Anniversary Special
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हमसफ़र
भारती ,
रहे हम एक लम्ी राह के साथी ,
चले हम साथ साथ
जीवन के प्रभात में ,
और पकड़ के तेरा हाथ
तय किया मध्ाह्न को,
अब सांज जब ढलने चली
और जीवन का सूरज डूबने चला
तब
हाथ मत छोड़ना,
मेरे साँसों के साथ
मिलते है जो सांस तेरे
उस गीत को सुनते सुनते
हमे रहना है चलते
अंत ना
हमे अनंत की और चलना है
- तेरा हेम
१७ नोव् २०२०
सूची
Sr.No. Poem Name Date
1 दिल से वादा ! 29-Aug-53
2 मैं तुम्ारी क्ा लगती हँ ? 10-Dec-16
3 बहारे तो बहुत आयी 2-Jan-16
4 चाहत को कै से छिपाऊँ ? 19-Jan-17
5 क्ा तुमने कभी चाहा ? 20-Jan-17
6 क्ा सुनती हो ? 3-Feb-17
7 तो मेरा क्ा होता ? 10-Feb-17
8 यादो से कै से छू ट पाओगी ? 15-Apr-17
9 वहाँ तो लहरा रहां था 09-May-17
10 लिखा है जो नाम तेरा 10-Jul-17
11 इंतजार करोगी ? 13-Nov-17
12 मैं आ गई हँ ! 13-Feb-18
13 मेरा प्ार आज भी कायम है ! 22-Jul-18
14 तेरे लबो को छू ने 24-Jul-18
15 क्ा करोगी मुझे पसं द ? 11-Aug-18
16 अरे , देखने दो ! 27-Aug-18
17 आप ही हो ! 30-Oct-18
18 हर बार पूछू ं गा
18-Jun-19
19 तेरे जुल्ोमें छिपा रखोगी ? 19-Jul-19
20 क्ा प्रीतम आया ? 25-Jul-19
21 क्ा होना चाहोगे , अगले जनम ? 28-Jul-19
22 होठो को क्ों चूमा ? 10-Aug-19
23 तू जो कहे मेरे कानो में 14-May-20
24 क्ा दे पाओगी 19-May-20
25 मुझे भी चाहत चुमवा 24-May-20
26 तुजे ढूंढता हँ 25-May-20
27 तेरा नाम 25-May-20
28 कौन हो तुम ? 28-May-20
29 जब जब खो जाते है 29-May-20
30 यक्ष आज का 29-May-20
सूची
Sr.No. Poem Name Date
31 कहाँ मेरा हमसफ़र ? 30-May-20
32 जब जब बादल गरजे 1-Jun-20
33 आज के दिन 2-Jun-20
34 कितने कदम बाकी है ? 3-Jun-20
35 क्ा याद है तुजे ? 4-Jun-20
36 कै से उडु ? 4-Jun-20
37 अब मेरी सांज ढलने लगी 12-Jun-20
38 तू ही मेरा कृ ष्ण हो 12-Jun-20
39 मैं ही तो हँ वो उदधि 12-Jun-20
40 आषाढ़ के आने से पहले 13-Jun-20
41 हर एक जनम की ख्ाकहश 14-Jun-20
42 सपने , सपने , सपने 15-Jun-20
43 ना तू साथी , ना हमसफ़र 16-Jun-20
44 तेरे गालो को चुमवा 16-Jun-20
45 लेके होठो पे तेरा नाम 16-Jun-20
46 तू आज भी ऐसी ज हो 17-Jun-20
47 तेरी पंखड़ी को चुमू 17-Jun-20
48 तब आँखे बं ध कर 17-Jun-20
49 तू मेरा प्रीतम हो 17-Jun-20
50 तेरे साथ रात गुजारं ? 18-Jun-20
51 कदम कदम पर तेरे 19-Jun-20
52 मिला था तुजे पहेली बार 20-Jun-20
53 तेरी लाल ओढ़नी 20-Jun-20
54 चुमलु गालो को तेरे 21-Jun-20
55 बाहों में कस कर 21-Jun-20
56 मैंने तो चुम लिया है 22-Jun-20
57 जिस जुलफ़ों को मैंने चूमना चाहा 23-Jun-20
58 मेरी बांहो में समाजा 24-Jun-20
59 प्रीतम , चले आवो 25-Jun-20
60 मधु-मिलन की इस रात को 6-Jul-20
दिल से वादा !
तेरे प्ार के शोले
दिल में मेरे
जलते रहेंगे ;
किया है मैंने
दिल से वादा !
जब तक जीयु
तेरी यादो की
गलियों में घुमू ,
इस बात का
किया है
दिल से वादा
29 Aug 1953
मैं तुम्ारी क्ा लगती हँ ?
एक ज़माना हो गया
तुमने जब
तय कर लिया ,
मैं तुम्ारा क्ा लगता हँ ,
पूछके ,
“ तुम मेरे प्ारे हो ना ? “ ;
क्ों न पूछा ,
“ मैं तुम्ारी क्ा लगती हँ ? “
शायद तुम्े
पूछने की जररत ही
ना लगी !
शायद तुम्े याद आ गयी
कई
अगले जनम की बात ,
जब
मजनू ने लैला को
फरहाद ने शिरीन को
मेहवाल ने सोहनी को
वीजाणं द ने शेणी को
कहा था ,
“ तुम मेरी प्ारी नहीं ,
मेरे प्राण हो «
10 Dec 2016
बहारे तो बहुत आयी
मुझे याद है
उम्र की तवारिख में लिखा वो दिन
ग्ीष्म का वो पहला पहला दिन ,
जब मैं
दिल में विरानो लेकर
तेरे घर पहुंचा ,
तब तू
बहार बन के
आँखों से उतरके
दिल में छा गयी ;
आज भी
तुम्े देखना चाहता हँ
तो आयने के सामने जाके
खड़ा हो जाता हँ ;
ख़ुद अपनी ही आँखों में
जांखता हँ !
ग्ीष्म के उस दिन से लेकर ,
बहारे तो बहुत आयी
बादलो भी बहुत बरसे,
मगर
मेरी पुरानी आँखों में
बसी है जो ,
वो तो आज भी
बिस साल से
कु छ कम ही है
02 Jan 2016
चाहत को कै से छिपाऊँ ?
एक उम्र की आहत को
छिपाये चला हं ;
चाहत को
कै से छिपाऊँ ?
चार बिस और चार के
चौराहे पर ,
अब न लेना
कोई मोड़ है ,
न अफसानो की
कोई होड़ है ;
सुबह होने से पहले
शाम ढल जाती है ,
फिर रात में ,
तुमसे अधूरी बात में
सुबह हो जाती है :
ज़रूर
फांसला कु छ कम होता चला है ,
शायद
इसी आश में,
गम भी
कु छ कम सताता है !
19 Jan 2017
क्ा तुमने कभी चाहा ?
मेरे जाने के बाद
करेगा कोई मुझे याद ?
ये तो हुई
बेकार की बात !
क्ा तुमने कभी चाहा
लेकर तुम्ारा नाम,
ज़माने में कभी
हो भी जाये
कोई बदनाम ?
मेरे लिए तो
यही बची है
काम की बात !
20 Jan 2017
क्ा सुनती हो ?
मैं इस पार
तू उस पार ,
तय न कर पाए
हमें कै से ,
प्रेम की सरिता में
बहना था मझधार ;
तेरे अफसानो की कश्ी को
मेरे अरमानो के
पतवार बांधे ,
आज भी तेरे
जिस्म की खूशबू
मेरे जिस्म को
लपेटे हुए है ;
क्ा सुनती हो ?
मेरी आहें
तेरे दिल की
टूटी हुयी दीवारोँ से
टकरा रही हैं !
पर
साहिल को कु छ और
मं ज़ूर था :
न हाथों से
तेरे आँचल को पकड़ पाया ,
ना बाहों से , दामन ;
03 Feb 2017
तो मेरा क्ा होता ?
क्ों मैंने आँखे चुराई ?
‘गर तूने
मेरी आँखों के आयने में
झांख के ,
खुद को
गौर से देखा होता
तो ,
मुझे छोड़ के
खुद से प्ार करने लगती !
तो मेरा क्ा होता ?
क्ा आँखों को कोसता ?
लोग पूछते है ,
“ क्ा है
तेरे प्ार की पहचान ? “
कै से बताऊँ
तेरा पता ?
तू जो छिपी हो
मेरी आँखों के रस्े
दिल की गहराइयो में
10 Feb 2017
यादो से कै से छू ट पाओगी ?
क्ा कभी कहा था तूने ,
“ मुझे याद ना कर ? “
कहती है मेरी वफ़ा ,
“ इजाजत नहीं तुझे ;
फ़रियाद ना कर «
ख्ाबोंमें तो दामन छु ड़ा कर
चली जाती हो ;
यादो से कै से छू ट पाओगी ?
मेरी वफाओ में
खता ज़रूर है ,
पकड़ कर तुम्ारा हाथ
क्ों छोड़ा ?
‘गर फरियाद हैं
तो खुद से ;
तुमने तो ये भी कहा था ,
“ साजन ,
मेरे साथ साथ चलोगे ना ? “
15 April 2017
वहाँ तो लहरा रहां था
लोगों शराब पी लेते हैं ,
मुझे न कोई जाम देने वाली,
इस लिए ,
मैं तो
बहाने बना लेता हँ ,
तुम्ारी याद भुलाने
ज़माने को क्ा क्ा
खत लिखता हँ !
जानते हुए की
बहुत कम पढ़ेंगे ,
पढ़ेंगे वो क्ा समझेंगे ?
और देखा ,
वहाँ तो लहरा रहां था
एक आंसू ओ का दरिया ;
न तू उसे भूल पायी ,
ना मै भुला हँ
उन रसीले ओठों से ,
रह रह कर उठे
वो लब्ज़ ,
“ पिया , पिया «
बिना पढ़े मेरे कवित
क्ों कर
तूने मुझे पहचाना ?
शायद मेरी आँखों में झाँखा ?
09 May 2017
लिखा है जो नाम तेरा
कहने को तो ज़िंदा हँ ,
सच कहु तो ,
अपने आप से शर्मन्ा हँ !
जिस बुलंदियों को छू ना चाहा
उस तक तो
आँख भी
न उठा पाया !
तुम्ारे पांव को तो
छू ने दो !
मुझे तुम्ारी आँख से तो
गिरने दो !
लिखा है जो नाम तेरा
दिल पे मेरा ,
गमो के अश्क से तो
न धो पाउँगा !
ज़माने से छु पाने की
कोशिश करता हँ ,
तुमसे कै से छु पाऊं गा ?
10 July 2017
इंतज़ार करोगी ?
आज की शाम
तेरा नाम लेकर आयी ,
बिना लिए तेरा नाम
ऐसी सुबहा तो
कभी ना आयी !
किये बिना आवाज़
मेरे ओठ फड़फड़ाते है ,
ज़माना न जाने
किसके
गीत गाते है !
कु छ क़र्ज़ बाकी है ँ
उसे
चुकाता चला जा रहा हँ ,
मेरे आने का
इंतज़ार करोगी ?
काश !
ये जानता की
तुम्े कितना इंतज़ार कराना
बाकी है !
मैं ने तो
तुम्ारे इकरार के सहारे
उम्र गुज़ार दी !
13 Nov 2017
मैं आ गई हँ !
ज़रूर कु छ देर से आयी
पर आयी जरूर ;
उषा के आने के पहले
तेरे आने का इंतज़ार था !
देख ,
क्ा लाया हँ तेरे लिए ,
जिस चंपा की कलिओं को
भवंरों का इंतज़ार था !
लिए हाथों में माला
मैं देखता रहा
मेरी कु टिया के दरवाजे खड़ा ;
वन से गुज़रती
उन अके ली राह को
झांखता रहा ;
तो मेरे तन्ा दिलकी
गहराईओं में घूमते
ख्ालों का आवाज़ !
आते आते ,
तूने बहुत देर कर दी !
जब मेरी बं द आँखों को
तूने ओठ से चूमा ,
तब मानो
किसी ने जगा कर ख्ाब से
कहा ,
“ मैं आ गई हँ ! "
शोचा ,
तुम आओगी
तब किस बहारों का
गीत गाओगी ?
होगा क्ा
जलवा तुम्ारा ,
गुलाब की पांखडिओं पर चमकता ,
कोहरा के बू ँद जैसा ?
पर वहाँ तो चुपकी थी ,
‘गर कु छ था
13 Feb 2018
मेरा प्ार आज भी कायम है !
रहा न तेरा हुश्न कायम
ना मेरी जवानी ;
आज बादल बरस रहे है
समं दर की मौजे गरज रही है ;
‘गर तू यहां होती
तो
मेरी आंखोमे आँखे
जांख कर देख लेती ,
कल रात
मेरे ख्ाबोंमें तू आ न पायी
इसका गीला किस्े करूँ ?
जी चाहता है
‘गर मिल शको तो
समं दर की बाँहों में
आके मिलु !
मेरा प्ार
आज भी कायम है !
Park Hayatt / Goa / 22 July 2018
तेरे लबो को छू ने
हज़ारो ख़याल आते है
रक कर , पल दो पल
चले जाते है !
रका है सिर्फ एक
तेरी छवि बन के ;
वो छवि
जिसे देखने
ढलते सूरज की किरणे भी
थम गयी ;
पिप्पल के पत्ो से गुजर
वो किरणे
तेरे चेहरे पर
धुप छाँव खेलती रही ;
तेरे हसीं होठो को
मैं आज भी तरसता हँ
तेरे लबो को छू ने
मैं आज भी मरता हँ !
24 July 2018 ( DP )
क्ा करोगी मुझे पसं द ?
तुम तो वही चाहोगी
जो मुझे पसं द हो ,
‘गर कहु के
मुझे तो एक तुम्ी पसं द हो
तो क्ा
खुद को चाहोगी ?
जो मुझे ना हो शके बिा्ज़स् ,
वो कै से कर पाओगी ?
कभी वो तो करके देखो
जो तुम्े खुद को पसं द हो !
क्ा ये भी पूछना पड़ेगा
“ क्ा करोगी मुझे पसं द ? “
न कर पाओगी !
11 Aug 2018 ( DP )
अरे , देखने दो !
ख्ाबो में छलक जाते है
पैमाने अरमाओ के ,
दिन होते ही
हर मैखाने में
पीता हँ जाम , ग़मो के !
क्ा ज़माने से डर के
कहेती हो ? ,
“ छोडो मेरा हाथ
कोई देख लेगा "
अरे , देखने दो !
दिल से जो पकड़ा था
दामन तेरा ,
वो तो
आज भी मैंने
छिपा रखहा है !
27 Aug 2018 ( DP )
आप ही हो !
हमारी मुस्ु राहट की
वजह आप हो !
हमारे लिए बहोत ख़ास
आप हो !
हमे मिली जब भी
कोई ख़ुशी ,
हम सोचेंगे
दुआ करने वाले
आप ही हो !
17 Nov 2018
उम्र भर चिपका रहँगा !
मेरे गीत सुर को ढूंढते है
और सुर ढूंढते है
सुरा को ,
साकी,
तेरे गाल को
मान के गुलाब लाल
तितली ने चूमा
पर तितली है बेवफा !
उड़ जाएँगी ,
छोड़ के गुलाब ,
चंपा से आंखे लड़ाएगी !
मै हँ
तुम्ारे चिबूक पर चिपका
काला तिल
मेरी वफ़ा को
समजो ना गलत ,
उम्र भर चिपका रहँगा !
न मैं ढूंढता हँ सुर को
ना सूरा को ,
कहाँ है मेरी साकी ?
30 Oct 2018 ( DP )
हर बार पूछू ं गा
न थी तू
इस जहाँ की सबसे पहेली
नवी , नवेली , नटखट नार ;
मेरे लिए तो
आने वाले हर जनम में
तुमसे मुलाक़ात होती ही रहेंगी ,
न था मैं
ज़माने भर का , एकला अनोखा
फिर भी
हर बार पूछू ं गा ,
छैल छबीला यार !
“ क्ा हम
फिर ऐसा क्ों ,
तुम्े देखते ही लगा ,
पहले भी , कभी , कहीं
मिले थे ? "
सूरत हो ना हो पहचानी
पर ज़रूर देखा है तुम्े
बार बार ,
तेरा मेरा
हर जनम में मिलना
अगर विधि की भूल भी है ,
और किया भी है हर बार
मुझे तो वो कबूल है !
प्ार ही प्ार !
ये बात इस जनम की नहीं ;
तुम्ारी बात तुम जानो ,
18 june 2019
तेरे ज़ुल्ोमें छिपा रखोगी ?
मैंने आज रोना चाहा
पर ज़माने से छु पा कर मुहं ,
कै से रोऊ ?
‘गर आज
तेरा आँचल होता
तो मेरा काम बन जाता ;
बैठा है यक्ष तेरा,
फिर हर सावन
इन तवारीखों में,
मेरे आंसू बन
बहेंगे जो झरने
उसे क्ू ँ छु पाऊं ?
क्ा मेरे अश्क को
तेरे ज़ुल्ोमें
छिपा रखोगी ?
जब रो न शका
सरेआम ,
तब बादलो से कहा ,
“ न तुम्े परवाह ज़माने की ,
न कफ़क्र किसी से छिपने की ,
गरज गरज कर बरसो ,
जा कर अलकापुरी
पूछो पिया को ,
क्ा दे पाओगी तेरी
लाल पिली चुनरी ?
उसे ओढ़ कर सोने की
आश में
सह्ाकरि की चोटि पर
19 July 2019 / Mumbai
क्ा प्रीतम आया ?
दिल के शोले
अब बुज़ने चले ,
जो कभी अंगारे थे
वो आज
राख होने चले ;
मुझे आज
तेरी आग में जलना है ,
शमा न होके ,
मुझे आज
परवाना होना है !
कभी कभा , कहीं से आके
हवाओं के ज़ोके ,
दामन से मेरी चुनरी उड़ाते है ;
बं ध कर आँखे शोचती हँ ,
“ क्ा प्रीतम आया ?
पुरानी शरारत लाया ? “
इन खयालो
अतीत से आते है ,
खूब सताते है
और कहते ;
“ कहो पिया
कहाँ आके ,
किस कदर मिलु ?
जलादे फिर एकबार ,
प्ार के वो शोले
सनम ,
हो न पाए ख़ाक
तेरी इश्क के शोले ;
25 July 2019
क्ा होना चाहोगे , अगले जनम ?
अगर तू पूछे ,
“ सनम ,
क्ा होना चाहोगे , अगले जनम ? “
तो क्ा कहं ? क्ा ना कहं ?
लिस्ट काफी लंबा है !
गोरे गोरे तेरे गाल पर
काला इक तिल बनु ,
बुरा न मानो तो ,
एक और तेरे चिबुक पर ;
तेरे काले घने ज़ुल्ो से खेलने
आवु बनी अनिल
ईशान से ;
आँखों में जो लगादे
हर सुबह
तो क्ों न बनु
रात जैसा काला काजल ?
और आँखों से गिरकर
कानो में झूलने दे
तो बनु मैं , कर्ण कु ण्डल !
कु बूल है तुझे
‘गर मैं बन पाऊ
तेरे होंठो की लाली ,
चौबीस सो घं टे
तेरे होठों को चुमनेवाली ?
इजाजत हो तो तेरे
गले को घर बनालू ,
मोतिओं का हार बन
न रोक पाओ तुम
वहाँ तक ज़ूम जाऊ !
और बांधले तू मुझे
पैरों में तेरे नाजुक ,
तो
बन घु ँघरू , खनका करू ;
ख्ाकहशो है हज़ार
कितनी बताऊँ , बार बार ?
‘गर मानो तो कहं
कौनसी है सबसे प्ारी ?
क्ा बनने दोगी
तेरी लाल पिली चुनरी का पालव ?
फिर कभी न तेरे दामन से
अलग होना न चाहँ !
अब छोडो मेरी बात ,
“ बोलो ,
तुम्े क्ा होना है , अगले जनम ?
वो क्ा बात जो कर न पायी , इस जनम ?
शर्म आती है ?
तो खुद अपने अनेरे अंदाज़ में
आँखे उठाके
इशारो से ही बता दो !
28 July 2019
होठो को क्ों चूमा ?
चौंक कर नींद से
तू उठी ,
मुझे भी जगाया
और बोली ;
“ दिनभर तो
तुम्ारी शरारते
भाती है ,
पर रात को तो
मस्ी करना छोडो !
आके ख्ाब में बार बार
क्ों सताते हो ? “
क्ा सताया मैंने ?
बता भी दो तो मानु !
“ होठो को क्ों चूमा ? "
मैं बोला :
झरर कु छ गलती से !
मेरी शरारतो पर
तेरे होठो का
क्ा कोई एकाधिकार है ?
क्ा इनके अलावा
मैं इन्े चुम नहीं शकता -
जैसे की ,
तुम्ारे लाल लाल गाल को ?
घु ं घरियाले तुम्ारे बाल को ?
गले से झूमता , चमेली के हार को ?
तेरी मरिभं गी मरोड़ वाली कमर को ?
ज़ूक शकु अगर और भी निचे तो ,
पैरो में बं धे पायल को ?
मैंने तो इन सबको चूमा ;
ज़माने से शरमाके
दिन में दूर भागती हो
इस लिए , रात को ही चूमा !
फिर बात तो ख्ाब की ही है !
‘गर तेरे होठो इतराने लगे
तो इस में
मेरी क्ा खता ?
गीला मत मानो ,
हो शके तो आके
मेरे ख्ाब में ,
वफाओं का बदला
गुस्ा छोड ,
वफाओं से ही ले लो !
10 Aug 2019 // Mumbai
तू जो कहे मेरे कानो में
तेरे आँगन रोपना चाहा
मेरी प्रीत का के सुडा ,
पर के सुडा चाहे
तेरी जवानी की फागुन का रंग ,
कहाँ से लाऊ ?
बिना सींचे आँख के आंसू
कै से मुस्ाये के सुडा ?
सुखाया जो
चैरि के ताप में ,
और मुरझाया
बैशाख के अगन जैसे अनिल में
इस में महक कै से लाऊ ?
इस आग बरसती दोपहर में
बन के कोयलिया
तू जो कहे मेरे कानो में ,
“ तू हु , तू हु , तू हु ",
वो तो मांगे रंग रधिर के
रंग लाल लाल ;
तो बनके लाल के सुडा
तेरे आँगन में ,
मैं फागन बन के आउ
14 May 2020 / Mumbai
क्ा दे पाओगी
तेरी चुनरी का रंग लाल
और
चुनरी की किनार पर
चार मोर की कतार ;
क्ा दे पाओगी ,
मांगू अगर इनमे से
वो मोर , जो है
मेरे दिल का चोर ?
मैं तो छु पा लू ंगा ,
पर दिल का चोर
करे मनमानी ,
और बार बार बोले ,
“ में आव , में आव " ,
तो उन्ें कै से रोकू ?
मैंने कही जो बाते
तेरे कानो में ,
सखिओ को मत कहना !
Mumbai / 19 May 2020
मुझे भी चाहत चुमवा
चुमवा
हरित रंगी कं चुकी इस धरा की ,
जैसे झुके
आभ से मेघ ;
कु छ वैसे ही ,
मुझे भी चाहत चुमवा मुज प्रिया की ,
कं चुकी ?
न , न , ना !
छिपी जो कं चुकी के पीछे ,
चोटियां
और बिच में
बनी जो
कं दरा की
Mumbai / 24 May 2020
तुजे ढूंढता हँ
सवेरे सवेरे
समं दर के किनारे किनारे
तुम्े ढूंढा ;
जहाँ नन्ी सी लहरें
किनारो तक पहुँचते पहुँचते
थक जाती है ,
थक कर
धरती के आगोश में
खो जाती हैं ;
मानो
तड़पती मछलिओं की तरह
सदा के लिए
सो जाती हैं ;
मैंने तुम्े वहीँ ढूंढा ,
पर वहां तू ँ न थी ;
कु छ था तो सिर्फ
आसमान का प्रतिबिंब ,
और थी
हज़ारों कौड़िओ से
मुज़े झाँकती
तेरी आँखे !
आजकल
मुझे पसं द है
उषा के गुलबदन जैसा
तेरा गुलाबी रंग ;
मरोड़ लेके
शयन से उठती उषा के ,
वक्ष को चुम कर
जिसे हेम ने किया लाल
ऐसा गुलाबी रंग ;
भर के दामन में एक बैचेनी
समं दर से अगाध एक बैचेनी ,
तुजे ढूंढता हँ
किनारे किनारे
May 25 2020 / Mumbai
तेरा नाम ?
आधी रात
अधर पर आया
तेरा नाम ;
मेरे गावं की गलियों में
सपनो से सुहानी रंग रलियो में ,
मयूर के हर पंख पर
किसने लिखा
तेरा नाम ?
क्ा कोई , कभी
देख पायेगा ,
इस किताब के हर पन्े पर ,
लिखा जो मैंने
तेरा नाम ?
25 May 2020 / Mumbai
कौन हो तुम ?
मैंने तो ढूंढी तुजे
सं सार के हर एक मेले में ,
पर मिली जब जब
हर बार पूछा ,
“ कौन हो तुम ?
जानी पहचानी सी
लगती हो तुम !
कहीं , कभी
मिले थे हम ? “
पहचानू भी तो कै से ?
मिलती हो ज़रूर
हर जनम ,
पर हरबार
रूप क्ों बदलती रहती हो ?
29 May 2020 / Mumbai
जब जब खो जाते है
शमा और परवाना ,
जब जब खो जाते है इश्क में
तू और मैं ,
प्ार का ए जलता अहसास ;
तब हो जाते है एक
सोते हुए अरमानो को
तू और मैं
जगा देती है
शमा ,
और
लिखने इस प्ार का अफ़साना ,
जाके ,
शम्ा से लिपट जाता है परवाना ;
29 May 2020
यक्ष आज का
चुमवा
दाल का दामन ,
जा उड़कर उज्ैन तक दक्षिण में
फिर मुड़कर पजचिम ,
आज आये पूरब से
वरण के बादल ;
शिप्रा के तीर
राह देखे मेरी पिया ,
पुराना ना सही
फिर भी हु मैं
यक्ष आज का ;
जा कर उसे दे मेरा सं देशा ,
हे मेघदूत ,
अनिल से कहं ;
“ हे , मेघदूत ,
‘गर मान ले मेरी बात
उम्र भर ना भूलू
तेरा अहसान
चिनार के पिले पत्े पर
लिखा जो मैंने प्रेम परि
आज तू लेजा ,
29 May 2020
कहाँ मेरा हमसफ़र ?
विषाद के अगाध सागर पर
अधूरी है मेरी सफर ,
चला मैं अके ला
चहुँ मैं ,
स्मृति नाव के सहारे ,
“ कहाँ मेरा हमसफ़र ? "
मुझे ललकारे महाकाल ,
लहरें समं दर की
करे हुंकार ;
30 May 2020 / Mumbai
जब जब बादल गरजे
भर जाये पानी से
दिल बादल का ,
तो
बादल रिमझिम बरसे ;
पर दिल मेरा बेचैन
जब जब बादल गरजे ,
आधी रात तक आँखे खोल ,
मेरी नज़रे
तुज को तरसे
जब उभर जाये
विषाद के सागरसे ,
कहाँ जाके बरसे ?
बरसना चाहे आँख पुरष की
बरस ना पाए , आँख पुरष की ,
01 June 2020 / Mumbai
आज के दिन
ढ़कने
तेरी अर्ध खुल्ी आबरू ,
बुनी है मैंने
चादर न ही ,
मान कर इसे चूनरी ,
ओढ़ ले ;
चादर एक मौन की ;
आज के दिन
रंगी भी मैंने
तुजे दू भी तो क्ा ?
घोल कर आँखों के आंसू में
लह के लाल लाल रंग में ;
छिपाने इज्त तेरी
आज दू तुजे
डुबो कर
घू ँघट मेरे मौन का !
आधी रात के चीत्ार में
मेरे निश्ास से भरे आसमाँ में ,
काली भी करी है
जैसे घनी अँधेरी रात की सियाही ;
02 June 2020 / Mumbai
कितने कदम बाकी है ?
अब पैर लड़खड़ाते है
चल न पाते है ;
आज भी डरता हँ ,
कितनी दफा कहा तुम्े ,
पर अब भी कु छ चलना बाकी है
“ मैं तुजसे प्ार करता हँ "
तुम तक पहुँचने लगेंगे
आज से लेकर चौबीस दिन
फिर और चौबीस दिन ,
डर इस बात से है
कु छ कम तो नहीं कहा ?
कितने कदम हो मुज़से आगे ?
आज भी
सपनो में तो कहता हँ
सहारा दिया जिन सबने
उन्ें छोड़ कर
तुम तक पहुँचने
पर डर इस बात से है ,
क्ा ख्ाबो में सून पाती हो ?
कितने कदम बाकी है ?
खुद को पूछते
03 June 2020 / Mumbai / DP
क्ा याद है तुजे ?
क्ा याद है तुजे ,
“ क्ा करेगा घर को लेकर ?
एक दिन आके मैंने कहा ,
बिना पूछे
तू ने तो बसा लिया
“ हो सकता है तबादला मेरा
शहर में तेरे ,
एक मं दिर न्ारा
मेरे मं गल दिल में,
तब घर मेरा
हो सकता है , तेरे घर के सामने ;
जिस मं दिर में
जले रात दिन
चराग मेरे प्ार का "
तब हो सकता है
उठते ही हर सुबहा
मुझे याद है ,
जांखलु खिड़की से मेरी ,
इतना कह कर जकड लिया था तूने
तब
मुझे अपनी बांहो में,
क्ा हो सके गा
तू भी झाँखती हो खिड़की से तेरी ?”
क्ा याद है तुजे ?
मुझे याद है क्ा तूने कहा
कहा ,
04 June 2020 / Mumbai / DP
कै से उडु ?
बरसों तक
सोने के पिंजरे में
मेरी बेईज्ती पर
क्ू ँ तुला हैं , भगवान ?
बं दी बना कर रखहा ,
पाँखे भी काट ली ;
अरे , सिर्फ एक दिन
बं द कर खुद को
अब क्ू ं
मेरे जिस्म में ;
खोल के पिंजर की दार
धके ल के बहार
कहते हो ,
फिर देख
तेरा हाल क्ा होता है !
“ जाओ
उड़ो खुल्े आकाश में "
कै से उडु ?
04 June 2020 / Mumbai
अब मेरी सांज ढलने लगी
खूब जानता हँ
मेरे ये घर को
तू बना न पायेगी
तेरा रेन बसेरा ;
ये जान कर
इस घर के सब दरवाजे
मैंने तोड़ दिए हैं !
किसे मालूम कब तेरे मन में ,
मेरे घर आनेकी
धून चढ़ आये !
बैठा है एक मोर ,
हो सकता है
मोर कभी थनगात करे
और बरखा को
“ में आव " कहे ;
हो सकता है
मोर की गहेकट
तुजे कु छ याद दिलाये ,
और
मुझे वो याद दिलाने
तू दौड़ी आये ;
होता अगर दरवाजा तो क्ा
तू इतनी देर ठहर जाती ?
इतनी राह देख पाती ?
जब तक दौड़ कर
मैं खोल्ु दरवाजा ?
तेरी राह तकते
पैरों की तेरी आहत सुनते ,
अब मेरी सांज ढलने लगी
बिन दरवाजे के
तो मैं क्ा करू ?
घर पर मेरे
12 June 2020 / Mumbai
तू ही मेरा कृ ष्ण हो
साकि ,
अब कितने जाम है बाकी ?
बैठ कर तन्ाइओ में
मैंने पिए ,
अमावस्ा के अंधेरो में
जाम पर जाम ज़हर के ;
के मान कर मुझे
श्ाम शाम रंगी ,
पहले खुद के होठो से लगा कर
फिर मुझे पिलाया
विष का प्ाला ,
और बोली ,
“ पी जाओ
माना था जिसे
इक छोटी सी अंजलि ज़हर की
वो तो सागर बन कर रह गयी !
देख कर मेरे गले पर
लिपटता
सांप कर्म का ,
क्ा तूने मुझे मान लिया
अमृत जान के इसे पी जाओ ,
मैं हँ तेरी मिरा ,
तेरे आश्ेष की प्ासी
जनमो जनम की
तृष्ण मिरा ,
तू ही मेरा कृ ष्ण हो "
नीलकं ठ ?
12 June 2020 / Mumbai
मैं ही तो हँ वो उदधि
मैं हँ इन्द्र
तू अलकापुरी की मलेका ;
‘गर न तेरे गावं में सागर
तो क्ा हुआ ?
मैं ही तो हँ
उछल रहा जो तेरे उर में
वो उदधि ;
मेरे गावं में ना कोई नदी ,
तो क्ा हुआ ?
मेरी यादो में
जो बह रही निरंतर
तू ही हो
वो सरिता ;
आज दोपहर
बन के बरखा की बदली
तू आसमां से बरसी ,
तब खिल उठा
मेरे मन का मोगरा
और
तन का जासूद ज़ूमा ;
फिर याद आ गई
कल रात की बात ,
जब
चबा कर मेरी अंगुली
तूने बात कही
तेरे दिल की ;
तुजे क्ा मालूम
खुल्े नैन
कै से बिताई मैंने
बाकी रैन
12 June 2020 / Mumbai
आषाढ़ के आने से पहले
इस बार
आषाढ़ के आने से पहले ही ,
गुलमोर के फू ल मुरझाये
और
चैरि ने सुखाये
मेरी आँख के आंसू ;
गुलमोर तो होगा हरा
बार बार ,
पर मैं तो हँ
ग्ीष्म की धुप में सूखी
पेड़ की ठूंठ ;
किस कदर
कहाँ से लाऊ , पत्े हरे ?
मेरे आंसुओ से
सींचे है जिसे मैंने ,
गुलमोर के फू ल लाल लाल
आ जायेंगे
बसं त में , हर बार
13 June 2020 / Mumbai
हर एक जनम की ख्ाकहश
उम्र बीती इक आश में
पर
मेरी तो ख्ाकहशे हज़ार ;
तो क्ा ,
मैं भी फसा हँ लाख चौरासी के फे रे में !
हर एक जनम में
बनाता रहंगा
महल एक
मिटटी का ;
ना थकू ं गा मैं
थक जायेगा सागर तेरा ,
कितनी बार मिटाएगा महल
मेरी हस्ी का ?
मैं तो मशगूल हँ
खुद को पहचानने में ,
क्ा है असल में अस्तित्व मेरा ?
अनंत और अनादि ?
जिसे ना कोई आकार वो निराकार ?
बिना किसी आश का अविनाशी ?
वही मिटटी , वही महल
वही हर एक जनम की ख्ाकहश ,
और हर बार
इक और ख्ाकहश का जनम
14 June 2020 / Mumbai
सपने , सपने , सपने
क्ा कहा कु छ तूने
सपनो में ?
जैसे तेरे वादों के बादल गरजे
पर बरसे नहीं !
समझ नहीं पाया ;
सपनो तो सिनेमा जैसे
आज यहाँ , कल कहाँ ?
किया जो प्ार आधी रात
देखता रहं उस प्रीत की वीडियो
कितनी बार ?
क्ों मौन से ही
बयां करती हो
प्ार का अफ़साना ?
सपने , सपने , सपने ,
क्ा होंगे भी कोई
मेरे अपने ?
हिलते हुए तेरे लबो से
कोई लब्ज़ ना निकले ,
15 June 2020 / Mumbai
ना तू साथी , ना हमसफ़र
कभी ज्ार और कभी भाटा ,
प्रिया ,
मत रोक प्रेम की कश्ी को
क्ा कभी हो भी सकता है
अलख से अलग
अस्तित्व कोई ?
बहने दे
जाना है उसे जहाँ
जाने दे ;
ना मैं प्रीतम
ना तू साथी , ना हमसफ़र ;
काल के महा सागर को
ना कोई अंत है , ना आदि ;
है तो सिर्फ
बहता निरंतर काल
16 June 2020 / Mumbai
तेरे गालो को चुमवा
जब छेड़ना चाहा अनिल ने ,
‘गर आसमां बेचे बादलो को
उड़ा कर तेरे ज़ुल्ो को
तेरा पालव भर दु ,
तेरे गालों को
बार बार चूमा ;
बनके गजरा मेघधनु का ,
तेरे ज़ुल्ो से
और उड़ाया पालव
खुद लटक जाऊ ,
तेरे दामन से ;
तू हो प्रिया चिर यौवना
तब हुआ बेहोश
बनके पवन मैं आउ
सं सार सारा
बार बार
देख कर जन्त का नज़ारा !
तेरे गालो को चुमवा
16 June 2020 / Mumbai
लेके होठो पे तेरा नाम
किसे खबर
कहाँ , कब , किस तरह
मेरी शाम आएगी ;
पर जानु इतना जरूर
के
आँखे बं ध होने से पहले
होठों पर
तेरा नाम आएगा ;
सदियों पहेले
मरण की आखरी क्षण
पापी ने लिया था राम नाम ,
तब उसे भी तो लिया था
प्रभु ने उगार !
याद है कै से
सांप की बना कर सीढ़ी
झरोखे प्रिया के
चढ़ा था तुलसीदास ?
मैं हँ
आजका , अर्वाचीन
तेरे प्रेम का दास ;
बना के सीढी इन गीतों की
चढ़ जाऊ
तेरे दिल के द्ार ;
ना मुझे मोक्ष की चाहत
जो तू मिले हर जनम में
तो मांगू प्रभु से
लाखो जनम ,
बन कर इंसान
मरना चाहुँ बार बार ,
लेके होठो पे तेरा नाम
हर बार
16 June 2020 / Mumbai
तू आज भी ऐसी ज हो
तू आज भी ऐसी ज हो ,
एक दिन
मेरे मन भायी
वैसी ज हो !
मुझे तो समय निगलता रहा ,
खुद को आयने में पहचानू
न अब वैसा रहा ;
पर वहाँ
अँधेरा नहीं ,
तुजे ढूंढने
न कोई चराग की जररत ;
जब जब चाहु
खोल के खिड़की ह्रदय की
देख लेता हँ तुम्े ;
समायी थी एक गममी के दिन
दिल में मेरे ,
तुजे तो छिपा रखहा है मैंने
ह्रदय के एक अनजान कोने में ,
तू आज भी ऐसी ज हो
17 June 2020 / Mumbai
तेरी पंखड़ी को चुमू
बकु ल को खिले
दो फू ल ,
एक तू , एक मैं ;
पर तेरी मेरी डाली अलग ,
मैं तो ज़ूम जाऊ
बसं त की लहर में ,
‘गर तू भी ज़रा ज़ूक जा
तो
तेरी पंखड़ी को चुमू
17 June 2020 / Mumbai
तब आँखे बं ध कर
मैं तो लिखता रहंगा
अनाडी जैसी
बाते बनाता रहँगा ;
पर दिन की उस घडी
जब तन्ाइओ
तुजे घेरती होगी ,
तब आँखे बं ध कर
मन ही मन में
फिर सून ,
लेके तेरे नाम की ,
माला जपता रहँगा ;
तेरे कान तक तो
मेरा गीत तेरे कानो में
कै सा गू ंजता है !
मेरी आवाज़
शायद
पहुँच न पाएगी ;
17 June 2020 / Mumbai
तू मेरा प्रीतम हो
मुज़े याद है
पकड़ कर हाथ मेरा
जब जब पूछा
तूने तो आँखे मु ं द ली !
इक दिन तू बोली ,
लगता है
“ तू मेरा प्रीतम हो ,
हो ना ? "
तेरे सवाल में ही
मेरे सवाल का जवाब छिपा था ;
मानो
अब सून भी लो मेरा जवाब ,
अँधेरी , काजल काली रात को
बिजली ने चिर दी !
“ क्ा तू मेरे हृदय की रानी हो ?
हो ना ? "
यही सवाल
मैं तो पूछ पूछ कर
थक गया था ;
17 June 2020 / Mumbai
तेरे साथ रात गुजारं ?
तू हो अनाडी
क्ा करोगी मेरे साथ
तेरी क्ा बात करँ ?
बाथम बाथ ?
पूछती हो सपने में आकर
आधी रात
“ तेरे साथ रात गुजारं ? “
किया जिसने मुझे म्ात
तू अचानक !
वो वाली बात ?
मैं अवाचक !
क्ा हो भी सकता है वो
सच कहं ?
कभी
न ख़त्म होने वाली रात ?
मुझे भायी तेरी बात ,
रातो वाली बात ,
सोचता रहा कै सी होगी ,
बातो वाली रात ?
18 June 2020 / Mumbai
कदम कदम पर तेरे
सुबहा से लेकर शाम तक ,
राधे ,
श्ाम के मुख में
मिरा ,
तेरा नाम ;
भुलाके तूने इस भव
लगाई प्रीत उस भव से ,
पर तेरे नाम की
लेकर नाम मेरा
मिरा ,
तू ने पिया प्ाला ज़हर का ,
रोम रोम में मेरे
क्ों ये अगन जलायी ?
तो मैंने भी पुकार के
“ मिरा , मिरा " ,
कदम कदम पर तेरे
जिंदगानी को ढूंढा ;
19 June 2020 / Mumbai
मिला था तुजे पहेली बार
इन तमन्ाओ को
कब तक सं भालू
प्रिये ?
‘गर
तुजे है डर ज़माने से शरमाने का ,
तो मैं भी ना उठा पाउ
इस अरमानो की
गठरी का भार ;
कहाँ तक चला जाय
मौन के सहारे ?
कु छ बोलके देदो
मौन को भी विराम !
आके
मेरे प्राण को जगा जा "
तब पता न था की
तू हो
मेरे भाग की नदी का
दूर का किनारा ,
याद है तुजे ?
जब गरूड़ की पाँख से उतर
मिला था तुजे पहेली बार ,
तब
मनाने जषन उस नज़ारे का
दुनिया ने किया था काम बं ध !
दबा रखहा है तूने
उस अफ़सोस को ?
मैं तो
अब तक उस अफ़सोस की
आग में जलता हँ !
अब कब तक सहुँ
बिरह की
असहनीय जुदाई को ?
अगली साल
मैं चलू ँगा
अरण्य की चाल
जब पहेली बार
तेरी आँखों के इशारो से
सूने प्ार के वो दो लब्ज़
“ पिया आजा
पर मिलाके हाथ
न तू कु छ बोल पायी,
सिर्फ आँखे जुकाली
ह्रदय के किस कोने में
20 June 2020 / Mumbai
तेरी लाल ओढ़नी
खिड़की से अंदर जांख के
तू बोली ,
पढ़ना है मेरे कवित
और गाना है मेरे गीत ,
तो
“ मुझे तेरी कविता पढ़नी है " ;
अंदर चली आ ;
अरे
कै से पढ़ेगी ?
‘गर आनेको अंदर
हो तेरी कोई मजबूरी ,
तो
खिड़की तो बं ध है
मैं आ जाऊ बहार ,
लोहे की जाली से ,
तेरी लाल ओढ़नी का सेहरा पहन
नज़र कै से पहुंचेगी ?
तुजे
गीत मेरे सुनाऊ
पर घर है मेरा
एक मजले का
और न है उसे कोई दरवाजा ,
20 June 2020 / Mumbai
चुमलु गालो को तेरे
सागर तीर
नज़र पहुंचे जहाँ तक
नीर ही नीर ;
सून कर बाते सागर की
मन में मलके
दिल में तरसे ,
मानव को मिलने
निकले मानव ,
मैं निकला हँ सागर को मिलने ;
सागर मेरा दोस्
काफी मेरे जैसा ;
अगाध दिल में छिपा कर
असं ख् बातें ,
फिर सागर से क्ू ं शर्माए ?
जैसे
सून कर मेरी बाते
तू मुस्ाये ,
और अगर चुमलु गालो को तेरे
तो
बिना कहे कु छ,
नैन झुकाये !
ज्ािातर अकथ्य बाते ,
दबे सूर में
कानो में धरती के
फु सफु साए ;
पर धरती तेरी दोस्
तद्दन तेरे जैसी ,
21 June 2020 / Mumbai
बाहों में कस कर
रसीला,
नाव को मेरी
किनारा प्ार का
अब भी
नसीब ना ;
कहने जैसी
बहुत बात बाकी है ;
तो बहने दे
जहाँ ले जाय
बाहों में कस कर
गरजती समं दर की लहर
करने जैसी
बहुत बातें ;
साकी,
छलक भी जाने दो
मेरी डोलती कश्ी को
मजधार का
है सहारा !
जाम जिंदगी का ;
किसे खबर अब
कितनी रात है बाकी !
मदहोश मैं ,
सुधा की मुझे क्ा ज़रूरत,
मिली जब मुझे
तेरे नैन की मदिरा ?
21 June 2020 / Mumbai
मैंने तो चुम लिया है
पचास साल की उम्र में
अब
माह पंदर बाकी ;
तब करता हँ
जीवन का सरवाला ,
और डरता हँ
कहीं जवाब में शून् पाउ ?
और पचास हे बाद
छोड़ पुराना गणित
नया गणित सीखने की
ना है मुज में कहम्त !
“ ना है कोई विकल्प
इस जीवन का " ,
मं रि ये तूने
मुझे बार बार समजाया ,
तो फिर देर रात
पहन के सपनो का आँचल
क्ों आती हो ?
ख्ाबो में क्ों सताती हो ?
क्ा तेरे भी कोई
सवाल है बाकी ?
‘गर है भी तो
कहाँ है मेरे पास
इनका जवाब ?
मैंने तो चुम लिया है
ज्ालामुखी के शिखरों को,
अब मेरे अंग अंग
भभूकता है
लावारस का अनंग !
बैशाख की धुप
मुझे क्ा जलायेगी ?
लेके जनम पतझड़ में
मैं पूराना हुआ हँ ;
प्रिया ,
मान कर चल
मुझे मृगजल,
उषा की पहेली किरण में चमकती
दूर्वा के तिनके से लपक कर
तेरे पैर को चूमती
ओस की बू ं दे ;
काश !
मेरा भी ये भाग होता !
22 June 2020 / Mumbai
जिस ज़ुलफ़ों को मैंने चूमना चाहा
जब जब करू याद ,
मेरे घर के सामने
उस
बिना पेड़ों की चट्ान को ,
सूरज ढलने चला था
और
तेरे काले ज़ुल्ो से
पवन खेल रहा था ;
तब हो जाता है ताजा
क्ा तमीज़ उसकी !
उस नज़ारा
जब तू बैठी थी
थाम के मेरा हाथ ;
जिस ज़ुलफ़ों को मैंने
चूमना चाहा ,
उसे उड़ाके ,
गले से तेरे
लिपट कर अपनी बांहे ,
मुए क्ों सताता ?
23 June 2020 / Mumbai
मेरी बांहो में समाजा
मेरी कश्ी का बनाने पाल
आस थी तेरे आँचल की ,
बिन पतवार की नाव को
अब बहना है मजधार ;
जिस नाव का हो नाम
निराशा ,
उसे और कौन सी आशा ?
राधिके ,
भूल गई की मैं कृ ष्ण हँ ?
पर अपूर्ण तेरे बिना
मैं तृष्ण हँ !
हज़ारों साल पहेले
भाई , भतीजा , भांजे को मारने ,
युद्ध के लिए
अर्जुन चला था ,
तब कर्म से डरा था ,
मन ही मन थरथरा था ;
तब मुझे
गानी पडी गीता ,
गति कर्म की
समजानी पड़ी ;
जिन्ो ने
किया है प्रेम मुजसे ,
जला कर उनके
पाप - पुण्य
मेरी प्रीत की आग में ,
मैंने किया मुक्त ;
मैं कृ ष्ण हँ , मैं कृ ष्ण हँ ,
लेके जनम
एक के बाद अनेक ,
क्ा तू भी न मिली हो मुझे ?
बन कर राधिका, श्ाम को ?
सीता बन कर राम को ?
साववरिी , सत्यवान को ?
तोड़के बं धन कर्म का
फिर एक बार आजा ,
छेड़ी है मैंने आज
बांसुरी तेरे लिए ,
छोड़ के सब काज
मेरी बांहो में समाजा
24 June 2020 / Mumbai
प्रीतम , चले आवो
तेरे घर का दरवाजा
मैंने खूब खटखटाया ,
पर तू तो
तेरे दिल से उठा
बार बार
एक ही आवाज़ ,
हाथो में छु पाके मु ं ह
रोति रही ;
“ प्रीतम ,
कौन सी मजबूरी ने
रके रखहा था तुजे ?
क्ों तमन्ाओ को
क्ों खटखटाते हो ?
दरवाजा खुल्ा हैं ,
चले आवो "
गले में घोंट रखहा ?
पर होठो से तेरे
निकल न पाए कोई लब्ज़ ,
धुल के गरम निश्ाश में
सरे दो आँखों से अश्क !
25 June 2020 / Mumbai
मधु-मिलन की इस रात को
धरती मेरे सपनो की
आ रहा हँ "
बुला रही है मुझे ,
‘गर चाहो सबूत
क्ों देती है दोष होठोंको ?
तो पूछो ,
“ छोड़ इस जीवन को ,
पिंजरे के
तोड़ इस बं धन को ,
क्ा भूल गया ,
मिलाके नज़रों से मेरी
नज़रे तेरी ,
किये थे जो वादे, आधी रात ?
देकर गवाह सितारों की
कहा था ,
प्रिये ,
आ रहा हँ
मधु-मिलन की इस रात को
नींद से उठकर अचानक
मन से हो कर व्ाकु ल
तूने पूछा ,
“ बिना इजाजत
आके मेरे सपनो में ,
क्ों चूम लिए
मेरे होठोंको ? "
मैं बोला ,
“ कौन मैंने ?
मैं क्ों होठो को चूमू ?
न मैंने चूमे
बनके गुनहगार
छिपे है
जो तेरी चोली के पीछे
उन पयोधर को !
देनी है सजा
तो दो उन्ें !
क्ों देती है दोष
होठोंको ? "
बनाने हमारी सोहाग रात ,
तेरे अधर को ,
06 July 2020