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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

सदगु सदा ह कठोर मालूम पड़ेगा। सदगु सदा ह तुहार धारणाओं को तोड़ता मालूम<br />

पड़ेगा। सदगु सदा ह तुहारे मन को अतयत करता मालूम पड़ेगा; तुहार अपेाओं<br />

को िछन-िभन करता मालूम पड़ेगा। उसे करना ह होगा।उसक अनुकं पा है क करता है,<br />

यक तभी तुम जागोगे। भंग ह तुहारे वन, तो ह तुम जाओगे। नींद यार लगती है,<br />

वाम मालूम होता है। जो भी जगाएगा वह दमन मालूम होगा। पर बना जगाए तुह पता<br />

ु<br />

भी न चलेगा क तुम कौन हो और कै सी अपूव तुहार संपदा है!<br />

यह पहली छांहवाली बेल,<br />

कसमसाते पाश म बांधे हए आकाश।<br />

ु<br />

ितिमर त क याह शाख पर पसर कर,<br />

हर नखत क कु सुम कोमल झलिमलाहट से रह है खेल।<br />

यह पहली छांहवाली बेल।<br />

लहराता गगन से भूिम तक जनके रत आलोक का वतार,<br />

रमय के वे सुकोमल तार,<br />

उलझे रात के हर पात से सुकु मार।<br />

इस धवल आकाश लितका म,<br />

झूलता सोलह पंखुरय का अमृतमय फू ल,<br />

गंध से जसक दशाएं अंध<br />

खोजती फरती अजाने मूल से संबंध।<br />

वलर िनमूल--<br />

फर भी वकसता है फू ल<br />

विध ने क नहं है भूल।<br />

है रहय भरा दय से हर दय का मेल।<br />

हर जगह छाई हई ु है,<br />

यह पहली छांहवाली बेल।<br />

हर दय म अपूव सुगंध भर है; जरा संबंध जोड़ने क बात है। तुम कतूर मृग हो--<br />

कतूरा हो! भागते फरते दरू -दर ू और जस अंध क तलाश कर रहे हो,<br />

वह गंध तुहारे<br />

भीतर से ह उठ रह है। उस कतूर के तुम मािलक हो। कतूर कुं<br />

डल बसै!...तुहारे भीतर<br />

बसी है--कोई जगाए, कोई हलाए, कोई तुह सचेत करे। और जो भी तुह सचेत करेगा<br />

वह तुह नाराज करेगा। इतना मरण रहे तो सदगु िमल जाएगा। इतना बोध रहे क जो<br />

तुह जगाएगा वह तुह जर नाराज करेगा, तो सदगु को खोजना कठन नहं होगा।<br />

जो तुह सांवना देते हो और तुहारे घाव को मलहम-पट करते ह और तुहारे अंधेरे को<br />

िछपाते ह और तुहारे ऊपर रंग पोत देते ह, उनसे सावधान रहना। सांवना जहां से<br />

िमलती हो समझ लेना क वहां सदगु नहं है सदगु तो झकझोरेगा; उखाड़ देगा वहां से<br />

जहां तुम हो, यक नई तुह भूिम देनी है और नया तुह आकाश देना है।<br />

Page 10 of 359 http://www.oshoworld.com

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