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oct2015 hindi (1)

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जाफ़री अॉबज़रवर 18 अक्टूबर २०१५<br />

सल्ल्ाहो अलैहे व आलेही।<br />

दस्ीं मोहर्रम को रोज़ा रखना मकरूह है।<br />

(तौज़ीहुल मसाएल, म. नं. १७५६)<br />

रोज़े आशटूरा असर तक न कु छ खाए न पिए बल्कि फ़ाका करे।<br />

इस महिने की अहम तारीखें<br />

(२) इमाम हुसैन (अ.स.) सन. ६१ हीजरी में अपने साथीयों के<br />

साथ करबला पहुँचे।<br />

(७) इमाम हुसैन (अ.स.) और उन के साथियों पर करबला मे<br />

सफह नं. १४ का बाकी<br />

किसी दयालु माँ से अधिक तुम से प्ार से पेश आएगा<br />

और हमारे क्शयों में जो भी हमारे दुख में रोता है उन<br />

मुसीबतों में जो हम पर पड़ी तो इससे पहले कि उसके<br />

आंसटू निकले अल्ाह उस पर दया प्रकट करता है और<br />

इस प्रक्रिया का इतना ज़ादा सवाब है कि अगर उसका<br />

वह आँसटू जो उसके गाल पर बह कर आता है वह अगर<br />

जहन्ुम में गिर जाए तो उसकी आग बुझ जाएगी।<br />

(कामेलुज़ ज़ियारात, पृ. १०१, हदीस ६, बिहारुल अनवार, जि. ४४, पृ. २८८)<br />

पानी बं द हुआ।<br />

(१०) रोज़े आशटूरा इमाम हुसैन (अ.स.) और उन के साथी सन<br />

६१ हिजरी में शहीद हुए।<br />

(१७) अब्रहा के लशकर ने खाने काबा पर हमला किया और येह<br />

साल आमुल फील कहलाया।<br />

(१८) सन. ६ हिजरी मे किबला तब्ील हुआ।<br />

(२५) शहादते इमाम जैनुल आबेदीन (अ.स.) सन. ९४-९५<br />

हिजरी<br />

सफह नं. १५ का बाकी<br />

अपनी चिन्ताओं और परेशानीयों से छु टकारा पाना<br />

चाहता हो वह सुरह तकासुर की तिलावत करे। और<br />

जो अस्र के समय इस सटूरह की तिलावत करता है उसे<br />

अल्ाह तआला दूसरे दिन सटूरज के डटूबने तक उसकी<br />

रक्षा करता है।<br />

सफह नं. ९ का बाकी<br />

(अ.स.) का कामयाबी का बबानगे दोहल ऐलान कर रहे हैं। यज़ीद<br />

कामयाब होता तो उस की कामयाबी के असरात होते लेकिन आज<br />

न उस की क़ब्र का निशान है न उस के ज़ायरीन हैं, न कोई उस का<br />

नाम लेवा है, न उस की बारगाह है, न उस की तज़किरा है, न उस<br />

की राह में फ़िदाकारी है, न उस की परचम है, न उस का कोई नाम<br />

व निशान है और अगर कोई नाम है तो वह दाखखले दुशनाम है।<br />

लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) आज भी हर जेहत से फ़ातेह<br />

और कामयाब हैं, हर मुहर्रम उन की फ़तह का ऐलान करता है। हर<br />

घर में उन का अज़ाखाना सजाया जाता है। हर शाहराह पर उन का<br />

परचम लहराता है। हर बज़म में उन का तज़किरा होता है। हर प्ासे<br />

को पानी उन ही के नाम पर पिलाया जाता है। हर क़ानटूने इलाही<br />

और तालीमें इस्ाम का चर्चा उन्ी की मजालिस में होता है। हर<br />

अखबार उन ही तज़किरा करता है। हर रिसाला उन ही का नंबर<br />

निकालता है। हर मुसलमान उन ही को खखराजे अक़ीदत पेश करता<br />

है। हर शरीफ़ ग़ैर मुस्लिम उन ही की बारगाह में सरे नियाज़ झुकाता<br />

है। हर मुवर्रख उन ही को तारीख साज़ क़रार देता है। हर मुफ़तक्र<br />

उन ही के फ़लसफ़ ए जिहाद को अपनाता है। हर अदीब उन ही को<br />

सब्र व इस्स्क़लाल की अलामत क़रार देता है। हर इंक़े लाबी उन<br />

ही को रहबर तसलीम करता है। हर मोमिन उन ही को अपना<br />

सरदार तसलीम करता है। हर हक उन ही के गिर्द रक्र लगाता है।<br />

हर बातिल उन ही के नाम से घबराता है। हर सिपाही को उन ही से<br />

जिहाद का हौसला मिलता है और हर निहत्थे इंसान के लिये उन ही<br />

की दास्ाने इस्स्क़लाल हथियार का काम करती है।<br />

ग़रज़ इमाम हुसैन (अ.स.) ग़रीबों का सहारा, इस्ाम का<br />

अज़मे जावेदान, मुजाहिदों की ताक़त, शरीयत के पासबाँ और<br />

मुहम्मदियत के अबदी निगराँ हैं। इसी लिये इमाम हुसैन (अ.स.)<br />

को खखराजे अक़ीदत पेश करते हुए ख़ाजा मुईनुद्ीन चिश्ती<br />

अजमेरी हिन्ी फ़रमाते हैं:<br />

शाह अस् हुसैन बादशाह अस् हुसैन<br />

दीं अस् हुसैन दीं पनाह अस् हुसैन<br />

सर दाद न दाद दस् दर दस्े यज़ीद<br />

हक़्ा के बेना ए ला इलाह अस् हुसैन

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