47 Edition
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कृ प्या शयान्ति बनयाएं रखे<br />
कॉलेज के पहले ही दिन उत्ाह से भरपूर अमन अपने कॉलेज के<br />
कैं पस की सैर पर निकला, इतने बडे कैं पस में घूमते हुए थक जाने<br />
के बजाय वो रोमांचित हुए जा रहा था। मैके निकल डिपार्टमेंट में<br />
रखी बडी-बडी मशीनों को देखकर भय और आनंद की अनुभूति<br />
एक साथ हो रही थी। स्ोरस्ष कॉम्प्ेक्स से आगे बढ़ते हुए अमन<br />
एक बडी गोल इमारत के सामने आकर रूक गया।<br />
इमारत को देखकर अमन के अंतरात्ा से आवाज़ निकली- यह<br />
कौन सा डिपार्टमेंट हो सकता है?<br />
तभी एक आवाज़ आई- “मैं लाइब्ेरी हूँ”<br />
अमन सोच में पड गया ये लाइब्ेरी तो अंतरात्ा की आवाज़ सुन<br />
रही है शायद शांति कु छ ज़ािा है यहां।<br />
अमन: मतलब तुम पुस्तकालय हो?<br />
लयाइब्ेरी : “पुस्तकालय नहीं, लाइब्ेरी कहो, ज्ािा कू ललगता<br />
है।”<br />
अमन: आपके यहाँ तो पढ़ाकू लोग ही आते होंगे?<br />
लयाइब्ेरी : नहीं, ऐसा नहीं है। यहाँ काफी चहल-पहल रहती है।<br />
बाहर जब चिलचिलाती गममी पड रही होगी, तब अपने कॉलेज के<br />
अधिकांश लोग यहीं मिलेंगे। यहाँ बैठने के लिए कु र्सियाँ कम पड<br />
जाएँ गी तो लोग फशशों पर भी बैठे हुए मिलेंगे।<br />
अमन: अच्ा... इतने बडे कै म्पस के बावजूद यहीं क्ों भीड<br />
इकट्ा होती है?<br />
लयाइब्ेरी: वातानुकू लित माहौल, जहाँ वाई-फाई की गति<br />
सववोत्तम है, कानों में इयरफोन लगाए शांति महसूस होती है।<br />
हज़ारों किताबें है पढ़ने के लिए।<br />
अमन: लेकिन यहाँ तो बस इंजीनियरिंग की किताबें होगी न?<br />
लयाइब्ेरी: अनसुलझे गणितीय समीकरणों की किताबों से लेकर<br />
मशीनी नियमों वाली किताब भी है। ‘हैरी पॉटर’ की जादुई दुनिया<br />
से लेकर ‘पाउलो कू ल्ो’ के जीवंत किरदार वाले उपन्ास भी है<br />
इतना ही नहीं मंटो और प्ेमचंद की भी किताबें हैं हमारे पास।<br />
यहाँ प्तियोगी परीक्ाओं की तैयारी करने वाले बैठे मिलेंगे तो<br />
कभी सेमेस्टर की परीक्ाओं से पहले नोरस बनाते हुए छात्र भी।<br />
कु छ संगीत का आंनद भी ले रहे होंगे तो कु छ अपने शोध-पत्र<br />
के लिए पढ़ रहे होंगे।चार वरशों का अधिकतर समय इसी छत के<br />
नीचे बीतने वाला है। पूरे कॉलेज की ज़िंदगी का कें द्र बिंदु यही है।<br />
अमन: यह तो काफी दिलिस् और मजेदार जगह लग रही है!<br />
लयाइब्ेरी: हाँ, पर एक बात का खास ध्ान रखना,शांति बनाए<br />
रखना...तभी अंतरात्ा की आवाज़ सुनाई देगी!<br />
- सौरभ तिवारी, तृतीय वर्ष, एम.ए.एम<br />
DTU Times • May - July 2019 • 34