oct2015 hindi (1)
Create successful ePaper yourself
Turn your PDF publications into a flip-book with our unique Google optimized e-Paper software.
अक्टूबर २०१५ 11 जाफ़री अॉबज़रवर<br />
के ज़रीए इशारा किया था<br />
हुसैनुम् मिन्नी व अना मिन् हुसैनिन्<br />
यही कारण है कि नवासे ने मानव और नैतिक मटूलों की रक्षा<br />
में रति की आखिरी बटू ं द तक वह कारनामा किया जिसकी मिसाल<br />
रहती दुनिया तक नहीं मिल सकती। हुसैन (अ.स.) ने इस तरह<br />
नैतिकता की पटूरी तस्ीर कर्बला में प्रदान की जिसका न के वल<br />
प्रदर्शत बल्कि भीतर भी समानांतर और नरम था। इमाम हुसैन<br />
(अ.स.) के कयाम में पेश किए गए नैतिकता की विशेषता यह है<br />
कि पुरआशोब वातावरण में उनकी पटूण्र, सत् और व्यावहारिक<br />
तस्ीर पेश की गई जबकि उनके नैतिक गुणों को विभिन्न जातियों<br />
और विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले, विभिन्न लिंग और सन और वर्ष से<br />
सं बं ध रखने वालों ने मासटूम रणनीति के अनुसार सजाया। कर्बला<br />
की नैतिकता की एक और विशेषता यह है कि उनके नैतिक गुणों<br />
को प्रदान करने वाले फि़ क्रो अमल के आधार पर सं गत थे और<br />
उनमें से कोई भी सिद्धांत के दायरे से हरगिज़ कदम बाहर नहीं<br />
निकाला।<br />
इन गुणों की पृष्भटूमि में जब कर्बला पर निगाह पड़ती है तो<br />
सभी नैतिक गुण अपनी आबो तब के साथ जगमगाते नज़र आते<br />
हैं। बहादुरी, त्ाग और बलिदान, रियाज़त व इबादत, इताअत व<br />
बं दगी, सब्र व बुर्दबारी, जटूद व सखा, अधिकारों का भुगतान, हक़<br />
तलबी, पदनाम का पास व लेहाज़, वफ़ादारी, अत्ारार सतीज़ी<br />
जैसे न जाने कितने गुण सब के सब अपनी सही स्थिति में जलवा<br />
फ़िगन हैं । यहाँ एक विशेषता में सं लग्न होना दूसरे से अनजान होने<br />
का कारण नहीं बनता। यहाँ मैदाने जिहाद में रज़म का हंगामा हैं<br />
साथ ही साथ नमाज़ का समय आते ही जमात की सफ़बं दी है।<br />
इमाम हुसैन (अ.स.) जितने बड़े बहादुर थे उतने ही दयालु,<br />
यहां बहादुरी का मतलब यह नहीं कि प्रतिद्ंद्ी को नेस्नाबटूद कर<br />
दिया जाए बल्कि यहां इमाम हुसैन (अ.स.) सुलह के सभी मागयों के<br />
बं द हो जाने के बाद बुज़दिलों की तरह अपने को तसलीम नहीं<br />
करते लेकिन अाज़ाद पुरुषों की तरह डटकर मुकाबला करते हैं<br />
लेकिन इस मुक़ाबले में भी घायलों पर हाथ नहीं उठाते। मैदाने<br />
कारज़ार में क्ा किसी ने ऐसा मुजाहिद देखा है जो अपने दुश्मन<br />
पर वार करे और वह घायल होकर गिर जाए तो घायल करने वाला<br />
खुद पटूछे कि मैं तेरी क्ा मदद कर सकता हूँ। उसने कहा, मैं उठने<br />
लायक नहीं तो मेरे भाई को आवाज़ दें कि मुझे आकर ले जाए।<br />
मैदान कारज़ार में इमाम हुसैन (अ.स.) ने पीछे हटे हुए दुश्मन पर<br />
वार न करके अपने भाई को आवाज़ दी और जब तक वह न आया<br />
आपने उसे उठाकर सं भाले रखा। क्ा दुनिया ने ऐसा शुजा भी<br />
देखा है?<br />
दुश्मन की पटूरी सेना को प्ास की शिद्दत में देखकर अपना पटूरा<br />
पानी न के वल उन्ें बल्कि जानवरों तक को पिला देना वास्व में<br />
अखलाक का बहुत अछटू ता नमटूना है लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.)<br />
के अखलाक की यह विशेषता मुझे उस समय बहुत महान दिखाई<br />
देती है जब इमाम हुसैन (अ.स.) उन्ीं सैनिकों के हाथों प्ास की<br />
तीव्रता से पीकड़त होते हैं और प्ासे बचे को लेकर उन्ीं से मांग<br />
करते हैं लेकिन इतिहास ने नहींलिखा कि यहाँ इमाम हुसैन (अ.स.)<br />
ने एहसान जताया हो कि मैं आप में से बहुतों को पानी पिलाया था<br />
इसलिए अब कम से कम मेरे बचे की ही प्ास बुझा दो। उनके<br />
दुश्मनों पर ज़जन्ोंने सभी मानव और नैतिक सिद्धांतों का हनन कर<br />
दिया हो एहसान करके एहसान न जताना वह ऊं चाई भटूमिका है<br />
इमाम जाफ़र सादिक़ इब् मोहम्मद अलसादिक (अ.स.) ने फरमाया:<br />
r<br />
‘हमारे मानने वाले आपस में एक दू सरे से प्ार और दया से पेश आते हैं जब<br />
वे अके ले होते हैं या जब एक निजी सभा में बैठते हैं वह अल्ाह को याद करते<br />
हैं बेशक हमें याद करना अल्ाह को याद करना है और जब कोई हमारे<br />
दुश्मनों को याद करता है वह शैतान को याद करता है। ’<br />
(अल-काफ़ी, जि. २, पृ. १८६)