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आय वेद में क्तलखा है क्तक क्तनद्रा से क्तपत्त शाुंत होता है, माक्तलश से वाय कम होती है, उकटी से कफ कम<br />

होता है और लुंघन करने से ब खार शाुंत होता है। इसक्तलये घरेलू क्तर्क्तकत्सा करते समय इन बातों का<br />

अवश्य ध्यान रखना र्ाक्तहये।<br />

आग या क्तकसी गमच र्ीज से जल जाने पर जले भाग को ठुंडे पानी में डालकर रखना र्ाक्तहये।<br />

क्तकसी भी रोगी को तेल, घी या अक्तिक क्तर्कने पदाथों के सेवन से बर्ना र्ाक्तहये।<br />

अजीर्च तथा मुंदाक्तनन दूर करने वाली दवाएाँ हमेशा भोजन के बाद ही लेनी र्ाक्तहये।<br />

मल रुकने या कब्ज होने की क्तस्थक्तत में यक्तद दस्त कराने हों तो प्रातःकाल ही कराने र्ाक्तहये, राक्तत्र में<br />

नहीं।<br />

यक्तद घर में क्तकशोरी या य वती को क्तमगी के दौरे पडते हों तो उसे उकटी, दस्त या लुंघन नहीं कराना<br />

र्ाक्तहये।<br />

यक्तद क्तकसी दवा को पतले पदाथच में क्तमलाना हों तो र्ाय, कॉफ़ी, या दूि में न क्तमलाकर छाछ, नाररयल<br />

पानी या सादे पानी में ही क्तमलाना र्ाक्तहये।<br />

हींग को सदैव देशी घी में भून कर ही उपयोग में लाना र्ाक्तहये। लेप में कच्र्ी हींग लगानी र्ाक्तहये।<br />

क्तत्रदोष क्तसदॎान्त<br />

आय वेद में ‘क्तत्रदोष क्तसदॎान्त’ की क्तवस्तृत व्याख्या है; वात, क्तपत्त, कफ-दोषों के शरीर में बढ़ जाने या प्रक क्तपत<br />

होने पर उनको शाुंत करने के उपायों का क्तवशद् वर्चन हैं; आहार के प्रत्येक द्रव्य के ग र्-दोष का सूक्ष्म<br />

क्तवश्लेषर् है; ऋत र्याच-क्तदनर्याच, आक्तद के माध्यम में स्वास््य-रक्षक उपायों का स न्दर क्तववेर्न है तथा रोगों<br />

से बर्ने व रोगों की क्तर्रस्थायी क्तर्क्तकत्सा के क्तलए प्य-अप्य पालन के क्तलए उक्तर्त मागच दशचन है । आय वेद<br />

में परहेज-पालन के महत्व को आजकल आि क्तनक डाक्टर भी समझने लग गए हैं और आवश्यक परहेज-<br />

पालन पर जोर देने लग गए हैं । लेखक का दृढ़ क्तवश्वास है क्तक सािारर् व्यक्ति को दृक्तिगत रखते हुए यहाुं दी<br />

जा रही सरलीकृ त जानकारी से उसे रोग से रक्षा, रोग के क्तनदान तथा उपर्ार में अवश्य सहायता क्तमलेगी ।<br />

वात-क्तपत्त-कफ रोग लक्षर्<br />

चित्त रोग लक्षण: पेट फ लना ददच दस्त मरोड गैस, खट्ी डकारें, ऐसीडीटी, अकसर, पेशाब जलन, रूक रूक<br />

कर बूुंद-बूुंद बार-बार पेशाब, पथरी, शीघ्रपतन, स्वप्न दोष, लार जैसी घात क्तगरना, श क्रार् की कमी, बाुंझपन,<br />

ख न जाना, कयूकोररया, गभाचशाय ओवरी में छाले, अण्डकोश बढना, एलजी ख जली शरीर में दाने शीत<br />

क्तनकलना कै सा भी क्तसर ददच मि मेह से उत्पन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इुंस क्तलन की कमी, पीक्तलया, ख न की<br />

कमी बवासीर, सफे द दाग, माहवारी कम ज्यादा आक्तद ।<br />

pg. 3चनरोगी रहने के चनर्म और गुंभीर रोगो की घरेलू चिचकत्सा ! WWW.RAJIVDIXITMP3.COM(09928064941, 09782705883)

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