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oct2015 hindi (1)

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अक्टूबर २०१५ 9 जाफ़री अॉबज़रवर<br />

करबला में फ़तह किसकी और क्ो?<br />

दुनिया में जो साहिबे अ़ क्ल भी कोई अमल अंजाम देता है तो<br />

उस का कोई न कोई मक़सद होता है और मक़सद के ऐतेबार से<br />

कामयाबी न नाकामी का फ़ै सला होता है। अमल के दौरान पेश<br />

आने वाले हालात व कै फ़ियात न कामयाबी की अलामत हैं और न<br />

नाकामी की।<br />

एक काश्तकार अपने काम का आग़ाज़ करता है तो सब से<br />

पहले ज़मीन की हालत खराब होती है। उस के बाद वह उस में दाना<br />

डालता है, दाना खाक में मिल जाता है फिर ज़मीन पर बहने वाला<br />

साफ़ व शफ़्ाफ़ पानी खाक में जज़ब हो जाता है। उस के बाद<br />

फ़सल को सहारा देने वाला कीमयावी माद्ा ज़ेरे ज़मीन गुम हो<br />

जाता है,तब कहीं ज़राअत का अमल मुकम्मल होता है। जिस में<br />

ज़ाहिरी तबाही व बर्बादी के सिवा कु छ भी नही है लेकिन जब चार<br />

महीने ग़ुज़रने के बाद लहलहाता हुआ खेत सामने आता है तो सब<br />

यही कहते हैं कि किसान अपने अमल में कामयाब है। किसी ने उस<br />

की कामयाबी पर यह ऐतेराज़ नही किया कि दाना बर्बाद हो गया,<br />

पानी जज़ब हो गया, खाद का पता नही चला, इस लिये कि कामयाबी<br />

का फ़ै सला नतीजे के ऐतेबार से होता है। हालात व मुक़द्ेमात के<br />

ऐतेबार से नही। मक़सद हासिल हो गया तो इंसान हज़ार मसायब<br />

के बा वजटूद कामयाब है और अगर मक़सद हासिल नही हो सका<br />

तो इंसान लाखों राहतों के बा वजटूद नाकाम है।<br />

इस बुनियाद पर यह फ़ै सला करना आसान है कि करबला के<br />

मारके में फ़ातेह कौन है और क्शकस् खुरदा कौन? दोनो फ़रीक़ै न<br />

का मक़सद देखना होगा और फिर मुक़द्ेमात के हुसटूल व अदमे<br />

हुसटूल का जायज़ा लेना होगा। इमाम हुसैन अलैहिस सलाम की<br />

निगाह में दुनिया का कोई आराम न था, उन्ोने मसायब का रास्ा<br />

इख़्तियार किया था और अपने क़त्ल की पेक्शनगोई कर दी थी।<br />

उस के बर खखलाफ़ यज़ीद हुकटू मत चाहता था और दीने मुहम्मदी<br />

इसलामी इतिहास<br />

सैयद बहादुर अली ज़ैदी<br />

(स.अ.व.व.) को खेल तमाशा कह रहा था।<br />

अब इमाम हुसैन (अ.स.) और यज़ीद का मअरेका सिर्फ़ इस<br />

मरहले पर था कि दीन बाक़ी रहे या मिट जाये, रिसालत की हक़ीक़त<br />

व वाक़े ईयत साबित हो या बनी हाक्शम का खेल तमाशा साबित हो<br />

जाये। यज़ीद ने सारा ज़ोर सर्फ़ कर दिया कि रिसालत तमाशा बना<br />

जाये, दीन फ़ना हो जाये और अबटू सुफ़यानके क़ौल के मुतातबक़<br />

यह ग़ेद बनी उमय्या के गिर्द नाचती रहे।<br />

जब कि इमाम हुसैन (अ.स.) का सारा जिहाद इस मक़सद के<br />

लिये था कि दीने इलाही बाक़ी रह जाये। रिसालत का वक़ार ज़िन्ा<br />

रहे। इस्ाम की आबरू ज़ाया न होने पाये। चाहे इस राह में मेरा<br />

लाश पामाल हो जाये और मेरा भरा घर उज़ड़ जाये। इन हालात में<br />

नतीजा तबकिु ल सामने है अगर यज़ीद इंकारे रिसालत में कामयाब<br />

हो जाये तो मआज़ अल्ाह इमाम हुसैन (अ.स.) अपने मक़सद में<br />

कामयाब न हुए लेकिन अगर यज़ीद खुद ही इमाम ज़ैनुल आबेदीन<br />

(अ.स.) के खुतबे को क़ता कर करने के लिये ऐलान कराये कि<br />

अशहदो अन्ा मुहम्मदन रसटूलुल्ाह तो यह बात इस की दलील है<br />

कि यज़ीद ने अपनी क्शकस् का ऐतेराफ़ कर लिया और इमाम<br />

हुसैन (अ.स.) ने करबला के बाद शाम का मअरेका भी फ़तह कर<br />

लिया।<br />

अगर यज़ीद शराब व बदकारी व अय्यारी को मज़हब में रवा<br />

रख सके तो वह अपने मक़सद में कामयाब है और इमाम हुसैन<br />

(अ.स.) की क़ु बा्रनी ज़ाया हो गई और अगर यज़ीद की हिमायत<br />

करने वाले भी शराब व बदकारी को बुरा और हराम कह रहे हैं तो<br />

यह अलामत है कि इमाम हुसैन (अ.स.) कामयाब और यज़ीद<br />

नाकाम हो गया।<br />

इमाम हुसैन (अ.स.) की उसटूली कामयाबी के बाद हालाते<br />

ज़माना का जायज़ा लिया जाये तो हर दौर के हालात इमाम हुसैन<br />

बाकी सफह न. १८ पर

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