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oct2015 hindi (1)

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जाफ़री अॉबज़रवर 4 अक्टूबर २०१५<br />

सोज व शोक<br />

संपादकीय<br />

ज़की हसन<br />

हयात बख़्श आंसू<br />

सं सार का कण कण मातम कर रहा है। हर आंख गिरयां है।<br />

हर दिल रो रहा है। हर ज़बान फ़रियादी है। नवासए रसटूल<br />

(स.अ.व.व.), दिलबं दे अली व बतटूल (अ.स.)। इमाम हुसैन<br />

(अ.स.) और उनके अहलेबैत (अ.स.) और साथियों के दुख ने<br />

दिल और जिगर को आहत पहुंचाया है। उनकी और उनके साथियों<br />

की मज़लटूमाना शहादत और सैदानियोंऔर छोटे बचोंकी असीरी,<br />

कै द और बं द की तकलीफ़ें , मानवता के शोक का कारण हैं।<br />

लेकिन हाँ यही गिर्या है जो ज़ुल्म न सहने और अन्ाय नहीं<br />

करने का सं देश देता है। यही आंसटू हैं जो दीनदारी के ज़ामिन हैं,<br />

यही आश्क हैं जो मानवता का सं देश देते हैं। इमाम हुसैन (अ.स.)<br />

की याद, स्भाव और चरित्र का वह कें द्र है जो कौमों के भाग्य<br />

बदल कर उन्ें एक सभ्य और बाशरफ जनजाति बना देती है। यह<br />

ज़िक्र अपने ज़ाकिर की चर्चा को अनंत काल अता करता है। और<br />

दम तोड़ती मानवता को नौजीवन देता है। बातिल जं ़ ज़ीरों में जकड़ी<br />

आदमियत को आज़ादी की सांस यही चर्चा दिलाता है। इसीलिए<br />

यह ज़िक्र अल्ाह को पसं द है और अपने विशेष बं दों को अता<br />

फ़रमाता है। इमाम साकदक़ (अ.स.) ने फ़रमाया:<br />

जब अल्ाह किसी को अच्ाई प्रदान करना चाहता है तो<br />

उसके दिल में हुसैन (अ.स.) की मोहब्बत करार देता है।<br />

(कामिलुज़ जि़ यारात, पृ. १४२)<br />

यही वह ज़िक्र है जो घटना घटित होने के बाद ही नहीं बल्कि<br />

पहले से ही खास व आम की ज़बान पर रहा और खासाने खुदा ने<br />

याद करके आंसटू बहाए। जनाबे आदम (अ.स.) से शुरू होने वाली<br />

दुनिया का कोई पल इमाम हुसैन (अ.स.) के गिर्या से खाली नहीं<br />

रहा और इख्ेतामे आम भी इसी गिर्या के साथ होने वाला है।<br />

हमारा सलाम मक़्तले इश्क़ के शहसवार इमाम हुसैन (अ.स.)<br />

को और सांत्वना वारिसे हुसैन इमाम महदी (अ.त.फ.श.) की सेवा<br />

में। जिनकी अज़ादारी पर सभी अज़ादारों की अज़ा क़ु रबान और<br />

जिनके गिर्या पर कु ल ब्रहांड का गिर्या निसार।<br />

बाकी सफह न. ८ पर<br />

ए शबीब के बेटे! मुहर्रम वह महीना है जब जाहिलियत के दिनों के युग के<br />

लोग भी इस महीने की पवित्रता में जुल्म व खून बहाने से परहेज करते थे।<br />

मगर इस कौम ने न तो इस महीने की पवित्रता का ही कोई ध्ान रखा और<br />

न ही उनों नने अपने नबी की इज़्ज़त और पवित्रता का कोई विचार किया।<br />

इस महीने में उनों नने अपने रसूल की ऑल की हत्ा की, उनकी महिलाओं<br />

को कै द किया और उनके माल असबाब को लूटा। अल्ाह कभी भी उनके<br />

अपराधों को माफ़ नहीं करेगा।

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