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oct2015 hindi (1)

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जाफ़री अॉबज़रवर 8 अक्टूबर २०१५<br />

सफह नं. ४ का बाकी<br />

मिना क़ु बा्रनगाह या क़त्लगाह!<br />

इस साल एक बार फिर मैदाने मिनी में रमीए जमरह के अवसर<br />

पर हज़ारों हाजियों को अपनी जान की भेंट देनी पड़ी। एहराम<br />

पहने हाजियों को सरज़मीने वही पर सऊदी अधिकारियों की बद<br />

प्रशासनिक एवं अक्भमान और अहंकार में डटूबे हुए शहज़ादों के<br />

लिए किए जाने वाले वीआईपी व्यवथिा की भेट चढ़ना पड़ा। अपने<br />

को दूसरों से बेहतर समझने वाले लेकिन असलियत में दूसरों से<br />

कहीं कम लोगों के लिए मेज़बानी के सिद्धांतों को तिलांजलि रखते<br />

हुए दुसरे मनुष्य को कब तक कु र्बान किया जाता रहेगा? कब तक<br />

‘‘भगदड़’’ की आड़ में बेगुनाहोंके खटून की होली खेली जाती रहेगी?<br />

क्ा अब समय नहीं आ गया है कि बार बार की बदइंतेज़ामी के<br />

मद्ेनजर हज प्रबं धन मामलों के लिए जि़ म्मेदार सरकार से यह<br />

जि़ म्मेदारी ले कर किसी अंतरराष्ट्ीय और बयनुल मस्की समिति<br />

को आवंटित कर दिया जाए ताकि अल्ाह के घर की ज़ियारत के<br />

लिए जाने वाले मोमिनों और मुसलेमीन की जान-माल की रक्षा हो<br />

सके और वह समिति हज के सं स्ार को बेहतर रूप से आयोजित<br />

करा सके । इस प्रकार खुदावंदे मुतआल के घर की ज़ियारत के लिए<br />

दूरदराज़ के क्षेत्रों से सख्तियां सहन करके आने वाले यात्रियों को<br />

असहज और चिन्ता से मुक्ति दिलाई जा सके ताकि यह सब सं स्ार<br />

हज को शांति की छाया में आराम हृदय के साथ अंजाम दे सकें इस<br />

तरह शायद उन माताओं और विधवाओं, अनाथों की आँखों से<br />

आँसटू पोछें जा सकें जिनके प्रिय मैदाने मिना में कु र्बान हो गए। इस<br />

सं बं ध में हमें यह घोषणा करते हुए कोई सं कोच नहीं है कि बड़े से<br />

बड़ी सभा का बहुसनो खटूबी इन्तेज़ाम करने में मोहिब्बाने अहलेबैत<br />

(अ.स.) से बेहतर कोई नहीं है। हमारे इस दावे की वैसे तो कई<br />

दलीलें हैं लेकिन यह दलील हर साहिबे न्ाय स्ीकार करेगा कि<br />

जिस दिन मैदाने मिना में यह त्रासदी हुई उसी दिन दुनिया में एक<br />

थिान पर मिना से कहीं अधिक भीड़ थी जिसकी सं ख्या २ करोड़<br />

तक बयान की जाती है। यह महान सभा इराक के पवित्र शहर<br />

करबलाए मोअल्ा में हुई थी। यही नहीं बल्कि इतनी बड़ी सं ख्या<br />

में एकत्रित होने वाले ज़ाएरीन की सं ख्या वर्ष के ४ मौकों पर दिखाई<br />

देती है और अरबईने हुसैनी (अ.स.) के मौके पर तो लगभग तीन<br />

करोड़ ज़ाएर जमा होते हैं। ठीक इसी तरह अरबईन के अगले<br />

सप्ताह लगभग उतना ही बड़ा मजमा ईरान के शहर मशहद में<br />

आठवें इमाम (अ.स.) की शहादत के अवसर पर होता है मगर<br />

बेहम्दिल्ल्ाह न कोई भगदड़, की खबर होती है, न बद इन्तेज़ामी<br />

का कोई क्शकवा करता है, और न पानी की कमी और आहार की<br />

आपटूर्त में कमी का गिला होता है। इसका मतलब है खानदाने<br />

अहलेबैत (अ.स.) के प्रेम व विलायत की चत्र छाया में परवान<br />

चढ़ने वाली कौम प्रशासनिक मामलों में शेष सं युति विशेष कर<br />

तथाकथित खादेमुल हरमैन और हाजियों के खटून पसीने की कमाई<br />

से शानदार बज़म सजाने वाली ज़ालिम व जाबिर अाले सऊद से<br />

कहीं बेहतर ही नहीं बल्कि ज़ादा हकदार है। लेकिन हम अपनी<br />

इस सफलता का कारण हुसने इंतेज़ाम से अधिक आथिा के आधार<br />

पर अल्ाह से मिलने वाली ताकत को समझते हैं। और इस पर<br />

बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त में आभारी हैं। आलमे इस्ाम को जागरूक<br />

होकर सरज़मीने वही को, जो सभी मुसलमानों की सं युति विरासत<br />

है, नज्द के लुटेरों और ‘‘अय्याशों’’ से निजात दिलानी चाहिए और<br />

इसे सही इस्ाम और आथिा का कें द्र बनाने के लिए उन्ें जिम्मेदारी<br />

दी जाए जिनके सीनों में इश्के रसटूल (स.अ.व.व.) व आले रसटूल<br />

(अ.स.) के साथ कु रानी तजल्लियाँ हैं ताकि एक दिन जब इसी<br />

धरती से वारिसे काबा व मक्ा और मिना हज़रत बकीयतुल्ाकहल<br />

आज़म इमाम महदी (अ.त.फ.श.) का ज़ुहूरे पुर नटूर हो तो दुनिया<br />

कहे अब तक खादिमाने इमाम (अ.स.) मह्े इंतेज़ाम थे अब दीन<br />

के मटूल वारिस का आगमन है जिनकी हुकटू मत ज़मीन को न्ाय से<br />

भरने वाली है।<br />

खुदावंदे आलम वह दिन जल्ी लाए और हमारे अक्भभावक<br />

व वारिस आक़ाओ मौला (अ.त.फ.श.) के ज़ुहूर में ताजील हो।<br />

आमीन।<br />

सफह नं. १६ का बाकी<br />

ज. एहतियाते वाजिब यह है कि अगर यह जानता है कि महिला<br />

बेहया नहीं है तो उसकी तस्ीर न देखे हां चेहरा और दोनों<br />

हाथों की हथेलियाें के लिए इस आदेश में छटू ट दी गई है<br />

इसलिए शहवत की दृष्टि के बिना तस्ीर देख सकता है<br />

एहतियाते वाजिब यह भी है कि बे पर्दा फोटो न देखे।

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