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oct2015 hindi (1)

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जाफ़री अॉबज़रवर 14 अक्टूबर २०१५<br />

विचार किया। इस महीने में उन्ोंने अपने रसटूल की ऑल<br />

की हत्ा की, उनकी महिलाओं को कै द किया और उनके<br />

माल असबाब को लटूटा। अल्ाह कभी भी उनके अपराधों<br />

को माफ़ नहीं करेगा।<br />

ए शबीब के बेटे! यदि किसी भी बात पर या किसी पर रोना<br />

चाहते हो तो हुसैन इब्े अली (अ.स.) पर गिर्या करो<br />

क्ोंकि उन्ें एक भेड़ की तरह मार दिया गया। उनके<br />

साथ उनके परिवार की अठ्ारह हस्तियां जिनके इस<br />

ब्रहांड में कोई उदाहरण नहीं था उन्ीं के साथ हत्ा कर<br />

दिए गए। दरअसल इमाम हुसैन (अ.स.) के शोक में सात<br />

आकाश और पृथ्ी रोए। चार हज़ार फ़रिश्ते पृथ्ी पर<br />

उनकी मदद के लिए नाज़िल हुए थे लेकिन जब वे आए<br />

तब इमाम (अ.स.) शहीद हो चुके थे इसलिए वह उनकी<br />

कब्रे मुबारक पर रह गए, तितर बितर और व्यथित तब<br />

तक वहीं मौजटूद रहेंगे जब तक अल क़ाइम (इमाम मेहदी<br />

(अ.ज.)) उपस्थिति नहीं होगें जब वे उनकी नुसरत करेंगे<br />

और उनका नारा होगा। ‘इमाम हुसैन (अ.स.) के खटून का<br />

बदला।’<br />

ए शबीब के बेटे! जब तुम इमाम हुसैन (अ.स.) की<br />

मुसीबतों पर गिरया करोगे और तुम्ारे आंसटू तुम्ारे गाल<br />

पर बह आएं गे अल्ाह तुम्ारे सारे छोटे बड़े गुनाहों को<br />

माफ़ कर देगा चाहे सं ख्या में कितने भी हो।<br />

ए शबीब के बेटे यदि तुम चाहते हो कि तुम अपने पापों से<br />

मुति होकर अल्ाह तआला से क़यामत में मुलाकात<br />

करो तो इमाम हुसैन (अ.स.) के रौज़े की ज़ियारत बजा<br />

लाओ।<br />

ए शबीब के बेटे! यदि तुम चाहते हो कि तुम स्ग्र में रसटूले<br />

अकरम (स.अ.व.व.) और उनके अहलेबैत (अ.स.) के<br />

इमाम अली इब्े मूसा अल-रजा (अ.स.) ने फ़रमाया:<br />

r<br />

पड़ोस में महलों में रहो तो इमाम हुसैन (अ.स.) के हत्ारों<br />

पर श्राप करो और अल्ाह से प्रार्थना करो कि वह उन<br />

अत्ारारियों पर अपना सख् अज़ाब नाज़िल करे।<br />

ए शबीब के बेटे! यदि तुम चाहते हैं कि तुम्ें वह इनाम<br />

मिले जो उन्ें मिला है जो इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ<br />

शहीद हुए तो जब कभी भी उन्ें याद करो तो कहो: काश<br />

मैं भी उनके साथ कर्बला में होता तो यह महान सफलता<br />

प्राप्त करता।<br />

ए शबीब के बेटे! यदि तुम चाहते हैं कि स्ग्र में हमारे साथ<br />

उच पद पर फ़ाइज़ हो तो हमारे दुखों के मौकों पर दुखी<br />

और सुख के मौकों पर खुश रहो। हमारे प्ार में समर्पत<br />

रहे क्ोंकि अगर कोई व्यक्ति किसी पत्थर से भी प्ार<br />

करेगा तो अल्ाह तआला कक़यामत के दिन उसके साथ<br />

उसे शुमार करेगा।<br />

(ओयटून अखबार अलरज़ा, जि. 1, पृ. २९९)<br />

मसमअ इब्े अब्ुल मलिक से रिवायत है कि इमाम जाफ़र इब्े<br />

मोहम्मद अलसादिक (अ.स.) ने मुझसे पटूछा: ‘क्ा तुम जानते हो<br />

कि इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ क्ा घटना घटी?’ मैंने जवाब<br />

दिया कि हाँ मैं जानता हूँ। फिर इमाम (अ.स.) ने पटूछा: ‘क्ा तुम<br />

दुखी हुए थे?’ मैंने कहा हाँ। खुदा की क़सम मैंने इतने आंसटू बहाए<br />

कि मेरे घर वालों ने उसका प्रभाव मेरे चेहरे पर देखा और उसी<br />

स्थिति में कई दिनों तक खाना भी नहीं खा सका।<br />

इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया:<br />

‘अल्ाह तुम्ारे आंसटूओं पर रहम करे वास्व में तुम्ारी<br />

गिनती उन लोगों में है जिन्ें हमारी अनुभटूति प्राप्त है जो<br />

हमारे सुख में खटूश हुए हैं और हमारे दुखों में दुखी होते हैं।<br />

निसं देह तुम अपनी मौत के समय हमारे पटूव्रजों को मौजटूद<br />

पाओगे और वह मलकु ल मौत से सिफारिश करेंगे तो वह<br />

बाकी सफह न. १८ पर<br />

ए शबीब के बेटे! जब तुम इमाम हुसैन (अ.स.) की मुसीबतों पर गिरया करोगे<br />

और तुम्ारे आंसू तुम्ारे गाल पर बह आएं गे अल्ाह तुम्ारे सारे छोटे बडे<br />

गुनाहों को माफ़ कर देगा चाहे संख्ा में कितने भी हो।

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