला यित वग है, ऐसी भारतीय क राजनीित तथा समाज रचना के संबंध मअित ूाचीन काल से चली आ रह अयंत ूय कपना रह है। यप इस कपना३२०


का अवाचीन काल म गांधीजी ने उ-घोष कया था तथाप उस कपना को साकारकरने हेतु कसी ने ूय क पराकाा क हो तो वे ौी गोलवलकर गुजी थे।सकाल पुणे ने िलखा क उनक कायिना, समाजहत क लगन, देशभ के वषयम उनके ूित भी संदेह नहं कर सकते ह। यागपूण और समपत जीवन काआदश उहने सामने रखा है। असाय रोग से जूझते हए ु भी उहने अपना कठोरोत अत तक िनभाया।अहमदाबाद के दैिनक ‘गुजरात समाचार’ के अनुसार ौी गोलवलकर जी के देहावसानसे देश ने रावाद का एक ूबल पुरःकता खो दया है। जनसा अहमदाबाद ने िलखाक मालवीय तथा ःवामी ववेकानद ने भारतीयव के वषय म जस ूकार केउपदेश दये थे उसी धरोहर क ौृ ंखला को चालू रखनेवाले तथा ःवदेशी औरभारतीयव के सबध म देश के वतमान नेताओं म वे ह अके ले एक योितधर थे।जयपुर क ‘राजःथान पऽका’ ने उनका उलेख ‘एक अ-भुत और ूखर यव’ केनाते से करते हए ु िलखा क उनका अपना एक दशन था और इस ूयास म उनकादेश क एक बड़ संया ने साथ दया। हदू रावाद का कटरता से वरोधकरनेवाले भी उनक वा के ूशंसक थे।जयपुर के नवयोत हेराड ने िलखा क कु छ राजनीितक दल ारा कये गयेअपूचार के ःथान पर ौी गुजी पाथक कटरवाद तथा अध जाितवाद से एकदमअलग थे। उहने जीवन पयत सनातन हदू धम क अमूय िनिधय के ूसार हेतुअथक परौम कया। उनक इछा थी क भारतवासी यह समझ क वे ऐसे नैितक,आयामक तथा धािमक परपराओं के उरािधकार ह जो सयताओं क सेसबसे पुरानी है।चंढगढ़ ःथत ‘द शयून’ के अनुसार ‘यद यव मनुंय के िलए पुंप क सुगंधके समान है तो ःवगय ौी गोलवलकर जी का यव िनत ह असामाय था।’दली के दैिनक ‘नवभारत टाइस’ के अनुसार ‘वगत दो वष के अंतगत सामाजक,सांःकृ ितक एवं राजनैितक से हमारे देश म ऐसे यय का उदय हआ ु हैजनक महयता का आभास पाने के िलए वरा शद जुड़ता है। गु गोलवलकरउहं वरा यय म से एक थे।’३२१


दली के इडयन एसूेस ने िलखा क वे भारतीय इितहास के ूगाढ़ अयेता थेतथा देश क उर तथा पमी सीमाओं क सुरा के सबध म अयत िचंिततरहते थे। वे उन इने-िगने यय म से थे जो भारत-वभाजन क कपना कोआमसात नहं कर सके । वे चाहते थे क भारत के मुसलमान भारत क मुयजीवनधारा से एकप हो जाय।पजाब के सर- जालंधर ने िलखा क संघ के काय म गुजी क आःथा का अनुमानइस बात से लगाया जा सकता है क देहात के पहले साढ़े सात बजे तक वह ःवयंको ःवःथ अनुभव कर रहे थे और उहने ःवयंसेवक के साथ दैिनक ूाथना भी क।सााहक दनमान ने िलखा क अपने जीवन म उहने इस बात का ूयास कया थाक हदू समाज म विभन पंथ के आचाय िमलकर एक रस समाज के िलएसवसमत माग तय कर।कलके के दैिनक समाग ने िलखा- “वःतुतः उनक मृयु से भारत ने एक महान ्नेता, उपदेा और पथदशक खो दया। ददू धम और संःकृ ित क रा के िलएउनक सेवाओं क बहत ु बड़ आवँयकता थी। राीयता के सजग ूहर के प म वेसदैव राीय भावनाओं को जगाने क चेा म संलन रहे।”समाज दैिनक, कटक का कथन था, “भारत का अतीव गौरवमय िचऽ आँख के सामनेरखकर वतमान परःथित म उसक जो ददशा ु हई ु है उससे उसे ऊपर उठाकर पुनःउस गौरवपूण ःथान पर ःथापत कराना, यह था उनके जीवन का महान ् ोत।......अभूतपूव संगठन-श होने के कारण िशवाजी के समान भारत को ढ़, बिल औरशशाली बनाने का ःवन उहने हमेशा अपने सामने रखा।”‘आलोक’ सााहक, गुवाहाट के अनुसार “आमवःमृत हदू समाज को जगाने केिलए उहने जागरण क जो अखड धारा ूवाहत क वह भारत म िचरकाल ूवाहतहोती रहेगी।”*३२२


२३ ःनेहल मागदशकराीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक के नाते ौी गुजी को जो सफलता ूा हई ुवह िनःसंदेह अलौकक है। कतु इस सफलता का िनत रहःय या है? या ौीगुजी का मेधावी, ओजपूण वृ व इस यश का मूल कारण है? या लोखभारतवासीय के अंतःकरण को ूभावत करने क मता रखनेवाला, महासागर कभाँित असीम और अथाह उनका ान भंडार? या उनके मुखमंडल पर आलोकतआयामतेज क आभा?गहराई से सोचने के पात ् हम इस तय का ान होता है क इन गुण म से एकया अनेक गुण धारण करनेवाले अनिगनत लोग समाज म वमान ह या भूतकाल महए ु ह। हदव ु का ःवािभमान रखनेवाले या हदू रा क भाषा बोलनेवाले भी बहत ुलोग थे। यह हदव ु का वचार कोई नयी खोज नहं थी। ौी गुजी म कौन सीबात थी जसके परणामःवप लोग उह जी-जान से चाहते थे, दय से ूेम करतेथे? इन सब ू का एक ह उर है जो आ सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार तथा ौीगुजी पर समान प से लागू होता है।२३.१ समाज के साथ एकरस, एकपएक वाय म यद कहा जाय तो ौी गुजी ने भारतभर ॅमण कर समाज के दयपर ःनेहामृत का िसंचन कया और इसी कारण उनके संपक म आए लोग ने उहूेम दया, उनके बारे म भभाव रखा, उह अपना ौाःथान बनाया। ौी गुजी केअय अलौकक गुण के कारण इसक शोभा और बढ़ गई, बस! ौी गुजी क मूलूवृ एकांतवास तथा यान-धारणा क ओर थी। हमालय क पहाड़य, गुफाओं कओर उनका अयाम ूवण मन आकषत हुआ करता था। अयाम के गूढ़तमवातावरण म रहकर यान-धारणा, योगाद बयाओं से आमा क मु का यगतप से उहने न के वल ूयास कया कतु यौिगक-आयामक श भी अजत कथी। कतु िनयित के गभ म माधव का नहं, अपतु संपूण हदू समाज और समःतव के भी उार का माग उनके मायम से ूदिशत होता था। इसी कारण डॉ.हेडगेवार जी के संपक म आते ह ौी गुजी ने यगत मु क ओर से पूणतःपीठ फे र ली।३२३


संघकाय के िलए अपना सवःवापण कर ौी गुजी ने संघकाय का ोत िलया था औरउसे देह शांत होने तक िनभाया। अब सम-समाज ह उनका भगवान बना, मातृभूिमआराय देवता बनी और संपक म आनेवाले ूयेक य को वे िचदंश के (ईर काअंश) प म देखने लगे, उसे सेवाभाजन मानने लगे। भ और साधना क सीढ़‘आमिनवेदन’ या ‘सवःव समपण’ वे पहले ह पार कर चुके थे। अब वह समपणमातृभूिम के चरण म हआ। ु आमिनवेदन होने पर भ भगवान से िभन नहंरहता। दोन एकरस, एक प हो जाते ह। अभेद िनमाण हो जाता है। ौी गुजीसमाज से अलग नहं रहे। उनका यव समाज म वलीन हो चुका था। एक बार‘धमयुग’ सााहक ने ौी गुजी से अपने हःतार यु येयवाय देने का अनुरोधकया। ौी गुजी ने उःफू त होकर के वल चार शद िलखे- ‘म नहं, तू ह!’ बस! चारशद म व कयाण का महामंऽ था! मनुंय जब ःवतः को पूणतः िमटाकर समाजसे एकरस, समरस हो जाता है, अहंकार सहत सभी यगत वकार न कर अपनेआराय येय से एक प हो जाता है तब वह आकाश के समक वशाल बनता है।वह ःवयं ह आकाश बन जाता है। इस मानिसकता म उसे ःवतः के िलए कोईअपेा शेष नहं रहती। वह ःवतः के िलए कु छ भी नहं चाहता। वह ईर का हकाम करता है। ःवाथ का लोप होने के कारण काम, बोधाद वकार क बिल वहनहं होता। िनभय िनवर बनने के फलःवप ूेम और कणा के वशाल अथाह सागरका प उस के अंतःकरण को ूा होता है।‘ःनेह झरे आगे, अर चले पीछे’ (पुढा ःनेह पाझरे, मागुता येती अरे) ऐसा इसअवःथा का वणन संत ानेर जी ने कया है। इसी अवःथा का ूययकार अनुभवौी गुजी के जीवन म आता है। एक बार ौी गुजी ने ःवतः के ूारंिभक जीवन केबारे म कहा था क उनम वा का अहंकार था। उनक वाणी भी बहत ु तीखी औरपैनी थी। वादववाद करते समय अनेक ूमाण देकर अपने ूितःपध को युवाद सेपराभूत करने म उह बहत ु आनंद आया करता था। कतु जब ौी गुजी डॉटर जीके समुख वनॆता से नतमःतक हए ु और एक कु शल संगठक के नाते येयिनडॉटर जी के अतीय गुण को िनकट से िनहारा तब उहने ःवतः के ःवभाव कोूयपूवक बदला। ‘ःवभावो दरतबमः ु ’ यह मत डॉटर जी ने झूठा िस कर दखायाथा। ौी गुजी ने भी इसी आदश को दहराया। ु ये दोन महापुष ःवतः के बारे मअयंत कठोर थे। अपनी देह क ओर उहने लाड़-यार और मोह से कभी देखा हनहं। शाररक यथा तथा ौम क कभी परवाह तक नहं क। शरर म बुखार होता,शरर थका हआ ु होता, कतु चुंक डॉटर जी संघकाय को ह ूाथिमकता देकर उसमइतने समरस हो जाया करते थे क शरर क ओर यान देने के िलए उनके पाससमय ह नहं रहता था। खून का पानी होते तक वे संघकाय म जुटे रहे। बुखार क३२४


बेहोशी म भी उनके मुँह से ‘संघ’ के , देश के बारे म ह शद िनकला करते थे। ःवयंौी गुजी इस के साी थे। इसी बम को ौी गुजी ने भी चरताथ कया। ौी गुजीने तो कै सर क शयबया के पात ् अपने शरर से संघ के ईरय काय के िलएिनुरता से काय करवाया। कतु अय के संबंध म ‘मृदिन ू कु सुमादप’ सा यवहारहआ ु करता। लाभ क अपेा न करते हए ु ूेम करना उनका ःथायी भाव था। ौीगुजी ने ूचंड लोक संमह कया इस ूेमभाव के सहारे और उह ःवतः के और संघके साथ बाँध रखा इसी वशु ूेम बंधन से। ूेम से संसार जीता जा सकता है, यहडॉटर जी और ौी गुजी ने िस कर दखाया है। वे लोग को ढाल सके यकउहने लोग के दय म ूवेश कर िलया था। तक और बु क सीमाओं को लाँघकर वे ूेम क िसावःथा को ूा कर सके थे, जसके सहारे एक-एक के दय मउहने ईर भाव, ौा तथा समःत सत ् शयां जागृत करने म सफलता पाई।इसिलए कहना पड़ता है क ौी गुजी ने लोग को जीता उह अपने अटट ू ःनेह सूऽम बांधकर। ौी गुजी ूितवष दो बार संपूण भारत का दौरा कया करते थे। यह बम33 वष तक अखंडप से चलता रहा। नये-नये लोग उनके संपक म आते और उनकेह होकर रह जाते थे। यगत भट और परचय पर उनका यान अिधक रहा करताथा। के वल भाषण देने या वादववाद करने से कसी को काय ूवृ करना संभव नहंयह वे जानते थे। मनुंय ूेम और संपक से गढ़ा जा सकता है। इसका जीता जागताआदश दय पर अिधकार करने क मता रखनेवाला उनका ःनेहपूंज यव था।ौी गुजी का यव एक आासक छाया थी जसम उनके ूेमभाजन लोग शातका अनुभव करते थे।ौी गुजी ने लगभग 75 बार कँमीर से कयाकु मार और मुबई से गुवाहाट तकूवास कया था। इस ूवास के समय अनेक लोग के घर उनका िनवास रहा। वे कभीआलीशान होटल म नहं रहे। जस घर म वे रहे वह उनका ह होकर रह जाता। ौीगुजी न कभी उस घर को भूलते, न ह घर वाले आबाल वृ उह। नह बचे उहअपना बुजुग मानते, उनके साथ खेलते थे। इतना वान, जसका ःवतः का कोईपरवार नहं, जो एक वशाल संगठन का नेता है, अपने बडपन को भुल कर बचके साथ खेलता है यह देख कर बड़ को सुखद आय लगता था। ऐसे अवसर परतावक चचा को कोई ःथान नहं रहता। सुख-दःख ु क चचा होने लगती। इस समयवाणी म मधुरता, खलाड़ वृ,कभी नटखटपन भी होता था। बहत ु मशहर ू मेहमानआए ह इस कारण घर म कोई तनाव, दबाव नहं रहता था। अपने कारण कसी कोअसुवधा न हो इसक ओर दतापूवक वे यान रखा करते थे। गरब क झपड़ औरधनवान का ूासाद उनके िलए एक से ह थे। दोन ःथान पर वे एक ह समभावना३२५


से रहे। जब वे ूःथान करते तब बड़ के चरण को छकर ु उनके आशीवाद क कामनाकरते। ऐसे अवसर पर बड़ क आँख म आँसू न छलक तो ह आय।ौी गुजी एक बार मयूदेश म नमदा के तट पर ःथत मोहपुरा नामक वनवासीदेहात म गए थे। उनके गुबंधु ौी अमूतानंद महाराज का वहाँ आौम था। आौम केनाम पर एक छोट सी कु टया थी। इस कु टया म ौी गुजी ठहरे थे। भोजन कासमय हआ। ु इदौर से पं. रामनारायण शाी जी भोजन के उमोम यंजन लाए थे।इसम मेवा-िमठाई भी थी। कतु अमूतानंद महाराज ने कहा क यहाँ मामवािसय काआितय ह ःवीकारना होगा। ौी गुजी ने इस सूचना को माय करते हए ु ौी शाीजी ारा लाए गए पदाथ वनवासी बंधुओं म बाँटने के िलए कहा। एक मामीण के घरभोजन के िलए एक पं म बैठे। आंगन गोबर से लीपा गया था, साफ सुथरा था।जमीन पर ह सब लोग बैठे। ौी गुजी बड़े ूेम से वनवासी बंधुओं ारा परोसा हआ ुसाधारण भोजन आनंदपूवक सेवन कर रहे थे, पल पर परोसे हए ु पदाथ क ूशंसाकर रहे थे। वदरु के घर खा-सूखा खाकर ौीकृ ंण और शबर ारा दये बेर खाकरराम जैसे तृ हए ु थे वैसे ह ौी गुजी भी हए। ु ौी गुजी जब उस गाँव से बदा हए ुतब सभी मामवािसय क आँख से वयोग के आँसू बह रहे थे।ौी गुजी क आमीयता ह वह वलण श थी जो सपक म आनेवाल के दयम ःनेह भाव जगा देती थी। यह आमीयता ह उनके अमयाद लोकसंमह का एकूभावी कतु सहज-साधारण मायम था, िनरा ःवदेशी, एकामता क ूयअनुभूित म से िस और दखावट भेद के ऊपर उठने क मता रखनेवाला।जबलपुर म ौी गुजी के एक िमऽ थे। वे सायवाद (कयुिनःट) दल म थे। कसीने ौी गुजी से पूछा, “आप इस सायवाद िमऽ के घर य िनवास करते ह?” ौीगुजी ने कहा “वह मेरा पुराना िमऽ है जब म संघ म नहं था और यह िमऽकयुिनःट नहं था। ःनेह के संबंध कभी भंग नहं करने चाहए। मनुंय म परवतनहो सकता है। य न हम आशा कर क एक दन मेरा यह िमऽ भी संघ के वचारका होगा?”२३.२ मतभेद होने पर भी मनभेद नहंौी गुजी का कहना रहता था क मतभेद रहे तो भी परःपर के संबंध म शऽुता काया कटता ु का भाव न रहे और वैसा ह उनका यवहार भी रहता था। एक बार लालकले के मैदान पर सरदार पटेल जयती समारोह क सभा थी। डॉ. राधाकृ ंणन ् सभा३२६


ु्के अय थे। सभा म ौी गुजी का भाषण हआ। ु अय वाओं म डॉ. राम मनोहरलोहया भी एक थे। कायबम समा होने पर डॉ. लोहया जी से उनक भट हई ु तबउह ौी गुजी ने दोन भुजाओं म समेट कर ःनेहपूण आिलंगन दया। फर दोन काःनेहयु संभाषण शु हआ। ु देखनेवाल को ऐसा लगा क दो जानी दोःत बहुत दनके बाद परःपर गले िमल रहे ह। “आप से िमलने क बहत ु दन क इछा आज पूरहो रह है” ऐसा कहकर और हाथ म हाथ डालकर दोन ने मागबमण कया। यह ँयदेखकर लोग को बहत ु आय लग रहा था यक सबको ात था क ौी गुजीऔर डॉ लोहया के वचार और मत परःपर िमलते नहं। कसी ने इस वषय म डॉ.लोहया को छेड़ा तब लोहया जी बोले, “ौी गुजी के संबंध म मने बकु ल गलतधारणा बना ली थी परतु आज उनसे ूय भट होने के पात ् मुझे बहत ु आनंद होरहा है।” करपाऽी जी महाराज का उदाहरण भी लणीय है। जब-जब महाराज से भटहोती थी तब उन काषायवधार संयासी को ौी गुजी साांग दडवत ् करते थे।ौी गुजी क यवहारनीित इस तरह भेद को लाँघकर दसर ू के दय म ूवेशकरनेवाली, ःनेहमयी, ूेम संबंध को ूाण से भी अिधक ूय माननेवाली थी। तवऔर यवहार उनके जीवन म एकप हो गए थे। ौी गुजी ने ‘वसुधैव कु टंबकम’ कभावना को अपने जीवन म चरताथ कया था। ूायः बड़े-बड़े नेता तव को मंथ तकह सीिमत कर देते ह, मानो उनका यगत जीवन से संबंध ह न हो। परंतु ौीगुजी क गणना उन नेताओं म होती है जो तव जए और तव से एकप होगये। तव के मूितमंत उदाहरण ःवयं बन गए।२३.३ परवार का ह भावएक बार एक दंपित ौी गुजी से भट करने आए। ौी गुजी ने उनके पुऽ केःवाःय के बारे म पूछताछ क और कहा, “उसका ऑपरेशन जमनी म हआ ु था ना?”यह सुनकर कसी ने उनसे पूछा, “आप इतनी छोट-छोट बात यान म कै से रख पातेह?” हम शायद कपना भी नहं कर पाएँगे ऐसा उर ौी गुजी ने दया। वे अपनीअ-भूत ःमरणश का बखान कर सकते थे। कतु नहं! ौी गुजी ने ःवाभावकसहजभाव से कहा, “मेरे परवार क ऐसी घटना भला म कै से भूल सकता हँ ू? चाहेजतनी पुरानी य न ह।” इस उर म िनहत, ‘मेरा परवार’ इन शद ने ौी गुजीके जीवन का, दय का यथाथ दशन करा दया। सुननेवाले णभर के िलए अंतमुखहो गए। हर परवार उनका था और वे उस परवार के । हर एक के साथ उनके संबंधूेमभाव से परपूण थे। यह ःनेह, ूेम अथाह था। इस ःनेह के महासागर म जात-३२७


पाँत, ूांत, भाषा, प, पंथ आद सारे भेद डूब जाते थे। के वल ःनेह के तेजःपुंजमोती सतह पर हाथ लगते! ौी गुजी के बारे म ौाभाव उपन हो जाता थाअनायास बना ूयास। ौी गुजी के जीवन का यह अंश इतना , आकषक औरबोधूद था क जो ान शद से िमलना असंभव है वह अनायास उनके आचरण सेिमल जाता था।ौी गुजी जहाँ भी िनवास करते उनके इद िगद यद कोई वीमार हो तो उसकपूछताछ वे अवँय करते थे। औषधोपचार के संबंध म भी वे जानकार ूा कयाकरते थे। ौी गुजी को होिमयोपैथी का अछा खासा ान था। कभी-कभार वेहोिमयोपैथी क दवा भी सुझाते थे। ौी गुजी जस मकान म ठहरते वहाँ ूसनतासे वातावरण भर जाता था। उनक हँसी मुथ रहा करती थीं। कं ठविन तो िसतारक ःवर लहरय जतनी ूभावकार थी। हाःय-वनोद के या कहने, वह एक ःवतंऽवषय है। वातावरण को ठहाके क हँसी से हलका-फु लका बनाना ौी गुजी क एकऔर वशेषता थी। ौी गुजी चाहते थे क ूयेक गाँव के संघचालक इस ममव कोअपनाएं और देख क संघ का काय कै से नहं बढ़ता। उनका आमवास था ककाय बढ़ेगा ह।ौी गुजी ने एक बार एक गाँव के सुूितत और वयोवृ सजन से संघचालक कापद ःवीकार करने क ूाथना क। वृ सजन ने पूछा, “संघचालक के नाते आपकमुझसे या अपेाएँ रहगी?”“आप कपना कजए क आप एक संयु परवार के ूमुख ह। आपके परवार मलड़के , लड़क, नाती, पोते ह, तो परवार ूमुख के नाते आप का कतय या कामया होगा?” ौी गुजी ने सहज भाव से उनसे ू पूछा।“म उनके पालन-पोषण क ओर यान दँगा ू ।” वृ ने कहा।“या आप उनसे आपस म झगड़ने दगे?” ौी गुजी का ू।“नहं, कदाप नहं। म उह आपस म झगड़ने नहं दँगा। ू ” वृ ने कहा।“अपने परवार के लड़के -लड़कयाँ पढ़ िलखकर बड़े ह, इस ओर आप यान दगे यानहं?” ौी गुजी ने पूछा।३२८


“अवँय। म उनके भवंय क िचंता कँ गा।” वृ सजन।“या आप इस ओर भी यान दगे क उनके जीवन म ःथैय ूा हो?” ौी गुजी काएक और ू।“जी हाँ, इस ओर भी म यान दँगा। ू ” वृ का उर।“आप के लड़के गुणवान ह, इस ओर भी आप यान दगे न?” ौी गुजी।“जी, यह मेरा कतय बनता है,” वृ ने उर म कहा।“संघ को आप अपना परवार ह समझ। आपको यह सब संघ के िलए करना होगा।”ौी गुजी ने अत म कहा।यह संवाद काफ कु छ कह जाता है। संघ के परवार के ूमुख के नाते कौन-सी नैितकजमेदारयाँ िनभानी पड़ती ह और इस संबंध म ौी गुजी क अपेाएं, मायताएँया थीं, इस बात का ान उपयु ूसंग से ःप है जाता है। संघ म अिधकार पदका अथ है जमेदार िनभाना। परवार को ूसन, सुखी और ूगितशील बनाना।यहाँ शाररक क और समय का हसाब नहं रखा जाता। आमयता व ःनेह सेमनुंय को जोड़ना और उह संःकारत करने के िलए ःवयं को चंदन सा िघसना,यह संघ काय है। जो सुख-दःख ु म भागीदार बनता है, वादववाद के झंझट म नपड़ते हए ु अपने द यवहार से लोग के दय जीतना जानता है, वह कायकता है।ौी गुजी ने अपने ःवतः के उदाहरण ारा सभी ू के उर दे रखे ह। ःवयंसेवकक पूछताछ करना, संदेश पहँचाना ु , समःयाओं का समाधान करना तो ौी गुजी काःवभाव था। समाज क भ, समाजपुष क सेवा, इन शद म ौी गुजी नेकतना अथ भर रखा था, यह बात हमारे यान म आती है। उनके मन मउपकारकता का भाव कभी नहं रहता था।गरब, दःखी ु पीड़त के प म भगवान अपने को सेवा का मौका देता है, इस अवसरका लाभ उठाते समय हम भगवान का ऋणी बनकर रहना चाहए यह रामकृ ंणपरमहंस ारा िसखाया हवा ु भाव ौी गुजी ने अपनाया था। िनयित ने ौी गुजी कयोजना शायद इसीिलए क थी क वे अपने आचरण का आदश ूःतुत करते हए ु३२९


अपने संगठत ूयास से धम जागृित कर और आधुिनक ान-वान को हजमकरते हए ु अयाम क नींव पर समथ भारत के िनमाण का अपना ःवन साकार करसक । ववेकानद के मान वे मूत ूितप थे। भारत के िनयत जीवन कतय का वहबोध, िनवकप से सगुण मूत ःवप क ओर मुड़ा हआ ु वह जीवन ूवाह, वहयोगाढ़ अवःथा, वह बु क धारणा श, वह वैराय,वह सादगी, वह ूसनता,तेजःवता, अमृत पुऽ को वह आवाहन! फक के वल इतना क ौी गुजी ने संयासीके भगवे व कभी नहं पहने तथा चतुथाौम दशानेवाला दसरा ू नाम भी धारण नहंकया यक संघ संयािसय का संगठन नहं है। वह तो संपूण समाज को हदूअःमता के सूऽ म गूँथ कर समगठत प म खड़ा करने क आकांा संजोनेवालाकाय है। वह सवःपश है।२३.४ अदय आमचेतनाौी गुजी म संकट को सहने क ू-लाद जैसी श थी, आम समपण था। येयके बारे म अनुभूितजय ौा थी। ‘उत, जामत, ूाय वरानबोधत’ यह पुषाथौी गुजी ने चरताथ कर दखाया था। ूयेक कायकता इस भावना से ूेरत होकरयद काय करे तो समप भगवान िनत प से ूसन होगा, यह वास ौीगुजी ने जगाया था। इस कारण ूितकू ल परःथित के नाम से रोना-धोना उहिनरथक लगता था। हम काम नहं करते इसिलए भगवान को दोषी ठहराना उहमहापाप लगता था। समाज ह बुरा है ऐसा यद कोई कहे तो वे कहा करते, “अरेभाई, इस समाज के िलए तुमसे कोई काम नहं होगा। जरा अंतमुख होकर देखो।”एक पऽ म ौी गुजी ने िलखा, “अनेक लोग से िमलते समय हम समाज कबुराईय दखाई दगी। कु छ अछ बात का भी दशन होगा। कतु बुर बात केकारण समाज से घृणा करनेवाला या सोच पाएगा क वह इसी समाज का एक अंगहै, घटक है? इस वाःतवकता को भूलने पर भला समाज बंधुओं के िलए दय मअपनव क भावना कै से रह पाएगी? साथ ह समाज क किमय और दोष काअमुभव करते समय भगवान को दोष देना कहाँ तक उिचत है? इसका वचार हमकरना होगा। इस ूवृ को याग कर हम ईर पर भरोसा रख यक वह हमसमाज सेवा क ूेरणा देता है। संपूण ौा से यह भाव दय म रखने पर ह हमिनदष काम कर सक गे।”३३०


ौी गुजी क जीवन संपूणतः आयामक थी। चार ओर क सृ म चैतय कादशन करनेवाली थी। उनक म ुि या तुछ कु छ भी नहं था। जन-जन बातसे अपना जीवन खड़ा होता है, उन-उन बात के ूित कृ तता क भावना उनम थीऔर यह कृ तता उनक कृ ित म य हआ ु करती थी। एक बार वे पंजाब के दौरे परथे, तब क घटना है। एक दन ूातः बाहर जाने के िलए वे अपने कमरे से िनकले।ःवयंसेवक उनक ूतीा म खड़े थे। ौी गुजी क चपल दरवाजे के बाहर थी।उहने चपल पैर म डालने के पहले उन चपल को दोन हाथ जोड़ कर नमःकारकया। ःवयंसेवक आय से देखने लगे। तब ौी गुजी ह बोले, “अरे, ये चपल यामेर रा नहं करती ह? बेचार ःवयं िघसती ह और मेर सेवा करती ह। म उनकेूित कृ त हँ। ू इसीिलए चपल पैर म डालने के पूव म उह नमःकार करता हँ। ू ”वःतुएँ छोट लगती ह, परतु उनका भी महव होता ह। जहाँ मामुली पादऽाण केसंबंध म ौी गुजी इतने कृ त थे, वहाँ अपना सारा जीवन चलानेवाले परमेर केआगे वह संपूण शरणागत हए ु ह तो उसम आय या? ूयेक घटना म वे ईरक इछा देखते थे। वह बात अूय हो तो भी परमेर क इछा अपने कयाण कह होनी चाहए, इस ौा म कभी भी दरार नहं पड़। इसका एक अयत उ-बोधकउदाहरण यहाँ उ-घृत करने योय है।२३.५ आमवेषण क चेनई क एक संःथा का कु छ काम विश अविध म संपन करने का दाियव ौीगुजी ने ःवीकार कया था। ौी गुजी ने ःथानीय कायकता ओं को उस काम केसंबंध म आवँयक सूचनाएँ दं और वे आगे के ूवास के िलए चल पड़े। आगे इससंःथा क ओर से ौी गुजी को पऽ भेजा गया क अविध समा हो चुक है परतुकाम कु छ नहं हआ ु है। ौी गुजी अपने वचन के पके थे। इसिलए उनक एकसंपूणतः वासाह ूितमा सवऽ िनमाण हई ु थी। लोग का अनुभव था क ौी गुजीदये हए ु वचन का पालन करते ह। उनके ूवास, बैठक , सभाएँ, मेल-िनलाप आदकायबम िनयोजत ःथान पर और समय पर होते थे। ौी गुजी समय पर पहँचगे ुया नहं, कायबम होगा क नहं, ऐसी शंका भी कसी के मन म नहं आती थी। यहसाय करने के िलए कई ूसंग पर ौी गुजी को कतनी दौड़धूप करनी पड़ती थीइसके कई उदाहरण ःथान-ःथान के कायकता बतला सक गे। कभी-कभी तो अयतूितकू ल वातावरण म कतने ह मील संकटापन माग से पैदल चलने का वबमउहने कया है। चार ओर ूोभ भड़क रहा हो या ूकृ ित ने रौि प धारण कयाहो, अितशय शांित से वे बोले ह और िनभयता से आगे बढ़े ह।३३१


ुइसिलए िनत कया हआ ु काम नहं हआ ु इसका ौी गुजी को दःख ु होना बलकु लःवाभावक था। उहने पूछताछ, जाँच पड़ताल क और उनके यान म आया कःथानीय कायकताओं ने इस काम के बारे म कु छ टालमटोल क है परतु उहने इससंःथा के ूमुख को जो पऽ िलखा उसम कायकताओं पर दोषारोपण कर ःवयं काबचाव नहं कया। उनका यह पऽ उनके चरऽ क ौेता दशानेवाला है। उहने िलखाक यह सच है क समय पर काम नहं हआ। ु इसके िलए माूाथ हँ। ू यह तोऔपचारकता हई। ु परतु उहने और िलखा क “मेरा वचन सच नहं हआ, इसम भीकोई ईर योजना रह होगी। शायद म कथनानुसार करता हँ ू, ऐसा अहंकार मेरे मनम िनमाण होने क संभावना परमेर को ूतीत हई ु होगी। इसिलए वह संभावनािनमूल करने के िलए यह लांछन परमेर ारा मुझे दया गया होगा।” अपने कसीअपयश क ओर इस से कतने नेता देख सक गे? जसे एक महान ् येय कसाधना करनी होती है उसको ःवाथ और अहंकार आद अवगुण के िशकार होने सेअयत सावधान रहना चाहए। वैसे ौी गुजी ःवयं सावधान थे और कायकताओंको-वशेषतः ूचारक को सावधान रखने का ूय बैठक, चचाओं और ूोर ाराकया करते थे। पऽ यवहार का भी उपयोग इस से उहने कया था।२३.६ संघ नेतृव क अभंग धारायह सच है क ौी गुजी ारा संघ के यासपीठ पर से यान-धारणा, यगतउपासना या धािमक कमकाड क बड़ाई नहं क गई। परतु यह भी सच है कराीय ःवयंसेवक संघ के काय को उहने एक ऐसी ौे और परपूण साधना के पम देखा जो मनुंय अपने को अपने यगत जीवन म भी सफलता क अंितम सीढ़तक पहँचा ु सकती है। उनका वास था क जो शाखा का काम तन-मन-धनपूवक,ःवतः को भूलकर करेगा उसे और अलग साधना करने क आवँयकता नहं है। उनकेमुख से सहज ःफू त उ-गार क “शाखा ह मेरा भगवान है” देवता के नाते मातृभूिमका उहने कया हआ ु भावपूण वणन या समप परमेर क िनंकाम औरिनःःवाथ भ क उनके ारा वणत महमा ौवण करने पर तो यह कपना सहजहोती है क संघकाय और अयाम को उहने कस ूकार एकप माना था।तृतीय सरसंघचालक ौी बालासाहब देवरस के ितरोधान के पात ् वचारवानकहलानेवाले कु छ लोग ने यह मत ूदशन कया क संघ संःथापक डॉ. हेडगेवार,तीय सरसंघचालक ौी गुजी और तृतीय सरसंघचालक ौी बालासाहब देवरस कभूिमकाओं म अंतर था। डॉटर जी का बल राजनीितक जागृित पर था तो ौी गुजी३३२


ारा संघ के वचार को आयामक रंग देने का ूय कया गया। ौी बालासाहब नेसामाजक एकता, समरसता का आमह ऐहक भूिमका पर से कया और उस दशा कओर संगठन को मोड़ना चाहा। परतु थोड़ा वचार कया तो दखाई देगा क इसूकार का ूितपादन वःतुःथित के संपूणतः वपरत है। वःतुःथित यह है कसंघकाय के राजनीितक, अयामस और सामाजक आयाम संघ के बकु ल ूारंभ सेह अिभूेत थे और वगत ७४ वष म संघ उससे कभी भी वचिलत नहं हआ है। ुौी गुजी के बारे म वचार करने पर ऐसा दखाई देता है क उनम से कसी भी अंगक उहने उपेा नहं क। १९४७ के पूव और बाद म भी ौी गुजी के सावजिनकभाषण म राीय नेताओं क राजनीितक नीितय क चचा हमेशा दखाई देती है।मुःलम तुीकरण, कँमीर का ू, ईशाय भारत का ईसाईकरण के ूय,रायकताओं ारा फू ट डालने के ूयास का पोषण, वःथापत क उपेा, युकालक नीितयाँ, संिधयाँ और समझौते, मातृभूिम के ूित भभाव का अभाव, चारयॅता, राजनीित क मूयहनता और असंःकृ तता आद क उहने हमेशा आलोचनाक है। राीय एकता और एकामता पु करने का ‘हदू’ वचार उहने अयतःपता से ूितपादत कया। राीय ःवव याने हदव ु और ःवतंऽता और रािनमाण का मेल उह अयत ूाणूय लगता था। समय-समय पर उनके पऽकारया संघ के बाहर के नेताओं और कायकताओं से हए ु ूोर पढ़ तो दखाई देता हैक उहने कतने ह राजनीितक ू के िनभक उर दये ह। अतराीय राजनीितया आिथक समःयाओं के बारे म भी उहने भांय कया है।वशेषतः डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने संघानुकू ल वचार के राजनीितक प ‘भारतीयजनसंघ’ को ःथापत करने का जब िनय कया तब संघ के कु छ अयत गुणवानकायकता उहने डॉ. ँयामाूसाद को दये। राजनीितक ेऽ म भी रावाद संघवचार का ूभाव िनणायक ःथित तक पहँचना ु चाहए, यह उनक इछा उहनेिछपाकर नहं रखी थी। परतु उनका ऐसा िनत मत था क के वल राजनीित केमायम से देश खड़ा नहं कया जा सकता। हदू रा को अपने सांःकृ ितक वैभव केसाथ पुनः जगत ् के गुःथान पर आढ़ होना हो तो जीवन के ूयेक ेऽ को हदूजीवनमूय का आवंकारक बनना होगा। सार नीितय और यवहार का समानमूय के अिधान पर पुनिनधारण होना चाहए। संघ क शाखाओं म जो संःकारदये जाते ह, उहं संःकार से संपूण समाजजीवन ूभावत होना चाहए।३३३


सामाजक और सेवाकाय के अंग क उपेा ौी गुजी ने बकु ल नहं क। कतने हसामाजक वचार और काय को उहने ूेरणा द। आज संघ क ूेरणा से जो अनेकसेवाकाय चलते ह, उनम से अिधकांश ौी गुजी के समय म ह उनक ूेरणा से हूारंभ हए ु ह। हम यह जानते ह क ौी गुजी ने व हदू परष, वािथ परष,भारतीय मजदरू संघ, वनवासी कयाणाौम, कु रोग िनवारण आद कतनी हसंःथाओं को ूेरणा द और उनका मागदशन कया। ये सारे काम आज बहत ु बढ़ गयेह। उनका वःतार भी हो रहा है।अयाम, धम और संःकृ ित तो संघकाय के येय का एक आवँयक अंग बकु लूथम दन से ह रहा है। संघ क ूिता और ूाथना दोन म ह इन उ काःप ूितबंब अपने को दखाई देता है। ‘वधायाःय धमःय संरणम’, ् ‘समुकषिनःौेयःयैकमुमम’ ् ये ूाथना क ह पंयाँ ह। ूिता म भी ‘हंदू धम, हदूसंःकृ ित और हदु समाज क रा कर हदू रा को ःवातय ूा करा देने कासंकप ूथम था जसके ःथान पर ‘हंदु रा का सवागीण वकास’ ये शद बाद मआये। यह बात सबको वदत है। इन सब शद ूयोग का आशय है क संघ को देशका राीय ःवातंय तो अिभूेत था ह परतु वह धम और संःकृ ित क रा सहतहो और ःवतंऽ देश ‘परम वैभवशाली’ हो यह उसे अभी था। सुसंगठत, समथ,ःनेहपूण और परौमशील समाजजीवन ह देश को परम लैभवशाली बना सकता है।उसके िलए राभ क ूबल ूेरणा जागृत रहनी चाहए।तापय यह है क अमुक सरसंघचालक ारा अमुक बात गौण मानी गयीं और अमुकबात को आगे बढ़या गया यह सोचने क पित ह समीचीन नहं। राजनीितक,सामाजक और सांःकृ ितक तीन अंग से राजीवन पु करनेवाला संघ-काय ूारंभ सेह रहा है और आज भी वैसा ह है।२३.७ कायमनता ह जीवनौी गुजी क अखंड कायमनता, उनक ूसनता, चैतय और हदू समाज के ूितअथाह ूेम बहत ु बार चमकारक लगता है। इस चमकार का थोड़ा सा ःपीकरणएक बार ौी गुजी ने ह दया। काशी क घटना है। वहाँ डॉ. पी. के . बैनज से ौीगुजी ने दाँत िनकलवाए थे। उसके बाद डॉ. बैनज ने ौी गुजी को कु छ दन तकसंपूण वौाम करने को कहा। ौी गुजी क देखभाल कर रहे कायकताओं को भीउहने सूचना द क ौी गुजी को पूण वौात िमले, इस ओर वे वशेष यान द।३३४


कायकताओं क भी मन से यह इछा थी क ौी गुजी को पूण वौाम िमले।इसिलए उहने दसरे ू दन से उनके सभी कायबम-बैठक , मेल-िमलाप, वातालापआद- बंद कर दये। कायकताओं ने ौी गुजी के पूण वौाम क पक यवःथाक, परतु उसका परणाम उटा ह हआ। ु दनभर के वौाम से ौी गुजी को राऽको आराम आना तो दरू रहा, जोर क खाँसी आने लगी और खाँसते-खाँसते राऽबीती। भोर होते-होते तो यह पीड़ा बहत ु बढ़ गयी। आसपास के कायकता गण िचंिततहो उठे। खांसी क पीड़ा रोकने के िलए या उपाय कया जाय यह उह सूझ नहं रहाथा। होनेवाले क भी उनसे देखे नहं जा रहे थे।उनक अवःथा असहाय होकर देखनेवाले कायकताओं को ौी गुजी ने कहा, “तुम सबलोग क जो इछा है उसका पालन म कर रहा हँ। ू ” ःवयंसेवक कु छ समझ नहंपाये। उह आँसी आ गयी। तब ौी गुजी ने ह कहा, “आपको मालूम नहं, यहशरर तो कभी का समा हो चुका है। इस ःथूल शरर म रोग के अलावा अय कु छभी नहं है। संघकाय बढ़ने क तीो इछा और काय का संकप, रात-दन ःवयंसेवकसे और कायकताओं से काय के वषय म बातचीत व कायबम म सहभागी होना हमेरा जीवन है। कायबम ह जीवन हो गया है। इस ूकार क दनचया ने ह मेरा यहपािथव शरर एकऽ बांध रखा है। परतु चूँक अब आपने मेरे ूित अपने ूेम केखाितर य न हो- सब कायबम बंद कर दये ह, कायकताओं से भट और उनसेवातालाप रोक दया है तो शरर अपनी ःवाभावक रोगजजर अवःथा क और लौटरहा है। यद मेरा ःवाःय आप चाहते ह तो ऐसी यवःथा कर क मेर ःवाभावकदनचया पुन शु हो जाय।”सब लोग ःतध होकर सुन रहे थे। ौी गुजी ारा कया गया यह रहःयो-घाटनसब के दय को छू गया। ौी गुजी को आराम देने के िलए या करना चाहए यहात हो गया था। तुरत सब िनबध दरू कर दये गये। ःवयंसेवक और कायकतापहले जैसे िमलने के िलए आने लगे। बैठक म रंग भरने लगा। ौी गुजी ःवयं हंसनेलगे और दसर ू को हँसाने लगे। खाँसी कहाँ गायब हो गयी इसका पता भी नहं चला।२३.८ वळादप कठोराण मृदिन कु सुमादपूतुकाराम महाराज ने वंणुदास का याने ईरचरण म संपूणतः शरणागत हए ु भका एक वशेष गुण बतलाते हए ु कहा है, “मोम से मुलायम हम वंणुदास कठन वळ३३५


को भेद सक ।” ौी गुजी के जीवन म यह गुण सदैव ूगट हआ ु है। ौी गुजी कमाताजी ताई बतलाती थीं, “मधु ूाथिमक चौथी का म पढ़ता था तब “के वढ़े बौयहे।” (कतनी बू रता है यह) कवता उसके पढ़ने म आयी। िशकार ारा व क हई ुपणी का, “णोणी उठे पर पड़े बापुड़” (बार-बार उठती है परतु बेचार िगरपड़ती है) इस ूकार अयत कणाजनक वणन कया गया था वह पढ़ते समय मधुके नेऽ से अवरल अौुधारा बहने लगती। इतना कोमल उसका अंतःकरण था।” परतु१९४२ म उहने गुहार लगायी क संघ के काम के िलए घर-बार छोड़कर ूचारक केनाते बाहर िनकल पड़ो। उसी वष संघ िशा वग म बोलते समय ौी गुजी भीअयंत कठोरता से बोले क “आय हॅव कम हु टेक िचसेन ृॉम द लॅस ऑफ देअरमदस।” उसका आशय यह था क माता-पता का मोह याग कर पुऽ को संघकाय मअपने आपको झक देना चाहए। वे घर-ार छोड़ कर देश के विभन भाग म जायइसके िलए म उह ूवृ करता हँ ू। इस ूकार बाहर िनकले हए ु कु छ पुऽ क माताएँरोयीं, ौी गुजी के पास अपने पुऽ क आंचल फै लाकर भीख माँगी। परतु, “बाबा रेघर लौट जाओ” ऐसा उहने कसी को नहं कहा। अपने बारे म भी वे ऐसे ह कठोरथे। वे अपना मन ढ़ कर णशयामःत माता को छोड़कर संघकाय के िलए ूवासपर जाते थे। ईर पर उहने सब कु छ सप दया था। परतु अंतःकरण का कोमलभाव अय के क देखकर जागृत हो जाता था।रािनमाण का काम मूलतः मनुंय को जुटाने, उह अनुशािसत करने, संःकार केसाँचे म ढ़ालने तथा राहत के िलए उह ूवृ करने का काम है। इस काय कोकरते समय ताकािलक लाभ तथा सःती या सामाय लोके षणा के पीछे भागम ्-भागकरने का मोह हम टालना पड़ता है। संघ एकामता से येय साधना कर सके इसीकारण ौी गुजी ने उसे सा क राजनीित से दरू रखा। उसी तरह ूलोभनकारआंदोलन क राजनीित से भी अिल रखा। ौी गुजी के जीवन-काल म संघ के ारादो ह आंदोलन छेड़े गये थे। ूितबंध के काल म सयामह का और १९५२ म गोहयािनरोध का। इनके अितर बाक काय म ःवयंसेवक ने समाज के नागरक के नातेभाग िलया था। वैसा करते समय न तो उहने संःथा का अिभिनवेश रखा और न हकसी ौेय क कामना क।२३.९ िनय-िनयिमत संःकार पर जोरताकािलक उेजना से संगठनामक काय सफल नहं हो सकता यक उेजना केसमा होते ह काय के ूय म िशिथलता पहले से कहं अिधक आ जाती है। काय३३६


क ओर से यान उचट जाता है और मन म वकप आने लगते ह। इसिलए जोरािनमाता या ‘नेशन बडर’ होता है उसे दर ू से सोचने क आवँयकता होती है।नैिमक काम के कारण िनय के काम को हािन न पहँचे ु , उसका महव गौण न हो,इसके िलए सतक ता बरतना आवँयक रहता है। संघ का पोषण और संवधन करतेसमय डॉटर जी ने यह सावधानी बरती थी और ौी गुजी ने उहं पदिचह परचलते हए ु संघ के पौधे को वटवृ क महानता ूदान क। मनुंय को ढालते समयउसम िमहत मता को धीरे-धीरे बढ़ना पड़ता है इसे वे जानते थे। वे ःवयंसेवक कोबताया करते थे क उसाह व जोश म एकदम बहत ु बड़े काय कर दखाने क भाषायथ है। उसी ूकार समय आने पर हम यह कर दखाएंगे यह उ भी खोखली हहोती है।सवूथम हम छोट-छोट और साधारण बात को ठक ढंग से करने क आदत डाल।शाररक िशा देनेवाले कायकताओं से ौी गुजी ने कहा था क ूयेक ःवयंसेवक‘द’, ‘आरम’ और ‘ःवःथ’ इन आाओं का सह ढंग से पालन कर रहा हैस ऐसीःथित यद वषभर म िनमाण हो सक तो उनके िलए बड़ उपलध होगी। ौी गुजीहर बात क ओर बहुत बारक से यान देते थे। समय का बंधन, भोजन करते समयथाली म शेष कु छ न रहे, साफ सुथरा भारतीय पोशाक, ूित दन संघ क ूाथनाकरना, िनयोजत समय पर भाषण समा करना, सपुष और बुजुग को चरण ःपशकर ूणाम करना, ूा पऽ के उर अवलंब देना आद िनयजीवन क साधारणदखनेवाली बात .द हम सुचा प से, िना से आचरण म लाव तो इहं छोटबात म भवंय के बड़े काय क सफलता के बीज हम दखाई दगे, ऐसा उनकामानना था।इहं िनयम के पोषण से आदर भाव तथा शद म ूभाव उपन हो सकता है। ौीगुजी ने इन सभी िनयम का ढ़ता से पालन कर अपने यव को उनत बनायाथा यह हम जानते ह। बड़ जमेदारयाँ हमेशा नहं िनभानी पड़तीं। कभी कभार ऐसेूसंग आते ह। कतु उह ठक ढंग से िनभाने क तैयार िनयकाय क आदत याअयास से होती रहती है। िनय के अयास से ूा मता और श अचानक बड़ाकाय सामने आने पर कम नहं पड़ती। ौी गुजी इस आचार-संहता के बारे म बहत ुआमह भूिमका रखा करते थे। उनका यगत जीवन इस आदश का दपण है, ऐसाकहना ह उिचत होगा ! समथ रामदास ःवामी ने, जो छऽपित िशवाजी महाराज केगु थे, कहा है, ‘जो जैसा बोलता है वैसा ह यद आचरण करता है तो उसी के शदको समाज म मायता ूा होती है’। अथात ् ‘कथनी और करनी’ म जब एकपता३३७


ूगट होती है, उनम अंतर दशानेवाली रेखा भी दखाई नहं देती तब समाज के िलएवह य आदरणीय बन जाती है।२३.१० जगमऽौी गुजी क इस तरह क िनमल, ःनेहभर वशाल जीवन होने से चार ओर कपरःथित और मनुंयमाऽ म जो कु छ उह समाजहत क से अछा लगा उसेआमसात ् करते गए। इसके िलए वे सदा ह तपर रहा करते थे। कसी विशमनुंय के गुण के बारे म उनका भांय बहत ु ह मममाह रहा करता था। आय कबात यह है क कसी महापुष के अनुयायी भी इतनी मािमकता से अपने मागदशकके गुण को नहं जानते हगे। महामा गांधी जी का ह उदाहरण लीजए। गांधीजी सेौी गुजी अनेक बार िमले थे। देश वभाजन के भयानक वातावरण म ःवयंसेवक केसामने महामा गांधीजी का भाषण भी हआ ु था। एक बार ूाथना समा होने केपात गांधीजी ने ौी गुजी का सराहना करनेवाले शद म उलेख कया था। ौीगुजी को गांधीजी के गुण क अछ जानकार थी। राजनीित के मंच से ूचारकरनेवाले रहा करते थे क संघ गांधीजी का ेष करता है। १९४८ म तो गांधीजी हयाके षयंऽ म संघ के शािमल होने के आरोप म ौी गुजी को बंद बना िलया गयाथा। अत म सरकार को यह आरोप वापस लेना पड़ा था। आ सरसंघचालक डॉ.हेडगेवार जी के मन म गांधीजी के ूित कोई ूितकू ल या ेष भाव नहं था महामागांधी ारा ूेरत आंदोलन म वे दो बार भाग ले चुके थे।खलाफत आंदोलन के संबंधम मतभेद अवँय थे। महामा गांधी तथा पं. नेह के मुःलम तुीकरण क नीितौी गुजी को भी पसंद नहं थी। ौी गुजी ने इन गलत नीितय का ूगट प सेकड़ा वरोध अवँय कया कतु महामा गांधी म िनहत लोकोर गुण क ूशंसाभी क।२३.११ गांधी जी का ौापूवक ःमरणगांधी जी के जमशताद वष १९६९ म ौी गुजी ने रािनमाण एवं ःवातंयआदोलन म गांधी जी के महती योगदान का ौापूवक ःमरण कया। नागपुर सेूकािशत होने वाली ‘युगवाणी’ नाम क मराठ मािसक पऽका के अटबर ू १९६९ केसंक म ौी गुजी ने िलखा, ‘इन पचास पचहर वष म अपने देश म जो ौेवभूितयाँ हई ु ह और जनका यावाहारक राजनीितक ेऽ म जनमानस पर बहत ुअिधक ूभाव पड़ा है उनम महामा गांधी अमणी थे, इस सय को कोई अःवीकार३३८


नहं कर सकता। उनका बहवध ु यव था। उनके जीवन के धािमक, सामाजक,आिथक आद विभन पहलू उनके असाधारणव को ःप प से ूकट करते ह।साधारण जनमानस पर उनके समान कसी अय क पकड़ नहं थी।’ इसी लेख म ौीगुजी ने आगे कहा, ‘उनक हदू धम पर ौा थी। हदू जीवन म मानबदु पगोवंश का संरण तथा उसक हया सवथा बद हो, इसिलए अपना शासन ूभावीकानून बनाए, इसके िलए उहने ूयास कया। अपने अःपृँय रहे गए उपेतबांधव को समान का ःथान दलाने के िलए उनक आिथक, सामाजक, शैणकआद सब से उनित करने का उहने ूय कया। अिशत, सरल औरआिथक कठनाइय म जीवन बतानेवाले वनवासी, दिलत बांधव को परधिमय ाराधमॅ कये जाने के काय का तीो िनषेध कया समाज को सुयवःथत, संयिमतऔर सुसंःकृ त जीवन से वमुख कर समाजवाद, सायवाद औद नाम से के वलभौितकता का ूचार करनेवाले वचार एवं कायपितय का उहने ःप वरोध ूकटकया। उनके इन गुण के कारण जनमानस म उनके सबध म अपार ूीित व ौाबनी रहेगी व रहनी चाहए।’इसी अवसर पर ८ नवबर १९५९ को बंगलूर क राोथान साहय ारा पुःतका केप म ूकािशत एक अंमेजी लेख म ौी गुजी ने गांधीजी के ूित ौांजिल अपतकरते हए ु कहा क वे एक सामाय मनुंय क तरह धरती पर जमे पर अपनी कठोरजीवन साधना एवं सबके ूित असीम ूेम भाव के कारण महानता के िशखर पर पहँच ुगये। सह अथ म महामा बन गये।... िनधन और दिलत के ूित कणा भाव काउदाहरण ूःतुत करते हए ु उहने ःवयं खाद का एक व ह अपने शरर परपहना।... नैितक मूय और ौे चरऽ के वे मूित मंत ूतीक थे। ... उहने हदूदशन के आमसंयम तव का ःवयं आचरण कया और अय को भी उस राःते परचलाने क कोिशस क। ... सपूण मानवता के िलए ूेमभाव रखते हए ु भी उहनेमातृभूिम ती ःवतंऽता के िलए संघष और याग क भावना जगाई, देशवािसय कोआमवास और ःवािभमान का मंऽ िसखाया।महारा म सांगली जला महामा गांधी जमशताद सिमित के मंच से कांमेसीकायकता ौी घड रामना पाटल क अयता म आयोजत समारोह म गांधीजी कूितमा को पुंपमाला और ूणाम अपत करने के बाद ौी गुजी ने कहा, ‘हमारे यहाँलबे समय से ूातःःमरण करने क ूथा चली आ रह है। इसम हम िनयूातःकाल अपने देश के पवऽ ःथल और महापुष का ःमरण करते ह। ूातःःमरणम नये नाम का समावेश करने का काय शतादय से बद पड़ा हआ ु था। संघ नेइस काय को फर से शु करने का बीड़ा उठाया और आज पयतसभी महान ् यय३३९


का समावेश कर ‘भारत भ ःतोऽ’ तैयार कया है। इसम ूातःःमरणीय वदनीययय क सूची म गांधीजी का नाम भी आदरपुवक समिलत कया गया है।’न के वल गांधीजी अपतु अपने समकालीन नेताओं के बारे म ौी गुजी ने ूसंगोिचतगौरवपूण उलेख कया है। ौांजिल सभाओं म मृत नेता के बारे म भाषण देते हए ुया लेख िलखते समय ःवगःथ नेता म िनहत गुण क सराहना करने का उनकाःवाभावक धम था। उदाहरण के तौर पर कु छ नाम का उलेख कया जा सकता है।डॉ. राजेि ूसाद, सरदार पटेल, पं. नेह, ःवा. सावरकर, डॉ. ँयामाूसाद मुखज,पं. दनदयाल उपायाय, पं. सातवलेकर, ौी लालबहादरु शाी, ौी हनुमानूसादपोार, चबवत राजगोपालाचार आद। इन नेताओं और संघ के दवंगत कायकताओंके बारे म ौी गुजी ने अपने दय क भावनाएँ य क ह। उनके कथन और पऽया लेख के सृजन म मूलामाह गुणावेषण का ह परचय िमलता है। ौी गुजी अपनेःवतः क योयता के संबंध म सदा ह मौन रहते कतु अय के गुण का बखानकरने म वे मुखर रहा करते। इसी म उनक महानता थी। संघकाय का ौेय वे अपनेकायकताओं क झोली म डाल देते थे। ‘म नहं, तू ह’ का भाव वे जीते थे।ःवयंसेवकव ह उनका भूषण था। अपने सहकारय के साथ वे ूेम और आदर कभावना रखते थे। देश भर म फै ले कायकताओं, संघसंचालक, ूचारक, ःवयंसेवक कोएक टम के प म सहालना कोई सामाय बात नहं है। अपने ःनेहभरे यवऔर संपक से ौी गुजी ने इस असामाय काय को कर दखाया। इतना अनुपमेयगुण-समुचय होते हए भी न कोई अहंकार, न आस।२३.१२ बहमुखी ूितभा ुौी गुजी क बुमा का उलेख इसके पूव आ चुका है। उनका अथाह ान सबकोअचंिभत करनेवाला था। अनत वषय का अयाधुिनक ान उह था। ौी गुजीशाीय संगीत के अछे जानकार था। घोष (बैड) वभाग के वावृ ंद के िलए शाीयसंगीत क रागदार पर विभन रचनाओं का सृजन हआ ु तब ौी गुजी ने बहत ुबारक से जो सुझाव दये उह सुनकर तो सभी दंग रह गए थे। मंथ का ान ठकहै कतु संगीत म भी ौी गुजी क ूितभा का आवंकार देखकर आयवभोर होनाःवाभावक ह था। उनके पऽलेखन म बहमुखी ु ूितभा और बुमा का हम परचयिमलता है। कसी भी वषय पर जब वे अपना मत ूदशन करते तब वह मौिलक रहाकरता। बना शाीय आधार के वे कसी बात को मायता भी नहं देते। ौी गुजीक ःमरण श, ूा तय को दयंगम करने क मता, ूितपादन करते समय३४०


अनेकानेक मंथ से उ-घृत करने क ूितभा तथा शैली बहत ु ह ूभावशाली थी।ूजनन शा और ‘सायबरनैटस’, योितष और खगोल शा, भूगभ शा औरपयावरण शा (इकालाजी), अंतराल तथा अणु वान, आयुवद, होिमओपैथी तथाएलोपैथी इन ववध वषय के साथ योगाद शा म तो वे पारंगत थे ह। शायद हएकाध वषय अछता ू रह गया हो, कतु मानव जीवन से संबंिधत लगभग सभीवषय म उनक गित थी। कु छ लोग क यह धारणा थी क ौी गुजी को के वलसंघ, धम तथा संःकृ ित का ह ान है। कतु चचा के समय जब वे वान औरसमाज-शा के ान का सााकार कराते तब इन वषय के ानी पंडत भीभचके रह जाते थे। कतु वनोद म ौी गुजी कहा करते- आखर म एक वकलहँ। ू जैसे वकल कसी भी वषय पर उसका पूरा ान न होते हए ु भी तक दे सकता हैवैसा ह म भी करता हँ। ूविभन शाीय शाखाओं के बारे म उनका ान कतना अथाह और अावत था यहदशानेवाला जो संःमरण वतमान सरसंघचालक मा. रजू भया ने बताया, वह बहत ुउ-बोधक है। एक बार इलाहाबाद ववालय म ौी गुजी के एक कायबम केिलए विभन ान शाखाओं के वान ् ूायापक को िनमंऽत कया गया था। एक-एक टेबल को घेरकर एक-एक फे कट के ूायापक बैठकर थोड़ा समय ौी गुजी सेबातचीत कर ऐसी योजना थी। उसके अनुसार कायबम सपन हआ। ु उसके पात ्ौी गुजी ने एम.एस.सी. उपािध कस ान शाखा म ूा क होगी इस वषय मसब ूायापक म चचा शु हो गयी। ूयेक ान शाखा के ूायापक कहने लगे कवे उनके ह ‘फे कट’ के होने चाहए यक चचा म ूयेक शा म ौी गुजी कअिभता दखाई द थी। बकु ल आधुिनकतम मथ और िसात के संबंध मउहने चचा क थी। अंत म जब उह अिधकृ त प से बताया गया क ूाणशाउनका वषय था तब सबको बहत ु अचंभा हआ। ु इसी तरह का अनुभव कतने हवषय के संबंध म उनसे बातचीत करते समय अनेक को आता था। फर चचािचकसा शा क हो, वंश शा क हो या मंऽ शा क।वैािनक ूगित क महा और आवँयकता का सयक् ान होते हए भी ौी गुजीका मानना था क वान को धमानुकु ल ह होना चाहए. धम से ःवतः कोसमायोजत कर लेना चाहए यक धम के आधारभूत िसांत ह शात होते ह।वैािनक अनुसंधान के िनयम-िनंकष बदलते रहते ह। वान मानव को भौितकसुख साधन ूदान कर सकता है। मनुंय उनका उपयोग सुख ूाि के िलए अवँयकरे कतु वान के साथ धम भी बदलना चाहए यह अपेा गलत है। धमूवणजीवन ह वाःतवक मनुंय जीवन है। धम और मो क मयादाओं म अथ और काम३४१


के पुषाथ तृ होने पर ह समाज सुःथर, संपन और सुखी होता है। चतुवधपुषाथ पर आधारत ‘संपूण मानव ’ का वचार ह इस आधुिनक जगत ् को भारत कमौिलक देन है। वतमान समःयामःत संसार म यह वचार ूःतुत करने क मताूथम संपादन कर। इस तरह एक भय येयदशन ौी गुजी ने लआय के नाते अपनेसामने रखा था। ौी गुजी के सवःपश, सवगामी, बहमुखी ु , अथाह और असीमअययन और ईरद ूितभा का समःत वलास भौितक सुखवाद के िलए नहंअपतु हदू जीवनादश क यावहारक पु के िलए था।इस से समाज म वातावरण िनिमत करने के उेँय से ौी गुजी अनेक मनुंयऔर संःथाओं को संपक ारा िनकट लाए। अनेक को उनके गुण और पाऽता कपरखकर समाजकाय के िलए ूवृ कया। ःव. महामहोपायाय बालशाी हरदास, जोरामायण, महाभारत और अय पौराणक मंथ के ूकांड पंडत और महान ् वा था,क यायान माला, पुणे के ौी वनाथ नरवणे का कोष काय, डॉ. ौी. भा. वणकरका संःकृ त भाषा ूचार का उपबम, ौी. हनुमान ूसाद जी पोार क ‘गीता ूेस’ ाराधमसेवा, ौी. सुधीर फडके . एक वयात संगीतकार और गीतरामायण के गायक कसंगीत साधना, ौी. गो नी. दांडेकर का लिलत साहय लेखन, ौी अमरेि गाडगीलका सांःकृ ितक ूकाशन काय, चाँपा के महारोग कु धाम क ण सेवा, ःथान-ःथानपर कायरत संःकारम िशा संःथाएँ इन सब क यशःवता क जड़ म ौी गुजीका ूोसाहन, मागदशन और दशादशन तथा संपूण सहायता का हाथ था। संघकायकरते-करते उसक समांतर रेखा म संघ के िलए पोषक य-संमह और मता ूालोग को बढ़वा देने का काय, जो ौी गुजी ने कर दखाया, उसे असाधारण हमानना होगा।दली के दनदयाल शोध संःथान का काय, ूाकृ ितक और मानव िनिमत आपदाओंके समय सहायताथ ःथापत ववध संःथाएं, सिमितयाँ और ूितान, उसी तरहयोगी अरवंद तथा ःवामी ववेकानंद क जमशतादय के काम क ूेरक श ौीगुजी ह थे। डॉ. मुंजे ःमारक सिमित का काम तो उहं के नेतृव म हआ ु था।सांःकृ ितक पुनथान का वचार और उसका ूसार- इनका लाभकार मेल उहनेबैठाया था।३४२


२३.१३ मूल काय पर एकाम संघ का काय रावृ क जड़ को पानी से िसंिचत करने का मौिलक काय है।संःथामक या आंदोलनामक काम के कारण संघकाय क उपेा हो, यह बात उहपसंद नहं थी। एक-एक वषय लेकर काम करनेवाल को ौी गुजी ने अवँयूोसाहन दया, परंतु समाज म उपःथत अनेकवध समःयाओं का िनराकरण करनेक उनक भूिमका या थी यह एक संःकृ त ूेमी कायकता को िलखे पऽ म ःपहोती है। ौी गुजी िलखते ह, “आज के वातावरण म आधुिनकता और ूगितशीलताक मृग मारिचका म पड़कर यहाँ क पवऽ भावनाओं का िनमूलन करने म सबनेतागण परमपुषाथ का अनुभव करते ह। ऐसे समय पढ़ने-पढ़ाने के संबंध म जोशासकय नीित दखाई देती है वह तो अपेत ह है। इसम यद परवतन लाना होतो एक-एक वषय लेकर आंदोलन करने से वह संभव होगा या नहं इसका वचारकरना होगा। सय तो यह है क, ‘मूले कु ठारः’ याय के अनुसार जीवन म यापकप से फै ले हए ु अराीय, परमुखापेी ूवृ को जड़मूल समेत नकर, जनसाधारणक वशु, राभपूण सुसंगठत श खड़ करना, और उसके ारा जीवन के सबूवाह शु करने क ओर यान देना आवँयक है। जड़-मूल को िसंिचत करने सेशाखा-पलव क रा होती है, उनका भरण-पोषण होता है। जन सामाय कभावनाशु तथा संगठत, परणामकारक ःथित सब समःयाओं का समाधान करनेम समथ हो सके गी। तब तक पृथक् प से ूय होते रहना आवँयक है। कतुहमारा लआय मूल ूेरणा ोत, श के मूल अिधान क ओर ह रहे।” इस पऽ मौी गुजी ने जीवन भर कए गए भगीरथ ूय के संबंध म दशा दशन ह कयाहै। यह उनका जीवनसंदेश है।परवतन के ूसादिचह गोचर हो रहे ह। आज नहं तो कल इ परवतन होताहआ ु अवँय दखाई देगा। इस परवतन के िलए ूेरक हई ु एक अदय ऋषश केनाते ौी गुजी क योयता, महानता कृ ततापूवक सव माय होगी।*३४३


परम पूजनीय ौी गुजी का जीवनपट१९०६ द.१९ फरवर (सोमवार माघ व ११ शक १८२७) ूातः ४-३४को नागपुर म जम।१९१५ ूाथिमक चौथी क परा उीण। नमदा वभाग से(ःवातंयपूव मय ूदेश) ूथम बमांक। छाऽवृ संपादन।१९२४ इंटरिमजएट परा उीण। अंमेजी वषय म ूथम पारतोषक।बनारस हदू ववालय म ूवेश।१९२६ बी.एस-सी. उण।१९२८ एम.एस-सी. उण।१९२९ मिास के मःयालय म अनुसंधान।१९३१ संघ ूवेश।१९३०-३३ बनारस हदू ववालय म ूायापक।१९३३ जून नागपुर म कानून क अययन।१९३४ नागपुर क तुलसीबाग संघशाखा के कायवाह पद पर िनयु।संघ काय के िलए कु छ समय मुंबई म वाःतय। अकोला(वदभ) संघ िशा वग म सवािधकार।१९३५ एल.एल.बी. उीण।१९३६ दवाली के पूव सारगाछ (बंगाल) को ूःथान। रामकृ ंण संघके अय ौी अखडानंद के सानय म।१९३७ द. १३ जनवर मकर संबमण पव के दन दा-महण।द. ७ फरवर को ौी अखंडानंद जी का महािनवाण।माच के अंत म नागपुर पुनरागमन।१९३८ नागपुर के संघ िशा वग के सवािधकार।१९३९ फरवर के अंत म िसंद (वधा जला वदभ ूदेश) मकायकताओं के बैठक म उपःथत।द. २२ माच को संघकाय के िलए कलका ूःथान।वषूितपदा पर संघशाखा का शुभारभ।३४४


नागपुर संघ िशा वग के सवािधकार।द. १३ अगःत को राबधन पर सरकायवाह पद पर िनयु।१९४० द. २१ जन. पू. डॉटर हेडगेवार जी क मृयु।द. ३ जुलाई सरसंघचालक पद पर िनयु।द. २१ जुलाई मािसक ौा दन पर अखल भारतीय कायकतासमेलन।द. ४ अगःत संघ के गणवेष, संचालन आद कायबम परशासकय आदेश से ूितबंध।१९४२-४७ संघकाय क यापक वृ।१९४६ रावलपंड, झेलम (पंजाब) तथा पेशावर (सीमा ूांत) म भयसावजिनक कायबम।१९४७ माच म पंजाब ूांत म वःतृत ूवास।‘पंजाब रलीफ कमेट’ क ःथापना। तीन हजार सहायता िशवरका यवःथापन।द. ५-८ अगःत हैदराबाद तथा करांची (िसंध ूांत) म भयकायबम।द. १५ अगःत ःवातंय ूाि।द. १२ िसतंबर गृहमंऽी सरदार पटेल और महामा गांधी सेभट।द. १७-१९ अटबर ू ौीनगर (कँमीर) म महाराजा हरिसंह सेभट।ूधानमंऽी नेह से भट।१९४८ द. १ फरवर को नागपुर म िगरतार।द. ४ फरवर शासन ारा संघ पर ूितबंध।द. ५ फरवर संघ का वसजन। हजार कायकताओं किगरतार।द. ६ अगःत कारागृह से मु।द. १७ अटबर ू दली को ूयाण।द. १२ नवबर को सरकायवाह मा. भयाजी दाणी के आदेश३४५


से संघकाय ूारंभ करने क से िलखत आ-वान, दलीम पुनः िगरतार।द. १४ नवबर को दली से नागपुर कारागृह म लाया गया।बाद म िसवनी कारागृह म रखा गया।द. ९ दसबर मा. भयाजी दाणी के नेतृव म संघ-शाखाूारंभ कर देशभर म सयामह।१९४९ द. २१ जनवर सयामह ःथिगत। ौी ग.व. के तकर औरट.आर.वी. शाी ारा मयःथता।द. १२ जुलाई संघ पर से ूितबंध हटा।द. १३ जुलाई बैतूल कारागृह से बना शत मु, नागपुरआगमन।द. १९ जुलाई ौी ट.आर.वी. शाी से भट करने मिास कोूःथान। देशयापी ूवास ूारंभ। बंबई म सरदार पटेल से भट।द. २१ अगःत दली म अभूतपूव ःवागत।१९५० द. ८ फरवर कलका म ‘वाःतुहारा सिमित’ क ःथापना।द. ११ अगःत असम के भूकं प पीड़त क सहायाथ सेवाकायका ूारंभ।१९५१ बहार म ‘अकालमःत सहायता सिमित’ क ःथापना।१९५२ गोहया िनरोध आदोलन।द. ७ दसबर लगभग २ करोड़ हःतार का िनवेदन रापितडॉ. राजेि ूसाद को समपत।१९५४ माच-अूैल िसंद (वधा जले) म लगऊग २५० ूमुख ूचारकक ूदघ बैठक।द. २१ जुलाई पताजी का िनधन।१९५६ इयावनवीं वषगांठ, देशभर म समारोह।१९६० माच इंदौर म अखल भारतीय कायकताओं क बैठक।१९६२ द. ९ अूैल वष ूितपदा पर नागपुर म रेशीमबाग म ःमृितमंदर का उ-घाटन, ःवयंसेवक का अखल भारतीय भयसमेलन।३४६


१९६२ द. १२ अगःत माता क मृयु।ववेकानंद जमशताद समारोह। ववेकानंद िशला ःमारकसिमित क ःथापना।१९६४ कृ ंण जमामी पर मुंबई के सांदपनी आौम म ‘व हदूपरष’ क ःथापना।१९६५ द. ६ िसतबर भारत-पाक यु। ूधानमंऽी ौी लालबहादरुशाी ारा आमंऽत राीय नेताओं क बैठक म योगदान।१९६६ द. २२, २३, २४ जनवर ूयाग म व हद ू परष काजागितक समेलन।१९६७ िसतबर ॄकपाल म पूवज तथा ःव ौा विध।१९७० द. १ जुलाई मुंबई म क सर का ऑपरेशन।द. २२ जुलाई को अःपताल से वापस।१९७१ द. २९ अटबर ू से २ नवबर तक ठाणे म भारत के लगभग४५० कायकताओं क बैठक।द. १९ दसबर जनरल करअपा ारा नागपुर म डॉ. मुजेक ूितमा का अनावरण।१९७२ द. २० अगःत को दली म “दनदयाल शोध संःथान” काउ-घाटन।१९७३ द. ४ फरवर बंगलौर म अंितम सावजिनक कायबम।द. १४ माच ूवास पूण कर नागपुर वापस।द. २४-२५ माच नागपुर म अखल भारतीय ूितिनिध सभाक बैठक। ‘वजय ह वजय है’ यह अंितम भाषण।द. २ अूैल आगामी यवःथा के संबंध म तीन पऽ िलखकरसीलबंद कर रखे।द. १९ से ३१ मई तक संघ िशा वग के िशािथय के साथगटशः वातालाप।द. ५ जून राऽ ९.०५ पर महािनवाण।द. ६ जून सायंकाल रेशीमबाग म अय संःकार।३४७


ौी गुजी क जमपऽका३४८


२४ परिश-१प.पू. ौी गुजी का संघ काय हेतु समपण और तदनुप समाज के य-यअथवा य-समूह के ूित अपार ःनेह सहत तादाय इतना परपूण था क“ॄप देख फरहं, के ह सन करहं वरोध ” वाली उ पूणतः चरताथ होती थी।इस ौे दाशिनक धरातल क िशा हर छोटे-बड़े ूसंग म उनसे िमलती रहती थी।ऐसा ह एक सुअवसर आगनाइजर के यशःवी सपादक ौी के वलरामानी मलकानी कोूा हआ। ु ौी गुजी को कु छ मुःलम समाचारपऽ ने “काला नाग” कहकर िचऽतकया था। ौी मलकानी ने इस पर रोषपूण टपणी िलख थी। आगनाइजर म छपीवह टपणी ौी गुजी ने पढ़ और पूरे दाशिनक सदभ म नाग महाय ह बतातेहए ु उहने मुःलम समाचारपऽ पर ःनेह क वषा क और उह भारत क सनातनएकता के पूजक के प म वकिसत होने का माग िननिलखत पऽ म दखाया है।ूय मलकानी जी,दनांक १८-११-१९६९आपके “आगनाइजर” के नवीनतम अंक (१६ नवबर, १९६९) म यह पढ़कर मुझे सुखदआय हआ ु क कु छ मुःलम समाचार पऽ ने मुझे “काले नाग” क संा से वभूषतकया है। लगता है क आप मेरे िलए ूयु इस वशेषण के कारण दःखी ु ह। इसकाकोई कारण नहं दखता।हमारे दशन और धम म नाग को अयत पूय माना गया है। भगवान िशवअयत वषधर नाग से अपने आपको वभूषत कये हए ु ह। जगजननी माँभगवती नाग को जनेऊ के प म धारण क हई ु ह और इस कारण उनका एक नाम“नागयोपवीितनी” भी है। ान और ववेक के दाता भगवान गणेश का तो उसकेबना काम ह नहं चलता और जगत ् के पालनहार भगवान वंणु तो आदशेष कगोद म ह वौाम पाते ह। योग म कु डिलनी को, जो ूयेक य म वरा शके प म सु पड़ रहती है, कु डली सारे नाग क ह उपमा द गई है जो यम-िनयम और योय साधना के ारा जागृत होकर मेदड के माग से ऊपर उठती हई ु ,एक-एक चब को सबय करती हई ु तथा योगश और ान के ार खोलती हई ुअत म मःतंक के उस अतम कमल सहॐार तक पहँच ु कर अपना गतय ूाकरती है और परॄ के साथ एकाकार हो जाती है। जो य उस ःथित को ूा३४९


करता है उसे परमानद क ूाि होती है और वह जम-मरण के चकर से मु होमो को ूा करता है, जो मनुंय का अतम लआय है।हदओं ु म नाग के ूित वमान ौा अकारण नहं है। उसे वनवािसय, िगरवािसयतथा पुरे हदू समाज म, वशेष कर नागपंचमी के दन, पूजा जाता है। दण मभगवान सुॄयम के प म नाग देवता श, समृ तथा िचदानद के दाता बनजाते है।वाःतव म तो नाग समःत सृ क एकता का ूतीक है। उसक पूँछ का कुं डलीमारते हए ु फन तक पहँचने ु का ूयास करना यह दशाता है क समम सृ उसपरॄ से ह पैदा होकर उसी म वलीन हो जाती है।नागपूजा क सवयापकता उसे समःत हदओं ु क, अपनी राीय अःतव कमूलभूत एकता का ूतीक बना देती है।मुःलम पऽकारता ने मुझे यह वशेषण देकर, अनजाने ह य न हो, मुझे ऐसासमान दे दया है जसका म पाऽ नहं हँ। ू उहने मुझे भारत और दिनया ु के सामनेराीय एकता के ूतीक, उसक अिभय तथा उसके उ-गाता के प म ूःतुतकया। म माँ भगवती से ूाथना करता हँ ू क वह मेरे इन ूशंसक िमऽ क अपेाको पूण करने क श मुझे दे।म उनका बड़ा कृ त हँ ू क जहने इतना बड़ा समान मुझे ूदान कया और आशाकरता हँ ू क वे भी शीयाितशीय भारत क सनातन एकता के इस ूतीक के पूजक केप म वकिसत हगे।कृ पया मेरा वनॆ धयवाद उन तक पहँचाएँ ु ।(ह.) मा. स. गोलवलकर*३५०


२५ परिश-२ौी गुजी अपने सपक म आनेवाले य पर कस ूकार क छाप छोड़ जाते थेइसके उकृ उदाहरण के प म उनके शय िचकसक डॉ. ूफु ल देसाई काअंमेजी सााहक ‘ऑगनायजर’ म छपा यह लेख है जो ौी गुजी के देहावसान केबाद छपा था। ूःतुत है उसका हद पातर-२५.१ गुजी मेरे मरज थेआज क तारख के ठक तीन वष पूव एक रात जब तूफानी वषा हो रह थी, मेरे एकयवसाियक सहकम ने मुझसे सपक कर जानना चाहा क या म गुजीगोलवलकर से उनका क दे रह ःवाःय सबधी एक समःया के सदभ म िमलसकता हँ ू?दसरे ू दन ूातः म कार म बैठा उह देखने के िलए जा रहा था। मेरे मःतंक मवचार उतनी ह गित से दौड़ रहे थे जतनी गित से कार। म सदा गोलवलकर जी केवषय म सुनता और पढ़ता रहता था। हम जानते थे क वे अपने वचार के बड़ेपके ह और हदव ु और हदु राय के सबध म उनक धारणाएँ कटरअपरवतनीय ह। (अतम मुे पर म कतना गलत सोचता था।) इहं सब कारणसे म उनसे िमलने के िलए बड़ा उसुक था। मेर धारणा थी क िचकसकय मामलम रोग क गभीरता को समझाने क से मेरा एक कठन यव से पालापड़ने जा रहा है।उनके कृ श और कोमल शरर को देखने के बाद मुझे लगा क अब तक उनके बारे मम जो कु छ जानता, सुनता या समझता था उससे वे बकु ल वपरत ह। उनसे हई ुअपनी पहली भट म ह मुझे वास हो गया क म एक अयत वेधक वालेजासु य से िमल रहा हँ ू जनके यव म एक ःवाभावक लचीलापन है।कसी भी वषय पर तक पूण ढंग से वचार करने के िलए वे सदैव अपना ार खुलारखते ह। उनके साथ अपने ूथम वातालाप म ह मने उनको अछ तरह नाप िलयाथा।३५१


२५.२ उकृ हद“अछा डॉटर! आप मेर शाररक अःवःथता के वषय म आप या सोचते ह?”उहने वशु हद म पूछा। गुजी जैसी शु हद म वातालाप क िनपुणता नहोने के कारण मने कामचलाऊ कतु िचकसा शा क से सह उर देते हए ुकहा- “जी, म सोचता हँ ू हम ऐसी ःथित का सामना कर रहे ह जसम क सर कअयािधक सभावना लग रह है। अतः परा करने और आवँयक हआ ु तो उसे दरूकरने के िलए शयबया करने क आवँयकता ूतीत हो रह है।” मेरे िनदान ने उहजरा भी वचिलत नहं कया जैसा सामायतः साधारण यय के साथ होता है।ण भर वचार करने के बाद उहने उर दया, “अछा! अगर यह क सर ह है तोमेरे मतानुसार उसे वैसे ह य न छोड़ दया जाय? और डॉटर, या आपको जराभी आशा है क आप उसको ठक कर सक गे?”ःप था क वे इस बीमार के वषय म पया ान रखते थे और जानते थे उसकामनुंय के शरर पर या-या दंूभाव ु पड़ता है। “या वह शरर म कहं आगे भीफै ल चुका है?” यह था उस मनःवी का दसरा ू ू जसका मुझे तकाल ऐसा तक पूणउर देना था जो उस कु शाम मःतंक का समाधान कर सके । अतः उनका ूसमा होने के पूव ह मने उर दया- “यह तो अपने-अपने मत क बात है, सामायलोग का मत और म इस बात से सहमत नहं हो सकता क इसे यूँ ह छोड़ दयाजाय। रोग के ठक होने न होने क बात तो तभी बतायी जा सकती हो जब पता चलेक रोग शरर म कतना फै ल चुका है और इसका सह अनुमान तो शयबया केबाद ह हो सकता है। उसी पर अनुवत िचकसा भी िनभर करेगी। उसे खाली छोड़देने का अथ होगा हमखड से भरे समुि म कसी जहाज को खुला छोड़ देना।आपक िचकसा करने का अथ होगा परःथित को िनयऽण म लेना और कम सेकम जो ँयमान खतरे ह उनसे बचना। वह अय ेऽ म नहं फै ला है कतु जसःथान पर वह है वहाँ भी उसका याप कतना है यह तो शयबया के बाद ह जानाजा सके गा।”गुजी ने ःथित क गभीरता को भाँप िलया और थोड़ देर के िलए गहन मौन मचले गये, शायद आमवेषण कर रहे ह। बाद म शात ःवर म बोले, “अछा! तोमुझे यह (शयबया) करानी ह पड़ेगी।” परतु दसरे ू ह ण वे अपने पूव िनधारतभट, ूवासाद कायबम का हसाब लगाने लगे। तुरत उहने िनणय िलया औरसं कतु ःप आदेश अपने सिचव एवं समःत सहायक को दये। ३० जून३५२


१९७० को गुजी अःपताल म भत हए ु तथा १ जुलाई १९७० को शयबया हई ु जोसफल रह।२५.३ दैदयमान गुणावलीइस ूाथिमक घटनाबम म ह उनक अनेक उवल वशेषताएँ परलत ह ु जैसे,उनका गहरा ान और वान समत िनदश का अनुपालन करने क िसता, अपनेःवाःय से सबधत उनके कितपय कतु तयवेधक ू जो उनक जासु मेधाका परचय कराते थे, वपरत परःथितय का साहस, शात और दरदिश ू ता सेसामना करने क मता और अंगीकृ त काय के ूित िना और उसके समुिचत िनवाहक तपरता। मुझे लगा क जस एक तक ने उह सवािधक ूभावत कया। वह थामेरे ारा यह कहा जाना क “आपको शयबया करवा ह लेनी चाहए जससे आपअपने ःवीकृ त काय म पुनः जुट सक ।” इसके बाद और कोई बहस नहं हई। ुऐसी बड़ शयबया को उन जैसे ६५ वषय वयोवृ ने आयजनक रित से सहनकर िलया। दसरे ू दन तो वे उठकर चलने भी लगे। अःपताल म उनके तीन साह केवाःतय म मुझे उनके मन-मःतंक का अययन करने का पया अवसर िमला।उनके साथ हए ु वातालाप से मुझ जैसे सामाय य को बहत ु कु छ सीखने कोिमला। यहाँ म कु छ उदाहरण देना चाहता हँ ू जो उनके आतरक चरऽ को ूकष सेूगट करते ह।वे अपने रोग के फै लाव के बारे म पूर सचाई जानना चाहते थे और यह भी कउनके िलए कतनी आशा बची है। इस पर मने ःथित क यथावत ् जानकार देते हए ुजब उह बताया क उनके िलए कतना समय बचा है तो उनक ूितबया थी- “वाह!अित उम ! पया लबा समय है और मेरे पास िनपटाने के िलए अभी बहत ु सेकाय शेष ह।” उहने एक कायबम म भाग लेने के िलए डॉटर अनुमित माँगी। उससमय तक शयबया होकर के वल सात दन ह हए ु थे। मने कहा क “म आपकोएक ह शत पर अनुमित दँगा ू क आप अःपताल से गायब न हो जाय।” अपनी सहजवनोदबु से उहने तुरत उर दया- “या म आपको डाकू लगता हँ ू?” अःपतालम वे जब तक रहे तब तक वातावरण हाःय, वनोद और आनद से परपूण रहा।३५३


२५.४ राजनैितक दशनकारऐसा कोई वशेषण, जो उनके यव को पूर तरह अिभय कर सके , खोज पानाअयत कठन है। वे एक राजनैितक दशनकार, ूगाढ़ अयेता और मनुंय, घटनाओंव वषय के सबध म जानकार देनेवाले चलते-फरते शदकोश थे। उनके वचारम वान, धम और संःकृ ित का एक सुदर समौण था। उहने एक बार मुझसेकहा क “वान के वकास पर ह मानव क ूगित िनभर है।” एक गहर धािमकिनावाले य के मुँह से यह सुनकर मुझे आय हआ। ु वे उन लोग म से नहं थेजो अपना दशन और अपने वचार दसर ू पर थोपते ह। कतु जो कु छ वे कहते थेया जस पर चचा करते थे उस पर पूर िना रखते थे। उनका यह कथन क“जसको म सह समझता हँ ू उस पर पूर तरह ढ़ रहता हँ ू,” उनक आतरक शऔर साहस का परचायक है और यह भी बताता है क उनका अनुयायी वग इतनावशाल य है।अःपताल म जतने थोड़े समय वे रहे अपनी गितविधयाँ चलाते रहे। अनुवतिचकसा को भी उहने अछ तरह सहन कया। िचकसा पूर हो जाने के बादअःपताल से वदा लेते समय उनके उ-गार थे- “मरणधमा मनुंय को मृयु किचता नहं करनी चाहए। सभी जीवत यय को एक न एक दन मौत के मुँह मजाना ह है। वह कतने दन जया इससे अिधक महवपूण यह है क उसने उहकै से जया? मेरा एक जीवन लआय है और म ईर से ूाथना करता हँ ू क वह मुझेअतम ण तक कायशील रखे।” मुझे अनुभव हआ ु क उह अपना जीवनोेँय पूराकरने क जद है।तपात दो वष तक मने उनको अयत सबय व ःवःथ देखा। मेर अपेा सेकहं अिधक वे सबय थे। पहली शयबया के बाद ह रोग के वःतार को देखकर महोनी के बारे म आशंकत था। वे एक आदश रोगी थे जो िचकसक को सब ूकारका सहयोग देते थे। जब कभी वे मुबई आते थे तो अनुवत जाँच व िनंकष के िलएिमलने आया करते थे। ऐसी ह एक िनयिमत याऽा म मने उनसे पूछा, “हमारे तणका या हालचाल है?” उर था, “और अिधक तण बन रहा है।”काल तो कसी को छोड़ता नहं सो वह गुजी के पीछे भी लगा। इसी वष फरवर यामाच से वे पुनः अःवःथता का अनुभव करने लगे। यप वे अपने काय म सबयरहे परतु काल क काली परछाइयाँ उनको घेरने लगी थीं। अूैल म उनका जो एस-३५४


रे िलया गया उसम अिनसूचक िच दखायी दये। बाद क घटनाएँ इतनी ताजी हक उनका ववरण देने क आवँयकता नहं है।अपने जीवनकाल म वे जैसे थे मरणोपरात उह उससे अिधक बढ़ा-चढ़ाकर याआदशवान दखाना इस लेख का हेतु नहं है। पर वे ऐसे य अवँय थे जहनेएक िनमम रोग के कारण उपन शाररक और मानिसक तनाव को साहस औरसतुिलत भाव से सहा, जनके अपने देश के बारे म ढ़ िनाएँ थीं और जो सदा उनपर डटे रहे, सुकोमल और कृ शगाऽ होते हए ु भी वे असीिमत ऊजा, गितशीलता औरअनुशासन के धनी थे और अनुिचत को पहचानकर उसे ठक करने का ूय करतेथे।यह अयत दःख ु क बात है क अब वे नहं रहे कतु मुझे इस बात का गव है कथोड़े समय के िलए ह य न हो, म उह जान सका और मुझे इस बात का आनदहै क वे इस यार मातृभूिम म जए और इस पर वचरे।* * *३५५

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