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oct2015 hindi (1)

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अक्टूबर २०१५ 13 जाफ़री अॉबज़रवर<br />

अक़ीदा<br />

इमाम हुसैन (अ.स.) का ग़म मनाना अक़ीदे का<br />

क़ु िरती नतीजा है<br />

जब कभी कोई गंभीर व्यक्ति उन मुसीबतों के बारे में सोचता<br />

है जो रसटूले अकरम (स.अ.व.व.) और उनके अहलेबैत (अ.स.)<br />

ने सहन कीं उसका दिल उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता<br />

और उसकी आंखों से आंसटू बहने लगते हैं। आंसटूओं से भरी आंखों<br />

पर अल्ाह अपनी रहमतें नाज़िल करता है और वह अपने उन<br />

बं दों को अधिक सम्मानित करता है।<br />

जैसा कि जब कोई व्यक्ति पापों से किनाराकशी इख्ेयार<br />

करता है और दुनिया की ख्ाकहशों से अपने दिल को पाक करके<br />

अल्ाह से मदद का अनुरोध करता है और उसके चुने हुए बं दों<br />

(मुहम्मद व आले मोहम्मद (अ.स.)) का उल्ेख करता है तो दिल<br />

और अधिक विनम्र होकर तौफ़ीकात स्ीकार करने में सक्षम हो<br />

जाता है और उसकी आँखें और अधिक आंसटूओं से भरने लगती<br />

हैं।<br />

अल्ाह की निकटता प्राप्त करने का सबसे अच्ा रस्ा है कि<br />

उन अवसरों पर खुश हो जब अहलेबैत (अ.स.) खुश होते हैं और<br />

उन अवसरों पर दुखी रहे जब वह दुखी होते हैं।<br />

इमाम जाफ़र साकदक़ इब् मोहम्मद अलसादिक (अ.स.) ने<br />

फरमाया:<br />

‘हमारे मानने वाले आपस में एक दूसरे से प्ार और दया<br />

इमाम अली इब्े मूसा अल-रजा (अ.स.) ने फ़रमाया:<br />

r<br />

से पेश आते हैं जब वे अके ले होते हैं या जब एक निजी<br />

सभा में बैठते हैं वह अल्ाह को याद करते हैं बेशक हमें<br />

याद करना अल्ाह को याद करना है और जब कोई<br />

हमारे दुश्मनों को याद करता है वह शैतान को याद करता<br />

है। ’<br />

(अल-काफ़ी, जि. २, पृ. १८६)<br />

इसलिए अल्ाह के मुन्तखब बं दे और नाएबों की खुसटूसियतें,<br />

बातें, काययों, उनके जन्म और शहादत के मौकों पर उन्ें याद करना<br />

अल्ाह को याद करना और इबादत है।<br />

अहलेबैत (अ.स.) की मुसीबतों खास कर इमाम हुसैन<br />

(अ.स.) की मुसीबतों को याद करने के सवाब और लाभ के बारे में<br />

कई हदीसें नकल की गई हैं, लेकिन यहाँ हम के वल दो हदीसों का<br />

उल्ेख करेंगे:<br />

रय्यान इब्े शबीब से रिवायत है कि इमाम अली इब्े मटूसा अल-<br />

रज़ा (अ.स.) ने फ़रमाया:<br />

‘ए शबीब के बेटे! मुहर्रम वह महीना है जब जाहिलियत के<br />

दिनों के युग के लोग भी इस महीने की पवित्रता में ज़ुल्म<br />

व खटून बहाने से परहेज़ करते थे। मगर इस कौम ने न तो<br />

इस महीने की पवित्रता का ही कोई ध्ान रखा और न ही<br />

उन्ोंने अपने नबी की इज़्ज़त और पवित्रता का कोई<br />

ए शबीब के बेटे! जब तुम इमाम हुसैन (अ.स.) की मुसीबतों पर गिरया करोगे<br />

और तुम्ारे आंसू तुम्ारे गाल पर बह आएं गे अल्ाह तुम्ारे सारे छोटे बडे<br />

गुनाहों को माफ़ कर देगा चाहे संख्ा में कितने भी हो।

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