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नमो नमो हर गु नमो<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

पहला वचन; दनांक ११ माच, १९७६; ी रजनीश आम, पूना<br />

नमो नमो हर गु नमो, नमो नमो सब संत।<br />

जन दरया बंदन करै, नमो नमो भगवंत।।<br />

दरया सतगुर सद स, िमट गई खचातान।<br />

भरम अंधेरा िमट गया, परसा पद िनरबान।।<br />

सोता था बह ु जम का,<br />

सतगु दया जगाय।<br />

जन दरया गुर सद स, सब दख गये बलाय।।<br />

ु<br />

रात बना फका लगै, सब करया सातर यान।<br />

दरया दपक कह करै, उदय भया िनज भान।।<br />

दरया नरन पायकर, कया चाहै काज।<br />

राव रंक दोन तर, जो बैठ नाम-जहाज।।<br />

मुसलमान हंद कहा<br />

ू , पट दरसन रंक राव।<br />

जन दरया हरनाम बन, सब पर जम का दाव।।<br />

जो कोई साधू गृह म, माहं राम भरपूर।<br />

दरया कह उस दास क, म चरनन क धूर।।<br />

दरया सुिमरै राम को, सहज ितिमर का नास।<br />

घट भीतर होय चांदना, परमजाित परकास।।<br />

सतगुर-संग न संचरा, रामनाम उर नाहं।<br />

ते घट मरघट सारखा, भूत बसै ता माहं।।<br />

दरया आतम मल भरा कै से राम िनमल होय।<br />

साबन लागै ेम का, रामनाम-जल धोय।।<br />

दरया सुमरन राम को, देखत भूली खेल।<br />

धन धन ह वे साधवा, जन लीया मन मेल।।<br />

फर दहाई सहर म<br />

ु , चोर गए सब भाज।<br />

स फर िम जु भया, हआ राम का राज।।<br />

ु<br />

मनुय-चेतना के तीन आयाम ह। एक आयाम है--गणत का, वान का, ग का। दसरा<br />

ू<br />

आयाम है--ेम का, काय का, संगीत का। और तीसरा आयाम है--अिनवचनीय। न उसे<br />

ग म कहां जा सकता, न प म! तक तो असमथ है ह उसे कहने म, ेम के भी पंख<br />

टट ू जाते ह!<br />

बु तो छू ह नहं पाती उसे, दय भी पहंचते ु -पहंचते ु रह जाता है!<br />

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जसे अिनवचनीय का बोध हो वह या कर? कै से कहे? अकय को कै से कथन बनाए? जो<br />

िनकटतम संभावना है, वह है क गाये, नाचे, गुनगुनाए। इकतारा बजाए क ढोलक पर<br />

थाप दे, क पैर म घुंघ<br />

बांधे, क बांसुर पर अिनवचनीय को उठाने क असफल चेा<br />

करे।<br />

इसिलए संत ने गीत म अिभय क है। नहं क वे कव थे, बक इसिलए क कवता<br />

करब मालूम पड़ती है। शायद जो ग म न कहा जा सके, प म उसक झलक आ जाए।<br />

जो याकरण म न बंधता हो, शायद संगीत म थोड़ा-सा आभास दे जाए।<br />

इसे मरण रखना। संत को कव ह समझ िलया तो भूल हो जाएगी। संत ने काय म कु छ<br />

कहा है, जो काय के भी अतीत है--जसे कहा ह नहं जा सकता। िनत ह ग क<br />

बजाए प को संत ने चुना, यक ग और भी दर ू पड़ जाता है,<br />

गणत और भी दर ू पड़<br />

जाता है। काय चुना, यक काय मय म है। एक तरफ याया-वान का लोक है,<br />

दसर तरफ अयाय<br />

ू -धम का जगत है; और काय दोन के मय क कड़ है। शायद इस<br />

मय क कड़ से कसी के दय क वीणा बज उठे, इसिलए संत ने गीत गाए। गीत गाने<br />

को नहं आए; तुहारे भीतर सोए गीत को जगाने को गाए। उनक भाषा पर मत जाना,<br />

उनके भाव पर जाना। भाषा तो उनक अटपट होगी।<br />

जर भी नहं क संत सभी पढ़े-िलये थे, बहत ु तो उनम गैर पढ़े-िलखे<br />

थे। लेकन पढ़े-िलखे<br />

होने से सय का कोई संबंध भी नहं है; गैर-पढ़े-िलखे होने से कोई बाधा भी नहं है।<br />

परमामा दोन को समान प से उपलध है। सच तो यह है, पढ़े-िलखे के शायद थोड़<br />

बाधा हो, उसका पढ़ा-िलखा ह अवरोध बन जाए; गैर-पढ़ा-िलखा थोड़ा यादा भोला, थोड़ा<br />

यादा िनदष। उसके िनदष िच म, उसके भोले दय म सरलता से ितबंब बन सकता<br />

है। कम होगा वकृ त ितबंब, यक वकृ त करने वाला तक मौजूद न होगा। झलक यादा<br />

अनुकू ल होगी सय के, यक वचार का जाल न होगा जो झलक को अतयत करे।<br />

सीधा-सीधा सय झलके गा यक दपण पर कोई िशा क धूल नहं होगी।<br />

तो भाषा क िचंता मत करना, याकरण का हसाब मत बठाना। छं द भी उनके । ठक ह या<br />

नहं, इस ववेचना म भी न पड़ना। यक यह तो चूकना हो जाएगा। यह तो यथ म<br />

उलझना हो जाएगा। यह तो गए फू ल को देखने और फू ल के रंग और फू ल के रसायन और<br />

फू ल कस जाित का है और कस देश से आया है, इस सारे इितहास म उलझ गए; और<br />

भूल ह गए क फू ल तो उसके सदय म है।<br />

गुलाब कहां से आया, या फक पड़ता है? ऐितहािसक िच इसी िचंता म पड़ जाता है क<br />

गुलाब कहां से आया! आया तो बाहर से है; उसका नाम ह कह रहा है। नाम संकृ त का<br />

नहं है, हंद का नहं है। गुल का अथ होता है: फू ल; आब का अथ होता है: शान। फू ल<br />

क शान! आया तो ईरान से है, बहत लंबी याा क है। लेकन यह भी पता हो क ईरान से<br />

ु<br />

आया है गुलाब, तो गुलाब के सदय का थोड़े ह इससे कु छ अनुभव होगा! गुलाब शद क<br />

याया भी हो गई तो भी गुलाब से तो वंिचत ह रह जाओगे। गुलाब क पंखुड़यां तोड़ लीं,<br />

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पंखुड़यां िगन लीं, वजन नाप िलया, तोड़-फोड़ करके सारे रसायन खोज िलए--कन-कन<br />

से िमलकर बना है, कतनी िमट, कतना पानी, कतना सूरज--तो भी तो गुलाब के<br />

सदय से वंिचत रह जाओगे। ये गुलाब को जानने के ढंग नहं ह।<br />

गुलाब क पहचान तो उन आंख म होती है, जो गुलाब के इितहास म नहं उलझती, गुलाब<br />

क भाषा म नहं उलझतीं, गुलाब के वान म नहं उलझतीं--जो सीधे-सीधे, नाचते हए<br />

ु<br />

गुलाब के साथ नाच सकता है; जो सूरज म उठे गुलाब के साथ उसके सदय को पी सकता<br />

है; जो भूल ह सकता है अपने को गुलाब म, डु बा सकता है अपने को गुलाब म और<br />

गुलाब को अपने म डूब जाने दे सकता है--वह जानेगा।<br />

संत के वचन गुलाब के फू ल ह। वान, गणत, तक और भाषा क कसौट पर उह मत<br />

कसना, नहं तो अयाय होगा। वे तो ह, अचनाएं ह, ाथनाएं ह। वे तो आकाश क तरह<br />

उठ हई ु आंख ह। वे तो पृवी क आकांाएं<br />

ह--चांदार को छू लेने के िलए। उस अभीसा<br />

को पहचानना। वह अभीसा समझ म आने लगे तो संत का दय तुहारे सामने खुलेगा।<br />

और संत के दय म ार है परमामा का। तुहारे सब मंदर-मजद, तुहारे गुारे,<br />

तुहारे िगरजे, परमामा के ार नहं ह। लेकन संत के दय म िनत, ार है। जीसस<br />

के दय को समझो तो ार िमल जाएगा; चच म नहं। मुहमद के ाण को पहचान लो<br />

तो ार िमल जाएगा; मजद म नहं।<br />

ऐसे ह एक अदभुत संत दरया के वचन म हम आज उतरते ह। फू ल क तरह लेना।<br />

सहाल कर! नाजुक बात है। याल रखना, फू ल को, सोना जस पथर पर कसते ह, उस<br />

पर नहं कसा जाता है। फू ल को सोने क कसने क कसौट पर कस-कस कर मत देखना,<br />

नहं तो सभी फू ल गलत हो जाएंगे।<br />

एक बाउल फकर से एक बड़े शा पंडत ने पूछा क ेम, ेम...िनरंतर ेम का जप<br />

कए जाते हो, यह ेम है या? म भी तो समझूं!<br />

इस ेम का कस शा म उलेख है,<br />

कन वेद का समथन है?<br />

वह बाउल फकर हंसने लगा। उसका इकतारा बजने लगा। खड़े होकर वह नाचने लगा। पंडत<br />

ने कहा: नाचने से या होगा? और इकतारा बजाने से या होगा? याया होनी चाहए ेम<br />

क। और शा का समथन होना चाहए। कहते हो ेम परमामा का ार है, मगर कहां<br />

िलखा है? और नाचो मत, बोलो! इकतारा बंद करो बैठो! तुम मुझे धोखे म न डाल सकोगे।<br />

और को धोखे म डाल देते हो इकतारा बजा कर, नाच कर। और को लुभा लेते हो, मुझको<br />

न लुभा सकोगे।<br />

उस बाउल फकर ने फर भी एक गीत गाया। उस बाउल फकर ने कहा: गीत के िसवाय<br />

हमारे पास कु छ और है नहं। यह गीत हमारे वेद, यह गीत हमारे उपिनषद, यह गीत<br />

हमारे कु रान। मा कर! नाचूंगा,<br />

इकतारा बजाऊं गा, गीत गाऊं गा--यह हमार याया है।<br />

अगर समझ म आ जाए तो आ जाए; न समझ म आए, दभाय तुहारा। पर हमसे और<br />

ु<br />

कोई याया न पूछो। और कोई उसक याया है ह नहं।<br />

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और जो गीत उसने गाया, बड़ा यारा था। गीत का अथ था: एक बार एक सुनार एक माली<br />

के पास आया और कहा क तेरे फू ल क बड़ शंसा सुनी है, तो म आज कसने आया हं<br />

ू<br />

क फू ल सचे ह, असली ह या नकली ह? म अपने सोने के कसने के पथर को ले आया<br />

हं।<br />

ू<br />

और वह सुनार उस गरब माली के गुलाब को पथर पर कस-कसकर फ कने लगा क सब<br />

झूठे ह, कोई सचे नहं ह।<br />

उस बाउल फकर ने कहा: जो उस गरब माली के ाण पर गुजर, वह तुह देखकर मेरे<br />

ाण पर गुजर रह है। तुम ेम क याया पूछते हो! और म ेम नाच रहा हं। अंधे हो<br />

ू<br />

तुम! तुम ेम के िलए शाीय समथन पूछते हो--और म ेम को संगीत दे रहा हं<br />

ू! बहरे हो<br />

तुम!<br />

मगर अिधक लोग अंधे ह, अिधक लोग बहरे ह।<br />

दरया के साथ अयाय मत करना, यह मेर पहली ाथना। ये सीधे-सादे शद ह, पर बड़े<br />

गहरे ह। जतने सीधे-सादे ह उतने गहरे ह।<br />

नहं पूर पड़ं सार दशाएं एक अंजिल को<br />

अधूर रह गयी मेर वधा एकांत पूजन क<br />

बंधी ओंकार क अवराम शैलाकार बांह म<br />

नहं पूर हई कोई कड़ मेरे समपण क<br />

ु<br />

समूचा सूय भी आजम पूजादप क मेरे<br />

न बन पाया अकं पत वितका का शु नीराजन<br />

जपी, अपरा-रंजत, तध मेर आया-गायी।<br />

जीवन भर भी तुहार गायी हो जाए तो भी उस अिनवचनीय क याया नहं होती! और<br />

सूरज भी तुहार आरती का दया बन जाए तो भी पूजा पूर नहं होती!<br />

नहं पूर पड़ सार दशाएं एक अंजिल को<br />

अधूर रह गयी मेर वधा एकांत पूजन क<br />

बंधी ओंकार क अवराम शैलाकार बांह म<br />

नहं पूर हई कोई कड़ मेरे समपण क<br />

ु<br />

समूचा सूय भी आजम पूजादप क मेरे<br />

न बन पाया अकं पत वितका का शु नीराजन<br />

जपी, अपरा-रंजत, तध मेर आयु-गायी।<br />

न कर पायी अभी तक अंश-भर उस दि का वंदन।<br />

वकलता, यथता इस परिमत चांत जीवन क<br />

तुहं जानो, न जानो, और कोई तो न जानेगा<br />

कया मने नहं आान कणा का तुहार जब<br />

मा क पाता मुझम न कोई और मानेगा<br />

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रहा वास भावातीत मन क गितमयी लय सा<br />

िनयित मेर रह के वल उसी संपूित म पकती<br />

भुलाकर वनगभा ेरणा क मु राह को<br />

रह अपनी ुिभत आराधना क दनता तकती।<br />

सदा टट ू कए सब अथ मेरे,<br />

शद तक मेरे<br />

तुहार भयता क दय रेखाकृ ित न बन पायी<br />

अयंजत ह सदा जो रह गयी अिभश ाण म<br />

वह असहाय मेर भावना िनपंद पथराई<br />

तुहार सवचेतन, सव-आभािसत असीमा का<br />

न कोई पारदश बोध मेर ाथना पाती<br />

अथाह, िचरवदारक शूयता म मूक, जड़ जैसी<br />

िनपट असमथ मेर मुधता अफिलत रह आती।<br />

न उसे कभी कहा गया न कभी उसे कभी कहा जा सके गा; फर बड़ कणा है संत क क<br />

अकय को कय बनाने क चेा क है। जानते हए ु , भलीभांित जानते हए ु क नहं यह हआ ु<br />

है, नहं यह हो सके गा; लेकन फर भी शायद कोई आतुर ाण यास से भर उठ, शायद<br />

कोई सोई आमा पुकार से जग जाए। जानते ह हम भली-भांित...<br />

सदा टटा ू कए सब अथ मेरे,<br />

शद तक मेरे<br />

तुहार भयता क दय रेखाकृ ित न बन पायी<br />

कौन बना पाया है परमामा के उस प को? कौन बांध पाया है रंग म, शद म? कोई<br />

रेखाकृ ित आज तक बन नहं पायी है।<br />

भुलाकर वनगभा ेरणा क मु राह को<br />

रह अपनी ुिभत आराधना क दनता तकती।<br />

भ जानता है अपनी असमथता को। संत पहचानता है अपनी दनता को।<br />

वकलता, यथता इस परिमत चांत जीवन क<br />

तुहं जानो, न जानो, और कोई तो न जानेगा।<br />

और परमामा ह पहचानता है भ क असमथता। और परमामा ह पहचानता है भ क<br />

अथक चेा--नहं जो कहा जा सकता उसे कहने क; नहं जो जताया जा सकता उसे जताने<br />

क; नहं जो बताया जा सकता उसे बताने क।<br />

इसिलए बड़ सूम ीित-भर आंख चाहए। बड़ सरल िनदष ा-भर बांह चाहए, तो ह<br />

आिलंगन हो सके गा।<br />

नमो नमो हर गु नमो, नमो नमो सब संत।<br />

जन दरया बंदन करै, नमो नमो भगवंत।।<br />

दरया कहते ह: पहला नमन गु को। और गु को हर कहते ह। नमो नमो हर गु नमो!<br />

यह दोन अथ म सह है। पहला अथ क गु भगवान है और दसरा अथ क भगवान ह<br />

ू<br />

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गु है। गु से बोल जाता है, वह वह है जसे तुम खोजने चले हो। वह तुहारे भीतर भी<br />

बैठा है उतना ह जतना गु के भीतर लेकन तुह अभी बोध नहं, तुह अभी उसक<br />

पहचान नहं। गु के दपण म अपनी छव को देखकर पहचान हो जाएगी। गु तुमसे वह<br />

कहता है जो तुहारे भीतर बैठा फर भी तुमसे कहना चाहता है। मगर तुम सुनते नहं।<br />

भीतर क नहं सुनते तो शायद बाहर क सुन लो; बाहर क तुहार आदत है। तुहारे कान<br />

बाहर क सुनने से परिचत ह। तुहार आंख बाहर को देखने म िनणात ह। भीतर तो या<br />

देखोगे? भीतर तो आंख कै से मोड़, यह कला ह नहं आती। और भीतर तो कै से सुनोगे;<br />

इतना शोरगुल है िसर का, मतक का क वह धीमी-धीमी आवाज न मालूम कहां खो<br />

जाएगी!<br />

बोलता तो तुहारे भीतर भी हर है, लेकन पहले तुह बाहर के हर को सुनना पड़े। थोड़<br />

पहचान होने लगे, थोड़ा संग-साथ होने लगे, थोड़ा रस उभरने लगे, तो जो बाहर तुमने<br />

सुना है एक दन वह भीतर तुह सुनाई पड़ जाएगा। चूंक<br />

गु के वल वह कहता है जो<br />

तुहारे भीतर क अंतरामा कहना चाहती है, इसिलए गु को हर कहा और इसिलए हर<br />

को गु कहा है।<br />

नमो नमो हर गु नमो!<br />

दरया कहते ह: नमन करता हं ू, बार-बार करता हं। ू<br />

नमन का अथ इतना ह नहं होती क कसी के चरण म िसर झुका देना। नमन का अथ<br />

होता है: कसी के चरण म अपने को चढ़ा देना। यह िसर झुकाने क बात नहं है; यह<br />

अहंकार वसजत कर देने क बात है।<br />

नमो नमो सब संत! और जस दन समझ म आ जाती है बात उस दन बड़ हैरानी होती है<br />

क सभी संत यह कहते थे। कतने भेद-भाव माने थे, कतना ववाद थे, कतने वतंडा,<br />

कतने शााथ! पंडत जूझ रहे ह, मलयु म लगे हए ु ह। हंद ू मुसलमान से बूझ रहा है,<br />

मुसलमान ईसाई से बूझ रहा है, ईसाई जैन से बूझ रहा है, जैन बौ से जूझ रहा है; सब<br />

गुथरम-गुथा एक-दसरे से जूझ रहे ह<br />

ू --बना इस सीधी-सी बात को जाने क जो महावीर ने<br />

कहा है उसम और जो मुहमद ने कहा है उसम, री भर भेद नहं है। भेद हो नहं सकता।<br />

सय एक है। उस सय को जान लेने वाले को ह हम संत कहते ह। जो उस सय से एक<br />

हो गया, उसी को संत कहते ह।<br />

तो जस दन तुह समझ म आ जाएगी बात तो तुम बाहर के गु म भगवान को देख<br />

सकोगे, भीतर के भगवान म गु को देख सकोगे--और सारे संत म, बेशत! फर यह भेद<br />

न करोगे कौन अपना कौन पराया। सारे संत म भी उसी एक अनुगूंज<br />

को सुन सकोगे।<br />

कतनी ह ह वीणाएं, संगीत एक है। और कतने ह ह दप, काश एक है। और कतने<br />

ह ह फू ल, सदय एक है। गुलाब म भी वह और जूह म भी वह, चंपा म भी वह और<br />

चमेली म भी वह। सदय एक है, अिभययां िभन ह।<br />

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िनत ह कु रान क आयत अपना ह ढंग रखती ह, अपनी शैली है उनक, अपना सदय<br />

है उनका। समझो क जूह के फू ल और उपिनषद के वचन, उनका सदय अपना है, अनूठा<br />

है। समझो क क चंपा के फू ल। और बाइबल के उाहरण, समझो क गुलाब के फू ल। पर<br />

सब फू ल ह और सबम जो फू ला है वह एक है। वह सदय कहं सफे द है और कहं लाल है<br />

और कह सोना हो गया है।<br />

नमो नमो हर गु नमो, नमो सब संत।<br />

जन दरया बंदन करै, नमो नमो भगवंत।।<br />

और दरया कहते ह: जस दन ऐसा दखाई पड़ा क बाहर भी वह, भीतर भी वह, और<br />

सारे संत म भी वह--फर अंततः यह भी दखाई पड़ा क जो संत नहं ह उनम भी वह।<br />

पहचान बढ़ती गई, गहर होती चली गई। जन दरया बंदन करै...! अब तो दरया कहते ह<br />

क म इसक िचंता नहं करता कसको वंदन करना--िसफ वंदन करता हं<br />

ू!...नमो नमो<br />

भगवतं! अब यह भी फकर नहं करता क संत है कोई क असंत है कोई, अछा है क<br />

बुरा है कोई। पहले दखाई पड़ा था क फू ल म वह, अब कांट म भी वह दखाई पड़ता है।<br />

हर म दखाई पड़ा था, अब कं कड़-पथर म भी वह दखाई पड़ता है। अब कौन िचंता<br />

करे! अब कौन फकर ले! अब तो िसफ बंदन करता हं ू--सभी दखाओ म वंदन करता हं। ू<br />

सभी मंदर-मजद-गुारे मेरे ह।<br />

अछ क तो बात ह छोड़ दो, बुर म भी वह है। उसके अितर कोई और है ह नहं।<br />

इसिलए अब तो वंदन ह बचा। अब तो झुक-झुक पड़ता हं। अब तो वृ हो तो और पथर<br />

ू<br />

हो तो, उसक छव हर जगह पहचान आ जाती है।<br />

दरया सतगुर शद स, िमट गई खचातान।<br />

बड़ खचातानी म रहा हं ू क कौन सह कौन गलत,<br />

कौन शुभ कौन अशुभ, कस मंदर<br />

जाऊं, कस मूित क पूजा कं, कस शा को पकडूं, कौन सी नाव पर स...। लेकन<br />

एक बार सदगु का शद सुन िलया क िमट गई खचातान क सार खचातान ह िमट गई;<br />

यक उस गु के एक शद म ह सारे गुओं के शद समाए हए ह। एक गु म सारे गु<br />

ु<br />

मौजूद ह--जो हए ु जो ह,<br />

जो हगे। एक गु म सारे गु मौजूद ह।<br />

भरम अंधेरा िमट गया, पारसा पद िनरबान।।<br />

एक शद भी कान म पड़ जाए सय का, एक रोशनी क करण व हो जाए तुहारे<br />

अंधकारपूण ह म, तुहारे दय म एक चोट पड़ जाए, तुहारा दय झंकार उठे--एक बार<br />

िसफ, बस काफ है। भरत अंधेरा िमट गया...उसी ण िमट जाता है सारा अंधकार--म<br />

का, माया का, मोह का। परसा पद िनरबान। उसी ण उस महत पद का छू ना हो जाता<br />

है, हाथ म आ जाता है, पश हो जाता है िनवाण का।<br />

कल के नीरस शद म करनी है बात आज क,<br />

अिभय भावना अपनी, भाषा म समाज क--<br />

है ववश कं तु कर देता कव को उसका ह वर,<br />

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माना कहना है कठन, कं तु है मौन कठनतर।<br />

कवता साधन ह नहं, साधना, साय सभी कु छ,<br />

मंदर, वंदना, साद और आराय सभी कु छ।<br />

म है कहना िनमाण कया कवता का कव ने,<br />

रचना क थी या जगा दया कमल को रव ने?<br />

यह दर ू हटा दो शद कोष,<br />

है यथ खोजना--<br />

इस मुत पुतक म यह जागृत शद योजना;<br />

मेर कवता का आशय तुम इस ण से पूछो,<br />

सुन सको ितविन मन म यद तो मन से पूछो।<br />

िमल सकता तुमसे यद म इतनी दर ू न होता,<br />

शद का आय लेने पर मजबूर न होता--<br />

सांस म आकार वयं बन जाती कवता,<br />

तुम सुनते मेर बात वयं बन जाती कवता।<br />

सदगु के शद तो वे ह ह जो समाज के शद ह। और कहना है उसे कु छ, जसका समाज<br />

कोई पता नहं। भाषा तो उसक वह है, जो सदय-सदय से चली आई है। जरा जीण,<br />

धूल धूसरत। लेकन कहना है उसे ऐसा कु छ िनत नूतन, जैसे सुबह क अभी ताजीाजी<br />

ओस, क सुबह क सूरज क पहली-पहली करण! पुराने शद बासे, सड़े-गले, सदय-<br />

सदय चले, थके -मांदे--उनम उसे डालना है ाण। उनम उसे भरना है उस सय को जो<br />

अभी-अभी उसने जाना है--और जो सदा नया है और कभी पुराना नहं पड़ता।<br />

कल के नीरस शद म करनी है बात आज क,<br />

अिभय भावना अपनी भाषा म समाज क--<br />

है ववश कं तु कर देता कव को उसका वर,<br />

लेकन कहना तो होगा ह...<br />

है ववश कं तु कर देता कव को उसका वर,<br />

माना कहना है कठन, कं तु है मौन कठनतर।<br />

कहना कठन है; लेकन मौन चुप रह जाना और भी कठन है। जसने जाना है उसे कहना<br />

ह होगा। सुने कोई सुने, न सुने कोई न सुने; उसे कहना ह होगा। उसे अंध के सामने<br />

दए जलाने हगे। उसे बहर के पास बैठ कर वीणा बजानी होगी। मगर सौ म कोई एकाध<br />

आंख खोल लेता है और सौ म कोई एकाध पी जाता है उस संगीत को। पर उतना काफ है।<br />

उतना बहत ु है। और ऐसा मत सोचना क ये जो शद संत से उतरते ह,<br />

संत के ह। संत<br />

तो के वल मायम ह।<br />

कवता साधन ह नहं, साधना, साय भी कु छ,<br />

मंदर, वंदना साद और आराय सभी कु छ।<br />

म है कहना िनमाण कया कवता का कव ने,<br />

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रचना क थी या जगा दया कमल को रव ने?<br />

सुबह जब सूरज उगता है तो या कमल क रखना करता है? कमल तो थे ह,<br />

िसफ सूरज के उगने से जाग जाते ह।<br />

कवता अतव काय से भरपूर है।<br />

कवता बहती है नदय म।<br />

कवता हर है वृ म।<br />

कवता झकोरे ले रह है सागर म।<br />

कवता ह कवता है।<br />

सारा अतव उपिनषद है, कु रान है; मगर सोया पड़ा है। कसी सदगु क चोट से कमल<br />

खल जाता है।<br />

और धयभागी ह वे जो शद म नहं उलझते और शद म िछपे हए िनःशद को पकड़ लेते<br />

ु<br />

ह; जो पंय के बीच पढ़ना जानते ह; जो शद के बीच झांकना जानते ह। तो फर एक<br />

शद भी काफ हो जाता है।<br />

दरया सतगुर सद स, िमट गई खचातान।<br />

भरम अंधेरा िमट गया, परसा पद िनरबान।।<br />

छू िलया परमामा को! पश हो गया! दर ू नहं है तुम म और परमामा म--अभी<br />

छू सकते<br />

हो, यह छू सकते हो! पर कान खोलो, आंख खोलो। चेतना का कमल खलने दो।<br />

सोता था बह ु जम का,<br />

सतगु दया जगाय।<br />

जन दरया गुर शद स, सब दख गए बलाय।।<br />

ु<br />

कु छ और नहं कया गु ने--सोए को जगा दया; सोए को झकझोर दया। िछपा तो सबके<br />

भीतर वह है; चाहए क कोई तुह झकझोर दे। लेकन तुम तो जाते भी हो मंदर और<br />

मजद, तो सांवना क तलाश करने जाते हो, सय क तलाश करने नहं। तुम तो जाते<br />

भी हो संत के पास तो चाहते हो थोड़-सी मीठ-मीठ बात, क तुम और सफलता से सपने<br />

देख सको। तुम जाते भी हो तो आशीष मांगने जाते हो क तुहारे सपने पूरे हो जाएं। और<br />

जो तुह आशीष दे देते हगे, वे तुह ीितकर भी लगते हगे और जो तुहार पीठ ठक<br />

देते हगे और कहते हगे; तुम बड़े पुयामा हो! और कहते हगे। क तुमने मंदर बनाया<br />

और धम शाला बनाई और तुम कुं<br />

भ भी हो आए और हज क याा कर ली, अब और या<br />

करने को शेष है? परमामा तुमसे सन है। तुहारा िनत है।<br />

जो तुमसे ऐसी झूठ बात, यथ क बात कह देते ह, वे तुह ीितकर भी लगते हगे। झूठ<br />

असर मीठे होते ह। एक तो झूठ ह, तो अगर कड़वे ह तो कौन वीकार करेगा। झूठ पर<br />

िमठास चढ़ानी पड़ती है--सांवना क िमठास। सय कड़वे होते ह, यक सय तुह<br />

सांवना नहं देते, बक तुह जगाते ह। और हो सकता है क तुम अपनी नींद म बड़े<br />

यारे सपने देख रहे हो तो जगाने वाला दमन मालूम पड़े।<br />

ु<br />

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सदगु सदा ह कठोर मालूम पड़ेगा। सदगु सदा ह तुहार धारणाओं को तोड़ता मालूम<br />

पड़ेगा। सदगु सदा ह तुहारे मन को अतयत करता मालूम पड़ेगा; तुहार अपेाओं<br />

को िछन-िभन करता मालूम पड़ेगा। उसे करना ह होगा।उसक अनुकं पा है क करता है,<br />

यक तभी तुम जागोगे। भंग ह तुहारे वन, तो ह तुम जाओगे। नींद यार लगती है,<br />

वाम मालूम होता है। जो भी जगाएगा वह दमन मालूम होगा। पर बना जगाए तुह पता<br />

ु<br />

भी न चलेगा क तुम कौन हो और कै सी अपूव तुहार संपदा है!<br />

यह पहली छांहवाली बेल,<br />

कसमसाते पाश म बांधे हए आकाश।<br />

ु<br />

ितिमर त क याह शाख पर पसर कर,<br />

हर नखत क कु सुम कोमल झलिमलाहट से रह है खेल।<br />

यह पहली छांहवाली बेल।<br />

लहराता गगन से भूिम तक जनके रत आलोक का वतार,<br />

रमय के वे सुकोमल तार,<br />

उलझे रात के हर पात से सुकु मार।<br />

इस धवल आकाश लितका म,<br />

झूलता सोलह पंखुरय का अमृतमय फू ल,<br />

गंध से जसक दशाएं अंध<br />

खोजती फरती अजाने मूल से संबंध।<br />

वलर िनमूल--<br />

फर भी वकसता है फू ल<br />

विध ने क नहं है भूल।<br />

है रहय भरा दय से हर दय का मेल।<br />

हर जगह छाई हई ु है,<br />

यह पहली छांहवाली बेल।<br />

हर दय म अपूव सुगंध भर है; जरा संबंध जोड़ने क बात है। तुम कतूर मृग हो--<br />

कतूरा हो! भागते फरते दरू -दर ू और जस अंध क तलाश कर रहे हो,<br />

वह गंध तुहारे<br />

भीतर से ह उठ रह है। उस कतूर के तुम मािलक हो। कतूर कुं<br />

डल बसै!...तुहारे भीतर<br />

बसी है--कोई जगाए, कोई हलाए, कोई तुह सचेत करे। और जो भी तुह सचेत करेगा<br />

वह तुह नाराज करेगा। इतना मरण रहे तो सदगु िमल जाएगा। इतना बोध रहे क जो<br />

तुह जगाएगा वह तुह जर नाराज करेगा, तो सदगु को खोजना कठन नहं होगा।<br />

जो तुह सांवना देते हो और तुहारे घाव को मलहम-पट करते ह और तुहारे अंधेरे को<br />

िछपाते ह और तुहारे ऊपर रंग पोत देते ह, उनसे सावधान रहना। सांवना जहां से<br />

िमलती हो समझ लेना क वहां सदगु नहं है सदगु तो झकझोरेगा; उखाड़ देगा वहां से<br />

जहां तुम हो, यक नई तुह भूिम देनी है और नया तुह आकाश देना है।<br />

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सोता था बह ु जम का,<br />

सतगु दया जगाय।<br />

जन दरया गु शद स, सब दख गए बलाय।।<br />

ु<br />

और दरया कहते ह: म चमकृ त हं ू क जागते ह सारे दख ु वलीन हो गए!<br />

म तो सोचता<br />

था एक-एक दख ु का इलाज करना होगा। ोध है तो इलाज करना होगा। लाभ है तो इलाज<br />

करना होगा। मोह है तो इलाज करना होगा। अहंकार है, यह है, वह है...हजार रोग ह।<br />

यािधयां ह यािधयां ह। इतनी यािधय के िलए इतनी ह औषिधयां खोजनी हगी। लेकन<br />

बस एक औषिध, और सार यािधया िमट गई। यक जतने रोज ह वे िसफ हमारे वन<br />

ह; उनक कोई सचाई नहं है।<br />

पापी पाप का वन देख रहा है, पुयामा पुय का वन देख रहा। जागा हआ न तो<br />

ु<br />

पापी होता है न पुयामा होता है। जागा हआ ु तो िसफ जागा हआ ु होता है;<br />

उसका कोई<br />

वन नहं होता। चोर चोर होने का वन देख रहा है और तुहारे तथाकिथत साधु, साधु<br />

होने का सपना देख रहे ह। जागा हआ ु न तो असाधु होता न तो साधु होता,<br />

बस जागा हआ ु<br />

होता है। और जागते ह सारे रोग िमट जाते ह। एक समािध सार यािधय को ले जाती है।<br />

पंख मेरे,<br />

तू कृ ित हर बार,<br />

नभ के वल तीा।<br />

तू उमड़ बढ़ व म अपने गगन का घेर,<br />

उस अिनयिमत काल गित म सय अपने हेर,<br />

फूं<br />

क अपनी ती गित से उस मरण म ाण,<br />

दे िनरथक कपनोपर को धरा के मान<br />

तू कृ ित सदय का,<br />

कर शूय भी वीकार:<br />

तू रचा आकार, नभ के वल तीा।<br />

उठ, नए वास से बंजर धरा को गोड़,<br />

बिधर नभ के मौन को कलकारय से फोड़,<br />

योित के िनःशद तार म गुंजा<br />

दे गान,<br />

जस तरफ उड़ जाय तू खल जाय वह वीरान।<br />

तू कृ ित है गीत का,<br />

कर मौन भी वीकार:<br />

गा बहा रसधार, नभ के वल तीा।<br />

ये तुले डैने अितहत योम म छा जायं<br />

मम लघु के संतुलन म बृहत के पा जायं,<br />

उधर वन क चुनौती इधर हठ िनमाण,<br />

फहर अंबर चीरकर ओ धरा के अिभमान।<br />

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तू कृ ित है रहा का,<br />

कर अगम भी वीकार:<br />

फै ल पारावार, नभ के वल तीा।<br />

कोई जगाए, झकझोरे, कोई कहे--<br />

उठ, नए वास से बंजर धरा को गोड़,<br />

बिधर नभ के मौन को कलकारयो से फोड़,<br />

योित के िनःशद तार म गुंजा<br />

दे गान,<br />

जस तरफ उड़ जाय तू खल जाय वह वीरान।<br />

तू कृ ित है गीत का,<br />

कर मौन भी वीकार:<br />

गा बहार रसधार, नभ के वल तीा।<br />

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हम वह हो सकते ह जो हम ह। हम वह हो सकते ह जो हमारा वभाव है। पर हम पता ह<br />

नहं। अपना वभाव ह भूल गया। अपना वप ह भूल गया, क हमार बड़ मता है,<br />

क हमारे भीतर ा का आवास है, क परमामा ने हम अपने रहने के िलए आवास चुना<br />

है।<br />

तू कृ ित है गीत का,<br />

कर मौन भी वीकार:<br />

गा बहा रसधार, नभ के वल तीा।<br />

कोरे आकाश को बैठे हए ु मत देखते रहो,<br />

आकाश कु छ भी न करेगा। हाथ जोड़े हए ु मंदर<br />

म ाथनाएं मत करते रहो; इससे कु छ भी न होगा। नभ के वल तीा! आकाश तो शूय<br />

है; इसम तुह जागना होगा; िनमाण करना होगा; वयं को िनखारना होगा; वयं क<br />

धूल झाड़नी होगी।<br />

ये तुले डैने अितहत योम म छा जाएं<br />

मम लघु के संतुलना म बृहत के पा जाएं,<br />

उधर वन क चुनौती इधर हठ िनमाण,<br />

फहर अंबर चीरकर ओ धरा के अिभमान।<br />

तू कृ ित है राह का,<br />

कर अगम भी वीकार:<br />

फै ल पारावार, नभ के वल तीा।<br />

कौन होगा जो ऐसा तुमसे कहे? वह--जसने फै लाए ह अपने पंख और जसने आकाश क<br />

ऊं चाइयां जानी ह। वह--जसने डुबक मार हो शांत म और गहराइयां पहचानी ह। वह--<br />

जसके भीतर फू ल खले ह; जसके भीतर मौन जगा हो। जसने अपने भीतर परमामा को<br />

आिलंगन कया हो, वह तुह भी जगा सकता है। लेकन तुम पंडत और पुरोहत के पास<br />

चकर लगा रहे हो; न वे जगे ह न वे जगा सकते ह।<br />

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राम बना फका, सब करया सातर यान।<br />

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दरया कहते ह: तुम कन के पास भटक रहे हो? राम जह िमला नहं, राम जो अभी हो<br />

नहं गए, राम जनके भीतर अभी जगा नहं...राम बना फका लगै! पंडत-पुरोहत, उनक<br />

जरा आंख म झांको। उनके जरा दय म टटोलो। असर तो तुम उह अपने से भी यादा<br />

अंधकार म पड़ा हआ पाओगे।<br />

ु<br />

सब करया सातर यान...जर याकांड वे जानते ह और शा भी बहत उनके पास ह<br />

ु<br />

और शा से सीखा हआ तोत जैसा ान भी उनके पास बहत है। मगर उसका कोई मूय<br />

ु ु<br />

नहं है। उनके जीवन पर उसक कोई छाप नहं है।<br />

म मुला नसन के गांव गया था। मुला मुझे नगर का दशन कराने ले गया।<br />

ववालय क भय इमारत को देखकर मने मुला से कहा: नसन, या यह<br />

ववालय है? सुंदर<br />

है, भय है!<br />

हऔ--मुला ने उर दया। फर गांधी मैदान आया, वशाल मैदान! मने कहा: यह है गांधी<br />

मैदान? मुला ने कहा हऔ! हर बात के उर म हऔ शद सुनकर मने पूछा: यह हऔ या<br />

होता है?<br />

हऔ--मुला ने कहा--यहां का आंचिलक शद है। बना पढ़े-िलखे लोग हां को हऔ बोलते ह।<br />

तो मने कहा: लेकन नसन, तुम तो पढ़े-िलखे हो।<br />

उसने कहा: हऔ!<br />

पढ़े-िलखे होने से या होगा? शा ऊपर ह ऊपर रह जाते ह; तुहारे अंतर को नहं छू<br />

पाते। याकांड जड़ होते ह। तुम रोज दोहरा लो गायी, मगर तोत जैसी होती है।<br />

एक-िलखे होने से या होगा? शा ऊपर ह ऊपर रह जाते ह; तुहारे अंतर को नहं छू<br />

पाते। याकांड जड़ जाते ह। तुम रोज दोहरा लो गायी, मगर तोत जैसी होती है।<br />

एक नव-रईस ने, नए-नए हए ु रईस ने,<br />

अपने मेहमान का वागत करने के िलए अपने<br />

नौकर मुला नसन को िसखाया क वे जब भी कोई चीज मंगाएं तो वह पहले पूछ ले क<br />

कस कम क चीज लाए। जैसे अगर वे कह क पान लाओ तो नौकर को तुरंत मेहमान के<br />

सामने पूछना चाहए: हजूर<br />

ु , कौन सा पान? मगह या बनारसी? महोबा या कपूर? ताक<br />

रोब बंध जाए मेहमान पर क कोई साधारण रईस नहं है; सब तरह के पान उपलध ह घर<br />

म।<br />

एक दन मेहमान के िलए उहने शरबत मंगाया, तो हम के मुताबक मुला नसन ने<br />

ु<br />

तुरंत िलट दोहराई: कौन सा शरबत लाऊं हजूर<br />

ु ? खस का या अनार का? के वड़े का या<br />

बादाम का?<br />

शरबत पी कर जब मेहमान वदा लेने लगे तो सौजयवश बोले: आप के पताजी के दशन<br />

कए बहत ु दन हो गए ह,<br />

या हम उन के दशन कर सकते ह? नव रईस ने मुला से<br />

कहा: जा मुला पताजी को बुला ला। आाकार नसन तुरंत बोला: कौन से पताजी?<br />

इंलड वाले या ांस वाले या अमरका वाले?<br />

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याकांड म उलझा हआ ु आदमी इससे यादा ऊपर नहं उठ पाता--सब<br />

थोथा-थोथा! समझ<br />

नहं होती, या कर रहा है। जैसा बताया है वैसा कर रहा है। कतनी आरती उतारनी,<br />

उतनी आरती उतार देता है। कतने चकर लगाने मूित के, उतने चकर लगा लेता है।<br />

कतने फू ल चढ़ाने, उतने फू ल चढ़ा देता है। कतने मं जपने, उतने मं जप लेता है।<br />

कतनी माला फे रनी, उतनी माला फे र देता है। लेकन दय का कहं भी संपश नहं है।<br />

और न कहं कोई बांध है।<br />

राम बना फका लगै! दरया ठक कहते ह: जब तक भीतर का राम न जगे या कसी जागे<br />

हए ु राम के साथ संग-साथ<br />

न हो जाए तब तक सब फका है।<br />

सब करया सातर यान...!<br />

दरया दपक कह करै, उदय भया िनज भान।।<br />

और जब अपने भीतर ह सूरज उग आता है तो फर बाहर के दय क कोई जरत नहं रह<br />

जाती। न शा क जरत रह जाती है, न याकांड क जरत रह जाती है। जब अपना<br />

ह बोध हो जाता है तो फर आवयक नहं होता क हम दसर के उधार बोध को ढोते फर।<br />

ू<br />

दरया दपक कह करै, उदय भया िनज भान।<br />

दरया कहता है: अब तो कोई जरत नहं है। अब उपिनषद कु छ कहते ह तो कहते रह;<br />

ठक ह कहते ह। कु रान कु छ कहती हो तो कहती रहे; ठक ह कहती है। अपना ह कु रान<br />

जग गया। अपने ह भीतर आयत खलन लगीं। अपने भीतर ह उपिनषद पैदा होने लगे।<br />

सदगु िसांत नहं देता; सदगु जागरण देता है। सदगु शा नहं देता; वबोध देता है।<br />

सदगु याकांड नहं देता; वानुभूित देता है, समािध देता है।<br />

दरया नरन पायकर, कया चाहै काज।<br />

राव रंक दोन तर, जो बैठ नाम-जहाज।।<br />

दरया कहते ह: जंदगी िमली है तो कु छ कर लो। असली काम कर लो! कया चाह चाहै<br />

काज! ऐसे ह यथ के काम म मत उलझे रहना। कोई धन इकठा कर रहा है, कोई बड़े<br />

पद पर चढ़ा जा रहा है। सब यथ हो जाएगा। मौत आती ह होगी। मौत आएगी सब पानी<br />

फे र देगी तुहारे कए पर। जस काम पर मौत पानी फे र दे, उसको असली काज मत<br />

समझना।<br />

दरया नरन पायकर, कया चाहै काज।<br />

यह मनुय का अदभुत जीवन िमला है। असली काम कर लो। असली काम या है? राव रंक<br />

दोन तर, जो बैठ नाम-जहाज। भु का मरण कर लो। भु के मरण क नाव पर सवार<br />

हो जाओ। इसके पहले क मौत तुह ले जाए, भु क नाव पर सवार हो जाओ।<br />

मुसलमान हंद कहा<br />

ू , षट दरसन रंक राव।<br />

जन दरया हरनाम बन, सब पर जम का दाव।।<br />

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और खयाल रखना, मौत फकर नहं करती क तुम हंद हो क मुसलमान क ईसाई क<br />

ू<br />

जैन। और मौत फकर नहं करती क करब हो क अमीर। और मौत फकर नहं करती<br />

क चपरासी हो क रापित। कोई फक नहं पड़ता।<br />

मुसलमान हंद कहा<br />

ू , षट दरसन रंक राव।<br />

इससे भी फक नहं पड़ता क तुह छह दशन कं ठथ ह, क तुम चार वेद के पाठ हो,<br />

क तुम पुर कु रान मृित से दोहरा सकते हो। मौत इन सब बात क िचंता नहं करेगी।<br />

जन दरया हरनाम बन...िसफ एक चीज पर मौत का वश नहं चलता--वह है राम का<br />

तुहारे भीतर जग जाना, राम क सुरित पैदा हो जाना। अयथा सब पर जम का दाव! सब<br />

पर मौत का कजा है। िसफ राम अमृत है, बाक सब मरणधमा ह।<br />

और कतना ह धन िमल जाए, कहां होती पूर वासना! लगता है और कतना ह पद हो,<br />

सीढ़या पर आगे और सोपान होते ह। और कहं भी पहंच ु जाओ,<br />

दौड़ जार रहती है,<br />

आपाधापी िमटती नहं।<br />

कहो जागरण से जरा सांस ले ले,<br />

अभी वन मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

इससे आदमी जागने तक से डरता है, यक न मालूम कतने वन अभी अधूरे-अधूरे ह।<br />

कहो जागरण से जरा सांस ले ले,<br />

अभी वन अधूरा-अधूरा।<br />

लकर बनी ह न तवीर पूर<br />

अभी यान है साधना है अधूर<br />

हआ कपना का अभी तक उदय ह<br />

ु<br />

रहा साथ मेरे अभी तक मलय ह<br />

मुझे देवता मत पुरकार देना।<br />

अभी य मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

अभी चांद का रथ हआ है रवाना<br />

ु<br />

कली को न आया अभी मुकु राना<br />

अभी तारक पर उदासी न छाई<br />

दए ने न मांगी अभी तक बदाई<br />

भाती न गाओ, सुबह मत बुलाओ,<br />

अभी मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

अभी आग है आरती कब बनी है<br />

अभी भावना भारती कब बनी है<br />

मुखर ाथना, मौन अचना नहं है<br />

िनवेदन बहत है समपण नहं है<br />

ु<br />

अभी से कसौट न मुझको चढ़ाओ,<br />

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खरा वण मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

पवन डाल क पायल को बजाए<br />

करण फू ल के कुं<br />

तल को खलाए<br />

मर जब चमन को मुरिलया सुनाए<br />

मुझे जब तुहार कभी याद आए<br />

तभी ार आकर तभी लौट जाना,<br />

दय भन मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

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आदमी डरा-डरा रहता है, यक सभी तो अधूरा-अधूरा है। इस संसार म कभी कु छ पकती<br />

ह नहं और मौत आ जाती है; कभी कु छ पुरा नहं होता और मौत आ जाती है। इसिलए<br />

सब आपाधापी यथ है, सारा म िनरथक है। करना हो कु छ तो असली काज, असली काम<br />

कर लो। जो बैठे नाम-जहाज...उसने कर िलया असली काज।<br />

मुसलमान हंद कहा<br />

ू , षट दरसन रंक राव।<br />

जन दरया हरनाम बन, सब पर जम का दाव।।<br />

जो कोई साधु गृह म, माहं राम भरपूर ।<br />

दरया कह उस दास क, म चरनन क धूर।।<br />

जसको साधु म, असाधु म राम दखाई पड़ने लगे, बस जानना वह पहंचा है। जो कोई<br />

ु<br />

साधु गृह म, माहं राम भरपूर। जो संसार म भी राम को ह देखता है, गृह म भी राम<br />

को ह देखता है, अगृह म भी; संयासी और संसार म जसे भेद ह नहं है; जसे दोन<br />

म एक ह राम दखाई पड़ता है; जसे बस राम ह दखाई पड़ता है--दरया कह उस दास<br />

क, म चरनन क धूर! बस म उसके ह चरण क धूल हो जाऊं, इतना ह काफ है। बस<br />

इतनी आकांा काफ है। जसने राम को जाना हो, उसके चरण तुहारे हाथ म आ जाएं तो<br />

राम तुहारे हाथ आ गए। जसने राम को जाना हो उसक बात तुहारे कान म पड़ जाए तो<br />

राम क बात तुहारे कान म पड़ गई।<br />

दरया सुिमरै राम को, सहज ितिमर का नास।<br />

घट भीतर होय चांदना, परमजोित परकास।।<br />

दरया सुिमरै राम को...बस एक राम क मृित, और सारा अंधकार िमट जाता है--ऐसे जैसे<br />

कोई दया जलाए और अंधकार िमट जाए! इस बात को खूब यान म रख लेना। तुह बार<br />

बार उट ह बात समझाई जाती रह है। तुह िनरंतर नीित क िशा द गई है और धम<br />

से तुह वंिचत रखा गया है। नीित क इतनी िशा द गई है क धीरे-धीरे तुम नीित को ह<br />

धम समझने लगे हो।<br />

नीित और धम बड़े वपरत आयाम ह। नीित का अथ होता है: एक-एक बीमार से लड?◌ो।<br />

नीित का अथ होता है: ोध है तो अोध साधो और लोभ है तो अलोभ साधो और आस<br />

है तो अनास साधो। हर बीमार का इलाज अलग अलग। और धम का अथ होता है: सार<br />

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बीमारय क जड़ को काट दो। जड़ है तुहार सोई अवथा, तुहार मूछत अवथा; उस<br />

जड़ को काट दो। जाग जाओ और सार बीमारयां ितरोहत हो जाती ह।<br />

नीित है अंधेरे से लड़ना। इधर से धकाओ उधर से धकाओ; लेकन अंधेरा कहं धकाने से<br />

िमटता है? दए को जलाओ! धम का अथ है: दए को जलाओ। अंधेरे क बात ह छोड़ो।<br />

मुझसे लोग आकर पूछते ह: ोध कै से िमटे लोभ कै से िमटे, कामवासना का या कर? और<br />

म उन सभी को एक ह उर देता हं<br />

ू: यान करो।<br />

एक दन एक य ने पूछा: ोध कै से िमटे? मने कहा: यान करो। वह बैठा ह था, तभी<br />

दसरे ू ने पूछा क लोभ कै से िमटे?<br />

मने कहा: यान करो। पहला वाला बोला क क, यह<br />

तो आपने मुझे भी कहा है। और मेर बीमार ोध है और इसक बीमार लोभ है। इलाज एक<br />

कै से हो सकता है?<br />

नीित येक बीमार क अलग-अलग यवथा करती है। इसिलए नीित बड़ तक यु मालूम<br />

होती है। नीित कतनी ह तक यु मालूम हो, यथ है। नीित को साध कर कोई कभी नैितक<br />

नहं हो पाता। हां, धम को जानकर लोग नैितक हो जाते ह। नैितक य धािमक नहं<br />

होता; धािमक य अिनवाय प से नैितक हो जाता है, वाभावक प से नैितक हो<br />

जाता है।<br />

एक ह चीज करनी है--जागना है।<br />

नींद या है? और जागना या है?<br />

एक वतु है, एक बंब है, म दोन के बीच--<br />

मेरे ग दोन के बीच!<br />

कतना भी म िचतवन फे ं,<br />

चाहे एक कसी को हें,<br />

उभय बने रहते ह ग म--<br />

सर म पंकज-कच<br />

एक प है, एक िच है, म दोन के बीच--<br />

मेरे ग दोन के बीच!<br />

मींच भले लूं<br />

लोचन अपने<br />

दोन बन आते ह सपने,<br />

म या खींचूं,<br />

वे ह खंचकर<br />

लेते ह मन खींच!<br />

एक सय है, एक वन है, म दोन के बीच<br />

मेरे ग दोन के बीच!<br />

यास थल, जल क आशा म,<br />

रटता है जब खग-भाषा म,<br />

एक है, एक कृ ित है, म दोन के बीच--<br />

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मेरे ग दोन के बीच!<br />

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यह म भाव, बस यह म भाव हमार िना है, हमार तंा है, हमार मूछा है। जसने म<br />

भाव छोड़ा वह जागा। इस म के कारण दो हो गए ह जगत--कृ ित और परमामा िभन<br />

मालूम हो रहे ह, यक म बीच म खड़ा हं।<br />

ू<br />

िमठ के घड़े को ले जाओ और नद म डुबा दो। िमट के घड़े म पानी भर जाएगा। बाहर<br />

भी वह पानी है, भीतर भी वह पानी है; बीच म एक िमट क दवाल खड़ हो गई। अब<br />

घड़े का पानी अलग मालूम होता है, नद का पानी अलग मालूम होता है। अभी-अभी एक<br />

थे, अब भी एक है; बस जरा सी घड़े क दवाल, पतली सी िमठ क दवाल।<br />

बस ऐसी ह ीण सी अहंकार क एक भावदशा है जो हम परमामा से अलग कए हए ु है।<br />

और हम बीच म खड़े ह, इसिलए कृ ित और परमामा अलग मालूम हो रहे ह। जहां म<br />

गया वहां कृ ित और परमामा भी एक हो जाते ह।<br />

दरया सुमरै राम को, सहज ितिमरका नास।<br />

घट भीतर होय चांदना, परमजोित परकास।।<br />

याद आने लगे परमामा क...अहंकार खोए तो ह याद आए। या तो म या तू याद रखना।<br />

दोन साथ नहं रह सकते।<br />

सूफ फकर जलालुन क कवता तुह याद दलाऊं । ेमी ने अपनी ेयसी के ार पर<br />

दतक द है। भीतर से आवा आई: कौन है? ेमी ने कहा: म हं<br />

ू, तेरा ेमी! पहचाना नहं?<br />

लेकन ेयसी ने भीतर से कहा: यह घर छोटा है। ेम का घर छोटा है। इसम दो न समा<br />

सक गे। लौट जाओ अभी। तैयार करके आना, ेम के घर म दो नहं समा सकते। एक<br />

यान म दो तलवार न रह सक गी।<br />

ेमी लौट गया। चांद आए और गए। सूरज उगे और डू बे। वष, माह बीते। धीरे-धीरे म भाव<br />

को िमटाया, िमटाया, िमटाया। और जब म भाव िमट गया फर ार पर दतक द। वह<br />

: कौन है? लेकन ेमी ने इस बार कहा: तू ह है। तू ह बाहर, तू ह भीतर!<br />

और मी क कवता कहती है: ार खुल गए! जहां एक बचा वहां ार खुल जाएंगे। जब तक<br />

दो ह, जब तक अड़चन है। दई ह हमार द<br />

ु ुवधा है। दई गई क सुवधा हई।<br />

ु ु<br />

घट भीतर होय चांदना! जरा यह म िमटे, यह अहंकार का अंधकार िमटे तो चांद भीतर उग<br />

आता है। घट भीतर होय चांदना! चांदनी ह चांदनी हो जाती है। चांद क चांद ह चांद<br />

बखर जाती है। परमजोित परकास! और उस योित का अनुभव होता है, जो शात है--<br />

बन बाती बन तेल। न तो उसक कोई बाती है और न कोई तेल है; इसिलए चुकने का<br />

कोई सवाल नहं है, बुझाने का कोई सवाल नहं।<br />

सतगुर-संग न संचरा, रामनाम उर नाहं।<br />

ते घट मरघट सारखा, भूत बस ता माहं।।<br />

जो य सतगु के संग न उठा-बैठा, जस य ने सतगु न खोजा, जो य सतगु<br />

क हवा म ास न िलया...सतगुर संग न संचरा, रामनाम उर नाहं...और जसके दय म<br />

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राम का नाम न जगा, राम का भाव न उठा, राम का संगीत न गूंजा--वह<br />

मरघट क भांित<br />

है। ते घट मरघट सारखा! वह जंदा नहं है, मरा ह हआ ु है। उसके पास जंदगी जै सा या<br />

है? बस चलती-फरती एक लाश है। ते घट मरघट सारखा, भूत बस ता मांहं। उसके भीतर<br />

आमा नहं बसती, िसफ भूत समझो।<br />

भूत बड़ा यारा शद है। इसका अथ होता है: अतीत। इसिलए तो कहते ह: भूतपूव मंी! इस<br />

देश म बहत ु भूत ह--कोई<br />

भूतपूव मंी ह, कोई भूतपूव धानमंी ह, कोई भूतपूव कु छ ह,<br />

कोई कु छ ह! भूतपूव रापित! भूत ह भूत!<br />

भूत का अथ होता है: अतीत। जो बीत गया। जस मनुय के भीतर िसफ अतीत ह अतीत<br />

है और वतमान का कई संपश नहं है, वह भूत है। बस वह लग रहा है क जी रहा है।<br />

उससे जरा दरू -दर ू रहना और सावधान!<br />

कहं लग-लुगा न जाए।<br />

और मन का ढंग ह एक है--अतीत। मन भूत ह। मन जीता ह अतीत म है। जो बीत गया<br />

उसी को इकठा करता रहता है। सारे कल जो बीत गए ह, उनको इकठा करता रहता है।<br />

मन है ह या िसवाय मृित के ? और मृित यानी भूत।<br />

अतीत से छोड़ो नाता, वतमान से जोड़ो। काश, एक ण को भी तुहारे भीतर भूत न रह<br />

जाए! भूत नहं रहेगा तो उसक छाया जो पड़ती है, भवय, वह भी नहं रहेगी। भवय<br />

भूत क छाया है। भूत गया, भवय गया। तब रह जाता है शु वतमान। हरे जैसा दमकता<br />

और चमकता यह ण! और इसी ण म से ार है परमामा का।<br />

ससंग का और कोई अथ नहं होता है। सदगु के पास बैठने का और कोई अथ नहं होता<br />

है। सदगु के पास बैठने का और कोई अथ नहं होता है। सदगु के भीतर अब न भूत है न<br />

भवय। सदगु अब िसफ अभी और यह है। सदगु शु वतमान है; न पीछे क तरफ<br />

देखता है न आगे क तरफ, बस यहं ठहरा हआ है। इस ण के अितर उसक कोई और<br />

ु<br />

िचंतना नहं है।<br />

और तुम जानते हो, अगर यह ण हो तो वचार नहं हो सकते। वचार या तो अतीत के<br />

होते ह या भवय के होते ह। वतमान का कोई वचार ह नहं होता। इस महवपूण बात को<br />

कुं<br />

जी क तरह सहाल कर रखना। वतमान का कोई वचार नहं होता। वतमान म कोई<br />

वचार नहं होता। वचार ह बनता है, जब कोई चीज बीत जाती है। वचार बीते का होता<br />

है, यतीत का होता है, अतीत का होता है; जा चुका उसक रेखा छू ट जाती है, लीक छू ट<br />

जाती है, पद-िच छू ट जाते ह। या वचार भवय का होता है--जो होना चाहए, जसक<br />

आकांा है, अभीसा है, जसक वासना है। लेकन वतमान का या वचार है?<br />

वतमान िनवचार होता है। और िनवचार हो जाना ह ससंग है। ऐसे कसी य के पास<br />

अगर बैठते रहे, बैठते रहे--जा िनवचार है, जसके भीतर सनाटा है और शूय है--तो<br />

शूय संामक है। उसके पास बैठते-बैठते शूय क बीमार लग जाएगी। तुहारे भीतर भी<br />

सनाटा छाने लगेगा। तुहारे भीतर भी धीरे-धीरे शूय क तरंग उतरने लगगी। जसके साथ<br />

रहोगे वैसे हो जाओगे।<br />

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बगीचे से गुजरोगे, फू ल न भी छु ए, तो भी व म फू ल क गंध आ जाएगी। महद<br />

पीसोगे, महद हाथ म लगानी भी न थी, तो भी हाथ रंग जाएंगे।<br />

ससंग म बैठना, जहां फू ल खले ह वहां बैठना है। थोड़ बहत गंध पकड़ ह जाएगी। तुहारे<br />

ु<br />

बावजूद पकड़ जाएगी। और वह गंध तुह अपनी भीतर क गंध के मूलोत क मृित<br />

दलाएगी।<br />

सतगुर-संग न संचरा, रामनाम उर नाहं।<br />

ते घट मरघट सारखा, भूत बसै ता माहं।<br />

दरया काया कारवी, मौसरा है दन चार।<br />

जबलग सांस सरर म, तबलग राम संभार।।<br />

कहते ह: सुनो, समझो। यह शरर तो िमया है, िमट का है। यह तो अब गया तब गया।<br />

यह तो जाने ह वाला है।<br />

दरया काया कारवी...यह तो बस माया का खेल है। यह तो जैसे कसी जादगर ने धोखा दे<br />

ू<br />

दया हो, ऐसा धोखा है।...मौसर है दन चार। और बहत ु ह छोटा अवसर है--दन<br />

चार का।<br />

बस चार दन का अवसर है।<br />

जबलग सांस सरर म, तबलग राम संभार।<br />

इन छोटे से दन म, इन थोड़े से समय म, इन चार दन म, राम को सहाल लो।<br />

जबलग सांस शरर म...और अंत ण तक मरण रखना जब तक ास रहे शरर म तब<br />

तक राम को भूलना मत। राम को याद करते-करते ह जो वदा होता है उसे फर दबारा<br />

ु<br />

वापस देह म नहं आना पड़ता। राम म डूबा-डू बा ह जो जाता है, वह राम म डू ब ह जाता<br />

है, फर उसे लौटना नहं पड़ता। फर उसे वापस संकण नहं होना पड़ता। इस छोट सी देह<br />

के भीतर आब नहं होना पड़ता।<br />

दरया आतम मल भरा, कै से िनमल होय।<br />

साबन लागै ेम का, रामनाम-जल धोय।।<br />

बहत ु गंदगी है,<br />

माना। िनमल करना है इसे, दरया कहते ह। तो दो काम करना: ेम का<br />

साबुन! जतना बन सके उतना ेम करो। जतना दे सको उतना ेम दो। ेम तुहार जीवन<br />

चया हो।<br />

साबन लागै ेम का, रामनाम जल धोय<br />

तो ेम से तो लगाओ साबुन और राम नाम के जल से धोते रहो। ेम और यान, बस दो<br />

बात ह। यान भीतर, ेम बाहर। ेम बांटो और यान सहालो। यान क योित जले और<br />

ेम का काश फै ले, बस पया है। इतना सध गया, सब सध गया। इतना न सधा, तो<br />

चूके अवसर।<br />

दरया सुिमरन राम का, देखत भूली खेल।<br />

धन धन ह वे साधवा, जन लीया मन मेल।।<br />

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दरया कहते ह: जब से राम का मरण आया, और सब खेल भूल गए। और सब खेल ह<br />

ह। छोटे बचे मॉनोपाली का खेल खेलते ह, बड़े बचे भी मॉनोपाली का खेल खेलते ह। छोटे<br />

बच का बाड होता है मॉनोपाली का, नकली नोट होते ह। मगर तुहारे नोट असली ह?<br />

उतने ह नकली ह। मायता के नोट ह। मान िलया है तो धन मालूम होता है। आदमी न रहे<br />

जमीन पर, सोना यह रहेगा, चांद यहं रहेगी; लेकन फर उसे कोई धन न कहेगा। हरे<br />

भी पड़े रहगे, कं कड़-पथर म हर म कोई भेद न रहेगा। कोहनूर और कोहनूर के पास<br />

पड़ा हआ ु कं कड़,<br />

दोन म कोई मूय भेद नहं होगा। आदमी मूय भेद खड़ा करता है। सब<br />

मूय भेद आदमी के िनिमत है, बनाए हए ु ह,<br />

कपत ह।<br />

दरया सुिमरन राम का, देखत भूली खेल।<br />

और कै से-कै से खेल चल रहे ह! कसी तरह िस हो जाऊं, लोग मुझे जान ल, लोग म<br />

नाम हो, िता हो--सब खेल ह! तुम ह न रहोगे, तुहारा नाम रहा न रहा, या फक<br />

पड़ता है! तुम न रहोगे, दस-पांच जो तुह याद करते थे कल वे भी न रहगे। पहले तुम<br />

िमट जाओगे, फर उन दस-पांच के िमटने के साथ तुहार मृित भी िमट जाएगी।<br />

कतने लोग इस जमीन पर रह चुके ह, तुमसे पहले, जर उनक याद करो। वैािनक कहते<br />

ह: जस जगह तुम बैठे हो वहां कम से कम दस आदिमय क लाश गड़ ह। इतने लोग<br />

जमीन पर रह चुके ह क अब तो हर जगह मरघट है! बतयां कई बार बस चुकं और उजड़<br />

चुकं। कई बार मरघट बतयां बन गए और बतयां मरघट बन गई।<br />

मोहनजोदड़ो क खुदाई म सात पत िमलीं। मोहनजोदड़ो सात बार बसा और सात बार उजड़ा।<br />

हजार साल म ऐसा हआ होगा। मगर कतनी बार मरघट बन गया और कतनी बार फर<br />

ु<br />

बस गया! तुम मरघट जाने से डरते हो, डरने क कोई जरत नहं है; जहां तुम रह रहे हो<br />

वहां कई दफा मरघट रह चुका है। छोड़ो भय।<br />

सार पृवी लाश से भर है। फर भी खेल नहं छू टते। खेल छू टगे भी नहं, जब तक क<br />

राम नाम का मरण न आ जाए; जब तक भु क तलाश तुहारे ाण को न पकड़ ले।<br />

जब तक उसक यास ह एकमा यास न हो जाए तब तक खेल छू टगे भी नहं। हां,<br />

उसक यास पकड़े क खेल अपने-आप छू ट जाते ह। फर खयाल करना फक ।<br />

दरया यह नहं कह रहे ह: खेल छोड़ दो। दरया कह रहे ह:। राम याद कर लो, खेल अपने<br />

से छू ट जाते ह। छू ट जाएं ठक, न छू ट ठक। मगर इतना पका हो जाता है क खेल खेल<br />

ह, इतना मालूम हो जाता है। इतना मालूम हो गया, बात खम हो गई।<br />

रामलीला म तुम राम बने हो कोई ऐसा थोड़े ह क घर जाकर रोओगे क अब सीता का<br />

या हो रहा होगा अशोक-वाटका म! रामलीला म रोते फरोगे, झाड़-झाड़ से पूछोगे क है<br />

झाड़, मेर सीता कहां है? और जैसे ह पदा िगरा क भागे घर क तरफ, यक वहां<br />

दसर सीता तीा कर रह है। और रात जब नींद लग जाएगी तो दसर सीता को भी भूल<br />

ू ू<br />

जाओगे, यक नींद म और हजार सीताएं ह, िमलन है। पद पर पद ह, खेल पर खेल ह।<br />

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नाटक म एक अिभनय कर लेते हो, ऐसा ह सारे जीवन को समझता है संयासी। जो<br />

अिभनय परमामा दे दे, कर लेता है। अगर उसने कहा क चलो दकानदार बनो तो<br />

ु<br />

दकानदार बन गए। और उसने कहा क िशक बनो तो िशक बन गए। उसने कहा क<br />

ु<br />

टेशन माटर बन जाओ तो टेशन माटर बन गए; ले ली झंड और बताने लगे। मगर<br />

अगर एक बात याद बनी रहे क खेल उसका, हम िसफ खेल खेल रहे ह जब उसका बुलावा<br />

आ जाएगा क अब लौट आओ घर, पदा फर जाएगा, घंट बज जाएगी, घर वापस लौट<br />

जाएंगे।<br />

खेल छोड़ने क ह बात नहं है; खेल को खेल जानने म ह उसका छू ट जाना है। जानना<br />

मु है।<br />

इसिलए म तुमसे यह नहं कहता क तुम जहां हो वहां से भाग जाओ, यक अगर तुम<br />

भाग गए वहां से तो तुम भागने का खेल खेलोगे। तुहारे साथ बड़ मुसीबत है। कु छ लोग<br />

गृहथी का खेल खेल रहे ह, कु छ लोग संयास का खेल खेलने लगते ह। अब जो पी को<br />

छोड़कर भागा है, उसे एक बात तो पक है क वह यह नहं मानता क पी के पास रहना<br />

खेल था। खेल था तो भागना या था? खेल होता तो भागना या था? खेल ह है तो जाना<br />

कहां है? तो बचे थे, पी थी, ार, घर, सब ठक था; खेल था, चुपचाप खेलता रहता<br />

था छोड़कर भागा तो एक बात तो पक है क उसने खेल को खेल न माना, बहत असली<br />

ु<br />

मान िलया। अब यह भागकर जाएगा कहां? वह जो असली मानने वाली बु है, वह तो<br />

साथ ह जाएगी न! मत तो छू ट नहं जाएगा। घर छू ट जाएगा, पी छू ट जाएगी; मगर<br />

पी और घर को असली मानने वाला मन यह कहं जाकर आम बना लेगा तो आम का<br />

खेल खेलेगा।<br />

मेरे एक िम ह। उनको मकान बनाने का शौक है। अपना मकान तो उहने सुंदर<br />

बनाया ह<br />

बनाया; यह उनक हॉबी है। कसी िम का भी मकान बनता हो तो वे उसम भी दन-रात<br />

लगाते। एक दन मुझे खबर आई क वे संयासी हो गए। मने कहा: यह तो बड़ा मुकल<br />

पड़ेगा उनको। हॉबी का या होगा? संयासी होकर या करगे? कोई दस साल बीत गए,<br />

तब म उस जगह से गुजरा जहां वे रहते थे पहाड़ पर। तो मने कहा क जरा मोड़ तो होगा,<br />

दस बारह मील का चकर लगेगा, लेकन देखता चलूं<br />

क वे कर या रहे ह, हॉबी का या<br />

हआ<br />

ु ! हॉबी जार थी। छाता लगाए भर दोपहर म खड़े थे। मने पूछा: या कर रहे हो?<br />

उहने कहा: आम बनवा रहे ह! वह का वह आदमी है, वह का वह खेल। तो मने कहा:<br />

तुम वहं से य आए? यह काम तो तुम वहं करते थे। और सच पूछो तो जब तुम िम<br />

के मकान बनवाते थे तो उसम कम आस थी; तुम यह अपना आम बनवा रहे हो,<br />

इसम आस और यादा हो जाएगी।<br />

वे कहने लगे: बात तो ठक है। मगर यह मकान बनाने क बात मुझसे छू टती ह नहं। बस<br />

इसके ह सपने उठते ह--ऐसा मकान बनाओ वैसा मकान बनाओ...<br />

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तुम भाग जाओगे लेकन तुम अपने को तो छोड़कर नहं भाग सकोगे। तुम तो साथ ह चले<br />

जाओगे। तुहार सार भूल-ांित साथ चली जाएगी।<br />

नाटक...समझ म आ जाए क नाटक है, बस बात खम हो गई। फर जहां हो वहं वाम<br />

हो गया। फर जैसे हो वहं संयत हो गए। यह बात ऊपर-ऊपर न रहे; यह बात भीतर बैठ<br />

जाए; यह रोएं-रोएं म समा जाए।<br />

एक गांव म रामलीला हई। ु लमण जी बेहोश ह,<br />

हनुमान जी गए ह संजीवनी बूट लेने।<br />

िमली नहं तो पूरा पहाड़ लेकर आए। रामलीला का पहाड़! एक रसी पर सारा खेल बनाया<br />

गया था। गांव क रामलीला! जस चख पर रसी घूम रह थी, रसी और चख कहं उलझ<br />

गई। गांठ न खुले। जनता अलग बेचैन। लमण जी भी बीच-बीच म आंख खोलकर देख ल<br />

क बड़ देर हई जा रह है। रामचं जी भी ऊपर क तरफ आंख उठाकर देख और कह क<br />

ु<br />

हनुमान जी, कहां हो? जद आओ। लमण जी के ाण संकट म पड़े ह। हनुमान जी सब<br />

सुन रहे ह, मगर बोल तो या बोल, यक वे अटके ह। कसी को कु छ न सूझा; मैनेजर<br />

घबड़ाहट म आ गया, उसने रसी काट द। रसी काट द तो हनुमान जी धड़ाम से पहाड़<br />

सहत नीचे िगरे। िगरे तो भूल ह गए।<br />

रामचं जी ने पूछा क जड़-बूट ले आए? लमण जी मर रहे ह।<br />

हनुमान जी ने कहा क ऐसी क तैसी लमण जी क! और भाड़ म गई जड़ बूट। पहले यह<br />

बताओ रसी कसने काट?<br />

ऊपर-ऊपर हो तो यह हालत होगी। ऊपर-ऊपर नहं, रोम-रोम िभद जाए। नहं तो जरा सा<br />

खरच दया कसी ने क फर भूल जाओगे। यह अंततम म बैठ जाए बात क यह जगत<br />

एक नाटक, एक लीला, एक खेल...फर होशपूवक खेलते रहो खेल।<br />

दरया सुिमरन राम का, देखत भूली खेल।<br />

धन धन ह वे साधवा, जन लीया मन मेल।।<br />

और जहने इस तरह राम के साथ अपने मन को कर िलया है क अब अपना भेद नहं<br />

मानते; उसका खेल है, खलवाता है तो खेलते ह; बुलवा लेगा तो चले जाएंगे; न अपना<br />

कु छ यहां है, न लाए, न कु छ ले जाना है--धय ह वे लोग।<br />

सख! मुझम अब अपना या है!<br />

िघसते िघसते मेर गागर<br />

आज घाट पर फू ट गई है;<br />

बथर गया है अहं ववश हो,<br />

मुझसे सीमा छू ट गई है,<br />

अब तरना या, बहना या है!<br />

सख! मुझम अब अपना या है!<br />

पाप पुय औ यारर ईया<br />

्<br />

मने अपना सब दे डाला;<br />

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अपण करते ह मेरा सब<br />

चमक उठा अब उजला काला;<br />

अब सच या और सपना या है!<br />

सख! मुझम अब अपना या ह!<br />

अपनी पीड़ाएं सख! तेरे<br />

वणम अंचल पर सब लखकर,<br />

मेर वाणी मौन हो गई<br />

एक बार अवराम मचलकर;<br />

अब य से कु छ कहना या है!<br />

सख! मुझम अब अपना या है!<br />

इछाओं के अगम िसंधु म<br />

जीवन कारज लहर बन गए;<br />

सुिध का यान चला जाता है;<br />

भय ितर-ितर कर यार हो गए;<br />

पास दर ू अब रहना या है?<br />

सख! मुझम अब अपना या है!<br />

ओ, पीड़ा क दय पुजारन!<br />

तूने जो वरदान दया है,<br />

तेरा ह तो मधुमय बोझा<br />

बस ण भर को टेक िलया है,<br />

मुझको इसम सहन या है!<br />

सख! मुझम अब अपना या है!<br />

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एक बार राम के साथ मन का मेल हो जाए, फर अपना या है? फर छोड़ना भी नहं,<br />

फर पकड़ना भी नहं। फर न कु छ याग है, न कु छ भोग है।<br />

फर दहाई सहर म<br />

ु , चोर गए अब भाज।<br />

और जैसे ह यह पता चल जाता है क मन राम म रम गया, क सारे चोर भाग जाते ह।<br />

भीतर के नगर म डुंड िमट जाती है, क अब भाग जाओ; अब यहां रहने म सार नहं,<br />

मािलक आ गया! रोशनी आ गई। अंधेरा भाग जाता है।<br />

फर दहाई ु सहर म,<br />

चोर गए सब भाज।<br />

स फर िम जु भया, हआ राम का राज।।<br />

ु<br />

फर ोध कणा हो जाती है; वासना ाथना हो जाती है; काम राम हो जाता है; जो शु<br />

थे वे िम हो जाते ह। खूब यार परभाषा क है राम राय क! इससे बाहर का कोई संबंध<br />

नहं है।<br />

स फर िम जु भया, हआ ु राम का राज!<br />

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भीतर मन राम के साथ एक हो गया...एक है ह, बस जान िलया, यिभा हो गई क<br />

एक ह है--क रामराय हो गया! क जीवन म फर आनंद ह आनंद क वषा है! क आ<br />

गया वसंत!<br />

कसमसाई है लता क देह<br />

फागुन आ गया<br />

पारदश यां के पार<br />

सरस का उमगना<br />

गंध-वन म िनवसन होते<br />

पलाश का बहकना<br />

अंजुर भर भर लुटाता नेह<br />

फागुन आ गया<br />

इंधनुषी रंग का वतार<br />

ओढ़े दन गुजरते<br />

अमलतास से खले संबंध<br />

फर मन म उतरते<br />

पंखुरय सा झर गया संदेह<br />

फागुन आ गया<br />

एक वंशी टेर ितरती<br />

छरहर अमराइय म<br />

ताल के संके त बौराए<br />

चपल परछाइय म<br />

झुके पात से टपकता मह<br />

फागुन आ गया<br />

नम अबीर धूप पर<br />

छाने लगा लािलम कु हासा<br />

पुर गया रांगोिलय से<br />

योम भी कु मकु म छु आ सा<br />

पुलक भरते ार, आंगन, गेह<br />

फागुन आ गया<br />

इस फागुन क तीा है। इसी फागुन क तलाश है--क बरस जाएं रंग ह रंग, क ाण<br />

भर जाएं इंधनुष से, क सुगंध उठे, क दया जले, क रामराय आए। और आने क<br />

कुं<br />

जी सीधी साफ है--म तू का भेद िमट जाए। इधर िमटा म तू का भेद, उधर रामराय का<br />

पदापण हआ।<br />

ु<br />

यह तुहारा हक है, अिधकार है। गंवाओ तो तुम जमेवार। अवसर को चूको मत। जागो।<br />

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अमी झरत, बगसत कं वल! दरया कहते ह: अमृत बरसत है और कमल खलते ह।<br />

आज इतना ह।<br />

कतना है जीवन अनमोल<br />

दसरा वचन<br />

ू ; दनांक १२ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

भगवान! णमो णमो भगवान, फर-फर भूले को, च म पड़े को शद क गूंज<br />

से, जागृित<br />

क चोट से, ािनय क याया से; ववेक मृित, सुरित, आम-मरण और जागृित<br />

क गूंज<br />

से फर चका दया भगवान! णमो णमो भगवान!<br />

मानव जीवन क संत ने इतनी महमा य गायी है?<br />

जीवन सय है या असय?<br />

भगवान! बिलहार भु आपक<br />

अंतर-यान दलाय।<br />

पहला : भगवान! णमो णमो भगवान! फर-फर भूले को, च म पड़े को--शद क गूंज<br />

से, जागृित क चोट से, ािनय क याया से; ववेक, मृित सुरित, आम-मरण<br />

और जागृित क गूंज<br />

से, फर चका दया भगवान! णमो णमो भगवान!<br />

मोहन भारती! चकना शुभ है, लेकन चकना काफ नहं है। चककर फर सो जा सकते हो।<br />

चककर फर करवट ले सकते हो! फर गहर नींद, फर अंधेरे क लंबी वन याा शु हो<br />

सकती है।<br />

चकना शुभ जर है, अगर चकने के पीछे जागरण आए। लेकन िसफ चकने से राजी मत<br />

हो जाना; मत सोच लेना क चक गए तो सब हो गया। ऐसा जसने सोचा फर सो<br />

जाएगा। जसने सोचा क चक गया तो बस सब हो गया, अब करने को या बचा--उसक<br />

नींद सुिनत है।<br />

और यान रखना, जो बार-बार चककर सो जाए, फर धीरे-धीरे चकना भी उसके िलए<br />

यथ हो जाता है। यह उसक आदत हो जाती है। चकता है, सो जाता है। चकता है, सो<br />

जाता है।<br />

तुम कु छ नए नहं हो, कोई भी नया नहं है। न मालूम कतने बु, न मालूम कतने<br />

जन के पास से तुम गुजरे होओगे। और न मालूम कतनी बार तुमने कहा होगा: णमो णमो<br />

भगवान! फर-फर भूले को, च म पड़े को चौका दया! और फर तुम सो गए और चल<br />

पड़ा वह...फर वह वन, फर वह आपाधापी, फर वह मन का व यापार।<br />

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चकने का उपयोग करो। चकना तो के वल शुआत है, अंत नहं। सौभाय है, यक बहत<br />

ु<br />

ह जो चकते भी नहं। ऐसे जड़ ह, ऐसे बिधर ह, उनके कान तक आवाज भी नहं पहंचती।<br />

ु<br />

और अगर पहंच भी जाए तो वे उसक अपने मन के अनुसार याया कर लेने म बड़े कु शल<br />

ु<br />

ह। अगर ईर भी उनके ार पर दतक दे तो वे अपने को समझा लेते ह: हवा का झका<br />

होगा, क कोई राहगीर भटक गया होगा, क कोई अनजान-अपरिचत राह पूछने के िलए<br />

ार खटखटाता होगा। हजार मन क यायाएं ह अपने को समझा लेने क। और जसने<br />

याया क उसने सुना नहं।<br />

सुनो, याया न करना। सुनो और चोट को पचा मत जाना। चोट का उपयोग करो। चोट<br />

सृजनामक है। शुभ है क ऐसी तीित हई<br />

ु , पर कतनी देर टके गी यह तीित? हवा के<br />

झके क तरह आती ह तीितयां और चली जाती ह और तुम वैसे ह धूल-धूसरत, उहं<br />

गढ म, उहं कचड़ म पड़े रह जाते हो। कमल जमेगा। चक कचड़ चक कचड़ ह,<br />

लेकन कचड़ ह है। बेहतर उनसे, जनके कान पर जूं<br />

भी नहं रगती; लेकन बहत ु भेद<br />

नहं है।<br />

ऐसा बहत िम को होता है। कोई बात सुनकर एक झंकार हो जाती है। कोई बात गुन कर<br />

ु<br />

मन क वीणा का कोई तार िछड़ जाता है। कोई गीत जग जाता है। आया झका गया झका।<br />

उतर एक करण और फर खो गई। मुठ नहं बंधती, हाथी कु छ नहं लगता। और बार-<br />

बार ऐसा होता रहा तो फर चकना भी यथ हो जाएगा; वह भी तुहार आदत हो जाएगी।<br />

तो पहली बात तो यह मोहन भारती, क शुभ हआ<br />

ु , वागत करो। वयं को धयवाद दो<br />

क तुमने बाधा न डाली।<br />

बरस भर पर फर से सब ओर<br />

घटा सावन क िघर आयी!<br />

नाचता है मयूर वन म<br />

मुध हो सतरंगे पर खोल<br />

कू क कोकल ने क सब ओर<br />

मृदल वर म मधुमय रस घोल<br />

ु<br />

सुभग जीवन का पा संदेश धरा सुकु मार सकु चाई!<br />

घटा सावन क िघर आयी!<br />

पलव के घूंघट<br />

से झांक<br />

पलक-दोल म किलयां झूल<br />

झकोर से मीठा अनुराग<br />

मांगतीं घन-अलक म भूल<br />

झरोख से अंबर के मूक कसी क आंख मुसका!<br />

घटा सावनी िघर आई!<br />

खुले कुं<br />

तल से काले नाग<br />

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बादल के िछतराए आज<br />

तड़त चपला क उवल रेख<br />

ितिमर-घन-मुख का हरक ताज<br />

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उड़े भाव के मृदल ु चकोर बरस भर पर बदली आई!<br />

घटा सावन क िघर आई!<br />

लेकन घटा बीत न जाए, हवा उसे उड़ा न ले जाए। बरसे! घटा के आ जाने भर से सावन<br />

नहं आता। घटा के बना आए भी सावन नहं आता। लेकन घटा के आ जाने भर से सावन<br />

नहं आता--बरसे, जी भर कर बरसे! नहा जाओ तुम। सब धूल बह जाए तुहारे िच का<br />

दपण क।<br />

ीितकर लगती ह बात ववेक क, मृित क, सुरित क, आम-मरण क, जागृित क।<br />

लेकन बात से या होगा? बात तो फर बात ह ह। कतनी ह ीितकर ह, नहं, उनसे<br />

पेट न भरेगा, मांस-मजा न बनेगी। सुंदर-सुंदर<br />

शद तुह ानी बना दगे, यानी न<br />

बनाएंगे। और जो यानी नहं है उसका ान दो कौड़ का है। उसका ान बासा है, उधार<br />

है।<br />

ऐसे तो शा म ान भरा पड़ा है, पढ़ लो, संगृहत कर लो, जतना चाहो उतना कर लो।<br />

वेद कं ठथ कर लो। तो भी तुम तुम ह रहोगे। वेद कं ठ म ह अटका रह जाएगा, तुहारे<br />

दय तक उसक जलधारा न पहं ुचेगी। िसफ यान पहंचता ु है दय तक,<br />

ान नहं पहंचता। ु<br />

ान तो मतक म ह बोझ बनकर रह जाता है। ान पांडय को तो जम देता है, ा<br />

को नहं। और ा है, जो मु लाती है।<br />

मुझे सुनकर भी ऐसी भूल मत कर लेना। मेरे शद तुह यारे लग तो तुम उह संगृहत<br />

करोगे; यारे लग तो सहालकर रखोगे, संजोकर रखोगे मतक क मंजूषा म। बहमूय<br />

ु<br />

ह, ताले डालकर रखोगे। इससे कु छ भी न होगा। एक नए तरह का पांडय पैदा हो जाएगा।<br />

तुम जैसे थे वैसे के वैसे रह जाओगे। घट आई, सावन न आया। घटा आई और हवाएं उड़ा<br />

ले गई बदली को; तुम खे थे, खे रह गए।<br />

अमृत बरसना चाहए। और अमृत उहं पर बरसता है जनके दय यान क पाता को<br />

पैदा कर लेते ह।<br />

शद से मत तृ होना। ईर शद ईर नहं है और न यान शद यान है, न ेम शद<br />

ेम है। मगर शद बड़ भांित पैरा करता ह। हम शद म जीते ह।<br />

मनुयता क सबसे बड़ खोज शद है, भाषा है। और चूंक<br />

मनुय क सबसे बड़ खोज<br />

भाषा है, इसिलए मनुय भाषा म जीता है। ेम क बात करते-करते भूल ह जाती है यह<br />

बात क ेम हआ ु नहं अभी। बात करते-करते<br />

भरोसा आने लगता है, बहुत बार दोहरा लेने<br />

से आम-समोहन हो जाता है।<br />

लेकन ेम कु छ बात और है। वाद उसका कु छ और है। पयोगे तो जानोगे, ेम शराब है।<br />

मदमत होओगे तो जानोगे।<br />

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और यान दसरा ू पहलू है ेम का। एक ह िसका है--एक<br />

तरफ यान, एक तरफ ेम।<br />

और दो ह तरह के लोग ह इस दिनया म। या तो यान से जाना जाएगा सय। तब जागो।<br />

ु<br />

तब से शद जो तुमने सुने और तुह ीितकर लगे ववेक--ववेक, मृित, सुरित, आम-<br />

मरण, जागृित--इन सारे शद म एक ह बात है: जागो! जो भी करो, जागकता से करो!<br />

उठो, बैठो, चलो--लेकन मरण न खोए, बोध न खोए। यंवत मत चलो, मत उठो,<br />

मत बैठो।<br />

महावीर ने कहा है: ववेक से चले, ववेक से उठे, ववेक से बैठे। एक-एक कृ य जागृित के<br />

रस से भर जाए तो धीरे-धीरे शद तो खो जाएंगे, लेकन शद के भीतर जो िछपा हआ<br />

ु<br />

अनुभव है वह तुहारा हो जाएगा।<br />

एक तो राता है ऐसा और एक राता है क डू बो ेम म, मती म, ाथना म, पूजा म,<br />

अचना म। उट दखाई पड़ती ह बात। एक म जागना है, दसरे ू म डूबना है;<br />

लेकन दोन<br />

एक ह जगह ले आती ह, यक दोन म एक ह घटना मूलतः घटती है। जैसे ह तुम पूर<br />

तरह जागते हो, अहंकार नहं पाया जाता। जात चैतय म अहंकार क कहं छाया भी नहं<br />

िमलती, कहं पदिच भी नहं िमलते। अहंकार तो अंधेरे म जीता है, रोशनी होते ह खो<br />

जाता है। अहंकार अंधेरे का अंग है। अंधकार ह अहंकार है। जैसे ह तुमने जागरण का दया<br />

जलाया, योित उमगी--पाओगे भीतर कोई अहंकार नहं है। तुम तो हो, लेकन कोई म-<br />

भाव नहं है। अतव है, लेकन अमता नहं है।<br />

और अगर ेम म डू बे, भ म डूबे, भाव म डूबे, ाथना म डू ब--तो भी अहंकार गया।<br />

डू बने से गया। जसने जाकर पढ़ा दया परमामा के चरण म अपने को, चढ़ाते ह वह नहं<br />

बचा। यप वपरत दखाई पड़ती ह दोन बात! यान और ेम। और आज तक मनुय-<br />

जाित के इितहास म कोई चेा नहं हई क यान और ेम को एक साथ जोड़ा जा सके ।<br />

ु<br />

बु यान क बात करते ह, मीरा ेम क बात करती है। महावीर यान क बात करते ह,<br />

चैतय ेम क बात करते ह। दोन के बीच कोई तालमेल नहं बैठ सका, कोई सेतु नहं बन<br />

सका। बनना चाहए सेतु, यक दोन म कु छ वरोध नहं है; दोन का परणाम एक है।<br />

याा-पथ िभन ह भला, मंजल एक है, गंतय एक है।<br />

कोई अपने को डु बाकर खो देता है, कोई अपने को जगाकर खो देता है। दोन हालत म<br />

अहंकार खो जाता है। और अहंकार खो जाए तो परमामा ह शेष रह जाता है। यप<br />

यािनय और ेिमय क भाषा भी अलग-अलग होगी। वभावतः जसने यान से सय को<br />

पाया है वह परमामा क बात ह नहं करेगा। यक जसने यान से सय को पाया है,<br />

वह आमा को बात करेगा। वह कहेगा: अप सो परमपा! वह कहेगा: आमा ह परमामा<br />

है। इसिलए महावीर और बु ईर को वीकार नहं करते। इसिलए नहं क नहं जानते,<br />

मगर उनके िलए ईर यान के माग से उपलध हआ ु है। यान के माग पर ईर<br />

का नाम<br />

आमा है, वप है। और जसने भ से जाना है--मीरा ने या चैतय ने, जहने ेम<br />

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के माग से जाना है--उनके माग पर अनुभूित तो वह है िनर-अहंकारता क, लेकन<br />

अनुभूित को अिभय देने का शद अलग है। वे परमामा क बात करगे।<br />

इन शद से बड़ा ववाद पैदा हआ है। म अपने संयािसय को चाहता हं इस ववाद म मत<br />

ु ू<br />

पड़ना। सब ववाद अधािमक ह। ववाद म श मत गंवाना। तुह जो िचकर लगे--अगर<br />

यान िचकर लगे यान, अगर भ िचकर लगे भ। मुझे दोन अंगीकार ह। और कु छ<br />

लोग ऐसे भी हगे जह दोन एक साथ िचकर लगगे; वे भी घबड़ाएं न।<br />

बहत ु से मेरे पास आते ह क हम ाथना भी अछ लगती है,<br />

यान भी अछा लगता<br />

है! य चुने? दोन अछे लगते ह तो फर तो कहना ह या! सोने म सुगंध। फर तो<br />

तुहारे ऊपर ऐसा रस बरसेगा जैसा अके ले यानी पर भी नहं बरसता और अके ले भ पर<br />

भी नहं बरसता। तुहारे भीतर तो दोन फू ल एक साथ खलगे। तुहारे भीतर तो दोन दए<br />

एक साथ जलगे। तुहार अनुभूित तो परम अनुभूित होगी।<br />

मेर चेा यह है क ेम और यान संयु हो जाएं और धीरे-धीरे अिधकतम लोग दोन<br />

पंख को फै लाएं और आकाश म उड़। जब पंख को फै लाकर लोग पहंच ु गए सूरज तक,<br />

तो<br />

जसके पास दोन पंख हगे उसका तो कहना ह या!<br />

मगर बात नहं, मोहन भारती! अपनी पीठ थपथपा कर सन मत हो लेना क मेर बात<br />

से चोट पड़। चोट खो न जाए, चोट पड़ती ह रहे, और गहन होती जाए। चोट को झेलते<br />

ह जाना। लगते-लगते ह तीर लग पाएगा। होते-होते ह बात हो पाएगी। बहत ु बार चूकोगे ,<br />

वाभावक है; उससे पााप भी मत करना जम-जम से चूके हो, चूकना तुहार<br />

आदत का हसा हो गया है।<br />

घबड़ाना भी मत, यक जो पहंचे ु ह वे भी बहत ु चूक-चूक<br />

कर पहंचे ु ह। कोई महावीर<br />

तुमसे कम नहं चूके थे। कोई दरया तुमसे कम नहं चूके थे। अनंत-अनंत काल तक चूकते<br />

रहे। आर फर एक दन पहंचना ु हआ। ु तुम भी अनंत काल से चूकते रहे हो,<br />

एक दन<br />

पहंचना ु हो सकता है। और चूकने वाले पहंच ु गए,<br />

तुम भी पहंच ु सकते हो। मगर जीवन<br />

बदलता है अनुभव से, अनुभूित से।<br />

एक िम ने पूछा है क आपने कहा क जड़वत गायी का पाठ करते रहने से कु छ सार<br />

नहं। तो उहने कहा है क म तो यहां आपके आम म भी लोग को जड़वत यान करते<br />

देख रहा हं<br />

ू, इससे या सार है?<br />

भाई मेरे, तुमने यान कया? तुम कै से देखोगे दसर को क वे जड़वत यान कर रहे है या<br />

ू<br />

आमवत? न तो तुमने गायी पढ़ है और पढ़ होगी तो जड़वत ह पढ़ होगी, अयथा<br />

यहां य आते? अगर गायी का फू ल तुहारे भीतर खल गया होता तो यहां य आते,<br />

बात खम हो गई! इलाज हो गया, फर िचकसक क तलाश नहं होती। यहां आए हो तो<br />

गायी अगर पढ़ होगी तो जड़वत पढ़ होगी।<br />

और यहां तुम दसर ू को देखते हो यान करते!<br />

दसर ू को देखने से कु छ भी न होगा। कै से<br />

जानोगे? अगर दो ेमी एक-दसरे को गले लगा रहे ह तो कै से तुम जानोगे क वतुतः गले<br />

ू<br />

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लगाने का अिभनय कर रहे ह या सच म ह दय म उमंग उठ है, ीित जगी है, गीत<br />

वहां है? कै से जानोगे बाहर से? बाहर से जानने का कोई उपाय नहं है। यह भी हो सकता है<br />

अिभनय ह कर रहे ह; औपचारक हो, याकांड हो। यह भी हो सकता है क वतुतः<br />

भीतर आनंद जगा हो। मगर बाहर से जानने का कोई उपाय नहं है।<br />

तुम भी थोड़ा नाचो, गाओ, गुनगुनाओ। इतने दर आ ह गए हो तो ऐसे थोथे पूछ कर<br />

ू<br />

वापस मत लौट जाना। ये तो तुम वहं पूछ सकते थे। यहां आ गए हो तो थोड़ यहां<br />

क शराब पयो, चखो। और फर इससे या फक पड़ता है क और दसरे ू जड़वत कर रहे ह?<br />

तुमने कोई ठेका नहं िलया कसी के मो का। तुम अपना मो सहाल लो, इतना काफ<br />

है। अगर तुहारे भीतर यान जग जाए तो सार दिनया जड़वत करती हो यान को करने<br />

ु<br />

दो, िचंता न लो। तुहार भीतर जग जाए यान, तुम पा लोगे। इतना ह तुहारा दाियव<br />

है। इतनी ह परमामा क तुमसे अपेा है क तुम खल जाओ, क तुहार सुगंध बखर<br />

जाए हवाओं म, क ऐसे तुम बीज क तरह बंद ह बंद न मर जाना।<br />

देखा होगा लोग को नाचते, यान करते। सोचा होगा यह भी सब जड़वत हो रहा है। कै से<br />

पहचानोगे? बु भी ऐसे ह चलते ह जैसे कोई और आदमी चलता है। ऐसे ह तो पैर<br />

उठाएंगे, ऐसे ह तो हाथ हलाएंगे, ऐसे ह तो उठगे, ऐसे ह तो बैठगे; मगर भीतर एक<br />

भेद है। और भेद इतना बारक, इतना नाजुक, क जो भेद को अनुभव करेगा वह जानेगा।<br />

भेद बहत नाजुक है<br />

ु<br />

, बहत ु सूम है। तुम भी उठते हो,<br />

बु भी उठते ह; पर फक है। य<br />

फक है? बु होशपूवक ह; तुम उठ जाते हो मशीन क तरह। बु होशपूवक सोते ह; नींद<br />

म भी होश क एक धारा बहती रहती है।<br />

कृ ण ने कहा है: जो सबके िलए रा है, तब भी योगी जागा हआ है। या िनशा सवभूतानां<br />

ु<br />

तयां जागित संयमी!<br />

लेकन तुम योगी को सोया हआ ु देखोगे तो भेद न कर पाओगे योगी म और भोगी म , क<br />

कर पाओगे भेद? दोन एक से मालूम पड़गे, दोन सोए ह। भेद भीतर है, बहत भीतर है।<br />

ु<br />

भेद इतना आंतरक और िनजी है क कोई दसरा वहां िनमंत नहं कया जा सकता। उस<br />

ू<br />

अंतरतम म तो तुम अपने ह भीतर डुबक मारोगे तो उतर पाओगे।<br />

आनंद ने बु से पूछा है क म आपको सोते देखता हं।<br />

ू ...वष आनंद बु के साथ रहा, तब<br />

उसे यह धीरे-धीरे अनुभव हआ क कु छ भेद है। चालीस साल बु के साथ रहा। चालीस साल<br />

ु<br />

बु क सेवा म रत रहा, सुबह से लेकर रात तक जब तक बु सो न जाएं तब तक बतर<br />

पर न जाए। जस क म बु सोएं वहं सोता था--रात कब जरत पड़ जाए। कभी नींद न<br />

आती होगी। कभी नींद देर से आती होगी। तो बु को सोया हआ देखता रहता था। वष बाद<br />

ु<br />

यह खयाल आया क थोड़ा सा कु छ भेद मालूम पड़ता है। मगर वह भी धुंधला-धुंधला।<br />

बु से<br />

पूछा उसने: मेरे सोने म और आपके सोने म भी य कु छ भेद है? खैर जागने म तो मेरे<br />

और आपके भेद है। मुझे कोई गाली दे तो दख होता है<br />

ु , ोध होता है; आपके कोई गाली दे<br />

तो ोध नहं होता, दख नहं होता।<br />

ु<br />

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एक बार एक आदमी ने आपके ऊपर आकर थूक दया था तो म आगबबूला हो गया था।<br />

थूका आप पर था, लेकन म भभक उठा था। मेरा पुराना य जाग उठा। अगर मेरे हाथ<br />

म तलवार होती तो मने उसक गदन काट द होती। लेकन गदन काटने का वचार तो मेरे<br />

भीतर तलवार क तरह कध गया था। वह तो आपके संग का...आपक तरफ देखकर चुप<br />

रहा। कस तरह अपने को चुप रख सका यह भी आज कहना कठन है। एक ण तो आप<br />

भी भूल गए थे। मगर फर खयाल आया था, संकोच आया था क आपसे आा ले लूं,<br />

फर इसे आवाज दं। लेकन आपने िसफ चादर से थूक को पछ िलया था और उस आदमी<br />

ू<br />

से कहा था: भाई कु छ और कहना है? तब तो म बहत चका था। तब मुझे भेद दखाई पड़ा<br />

ु<br />

था। म तो आग से जल उठा। म तो भूल ह गया संयास। म तो भूल ह गया यान! म तो<br />

भूल ह गया सब ान। एक ण म वष-वष पुंछ<br />

गए। म वह का वह था। और आपसे पूछा<br />

था क या इस आदमी को सजा दंू? यह आदमी सजा का हकदार है। इसको दंड िमलना ह<br />

चाहए।<br />

तो आप हंसे थे और आपने कहा था: उसके थूकने से म इतना परेशान नहं हं<br />

ू, जतना तेरे<br />

दखी ु और परेशान होने से परेशान हं। ू यह तो अानी है,<br />

य है; मगर तू तो कतने दन<br />

से यान क चेा म लगा है, अभी तेरा यान इतना भी नहं पका? यह मनुय कु छ कहना<br />

चाहता है। तुम थकने को देख रहा है। यह कु छ ऐसी बात कहना चाहता है जो शद से नहं<br />

कह जा सकती।<br />

ऐसा असर ेम म और घृणा म हो जाता है--इतने गहरे भाव क शद म नहं आते। कसी<br />

से ेम होता है तो तुम गले लगा लेते हो। य? यक भाषा म कहने से काम नहं<br />

चलेगा। भाषा छोट पड़ जाती है। गले लगाकर तुम यह तो कहते हो क भाषा असमथ है।<br />

कु छ कृ य करते हो। ऐसे ह यह आदमी ोध से जल रहा है। मेर मौजूदगी से इसे पीड़ा है।<br />

मेरे शद से इसे चोट लगी है। मेरे वय ने इसक धारणाओं को खंडत कया है। यह<br />

विलत है। यह इतना विलत है क कोई गाली काम नहं करेगी। इसिलए इस बेचारे को<br />

थूकना पड़ा है। इस पर दया करो। इसिलए म इससे पूछता हं ू क भाई,<br />

कु छ और कहना है?<br />

यह तो म समझ गया, अब और भी कु छ कहना है या बस इतना ह कहना है? यह वय<br />

है इसका। थूकने को मत देखो।<br />

तो आनंद ने कहा: मने वह दन तो देखा। ऐसे बहत ु दन देखे। जागने म तो भेद है,<br />

पर<br />

यह मने न सोचा था क सोने म भी भेद होगा। लेकन कल रात देर तक नींद न आई,<br />

बैठकर म आपको देखता रहा, पूरा चांद आकाश म था, वृ के नीचे आप सोए थे। उस<br />

चांद क रोशनी म आप अदभुत सुंदर<br />

मालूम होते थे। तब अचानक बजली जैसे कध गई,<br />

ऐसा मुझे खयाल आया: कतने वष हो गए, आपको सोते देखकर--यह बात मुझे कभी पहले<br />

य न याद आई क आप जस आसन म सोते ह, रात-भर उसी आसन म सोए रहते ह,<br />

बदलते नहं! जहां रखते ह पैर सोते समय, वहं रहता है रात-भर पैर। जहां रखने ह हाथ<br />

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वहं रहता है। रात-भर हाथ। करवट भी नहं बदलते। सुबह उसी आसन म उठते ह। तो सोते<br />

ह क रात-भर अपने को सहाले रखते ह। यक जो आदमी सोएगा, करवट भी बदलेगा।<br />

बु ने कहा: शरर सोता है, म तो जाग गया हं। म जागा ह हआ हं। मगर इस जागने को<br />

ू ु ू<br />

तुम कै से जानोगे?<br />

आनंद ने सुन िलया; ा थी तो मान भी िलया। लेकन जानोगे कै से? पता नहं बु झूठ<br />

कहते ह! पता नहं िसफ अयास कर िलया हो एक ह करवट सोने का! आखर सक स म<br />

लोग या-या अयास नहं कर लेते। तुम भी कर सकते हो एक ह करवट सोने का<br />

अयास। बड़ आसानी से कर सकते हो।<br />

म यह बात एक िम से कह रहा था। वे कहने लगे: कै से अयास हो जाएगा एक ह करवट<br />

सोने का? मने उन से कहा क पीठ म एक पथर बांधकर सो जाओ। जब भी करवट<br />

बदलोगे तभी तकलीफ होगी। तकलीफ से बचने म अपने-आप अयास हो जाएगा।<br />

ज थे, अयास कया। कोई चालीस दन बाद मुझे आकर कहा क आप ठक कहते ह।<br />

अब एक ह करवट सोता हं<br />

ू; यक वह पथर जो बंधा है पीठ से, जब भी करवट बदलो,<br />

तब तकलीफ होती है और नींद टट ू जाती है। अब तो धीरे-धीरे<br />

नींद म भी उस पथर क<br />

मौजूदगी जर अचेतन म छाया डालने लगी होगी।<br />

तो कौन जाने बु ने अयास ह कया हो! बाहर से कै से जानोगे? उतरो, यान का थोड़ा<br />

वाद लो।<br />

यहां जो भी हो रहा है, जड़वत नहं हो रहा है। जड़वत करना हो तो दिनया म बहत थान<br />

ु ु<br />

ह करने को; यहां आने क जरत नहं है। जो जड़वत याओं से ऊब गए ह, परेशान हो<br />

गए ह, कर कर थक गए ह और कु छ भी नहं पाया है, िसफ वषाद हाथ लगा है--वे ह<br />

यहां आए ह। नहं तो मेरे साथ जुड़ने क बदनामी कौन ले! मेरे साथ जुड़ने का उपव कौन<br />

सहे! उतनी कमत वह चुकाता है जो बहत बह<br />

ु ुत ार खटखटा चुका है और जसे अपना<br />

मंदर अभी नहं िमला है। लेकन खड़े होकर दर से मत देखते रहना। नहं तो तुम यह<br />

ू<br />

खयाल लेकर जाओगे: कहं गायी हो रह है, यहां यान हो रहा है; मगर सब जड़वत।<br />

कै से तुमने यह िनणय ले िलया क यह जड़वत हो रहा है? जरा लोग क आंख म देखो।<br />

जरा लोग के आनंद म झांको। उनक मती को थोड़ा पहचानो। मगर वह पहचान भी तभी<br />

होगी जब भीतर तुहारे भी थोड़ नई हवाएं बह, सूरज क नई करण उतर, तुहारा मन-<br />

मयूर नाचेब।<br />

मोहन भारती! चक गए, शुभ है। घटा िघर आई, शुभ है। मंगल-गान करो। पर घटा बरसे!<br />

बहत ु हो चुक देर ऐसे भी,<br />

अब घटा बना बरसे न जाए। यह अभी-रस बरसे। तुम उस म<br />

भीगो। और भीगने लगोगे तो पाओगे: अंत नहं है। जतने भीगोगे उतने ह पाओगे: और भी<br />

भीगने को शेष है। जैसे जैसे सावन आएगा, लगेगा: और भी सावन आने को शेष ह।<br />

एक फू ल या खला तो बसंत थोड़े ह आ गया। एक बसंत एक फू ल के खलने से नहं।<br />

फू ल तो खबर देता है क आ रहा बसंत, आ रहा बसंत। हजार हजार फू ल खलगे, लाख<br />

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लाख फू ल खलगे। एक एक य के भीतर इतनी मता है क सारे वेद, सारे कु रान सार<br />

गीताएं, सारे धमपद एक एक य के भीतर खल सकते ह।<br />

दसरा <br />

ू : मानव-जीवन क संत ने इतनी महमा य गाई है?<br />

चैतय ेम! पहली बात, जीवन ह महमावान है। जीवन परमामा क अपूव भट है। जीवन<br />

साद है। तुमने कमाया नहं। तुम गंवा भले रहे होओ, मगर कमाया तुमने नहं। उतरा है,<br />

तुम पर कसी अात लोक से बरसा है। तुमसे कसी ने पूछा तो न था क होना होते हो या<br />

नहं? पूछता भी कै से? जब तुम थे ह नहं तो तुम से पूछता कोई कै से?<br />

जीवन आपने-आप म महमावान है। जीवन से फर सारे ार खुलते ह--फर यान के और<br />

ेम के और मो के और िनवाण के सारे ार जीवन से खुलते ह।<br />

जीवन अवसर है, महत अवसर है! चाहो बना लो, चाहे तो िमटा दो। चाहे गा लो गीत चाहे<br />

तोड़ दो बांसुर। जीवन महान अवसर है।<br />

तो पहली तो बात, जीवन ह अपने-आप म अपूव है। फर मनुय जीवन तो और भी अपूव<br />

है। यक वृ यप जीवत ह, पर बड़े संकण अथ म। और पी भी जीवत ह, थोड़ा<br />

वृ से यादा; लेकन फर भी बड़ सीमा है। पशु भी जीवत ह, पय से शायद थोड़े<br />

यादा; लेकन फर भी बड़ सीमा है। मनुय इस पृवी पर सबसे यादा संभावनाओं को<br />

लेकर पैदा होता है। मनुय इस जगत से सबसे बड़े फू ल के बीज लेकर पैदा होता है।<br />

इसिलए मनुय जीवन क महमा गाई है।<br />

चौराहा है मनुय का जीवन। वहां से राते चुने जा सकते ह। वहां से नक का राता भी चुना<br />

जा सकता है और वग का भी। और राते पास पास ह।<br />

एक झेन फकर के पास पागल का साट िमलने गया था। साट, साट क अकड़! झुका<br />

भी तो झुका नहं। औपचारक था झुकना। फकर से कह: िमलने आया हं<br />

ू, िसफ एक ह <br />

पूछना चाहता हं। ू वह मुझे मथे डालता है। बहत ु से पूछा है;<br />

उर संतु करे कोई,<br />

ऐसा िमला नहं। आप क बड़ खबर सुनी है क आपके भीतर का दया जल गया है। आप,<br />

िनत ह आशा लेकर आया हं क मुझे तृ कर दगे।<br />

ू<br />

फकर ने कहा: यथ क बात छोड़ो, को सीधा रखो। दरबार औपचारकता छोड़ो,<br />

सीधी-सीधी बात करो, नगद!<br />

साट थोड़ा चका: ऐसा तो कोई उस से कभी बोला नहं था! थोड़ा अपमािनत भी हआ ु ,<br />

लेकन बात तो सच थी। फकर ठक ह कह रहा था क यथ लंबाई म य जाते हो? कान<br />

को इतना उटा य पकड़ना? बात करो सीधी, या है तुहारा?<br />

साट ने कहा: मेरा यह है क वग या है और नक या है? म बूढ़ा हो रहा हं और<br />

ू<br />

यह मेरे ऊपर छाया रहता है क मृयु के बाद या होगा--वग या नक?<br />

फकर के पास उसके िशय बैठे थे, उस ने कहा: सुनो, इस बु ू क बात सुनो!<br />

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बुू--साट को...और साट से कहा क कभी आईने म अपनी शल देखी? यह शल लेकर<br />

और ऐसे पूछे जाते ह! और तुम अपने को साट समझते हो? तुहार हैिसयत<br />

िभखमंगा होने क भी नहं है!<br />

यह भी कोई उर था! साट तो एकदम आगबबूला हो गया। यान से उसने तलवार िनकाल<br />

ली। नंगी तलवार, एक ण और क फकर क गदन धड़ से अलग हो जाएगी। फकर हंसने<br />

लगा और उसने कहा: यह खुला नक का ार!<br />

एक गहर चोट--एक अतवगत उर: यह खुला नक का ार! समझा साट। तण<br />

तलवार यान म भीतर चली गई। फकर के चरण पर िसर रख दया। उर तो बहत ने<br />

ु<br />

दए थे--शाीय उर--मगर अतवगत उर, ऐसा उर क ाण म चुभ जाए तीर क<br />

तरह, ऐसा प कर दे कोई क कु छ और पूछने को शेष न रह जाए--यह खुला नक का<br />

ार! झुक गया फकर के चरण म। अब इस झुकने म औपचारकता न थी दरबार पन न<br />

था। अब यह झुकना हादक था।<br />

फकर ने कहा: और यह खुला वग का ार! पूछना है कु छ और? और यान रखो, वग<br />

और नक मरने के बाद नहं है; वग और नक जीने के ढंग ह, शैिलयां ह। कोई चाहे यहं<br />

वग म रहे, कोई चाहे यहं नक म रहे। कोई चाहे सुबह वग म रहे, सांझ नक म रहे;<br />

कोई चाहे ण-भर पहले वग और ण भर बाद नक ।<br />

और ऐसा ह तुहार जंदगी म रोज घट रहा है।<br />

मनुय जीवन क महमा है। इस साट म या खूबी थी? बोध! यह बात कसी पशु और<br />

पी को नहं समझाई जा सकती थी। और मनुय को न समझाई जा सके, जानना क वे<br />

के वल नाममा को मनुय ह; हगे पशु-पी हो। यह साट िनत मनुय रहा होगा।<br />

मनुय शद देखते हो! मनन से बना है। जसम मनन क मता है। अंेजी का शद मैन<br />

भी मनन से ह बना है। उद ू का शद आदमी बहत ु साधारण है;<br />

वह अदम से बना है। अदम<br />

का अथ होता है िमठ; िमठ का पुतला। वह आदमी क असिलयत नहं है। आदमी शद<br />

म आदमी क असिलयत नहं है; के वल खोल है। िमठ का पुतला है, यह तो सच है;<br />

लेकन िमट के पुतले के भीतर कौन िछपा है--मृमय म िचमय िछपा है! िमट का दया<br />

है, माना; लेकन जो योित जल रह है वह िमट नहं है। आदमी शद म खोल क चचा<br />

है; मनुय शद म उस खोल के भीतर िछपे हए ु गुदे क चचा है,<br />

आमा क चचा है।<br />

मनुय वह है जो मनन कर सके; जसके सामने वकप खड़े ह तो मनन पूवक चुन सके !<br />

यानपूवक चुन सके । जागकता से एक वकप को चुने। ऐसे जाग-जाग कर जो कदम<br />

रखता है वह मनुय है; शेष सब को तो हम आदमी कहना चाहए, मनुय नहं। आदमी<br />

सभी ह, मनुय बहत कम ह।<br />

ु<br />

मनुय जीवन क महमा है यक मनन क मता है। है मनुय के पास एक--जो<br />

य को ह नहं अय को भी देखने मग समथ है। यह उसक महमा है। पशु भी देखते<br />

ह, मगर य ह देखते ह; अय क उनके पास कोई तीित नहं होती। मनुय के कान<br />

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विन को तो सुनते ह ह, शूय को भी सुन लेते ह। और मनुय के हाथ पािथव को तो<br />

पकड़ ह लेते ह, अपािथव को भी पकड़ लेते ह।<br />

मनुय अपूव है, अतीय है। इसे तुम अपने अहंकार क घोषणा मत बना लेना। यह तुहारे<br />

अहंकार क घोषणा नहं है। सच पूछो तो यह जो म मनुय क परभाषा कर रहा हं<br />

ू, यह<br />

परभाषा तभी तुहारे जीवन का अनुभव बनेगी जब अहंकार छू टेगा। ऐसा मत सोच लेना क<br />

अहा, म मनुय हं<br />

ू, तो मेर बड़ महमा है! यह तुहार महमा नहं कह रहा हं म<br />

ू --यह<br />

मनुयव क महमा कह रहा हं। यह तुहारे<br />

ू<br />

भीतर जो संभावना िछपी है उसक महमा का<br />

गीत गा रहा हं<br />

ू--तुम जो हो सकते हो; जो तुह होना ह चाहए; जो तुमम जरा बोध हो<br />

तो तुम जर हो ह जाओगे; जो अपरहाय है, अगर तुम म जरा सोच हो, जरा समझ हो।<br />

पूछते हो तुम क मानव जीवन क संत ने इतनी महमा य गाई है?<br />

एक तो जीवन महमावान, फर वह भी मानव का जीवन। और संत ह गा सकते ह<br />

महमा, यक उहने ह मनुय को उसक परपूणता म देखा है। वैािनक मनुय को<br />

उसक परपूणता म नहं देखता; उसके िलए देह से यादा नहं है। उसे काई आमा मनुय<br />

म नहं िमलती। मनुय एक बहत ु जटल यं है,<br />

बस इतना; इससे यादा नहं। यक<br />

चीर फाड़ करके वैािनक देखता है, कहं आमा पकड़ म आती नहं। और जो पकड़ म न<br />

आए, वान उसे इनकार कर देता है। इसिलए वान मनुय क बहत महमा नहं गा<br />

ु<br />

सकता। अगर वान का भाव बढ़ता चला गया तो मनुय क महमा कम होती चली<br />

जाएगी--कम होती गई।<br />

ाचीन समय म जानने वाले कहते थे: मनुय देवताओं से जरा नीचे है। और वैािनक से<br />

पूछो तो वह कहता है: मनुय बंदर से जरा ऊपर। बहत ु फक हो गया--देवताओं<br />

से जरा<br />

नीचे, और बंदर से जरा ऊपर! यह भी शायद वैािनक बना बंदर से पूछे कह रहा है; नहं<br />

तो बंदर कहगे क मनुय और हम से जरा ऊपर! कहां हम वृ पर और कहां तुम जमीन<br />

पर! हमसे भी नीचे।--<br />

यह तो डावन का मनुय है, जो कह रहा है क मनुय बंदर से वकिसत हआ है। बंदर<br />

ु<br />

कु छ और कहते ह। वे मानते ह: मनुय बंदर का पतन है। है भी पतन। जरा कसी बंदर से<br />

टकर लेकर देखो, तो पता चल जाएगा। न उतनी श है, न उस तरह क छलांग भर<br />

सकते हो, न एक वृ से दसरे ू वृ पर कू द सकते हो,<br />

न वृ पर रह सकते हो। या पा<br />

िलया है? बंदर से बहत कमजोर हो गए हो। बंदर<br />

ु से पूछा जाए तो वे कु छ और कहगे। वे<br />

हंसगे, खलखलाएंगे।<br />

मने एक कहानी सुनी है। एक टोपय को बेचने वाला सौदागर लौट रहा था मेले से टोपयां<br />

बेचकर। चुनाव करब आते थे और गांधी टोपयां खूब बक रह थीं। सौदागर खूब कमाई कर<br />

रहा था। दनभर गांधी टोपयां बक थीं। थका था,राह म एक वृ के नीचे बरगद के एक<br />

वृ के नीचे थोड़ देर वाम को का। थकान ऐसी थी, ठंड हवा, वृ क छाया, झपक<br />

लग गई। जब आंख खुली तो जस पटार म टोपयां कु छ और बच गई थीं, वह खुली पड़<br />

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थी, टोपयां सब नदारद थीं। घबड़ाया, चार तरफ देखा। ऊपर देखा तो वृ पर बंदर बैठे<br />

ह। हगे कोई सौ-पचास बंदर। सब गांधीवाद टोपयां लगाए ह! वे ले गए पटारे से िनकाल<br />

कर टोपयां। बड़े जच रहे ह। बलकु ल भारतीय संसद के सदय मालूम होते ह। घबड़ाया<br />

सौदागर क अब इनसे टोपयां कै से वापस लेनी, तब उसे याद आई कभी सुनी बात क<br />

बंदर नकलची होते ह। तो उसके अपने िसर पर एक ह टोपी बची थी, वह उसने िनकाल<br />

कर फ क द। उसका फ कना टोपी का, क सारे बंदर ने टोपयां िनकाल कर फ क दं।<br />

टोपयां बटोर कर बड़ा सन सौदागर घर लौटा आया। अपने बेटे से कहा क देख, याद<br />

रखना, कभी ऐसी हालत आ जाए तो अपनी टोपी िनकाल कर फ क देना।<br />

फर ऐसी हालत आई। समय बीता। सौदागर बहत ु बूढ़ा हो गया,<br />

फर बेटा उसक जगह<br />

गांधी टोपी बेचने लगा। लौटता था एक दन। वह वृ, थका मांदा, वाम को लेटा,<br />

झपक खा गया। और वह हआ ु जो होना था। आंख खुली,<br />

टोकर खाली पड़ थी। याद<br />

आया, ऊपर देखा। बंदर बड़े मती से टोपी लगाए बैठे थे। याद आयी बाप क सलाह,<br />

अपनी टोपी िनकाल कर फ क द। लेकन जो हआ वह नहं सोचा था। एक बंदर को टोपी<br />

ु<br />

नहं िमली थी, वह नीचे उतरा और वह टोपी भी ले गया।<br />

आखर बंदर भी अपने बेट को समझा गए हगे क दबारा धोखा<br />

ु न खाना। एक दफा हम खा<br />

गए, अब तुम जरा सावधान रहना। यह सौदागर का बेटा कभी न कभी इस झाड़ के नीचे<br />

वाम करेगा और टोपी फ के गा, तब तुम जद से उस टोपी को भी उठा लेना। जो गलती<br />

हमने क है वह मत करना।<br />

वैािनक से पूछो तो यादा से यादा कहेगा क बंदर से थोड़ा सा वकिसत। जो देवताओं से<br />

थोड़ा नीचे हआ करता था वह बंदर से थोड़ा ऊपर होकर रह गया है।<br />

ु<br />

मनुय क गरमा, महमा बुर तरह खंडत हई ु है। वैािनक करे भी तो या करे?<br />

उसक<br />

जो विध है, उस विध के कारण ह आमा से उसका कोई संपश नहं हो सकता; मनुय<br />

के भीतर िछपे हए ु जीवन से उसका कोई नाता नहं बन सकता। तो जीवन के बना,<br />

आमा<br />

के बना, आदमी िसफ एक मशीन रह जाता है। कु शल मशीन--पर मशीन! और इसीिलए<br />

फर आदिमय को काटना हो तो कोई अड़चन नहं होती।<br />

जोसेफ टेिलन ने स म लाख लोग काट डाले, जरा भी अड़चन नहं हई। ु अड़चन का कोई<br />

कारण न रहा। यक कयूिनम मानता है क आदमी म कोई आमा है ह नहं। अगर<br />

आमा नहं है तो मारने म हज या है? कोई अपनी कु स तोड़ डाले तो इस म कोई पाप<br />

थोड़े ह हो जाएगा। कोई अपना बजली का पंखा तोड़ दे, इस म कोई पाप थोड़े ह हो<br />

जाएगा। कोई कतनी ह बहमूय ु मशीन को न-<br />

कर दे, कतनी ह बारक और नाजुक<br />

घड़ हो कोई पथर पर पटक दे, तो भी तम यह नहं कह सकते क तुमने पाप कया।<br />

जोसेफ टेिलन बड़ सरलता से लाख लोग को मार सका, काट सका। कारण? कारण था<br />

कयुिनम का िसांत, क आदमी म कोई आमा नहं है। जब आमा नहं तो बात खम<br />

हो गई। िमट के पुतल को िगराने म या अड़चन है? काटो! जो हमारे साथ राजी न हो<br />

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उसे िमटाओ। और अगर मनुय म आमा नहं है तो वतंता क य आवयकता है?<br />

वतंता कसक? व ह नहं है तो वतंता कसक?<br />

अगर आदमी मशीन ह तो उनको भोजन दो, कपड़े दो, छपर दो और काम लो। इससे<br />

यादा क न उह जरत है, न इससे यादा क िचंता करने का कोई कारण है।<br />

जीसस ने कहा है: मनुय के वल रोट के सहारे नहं जी सकता। लेकन कयूिनम यह<br />

कहता है क रोट के अितर आदमी को और चाहए भी या? और बाक सब बकवास है।<br />

रोट िमले, छपर िमले, कपड़ा िमले--बात खम हो गई। लोकतं...यह सब बातचीत है,<br />

यथ को बातचीत है।<br />

नहं; संत ह मनुय क महमा का गीत गा सकते ह, वैािनक नहं गा सकता। यक<br />

संत को ह अनुभव होता है अपने भीतर िछपे हए ु परमामा का,<br />

अपने भीतर िछपे हए ु<br />

खजान का--भु के राय का! और जसने अपने भीतर उस परम योित को जगमगाते देखा<br />

है, वह कसे न गीत गाए मनुय क महमा के, यक वह जानता है तुहारे भीतर भी<br />

वैसी ह योित जगमग रह है। चाहे तुम पीठ कए खड़े हो, नहं देखते, कोई हजा नहं;<br />

मगर योित तो जगमगा रह है।<br />

जसने अपने भीतर का संगीत सुना है, अनाहत नाद सुना है, ओंकार सुना है--वह कै से<br />

मनुय क महमा के गीत न गाए? जसने अपने भीतर िमट ह नहं कमल पाया है,<br />

अपूव सुगंध उड़ती पाई है--वह कै से मनुय क महमा के गीत न गाए? जसने अपने भीतर<br />

मृयु पाई ह नहं, अमृत पाया है--वह कै से मनुय क महमा के गीत न गाए?<br />

तुम पूछते हो चैतय ेम, मानव जीवन क संत ने इतनी महमा य गाई है? तुहारे<br />

अहंकार को सजा ने के िलए नहं। तुहारे अहंकार को और बिल, और पु करने के िलए<br />

नहं। सय है यह क मनुय के भीतर एक वराट आकाश िछपा है। जो अपने भीतर उतर<br />

जाए वह जगत के रहय के रहय के ार पर खड़ा हो जाता है। उसके िलए मंदर के ार<br />

खुल जाते ह। जो अपने भीतर क सीढ़यां उतरने लगता है, वह जीवन के मंदर क सीढ़यां<br />

उतरने लगता है। जो अपने भीतर जतना गहरा जाता है, उतना ह परमामा का अपूव<br />

अतीय प, सदय, सुगंध, संगीत सब बरस उठता है।<br />

कतना है जीवन अनमोल!<br />

रजत रमय सी मुकान<br />

सौरभमय किलय सा गान,<br />

मधु मृितय क दप-िशखा सा<br />

घटता-बढ़ता ितदन डोल!<br />

अकिथत आह का वास<br />

अनुरंजत भाव का ास,<br />

तुहन-बंद सा िनिनमेष इस<br />

ु<br />

ढलता दखु -दख ु ग म खोल!<br />

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िशिथल पवन का ममर गीत<br />

मर-कु सुम का मधुमय ीत<br />

मृदमत बन बहलाती है<br />

ु<br />

सुरिभ मलय म ितदन घोल!<br />

मृद आकांाओं का यापार<br />

ु<br />

इछाओं का पल-पल भार<br />

रोम-रोम कं पत कर जाता<br />

वर संगम को म वश तोल!<br />

कतना है जीवन अनमोल!<br />

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थोड़ा देखो अपने जीवन को। यह मुत िमला है, इसिलए ऐसा मत समझ लेना क मुत<br />

है। इसक कमत तो कोई भी नहं, इसिलए यह मत समझ लेना क इसका मूय कु छ नहं<br />

है। कमत और मूय बड़े अलग-अलग शद ह। भाषाकोश म तो उनका एक ह अथ होता है<br />

कमत और मूय; लेकन जीवन के कोश म एक ह अथ नहं होता। कमत होती है चीज<br />

क जो बाजार म बकती ह, बक सकती ह खरद जा सकती ह। लेकन कु छ ऐसी चीज<br />

ह, जो बाजार म न बकती ह न बेची जा सकती ह; उनको मूयवान कहते ह। मूयवान वे<br />

चीज ह जो कमत से नहं िमलतीं। तुम लाख कमत चुकाओ तो भी नहं िमलतीं।<br />

एक साट ने महावीर को जाकर कहा क मने सब जीत िलया, बड़े से बड़े हरे जवाहरात<br />

मेरे खजाने म ह। ऐसा कु छ इस संसार म नहं है जो मने न पा िलया हो। इधर कु छ दन से<br />

लोग आ आकर खबर देते ह क असली मूय क चीज तो यान है।<br />

जैन का शद है सामाियक--यान के िलए। ठक शद है, यारा शद है। उसके अपने<br />

मूय ह। सम हो जाना, समता को उपलध हो जाना, सम-भाव को उपलध हो जाना,<br />

सयकव को उपलध हो जाना।<br />

तो उस साट ने कहा: यह सामाियक या बला है? अनेक लोग मुझसे आकर कहते ह, म<br />

कु छ जवाब नहं दे पाता। यह कस हरे का नाम है? यह कहां खरदंू, कहां िमलेगा?<br />

महावीर हंसे हगे--सामाियक कहं खरद जा सकती है, यान कहं खरदा जा सकता है,<br />

क यान कहं बाजार म बक सकता है! महावीर को हंसते देखकर उसने कहा: आप हंस<br />

मत, म कोई भी कमत चुकाने को राजी हं। म ज आदमी हं। म पूरा राय भी देने को<br />

ू ू<br />

राजी हं। ू मगर यह मामला या है?<br />

यह है या चीज? इसे म खरद कर रहंगा। ू यह मुझे<br />

बड़ा क दे रह है बात क मेरे पास एक चीज नहं है--यह सामाियक।<br />

महावीर ने कहा: ऐसा कर, म तो सब छोड़ चुका हं<br />

ू, इसिलए तेरे राय म मेर कोई<br />

उसुकता नहं है। मेरा राय था वह भी छोड़ चुका हं<br />

ू; तेरे हरे जवाहरात भी मेरे िलए<br />

कं कड़-पथर ह। मेरे अपने ह बहत ु बोझल हो गए थे,<br />

बांट आया हं। ू तेरे गांव म एक गरब<br />

आदमी रहता है, तेर राजधानी म, म उसका नाम तुझे दे देता हं<br />

ू, पता तुझे दे देता हं<br />

ू,<br />

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बहत गरब है। एक जून रोट भी जुड़ नहं पाती। उसको सामाियक उपलध हो गई है। वह<br />

ु<br />

अगर बेचे तो शायद बेच दे।<br />

यह मजाक ह थी। और जब महावीर जैसा य मजाक करता है तो उसके बड़े मूय होते<br />

ह। साट तण रथ मुंड़वा<br />

िलया। उस गरब आदमी के घर के झोपड़े के सामने जाकर रथ<br />

का। आंख पर भरोसा नहं आया उस मोहले के लोगो को। गरब का मोहला। झोपड़े थे<br />

टटे ू -फू टे। वह गरब आदमी तो एकदम आकर साट के चरण म िसर झुकाया और उसने<br />

कहा क आा हो महाराज, आपको यहां तक आने क या जरत थी? खबर भेज द<br />

होती, म महल हाजर हो जाता।<br />

साट ने कहा क म आया हं सामाियक खरदने। महावीर ने कहा है क तुझे सामाियक<br />

ू<br />

उपलध हो गई है। बेच दे और जो भी तू मूय मांगे, मुंह--मांगा<br />

मूय देने को राजी हं। ू<br />

जैसे महावीर हंसे थे, वैसे ह वह गरब आदमी भी हंसा। उसने कहा: महावीर ने आपसे खूब<br />

मजाक कया। कु छ चीज ह जो कमत से िमलती ह; कु छ चीज ह जनका कमत से कोई<br />

संबंध नहं। सामाियक कु छ वतु थोड़े ह है क म तुह दे दंू? अनुभव है। जैसे ेम अनुभव<br />

है, कै से दे सकते हो? यह तो आंतरकतम अनुभव है; इसे बाहर लाया ह नहं जा सकता।<br />

मेर गदन चाहए तो ले ल। मुझे खरदना हो तो खरद ल। म चल पड़ता हं<br />

ू, आपका<br />

सेवक, पैर दबाता रहंगा। लेकन यान नहं बेचा जा सकता। नहं क म बेचना नहं चाहता<br />

ू<br />

हं<br />

ू, बक वभावतः यान हतांतरत नहं हो सकता है।<br />

मूयवान वे चीज ह जो बेची नहं जा सकतीं। ेम, यान, ाथना, भ, ा--ये बेचने<br />

वाली, बकने वाली चीज नहं ह। ये चीज ह नहं ह। ये अनुभूितयां ह। और के वल मनुय<br />

ह इन अमोलक अनुभूितय को पाने म समथ है। संत ने मनुय क महमा गाई है ताक<br />

तुह याद दलाया जा सके क तुम कतनी बड़ संपदा के मािलक हो सकते हो और हए नहं<br />

ु<br />

अब तक। अब और कतनी देर करनी है?<br />

है कसका यह मौन िनमंण?<br />

दघ ास क पीड़ाओं का<br />

है सााय िछपा अंतर म,<br />

मूक िमलन क मूक पपासा<br />

का खग िनत उड़ता अंबर म,<br />

भरो यथा म आज लोभन,<br />

है कसका यह मौन िनमंण?<br />

उस अतीत क कथा कहानी<br />

ह सुिधय का नीड़ बन गई,<br />

अथहन शैशव क बात<br />

मेरे उर क पीर बन गई,<br />

सुिध-सपन पर करो िनयंण,<br />

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है कसका यह मौन िनमंण?<br />

टट ू नयन का िनमम दपण<br />

िचर बछोह क आघात से,<br />

पूछ रहा पथ ेम गांव का<br />

तारक दल क हर पांत से,<br />

नध-ाण भी कर दो अपण,<br />

है कसका यह मौन िनमंण?<br />

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तुह िनमंण दया है संत ने मनुय क महमा गाकर!<br />

टट ू नयन का िनमम दपण<br />

िचर बछोह क आघात से,<br />

पूछ रहा पथ ेम गांव का<br />

तारक दल क हर पांत से,<br />

नध ाण भी कर दो अपण,<br />

है कसका यह मौन िनमंण?<br />

सदय-सदय म संत ने मनुय के गौरव और गरमा के गीत गाए ह--इसिलए क तुह<br />

चेताया जा सकते क तुम या हो सकते हो; तुहारे भीतर िछपी पड़ संभावनाओं को पुकारा<br />

जा सके; तुह झकझोर कर जगाया जा सके । जैसे बीज भूल गया हो क उसे फू ल होना है,<br />

ऐसी तुहार दशा है; क नद भूल गई हो क उसे सागर तक पहंचना ु है,<br />

ऐसी तुहार<br />

दशा है; क नद कसी घाट पर ह अटक गई हो और सागर तक जाने का मरण न रहा<br />

हो, ऐसी तुहार दशा है। सागर होना है तुह।<br />

सागर होना तुहारा वपिस अिधकार है। परमामा होना है तुह। परमामा से कम हए<br />

ु<br />

बना राजी मत होना। इसिलए तुहार महमा के गीत संत ने गाए ह--तुहारे अहंकार का<br />

शृ ंगार करने के िलए नहं।<br />

तीसरा : जीवन सय है या असय?<br />

कृ णतीथ! जीवन अपने म न तो सय है और न असय। जीवन अपने म तो िसफ एक<br />

अवसर है, कोरा अवसर; सय भी बन सकता है, असय भी बन सकता है।<br />

जीवन तो एक कोरा कै नवास है; उस पर तुम कै से रंग डालोगे, उस पर तुम अपनी तूिलका<br />

लेकर या उभारोगे, तुम पर िनभर है। तुम मािलक हो। जीवन अपने आप म बनी बनाई<br />

कोई चीज नहं है, कोई रेडमेड जम के साथ तुहारे साथ म जीवन नहं दे दया गया है।<br />

जम जीवन नहं है, जम तो के वल िसफ तुह एक अवसर है। अब तुम जीवन को<br />

बनाओ।<br />

जीवन एक सृजन है: जीवन न तो सय है और न असय।<br />

बु ने भी एक जीवन बनाया--कबीर ने, नानक ने, मुहमद ने, दरया न। एक जीवन<br />

तैमूरलंग ने भी बनाया--नादराशाह ने, हटलर ने। एक जीवन है जस म िसफ धूल ह धूल<br />

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और एक जीवन है जहां फू ल ह फू ल। एक जीवन है जहां गािलयां ह गािलयां और एक<br />

जीवन जहां गीत ह गीत। और यह एक ह जीवन है। यह सब तुम पर िनभर है। उसी<br />

वणमाला से गािलयां ह, उसी वणमाला सके भगवदगीता का जम हो जाता है; जरा शद<br />

को जमाने क बात है। वे ह शद गंदे हो जाते ह, वे ह शद पुय क गंध ले आते ह।<br />

तुम पर िनभर है।<br />

असर लोग ऐसे पूछते ह जैसे क जीवन अपने आप म कोई सुिनत चीज है! पूछते<br />

तुम: जीवन सय है या असय?<br />

अगर धन के पीछे ह दौड़ते रहे और पद के पीछे ह दौड़ते रहे तो जीवन असय है, यह<br />

िस हो जाएगा। मौत जब आएगी तब िस हो जाएगा क जीवन असय था, यक मौत<br />

सब छन लेगी जो तुमने कमाया। और अगर जरा यान म जगे, जरा भ को उकसाया,<br />

तो मौत आएगी और आरती उतारेगी तुहार, यक जीवन को तुमने सय कर िलया।<br />

तो म सीधा वय नहं दे सकता क जीवन या है। इतना ह कह सकता हं<br />

ू: जीवन वह<br />

हो जाएगा जैसा तुम करना चाहते हो। तुम ा हो। यह महमा है तुहार। इतनी महमा<br />

कसी पशु क नहं है। एक कु ा कु े क तरह पैदा होगा, कु े क तरह मरेगा। लेकन बहत<br />

ु<br />

से मनुय को भी हम कहते ह कु े क तरह मरते ह। पैदा हए ु थे मनुय क तरह,<br />

मरते<br />

कु े क तरह ह। यह तो बड़ अजीब बात हो गई। कु ा तो य है; कु े क तरह पैदा<br />

हआ था कु<br />

ु<br />

े क तरह मरा। भाषा म कहावत है न--कु े क मौत! वह कु े के संबंध म नहं<br />

है, यक कु े का या कसूर; कु ा था और कु े क तरह मरा! वह आदमी के संबंध म है<br />

कहावत--कु े क मौत! कु ा पूरा का पूरा पैदा होता है। अवसर नहं है कु े के जीवन म--न<br />

तो बु हो सकता है न चंगेजखान हो सकता है। न वग न नक । कु ा परा का पूरा पैदा<br />

होता है। इसिलए तुम कसी कु े से यह नहं कह सकते क तुम थोड़े कम कु े हो, या कह<br />

सकते हो? हां, आदमी से कह सकते हो क तुम जरा थोड़े कम आदमी मालूम होते हो।<br />

कसी से कह सकते हो क तुम आदमी कब होओगे, क तुह आदमी होना है या नहं होना<br />

है?<br />

आदमी के संबंध मग यह साथक वचन है क तुम जरा कम आदमी हो, अपूण आदमी हो,<br />

आदमी हो जाओ। मगर जानवर के संबंध म ये शद सय नहं हो सकते। िसंह िसंह है,<br />

कु ा कु ा है। पीपल पीपल है, बरगद बरगद है। जो जो है वैसा है। पांतरण का कोई उपाय<br />

नहं है, ांित क कोई संभावना नहं है।<br />

मनुय ांित क संभावना है। मनुय मनुय क तरह पैदा नहं होता--िसफ एक कोरे कागज<br />

क भांित पैदा होता है; फर तुम जो उस पर खलोगे वह तुहार दातान हो जाएगी। एक-<br />

एक कदम होश से चलो तो जीवन सय हो जाएगा। और ऐसे ह धके खाते रहे बेहोशी के,<br />

ऐसे ह चलते रहे जैसे कोई शराबी राते पर चलता रहता है, तो जीवन असय हो जाएगा।<br />

एक शराबी राते पर चल रहा है। एक पैर तो उस ने सड़क पर रखा हआ है और एक सड़क<br />

ु<br />

के कनारे क पटर पर। अब बड़ मुकल म ह, चलना बड़ा मुकल है। एक तो शराब पीए<br />

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है; एक पैर ऊपर एक पैर नीचे है बड़ अड़चन हो रह है, बड़ा क पा रहा है। एक आदमी<br />

ने पूछा क भाई, तुम बड़े क म मालूम पड़ते हो। उस ने कहा: क म मालूम न पडूं तो<br />

या पडूं? कोई भूकं प हो गया है या या हआ<br />

ु ? यक यह राता आधा ऊं चा और आधा<br />

नीचा कै से हो गया है?<br />

राता वह है, लेकन अभी होश नहं है।<br />

एक और शराबी है; वह बाएं तरफ से दाएं तरफ जाता है, दाएं तरफ से बाएं तरफ आता<br />

है। घर पहंचने ु का तो सवाल ह नहं रहा अब। राते के एक कनारे से दसरे ू कनारे,<br />

इस<br />

कनार से उस कनारे। फर कसी ने पूछा क तुम कर या रहे हो? तो उसने कहा क मुझे<br />

उस तरफ जाना है। उस तरफ जाता हं और लोग से पूछता हं क मुझे उस तरफ जाना है<br />

ू ू<br />

तो वे इस तरफ भेज देते ह। इस तरफ आता हं ू लोग से पूछता हं ू मुझे उस तरफ जाना है,<br />

वे दसर तरफ<br />

ू भेद देते ह। मगर म उस तरफ पहंच ह नहं पाता। जहां पहंचता हं वह हमेशा<br />

ु ु ू<br />

इस तरफ है। और मुझे जाना है उस तरफ।<br />

एक और शराबी है, सांझ घर पहंचता ु है। चाबी ताले म डालने क कोिशश करता है,<br />

मगर<br />

हाथ कं प रहे ह। चाबी है क ताले म नहं जाती। एक पुिलसवाला राते पर खड़ा देख रहा<br />

है, दया खा गया। दया--और पुिलस वाले म! असर होती नहं। कु छ अपवाद रहा होगा।<br />

पास आया और कहा क भाई, लाओ म तुहारा ताला खोल दंू, तुमसे न खुलेगा। उस ने<br />

कहा क नहं, ताला तो म खोल लूंगा<br />

तुम जरा मेरे मकान को पकड़ लो क हले न।<br />

धन क और पद क दौड़ म अगर तुम मूछत रहे, अगर यथ को संगृहत करने म ह<br />

सारा जीवन गंवाया, अगर अंधे क भांित जए और अंधे क भांित मरे और यान नहं है<br />

तो समझना क अंधे हो, आंख रहते अंधे हो। अगर कू ड़ा-करकट को ह बीनते रहे, बीनते<br />

रहे, मौत आएगी और तुम पाओगे जीवन असय था। लेकन यह अपरहाय नहं था। यह<br />

तुमने चुना। इसक जमेवार तुहार है।<br />

थोड़ा अंतमुखी होओ। घड़ दो घड़ अपने िलए िनकाल लो। घड़ दो घड़ भूल जाओ संसार<br />

को। घड़ दो घड़ आंख बंद कर लो, अपने म डूब जाओ। तो यह घड़ दो घड़ म जो तुह<br />

रस िमलेगा, जो वाद अनुभव होगा, वह तुहारे जीवन को सय कर जाएगा<br />

यान है तो जीवन सय है। यान नहं है तो जीवन असय है।<br />

यद सय नहं जीवन म कु छ,<br />

तो सपना भी कै से कह दंू<br />

पल म होती है जीत यहां,<br />

पल म होती है हार यहां!<br />

असफलता और सफलता का<br />

िमलता रहता उपहार यहां!<br />

जीवन क मनुहार को अब,<br />

विध क छलना कै से कह दंू!<br />

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यद सय नहं जीवन म कु छ,<br />

तो सपना भी कै से कह दंू!<br />

बंधन जीवन का भार कभी,<br />

बंधन से होता यार कभी!<br />

बनता भी और बगड़ता भी<br />

आशा का लघु संसार कभी!<br />

अपनापन आज न अपना है,<br />

कस को कै से अपना कह दंू!<br />

यद सय नहं जीवन म कु छ,<br />

तो सपना भी कै से कद दंू!<br />

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न तो जीवन को सय कहा जा सकता है और न सपना कहा जा सकता है। सब तुम पर<br />

िनभर है। ािनय ने कहा है: संसार असय है, जीवन असय है। वह तुहार जगह से<br />

कहा है। तुहार ह भीड़ है, िनयानबे ितशत तो तुम हो। भीड़ तो अंध क है; आंख<br />

वाला कभी कोई एकाध होता है। आंखवाले क बात तो अपवाद है। और अपवाद से के वल<br />

िनयम िस होता है।<br />

बु ने अगर कहा है क जीवन असय है तो तुह देखकर कहा है, खयाल रखना। यह<br />

तुहारे जीवन के संबंध म कहा है। बु का जीवन तो असय नहं है। अगर बु का जीवन<br />

असय है तो फर सय होगा ह या? बु का जीवन तो परम सय है। लेकन बु ने जब<br />

कहा है तो खयाल रखना, तुहारे जीवन के संबंध म यह वय है। तुहारा जीवन असय<br />

है यक तुहारा जीवन यथ क तलाश म लगा है। तुम मृग-मरिचकाओं के पीछे भाग रहे<br />

हो। तुम इंधनुष को पकड़ने क कोिशश म लगे हो। दर ू से बड़े सुंदर...दर<br />

ू के ढोल सुहावने।<br />

जब इंधनुष पर हाथ बांध लोगे मुठ, तो कु छ भी न िमलेगा, भाप भी न िमलेगी;<br />

शायद पानी क कु छ दो-चार बूंद<br />

हाथ म छू ट जाएं छू ट जाएं। न कोई रंग होगा न कोई<br />

सदय होगा।<br />

इंधनुष के पीछे दौड़ोगे तो एक दन बुर तरह िगरोगे। उस िगरते ण म तुम पाओगे क<br />

ठक ह कहते थे बुपुष क जीवन असय है। मगर म तुह याद दला दंू: यह तुहारे<br />

कारण ह जीवन असय हआ है। बु का जीवन असय नहं है। मगर बु अपने जीवन के<br />

ु<br />

संबंध म या कह? कह तो कौन समझेगा? कह तो शायद कहं भूल न हो जाए; कहं दसरे<br />

ू<br />

लोग गलत न समझ ल!<br />

बु को सबसे बड़ िचंता एक होती है क वे जो भी कहते ह वह गलत समझा जा सकता है<br />

यक समझने वाला कहं और है। बु जीते ह िशखर पर, गौरशंकर पर--हमाछादत,<br />

जहां सूय का सोना बरसता है, वहां! और तुम रहते हो अंधेर घाटयां म, तलघर म। वे<br />

अपने वण-िशखर से जो बोलते ह, तुहार अंधेर गिलय तक आते-आते उस के अथ<br />

बदल जाते ह। वे कु छ कहते ह, तुम कु छ और सुनते हो। इसिलए बु को बहत सावधानी<br />

ु<br />

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से बोलना पड़ता है। एक-एक शद तौलना पड़ता है। वे जानते ह भलीभांित क जीवन सय<br />

है! लेकन उनका जीवन सय है। उन जैसे लोग कतने ह? और उन जैसे जो लोग ह,<br />

उनसे कहने क कोई जरत नहं है; उह तो पता ह है।<br />

बु महावीर से कह क जीवन सय है तो महावीर समझगे। लेकन महावीर को तो खुद ह<br />

पता है, कहना या है? तुह मालूम है, दोन एक ह साथ एक ह समय म हए। एक ह<br />

ु<br />

देश म--बहार म--दोन परमण करते रहे। दोन के परमण के कारण ह तो उस देश<br />

का नाम बहार पड़ा। बहार का अथ है परमण, वचरण। चूंक<br />

दो बु पुष--महावीर और<br />

गौतम बु--सतत वचरण करते रहे; वह देश ह उनके वहार के कारण बहार कहलाने<br />

लगा। कभी-कभी एक ह गांव म ठहरे, मगर िमलना नहं हआ। और एक बार तो ऐसा भी<br />

ु<br />

हआ क एक ह धमशाला म ठहरे<br />

ु<br />

जाता रहा है--य?<br />

, फर भी वाता न हई। ु य?<br />

सदय से यह पूछा<br />

जैन से पूछोगे तो वे कह: अगर बु को िमलना था तो आना था महावीर के पास, यक<br />

महावीर तो भगवान ह; बु के वल महामा, अभी पूरे-पूरे िस नहं ह। और अगर बौ से<br />

पूछो तो वे कहगे: आना था महावीर को। बु तो भगवान है। महावीर संत पुष। अभी पूरे-<br />

पूरे नहं; अभी बहत कु छ अधूरा है।<br />

ु<br />

म न तो बौ हं ू न जैन,<br />

न हंद ू न मुसलमान न ईसाई। इसिलए म थोड़े िनप नजर से<br />

देख सकता हं। दोन परपूण िसपुष ह और न िमलने का कारण कोई अहंकार नहं है।<br />

ू<br />

अहंकार वहां कहां? न िमलने का कारण सीधा-साफ है, मगर अंध को नहं दखाई पड़ता,<br />

वे अंधे जैन ह क बौ...। कारण सीधा-साफ है िमलकर करगे या? कहगे या? दोन क<br />

एक ह िचदशा है और दोन का एक ह चैतय आकाश है। दोन एक ह िशखर पर<br />

वराजमान ह। हम दो दखाई पड़ते ह, यक दो देह म ह। मगर उन दोन क अनुभूित<br />

ऐसी है क अब वे एक ह अवथा म ह। देह हगी दो, लेकन अब आमा दो नहं ह।<br />

िमलना, कससे, िमलना य?<br />

दिनया ु म तीन तरह क संभावनाएं ह। दो अािनय के बीच चचा खूब होती है,<br />

डट कर<br />

होती है, चौबीस घंटे होती है। दो ािनय के बीच चचा कभी नहं होती, कभी नहं हई<br />

ु ,<br />

कभी नहं होगी। कु छ कहने को ह नहं बचता। यह बड़े मजे क बात है। ािनय के पास<br />

कु छ कहने को नहं है। दो ानी िमल तो चुप रह जाएंगे। एक तो िमलगे नहं और कभी<br />

िमल भी गए--जैसे कबीर और फरद िमले तो दोन चुप बैठे रहे। दो दन साथ रहे और चुप<br />

बैठे रहे। सनाटा छाया रहा। कहना या, बोलना या! कससे बोलना! दो ािनय के बीच<br />

चचा हो नहं सकती। दो शूय कै से संवाद कर? और दो अािनय के बीच खूब चचा होती है<br />

यक दो व, कोई कसी क सुनता नहं। मगर चचा खूब होती है। अपनी-अपनी कहते<br />

ह। और तीसर संभावना है एक ानी और अानी के बीच चचा। वह ससंग है--जहां कोई<br />

जाननेवाला, जागा हआ ु , सोए हए ु को,<br />

न जानने वाले को जगाता है।<br />

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दो ािनय म चचा हो ह नहं सकती। दो अािनय म खूब होती है, मगर कसी मतलब<br />

क नहं। ानी और अानी के बीच जो चचा होती है, कठन तो बहत है<br />

ु<br />

मगर उसम ह से कु छ वकास, उसम ह से कु छ जम होता है।<br />

, बहत ु कठन है;<br />

जीवन तो सपना है न सय। सपना रह जाएगा अगर सपन के पीछे दौड़ते रहे; सय हो<br />

जाएगा अगर सय को खोजो। और सय तुहारे भीतर है, सपने तुहारे बाहर ह।<br />

तुम उखड़ती सांस क अनुगूंज<br />

सांस क अनुगूंज,<br />

जीवन का अडंग वास वाला<br />

गीत म हं<br />

ू,<br />

यह नहं, संघष म<br />

झेली यथा तुमने,<br />

रहा म झुलता<br />

रंगीन झूलो म!<br />

यथा का भाग<br />

पाया हम सभी ने!<br />

कं तु वष बन<br />

छा गया है<br />

वह तुहार चेतना पर,<br />

जब क मने झेल उसको<br />

ाण म पाया नया उमेष<br />

जीवन क भा का!<br />

इसिलए ह<br />

तुम उखड़ती<br />

सांस क अनुगूंज<br />

जीवन का अडंग वास वाला<br />

गीत हं ू म !<br />

जीवन म ोध है, घृणा है, वैमनय है,र ईया है<br />

् ; ये जहर ह। अगर इहं जहर को पीते<br />

रहे तो तुहारा जीवन जहरला हो जाएगा, वषा हो जाएगा। लेकन ये जहर पांतरत भी<br />

हो सकते ह। ये जहर अमृत भी बन सकते ह। उसी कला का नाम धम है जो तुहारे भीतर<br />

के जहर को अमृत बना दे। िमट को छू दे और सोना हो जाए--उसी कला का नाम धम है।<br />

ोध को कणा बनाया जा सकता है। काम को राम बनाया जा सकता है। संभोग को समािध<br />

बनाया जा सकता है।<br />

देखते नहं, बाजार से खाद खरद कर लाते हो, दगध ु हो दगध ु फै ल जाती है घर म!<br />

अब<br />

इस खाद को अगर अपने बैठकखाने म ढेर लगा कर रख लो तो एक ह काम रहेगा क कोई<br />

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अितिथ नहं आएगा तुहारे घर, इतना ह फायदा होगा। और पड़ोस म सनाटा हो जाएगा,<br />

धीरे-धीरे पड़ोसी भी छोड़ दगे मुहला, दसरे मुहल म चले जाएंगे। शायद पी भी छोड़कर<br />

ू<br />

अपने मायके क राह ले। और बचे भी कह क नमकार पताजी! अब रहो आप और<br />

आपक खाद! दगध ह दगध फै ल<br />

ु ु जाएगी। लेकन यह खाद कसी कु शल माली के हाथ म<br />

बड़ सुगंध बन जाती है। वह इसे घर म नहं रखता, इसे बगीचे म, जमीन पर िछतरता है।<br />

यह गुलाब बनकर हंसती है, यह चमेली बनकर चमकती है। कतने रंग और कतनी गंध<br />

है! इस दगध से िनकल आती है।<br />

ु<br />

दगध सुगंध हो सकता<br />

ु है। इसी रसायन का नाम धम है। तो म तुमसे कहंगा<br />

ू : तुहारे हाथ म<br />

है सार बात। सपना चाहो तो जीवन सपना है; सय चाहो तो इहं सपन को िनचोड़ा जा<br />

सकता है। और उहं सपन को िनचोड़ कर सय बनाया जा सकता है। लेकन बस दशा का<br />

खयाल रखना। सपने होते ह बहमुखी, सय होता है अंतमुखी। सपने होते ह सदा वहां और<br />

सय होता है सदा यहां। सपने ले जाते ह दरू -दर क याा पर और सय है तुहारे भीतर<br />

ू<br />

मौजूद। बैठो क पा लो। दौड़े क खोया। बैठे क पाया।<br />

मेरे जीवन क बिगया म<br />

पतझड़ यह भेजा है तुमने ह<br />

वागत है!<br />

और या मांगूं<br />

तुमसे!<br />

वृ क डाल से<br />

जीण पीत प जो<br />

झर झर झर झर रहे<br />

गंधहन कांटे ये<br />

उलझे जो लताओं म<br />

अपत ह तुमको ह<br />

इनको वीकार करो<br />

और या मांगूं<br />

तुमसे!<br />

भेजोगे जब वसंत<br />

जीवन क बिगया म<br />

वहन करेगी वायु<br />

मादक नव गंध भार<br />

सुरिभत कोमल पराग<br />

गुन गुन क मृद ु गुंजार<br />

कलरव का मधुर राग<br />

अपत कं गा देव<br />

सब वह भी तुम को ह<br />

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और या मांगूं<br />

तुमसे!<br />

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अपने सारे जहर को भी परमामा के चरण म चढ़ा दो और तुम चकत हो जाओगे क वे<br />

जहर अमृत हो जाते ह। सब चढ़ा दो बेशत, सब समपत कर दो। तुम शूय हो जाओ। सब<br />

समपण करके शूय हो ह जाओगे। उसी शूय म उतरता है परमामा। उसी म बजती है<br />

उसक बनी। उसी म मृदंग पर थाप पड़ती है। तुम पहली दफा अलौकक का अनुभव करते<br />

हो, उस अलौकक का अनुभव सय है। जीवन एक अवसर है; चाहो तो यथ सपने देखते<br />

रहो और चाहो तो सय को जगा लो और सय को जी लो। यथ क सूली पर चाहो तो टंग<br />

जाओ और चाहो तो सय का िसंहासन तुहारा है।<br />

आखर : भगवान!<br />

बिलहार भु आपक<br />

अंतर-यान दलाय।<br />

मंजु! आ जाए अंतर-यान तो सब आ गया, तो सब पा िलया। और लगता है तेर आंख म<br />

देखकर क सुबह यादा दर नहं है<br />

ू , क सुबह करब है, क ाची लाली होने लगी, क<br />

आकाश सूरज के िनकलने क तैयार करने लगा है, क पी अपने घसल म पर फड़फड़ाने<br />

लगे ह, क वृ तीा कर रहे ह, क किलयां खुलने को आतुर ह, क बस सुबह अब<br />

हई ु , अब हई ु !<br />

आ रह है तुझे अंतर यान क मृित, शुभ है, सौभाय है! इस जगत म वे ह धयभागी<br />

ह जह अंतर-यान क याद आने लगे। जह एक बात बार-बार याद आने लगे, दन के<br />

चौबीस घंट म बार-बार याद आने लगे, भीतर जाना है, और जो जब मौका िमल जाए तब<br />

भीतर सरक जाएं।<br />

एक झेन फकर को िनमंत कया था कु छ िम ने भोजन के िलए। सात मंजल मकान।<br />

जापान क कहानी है। अचानक भूकं प आ गया। जापान म भूकं प बहत आते भी ह। भागे<br />

ु<br />

लोग, गृहपित भी भागा। सातवीं मंजल पर कौन के गा, जब भूकं प आया हो। सीढ़य पर<br />

भीड़ हो गई। बहत ु मेहमान इकठे थे,<br />

कोई पचीस मेहमान थे। गृहपित ार पर ह अटका<br />

है। तभी उसे खयाल आया क मुख मेहमान का या हआ ु , उस झेन फकर का या हआ। ु<br />

लौटकर देखा, वह फकर तो अपनी कु स पर पालथी मारकर बैठ गया है। आंख बंद। जैसे<br />

बु क ितभा हो, संगमरमर क ितमा हो--ऐसा शांत, ऐसा िनत! उसका प, उसक<br />

शांित, उसका आनंद--समोहत कर िलया गृहपित को! खंचा चला आया जैसे कोई चुंबक<br />

से<br />

खंचा चला जाता है। बैठे गया फकर के पास।<br />

भूकं प आया और गया। फकर ने आंख खोली। जहां से बात टट ू गई थी भूकं प के कारण,<br />

वह से उसने बात शु कर द। गृहपित ने कहा: मुझे अब कु छ भी याद नहं क हम या<br />

बात कर रहे थे। यह बीच म इतना बड़ा भूकं प हो गया है। सारे नगर म हाहाकार है। इतना<br />

शोरगुल मचा है। इतना बड़ा धका लगा है। मुझे कु छ भी याद नहं--हम कहां, या बात<br />

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कर रहे थे। अब उस बात को आप शु न कर। अब तो मुझे कु छ और पूछना है। मुझे यह<br />

पूछना है क हम सब भागे, आप य नहं भागे?<br />

फकर ने कहा: भागा तो म भी। म भीतर क तरफ भागा, तुम बाहर क तरफ भागे। जहां<br />

जसक मंजल है, जहां जो सोचता है सुरा है, उस तरफ भागा। और म तुमसे कहता हं<br />

ू<br />

तुहारा भागना यथ, यक भूकं प यहां भी है, भूकं प छठवीं मंजल पर भी है, भूकं प<br />

पांचवीं मंजल पर भी है, भूकं प चौथी मंजल पर भी है। भूकं प सब मंजल पर है, भाग<br />

कहां रहे हो? जो पांचवीं मंजल पर ह वे भी भाग रहे ह। जो तीसर मंजल पर ह वे भी<br />

भाग रहे ह। भूकं प सड़क पर भी है। जो सड़क पर ह, वे भी घर क तरफ भाग रहे ह।<br />

हरेक भाग रहा है। लेकन तुम भूकं प से भूकं प म ह भाग रहे हो। म भी भागा; म भीतर<br />

क तरफ भागा। और म एक ऐसी जगह जानता हं ू अपने भीतर--एक<br />

ऐसा थान, जहां कोई<br />

भूकं प कभी नहं पहंच ु सकता!<br />

जहां कोई कं प ह नहं पहंचता ु भूकं प क बात छोड़ दो। जहां<br />

बाहर का कोई भाव कभी नहं पहंचता ु , म उस अछू ते, कुं<br />

वारे लोक क तरफ भागा। म भी<br />

भागा। यह न कहंगा ू क नहं भागा। तुहार समझ म न आया हो,<br />

यक तुम एक ह<br />

तरह के भागने को पहचानते हो। म हाथ-पैर से नहं भागा, मने शरर का उपयोग नहं<br />

कया, यक इसका उपयोग तो बाहर क तरफ भागना हो तब करना होता है। शरर तो<br />

मने िशिथल छोड़ दया, वाम म छोड़ दया--और सरक गया अपने भीतर! वहां बड़ सुरा<br />

है यक वहां अमृत है! वहां कोई मृयु नहं है। िचंता थी मुझे तो िसफ एक क कहं ऐसा<br />

न हो क भीतर पहंचने ु के पहले मर जाऊं ! बस जब भीतर पहंच ु गया,<br />

फर िनंत हो<br />

गया। अब कै सी मौत! अब कसक मौत? बस िचंता थी तो एक क यान म मं । भूकं प<br />

आ गया। मौत तो कभी न कभी आनी ह है, आती ह है। एक ह खयाल था क यान म<br />

मं ।<br />

यान म जयो, यान म मरो।<br />

मंजु! याद आने लगी है; इस याद को गहराओ, खींचो, सहालो।<br />

अनजाने चुपचाप अधखुले वातायन से<br />

आती हई जुहाई सा ह<br />

ु<br />

तेर छव का सुिध समोहन<br />

आज बखर कर िसिमट चला है मेरे मन म।<br />

छलक उठा है उर का सागर<br />

कसी एक अात वार से<br />

कन सपन के मंदर भार से<br />

कन करन के परस यार से<br />

पल भर म य आज अचानक।<br />

यह कस प पर वरहन के डर क पीड़ा<br />

मेरे जी म भी चुपके से ितर आई है<br />

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य अनजाने?<br />

गूंज<br />

उठा है अंतर जीवन<br />

कस फे िनल अणा भर राग से?<br />

कन फू ल के मधु पराग से<br />

पुलकत हो आया है<br />

आकु ल मधु-समीर?<br />

जी के इस कानन म भी फू ली है सरस,<br />

इस वन का भी कोना-कोना<br />

है भर उठा अकथ छलकन से,<br />

ाण के कन-कन से।<br />

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एक वातायन खुल रहा है, एक पदाथ सरक रहा है। सहयोग करो! साथ दो! जद ह बहत<br />

ु<br />

कु छ होने को है।<br />

कसने मेरे खयाल म दपक जला दया<br />

ठहरे हए तलाब का पानी हला दया।<br />

ु<br />

तनहाइय के बजरे कनारे पे लग गए,<br />

ऐसा यकन हमको कसी ने दला दया।<br />

यह या मजाक है क बहार के नाम से,<br />

पूरा चमन िमटा के नया गुल खला दया।<br />

मुत गुजर गई थी हम यूं<br />

ह चुप हए ु ,<br />

कल से बहक उठे ह हम या िमला दया।<br />

मंजु, पयो! यह तो मधुशाला है। म तुह कोई िसांत नहं िसखा रहा हं<br />

ू--शु शराब पला<br />

रहा हं। ू अंगूर से िनचोड़ हई ु नहं,<br />

आमा से िनचोड़ हई। ु पयो,<br />

जी भर के पयो। नाचो,<br />

गाओ, गुनगुनाओ। और जतने ण िमल जाएं, जब िमल जाएं, तब चल पड़ो भीतर क<br />

तरफ।<br />

भूकं प क तीा मत करो, यक भूकं प म भीतर वह पहंच ु पाएगा,<br />

जो भीतर जाता ह<br />

रहा है, जाता ह रहा है; जो रोज आता-जाता रहा है। वह झेन फकर अपने भीतर पहंच<br />

ु<br />

सका, यक राता परिचत था, बहत बार आया गया था। यह मत सोचना क मौत जब<br />

ु<br />

आएगी तब अचानक यान कर लगे। यह नहं होगा। मौत अचानक आएगी, जीवन-भर धन<br />

क िचंता क थी, मरते व भी धन क ह िचंता तुहारे िसर पर सवार रहेगी। अगर पद<br />

क आकांा क थी तो मरते व भी पद क ह नसेनी चढ़ते रहोगे कपना म।<br />

मृयु के ण म तुहारा सारा जीवन संगृहत होकर तुहारे सामने खड़ा हो जाता है। तुमने<br />

यह बात तो सुनी होगी न क जब कोई आदमी नद म डू बकर मरता है तो एक ण म<br />

सारा जीवन उसके सामने दोहर जाता है! यह बात सभी के संबंध म सच है। नद म डू बकर<br />

मरने वाल के संबंध म नहं, मरती घड़ म तुहारा सारा जीवन िसकु ड़ कर, जैसे हजार-<br />

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हजार फू ल से एक बूंद<br />

इ िनचोड़ते ह ऐसे तुहारे सारे जीवन के अनुभव से एक बूंद<br />

िनचुड़<br />

आती है। लेकन अगर तुहारा सारा जीवन दगध ु का ह था तो बूंद<br />

दगध ु क होगी। अगर<br />

सारा जीवन सपना ह था तो यह बूंद<br />

भी सपना होगी। और अगर जीवन म तुमने कु छ सय<br />

भी कमाया था, कु छ यान भी कमाया था, कु छ ेम भी जगाया था, कु छ बांटा भी था,<br />

कु छ लुटाया भी था, छना-झपटा ह न था, कु छ कणा भी क थी--तो तुहार अंितम ण<br />

क जो तीित होगी, सारा जीवन िनचुड़ कर एक इ क बूंद<br />

बन जाएगा। इसी इ क बूंद<br />

पर सवार होकर तुम परमामा क याा पर िनकलोगे।<br />

मंजु! शुभ हआ ु है। अब इस घड़ को,<br />

इस बिलहार क घड़ को िछटक मत जाने देना, जोर<br />

से पकड़ रखना। अब पकड़ने योय कु छ तुहारे पास है। और यान रखना, जनके पास<br />

कु छ नहं है उनके पास गंवाने को भी कु छ नहं होता। और जनके पास कु छ है उनके पास<br />

गंवाने को भी कु छ होता है। नंगा नहाए तो िनचोड़े या? जनको हम साधारणजन कहते ह,<br />

सांसारक जन, उनको या फकर, उनके पास गंवाने को कु छ है ह नहं।<br />

हमारे पास एक शद है--योग । उसक तोल का दसरा ू शद नहं है--भोग-।<br />

तुमने<br />

कभी ऐसा शद सुना भोग ? भोग होता ह नहं। समतल जमीन पर चलोगे तो कहं<br />

िगरोगे; लेकन पहाड़ क ऊं चाइय पर चलोगे तो िगर सकते हो। योग होता है।<br />

मंजु, एक घड़ करब आ रह है सरकती हई<br />

ु , जो बड़ कमत क होगी। अंतर-यान क<br />

याद आनी शु हई ु है,<br />

जद ह अंतर-यान लगेगा, तब चूक मत जाना। यक बाहर क<br />

जम-जम क वासनाएं खींचगी, बाहर क जम-जम क आदत खींचगी। हजार बाधाएं<br />

खड़ हगी। मन अंितम उपाय करेगा अपने को बचा लेने का, यक यान मन क मृयु<br />

है। और कौन मरना चाहता है! मन भी मरना नहं चाहता है।<br />

लेकन सजग होकर, खूब सजग होकर, दो चार कदम और--और फर म तुमसे कहता हं<br />

ू<br />

सुबह करब है! आखर तारे ढलने लगे। सूरज उगा, अब उगा तब उगा! जरा तीा, जरा<br />

धैय--और वह महवपूण घटना घट सकती है, जसक तलाश म सारे लोग जाने-अनजाने<br />

भटक रहे ह। उसे कहो आनंद क खोज, सय क खोज, परमामा क खोज, मो क<br />

खोज--या जो भी नाम तुह देना पसंद हो।<br />

आज इतना ह।<br />

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बरहन का घर बरह म<br />

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तीसरा वचन; दनांक १३ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

दरया हर करपा कर, बरहा दया पठाय।<br />

यह बरहा मेरे साध को सोता िलया जगाए।<br />

दरया बरह साध का, तन पीला मन सूख।<br />

रैन न आवै नींदड़, दवस न लागै भूख।।<br />

बरहन पउ के कारने, ढंढन ू बनखंड जाए।<br />

िनस बीती, पउ ना िमला, दरद रह िलपटाय।।<br />

बरहन का घर बरह म, ता घट लोह न मांस।<br />

ु<br />

अपने साहब कारने, िससकै सांस सांस।<br />

दरया बान गुरदेव का, कोई झेल सूर सुधीर।<br />

लागत ह यापै सह, रोम-रोम म पीर।।<br />

साध सूर का एक अंग, मना न भावै झूठ।<br />

साध न छांड़ै राम को, रन म फरै न पूठ।।<br />

दरया सांचा सूरमा, अरदल धालै चूर।<br />

राज थापया राम का, नगर बसा भरपूर।।<br />

रसना सेती ऊतरा, हरदे कया बास।<br />

दरया बरषा ेम क, षट ऋतु बारह मास।।<br />

दरया हरदे राम से, जो कभु लागे मन।<br />

लहर उठ ेम क, य सावन बरषा◌ो घन।।<br />

जन दरया हरदा बचे, हआ ु यान-परगास।<br />

हौद भरा जहं ेम का, तहं लेत हलोरा दास।।<br />

अमी झरत, बगसत कं वल, उपजत अनुभव यान।<br />

जन दरया उस देस का, िभन-िभन करता बखान।।<br />

कं चन का िगर देखकर, लोभी भया उदास।<br />

जन दरया थाके बिनज, पूर मन क आस।।<br />

मीठे राच लोग सब, मीठे उपजै रोग।<br />

िनरगुन कडुवा नीम सा, दरया दलभ जोग।।<br />

ु<br />

अमी झरत, बसगत कं गल!<br />

अमृत क वषा होती है और कमल खल रहे ह!<br />

दरया कस लोग क बात कर रहे ह? यहां न तो अमृत झरता है और न कमल खलते ह।<br />

यहां तो जीवन जहर ह जहर है। कमल तो दरू , कांटे भी नहं खलते--या क कांटे ह<br />

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खलते ह। या दरया कसी और लोक क बात कर रहे है? नहं, कसी और लोक क<br />

नहं। बात तो यहं क है, लेकन कसी और आयाम क है।<br />

दस दशाएं तो तुमने सुनी ह; एक और भी दशा है--यारहवीं दशा। दस दशाएं बाहर ह,<br />

यारहवीं दशा भीतर है।<br />

एक आकाश तो तुमने देखा है। एक और आकाश है--अनदेखा। जो देखा वह बाहर है। जो<br />

अभी देखने को है, भीतर है। उस यारहवीं दशा म, उस अंतर आकाश म अमृत झर रहा<br />

है, अभी झर रहा है; कमल खल रहे ह, अभी खल रहे ह! लेकन तुम हो क उस तरफ<br />

पीठ कए बैठे हो। तुहार आंख दर अटक ह और तुम पास के ित अंधे हो गए हो। बाहर<br />

ू<br />

जो है वह तो आकषत कर रहा है; और जसके तम मािलक हो, जो तुम हो, जो सदा से<br />

तुहारा है और सदा तुहारा रहेगा, उसके ित बलकु ल उपेा कर ली है।<br />

शायद इसीिलए क जो िमला है, जो अपना ह है, उसे भूल जाने क वृ होती है। जो<br />

हमारे पास नहं है, जसका अभाव है, उसे पानी क आकांा जगती है। जो है, जसका<br />

भाव है, उसे धीरे-धीरे हम वमृत कर देते ह। उसक याद ह नहं आती।<br />

जैसे दांत टट ू जाए न तुहारा कोई,<br />

तो जीभ वहं-वहं जाती है। कल तक दांत था और<br />

जीभ कभी वहां न गई थी।<br />

मन के भी राते बड़े बेबूझ ह। जो नहं है उस म मन क बड़ उसुकता है। अब दांत टट ू<br />

गया, जीभ वहं-वहं जाती है। दांत था तो कभी न गई थी। जो है मन म उसक उसुकता<br />

ह नहं। य? यक मन जी ह सकता है, अगर उस म उसुकता रहे जो नहं है। तो<br />

दौड़ होगी, तो पाने क चेा होगी, वासना होगी, इछा होगी, कामना होगी। जो नहं है<br />

उसके सहारे ह मन जीता है। जो है उसको तो देखते ह मन क मृयु हो जाती है ।<br />

दरया आकाश म बसे कसी दर ू वग क बात नहं कर रहे ह;<br />

तुहारे भीतर पास से भी<br />

जो पास है, जसे पास कहना भी उिचत नहं...यक पास कहने म भी तो थोड़ दर<br />

ू<br />

मालूम पड़ती है; तो तुहार ास क ास है; जो तुहारे दय क धड़कन है; जो<br />

तुहारा जीवन है; जो तुहारा क है--वहां अभी इसी ण अमृत बरस रहा है और कमल<br />

खल रहे ह! और कमल ऐसे क जो कभी मुरझाते नहं--चैतय के कमल! योिगय ने जसे<br />

सहार कहा है--हजार पंखुड़य वाले कमल! जनका सुगंध का नाम वग है। जन पर नजर<br />

पड़ गई तो मो िमल गया। आंख म जनका प समा गया तो िनवाण हो गया।<br />

इस बात को सब से पहले मरण रख लेता है क संत दूर क बात नहं करते। संत तो जो<br />

िनकट से भी िनकट है उसक बात करते ह। संत उसक बात नहं करते ह जो पाना है; संत<br />

उसक बात करते ह जो पाया ह हआ है। संत वभाव क बात करते ह।<br />

ु<br />

उड़ चला इस सांय-नभ म,<br />

मन-वहग तज िनज बसेरा;<br />

य चला? कस दिश चला?<br />

कसने उसे य आज टेरा?<br />

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य हए ु सहसा फु रत,<br />

अित,<br />

िशिथल, संथ पंख उसके?<br />

या हए ु ह उदत नभ म,<br />

चंमा अकलंक उस के?<br />

वकल आतुर सा उड़ा है<br />

मन वहंगम आज मेरा?<br />

शूय का आतुर िनमंण,<br />

आज उसको िमल गया है;<br />

ितज क वतीणता का,<br />

पवन अंचल हल गया है<br />

ाण पंछ ने गगन म<br />

ललक कौतूहल बखेरा।<br />

विनत उडयन विनत गित--<br />

जिनत अनहद नाद से यह<br />

दगदगंताकाश वथल,<br />

रहा है गूंज<br />

अहरह;<br />

ऊव गित ने यान मना--<br />

गीत-यित को आन घेरा!<br />

उड़ चला इस सांय नभ म<br />

मन वहग तज िनज बसेरा।<br />

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पुकार सुनाई पड़ जाए एक बार तुह उसक जो तुहारे भीतर है, तो तुम उड़ चलो, तो तुम<br />

पंख फै ला दो। तुह एक बार कोई याद दला दे उसक, जो तुहार संपदा है, तुहारा<br />

सााय है, तुह कोई एक झलक दखा दे उसक, जरा सा झरोखा खुल जाए और एक<br />

बार तुम देख लो अपने भीतर के सूरज को उगते हए<br />

ु --फर तुहारे जीवन म ांित घटत हो<br />

जाएगी। फर तुम बाहर के कू ड़ा-कक ट के पीछे दौड़ोगे नहं। और न ह इकठे करते रहोगे<br />

ठकरे। जस अमृत िमल जाए, मरणधमा म उसक उसुकता अपने आप समा हो जाती<br />

है। जसे भीतर क मालकयत िमल जाए उसे सार दिनया ु का चवत साट होना<br />

भी<br />

फका हो जाता है। पर पुकार सुननी है। और पुकार भी आ रह है, मगर तुम हो क<br />

वबिधर बने बैठे हो।<br />

दरया कहते ह--<br />

दरया हर करपा कर, बरहा दया पठाय।<br />

यह बरहा मेरे साध को, सोता िलया जगाय।<br />

भु ने कृ पा क है, दरया कहते ह, क मेरे भीतर बैठ हई आग को<br />

ु उकसा दया, क मेरे<br />

अंगारे पर से राख झाड़ द, क मेरे भीतर वरह क अन जगा द,<br />

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क मेरे भीतर यास को उकसा दया।<br />

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या तुम सोचते हो क हर कसी पर कृ पा करता है और कसी पर नहं? या तुम सोचते<br />

हो भगवत कृ पा कसी को िमलती है और कसी को नहं िमलती? भगवत कृ पा तो बेशत<br />

सब पर बरसती है। उस तरफ से तो कोई भेद भाव नहं है; लेकन कोई उसे वीकार कर<br />

लेता है और कोई उसे इनकार कर देता है।<br />

वषा तो होती पहाड़ पर भी झील म भी, लेकन झील भर जाती ह और पहाड़ खाली के<br />

खाली रह जाते ह। वषा तो होती पथर पर भी और जमीन पर भी, लेकन जमीन म बीज<br />

फू ट जाते ह, हरयाली आ जाती है; पथर वैसे के वैसे, खे के खे रह जाते ह। पहाड़<br />

पर वषा होती है, पहाड़ चूक जाते ह यक पहाड़ खुद अपने से भरे ह; उनक बड़<br />

अमता है, बड़ा अहंकार है। झील भर जाती ह यक झील खाली ह, शूय ह, उनके<br />

ार खुले ह। झील ने वागत करने क कला सीखी, बंदनवार बांधे: आओ!...बादल तो<br />

बरसते ह बेशत, लेकन कहं फू ल खल जाते ह और कहं पथर ह पड़े रह जाते ह।<br />

ऐसी ह परमामा क कृ पा भी अलग-अलग नहं है। मुझ पर भी उतनी ह बरसती है जतनी<br />

तुम पर। दरया पर भी उतनी ह बरसी है जतनी कसी और पर; लेकन दरया ने ार<br />

खोले दय के, अंगीकार कया। दरया ने इनकारा नहं। इस अंगीकार करने का नाम ह<br />

आथा है। इस वागत का नाम ह ा है। अपने भीतर ार पर दतक देते सूरज को बुला<br />

लेने का नाम ह भ है। और भगवान ितपल ार पर दतक दे रहा है।<br />

दरया हर करपा कर, बरहा दया पठाय।<br />

भेज द वरह क खबर, पुकार दे द। कहना चाहए, पुकार सुन ली! लेकन भ तो ऐसा<br />

ह कहेगा। उस कहने म भी राज है क परमामा ने कृ पा क। यक भ क यह मायता<br />

है--और मायता ह नहं, यह जीवन का परम सय भी है--क हमारे कए कु छ भी नहं<br />

होता है; जो होता है उसके कए होता है। हम तो अगर इतना ह करने म सफल हो जाएं<br />

क बाधा न द तो बस बहत। ु वषा तो उसक तरफ से होती है;<br />

हम अपने पा को उटा न<br />

रख, इतना ह बहत। हम अपने पा<br />

ु को सीधा रख ल, वषा तो उसक तरफ से होती है।<br />

पा के सीधे होने से वषा नहं होती है; वषा तो हो ह रह है, लेकन पा सीधा हो तो भर<br />

जाता है, तो भरपूर हो जाता है।<br />

भ तो अनुभव है क मनुय के यास से नहं िमलता परमामा--साद से िमलता है;<br />

उसक ह अनुकं पा से िमलता है। हमारे यास भी तो छोटे-छोटे ह--हमारे हाथ ह इतने छोटे<br />

ह! हम चांदार को नहं छू पाएंगे, तो हम परमामा को कै से छू पाएंगे? हमार मुठ म<br />

समाएगा या? वराट पर हम मुठ कै से बांधगे? और हमारे इस छोटे से दय म हम इस<br />

अनंत आकाश को कै से आमंत करगे? नहं, उसक कृ पा होगी तो ह यह चमकार घटत<br />

होगा। उसक कृ पा होगी तो बूंद<br />

म सागर भी समा जाएगा।<br />

दरया हर करपा कर, बरहा दया पठाय। कहते ह: तुमने पुकारा होगा, इसिलए म तुह<br />

खोजने िनकल पड़ा। यह भ का सदय-सदय का अनुभव है। तुम थोड़े ह परमामा को<br />

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खोजते हो; परमामा तुह खोजता है। परमामा तुह टटोल रहा है। परमामा अलग-अलग<br />

विधय से तुहार तरफ िनमंण भेज रहा है, ेम पाितयां िलख रहा है। लेकन तुम न ेम<br />

पाितयां पढ़ते हो...तुम भाषा ह भूल, गए, जससे उसक ेम पाती पढ़ जा सके । उस ेम<br />

क पाती को पढ़ने क भाषा भी तो ेम है! तुम ेम ह भूल गए! वह ार पर दतक देता<br />

है, तुह सुनाई नहं पड़ता, यक उसक दतक शोरगुल नहं है, शूय है। वह तुहारे<br />

दय को छू ता है, लेकन तुहार समझ म नहं आता क उसका छू ना थूल नहं है, सूम<br />

है। वह बवंडर क तरह नहं आता, शोरगुल मचाता नहं आता--कान म फु सफु साता है,<br />

गुतगू करता है।<br />

और तुहारे िसर म इतना शोरगुल है क कै से तुह उसक गुतगू सुनाई पड़े? तुहारे भीतर<br />

बाजार भरा है, मेला लगा है। तुहारा मन या है--कु ं भ का मेला है! शोरगुल और उपव है।<br />

भीड़-भाड़ है। वहां उसक धीमी सी आवाज कहां खो जाएगी, पता भी नहं चलेगा।<br />

लेकन जस दन भी तुह समझ म आएगी बात, उस दन तुह यह भी खाल म आएगा:<br />

वह तो सदय से खोज रहा था, हमने ह अनसुना कया। अभागे हम है। दभाय हमारा है।<br />

ु<br />

वह तो कब से आने को आतुर था। हमने उसे बुलाया ह नहं। वह तो कब से ार पर खड़ा<br />

था, हमने ार ह न खोले।<br />

फर खराद पर मुझे चढ़ा<br />

कु शल समय के कारगर<br />

जुड़ा सका हं दगुण के वल<br />

ू ु<br />

जो भी गुण है गौण बहत<br />

ु<br />

म न सरल सीधी रेखा सा<br />

बाक मुझ म कोण बहुत<br />

म ुटय का भुज मुझे<br />

सीधा सादा आयत कर<br />

म वकृ त बेडौल खुरदरा<br />

िनत कु छ आकार नहं<br />

म वह धातु क जस पर<br />

िशपी का रचना संकार नहं<br />

आकृ ित दे अिभपकार<br />

मूित बने अनगढ़ पथर<br />

बाहर उजले देवपीठ पर<br />

भीतर भीतर तहखाने<br />

आद पुष सोया है जस म<br />

कुं<br />

ठाएं रख िसरहाने<br />

मन क गु गुहाओं म<br />

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कोई नहा दपक धर<br />

उस से ह कहना होगा--<br />

मन क गु गुहाओं म<br />

कोई नहा दपक धर<br />

फर खराद पर मुझे चढ़ा<br />

कु शल समय के कारगर<br />

आकृ ित दे अिभपकार<br />

मूित बने अनगढ़ पथर<br />

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हम तो अनगढ़ पथर ह। छैनी चाहए, हथौड़ चाहए, कोई कु शल कारगर चाहए--क<br />

गढ़े! और कारगर भी है। मगर हम टटने ू को राजी नहं ह। जरा सा हमसे छना जाए तो हम<br />

और जोर से पकड़ लेते ह। छैनी देखकर तो हम भाग जाते ह। हथौड़ से तो हम बचते ह।<br />

हम तो चाहते ह सांवनाएं, सय नहं।<br />

दरया कहते ह: मीठे राच लोग सब? मीठ मीठा तो सभी को चता है। मीठा यानी<br />

सांवना। अछ-अछ बात तुहारे अहंकार को आभूषण द, तुह सुंदर<br />

परधान द,<br />

तुहार कु पता को ढांक, तुहारे घाव पर फू ल रख द।<br />

मीठे राच लोग सब, मीठे उपजै रोग।<br />

लेकन इसी सांवना, इसी िमठास क खोज से तुहारे भीतर सारे रोग पैदा हो रहे ह।<br />

िनरगुन कडुवा नीम सा, दरया दलभ जोग।<br />

ु<br />

और जो उस िनगुण को पाना चाहते ह उह तो नीम पीने क तैयार करनी होगी। िनरगुन<br />

कडुवा नीम सा, दरया दलभ ु जोग। और इसीिलए तो बहत ु कठन है योग,<br />

बहत ु कठन है<br />

संयोग, यक परमामा जब आएगा तो पहले तो कड़वा ह मालूम पड़ेगा। लेकन वह नीम<br />

क कड़वाहट तुहारे भीतर क सार अशुय को बहा ले जाएगी, तुह िनमल करेगी,<br />

िनदष करेगी।<br />

सदगु जब िमलेगा तो खड़ग क धार क तरह मालूम होगा। उसक तलवार तुहार गदन<br />

पर पड़ेगी। कबीर कहते ह--<br />

कबरा खड़ा बाजार म, िलए लुकाठ हाथ।<br />

जो घर बारै आपना, चले हमारे साथ।।<br />

हमत होनी चाहए घर को जला देने क। कौन सा घर? वह जो तुमने मन का घर बना<br />

िलया है--वासनाओं का, आकांाओं का, अभीसाओं का। वह जो तुमने कामनाओं के बड़े<br />

गहरे सपने बना रखै ह, सपन के महल सजा रख ह। जो उन सबको जला देने को राजी<br />

हो, उसे आज और अभी आर यहं परमामा क आवाज सुनाई पड़ सकती है। उसके भीतर<br />

भी राख झड़ सकती है और अंगारा िनखर सकता है।<br />

दरया हर करपा कर, बरहा दया पठाय।<br />

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...क तुहार बड़ कृ पा है भु, क मेरे भीतर वरह को जगा दया। वरह के िलए बहत<br />

ु<br />

कम लोग धयवाद देते ह। िमलन के िलए तो कोई भी धयवाद दे देगा। िमलन तो िमठा<br />

िमठा, वरह तो बहत ु कड़वा। नीम सा कड़वा!<br />

नीम भी या होगी कड़वी इतनी। यक<br />

वरह तो आग है। वहां सांवना कहां! वहां तो जलन ह जलन है। लेकन सोना आग से<br />

गुजर कर ह शु होता है और वरह क याा म िनखर कर ह कोई िमलन के योय होता<br />

है, पा बनता है।<br />

यह बरहा मेरे साध को सोता िलया जगाए।<br />

दरया कहते ह; मुझे पता ह न था क मेरे भीतर ऐसा परम साधु सोया हआ ु है,<br />

क मेरे<br />

भीतर ऐसे परम सय का आवास है, क मेरे भीतर ऐसा िनदष, ऐसा कुं<br />

वारा वभाव है--<br />

जस पर कोई मिलनता कभी नहं पड़; जस पर कोई कािलख नहं है; जस पर कोई दाग<br />

नहं है। न पुय का दाग न पाप का दाग, न शुभ का न अशुभ का। जो सब तरफ से<br />

अपिशत है! मेरे उस साधु को तुमने जगा दया! न अशुभ का। जो सब तरफ से अपिशत<br />

है! मेरे साधु को तुमने जगा दया! एक जरा सी पुकार देकर! वरह को उकसाकर मेरे भीतर<br />

के परम कुं<br />

वारेपन को मुझे फर से भट दे दया! दया ह हआ ु था,<br />

मगर म अंधा क कभी<br />

लौटकर न देखा; म बहरा क कभी सुना नहं; म मूढ़ क कभी अपने भीतर न टटोला।<br />

संसार म टटोलता फरा, दरू -दर चांदार म<br />

ू , न म टटोलता फरा, जम-जम म,<br />

योिनय-योिनय म, न मालूम कतनी देह म, न मालूम कतने प म तलाश--और एक<br />

जगह भर तुझे खोजा नहं: अपने भीतर कभी आंख को न ले गया, कभी अंत न क।<br />

यह बरहा मेरे साध को सोता िलया जगाए। तूने बड़ कृ पा क क यह आग मुझ पर बरसा<br />

द।<br />

वरह आग है, यान रखना। जस पर बरसती है, उसका रोआं-रोगा रोता है। जस पर<br />

बरसती है, उसके खून से आंसू बनने लगते ह।<br />

दरया बरह साध का, तन पीला मन सूख।<br />

दरया कहते ह: तन सूख गया, मन सूख गया।<br />

रैन न आवै नींदड़, दवस न लागै भूख।<br />

अब रात नींद नहं आती, दन भूख नहं लगती। बस एक तेर याद है क सताए जाती है।<br />

बस एक तेर याद है क तीर क तरह चुभी जाती है--और गहरे, और गहरे!<br />

टट ू मत मेरे दय<br />

मुख न हो मेरे मिलन<br />

और थोड़े दन<br />

वरह को बड़ धैय को कला सीखनी पड़ती है, यक आग ऐसा जलाती है क भरोसा नहं<br />

आता क इस आग के पार कभी कमल भी खलगे। कहं आग म और कमल खले ह! तन<br />

सूखने लगता है, मन सूखने लगता है--कै से भरोसा आए क अमृत क वषा होगी! जो हाथ<br />

म है वह भी जाता मालूम होता है।<br />

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टट ू मत मेरे दय<br />

मुख न हो मेरे मिलन<br />

और थोड़े दन<br />

रात का है ात िनत<br />

अत का है उदय<br />

एक जैसा ह कसी का<br />

कब रहा है समय<br />

रह न पाए दन सरल<br />

या कहगे ये कठन<br />

और थोड़े दन<br />

ढले कं धे, झुक ीवा<br />

और खाली हाथ<br />

कं तु चौखट पर दख क<br />

ु<br />

टेकना मत माथ<br />

आह अधर पर न हो<br />

मत पलक पर ला तुहन<br />

और थोड़े दन<br />

ण न हो मेरे पराजत<br />

हार मत वास<br />

कु छ दन का और संकट<br />

कु छ दन संास<br />

कत अंितम वेद क<br />

तू चुका कर हो उऋण<br />

और थोड़े दन<br />

सृजन से थक कर न रचना<br />

तोड़ना संकप<br />

शेष तेरे अभाव क<br />

आयु है अब अप<br />

चौकड़ मत भूलना<br />

कपनाओं के हरण<br />

और थोड़े दन<br />

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आग भयंकर है वरह क। थोड़े से ह हमतवर लोग गुजर पता ह, अयथा लौट जाते ह।<br />

धैय चाहए, तीा चाहए। तीा ह ाथना का मूय है, उदगम है। और जो तीा<br />

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नहं कर सकता, वह ाथना भी नहं कर सकता। सहालना होगा अपने को। और थोड़े दन<br />

बांधना होगा अपने को क लौट न पड़े क भाग न आए, क पीठ न दखा दे।<br />

बरहन पउ के कारने, ढंढन ू बनखंड जाए।<br />

िनस बीती, पउ ना िमला, दरद रह िलपटाय।।<br />

बड़ बुर दशा ह जाती है वरह क। खोजता फरता है जंगल-जंगल। िनस बीती, पउ ना<br />

िमला। और रात बीत चली और यारा िमला नहं। फर कोई और उपाय न देखकर, दद से<br />

ह िलपटकर सो जाती है दद रह िलपटाय! वरह के पास और है भी या? परमामा पता<br />

नहं कब िमलेगा! जगा गया एक अभीसा को। अब अभीसा ह है जसको छाती से लगाकर<br />

भ जीता है। यह उसक परा है। इस परा से जो नहं उतरता वह कभी उस दसरे<br />

ू<br />

कनारे तक न पहंचा ु है न पहंच ु सकता है।<br />

भ बहत ु भाव से गुजरता है। वभावतः कई बार लगता है यह कै सा ददन ु आ गया!<br />

यह<br />

म कस झंझट म पड़ गया! सब ठक-ठाक चलता था, यह कन आंसुओं से जीवन िघर<br />

गया। अब भला-चंगा था, यह कस दन ने पकड़ िलया क कता ह नहं! दय है क<br />

उं डेला ह जाता है और रोआं-रोआं है क कं प रहा है। और पता नहं परमामा है भी या<br />

नहं। पता नहं म कसी कपना के जाल म तो नहं उलझ गया हं। ू भार शंकाएं उठती ह,<br />

कु शंकाएं उठती ह। भ कभी नाराज भी हो जाता है परमामा पर, क यह भी दया तो<br />

या दया! मांगे थे फू ल, कांटे दए। मांगी थी सुबह, सांझ द। मांगा था अमृत, जहर दे<br />

दया।<br />

तुम चाहे दानी बन जाओ मुझे अयाचक ह रहने दो<br />

य है मेरा मान मुझे तो<br />

यासा मरा न मांगा पानी<br />

तब से राजकु मार होकर<br />

संयािसन बन गई जवानी<br />

वाित बनो तुम चाहे मुझ को यास चातक ह रहने दो<br />

जब भी करे िनवेदन तृणा<br />

अधर पर रख दो अंगारा<br />

कल करा दो वन तृि के<br />

िनवािसत कर मन बनजारा<br />

तुम हन बन जाओ तुझ को धुंधवाती<br />

पावक ह रहने दो<br />

प कु बेर कभी या तुमको<br />

जी भर छव के कोष लुटाओ<br />

मेरा अलगोजा गरब है<br />

वीणा से फे रे न फराओ<br />

वर सााय संभालो मुझको वमृत गायक ह रहने दो<br />

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बहत ु बार मान उठ आता है,<br />

अिभमान उठ आता है। भ कहता है: छोड़ो भी मुझे! मुझे<br />

यासा ह रहने दो। नहं चाहए तुहार वाित क बूंद।<br />

तुम चाहे दानी बन जाओ, मुझे<br />

अयाचक ह रहने दो! मांगा कब था? मने तुह पुकारा कब था? तुहं ने पुकारा। तुह दानी<br />

ह रहने दो! मांगा कब था? मने तुह पुकारा कब था? तुहं ने पुकारा। तुह दानी बनने<br />

का मजा है तो बन जाओ दानी, मगर मुझे तो िभखार न बनाओ।<br />

वाित बनो तुम चाहे मुझको यासा चातक ह रहने दो! तुह शौक चढ़ा है वाित बनने का,<br />

बनो मगर मुझे य सताते हो? मुझे यासा चातक ह रहने दो। मुझे तुहार अभीसा नहं<br />

है, मुझे तुहार आकांा नहं है। तुम बन जाओ...तुम हम बन जाओ, मुझको धुंधवाती<br />

पावक ह रहने दो! मुझे छोड़ो भी! मेरा पीछा भी छोड़ो! मेरा आंचल पकड़े छाया क तरह<br />

दन-रात मुझे सताओ मत! वर सााय संभालो, मुझको वमृत गायक ह रहने दो! तुम<br />

वर साट हो भले, अपने घर तुम भले म अपनी दनता म भला।<br />

मेरा अलगोजा गरब है, वीणा से फे रे न फराओ।<br />

मेरे अलगोजे को वीणा से फे रे फराने के िलए मने ाथना कब क थी? पुकारा तुहं ने,<br />

अब जलाते य हो?<br />

बहत ु बार भ वरह क अन म शंकाएं करता,<br />

कु शंकाएं करता, नाराज भी हो जाता, ठ<br />

भी जाता, पीठ भी फे र लेता; मगर उपाय नहं है। एक बार उसक आवाज सुनाई पड़ तो<br />

उससे बचने का कोई उपाय नहं। जब तक नहं सुनाई पड़ है, नहं सुनाई पड़ है। एक बार<br />

सुनाई पड़ गई तो सारा जग फका हो जाता है; फर कु छ भी करो, शंका करो, मान करो,<br />

ठो--सब यथ।<br />

बरहन पउ के कारने, ढंढन ू बनखंड जाय।<br />

िनस बीती, पउ ना िमला, दद रह िलपटाय।।<br />

और पीड़ा बड़ सघन है भ क, वरह क। वृ म फू ल खलते ह और भीतर फू ल का<br />

कोई पता नहं, कांटे ह कांटे ह! आकाश म बादल िघरते ह, सावन आ जाता है--और भीतर<br />

मथल है, न वषा, न सावन। बाहर सदय का इतना वतार और भीतर सब खा-सूखा।<br />

तन भी सूख जाता, मन भी सूख जाता। भरोसा आए भी तो कै से आए?<br />

ये घटाएं जामुनी ह तुम नहं हो<br />

आह या कादंबनी है तुम नहं हो<br />

बूंद<br />

के घुंघ<br />

बजाकर हंस रह है<br />

ऋतु बड़ अनुरािगनी है तुम नहं हो<br />

बादल क बाहओं म थ पड़ है<br />

ु<br />

समपत सौदािमनी है तुम नहं हो<br />

भीगकर भी म सुलगता जा रहा हं<br />

ू<br />

बूंद<br />

पावक म सनी है तुम नहं हो<br />

बन तुहारे साध मेर सावी सी<br />

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सांस हर संयािसनी है तुम नहं हो<br />

गुदगुद से अु तक लाई मुझे यह<br />

वेदना सतरंिगनी है तुम नहं हो<br />

यार ह अपराध मुझ पर आजकल तो<br />

उठ रह हर तजनी है तुम नहं हो<br />

भीगकर भी म सुलगता जा रहा हं<br />

ू<br />

बूंद<br />

पावक म सनी है तुम नहं हो<br />

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सब सदय सारे जगत का, सारा काय, सारा संगीत, एकदम यथ हो जाता है--उसक<br />

पुकार सुनते ह! जैसे हरा देख िलया हो तो अब कं कड़ पथर म मन रमे तो कै से रमे?<br />

और तुम लाख भूलना चाहो क हरे को नहं देखा है तो भी कै से भुलाओगे?<br />

जीवन का एक शात िनयम है: जो जान िलया, उसे अनजाना नहं कया जा सकता। जो<br />

पहचान िलया पहचान िलया, उससे फर पहचान नहं तोड़ जा सकती। जसका अनुभव हो<br />

गया हो गया, अब तुम लाख उपाय करो तो उसे अनुभव के बाहर नहं कर सकते।<br />

बरहन का घर बरह म, तो घट लोह न मांस।<br />

ु<br />

अपने साहब कारने, िससकै सांस सांस।।<br />

दरया कहते ह: वरह ह घर बन जाता है, वह मंदर बन जाता है। बरहन का घर बरह<br />

म! उठो बैठो, चले, कहं भी जाओ, वरह तुह घेरे रहता है। एक अय वातावरण वरह<br />

का तुह पकड़े रहता है। काम करो संसार के, मगर कहं मन रमता नहं। िमलो िम से,<br />

यजन से, मगर उस परम यारे क याद पकड़े ह रहती है। कोई यजन मन को अब<br />

उलझा नहं पाता। कतना ह यारा संगीत सुनो, उसक आवाज के सामने सब फका हो<br />

गया है। और कतने ह सुंदर<br />

फू ल देखो, अब तो जब तक उसका फू ल न खल जाए तब<br />

तक कोई फू ल फू ल नहं मालूम होगा।<br />

बरहन का घर बरह म, तो घट लोह न मांस।<br />

ु<br />

और ऐसी गहराइय म वरह ले जाने लगता है, जहां न शरर है न शरर क छाया पड़ती<br />

है। अपने साहब करने िससकै सांस सांस। बस वहां तो िसफ उस साहब क याद है और एक<br />

िससक है, जो कसी और को सुनाई भी शायद न पड़े। ास-ास म िससक भर है। भ<br />

कहना भी चाहे तो शद काम नहं पड़ते। भ गूंगा<br />

हो जाता है। बोलना चाहता है और नहं<br />

बोल पाता। ास-ास म िससक होती है। िससक ह उसक ाथना है। आंख से झरते आंसू<br />

ह उसक अचना है।<br />

महक रहा ऋतु का शृ ंगार<br />

जैसे पहला-पहला यार!<br />

जाग रह है गंध अके ली<br />

सारा मधुवन सोता है!<br />

कया नहं जसने या जाने<br />

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यार म या-या होता है!<br />

रात घुल जाती आंख म<br />

दन उड़ जाते पंख पसार!<br />

बार-बार कोई पुकारता<br />

रह-रह कर अमराई से!<br />

अपना पता पूछता हं म<br />

ू<br />

अपनी ह परछा से!<br />

कोई नहं बोलता कु छ भी<br />

मौन खड़े सारे घर-ार<br />

फू ल के रंगीन शहर म<br />

खुशबू अब तक अनयाह!<br />

कोई कली कसी कांटे क<br />

बांह म है अन चाह!<br />

मजबूर ने तोड़े अनिगन<br />

इछाओं के बंदनवार!<br />

राह-राह आग बछ है<br />

झुलसी-झुलसी छायाएं!<br />

हर चौराहा धुआं-धुआं है,<br />

घर तक हम कै से जाएं!<br />

कब तब खाली जेब िलए म<br />

देखूं<br />

भरा-भरा बाजार!<br />

कं िशकायत कहां दद क<br />

हर दरबार यहां झूठा!<br />

नए जमाने म कु छ भी हो<br />

पर इसान बहत ु टटा ू !<br />

बारह-बाहर मुसकान ह<br />

भीतर-भीतर हाहाकार!<br />

रात घुल जातीं आंख म<br />

दन उड़ जाते पंख पसार!<br />

कोई नहं बोलता कु छ भी<br />

मौन खड़े सारे घर-ार!<br />

महक रहा ऋतु का शृ ंगार<br />

जैसे पहला-पहला यार!<br />

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चार तरफ सब सुंदर<br />

है, सब ीितकर है। और भीतर एक रता भर जाती है।<br />

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वरह का अथ या है? वरह का अथ है: भीतर म शूय हं। जहां परमामा होना चाहए था<br />

ू<br />

वहां कोई भी नहं है, िसंहासन खाली पड़ा है। वरह का अथ है: बाहर सब, भीतर कु छ भी<br />

नहं। वरह का अथ है: यह भीतर का सूनापन काटता है, यह भीतर का सनाटा काटता है।<br />

लेकन इस वरह से गुजरना होता है। इस वरह से गुजरे बना कोई भी िसंहासन के उस<br />

मािलक तक नहं पहंच ु पाता है। यह कमत है जो चुकानी पड़ती है। शायद इसीिलए लोग,<br />

अिधक लोग ईर म उसुक नहं होते। इतनी कमत कौन चुकाए! कस भरोसे चुकाए!<br />

शायद इसीिलए अिधक लोग ने झूठे और औपचारक धम खड़े कर िलए ह। मंदर गए, दो<br />

फू ल चढ़ा आए, घंटा बजा दया, दया जला आए, िनपट गए, बात खम हो गई। न<br />

भीतर का घंटा बजा, न भीतर का दया जला, न भीतर क आरती सजी, बाहर का<br />

इंतजाम कर िलया है। तुहार दकान भी बाहर<br />

ु और तुहारा मंदर भी बाहर। तो तुहार<br />

दकान ु और तुहारे मंदर म बहत ु फक नहं हो सकता। दकान ु बाहर,<br />

मंदर तो भीतर होना<br />

चाहए।<br />

मंदर तो भीतर का ह हो सकता है। लेकन भीतर के मंदर को चुनने म, भीतर के मंदर<br />

को िनिमत करने म तुह बुिनयाद बन जाना पड़ेगा। तुहं दबोगे, बुिनयाद के पथर बनोगे<br />

तो भीतर का मंदर उठूं गा। तुम िमटोगे तो परमामा क उपलध हो सकती है। वरह<br />

गलाता है, िमटाता है। वरह तुह पछ जाता है। एक ऐसी घड़ आती है जब तुम नहं होते<br />

हो। और जस घड़ तुम नहं हो, उसी घड़ परमामा है।<br />

िमलन घटत होता है कब? बड़ बेबूझ शत है िमलन क। ऐसी बेबूझ शत है, ऐसी अतय<br />

शत है क बहत ु थोड़े से हमतवर पूरा कर पाते ह। तुम भी परमामा से िमलना चाहोगे ,<br />

लेकन शत यह है क जब तक तुम हो तब तक िमलन न हो सके गा। जब तक तुम हो<br />

परमामा नहं है, ऐसा गणत है। और जब तुम नहं होओगे तब परमामा है। कौन इस<br />

शत को पूरा करे! कौन जुआर इतना बड़ा दांव लगाए, कस गारंट पर, या पका है क<br />

म िमट जाऊं गा तो परमामा िमलेगा ह? िसवाय इसके क दरया जैसे िमटने वाले लोग ने<br />

कहा है क िमलता है, मगर कौन जाने दरया सच कहते ह, सच न कहते ह! ांित म<br />

पड़ गए ह। या कोई षडयं हो पीछे इन सार बात के, कोई बड़ा जाल हो लोग को<br />

उलझाए रखने का! कै से भरोसा आए!<br />

एक ह उपाय है क कसी ऐसे य से िमलना हो जाए तो िमट गया है--और िमटकर हो<br />

गया है--िमटकर पूण हो गया है! जसने शूय को जाना है और शूय म उतरते हए पूण को<br />

ु<br />

पहचाना है। जसके भीतर म तो नहं बचा और अब तू ह वराजमान हो गया है। जसके<br />

भीतर भगवा बोलती है, ऐसे कसी य से जीवंत िमलन हो जाए, उसके चरण म बैठने<br />

का सौभाय िमल जाए, उसके सनाटे को समझने का अवर िमल जाए, उसक आंख म<br />

आंख डालने क शुभ घड़ आ जाए, ऐसा कोई मुहत ू बने--तो<br />

कु छ बात हो, तो भरोसा<br />

आए, तो ा जगे।<br />

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ससंग के बना ा नहं जगती है। और सदगु के बना यह भरोसा आ नहं सकता क<br />

तुम इतनी हमत जुटा सको क अपने को िमटाऊं और परमामा को पाऊं ।<br />

दरया बान गुरदेव का, कोई झेलै सूर सुधीर।<br />

लागत ह यापै सह, रोम-रोम म पीर।।<br />

इसिलए दरया कहते ह: यह बात समझ म न आएगी, यह वरह क हमत तुम न जुटा<br />

पाओगे। यह तो तभी जुटा पाओगे...जब दरया बान गुरदेव का...जब कसी सदगु का बाण<br />

तुहारे दय म लग जाएगा।...कोई झैलै सूर सुधीर। दो शद योग कए ह--सूर और सुधीर।<br />

सूर भी ह लोग, हमतवर भी लोग ह, बहादर भी लोग ह<br />

ु ; मगर उतने से काफ नहं है।<br />

मरने-वाले को तैयार ह, मगर सूझ-बूझ बलकु ल नहं है। साहसी ह, मगर समझ नहं है।<br />

तो भी नहं होगा।<br />

और ऐसा भी है क बहत ु लोग ह जो बड़े समझदार ह,<br />

मगर साहसी नहं ह। तो उनक<br />

समझ के कारण वे और भी कायर हो जाते ह। उनक समझदार के कारण वे एक कदम भी<br />

अात म नहं उठा पाते। उनक समझदार उनको और जकड़ देती है कनारे से। नाव क<br />

नहं खोल पाते ह सागर म। इतना वराट सागर, ऐसी उतंग लहर, ऐसी छोट सी नाव,<br />

कोई समझदार खोलेगा? न नशा है पास, न पका है क उसका उस पर कोई कनारा<br />

होगा, क नाव कभी पहंचेगी इसका कोई पका नहं। उतंग लहर को देखकर इतना ह<br />

ु<br />

पका है क नाव डू बेगी, सदा को डूब जाएगी।<br />

समझदार साहसी नहं होते। साहसी समझदार नहं होते। असर इसीिलए साहसी होते ह क<br />

समझदार नहं ह। समझदार नहं ह, इसिलए उतर जाते ह कहं भी, जूझ जाते ह कसी भी<br />

चीज से।<br />

इसीिलए तो सैिनक को िशण देते समय उनक समझ न करनी पड़ती है। नहं तो वे<br />

जूझ नहं पाएंगे यु म। अगर समझदार हगे तो जूझ नहं पाएंगे। समझदार हजार बाधाएं<br />

खड़ करेगी। इसिलए सारे सैय िशण म एक ह खास मुा यान मग रखा जाता है क<br />

तुहार समझ को खम कया जाए। बाएं घूम दाएं घूम, बाएं घूम दाएं घूम--सुबह से शाम<br />

तक चलता रहता है। न बाएं घूमने म कोई मतलब है, न दाएं घूमने म कोई मतलब है।<br />

तुम यह नहं पूछ सकते क इसका मतलब या? बाएं घूमने से या होगा?<br />

एक दाशिनक भत हआ ु सेना म। महायु म सभी लोग भत हो रहे थे,<br />

वह भी भत हो<br />

गया। देश को जरत थी सैिनक क। और जब उसके कान ने कहा बाएं घूम, तो सारे<br />

लोग तो बाएं घूम गए, वह अपनी जगह खड़ा रहा। उस के कान ने पूछा क आप घूमते<br />

य नहं? उस ने कहा: पहले यह पका हो जाना चाहए क घूमना कस िलए? बाएं घूमने<br />

से या िमलेगा? इतने लोग बाएं घूम गए, इन को या िमला? और फर ये आखर दाएं<br />

घूमगे, बाएं घूमगे और यहं आ जाएंगे, इसी अवथा म जस म म खड़ा ह हं<br />

ू, घूम-घाम<br />

से मतलब या है? म बना सोच वचार के एक कदम नहं उठा सकता।<br />

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दाशिनक का िशण यह है क बना सोच वचार के कदम न उठाए। िस दाशिनक था।<br />

कोई और होता तो कान ने दस-पांच गािलयां सुनाई होतीं। यक भाषा ह..कान क और<br />

पुिलस वाल क भाषा म गािलयां तो बलकु ल जर होती ह। दो चार सजाएं द होतीं।<br />

लेकन दाशिनक िस था, सोचा क ऐसे...और बेचारा ऐसे तो ठक ह कह रहा है। कान<br />

को भी बात पहली दफे समझ म आई क बाएं घूम दाएं घूम, इसका मतलब या है?<br />

योजन या है?<br />

इसका योजन है। अगर कोई आदमी तीन-चार घंटे रोज बाएं घूम, दाएं घूम, दौड़ो, को,<br />

भागो, जाओ, आओ--ऐसा करता रहे, हर आा का पालन, तो उसक बु धीरे-धीरे ीण<br />

हो जाएगी। यह यंवत हो जाएगा। फर एक दन उस से कहो क मारो तो वह मारेगा--उसी<br />

आसानी से जैसे दाएं घूमता था, बाएं घूमता था। फर यह भी नहं सोचेगा क जस आदमी<br />

क छाती म म गोली चला रहा हं या छु रा भक रहा हं<br />

ू ू, उसक मां होगी बूढ़, घर राह<br />

देखती होगी; इसके बचे हगे, इसक पी होगी। और उसने मेरा कु छ भी तो नहं बगाड़ा<br />

है। इससे मेर कोई पहचान ह नहं है, बगाड़ने का सवाल ह नहं है। इसे मने कभी जाना<br />

भी नहं है--अपरिचत, अनजान। जैसे म यु म भत हो गया हं ू चार रोट के िलए,<br />

ऐसे<br />

यह भी यु म भत हो गया है। या इसे मां?<br />

यह दाशिनक जो बाएं नहं घूम रहा है, यह गोली भी नहं चलाएगा। जब आा होगी क<br />

चलाओ गोली तो यह पूछे गा: य? गोली चलाने से या सार? और इस बेचारे ने बगाड़ा<br />

या है? इस से मेरा कोई झगड़ा भी नहं है। इस से मेर पहचान ह नहं है, झगड़े का<br />

सवाल ह नहं उठता।<br />

सोचकर कान ने कहां क आदमी तो अछा है, भला है, अब भत हो गया है, अब इस<br />

को िनकालना भी ठक नहं है, कोई और काम दे देना चाहए। तो चौके म काम दे दया।<br />

छोटा काम, जो कर सके । मटर के दाने, बड़े एक तरफ कर, छोटे एक तरफ कर। घंटे भर<br />

बाद जब कान आया तो दाशिनक वैसा ह बैठा हआ ु था। तुमने अगर रोदन क िच देखा<br />

हो...रोदन क िस मूित है...वचारक ऐसा ठु ड से हाथ लगाए हए एक वचारक बैठा हआ<br />

ु ु<br />

है, उसी ठक मुा म दाशिनक बैठा हआ था। दाने जैसे थे मटर के<br />

ु<br />

एक दाना भी यहां से वहां नहं हटाया गया था।<br />

, वैसे के वैसे रखे थे।<br />

कान ने पूछा क महाराज, इतना तो कम से कम करो! उसने कहा क पहले सब बात<br />

साफ हो जानी चाहए। तुमने कहा, बड़े एक तरफ करो, छोटे एक तरफ करो। मझोल कहां<br />

जाएं? और म कदम नहं उठाता जब तक क सब साफ नहं हो, प न हो।<br />

इतनी समझदार होगी तो तुम अनंत सागर म अपनी नाव न छोड़ सकोगे। इसिलए सैिनक<br />

क बु न कर देनी होती है। फर वे यंवत जूझ जाते ह, कट जाते ह, काट देते ह।<br />

अब जस आदमी ने हरोिशया पर ऐटम बम िगराया, एक लाख आदमी पांच िमिनट म जल<br />

कर राख हो जाएंगे, अगर जरा भी सोचता तो या िगरा पाता? तो यादा से यादा यह<br />

हो सकता था क जाकर कह देता क म नहं िगरा सकता हं<br />

ू, चाहो तो मुझे गोली मार दो।<br />

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यह यादा उिचत होता। एक आदमी मर जाऊं गा, या हजा है; लेकन एक लाख आदिमय<br />

को पांच िमिनट म अकारण मार डालूं,<br />

जनका कोई भी कसूर नहं है! छोटे बचे ह, कू ल<br />

जाने क तैयार कर रहे ह, अपने बते सजा रहे ह। पयां घर म भोजन बना रह ह।<br />

लोग दतर काम के िलए जा रहे ह। इन िनहथे लोग पर, जो सैिनक भी नहं ह,<br />

नागरक ह, जनका कोई हाथ यु म नहं है--इन पर ऐटम बम िगराऊं !<br />

लेकन नहं, यह सवाल नहं उठा। वह जो बाएं घूम दाएं घूम का िशण है, वह सवाल<br />

को न कर देता है। वह एक अंधापन पैदा कर देता है। उसने तो बस िगरा दया और जब<br />

दसरे ू दन सुबह पकार ने उससे पूछा क तुम रात सो सके ? तो उसने कहा: म बहत ु<br />

अछ नींद सोया, यक जो काम मुझे दया गया था वह पूरा कर दया। फर अछ नींद<br />

के िसवाय और या था? जो मेरा कतय था, वह पूरा कर आया, बहत गहर नींद सोया।<br />

ु<br />

एक लाख आदमी जल कर राख होते रहे और उनके ऊपर बम िगराने वाला आदमी रात गहर<br />

नींद सो सका! जर बु बलकु ल पछ द गई होगी। जरा भी बु का नाम-िनशान न रहा<br />

होगा।<br />

तो एक तरफ बुमान लोग ह, उनम साहस नहं है। और एक तरफ साहसी लोग ह, उनम<br />

बु नहं है। इन म दोन म से कोई भी परमामा तक नहं पहंच सकता। इसिलए दरया ने<br />

ु<br />

बड़ ठक बात कह: कोई सूर सुधीर! साहसी और अित बुमान, सुधीर। सुिध जसके<br />

भीतर हो...धी जसके भीतर हो, ा जसके भीतर हो, कोई ावान साहसी! ऐसे अमृत<br />

संयोग जब िमलता है, ऐसा जब सोने म सुगंध होती है, तब परमामा को पाया जाता है।<br />

बान गुरदेव का, कोई झेलै सूर सुधीर।<br />

यहां मेरे पास दोन तरह के लोग आ जाते ह। कोई ह जो बहत ु पंडत ह,<br />

बहत ु सोच वचार<br />

म ह, वे भी बाण को नहं झेल पाते। उनके बीच इतने शा ह क बाण शा म ह िछद<br />

जाता है, उनके दय तक नहं पहंच पाता। उनक समझदार अितशय है क उनके भीतर<br />

ु<br />

साहस तो रह ह नहं गया है। साहसी आ जाते ह तो भी मेर बात गलत समझते ह,<br />

यक साहसी मेर बात सुनकर ह...म वतंता क बात करता हं<br />

ू, वह वछता क बात<br />

समझ लेता है। उसके पास बु नहं है। म ेम क बात करता हं<br />

ू, वह काम क बात समझ<br />

लेता है; उसके पास बु नहं है। म कु छ कहता हं<br />

ू, वह कु छ का कु छ कर लेता है।<br />

सदगु का बाण तो के वल वे ह झेल सकते ह जनम दोन बात ह--साहस हो, सुबु हो।<br />

लागत ह यापै सह...फर तो लग भर जाए, जरा सा भी लग जाए गु का बाण, फर तो<br />

याप जाता है।...रोम-रोम म पीर! रोएं-रोएं म वरह क पीड़ा पैदा हो जाती है। परमामा क<br />

पुकार उठने लगती है। ाथना जगने लगती है।<br />

साध सूर का एक अंग, मना न भावै झूठ।<br />

साध न छांड़ै राम को, रन म फरै न पूठ।।<br />

कहते ह क साधु और सूर म एक बात क समानता है क दान के मन को झूठ नहं भाता।<br />

साथ न छांड़ै राम को, रन म फरै न पूठ।। जैसे शूरवीर यु के मैदान से पीठ नहं फे रता।<br />

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चाहे कु छ भी हो जाए, बचे क जाए जीवन, भागता नहं, लौट नहं पड़ता, पीठ नहं<br />

दखाता। वैसे ह राम क खोज म जो चला है, चाहे वरह कतना ह जलाए, अंगार पर<br />

चलना पड़े तो भी लौटता नहं है। लौट ह नहं सकता। लौटना असंभव है, यक वे अंगारे<br />

जलाते भी है और शीतल भी करते ह। बड़े वरोधाभासी ह। वे कांटे चुभते भी ह और भीतर<br />

एक बड़ िमठास भी भर जाते ह। नीम कड़वी भी है और शु भी करनी है।<br />

दरया सांचा सूरमा, अरदल घालै चूर।<br />

राज थापया राम का, नगर बसा भरपूर।।<br />

दरया सांचा सूरमा...। वह है सचा योा, जो अपने भीतर के शुओं को समा कर दे।<br />

बाहर के शुओं को तो कौन कब समा कर पाया है! और बाहर के शुओं को समा करो<br />

तो नए शु पैदा हो जाते ह। और बाहर के शुओं पर वजय भी पा लो तो भी वजय कोई<br />

ठहरने वाली नहं है। जो आज जीता है, कल हार जाएगा। जो आज हारा है, कल जीत<br />

जाएगा।<br />

बाहर तो जंदगी ितपल बदलती रहती है। वहां तो कु छ शात नहं है, ठहरा हआ ु नहं है--<br />

जलधार है। लेकन भीतर यु है--और भीतर के योा बनना है! वहां शु ह, असली शु<br />

वहां ह, काम है, लोभ ह, मोह है...हजार शु ह। इस सब को जो जीत लेता है, इन<br />

सबका जो मािलक हो जाता है, वह उस बड़े मािलक से िमलने का हकदार है।<br />

मािलक बनो, छोटे तो बड़े मािलक से िमल सकोगे। उतनी पाता अजत करनी चाहए।<br />

मािलक से िमलने के िलए कु छ तो मािलक जैसे हो जाओ। साहब से िमलने के िलए कु छ तो<br />

साहब जैसे हो जाओ। कु छ तो भुता तुहारे भीतर हो, तो भु के ार पर तुहारा वागत<br />

हो सके ।<br />

राज थापया राम का, नगर बसा भरपूर। अपने भीतर तो राम का राज थापत करो। अभी<br />

तो काम का राज है तुहारे भीतर। राम का राज थापत करो। अभी तो तुहारे भीतर<br />

कामनाएं ह कामनाएं ह, और खींचे िलए जाती ह और तुम बंधे कै द क तरह घिसटते हो।<br />

काम से िघरा हआ ु िच सारा गौरव खो देता है,<br />

सार गरमा खो देता है। लेकन यान रहे<br />

क काम हो क ोध हो क लोभ हो क मोह हो, इह मार नहं डालना है, इह<br />

पांतरत करना है। मार डालोगे तो तुमने अपने ह ऊजा के ोत को न कर दया। यक<br />

ोध ह जब यान से जुड़ जाता है तो कणा बनता है। ोध को काट नहं डालना है,<br />

यान से जोड़ना है। होिशयार तो वह है जो जहर को भी औषिध बना ले। सचा सुधी तो<br />

वह है जो पथर को भी सीढ़यां बना ले, माग क बाधाओं को भी जो उपयोग कर ले,<br />

उनका सहयोग ले ले।<br />

जो बु ह वे भीतर के शुओं को मारने म लग जाते ह। और सदय से धम के नाम पर<br />

ू<br />

ऐसे ह बुओं ु का राय रहा है। भीतर के शुओं को मार सकते हो,<br />

मगर मारकर तुम<br />

पाओगे क तुमने अपने ह अंग काट दए।<br />

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बाइबल कहती है क जो हाथ तुहारा चोर करे उस हाथ को काट दो। यह तो ठक। लेकन<br />

यह हाथ दान दे सकता था; अब दान कै से दोगे? और जो आंख बुरा देखे वह आंख फोड़<br />

दो, ठक; लेकन यह आंख तो इस जगत म परमामा को देखती है; अब परमामा को<br />

कै से देखोगे? और आंख तो तटथ है। आंख न तो कहती है बुरा देखो न कहती है भला<br />

देखो। आंख तो िसफ देखने क सुवधा है। तुम जो देखना चाहते हो वह देखो। अगर<br />

परमामा देखना चाहते हो तो आंख परमामा को देखने का साधन बन जाती है।<br />

इसिलए म इस तरह क कहािनय को सहमती नहं देता। कहानी है क सूरदास ने अपनी<br />

आंख फोड़ लीं। सूरदास के वचन मुझे काफ भरोसा दलाते ह क इस तरह का काम सूरदास<br />

कर नहं सकते और कया हो तो उनका सारा जीवन यथ हो जाता है। सूरदास ने कृ ण के<br />

सदय के ऐसे यारे गीत गाए ह; यह असंभव है क सूरदास ने अपनी आंख फोड़ ली ह--<br />

इसिलए, यक आंख वासना म ले जाती ह। आंख वासना म ले भी नहं जाती कसी को।<br />

सूरदास जैसे य को तो बात समझ म आ ह गई होगी। आंख वहं वासना म ले जाती<br />

ह? वासना भीतर होती है तो आंख वासना का साधन बन जाती ह। और ाथना भीतर हो तो<br />

आंख ाथना का साधन बन जाती ह। तुहारे हाथ म तलवार है, इस से तुम चाहो कसी क<br />

जान ले लो और चाहे कसी क जान ली जा रह हो तो बचा लो। तलवार तटथ है।<br />

सार इंयां तटथ ह। इहं कान म उपिनषद सुने जाते ह, इहं आंख से सुबह उगता<br />

सूरज देखा जाता है। इहं आंख से चोर खजाने खोजता ह दसर<br />

ू के । इहं आंख से लोग<br />

ने अपने भीतर के खजाने खोज िलए ह। सब तुम पर िनभर है। तो भीतर के शुओं को<br />

जीतना तो जर है, मारना नहं है। मार ह दया तो फर जीत या? मारे हए पर जी का<br />

ु<br />

कोई अथ होता है?<br />

एक चाय-घर म लोग गपशप म लगे ह। एक सैिनक यु से लौटा है, वह बड़ बहादर हांक<br />

ु<br />

रहा है। वह कह रहा है क मने एक दन म पचास िसर काटे, ढेर लगा दया िसर का।<br />

मुला नसन बहत ु देर से सुन रहा है। उसने कहा:<br />

यह कु छ भी नहं। म भी यु म गया<br />

था अपनी जवानी म। एक दन म मने हजार आदिमय के पैर काट दए थे। सैिनक ने कहा:<br />

पैर! कभी सुना नहं, यह भी कोई बात है? िसर काटे जाते ह, पैर नहं।<br />

मुला ने कहा। म या करता, िसर तो कोई पहले ह काट चुका था!<br />

मर के अगर तुम पैर काट भी लाए तो कोई वजेता नहं हो। अगर तुमने मार ह डाला<br />

अपने भीतर तो तुम कु छ बुमान नहं हो। और तुम अपने भीतर जनको शु समझकर<br />

मार डाले हो, उनको मारने के बाद पाओगे: तुहारे जीवन क सार ऊजा के ोत सूख गए।<br />

इसिलए तुहारे संत के जीवन म न उलास है, न उसव है, न आनंद है। एक गहन<br />

उदासी है। तुहारे संत के जीवन म कोई सृजनामकता भी नहं है। उनसे कोई गीत भी नहं<br />

फू टते। उनसे कोई नृय भी हनीं जगता। यक जो ऊजा गीत बन सकती थी और नृय बन<br />

सकती थी, उस ऊजा को तो वे न करके बैठ गए।<br />

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उनके जीवन म कोई कणा भी नहं दखाई पड़ती। यक ोध को मार दया, कणा पैदा<br />

कहां से हो?<br />

और म तुमसे कहता हं<br />

ू: जसने कामवासना को जला डाला अपने भीतर, वह चय को<br />

उपलध नहं होता; वह िसफ नपुंसक<br />

हो जाता है। और नपुंसक<br />

होने म और चार होने<br />

म बहत ु फक है,<br />

जमीन आसमान का फक है। उस से यादा कोई फक और या होगा?<br />

स म ईसाइय का एक संदाय था जो अपनी जननयां काट डालता था। या तुम उनको<br />

चार कहोगे? जननयां काटने से या कामवासना चली जाएगी, आंख फोड़ने से या<br />

तुम सोचते हो प क आकांा चली जाएगी? कान फोड़ने से या तुम सोचते हो भीतर<br />

विन का आकषण समा हो जाएगा? काश, इतना आसान होता! तब तो धािमक हो जाना<br />

बड़ सरल बात होती: चले गए अपताल, करवा आए कु छ आपरेशन, हो गए धािमक। बस<br />

सजन क जरत होती, सदगुओं क नहं।<br />

सदगु काटता नहं, सदगु पांतरत करता है। अनगढ़ पथर को िमटा नहं देना है;<br />

उसको गढ़ना है, उस म से मूित कट करनी है। मूित िछपी है उस म। तुहारे ोध म<br />

कणा क मूित िछपी है; थोड़ छानने क, छनावट क जरत है। और तुहारे काम क<br />

ऊजा ह तुहार राम क ऊजा है। ये तुहार संपदाएं ह। ये शु ह अभी, यक तुम<br />

जानते नहं कै से इनका उपयोग कर। जस दन तुम जान लोगे कै से इनका उपयोग कर,<br />

यह तुहारे सेवक हो जाएंगे।<br />

आज से हजार साल पहले, वेद के जमाने म, आकाश म बजली ऐसी ह कधती थी, ऐसी<br />

ह जैसी अब कधती है; लेकन तब आदमी कं पता था, थरथराता था, सोचता था क इं<br />

महाराज नाराज हो रहे ह, क इं महाराज धमक दे रहे ह। वभावतः, समझ म आती है<br />

बात। पांच हजार साल पहले बजली के संबंध म हम कु छ पता नहं था। और जब बजली<br />

आकाश म कड़कती होगी तो जर छाती धड़कती होगी। घबड़ाहट होती होगी। कोई याय<br />

चाहए।<br />

तो एक ह याय मालूम होती थी क इंधनुष...जैसे क इं ने अपने धनुष पर बाण<br />

चढ़ाया हो। नाराज है इं। कु छ भूल हो गई हम से। लोग घुटन पर िगर पड़ते हगे और<br />

ाथना करते हगे।<br />

अब कोई बजली क ाथना नहं करता। अब भी बजली चमकती है, मगर तुम घुटन पर<br />

िगर कर ाथना नहं करते। अब तुम भलीभांित जानते हो क बजली या है। अब तो<br />

बजली तुहारे घर म सेवा कर रह है; बटन दबाओ और बजली हाजर और कहती है: जी<br />

हजूर, आा! बटन दबाओ, पंखा चले। बटन दबाओ और बजली चले। बटन दबाओ,<br />

रेडयो चले। बटन दबाओ, टेलीवजन शु हो जाए। अब तो बजली तुहारे घर क दासी है।<br />

अब आकाश क बजली को तुम इंधनुष का या इं का ोध और कोप नहं मानते। अब तो<br />

बात खतम हो गई है। अब तो ये कहािनयां बच को पढ़ाने योय हो गई ह। अब तो बचे<br />

भी इन पर भरोसा न करगे।<br />

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जैसे ह हम कसी बात को पूरा-पूरा जान लेते ह, हम उस के मािलक हो जाते ह। बाहर<br />

क बजली तो वश म आ गई है, भीतर क बजली अभी वश म नहं आई है। भीतर क<br />

बजली का नाम कामवासना है। वह जीवंत वुत है। अब तक के धािमक लोग उस से डरे<br />

रहे, घबड़ाएं रहे, कं पते रहे। जाएगी? आंख फोड़ने से या तुम सोचते हो प क आकांा<br />

चली जाएगी? कान फोड़ने से या तुम सोचते हो भीतर विन का आकषण समा हो<br />

जाएगा? काश, इतना आसान होता! तब तो धािमक हो जाना बड़ सरल बात होती: चले<br />

गए अपताल करवा आए कु छ आपरेशन, हो गए धािमक। बस सजन क जरत होती,<br />

सदगुओं क नहं।<br />

सदगु काटता नहं, सदगु पांतरत करता है। अनगढ़ पथर को िमटा नहं देना है;<br />

उसको गढ़ना है, उस म से मूित कट करनी है। मूित िछपी है उस म। तुहारे ोध म<br />

कणा क मूित िछपी है; थोड़ छानने क, छनावट क जरत है। और तुहारे काम क<br />

ऊजा ह तुहार राम क ऊजा है। ये तुहार संपदाएं ह। ये शु ह अभी, यक तुम<br />

जानते नहं कै से इनका उपयोग कर। जस दन तुम जान लोगे कै से इनका उपयोग कर,<br />

यह तुहारे सेवक हो जाएंगे।<br />

आज से हजार साल पहले, वेद के जमाने म, आकाश म बजली ऐसी ह कधती थी, ऐसी<br />

ह जैसी अब कधती है; लेकन तब आदमी कांपता था, थरथराता था, सोचता था क इं<br />

महाराज नाराज हो रह ह, क इं महाराज धमक दे रह ह। वभावतः, समझ म आती है<br />

बात। पांच हजार साल पहले बजली के संबंध म हम कु छ पता नहं था। और जब बजली<br />

आकाश म कड़कती होगी तो जर छाती धड़कती होगी। घबड़ाहट होती होगी। कोई याया<br />

चाहए।<br />

तो एक ह याया मालूम होती थी क इंधनुष...जैसे क इं ने अपने धनुष पर बाण<br />

चढ़ाया हो। नाराज है इं। कु छ भूल हो गई हम से। लोग घुटन पर िगर पड़ते हगे और<br />

ाथना करते हगे।<br />

अब कोई बजली क ाथना नहं करता अब भी बजली चमकती है, मगर तुम घुटन पर<br />

िगर कर ाथना नहं करते। अब तुम भलीभांित जानते हो क बजली या है। अब तो<br />

बजली तुहारे घर म सेवा कर रह है; बटन दबाओ और बजली हाजर और कहती है: जी<br />

हजूर, आा! बटन दबाओ, पंखा चले। बटन दबाओ और बजली चले। बटन दबाओ,<br />

रेडओ चले,। बटन दबाओ, टेलीवजन शु हो जाए। अब तो बजली तुहारे घर क दासी<br />

है। अब आकाश क बजली को तुम इंधनुष का या इं का ोध और कोप नहं मानते। अब<br />

तो बात खतम हो गई है। अब तो ये कहािनयां बच को पढ़ने योय हो गई ह। अब तो<br />

बचे भी इन पर भरोसा न करगे।<br />

जैसे ह हम कसी बात को पूरा-पूरा जान लेते ह, हम उसके मािलक हो जाते ह। बाहर क<br />

बजली तो वश म आ गई है, भीतर क बजली अभी वश म नहं आयी है। भीतर क<br />

बजली का नाम कामवासना है। वह जीवंत वुत है। अब तक के धािमक लोग उससे डरे<br />

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रहे, घबड़ाए रहे, कं पते रहे। उनके कं पन से कु छ फायदा नहं हआ है। और उसक घबड़ाहट<br />

ु<br />

से बहत नुकसान हआ है। जो जानते ह वे तो कह<br />

ु ु : इस भीतर क वुत को भी बदला जा<br />

सकता है। वह भी तुहार सेवका हो सकती है।<br />

जब कामवासना तुहार सेवा म रत हो जाती है तो चय। जब तब तुम कामवासना क<br />

सेवा करते हो अचय। भेद इतना ह है: कौन मािलक? इससे सब िनभर होता है।<br />

कामवासना को काट डालो, काटना बहत आसान है। बहत आसान है<br />

ु ु ! तुम अजत सरवती<br />

के पास जा सकते हो। बड़ा आसान है। कामवासना को काट डालना। तुहार जननयां काट<br />

जा सकती ह, तुहारे शरर के भीतर हारमोन जनसे क कोई पुष होता है, कोई ी होती<br />

है, वे हारमोन िनकाले जा सकते ह, नए हारमोन डाले जा सकते ह। तुह बलकु ल<br />

कामवासना से र कया जा सकता है। मगर तुम यह मत सोचना क इस से तुम महावीर<br />

हो जाओगे, क इस से तुम बु हो जाओगे, क इस से तुहारे भीतर दरया क तरह<br />

आनंद क लहर उठने लगगी, क मीरा क तरह तुम नाच उठोगे। कु छ भी नहं इस से तुम<br />

एक कोने म बलकु ल सुत होकर बैठ जाओ। तुहारा जीवन एक महा उदासी से िघर<br />

जाएगा। तुहार जंदगी अमावस क रात होगी, पूणमा का चांद नहं। तुम िसफ उदास और<br />

सुत हो जाओगे। तुम मुदा हो जाओगे।<br />

और तुम इस बात को भलीभांित जानते हो। न जानते होओ तो गांव के कसान से पूछ<br />

लेना। आखर सांड म और बैल म फक या है? या बैल को तुम चार समझते हो?<br />

सांड़ क रौनक, सांड़ का रंग, सांड़ क शान! और कहां दन दर बैल। मगर कसान ने<br />

हजार साल से यह तरकब िनकाल ली क अगर सांड़ को बिधया कर दो तो दन हन हो<br />

जाता है। सांड़ को जरा जोड़कर देखो बैलगाड़ म, न तुम बचोगे न बैलगाड़ बचेगी। कसी<br />

गढे म पड़े, हडयां तुहार टट ू चु क हगी, बैलगाड़ म चाहे हल बखर म, जो चाहो<br />

करो।<br />

मनुय दन हो जाता है अगर कामवासना को काट दया जाए, ोध को अगर काट दया<br />

जाए, लोभ को अगर काट दया जाए, तो बहत दन हो जाता है। उस दनता क तुम ने<br />

ु<br />

बहत पूजा क है। म तुह याद दलाना चाहता हं<br />

ु ू: बंद करो अब यह पूजा! दन मनुय के<br />

दन गए। अब महमाशाली मनुय के दन आने दो! अब उस मनुय के दन आने दो--जो<br />

ऊजाओं का पांतरण करेगा, दमन नहं; जो हर ऊजा का उपयोग करेगा।<br />

और म तुमसे कहता हं<br />

ू: परमामा न तुह जो भी दया है, िनत ह यथ नहं दया है।<br />

परमामा पागल नहं है। अगर उस ने कामवासना द है तो जर उस म िछपा कोई खजाना<br />

होगा। जरा खोदो, जरा खोजो। अगर ोध दया है तो जर ोध म िछपी हई कोई ऊजा<br />

ु<br />

होगी, उसे मु करो। शुता तभी तक मालूम होती है जब तक तुम गुलाम हो इनके । जस<br />

दन मािलक हो जाते हो उसी दन ये सब िम हो जाते ह।<br />

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दरया सांचा सूरमा...वह है सचा...अरदल घालै चूर। राज थापया राम का, नगर बसा<br />

भरपूर। शुओं को पछाड़ देता है। उनक छाती पर बैठ जाता है। उह चार खाने िच कर<br />

देता है। राम के राय को अपने भीतर थापत कर लेता है।<br />

लेकन यान रखना, नगर बसा भरपूर! यह कोई र जगह नहं है राम का राय--नगर<br />

भरपूर बसा है! उसव पैदा होता है। दवाली है, होली है, रंग का योहार उठता है। दए<br />

जलते ह।<br />

राज थापया राम का, नगर बसा भरपूर।<br />

और जब तक तुह कसी के भीतर राम का राय बसा हआ ु दखाई<br />

न पड़े, भरपूर, गुलाल<br />

न उड़ती हो, रंग न उड़ते ह, दए न जलते ह, मृदंग पर थाप न पड़ती हो, बांसुर न<br />

बजती हो--तब तक समझना क साधु नहं है; िसफ कसी तरह अपने को दबाए, कसी<br />

तरह अपने को सहाले बैठा हआ ु मुदा है,<br />

जीवंत नहं है।<br />

रसना सेती उतरा, हरदे कया बास।<br />

दरया बरषा ेम क, षट ऋतु बारह मास।।<br />

सुनते हो, यारा वचन:। रसना सेती उतरा! जब तुहार जीभ पर ह राम का नाम रहेगा<br />

तब तक कु छ न होगा। दय म उतर जाए। रसना सेती उतरा, हरदे, कया बस। जब<br />

तुहारे दय म उतर जाए राम। वरह क आग ऐसी जले क ऐसी जले जल जाए सब कु छ<br />

मन का--वचार, कपनाएं, मृितयां, शोरगुल, भीड़-भाड़--और तुहारे भीतर शांित हो<br />

जाए। और शद राम का सवाल नहं है, भाव का सवाल है। राम शद तो जीभ पर ह<br />

रहेगा। राम शद को तुम दय म नहं ले जा सकते; दय म शद जाने का कोई उपाय ह<br />

नहं है। वहां तो के वल भाव होते ह।<br />

लेकन तुम समझते हो। भाव को तुम पहचानते हो। कोई भी शद शद बनने के पहले भाव<br />

होता है। भाव शद क आमा है; शद भाव का शरर है। शद क खोल तो जाने दो, भाव<br />

म डोलो, भाव क मती म उतरो।<br />

रसना सेती उतरा, हरदे कया बास।<br />

और जब भी तुहारे दय म भाव क तरंग उठने लगेगी, वह चमकार घटेगा: दरया बरषा<br />

ेम क, ेम क वषा हो जाएगी तुहारे ऊपर। होती ह रहेगी। फर बंद नहं होने वाली<br />

है।...षट ऋतु बारह मास। छह ऋतुओं म, बारह महने वषा होती ह रहेगी, फर ऐसा नहं<br />

क वषाकाल आया और गया, क आषाढ़ म बादल िघरे और फर खो गए। फर आषाढ़ ह<br />

आषाढ़ है। फर यह ेम क वषा होती ह रहती है।<br />

लेकन या तुह तुहारे संत म ेम क ऐसी वषा होती हई ु मालूम पड़ती है?<br />

या तुहारे<br />

मंदर म तुह ेम भरपूर बहता हआ ु मालूम पड़ता है?<br />

ेम से र तुहारे मंदर ह। ेम<br />

से शूय तुहारे चच, तुहारे िगरजे, तुहार मजद, तुहारे गुारे ह। ेम से र<br />

तुहारे साधु-संत ह। हां, उदासी जर है। एक हताशा है। एक अंधेरा जर उनक आमा पर<br />

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छाया है, मगर रोशनी नहं मालूम होती है। और यह धम का प समझ जाने लगा है।<br />

सदय-सदय से चूंक<br />

यह चलता रहा है, अब धीरे-धीरे हम सोचने लगे यह धम है।<br />

यह धम नहं है; यह अधम से भी बदतर है। यह आतकता नहं है; यह नातकता से<br />

भी िगर हई अवथा है। नातक तो कभी आतक हो भी<br />

ु<br />

जाएं; ये तुहारे तथाकिथत<br />

धािमक लोग कभी आतक न हो पाएंगे। इहने तो जीवन को बलकु ल गलत से ह<br />

पकड़ िलया है। इनका परमामा जीवन के वरोध म है। परमामा कहं जीवन के वरोध म<br />

हो सकता है? परमामा तो जीवन का रचनाकार है। यह तो उसी का गीत है, उसी क<br />

कवता है। यह तो उसी ने रंगा है िच। िचकार कहं अपने िच के वरोध म हो सकता है?<br />

मूितकार कहं अपनी मूित के वरोध म हो सकता है? नतक अपने नृय के वरोध म, तो<br />

फर नाचे ह य?<br />

दरया बरषा ेम क, षट ऋतु बारह मास।<br />

फर तो ेम क वषा होगी, उसव होगा, सावन िघरेगा और जाएगा नहं।<br />

झर-झर बरसे कणा-घन;<br />

सर-सर-सार िसहरे तृणन;<br />

झर-झर-झर बरसे कणा-घन!<br />

नाद-िनरत, अित विनत गगन मन;<br />

अविन मृदंग घोर सुन उमन;<br />

हरत भरत िनत िचमय चेतन;<br />

िसहर-िसहर हरषे मृय कण;<br />

झर-झर-झर बरसे कणा-घन;<br />

सर-सर-सर िसहरे तृणन।<br />

सन-सन-सनन समीरण रंगण,<br />

झींगुर झंकृ ित कं कण िसंजन,<br />

करवन उपवन राज मंथन,<br />

हहरा हर-हर-हहर-भंजन<br />

झर-झर-झर बरसे कणा घन;<br />

सर-सर-सर िसहरे तृण तन।<br />

तरण-वसालय धरण काल ण<br />

शांत, तृ पाकर घन तपण;<br />

ले अंबर का अय समपण--<br />

थर-थर-थर वसुधा हल आंगण<br />

कं पत भू-पांगण;<br />

झर-झर-झर बरसे कणा घन;<br />

सर-सर-सर िसहरे तृण-मन।<br />

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बरसने दो! खोलो दय को। ेम के मेघ को बरसने दो! तो ह तुम जानोगे क परमामा है।<br />

नाचो गाओ, गुनगुनाओ, डोलो! मती के पाठ सीखो। मताने ह, दवाने ह, के वल<br />

उसको जान पात ह; बाक उसक बात करते रह भला, लेकन उनक बात तोतारटंत ह।<br />

उनक बात का कोई भी मूय नहं है। उनक बात म कोई अथ नहं है।<br />

दरया हरदे राम से, जो कभु लागे मन।<br />

लहर उठ ेम क, य सावन बरषा घन।।<br />

अगर एक बार मन जुड़ जाए, एक बार तुहारा दय और राम से जुड़ जाए...लहर उठे ेम<br />

क! तो तुम से ेम बहेगा। य सावन बरषा धन! जैसे सावन म वषा होती है ऐसे।<br />

लेकन धम के नाम पर एक से एक झूठ चल रहे ह। धम के नाम पर ेम का वरोध चलता<br />

है। धम के नाम पर जीवन म कु छ भी हरा न रह जाए, इसक चेा चलती है, सब सूख-<br />

साख जाए! धम के नाम पर बिगय क शंसा नहं है, मथल के गीत गाए जा रहे ह।<br />

जन दरया हरदा बचे, हआ ु यान-परगास।<br />

जैसे ह उसका तीर तुहारे दय के बीच पहंच ु जाता है,<br />

उसका भाव तुहारे दय म आ<br />

जाता है...हआ ु यान-परगास...वैसे<br />

ह ान का काश हो उठता है।<br />

हौद भरा जहां ेम का...सरोवर भरा है... तहं लेत हलोरा दास। फर तो हलोर ह हलोर है।<br />

फर तो मती ह मती है।<br />

परमामा जब आता है तो तुह शराबी क तरह मदमत कर जाता है। अमी झरत,<br />

बगसत कं वल! उस परम दशा म, उस अंतर दशा म अमृत झरता है और कमल खलते ह।<br />

अमी झरत, बगसत कं वल, उपजत अनुभव यान। और तभी तुम जानना क ान का<br />

जम हआ<br />

ु , जब तुहारा कमल खले और जब तुहारे भीतर अमृत क वषा का अनुभव हो।<br />

जब तक ऐसा न हो तब तक शाीय शद को अपना ान मत समझ लेना। पांडय को<br />

ा मत समझ लेना।<br />

जन दरया उस देस का, िभन-िभन करत बखान। यप उस परम देश क बात अलग-<br />

अलग लोग ने अलग-अलग ढंग से कहं है; मगर वह देश एक ह है। बु अपने ढंग से<br />

कहते ह, जरथु अपने ढंग से कहते ह और चैतय अपने ढंग से कहते ह। म उसे अपने<br />

ढंग से कह रहा हं और तुह जस दन अनुभव होगा तुम उसे अपने ढंग से कहोगे। ये ढंग<br />

ू<br />

के भेद ह। मगर वह अनुभव एक है। अिभययां अनेक ह।<br />

तुह िनमंण देता हं<br />

ू--छोड़ो उदासी, छोड़ो दमन, छोड़ो जीवन-वरोध। आओ सावन को<br />

बुलाएं।<br />

थम आषाढ़ झड़ है चलो भीग<br />

पालक ऋत क खड़ है चलो भीग<br />

ह मुहरत चौघड़ देखे बना ह<br />

ू<br />

यह िमलन क शुभ घड़ है चलो भीग<br />

पी पुकार ाण पपहा और तुम को<br />

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घ काम क पड़ है चलो भीग<br />

यार वाले इन ण क उ अपी<br />

कु ल उमर से भी बड़ है चले भीग<br />

लाज क चलती मगर संकोच क यह<br />

तोड़ दो जो हथकड़ है चलो भीग<br />

यद हमीं समझ न ये संके त गीले<br />

वयं से धोखाधड़ है चलो भीग<br />

युगल अधर यार क गीली बाई<br />

आज पावस ने पढ़ है चलो भीग<br />

यह तुहारा प पावस म नहाया<br />

आग पर शबनम मढ़ है चलो भीग<br />

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भीगने का िनमंण...यह संयास का िनमंण है। संयास का ार के वल उनके िलए खुला है<br />

जो भीगने को राजी ह। लेकन लोग छोट-छोट चीज को बचा रहे ह। लोग साधारण वषा म<br />

भी कभी भीगते नहं--कहं कपड़े गीले न हो जाएं। कभी साधारण वषा म भी भीगकर देखो,<br />

उसका आनंद बहत ु है। कपड़े तो सूख जाएंगे। तुम कु छ ऐसी कची िमट के पुतले थोड़े ह<br />

हो क बह जाओगे क गल जाओगे। लेकन साधारण वषा म भी लोग छाता लेकर चलते ह।<br />

कु छ लोग तो छाता सदा ह िलए रहते ह--पता नहं कब वषा हो जाए।<br />

मुला नसन छाता लेकर बाजार से गुजर रहा था। वषा होने लगी, मगर उसने छाता न<br />

खोला। दो चार ने लोग ने देखा, उहने कहा क नसन, छाता य नहं खोलते?<br />

नसन ने कहा क छाते म छे द ह छे द ह। तो लोग ने पूछा फर छाता लेकर चले ह<br />

य? तो उसने कहा क मने सोचा कौन जाने राते म वषा हो जाए! कौन जाने कहं वषा<br />

हो जाए।<br />

जहां तक अंतराकाश का संबंध है तुम सब छाते लेकर चल रहे हो, तुम सुरा का इंतजाम<br />

कर के चल रहे हो। यहां मेरे पास भी लोग आ जाते ह, तो म देखता हं छाता लगाए बैठे ह<br />

ू<br />

और सुन रहे ह; हालांक सौभाय से उन के छात म कभी-कभी कु छ छे द होते ह और थोड़<br />

बूंदाबांद<br />

उन पर हो जाती है--उनके बावजूद हो जाती है! मगर छाता लगाए रहते ह।<br />

भीतर के छाते छोड़ने हगे। हंदू, मुसलमान, ईसाई, बौ जैन, ये सब छाते ह। ये सब<br />

सुराएं ह, शद क आड़ म िछपाने के उपाय ह। इन सब क होली जला दो। ये सब छाते<br />

इकठे करके होली जला दो। इस बार जब होली जले तो छाते जला आना। एकबारगी खाली<br />

आदमी हो जाओ, जैसा परमामा ने तुह बनाया। परमामा ने तुह जैन नहं बनाया और<br />

न बौ बनाया और न हंद और न मुसलमान। परमामा ने तो तुह बस खािलस आदमी<br />

ू<br />

बनाया है। एक बार वैसे ह हो जाओ जैसा परमामा ने बनाए है, तो उससे संबंध जुड़ना<br />

आसान हो जाए। और तभी तुम यह िनमंण वीकार कर सकोगे।<br />

थम आषाढ़ झड़ है चलो भीग<br />

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पालक ऋतु क खड़ है चलो भीग<br />

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और तुम मत पूछो क मुहत ू ...कोई मुहत ू क नहं पड़ है। सार घड़यां उसक ह। हर घड़<br />

मुहत है।<br />

ू<br />

ह मुहरत ू चौघड़<br />

देखे बना ह<br />

यह िमलन क शुभ घड़ है चलो भीग<br />

तुम जाकर योितषय को अपने जम-पी मत दखलाओ। मेरे पास लोग आ जाते ह, वे<br />

कहते ह क योितषी महाराज को जम-पी दखलायी थी, उहने कहा क इस जम म<br />

समािध का मुहत ू नहं है। तो म संयास लूं<br />

क नहं? योितषय से पूछ रहे ह समािध का<br />

मुहत<br />

ू ! तुमने समािध को कोई रेसकोस का घोड़ा समझा है, क लाटर क, कोई टकट<br />

समझी है!<br />

खूब होिशयार ह लोग! बचने के कै से कै से उपयोग खोजते ह! मेरे पास लोग आते ह, वे<br />

कहते ह: संयास तो लेना है, लेकन शुभ घड़ म लगे। कौन सी शुभ घड़? परमामा अभी<br />

है, तो यह घड़ शुभ नहं है? सारे दन यारे ह, सारे ण यारे ह, यक सारे दन उस<br />

म पगे ह, सारे दन उस म ह। हर घड़ वह तो है, और तो कोई भी नहं है।<br />

ह मुहरत चौघड़ देखे बना ह<br />

ू<br />

यह िमलन क शुभ घड़ है चलो भीग<br />

यारवाले इस ण क उ अपी<br />

कु ल उमर से भी बड़ है चलो भीग<br />

एक ण भी उस के ेम म तुह भीगने का अवसर आ जाए तो तुहार सार हजार-हजार<br />

जंदिगय क लंबाई यथ हो गई; उसके ेम का एक ण भी शात है। वष जीने का कोई<br />

अथ नहं है; एक ण उसके ेम म जी लेना पया है। सारे जीवन-जीवन क, अनंत-अनंत<br />

जीवन क तृि हो जाती है।<br />

लाज क चलती मगर संकोच क यह<br />

तोड़ दो जो हथकड़ है चलो भीग<br />

मगर बड़ा लाज, बड़ा संकोच--दिनया ु या कहेगी!<br />

म ववालय म वाथ था तो िनयिमत मेरा म था क जब भी वषा हो तो एक<br />

सुनसान राते पर ववालय के, म वषा म भीगने के िलए जाता था। फर धीरे-धीरे एक<br />

और पागल आदमी मेरे साथ राजी हो गया। उस राते पर जो आखर बंगला था वह<br />

ववालय के फजस के ोफे सर का बंगला था। वहं जाकर राता समा हो जाता था।<br />

तो उसी राते क समाि पर बड़े वृ के नीचे बैठकर हे दोन भीगते थे। ोफे सर क पी<br />

और बचे बड़ दया खाते हगे और जब भी वषा होती थी तो वे जर राता देखते हगे,<br />

यक जब भी हम पहंचते ु तो वे खड़कय पर ार पर खड़े हए ु दखाई पड़ते।<br />

फर संयोग क बात, फजस के ोफे सर से कसी ने मेर मुलाकात करवा द। और वे<br />

मेर बात म धीरे-धीरे इतने उसुक हो गए क एक दन मुझे घर भोजन पर िनमंण<br />

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कया। तो मने उनसे कह क मेरे एक िम भी ह, वे सदा आपके घर तक मेरे साथ घूमने<br />

आते ह, उनको भी ले आऊं? तो उहने कहा: उन को भी जर ले आएं। उहने घर जाकर<br />

अपनी पी को बहत शंसा क होगी क दो बहत अदभुत यय को लेकर आ रहा हं। घर<br />

ु ु ू<br />

म लोग बड़े उसुक थे, बड़ तैयारयां क गई। और जब हम दोन को देखा तो सारे बचे,<br />

पी, बह सब वहां से<br />

ू<br />

भाग गए अंदर के कमरे म और इतने जोर से हंसने लगे अंदर के<br />

कमरे म जाकर क ोफे सर को बड़ा सदमा पहंचा<br />

ु , क यह तो बड़ा...।<br />

मने उन से कहा: आप संकोच न कर। हमारा परचय पुराना है। वे कोई हमारे अपमान म<br />

नहं हंस रहे ह; वे िसफ यह देखकर हंस रहे ह क आप बड़ शंसा करके लाए ह और वे<br />

हम जानते ह क ये दोन पागल ह।<br />

बाहर ह भीगने से लोग डर गए ह, तो भीतर तो भीगने क बात ह कहां उठती है! थोड़ा<br />

लाज-संकोच छोड़ो। मीरा ने कहा है: लोग लाज छोड़! पद घुंघ<br />

बांध मीरा नाची रे! सब<br />

लोक लाज छोड़कर नाची! ऐसी ह लोक लाज छोड़ोगे तो नाच पाओगे, तो भीग पाओगे।<br />

यद हमीं समझ न ये संके त गीले<br />

वयं से धोखाधड़ है चलो भीग<br />

युगल अधर यार क गीली बाई<br />

आज पावस ने पढ़ है चलो भीग<br />

और कभी तुह ऐसा संयोग िमल जाए क कोई भीगा हआ आदमी िमल जाए और िनमंण<br />

ु<br />

दे, तो लोक लाज छोड़ देना और बुलाए अपने अंतरगृह म तो जरा झांककर देख लेना।<br />

सदगु का इतना ह अथ है क तुह एक बार याद दला दे--उस सबक जो तुहारे भीतर<br />

भी पड़ा है, लेकन अपरिचत अनजाना।<br />

कं चन का िगर देखकर, लोभी भया उदास!<br />

बड़ अदभुत बात दरया ने कह है। दरया कहते ह: तुम लोभ इयाद क फकर मत करो।<br />

म तुह भीतर उस जगह ले चलता हं<br />

ू--कं चन का िगर देखकर--जहां तुम सोने के हमालय<br />

देखोगे। वहां तुहारा लोभी उदास हो जाएगा अपने आप--यह देखकर क जतना म मांगता<br />

था उस से बहत यादा मुझे िमला ह हआ है<br />

ु ु ! सार वासना िगर जाएगी। यह सू बड़ा<br />

अथपूण है।<br />

लोग तुमसे कहता ह: लोभ छोड़ो तब वहां पहंच ु सकोगे। दरया कहते ह:वहां<br />

आ जाओ और<br />

लोभ इयाद सब छू ट जाएगा। लोभ इसिलए तो है, िभखमंगे तुम इसीिलए तो बने हो क<br />

कु छ तुहारे पास नहं है। एक बार दखाई पड़ जाए क भीतर अनंत संपदा मेर है, फर<br />

कै सा लोभ! लोभ खुद उदास होकर बैठ जाएगा।<br />

कं चन का िगर देखकर, लोभी भया उदास।<br />

जन दरया थाके बिनज, पूर मन क आस।।<br />

फर वहां कहा का यापार! फर वहां सारा लोभ, सार आस, सारे िच के यापार अपने<br />

आप िगर जाते ह।...पूर मन क आस! तुम ने जो मांगा था, उस से हजार गुना िमल गया,<br />

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करोड़ गुना िमल गया। तुमने जो सोचा भी नहं था वह भी िमला। तुम जसक कपना भी<br />

नहं कर सकते थे, सपने भी नहं देख सकते थे, वह भी िमला। तुम मािलक हो बड़े<br />

सााय के । तुम साट हो। परमामा तुहारे भीतर वराजमान है।<br />

मीठे राच लोग सब, मीठे उपजै रोग।<br />

दरया कहते ह: हो सकता है मेर बात तुह कड़वी लग, यक तुह मीठ-मीठ बात<br />

सुनने क आदम हो गई है। तुम िसफ सांवना सुनने के िलए उसुक हो गए हो। तुम<br />

साधुओं के पास जाते हो क वे कसी तरह महम पट कर द।<br />

मीठे राच लोग सब, मीठे उपजै रोग।<br />

लेकन यान रखना, सांवना सब को अछ लगती है, मीठ लगती है; मगर सांवना के<br />

कारण ह तुहारे रोग बच रहे ह, तुहारे रोग नहं िमट पा रहे ह।<br />

िनरगुन कडुवा नीम सा, दरया दलभ ु जोग!<br />

तैयार करो--वरह क पीड़ा को झेलने क! िनरगुन कडुवा नीम सा! बहत ु कड़वी दवा<br />

है,<br />

मगर यह तुह तुहार बीमारय से मु करेगी। यान से कड़वी दवा और कु छ भी नहं है।<br />

वरह से यादा बड़ और कोई पीड़ा नहं है मगर यान क कड़वी दवा ह तुह अमृत के<br />

सरोवर तक पहंचा देती है। और वरह क गहन पीड़ा और वरह क अन ह तुहारे वण<br />

ु<br />

को िनखार देती है। तुह पाता देती है। तुह इस योय बनाती है क परमामा तुहारा<br />

आिलंगन करे।<br />

लेकन यह दलभ जोग है। अगर तुम म साहस हो और समझ हो तो ह यह ांितकार<br />

ु<br />

घटना घट सकती है। और ऐसा नहं है क तुम म साहस और समझ नहं है--िसफ अवसर<br />

दो साहस दो साहस और समझ को िमलने का। सहालो साहस और समझ को साथ-साथ।<br />

और तुहारे जीवन म भी वह परम सौभाय का ण आ सकता है जब तुम भी कह सको--<br />

अभी झरत बगसत कं वल, उपजत अनुभव यान।<br />

जन दरया उस देस का, िभन-िभन करता बखान।।<br />

फर सारे कु रान, सार बाइबल, सारे वेद, सार गीताएं तुह ठक मालूम पड़ेगी, यक<br />

तुम जान लोगे अनुभव से क अलग-अलग भाषाओं म एक ह बात कह गयी है।<br />

अमी झरत, बगसत कं वल! खल सकता है कमल। अमृत भी झर सकता है। सच तो यह है<br />

कमल खला ह हआ ु है,<br />

अमृत झर ह रहा है--अपनी तरफ लौटो। आंख भीतर क तरफ<br />

उलटाओ। भीतर सुनो भीतर गुनो।<br />

आज इतना ह।<br />

◌ःऊट भःः ◌ीभ । एठछन थटएं ढठठथ<br />

◌ृ<br />

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संसार क नींव, संयास के कलश<br />

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चौथा वचन; दनांक १४ माच १९७९; ी रजनीश, पूना<br />

भगवान! खाओ, पयो और मौज उड़ाओ--चावाक का यह िस संसार-सू है। नाचो, गाओ<br />

और उसव मनाओ--यह आपका संयास सू है। संसार सू और संयास सू के इस भेद<br />

को कृ पा कर के हम समझाएं।<br />

बंबई के एक गुजराती भाषा के पकार और लेखक ी कांित भट ने कृ णमूित के वचन म<br />

आए हए बंबई के लोग को बुमा का अक कहा है। ी कांित भट आपसे भी बंबई म<br />

ु<br />

िमल चुके ह और यहां आम म भी आए थे। लेकन उहने आपके पास आने वाले लोग<br />

को कभी बुमान नहं कहा। आप इस बाबत कु छ कहने क कृ पा करगे।<br />

संत क वीणा म इतना रस कस ोत से आता है? और संत क वाणी से इतनी तृि और<br />

आासन य िमलता है?<br />

पहला : भगवान! खाओ, पयो और मौत उड़ाओ--चावाक का यह िस संसार सू है।<br />

नाचो, गाओ और उसव मनाओ--यह आपका संयास सू है। संसार सू और संयास सू<br />

के भेद को कृ पा कर के हम समझाएं।<br />

नरे! खाओ, पयो और मौज उड़ाओ--चावाक के िलए यह साधन नहं है, साय है। बस,<br />

इस पर ह परसमाि है; उसके पार कु छ भी नहं है। जीवन इतने म ह पूरा हो जाता है।<br />

इसीिलए तो उनको चावाक नाम िमला।<br />

यह शद समझने जैसा है। चावाक बना है चा वाक से। चा वाक का अथ होता है--यारे<br />

वचन, ीितकर वचन। अिधकतम लोग को यह ीितकर लगा क बस खाओ, पयो और<br />

मौज उड़ाओ; इसके पार कु छ भी नहं है। सौ म से िनयानबे लोग चावाक के अनुयायी ह--<br />

चाहे वे मंदर जाते हो, मजद जाते ह, िगरजा जाते ह, इससे भेद नहं पड़ता; हंद ू<br />

ह, मुसलमान ह, ईसाई ह, इससे भेद नहं पड़ता। जंदगी उनक चावाक क ह है।<br />

खाना, पीना मौज उड़ाना यह उनके जीवन क परभाषा है, कह चाहे न कह। जो कहते ह,<br />

वे तो शायद ईमानदार ह; जो नहं सकते ह, वे बड़े बेईमान ह। उन वह कहने वाल के<br />

कारण ह जगत म पाखंड है।<br />

म कल ह एक संमरण देख रहा था। महामा गांधी ने पंडत जवाहरलाल नेह के पता<br />

पंडत मोतीलाल नेह को एक प िलखा। यक उह खबर िमली क मोतीलाल नेह<br />

सभा-समाज म, लब म लोग के सामने शराब पीते ह। तो प म उहने िलखा क अगर<br />

पीनी हो तो कम से कम अपने घर के एकांत म तो पीएं! भीड़-भाड़ म, लोग के सामने<br />

पीना...यह शोभा नहं देता।<br />

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मोतीलाल नेह ने जो जवाब दया, वह बहत ु महवपूण है। मोतीलाल नेह ने कहा:<br />

आप<br />

मुझे पाखंड बनाने क चेा न कर। जब म पीता ह हं<br />

ू, तो य घर म िछप कर पऊं?<br />

जब पीता ह हं ू तो लाग को जानना चाहए क म पीता हं ू; जस दन नहं पीऊं गा उस<br />

दन नहं पीऊं गा। आपसे ऐसी आशा न थी क आप ऐसी सलाह दगे!<br />

अब इन दोन म महामा कौन है? इस म मोतीलाल नेह यादा ईमानदार आदमी मालूम<br />

होत ह; इस म महामा गांधी यादा बेईमान मालूम होते ह। महामा गांधी क मानकर ह<br />

तो सारा मुक बेईमान हआ ु जा रहा है--बाहर<br />

कु छ, भीतर कु छ। घर मग लोग शराब पी रहे<br />

ह और बाहर शराब के वपरत यायान दे रहे ह! संसद म शराब के वपरत िनयम बना<br />

रहे ह--वे ह लोग, जो घर म िछप कर शराब पी रहे ह! एक चेहरा िछपाने का, एक चेहरा<br />

बताने का। दखाने के दांत कु छ और, काम म लाने के दांत कु छ और।<br />

लोग को गौर से देखो तो तुम न तो कसी को हंद पाओगे<br />

ू , न कसी को, मुसलमान, न<br />

जैन, न बौ; तुम सब को चावाकवाद पाओगे। फर ये हंदू, जैन, मुसलमान भी जस<br />

वग क आकांा कर रहे ह, वह आकांा बड़ चावाकवाद है! मुसलमान क बहत म<br />

शराब के झरने बहते ह। बेचारा चावाक तो यहं क छोट-छोट शराब से राजी है; कु हड़-<br />

कु हड़ पयो, उससे रोजी है। मगर बहत के फरते कहं कु हड़ से राजी होते ह! झरते<br />

बहते ह; जी भर कर पयो; डु बक मारो, तैरो शराब म, तब तृि होगी! बहत म सुंदर<br />

यां उपलध ह, ऐसी सुंदर<br />

यां जैसी यहां उपलध नहं। यहां तो सभी सदय कु हल<br />

जाता है अभी खला फू ल, सांझ कु हला जाएगा; अभी खला, सांझ पंखुरयां िगर जाएंगी।<br />

यहां तो सब ण भंगुर है।<br />

तो जो यादा लोभी ह और यादा कामी ह, उहने वग क कपना क है। वहां यां<br />

सदा सुंदर<br />

होती ह, कभी वृ नहं होतीं। तुम ने कभी कसी बूढ़े देवता या बूढ़ असरा क<br />

कोई कानी सुनी है? उवशी क कहानी को िलखे हो गई हजार साल, उवशी अब भी जवान<br />

है! वग म य क उ बस सोलह साल पर ठहर सो ठहर, उसके आगे नहं बढ़ती है,<br />

सदय बीत जाती ह। ये कनक आकांाएं ह?<br />

चूंक<br />

मुसलमान देश म समलिगकता का खूब चार रहा है, इसिलए बहत म भी उसका<br />

इंतजाम है। वहां सुंदर<br />

यां ह नहं, सुंदर<br />

छोकरे भी उपलध ह। यह कनका वग है? ये<br />

कस तरह के लोग ह? इनको तुम धािमक कहते हो!<br />

और हंदओं ु के वग म कु छ भेद नहं है;<br />

वतार के भेद हगे, मगर वह आकांाएं ह,<br />

वहं अिभलाषाएं ह। हंदओं ु के वग म कपवृ ह,<br />

जसके नीचे बैठते ह सार इछाओं क<br />

तण तृि हो जाती है, तण, एक ण भी नहं जाता! इतना भी धीरज रखने क<br />

जरत नहं है वहां। यहां तो अगर धन कमाना हो, वष लगगे, फर भी कौन जाने कमा<br />

पाओ न कमा पाओ। एक सुंदर<br />

ी को पाना हो, एक सुंदर<br />

पुष को पाना हो हजार बाधाएं,<br />

पड़गी। सफलता कम असफलता यादा िनत है। लेकन वग म कपवृ के नीचे, भाव<br />

उठा क तण पूित हो जाती है।<br />

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मने सुना है, एक आदमी भटकता हआ ु , भुला-चुका कपवृ के नीचे पहंच ु गया। उसे पता<br />

नहं क कपवृ है। थका-मांदा था तो लेटने क इछा थी, थोड़ा वाम कर ले। मन म<br />

ऐसा खयाल उठा क काश इस समय कहं कोई सराय होती, थोड़ गकया िमल जाता!<br />

ऐसा उस का सोचना था क तण सुंदर<br />

शैया, गददकए अचानक कट हो गए! वह<br />

इतना थका था क उसे सोचने का भी मौका नहं िमला, उस ने यह भी नहं सोचा क ये<br />

कहां से आए, कै से आए अचानक! िगर पड़ा बतर पर सौ गया। जब उठा ताजा-वथ<br />

थोड़ा हआ<br />

ु , सोचा क बड़ भूख लगी है, वहं से भोजन िमल जाता। ऐसा सोचना था क<br />

भोजन के थाल आ गए। भूख इतनी जोर से लगी थी क अभी भी उसने वचार नहं कया<br />

क यह सब घटना कै से घट रह है! भोजन जब कर चुका, तब जरा वचार उठा! नींद से<br />

सुता िलया था, भोजन से तृ हआ ु था,<br />

सोचा क मामला या है, कहां से यह बतर<br />

आया? मने तो िसफ सोचा था! कहां से यह सुंदर<br />

सुवाद ु भोजन आए,<br />

मने तो िसफ सोचा<br />

था! आसपास कहं भूत-ेत तो नहं ह?...क भूत-ेम चार तरफ खड़े हो गए। वह घबड़ाया<br />

कहा क अब मारे गए! बस उसी म मारा गया।<br />

कपवृ के नीचे तण...समय का यवधान नहं होता। ये कहने बनाए हगे कपवृ?<br />

कािमय ने। ये चावाक वादय क आकांाएं ह। साधारण चावाकवाद, साधारण नातक तो<br />

इस पृवी से राजी है। लेकन असाधारण चावाकवाद ह, उनको यह पृवी काफ नहं है;<br />

उह वग चाहए, बहत चाहए, कपवृ चाहए। अलग-अलग धम के अगर वग क<br />

तुम कथाएं पढ़ोगे, तो तुम चकत हो जाओगे। उनके वग म वह सब कु छ है जसका वे<br />

धम यहां वरोध कर रहे ह--वह सब, जरा भी फक नहं है! यह कै बरे नृय का वरोध हो<br />

रहा है और इं क सभा म कै बरे नृय के िसवाय कु छ नहं हो रहा है! और उस इं लोक म<br />

जाने क आकांा है। उसके िलए लोग धूनी रमाए बैठे ह, तपया कर रहे ह, िसर के बल<br />

खड़े ह, उपवास कर रहे ह। सोचते ह क चार दन क जंदगी है, इसे दांव पर लगाकर,<br />

तपया कर के एक बार पा लो, वग तो अनंत-कालीन। तुह वे नासमझ समझते ह,<br />

यक तुम णभंगुर के पीछे पड़े हो; वयं को समझदार समझते ह, यक वे शात के<br />

पीछे पड़े ह। तुमसे वे बड़े चावाकवाद ह। खाओ, पयो और मौज उड़ाओ--यह उनके जीवन<br />

का लय भी है; यहं नहं आगे भी, परलोक म भी।<br />

उनके परलोक क कथाएं तुम पढ़ो, तो वृ ह वहां जनम सोने और चांद के पे ह, और<br />

फू ल हरे जवाहरात के ह। ये कस तरह के लोग ह! हरे-जवाहरात सोने चांद को यहां<br />

गािलयां दे रहे ह, और जो उनको छोड़कर जाता है उसका समान कर रहे ह। और वग म<br />

यह िमलेगा। जो यहां छोड़ोगे, वह अनंत गुना वहां िमलेगा। तो जो यहां छोड़ता है, अनंत<br />

गुना पाने को छोड़ता है। और जस म अनंत गुना पाने क आकांा है, वह या खाक<br />

छोड़ता है!<br />

यहां सौ म िनयानबे य चावाकवाद है। इसिलए चावाक को दया गया शद बड़ा सुंदर<br />

है। धािमक, पंडत-पुरोहत तो उस का कु छ और अथ करते ह; वह अथ भी ठक है। वे तो<br />

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कहते ह क चरने-चराने म जनका भरोसा है--वे चावाक। लेकन मूल शद चा-वाक से बना<br />

है--मधुर शद जनके ह; जनके शद सब को मधुर ह।<br />

चावाक का एक और नाम है--लोकायत। वह भी बड़ा ीितकर नाम है। लोक को जो भाता है<br />

वह लोकायत। अिधक लोग को जो ीितकर लगता है, वह लोकायत लोक। के दय म जो<br />

समाव हो जाता है--वह लोकायत।<br />

यहां धािमक कहे जाने वाले लोग भी धािमक कहां है? तुम जरा सोचना, मगर परमामा<br />

कट हो जाए तो तुम उस से या मांगोगे? जरा सोचना या मांगोगे अगर परमामा कहे<br />

क मांग लो तीन वरदान...यक पुराने समय से हर कहानी म तीन ह वरदान ह! पता नहं<br />

य तीन! तो तुम कौन से तीन वरदान मांगोगे? कसी को बताने क बात नहं, मन म ह<br />

सोचना। और तुह पका पता चल जाएगा क तुम भी चावाकवाद हो। तुहारे तीन वरदान<br />

म चावाक क सार बात आ जाएगी।<br />

धम के नाम पर लोग ने एक आवरण तो बना िलया है पाखंड का, और भीतर? भीतर वे<br />

वह ह जसक वे िनंदा कर रहे ह।<br />

म भी कहता हं<br />

ू: नाचो, गाओ, उसव मनाओ; लेकन नाचना, गाना, और उसव मनाना<br />

गंतय नहं है, लण नहं है, साधन है। साय परमामा है। ऐसे नाचो क नाचनेवाला<br />

िमट जाए। ऐसा गाओ गीत क गीत ह बचे, गायक खो जाए। ऐसे उसव से भर जाओ क<br />

लीन हो जाओ, तलीन हो जाओ। उसी तलीनता म, उसी लवलीनता म परमामा कट<br />

होता है।<br />

म तुमसे यह नहं कहता क खाओ भी मत, पयो भी मत, मौज भी मत उड़ाओ। म कहता<br />

हं<br />

ू: खाओ, पयो, मौज करो! परमामा इस के वपरत नहं है। लेकन इतने पर समा मत<br />

हो जाना। चावाक सुंदर<br />

है, मगर काफ नहं है। सीढ़ बनाओ चावाक क। मंदर क सीढ़<br />

का पथर चावाक से बनाओ; लेकन मंदर म जाना है, मंदर के देवता से िमलन करना<br />

है। और वह देवता उहं को िमल सकता है, जो उसवपूण ह, जनके भीतर गीत क गूंज<br />

है, जनके ओंठ पर आनंद क बांसुर बज रह है; जहने पैर म घूंघर<br />

बंधे ह--भजन के,<br />

अचन के । जनक आंख चांद--तार पर टक ह, जो रोशनी के दवाने ह। तमसो मा<br />

योितगमय! जनक एक ह ाथना है क हे भु, योित क तरफ ले चल! असतो मा<br />

सदगमय। असत से सम क तरफ ले चलूं!<br />

जनके ाण म बस एक ह अभीसा है:<br />

मृयोमा अमृतं मगय! मृयु से अमृत क तरफ से चल! कतनी बार बनाया, कतनी बार<br />

िमटाया...यह खेल बहत ु हो चुका;<br />

अब मुझे शात म लीन हो जाने दे, वलीन हो जाने दे।<br />

अब म थक गया हं ू होने से। यह सुंदर<br />

है तेरा जगत। यह खाना,<br />

पीना मौज उड़ाना--यह<br />

सब ठक...। मगर बचकानी ह ये बात; अब मुझे इनके ऊपर उठा।<br />

बच को खलौन से खेलने दो, लेकन कभी बचकानेपन से ऊपर उठोगे या नहं? और<br />

बच के खलौने भी मत तोड़ो। यह भी म नहं कहता हं क खलौने तोड़ दो। जस दन वे<br />

ू<br />

ौढ़ हगे, वह वे वयं ह खलौन को छोड़ दगे।<br />

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तो मेर बात म और चावाक क बात म बड़ा भेद है। चावाक कहता है, यह तय; म<br />

कहता हं<br />

ू--यह साधन। चावाक कहता है, उसके पार कु छ भी नहं; म कहता हं<br />

ू, इसके पार<br />

सब कु छ है। हां, एक बात म मेर सहमित है क म चावाक का वरोधी नहं हं। यक जो<br />

ू<br />

चावाक के वरोधी ह, वे िसफ तुह पाखंड बनाने म सफल हो सके ह। और म तुह पाखंड<br />

नहं बनाना चाहता। म तुहारे जीवन को दो हसे म नहं बांटना चाहता--क घर के भीतर<br />

कु छ और, और घर के बाहर कु छ आए। म तुह जीवन क एक शैली देना चाहता हं<br />

ू,<br />

जसम पाखंड क गुंजाइश<br />

ह न हो।<br />

तो म चावाक के प म हं<br />

ू; यक चावाक के जो वपरत ह वे पाखंड के समथक हो जाते<br />

ह। लेकन म चावाक पर समा नहं होता हं ू, िसफ चावाक पर शु होता हं। ू चावाक के<br />

िलए संयास जैसी कोई चीज है ह नहं--माया है, झूठ है, असय है, ाण क<br />

जालसाजी है। चावाक के िलए संयास जैसी बात तो िसफ धूत का जाल है। मेरे िलए<br />

संयास जीवन परम सय है, परम गरमा है। चावाक के िलए संसार सय है, संयास<br />

झूठ है। जो चावाक-वरोधी ह। तथाकिथत धािमक, आतक--उनके िलए संसार माया है<br />

और संयास सय है मेरे िलए दोन सय ह। और दोन सय म कोई वरोध नहं है।<br />

संसार परमामा का ह य प है, और परमामा संसार क ह अय आमा है।<br />

म तुह एक अखंड देना चाहता हं<br />

ू, जसम कु छ भी िनषेध नहं है। म तुह एक<br />

वधायक धम देना चाहता हं<br />

ू, जसम संसार को भी आमसात कर लेने क मता है;<br />

जसक छाती बड़ है; जो संसार को भी पी जा सकता है और फर भी जसका संयास<br />

खंडत नहं होगा; जो बीच बाजार म संयत हो सकता है; जो घर म रह कर अगृह हो<br />

सकता है; जो संसार म होकर भी संसार का नहं होता।<br />

तो एक अथ म म चावाक से सहमत और एक अथ म सहमत नहं। इस अथ म सहमत हं<br />

ू<br />

क चावाक बुिनयाद बनाता है जीवन क। लेकन अके ली बुिनयाद से या होगा? मंदर<br />

बनेगा नहं, तो बुिनयाद यथ है। और तुहारे तथाकिथत साधु संत मंदर तो बनाते ह,<br />

लेकन बुिनयाद नहं लगाते ह। उनके मंदर थोथे होते ह। कभी भी िगर जाएंगे; िगरे ह ह,<br />

अब िगरे तब िगरे...। यक जनक कोई नींव कोई नहं है उन मंदर का या भरोसा। उन<br />

मग जरा सहल कर जाना, कहं खुद िगर और तुह भी न लग डूब!<br />

म एक ऐसा मंदर बनाना चाहता हं ू जस म संसार,<br />

संसार क भौितकता नींव बनेगी और<br />

संयास और परमामा क गरमा मंदर बनेगी म तुह एक ऐसी देना चाहता हं जसम<br />

ू<br />

कसी भी चीज का वरोध नहं है, सभी चीज का अंगीकार है। और एक ऐसी कला,<br />

पांतरण का एक ऐसा रसायन देना चाहता हं<br />

ू, जस म हम पथर म भी परमामा क<br />

मूित खोजने म सफल ह जाएं और जहर को अमृत बनाने म सफल हो जाएं।<br />

यह जो सकता है। और जब तक यह नहं होगा, इस पृवी पर दो ह तरह के लोग हगे।<br />

जो ईमानदार हगे, वे चावाकवाद हगे। जो बेईमान हगे, वे आतक हगे, धािमक हगे।<br />

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ये कोई अछे वकप नहं ह क ईमानदार आदमी को तो चावाकवाद होना पड़े और धािमक<br />

आदमी को बेईमान होना पड़े। ये कोई अछे वकप नहं ह। हमने दिनया को चुनने के िलए<br />

ु<br />

कोई ठक-ठक राह नहं द।<br />

म तीसर ह बात कर रहा हं। ू म कहता हं ू: बना बेईमान हए ु धािमक हआ ु जा सकता है।<br />

लेकन तब चावाक को अंगीकार करना होगा। तब चावाक को इनकार नहं कया जा सकता।<br />

खाना, पीना और मौज--जीवन क वाभावकता है। जन ऋषय ने कहा अनं उहने<br />

यह समझा होगा, तभी कहा। अन को जो कह सके ...सोचकर कहा होगा, अनुभव से<br />

कहा होगा। अन को कहने का या अथ हआ ु ? इसका अथ हआ ु क भोजन म भी उस<br />

को ह अनुभव करना। वाद म भी उसका ह वाद लेना। यह चावाक को बदलने क<br />

किमया हई। ु खाओ तो उसे,<br />

पयो तो उसे, मौज मनाओ तो उसके आस-पास। वह भूले!<br />

और परमामा को हमने कहा है रसप--रसो वै सः। और या चाहए? वह रस है। उस का<br />

माण दो। तुहार आंख म उसक रसधार बहे। तुहारे ाण म उसका रस-गीत गूंजे।<br />

तुहारा यव उसके रस क झलक दे, माण बने।<br />

इसिलए कहता हं ू--नाचो, गाओ, उसव मनाओ। इसिलए कहता हं ू क परमामा क तरफ<br />

जब जा ह रहे हो तो रोते-रोते य जाना? जब हंसते हए जाया जा सकता है तो रोते हए<br />

ु ु<br />

य जाना! और अगर रोओ भी, तो तुहारे आंसू भी तुहारे आनंद के ह आंसू होने चाहए।<br />

जलो भी, तो उसक आग म जलना। और जब उसक आग म कोई जलता है, तो आग भी<br />

जलाती नहं, के वल िनखारती है।<br />

चावाक एक पुराना दशन है--अित ाचीन, शायद सवािधक ाचीन। यक आदम मनुय<br />

ने सब से पहले तो खाओ, पयो और मौज मनाओ--इसक ह खोज क होगी। परमामा क<br />

खोज तो बहत बाद म हई होगी। परमामा क खोज के िलए तो एक परकार चाहए।<br />

ु ु<br />

परमामा क खोज तो धीरे-धीरे जब दय शु हआ ु होगा कु छ लोग का...कु<br />

छ लोग क<br />

दयतंी बजी होगी, तब हई होगी।<br />

ु<br />

चावाक आदम दशन है सनातन धम है। शेष सार बात बाद म आई हगी। चावाक को<br />

बुिनयाद बनाओ, यक जो सनातन है और जो तुहारे भीतर िछपा है, जो तुहार<br />

बुिनयाद म पड़ा है, उसको इनकार कर के तुम कभी संपूण न हो पाओगे। उसको इनकार<br />

करोगे तो तुहारा ह एक खंड टट ू जाएगा,<br />

तुम अपंग हो जाओगे।<br />

और अपंग य परमामा तक नहं पहंचता ु , खयाल रखना। सवाग होना होगा। तुह<br />

अपनी सवाग सुंदरता<br />

म ह उसक तरफ याा करनी होगी।<br />

लेकन लोग कट म चावाक नहं ह। अब म पािलयामेट के अनेक सदय को जानता हं<br />

ू,<br />

जो शराब बंद के िलए पीछे पड़े ह--और शराब पीते ह! मने उनसे पूछा भी है क तुम जब<br />

शराब पीते हो, खुद पीते हो, तो शराब बंद के खलाफ म य नहं काम करते? य<br />

शराब बंद के िलए चेा करते हो?तो वे कहते ह: आखर जनता से वोट लेने ह या नहं?<br />

जनता के सामने तो एक चेहरा एक मुखौटा लगा कर रखना पड़ेगा। रह पीने क बात, सो<br />

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वह हम घर म कर सकते ह, िम म कर सकते ह। सभी पीते ह! बाहर हम एक चेहरा<br />

बनाकर रख सकते ह।<br />

म ऐसे नेताओं को भी जानता हं<br />

ू, जो शराब पी कर ह शराब बंद के प म यायान<br />

करने जाते ह!<br />

म एक ववालय म जब वाथ था, तो उसके जो वाइसचांसलर थे--महाशराबी थे। और<br />

शराब बंद के खलाफ यायान दया उहने! और जब यायान दया तो वे इतना पीए<br />

हए ु थे उनक गांधीवाद टोपी दो बार िगर। पहली बार िगर,<br />

तो उहने टटोलकर अपने<br />

िसर पर रख ली। जब दसू र बार िगर...इतने नशे म थे क उहने बगल के आदमी क<br />

टोपी उतारकर अपने िसर पर रख ली!<br />

जब ववालय का दांत समारोह होता था, तो दो ोफे सर उनके घर छोड़ने पड़ते थे<br />

चौबीस घंटे पहले क उनको पीने न द। यक दांत समारोह म वे बड़ गड़बड़ कर देते<br />

थे। जनको बी. ए. क डी देनी है, उनको एम. ए. क डी दे देते। जनको पी. एच. ड.<br />

क डी देनी है, उनको एक. ए. क डी दे देते। जनको पी. एच. ड. क डी िमलनी<br />

है, उनको बी. ए. क डी िमल पाती! ऐसा जब एक बार हो चुका...और फर वहां बीच म<br />

उनको टोकना भी संभव नहं था; वह सबसे बड़े अिधकार थे।<br />

मने उनसे पूछा क कम से कम जस दन शराब बंद के प म आपको बोलना था, उस<br />

दन तो न पीते! उहने कहा: म पऊं न तो म बोल ह नहं सकता। जब पी लेता हं<br />

ू, तभी<br />

तो इस तरह क यथ क बात बोल सकता हं<br />

ू, नहं तो बोल ह नहं सकता। इस तरह क<br />

फजूल क बकवास बना पीए नहं हो सकती।<br />

मोरारजी भाई देसाई के मंमंडल म जतने लोग ह, उनम से कम से कम पचहर ितशत<br />

शराब पीते ह; इससे यादा भला पीते ह। जन लोग ने ठक हसाब लगाया है, वे तो<br />

कहते ह नबे ितशत। लेकन म कहता हं<br />

ू, थोड़ा कम कर के ताक अगर अदालत म भी<br />

मुझे माण देना पड़े तो म दे सकूं<br />

! पचहर ितशत तो िनत पीते ह।<br />

लेकन एक पाखंड है जो धािमक आदमी म पाया जाता है: कहता कु छ करता कु छ, दखता<br />

ु<br />

कु छ होता कु छ।<br />

हमने दो ह वकप छोड़े ह आदमी के िलए: या तो वह शु भौितकवाद हो; वह भी अछा<br />

नहं है, यक उससे जीवन बड़ा सीिमत हो जाता है। आकाश से संबंध टट ू जाता है। पृवी<br />

पर सरकना ह हमारे जीवन क िनयित हो जाती है। फर हम आकाश म उड़ नहं सकते ह।<br />

फर सूय क ओर उड़ान नहं भर सकते।<br />

और या फर पाखंड हमारे हाथ म लगता है। या तो झूठे हो जाते ह ऐसे झूठ क हम याद<br />

भी नहं पड़ता क हम झूठे हो गए ह। अगर कोई झूठ ह झूठ बोलता रहे जीवन-भर, तो<br />

झूठ भी सच जैसा मालूम हो ने लगता है।<br />

एक कव महोदय, कवता पाठ करने के पहले हटर ू को सचेत करते हए ु बोले : देखए, यद<br />

आपने मुझे हट ू कया,<br />

तो म आमहया कर लूंगा।<br />

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यह कथन सुनकर हा-हा ह-ह, कर रहे सारे हटर गंभीर हो गए। थोड़ देर बाद उनम से<br />

ू<br />

एक हटर ू ने कया क या आप सचमुच ह आमहया कर लगे ?<br />

कव महाराज ने कहा: बलकु ल...बलकु ल िनत है यह बात। यह तो मेर पुरानी आदत है।<br />

म तो सादा ऐसा करता रहा हं।<br />

ू<br />

झूठ बोलते-बोलते एक ऐसी सीमा आ जाती है क तुह पहचान म ह न आएगा वयं क<br />

तुम झूठ बोल रहे हो। िनरंतर दोहराए गए झूठ सच जैसे मालूम होने लगते ह। पाखंड धम<br />

बन गया है!<br />

चावाक क वीकृ ित बलकु ल वाभावक है, ाकृ ितक है। सुवाद ु भोजन म पाप या है?<br />

खाने पीने म और मौज उड़ाने म मनुय क गरमा है, महा है।<br />

तुम जरा देखो, पशु भी खाते-पीते ह; पशुओं के खाने पीने म और आदमी के खाने पीने म<br />

फक या है? एक ह फक है क कोई पशु खाने पीने म उसव नहं मनाता। अगर एक कु े<br />

को रोट कु े को िमल गई तो वह भागता है एक कोने म; एकांत खोजता है। कसी को<br />

िनमंण नहं देता। कहं कोई आ न जाए, इस डर से पीठ कर लेता है दसर क तरफ।<br />

ू<br />

मनुय चाहता है िम को बुलाए, यजन के बीच बैठे; भोजन को उसव बना लेता है।<br />

वहां मनुय क संकृ ित है, सयता है।<br />

मने जन वाइसचांसलर का उलेख कया, वे आदमी यारे थे। शराब उहने कभी अके ले<br />

नहं पी। कभी अगर िम उनके घर इकठे न हो पाए तो वे बना पीए सो जाते थे। मने<br />

पूछा: ऐसा य? उहने कहां: अके ले पीने म या अथ? पीने का मजा तो चार के साथ है।<br />

तुम चकत होओगे यह जानकर क शराब पीने वाले लोग, असर शराब नहं पीने वाले<br />

लोग से यादा िमलनसार होते ह, यादा मैीपूण होते ह, यादा उदार होते ह। और<br />

कारण? यक शराब पीने का मजा ह चार के साथ है। अब जो व-मू पीते ह, वे तो<br />

कोई चार के साथ नहं पीएंगे! वे तो हो जाएंगे इकं डे। वे तो िछपकर ह पीएंगे। उनको तो<br />

िछप कर पीना ह पड़ेगा। उनम कसी तरह क मनुयता नहं हो सकती।<br />

मोरारजी देसाई जब जवान थे तो एक लड़क से शाद करना चाहते थे। पता प म नहं थे।<br />

बात इतनी बगड़ गई क पता ने कु एं म कू द कर आमहया कर ली!<br />

मोरारजी को बहत ु लोग ने समझाया क शाद तो अब तुम कर ह लेना जससे करनी है,<br />

लेकन कम से कम अभी कु छ दन तो क जाओ! मगर वे नहं के । पता मर गए,<br />

लेकन तारख जो उहने तय कर ली थी, ठक तीन दन बाद, पता क आमहया के<br />

तीन दन बाद शाद हई। शाद वे करके ह रहे। अब तो कोई वरोध करने वाला भी नहं था।<br />

ु<br />

अब तो अगर महने-पंह दन क जाते तो कु छ हज न था। लेकन एक तरह क<br />

अमानवीयता...।<br />

मोरारजी देसाई क लड़क ने भी आमहया क; उहं के कारण। पता ने भी उहं के<br />

कारण क। और डर यह है क पूरा मुक कहं उनके कारण न करे।<br />

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उनक लड़क देखने-दाखने म सुंदर<br />

नहं थी; वैसी ह रह होगी जैसे वे ह! तो देर तक<br />

लड़का नहं िमल सका। साईस वष क उ म बामुकल उसने एक लड़का खोजा। वह<br />

लड़का भी उसम उसुक नहं था; वह मोरारजी तब चीफ िमिनटर थे बंबई के, उनम<br />

उसुक था क उनके सहारे सीढ़यां चढ़ लगा। मोरारजी को यह पसंद नहं था।<br />

जानते हए ु भलीभांित क उनक लड़क को लड़का िमलना मुकल है...।<br />

उनका ढंग-ढरा<br />

लड़क म था। अब यह बामुकल िमल गया है, कसी बहाने उसे भवय म कोई आशा ह<br />

नहं थी क कोई दसरा लड़का िमल सके गा।<br />

ू<br />

जब अपताल म जली हई लड़क को देखने वे गए मर हई लड़क को देखने गए तो एक<br />

ु ु<br />

शद नहं बोले। डाटर चकत, अपताल क नस चकत! न उनके चेहरे पर कोई भाव<br />

आया; न एक शद बोले। एक िमिनट वहां खड़े रहे, लौट पड़े। कमरे के बाहर आ कर<br />

डाटर से कहा क जैसे ह औपचारकता पूर हो जाए, लाश को मेरे घर के लोग को दे<br />

दया जाए ताक अंये या क जा सके; और चले गए।<br />

ऐसी कठोरता, ऐसी अमानवीयता...नहं, शराबय म नहं िमलेगी। शराबी म थोड़ सी<br />

भलमनसाहत होती है।<br />

वह जो चार िम को बुलाकर भोजन करता है, उसम थोड़ भलमनसाहत होती है, थोड़<br />

िमलन सारता होती है। उसम मैी का भाव होता है।<br />

ऐसे तो पशु पी भी भोजन करते ह; मनुय म और उनम इतना ह भेद है क मनुय<br />

भोजन को भी एक सुसंकार देता है। टेबल है, कु स है, चमच है; बैठने का ढंग है; धूप<br />

बाली गई है; फू ल सजाए गए ह; रोशनी क गई है, दए जलाए गए ह। इस सबके बना<br />

भी भोजन हो सकता है। यह सब भोजन का अंग नहं है; लेकन यह सब भोजन को एक<br />

संकार देता है, एक सयता देता है।<br />

अके ले म एक कोने म बैठकर शराब पी जा सकती है। लेकन जब तुम पांच िम को<br />

बुलाकर, गपशप करके, गीत गा कर पीते हो, तो पीने का मजा और है।<br />

चावाक को इनकार करने के िलए म राजी नहं हं। चावाक मुझे पूरा वीकार है। लेकन<br />

ू<br />

चावाक पर कने को भी म राजी नहं हं। इतना ह काफ नहं है।<br />

ू<br />

िमलनसार होना अछा; खाने पीने को संकार देना अछा; मैी अछ, अगर इतना ह<br />

पया नहं है; परमामा क तलाश भी करनी है।<br />

और चावाक म और परमामा क तलाश करने म मुझे कोई वरोध नहं दखाई पड़ता। सच<br />

तो यह है, मुझे दोन म एक संगित दखाई पड़ती है, एक सेतु दखाई पड़ता है।<br />

म तुमसे नहं कहता पाखंड बनो। म तुमसे कहता हं<br />

ू: सचे रहो। जैसे हो वैसे अपने को<br />

वीकार करो। और इस सरलता और सहजता से ह धीरे-धीरे परमामा क तरफ बढ़ो।<br />

परमामा क तरफ जाने को अकारण असहज मत बनाओ। परमामा तक जाने क याा<br />

जतनी सहजता से हो सके उतनी सुंदर<br />

है।<br />

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दसरा <br />

ू : भगवान! बंबई के गुजराती भाषा के पकार और लेखक ी कांित भट ने<br />

कृ णमूित के वचन म आए हए बंबई के लोग को बुमा का अक कहा है। ी कांित<br />

ु<br />

भट आपसे भी बंबई म िमल चुके ह और यहां आम म भी आए थे। लेकन उहने आपके<br />

पास आने वाले लोग को कभी बुमान नहं कहा। आप इस बाबत कु छ कहने क कृ पा<br />

करगे!<br />

कै लाश गोवामी! ी कांित भट ठक ह कहते ह। कृ णमूित के पास जो लोग इकठे होते<br />

ह वे तथाकिथत बुमान लोग ह ह, यक कृ णमूित क बात बस गणत और तक क<br />

बात है। उसम दय नहं है, उसम भाव नहं है, भ नहं है। उसम जीवन का गीत नहं<br />

है--के वल जीवन का शुक वेषण है। उसम जीवन का नृय नहं है--िसफ नृय का गणत<br />

है। और दोन बात म भेद है। एक तो वीणा कोई बजाए और एक कोई वीणा के, संगीत<br />

को...कागज पर िलपब कया जा सकता है, संगीत क िलप होती है, कागज पर<br />

िलपब कया जा सकता है, उस कागज पर िलपब संगीत का वेषण करे। दोन म<br />

बड़ा भेद है।<br />

कु छ लोग जो वेषणय ह, जो चीज को खंड-खंड करके, टकड़े ु -टकड़े ु करके उनक<br />

याया करने म रस लेते ह, कृ णमूित म उह बहत आकषण मालूम होगा। मेर उसुकता<br />

ु<br />

तक म नहं है, मेर उसुकता ेम म है। मेर उसुकता गणत म नहं है, मेर उसुकता<br />

गीत म है। मेर उसुकता िलपब संगीत म नहं है, वीणा को बजाने म ह। पांडय मेरे<br />

िलए असार है, पागलपन म मेर बड़ ा है।<br />

तो मेरे पास तो ी कांित भट को कै से यह लग सकता है...क यहां बुमा का अक?<br />

यहां तो लगता होगा दवाने इकठे हए ह<br />

ु<br />

यह तो है ह मधुशाला।<br />

, पागल इकठे हए ह<br />

ु<br />

, मताने इकठे हए ु ह!<br />

कृ णमूित के पास जो लोग जा रहे ह वह जमात अहंकारय क है। अगर तुह अहंकारय<br />

क कोई शु जमात देखनी हो तो कृ णमूित के पास िमलेगी। और कृ णमूित भी थक गए ह<br />

उस जमात से, ऊब गए ह। मगर उनके कहने का ढंग, उनके बोलने का ढंग, उनक<br />

तावना ऐसी है क िसवाय उन अहंकारय के कोई दसरा उनके पास कभी इकठा नहं हो<br />

ू<br />

सकता।<br />

कृ णमूित वयं तो ान को उपलध ह, लेकन उनक अिभय शुक है। उनक<br />

अिभय से परमामा रस प है, उसका कोई पता नहं चलता। उनक अिभय से,<br />

तलीनता से भी िमल सकता है सय, इसक कोई संभावना नहं खुलती। उनका वर एक<br />

है; वह यान का वर है--जागक होना है, िच को जागकर देखते रहना है, सजग<br />

होकर।<br />

यह एक माग है--बस एक माग! एक दसरा माग भी है<br />

ू , ठक इसके वपरत; वह ेम का<br />

माग है। डू ब जाना है, लीन हो जाना है। जागक, दरू -दर ू नहं खड़े रहना है;<br />

तलीन हो<br />

जाना है।<br />

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म दोन ह माग क बात कर रहा हं यक जगत म दोन तरह के लोग ह। कु छ ह जो<br />

ू<br />

यान से उपलध हगे। उनके िलए म वेषण भी करता हं। उनके िलए म तक क बात भी<br />

ू<br />

बोलता हं। ू और कु छ ह जो ेम से उपलध हगे। उनके िलए म मादक<br />

गीत भी गाता हं। ू<br />

चूंक<br />

म दोन वपरत बात एक साथ बोलता हं ू, चूंक<br />

दोन वरोधाभास को एक साथ<br />

संगित म लाता हं<br />

ू, जो लोग िसफ सोच-वचार से जीते ह उह मेर बात म वरोधाभास<br />

दखाई पड़गे, असंगित दखाई पड़ेगी। वाभावक, यक कभी जब म महावीर पर बोलता<br />

हं तो शु तक होता हं और जब मीरा पर बोलता हं तो शु अतक होता हं। जो मुझे सुनगे<br />

ू ू ू ू<br />

उह धीरे-धीरे यह लगेगा क इस बात म तो वरोधाभास है, असंगित है। इसिलए तक से<br />

जीने वाला य मेर बात म असंगित पाएगा।<br />

कृ णमूित क बात बड़ संगत है यक वे एक ह वर दोहरा रहे ह पचास वष से। उस<br />

वर म उहने कभी भी हेर-फे र नहं कया। उस वर म उहने कभी भी कई असंगित नहं<br />

क। दो और दो चार, दो और दो चार, दो और दो चार--ऐसा पचास वष से दोहरा रहे ह।<br />

जो मुझे सुनता है, म कभी कहता हं ू, दो और दो चार और कभी कहता हं ू दो और दो पांच<br />

और कभी कहता हं दो और दो तीन<br />

ू<br />

कहता हं ू क दो और दो सदा से एक ह ह,<br />

जोड़ोगे कै से?<br />

, और कभी कहता हं ू दो और दो जुड़ते नहं!<br />

और कभी<br />

तो मेरे पास एक और ह तरह का य इकठे हो रहा है--एक और ह अयथा कार का!<br />

कृ णमूित के पास के वल वे ह लोग इकठे होते ह जह यह ांित है क वे बुमान ह।<br />

पाया या? इकठे होते रहे, सुनते भी रहे, संह भी बढ़ गया सूचनाओं का। िमला या?<br />

तीसीस साल, चालीस-चालीस साल कृ णमूित को सुनने वाले लोग मेरे पास आते ह और<br />

कहते ह सब समझ म तो आ गया, मगर िमला कु छ भी नहं! ऐसी समझ कस काम क?<br />

म तुह समझ नहं देता, म तुह अनुभव देता हं। म तुह यह नहं कहता क इतना जान<br />

ू<br />

लो, इतना जान लो। म कहता हं ू: इतने डू बो, इतने डूबो! म तुह धका देता हं ू सागर म।<br />

जो इस धके को झेलने को राजी ह, वभावतः ी कांित भट को वे कोई बुमान लोग<br />

मालूम न पड़े हगे। और कांित भट वयं पकार ह, लेखक ह, तो वयं भी गणत और<br />

तक से ह सोचते हगे। गणत और तक के पार भी एक वराट आकाश है, इसक उह कोई<br />

खबर नहं।<br />

जो मुझे समझे वे मेर बात म कृ णमूित को भी पा सकत ह। जो कृ णमूित को समझे वे<br />

कृ णमूित क बात म मुझे नहं पा सकते। कृ णमूित को समझगे वे कृ णमूित क बात म<br />

मुझे नहं पा सकते। कृ णमूित का तो छोटा सा आंगन है साफ सुथरा, कृ णमूित क तो<br />

छोट सी बिगया है साफ सुथर। बिगया भी--वटोरया के जमाने क, इंलड क बिगया!<br />

कट छंट, साफ सुथर िसिमकल। एक झाड़ इस तरफ तो दसरा झाड़ ठक उसके ह<br />

ू<br />

अनुपात का, माप का दसर तरफ। लान कटा हआ।<br />

ू ु<br />

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कृ णमूित म बहत ु कु छ है जो वटोरयन है। वे असल म बड़े हए ु इस तरह के लोग के<br />

साथ--ऐनीबीसट, लीडबीटर, इन लोग के साथ बड़े हए। इहने उह पाला पोसा। इहने<br />

ु<br />

उह िशा द। इंलड म बड़े हए। वह छांट उन पर रह गई है।<br />

ु<br />

तुम मेरे बगीचे को देखो, जंगल है! जैसे मेरा बगीचा है वैसा ह म हं।<br />

ू कहं कोई िसिम<br />

नहं, कोई तालमेल नहं। एक झाड़ ऊं चा, एक झाड़ छोटा। राते इरछे -ितरछे । मुा है मेर<br />

मािलन। मुा ीक है। ीक तक ! बहत चेा क उसने शु म क इस तरफ भी ठक वैसा<br />

ु<br />

ह झाड़ होना चाहए जैसा उस तरफ है, दोन म समतुलता होनी चाहए। बहत<br />

ु चेा क<br />

उसने क कसी तरफ झाड़ को काट-छांट कर आकार दया जा सके । लेकन धीरे-धीरे समझ<br />

गई क मेरे साथ यह न चलेगा। चुराकर, चोर से, मेरे अनजाने, पीठ के पीछे िछपाकर,<br />

क ची लेकर वह झाड़ को राते पर लगाती थी। धीरे-धीरे उसे समझ आ गया क यह मेरा<br />

बगीचा जंगल ह रहेगा।<br />

जंगल म मुझे सदय मालूम होता है; बिगया म मौत। आदमी का कटा-छं टा हआ बगीचा<br />

ु<br />

सुंदर<br />

नहं हो सकता। कटे-छंटे होने के कारण ह उसक नैसिगकता न हो जाती है। म<br />

नैसिगक का ेमी हं। और िनसग बड़ा है। िनसग बहत बड़ा है।<br />

ू ु<br />

एक झेन फकर ने एक साट को बागवानी क िशा द और जब िशा पूर हो गई तो वह<br />

परा लेने उसके बगीचे म आया। साट ने एक हजार माली लगा रखे थे। और परा के<br />

दन के िलए तीन वष तैयार क थी। और सोचता था क गु आकर सन हो जाएगा,<br />

कोई भूल चूक न छोड़ थी। यह भूल चूक थी! यह तो बहत बाद म पता चला। बलकु ल<br />

ु<br />

समपेण बिगया पूण थी; यह अपूणता थी। यक पूण चीज म मृयु आ जाती है। जहां<br />

पूणता है वहां मृयु छा जाती है। जब गु आया तो साट सोचता था, अपेा करता था--<br />

बहत ु सन होगा,<br />

आादत होगा; लेकन गु बड़ा उदास होता चला गया; जैसे-जैसे<br />

बिगया म भीतर गया, और उदास होता चला गया। साट ने कहा: आप उदास! मने बहत<br />

ु<br />

मेहनत क है। एक-एक िनयम का परपूणता से पालने कया है।<br />

गु ने कहा: वह चूक हो गई। तुम ने िनयम का इतनी परपूणता से पालन कया है क<br />

सारा िनसग न हो गया। यह बगीचा झूठा मालूम पड़ता है, सचा नहं। और मुझे सूखे पे<br />

नहं दखायी पड़ते। सूखे पे कहां ह? जहां इतने वृ ह वहां एक सुखा पता रात पर नहं<br />

है!<br />

साट ने कहा: आज ह सारे सूखे पे इकठे करवा कर मने बाहर फं कवा दए क आप<br />

आते ह तो सब शु रहे। टोकर उठाकर बूढ़ा गु बाहर गया, राते पर फ क दए गए सूखे<br />

प को ले आया टोकर म भरकर, फ क दए रात पर; आई हवाएं, सूखे पे खड़-खड़<br />

क आवाज करके उड़ने लगे और गु सन हआ। ु उसन कहा:<br />

अब देखते हो, थोड़ा ाण<br />

आया। यह आवाज देखते हो, यह संगीत सुनते हो! ये सूखे प क खड़-खड़, इसके बना<br />

मुदा था तुहारा बगीचा। म फर आऊं गा, साल भर फर तुम फ करो। अब क बार फ<br />

करना क इतनी पूणता ठक नहं, क इतना िनयमब होना ठक नहं, क थोड़ अपूणता<br />

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शुभ है, क थोड़ा िनयम का उलंघन शुभ है, यक ह। तुमने वृ क मौिलकता छन<br />

ली, उनक अतीयता छन ली। कोई वृ कसी दसरे ू वृ जैसा नहं है,<br />

येक वृ बस<br />

अपने जैसा है।<br />

म येक य क िनजता को वीकार करता हं ू, समान करता हं। ू म तुह काट छांट<br />

कर एक जैसे नहं बना देना चाहता। जब म देखता हं क तुहारे भीतर ेम का गुलाब<br />

ू<br />

खलेगा तो म तुम से यान क बात नहं करता। और जब म देखता हं तुहारे भीतर यान<br />

ू<br />

क जूह खलेगी तो म तुमसे गुलाब क बात नहं करता। और चूंक<br />

म कसी से गुलाब क<br />

बात करता हं<br />

ू, कसी से जूह क, कसी से चंपा क और कसी से के वड़े क, मेर बात म<br />

असंगित हो जानी वाभावक है।<br />

मेरे पास तो वह आ सकता है जो मेर हजार-हजार असंगितय को झेलने क छाती रखता<br />

हो। बड़ छाती चाहए! कृ णमूित को सुनने के िलए बहत छोट सी खोपड़ काफ है। बहत<br />

ु ु<br />

छोट खोपड़ चाहए--थोड़ा सा तक आता हो, थोड़ा सा गणत आता हो, थोड़े कालेज कू ल<br />

क पढ़ाई िलखाई हो, कृ णमूित समझ म आ जाएंगे।<br />

मेरे साथ इतने सते म नहं चलेगा। मेरे साथ तो पयकड़ क दोती बनती है। मुझ से<br />

तो नाता ह दवान का जुड़ता है, ेिमयो का जुड़ता है--जो संगित क मांग नहं करते; जो<br />

असंगित म भी संगित देखने का दय रखते ह और जो वरोधाभास म भी सेतु बना लेने क<br />

मता रखते ह। यह एक और ह तरह का जगत है।<br />

कृ णमूित क िशाएं बस िशाएं ह। कृ णमूित एक िशक हो कर समा हो गए, सदगु<br />

नहं हो पाए। और सुनने वाले िशय ह नहं बन पाए, िसफ वाथ रह गए। यहां<br />

वािथय क जगह ह नहं है। म कोई िशक नहं हं और मेरे पास कोई िशा का शा<br />

ू<br />

नहं है। म खुद एक दवाना हं<br />

ू, खुद जसने जी भर के पी है! मुझ से दोती बनाओगे तो<br />

मेरे साथ लड़खड़ा कर चलना सीखना होगा! इसके बीना कोई उपाय नहं है।<br />

इसिलए कै लाश गोवामी, कांित भट ठक ह कहते ह क कृ णमूित के पास बुमा का<br />

अक इकठा होता है। मगर बुमा का अक जरा भी मूय का नहं है, दो कौड़ उसका<br />

मूय नहं है।<br />

कोई पंह वष तक मेरे पास भी उसी तरह वे लोग इकठे होते थे, फर मुझे उनके साथ<br />

छु टकारा करने म बड़ मेहनत करनी पड़। वह बुमा का अक मेरे पास इकठा होता था।<br />

जो लाग कृ णमूित को सुनने जाते ह वे ह मुझे भी सुनने आते थे। करब-करब वे ह लोग!<br />

मुझे उनसे छु टकारा पाने के िलए बड़ मेहनत करनी पड़ बामुकल उन से छु टकारा कर<br />

पाया। यक उहने कृ णमूित का जीवन खराब कया। उहने कृ णमूित के जीवन से जो<br />

लाभ हो सकता था वह नहं होने दया। सार बात बस बु क हो कर रह गई थीं। और म<br />

नहं चाहता था क मेरे पास भी बस वह बात चलती रह।<br />

और एक कठनाई होती है, अगर तुहारे पास एक ह तरह क जमात इकठ हो जाए तो<br />

मुकल हो जाती है। वह जो भाषा समझती है उसी भाषा म तुह बोलना पड़ता है। म<br />

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चाहता था मेरे पास सब रंग, ढंग के लोग ह। म चाहता था मेरे पास इंधनुष हो, सात<br />

रंग के लोग ह। म चाहता था मेरे पास इकतारा न हो, मेरे पास सब तरह के वा ह क<br />

म एक आक ा बनाऊं जसम सारे वा समिलत हो सक<br />

वे लोग जो मेरे पास इकतारा लेकर इकठे हो गए थे उनसे छु टकारा पाने म मुझे बड़<br />

मुकल हई। उनसे छु टकारा पाना जर<br />

ु था, यक उनक जमात जो भाषा समझती थी<br />

वह भाषा मुझे बोलनी पड़ती थी। अब मेरे पास एक जमात है क म जो भाषा बोलता हं<br />

ू<br />

उसी भाषा को समझने के िलए वह राजी है, यक वह मेरे दय को पहचानती है। अब<br />

मेरे शद पर मेरे संयािसय क बहत िचंता नहं करनी पड़ती।<br />

ु<br />

वे मेरे शद म मेरे भाव को<br />

पढ़ते ह। वे मेरे शद म मेरे अथ को सुनते ह। सब मेरा शूय मेरे संयािसय को सुनाई<br />

पड़ने लगा है।<br />

म सन हं<br />

ू, यक अब मुझे भीड़ भाड़ से, आमजन से नहं बोलना पड़ रहा है। अब मने<br />

जो मुझे समझ सकते ह, सुन सकते ह, जो मुझे आमसात कर ले सकते ह, उनको धीरे-<br />

धीरे जुटा िलया है। उह िनमंण दे-देकर मने अपने पास बुला िलया है। अब मेरे पास ऐसे<br />

लोग ह क उनक कोई अपेा नहं है मुझसे क म यह बोलूं,<br />

क ऐसा ह बोलूं।<br />

अब<br />

उनक कोई अपेा ह नहं है। वे मुझे पीने को राजी ह। जैसा म हं वैसा पीने को राजी ह।<br />

ू<br />

आज जो पलाऊं वह पीने को राजी ह। वे यह नहं कहगे क कल तो आप कु छ और ह<br />

पलाते थे, आज कु छ और पलाने लगे! कल कल था, आज आज है। और कल आने वाला<br />

कल होगा। अब उनक िचंता नहं है संगित बठाने क।<br />

यह जरा कठन मामला है--सात रंग के लोग को सहालना, सब शैली के लोग को साथ-<br />

साथ लेकर चलना! इसका मजा भी बहत ु है,<br />

इसक झंझट भी बहत ु है।<br />

कृ णमूित झंझट तो बच गए, लेकन फर जीवन म वे जो करना चाहते थे नहं कर पाए।<br />

कृ णमूित अयंत वषादत ह--अपने िलए नहं; अपने िलए तो दया जल गया, बात पूर<br />

हो गई। उनका वषाद यह है क वे कसी और का दया नहं जला पाए। इसिलए नाराज हो<br />

जाते ह, िचलाते ह, अपना माथा ठक लेते ह, यक लोग समझते ह नहं। लेकन इस<br />

म कसूर िसफ लोग का नहं है। कृ णमूित ने जस तरह क बात कहं ह, उस तरह के<br />

लोग इकठे हो गए। ये वे लोग ह जो बदलने क आकांा ह नहं रखते। ये तो िसफ सुनने<br />

आते ह, ये तो िसफ कु छ और थोड़ बात संगृहत हो जाए, थोड़ा पांडय और बढ़ जाए,<br />

इसिलए आते ह४ उनक वेषण क मता थोड़ और खर हो जाए, इसिलए आते ह।<br />

यह अहंकारय क जमात है, यक कृ णमूित कहते ह कसी को गु बनाने क<br />

आवयकता नहं है, कहं समपण करने क कोई आवयकता नहं है। तो उन लोग क<br />

जमात कृ णमूित के पास इकठ हो जाती है जो समपण करने म असमथ ह और जनका<br />

अहंकार इतना मजबूत है क जो कसी के सामने झुक नहं सकते। उनके िलए कृ णमूित क<br />

बात बड़ा आवरण बन जाती है--बड़ा सुंदर<br />

आवरण! वे कहते ह झुकने क जरत ह नहं है,<br />

इसिलए हम नहं झुकते ह। बात कु छ और है। झुक नहं सकते ह, इसिलए नहं झुकते ह।<br />

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लेकन अब एक तक हाथ आ गया क झुकने क कोई जरत ह नहं है। समपण आवयक<br />

ह नहं है, इसिलए हम समपण नहं करते ह। सचाई कु छ और है। समपण करना हर कसी<br />

के बस क बात नहं है, बड़ा साहस चाहए। अपने को िमटाने का साहस चाहए!<br />

म जो योग कर रहा हं ू वह पृवी पर अनूठा है,<br />

इसिलए ी ांित भट जैसे लोग उसे<br />

नहं समझ पाएंगे। म जो योग कर रहा हं उसे समझने म सदयां लग जाएंगी। अब तक<br />

ू<br />

दिनया ु म बहत ु योग हए ु ह। बु ने एक भाषा बोली--संगत<br />

भाषा; एक तरह के लोग<br />

इकठे हो गए। महावीर ने दसर ू भाषा बोली--संगत<br />

भाषा; दसर ू तरह के लोग इकठे हो<br />

गए। चैतय ने तीसर भाषा बोली--संगत भाषा; तीसर तरह के लोग इकठे हो गए।<br />

चैतय के पास जो लोग इकठे हए ु वे झांझ-मजीरा,<br />

ढोलक-मृदंग ले कर इकठे हए ु , नाचे<br />

गाए। बु के पास जो लोग इकठे हए ु उहने वपसना क,<br />

आंख बंद क, शांत हो कर<br />

बैठे । महावीर के पास जो लोग इकठे हए ु उहने उपवास कया,<br />

शरर क शु क।<br />

अलग-अलग लोग, उनक अलग-अलग विध, उनके अनुकू ल लोग इकठे होते रहे।<br />

म जो योग कर रहा हं ू वह अनूठा है,<br />

कभी कया नहं गया। कभी कसी ने इतनी झंझट<br />

मोल लेना चाह भी नहं। यहां वपसना भी चल रहा है। जो लोग शांत बैठना चाहते ह,<br />

मौन होना चाहते ह, उनके िलए भी ार है। जो लोग नाचना चाहते ह मृदंग क थाप पर,<br />

उनके िलए भी ार है। जो अके ले म, एकांत बांसुर बजाना चाहते ह, उनके िलए भी ार<br />

ह। और जो बहत ु से साथ संगीत म लीन होना चाहते ह उनके िलए भी ार है।<br />

म एक मंदर बना रहा हं<br />

ू, जस मंदर म सभी ार हगे--मजद का भी ार होगा और<br />

िगरजे का भी, और गुारे का भी, मंदर का, िसनागाग का भी--जसम सारे ार हगे।<br />

तुम कहं से आओ, जस ार से तुहार िच हो आओ। भीतर एक ह परमामा वराजमान<br />

है।<br />

यह झंझट है। लेकन बात लगता है बनी जा रह है। बनते-बनते बन रह है; लेकन बनी<br />

जा रह है।<br />

मुला नसन ने अपनी आदत के अनुसार जैसे ह संगीत-समेलन म आलाप भरा, एक<br />

ोता खड़ा हो गया और वन वर म बोला: बड़े िमयां, आप गाने क टाइल बदिलए।<br />

कल म आप ह क तरह गा रहा था तो पटते-पटते बचा।<br />

मुला नसन ने अपनी ह टाइल म गीत ारंभ कया और बोले--महाशय, मेरा खयाल<br />

है क आपका गाने का ढंग घटया रहा होगा। यद हबह मेर टाइल म गाते तो जर<br />

ू ू<br />

पटते।<br />

मेरे पास जो घटत हो रहा है वह अघटत होने जैसी बात है। उसे समझने म सदयां लगगी।<br />

उसे समझने म िसफ बु पया नहं होगी--दय क गहराई चाहए होगी। उसे समझने म<br />

िसफ तक काम नहं देगा, यक मेरे पास जो लोग इकठे हो रहे ह वे बुमा अक नहं<br />

ह--समता का अक ह। उस म उनका तन भी जुड़ा है, उस म उनका मतक भी जुड़ा है,<br />

उस म उनका दय भी जड़ा है, उस म उनक आमा भी जुड़ है। कृ णमूित के पास जो<br />

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लोग इकठे हो रहे ह, वे बुमा के अक ह। मेरे पास जो लोग इकठे हो रहे है वे<br />

समता के अक ह। यह बात और है। यह बड़ा आकाश है। यह कोई छोटा आंगन नहं है।<br />

छोटे आंगन को साफ सुथरा रखा जा सकता है, लीपा पोता जा सकता है। इस बड़े आकाश<br />

को कै से िलपो पोतो, कै से साफ सुथरा रखो? यह तो जैसा है वैसा ह अंगीकार करना होगा।<br />

म िनसग का भ हं। ू मेरे िलए िनसग ह परमामा है। और परमामा<br />

ने जतने प िलए ह<br />

वे सब मुझे वीकार ह। परमामा ने जतने ढंग म अपनी अिभय क है, सब का मेरे<br />

मन म समान है। कृ णमूित के पास भ जाएगा तो कृ णमूित कहगे: गलत! भ म या<br />

रखा है? यह मंदर क पथर क मूित के सामने िसर पटकने से या होगा? भजन-कतन<br />

सब आम-समोहन है। संगीत, संकतन, ये सब अपने को भुलावे के ढंग ह।<br />

मेरे पास भ आयेगा, तो म कहंगा ू क पथर म भी भगवान है,<br />

यक भगवान ह तो<br />

पथर म भी वह होगा! लेकन पथर म तुह तब दखाई पड़ेगा जब तुह अपने म दखाई<br />

पड़ने लगेगा। अयथा पूजा झूठ रहेगी। तुह अपने म नहं दखाई, पड़ता अपनी पी म<br />

नहं दखाई पड़ता, अपने बचे म। नहं दखाई पड़ता, तुह मंदर क मूित म कै से दखाई<br />

पड़ेगा? हां, पथर म भी जर भगवान है, यक भगवान अतव का ह दूसरा नाम है।<br />

और पथर भी है--उतना ह जतना म, जतने तुम हो! तो पथर के होने म ह तो भगवा<br />

है उसक।<br />

मगर पथर म देखने के िलए जरा गहर आंख चाहए पड़ेगी। अभी तो तुहारे पास इतनी<br />

थोथी आंख ह क जीवंत मनुय म भी नहं दखाई पड़ता, पशु-पय म नहं दखाई<br />

पड़ता, वृ म नहं दखाई पड़ता--और पथर म दखाई पड़ जाएगा! फर सभी पथर म<br />

भी नहं दखाई पड़ता। छैनी से कसी ने पथर पर थोड़े से हाथ दए ह, हथौड़ चला द है,<br />

उस म दखाई पड़ता है; या कसी ने कसी पथर पर आकर िसंदर ू पोत दया है,<br />

उसम<br />

दखाई पड़ने लगता है। िसफ िसंदर ू पोतने से!<br />

तुह पता है जब पहली दफा अंेज ने भारत म राते बनाए और मील के पथर लगाए तो<br />

बड़ मुकल खड़ हो गई, यक मील के पथर लगाए, लाल रंग से रंगा। गांव से राते<br />

गुजर और जस पथर पर भी लाल रंग है उसी पर फू ल चढ़ा कर...लोग हनुमान जी<br />

समझते! अंेज बड़ मुकल म पड़ गए क करना या! लोग नारयल फोड़, हनुमान जी<br />

क जय बोल। और अंेज उस पर तो िलख मील का पथर तो मील...कतने मील...आने<br />

वाला नगर कतनी दरू ; लेकन गांव के लोग हर महने दो महने म उस िसंदर ू पोत द,<br />

यक हनुमान जी को िसंदर ू चढ़ाना ह पड़ता है। पत पर पत !<br />

जरा िसंदर पोते दया तो पथर<br />

ू , एकदम हनुमान जी हो जाते ह। और ऐसे तुह हनुमान जी<br />

िमल जाएं कहं राते म तो तुम ऐसे भागोगे...तुहारा तो या, ववेकानंद ने अपने<br />

संमरण म िलखा है क हमालय म याा करते व एक भयंकर बंदर उनके पीछे पड़ गया।<br />

बंदर, कु े इस तरह के ाणय को यूिनफाम से बड़ दमनी है<br />

ु , पता नहं य! पुिलसवाला<br />

िनकल जाए क कु े एकदम भकने लगते ह; पोटमैन, क संयासी, एक यूिनफाम<br />

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भर...यूिनफाम के दमन<br />

ु ! देखा होगा ववेकानंद को गैरक व म चले जाते, बंदर एकदम<br />

नाराज हो गया। एकदम दौड़ा ववेकानंद के पीछे । ववेकानंद शशाली आदमी थे,<br />

हमतवर आदमी थे, लेकन एकदम हनुमान जी पीछे आ जाए...ववेकानंद भी भागे! अपनी<br />

जान बचानी पड़ती है ऐसे मौक पर। ऐसे पथर पर िसंदरू पोतना एक बात है। लेकन<br />

जतने ह ववेकानंद भागे, बंदर और मजा िलया। जब कोई भाग रहा न तो भागते के पीछे<br />

तो कोई भी भागने लगता है। भागने वाले कोई भी िमल जाएंगे फर। बंदर और मजा लेने<br />

लगा। फर ववेकानंद को लगा क अगर म और भागा, तो हमला करेगा। कोई और राता<br />

न देखकर...पहाड़ सनाटा, कोई राता नहं भागने का, बचने का, कोई आदमी दखाई<br />

पड़ता नहं, सोचा अब एक ह उपाय है क डट कर खड़ा हो जाऊं, अब जो कु छ करगे<br />

हनुमान जी सो करगे। लौटकर खड़े हो गए। लौटकर खुद खड़े हए तो बंदर भी लौटकर खड़ा<br />

ु<br />

हो गया। बंदर ह तो ठहरा आखर।<br />

हनुमान जी तुह राते म िमल जाएं तो तुम भी भागोगे। तुम एकदम िगड़िगड़ाने लगोगे क<br />

हनुमान जी कोई नाराज हो गए ह, या बात है? ऐसे जाकर पथर के सामने ाथना करते<br />

थे क हे हनुमान जी, कभी कट होओ।<br />

पथर क पूजा करोगे और अभी तुह मनुय म भी परमामा दखाई पड़ा नहं। मनुय क<br />

तो छोड़ दो, अपने भीतर नहं दखाई पड़ा--िनकटतम जो है तुहारे, तुहारे ाण म बैठ<br />

ाण क भांित, वहां नहं दखाई पड़ा!<br />

तो म भ से कहंगा ू क जर पथर म भी भगवान है,<br />

यक भगवान ह है! पर पहले<br />

अपने म खोजो। और अगर अपने म खोज पाओ तो मंदर क मूित म भी है। मंदर क<br />

मूित म ह य राते के कनारे पड़े अनगढ़ पथर म भी है। फर चार तरफ तुह वह<br />

दखाई पड़ेगा।<br />

मेरे पास तुम जो लेकर आओगे, म उसी का उपाय कं गा क तुहारे िलए सीढ़ बन जाए।<br />

चेा कं गा क तुहारे राह के बीच पड़ा हआ ु जो पथर है,<br />

जसक वजह से तुम अटक<br />

गए हो, वह सीढ़ बन जाए।<br />

कृ णमूित क एक धुन है। उस धुन से इंच भर यहां-यहां वे तुह वीकार नहं करते। उहने<br />

कपड़े पहल से तैयार करके रखे ह। अगर गड़बड़ है तो तुम म गड़बड़ है। कपड़े पहना कर वे<br />

जांच कर लगे। अगर तुह नहं कपड़े ठक बैठ रहे ह तो काट-छांट तुहार क जाएगी,<br />

कपड़ क नहं।<br />

यूनान म एक पुरानी कथा है क एक साट था, वह झक था। उसक झक यह थी क<br />

उसके पास एक सोने का पलंग था, बड़ा बहमूय पलंग था। उस के घर म कोई भी मेहमान<br />

ु<br />

होता तो वह उसी पलंग पर सुलाता। मगर एक उसक झंझट थी। उसके घर कोई मेहमान<br />

नहं होता था। जब लोग को पता चलने लगा, धीरे-धीरे कु छ मेहमान गए और फर लौटे ह<br />

नहं, तो मेहमान ने आना बंद कर दया। मगर कभी-कभी कोई भूल-चूक से फं स जाता<br />

था, तो वह उस बतर पर िलटाता। अगर उसके पैर बतर से लंबे होते तो पैर काटता;<br />

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अगर पैर उसके छोटे होते बतर से, वह छोटा होता, तो दो पहलवान दोन तरफ से<br />

उसको खींचते। लेकन उसको बलकु ल बतर के बराबर करके ह सोने देते। मगर तब सोना<br />

होता ह कहां, वह तो आदमी खम ह हो जाते। और ठक बतर के माप का आदमी कहां<br />

िमले! कभी लाख दो लाख म संयोग से कोई िमल जाए ठक माप का तो बात अलग, नहं<br />

तो ठक माप क तो बात अलग, नहं तो ठक माप का आदमी कहां िमले! कोई इंच छोटा<br />

कोई इंच बड़ा, कोई ऐसा कोई वैसा।<br />

इस जगत म कोई य कसी एक तक सरणी के अनुसार न तो पैदा हआ ु है,<br />

न उसक<br />

िनयित है क कसी तक -सरणी के अनुसार जीए। कृ णमूित के पास एक बंधा हआ जीवन<br />

ु<br />

ढांचा है। वे कहते ह बस इसके अितर और कु छ भी नहं।<br />

मेरे पास कोई तैयार कपड़े नहं ह। तुहारे ित मेरा समान इतना है क म पलंग क फ<br />

नहं करता। अगर जरत पड़े तो पलंग को छोटा बड़ा कया जा सकता है; तुहारे छोटा बड़ा<br />

नहं कया जा सकता। तुम अगर भ हो तो म तुहार भ म और चार चांद जोडूंगा और<br />

तुम अगर यानी हो तो तुहारे यान म और चार चांद जोडूंगा। तुम जो उस म कु छ<br />

जोडूंगा। तुहारे भीतर अगर कु छ कू ड़ा कक ट है तो जर कहंगा ू क इसे फ को,<br />

हटाओ।<br />

मगर तुहार जीवन शैली क जो अंतरंगता है, िनजता है, उस पर कोई आघात मेर तरफ<br />

से नहं होगा।<br />

इसिलए वभावतः मेर बात असंगत हगी। और तथाकिथत बुमान क सब से बड़ अड़चन<br />

यह है क संगत बात चाहए उह। लेकन म या कर सकता हं। लोग ह इतने िभन ह।<br />

ू<br />

िभनता इस जगत का वभाव है। म या कर सकता हं<br />

ू? यह मेरे हाथ क बात नहं है।<br />

पलंग काटा जा सकता है, तुम नहं कांटे जा सकते। और पलंग का काटना कभी-कभी खूब<br />

काम कर जाता है।<br />

मुला नसन बहत परेशान था। उसको<br />

ु<br />

एक ह िचंता, रात म दस-पांच दफा उठकर वह<br />

अपने बतर के नीचे जब तक झांककर न देख लग क कोई चोर, लुचे इस समय इतने<br />

भावी ह, जगह-जगह छाए हए ह क आदमी को सचेत रहना ह चाहए। उसक पी भी<br />

ु<br />

परेशान न क तम न सोते न सोने देते। राम म दस दफा उठ-उठकर दया जला कर<br />

देखोगे, कोई बतर के नीचे तो है नहं!<br />

पी उसे मनोिचकसक के पास ले गई, उहने बहत ु समझाया,<br />

मनोवेषण कया,<br />

उसक अचेतन बात उसको समझाई, उसके सपन का वेषण कया, यह कया वह कया,<br />

कोई काम न आया। उसक बीमार जार रह।<br />

फर एक दन मेरे पास अया, बड़ा सन था और कहने लगा: मेर सास आई और उसने<br />

मामला िमनट म रफा-दफा कर दया। मने कहा: तुहार सास मालूम होती है कोई बड़<br />

मनोवैािनक है। उसने कहा, कु छ भी नहं। बु उसम नाममा को नहं है। मगर उसने<br />

िमनट म रफा-दफा कर दया।<br />

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मने कहा: कया या उसने? उसने कहा, उसने कया यह क उठाकर आरा और मेरे बतर<br />

क चार टांग काट दं। अब मेरा बतर जमीन पर रखा है, अब उसके नीचे कोई िछप ह<br />

नहं सकता। बड़े-बड़े मनोवैािनक हार गए। अब म उठना भी चाहं तो बेकार है। पुरानी<br />

ू<br />

आदत से नींद भी खुल जाती है तो म सोचता हं ू या सार!<br />

नीचे कोई िछप ह नहं सकता<br />

है, उसने पैर ह उड़ा दए। बतर ह जमीन पर लगा दया।<br />

बतर के पैर काटने ह काट लो। बतर को छोटा करना हो छांटा कर लो, बड़ा करना हो<br />

बड़ा कर लो। आदमी को साबत छोड़ो! आदमी के ित समान रखो और आदमी क भावना<br />

का समान रखो।<br />

और इसिलए वभावतः मेर बात बहत ु असंगत ह,<br />

यक म िभन-िभन लोग के िलए<br />

िभन-िभन गीत गाता हं। ू और उन सब को तुम िमलाओगे,<br />

और उन सब के बीच तुम<br />

सोचना चाहोगे क कोई एक वचार क अवथा खड़ हो जाए तो नहं हो सके गी।<br />

जो यहां तक से सुनने आएगा वह बड़ झंझट म पड़ जाएगा।<br />

मने सुना है, मुला नसन बड़ आोश म अपनी खूब तेजरार रचनाएं अपनी कवताएं,<br />

अपनी शायर बड़ देर तक सुनाता रहा। जनता िचलाती भी रह क बंद करो, मगर जनता<br />

जतनी िचलाएं बंद करो, उतने ह जोर आवाज से वह अपनी कवता सुनाएं, वह उतने<br />

और आोश म आता गया। लोग ताली बजाएं इसीिलए क भाई बंद करो, मगर वह समझे<br />

क शंसा क जा रह है।<br />

आखर एक आदमी खड़ा हआ ु और उसने कहा क बड़े िमयां,<br />

आप काय-पाठ बंद करते ह<br />

या नहं? अगर आपने काय पाठ बंद न कया तो म पागल हो जाऊं गा। मुला नसन ने<br />

चक कर, भौचक रहकर उस आदमी से कहा: भाई साहब! कवता पढ़ना बंद कए तो मुझे<br />

घंटा हो चुका है।<br />

जो लोग मुझे तक से सुनने आएंगे, जो गणत बठाएंगे, वे व हो जाएंगे। जो मुझे<br />

भाव से सुनगे...यह ससंग है, यहां कोई िशण नहं दया जा रहा है। यहां म अपने को<br />

बांट रहा हं। ू कोई िशाएं नहं बांट रहा हं। ू यहां अपने को लुटा रहा हं ू, कोई िसांत नहं दे<br />

रहा हं। ू सय का हतांतरण होता भी नहं , सय तो संामक है।<br />

यहां तो म तुह अपने पास बुला रहा हं ू क मेरे पास आओ क सय तुह भी पकड़ ले,<br />

संामक हो जाए। यह तो दवान क बती है और दवान के िलए िनमंण है। यहां<br />

अहंकार आएंगे और उह मेर बात सुनाई भी नहं पड़ेगी यक यहां िशयव के बना कोई<br />

बात सुनाई पड़ ह नहं सकती। यहां तक वाद आएंगे और कु छ का कु छ सुनगे, यक यहां<br />

जो बात क जा रह है वह ेम क है, वह तक क नहं है। यहां कु छ बात कहा जा रह है,<br />

जो कह ह नहं जा सकती है। यहां अकय को कय बनाने क चेा चल रह है।<br />

फर लोग अपना-अपना हसाब लेकर आते ह। ी कांित भट आए हगे अपना हसाब<br />

लेकर, अपने हसाब से सुना होगा, अपने हसाब से समझा होगा। शायद कृ णमूित उनके<br />

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दय म बहत यादा भरे ह तो अड़चन हो गई होगी। तो तौलते रहे हगे। और जसने तौला<br />

ु<br />

वह चूका। फर म कु छ कहंगा<br />

ू , वे कु छ समझगे।<br />

जनसमूह कव समेलन सुनने के िलए उमड़ आया था। मुला नसन जैसे ह काय पाठ<br />

के िलए खड़े हए ु कसी ोता ने भीड़ म से उछाल दया:<br />

बड़े िमयां! काय पाठ के पहले<br />

कृ पया यह बताएं क गधे के िसर पर कतने बाल होते ह? मुला नसन ने कु छ देर<br />

जधर से आवाज आई थी उधर देखते हए ु कहा:<br />

मा कर, भार भीड़ म मुझे आपका िसर<br />

दखाई नहं दे रहा है।<br />

आखर : संत क वाणी म इतना रस कस ोत से आता है? और संत क वाणी से<br />

तृि और आासन य िमलता है?<br />

रस का तो एक ह ोत है--रसो वै सः! रस का तो कोई और ोत नहं है, परमामा ह रस<br />

का ोत है। रस उसका ह दसरा नाम है।<br />

ू<br />

संत अपनी तो कु छ कहते नहं, उसक ह गुनगुनाते ह। संत तो वह है जसके पास अपना<br />

कु छ कहने को बचा ह नहं है। अपना जैसा ह कु छ नहं बचा है। संत तो बांस क पोली<br />

पगर है, चढ़ा द गई परमामा के हाथ म, अब उसे जो गीत गाना हो गा ले, न गाना<br />

हो न गाए, ऐसा बजाए क वैसा बजाए। बांस क पगर तो बस बांस क पगर है। वह<br />

गाता है तो बांसुर हो जाती है, वह नहं गाता है तो बांस क पगर बांस क पगर रह<br />

जाती है! गीत उसके ह बांसुर के नहं ह। वर उसके ह।<br />

संत तो के वल एक मायम है। संत तो के वल उपकरण है। परमामा के हाथ म छोड़ देता<br />

अपने को, जैसे कठपुतली!<br />

तुमने कठपुतिलय का नाच देखा? िछपे हए धागे और पीछे िछपा रहता है उनको नचाने<br />

ु<br />

वाला। फर कठपुतिलय को नचाता, जैसा नचाता वैसी कठपुतिलयां नाचतीं। लड़ाता तो<br />

लड़तीं, िमलाता तो िमलती, बातचीत करवाता, हजार काम लेता।<br />

संत तो बस ऐसा है जसने एक बात जान ली है क म नहं हं<br />

ू, परमामा है। अब जो<br />

कराए। इसिलए रस है उनक वाणी म, अमृत है उनक वाणी म। अमृत बरसता है, यक<br />

वे अमृत के ोत से जुड़े गए ह। कमल खलते ह, यक कमल जहां से रस पाते ह उस<br />

ोत से जुड़ गए ह।<br />

पतझड़ के बाद यह<br />

आया है नव वसंत<br />

वाणी म मेर!<br />

वाणी क डाल पर<br />

भाव के फू ल खले,<br />

बहती मादक बयार<br />

वहन करती गंध भार,<br />

सरस के फू ल का<br />

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सागर लहराया<br />

वाणी म मेर!<br />

वाणी क लहर म<br />

दहक-दहक उठते ह<br />

टेसू के फू ल के<br />

जीवत दाहक अंगार!<br />

वाणी के कं पन म<br />

जीवन का दद नया<br />

लहराया छाया<br />

वाणी म मेर<br />

नव वसंत आया!<br />

महक उठा आ बौर<br />

मती म झूम झूम<br />

जीवन का गीत नया<br />

मादक यह राग नया<br />

कोकल ने गाया<br />

वाणी म मेर!<br />

जीवन अनुराग िस<br />

उड़ता अणम गुलाल!<br />

भाव ने वेदना के<br />

अनुभव ने यथा के<br />

मीड़ दए ह कपोल!<br />

अणम आभा का यह<br />

नव काश छाया<br />

वाणी म मेर!<br />

आथा के फू ल सजा<br />

ा के दप जला<br />

अत-वास और<br />

ममता क रोली ले<br />

नवयुग के अचन का<br />

थाल यह सजाया<br />

वाणी ने मेर!<br />

पतझड़ के बाद यह<br />

आया है नव वसंत<br />

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वाणी म मेर!<br />

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पहले झड़ जाओ पतझड़ से, पे-पे िगर जाएं! तुहारा कु छ भी न बचे नन, जैसा पतझड़<br />

के बाद खड़ा हआ ु वृ!<br />

फर नए अंकु र फू टते ह, नए फू ल लगते ह। वे फू ल तुहारे नहं ह,<br />

वे फू ल परमामा के ह। वे अंकु र तुहारे नहं ह, वे अंकु र परमामा के ह!<br />

िमटने क कला सीखो। जस दन तुम िमट जाओगे पूरे-पूरे, उस दन परमामा तुमसे<br />

बहेगा--अहिनश बहेगा, बाढ़ क तरह बहेगा। और तब न के वल तुम तृ होओगे, तुहारे<br />

पास जो आ जाएगा उसक भी जम-जम क यास तृ हो जाएगी।<br />

पूछते हो तुम वेद मूित, संत क वाणी म इतना रस कस ोत से आता है? और संत क<br />

वाणी से इतनी तृि और आासन य िमलता है?<br />

इसीिलए आासन है, यक संत माण ह परमामा के । और कोई माण नहं है--न वेद<br />

माण ह, न उपिनषद माण ह, न कु रान माण है। माण तो होता है कभी कोई जीवंत<br />

संत। मोहमद माण हो सकते ह, यावय माण हो सकते ह। बु माण हो सकते<br />

ह, दरया माण हो सकते ह। माण तो होता है सदा कोई जीवंत यव जसके चार<br />

तरफ एक आभा होगी--जस आभा को तुम छू सकते हो, जस आभा को तुम पश कर<br />

सकते हो, जस आभा का तुम वाद ले सकते हो; जसके आसपास एक मधुरमा होती है,<br />

एक माधुय होता है; जसके आसपास तुम म अगर खोज हो तो तुम भरे बन जाओ क रस<br />

पयो!<br />

और यास कस म नहं है। दबाए बैठे ह लोग यास को। यास तो सभी म है। जम<br />

जम से कस क तलाश कर रहे हो? जब कसी संत म उस अनंत का आवभाव होता है<br />

तो आासन िमलता है क म यथ ह नहं दौड़ रहा, क मेर कपनाओं म, मेरे वन<br />

म जो छाया उतर थी यह छाया ह नहं है, माया ह नहं, सय भी हो सकता है। जो मने<br />

मांगा है वह कसी को िमल गया है, तो मुझे भी िमल सकता है। जो मने चाहा है, कसी<br />

म पूर हआ ु है,<br />

तो मुझ म भी हो सकता है। मुझ जैसे ह हड, मांस-मजा के य म<br />

जब ऐसी अनंत शांित और आनंद का आवभाव हआ है तो मुझ म भी होगा। इसिलए<br />

ु<br />

आासन िमलता है।<br />

संत के पा बैठ कर आथा उमगती है, ा जगती है। वास नहं करना होता फर।<br />

वास तो जबदती करना होता है। ा अपने से पैदा होती है। ऐसे चरण, जहां िसर<br />

अपने से झुक जाए, झुकाना न पड़े!<br />

ऐसा हआ ु क बु को जब तक ान उपलध न हआ ु था,<br />

वे महातपया करते थे। बड़।<br />

तपया बड़ दधष<br />

ु ! अपने शरर को गलाते थे, गलाते थे, सताते थे, उपवास करते थे। धूप<br />

म खड़े होते, शीत म खड़े होते, सूख गए थे। बड़ सुंदर<br />

उनक देह थी जस दन राजमहल<br />

छोड़ा था। फू ल सी सुकु मार उनक देह थी! सूख गए थे, काले हो गए थे, हडयां कोई<br />

िगन ले...। कहािनयां कहती ह क पेट पीठ से लग गया था। बस हड-हड रह गए थे।<br />

पांच उनके िशय हो गए थे उनक तपया देखकर क यह कोई महा तपवी है। फर एक<br />

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दन बु को यह बोध हआ क यह म या कर रहा हं<br />

ु ू, यह तो आमघात है जो म कर रहा<br />

हं<br />

ू! यह कोई परमामा को, या सय को पाने का तो उपाय नहं। यह तो म िसफ अपने को<br />

न कर रहा हं<br />

ू, पा या रहा हं<br />

ू?<br />

छह साल क िनरंतर तपया के बाद एक दन यह समझ म आया क ये छह साल मने यूं<br />

ह गंवाए--अपने को सताने म, परेशान करने म। यह तो हंसा है, आमहंसा। उसी ण<br />

उहने उस आमहंसा का याग कर दया। वभावतः जो पांच िशय उसी आमहंसा से<br />

भावत हो कर उनके साथ थे, उहने कहा: यह गौतम हो गया। अब इसके साथ या<br />

रहना, अब यह हमारा गु न रहा; अब हम कोई और गु न रहा; अब हम कोई और गु<br />

खोजगे। इसने तपया छोड़ द।<br />

और या कोई पाप कया था? इतनी सी बात थी जस से पांच िशय छोड़कर चले गए,<br />

क बु ने उस दन एक पीपल के वृ के नीचे बैठ हए<br />

ु ...कसी गांव क ी ने मनौती<br />

मनाई होगी क म मां बन जाऊं गी तो पीपल के देवता को थाली भरकर खीर चढ़ाऊं गी। वह<br />

गिभणी हो गई थी। वह सुजाता नाम क ी सुवाद खीर बनाकर पीपल के वृ को चढ़ाने<br />

ु<br />

गाई थी। पूरे चांद क रात, पीपल का वृ, उसके नीचे बु वराजमान...उसने यह समझा<br />

क पीपल के देवता वयं कट हो कर मेर खीर वीकार कर रहे ह। और कोई दन होता तो<br />

बु ने इनकार कर दया होता। यक एक तो रात थी, रा भोजन वजत; फर वे के वल<br />

उन दन एक ह बार भोजन करते थे दोपहर म, सो दोबारा भोजन का सवाल ह न उठता<br />

था।<br />

मगर उसी सांझ उहने सार तपया का आमहंसा समझ कर याग कर दया था। तो<br />

उस ी ने जब भट क उनको खीर, तो उहने वीकार कर ली। खीर को वीकार करते<br />

देखकर पांच िशय उठकर चले गए। गौतम हो गया! रा भोजन! अनजान अपरिचत<br />

ी के हाथ से बनी हई ु खीर!<br />

पता नहं ाण है, शू है, कौन है, या है! रा का<br />

समय! एक बार भोजन का िनयम तोड़ दया। छोड़कर चले गए।<br />

फर बु को उसी रात ान भी हआ। उसी रात क पूणता पर सुबह होते जब राम का<br />

ु<br />

अंितम तारा डूबता था और सूरज ऊगने-ऊगने को था, तभी भीतर बु के भी सूरज ऊगा।<br />

रात का आखर तारा डूबा, अंधेरा गया, रोशनी हई। फर उह याद आया क वे मेरे पांच<br />

ु<br />

िशय तो मुझे छोड़कर चले गए, लेकन मने जो जाना है अब, मेरा कतय है सबसे पहले<br />

उन पांच को जाकर कहं ू, बांटं। ू बहत ु वष तक मेरे पीछे रहे, अभागे! जब घटन घटने को<br />

थी तब छोड़कर चले गए। तो बु उनक तलाश म िनकले, उनको बमुकल पकड़ पाए। वे<br />

काफ दर िनकल गए थे। वे नए गु क तलाश म आगे बढ़ते चले गए। जस गांव बु<br />

ू<br />

पहंचते<br />

ु , पता चलता क कल ह उहने गांव छोड़ दया। बस ऐसे-ऐसे बु उनको खोजते-<br />

खोजते सारनाथ म पकड़े। इसिलए सारनाथ म बु का पहला वचन हआ<br />

ु , पहला धमच<br />

वतन हआ।<br />

ु<br />

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जब उहने बु को आते देखा तो वे पांच एक वृ क छाया म वाम कर रहे थे। उन<br />

पांच ने देखा क यह गौतम आ रहा है। हम इसक तरफ पीठ कर ल। यह समान के<br />

योय नहं है। यह जब आएगा तो हम उठकर खड़े नहं हगे, नमकार भी नहं करे। इसको<br />

खुद बैठना हो तो बैठ जाएं, हम यह भी न कहगे क बैठए, वराजए। इसे भलीभांित यह<br />

बात दिशत कर दगे क अब हम तुहारे िशय नहं ह, तुम हो चुके हो, हम तुहारा<br />

परयाग कर चुके ह।<br />

लेकन जैसे-जैसे बु पास आए, एक बड़ अपूव घटना घट। वे पांच जो पीठ करके बैठे थे,<br />

कब कस अपूव ण म,कस अनजाने कारण से मुड़ गए और बु क तरफ देखने लगे!<br />

पांच! और जब बु पास आए तो उठकर खड़े हो गए। और जब बु और पास आए तो<br />

झुककर उनके चरण म माण कया। और कहा: वराजए। बु हंसे और बु ने कहा:<br />

लेकन तुमने तय कया था क पीठ मेर तरफ रखोगे और तुमने तय कया था क<br />

नमकार न करोगे, पैर छू ने क तो बात ह दर थी। और तुमने तय कया था क यह <br />

ू<br />

गौतम आ रहा है तो हम बैठने को भी न कहगे--और तुम शब शैया बछाते हो, बैठने का<br />

आसन लगाते हो! बात या है?<br />

तो उन पांच ने कहा: ववश! इसके पहले हम जब तुहारे साथ थे तो हम तुम म वास<br />

करते थे, आज ा का जम हआ ु है। वह वास था। वास टट ू भी सकता है यक<br />

ऊपर होता है। आज ा का अपने आप आवभाव हआ ु है। हमने कु छ कया नहं,<br />

अपने<br />

आप हम मुड़ गए तुहार तरफ। जैसे कोई चुंबक<br />

क तरफ जाए। अपने आप हम उठकर<br />

खड़े हो गए, अपने आप हम झुक गए, अपने आप तुहारे चरण से िसर लग गया।<br />

संत माण ह। जब तुह कोई ऐसा य िमल जाए जसके पास अपने आप िसर झुक<br />

जाए, तो फर समझ लेना क वह मंदर आ गया, वह ार आ गया, वह देहली आ गई--<br />

जहां से िसर उठाने क जरत नहं है।<br />

जब कसी य को देखकर तुह भरोसा आ जाए क परमामा होना ह चाहए, क<br />

सदगु से िमलन हो गया। फर छोड़ना मत संग साथ, फर छाया बन जाना उसक,<br />

यक इसी तरह लोग पहंचे ु ह। और कसी तरह न कोई कभी पहंचा ु है,<br />

और न कभी पहंच ु<br />

सकता है।<br />

वेदमूित! तृि है, आासन है, यक संत म माण है।<br />

रहो िनंत जब तक म खड़ा हं ितिमर के तट पर<br />

ू<br />

कभी भी रोशनी को खुदकशी करनी नहं दंूगा।<br />

खड़ा पुषाथ पहरे पर<br />

करण वछं द डोलेगी<br />

जहां भी योित बंद है<br />

वहां के ार खोलेगी<br />

उजालो को अंधेर से खरदा जा नहं सकता<br />

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भा के प म रजनी<br />

सुबह के साथ बोलेगी<br />

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मनुज थापत करो अब मंदर म शुभ मुहत है<br />

ू<br />

कभी तूफान को म आरती वरने नहं दंूगा<br />

पसीने और लोह से<br />

ू<br />

िमलाकर जो बनाई है<br />

नए इितहासकार क<br />

अिमट यह रोशनाई है<br />

िलखा ारध जाना है हमारा ह वयं हमसे<br />

सद के सय को िलखने<br />

कलम हमने उठाई है<br />

सजग हं ू सयता के शु से,<br />

ववंस को झूठा<br />

कभी इितहास पर आरोप म धरने नहं दंगा<br />

ू<br />

नया इसान िलखता है<br />

सृजन के ोक सुरभीले<br />

मशीनी संकृ ितय के<br />

गृह पर शी बसने का इरादा आदमी का है<br />

सह अथ मगर जीवन<br />

धरा पर हम थम जी ल<br />

तुह आत करता हं पदाथ के छली युग को<br />

ू<br />

कभी भी आथा का शील म हरने नहं दंगा<br />

ू<br />

रहो िनंत जब तक म खड़ा हं ितिमर<br />

ू<br />

कभी भी रोशनी को खुदकशी करने नहं दंगा<br />

ू<br />

के तट पर<br />

संत क उपथित पया है। जनके पास देखने को आंख ह, और सुनने को कान ह, और<br />

अनुभव करने को दय है--उनके िलए संत क उपथित पया है क परमामा है।<br />

इसिलए आासन है, इसिलए महातृि है, इसिलए रस है। यक संत िसफ के वल<br />

ितिनिध है, संदेशवाहक है परमामा का, उस परम सय का--जसके बना हम यथ ह,<br />

और जसे पा कर ह सब कु छ पा िलया जाता है!<br />

आज इतना ह।<br />

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जागे म फर जागना<br />

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पांचवां वचन; दनांक १५ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

तज बकार आकार तज, िनराकार को यान।<br />

िनराकार म पैठकर, िनराधार लौ लाय।।<br />

थम यान अनुभौ करै, जासे उपजै यान।<br />

दरया बहत ु करत ह,<br />

कथनी म गुजरान।।<br />

पंछ उड़ै गगन म, खोज मंडै नहं मांहं।<br />

दरया जल म मीन गित, मारग दरसै नहं।।<br />

मन बुिध िचत पहंचै ु नहं,<br />

सद सकै नहं जाय।<br />

दरया धन वे साधवा, जहां रहे लौ लाय।।<br />

करकांटा कस काम का, पलट करे बहत रंग।<br />

ु<br />

जन दरया हंसा भला, जद तक एकै रंग।।<br />

दरया बगला ऊजला, उजल ह होय हंस।<br />

ए सरवर मोती चुग, वाके मुख म मंस।।<br />

जन दरया हंसा तना, देख बड़ा यौहार।<br />

तन उजल मन ऊजला, उजल लेत अहार।।<br />

बाहर से उजल दसा, भीतर मैला अंग।<br />

ता सेती कौवा भला, तन मन एकह रंग।।<br />

मानसरोवर बािसया, छलर रहै उदास।<br />

जन दरया भज राम को ,जब लग पंजर सांस।।<br />

दरया सोता सकल जग, जागत नाहं कोय।<br />

जागे म फर जागना, जागा कहए सोय।।<br />

साध जगावै जीव को, मत कोई उठे जाग।<br />

जागे फर सोवै नहं, जन दरया बड़ भाग।।<br />

हरा लेकर जौहर, गया गंवारै देस।<br />

देखा जन कं कर कहा, भीतर परख न लेस।।<br />

दरया हरा ोड़ का, (जाक) कमत लखै न कोय।<br />

जबर िमलै कोई जौहर, तबह पारख होय।।<br />

फर दद उठा है, आंख भर<br />

सीने म बाए कोने से<br />

फर हक ू उठ गहर-गहर<br />

दन तो दिनया क ले दे म<br />

ु<br />

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कट गया चलो जैसेैसे<br />

पल पल पहाड़ जैसा भार<br />

यह रात कटेगी पर कै से<br />

खायेगी मेरा दय नच<br />

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यह सांय चील ू रता भर कांटे बबूल के पलक म<br />

अनजाने ह उग आएंगे<br />

म तो जागूंगा<br />

सो कर भी<br />

सब सो-सो कर जग जाएंगे<br />

टटेगा ू तक का पोर-पोर<br />

जैसे शराब उतर-उतर<br />

फर सुलगेगा चंदन भीतर<br />

पर बाहर धुआं न आएगा<br />

आवाज नहं होगी कोई<br />

घुन भीतर-भीतर खाएगा<br />

फर मुझको डसकर उलटेगी<br />

वह मृितय क सांपन ठहर<br />

कब रेत बंधी है मुठ म<br />

कब अंजुर म जल ठहरा है<br />

कहती भी या गूंगी<br />

पीड़ा<br />

सुनता भी या जग बहरा है<br />

जंदगी बूंद<br />

है पारे क<br />

जो एक बार बखर, बखर<br />

फर दद उठा है, आंख भर<br />

सीने म बाएं कोने से<br />

फर हक ू उठ गहर-गहर<br />

इस जीवन को राते म मत गंवा देना। चूंक<br />

िमल गया है अनायास, िनमूय मत समझ<br />

लेना। कमत तो इसक कोई भी नहं, पर मूय इसका बहत ु है। कमत और मू य का<br />

भाषाकोश म तो एक ह अथ है, लेकन जीवन के कोश म एक ह अथ नहं। जन चीज<br />

क कमत होती है उनका कोई मूय नहं होता और जन चीज का मूय होता है उनक<br />

कोई कमत नहं होती।<br />

ेम का मूय है, कमत या? यान का मूय है, कमत या? वतंता का मूय है,<br />

कमत या? और बाजार म बकती हई ु चीज ह,<br />

सब पर कमत लगी है, पर उनका मूय<br />

या है?<br />

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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

जो य के ह जगत म जीता है वह संसार है। जो मूय के जगत म वेश करता है, वह<br />

संयासी है। मूय साद है परमामा का। लेकन चूंक<br />

साद है, इसिलए चूक जाने क<br />

संभावना है। कमत देनी पड़ती तो शायद तुम जीवन का मूय भी करते। चूंक<br />

िमल गया<br />

है; तुहार झोली म कोई अनजान ऊजा उसे भर गई है; तुह पता भी नहं चला और कोई<br />

तुहारे ाण म ास फूं<br />

क गया है; तुह खबर भी नहं, कौन तुहारे दय म धड़क रहा<br />

है--इसिलए भूले-भूले कं कड़-पथर बीन-बीन कर ह जीवन को गंवा मत देना।<br />

जब तक परमामा क खोज शु न हो तब तक जानना ह मत क तुम जए। जीवन क<br />

शुआत परमामा क खोज से ह होती है। जम काफ नहं है जीवन के िलए। एक और<br />

जम चाहए। और धयभागी ह वे, जनके जीवन म हक ू उठती है,<br />

पुकार उठती है; पीड़ा<br />

का जह अनुभव होता है; जो परमामा क तलाश पर िनकल पड़ते ह; जो सब दांव पर<br />

लगाने को राजी हो जाते ह।<br />

फर दद उठा है आंख भर<br />

सीने म बाएं कोने से<br />

फर हक ू उठ गहर-गहर<br />

कब रेत बंधी है मुठ म<br />

कब अंजुर म जल ठहरा है<br />

कहती भी या गूंगी<br />

पीड़ा<br />

सुनता भी या जग बहरा है<br />

जंदगी बूंद<br />

है पारे क<br />

जो एक बार बखर, बखर<br />

सावधान! जंदगी गंवानी तो बहत आसान है<br />

ु<br />

, कमानी बहत ु कठन है। पारे क बूंद<br />

है,<br />

बखर तो बखर, फर सहाल न सकोगे। और ण-ण बूंद<br />

बखरती जा रह है और तुम<br />

हो क खोए हो न मालूम कस यथता के जाल म--कोई धन, कोई पद, कोई िता...दो<br />

कौड़ उनका मूय है; शायद दो कौड़ भी उनका मूय नहं है। कं कड़ पथर बीन रहे हो,<br />

जब क हरे क खदान बहत ह िनकट है<br />

ु<br />

खदान तक कै से पहंचा ु जाए,<br />

इस संबंध म आज के सू ह।<br />

पीड़ा क गंद िलए,<br />

वष का अनुबंध िलए<br />

चंदन क छांव तले, जीवन के गीत पले।<br />

ितनक का आलंबन आंधी क घात पर,<br />

कं पती सी आशाएं नर संघात पर।<br />

मृयु क हथेली पर जीने क उकं ठा,<br />

धूप और छाह क संघष मात पर।<br />

अधर से ओ पीए,<br />

, बहत ु ह करब है--तुहारे<br />

भीतर है! उसी हरे क<br />

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अंतर म नेह िलए,<br />

जैसे तूफान म बुझता सा द जले।<br />

सतरंगे मौसम को बंद कए बाह म,<br />

उेिलत यौवन का वार िलए चार म।<br />

पलक क कोर पर अंजवाए गहराई,<br />

अवरल गित चलने को पथरली राह म।<br />

अपना अिधकार िलए,<br />

उर म न वार िलए,<br />

िसकता पर रेखा बन य िमटती लहर ढले।<br />

डसते वास पर आंसू से भरे भरे,<br />

हार क लड़य म किलय से झरे झरे।<br />

झीन अवगुंठन<br />

म िसंदर ू मांग िलए,<br />

ितबंबत प िनरख दपण म ितरे ितरे।<br />

यौवन का मोड़ िलए,<br />

हंसने क होड़ िलए,<br />

जैसे िनज मित से पूनम का चांद छले।<br />

जेठ क दोपहर म शीतल जासा बन,<br />

ं के मंथन म अमृत अिभलाषा बन।<br />

पनघट के घट-घट म सागर को सीिमत कर,<br />

दशन के यासे को जीवन क परभाषा बन।<br />

राग म वराग िलए,<br />

तपने का याग िलए,<br />

बनने को वण मुकु ट य कं चन देह जले।<br />

जेठ क दोपहर म शीतल जासा बन!<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

यह जीवन तो जलती हई ु दोपहर है। यहां सब जल रहा है,<br />

धू-धू कर जल रहा है। यह<br />

जीवन तो िचताओं के अितर और कु छ भी नहं है। और तुम भी जानते हो और हर-एक<br />

जानता है, यक िसवाय घाव के हाथ लगता या है?<br />

जेठ क दोपहर म शीतल जासा बन!<br />

उठाओ जासा को। खोज उसे जो कभी खोएगा नहं। खोज उसे जसे पा लेने पर फर सार<br />

खोज समा हो जाती है।<br />

ं के मंथन म अमृत अिभलाषा बन!<br />

कब तक उलझे रहोगे दई म<br />

ु , ैत म? कब तक बंटे रहोगे ं म?<br />

मययुग म यूरोप म कै दय को एक सजा द जाती थी। सजा ऐसी थी क कै द को िलटाकर<br />

चार घोड़ से उसके हाथ पैर बांध दए जाते थे। एक घोड़े से एक हाथ, दसरे घोड़े से दसरा<br />

ू ू<br />

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हाथ। तीसरे घोड़े से एक पैर, चौथे घोड़े से दसरा पैर। और चार घोड़ को चार दशाओं म<br />

ू<br />

दौड़ा दया जाता था। टकड़े ु -टकड़े ु हो जाता था आदमी,<br />

खंड-खंड हो जाता था। सजा का नाम<br />

था वाटरंग। और ठक ह था सजा का नाम, यक चार टकड़े ु हो जाते थे,<br />

चौथाई हो<br />

जाता था। सजा का नाम था चौथाई।<br />

लेकन जंदगी को अगर गौर से देखो तो ऐसी सजा तुम खुद अपने को दे रहे हो। तुमने<br />

कतनी वासनाओं के साथ अपने को जोड़ िलया! अलग-अलग दशाओं म जाती<br />

वासनाएं...कोई पूरब, कोई पम, कोई दण, कोई उर। चार घोड़े नहं, हजार घोड़ से<br />

तुम बंधे हो। खंड खंड हए ु जा रहे हो,<br />

टटे ू जा रहे हो,<br />

बखरे जा रहे हो। इसी बखराव को<br />

तनाव कहो, िचंता कहो, बेचैनी कहो, वता कहो, जो भी तुह कहना हो, मगर यह<br />

बखराव है। और इस बखराव म कभी तुह वाम न िमलेगा। तुम तपोगे, सड़ोगे,<br />

मरोगे; जओगे कभी भी नहं।<br />

जीवन का संबंध तो तब होता है, जब तुहार सार वासनाएं एक अभीसा म समाहत हो<br />

जाती है; जब तुहार अलग-अलग दशाओं म दौड़ती हई कामनाएं एक जासा म<br />

ु<br />

पांतरत हो जाती है; जब तुम और सब न मालूम या-या छोड़कर िसफ उस एक के<br />

खोजने के िलए आतुर, आब हो जाते हो, कटब हो जाते हो, ितब हो जाते हो।<br />

छोड़ो दो को, छोड़ो अनेक को--पकड़ो एक को, यक एक कोई पकड़ने म तुम भी एक हो<br />

जाओगे। अनेक को पकड़ोगे, तुम भी अनेक हो जाओगे। और एक होने का आनंद और एक<br />

होने क वांित...।<br />

जेठ क दोपहर म शीतल जासा बन,<br />

ंद के मंथन म अमृत अिभलाषा बन।<br />

या मरणधमा तुहार खोज है? या उसे खोज रहे हो जो मृयु तुमसे छन लेगी? अमृत<br />

को कब खोजोगे?<br />

ं के मंथन म अमृत अिभलाषा बन।<br />

पनघट के घट-घट म सागर को सीिमत कर!<br />

एक-एक घट म, एक-एक दय म पूरा आकाश उतर सकता है। ऐसी तुहार गरमा है,<br />

ऐसा तुहारा गौरव है। एक-एक बूंद<br />

सागर को अपने म समा सकती ह, ऐसी तुहार मता<br />

है, ऐसी तुहार संभावना है। लेकन तुम आकाश क तरफ आंख ह नहं उठाते। तुम जमीन<br />

म आंख को गड़ाएं, कं कड़-पथर म, कू ड़े कक ट म ह अपने जीवन को बता देते हो। और<br />

भरोसा भी कन चीज का कर रहे हो! तूफान आ रहा है बड़ा और पी ने ितनक से घसला<br />

बना िलया है और इस भरोसे म बैठा है क सुरा है। तूफान आ रहा है, भयंकर और रेत<br />

म तुमने ताश के प का घर बना िलया है। और इस भरोसे म बैठे हो क या िचंता है।<br />

मौत आएगी, तुहारे सब ताश के घर िगरा जाएगी। इसके पहले क मौत आए, अमृत का<br />

थोड़ा वाद ले लो।<br />

ितनक का आलंबन आंधी का घात पर,<br />

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कं पती सी आशाएं नर संघात पर।<br />

मृयु क हथेली पर जीने क उकं ठा,<br />

धूप और छाह क संघष मात पर।<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

मौत के हाथ म बैठे हो। कब मुठ बंध जाएगी, कहा नहं जा सकता। मौत के हाथ म बैठे<br />

हो, फर भी यथ म िचंता लगी है।<br />

बौ क एक िस कथा है। एक राजकु मार यु हार गया है और जंगल म शरण के िलए<br />

भाग गया है। दमन पीछे लगे ह। उनके घोड़ क टाप का शोरगुल बढ़ता जाता है। और<br />

ु<br />

राजकु मार बड़ मुकल म पड़ गया है। यक वह ऐसी जगह पहंच गया है पहाड़ क कगार<br />

ु<br />

पर, जहां राता समा हो जाता है। आगे भयंकर खडा है। पीछे दमन<br />

ु के आने क<br />

आवाज सघन होती जाती है। एक-एक घड़ मौत करब आ रह है। ऐसी ह दशा तुहार है,<br />

जैसी उस राजकु मार क थी। फर भी हमत जुटाता है। आखर आशा बांधता है। सोचता है<br />

छलांग लगा दं। यक दमन के हाथ म पड़ा तो तण गदन कट जाएंगी। छलांग लगाना<br />

ू ु<br />

भी कम खतरनाक नहं है, खडा भयंकर है। बचने क आशा नहं है, लेकन फर भी<br />

दमन ु के हाथ म पड़ने से तो यादा आशा है;<br />

शायद हाथ-पैर टट ू जाएंगे लेकन जीवन<br />

बचेगा। लंगड़ा हो जाऊं गा, लेकन फर भी जीवन बचेगा। और कौन जाने कभी-कभी<br />

चमकार भी हो जाता है क िगं और बच जाऊं ! न हाथ टट ू , न पैर टट। ू<br />

तो नीचे झांककर देखता है। और नीचे देखता है क दो िसंह मुंह<br />

बाएं ऊपर क तरफ देख रहे<br />

ह। अब तो कोई भरोसा न रहा। घोड़ के टाप क आवाज और जोर से बढ़ने लगी। और िसंह<br />

नीचे गजन कर रहे ह। उहने भी राजकु मार को देख िलया है क वह खड़ा है ऊपर। अगर<br />

िगर जाए तो तीा म रत ह क तण चीर फाड़ करके खा जाएंगे। कोई और राता<br />

देखकर राजकु मार एक वृ क जड़ को पकड़कर लटक रहता है क शायद दमन को<br />

ु<br />

दखाई न पडूं। सोचकर क राता समा हो गया है, वे वापस लौट जाए। और वृ क<br />

जड़ म लटका हआ िसंह से भी बच जाऊं गा। अगर दमन लौट आए तो एक आशा है क<br />

ु ु<br />

म वापस लौटकर बच सकता हं।<br />

ू<br />

जब वह जड़ को पकड़कर लटक जाता है जब देखता है क और भी मुसीबत है। एक सफे द<br />

और काला चूहा, जस जड़ को वह पकड़कर लटका है, उसे काट रहे ह। दन और रात के<br />

तीक ह सफे द और काला चूहा। अब तो बचने क कोई संभावना नहं है। दमन क आवाज<br />

ु<br />

बढ़ती जाती है, िसंह का गजन बढ़ता जाता है। और चूहे ह क जड़ काटे डाल रहे ह, कांटे<br />

डाल रहे ह, अब कट तब कट...। यादा देर नहं है, जड़ कटती जा रह है। और तभी<br />

पास के एक मधुछे से एक शहद क बूंद<br />

टपकती है। अपनी जीभ पर वह शहद क बूंद<br />

को<br />

ले लेता है। और उसका वाद बड़ा मधुर है। उस ण म भूल ह जाता है सब--दमन के<br />

ु<br />

घोड़ को टाप, िसंह क गजना, वे सफे द और काले चूहे काटते हए ु जड़--सब<br />

भूल जाता है।<br />

शहद बड़ा मीठा है।<br />

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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

बौ कथा बड़ यार है। तुहारे संबंध म है। तुहं हो वह राजकु मार। चार तरफ से मौत<br />

िघर है और शहद क एक बूंद<br />

का मजा ले रहे हो। और शहद क एक बूंद<br />

म सोचते हो सब<br />

िमल गया, अब तुह मौत क िचंता नहं है। जैसे अमृत िमल गया! तुहारे सुख या ह?<br />

शहद क बूंद<br />

ह; जीभ पर थोड़ा सा वाद है। और मौत चार तरफ से िघर है।<br />

ितनक का आलंबन आंधी क घात पर,<br />

कं पती सी आशाएं नर संघात पर।<br />

मृयु क हथेली पर जीने क उकं ठा,<br />

धूप और छाह क संघष मात पर।<br />

अधर से आग पीए,<br />

अंतर म नेह िलए,<br />

जैसे तूफान म बुझता सा दप जले।<br />

बड़े तूफान ह और तुम एक छोटे दए हो। तुहारा बुझना िनत है। बचने का कोई उपाय<br />

नहं। न कभी कोई बचा है, न कभी कोई बच सके गा। लेकन यह जो छोटा सा ण तुहारे<br />

हाथ म है, इसका सदपयोग हो सकता है। यह ण ससंग बन सकता है। यह ण तुहारे<br />

ु<br />

भीतर योित का वफोट बन सकता है। यह ण तुहारे भीतर यान बन सकता है। यह<br />

ण तुहारे भीतर साी का भाव बन सकता है।<br />

सोचो उस राजकु मार को फर। काश मधु क बूंद<br />

म न उलझता! मौत को चार तरफ िघरा<br />

देखकर शांत िच हो जाता। आखर इस ण म साी हो जाता। आखर इस ण म<br />

जागकर शु चैतय हो जाता। तो सार मृयु यथ ह जाती, अमृत से नाता जुड़ जाता।<br />

साी म अमृत है। जागरण म अमृत है। अमी झरत, बगसत कं वल! जैसे ह तुम साी हो<br />

जाते हो, अमृत क वषा होने लगती है और तुहारे भीतर िछपा हआ शात का कमल<br />

ु<br />

खलने लगता है।<br />

दरया कहते ह--<br />

तज बकार आकार तज, िनराकार को यान।<br />

िनराकार म पैठकर, िनराधार लौ लाय।।<br />

कहते ह: एक ह काम तुम कर लो तो सब हो जाए। यथ के वकार म मत उलझे रहो।<br />

शहद क बूंद<br />

म मत उलझे रहो--धोखा है। यथ के आकार, आकृ ितय म मत उलझे रहो--<br />

ांितयां ह, मृगमरिचकाएं ह। एक िनराकार का यान करो।<br />

िनराकार का यान कै से हो? मुझ से आकर लोग पूछते ह: आकार का तो यान हो सकता<br />

है, िनराकार का यान कै से हो? ठक है उनका , सयक है। राम का यान कर सकते<br />

हो--धनुधार राम! कृ ण का यान कर सकते हो--बांसुर वाले कृ ण। क ाइट का यान<br />

कर सकते हो--सूली पर चढ़े। क बु का क महावीर का। लेकन िनराकार का यान! तुह<br />

थोड़ यान क या समझनी होगी। जसका तुम यान कहते हो, वह यान नहं है,<br />

एकाता है। एकाता के िलए आकार जर होता है। यक कसी पर एका होना होगा।<br />

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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

कोई एक बंद चाहए<br />

ु --राम, कृ ण, बु, महावीर...। कोई ितमा, कोई प, कोई<br />

आकार, कोई मं, कोई शद, आधार, कोई आलंबन चाहए--तो तुम एका हो सकते हो।<br />

एकाता यान नहं है। यान तो एकाता से बड़ उट बात है। हालांक तुहारे यान के<br />

संबंध म जो कताब चिलत ह, उन सब म यह कहा गया है क यान एकाता का नाम<br />

है। गलत है वह बात। गैर-अनुभवय ने िलखी होगी। एकाता तो िच क संकण करती है।<br />

एकाता तो एक बंद ु पर अपने को ठहराने का यास है। एकाता वान म उपयोगी है।<br />

यान बड़ और बात है। यान का अथ होता है: शु जागकता। कसी चीज पर एका<br />

नहं, िसफ जागे हए ु --बस जागे हए। ु<br />

ऐसा समझो क टाच होती है। टाच हो यान नहं है, एकाता है। जब तुम टाच जलाते हो<br />

तो काश एक जगह जाकर क त हो जाता है। लेकन जब तुम दया जलाते हो तो दया<br />

जलाना यान है। वह एक चीज पर जाकर एका नहं होता; जो भी आसपास होता है सभी<br />

को कािशत कर देता है। एकाता म मगर तुम टाच लेकर चल रहे हो तो एक चीज तो<br />

दखाई पड़ती है, शेष सब अंधेरे म होता है। अगर दया तुहारे हाथ म है तो सब कािशत<br />

होता है। और यान तो ऐसा दया है क उस म कोई तलहट भी नहं है क दया तले<br />

अंधेरा हो सके । यान तो िसफ योित ह योित है, जागरण ह जागरण है--और बना<br />

बाती बन तेल! इसिलए दया तले अंधेरा होने क भी संभावना नहं है।<br />

यान शद तो तुम समझो साी-भाव। जैसे मुझे तुम सुन रहे हो, दो ढंग से सुन सकते<br />

हो। जो नया-नया यहां आया है, वह एकाता से सुनेगा। वभावतः, दर ू से आया है,<br />

क<br />

उठाकर आया है। याा है। कोई शद चूक जाए! तो सब तरफ से एका होकर सुनेगा। सब<br />

तरफ से िच को हटा लेगा। जो म कह रहा हं<br />

ू, बस उसी पर टक जाएगा। लेकन जो यहां<br />

थोड़ देर के ह, जो थोड़ देर यहां रंगे ह, जो थोड़ देर यहां क मती म डूबे ह, वे<br />

एकाता से नहं सुन रहे ह, यान से सुन रहे ह। भेद बड़ा है। एकाता से सुनोगे, जद<br />

थक जाओगे। तनाव होगा। एकाता से सुनोगे तो यह पय का गीत सुनाई नहं पड़ेगा।<br />

राह पर चलती हई कार क आवाज सुनाई नहं पड़ेगी। एकाता से सुनोगे तो और सब तरफ<br />

ु<br />

से िच बंद हो जाएगा, संकण हो जाएगा। यान से सुनोगे तो म जो बोल रहा हं वह भी<br />

ू<br />

सुनोगे; ये जो िचड़यां टवी-टट ु -टट ु , टवी-टुट-टट ु कर रह ह,<br />

यह भी सुनोगे। राह से कार<br />

क आवाज आएगी, वह भी सुनोगे; ेन गुजरेगी, वह भी सुनोगे। बस िसफ सुनोगे! जो भी<br />

है, उसके साी रहोगे। और तब तनाव नहं होगा, तब थकान भी नहं होगी। तब ताजगी<br />

बढ़ेगी। तब िच िनछल होगा, िनदष होगा, यक िच वराम म होगा।<br />

िनराकार पर यान नहं करना होता है। जब तुम यान म होते हो तो िनराकार होता है।<br />

आकार पर यान करना एकाता; और यान करना िनराकार से जुड़ जाना है।<br />

िनराकार म पैठकर, िनराधार लौ लाय। सब आधार छू ट जाते ह वहां। िनराधार हो जाता है<br />

य, िनरालंब हो जाता है। बस मा होता है। शु होने क वह घड़ है। बस, होने क वह<br />

घड़ है। अपूव है। वहं झरता है अमृत। अमी झरत, बगसत कं वल!<br />

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थम यान अनुभौ करै, जासे उपजै यान।<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

सू बड़ा बहमूय है। तुम ने उट बात सुनी ह आज तक। तुम से लोग कहते ह क<br />

ु<br />

शा पढ़ो, यान इकठा करो, फर यान हो पाएगा। पहले यान के संबंध म जानो,<br />

फर यान को जान सकोगे। दरया कु छ और कह रहे ह। दरया वह कह रहे ह जो म तुमसे<br />

कहता हं। ू थम यान अनुभौ करै...।<br />

पहले यान का अनुभव करना होगा।...जासे उपजै<br />

यान। उस से ान का जम होगा। तुम उटा ह काम कर रहे हो। तुमने बैल को बैलगाड़<br />

के पीछे बांध रखा है। इसीिलए कहं नहं पहंच ु रहे हो,<br />

न कहं पहंच ु सकते हो। ान पहले<br />

और फर सोचते हो यान? नहं, यान पहले, फर ान।<br />

सच तो यह है क यान के पीछ ान ऐसे ह आ जाता है जैसे तुहारे पीछे तुहार छाया<br />

चली आती है। अगर मुझे तुहार छाया को िनमंण देना हो तो तुह िनमंण देना होगा। म<br />

तुहार छाया को सीधा िनमंण नहं दे सकता। म तुहार छाया को कतना ह कहं क<br />

ू<br />

आओ, वागत है, तो छाया के बस के बाहर है आना। हां, तुम आओगे तो छाया भी आ<br />

जाएगी।<br />

ान यान क छाया है। वेद से नहं िमलता यान, न िमलता ान। न कु रान से न<br />

बाइबल से। और जस को तुम ान समझकर इकठा कर लेते हो--वेद, कु रान, बाइबल<br />

धमपद से--ान नहं है, कोरा थोथा पांडय है। तोतारटंत है। वह ान नहं है, ान का<br />

धोखा है। असली फू ल नहं है, कागज का फू ल है।<br />

असली ान तो यान म से उमगता है। यान ान का गभ है।<br />

वेद से तुम ने जो सीख िलए वचन और कु रान क आयत कं ठथ कर लीं, वह तो ऐसे ह है<br />

जैसे कसी दसरे ू के बचे को गोद ले िलया। तो गोद तो भर गई, लेकन झूठ ह भर।<br />

बात कु छ और है। जब कोई मां नौ महने बचे को गभ म ढोती है, नौ महने क लंबी<br />

पीड़ा जर भूिमका है तो ह ेम उमगेगा। और जसे नौ महने पेट म ढोया है, उसके ित<br />

एक लगाव होगा, एक नेह होगा, एक अंतरसंबंध होगा।<br />

और फर यह भी खयाल रहे, जब एक बचे का जम होता है तो िसफ एक बचे का ह<br />

जम नहं होता, दो चीज का जम होता है। एक तरफ बचा पैदा होता है, एक तरफ मां<br />

पैदा होती है। उसके पहले मां नहं थी, उसके पहले िसफ एक ी थी। इधर बचा पैदा हआ<br />

ु<br />

उधर मां पैदा हई। ु बना बचे के पैदा हए ु ी ी रहेगी,<br />

मां न बनेगी। हां, बचा गोद<br />

िलया जा सकता है, लेकन गोद लेने से मां पैदा नहं होगी, मां का धोखा भला हो जाए।<br />

और यह हो रहा है। मां तो लोग बनते ह नहं। यान का अभ तो िनिमत ह नहं करते<br />

और ान को गोद ले लेते ह। और ान को गोद ले लेना सता है। कताब, शा आसान<br />

ह पढ़ लेने। परमामा के संबंध म जान लेना बहत ु आसान है;<br />

परमामा को जानने के िलए<br />

जीवन को दांव पर लगाना होता है।<br />

ठक कहते ह दरया। म उन से सौ ितशत राजी हं। यह अनुभवी का वचन है। अगर दरया<br />

ू<br />

को अनुभव न होता, तो यह बात कह ह नहं सकते थे वे। जब मने दरया पर बोलना शु<br />

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पहले


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कया, सोचा क दरया पर बोलूं,<br />

तो ऐसे ह कु छ वचन म मुझे आकषत कया। यक<br />

ऐसे वचन के वल वे ह बोल सकते ह जहने अनुभव कया हो!<br />

थम यान अनुभौ करै...पहले यान।...जासे उपजै यान। अगर उहने कहा होता वेद से<br />

ान उपजता है, म कभी भूलकर उन पर न बोलता। अगर उहने कहा होता क बाइबल<br />

म ान है, मुझ से नाता ह टट ू जाता। इस एक वचन ने मुझे जोड़ दया। यह आदमी<br />

असली पारखी है, जौहर है। इस ने गोद नहं िलया है ान, इस ने ान को जम दया है<br />

यान के गभ से। इस ने पीड़ा सह है नौ महने क। इसने बचे को बड़ा कया है। इसक<br />

आमतीित है।<br />

और जीवन म भी तुम जानते हो, जो अनुभव से संभव होता है वह उधार अनुभव से संभव<br />

नहं होता। बच को मां-बाप लाख समझाएं--ऐसा मत करो, वैसा मत करो--बचे मानते<br />

नहं। और ठक ह करते ह बचे, जो नहं मानते ह। यक मान ल तो नपुंसक<br />

रह जाएंगे<br />

सदा के िलए, थोथे रह जाएंगे। रढ़ पैदा न होगी। अनुभव से ह मानते ह। तुम कतना ह<br />

कहो बचे से क मत जाओ दए के पा, हाथ जल जाएगा; लेकन जब तक एक बार<br />

उसका हाथ जले नहं, जब तक उसे अनुभव न होगा। और तुहार बात का कोई मूय नहं<br />

है।<br />

इसिलए हर बचा वह भूल करता है जो सब बच ने सदय से क ह। मां बाप क<br />

िसखावन काम नहं आती। और जन बच पर काम आ जाती है वे बचे गोबर गणेश रह<br />

जाते ह, खयाल रखना, उन म आमा पैदा नहं होती। आमा तो अनुभव से पैदा होती है।<br />

जब बचे का हाथ जलता है तब वह जानता है क आग जलाती है।<br />

मुला नसन का एक िम उस से कह रहा था क मुला, या तुम मेर पी को जानते<br />

हो? मुला ने कहा: नहं भैया, म अपनी पी को जानता हं ू यह बहत ु है।<br />

अनुभव अपना...बस अपना अनुभव ह जीवन को सयक आधार देता है; दसरे का अनुभव<br />

ू<br />

आधार नहं देता। दसरे के अनुभव को तुम समझ ह नहं सकते। दसरे के अनुभव और<br />

ू ू<br />

तुहारे बीच संबंध ह नहं जुड़ता, सेतु नहं बनता। उधार उधार ह रह जाता है। सूचनाएं<br />

सूचनाएं ह रह जाती ह, ान नहं बनतीं।<br />

इस सू को खूब दय म सहालकर रखा लेना, यक जो इसके वपरत गए ह भटक गए<br />

ह। और जहने इस सू का अनुसरण कया है वे पहंच गए ह। उन का पहंचना िनत है।<br />

ु ु<br />

थम यान अनुभौ करै, जासे उपजै यान।<br />

दरया बहत ु करत ह,<br />

कथनी म गुजरान।।<br />

लेकन बहत ु से लोग ह जो सुने -सुनाए म ह जी रहे ह। कथनी म गुजरान कर रहे ह! हो<br />

सकता है उहने यारे वचन इकठे कए ह, सुभाषत संगृहत कए ह; वेद का शु-शु<br />

उह ान हो; कु रान क आयत-आयत उह कं ठथ हो। मगर इस से भी कु छ न होगा।<br />

मोहमद के तो यान म कु रान उतर थी। कु रान उतर थी, पढ़ नहं गई थी कु रान।<br />

मोहमद तो पढ़ना जानता भी नहं थे। पहाड़ पर एकांत म यान कर रहे थे। और तब<br />

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अचानक जैसे कहं अंतराकाश से कोई बोलने लगा। उदघोष हआ। एक झरना फू टा और यारा<br />

ु<br />

झरना फू टा। कोई गुनगुनाने लगा ाण म। इसिलए कु रान म जैसा गीत है और कु रान म<br />

जैसा संगीत है वैसा कसी दसरे ू शा म नहं है। कु रान क तरंनुम कस को न बचा दे,<br />

कस के दय को न डांवांडोल कर दे! फर कु रान के आधार पर जतनी भाषाएं दिनया म<br />

ु<br />

पैदा हई ु उनम भी एक तरंनुम है,<br />

एक लय है, कु रान क छाप है। लेकन कु रान कोई पढ़<br />

नहं थी मोहमद ने, उतर थी। इलहाम हआ ु था। जमी थी। मोहमद या कर रहे थे?<br />

मोहमद चुपचाप बैठे थे। शूय म थे, साी भाव म थे, साी भाव म थे। और जब भी<br />

तुम साी हो जाओगे, कु रान उतरेगी। वह कु रान नहं जो मोहमद पर उतर थी, यक<br />

परमामा अपने को दोहराता नहं है। परमामा का काबन कापय म भरोसा नहं है, व<br />

नहं है। परमामा हमेशा नया गीत गाता है। तो परमामा हर दन नई सुबह लाता है।<br />

परमामा हर बार नए हतार करता है।<br />

जैसे क तुहारे अंगूठे को िच तुहारा ह िच है, दिनया म कसी दसरे आदमी के अंगूठे<br />

ु ू<br />

का िच तुहारा िच नहं है। चकत करनेवाली बात है। चार अरब आदमी ह दिनया ु म ,<br />

लेकन तुहारे अंगूठे क ितिलप कसी दसरे आदमी के अंगूठे क नहं है। और ऐसा ह<br />

ू<br />

नहं है क तुहारे अंगूठे क जो छाप है वह जंदा आदिमय म कसी क नहं है। वैािनक<br />

कहते ह जतने लोग इस जमीन पर अब तक हए ह उन म से कसी क छाप वैसी नहं थी।<br />

ु<br />

और जतने लोग आगे भी कभी पैदा हगे उन म से भी कसी क छाप वैसी नहं होगी। हर<br />

अंगूठे क छाप अनूठ है।<br />

जब अंगूठे तक क छाप अनूठ है तो आमा क छाप क तो बात ह न करो! जब तुहारे<br />

यान म उतरेगा कोई गीत तो न तो वह वेद होगा, न गीता होगी, न कु रान होगा। यप<br />

उस म वह होगा जो कु रान म है, जो वेद म है, जो गीता म है। मगर गीत तुहारा होगा।<br />

गुनगुनाहट तुहार होगी। लय तुहार होगी। नाचोगे तुम! उस म अनूठापन होगा। उस म<br />

मौिलकता होगी।<br />

और यह अछा है, शुभ है। काश, वह वह गीत बार-बार उतरता तो बड़ ऊब पैदा होती।<br />

परमामा िनत नूतन है।<br />

मुला नसन एक ेन म सफर कर रहा था। एक बड़े िस कव भी साथ म सफर कर<br />

रहे थे। कव थे तो ेन म बैठ-बैठे भी कवताएं िलख रहे थे। मुला ने उन से पूछा: कोई<br />

कताब पका वगैरह है आपके पास? खाली बैठा हं ू, कु छ पढं। ू<br />

कव जी ने फौरन पास म रखी हए ु एक कताब देते हए ु कहा। यह पढ़ए,<br />

मेर कवताओं<br />

का संकलन है। मुला नसन बोला। धयवाद, उसे तो आप अपने पास रखए। वैसे पढ़ने<br />

के िलए तो मेरे पास टाइम-टेबल भी है।<br />

एक तो आदिमय म ह कव, जो वह-वह दोहराए जाते ह। इधर उधर थोड़ा बहत ु भेद,<br />

फक, शद का जमाव, तुकबंद...बस तुकबंद है।<br />

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राजथान क पुरानी कहानी है। एक जाट िसर पर खाट लेकर जा रहा था। गांव का कव<br />

िमल गया, उस ने कहा: जाट रे जाट, िसर पर तेरे खाट!<br />

जाट भी कोई ऐसा रह जाए पीछे ...जाट और पीछे रहे जाए! उस ने कहा: कव रे कव, तेर<br />

ऐसी क तैसी!<br />

कव ने कहा: तुकबंद नहं बैठती, काफया नहं बैठता।<br />

जाट ने कहा: काफया बैठे क न बैठे, जो मुझे कहना था सो मने कह दया। काफया बठा<br />

कौन रहा है, तू बठाता रह काफया!<br />

एक तो तुकबंद ह, जा जाट के साथ खाट का काफया बठा रहे ह। परमामा कोई तुकबंद<br />

नहं है। अनंत है परमामा। अनंत ह उसक अिभययां--हर बार नई।<br />

जब भी तुम उधार ान इकठा कर लेते हो तब तुम बासा ान इकठा कर लेते हो।<br />

तुहारा परमामा पर भरोसा नहं है, इसिलए तुम वेद पर भरोसा करते हो। तुहारा<br />

परमामा पर भरोसा नहं है, इसिलए तुम कु रान को छाती से लगाए बैठे हो। काश, तुहारा<br />

परमामा पर भरोसा हो तो तुम कु रान भी छोड़ो, वेद भी छोड़ो, बाइबल भी छोड़ो; तुम<br />

कहो परमामा से क म राजी हं<br />

ू, मुझ पर भी उतर! मेरे ार खुले ह। मेरे भीतर भी आ।<br />

मुझ म भी गुनगुना। मेरा कसूर या है? मुझे भी छू । मेर िमट को भी सोना बना। मुझे<br />

भी सुगंध दे। आखर मुझ से नाराजी या है?<br />

जसका परमामा पर भरोसा है, वह यान कर सकता है। यान का अथ भूल मत जाना--<br />

जागकता, साी भाव और तुम कतना ह शा पढ़ो, तुम समझोगे वह जो तुम समझ<br />

सकते हो। अयथा हो भी कै से सकता है? तुम वेद भी पढ़ोगे तो तुम वह थोड़े ह पढ़ लोगे<br />

जो वेद के ऋष ने िलखा था। वेद के ऋष ने जो िलखा है उसे समझने को, उस ऋचा को<br />

समझने को, उस ऋष क बोध-दशा चाहए पड़ेगी। बना उस ऋष क बोध-दशा के तुम<br />

कै से समझोगे अथ?<br />

अथ शद म नहं होता, अथ देखनेवाले क आंख म होता है। अथ शद म िछपा नहं है<br />

क तुम ने शद को समझ िलया तो अथ समझ म आ जाएगा। शद तो के वल िनिम है,<br />

खूंट<br />

है। टांगना तो तुह अपना ह कोट पड़ेगा। तुम जो टांगोगे, वह खूंट<br />

पर टंग जाएगा।<br />

वेद को जब बु पढ़ेगा तो वेद भी उस के साथ बु हो जाते ह।<br />

ू ू<br />

मुला नसन एक दन मुझ से कह रहा था: कल रात मेरा पड़ोसी आधी रात को मेरा<br />

दरवाजा पीटने लगा। तो मने कहा क मुला, तब तो तुम बहत परेशान हए होओगे। मुला<br />

ु ु<br />

ने कहा: नहं जी, म और परेशान होता! म तो अपना गाना पहले क तरह ह गाता रहा।<br />

उसी गाने क वजह से वह पड़ोसी दरवाजा पीट रहा है क भइया, बंद करो। मगर मुला<br />

समझे तब...! मुला तो समझा क है वैसा मूढ़, क आधी रात और दरवाजा पीट रहा है!<br />

यह तो मुला सोच भी नहं सकता क मेरे गाने क वजह से ह पीछ रहा है।<br />

मुला ने िसतार बजाना शु कया तो वह एक ह तार पर र-र र-र...र-र करता रहता। पी<br />

घबड़ा गई, पागल होने लगी। बचे घबड़ा गए, पड़ोसी घबड़ा गए। एक दन सारे लोग<br />

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इकठे हो गए, हाथ जोड़कर ाथना क क महाराज, बहत ु संगीत देखे ह,<br />

मगर र-र र-<br />

र कतने दन से तुम कर रहे हो और हम सब पगला रहे ह! अब तो हम दन म भी,<br />

बाजार म काम करते व भी तुहार र-र सुनाई पड़ने लगी है। जान बशो! अगर संगीत ह<br />

सीखना है तो कम से कम दसरे तार को भी छु ओ।<br />

ू<br />

मुला ने कहा: तुम समझे नहं। दसरे संगीत इसिलए दसरे तार को छू ते ह तक वे अपना<br />

ू ू<br />

थान खोज रहे ह; मुझे मेरा थान िमल गया है। अब मुझे खोजने क जरत नहं है। मने<br />

पा िलया जो मुझे खोजना था, वह मुझे िमल गया। मुझे मेरा वर िमल गया है।<br />

तुम पढ़ोगे भी शा म तो या पढ़ोगे? मने सुना है क कु रान म कहं एक वचन आता है<br />

क शराब पयो, वेयागामी बनो--और नक म सड़ोगे। मुला नसन शराब भी पीता,<br />

वेयागामी भी...और कु रान भी पढ़ता है। तो मने पूछा: नसन, इस वचन पर तुहार<br />

नजर नहं गई? उस ने कहा। गई य नहं, कई बार गई। लेकन अभी जतना मुझ से<br />

बन सकता है उतना कर रहा हं। ू अभी आधा ह वचन मुझ से पुरा होता है। सामय ...मुला<br />

ने कहा: सामय अपनी-अपनी। बड़े पुष बड़ बात कह गए ह। मगर जतना अपने से बने,<br />

उतना करो। साफ आा है। शराब पयो, वेयागमन करो--साफ आा है। नक म सड़ोगे--<br />

वह बाद क बात है, वह देखगे।<br />

तुम समझोगे वह जो तुम समझ सकते हो। तुम अथ भी वे ह िनकालोगे, जो तुम को ह<br />

समिथत कर जाएंगे।<br />

नहं; यान के बना ान नहं हो सकता। यान पहले तुह ऋष बनाएगा, तब ऋचाओं<br />

के अथ खुलगे। और मजा यह है क जब तुम ऋष हो जाओगे और वेद क ऋचाओं के अथ<br />

तुहारे सामने खुलने लगगे--जैसे वसंत आ जाए और किलयां खल जाएं--तब तुह जरत<br />

ह न रहेगी वेद म जाने के, यक तुहारा अपना वेद ह भीतर लहराने लगेगा। तब तुम<br />

वयं ह वेद हो जाओगे। तब तुहारा वचन-वचन वेद होगा। तब तुहारा शद-शद कु रान<br />

होगा। उसी क तलाश करो जसे पा लेने से सारे शा का सार िमल जाता है।<br />

पंछ उड़ै म, खोज मंडै नहं माहं।<br />

दरया जल म मीन गित, मारग दरसै नाहं।।<br />

अदभुत वचन दरया दे रहे ह। एक-एक सू ऐसा है क हरे जवाहरात म भी तौलौ तो भी<br />

तौले न जा सक, अतुलनीय है।<br />

पंछ उड़ै गगन म...तुमने पय को आकाश म उड़ते देखा है, उनके पैर के िच नहं<br />

बनते ह। ऐसे ह ऋषय क गित है। उनके पैर के िच नहं बनते। परमामा के आकाश म<br />

जो उड़ रहे ह, उनके पैर के िच कहां बनगे? इसिलए तुम कसी के अनुगामी मत बनना।<br />

अनुगमन हो ह नहं सकता। पद िच ह नहं बनते।<br />

पंछ उड़ै गगन म, खोज मंडै नाहं माहं। लेकन आकाश म उसके कोई िच नहं पाए<br />

जाते। पी उड़ जाता है, िनशाना नहं बनते। इसिलए कोई दसरा पी अगर उसका<br />

ू<br />

अनुगमन करना चाहे तो कै से करे?<br />

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दरया जल म मीन गित...। जैसे नद म क सागर म, मछली चलती है...मारग दरसै<br />

नाहं।...कोई माग नहं बनता उसके चलने से। कोई दसरा ू उसके माग का अनुसरण करना<br />

चाहे तो कै से करे? परमामा के उस परम आकाश म भी, यान के उस शूयाकाश म भी<br />

न कोई िच बनते ह, न कोई माग।<br />

पंछ उड़ै गगन म...दरया जल म गीन गित...ऐसी ह गित है उस अंतर आकाश क। कहां<br />

कोई िच कभी नहं बनते। इसिलए वहां अनुगमन नहं हो सकता है।<br />

तुह अपना राता वयं ह बनाना होगा। हंद ू होने से काम न चलेगा,<br />

मुसलमान होने से<br />

काम न चलेगा। ईसाई, जैन, बौ होने से काम न चलेगा। यक इस बात का तो यह<br />

अथ हआ ु क माग बना बनाया है,<br />

िसफ तुह चलना है। जैन होने का या अथ है, क<br />

माग तो बना गए तीथकर, अब हमारा कु ल काम इतना है क चलना है। वे तो हाईवे तैयार<br />

कर गए। अब तुह कु छ और करने को बचा नहं है।<br />

नहं; माग बनता ह नहं सय का। सय का कोई माग नहं बनता।<br />

पंछ उड़ै गगन म...। याद रखना, महावीर और बु और कृ ण और ाइट ये सब आकाश<br />

म उड़ते पी ह। तुम इनका पीछा नहं कर सकते। ये कोई िच छोड़ नहं गए ह। िच तो<br />

पंडत ने बना िलए ह।<br />

बु ने कहा था, मेर कोई मूित मत बनाना। और आज दिनया म जतनी बु क मूितयां ह<br />

ु<br />

उतनी कसी क भी नहं ह, थोड़ा सोचो। कै से अदभुत लोग ह! बु जंदगीभर कहते रहे,<br />

मेर मूित मत बनाना। हजार बार समझाया, मेर मूित मत बनाना। यक मेर पूजा से<br />

कु छ भी न होगा। जाओ भीतर, जाओ अपने भीतर। अप दपो भव! अपने दए खुद बनो।<br />

लेकन बु क इतनी मूितयां बनीं, इतनी मूितयां बनीं, जतनी कसी क भी कभी नहं<br />

बनी और शायद अब कसी क भी कभी नहं बनगी! इतनी मूितयां बु क बनीं क उद म<br />

ू<br />

जो शद है बुत, वह बु का ह पांतर है। बु शद का अथ ह मूित हो गया--बुत! इतनी<br />

मूितयां बनीं क बु म और मूित शद म पयायवाची संबंध हो गया, कु छ भेद ह न रहा।<br />

मूित यानी बु क।<br />

चीन म मंदर है एक--दस हजार बु का मंदर। एक मंदर म दस हजार मूितयां ह। हआ<br />

ु<br />

या? बु कहते रहे, मेर मूित मत बनाना। फर लोग ने मूित य बना ली? लोग, जो<br />

पीछे आते ह, उह िच चाहए, उह पद िच चाहए। उहं मील के पथर चाहए। उहं<br />

साफ सुथरा राता चाहए। कोई इतनी झंझट नहं लेना चाहता क जंगल म अपनी पगडंड<br />

खुद बनाए--चले और बनाए, चले और बनाए; जतना चले उतनी बने।<br />

याद रखना, यह बात अित मौिलक, अित आधारभूत है। सय का कोई भी अनुसरण नहं<br />

हो सकता। सय का अनुसंधान होता है। अनुकरण नहं--अनुसंधान। कसी के पीछे चलकर<br />

तुम सय तक कभी न पहंचोगे। अपने भीतर जाओगे तो सय तक पहंचोगे। कसी के पीछे<br />

ु ु<br />

गए तो बाहर का अनुगमन रहा। अपने भीतर जाओगे, तब! बीहड़ है वहां, अंधकार है वहां।<br />

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जंगल है, राता साफ नहं है। जाना कठन है। लेकन वह कठनाई ह तो मूय है जो<br />

चुकाना पड़ता है।<br />

कं पत, वंजुल तन, मंजुल मन, यौवन चंचल<br />

नौ बंधन कल रहत तरणी, भव िसंधु वकल।<br />

गहो मीत, बांह सदय!<br />

म मय िचंतन शोचन, िमत ान, अिथर चरण<br />

ददम ु तम तोम जाल,<br />

अगम दसह ु काल-ण<br />

आगत अनजान, दखद<br />

ु , सुखद गत मरण मरण।<br />

वतमान करो वजय!<br />

जाग नव तव, अहरह, रत िनत चरणारवंद,<br />

मदमय संके त दान काटे दक काल बंध,<br />

शरणागत आरत जन मतकांा िनत अमंद।<br />

करो, बंधु, करो अभय!<br />

लावत घन धाराधर, अछल जीवन सागर,<br />

वात वसन झीन अिमत, ेपण गित अित दतर ु ,<br />

संशय भय दन पद, के वट तट अंध गहर।<br />

करो िसंधु बंद ु वलय!<br />

इस वराट िसंधु म अपने बंद को वलय करो।<br />

ु<br />

करो बंधु करो अभय!<br />

भय के कारण कु छ पकड़ो मत। भय छोड़ो।<br />

मंदर मजद को भय के कारण पकड़ा है तुमने। तुहारा भगवान, तुहारे भय क ह<br />

ितमा है। तुह भगवान का कोई पता नहं, यक तुह यान का ह कु छ पता नहं है।<br />

तुह भगवान का कोई पता नहं, यक तुह यान का ह कु छ पता नहं। एक तो<br />

भगवान है जो यान म अवतरत होता है और एक भगवान है जो तुहारे भय के कारण तुम<br />

िनिमत कर लेते हो। जो तुमने मूितयां बना रखी ह मंदर म, तुहारे भय के भगवान क<br />

ह। तुमने ह गढ़ा है उह। वे असली भगवान क नहं ह। असली भगवान तो वह है जसने<br />

तुह गढ़ा है। तुम भी खूब उसे चूका रहे हो! उऋण हो रहे हो क तूने हम गढ़ा, कोई फ<br />

नहं हम तुझे गढ़ते ह! तुहं बना लेते हो अपनी मूितयां, तुहं सजा लेते हो अपने थाल।<br />

तुहं गढ़ लेते हो अपनी ाथनाएं। कसे धोखा दे रहे हो? आमवंचना है यह।<br />

करो, बंध, करो अभय!<br />

करो िसंधु बंद ु वलय!<br />

डरो मत। भयभीत न होओ। धम का और भय से कोई संबंध नहं है। धम का और भी से<br />

कोई नाता नहं। तुमने शद तो सुना होगा सार भाषाओं म इस तरफ के शद ह। हंद म<br />

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शद है--धम भी। धािमक आदमी को कहते ह--धम भी। अंेजी म भी ठक वैसा शद है।<br />

धािमक आदमी को कहते ह--गाड फयरंग, ईर से डरने वाला।<br />

महामा गांधी ने िलखा है: और कसी से मत डरो, मगर ईर से जर डरना। और म<br />

तुमसे कहता हं<br />

ू: और कसी से डरो तो डरो, ईर से कभी मत डरना। यक ईर से अगर<br />

डरे तो संबंध ह न हो सके गा। उससे तो ेम करना। और ेम म कोई डरता है? ेम कहं<br />

डरता है? ेम अभय है।<br />

ेम से जोड़ो नाता। भय से नाते जुड़ते नहं। और जससे तुम भयभीत होते हो, तुहारे मन<br />

म उसके ित वरोध होता है, ेम नहं होता।<br />

तुलसीदास ने कहा है: भय बनु होय न ीित। और म तुमसे कहता हं<br />

ू: ठक इससे उट<br />

बात। तुलसीदास कहते ह बना भय के ीित नहं होती। वे पता नहं कसी ीित क बात<br />

कर रहे ह, क कसी के िसर पर लठ लेकर खड़े हो गए और उस को भयभीत कर दया<br />

और वह कहने लगा क मुझे आपसे बड़ा ेम है! यह ीित हई<br />

ु ? वह तीा करेगा कसी<br />

ण म जब बदला ले सके । वह तुह मजा चखाएगा। वह राह देखेगा...। भय बनु होय न<br />

ीित?<br />

मगर तुलसीदास कोरे पंडत ह; दरया जैसे नहं, बन कोरे पंडत! इसिलए मुझ से बहत<br />

ु<br />

बार लोग पूछते ह: आप कबीर पर बोले, नानक पर बोले, फरद पर बोले, दरया पर बोल<br />

रहे ह, मीरा पर बोले, इतने संत पर बोले; तुलसीदास पर य नहं बोलते? तुलसीदास<br />

पर म नहं बोलूंगा।<br />

तुलसीदास क वाणी म मुझे यान नहं दखाई पड़ता, अनुभव नहं<br />

दखाई पड़ता। पंडत ह। बड़े कव ह। मगर कवय म या लेना देना है? म कालीदास पर<br />

थोड़े ह बोलूंगा,<br />

भवभूित पर थोड़े ह बोलूंगा,<br />

शेसपयर पर थोड़े ह बोलूंगा।<br />

कवय से<br />

या लेना देना है? महाकव ह और बड़े पंडत ह और शा के बड़े ाता ह; मगर इन सब<br />

बात का मेर म कोई मूय नहं है। अनुभव क चूक मालूम होती है कहं, कहं भूल<br />

मालूम होती है।<br />

कहते ह जब तुलसीदास को कृ ण के मंदर म ले जाया गया--नाभादास ने अपने संमरण<br />

म िलखा है--तो तुलसीदास कृ ण क मूित के सामने झुके नहं। जो ले गया था, उसने कहा:<br />

नमकार नहं करएगा? उहने कहा: म तो िसफ धनुधार राम के सामने झुकता हं। जसे<br />

ू<br />

यान हो गया हो उसे धनुधार राम और बांसुर रखे कृ ण म भेद मालूम पड़ेगा? जसे<br />

यान हो गया हो, उसे तो मंदर और मजद म भी भेद नहं रह जाएगा। उसे तो<br />

महावीर, बु और मोहमद म भी भेद नहं रह जाएगा। मगर तुलसीदास को अभी कृ ण<br />

और राम म भी भेद दखाई पड़ रहा है--दोन हंद ह<br />

ू ! लेकन तुलसीदास ने कहा क मेरा<br />

माथा तो तभी झुके गा, जब धनुष बाण हाथ लोगे! मेरा माथा तो िसफ राम के सामने<br />

झुकता है!<br />

परमामा पर भी शत लगाओगे? यह माथा झुकाना हआ<br />

ु ? यह तो परमामा को झुकवाना<br />

हआ ु ! यह तो साफ बात हो गई क ह इरादे, अगर चाहते हो क म झुकूं,<br />

तो पहले तो<br />

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झुको, लो धनुष बाण हाथ। यह तो बात साफ हो गई, यह तो सौदा हो गया। यह ाथना न<br />

हई। ु यह तो अपेा हो गई क मेर अपेा पहले पुर करो तो फर म झुकूं<br />

गा। पहले तुम<br />

मेर अपेा पूर करो तो फर म तुहार अपेा पूर कं गा।<br />

नहं; तुलसीदास दखता है भय के कारण ह भ ह। और भय से भ पैदा नहं होती।<br />

भ तो ेम का परकार है। भय के कारण ह तुम दसर के बनाए हए रात पर चलते<br />

ू ु<br />

हो, यक लगता है सुरत ह। बहत लोग चल चुके ह तो डर नहं मालूम होता। अगर<br />

ु<br />

भीड़ गढे म भी जा रह हो तो तुम आसानी से जा सकते हो। यक इतने लोग कु छ<br />

गलती थोड़े ह कर रहे हगे।<br />

एक बार बनाड शॉ को कसी ईसाई पुरोहत ने कहा क आप अपने को ईसाई नहं मानते;<br />

करोड़ लोग ईसाई ह, या इतने लोग गलती कर सकते ह, या इतने लोग गलत हो<br />

सकते ह? बनाड शॉ ने जो उर दया वह बहत अदभुत है। खूब यानपूवक सुनना। बनाड<br />

ु<br />

शॉ ने कहा: इतने लोग सह हो ह नहं सकते। यक सय तो कभी कसी एकाध के<br />

जीवन म उतरता है। इतने लोग अगर सय ह तो सार पृवी सय से जगमग हो जाए।<br />

बनाड शॉ ने कहा क म तो इसीिलए ईसाई नहं हं क इतने लोग ईसाई ह तो सब गड़बड़<br />

ू<br />

होगा। नहं तो इतने लोग ईसाई हो सकते थे?<br />

जहां भीड़ चले वहां सावधान हो जाना। भीड़ चाल भेड़ चाल है। और परमामा क तलाश तो<br />

के वल वे ह कर पाते ह जनके पास िसंह क आमा है--जो िसंहनाद कर सकते ह।<br />

अके ले चलने म डर लगता है मगर यान म तो अके ले चलना पड़ेगा। वहां पी भी साथ<br />

नहं हो सकती, िम भी साथ नहं हो सकते।<br />

यहां हम इतने लोग ह। हम सब आंख बंद कर के यान म हो जाए, तो सब अके ले हो<br />

जाओगे। सब पड़ोसी िमट जाएंगे। फर यहां कोई न रहेगा। तुम अके ले बचोगे। और सब<br />

रहगे, वे भी अके ले-अके ले बचगे।<br />

यानी अके ला हो जाता है। इसिलए लोग यान से डरते ह। यानी को तो जंगल म घुस<br />

पड़ना पड़ता है--बीहड़ जंगल म, जहां कोई पगडंड भी नहं! चलता है झाड़य म से, कांट<br />

म से, उतना ह राता बनता है।<br />

ठक कहते ह दरया:<br />

पंछ उड़ै गगन म, खोज मंडै नहं माहं।<br />

दरया जल म मीन गित, मारग दरसै नहं जाय।<br />

दरया धन वे साधवा, जहां रहे लौ लाय।।<br />

वहां शद क तो कोई गित ह नहं, तो शा कै से तुह समझाएंगे? वहां मन बु िच भी<br />

नहं पहंचते। ु तो सोचने , वचारने, अययन करने, मनन करने से तुम वहां न पहंचोगे। ु<br />

दरया धन वे साधवा...। दरया कहते ह: वे सरलिच लोग धय ह, जो उस जगह पहंच<br />

ु<br />

गए ह--जहां शद नहं पहंचता<br />

ु<br />

, मन नहं पहंचता ु , िच नहं पहंचता ु , बु नहं पहंचती ु ,<br />

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जहां शा क कोई गीत नहं है; जहां वचार बहत पीछे छू ट जाते ह। जो उस भावलोक म<br />

ु<br />

उतर गए ह, वे धयभागी ह।<br />

करकांटा कस काम का, पलट करे बहत रंग।<br />

ु<br />

िगरिगट कसी काम का नहं होता; बहत रंग बदलता है। और यह हालत है दिनया म। तुम<br />

ु ु<br />

एक रंग से थक जाते हो तो दसरा ू रंग बदल लेते हो। संसार संसार से थक जाता है,<br />

जंगल<br />

भाग जाता है। लेकन वह का वह है। िच वह, िचंतन वह, धारणाएं वह। जस गीता<br />

को पकड़े बैठा संसार म था, उसी गीता को लेकर जंगल चला जाता है। समाज छोड़ देते ह<br />

लोग।<br />

एक मेरे िम जैन थे। समाज छोड़ दया, घर छोड़ दया, मुिन हो गए। मने उनसे पूछा क<br />

अब तम अपने को जैन मुिन य कहते हो? जब जैन का समाज ह छोड़ दया, जब जैन<br />

घर छोड़ दया तो अब कै से जैन? लेकन वह छोड़ना सब ऊपर-ऊपर है, भीतर सब वह का<br />

वह है--वह पकड़, वह धारणाएं, वह शा। असली बात ऐसे नहं छू टती। यह तो िगरिगट<br />

का रंग बदलना है।<br />

हंद ू ईसाई हो जाते ह;<br />

थक गए हंद ू होने से। बहत ु िगर मार िलया,<br />

चलो अब ईसाई हो<br />

जाएं। ईसाई हंद ू हो जाते ह। थे गए ईसाई होने से, चलो हंद ू हो जाएं। ऐसे लोग अपने रंग<br />

बदल लेते ह। मगर रंग बदलने से कु छ भी नहं होता, जब तक क तुहार आमा न<br />

बदले।<br />

करकांटा कस काम का, पलट करे बह रंग।<br />

ु<br />

जन दरया हंसा भला, जद तब एकै रंग।।<br />

हंस क अछा है, दरया कहते ह, क सदा एक रंग। एक शु सादगी, एक सरलता, एक<br />

िनमलता। यान का रंग है शु, सादगी, िनमलता, िनदषता। एक छोटे बचे क तरह<br />

िनदष िच यान का रंग है।<br />

और जो यान को उपलध होता है वह समथ होता है एक रहने म। जो यान को उपलध<br />

नहं होता, उसके तो िगरिगट क तरह रंग बदलने ह पड़ते ह। तुम खुद भी जानते हो।<br />

अपने अनुभव से जानते हो। जरा म सजन मालूम होते हो, जरा म दजन हो जाते हो।<br />

ु<br />

अभी-अभी बलकु ल भले थे, अभी-अभी एकदम तलवार िनकाल ली। अभी-अभी बलकु ल<br />

ेमपूण मालूम होते थे, जरा सी कु छ बात हो गई, आगबबूला हो गए। सुबह मंदर जा रहे<br />

थे, ऐसे भगत जी, मालूम होते थे। और तुह ह कोई दकान ु पर बैठा देखे ...तो लुटेरे हो<br />

जाते हो। तम दन म कतने रंग बदलते हो! यह िगरिगट होना छोड़ो। मगर यह तभी छू ट<br />

सकता है जब तुहारे भीतर यान का शु रंग फै ल जाए।<br />

दरया बगला उजला, उजल ह होय हंस।<br />

लेकन खयाल रखना, दरया कहते ह क म कह रहा हं ू क सफे द रंग,<br />

सफे द रंग बगुल<br />

का भी होता है।<br />

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बगुले बहत ाचीन समय से ह शु सफे द खाद पहनते ह। गांधी बाबा ने तो बहत बाद म<br />

ु ु<br />

यह रज खोला। बगुल को पहले से पता है, वे पहले से ह खाद पहनते ह। और बगुले बड़े<br />

योगी होते ह! देखो तुम एक टांग पर खड़े रहते ह--बगुलासन आसन लगाए रहते ह! नहं तो<br />

मछिलयां फं से भी नहं। एक टांग पर बगुला खड़ा रहता है--मछिलयां को धोखा देने को।<br />

यक दो टांग अगर मछिलय को दखाई पड़ तो उनको शक हो जाए क यह बगुला है।<br />

एक टांग का कहं कोई होता है? एक टांग का कहं कोई हो सकता है। एक टांग का कोई<br />

होता ह नहं। तो मछिलयां िनत रहती ह क होगी लकड़ गड़ होगी क कोई पौधा उगा<br />

होगा। मगर कोई बगुला...उसक दे टांग होनी चाहए। तो बेचारा बगुला सदय से योग साध<br />

रहा है; एक टांग पर खड़ा रहता है। योगशा म बगुलासन भी एक आसन है, जस म एक<br />

टांग पर खड़े रहना पड़ता है। और बलकु ल हलता डुलता नहं, यक जरा हले डु ले तो<br />

पानी हल डुल जाए। पानी हल डुल जाए तो मछिलयां शंकत हो जाएं। तो बगुला ऐसा खड़ा<br />

रहता है--बलकु ल िथर, िच, एका!<br />

दरया कहते ह क म सफे द रंग क बात कर रहा हं<br />

ू, तुम कहं भूल मत बैठ जाना। यक<br />

हंस भी सफे द होते ह, बगुले भी सफे द होते ह।<br />

दरया बगला उजला, उजल ह होय हंस। दोन उजले ह, मगर दोन के उजले पन म बड़ा<br />

फक है।<br />

ए सरवर मोती चुग, वाके मुख म मंस। एक तो मानसरोवर म मोती चुगता है और दसरा<br />

ू<br />

के वल मछिलयां पकड़ता है। दसरा के वल मांस चीथड़ के िलए लालाियत रहता है। एक के<br />

ू<br />

मुंह<br />

म मांस है और एक के मुंह<br />

म मोती है। मोितय से पहचान होगी--कौन बगुला है कौन<br />

हंस है! जस वाणी से मोती झरते ह, जसके पास मोितय क वषा होती हो, जहां से तुम<br />

भी अपनी झोली मोितय से भरकर लौट आओ--बैठना वहां। लगाना ाण को वहां। जोड़ना<br />

अपनी आमा को वहां।<br />

दरया बगला उजला, उजल ह होय हंस।<br />

ए सरवर मोती चुग, वाके मुख म मंस।।<br />

बस म सफर कर रह एक महला ने अपने सहयाी। मुला नसन को कहा क आप<br />

शायद कु छ कहना चाह रहे ह? मुला नसन ने कहा क जी नहं। म य कु छ कहना<br />

चाहंगा<br />

ू ? उस महला ने कहा: तो फर शायद आप जसे अपना पैर समझकर खुजला रहे ह,<br />

वह मेरा पैर है यह बता देना जर है।<br />

मुला गया था नुमाइश म। लखनऊ क नुमाइश। रंगीन लोग, रंगीन हवा। एक सुंदर<br />

सी<br />

महला को मुला धका धुक करने लगा। मौका देख कर यूंट<br />

इयाद भी ले ली।<br />

आखर उस महला से न रहा गया। उसने मुड़कर मुला क तरफ कहा क शम नहं आती!<br />

खाद के सफे द कपड़े पहने हो। गांधीवाद टोपी लगाए हो। शम नहं आती!<br />

मुला ने कहा: जब दली म ह कसी को नहं आती तो मुझे ह य आएं? कोई मने शम<br />

का ठेका िलया है?<br />

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महला भी कु छ चुप रह जानेवाली नहं थी। उसने कहा: छोड़ो खाद क बात बाल भी सफे द<br />

हो गए। कु छ सफे द बाल क तो लाज रखो!<br />

मुला ने कहा: बाल कतने ह सफे द हो गए ह, दल मेरा अब भी काला है। अब बाल क<br />

सुनूं,<br />

दल क सुनूं,<br />

तू ह बता।<br />

बगुला ऊपर-ऊपर सफे द है, दल तो बहत ु काला है। रंग बस ऊपर-ऊपर<br />

है। भीतर तो बड़ा<br />

तमस है। और खयाल रखना, बगुला हो जाना बहत ु आसान है। कहते ह न बगुला भगत!<br />

जन दरया हंसा तना, देख बड़ा यौहार।<br />

तन उजल मन उजला, उजल लेत अहार।।<br />

इसिलए तन को ह देखकर मत उलझ जाना। बाहर-बाहर के यवहार को देखकर मत उलझ<br />

जाना। अंतरतम म झांकना।<br />

तन उजल मन उजला, उजल लेत अहार।<br />

देखना यवहार। देखना आहार। देखना बाहर, देखना भीतर।<br />

ससंग का यह अथ है क गु के पास सब रंग म बैठकर देखना, सब ढंग म बैठकर<br />

देखना। सब दशाओं से गु से संबंध जोड़ना, ताक उसक अंतरामा क झलक तुम पर<br />

पड़ने लगे।<br />

बाहर से उजल दसा, भीतर मैला अंग।<br />

ता सेती कौवा भला, तन मन एकह रंग।।<br />

दरया कहते ह: बगुले से तो कौआ भला, कम से कम बाहर भीतर एक ह रंग तो है।<br />

राजनेताओं से तो अपराधी भले ह कम से कम बाहर भीतर एक ह रंग तो है! तुहारे<br />

तथाकिथत संत से तो पापी भले ह, कम से कम बाहर भीतर एक ह रंग तो है।<br />

बाहर से उजल दसा, भीतर मैला अंग।<br />

लेकन सदय-सदय से तुह पाखंड िसखाया गया है। तुह यह िसखाया गया है--बाहर<br />

कु छ भीतर कु छ। तुह यह िसखाया गया है क तुह भीतर जो करना हो करो, मगर बाहर<br />

एक सुंदर<br />

प रेखा बनाए रखो। लोग अपने घर म बैठकर खाना सजाकर रहते ह, बाक<br />

उनका घर गंदा पड़ा रहता है। बस बैठकखाना सजा रहता है। ऐसी ह लोग क जंदगी है;<br />

उनका बैठकखाना सजा रहता है। चेहरे पर उनके मुकान रहती है। मुंह<br />

म राम, बगल म<br />

छु र।<br />

मुला नसन मुझसे कह रहा था क म डर के कारण हंसता हं। ू मने पूछा:<br />

यह भी कोई<br />

बात हई<br />

ु ! लोग आनंद के कारण हंसते ह, डर के कारण? तुम कु छ नई ह बात ले आए!<br />

तुम या तुलसीदास जी के अनुयायी हो या या बात है--भय बनु होय न ीित! तुह डर<br />

से हंसी आती है? डर से लोग कं पते ह, हंसोगे य?<br />

उसने कहा क नहं, आप समझे नहं आपको या मालूम, मेर पी जब भी कभी चुटकु ले<br />

सुनाने लगती है तो उसके डर से मुझे हंसना ह पड़ता है। और वह चुटकु ले वह कई दफे<br />

सुना चुक है, मगर फर भी मुझे हंसना पड़ता है।<br />

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एक पाखंड है जसम हम दत कए जाते ह। राते पर कोई िमल जाता है तुम कहते हो:<br />

जयराम जी, सौभाय क सुबह-सुबह आपके दशन हए<br />

ु ! शुभ घड़, शुभ मुहत<br />

ू ...। और मन<br />

म कहते हो क यह दु कहां से सुबह-सुबह दखाई पड़ गया! अब पता नहं दन म या<br />

हालत होगी! कोई घर आता है तो कहते हो: आओ, वराजो। वागत। पलक पांवड़े बछाते<br />

ह। और भीतर-भीतर कहते हो: यह कमबत! इसको आज ह आने क सूझी!<br />

मुला नसन के घर एक दन एक दंपित ने दतक द। मुला ने डरते-डरते आधार<br />

दरवाजा खोला। नंग-धड़ंग था। िसफ गांधी टोपी लगाए हए था। ी तो बहत घबड़ा गई।<br />

ु ु<br />

लेकन अब मेहमान आ ह गए ह तो मुला ने कहा: आइए-आइए, बड़ा वागत है! आइए!<br />

डरते-डरते पित पहले घुसा, पीछे पी भयभीत...। पित ने पूछा: यह तुमने या ढंग बना<br />

रखा है? नंगे य बैठे हो?<br />

तो मुला ने कहा क इस समय मुझ से कोई िमलने आता ह नहं। इसिलए मत, अपना<br />

घर अके ला नंगा बैठा हआ हं।<br />

ु ू<br />

तो पी ने पूछा: फर यह टोपी य लगाई है? तो मुला ने कहा: कभी कोई भूल चूक से<br />

शायद आ ह जाए।<br />

लोग दोहरे इंतजाम कए हए ह। एक<br />

ु उनक जंदगी है, जसे वे अंधेरे म जीते ह और एक<br />

जंदगी है, जसे वे उजाले म दखाते ह।<br />

दरया कहते ह: इससे तो कौआ भला। ता सेती कौवा भला, तन मन एकह रंग। काला ह<br />

सह, मगर कम से कम तन और मन तो एक है! बुरे भी होओ तो इतना बुरा नहं है,<br />

अगर तुम िनकपट होओ और जैसे हो वैसा ह अपने को कट करते हो। पाखंड पापी से भी<br />

बदतर है। लेकन पाखंडय क पूजा होती है, पापय को सजा िमलती है। पाखंड िसर पर<br />

बैठे ह। इसिलए जनको भी िसर पर बैठना है, वे पाखंड को अंगीकार कर लेते ह।<br />

म तुमसे कहना चाहता हं ू, मरण रखना: पाखंड इस जगत म सब से बड़ दगित ु है। उससे<br />

और यादा नीचे िगरने का कोई उपाय नहं है। अगर हंस हो सको तो अछा--बाहर-भीतर<br />

एक शुभ रंग। अगर हंस न हो सको तो कम से कम कौआ बेहतर बाहर भीतर एक रंग,<br />

कम से कम एक बात म तो हंस जैसा है; यप रंग काला है, मगर बाहर भीतर क एकता<br />

तो है। मगर बगला भगत मत होना। वह सबसे बदतर अवथा है।<br />

मानसरोवर बािसया, छलर रहै उदास।<br />

जन दरया भज राम को, जब लग पंजर सांस।।<br />

वह जो मानसरोवर का अनुभव कर िलया है हंस, अब उसे िछछले, गंदे तालाब म अछा<br />

नहं लगता। इस बात को खयाल म लो।<br />

म तुमसे कहता हं<br />

ू: संसार मत छोड़ो, लेकन यान म डूबो। एक दफा यान का वाद<br />

आएगा। क बस संसार गंदा तालाब हो जाएगा। हो ह जाएगा; छोड़ना न पड़ेगा, भागना न<br />

पड़ेगा। अपने को मनाना न पड़ेगा। यागना न पड़ेगा। अपने आप िछछला गंदा तालाब हो<br />

जाएगा। मानसरोवर क जसे झलक भी िमल गई; उस फटक मण जैसे वछ जल क<br />

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जसे झलक भी िमल गई; या एक घूंट<br />

जसने पी ली--उसके िलए यह सारा संसार अपने<br />

आप यथ हो जाता है। इसिलए म छोड़ने को नहं कहता; हां, छू ट जाए तो बात और। छू ट<br />

जाए तो गरमा और, गौरव और। छोड़ना मत। छोड़ने से िसफ अहंकार बढ़ेगा और पाखंड<br />

बढ़ेगा।<br />

संसार म रहते-रहते ह यह तुह साफ होने लगे क भीतर एक मानसरोवर है तो तुम भीतर<br />

डु बक मारोगे। भीतर पयोगे। भीतर नहाओगे। और बाहर ठक है, कचड़ है सो है। बाहर क<br />

कचड़ तुहारा या बगाड़ लेगी? बाहर क कचड़ बहत से बहत तुहार देह को ह छू<br />

ु ु<br />

सकती है। और तुहार देह भी कचड़ से बनी है। सो कचड़ से कचड़ का या बगड़ेगा?<br />

मानसरोवर बािसया...जसको यान म बसना आ गया, छलर रहे उदास...वह अपने आप<br />

िछछले सागर, िछछले सरोवर, िछछले तालाब के ित उदास हो जात है। यान रखना,<br />

उसके िलए हमारे गहरे से गहरे सागर भी िछछले हो जाते ह, जसने भीतर का सागर देख<br />

िलया।<br />

जन दरया भज राम को, जब लग पंजर सांस।<br />

फर तो एक ह बात रह जाती है करने योय क जब तक पंजड़े म सांस चलती है, ास<br />

ास म भु का मरण चलता है। रहता है संसार म, रहता है बाजार म, मगर बसता है<br />

मानसरोवर म। बसता है परमामा म, राम म।<br />

दरया सोता अकल जग, जागत नाहं कोय।<br />

जागे म फर जागना, जागा कहए सोय।।<br />

छोटे से सू म साी का पूरा शा कह दया। दरया सोता सकल जग...यहां तो सारा संसार<br />

सोया हआ ु है तुम जो भी कर रहे हो,<br />

नींद म कर रहे हो। यहां कोई जागा हआ ु नहं है।<br />

एक दाढ़ वाले साहब बस म खड़े-खड़े सफर कर रहे थे। एक टाप पर एक बहत ह ठगने<br />

ु<br />

कद का य उस म सवार हआ। उसका हाथ डंडे तक नहं पहंच रहा था। इसिलए वह उन<br />

ु ु<br />

दाढ़ वाले साहब क दाढ़ कर खड़ा हो गया। कु छ देर तक तो दाढ़ वाले साहब चुप रहे<br />

लेकन वे फर उस से बोले: मेर दाढ़ छोड़...। उस ठगने आदमी ने कहा: य, या आप<br />

अगले टाप पर उतरने वाले ह?<br />

अपनी-अपनी सूझ। अपनी-अपनी ऊं चाई। अपनी-अपनी तंा। अपनी-अपनी बुहनता।...और<br />

हम चले जा रहे ह। और हम कए जा रहे ह, जो भी हमसे बनता है।<br />

एक कव महोदय माइक छोड़ने का नाम नहं ले रहे थे। जब ोताओं ने बहत िचल प<br />

ु<br />

मचाई तो कव महोदय बोले: ठक है, अब आप थोड़ और स करके मेर अंितम पंहवीं<br />

कवता सुन ल।<br />

ऐसा बार-बार कह कर तो आप उनीस कवताएं पहले ह सुना चुके ह--कई ोताओं ने<br />

िचलाकर टोका। कव महोदय ने शांत मुा क और देखा और बोले: िगनती म भूल सुधार<br />

के िलए धयवाद। और यह कह कर वे पुनः कवता पाठ करने म तलीन हो गए।<br />

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लोग बस चले जा रहे ह। कहां जा रहे ह, यक जा रहे ह, या कर रहे ह, जो कर रहे<br />

ह उस से कु छ हो रहा है क नहं हो रहा है--कसी को िचंता नहं है। होश ह नहं है।<br />

जंदगी ऐसे धकम धुक म बीती जाती है, आपाधापी म बीती जाती है।<br />

दरया सोता सकल जग, जागत नाहं कोय।<br />

जागे म फर जागना...। इसके जागना नहं कहते जसको तुम जागना कहते हो। यह जो रात<br />

नींद टट ू जाती है और सुबह उठ गए और कहा क जाग गए इस को जागना नहं कहते।<br />

जागने वाले इसको जागना नहं कहते। जागने वाले कस को जागना कहते ह? जागे म फर<br />

जागना!इस जागने म भी जो जाग जाए। नींद टट ू गई,<br />

वह तो देह क थी। आमा क नींद<br />

जब टट ू जाए।<br />

रात सपने देखते हो, दन वचार करते हो। दोन हालत म तंा िघर रहती है। अगर वचार<br />

छू ट जाएं, अगर वचार का िसलिसला बंद हो जाए--तो जागना, तो साी, तो यान।<br />

िनवचार िचत--जागने का अथ है।<br />

जागे म फर जागना, जागा कहए सोय।<br />

जो समािध को उपलध है, वह जागा हआ ु है। इसिलए हमने समािधथ लोग को बु कहा<br />

है। बु का अथ होता है: जागा हआ।<br />

ु<br />

बु से कसी ने पूछा, तुम कौन हो? यक इतने सुंदर<br />

थे! देह तो उनक सुंदर<br />

थी ह,<br />

लेकन यान ने और अमृत क वषा कर द थी--अमी झरत, बगसत कं वल! यान ने उह<br />

और नई आभा दे द थी। एक अपूव सदय उह घेरे था। एक अपरिचत आदमी ने उह<br />

देखा और पूछा: तुम कौन हो? या वग से उतरे कोई देवता?<br />

बु ने कहा: नहं।<br />

तो या इं के दरबार से उतरे हए ु गंधव ? बु ने कहा: नहं।<br />

तो या कोई य? बु ने कहा: नहं। ऐसे वह आदमी पूछता गया, पूछता गया--या कोई<br />

चवत साट? बु ने कहा: नहं। तो उस आदमी ने पूछा: कम से कम आदमी तो हो! बु<br />

ने कहा: नहं।<br />

तो या पशु पी हो? बु ने कहा: नहं। तो उसने फर पूछा थककर क फर तुम हो<br />

कौन, तुह कहो? तो बु ने कहा: म िसफ एक जागरण हं। म बस जागा हआ<br />

ू ु , एक साी<br />

मा। वे तो सब नींद क दशाएं थीं। कोई पी क तरह सोया है, कोई पशु क तरह सोया<br />

है। कोई मनुय क तरह सोया है, कोई देवता क तरह सोया है। वे तो सब सुषुि क<br />

दशाएं थीं। कोई वन देख रहा है गंधव होने का, कोई य होने का, कोई चवत होने<br />

का। वे सब तो वन क दशाएं थीं। वे तो वचार के ह साथ तादाय क दशाएं थीं। म<br />

िसफ जाग गया हं। म इतना ह कह सकता हं क म जागा हआ हं। म सब जागकर देख<br />

ू ू ु ू<br />

रहा हं। म जागरण हं<br />

ू ू--मा जागरण!<br />

ऐसे को हम जागा हआ कहते ह।<br />

ु<br />

साध जगावै जीव को, मत कोई उठे जाग।<br />

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सदगु जाते ह, लेकन कु छ थोड़े से ह लोग जगते ह। कौन लोग? जो मत ह, मलमत<br />

ह। कु छ थोड़े से मत। कल मने जो तुमसे कहा न--यहां बुमान के िलए आमंण नहं है,<br />

यहां मत के िलए आमंण है! यहां दवान के िलए बुलावा है। बुमानी तो कचरा है।<br />

इसिलए इस आम का िनयम है क जहां जूते उतारते हो, वहं बुमानी भी उतार कर रख<br />

आया करो। यहां तो आओ पयकड़ क तरह। दरया कहते ह: साध जगावै जीव को, मत<br />

कोई उठे जाग। कोई मतवाला, कोई दवाना जागता है। चतुर, होिशयार चूक जाते ह।<br />

अपनी चतुराई म चूक जाता ह। सोच ह वचार म चूक जाते ह--जागना क नहं जागना?<br />

जागने से फायदा या है? और फर इतने-इतने वन चल रहे ह, कहं टट ू गए जागने से!<br />

जो हाथ म है वह भी छोड़ देना, उसके िलए जो अभी हाथ म नहं है। समझदार तो कहते<br />

ह, हाथ क आधी रोट भली है दर क<br />

ू पूर रोट के बजाय। पता नहं आधी भी छू ट जाए<br />

और पूर भी न िमले! यह तो कोई मत, यह तो कोई दवाने, यह तो कोई जुआर, यह<br />

तो कोई दसाहिसय का काम है।<br />

ु<br />

साध जगावै जीव को, मत कोई उठे जाग।<br />

जागे फर सोवै नहं, जन दरया बड़ा भाग।।<br />

और जो एक दफा जाग गया, फर सोता नहं--सो ह नहं सकता। वह बड़भागी है!<br />

हरा लेकर जौहर, गया गंवारै देस।<br />

लेकन अिधकतर तो हालत ऐसी है क सदगु आते ह, बहत कम लोग पहचान पाते ह।<br />

ु<br />

उनक हालत वैसी है जैसे--हरा लेकर जौहर गया, गंवारै देस। गंवार के देस म कोई जौहर<br />

हरा लेकर गया।<br />

देखा जन कं कर कहा, भीतर परख न लेस।<br />

परख ह न थी, तो जहने भी देखा, कं कड़ कहा। हंसे हगे। जौहर ने दाम मांगे हगे,<br />

तो कहा होगा: पागल हो गए हो, हम तो तुम ने बु समझा है<br />

ू ? इस कं कड़ को हम<br />

खरदगे! ऐसे कं कड़ तो यहां गांव म जगह-जगह पड़े ह। कहं और जाओ। कहं बुओं को<br />

ु<br />

फं साओ। इतने हम पागल नहं ह!<br />

हरा लेकर जौहर, गया गंवारै देस।<br />

देखा जन कं कर कहा, भीतर परख न लेस।।<br />

दरया हरा ोड़ का...हरा तो करोड़ का!<br />

दरया हरा ोड़ का, कमत लखै न कोय।<br />

जबर िमलै कोई जौहर, तब ह परख होय।।<br />

वे थोड़े से दवाने, जनक आंख म मती का रंग छा गया है, वे ह पहचान पाएंगे, हरे<br />

को परख पाएंगे।<br />

जीसस को कतने थोड़े लोग ने पहचाना! हरा आया और गया! बु को कतने थोड़े लोग ने<br />

संग साथ दया! हरा आया और गया! हरे आते रहे, जाते रहे; थोड़े से दवाने पहचानते ह।<br />

लेकन जो पहचान लेते ह, वे मु हो हो जाते ह। वे बड़ भागी ह।<br />

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तुम भी बड़भागी बनो!<br />

आज इतना ह।<br />

अपने माझी बनो<br />

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छठवां वचन; दनांक १६ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

भगवान! उपिनषद कहते ह क सय को खोजना खग क धार पर चलने जैसा है। संत<br />

दरया कहते ह क परमामा क खोज म पहले जलना ह जलना है। और आप कहते ह क<br />

गाते नाचते हए ु भु के मंदर क और आओ। इन म कौन सा कोण सयक है?<br />

वो नगमा बुलगुले रंगी नवा इक बार हो जाए।<br />

कली क आंख खुल जाए चमन बेदार हो जाए।।<br />

भगवान! आपको सुनता हं ू तो लगता है क पहले भी कभी सुना है। देखता हं ू तो लगता है<br />

क पहले भी कभी देखा है। वैसे म पहली ह बार यहां आया हं<br />

ू, पहली ह बार आपको सुना<br />

और देखा है। मुझे यह या हो रहा है?<br />

आप कु छ कहते ह, लोग कु छ और ह समझते ह! यह कै से के गा?<br />

आपका मूल संदेश या है?<br />

पहला : भगवान! उपिनषद कहते ह क सय को खोजना खग क धार पर चलने जैसा<br />

है। संत दरया कहते ह क परमामा क खोज म पहले जलना ह जलना है। और आप<br />

कहते ह क गाते नाचते हए भु के मंदर क और जाओ। इनम कौन सा कोण सयक<br />

ु<br />

है?<br />

आनंद मैेय! सय के बहत पहलू ह। और सय के<br />

ु सभी पहलू एक ह साथ सय होते ह।<br />

उन म चुनाव का सवाल नहं है। जस ने जैसा देखा उस ने वैसा कहा।<br />

उपिनषद क बात ठक ह है, यक सय के माग पर चलना जोखम क बात है। बड़<br />

जोखम! यक भीड़ असय म डु बी है। और तुम सय के माग पर चलोगे तो भीड़ तुहारा<br />

वरोध करेगी। भीड़ तुहारे माग म हजार तरह क बाधाएं खड़ करेगी। भीड़ तुम पर हंसेगी,<br />

तुह व कहेगी। भीड़ म एक सुरा है।<br />

सय के माग पर चलनेवाला य अके ला पड़ जाता है। भीड़ उस से नाते तोड़ लेती है,<br />

उस से संबंध वछन कर लेती है। समाज उसे शु मानता है। नहं तो जीसस को लोग<br />

सूली देते क मंसूर क गदन काटते? वे तुहारे जैसे ह लोग थे जहने जीसस को सूली द<br />

और जहने मंसूर क गदन काट। अपने हाथ को गौर से देखोगे तो उनम मंसूर के खून<br />

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के दाग पाओगे। तुहारे जैसे ह लोग थे। कोई दु नहं थे। भले ह लोग थे। मंदर और<br />

मजद जानेवाले लोग थे। पंडत-पुरोहत थे। सदाचार, सचर, संत थे। जहने जीसस<br />

को सूली द, वे बड़े धािमक लोग थे। और जहने मंसूर को मारा उह भी कोई अधािमक<br />

नहं कह सकता। लेकन या कठनाई आ गई?<br />

जब भी आंखवाला आदमी अंध के बीच म आता है तो अंध को बड़ अड़चन होती है।<br />

आंखवाले के कारण उह यह भूलना मुकल हो जाता है क हम अंधे ह। अहंकार को चोट<br />

लगती है। छाती म घाव हो जाते ह। न होता यह आंखवाला आदमी, न हम अंधे मालूम<br />

पड़ते। इसक मौजूदगी अखरती है। यह िमट जाए तो हम फर लीन हो जाएं अपने अंधेपन<br />

म और मानने लग क हम जानते ह, हम दखाई पड़ता है।<br />

जब जाननेवाला कोई य पैदा होता है, तो जहने थोथे ान के अंबार लगा रखे ह उह<br />

दखाई पड़ने लगता है क उनका ान थोथा है। उनका ान लाश है। उस म सांस नहं<br />

चलतीं, दय नहं धड़कता, लह नहं बहता। उह दखाई पड़ने लगता है उहने फू ल जो<br />

ू<br />

ह, बाजार से खरद लाए ह, झूठे ह, कागजी ह, लाटक के ह। असली गुलाब का फू ल<br />

न हो तो अड़चन पैदा नहं होती यक तुलना पैदा नहं होती।<br />

बु का जम तुलना पैदा कर देता है। तुम अंधेरे घर म रहते हो, तुहारा पड़ोसी भी अंधेरे<br />

घर म रहता है और पड़ोिसय के पड़ोसी भी अंधेरे घर म रहते ह। तुम िनत हो गए हो।<br />

तुह अंधेरे के कोई अड़चन नहं है। तुम ने मान िलया है क अंधेरा ह जीवन का ढंग है,<br />

शैली है। जीवन ऐसा ह है, अंधेरा ह है। ऐसी तुहार मायता हो गई। फर अचानक<br />

तुहारे पड़ोस म कसी ने अपने घर का दया जला िलया। अब या तो तुम भी दया जलाओ<br />

तो राहत िमले; या उस का दया बुझाओ तो राहत िमले।<br />

और दया जलाना कठन है, दया बुझाना सरल है। और दया जलाना कठन इसिलए भी<br />

क कतने-कतने लोग को दए जलाने पड़गे, तब राहत िमलेगी। और बुझाना सरल है,<br />

यक एक ह दया बुझ जाए तो अंधेरा वीकृ त हो जाए।<br />

उपिनषद ठक कहते ह। सय के एक पहलू क तरफ इशारा है क सय के माग पर चलना<br />

तलवार क धार पर चलने जैसा है। और संत दरया भी ठक कहते ह क परमामा क खोज<br />

म जलना ह जलना है। वरह क अन के बना िनखरोगे भी कै से? जब तक वरह म<br />

जलोगे नहं, तपोगे नहं, राख न हो जाओगे वरह म--तब तक तुहारे भीतर िमलन क<br />

संभावना पैदा ह नहं होगी। वरह म जो िमट जाता है, वह िमलन के िलए हकदार होता<br />

है, पता होता है। िमटने म ह पाता है। और जलन कोई साधारण नहं होगी; रोआं-रोआं<br />

जलेगा; कण-कण जलेगा। यक सम होगी जलन, तभी सम से िमलन होगा। यह<br />

कसौट है, यह परा है, और यह पव होने क या है। यह ाथना है। यह भ है।<br />

तो दरया भी ठक कहते ह...यह दसरा पहलू हआ सय का। यह आंतरक पहलू हआ सय<br />

ू ु ु<br />

का। पहली बात थी, जो बाहर से पैदा होगी। दसर बात है<br />

ू , जो तुहारे भीतर से पैदा होगी।<br />

समाज तुह सताएगा; उसे सहा जा सकता है। कौन िचंता करता है उसक! यादा से यादा<br />

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देह ह छनी जा सकती है। तो देह तो िछन ह जाएगी। अपमान कया जा सकता है। तो<br />

नाम ठहरता ह कहां है इस जगत म! पानी पर खींची गई लकर है, िमट ह जानेवाला है।<br />

लोग पथर फ क गे, गािलयां दगे; मगर ये सब साधारण बात ह। जसके भीतर लगन लगी<br />

सय क, वह इन सब के िलए राजी हो जाएगा। यह कु छ भी नहं है। यह कोई बड़ा मूय<br />

नहं है।<br />

भीतर क आग कहं यादा तड़फाएगी। धू-धू कर जलेगी। अपने ह ाण अपने ह हाथ जैसे<br />

हवन म रख दए! हजार बार मन होगा क हट जाओ, अभी भी हट जाओ! अभी भी देर<br />

नहं हो गई है। अभी भी लौटा जा सकता है। हजार बार संदेह खड़े हगे क यह या<br />

पागलपन कर रहे हो? य अपने को जला रहे हो? सार दिनया मत है और तुम जल रहे<br />

ु<br />

हो! सारे लोग शांित से सोए ह और तुम जाग रहे हो और तुहार आंख म नींद नहं और<br />

तारे िगन रहे हो!<br />

और एक दन हो तो चल जाए। दन बीतगे, माह बीतगे, वष बीतगे। और कोई भी पका<br />

नहं है क िमलन होगा भी? यह पका नहं है क परमामा है। पका तो उसी का हो<br />

सकता है जसका िमलन हो गया। िमलन जसका नहं हआ है वह तो ा से चल रहा है।<br />

ु<br />

होना चाहए, ऐसी ा से चल रहा है। होगा, ऐसी ा से चल रहा है। झलक दखाई<br />

पड़ती ह उसक--सुबह उगते सूरज म, रात तार भरे आकाश म, लोग क आंख म।<br />

झलक िमलती ह उस क। इतना वराट आयोजन है तो इस के पीछे िछपे हए हाथ हगे।<br />

ु<br />

और इतना संगीतब अतव है तो इसके पीछे कोई िछपा संगीत होगा। ऐसी मधुर वीणा<br />

बज रह है, अपने से नहं बज रह होगी। यह संयोग ह नहं हो सकता।<br />

वैािनक कहते ह, जगत संयोग है; पीछे कोई परमामा नहं है। एक वैािनक ने इस पर<br />

वचार कया क अगर जगत संयोग है तो इसके बनने क संभावना कै सी है, कतनी है?<br />

उस ने जो हसाब लगाया वह बहत ु हैरानी का है। उस ने हसाब<br />

लगाया है, बीस अरब<br />

बंदर, बीस अरब बरस तक, बीस अरब टाइप राइटर पर खटापट-खटापट करते रह, तो<br />

संयोग है क शेसपयर का एक गीत पैदा हो जाए। संयोग है। बीस अरब बंदर, बीस वष<br />

तब, बीस अरब टाइप राइटर को ऐसे ह खटरपटर-खटरपटर करते रह, तो कु छ तो होगा<br />

ह। लेकन शेसपयर का एक गीत पैदा करने म इतनी बीस अरब वष क तीा करनी<br />

होगी--शेसपयर का एक गीत पैदा करने म!<br />

और यह अतव गीत से भरा है। हजार-हजार कं ठ से गीत कट हो रहे ह। हजार<br />

शेसपयर पैदा हए ु ह,<br />

होते ह। और जरा तार के इस वतार को इस क गितमयता को,<br />

इस के छं द को तो देखो! इस अतव क सुयवथा को तो देखो! इस के अनुशासन को तो<br />

देखो। जगह-जगह छाप है क अराजकता नहं है। कहं गहरे म कोई संयोजन बठाने वाला<br />

दय है। कहं कोई चैतय सब को सहाले है, अयथा सब कभी का बखर गया होता।<br />

कौन जोड़े है इस अनंत को? इस वतार को कौन सहाले ह? तुम मथल म जाओ और<br />

तुह एक घड़ िमल जाए पड़ हई तो या तुम कपना भी कर सकते हो क यह संयोग से<br />

ु<br />

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बन गई होगी? हजार-हजार साल म, लाख-लाख साल म, करोड़-करोड़ साल म पदाथ<br />

िमलता रहा, िमलता रहा, िमलता रहा, फर एक घड़ बन गया! और घड़ कोई बड़ बात<br />

है? लेकन एक घड़ भी तुह अगर रेिगतान म पड़ िमल जाए तो भी पका हो जाएगा<br />

क कोई मनुय तुम से पहले गुजरा है, क तुम से पहले कोई मनुय आया है। घड़ सबूत<br />

है। घड़ अपने आप नहं बन सकती। घड़ नहं बन सकती तो यह इतना वराट अतव<br />

कै से बन सकता है? घड़ नहं बन सकती तो मनुय का यह सूम मतक कै से बन<br />

सकता है?...िसफ पदाथ क उप, जैसा मास कहता है!<br />

मास क सुंदर<br />

कृ ितयां कयुिनट मैिनफे टो नहं बन सकता अकारण और न दास-कै पटल<br />

िलखी जा सकती है अकारण। संयोग मा नहं है। पीछे कोई सधे हाथ ह। मगर यह ा है।<br />

जब तक िमलन न जो जाए; जब तक परमामा से दय का आिलंगन न हो जाए; जब<br />

तक बूंद<br />

सागर म एक न हो जाए--तब तक यह ा है।<br />

ा सयक है, साथक है; मगर ा ा है, अनुभव नहं है।<br />

तो िमलन के पहले वरह क अन तो होगी। और चूंक<br />

िमलन क शत यह है क तो तुम<br />

िमटो तो परमामा हो जाए। जब तक तुम हो, परमामा नहं है। और जब परमामा है तब<br />

तुम नहं हो।<br />

कबीर कहते ह: हेरत-हेरत हे सखी, रा कबीर हराइ। चले थे खोजने, कबीर कहते ह और<br />

खोजते-खोजते खुद खो गए। और जब खुद खो जाते ह तभी खुदा िमलता है। जब तक खुदा<br />

है, तब तक खुदा नहं है। तो जलन तो बड़ है। अपने ह हाथ से अपने को िचता पर<br />

चढ़ाने जैसी है।<br />

साधारण ेम क जलन तो तुम ने जानी है? कसी से तुहारा ेम हो गया, तो िमलने क<br />

कै सी आतुरता होती है! चौबीस घड़ सोते जागते एक ह धुन सवार रहती है; एक ह वर<br />

भीतर बजता रहता है इकतारे क तरह--िमलना है, िमलना है! एक ह छव आंख म समाई<br />

रहती है। एक ह पुकार उठती रहती है। हजार काम म उलझे रहो--बाजार म, दकान ु म ,<br />

घर म; मगर रह-रहकर कोई हक उठती रहती है।<br />

ू<br />

साधारण ेम म ऐसा होता है तो भ क तो तुम थोड़ कपना करो! करोड़-करोड़ गुनी<br />

गहनता! और अंतर के वल माा का ह नहं है, गुण का भी है। यक यह तो णभंगुर है<br />

जो इतना सताता है। जससे आज ेम है, हो सकता है कल समा हो जाए। जसक आज<br />

याद भुलाए नहं भूलती, कल बुलाए न आए, यह भी हो सकता है। आज जसे चाहो तो<br />

नहं भूल सकते, कल जसे चाहो तो याद न कर पाओगे, यह भी हो सकता है। यह तो<br />

णभंगुर है, यह तो पानी का बबूला है। यह इतना जला देता है। यह पानी का बबूला ऐसे<br />

फफोले उठा देता है आमा म, तो जब शात से ेम जगता है तो वभावतः सार आमा<br />

दध होने लगती है।<br />

संत दरया ठक कहते ह। वह एक और पहलू हआ सय का क उस के माग पर जलना ह<br />

ु<br />

जलना है। और चूंक<br />

उपिनषद कहते ह, उस के माग पर चलना खग क धार पर चलना है<br />

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और दरया कहते ह उस के माग पर चलना अन लगे जंगल से गुजरना है--इसीिलए म<br />

तुम से कहता हंू: नाचते जाना, गाते जाना! नहं तो राता काट न पाओगे। जब तलवार पर<br />

ह चलना है तो मुकु रा कर चलना है। मुकु राहट ढाल बन जाएगी। नाच सको तो तलवार<br />

क धार मर जाएगी। गीत गा सको तो आग भी शीतल हो जाएगी। चूंक<br />

उपिनषद सह,<br />

चूंक<br />

दरया सह, इसिलए म सह। जाओ नाचते, गाते, गीत गुनगुनाते। यह तीसरा पहलू<br />

है।<br />

जब उस परमामा से िमलने चले ह तो उदास-उदास या? साधारण ेमी से िमलने जाते हो<br />

तो कै से सज कर जाते हो! देखा कसी ी को अपने ेमी से िमलने जाते व। कतनी<br />

सजती है, कतनी संवरती है! कै सी अपने का आनंद वभोर, मत मगन करती है! कै से<br />

ओठ ेम के वचन कहने को तड़फड़ाते ह! कै से उस का दय तलाबल रस से भर, उं डेलने<br />

को आतुर! कै से उस का रोआं-रोआं नाचता है! और तुम परमामा से िमलने जाओगे, और<br />

उदास-उदास?<br />

उदास-उदास यह राता तय नहं हो सकता। राता वैसे ह कठन है; तुहार उदासी और<br />

मुकल खड़ कर देगी। राता वैसे ह दगम है। तुम उदास चले तो पहाड़ िसर पर लेकर<br />

ु<br />

चले। तलवार क धार पर चले और पहाड़ िसर लेकर चले। बचना मुकल हो जाएगा। जब<br />

तलवार क धार पर ह चलना है तो पैर म घुंघ<br />

बांधो!<br />

मीरा ठक कहती है: पद घुंघ<br />

बांध मीरा नाची रे! जब तलवार पर ह चलना है तो पैर म<br />

घुंघ<br />

तो बांध लो! म तुम से कहता हं ू अगर तुहारे पैर म घुंघ<br />

ह तो तुम ने तलवार को<br />

भोथला कर दया। ओठ पर गीत ह--मत, अलमत--जैसे आषाढ़ के पहले-पहले बादल<br />

िघरे ह और म मयूर नाचता है, ऐसे तुम नाचते चलो। तलवार ह तब फू ल क भांित<br />

कोमल हो जाएंगी। कांटे फू ल हो जाएंगे!<br />

म तुम से कहता हं<br />

ू: उसव मनाते चलो, यक उसव ह तुह चार तरफ शीतलता से<br />

घेर लेगा। फर कोई लपट तुह जला न पाएगी। जंगल म लगी रहने दो आग, मगर तुम<br />

इतने शीतल होओगे क आग तुहारे पास आकर शीतल हो जाएगी। अंगारे तुहारे पास<br />

आते-आते बुझ जाएंगे। लपट तुहारे पास आते-आते फू ल के हार बन जाएंगी।<br />

उपिनषद सह, दरया सह, म भी सह। इन म कु छ वरोधाभास नहं है।<br />

परमामा के संबंध म हजार वय दए जा सकते ह, जो एक दसरे के वपरत लगते ह।<br />

ू<br />

फर भी उन म वरोधाभास नहं होगा, यक परमामा वराट है। सारे वरोध को समाए<br />

है। सारे वरोध को आमसात कए हए है। उस म फू ल भी ह और कांटे भी ह। उस म रात<br />

ु<br />

भी ह और दन भी ह। उस म खुला आकाश भी है, जब सूरज चमकता है; और बदिलय<br />

से िघरा आकाश भी है, सूरज बलकु ल खो जाता है।<br />

परमामा म सब है यक परमामा सब है।<br />

उपिनषद िसफ एक पहलू क बात कहते ह, दरया दसरे पहलू क बात कहते ह। उपिनषद<br />

ू<br />

और दरया िभन-िभन बात नहं कह रहे ह। और उपिनषद म और दरया म तो तुम थोड़ा<br />

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संबंध भी जोड़ लोगे क ठक है, खग क धार पर चलना क जलना, इन दोन म संबंध<br />

जुड़ता है। म तुमसे ह उट बात कह रहा हं।<br />

ू<br />

म कहता हं<br />

ू: नाचते हए<br />

ु , गीत गाते हए<br />

ु , उसव मनाते हए<br />

ु ...। भु से िमलने चले हो,<br />

शृ ंगार कर लो। भु से िमलने चले हो, बंदनवार बांधो। उस अितिथ को बुलाया, महा<br />

अितिथ को--ार पर वागत, वागतम ् का आयोजन करो। रंगोली सजाओ। इतने महा<br />

अितिथ को िनमंण दया है तो घर म दए जलाओ। दवाली मनाओ! क गुलाब उड़ाओ। क<br />

होली और दवाली साथ ह साथ ह। क छे ड़ो वा क गीत उठने दो! क संगीत जगने दो।<br />

उस बड़े मेहमान को तभी तुम अपने दय म समा पाओगे।<br />

वह मेहमान जर आता है; बस तुहारे तैयार होने क जरत है। और बना उसव के तुम<br />

तैयार न हो सकोगे। उसव रहत दय म परमामा का आगमन न कभी हआ है न हो<br />

ु<br />

सकता है। यक परमामा उसव है। रसो वै सः! वह रसप है। तुम भी रसप हो जाओ<br />

तो रस का रस से िमलन हो। समान का समान से िमलन होता है।<br />

दसरा ू :<br />

वो नगमा बुलबुले रंगी-नवा<br />

इक बार हो जाए।<br />

कली क आंख खुल जाए<br />

चमन बेदार हो जाए।<br />

िनमल चैतय! वह गीत गाया ह जा रहा है। वह नगमा हजार-हजार कं ठ से गूंज<br />

रहा है।<br />

अतव का कण-कण उसे ह दोहरा रहा है। उसका ह पाठ हो रहा है चार दशाओं म--<br />

अहिनश। और तुम कहते हो: वो नगमा बुलबुले रंगी-नवा एक बार हो जाए! वह है, बज रहा<br />

है! सब तार पर वह सवार है। सब ार पर वह खड़ा है।<br />

तुम कहते हो इक बार? वह बार-बार हो रहा है।...कली क आंख खुल जाए, चमन बेदार हो<br />

जाए।...किलयां खल गई ह, चमन बेदार है; तुम बेहोश हो। दोष किलय को मत दो और<br />

दोष चमन को भी मत देना। और यह सोचकर भी मत बैठे रहना क वह गीत गाए तो म<br />

सुनने को राजी हं। ू वह<br />

गीत गा ह रहा है। वह गीत है। वह बना गाए रह ह नहं सकता।<br />

कौन पय म गा रहा है? कौन फू ल म गा रहा है? कौन हवाओं म गा रहा है? अनंत-<br />

अनंत प म उसी क अिभय है।<br />

लेकन असर हम ऐसा सोचते ह। िनमल चैतय ह ऐसा सोचते ह, ऐसा नहं; अिधकतर<br />

लोग ऐसा ह सोचते ह क एक बार परमामा दखाई पड़ जाए, एक बार उस से िमलन हो<br />

जाए! और रोज तुम उस से ह िमलते हो, मगर पहचानते नहं! जस म भी आता है,<br />

तुहारा ार वह आता है। मगर यिभा नहं होती। उस के अितर यहां कोई है ह<br />

नहं।<br />

तुम पूछते हो: परमामा कहां है? म पूछता हं<br />

ू: परमामा कहां नहं है? लेकन हम बहाने<br />

खोजते ह। हम कहते ह: गीत बजता, जर हम सुनते। यह नहं सोचते क हम बहरे ह।<br />

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यक अगर हम कह हम बहरे ह तो फर कु छ करना पड़े। जमेवार अपने पर आ जाए।<br />

कहते ह: सूरज िनकलता तो हम दशन करते; झुक जाते सूय-नमकार म। यह नहं कहते<br />

क हम अंधे ह, या क हमने आंख बंद कर रखी ह। यक यह कहना क हमने आंख बंद कर<br />

रखी ह, फर दोष तो अपना ह हो जाएगा। और जब दोष आना हो जाएगा तो बचने का<br />

उपाय कहां रह जाएगा? सूरज नहं िनकला, इसिलए हम कर तो या कर? िसतार नहं<br />

बजी उसक, तो हम कर तो या कर? फू ल नहं खलगे उस के, तो हम नाच तो कै से<br />

नाच? बहाने िमल गए, सुंदर<br />

बहाने िमल गए। इनक ओट म अपने को िछपाने का उपाय<br />

हो जाएगा!...<br />

वह यार हमारे ार पर दतक ह नहं दया तो हम कहे तो कस को कह क आओ? हम<br />

ार कस के िलए खोल? दतक तो दे! हम पलक-पांवड़े कस के िलए बछाएं? उसका कु छ<br />

पता तो चले, पगविन तो सुनाई पड़े!<br />

ये मनुय क तरकब ह। ये तरकब ह अपने को बचा लेने क। ये तरकब ह क हम जैसे ह<br />

ठक ह। गलती है अगर कु छ तो उसक है। कली क आंख खुलती है, तो चमन तो बेदार<br />

होने को राजी था। कली क आंख नहं खुलती है, चमन बेदार कै से हो?<br />

और म तुम से कहता हं<br />

ू: हजार-हजार किलय क आंख खुली ह। चमन बेदार है! तुम सोए<br />

हो, िसफ तुम सोए हो! जमेवार है तो िसफ तुहार है। यह तीर तुहारे दय म चुभ<br />

जाए क जमेवार है तो िसफ मेर है; मने आंख बंद कर रखी ह; मने कान व-बिधर<br />

कर रखे ह। तो ांित क शुआत हो गई। तो पहली करण शु हई। तो पहला कदम उठा।<br />

ु<br />

अब कु छ कया जा सकता है। अगर आंख मने बंद क ह तो कु छ कर सकता हं<br />

ू; मेरे हाथ<br />

म कु छ बात हो गई। आंख खोल सकता हं<br />

ू!<br />

जब हम दसरे पर टाल देते ह और<br />

ू जब हम अनंत पर टाल देते ह, तो हम िनत होकर सो<br />

रहते ह। और एक करवट ले लो, कं बल को और खींच लो, और थोड़ा सो जाओ। अभी सुबह<br />

नहं हई ु है;<br />

जब सुबह होगी तो उठ गे।<br />

और म तुमसे कहता हं<br />

ू: सुबह ह सुबह है। हर घड़ सुबह है! सूरज िनकला है। परमामा<br />

तुहारे ार पर दतक दे रहा है। तुम सुनते नहं। तुम सुन सको इतने शांत नहं ह। तुहारे भीतर बड़ा<br />

शोरगुल है। तुहारे भीतर बड़ा तूफान है, बड़ आंिधयां, बवंडर--वचार के, वासनाओं के ।<br />

तुहार आंख बूंद<br />

ह--पांडय से, शा से, तथाकिथत ान से। तुहार आंख पर इतनी<br />

कताब ह क बेचार आंख खुल भी तो कै से खुल! कसी क आंख वेद से बंद है, कसी क कु रान से,<br />

कसी क बाइबल से। तुम इतना जानते हो, इसिलए जानने से वंिचत हो। थोड़े अानी हो<br />

जाओ।<br />

म तुमसे कहता हंू: थोड़े अानी हो जाओ। म अपने संयािसय को अानी होना िसखा रहा हं।<br />

ू<br />

छन रहा हं<br />

ू ान उनका। यक ान ह धूल है दपण पर। और ान िछन जाए और दपण कोरा हो<br />

जाए--िनदष, जैसे छोटे बचे का मन, ऐसा िनदष--तो फर देर नहं होती, पल भर क<br />

देर नहं होती। तण उसक पगविन सुनाई पड़ने लगती है। तण ार पर उसक दतक<br />

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दखाई पड़ने लगती है। तण सारा चमन बेदार मालूम होता है। मती ह मती! सब तरफ उस के<br />

गीत गूंजने<br />

लगते ह। फर तुम जहां भी हो मंदर है और जहां भी हो वहं तीथ है।<br />

आंख से धूल हटे...और धूल ान क है, मुकल यह है। यक तुम धूल को धूल मानो तो<br />

हटा दो अभी। तुम धूल को समझ रहे हो सोना है, हरे जवाहरात ह। सहालकर रखे हो!<br />

इस जगत म सबसे यादा कठन चीज छोड़ना ान है। धन लोग छोड़ देते ह। धन बहत<br />

ु ने<br />

छोड़ दया है। घर-ार छोड़ देते ह। वह बहत ु कठन नहं है। घर-ार<br />

छोड़ना बहत ु सरल है,<br />

यक कौन घर-ार से ऊब नहं गया है? सच तो यह है क घर-ार म रहे आना बड़<br />

तपया है। जो रहते ह उनक तपवी कहना चाहए--हठयोगी! पट रहे ह, मगर रह रहे ह।<br />

तुम उन को संसार कहते हो और भगोड़ को संयासी कहते हो! जो भाग जाए कायर,<br />

उनको कहते हो संयासी। और बेचारे ये...जो सौ-सौ जूते खाय तमाशा घुस कर देख!...इन<br />

को तुम कहते हो क संसार। जूत पर जूते पड़ रहे ह, मगर उन के कान पर जूं<br />

नहं<br />

रगती। डटे ह! हठयोगी कहता हं ू इन को!<br />

इनक जद तो देखो, इनका संकप तो देखो!<br />

इनक ढ़ता तो देखो! इनक छाती तो देखो! बड़े मजबूत ह! इन को तुम पापी कहते हो!<br />

संसार से भागना तो बलकु ल आसान है। कौन नहं भागना चाहता है? संसार म है या?<br />

तकलीफ ह तकलीफ ह, जंगल ह जंगल ह। दख पर दख चले आते ह। बदिलयां घनी से<br />

ु ु<br />

घनी, काली से काली होती चली जाती ह।<br />

अंेजी म कहावत है क हर काले बादल म एक रजत रेखा होती है। एवर लाउड हैज ए िसलवर<br />

लाइन। अगर तुम संसार को देखो तो हालत बलकु ल उट है। एवर िसलवर लाइन हैज ए लाउड। रह<br />

रजत रेखा के पीछे चला आ रहा है एक बड़ा काला बादल, भयंकर काला बादल! वह रजत रेखा तो<br />

चमककर णभर म खम हो जाती है। फर काला बादल छाती पर बैठ जाता है, जो पीछा नहं<br />

छोड़ता। वह रजत रेखा तो वैसी है जैसे क मछु आ, मछलीमार कांटे म आटा लगाकर बंसी<br />

लटकाकर बैठ जाता है तालाब के कनारे। कोई आटा खलाने के िलए मछिलय के िलए<br />

नहं आया है। आटे म िछपा कांटा है। मछिलय को फांसने आया है; कोई मछिलय को भोजन<br />

कराने नहं आया है।<br />

एक झील पर मछली मारना मना था। बड़ा तता लगा था क मछली मारना मना है, सत<br />

मना है। और जो भी मछली मारेगा, उस पर अदालत म मुकदमा चलाया जाएगा। वभावतः<br />

उस झील म खूब मछिलयां थीं, मुला नसन मजे से मछिलयां मारने बैठा था वहां। आ गया<br />

मािलक बंदकू िलए। उस ने कहा: नसन, तती पढ़ है? नसन ने कहा: हां, पढ़ है।<br />

फर या कर रहे हो?<br />

बंसी लटकाकर बैठा था। कहा: कु छ नहं, जरा मछिलय को तैरना िसखा रहा हं।<br />

ू<br />

कोई मछिलय को तैरना िसखाने क जरत है? क मछिलय को आटा खलाने के िलए कोई<br />

उसुक है! आटा खुद नहं िमल रहा है। लेकन आटे के बना मछली कांटे को लीलेगी नहं।<br />

योजन कांटा है।<br />

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वह जा रजत रेखा चमकती है बादल म, वह तो आटा है। पीछे चला आ रहा है काला बादल!<br />

आशा होती नहं। बस आासन। बस दरू से सब अछा लगता है।<br />

एक महला ने मुझसे कहा, क मेर बड़ मुसीबत है; म दर ू से सुंदर<br />

मालूम पड़ती हं। ू और<br />

बात सच थी। दर ू से देखो तो बहत ु फोटोजिनक...िच<br />

उतारने क तबयत हो जाए। लेकन<br />

उसक तकलीफ यह है क पास आओ तो बड़ भ हो जाती है। कु छ लोग होते ह जो दरू से<br />

सुंदर<br />

दखाई पड़ते ह, पास आओ तो...। तो म या कं? तो मने कहा: तू एक काम कर,<br />

जतनी याज, लहसुन खा सके खा। उसने कहा: याज, लहसुन! इस से म सुंदर<br />

हो<br />

जाऊं गी?<br />

मने कहा: सुंदर<br />

तो नहं हो जाएगी, मगर कोई तेरे पास नहं आएगा। तू सुंदर<br />

दखाई पड़ती<br />

रहेगी।<br />

इस जगत मग सब चीज दर ू से सुंदर<br />

दखाई पड़ती ह। पास आओ,<br />

अब वकृ त होने लगता<br />

है। जैसे-जैसे पास आओगे, सब सपने उखड़ने लगते ह, सब आशाएं टटने ू लगती ह। जैसे -<br />

जैसे पास आओ तय उभरने लगते ह। आटा खो जाता है और कांटा हाथ लगता है। लेकन<br />

तब तक बहत देर हो गई<br />

ु<br />

होती। तब तक उलझ गए होते हो। फर उलझाव से िनकलना मुकल हो<br />

जाता है। जतनी िनकलने क चेा करते हो उतना उलझाव बढ़ता चला जाता है। यक िनकलने क<br />

चेा म नए उलझाव खड़े करने पड़ते ह।<br />

तुम ने देखा, कभी एक झूठ बोलकर देखा? एक झूठ बोलो, फर दस झूठ बोलने पड़ते ह।<br />

यक उस एक झूठ को बचाना है। और दस बोले तो हजार बोलने पड़गे, यक उन को बचाना<br />

है। एक झूठ बोलकर जो फं से, तो शायद जंदगीभर झूठ बोलने पड़। सय क यह खूबी है<br />

क एक बोला क उस के पीछे कोई िसलिसला नहं।<br />

तुम ऐसा समझो, क सय बांझ है, उसके बाल बचे नहं होते। सय संतित िनयमन को<br />

मानता है। झूठ पका हंदतानी<br />

ु है! जब तक दजन दो दजन बचे पैदा न कर दे तब तक झूठ का मन<br />

नहं भरता। बस बचे पैदा करते चला जाता है।<br />

सब से बड़ झूठ आदमी ने जो बोली है, वह यह है क दोष कसी और का है। यह सब से<br />

बड़ा झूठ है। यह बड़े से बड़ा झूठ है। यह आधारभूत झूठ है। फर सारे झूठ के महल इसी पर खड़े होते<br />

ह।...म या कं? परमामा कहं दखाई नहं पड़ता, अयथा म तो उसके चरण म झुक<br />

जाने को राजी हं। ू म या कं ? उस क आवाज मुझे सुनाई नहं पड़ती, अयथा म तो<br />

जहां पुकारे वहां जाने को राजी हं ू; कसी दर ू चांद तार पर पुकारे तो वहां जाने को राजी हं ू! म<br />

तो सब समपण करने को तैयार हं<br />

ू, लेकन पुकार तो सुनाई पड़े, आवाज तो आए!<br />

और आवाज रोज आ रह है, ितपल आ रह है--और तुम कौन म उं गिलयां डाले बैठे हो।<br />

लेकन उं गिलयां तुम जम-जम से डाले हो। तो शायद तुम सोचते हो कान म उं गिलय का डाला<br />

होना, यह वाभावक है। और आंख पर तुहारे इतनी धूल है...और धूल चूंक<br />

ान क है,<br />

और ान क बड़ महमा और िता गाई गई है क जहां राजा का भी समान नहं होता,<br />

वहां भी वान पूजे जाते ह! सदय-सदय से तुह समझाया गया है क ान क बड़ गरमा है,<br />

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बड़ महमा है। वेद कं ठथ करो, उपिनषद दोहराओ। और परणाम म तुम िसफ तोते हो<br />

गए हो। उपिनषद भी दोहराते हो और वेद भी दोहराते हो। ान तो कु छ हआ नहं ान के<br />

ु<br />

नाम पर थोथे शद का जाल तुहार आंख पर छा गया है। जाली छा गई है तुहार आंख पर। अब<br />

तुह कु छ दखाई नहं पड़ता।<br />

परमामा सामने खड़ा है। तुम जहां मुंह<br />

करो वहं खड़ा है। तुम उस के अित र और कसी<br />

के संपक म कभी आते ह नहं। तुहार पी म भी वह है, तुहारे पित म भी वह। तुहारे<br />

घर जो बेटा पैदा हआ<br />

ु है, उस म भी वह फर आया है। नया संकरण उस का फर...। लेकन<br />

आंख से जाली कटनी चाहए। िनमल चैतय! ान छोड़ो, यान पकड़ो! दरया ठक कहते<br />

ह: यान हो तो ान अपने से जमता है। वह ान तुहारे भीतर से आएगा, तभी ान है।<br />

जब तक बाहर से आए तब तक अान को िछपाने क या है, और कु छ भी नहं।<br />

सोचो बैठकर कभी, तुम जो भी जानते हो, वह भीतर से अया है या बाहर से? और तम<br />

बड़े चकत हो जाओगे। तुम पाओगे सब बाहर से आया। तो सब बेकार है। और बेकार ह<br />

नहं है, बाधक है, अड़चन है। उतने का ह भरोसा करो जो तुहारे भीतर से आया हो। जो तुहारे<br />

यान म उमगा हो, बस उस का ह भरोसा करना। उस का ह भरोसा रहे तो तुह उस के<br />

नगमे अभी सुनाई पड़--अभी, यहं! उस का ह भरोसा रहे तो तुह उस का सदय अभी<br />

दखाई पड़े--अभी, यहं! अगर तुम थोड़े ान क पकड़ को छोड़ दो, फर से अानी हो जाओ<br />

जैसे छोटे बचे...अान म एक िनदषता है!<br />

म तुमसे कहता हं ू: पंडत नहं पहंचते ु , अानी पहंचते ु ह। अानी से मेरा अथ है--जसने<br />

बाहर के ान को बलकु ल इनकार कर दया और जो भीतर डु बक मारकर बैठ गया। और<br />

जसने कहा क जो मेरे भीतर अनुभव होगा, वह मेरा है, शेष सब उधार है, बासा है,<br />

उछ!<br />

तुम दसर ू के जूते नहं पहनते,<br />

दसर ू के कपड़े नहं पहनते,<br />

और दसर ू का ान उधार ले<br />

लेते हो? दसर ू का जूठा भोजन नहं करते और हजार-हजार<br />

ओठ से जो शद जूठे हो गए<br />

ह, उनको ह छाती लगाकर बैठ गए हो! इस से अड़चन है। नहं तो आंख बंद करो, और<br />

उस का ह जलवा है।<br />

हम वह ह जो हम नहं है।<br />

भाव जो कभी मूत न हए<br />

ु<br />

शद जो कभी कहे नहं गए<br />

जीने क यथा म डू बे हए वर<br />

ु<br />

जो विनत नहं हो पाए<br />

राग नहं बने<br />

जीवन के अचीहे सीमांत के<br />

चरम ण<br />

होने न होने के<br />

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अपनी अनंतता म ठहरे रहे<br />

िनरंतर अपनी अतीय संपूणता म<br />

जीते रहे<br />

पर बीते नहं भोगे नहं गए...<br />

आकार प हन आघात<br />

जो बस सहे ह गए<br />

अनजाने अनचाहे<br />

आंख क कोर म<br />

उमड़े हए आंसू से अनदखे<br />

ु<br />

अटके ह रहे झेर नहं<br />

वह ह हम<br />

जो नहं ह।<br />

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तुम वह हो गए हो, जो तुम नहं हो। यक उस ान को पकड़ िलया जो तुहारा नहं;<br />

उस चर को पकड़ िलया जो दसर ू ने तुह पकड़ा दया;<br />

उस संकार से भर गए, जो<br />

बासा ह नहं है, उधार ह नहं है, मुदा भी है! तुम ने अपने अंतस का अवसर ह न दया<br />

तुम ने व-फु रणा को मौका ह न दया। इसिलए तुम वह हो गए हो जो तम नहं हो। और तुम जो<br />

हो, उस का तुह पता भूल गया है। तुम जो हो वह परमामा का एक प है। उसे कहं<br />

खोजने और नहं जना है। अपने भीतर डुबक मारनी है।<br />

खोलो िनज मन के वातायन<br />

रव-करण को<br />

मत रोको<br />

भीतर आने दो,<br />

उन म ा और ान के<br />

अनिगन जगमग दप जल रहे!<br />

खोलो िनज के वातायन,<br />

मु पवन को<br />

मत रोको<br />

भीतर आने दो!<br />

उस क लहर म<br />

मानव-ममता के<br />

सुरभित वन पल रहे!<br />

और एक बार तुम शूय हो जाओ, शांत हो जाओ, मौन हो जाओ, तो चांद म भी वह<br />

आएगा चांद होकर और सूरज म भी वह आएगा सोना होकर। खोज लो ार-दरवाजे। ान के ताले<br />

मारकर बैठे हो। खोलो ार-दरवाजे। आने दो हवाओं को। बहने दो हवाओं को। अतव से संबंध जोड़ो।<br />

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मंदर से, मजद से संबंध तोड़ो। वृ से, फू ल से, चांदार से संबंध जोड़ो। यक वे<br />

जीवंत परमामा ह। तुम मुदा मूितय क पूजा म संलन हो।<br />

दए जल ह रहे ह। आरती उतर ह रह है। फू ल चढ़े ह ह उस के चरण म। तुम जरा देखो!<br />

तुम जरा जागो! तुम सोए हो। तुम गहर नींद म हो। दरया ठक कहते ह--जागे म फर<br />

जागे फर जागना! इस जागने को जागना मत समझ लेना। इस म अभी और जागना है। जागे म<br />

फर जागना--बस यह समािध क परभाषा है। और जो जागना है। जागे म फर जगाना--बस यह<br />

समािध क परभाषा है। और जो जागे म जाग गया, वह परमामा म जाग जाता है।<br />

तीसरा : भगवान! आपको सुनता हं तो लगता<br />

ू<br />

है क पहले भी कभी सुना है। देखता हं<br />

ू तो<br />

लगता है क पहले भी कभी देखा है। वैसे म पहली ह बार यहां आया हं।<br />

ू पहली ह बार आपको सुना और<br />

देखा है। मुझे यह या हो रहा है?<br />

संदप! यहां कोई भी नया नहं है; न तुम नए हो न म नया हं। यहां जो तुहारे पास बैठे<br />

ू<br />

हए<br />

ु लोग ह, ये भी कोई नए नहं ह। न मालूम कतनी बार, न मालूम कतनी-कतनी राह<br />

म, न मालूम कतने-कतने लोक म, न मालूम कतनी-कतनी यााओं म, योिनय म<br />

िमलन होता रहा है। हम अनंत याी ह। बछु ड़ते रहे, िमलते रहे।<br />

इसिलए चकत न होओ, चका मत। यह भी हो सकता है क मुझसे तुहारा िमलन कभी न हआ<br />

ु<br />

हो। लेकन मुझ जैसे कसी य से िमलना हआ<br />

ु हो, तो भी याद आएगी; तो भी कोई गहन<br />

अचेतन क पत म याद सरके गी। यक बुव का वाद एक है। अगर तुम ने बु को<br />

देखा था; अगर तुमने नानक को देखा था; अगर तुम ने कबीर या फरद के साथ दो घड़यां<br />

बताई थी; या कौन जाने, दरया से दोती रह हो--अगर तुम ने अनंत-अनंत जीवन क<br />

यााओं म कभी भी कसी यानथ के पास दो ण बताए थे तो याद आएगी। यक<br />

यान का वाद अलग-अलग नहं होता।<br />

बु ने कहा है: जैसे सागर को कहं से भी चखो खारा है, ऐसे ह बु को भी कहं से चखो,<br />

उनका वाद एक ह है--जागरण का वाद है।<br />

म कोई य नहं हं। य तो गया। य तो बहा। कब का बह गया। अब तो भीतर<br />

ू<br />

एक शूय है। ऐसे शूय का अगर तुम से कभी भी संपश हआ ु हो...और<br />

यह असंभव है क<br />

अनंत-अनंत जम म कभी न हआ हो। यह असंभव है। यह हो ह नहं सकता। इतने बु<br />

ु<br />

हए ु ह!<br />

इतने समािधथ लोग हए ु ह। इतने जन हए ु , इतने पैगंबर, इतने तीथकर, इतने<br />

िस...यह कै से हो सकता है क तुम कभी भी कसी बु क छाया म न बैठे होओ? यह<br />

कै से हो सकता है क ससंग का वाद तुम ने कभी न िलया हो? असंभव है। चाहे तुहारे<br />

बावजूद ह सह, कभी कसी राह पर दो कदम तुम जर कसी बु के साथ चल िलए<br />

होओगे। चुक गए। उस बार चूक गए, इस बार मत चूकना। इसीिलए कोई याद तुहारे भीतर<br />

उठ रह है, उभर रह है।<br />

हम अनंत-अनंत जीवन क मृितयां अपने भीतर िलए बैठे ह। भूल गए उह, मगर वे िमटती<br />

नहं ह। शरर छू ट जाता है, लेकन िच साथ चलता है। शरर तो एक बार जो िमला, वह<br />

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िमट म िगर जाता है; लेकन उस के भीतर िच--अनुभव का जो संह है--वह नई<br />

छलांग ले लेता है, वह नया जम ले लेता है। शरर का नया जम नहं होता, मन का नया<br />

जम हो जाता है।<br />

इस बात को समझना शरर का नया जम हो ह नहं सकता, यक शरर िमट है,<br />

िगरा सो िगरा। और आमा का नया जम हो ह नहं सकता, यक आमा शात है; न<br />

उस का कोई जम है न मृयु है। फर जम कस का होता है? दोन के बीच म जो मन है,<br />

उस का ह जम होता है। यह जो पुनजम का िसांत का या जम? न कोई मृयु न<br />

कोई जम। और शरर का भी या जम, या मृयु? शरर तो मरा ह हआ है। शरर है<br />

ु<br />

मृयु, मरणधमा, िमट है; उसका कोई जम नहं होता न कोई मरण होता है। वह तो मरा<br />

ह हआ<br />

ु है। मरे क और या मौत होगी? और मरे का जम या हो सकता है? और आमा<br />

शात जीवन है। शात जीवन का कै सा जम और कै सी मृयु?<br />

दोन के मय म एक कड़ है मन क। वह मन याी करता है। वह मन नए-नए जम<br />

लेता है। उसी मन म तुहारे सारे जम-जम के संकार ह। उन संकार म मनुय के ह संकार<br />

नहं है; जब तुम पशु थे, उस के भी संकार ह; जब तुम पी थे, उस के भी संकार ह;<br />

जब तुम वृ थे, उस के भी संकार ह; जब तुम एक चटान थे उस के भी संकार ह।<br />

तुहारे भीतर अतव क सार आमकथा है। तुम छोटे नहं हो। तुहार उतनी ह लंबी कथा है<br />

जतनी कथा अतव क है। तुम अतव के सब रंग, सब ढंग जान चुके हो, पहचान चुके<br />

हो। लेकन हर जम के बाद वमरण हो जाता है। लेकन फर भी कसी गहर अनुभूित के<br />

ण म, कसी ीित के ण म, कोई मृित पंख फड़फड़ाने लगती है।<br />

ऐसी ह कु छ हआ ु होगा,<br />

संदप। तुम कहते हो: आपको सुनता हं ू तो लगता है पहले भी<br />

कभी सुना है। मुझे सुना हो या न सुना हो, मगर मुझ जैसे कसी य को जर सुना<br />

होगा। तुम कहते हो; देखता हं तो लगता है पहले<br />

ू<br />

भी कभी देखा है। मुझे देखा हो न देखा हो,<br />

लेकन जर कोई जलता हआ दया तुम ने देखा होगा। और जब कोई जलते दए को देखता<br />

ु<br />

है तो िमट के दए पर थोड़े ह नजर जाती है, योित तो अलग-अलग नहं होती।<br />

तुम कहते हो: वैसे म पहली बार ह यहां आया हं ू यहां पहली बार आए होओगे,<br />

लेकन यहां<br />

जैसी जगह सदय-सदय से जमीन पर सदा-सदा रहं ह। तीथ उठते रहे ह। यक जब भी<br />

कहं कोई योित जली, तीथ बना। जब भी कभी कोई बु हआ<br />

ु , वहं मंदर उठा। जब भी<br />

कहं कोई फू ल खला, भंवरे आए ह, गीत ह, गीत गूंजे<br />

ह, नाच हआ। ु जब भी कोई<br />

बांसुर बजी है ाण क तो रास रचा, राधा नाची! गोपय ने मंडल बनाए, गीत गाए। सदय-<br />

सदय म यह होता रहा। जर कोई झलक, अतीत क कोई मृित फर जग गई होगी,<br />

इसिलए तुह ऐसा लगा है।<br />

पुरवा जो डोल गई,<br />

घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

बूंद<br />

का लहरा दवार को चूम गया,<br />

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मेरा मन सावन क गिलय म झूम गया;<br />

याम-रंग-परय से अंबर है िघरा हआ<br />

ु ;<br />

घर को फर लौट चला बरस क फर हआ ु ;<br />

मइया के मंदर म,<br />

अमा क मानी हई<br />

ु --<br />

डुग-डुग, डुग-डुग, बधइया फर बोल गई।<br />

पुरवा जो डोल गई।<br />

घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

बरगद क जड़ पकड़ चरवाहे झूल रहे,<br />

वरहा क तान म बरहा सब भूल रहे;<br />

अगली सहालक तक याहो क बात टली,<br />

बात बड़ छोट पर बहत ु को बहत ु खली;<br />

नीम तले चौरा पर<br />

मीरा क बार बार--<br />

गुड़या के याहवाली चचा रस घोल गई।<br />

पुरवा जो डोल गई।<br />

घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

खनक चूड़य क सुनी महद के पात ने,<br />

किलय पै रंग फे रा मािलन क बात ने;<br />

धान के खेत म गीत का पहरा है,<br />

िचड़य क आंख म ममता कस सेहरा है;<br />

नदया से उमक उमक,<br />

मछली वह छमक छमक--<br />

पानी क चूनर को दिनया से मोल गई।<br />

ु<br />

पूरवा जो डोल गई।<br />

घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

झूलो के झूमक ह शाख के कान म,<br />

शबनम क फसलन है के ले क रान म;<br />

वार और अरहर क हर हर सार है,<br />

नई नई फू ल क गोटा कनार है,<br />

गांव क रौनक है,<br />

मेहनत क बाह म--<br />

धोबन भी पाटे पै हइया छू बोल गई।<br />

पुरवा जो डोल गई।<br />

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घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

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जैसे कोई बहत ु दन का दर ू चला गया य अपने गांव वापस लौटे और हर छोट-छोट<br />

बात याद आने लगे--<br />

पुरवा जो डोल गई!<br />

घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

छोट-छोट बात याद आने लग--यह गांव का मंदर, यह गांव का पनघट, पनघट पर घट<br />

हई ु रसभर<br />

बात, यह गांव का पुराना बरगद, इस बरगद के नीचे खेले गए खेल, इस<br />

बरगद पर डाले गए झुले, झूलो पर भर गई पग, यह गांव का बाजार, बाजार के भरने के<br />

दन, बाजार म खरदे गए खलौने... सब याद आने लगता है। जैसे कोई वष-वष बाद<br />

अपने गांव लौटा हो!<br />

बूंद<br />

का लहरा दवार को चूम गया,<br />

मेरा मन सावन क गिलय म झूम गया<br />

याम-रंग-परय से अंबर है िघरा हआ ु ;<br />

घर को फर लौट चला बरस का फरा हआ ु ;<br />

मइया के मंदर म,<br />

अमा क मानी हई<br />

ु --<br />

डुग-डुग, डुग-डुग-डु ग, बधइया फर बोल गई।<br />

पुरवा जो डोल गई।<br />

घटा घटा आंगन म जुड़े से खोल गई।<br />

ऐसा ह कु छ हो रहा है तुह। कहं फर लौट आए हो, जहां कभी आना हआ ु था!<br />

यह बात<br />

थान क नहं है, समय क नहं है। यह बात आमा क एक दशा क है। इन मृितय को<br />

दबा मत देना, तक -जाल म डु बा मत देना, बु के वेषण म न- मत कर डालना।<br />

इन मृितय को उठने दो, फै लाने दो पंख! इन मृितय को छाने दो, यक ये मृितयां<br />

तुह याद दलाएगी क पहले भी चूक गए थे, अब क बार न चूक जाना!<br />

ऐसा हआ<br />

ु , महावीर के जीवन म उलेख है। एक राजकु मार ने महावीर से दा ली।<br />

राजकु मार--महल म रहा, सुख-सुवधाओं म पला; फर महावीर के साथ जस धमशाला म<br />

ठहराना पड़ा, नया-नया संयासी था, उसे जगह िमली बलकु ल दरवाजे पर। रत भर लोग<br />

का आना-जाना, सो ह न सका। मछड़ अलग काट। जमीन कड़। बना बतर के सोना।<br />

न तकया पास; हाथ का ह तकया! कभी ऐसे सोया नहं था और ऐसी बेहद<br />

ू जगह--<br />

धमशाला का दरवाजा, जन पर दनभर भी लोग, रातभर भी लोग! फर कोई आया फर<br />

कसी ने ार खटखटाया। फर कोई मेहमान आया। फर ार खोले गए, फर मेहमान भीतर<br />

िलया गया। आधी रात थी। उस ने सोचा: यह या हो गया, यह म कस झंझट म पड़<br />

गया! अछा भला घर था, सुख-सुवधा थी। सुबह होते ह वापस लौट जाऊं गा। सोचा था<br />

क चुपचाप ह लौट जाए, महावीर को कु छ कहना ठक नहं है। पर राजकु मार था, संकार<br />

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था। सोचा क यह तो उिचत न होगा। दा ली है, तो कम से कम उन को नमकार कर<br />

के मा मांगकर क नहं, मुझ से नहं सधेगी, लौट जाऊं ।<br />

जैसे ह वह महावीर के पास पहंचा ु झुककर नमकार कया,<br />

तो महावीर ने कहा: तो इस<br />

बार फर लौट चले? बड़ा हैरान हआ ु राजकु मार उस ने कहा:<br />

इस बार? म तो पहली ह बार<br />

आपके पास आया हं। ू या कभी पहले भी लौट गया हं ू? महावीर ने कहा: यह तुम दसर ू बार<br />

लौट रहे हो। मेरे पास नहं थे पहली बार, मुझ से पहले जो तीथकर हए ु पानाथ,<br />

उन के पास<br />

आए थे। और यह अड़चन है। यह धमशाला का दरवाजा। यह एक हाथ का तकया बनाकर<br />

सोना। यह मछड़। जरा याद करो।<br />

महावीर ने ऐसे उकसाया जैसे कोई िसगड़ म अंगारे को उकसाए। जरा झाड़ द राख। एक<br />

मृित भभककर उठ। य खुल गया। एक ण को उस क आंख बंद हो गई। याद आया क हां...।<br />

पानाथ क ितमा कट हई। ु याद आया क हां, दत हआ ु था। और याद आया क बीच से<br />

ह लौट गया था। आंख आंसुओं से भर गई। महावीर के चरण पर िसर रखा। महावीर ने<br />

कहा: अब या इरादा है? कते हो क जाते हो?<br />

उस राजकु मार ने कहा: अब जाना कै सा! धयभागी हं क आपने याद दला द।<br />

ू<br />

धयभागी हो तुम क तुह याद आ रह है। बना मेरे दलाए तुह याद आ रह है; सो<br />

और भी धयभागी हो। भाग गए होओगे पहले कभी। आते-आते पास दर िछटक गए होओगे।<br />

ू<br />

बनते-बनते साथ छू ट गया होगा। कसी नाव पर चढ़ते-चढ़ते उतर गए होओगे। कोई ार खुलते-खुलते<br />

बंद हो गया होगा।<br />

हंस हंसकर म भूल चुका हं ू आशा और िनराशा करो,<br />

रो-रोकर म भूल चुका हं ू सुख-दख<br />

ु क परभाषा को,<br />

भूल चुका हं ू सब कु छ के वल इतना मुझ को याद रहा--<br />

बनते देखा, िमटते देखा अपनी ह अिभलाषा को!<br />

नहं आज तक देख सका हं ू िनज धुंधले<br />

अरमान को,<br />

नहं आज तक सुन पाया हं ू उर के अफु ट गान को,<br />

अरे, देखना-सुनना उसका, जसका हो अतव यहां;<br />

ेम िमटा देता है पल म अपने ह दवान को!<br />

देख कस म कतनी तृणा कस म कतनी वाला है?<br />

िनजव के इस समूह म जीवत कौन िनराला है?<br />

आज हलाहल छलक रहा है पीड़त जग क आंख म<br />

सुधा समझकर कौन यहां पर उस को पीनेवाला है?<br />

देख कस म अिमट सा है, कस म अत आशा है?<br />

िमट िमटकर फर बननेवाली कस म नव अिभलाषा है?<br />

आज मौन-िनपंद पड़ा है व मृयु क तंा म;<br />

जीवन का संदेश सुनानेवाले कसक भाषा है?<br />

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देख कस के उर म गित है, ास म उछवास यहां?<br />

कसके वैभव के अंतर म है अय वास यहां?<br />

आज वकृ त सीिमत है जग के जीवन का उमु वाह,<br />

इस असीम म लहराता है कसका पूण वकास यहां!<br />

कस गित से ेरत हो अवकल बहता है सरता का जल?<br />

कस इछा से पागल होकर लहर उठतीं मचल-मचल<br />

कल-कल विन म छलक रहा है कस अिभलाषा का संगीत?<br />

लय होने को ेम ढंढता ू है असीम<br />

का वथल!<br />

कस तृणा से आकु ल होकर पहु, पहं ु रटता है चातक?<br />

कस य का आान कर रह कु हु कु हु वर म कु हू अथक?<br />

कलरव के उन स वर मग है कस से िमलने क साध?<br />

ढंढ ू रहा अतव पूणता के सपने क एक झलक!<br />

आंख मूंदकर<br />

बढ़ते जाना, एक िनयम दवान का,<br />

िसर न झुकाना लड़ते जाना, एक िनयम मरदान को,<br />

ास म गित--उर म गित है, यहां गित ह एक िनयम<br />

गित बनना, गित म िमल जाना, एक िनयम गितवान का!<br />

म एक चुनौती हं ू--एक आान! झकझोरता हं ू तुह। पूछता हं ू तुम से। आंख मूंदकर<br />

बढ़ते<br />

जाना, एक िनयम दवान का,<br />

िसर न झुकाना लड़ते जाना, एक िनयम मरदान का,<br />

ास म गित, उर म गित है, यहां गित ह एक िनयम<br />

गित बनना, गित म िमल जाना, एक िनयम गितवान का!<br />

चूके हो पहले, इस बार न चूकना। डर तो लगता है। ससंग भय तो लाता है।<br />

अरे, देखना-सुनना उस का, जसका हो अतव यहां;<br />

ेम िमटा देता है पल म अपने ह दवान को!<br />

ेम तो िमटाता है। ेम तो जलाता है। लेकन जस म हमत है, जस म साहस है, वह हंसते<br />

हए ु जलता है,<br />

वह हंसते हए ु िमटता है। और हंसते हए ु िमट जाए,<br />

वह उसे पा लेता है,<br />

जसका फर कभी िमटना नहं होता?<br />

देख कस म अिमट साध है, कस म अत आशा है।<br />

िमट िमटकर फर बननेवाली कस म नव अिभलाषा है?<br />

देख कस के उर म गित है, ास म उछवास यहां?<br />

कस के वैभव के अंतर है अय वास यहां?<br />

म एक अवसर हं ू क तुह िमटा दं। ू जैसे म िमट गया हं ू,<br />

वैसे तुह िमटा दं। ू भागने का<br />

मन बहत ु होगा। बचने क बहत ु चेा होगी। वाभावक है वह मन,<br />

वह चेा। लेकन<br />

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वभाव से ऊपर उठने म ह मनुय क गरमा है। वभाव के अितमण म ह मनुय क<br />

दयता है।<br />

संदप, िचंता मत करना। तुम पूछते हो, यह मुझे या हो रहा है? तुम सोचते होओगे, म<br />

कोई पगला तो नहं रहा हं<br />

ू, कोई मतक खराब तो नहं हो रहा है! यहां पहले कभी आया<br />

नहं; लगता है पहले आया हं। ू पहले कभी देखा नहं;<br />

लगता है, पहले देखा है। पहले कभी<br />

सुना नहं; लगता है, सुना है। कहं मेरा मतक डांवांडोल तो नहं हआ ु जा रहा है?<br />

कहं<br />

म अपना संयम, अपना िनयंण तो नहं खोए दे रहा हं<br />

ू?<br />

ऐसा वचार उठना वाभावक है। लेकन इस वचार से ह जो अटक जाते ह, वे कभी अितमण न<br />

कर पाएंगे। वे कभी अपने ऊपर आंख न उठा पाएंगे। वे कभी बु के ऊपर जो है, उस का<br />

संपश न कर पाएंगे। और जो है संपश करने योय, वह बु के पार है।<br />

दरया ने कहा न: न िच वहां पहंचता ु , न मन वहां पहंचता ु , न बु वहां पहंचती ु , न शद<br />

क वहां गित है। सब पीछे छू ट जाता है, िसफ शु चैतय मा वहां पहंचता है। जब म<br />

ु<br />

कहता हं ू क म तुह पू रा िमटाना चाहता हं ू तो उसका इतना ह अथ है क िसफ शु<br />

चैतय तुहारे भीतर रह जाए और अब तुम से अलग हो जाए और सब से तुहारा तादाय टट ू<br />

जाए--िसफ एक साी-भाव, मा साी-भाव ह तुहारे भीतर गहन हो जाए। फर तुहारे<br />

िलए रहय के ार खुलगे। खजाने, जो फर कभी चुकते नहं! अमृत! जसक हम जम-<br />

जम से तलाश कर रहे ह और खोज नहं पाए! और मजा यह है क जसे हम दरू खोज रहे ह, वह<br />

बहत ु पास है,<br />

पास से भी पास है।<br />

चौथा : आप कु छ कहते ह, लोग कु छ और ह समझते ह। यह कै से के गा?<br />

हरदास! यह कभी के गा नहं। यह क ह नहं सकता। यह सदा-सदा से चला आया िनयम<br />

है। रघुकु ल रित सदा चिल आई!<br />

म जो कहंगा<br />

ू , तुम उसे वैसा ह कै से समझ सकते हो जैसा म कहता हं<br />

ू? तुम उसे वैसा ह<br />

कै से समझ सकते हो? कोई उपाय नहं है।<br />

म पुकारता हं ू एक पहाड़ से;<br />

तुम सरककर रहे हो अपनी अंधेर घाटय म। तुम तक<br />

पहंचते ु -पहंचते ु मेर आवाज,<br />

मेर आवाज नहं रह जाएगी। तम यादा से यादा घाटय के मेर<br />

गूंज<br />

सुनोगे, अनुगूंज<br />

सुनोगे, ितविन सुनोगे। और फर ितविन भी तुम अपने ढंग से<br />

सुनोगे। म बोलूंगा<br />

पहाड़ के िशखर क वण-मंडत िशखर क भाषा म, काशोजवल<br />

िशखर क भाषा म; तुम समझोगे घाटय के अंधेरे क भाषा म। तुम पहले अनुवाद करोगे,<br />

तब समझोगे।<br />

एक भाषा से दसर भाषा म अनुवाद करने म ह बहत कु छ खो जाता है। फर अगर ग हो<br />

ू ु<br />

तो भी खो जाता है; प हो, तब तो बहत कु छ खो जाता<br />

ु है। लेकन यह तो मामला उन<br />

भाषाओं का है जो एक ह सतह क ह--घाट क भाषाएं। एक कोने म एक भाषा बोली जाती है,<br />

घाट के दसरे कोने म दसर भाषा बोली जाती है। लेकन दोन गुणामक प से अंधेरे क<br />

ू ू<br />

भाषाएं ह। जब काशोवल िशखर से कोई पुकारता है तो भाषाओं का अंतर बहत बड़ा है।<br />

ु<br />

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गुणामक अंतर है। आकाश को पृवी पर लाना, अय को य म लाना, िनःशद को<br />

शद म लाना, शूय को भाषा के व पहनाने...सब अतयत हो जाता है। फर तुम<br />

समझोगे, तुम समझोगे न! तुम अपने ह िच से समझोगे। और तो तुहारे पास समझने<br />

का कोई उपाय नहं है अभी तुम ने यान तो जाना नहं। अगर तुम यान म बैठकर मुझे<br />

सुनो, तो तम वह समझोगे जो म कह रहा हं।<br />

ू<br />

लेकन लोग मुझ से पूछते ह क पहले हम आपको समझ, तब तो यान कर। पहले हम<br />

भरोसा आ जाए क आप जो कहते ह ठक ह कहते ह, तब तो हम यान क झंझट म<br />

पड़े। पहले यान या है, यह समझ म आ जाए तो हम यान कर।<br />

ठक ह कहते ह, तक यु बात कहते ह। होिशयार आदमी ह। बाजार म आदमी जाता है,<br />

चार पैसे का घड़ा खरदता है तो भी ठोक-पीटकर देवता है, बजाकर देखता है--कहं फू टा-<br />

फाटा तो नहं! ऐसे ह चार पैसे गंवा न द! जो आदमी चार पैसे के घड़े क भी ठक-बजाकर<br />

देखता है, वह यान जैसी महा ांित म बना सोचे-समझे उतर जाएगा, इसक आशा<br />

रखनी उिचत ह है। पहले समझेगा। और समझने म ह अड़चन है। समझेगा मन से, और<br />

मन यान का दमन ु है। मन और यान वपरत<br />

ह। मन है अंधेरा, यान है योितमय।<br />

मन है मृयु, यान है अमृत। मन है णभंगुर, यान है शात। कोई संबंध नहं बैठता<br />

मन का और यान का। बात ह नहं बनती।<br />

हरदास! तुहार तकलीफ म समझता हं ू, तुहार पीड़ा म समझता हं। ू तुम उतरने लगे<br />

यान म, तुह कु छ-कु छ बात समझ म पड़ने लगी। तो तुह बेचैनी होती है क लोग<br />

आपक बात को गलत य समझते ह, कु छ का कु छ य समझते ह? लेकन नाराज मत<br />

होना। उनक भी मजबूर है। वे भी या कर? उन पर अनुकं पा रखना। समझाए जाना।<br />

इसीिलए तो रोज म समझाए जाता हं।<br />

ू तुम कु छ भी समझो, तुम कु छ का कु छ समझो--म<br />

समझाए जाऊं गा। मेर तरफ से कृ पणता न होगी। आज नहं समझोगे, कल नहं समझोगे,<br />

परस नहं समझोगे--कब तक नहं समझोगे? एकाध दन, शायद तुहारे बावजूद कोई<br />

करण उतर जाए, कोई रं िमल जाए, कोई थोड़ा सा ार दरवाजा तुह िमल जाए--और<br />

तुम तक पहंच ु जाऊं और तुहारे ाण को छू लूं।<br />

एक बार बस तुहार दयतंी<br />

बज जाए,<br />

बस फर शुआत हई। पहला पाठ हआ। पहले पाठ तक पहंचाने म ह वष लग जाते ह।<br />

ु ु ु<br />

अंितम पाठ क तो बात ह नहं करनी चाहए।<br />

गु पहले पाठ तक ह पहंचा ु दे,<br />

बस काफ है; अंितम पाठ तक तो फर तुम वयं पहंच ु<br />

जाओगे। पहला कदम उठ जाए तो अंितम कदम बहुत दरू नहं है। पहला कदम, पचास ितशत<br />

याा पूर हो गई। यक फर पला कदम दसरा ू उठवा लेगा,<br />

और दसरा ू तीसरा उठवा<br />

लेगा...। फर तो िसलिसला शु हो गया। शृ ंखला का जम हो गया। चल पड़े तुम, सयक<br />

िशला िमल गई।<br />

मगर साधारणताः तो लोग भीड़-भीड़, बाजार म कु छ समझते ह रहगे। यहां आएंगे भी नहं।<br />

मुझसे सीधा सुनगे भी नहं। कोई उह सुनाएगा। उस ने भी कसी से सुना होगा।<br />

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अभी भरोसा संसद म घंटेभर उहने मेरे संबंध म ववाद कया। उन म से एक भी य<br />

यहां नहं आया, जहने ववाद म भाग िलया। और सब इस तरह ववाद म भाग िलए जैसे<br />

जानकार ह। एक ने भी साहस नहं कया है आने का। लेकन बोले ऐसे, जैसे सब जानते ह; जैसे<br />

जो यहां कर रहा हं<br />

ू, उसक उह पहचान है! अफवाह को लोग सुनते ह। अफवाह से लोग<br />

जीते ह। और जनको तुम समझदार कहते हो, बुमान कहते हो, वे भी अफवाओं से ह<br />

जीते और समझते ह।<br />

मुला नसन से उसका एक िम बहत परेशान हो गया था यक मुला ने उस से कु छ<br />

ु<br />

पया उधार िलया था। जब भी उस से मांगता पये िम, मुला कहता: अगले महने...।<br />

और अगला महना कभी आता ह नहं। आखर उस ने एक दन कहा क तुम हर बार यह<br />

कहते हो क अगला महना, फर देते तो नहं! तो मुला हंसने लगा, उसने कहा: तुह यह<br />

समझ म नहं आता क अगर देना होता तो अगले महने पर य टालते? और फर म<br />

हमेशा अगले महने पर टालता हं। ू मेर संगित देखो?<br />

अपने वचन पर ितब हं। ू अगले<br />

महने ह दंूगा। जो बात कह द कह द। वचन का पका हं।<br />

ू इस वचन को कभी खंडत न कं गा।<br />

िम आखर थक गया। वष गुजर गए। सैकड़ तकाज के बावजूद भी जब मुला ने पया<br />

वापस करने का नाम नहं िलया तो एक दन िम ने कहा: अब तो मेरा इंसािनयत पर से<br />

वास ह उठ गया। मुला नसन ने तपरता से कहां: भाई, इंसािनयत पर से वास उठ<br />

जाए तो कोई बात नहं, िमता पर से वास नहं उठना चाहए।<br />

अपने-अपने ढंग ह। अपनी-अपनी समझ है। शद के अपने-अपने अथ ह।<br />

एक कव का ववाह हआ। ु थम िमलने म ह कव ने बड़े यार से अपनी बीवी<br />

से कहा: मेर<br />

एक कवता सुनोगी? बीवी तकाल बोली: छोड़ए भी, कोई अछ बात करए!<br />

एक लाज म हर रोज रो चमच गायब हो जाते थे। इसिलए जो लोग भोजन के िलए आते,<br />

उन पर फर कड़ िनगरानी रखी गई। मुला नसन हर रोज आता था, आज उस , भी<br />

नजर रखी गई। जब उसने भोजन समा कर िलया तो जद से दो चमच उठाकर अपनी जेब म<br />

डाल िलए। फौरन उस को पकड़ भी िलया गया। नौकर उसे मािलक के पास ले गए। मािलक ने कहा: बड़े<br />

िमयां आप देखने से तो बड़े भोले-भाले मालूम पड़ते ह। फर आपको यह चोर या शोभा देती है?<br />

मुला नसन ने अपनी जेब म से एक कागज िनकालकर मािलक को दया, जो डाटर का<br />

ेसन था; उस म िलखा था: हर रोज भोजन के पात दो चमच लेना।<br />

अब करोगे या? लोग तो वैसा ह समझगे जैसा समझ सकते ह। तुम पूछते हो: आप कु छ<br />

कहते ह, लोग कु छ और ह समझते ह। वाभावक जरा भी इस म कु छ अघट नहं हो रहा है।<br />

ऐसा ह सदा होता रहा है।<br />

और तुम पूछते हो हरदास: यह कै से के गा? यह कनेवाले नहं। कु छ के िलए क जाएंगे।<br />

जो मेरे पास आ जाएंगे, जो मेरे िनकट हो जाएंगे, जो मेरे सामीय म जीने लगगे, उनके<br />

िलए िमट जाएगा। बाक वृहत भीड़ तो कु छ का कु छ सोचती ह रहेगी, कहती ह रहेगी। यह<br />

बु के साथ हआ ु , यह महावीर के, यह मोहमद के, यह जीसस के । यह सदा हआ ु<br />

है।<br />

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यह आज भी होगा। यह कल भी होता रहेगा। भीड़ बहत ु बात<br />

ु को ह समझ सकती है।<br />

बाजा बात को समझ सकती है। उसने आकाश क तरफ आंख उठाकर कभी देखा भी नहं,<br />

फु सत भी नहं, आकांा भी नहं। उस से तुम चांदार क बात करोगे, तो भीड़ कहेगी तुम<br />

झूठे हो।<br />

तुमने कहानी सुनी है न! सागर का एक मढक एक बार एक कु एं म चला आया। कु एं के<br />

मढक ने पूछा क िम, कहां से आते हो? उसने कहा: सागर से आता हं। कु<br />

ू<br />

एं के मढक ने तो<br />

सागर शद सुना ह नहं था। उस ने कहा: सागर! यह कस कु एं का नाम है? सागर से आया मढक<br />

हंसने लगा, उसने कहा: यह कु एं का नाम नहं है।<br />

तो सागर या है?<br />

बड़ मुकल हई ु सागर के मढक को,<br />

वह कै से समझाए सागर या है! कु एं का मढक कभी<br />

कु एं के बाहर गया नहं था। सागर तो दरू , उसने तालालाब भी नहं देखे थे। कु एं म ह बड़ा<br />

हआ। ु कु एं म ह जीया,<br />

कु आं ह उसका संसार था। वह उसका समत व था। कु एं के<br />

मढ़क ने एक ितहाई कु एं के छलांग लगाई और कहा: इतना बड़ा है तुहारा सागर? सागर के<br />

मढक ने कहा: िम, तुम मुझे बड़ अड़चन म डाले दे रहे हो। सागर बहत ु बड़ा है!<br />

तो उसने दो ितहाई कु एं म छलांग लगाई, उस ने कहा: इतना बड़ा है तुहारा सागर? सागर<br />

म मढक ने कहा क म तुह कै से समझाऊं, तुह कै से बताऊं सागर बहत बड़ा है।<br />

ु<br />

तो उसने पूरे कु एं म एक कोने से दसरे<br />

ू कोने तक छलांग लगाई, उसने कहा: इतना बड़ा है<br />

तुहारा सागर? और जब सागर के मढक ने कहा यह तो कु छ भी नहं है, अनंत-अनंत गुना<br />

बड़ा है-- तो कु एं म मढक ने कहा: तेरा जैसा झूठ बोलनेवाला मढक मने कभी देखा नहं।<br />

बाहर िनकल! कसी और को धोखा देना। तूने मुझे समझा या है? म कोई बु नहं हं क<br />

ू ू<br />

तेर बात म आ जाऊं ! मगर इसी व बाहर िनकल! इस तरह के झूठ बोलनेवालो को इस<br />

कु एं म कोई जगह नहं!<br />

यह कहानी बड़ अथपूण है। यह आदमी क कहानी है। सुकरात को जब जहर दया गया तो<br />

एथेस के जज ने यह िनणय िलया क या तो तुम मरने को राजी हो जाओ और या फर तुम जो<br />

बात कहते हो, वे बात कहना बंद कर दो। दो म से कु छ भी चुन लो। तुम जो बात कहते हो,<br />

वे बंद कर दो, तो तुम जी सकते हो। और अगर तुम उन बात को जार रखोगे तो िसवाय<br />

मृयु के और कोई उपाय नहं है। फर मृयु के िलए राजी हो जाओ।<br />

सुकरात बात या कह रहा था? सागर क बात कर रहा था--कु एं के लोग से! और कु एं के<br />

भीतर रहनेवाले लोग सागर क बात सुनकर नाराज हो जाते ह। सुकरात का अपराध था<br />

यह...यह अपराध अदालत ने तय कया था क तुम लोग को बगाड़ते हो। सुकरात लोग<br />

को बगाड़ता है! सय क ऐसी शु अिभय बहत कम लोग म हई है जैसी सुकरात म।<br />

ु ु<br />

सुकरात लोग को बगाड़ता है, यह अदालत का फै सला था। अदालत एथेस के सब से<br />

यादा बुमान लोग से बनी थी। एथेस म जो सब से यादा ितभाशाली लोग थे, वे ह<br />

उस अदालत के यायाधीश थे। उहने एक मत से िनणय दया था क तुम चूंक<br />

लोग को बगाड़ते<br />

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हो, खासकर युवक को...यक बूढ़े तो तुहार बात म आने से रहे, युवक तुहार बात<br />

म आ जाते ह। यक बूढ़े तो इतने अनुभवी ह क तुम उनको धोखा नहं दे सकते।<br />

बढ़े, मतलब जो कु एं म इतना रह चुके ह क अब मान ह नहं सकते क कु एं से िभन कु छ और हो<br />

सकता है। जवान वह, जो अभी कु एं म नया-नया आया है और जो सोचता है क हो सकता है<br />

क कु एं से भी बड़ चीज हो। कौन जाने! जवान म जासा होती है, खोज होती है, साहस<br />

भी होता है; नए को सीखने क तमना भी होती है। बूढ़ा तो सीखना बंद कर देता है। जैसे-जैसे<br />

आदमी बूढ़ा होता जाता है वैसे-वैसे उसका सीखना ीण होता जाता है। और जो आदमी अपने बुढ़ापे<br />

तक सीखने को राजी है, वह बूढ़ा है ह नहं। उसका शरर ह बूढ़ा हआ<br />

ु , उसक आमा जरा<br />

भी बूढ़ नहं है। उसके भीतर भी उतनी ह ताजगी है जतनी कसी छोटे बचे के भीतर हो। जो अंत<br />

तक सीखने को राजी है, उसके भीतर सदा ह युवावथा बनी रहती है। युवावथा क ताजगी<br />

और युवावथा का बहाव और युवावथा क ितभा बनी रहती है।<br />

लेकन लोग जद बूढ़े हो जाते ह। तुम सोचते हो क सर साल म बूढ़े होते ह तो तुम गलत<br />

सोचते हो। मनोवैािनक कहते ह क अिधकतर लोग बाहर वष क उ के बाद क जाते ह, फर<br />

सीखते ह नहं। बारह वष--यह औसत मानिसक उ है दिनया<br />

ु क! बारह वष भी कोई उ<br />

हई<br />

ु ! सात वष क उ म बचा पचास ितशत बात सीख लेता है अब बस पचास ितशत और<br />

सीखेगा। और अभी जंदगी पड़ है पूर। और बारह वष क उ तक पहंचते ु -पहंचते ु , या बहत ु हआ ु<br />

तो चौदह वष क उ तक पहंचते<br />

ु -पहंचते सब ठहर जाता है।<br />

ु फर सीखने का उपम बंद हो<br />

जाता है। फर तुम अपने ह कु एं के गोल घेरे म घूमने लगते हो। फर तुम सागर क तरफ<br />

दौड़ती हई ु सरता नहं रह जाते, रेल क पटर पर दौड़ती हई ु मालगाड़ हो जाते हो--मालगाड़,<br />

पैसेजर गाड़ जीवन म और कोई वतंता नहं रह जाती। उसी पटर पर दौड़ते-दौड़ते एक<br />

दन मर जाते हो। कहं पहंचना नहं हो पाता।<br />

ु<br />

अिधक लोग तो मेर बात नहं समझगे। समझगे तो गलत समझगे। समझगे तो कु छ का कु छ<br />

समझगे। म इससे अयथा क आशा भी नहं रखता। इसिलए मुझे इस से कु छ अड़चन नहं होती। मुझे<br />

इस से कु छ वषाद नहं होता। इस से मुझे कोई िचंता नहं होती। यह होना ह चाहए। अगर लोग मेर<br />

बात बलकु ल वैसी ह समझ ल जैसा म कह रहा हं ू तो चमकार होगा। ऐसा चमकार न कभी हआ ु है<br />

न हो सकता है। अभी मनुय से ऐसी आशा करनी असंभव है।<br />

िनकली है सुबह, नहा के आंख मल के देखए<br />

बैठे हए ह<br />

ु आप जरा चल के देखए<br />

है खा रह जमीन िसतार के फासले<br />

कतनी हसीन आग है ये जल के देखए<br />

तन कर खड़ ह चोटयां जो टट ू जाएंगी<br />

बेहतर है इस हवा म आप ढल के देखए<br />

गल-गल के बहे जा रहे ह धूप म पहाड़<br />

गलना भी एक जंदगी है गल के देखए<br />

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फू ल से रंगी गंध है गंध से रंगी धूप<br />

साए ह उड़ रहे कसी आंचल के देखए<br />

कल तक तो फू ल भी न खल सके थे बाग के<br />

ितनके भी आज ह खड़े खल-खल के देखए<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

मगर यह अनुभव क बात...। आओ पास! चखो मुझे! पयो मुझे!<br />

िनकली है सुबह नहा के आंख मल के देखए<br />

बैठे हए ह आप जरा चल के देखए<br />

ु<br />

लोग चलने को राजी नहं ह, देखने को राजी नहं, आंख खोलने को राजी नहं।<br />

फर कै से उह समझाओ? समझाए जाऊं गा। सौ को समझाऊं गा, दस सुनगे; नबे तो सुनगे<br />

ह नहं। दस सुनगे, शायद एक-आध समझे। पर उतना भी काफ पुरकार है, उतना भी<br />

काफ तृिदायी है। अगर थोड़े से फू ल भी खल जाए, अगर थोड़े से लोग भी बुव को<br />

उपलध हो जाए, तो इस पृवी का हम रंग बदल दगे। थोड़े से दए जल जाए तो बहत<br />

ु अंधेरा<br />

टट ू जाएगा। और फर एक दया जल जाए तो उससे और बुझे दय को जलाया जा सकता है।<br />

बु क एक शृ ंखला पैदा करने का आयोजन है। संयास उसी दशा म उठाया गया पहला<br />

कदम है। संयास का अथ है: आओ मेरे करब। संयास का अथ है: घोषणा करो अपना तरफ<br />

से क तुम सामीय के आकांी हो।<br />

है खा रह जमीन िसतार के फासले<br />

कतनी हसीन आग है ये जल के देखए<br />

तन कर खड़ ह चोटयां ये टट ू जाएंगी<br />

बेहतर है इस हवा म आप ढल के देखए<br />

आओ, ढलो, पयो, गलो!<br />

गल-गल के बहे जा रहे ह धूप म पहाड़<br />

गलना भी एक जंदगी है गल के देखए<br />

वे थोड़े से लोग ह समझ पाएंगे, जो गलगे मेरे साथ; जो इस आग से नाचते हए गुजरगे<br />

ु<br />

मेरे साथ। बाक तो कु छ का कु छ समझगे। उह समझने दो। उनक िचंता<br />

भी न लो। उनक उपेा करो। दया रखना उन पर। ोध मत लाना। यक उनका कोई<br />

कसूर नहं है। ऐसी ह उनक मन क दशा है। इतनी ह उनक पाता है। इतनी ह उनक मता है।<br />

आखर : आपका मूल संदेश या है?<br />

वह जो सदा से सभी बु का रहा है: अप दपो भव! अपने दए खुद बनो। अपने माझी<br />

खुद बनो। कसी और के कं धे का सहारा न लेना। खुद खाओगे तो तुहार भूख िमटेगी। खुद<br />

पयोगे तो तुहार यास िमटेगी। सय को वयं जानोगे, तो ह, के वल तो ह संतोष क वीणा<br />

तुहारे भीतर बजेगी! मेरा जाना हआ ु सय,<br />

तुहारे कसी काम का नहं।<br />

म तुह सय नहं दे सकता। म तो िसफ तुहारे भीतर सय को पाने क अभीसा को<br />

विलत कर सकता हं। म तुह सय नहं दे सकता लेकन सय क ऐसी आग तुहारे<br />

ू<br />

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भीतर पैदा कर सकता हं ू क तुम पतंग बन जाओ,<br />

क तुम सय क योित म जल िमटने<br />

को तपर हो जाओ।<br />

कौन कहता है<br />

क मेर नाव पर माझी नहं है,<br />

आज माझी म वयं इस नाव का हं<br />

ू!<br />

म नहं वीकार करता<br />

जलिध क छलनामयी<br />

मनुहारमय रंगीन लहर का िनमंण<br />

आज तो वीकार मने क जलिध क<br />

अनिगनत वकराल इन उाम लहर क चुनौती!<br />

आज मेरे सधे हाथ म थमी पतवार।<br />

लहर नाव को आकाश तक फ के भले ह,<br />

जाए ले पाताल तक वे साथ अपने,<br />

कं तु पाएंगी न इस को लील!<br />

उनक हार िनत<br />

नाथ लेगी नाग सी वकराल लहर को<br />

दय क आथा क डोर!<br />

लहर शीश पर ढोकर वयं ले जाएंगी<br />

यह नाव मेरे लय तक!<br />

यक अपनी नाव का माझी वयं म,<br />

और मेरे सधे हाथ म थमी पतवार!<br />

यह मेरा संदेश है: माझी बनो। पतवार उठाओ। थोड़ पतवार चलाओ, हाथ सध जाएंगे।<br />

परमामा ने तुहारे हाथ इस योय बनाए ह क सध सकते ह। साधना उनक मता है।<br />

बैसाखयां पर न चलो, अपने पैर पर चलो। अपने माझी बनो।<br />

और घबड़ाओ मत। सागर क जो उाम लहर तुह पुकार रह ह, वे ह तुह परमामा के<br />

कनारे तक ले जाएंगी। चुनौितयां ह अवसर ह। चूको मत। हर चुनौती को अवसर बना लो।<br />

राह पर पड़े पथर ह सीढ़यां बन जाएंगे--तुम जरा सहलो, तुम जरा जागो! तुह पता<br />

नहं क तुहारे भीतर कौन बैठा है! वह, जसे तुम खोज रहे हो, तुहारे भीतर बैठा है।<br />

खोजनेवाला और जसे हम खोज रहे ह दो नहं ह। तुहार अनंत मता है। अमृतय पुः! तुम<br />

अमृत के पु हो!<br />

य! तुहारे कस सजीले वन का आकार हं ू म !<br />

जो तुहारे ने म नत है वह शृ ंगार हं ू म।<br />

एक ह थी जस म<br />

सृ मेर मुसकराई;<br />

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थी वह मुसकान जस म<br />

हंसी जाकर लौट आई,<br />

थी तुहार गित क जो<br />

दख मग सदा सुख बन समाई<br />

ु<br />

भाय-रेखा ितज-रेखा<br />

बन भा से जगमगाई,<br />

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टटकर ू भी िनय बजता हं ू, तुहारा तार हं ू म।<br />

य! तुहारे कस सजीले वन का आकार हं म।<br />

ू<br />

कौन सा वह ण दया<br />

जो ाण म अनुराग बांधे;<br />

कौन सा वह बल दया<br />

अनुराग म भी आग बांधे,<br />

कौन सा साहस दया जो<br />

भूिम के भी भाग बांधे,<br />

भूिम-भाग के मुकु ट पर<br />

मुसकराता याग बांधे<br />

सुखकर भी जो दय पर खल रहा है, हार हं म।<br />

ू<br />

य! तुहारे कस सजीले वन का आकार हं ू म !<br />

चं िनभ हो चला अब<br />

रात ढलती जा रह है;<br />

कौन सा संके त है जो<br />

सांस चलती जा रह है;<br />

अविध जतनी कम बची<br />

उतनी मचलती जा रह है<br />

दि बुझने क नहं<br />

वह और जलती जा रह है<br />

मृयु को जीवन बनाने का अिमट अिधकार हं म।<br />

ू<br />

य! तुहारे कस सजीले वन का आकार हं ू म !<br />

तुम उस परमामा के वन हो। तुम म वह आकार िलया है, पाियत हआ है। तुहार<br />

ु<br />

वीणा म उसी का संगीत िछपा है, छोड़ो!<br />

जो बु का संदेश है--सब बु का, समत बु का--वह मेरा संदेश है--अप दयो भव!<br />

अपने दए बनो! अपने माझी बनो!<br />

आज इतना ह।<br />

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जागे सो सब से यारा<br />

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सातवां वचन; दनांक १७ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

सब जग सोता सुध नहं पावै। बोलै सो सोता बरड़ावै।।<br />

संसय मोह भरम क रैन। अंधधुंध<br />

होय सोते अन।।<br />

तीथ-दान जग ितमा-सेवा। यह सब सुपना लेवा-देवा।।<br />

कहना सुनना हार औ जीत। पछा-पछा सुपनो वपरती।।<br />

चार बरन औ आम चार। सुपना अंतर सब यौहार।।<br />

षट दरसन आद भेद-भाव। सपना अंतर सब दरसाव।।<br />

राजा राना तप बलवंता। सुपना माहं सब बरतंता।।<br />

पीर औिलया सबै सयाना। याब माहं बरतै बध नाना।।<br />

काजी सैयद औ सुलतान। याब माहं सब करत पयाना।।<br />

सांख जोग औ नौधा भकती। सुपना म इनक इक बरती।।<br />

काया कसनी दया औ धम। सुपने सुग औ बंधन कम।।<br />

काम ोध हया परनास। सुपना माहं नक िनवास।।<br />

आद भवानी संकर देवा। यह सब सुपना लेवा-देवा।।<br />

ा बन दस औतार। सुपना अंतर सब यौहार।।<br />

अदिभज सेदज जेरज अंडा। सुवपप बरतै ंडा।।<br />

उपजै बरतै अ बनसावै। सुपने अंतर सब दरसावै।।<br />

याग हन सुपना यौहार। जो जागे सो सब से यारा।।<br />

जो कोई साध जािगया चावै। सो सतगुर के सरनै आवै।।<br />

कृ तकृ त िगरला जोग सभागी। गुरमुख चेत सद मुख जागी।।<br />

संसय मोह-भरम िनस नास। आतमराम सहज परकास।।<br />

राम संभाल सहज धर यान। पाछे सहज कासै यान।।<br />

जन दरयाव सोइ बड़भागी। जाक सुरत संग जागी।।<br />

वार उठा जब जब तूफान म,<br />

तट मेरा मझधार हो गया।<br />

नेह छांव छु ट गई हाथ से,<br />

छाया-पथ अंगार हो गया।<br />

बेसुध सी रो पड़ जंदगी, वन पले के पले रह गए,<br />

नयन योित हो गई परायी दप जले के जले रह गए।<br />

एक वन झूठा-झूठा सा,<br />

जीने का वास दे गया।<br />

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पांव मग बेड़यां बांधकर,<br />

चलने का आभास दे गया।<br />

नयन म चुभ गए अुकण,<br />

आशाओं का दपण फू टा।<br />

बदम बढ़ाते ह आगे को,<br />

फसले पांव गीत-घट फू टा।<br />

ठहर गए अधर पर आंसू,<br />

बखर गया उलास धूल म।<br />

चाह लुट सोई अंगड़ाई,<br />

चाह लुट सोई अंगड़ाई,<br />

उलझ गया मधुमास शूल म।<br />

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गीत बन गई मौन वेदना भाव छले के छले रह गए,<br />

दपण ने सब कु छ कह डाला अधर िसले के िसले रह गए।<br />

अंतर म पतझार िछपाए,<br />

उपवन म आंधी बौराई।।<br />

हरिसंगार झर गया अजाने,<br />

झुलस गई लितका तणाई।<br />

बखर गया मन भाव सौरभ,<br />

रह देखती साध कुं<br />

आर,<br />

धूल धूसरत सूना अंबर,<br />

खोई सी रजनी अजयार।<br />

टट ू गई डाली से डाली,<br />

उखड़ गयी सांस से धड़कन।<br />

ठूंठ बनी रह गई कामना,<br />

उजड़ गई कसम क कसकन।<br />

यौवन के फू टे अंकु र के पात हले के हले रह गए,<br />

उपवन क लुट गई बहार फू ल खले के खले रह गए।<br />

अनजाना सा एक सपेरा,<br />

मं क डोली चढ़ आया।<br />

नािगन डसी बीन क धुन म,<br />

अपना ह हो गया पराया।<br />

िससक गया नैन का काजल।<br />

बांझ हो गई िमलन तीा,<br />

बंधन बनी परायी पायल।<br />

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फू ट गए अवशेष घरदे,<br />

वन रहा सोया का सोया।<br />

सब कु छ ह रह गया देखता,<br />

बसुध आंगन खोया-खोया।<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

छु ट गए हाथ के बंधन, नयन िमले के िमले रह गए,<br />

डोली पर चढ़ चली बावर, ार खुले के खुले रह गए।<br />

यह जीवन इतना णभंगुर है, फर भी हम भरोसा कर लेता ह। हमारे भरोसे क मता<br />

अपार है। हमारा भरोसा चमकार है।<br />

पानी का बबूला है यह जीवन, जब फू टा तब फू टा। फर भी हम कतने सपने संजो लेते ह।<br />

म भी हम कतनी आथा कर लेते ह। क सपना भी सच मालूम होने लगता है। आथा हो<br />

तो सपना भी सच हो जाता है। सच मालूम होता है कम से कम। और न मालूम कतने<br />

वन ह! जतने लोग ह उतने वन ह। जतने मन ह उतने वन ह। संसार के वन ह,<br />

याग के वन ह। नक के वन ह, वग के वन ह।<br />

जो जानते ह उनका कहता है: वन देखनेवाले को छोड़कर और सब वन है। िसफ ा<br />

सय है। सब य झूठे ह। और यह ांित है--य से ा पर आ जाना। यह छलांग है।<br />

वन तो झूठ ह ह, वन को देखनेवाला भर झूठ नहं है। मगर हम बड़े उटे ह। वन<br />

को देखनेवाले को तो देखते ह नहं, वन म ह उलझे रह जाते ह। और एक वन टटा ू<br />

तो दसरा ू बना लेते ह। ऐसा भी हो जाता है। क धन का वन टटा ू तो याग का वन<br />

िनिमत कर लेते ह। घर-गृहथी का वन टटा ू तो याग-वर<br />

का वन िनिमत कर लेते<br />

ह। इस लोक का वन टटा ू तो परलोक के वन िनिमत कर लेते ह।<br />

यह ांित नहं है। यह धम नहं है। यह पांतरण नहं है। पांतरण तो बस एक है--य से<br />

ा पर सरक जाना। वह जो दखाई पड़ रहा है, फर चाहे सुख हो चाहे दख ु हो,<br />

सब<br />

बराबर है। हार हो क जीत हो, बराबर है। देखनेवाला भर सच है। देखने वाले को कब<br />

देखोगे? जस दन देखनेवाले को देखोगे, उस दन जाग गए।<br />

जागरण का कोई और अथ नहं है। जागरण का इतना ह अथ है क ा वयं के बोध से<br />

भर गया। यह यान, यह समािध है। और फर देर नहं लगती...अमी झरत, बगसत<br />

कं वल। झरने लगता है अमृत, कमल खलने लगते ह। तुम जागो भर। वन तुह सुलाए<br />

ह। वन ने तुह मादकता दे द है, तुहार आंख को बोझलता दे द है। तुहार पलक<br />

को वन ने बंद कर दया है। और तुम जानते भी हो। ऐसा भी नहं क नहं जानते हो।<br />

ऐसा भी नहं क दरया कहे तब तुम जानोगे।<br />

रोज कोई अथ उठती है। मगर मन म एक ांित बनी रहती है क अथ सदा दसरे क उठती<br />

ू<br />

है। और बात एक अथ म ठक भी मालूम पड़ती है। तुमने सदा दसरे क अथ ह उठते देखी<br />

ू<br />

है--कभी अ क, कभी ब क, कभी स क; अपनी अथ तो उठते देखी नहं। अपनी अथ<br />

तो तुम उठते कभी देखोगे भी नहं। दसरे देखगे। इसिलए ऐसा लगता है क मौत सदा दसरे<br />

ू ू<br />

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क होती है, म तो कभी नहं मरता। तो ांित को संजोए रखते ह हम। हर आदमी ऐसे<br />

जीता है जैसे यह जीवन समा न होगा; ऐसे लड़ता है जैसे सदा यहां रहना है; ऐसा जूझता<br />

है क री-री भर उससे िछन जाए, जब क सब िछन जाएगा।<br />

छू ट जाए हाथ के बंधन, नयन िमले के िमले रह गए,<br />

डोली पर चढ़ चली बावर, ार खुले के खुले रहे गए।<br />

यौवन के फू टे अंकु र के पाते हले के हले रह गए,<br />

उपवन क लुट गई बहार फू ल खले के खले रह गए।<br />

गीत बन गई मौन वेदना भाव भले के छले रह गए।<br />

बेसुध सी रो पड़ जंदगी, वन पले के पले रह गए<br />

नयन योित हो गई पराई दप जले के जले रह गए।<br />

सब पड़ा रह जाएगा। दए जलते रहगे, तुम बुझ जाओगे। फू ल खलते रहगे, तुम झड़<br />

जाओगे। संसार ऐसे ह चलता रहेगा। शहनाइयां ऐसे ह बजती रहगी, तुम न होओगे। वसंत<br />

भी आएंगे, फू ल भी खलगे। आकाश तार से भी भरेगा। सुबह भी होगी। सांझ भी होगी।<br />

सब ऐसा ह होता रहेगा। एक तुम न होओगे।<br />

यह एक कौन है, जो कभी अचानक कट होता है जम म और फर अचानक मृयु म<br />

वलीन हो जाता है! इस एक को पहचान लो। इस एक को जान लो। इस एक क मृित<br />

जगा लो। जसने इस एक को जान िलया, उसका जीवन साथक है। अमी झरत, बगसत<br />

कं वल! और सब तो सोए हए ह।<br />

ु<br />

दरया कहते ह: सब जग सोता सुध नहं पावै...। अपनी सुिध नहं है। सपन क भलीभांित<br />

सुिध है।<br />

तुमने पुरानी कहानी सुनी न! दस आदिमय ने बाढ़ म आई हई नद पर क। गांव के गंवार<br />

ु<br />

थे। नद-पार जाकर एक ने कहा क िगनती तो कर लो; जतने चले थे उतने पार कर पाए<br />

या नहं? बाढ़ भयंकर है। कोई बाढ़ म बह न गया हो। िगनती भी क। और दस बैठ कर<br />

वृ के नीचे रोने लगे उसके िलए जो बाढ़ म बह गया है। यक िगनती नौ ह होती थी,<br />

चले दस थे। और िगनती नौ इसिलए नहं होती थी क कोई बह गया था; िगनती नौ<br />

इसिलए होती थी क येक अपने को छोड़कर िगनता था। िगनता था शेष को, िगननेवाला<br />

छू ट जाता था, िगननेवाला नहं िगना जाता था। एक ने िगना, दसरे ू ने िगना,<br />

तीसरे ने<br />

िगना...दस ने िगना। तब तो बात बलकु ल पक हो गई। भूल होती एक से होती दो से<br />

होती दस से तो भूल न होगी। और सबका िनकष आया नौ। तो जर एक साथी खो गया<br />

है। दस बैठकर रोने लगे।<br />

एक फकर राह से गुजरता था। भले-चंगे दस आदिमय को रोते देखा, पूछा: हआ ु या?<br />

कसिलए रोते हो? उहने कहा: हमारा एक साथी खो गया है। घर से चले थे। अब हम नौ<br />

ह।<br />

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फकर ने एक नजर डाली। दस ह थे। पूछा: जरा िगनती करो। देखी उनक िगनती। समझ<br />

गया क जो भूल पूरा संसार कर रहा है, वह भूल ये भीतर रहे ह। भूल कु छ नई नहं है,<br />

बड़ पुरानी है, बड़ ाचीन है। जो इस भूल को करता है, वह गंवार है। जो इस भूल को<br />

करता है, वह अानी है। जो इस भूल से बच जाता है, उसी के जीवन म ान का सूय<br />

कट होता है। अभी झरत, बगसत कं वल!<br />

फकर हंसने लगा, खलखलाकर हंसने लगा। तो फकर ने कहा: तुम भी वह भूल कर रहे<br />

हो जो पहले म करता था। तुम वह भूल कर रहे हो जो सारा संसार करता है। तुम बड़े<br />

ितिनिध हो। तुम बड़े तीकप हो। तुम साधारणजन नहं हो, तम सारे संसार का िनचोड़<br />

हो। अब म तुहार िगनती करता हं। ू अब मेरे ढंग से िगनती समझो। म एक-एक<br />

चांटा<br />

मां गा तुह४ जसको चांटा मां पहले, वह बोले एक। जब दसरे को मां तो दो चांटे<br />

ू<br />

मं गा, तो वह बोले दो। तीसरे को मां तो तीन मं गा, वह बोले तीन। ऐसे िगनती<br />

चलेगी।<br />

मतड़ंग फकर था। करारे चांटे मारे उसने। एक-एक को छठ का दध ू याद दला दया!<br />

और जब पड़ा चांटा तो िगनती उठ एक। पड़े दो चांटे, िगनती उठ दो। और ऐसे बनती<br />

बढ़ती गई। और जब दस चांटे पड़े और िगनती उठ दस, तो उन दस ने फकर के पैर<br />

पकड़ िलए। उहने कहा: मारा सो ठक, पर तुहारा बड़ा धयवाद क खोए को िमला<br />

दया, क डूबे को बचा िलया, क जसे हम समझते थे चूक ह चुके ह, उसे लौटा दया।<br />

सदगु िसफ चांटे मार रहे ह। करारे मारते ह। छठ का दध ू याद आ जाए,<br />

ऐसे मारते ह।<br />

लेकन नींद गहर है, कोई और उपाय नहं है। खूब झकझोर जाओ तो ह शायद जागो। और<br />

एक बार<br />

अपनी िगनती कर लो तो बस, शेष करने को कु छ भी नहं रह जाता।<br />

सब जग सोता सुध नहं पावै। बोलै सो सोता बरड़ावै।<br />

और इस जगत म जो लोग बोल रहे ह, सो रहे ह और बोल भी रहे ह। आखर वाता तो<br />

चल ह रह है। वे सब नींद म बड़बड़ा रहे ह।<br />

तुह भी कभी तीित होती है क तुम जो लोग म बात करते हो, होश म कर रहे हो?<br />

करनी थी, इसिलए कर रहे हो? करने म सार है, इसिलए कर रहे हो? करने से कसी का<br />

लाभ है, इसीिलए कर रहे हो? कोई मंगल होगा? कोई कयाण होगा? तुम कसिलए बात<br />

कर हरे हो? बात के िलए बात चल रह ह। बात म से बात चल रह ह। बात म से बतंगड़<br />

बन जाते ह। तुम एक कहते हो दसरा दसर कहता है। खाली नहं रह सकते। लोग दन रात<br />

ू ू<br />

वाता म लगे ह। हाफ कु छ लगता नहं।<br />

दरया ठक कहते ह: नींद म बड़बड़ा रहे हो। तुहारे वचन का कोई मूय नहं है। तुहारे<br />

शद का कोई मूय हनीं है। तुहारे शद िनरथक। तुहारे वचन कू ड़ा-कचरा। यक तुह<br />

जागे नहं हो। िसफ जाग के वचन म अथ होता है। यक अथ ह जागरण से जमता है।<br />

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बु के वचन म जीवन होता है, आमा होती है। तुहारे वचन तो सड़ हई ु लाश ह,<br />

जनके भीतर कोई ाण नहं ह। तुह ह पता नहं है और तुम दसर ू को जना रहे हो!<br />

इस जगत म हर आदमी सलाह दे रहा है। कहते ह: दिनया म सब से यादा जो चीज द<br />

ु<br />

जाती है वह सलाह है आर सब से कम जो चीज ली जाती है वह भी सलाह है। सब सलाह दे<br />

रहे ह, कोई सलाह ले नहं रहा है। तुह मौका िमल जाए तो तुम चुकते नहं, तुम चुप<br />

नहं रहते। तुह जन बात का पता नहं उनके भी तुम उर देते हो। तुमसे कोई पूछे ईर<br />

है? तो तुम म इतनी भी ईमानदार नहं है क कह सको क मुझे मालूम नहं है। तुहारे<br />

तथाकिथत धािमक लोग से यादा बड़े बेईमान खोजने कठन ह! तुम तो छोट-मोट<br />

बेईमािनयां करते हो क दो और दो जोड़े और पांच कर िलए। तुहार बेईमािनयां तो बहत<br />

ु<br />

छोट-छोट ह। लेकन तुहारे धािमक यय क, तुहारे पंडत-पुरोहत क, तुहारे<br />

मुला-मौलवय क बेईमािनयां तो बहत ु बड़ ह। ईर का कोई पता नहं और कहते ह;<br />

हां<br />

ईर है! जोर से कहते ह, छाती ठक कर कहते ह क ईर है।<br />

ईर को जाना है? बना जाने कै से कह रहे हो? और यह बेईमानी तो बड़ से बड़ हो गई।<br />

इससे बड़ तो कोई बेईमानी नहं हो सकती। और फर ऐसे ह दसर ू तरफ दसरे ू बेईमान ह,<br />

जहने जाना नहं और कहते ह: ईर नहं है।<br />

पम म एक वचारक हआ<br />

ु --ट. एच. हसले। उसने एक नए वचार, एक नई जीवन-<br />

को जम दया। एक नया शद गढ़ा--एनाटक। नाटक का अथ अंेजी म होता है: जो<br />

मानता है क मुझे ात है। नाटक का अथ होता है ानी, पंडत। हसलेने नया शद<br />

गढ़ा--एनाटक। हसले बड़ ईमानदार आदमी था। उसने कहा: मुझे मालूम नहं है क<br />

ईर है। और मुझे यह भी मालूम नहं है क ईर नहं है। और लोग मुझ से पूछते ह क<br />

तुम कौन हो, आतक हो क नातक? मानते हो क नहं मानते? ईरवाद क<br />

अनीरवाद? म या कहं<br />

ू? बड़ ईमानदार आदमी रहा होगा। बड़ा खरा आदमी था। उसने<br />

कहा: मुझे कोई नया शद गढ़ना पड़ेगा। यक लोग पूछते ह, कु छ न कहो तो अभता<br />

मालूम होती है। और लोग ने तो सीधी कोटयां बांध रखी ह--या तो कहो नातक या कहो<br />

आतक। मगर दोन हालत म झूठ हो जाता है।<br />

तो हसले ने िसफ सौ साल पहले एक नया शद गढ़ा--एनाटक। एनाटक का अथ<br />

होता है: मुझे पता नहं। मुझे अभी कु छ भी पता नहं है। खोज रहा हं<br />

ू, तलाश रहा हं<br />

ू,<br />

टटोल रहा हं।<br />

ू<br />

म कहंगा<br />

ू : हसले कहं यादा धािमक य है, बजाय तुहारे शंकराचाय के, क वेटकन<br />

के पोप के । यादा धािमक आदमी है। यक धम यानी ईमान। और ईमान क शुआत यहं<br />

से होनी चाहए। न तो स के नातक म ईमानदार है यक उह कोई पता नहं है, न<br />

खोजा है। न यान कया, न धारणा क, न समािध म उतरे। और कहते ह: ईर नहं है!<br />

छोटे-छोटे बच को स म िसखाया जा रहा है क ईर नहं। कू ल म पाठ ह क ईर<br />

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नहं है। छोटे-छोटे बचे दोहराते ह क ईर नहं है। दोहराते-दोहराते बड़े हो जाते ह, बड़े म<br />

भी दोहराते रहते ह।<br />

तुम सोचते हो, तुहारा ईर स क नातकता से कु छ िभन है? बचपन से सुना है क<br />

है, तो दोहराते हो। घर म ,बाहर, सब तरफ दोहराया जा रहा है तो तुम भी दोहरा रहे हो।<br />

तुम ामोफोन रकाड हो। तुम अपनी कब कहोगे? और जब तक अपनी न कहोगे तब तक<br />

ईमान नहं है।<br />

खोजो। तलाश करो। और तलाश जैसे ह तुम शु करोगे, यह सवाल सब से बड़ा महवपूण<br />

हो जाएगा क तलाश कहां कर--बाहर क भीतर? वभावतः, पहले भीतर। पहले अपने को<br />

तो पहचानो! पहले खोजी को तो खोजो। और मजा यह है क जसने खोजी को खोजा, उसे<br />

सब िमल जाता है। वयं को जानते ह सय के ार खुल जाते ह। आमा को पहचानते ह<br />

परमामा पहचान िलया जाता है।<br />

आमा तुहारे भीतर झरोखा है परमामा का। आमा तुहारे भीतर लहर है उसके सागर क।<br />

आमा उसका अणु है, बूंद<br />

है। और बूंद<br />

म सब सागर का राज िछपा है। एक बूंद<br />

को ठक<br />

से समझ लो तो तुमने सारे सागर का राज समझ िलया। जल का सू समझ म आ जाएगा।<br />

जल का वभाव समझ म आ जाएगा।<br />

सब जग सोता सुध नहं पावै। बोलै सो सोता बरड़ावै।।<br />

और यहां पंडत ह, पुरोहत ह और वचन दये जा रहे ह और धमशा समझाए जा रहे<br />

ह, रामायण पढ़ जा रह है, गीता पढ़ जा रह है, कु रान समझाए जा रहे ह। कससे तुम<br />

समझ रहे हो? समझानेवाला छाती पर हाथ रखकर कह सकता है क उसने जाना है? जरा<br />

उसक आंख म झांको। उसक आंख उतनी ह अंधी है जतनी तुहार; शायद थोड़ यादा<br />

ह, कम तो नहं। यक उसक आंख पर शद का और शा का बोझ तुमसे यादा है।<br />

जरा उसके जीवन म तलाशो। और न तो तुह सुगंध िमलेगी सय क और न तुह आलोक<br />

िमलेगा आमा का। जरा उसके पास बैठो। न तो आनंद का झरना फू टता हआ ु मालू म पड़ेगा,<br />

न शांित क हवाएं, बहती हई ु मालूम हगी। हां,<br />

रामायण शायद तुह वह ठक से समझाए<br />

और गीता के शद-शद का वेषण करे। मगर यह सब बाल क खाल िनकालना है। इसका<br />

कोई भी मूय नहं है।<br />

कब आएगा नवल सवेरा,<br />

कब जागेगा सूरज मेरा,<br />

देख अंधेरे क तणाई<br />

मन क चाह िमट जाती है।<br />

इंतजार करते करते ह<br />

सर उ कट जाती है।<br />

जधर देखता नयन उठाकर,<br />

सघन बबूल के कानन ह।<br />

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पुप जले कुं<br />

ज म खलकर,<br />

मथल हरे-भरे मधुवन ह।<br />

देख तपन सार धरती क,<br />

मन क यास लुट जाती है।<br />

यह आस लेकर जीता था,<br />

चाह वयं वरदान बनेगी।<br />

तृणा क अनवरत साधना<br />

सावन का ितमान बनेगी।<br />

देख पतझर म सावन को,<br />

िघर घटा िसमट जाती है।<br />

सूरज बनकर उग आने का,<br />

ण था जगते संकप का।<br />

कं तु कं पत न सा,<br />

मन अंकवाए वैकप का।<br />

संशयवश िचंतन करते ह,<br />

जीती गोट पट जाती है।<br />

िनय भोर क करण चूमकर,<br />

सोए वन जगा जाती है।<br />

कं तु सांझ के सूने पन म,<br />

मौन वेदना छा जाती है।<br />

अंगुली पोर-पोर िगनते ह,<br />

थककर वयं हट जाती है।<br />

इतनी दर ू आ गया चलकर,<br />

फर भी लय न दख पाता है।<br />

मेरे दो नयन का दशन,<br />

वधा बनकर भटकाता है।<br />

इंतजार करते-करते ह<br />

सार उ कट जाती है।<br />

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इंतजार ह इंतजार म उ को बता दोगे? आशा ह आशा म उ को गंवा दोगे, या क<br />

कु छ पाना है? पाना है तो कल पर मत छोड़ो। पाना है तो आज और अभी झांको। पाना है<br />

तो टालो मत। यक टालना सोने क एक या है। टालना नींद का एक ढंग है। टालना<br />

नींद क दवा है। टालो मत। यह मत कहो कल। आज, अभी!<br />

जागना है तो अभी, सोना है तो कल। जो सोया सो खोया। यक आज टालेगा कल पर,<br />

कल फर टालेगा कल पर। टालना आदत हो जाएगी। इंतजार कहं तुहार आदत न हो<br />

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जाए। जसे पाया जा सकता है, उसका इंतजार य? जो तुहारे भीतर मौजूद है, उसका<br />

थगन य? अभी य नहं? उससे यादा मूयवान और कु छ भी नहं है।<br />

सब टालो, आमबोध मत टालना। सब टालो, जागने क आकांा मत टालना। सब टालो,<br />

जागने पर सार ऊजा को उं डेल दो। यक एक णभर को भी तुम जाग जाओ और सपने<br />

बखर जाएं, तो तुहारे जीवन म ांित उपथत हो जाएगी। फर तुम वह न हो सकोगे<br />

जो तुम थे। फर तुम नए हो जाओगे। फर तुहारा संबंध शात से जुड़ जाएगा। अभी झरत<br />

बगसत कं वल!<br />

संसय मोह भरम क रैन...बड़ अंधेर रात है। और अंधेर रात बनी है संशय से, मोह से,<br />

म से। मन जीता ह संशय के भोजन से है। मन कहता है: यह करो, वह करो। मत हमेशा<br />

यह या वह, इस म डोलता रहता है। मन कभी तय ह नहं कर पाता। मन का तय करना<br />

वभाव नहं है। मन जीता ह अिनय म है।<br />

कभी तय भी तुह करना पड़ता है, तो तुम मजबूर म तय करते हो। जब कोई वकप ह<br />

नहं रह जाता, तब तय करते हो। मगर तब बहत देर हो गई होती है।<br />

ु<br />

दो तरह के लोग ह यहां इस संसार म। भीड़ तो उनक है जो बना तय कए ह जीते ह।<br />

जैसे पानी के झकोर म डोलता हआ लकड़ का टकड़ा<br />

ु ु , कभी इधर कभी उधर, पानी क<br />

लहर जहां ले जाएं। न कोई कनारे का पता है, न कोई मंजल का होश है, न कु छ अपना<br />

बोध है। लहर के भरोसे, लहर के बंधन म बंधा, हवाओं के झक म बंधा। न कोई दशा<br />

है न कोई गंतय है। गित भी व है। ऐसे ह अिधक लोग ह।<br />

तुम कै से जी रहे हो, जरा गौर करना। तुहारा जीना करब-करब ऐसा ह है। राह पर जाते<br />

थे, कसी ने कहा: अरे, फलां फम देखी क नहं? बड़ सुंदर<br />

है! तुमने सोचा, चलो देख<br />

ह आए। फम देखने चल दए। एक हवा का झका आया। एक धका लगा। फम देख<br />

आए। फम म पास कोई ी बैठ थी। पहचान हो गई। यह सोचा ह नहं था क फम म<br />

यह मामला इतना बढ़ जाएगा। ववाह कर बैठे । बाल-बचे हो गए। यह सब हआ चला जा<br />

ु<br />

रहा है।<br />

एक यहद वचारक ने अपनी आमकथा िलखी है। उसम उसने िलखा है क मेरा होना<br />

ू<br />

बलकु ल संयोगवशात है। उसने िलखी है क म शु से ह शु करता हं<br />

ू, क मेरे पता एक<br />

ेन म सफर कर रहे थे। टेशन पर उतरे। ेन छह घंटे देर से पहंची थी। आधी रात हो गई<br />

ु<br />

थी। बफ पड़ रह थी। स क कहानी है। टैसयां भी उपलध न थीं। इतनी रात तक कोई<br />

टैसी-ाइवर तीा करने का भी नहं था। कोई और उपाय न देखकर, जो होटल के<br />

दरवाजे बंद हो रहे थे, भीतर गए और कहा: कम से कम एक कप काफ तो मुझे पीने को<br />

िमल जाए, इसके बाद बंद करना। जो महला होटल बंद कर रह थी, उसने एक कप काफ<br />

द। उसने खुद भी एक काफ पी। रात सद थी। फर दोन ने बातचीत क।<br />

याी ने कहा क म बड़ मुकल म पड़ा हं। छह मील दर जाना है<br />

ू ू , कोई टैसी नहं। उस<br />

महला ने कहा: ऐसा करो क मुझे भी घर जाना है, मेर गाड़ म ह आ जाओ। गाड़ म<br />

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बैठ गए। सद थी तो पास-पास सरककर बैठे । होटल बंद थी। मैनेजर कभी का घर जा चुका<br />

था। ठहरने को कोई जगह न िमलती थी तो उस महला ने कहा, तुम मेरे ह घर रात<br />

गुजार दो। अब दो चार घंटे तो रात और बची है। फर सुबह उठकर होटल चले जाना।<br />

ऐसे बात बढ़ती गई, बढ़ती गई, बढ़ती गई और फर बगड़कर रह! उस वचारक ने िलखा<br />

है: कश, उस रात ेन लेट न होती तो म कभी पैदा ह न होता; या क होटल खुली िमल<br />

गई होती तो म पैदा न होता; या क एकाध टैसी ाइवर भूला-भटका बैठा ह रह गया<br />

होता तो म पैदा न होता; या क ी जो होटल बंद कर रह थी, एक ण पहले बंद करके<br />

जा चुक होती तो म कभी पैदा ह न होता। बलकु ल संयोगवशात मालूम होता है बस।<br />

तुम जरा अपनी जंदगी गौर से देखो, और तुम ऐसे ह संयोग पाओगे। ऐसे ह संयोग का<br />

िसलिसला...। इसको जंदगी कहते हो, संयोग के िसलिसले का नम जीवन नहं है संयोग<br />

का िसलिसला तो एक धोखा है। संयोग के िसलिसले से तो यादा से यादा एक वन पैदा<br />

हो सकता है, सय िनिमत नहं होता। लेकन मन का ढंग यह है। मन ऐसे ह जीता है।<br />

मन ऐसे ह अिनय म डांवांडोल होता रहता है। अंधा जैसे टटोलता-टटोलता कु छ पकड़ लेता<br />

है, पा लेता है--ऐसी हमार जंदगी है। और जो हम पा लेते ह, वह भी मौत हम से छन<br />

लेती है।<br />

संसय मोह भरम क रैन...। हमारे मोह या ह, हमार आसयां या है? बस ऐसे<br />

ह...संयोगवशात--नद-नाव संयोग! और कतने म हम पाल लेते ह! हमने एक दसरे से<br />

ू<br />

कतनी आशाएं कर रखी ह, कतनी अपेाएं कर रखी ह। यह भी नहं सोचते क दसरा इन<br />

ू<br />

अपेाओं को कभी पूरा कर पाएगा, इन आशाओं को पूरा कर पाएगा? और जब दसरा पूरा<br />

ू<br />

नहं कर पाता है तो हम सोचते ह बड़ा धोखा खाया, बड़ा धोखा दया गया।<br />

कोई धोखा नहं दे रहा है। तुहार अपेाएं ह ऐसी ह जो कोई पूरा नहं कर सकता। दसरा<br />

ू<br />

भी तुहारे साथ इसीिलए है क उसक भी अपेाएं ह, तुम भी पूर नहं कर रहे हो। मोह ह<br />

और मोह-ांितयां टटती ू ह रोज!<br />

मगर नए मोह हम बना लेते ह। ऐसे म, मोह, संशय,<br />

अिनय क यह अंधेर रात है। इस अंधेर रात म हम खोज मग लगे ह। कसको खोज रहे<br />

ह, यह भी पका नहं है।<br />

पम म दशनशा क परभाषा ऐसी क जाती है, क दाशिनक ऐसा अंधा है--जो अंधेर<br />

रात म एक घनघोर अंधेरे कमरे म एक काली बली को खोज रहा है, जो वहां है ह नहं।<br />

एक तो अंधे, अमावस क रात, बंद कमरा, काली बली--और यह भी वहां है नहं, खोज<br />

रहे ह! यह दशनशा क ह परभाषा नहं है, यह तुहारे जीवन क भी परभाषा है।<br />

अंधधुंध<br />

होय सोते अन...। ऐसे नींद म और अंधापन बढ़ता है, और अंधेरा बढ़ता है। रोज-<br />

रोज अंधेरा बढ़ रहा है, और रोज-रोज अंधापन बढ़ रहा है। बच के पास तो थोड़ आंख<br />

होती है, बूढ़ के पास वह भी हनीं रह जाती। बच के पास तो थोड़ा जाता बोध होता है,<br />

बूढ़ के पास वह भी धूिमल हो जाता है। खूब धुआं जम जाता है। धूल बैठ जाती है। बच<br />

के पास तो थोड़ा िनदष िच भी होता है। बूढ़ के पास कहां िनदष िच!<br />

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जीसस ने कहा है: जो फर से बच क भांित हो जाएंगे, वे ह मेरे भु के राय म वेश<br />

कर सकते ह। तुह सीखनी होगी कला फर से बच क भांित होने क। छोड़ना होगा<br />

तथाकिथत ान। छोड़ना होगा उधार पांडय, ताक फर तुम िनदष हो सको; ताक फर<br />

तुम खुली आंख से जगत को, अतव को देख सको। छोड़ने हगे वन, यक वन<br />

म तुम जतने उलझ जाते हो उतनी ह अपने पर जानी बंद हो जाती है<br />

गागर तो बूंद<br />

बूंद<br />

रसती ह जाती है,<br />

जीवन क आस कं तु वैसी क वैसी है।<br />

हर डग पर हर पग पर जाने अनजाने ह,<br />

एक बूंद<br />

िगरती है और बखर जाती है।<br />

फू ट सी सागर क छलना का प देख,<br />

अधर क यास तिनक और िसहर जाती है।<br />

प क दपहर ु तो ढलती ह जाती है,<br />

तणाई यास कं तु वैसी क वैसी है।<br />

गागर तो बूंद<br />

बूंद<br />

रसती ह जाती है<br />

जीवन क आस कं तु वैसी क वैसी है<br />

चाह का मथल जब पीता अंगार को,<br />

नयन का राकर और उमड़ पड़ता है<br />

ढलती ह संया क घड़यां तब चुपके से,<br />

आशा का सूरज जब और तेज चढ़ता है।<br />

संया तो रोज-रोज आकर छल जाती है,<br />

अनबोली सांस कं तु वैसी क वैसी है।<br />

गागर तो बूंद<br />

बूंद<br />

रसती ह जाती है<br />

जीवन क आस कं तु वैसी क वैसी है<br />

वासंती मौसम म शाख-शाख जगे जब,<br />

फू ल सी उमंग और रह-रह कर बढ़ती है।<br />

अिभशाप क करवट लेकर तब अंगड़ाई,<br />

पतझर का हाथ पकड़ धीमे से चढ़ती है।<br />

पंखुरयां टट ू बखर ह जात है,<br />

धूिल क सुवास कं तु वैसी क वैसी है।<br />

गागर तो बूंद<br />

बूंद<br />

रसती ह जाती है<br />

जीवन क आस कं तु वैसी क वैसी है<br />

और जीवन रोज चुका जा रहा है। जीवन रोज बहा जा रहा है। जागो! समय रहते जागो। पीछे<br />

बहत पछतावा होगा। लेकन फर पछतावे म भी कु छ सार नहं। जब तक श है जागो।<br />

ु<br />

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और कल का या पता? अगले ण का भी पता नहं है। ास जो बाहर गई, भीतर आएगी<br />

भी, इसका भी पका नहं है। इसिलए जागो! णभर भी मत टालो। इसी ण जागो!<br />

जप तप संजम औ आचार। यह सब सुवपने के यौहार।।<br />

बड़े ांितकार वचन है। सीधे-सादे, मगर आग के अंगार जैसे ह। तुहारा जप तुहारा तप<br />

तुहारा संयम, तुहारा आचार, सब सपने का यवहार है। यक जागते तो तुम हो ह<br />

नहं। जैसे सोए-सोए दकान ु करते हो,<br />

वैसे ह सोए-सोए मंदर भी जाते हो। दकान ु भी<br />

सपना, तुहारा मंदर भी सपना। चलो ऐसा कर लो क दकान अधािमक सपना और मंदर<br />

ु<br />

धािमक सपना। भोजन भी करते हो सोए-सोए। उपवास भी करते हो सोए-सोए। नींद तो<br />

टटती ू ह नहं। यान तो उठता ह नहं। आमबोध तो जगता ह नहं। तो तुहारा जप भी<br />

यथ है।<br />

देख लो तुम जप करनेवाल को, माला जपते रहते ह, माला फे रते रहते ह। माला भी फे रते<br />

रहते ह नजर भी रखते ह क दकान ु पर कोई ाहक धोखा न दे जाए,<br />

नौकर कु छ पैसा न<br />

मार ले। माला भी जपते रहते ह; कु ा घुस जाता है, उसको भी भगा देते ह। माला भी<br />

जपते रहते ह, आंख से इशारा भी करते रहते ह क देखो, कौन आया, कौन गया!<br />

तुहार नींद कै सी है! तुम राम-राम भी जपते रहते हो और भीतर हजार-हजार सपने और<br />

हजार-हजार वचार भी चलते रहते ह। राम-राम ऊपर और भीतर सारा उपव!<br />

जप तप संजम औ आचार...। तुम चाहो घर छोड़कर भाग जाओ, शरर को सुखा लो, िसर<br />

के बल खड़े रहो, जंगल क गुफाओं म रहो, भूखे-यासे रहो--कु छ फक न पड़ेगा। तुम चाहे<br />

दजन से सजन हो जाओ<br />

ु , चोर न करो, बेईमानी न करो--तो भी कु छ फक न पड़ेगा।<br />

दरया कहते ह: फक तो िसफ एक बात से पड़ता है, वह है--यान क लपट तुहारे भीतर<br />

पैदा हो। यह दरया का जोर समझना कस बात पर है। दरया यह नहं कह रहे ह क चोर<br />

करो, खयाल रखना। वे यह नहं कह रहे ह क संयम मत साधना। तुहार मौज। तुह जो<br />

सपना देखना हो देखना। कु छ लोग पानी होने का सपना देखते ह, कु छ लोग पुयामा होने<br />

का; तुहार जो मौज। दरया तो यह कह रहे ह क हमार तरफ से दोन सपने ह। रात<br />

एक आदमी सोता है और चोर का सपना देखता है--क पहंच ु गया,<br />

खोल िलया खजाना,<br />

अरब-खरब का पया सरका दया। और एक आदमी रात सपना देखता है क सब याग<br />

कर दया, नन दगंबर होकर जंगल म साधना को चल पड़ा। तुम सोचते हो उन दोन के<br />

सपने म सुबह कु छ फक होगा? जब दोन जागगे, अपनी-अपनी खाट पर पड़ा हआ पाएंगे।<br />

ु<br />

न तो खजानेवाले के हाथ म खजाना है और न जंगल जो गया था वह जंगल पहंचा है। दोन<br />

ु<br />

सपने देख रहे थे। या तुम यह कहोगे क जसने संयास लेने का सपना देखा, उसने<br />

अछा सपना देखा और जसने चोर का सपना देखा उसने बुरा सपना देखा? या सपने भी<br />

अछे और बुरे हो सकते ह? सपने तो झूठे होते ह, अछे बुरे नहं होते। इसिलए <br />

अछे -बुरे के बीच चुनने का नहं है; तो सपने और सय के बीच चुनने का है। इस<br />

मौिलक बात को याद रखो।<br />

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सवाल यह नहं है क या करो--अछा करो क बुरा करो। सवाल यह है क करनेवाला कौन<br />

है? जागकर करो! फर तुम जो भी करो ठक है। जागकर जो भी हो पुय है और सोए-साए<br />

जो भी हो पाप। फर पाप म चाहे तुम मंदर बनवाओ, धमशालाएं बनवाओ, यागपया<br />

करो--कु छ भेद न पड़ेगा। जब मरोगे तब तुम पाओगे, जैसे धन छू ट गया दसर ू के हाथ से,<br />

वैसे ह तुहारे हाथ से संयम छू ट गया। जब मरोगे, नींद टटेगी। ू मौत सुबह है;<br />

जंदगी क<br />

नींद टटती ू है। िसफ मौत उनको नहं डरा सकती,<br />

जहने खुद अपी नींद जीते जी तोड़ द<br />

है। उनके िलए मौत नहं आती। नहं क उनक देह नहं जाती; देह तो जाएगा ह मगर वे<br />

जागे हए मौत म<br />

ु वेश करते ह।<br />

तीथ-दान जग ितमा-सेवा। यह सब सुपना लेवा-देवा।<br />

इससे समझो क जाओ तीथ, क दान करो, क ितमाएं पूजो, क जगत क सेवा करो,<br />

क अपताल खोलो क कू ल बनवाओ...यह सब सुपना लेवा-देवा यह सब सपने का लेन-देन<br />

है।<br />

कहना सुनना हार और जीत...। यहां बना जागे कु छ भी कहो और कु छ भी सुनो, हारो क<br />

जीतो। पछा पछ सुपनो वपरत...। प म रहो क वप म रहो, हंद ू क मुसलमान,<br />

आतक क नातक, कु छ फक नहं पड़ता; सब वन का लोक है।<br />

चार बरन और आम चार...। फर चाहे ाण समझो अपने को चाहे शू फर चाहे जवान<br />

समझो अपने को चाहे वृ, चाहे गृहथ चाहे वानथ, चाहे संयासी, कु छ फक न पड़ेगा।<br />

सुपना अंतर सब यौहार!<br />

षट दरसन आद भेद-भाव। सुपना अंतर सब दरसाव।।<br />

फर तुम चाहे दशन शा म कोई चुन लो; वेदांती हो जाओ क जैन हो जाओ क बौ<br />

हो जाओ, क संया को मानो क योग को, क वैशेषक को, क तुहार जो मज हो,<br />

कोई भी दशनशा चुन लो; मगर यह सब सपने का खेल है।<br />

हर उर के बाद के व लगाता रहा िनरंतर,<br />

इसीिलए मेरे अंतर का अंतर ाकार हो गया।<br />

तक रेख जतनी बढ़ती है उतनी दर बढ़<br />

ू ती जाती,<br />

सहज ाय िनकष पर भी घनी पत सी चढ़ती जाती।<br />

मुख म नयन नयन म योित, योित म ह व समाया,<br />

कै से कह दं सय जगत है कै से कह दं के वल माया।<br />

ू ू<br />

जभी खोल देता पलक को सारा व लीन हो जाता,<br />

जभी मूंद<br />

लेता नयन को सारा जगत वलीन हो जाता।<br />

अगणत उर हो सकते ह लेकन एक होता है<br />

जैसे हर असय क तह म सोया एक सय होता है।<br />

हर असय के बाद सय को भूल समझता रहा िनरंतर<br />

इसीिलए कृ म जीवन ह इस जग म यवहार हो गया।<br />

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म के वशीभूत हो मने जतनी बार को जांचा,<br />

उतनी बार बदलता रहता मेरे अनुमान का सांचा।<br />

ठक गलत के जभी तराजू म रखकर को तोला,<br />

कभी झुका इस ओर संयमन कभी उधर को रह-रह डोला।<br />

उर तो कतने आए पर मन को ह वास न आया,<br />

उर तो पा िलया कं तु उन का अयास न आया।<br />

जब भी नट सा चल रजु पर वास के पांव हल गए,<br />

कं पते से संतुलन दय म भय क काली रेख बन गए।<br />

य, कै से, कब, या होता है यह सोचता रहा िनरंतर,<br />

इसीिलए संशय का पलड़ा भय का पारावार हो गया।<br />

चाह सह सब कु छ पाने क लेकन पाकर पा न सका म,<br />

हर झूठा वास दलाया लेकन मन बहला न सका म।<br />

जब आशा थी पा जाने क अंतर को वास नहं था,<br />

जब खो जाने क घड़यां थीं खोने का आभास नहं था।<br />

पाकर खोया खोकर पाया लेकन फर भी पा न सका म<br />

सब कु छ था अपने ह वश म पर मन को समझा न सका म।<br />

जब पाया खोने का भय था खोने पर पाने क आशा,<br />

यह सदा भटकाती मुझ को मेर अनबूझ मौन पपासा।<br />

सूखे अधर िलए सागर के तट पर बैठा रहा िनरंतर,<br />

इसीिलए यासे रहना ह जीवन का यापार हो गया।<br />

कभी भयातुर हो संशय से हर ितनके से नीड़ संजोता,<br />

कभी याग कर सारा वैभव अपने ह ऊपर हंस देता।<br />

जस डाली पर नीड़ बनाया वह टट ू िमल गई धूल म,<br />

जसे अाय समझकर छोड़ा वहं फू ल खल गया शूल म।<br />

यह जग के वल एक समया हर ववाद संयम का कं पन,<br />

िचंतन हन भुलावा सुंदर<br />

मादक मोह पाश का बंधन।<br />

सय का अगर तो मौन मा इसका उर है,<br />

िनज अनुभूित एक शात हल यथ अयथा युर है।<br />

इस जग के ठगने को वाणी दषत करता रहा िनरंतर<br />

ू<br />

इसीिलए मन के चंदन घर सांप का अिधकार हो गया।<br />

करो अनुमान...। तुहारे सारे दशनशा अनुमान ह, अनुभव नहं। अनुभव का कोई शा<br />

नहं होता। अनुभव को कोई दशन हनीं होता। जहां दशन है वहां दशन शा नहं होता।<br />

अनुभूित तो बंधती ह नहं शद म, िसांत म। दरया ठक कहते ह: षट दरसन आद<br />

भेद-भाव। ये जो छह दशन ह, ये िसफ भेद-भाव ह। सुपना अंतर सब दरसाव।<br />

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राजा रानी तप बलवंता...। खयाल रखना, तुमसे ऐसा तो कहा गया है बार-बार क या<br />

होगा साट होने से, या होगा सााय होने से? धन का संह कर िलया तो या<br />

फायदा? लेकन दरया और गहर बात कहते ह। दरया कहते ह: राजा रानी तप बलवंता!<br />

राजा रानी होने से तो कु छ होता ह नहं; बड़े तपवी भी हो जाओ, महा तपवी भी हो<br />

जाओ, तो भी कु छ नहं होता। सुपना माहं सब बरतंता। यह सब यवहार वन म चल<br />

रहा है।<br />

पीर औिलया सबै सयाना। वाब माहं बरत वध नाना।।<br />

काजी सैयद औ सुलताना। याब माहं सब करत पयाना।।<br />

सांख जोग औ नौधा भकती। सुपना म इनक इक बरती।।<br />

कहते ह क सांय का अपूव शा, योग क तपया, नौ कार क भयां, ये सब सपने<br />

क ह वृयां ह। ऐसे ांितकार वचन बहत ु मुकल से , खोजे-खोजे नहं िमलते ह। य<br />

इन सबको वन क वृ कहते ह दरया? अनुभव मा वन है। यक अनुभव तुमसे<br />

अलग है। अनुभोा सय है।<br />

समझो। यान म बैठे ह। भीतर काश ह काश हो गया। तो तुहारे भीतर दो ह अब। एक<br />

वह जो जानता है क काश हो रहा है; और एक वह जो तुहारे भीतर काश क भांित<br />

कट हआ है। काश तुम नहं हो। तुम तो काश को जाननेवाले हो। इसिलए भूल मत<br />

ु<br />

जाना, नहं तो नया आयामक सपना शु हो गया। अब इसी मजे म मत डोल जाना।<br />

और रस बहत ु है। भीतर काश हो गया। खूब रसपूण है!<br />

खूब आनंद मालूम होगा। लेकन<br />

यह नए सपने क शुआत है। मन अंत तक पीछा करेगा। मन अंत तक डोरे डालेगा। मन<br />

अंत तक खींचेगा। कहेगा: अहा, देखो कै से धयभागी हो! काश हो गया। यह काश,<br />

जसक संत सदा चचा करते रहे ह!<br />

लेकन जो सचमुच जागे हए संत ह उहने काश इयाद को वन कहा है। उहने भीतर<br />

ु<br />

हए ु अनुभव को,<br />

आंतरक अनुभव को भी वन कहा है। उहने तो िसफ एक को ह<br />

सय माना है--बस एक को, ा को, साी को। जब भीतर काश हो जाए तो इस नए<br />

म म मत पड़ जाना। जानते रहना क म तो जाननेवाला हं<br />

ू, म काश नहं। यह काश<br />

तो मेरे सामने है, य है; म ा हं। ू यह काश तो अनुभव है;<br />

म अनुभोा हं। ू<br />

अपने को िनरंतर साी, साी, साी, ऐसी याद दलाते रहना। तब कभी वह सौभाय क<br />

घड़ आती है, जब सब अनुभव खो जाते ह। िनराकार छा जाता है। चार तरफ शूय या<br />

हो जाता है। और अनुभव क कहं कोई रेख नहं रह जाती। िसफ साी का दया जलता है।<br />

उस पर घड़ म ह--अमी झरत बगत कं वल!<br />

काया कसनी दया औ धम। सुपने सुग औ बंधन कम।।<br />

सुनते हो!...दरया हमत के आदमी रहे हगे। जरा िचंता नहं क। सब पर पानी फे र दया--<br />

तुहारे ान पर, तुहारे दशनशा पर, तुहार भ पर। काया कसनी दया और<br />

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धम...कतनी ह कसो काया को, कतना ह सताओ, हो जाओ महामुिन--कु छ भी न होगा।<br />

कतना ह धम करो, कु छ भी न होगा।<br />

सुपने सुग औ बंधन कम...। बड़ा अदभुत वचन है! तुहारे वग भी वन ह, तुहारे नक<br />

भी वन ह। और तुम जन बंधन को सोचते हो क कम का बंधन ह, वे भी तुहारे<br />

वन ह; यक तुम कता नहं हो, ा हो। कम का बंधन तुम पर हो ह नहं सकता।<br />

यह ांित का बड़ा आनेय सू है। तुह पंडत-पुरोहत यह समझाते रहे ह क कम का<br />

बंधन है। अगर तुम दख पा रहे हो तो पछले जम के कए गए कम के आधार से सुख पा<br />

ु<br />

रहा है। अछे कम करो, अगले जम म अछे -अछे फल िमलगे। बुरे कम करोगे, अगले<br />

जम म दख पाओगे।<br />

ु<br />

दरया कहते ह: कता ह नहं हं म<br />

ू , तो कम का बंधन या होगा मुझ पर? म तो िसफ<br />

साी हं। ू साी वतंता है,<br />

परम वतंता है। उस पर कोई बंधन नहं है। न कभी कोई<br />

बंधन हआ है उस पर। बंधन माना हआ है। मान लो<br />

ु ु तो हो जाता है। वीकार कर लो तो हो<br />

जाता है। तुहार मायता म ह तुहारे ऊपर बंधन है।<br />

इसिलए मुझ से कभी-कभी लोग आकर पूछते ह क आप कहते ह क ण म समािध फल<br />

सकती है, तो हमारे अतीत जम म कए कम का या होगा? पहले तो उनसे िनपटना<br />

होगा न! पहले तो उनका फू ल भोगना होगा न! और आप कहते हो, ण म!<br />

म कहता हं<br />

ू: ण म! यक अतीत के कम छोड़ने नहं ह। तुमने कभी कए नहं ह। तुमने<br />

िसफ माना है तुम अगर अभी जाग जाओ और साी म िथर हो जाओ, सारे कम गए। कता<br />

ह गया तो कम कहा बचगे? सारे बंधन गए। सारा अतीत गया, सारा भवय गया; िसफ<br />

वतमान बचा--शु वतमान! और वह शु वतमान परमामा का ार है, िनवाण का ार है।<br />

हम संसार म भी सपने सजाते ह। हम परलोक के भी सपने सजाते ह। हमने सपने ह सपने<br />

बसा िलए ह!<br />

तुम न अगर िमलते तो मेरे<br />

गीत कु आंरे ह रह जाते।<br />

कौन वन क माला मेर दय लगा हंसकर अपनाता,<br />

कौन गीत म चुपके िछपकर अपने रसमय अधर िमलाता।<br />

कौन अचना के फू ल को अपने आंचल म रख लेता,<br />

कौन उह शृ ंगार बनाकर अपना जीवन धन कह देता।<br />

तेरा मधुर समपण ह तो मेरे याचक मन क थाती,<br />

नेह तुहारा पीकर जीती मेरे मन मंदर क बाती।<br />

ाण का जलना ह जीवन मेरे मन मंदर क बाती।<br />

ाण का जलना ह जीवन जलता जीवन एक कहानी,<br />

जसका है हर पृ वेद सा पावन य गंगा का पानी।<br />

जब रसता है यारा तुहारा,<br />

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बह उठती गीत क धारा।<br />

तुम न अगर बनते पीड़ा तो,<br />

आंसू खारे ह रह जाते<br />

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कसके पनघट पर जाकर म जीवन क आशा कह पाता,<br />

दर-दर यास िलए फरता म हर देहर पर ठोकर खाता।<br />

कौन मुझे चंदन सा छू कर मादम मती से भर देता,<br />

समोहन म मुझे डु बाकर अपनी बाह म भर लेता।<br />

मादग गंध तुहार पीकर पतझर भी मधुमास बन गया,<br />

सांस महक उठं चूनर सी मंडप नीलाकाश बन गया।<br />

हरत वृ बन गए बराती कोकल क गूंजी<br />

शहनाई,<br />

किलत कपना क गीत से अनदेखी हो गई सगाई।<br />

कतना मादक िमलन तुहारा,<br />

कतना अिभनव सृजन तुहारा।<br />

तुम न अगर बनते वसंत तो,<br />

मनिसज अंगारे रह जाते।<br />

कसके कुं<br />

तल मेघ सांवरे देख नाच उठता मयूर मन,<br />

पीला दद हरा रखने को कब आता ले जलधर सावन।<br />

मेरे यासे अधर बावरे भैरव राग िनय दहराते ु ,<br />

झूले पड़ते नहं डाल पर सूख वर महार न गाते।<br />

तुम आए तो िथरक उठा मन छाए रसमय काले बादल,<br />

कजरारे के श का सौरभ धुलकर बना नयन म काजल।<br />

तन भी बहका मन भी बहका, बहक उठ चंचल पुरवाई,<br />

मधु रसाल बन जागी सुिधयां नेह हआ मादक अमराई।<br />

ु<br />

तुम बरसे तो सुिधयां सरसीं,<br />

तुम हरषए तो बूंद<br />

बरसीं।<br />

तुम न अगर बनते सावन तो,<br />

अंकु र अिनयारे रह जाते।<br />

तुम न अगर िमलते तो मेरे<br />

गीत कु आंर ह रह जाते।<br />

यह बात दोन जगत पर लागू है। इस जगत म भी ेमी और ेयसी इसी तरह के सपने<br />

सजा रहे ह। और उस जगत म भी भ और भगवान इसी तरह के सपने संजो रहा है। जैसे<br />

ेम और ेयसी इस जगत के सपने सजाते ह, ऐसे ह भ भगवान के साथ उस जगत के<br />

सपने सजाता है।<br />

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दरया तो उठाकर तलवार तुहारे सब सपने तोड़ देते ह। नवधा भ! तुहारे भ के मीठे-<br />

मीठे रंग-प सब यथ ह। तुहारे वचार ह वन ह, तुहारे भाव भी वन ह। तुहारा<br />

मतक ह यथ नहं है, तुहारा दय भी यथ है। मतक सब सब से ऊपर है। उसके<br />

नीचे भाव, दय है। और उससे भी नीचे िछपा हआ साी है।<br />

ु<br />

दरया तो कहते ह: बस साी के अितर और कहं शरण नहं है।<br />

बुं शरणं गछािम! बु क शरण जाता हं ू म। कसी ने बु से पूछा:<br />

आप तो कहते ह क<br />

कसी क शरण जाने क जरत नहं। और लोग आपके ह चरण म आकर िसर रखते ह<br />

और कहते ह बुं शरणं गछािम, आप रोकते य नहं? तो बु ने कहा: वे मेर शरण<br />

नहं जाते। बुं शरणं गछािम! बुं का अथ होता है: जागरण, साी, बोध। म तो तीक<br />

मा हं। म तो बहाना हं। वे बुव क शरण जाते ह।<br />

ू ू<br />

दरया भी कहते ह: बस एक ह शरण पकड़ो--साी क। साी को पकड़ते ह तुम भी बु<br />

हो जाओगे। उससे कम पर राजी नहं ह। कोई समझौता करने को दरया राजी नहं ह। सम<br />

ांित के पपाती ह।<br />

काम ोध हया परनास...। तुम थोड़ा चकोगे भी! वे कहते ह: काम ोध हया परनास।<br />

सुपना माहं नक िनवास।।<br />

ये भी सब वन ह--क तुमने का कया, क ोध कया, क हया क। वह भी वन<br />

है। सुपना माहं नक िनवास!<br />

आद भवानी संकर देवा। यह सब सुपा लेवा-देवा।।<br />

...क चले अंबाजी के मंदर, क चले शंकर जी क सेवा कर आए, क चलो शंकर जी से<br />

कु छ मांग ल--यक सुना है क वे बड़े औघड़दानी ह, जर दगे! क चलोगे हनुमानजी क<br />

खुशामद कर, यक वे राम जी क खुशामद करते ह। कु छ राता बन जाए। सीधे राम जी<br />

तक पहंचना ु शायद मुकल हो,<br />

तो कोई चमचा जी को पकड़ो। उनके ारा चलो। तो लोग<br />

हनुमान-चालीसा पढ़ रहे ह, क हनुमान जी राजी हो गए, फर तो हाथ म सब मामला है।<br />

क जब हनुमानजी राजी हो गए तो फर रामचंजी को तो मानना ह पड़ेगा। ये सब तुहारे<br />

मन के ह जाल जै। राम बाहर नहं ह। राम तुहारे अंतरतम का ह नाम है।<br />

ा बनू दस औतार। सुपना अंतर सब यौहार।।<br />

सब सुपने यवहार है--ये दस अवतार। यक अवतरण तो परमामा का कण-कण म हआ<br />

ु<br />

है। दस क िगनती य? और जहने दस क िगनती क, तुम देखते हो, उनका यवहार<br />

देखते हो? कछु ए को तो मान िलया क भगवान का अवतार है, लेकन मछु ए को नहं मान<br />

सकते। यह भी खूब है! पशुओं को मान सकते ह भगवान का अवतार, मनुय को नहं मान<br />

सकते। कछु ए को भगवान का अवतार माननेवाले लोग महावीर को, मोहमद को, ाइट<br />

को अवतार नहं मान सकते, और क तो बात छोड़ दो।<br />

सब मायता के जाल ह, अनुमान ह, कपना के फै लाव ह। और कपना को जतना<br />

उड़ाओ उड़ सकते हो। परमामा तो उतरा है सब म--मुझ म, तुम मग, वृ म, नद-<br />

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पहाड़ म। परमामा अवतरण तो समत अतव म हआ है। यह सारा अतव<br />

ु<br />

परमामप है। इस म तुम दस क िगनती या करते हो? यहां िगनती करने का सवाल ह<br />

नहं है। यहां तो अनिगनत प से परमामा मौजूद है, यक सभी उसक अिभययां ह।<br />

सभी गीत उसके ह। सभी कं ठ उसके ह।<br />

ा बनू दस अवतार। सुपना अंतर सब यौहार।।<br />

उदिभज सेदज जेरज अंडा। सुपनप बरतै ंडा।।<br />

वेदज ह, पडज ह, अंडज ह, कै से भी कोई पैदा हआ ु हो,<br />

यह सारा ांड एक वन<br />

से यादा नहं है। इस ांड को वन समझो, ताक तुम अपने साी क तरफ चल<br />

सको। इस ांड को जस दन तुम पूरा-पूरा वन समझ लोगे, तुहार पकड़ छू ट जाएगी।<br />

और पकड़ के छू टते ह, साी म िथर हो जाओगे।<br />

उपजै बरतै अ बनसावै...। यह सारा जगत वन है, ऐसा कहने का कारण या? इसके<br />

बाद इस बात को कहने के िलए माण या?<br />

ािनय ने सय और वन म थोड़ा सा ह फक कया है। थोड़ा, लेकन बहत बड़ा भी।<br />

ु<br />

वन क परभाषा जाननेवाल ने क है--वह, जो पैदा हो, रहे और िमट जाए। और सय<br />

क परभाषा क है--जो पैदा न हो, बस रहे। और िमटे कभी नहं। सय का अथ है शात।<br />

और वन का अथ है णभंगुर।<br />

उपजै बरतै अ बनसावै...। पैदा होता है, थोड़ देर रहता है और गया। पानी का बबूला<br />

बना, थोड़ देर तैरा और फू टा। इंधनुष उगा, अभी था, अभी खो गया।<br />

उपजै बरतै अ बनसावै। सुपने अंतर सब दरसावै।।<br />

ऐसी सार बात को वन समझना, जो पैदा होती है, णभर ठहरती ह और वन हो<br />

जाती है। जो न कभी पैदा होता न कभी वन होता, उसे खोज लो। वह असली संपदा है।<br />

वह सााय है। साी कभी पैदा नहं होता और साी कभी मरता नहं। साी का समय से<br />

कोई संबंध ह नहं है। साी कालातीत है। और यान म इसी साी क झलक आनी शु<br />

होती है।<br />

यान का अथ है: वन रहत हो जाना, वचार-रहत हो जाना, ताक साी क झलक<br />

अिनवायपेण फिलत होने लगे।<br />

याग हन सुपना यौहार। जो जागे सो सबसे यारा।।<br />

अनूठ बात कहते ह दरया। यह म तुमसे कह रहा हं ू रोज। कहते ह:<br />

याग हन सुपना<br />

यौहार। भोगी भी सपने म है, योगी भी सपने म है। यक याग और हण दोन ह<br />

वन का यवहार ह। कोई कहता है मेरे पास लाख ह आर कोई कहता है मने लाख याग<br />

दया। दोन म तुम फक मानते हो? इंचभर भी फक नहं है। रीभर भी फक नहं है। एक<br />

कहता है: लाख मेरे ह। म मािलक! दसरा ू भी यह कह रहा है क म मािलक,<br />

मने लाख<br />

छोड़ दए! मेरे थे तभी तो छोड़ दए!<br />

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दो अफमची एक झाड़ के नीचे बैठे ह। जब जरा अफम चढ़ गई...। रात है सुंदर।<br />

आकाश म<br />

पूणमा का चांद है। चांदनी बरसती है, चार तरफ चांद ह चांद है! एक अफमची ने कहा:<br />

दल होना है रात को, इस चांद को, इस चांदनी को सब को खरद लूं।<br />

दसरे ू ने थोड़ देर<br />

सोचा और उसने कहा: नहं, यह नहं हो सकता। पहले ने कहा: य नहं हो सकता? उसने<br />

कहा: मुझे बेचना ह नहं। म बेचूं,<br />

तब तो तुम खरदो न, क ऐसे ह खरद लोगे?<br />

रात, चांद, चांदनी...अफमची खरद और बेच रहे ह!<br />

तुहारा यहां या है? तो जो पकड़कर बैठा है वह भी पागल है। और जो छोड़कर भाग गया<br />

है, वह और बड़ा पागल है। जहां हो, बना पकड़े मजे से रहो। सब सपना है। साी के बोध<br />

को जहां रहो वहं जगाए रहो। दकान ु पर बैठकर साी सधे , मंदर म बैठकर भी सधे,<br />

बाजार म भी। साी क मृित सघन होती जाए। धीरे-धीरे सब पकड़ना-छोड़ना छू ट जाए।<br />

पकड़ना भी छू ट जाए, छोड़ना भी छू ट जाए, तब तुम जानना क तुम संयासी हए।<br />

ु<br />

मेरे संयास क यह परभाषा है: पकड़ना भी न रह जाए छोड़ना भी न रह जाए, यक<br />

दोन एक ह िसके के दो पहलू ह। दोन एक ह ांित के हसे ह। भोगी और यागी म<br />

फक नहं है। एक दसरे ू क तरफ पीठ कए खड़े ह,<br />

माना; मगर फक नहं है। दोन का<br />

एक है। दोन मानते ह क मेरा। एक मुठ बांधे है, दसरे ने फ क दया। मगर दोन<br />

ू<br />

क ांित वह है क मेरा है। वष बीत जाते ह और यागी बात करता रहता है क मने<br />

लाख पय पर लात मार द!<br />

एक संयासी से म िमलता था। वे जब भी िमलते तो याद दलाते क मने लाख पर लात<br />

मार द! मने उनसे एक दन पूछा...जब ऊब गया सुन-सुनकर बहत बार क लाख पर<br />

ु<br />

उहने लात मार द...मने उनसे पूछा: यह लात मार कब थी? उहने कहा: कोई तीस साल<br />

हो गए। तो फर मने कहा क एक बात म आपसे कहं<br />

ू, क लात लगी नहं। उहने कहा:<br />

मतलब? मने कहा: जब तीस साल हो गए और अभी तक याद बनी है तो लात लगी नहं<br />

होगी। तीस साल से यह याद कए बैठे हो क लाख पार लात मार द, लाख पर लात मार<br />

द! तुहारे थे, तुहारे बाप के थे? कसके थे? तुमने लात मार कै से? लात मारने का तुह<br />

अिधकार या? लेकर आए थे? न लेकर जाते। यह यह लात मारने का अहंकार वह का वह<br />

अहंकार है। तुम जर, जब तुहारे पास लाख रहे हगे तो सड़क पर चलते होओगे इस<br />

अकड़ से क लाख मेरे पास ह।<br />

मुला नसन और उसका बेटा दोन एक नाले को पार कर रहे थे। बरसाती नाला। मुला<br />

ने छलांग मार। असी साल का बूढ़ा, मगर मार गया छलांग। उस पार पहंच गया। अब<br />

ु<br />

लड़के को भी चुनौती िमली, क उसने कहा, जब बाप बूढ़ा असी साल का मार गया<br />

छलांग और म चलकर जाऊं नाले म से, बेइजती होगी, लोग या कहगे! नाले के इस<br />

तरफ उस तरफ लोग काम भी कर रहे ह, आ जा भी रहे ह। तो उसने भी मार छलांग।<br />

बीच नाले म िगरा। और भ हई। ु राते म जब दोन फर चलने लगे,<br />

उसने बाप से पूछा,<br />

क आप इतना तो बताएं, आप असी साल के हो गए और छलांग मार गए। और म तो<br />

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अभी जवान हं ू और बीच नाले म िगर गया,<br />

इसका रजा या है? मुला नसन ने अपना<br />

सीखा बजाया, नहं। उसने कहा क जेब गरम हो तो आमा म बल होता है। तेर जेब म<br />

या है? खाली जेब...खोली आमा! िगरा बीच। बीच तक पहंच ु गया,<br />

यह चमकार है! म<br />

भी पूछना चाहता हं क बीच तक तू पहंचा कै से<br />

ू ु ? म तो सौ नगद कलदार जब तक खीसे<br />

मग न रखूं,<br />

घर से नहं िनकलता। गरमी रहती है, शान रहती है, अकड़ रहती है, बल<br />

रहता है, जवानी रहती है।<br />

लोग के पास धन होता है तो उसक चाल और होती है। तुमने भी गौर कया? जब खीसे म<br />

पये होते ह, तुहार चाल और होती है; जब खीसे म पए नहं होती, तुहार चाल और<br />

होती है। अभी तक न खयाल कया हो तो अब खयाल करना। जब आदमी पद पर होता है<br />

तब उसक चाल देखो।<br />

इस संबंध म बड़ खोजबीन क गई है यह पाया गया है क जब तक लोग पद पर होते ह,<br />

तब तक यादा जीते ह; और पद से हटते ह जद मर जाते ह। पम म इस पर काफ<br />

शोध काम हआ है। और शो के ये नतीजे ह क जब लोग अवकाश ा करते ह तो उनक<br />

ु<br />

उ दस साल कम हो जाती है। हैरानी क बात है! कोई कलेटर था, कोई किमर था,<br />

कोई चीफ िमिनटर था, कोई ाइम िमिनटर था, कोई रापित था, फर अवकाश िलया।<br />

जब तक कलेटर था, एक गरमी थी।<br />

मुला नसन क कहानी ऐसे ह नहं है। चलता था, लोग नमकार करते थे, झुक-झुक<br />

जाते थे। रोब था। म कु छ हं<br />

ू, यह बल था। जीने के िलए कु छ आधार था। फर यह<br />

कलेटर रटायर हो गया। अब इसको कोई नहं पूछता। राते से गुजर जाता है, लोग<br />

नमकार भी नहं करते। घर म भी लोग नहं पूछते। जब तक यह कलेटर था, पी भी<br />

आदर देती थी। अब पी भी डांटती है क नाहक खांसते-खंखारते बैठे रहते हो, कु छ करो!<br />

बचे भी नाराज होते ह क बढ़े से कब छु टकारा हो, क हर चीज म अंड़गेबाजी करता है!<br />

अड़ंगेबाजी करेगा; उसक जंदगीभर क आदत है--कलेटर था। हर काम म अड़ंगेबाजी<br />

करता रहा। वह उसक कु शलता थी।<br />

सरकार अफसर क कु शलता ह एक है क जो काम तीन दन मग हो सके, सह तीन साल<br />

म न होने दे। उस मग ऐसे अड़ंगे िनकाल, ऐसी तरकब िनकाल, फाइल इस तरह घुमाएं<br />

क भंवर खाती रह। जंदगीभर क उसक कला वह थी। अब भी वह मौका देखकर थोड़े<br />

पुराने हाथ चलाता है, पुराने दांव मारता है। उतना ह जानता है। और कु छ कर भी नहं<br />

सकता। जहां उसक जरत नहं वहां बीच म आकर खड़ा हो जाता है। हर चीज म सलाह<br />

देता है। जमाना गया उसका। जमाना बदल गया। अब उसक सलाह कसी काम क भी नहं<br />

है। उसक सलाह जो मानेगा, प क तरह पटेगा जगह-जगह। अब उसके बेटे उससे कहते<br />

ह: तुम शांत भी रहो। माला ले लो। पूजा करो। घर म पूजागृह बनवा दया है, वहां बैठा<br />

कर।<br />

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मगर वह घर भर म नजर रखता है। वह सोचता है उसके पास भार ान है, जीवनभर का<br />

अनुभव है। कोई उसके प म नहं है। मुहले-पड़ोस के लोग उसके प म नहं ह। जससे<br />

भी बात करता है वह बचना चाहता है। यक अब काम या है इससे बात करने का! यह<br />

लोग एक दन इसक तलाश करते थे। आज इससे कोई बात करने को भी राजी नहं है। पी<br />

भी इसको मानती थी पहले। इसको थोड़े ह मानती थी, वह जो हर महने तनखाह आती थी<br />

उसको मानती थी। अब तनखाह भी नहं आती। अब नई साड़यां भी नहं आतीं। अब नए<br />

गहने भी नहं आते। अब इसको मानने से मतलब या है? अब तो एक ह आशा है क ये<br />

कसी तरह वदा हो जाए तो वह जो बीमा करवाया है...।<br />

मुला नसन, उसक पी और बेटा झील पर गए थे, पकिनक के िलए गए थे। मुला<br />

नसन झील म तैरता दर ू िनकल गया। बेटा भी उतरना चाहता था झील म। मां ने कहा:<br />

तू क। बेटे ने कहा: य? और पताजी गए?<br />

उसने कहा: पताजी को जाने दे। उनका बीमा है, तेरा बीमा नहं है।<br />

कल म एक कहानी पढ़ रहा था, क एक से एक चालबाज आदमी होते ह। एक आदमी ऐसा<br />

चालबाज था क मरने के पहले, जब पका हो गया क मरना ह है, उसने अपना बीमा<br />

क िसल करवा दया। यक जब मर जाएगा तो पी को लाख डालर िमलनेवाले थे। मरने<br />

के पहले उसने अपना बीमा ह क िसल करवा दया! जब पका हो गया और डाटर ने कह<br />

दया क बस, अब दो चार दन के मेहमान हो। तो उसने पहला काम यह कया क अपना<br />

बीमा क िसल करवा दया। मगर पी भी एक ह घाघ थी! पित को दफनाया नहं--अमरका<br />

म तो पित को दफनाते ह--जलवाया। और आग का जो बीमा होता है, उससे पैसे वसूल<br />

कए। जलकर मरा!<br />

पी भी पूछती नहं अब, बेटे भी पूछते नहं अब, परवार भी पूछता नहं अब। पास पड़ोस<br />

के लोग भी पूछते नहं अब। मनोवैािनक कहते ह: दस साल उ कम हो जाती है। शायद<br />

इसीिलए जो राजनेता ग पर बैठ जाता है, फर ऐसी पकड़ता है क छोड़ता ह नहं।<br />

कतना ह खींचो टांग, कतना ह खंचो हाथ, कु स को ऐसा पकड़ता है क छोड़ता ह<br />

नहं। कु छ भी करो, फर उससे कु स छु ड़ाना बहत मुकल है। कारण है। कु स छू ट क<br />

ु<br />

जंदगी छू ट। कु स ह जंदगी है। जब तक कु स पर है तब तक सब कु छ है। जैसे ह कु स<br />

गई, कु छ भी नहं।<br />

अभी देखा नहं, दो चार दन पहले अखबार म खबर थीं क भूतपूव रापित वी. वी. िगर<br />

क टकट का पास तक वापस ले िलया। भूतपूव रापित क यह हालत हो जाती है!<br />

कतना फक पड़ता है? कोई िगर इस उ म रोज-रोज याा करते भी नहं ह। और कर भी<br />

तो कतना फक पड़ता है साल म अगर हजार-पांच सौ पए टकट के पास का उपयोग कर<br />

लेते तो या बन बगड़ जाता? अगर जो सा से गया, वह सब तरफ से चला जाता है।<br />

यह भी न सोचा इनकार करते व क यह गित तुहार हो जाएगी कल। सा के बाहर हए<br />

ु<br />

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क दो कौड़ कमत हो जाती है। इसिलए जो राजनेता पहंच ु जाता है सा म , वह सा म<br />

ह बना रहना चाहता है।<br />

मयदेश के एक मुयमंी थे रवशंकर शुल, उहने कद कर िलया था क मं गा तो<br />

कु स पर ह मं गा, नहं तो मं गा ह नहं। कु स पर ह मरे! यक मरो कु स पर तो<br />

उसका भी मजा और है। राजकय समान िमलता है, बड-बाजे बजते ह। फौजी टक पर<br />

सवार होकर लाश जाती है। भार शोरगुल मचता है। मरने का मजा ह और है। ऐसे ह मर<br />

गए, न बड बजे न बाजे बजे, न िमिल अई, न झंडे फहराए गए, न झंड़े झुकाए गए--<br />

यह भी कोई मरना है! कु े क मौत! मरने मरने म भी लोग ने फक कर रखा है। मर गए<br />

तो भी!<br />

मने सुना है, एक राजनेता मरा। बड़ भीड़ इकठ हई उसको भेजने को। वह भी अब तो<br />

ु<br />

आमा माऋ रह गई थी, भूत मा। वह भी गया मरघट पर देखने अपनी आखर अवथा<br />

म। लोग कै से-कै से यायान देते ह! कौन या कहता है! अपनेवाले धोखा तो नहं दे जाते?<br />

दमन ु या कहते ह?<br />

जब वहां उसने शंसा के षत-गान सुने, क दमन ु ने भी शंसा<br />

क उसक क कै सा अदभुत ितभाशाली य था, क दया बुझ गया, क अब देश म<br />

अंधेरा ह अंधेरा रहेगा! क अब कभी उसके थान क पूित नहं हो सकती, अपूरणीय ित<br />

हई ु है!<br />

तो पास म खड़े एक दसरे ू भूत ने उसने कहा क अगर ऐसा मुझे पता होता तो म<br />

पहले ह मर जाता। अगर इतना समान मरने से िमल सकता है, अगर इतनी भीड़<br />

आनेवाली थी मुझे पहंचाने ु , तो म कभी का मर गया होता। म नाहक अटक रहा। इतनी<br />

शंसा तो जंदगी म कभी न िमली थी।<br />

िनयम है क मरे आदमी क हम शंशा करते ह। जंदगी म तो बहत मुकल है शंसा<br />

ु<br />

िमलना, कम से कम मरे को सांवना तो दे दो। जाती-जाती आमा को इतना तो सांवना<br />

दे दो क चलो, जंदगी म नहं िमला, मर कर िमला, मरे आदमी के खलाफ कोई कु छ<br />

नहं कहता।<br />

एक गांव म एक आदमी मरा। वह इतना द ु था,<br />

इतना द ु क जब उसको दफनाने गए।<br />

तो िनयम था क प म कु छ बोला जाए। मगर उसके प म कोई बात ह नहं थी जो<br />

बोली जा सके । गांव के पंच एक दसरे क तरफ दे<br />

ू ख क भई, तुम बोलो। मगर बोल तो<br />

या खाक बोल। उसने सबको सताया था। उसक दाता ु ऐसी थी क पूरा घर,<br />

पूरा परवार,<br />

पूरा गांव, आसपास के गांव भी सन थे क मर गया तो झंझट कट! लोग शंसया करने<br />

नहं आए थए, लोग आनंद मनाने आए थए। मगर यह िनयम था क जब तक शंसा म<br />

कु छ बोला न जाए, तब तक दफनाया नहं जा सकता। आखर गांव के लोग ने ाथना क<br />

गांव के पुरोहत से क भइया तुहं कु छ बोलो। तुम तो बड़े बकार हो, क तुम तो शद<br />

क खाल िनकालने म बड़े कु शल हो। इस आदमी म कु छ खोजो! कु छ भी इसक शंसा करो।<br />

पुरोहत भी खड़ा हआ<br />

ु ; वह भी कु छ समझ नहं पाया क बोल या इस आदमी के प म!<br />

इस आदमी क जंदग म कु छ था ह नहं। फर उसने कहा क एक बात है। इन आदमी क<br />

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शंसा करनी ह होगी, यक अभी इसके सात भाई और जंदा ह; उनके मुकाबले यह<br />

देवता था।<br />

मरे हए ु आदमी क शंसा<br />

करनी ह होती है। पद पर रहते ह लोग तो लंबी जाती है उनक<br />

दंजीग। पद से हटाते ह घट जाती है उनक जंदगी। धन क बड़ अकड़ है। पद क बड़<br />

अकड़ है। होता है तो आदमी अकड़े रहते ह और छोड़ देते ह तो अकड़े रहते ह। तुम जैन-<br />

शा पढ़ो, बौ के शा पढ़ो, तो खूब लंबी-लंबी बढ़ाकर, झुठ बात िलखी ह--क<br />

महावीर ने इतने घोड़े छोड़े इतने हाथी छोड़े, इतने रथ, इतना धन...ऐसी बड़-बड़ संयाएं<br />

जो क संभव नहं ह। संभव इसिलए नहं है क महावीर एक बहत छोटे से राय के<br />

ु<br />

राजकु मार थे महावीर के जमाने म भारत म दो हजार रयासत थीं। यादा से यादा एक<br />

तहसील के बराबर उनका राय था। अब तहसील के बराबर राय...। जतने हाथी-घोस?<br />

जैनशा म िलखे ह अगर उनको खड़ा भी करो तो खड़ा करने क जगह भी न िमले।<br />

आखर कहं खड़े भी तो होने चाहए। इतना धन लाओगे कहां से? मगर नहं, िलखा है।<br />

उसके पछे कारण ह, मनोवैािनक कारण है। यक जतना धन, जतने घोड़े, जतने<br />

हाथभ, जतने रथ, जतने हर जवाहरता तुम बढ़ाकर बता सको उतना ह बड़ा याग<br />

मालूम पस?गा। याग को भी नापने का एक ह उपाय है क कतना छोड़ा। यह बड़े मजे क<br />

बात है। है तो भी पए से ह नापा जाता है और छोड़ा तो भी पए से ह नापा जाता है।<br />

दोन का मापदंड पया है। दोन का तराजू एक है।<br />

तो फर बौ भी पीछे नहं रह सकते थे। उहने और बढ़ा दए। जब अपने ह हाथ म है<br />

संयाएं िलखनना तो दखते जाओ शूय आगे, बढ़ाते जाओ शूय पर शूय। कोई कसी से<br />

पीछे नहं है। महाभारत का यु कु े म हआ। ु अठारह अौहणी सेना...।<br />

कु े छोटा<br />

सा मैदान है। उतनी बड़ सेना वहां खड़ नहं हो सकती। और खड़ हो जाए तो लड़ना तो<br />

दरू , ेम करना भी आसान नहं! आखर तलवार वगैरह चलाने क थोड़ जगह भी तो<br />

चाहए। नहं तो खुद ह क तलवार खुद ह को लग जाए, क अपने वाल क ह गदन कट<br />

जाए। आखर घोड़े-रथ दौड़ने इयाद के िलए कु छ थान तो चाहए। कु ेट के मैदान म<br />

अठारह अौहणी सुना...पागल हो गए हो। लेकन उसको बड़ा यु बताना है--महाभरत!<br />

उसको बड़ा बताना है, छोटा-मोटा यु नहं।<br />

यु भी बड़े बताने ह तो संया बढ़ाओ। याग भी बड़ा बताना है तो संया बढ़ाओ। भोग भी<br />

बड़ा बताना है तो संया बढ़ाओ। तुहारा भरोसा गणत पर बहत यादा है। मने उन िम से<br />

ु<br />

कहा क तुहारा पैर लगा नहं, नहं तो भूल गए होते। तीस साल हो गए! कौन याद रखता<br />

है! बात खम हो गई होती। मगर छू टता नहं है। तुहारा मोह अब भी लगा है। अभी भी<br />

तुम मजा ले रहे हो। अब भी चुकयां ले रहे हो!<br />

याग हन सुपना यौहार। जो जोगे सो सब से यारा।।<br />

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जो जगत है, न तो वह यागी होता है, न भोगी होता है। वह सब से यारा होता है।<br />

इसिलए उसको पहचाना मुकल होता है। यक वह भोिगय जैसी भी दखाई पड़ता है,<br />

यािगय जैसा भी दखाई पड़ता है। वह दोन नहं होता और दोन भी होता है।<br />

जो जागे सो सब से यारा!<br />

यागी क पहचानना आसान है, भोगी को पहचानना आसान है। ानी को पहचानना बहत<br />

ु<br />

कठन है। तुम िसंकं दर को भी पहचान लोगे, तुम महावीर को भी पहचान लोगे। मगर<br />

जनक को पहचानना बहत ु कठत हो जाएगा,<br />

यक जनक रहते तो िसंकं दर क दिनया ु म<br />

ह और रहते महावीर क तरह ह। जनक को पहचानने के िलए जरा गहर आंख चाहए, बड़<br />

गहर आंख चाहए। जनक का जीवन तो याग है, न भोग है, वरन साीभाव है।<br />

इसिलए मने जनक-अाच का जो संवाद हआ<br />

ु , उसको महागीता कहा है। कृ णा और अजुन<br />

संवाद को म िसफ गीता कहता हं। लेकन अाच और जनक के संवाद को महागीता कहता<br />

ू<br />

हं। ू यक उसम एक ह वर है--साी,<br />

साी, साी। न छोड़ना न पकड़ना, बस<br />

देखनेवाले हो जाना। छू टे तो छू ट जाए; पकड़ म आ जाए तो पकड़ म आ जाए। लेकन<br />

भीतर न पकड़ने क आकांा है न छोड़ने क आकांा है। भीतर कोई आकांा ह नहं है।<br />

वह आकांामु जीवन परम जीवन है।<br />

जो जागे सो सबसे यारा! जो कोई साध जािगया चावै...। और जसको भी जागना हो...सो<br />

सतगुर के सरनै आवै। कसी जागे हए से संबंध जोड़े। यक बना जागे हए से संबंध जोड़े<br />

ु ु<br />

पहचान न आएगी। यह बात जरा जटल है। यह बात जरा सूम है। भोग और याग बड़े<br />

आसान ह, थूल ह। ऊपर-ऊपर से दखाई पड़ते ह। इसम कु छ अड़चन नहं होती।<br />

जैन मुिन को तुम जानते हो क यागी। और तुम जानते हो जो बाजर म बैठा है, भोगी।<br />

जो वेयागृह म जाकर नाच रेख रहा है, भोगी। और जो जंगल भाग गया है, यागी। जनक<br />

को क◌ा◌ो ् करोगे?<br />

जनक बैवे ह राजमहल म। वेयाओं का नृय चल रहा है। और भीतर<br />

जंगल है। भीतर सनाटा है। भीतर अंतर-गुफा है। भीतर साी है। यह सब बाहर खेल चल<br />

रहा है। वेयाएं नाच रह ह और शराब के याले पर याले ढाले जा रहे ह। और जनक वहां<br />

ह और और नहं है भी ह। इस इस यारे आदमी को कै से पहचानागे? यारे से संबंध<br />

जोड़ोगे, तो ह पहचान आएगी।<br />

कृ तकृ त बरला जोग सभागी। गुरमुख चेत सदमुख जागी।।<br />

वह भायवान है जो कसी ऐसे अनूठे यक के साथ जुड़ जाए, यक उसका शद भी<br />

जगा देता है। संसय मोह-भरम-िनस नास। उसका सानय संशय को िमटा देता है, मोह<br />

को िमटा देता है। म क िनशा न हो जाती है, ा क सुबह होती है।<br />

आतमराम सहज परकास! उसके सानय म वयं के भीतर डुबक लगने लगती है। आमा<br />

का सहज काश उपलध होने लगता है।<br />

राम संभाल सहज धर यान। उसके पास सीखने को िमलता है--संसार को न तो पकड़ना है<br />

न छोड़ना है। पकड़ना-छोड़ना अगर कसी को है तो राम को। बाहर क बात ह छोड़ो, भीतर<br />

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पकड़ो। अभी भीतर छोड़े बैठे हो। राम संभाल...! बस एक बात सहाल लो; भीतर राम को<br />

सहाल लो। भीतर साी-भाव को सहाल लो।<br />

सहज धर यान! नैसिगक है भीतर तुहारे जो बह रहा है। तुह जम से िमला है। तुहारे<br />

वभाव है। उसे कहं से लाना नहं है, सहज है। उस सहज यान को साध लो। पाछे सहज<br />

कासै यान! उसके पीछे अपने-आप ान चला आता है। यान के पीछे कतार बंधी है--वेद<br />

क, उपिनषद क, कु रान, बाइबल क। वे अपने-आप चली आती ह। मगर पहले यान,<br />

पहले जागरण।<br />

जन दरयाव सोइ बड़भागी। जाक सुरत संग लागी। और सब छोड़ो, भीतर बैठे क<br />

मृित को जगाओ। तब जर होगी अमृत क वषा। तब खलेगा जर कमल। अभी झरत,<br />

िगसत कं वल!<br />

आज इतना ह।<br />

सृजन क मधुर वेदना<br />

आठवां वचन; दनांक १८ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

भगवान! संत के अनुसार वैराय के उदय होने पर ह परमामा क ओर याा संभव है और<br />

आप कहते ह क संसार म रहकर धम साधना संभव है। इस वरोधाभास पर कु छ कहने क<br />

अनुकं पा कर।<br />

भगवान! कभी झील म उठा कं वल देख आंदोिलत हो उठता हं<br />

ू, कभी अचानक कोयल क<br />

कू क सुन दय गदगद हो आता है, कभी बचे क मुसकान देख वमुध हो जाता हं। तब<br />

ू<br />

ऐसा लगता है जैसे सब कु छ थम गया; न वचार न कु छ। भगवान, लगता है ये ण कु छ<br />

कु छ संदेश लाते ह, वह या होगा?<br />

भगवान! यह िशकायत मत समझना, आपक एक जंदादल भ क ेम-पुकार है।<br />

आपसे दर ू रहकर दल पर या गुजरती<br />

है वह आप ह समझ सक गे।<br />

दल क बात लब पर लाकर अब तक हम दख ु सहते ह,<br />

हमने सुना था इस बती म दलवाले भी रहते ह,<br />

एक हम आवारा कहना कोई बड़ा इजाम नहं,<br />

दिनया वाले दलवाल को और बहत कु छ कहते ह।<br />

ु ु<br />

बीत गया सावन का महना मौसम ने नजर बदलीं<br />

लेकन इन यासी आंख से अब तक आंसू बहते ह,<br />

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जनके खाितर शहर भी छोड़ा जनके िलए बदनाम हए<br />

ु<br />

आज वह हमने बेगाने से रहते ह।<br />

भगवान! मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ह रह गया। भु, आपने बार बार कहा है क<br />

ाथना के वल अनुह कट करना है कु छ मांगना नहं। परंतु मन बना मांगे नहं रह पाता।<br />

मांगता हं ू भु एक ऐसी यास जो तन मन को धू -धू कर जला दे। या भु मेर मांग पूर<br />

करगे?<br />

भगवान! कु छ पूछना चाहता हं लेकन पूछने जैसा कु छ नहं लगता। बड़ डांवांडोल थित म<br />

ू<br />

हं। ू कभी तो एक मती घेर लेती है और अचानक सब वराम हो जाता<br />

है। कृ पया मागदशन<br />

कर।<br />

पहला : भगवान! संत के अनुसार वैराय के उदय होने पर ह परमामा क ओर याा<br />

संभव है। और आप कहते ह क संसार म रहकर धम साधना संभव है। इस वरोधाभास पर<br />

कु छ कहने क अनुकं पा कर।<br />

आनंद मैेय! वरोधाभास रंचमा भी नहं है। वरोध तो है ह नहं, आभास भी नहं है<br />

वरोध का। दखाई पड़ सकता है वरोध, यक सदय के संकार ठक-ठक देखने नहं<br />

देते, देखने म अड़चन डालते ह, आंख म धूल का काम करते ह।<br />

संत ठक कहते ह क वैराय के उदय हए ु बना परमामा क ओर याा नहं हो सकती।<br />

और जब म कहता हं<br />

ू: संसार म रहकर ह धम-साधना संभव है, तो संत क वपरत कु छ<br />

भी नहं कह रहा हं।<br />

ू<br />

संसार म बना रहे वैराय ह कै से पैदा होगा? संसार ह तो अवसर है वैराय का। संसार म<br />

ह तो वैराय सघन होगा। जो संसार से भाग जाएगा उसका वैराय कचा रह जाएगा। और<br />

कचा वैराय रहा हो तो राग फर नए अंकु र फोड़ देगा, नए पलव िनकल आएंगे।<br />

इस उट सी दखने वाली बात को ठक से समझना। संसार असर संयास क बात<br />

सोचता है! संसार म दख इतना है<br />

ु , पीड़ा इतनी है, िचंता इतनी है क जसम थोड़ भी बु<br />

है वह कभी न कभी सोचता है क छोडूं-छोडूं! बहत ु हो चुका,<br />

और कब तक ऐसे ह िघटटे<br />

खाना है! कब तक कोह का बैल बना रहं<br />

ू ू! वह चकर, वह सुबह, वह सांझ, वह दौड़-<br />

धूप, वह आपाधापी! या ऐसे ह दौड़-दौड़कर मर जाना है या कु छ पाना भी है?<br />

संसार म जसके मन म संयास क वासना न उठती हो, संयास क कामना न उठती हो,<br />

ऐसा आदमी खोजना कठन है! भोगी से भोगे को भीतर एक अभीसा उठनी शु हो जाती है!<br />

और जो भाग गए ह संसार से उह संयास का दख ु है। वे संयास से ऊबे हए ु ह:<br />

कब तक<br />

बैठे रहे इसी गुफा म और कब तक फे रते रह माला! और यह रोज-रो क भीख मांगना और<br />

ार-ार से कहा जाना आगे बढ़ो और यह रोट क िचंता, और बीमार म कौन फकर<br />

करेगा, और बुढ़ापे म कौन सहारा देगा...! और हजार उनक भी िचंताएं ह, हजार उनके भी<br />

क ह।<br />

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तुम ऐसा मत सोच लेना क गुफा म जो रह रहा है उसके कोई क नहं ह उसके अपने क<br />

ह--तुमसे िभन ह...। तुहारा क है क भीड़ के कारण तुह शांित नहं िमलती; उसका<br />

क है क अके लापन काटता है। तुम अके ले होना चाहते हो, यक भीड़ से तुम थकते हो;<br />

रोज-रोज भीड़ ह भीड़ है, सब तरफ भीड़ है। भाग जाना चाहते हो कहं। णभर को भी<br />

वाम िमल जाए, ऐसी आकांा तुहारे मन म जगती है। लेकन जो अपनी गुफा म बैठा<br />

है वह राह देखता है क कोई भूला-भटका िशकार ह आ जाए क बैठ कर दो ण बात हो<br />

ल, क कु छ खबर िमल जाएं क संसार म या हो रहा है। वह भी तीा करता है क कब<br />

भरे कुं<br />

भ का मेला, क उतं पहाड़ से, क जाऊं भीड़-भाड़ म। घबड़ाने लगता है।<br />

एकाकपन, काटने लगता है एकाकपन।<br />

तुम भी जंगल जाकर देखो, एकाध दन, दो दन, तीन दन अछा लगेगा, ीितकर<br />

लगेगा। बड़ा सौभाय मालूम होगा, वतंता मालूम होगी। बस तीन दन और सुहागरात<br />

समा! और घर क याद आने लगेगी और घर क सुवधाएं...सुबह-सुबह नान के िलए गम<br />

जल और सुबह-सुबह पी जगाती चाय हाथ म िलए। अब न तो कोई गम जल है, न कोई<br />

चाय के िलए जगाता है, न कोई पूछने वाला है क कै से हो, अछे हो क बुरे, न कोई पैर<br />

दबाने को है। अब तुह वे सब सुख याद आने लगगे जो घर म संभव थे। वह घर क<br />

सुरा, सुवधा, वह घर क ऊमा, वे ीित के सारे के सारे फू ल मरण आने लगगे।<br />

बच क कलकारयां, उनका हंसना और तुहार गोद म आकर बैठ जाना और णभर को<br />

तुह भी बचपन क दिनया ु म ले जाना,<br />

वह सब तुह याद आने लगेगा।<br />

आदमी का मन ऐसा है क जो है उसे भूल जाता है और जो नहं है उसक याद करता है।<br />

महल म रहने वाले लोग सोचते ह क झोपड़ म रहने वाले लोग बड़ मती म रह रहे ह।<br />

न कोई िचंता राय क, न कोई धन को बचाने क फकर, न दमन ु का कोई डर,<br />

घोड़े<br />

बेचकर सोते ह, मत है उनक नींद! महल वालेर ईया करते ह झोपड़े वाल से और झोपड़े<br />

्<br />

म जो रहा है वह सोचता है: अहा! महल म आनंद! उनक कपना करके हर ईया हर<br />

् ्<br />

ईया से जला जाता है।<br />

यह ं संसार और संयास का भी है। जो शहर म है वह सोचता है: गांव म बड़ा आनंद<br />

है, ाकृ ितक सदय है, शु हवाएं ह, सूरज-चांदारे। बंबई म तो चांदारे दखाई ह कहां<br />

पड़ते ह; पता ह नहं चलता कब पूणमा आई और कब गई। और जमीन पर ह इतनी<br />

रोशनी है क तारे देखे कौन! फु सत कसको है! आंख जमीन पर गड़ ह। हवा इतनी गंद है!<br />

वैािनक तो बहत चकत ह। यूयाक क हवा का वेषण कया है तो पाया क हवा म<br />

ु<br />

इतना जहर है क जतने जहर म आदमी को जंदा रहना ह नहं चाहए, आदमी को मर<br />

ह जाना चाहए। मगर आदमी अदभुत है; उसक समायोजन क मता अदभुत है, वह हर<br />

चीज से अपने को समायोजत कर लेता है। अगर तुम जहर भी धीरे-धीरे धीरे-धीरे पीते रहो<br />

तो तुम जहर पीने के भी आद हो जाओगे। फर जहर तुहारा कु छ न कर सके गा।<br />

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तुमने कहािनयां सुनी हगी। पुराने दन म साट वषकयाएं रखते थे राजमहल म। बचपन<br />

से ह पैदा हई ु कोई सुंदर<br />

लड़क को वष पलाना शु कया जाता था दध ू के साथ। छोट<br />

माा, होयोपैथी क माा। और फर धीरे-धीरे माा बढ़ाते जाते, बढ़ाते जाते, बढ़ाते<br />

जाते; जब तक वह जवान होती तब तक उसका सारा र जहर से भर जाता। उसका र<br />

इतना जहरला हो जाता है क अगर वह कसी का चुंबन<br />

ले ले तो वह आदमी मर जाए। इन<br />

वषकयाएं का उपयोग कया जाता था जासूस क तरह। चूंक<br />

वे सुंदर<br />

होती, उनको भेजा<br />

सकता था दसरे ू राय म। चूंक<br />

वे इतनी सुंदर<br />

होतीं क वयं राजा-महाराजा<br />

उनके ेम म<br />

पड़ जाते और उनको चूमना संघातक! खुद नहं मरती है वह लड़क, लेकन जो उसे चूम<br />

ले, मर जाता है।<br />

मनुय क समायोजन क मता अपार है; हर हालत से अपने को समायोजत कर लेता है।<br />

यूयाक म तीन गुना जहर है हवाओं म। वैािनक सोचते ह; जतना आदमी सह सकता है<br />

उससे तीन गुना यादा...बंबई म दो गुना होगा।<br />

बंबई म जो रहता है, सोचता है गांव का सदय, नैसिगक हवाएं, चांदारे! लेकन गांव<br />

वाले आदमी से पूछो, उसक आंख बंबई पर अटक ह। वह चाहता है क कै से बंबई पहंच<br />

ु<br />

जाए! पी छू टे तो छू टे, कै से बंबई पहंच ु जाए!<br />

और बंबई िमलेगी झुपड़-पट रहने को।<br />

रहेगा कसी गंदे नाले के करब, जहां चार तरफ िसवाय गंदगी के कु छ भी न होगा। लेकन<br />

फर भी, बंबई इंपुर मालूम होती है!<br />

मनुय का मन ऐसा है, जो पास म नहं है उसक आकांा होती है; जो पास है उससे<br />

वर होती है।<br />

इसिलए म कहता हं ू: संसार से भागो मत, यक म संयािसय को जानता हं ू जो संसार से<br />

भाग गए ह। इस देश के करब-करब सभी परंपराओं के संयािसय से मेरे संबंध रहे ह। और<br />

उन सब के भीतर मने संसार क गहन वासना देखी है। सर साल क उ के एक जैन मुिन<br />

ने मुझे कहा क पचास साल हो गए मुझे मुिन हए<br />

ु , लेकन मन म यह बात छू टती नहं क<br />

कहं मने भूल तो नहं क! जो संसार म ह, कहं वे ह तो मजा नहं ले रहा ह! कहं म<br />

चूक तो नहं गया इस झंझट म पड़कर! अब तो देर भी बहत ु हो चुक,<br />

अब तो लौट ने म<br />

भी कु छ सार नहं है; लेकन कौन जाने म तो बहत ु युवा था,<br />

बीस ह साल का था, तब<br />

घर छोड़ दया। आ गया कसी क बात म भाव म। यह तो धीरे-धीरे पता चला क<br />

जसक बात के भाव म आ गया था उसे भी कु छ आनंद अनुभव नहं हआ है। मगर यह<br />

ु<br />

तो देर से पता चला, तब तक समािनत हो चुका था। लोग चरण छू ते थे। वे ह लोग, जो<br />

दो दन पहले जब तक संयत न हआ ु था,<br />

अगर उनके घर चपरासी के काम क आकांा<br />

करता तो इनकार कर देते--वे ह लोग पैर छू ते थे! तो अब लौटं ू भी कै से लौटं ू! शोभा-यााएं<br />

िनकालते थे--वे ह लोग, जो दो पैसे दे नहं सकते थे, अगर म भीख मांगने जाता! अब<br />

मेरे चरण पर सब िनछावर करने को राजी थे। अब छोडूं तो कै से छोडूं? जो संसार म िता<br />

नहं िमली, अहंकार को तृि नहं िमली, वह मुिन होकर िमल रह थी। तो छोड़ भी न<br />

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पाया, मगर मन म यह बात सरकती ह रह और अब भी सरकती है, सर साल क उ<br />

म भी सरकती है--क कहं म चूक तो नहं गया! कहं ऐसा तो नहं है क म यथ के जाल<br />

म पड़कर जीवन गंवा दया! एक पूरा जीवन गंवा दया! इसिलए म कहता हं<br />

ू: संसार से<br />

भागना मत। संसार से यादा और सुवधापूण कोई थान नहं है जहां वैराय का जम होता<br />

है। संसार म रहकर वरागी हो जाओ। भागते य ह? भागने का मतलब है क अभी कु छ<br />

डर है संसार का। डर का अथ है: अभी कु छ राग है। डरते हम उसी चीज से ह जससे राग<br />

होता है। डरते इसीिलए ह क हम अपने पर भरोसा नहं है। हम जानते ह क अगर एकांत<br />

और ऐसी सुवधा िमली तो हम अपने को रोक न पाएंगे; अपनी उेजनाओं पर, अपनी<br />

वासनाओं पर संयम न रख पाएंगे। हम अपने संयम के कचेपन का पका पता है। इसिलए<br />

उिचत यह है क ऐसे अवसर से ह पीठ फे र लो; ऐसी जगह से ह हट जाओ। धन का ढेर<br />

लगा हो तो हम अपने को रोक न पाएंगे, झोली भर लगे।<br />

इसका जसको अनुभव होता है, वह सोचता है: ऐसी जगह ह मत रखना जहां धन का ढेर<br />

लगा हो। अगर कोई सुंदर<br />

ी दखाई पड़ेगी, उपलध होगी, तो हम अपने को रोक न<br />

पाएंगे; या सुंदर<br />

पुष, तो हमारे िनयंण टट ू जाएंगे,<br />

हमारे संयम के कचे धागे उखड़<br />

जाएंगे, हमारे भीतर दबी हई ु वासनाएं उभर आएंगी,<br />

कट हो जाएंगी। इससे बेहतर है ऐसी<br />

जगह भा जाओ, जहां अवसर ह न हो। लेकन अवसर का न हो ना िस नहं करता क<br />

वासना समा हो गई है।<br />

या तुम सोचते हो क अंधे आदमी क देखने क वासना समा हो जाती है? या अंधा<br />

आदमी रंग को देखना नहं चाहता? या अंधा आदमी सुबह को देखना नहं चाहता? या<br />

अंधा आदमी रात तार से भरे हए ु आकाश को देखना नहं चाहता?<br />

या अंधा आदमी कसी<br />

सुंदर<br />

चेहरे को, कहं झील जैसी नीला आंख को नहं देखना चाहता? या तुम सोचते हो<br />

क बहरे क वासना समा हो जाती है संगीत को सुनने क, या क लंगड़े क वासना<br />

समा हो जाती है चलने क, उठने क, दौड़ने क?<br />

काश, इतना आसान होता तो जंगल म भाग गए संयासी वराग को उपलध हो जाते!<br />

लेकन जंगल भागकर वे के वल अवसर से वंिचत होते ह, भीतर क कामनाएं तो और भी<br />

गाढ़ होकर, और भी वजत होकर जलने लगती ह, और भी शु होकर जलने लगती<br />

ह।<br />

तुहारे जीवन म ऐसा रोज-रोज अनुभव होता। जस पी से तुम परेशान हो, चाहते हो क<br />

मायके चली जाए, कु छ देर तो छु टकारा हो; उसके मायके चले जाने पर कतनी देर तक<br />

छु टकारा अनुभव होता है? दन, दो दन, चार दन, और उसक याद आने लगती है--और<br />

वे सारे सुख जो उसके कारण थे जो पहले दखाई ह न पड़े थे। हर चीज म अड़चन मालूम<br />

होने लगती है। अब सोचते हो क वापस लौट आए। अब बड़े ेम-पाितयां िलखने लगते हो,<br />

क तेरे बना मन नहं लगता! और जरा सोचो तो, थूके को चाट रहे हो! अभी चार दन<br />

पहले सोचते थे क कसी तरह छु टकारा हो और अब तेरे बना मन नहं लगता! और जरा<br />

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सोचो तो, थूके को चाट रहे हो! अभी चार दन पहले सोचते थे क कसी तरह छु टकारा हो<br />

और अब तेरे बना मन नहं लगता!<br />

मन क इस थित को ठक से समझ लो तो मेर बात तुह समझ म आ जाएगी और तब<br />

तुम पाओगे: म जो कह रहा हं वह संत के वपरत नहं है। म जो कह रहा हं वह संत के<br />

ू ू<br />

प म है। म कहता हं<br />

ू: रहो सघन संसार म, ताक वैराय घना होता रहे, घना होता रहे,<br />

घना होता रहे! इतना सघन हो जाए एक दन क अवसर तो बाहर मौजूद रहे, लेकन भीतर<br />

वासना मर जाए।<br />

ये दो बात ह--अवसर और वासना। अवसर का न होना वासना का अिस होना नहं है। हां,<br />

वासना का अिस हो जाना जर ांित है, पांतरण है।<br />

तो म कहता हं<br />

ू: धन म रहो ताक धन से मु हो जाओ। भोगो, ताक भोग यथ हो जाए।<br />

इसके िसवाय कोई और उपाय नहं है। भागे क भोग कभी यथ नहं होगा; भोग साथक<br />

बना रहेगा; भोग क उमंग भीतर उठती ह रहेगी।<br />

तुम जानते हो, तुहारे पुराण म कथाएं तो भर पड़ं ह क जब भी कोई ऋष-मुिन ान<br />

को उपलध होने को हो, बस उपलध होने को होता है क इं भेज देते ह उविशय को।<br />

आखर इं उवशी को य भेजते ह? यक ये जो ऋष ह, ये जो मुिन ह, य से<br />

भागे ह। गणत साफ है, मनोवान प है। तुमने शायद ऐसा सोचा हो या न सोचा हो;<br />

चाहे कोई इं ह, उविशयां ह या न ह--मगर वान बड़ा साफ है। सू प है। यां<br />

भाग गया यह मुिन, यह जंगल म बैठा है। एक बात पक है क जसको छोड़कर आया है<br />

उसक वासना इसके भीतर सवािधक गाढ़ होगी। इसको अगर डुलाना है, इसको अगर<br />

िगराना है तो भेज दो एक असरा। यह डोल जाएगा, यह िगर जाएगा। इं को मनोवान<br />

का ठक-ठक बोध है।<br />

मेरे संयासी को इं नहं डु ला सके गा! इधर इं िचंितत है। इधर उसके पुराने सारे उपाय<br />

यथ ह। मेरे संयासी के पास उवशी आकर भला डोल जाए, मेरा संयासी नहं डोलने वाला<br />

है। कोई कारण नहं है। बहत ु उविशयां देखीं,<br />

उविशयां ह उविशयां नाच रह ह! तुम देखते<br />

हो, इं क यवथा को म कस तरह काट रहा हं<br />

ू! इं बड़ बगूचन म है। पुरानी तरकब<br />

कोई, पुराने हथकं डे कोई काम आएंगे नहं। वे पुराने ऋषय पर काम आ गए, भगोड़े थे।<br />

और कोई असरा ह भेजने क जरत नहं थी, कोई साधारण ी पया होती। नाहक ह<br />

जहां सुई काम कर जाती वहां तलवार चला रहे थे इं, साधारण ी काफ होती।<br />

मने सुना है, मुला नसन ने पहाड़ पर एक मकान बन रखा है। वहां कभी-कभी जाता<br />

है--वाम के िलए। कह कर जाता है तीन साह रहंगा<br />

ू , आ जाता है आठव दन! तो मने<br />

पूछा क बात या है, कह कर गए थे तीन साह रहंगा<br />

ू , कभी आठव दन आ जाते हो;<br />

कभी कहकर जाते हो चार साह रहंगा ू और सातव दन वापस लौट आते हो!<br />

उसने कहा:<br />

अब आपसे या िछपाना! मने वहां एक नौकरानी रख छोड़ है। वह इतनी बदशकल है क<br />

उससे बदशकल औरत मने नहं देखी। उसे देखकर ह वैराय उदय होता है। रागी से रागी<br />

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मन म एकदम वैराय उदय हो जाए। वह ऐसा समझो क उवशी से बलकु ल उट है। उसे<br />

देखकर ह मन हटता है, जुगुसा पैदा होती है, वीभस...। तो मने यह िनयम बना रखा है<br />

क जाता हं ू पहाड़ तय करके क तीन साह रहंगा ू लेकन जस दन वह ी मुझे सुंदर<br />

मालूम होने लगती है, बस उसी दन भाग खड़ा होता हं। ू सात दन आठ दन,<br />

दस दन<br />

यादा से यादा बस। वह मेरा मापदंड है। जस दन मुझे लगने लगता है क यह ी सुंदर<br />

है, उस दन म सोचता हं ू क नसन,<br />

बस, अब हो गया, अब वापस लौट चलो, अब<br />

घर वापस लौट चलो।<br />

कु प से कु प ी भी सुंदर<br />

मालूम हो सकती है, अगर वासना को बहत ु दबाया गया हो।<br />

भूखे आदमी को खी रोट भी सुवाद मालूम होगी।<br />

य असरा भेजी? म नहं मानता क इं ने असरा भेजी होगी। कोई भी नौकर-चाकरिनयां<br />

भेज द हगी। मुिन महाराज समझे क असरा आई है। मेर अपनी समझ यह है। उवशी को<br />

भेजने भी जरत ह या है? यह मुला नसन क ी भेज द होगी, जो उसने पहाड़<br />

पर रख छोड़ है; मुिन-महाराज समझे हगे क भेजी उवशी। कोई जरत नहं है।<br />

जहने दबाया है उह उभारना तो बड़ा आसान है। उह तो छोट सी चीज भी उभार दे<br />

सकती है। इसिलए म दमन के वपरत हं<br />

ू, यक जसने दबाया वह कभी मु नहं होगा।<br />

म संसार के प म हं। और यह परमामा का योजन है संसार बनाने का। यह अवसर है<br />

ू<br />

वराग म ऊपर उठने का। संसार से यादा और सुंदर<br />

यवथा या हो सकती थी मनुय को<br />

वैराय देने क। सारा उपव दे दया है संसार म, और यादा उपव क तुम कपना भी<br />

या कर सकते हो! कु छ परमामा ने छोड़ा हो तो आदमी ने उसक पूित कर द है। सब<br />

उपव है यहां, उपव ह उपव है! वैराय का कै सा सुअवसर है!<br />

मेर बात उट दखाई पड़ती है--उहं को, जनके पास समझ नाममा को नहं है;<br />

अयथा म जो कह रहा हं ू उसके पीछे गहरा वान है,<br />

सीधा गणत है, शु तक है। जस<br />

चीज से मु होना है उसम पूरे डूब जाओ, तुहार मु िनत है। यक जतने तुम<br />

डु बोगे उतना ह तुम उसक यथता पाओगे। जस दन पूरे-पूरे डू ब जाओगे, जस दन<br />

यथता समपेण दखाई पड़ जाएगी, उसी दन तुम उसके बाहर आ जाओगे।<br />

और वह बाहर आना अपूव होगा, सुंदर<br />

होगा, सहज होगा, नैसिगक होगा। उसम भगोड़ापन<br />

नहं होगा, पलायनवाद नहं होगा, दमन नहं होगा, यथ क पीड़ा नहं होगी। जैसे<br />

अचानक सहज ह फू ल खल जाए, ऐसे ह तुहारे भीतर फू ल खल जाएगा। अभी झरत,<br />

बगसत कं वल!<br />

दसरा <br />

ू : भगवान! कभी झील म खला कमल देख आंदोिलत हो उठता हं। कभी अचानक<br />

ू<br />

कोयल क कू क सुनकर दय गदगद हो जाता है। कभी बचे क मुकान देख वमुध हो<br />

जाता हं<br />

ू--तब ऐसा लगता है जैसे सब कु छ थम गया है--न वचार, न कु छ...। भगवान,<br />

लगता है ये ण कु छ संदेश लाते ह। वह या होगा?<br />

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दप चैतय! पूछा क चूकना शु कया। उन ण म जहां वचार क जाते ह वहां भी<br />

संदेश खोजोगे? तो तुम वचार क खोज म लग गए। जहां वचार थम जाते ह, अब <br />

मत बनाओ, नहं तो यान से िगरे और चूके । अब तो िन डु बक मारो।<br />

ये सब यान के बहाने ह। उगता सूरज सुबह का, ाची लाली हो गई, पय के गान फू ट<br />

पड़े, बंद किलयां खुलने लगीं--सब सुंदर<br />

है! सब अपूव है! सब अिभनव है! इस ण अगर<br />

तुहारा दय आंदोिलत हो उठे तो अब पूछा मत क ऐसा य हो रहा है? यक तुमने<br />

य पूछा क मतक आया--और मतक आया क दय का आंदोलन समा हआ।<br />

ु<br />

दय म नहं होते, िसफ अनुभव होते ह! और मतक म िसफ होते ह, अनुभव<br />

नहं होते। यह मतक क तरफ से बाधा है। तुमने रात देखी रात-भर, वराट आकाश<br />

देखा, कु छ तुहारे भीतर तध हो गया, वमुध हो गया, वमय-लीन हो गया। डू ब<br />

जाओ, मारो डु बक! छोड़ो सब ! अब यह मत पूछो क इसका संदेश या है। ये सब बात<br />

यथ क ह।<br />

यह शूय ह संदेश है। यह मौन ह संदेश है। यह वमय-वमुध भाव ह संदेश है। और<br />

या संदेश? तुम चाहते हो कोई आयत उतरे क कोई ऋचा बने, क शद सुनाई पड़े, क<br />

परमामा तुम से कु छ बोले, क दप चैतय, सुनो यह रहा संदेश? वह सब फर तुहारा<br />

मन ह बोलेगा। चूक गए। आ गए थे मंदर के ार के करब और चूक गए। उठा क<br />

ार बंध हो गया। िन रहो तो ार तो खुला है।<br />

ऐसा समझो क बु के पास ह ह, दय के पास उर ह उर ह, और दोन का<br />

कभी िमलन नहं होता। अगर उर चाहते हो तो मत पूछो। अगर ह चाहते हो तो<br />

पूछते रहो, से लगते रहगे।<br />

यह सुंदर<br />

हो रहा है, शुभ हो रहा है। सौभायशाली हो।<br />

तुम कहते हो: तब ऐसा लगता है क सब कु छ थम गया। उसी को तो म यान कह रहा हं<br />

ू,<br />

जब सब थम जाता है। एक ण को कोई तरंग नहं रह जाती--वचार क, वासना क,<br />

मृित क, कपना क। एक ण को न समय होता, न थान होता है। एक ण को तुम<br />

कसी और लोक, कसी और आयाम म व हो जाते हो। तुम कहं और होते हो। एक<br />

ण को तुम होते ह नहं, कोई और होता है! यह तो यान है।<br />

और यान साधन नहं है, साय है। यान कसी और चीज के िलए राता नहं है--यान<br />

मंजल है।<br />

इसिलए अब यह मत पूछो क इन ण म कोई संदेश होना चाहए, वह संदेश या होगा?<br />

तुम खराब कर लोगे इन ण को। इन कोरे िनदष ण को गूद डालोगे यथ क बकवास<br />

से। अतव का कोई संदेश नहं है। अतव का संदेश अगर कु छ है तो शूय है, मौन<br />

है; शद नहं।<br />

यान मुझको तुहारा ये,<br />

चांद और चांदनी का िमलन देख आने लगा,<br />

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जंदगी का थका कारवां सैकड़ कं ठ से यारे के गीत गाने लगा।<br />

रात का बंद नीलम कवाड़ा डुला।<br />

लो ितज-छोर पर देव-मंदर खुला,<br />

हर नगर झलिमला हर डगर को खला<br />

हर बटोह जला योित लावन चला;<br />

कट गया शाप, बीती वरह क अविध,<br />

वार क सीढ़य पर खड़ा हो जलिध<br />

अंजली अु भर-भर कसी य सा,<br />

यार के देवता पर चढ़ाने लगा।<br />

आरती थाल ले नाचती हर लहर,<br />

हर हवा बीन अपना बजाने लगी,<br />

हर कली अंग अपना सजाने लगी,<br />

हर कली अंग अपना सजाने लगी,<br />

हर अली आरसी म लजाने लगी,<br />

हर दशा तक भुजाएं बढ़ाता हआ ु ,<br />

हर जलद से संदेसा पठाता हआ<br />

ु<br />

व का हर झरोखा दया बाल कर,<br />

पास अपने पया को बुलाने लगा।<br />

योित क ओढ़नी के तले तो ितिमर<br />

क युवा आज फर साधना हो गई,<br />

नेह क बूंद<br />

म डू बकर ाण क<br />

वासना आज आराधना हो गई;<br />

आह र! यह सृजन क मधुर वेदना,<br />

जम लेती हई ु यह नयी चेतना,<br />

भूिम को बांह भर काल क राह पर,<br />

आसमां पांव अपने बढ़ाने लगा।<br />

यह सफर का नहं अंत वाम रे,<br />

दर ू है दर ू अपना बहत ु ाम रे,<br />

वन कतने अभी ह अधूरे पड़े,<br />

जंदगी म अभी तो बहत ु काम रे;<br />

मुकु राते चलो, गुनगुनाते चलो<br />

आफत बीच मतक उठाते चलो,<br />

यान मुझको तुहारा ये,<br />

चांद और चांदनी का िमलन देख देख आने लगा,<br />

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जंदगी का थका कारवां<br />

सैकड़ कं ठ से यार के गीत गाने लगा।<br />

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हर ण, जब तुम चुप हो तो परमामा और कृ ित का िमलन हो रहा है। हर ण, जब<br />

तुम सनाटे म हो तब पृवी आकाश म लीन हो रह है। हर ण जब तुहारे भीतर मौन का<br />

फू ल खला है, तब ं समा हआ ु है;<br />

िन घड़ आई तुहारे भीतर मौन का फू ल खला<br />

है, तब ं समा हआ ु है;<br />

िन घड़ आई है; पदाथ और चेतना का भेद िमटा है; सृ<br />

और ा म अंतर नहं हरा है। अब और या संदेश?<br />

तृ हो जाओ इस ण म, आंख बंद कर लो, जी भर कर पी लो इस ण को! पूछोगे,<br />

चूकोगे। उठा क ण तुहारे हाथ से िछटक गया। तुह जानना होगा क अब नहं<br />

उठाना है। अब तुह से सावधान होना पड़ेगा। वह पुरानी आदत तुह यागनी होगी।<br />

यान सीख सकता है वह जो वचार क पुरानी आदत को यागने को तपर है।<br />

और तुम सौभायशाली हो दप चैतय, क यान क ये छोट-छोट झलक आने लगीं,<br />

झरोखे खुलने लगे, बजली कधने लगी। अब मत उठाओ। । रसमय हो जाओ। नाचा तो<br />

नाच लो, मत उठाओ। गीत उठे तो गा लो, मत उठाओ। नाद उठे भीतर तो गुंजार<br />

करो, मत उठाओ। सहाल ह न सको अपने को। बांसुर बजानी आती हो बांसुर<br />

बजाओ, िसतार बजाना आता हो िसतार बजाओ, और कु छ भी न आता हो तो नाच तो<br />

सकते ह हो! और नाचने के िलए कोई कला क जरत नहं है, यक यह तुम कहं<br />

दशक के िलए नहं नाच रहे हो। अपनी मती म, अपनी अलमती म! मगर मत<br />

उठाओ।<br />

ार नहं, दवाल बन जाता है। और उठता है, पुराना संकार है। हर चीज पर <br />

उठता है!<br />

मेरे पास लोग आते ह। वे कहते ह: यान म बड़ा आनंद आ रहा है, य? आनंद को भी<br />

िन न ले सकोगे? आनंद को भी झोली भरकर न ले सकोगे? आनंद से भी डरे-डरे! पहले<br />

पूछोगे, पूछताछ करोगे, जानकार कर लोग कहां से आता है, या है, या नहं है--<br />

तब लोगे! इतनी देर आनंद तुहारे िलए के गा नहं। आनंद आता है लहर क तरह और तुम<br />

अगर इस पूछताछ म लग गए क कौन आता, कहां से आता, य आता, या है--तो<br />

गए काम से! जब तक तुम पूछताछ कर पाओगे तब तक आनंद जा चुका, झोली खाली क<br />

खाली रह जाएगी।<br />

और पूछताछ से पाओगे या? परभाषाएं तृि तो नहं दगी। कोई कह भी देगा क आनंद<br />

का या अथ है, तो भी तुहारे हाथ अथ तो न लगेगा।<br />

नहं, पुरनी यह आदत छोड़ो।<br />

रात का बंद नीलम कवाड़ा डुला,<br />

लो ितज छोर पर देव-मंदर खुला,<br />

हर नगर झलिमला हर डगर लो खला<br />

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हर बटोह जला योित लावन चला;<br />

कट गया शाप, बीती बरह क अविध,<br />

वार क सीढ़यां पर खड़ा हो जलिध<br />

अंजली अु भर-भर कसी य सा,<br />

यार के देवता पर चढ़ाने लगा।<br />

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रोओ, कु छ न कर सको तो! मगर मत उठाओ। झर-झर बहने दो आंसू, झर-झर झरने<br />

दो आंसू--जैसे पतझर म पे झर, क जैसे सांझ दनभर खला फू ल अपनी पंखुरयां को<br />

वापस पृवी म लौटाने लगे।<br />

आरती थाल ले नाचती हर लहर,<br />

हर हवा बीन अपना बजाने लगी,<br />

हर कली अंग अपना सजाने लगी,<br />

हर अली आरसी म लजाने लगी,<br />

हर दशा तक भुजाएं बढ़ाता हआ ु ,<br />

हर जलद से संदेशा पठाता हुआ,<br />

व का हर झरोखा दया बालकर,<br />

पास अपने पया को बुलाने गला।<br />

और तुम पूछ रहे हो संदेशा या! परमामा ने तुह पुकारा, पया ने तुह पुकारा, जसक<br />

तलाश थी उसके पास आ गए अचानक--अब तुम पूछते हो संदेशा या! तुह परमामा भी<br />

िमल जाए तो तुम पहले पूछोगे: आइडटट काड? पासपोट? कहां से आते कहां जाते? या<br />

माण है क तुम ह परमामा हो?<br />

और बेचारा परमामा या करेगा? कहां से पासपोट लाएगा? कौन उसे पासपोट देगा? और<br />

आइडटट काड, कौन उसका बनाएगा? बड़ा मुकल म पड़ जाएगा। वह कहेगा: भाई तो<br />

फर रहने ह दो। मा करो, भूल हो गई। आपके दशन हए ु यह धयभाग!<br />

अब दबारा ु ऐसी<br />

भूल न करगे।<br />

जब ऐसी शुभ घड़यां आएं तो जैसी ु बात मत उठाओ। तब थोड़े िन ा का<br />

रस लो।<br />

योित क ओढ़नी के तले तो ितिमर<br />

क युवा आज फर साधना हो गई,<br />

नेह क बूंद<br />

म डू बकर ाण क<br />

वासना आज आराधना हो गई;<br />

आह र! यह सृजन क मधुर वेदना,<br />

जम लेती हई ु यह नयी चेतना,<br />

भूिम को बांह भर काल क राह पर,<br />

आसमां पांव अपने बढ़ाने लगा।<br />

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ये ण ह, जब आसमान पृवी क तरफ आने लगता है। ये ण ह, जब अात ात क<br />

तरफ हाथ फै लाता है। ये ण ह, जब उस वराट का आिलंगन तुहारे िलए उपलध होता<br />

है! िगर पड़ो! उसक गोद पास है, िगर पड़ो! अब यथ के न पूछो।<br />

नेह क बूंद<br />

म डू बकर ाण क<br />

वासना आज आराधना हो गई;<br />

आह र! यह सृजन क मधुर वेदना,<br />

जम लेती हई ु यह नयी चेतना!<br />

और तुम म उलझे हो। तुम पूछते हो, संदेश! तुम शद म ह कु छ समझोगे तभी<br />

समझोगे? शद के बना तुम कोई सेतु नहं बना सकते? और चांदारे बोलते नहं, सूरज<br />

को कोई भाषा नहं आती। फू ल मौन ह--या क मौन क ह उनक भाषा है! तुम उनक ह<br />

भाषा सीखो। मौन के साथ मौन रह जाओ। जहां दो मौन होते ह वहां दो नहं रह जाते,<br />

यक दो मौन िमलकर एक हो जाते ह। जहां दो शूय होते ह वहां दो नहं रह जाते,<br />

यक दो शूय िमलकर एक हो जाते ह।<br />

और यान रखना, ये जो छोटे-छोटे झरोखे खुल रहे ह, यह तो िसफ शुआत है। यह तो<br />

बांसुर का पहला वर है, अभी तो बहत ु बजने को,<br />

बहत ु होने को है!<br />

यह सफर का नहं अंत, वाम रे,<br />

दर ू है दर ू अपना बहत ु ाम रे,<br />

वन कतने अभी ह अधूरे पड़े<br />

जंदगी म अभी तो बहत ु काम रे;<br />

मुकु राते चलो, गुनगुनाते चलो<br />

आफत बीच मतक उठाते चलो<br />

यान मुझको तुहारा ये,<br />

चांद और चांदनी का िमलन देख आने लगा,<br />

जंदगी का थका कारवां<br />

सैकड़ कं ठ से यार के गीत गाने लगा।<br />

तीसरा : भगवान! यह िशकायत मत समझना, आपक एक जंदादल भ क ेम-पुकार<br />

है। आपसे दर ू रह कर दल पर या गुजरती है,<br />

वह आप ह समझ सक गे।<br />

दल क बात लब पर ला कर, अब तक हम दख सहते ह<br />

ु<br />

हमने सुना था इस बती म, दल वाले भी रहते ह।<br />

एक हम आवारा कहना, कोई बड़ा इलजाम नहं<br />

दिनया ु वाले दल वाल को,<br />

और बहत ु कु छ कहते ह५<br />

बीत गया सावन का महना, मौसम ने नजर बदलीं<br />

लेकन इन यासी आंख से, अब तक आंसू बहते ह।<br />

जनके खाितर शहर भी छोड़ा, जनके िलए बदनाम हए<br />

ु<br />

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आज वह हम से बेगाने बेगाने से रहते ह।<br />

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राधा मोहमद! िशकायत तो है, नहं तो क शुआत इस बात से न होती क इसे<br />

िशकायत मत समझना। तुझे भी शक है क िशकायत समझ ली जाएगी। जब तू ह समझ<br />

गई तो म न समझ पाऊं गा! जो तुझसे कह गया वह मुझसे भी कह गया!<br />

पुरानी कहानी सुनी न--एक बूढ़ ी, गांव म ामीण; अपने िसर पर गठर िलए चल रह<br />

है। पास से एक घुड़सवार गुजरा, उस बूढ़ ने कहा: बेटे, बोझ मेरे िसर पर बहत ु है,<br />

तू<br />

घोड़े पर ले ले। आगे चौराहा पड़ता है, वहां चौराहे पर छोड़ देना। फर म उठा लूंगी,<br />

फर<br />

मेरा गांव बहत करब है।<br />

ु<br />

घुड़सवार ने कहा: तूने मुझे समझा या है, कोई म नौकर-चाकर हं<br />

ू? तूने मुझे कु छ ऐसा-<br />

वैसा समझा है? यह घोड़ा बोझ ढोने के िलए नहं है, ढो अपना बोझ!<br />

लगाम खींची, घोड़े को आगे बढ़ा दया। कोई मील भर पहंच ु कर उसे<br />

खयाल आया क ले<br />

ह लेता, पता नहं बुढ़या क गठर म या है! अगर कु छ होता तो चौराहे पर छोड़ने क<br />

जरत न थी, लेकर अपने राते लगता। अगर कु छ न होता तो चौराहे पर छोड़ देता, म<br />

भी बु हं। गठर ढो रह है तो कु छ होगा जर और जब इतना बोझ ढो रह है तो कु छ<br />

ू ू<br />

होना चाहए--सोना-चांद हो, जेवर जवाहरात ह, पता नहं या हो।<br />

लौटा। जाकर बुढ़या से कहा: मां मा करना। भूल क मने, ऐसा मुझे करना न था,<br />

अिश था मेरा यवहार। ला दे तेर गठर, चौराहे पर छोड़ जाऊं गा। वह बुढ़या हंसी, उसने<br />

कहा: बेटा तुझसे कह गया वह मुझसे भी कह गया! अब नहं।<br />

राधा मोहमद, जब क शुआत ह ऐसी हो क इसे िशकायत मत समझना, तो तेरे<br />

अचेतन म भी यह बात साफ है क िशकायत है और िशकायत समझी जाएगी। है तो समझी<br />

ह जाएगी। और तेरे म ह िशकायत नहं है, तेरे चेहरे पर िलखी है, तेर आंख म<br />

िलखी है। और ऐसा भी नहं है क िशकायत अवाभावक है, वाभावक है।<br />

राधा मोहमद वष भर आम म रह। अब म जानता हं एक बार आम म रह जाना और<br />

ू<br />

अब उसे आम के बाहर रहना पड़ रहा है। तो उसके क का भी मुझे अनुभव है। म जानता<br />

हं ू यह पीड़ापूण है। और सब छोड़कर<br />

राधा मोहमद आई आम म। उसके पित क बड़<br />

नौकर थी। कृ ण मोहमद क बड़ नौकर थी। एयर इंडया म बड़े पद पर थे। इटली म<br />

एयर इंडया म बड़े अफसर थे। सब छोड़-छाड़ कर आम के हसे हो गए। बड़ा याग था।<br />

बड़ हमत क थी। इस से भी याग था क बड़ा पद छोड़ा, अछ नौकर छोड़,<br />

काफ सुख-सुवधा से रहे; वह सब छोड़ा। बड़े बंगले छोड़े। यहां एक छोटे से कमरे म दो<br />

बचे, पित-पी...! इतना ह नहं, मुसलमान परवार से आते ह। मुसलमान होकर भी<br />

हमत जुटाई, जो क जरा कठन काम है। यक मुसलमान, कोई मुसलमान उनके घेरे<br />

से बाहर हो जाए तो महाशु हो जाते ह। तो सब तरह क बदनामी सह, सब तरह क<br />

मुसीबत सहं। मुसलमान क धमकयां सहं। कृ ण मोहमद, राधा मोहमद को प पर<br />

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प आते रहे धमकय के क हम जान से मार डालगे तुमने दगा कया, तुमने धोखा<br />

कया, तुमने इलाम के साथ बगावत क। तो और भी कठन था।<br />

फर साल भर मेरे पास रहना और फर साल भर के बाद बाहर जाना और बहार रहना कठन<br />

तो है। िशकायत वाभावक है। लेकन राधा, बाहर जाना पैसा है तुह--अपने ह कारण!<br />

इसिलए िशकायत कसी और से मत करना, िशकायत करना तो अपने भीतर अपनी ह<br />

जमेवार से करना। धन छोड़ना आसान, समाज छोड़ना आसान, अहंकार छोड़ना सबसे<br />

कठन है। साल भर सब तरह क कोिशश क यहां क तुम दोन का अहंकार छू ट जाए,<br />

मगर वह न छू टा। जस काम म लगाया उसी काम म अहंकार बाधा आया।<br />

यह तो एक कयून है; यहां अगर अहंकार इकठे हो गए तो यह बखर जाएगी। यहां तो<br />

समपत लोग चाहए जो अहंकार को बलकु ल ह छोड़ द; जो इस परवार के साथ बलकु ल<br />

एक हो जाएं, तादाय कर ल।<br />

और ऐसा भी नहं है राधा क तेरा या कृ ण मोहमद का समपण मेरे ित कम है, मेरे<br />

ित तुहारा समपण पूरा है। और मेरे ित तुहारे मन म कोई अहंकार का भाव नहं है।<br />

लेकन इस कयून म, इस आम म, इस परवार म िसफ मेरे ित तुहारा समपण हो<br />

तो पया नहं होगा। आम म अब कोई चार सौ लोग ह; अगर तुहारा समपण िसफ मेरे<br />

ित है और बाक चार सौ लाग के ित नहं है तो अड़चन आएगी। यक मुझसे तो काम-<br />

धाम का नाता या है? सुबह मुझे सुन िलया, सांझ कभी मेरे पास आकर बैठ गए; यह तो<br />

सरल बात है। लेकन चौबीस घंटे तो उन चार सौ लोग से तुह संबंध बनाने हगे। अगर<br />

वहां अहंकार रहा तो हर जगह अड़चन आएगी। हरेक से वरोध होगा, हरेक से अड़चन<br />

होगी, हरेक से झंझट होगी।<br />

सालभर जब सब तरफ से यह मेर समझ म आ गया क तुह कठन है अभी अमता को<br />

छोड़ना तो तुह बाहर भेजा। बाहर जानकर भेजा है। इसिलए नहं भेजा है बाहर क म<br />

चाहता हं ू क तुम बाहर क रहो;<br />

बाहर जानकर भेजा है क बाहर थोड़ तकलीफ उठाओ,<br />

पीड़ा सहो, ेम क पीड़ा भोगो, और अनुभव करो क आम के भीतर जीना, इस ऊजा के<br />

े म जीना इतनी बड़ बात है क उसके िलए छोटे से अहंकार को छोड़ने म संकोच करने<br />

क कोई जरत नहं है। जस दन तुह अनुभव हो तो ह ार के भीतर वेश हो सके गा।<br />

जब तक यह अनुभव हो जाए तब तक समझो क बाहर क पीड़ा झेलनी पड़ेगी।<br />

तुहार िशकायत सह है। म तुहारे दख को जानता हं। जानता हं इसीिलए तुह बाहर भेजा<br />

ु ू ू<br />

है, ताक तुह साफ हो जाए, ताक तुम चुनाव कर सको क इतना दख ु झेलना है?<br />

मुझसे<br />

वंिचत होना है या क अहंकार छोड़ा है? अब वकप सीधे-सीधे ह। और यान रखना, यह<br />

मत सोचना क अहंकार मेरे ित छोड़ना है; वह तो बहत आसान है। दा के ीित छोड़ना<br />

ु<br />

है, िशला के ित छोड़ना है, लमी के ित छोड़ना है और यहां सारे काम करने वाले लोग<br />

ह, उनके ित छोड़ना है। तभी यह एक नया परवार िनिमत हो सके गा।<br />

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और यह तो अभी शुआत है, यह परवार बड़ा होने वाला है। इसिलए अभी म लोग तैयार<br />

कर रहा हं<br />

ू--ऐसे लोग क बन जाएंगे। फर नए लोग आएंगे तो उनक हवा म डूब जाएंगे,<br />

उनक बाढ़ म डू ब जाएंगे। जैसे ह पांच सौ लोग तैयार हो गए, सम प से समपत, क<br />

जनके हजार लोग तीा कर रहे ह, जो आना चाहते ह; मगर उह रोक रहा हं। हजार<br />

ू<br />

लोग आने के िलए आवेदन कर रहे ह, लेकन म उह रोक रहा हं। यक जब तक कम से<br />

ू<br />

कम पांच सौ लोग का एक ऐसा परवार िनिमत न हो जाए। क जसम एक नया आदमी<br />

आएगा तो डू बना ह पड़ेगा उसे। लेकन अगर तुहारे भीतर ह कलह रह, अगर तुहारे<br />

भीतर भी दलबंद रह, तो फर वह नया आदमी भी आकर तुहार कलह सीखेगा और<br />

दलबंद सीखेगा। तब तक म उस नए आदमी को नहं आने दंगा<br />

ू , यक उसके जीवन को<br />

पांतरत कर सकूं<br />

तो ह उसे बुलाना ठक है। एक बु-े िनिमत कर रहा हं। ू<br />

तुह सालभर का अवसर दया। तुह बहत ु काम म बदला--एक<br />

काम से दसरे ू काम,<br />

दसरे ू<br />

से तीसरे काम लेकन सब जगह वह अड़चन आ जाती है, यक अड़चन तो तुहारे भीतर<br />

है, काम म नहं है। और यह मत सोचना क जब तुहार कसी से कलह होती है तो उस<br />

कलह के िलए तुम तक नहं खोज सकते हो; तक तो खोजे ह जा सकते ह। और यह भी<br />

हो सकता है, तुहारे तक बलकु ल ठक ह ह। यह भी म नहं कहता। लेकन समपण का<br />

अथ ह फर तुम नहं समझे।<br />

गुरजएफ ने जब अपना आम बनाया तो कस तरह लोग को िशा द। बैिनट ने िलखा<br />

है--उसके एक खास िशय ने--क मने जंदगी म कभी गढे नहं खोदे। (लेखक, गणत,<br />

वचार!) गुरजएफ ने जो पहला काम मुझे दया वह यह दया क बगीचे म गढा खोदो।<br />

छह फट गहरा गढा। और जब तक पूरा न हो जाए कना मत, खोदते ह जाना। सुबह से<br />

खोदना शु कया, सांझ हो गई रात होने लगी तब बा-मुकल छह फट पूरा हो पाया। टट ू -<br />

टट ू गया बैिनट,<br />

क रोआं-रोआं थक गया। हाथ उठ न, कु दाली उठे न, लेकन छह फट<br />

पूरे करने ह। गु ने पहला तो काम दया है, उसे तो पूरा करना है। और इस आशा म क<br />

जब छह फट पूरा खुद गया गढा क अब गुरजएफ बहत ु सन होगा,<br />

भागा। गुरजएफ<br />

एक को बुलाकर लाया। गुरजएफ ने कहा: अब इसको वापस पूरो!<br />

अब तुम सोच सकते हो इसक तकलीफ! वभावतः उठे गा यह या फजूल क बकवास<br />

हई<br />

ु ! तो खुदवाया कसिलए? मगर पूछे क चूके । पूछा तो नहं उसने, लेकन िच म तो<br />

उठा। गुरजएफ ने कहा क िच म भी नहं। िन होना। गढा पूरो, जब तक गढा<br />

न पुर जाए सोने मत जाना। गढा पूरो, खोदो, जैसा का तैसा सुबह जैसा मने जगह छोड़<br />

थी और तुह बताई थी, ठक वैसी कर दो।<br />

तो म यह भी नहं कहता क राधा को या कृ ण मोहमद को अड़चन न होती होगी। अड़चन<br />

होती होगी। अड़चन होती होगी। अड़चन सुिनयोजत है। अड़चन है ह इसीिलए, यक<br />

अड़चन होगी तो ह तुहारा अहंकार उभरकर सतह पर आएगा। और उसे सतह पर आए<br />

अहंकार को वसजत करना है। जस दन तुहार तैयार हो जाए, ार तुहारे िलए खुले ह।<br />

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म तीा कं गा। लेकन अब तैयार हो जाए तो ह, नहं तो वह भूल दोहराने से या<br />

फायदा होगा?<br />

और म अित आनंदत हं ू क एक वग सैकड़ संयािसय का ऐसा िनिमत होता जा रहा है,<br />

जस पर भरोसा कया जा सकता है, क उसके आधार पर हजार लोग को पांतरत कया<br />

जा सके गा। जद ह यह जो छोट सी बती है संयािसय क, यह दस हजार से बती हो<br />

जाएगी, जद ह! बस तुहारे तैयार होने क देर है। तुम तैयार हए क मने िनमंण<br />

ु<br />

भेजा, क लोग आने शु हए। ु तुम भरोसा भी न कर सकोगे क इतने<br />

लोग कहां िछपे बैठे<br />

थे और कै से आने शु हो गए!<br />

जस दन संयास शु हआ ु था,<br />

उस दन के वल सात लोग ने संयास िलया था। आज<br />

के वल सात साल बाद कोई एक लाख संयासी ह सार दिनया ु म। अगर तुम तैयार हो गए--<br />

और तुम तैयार हो रहे हो, और राधा भी तैयार होगी और कृ ण मोहमद भी तैयार हगे,<br />

तैयार होना ह पड़ेगा। मेरे जैसे आदमी के हाथ म फं स गए तो भाग नहं सकते। म दो कौड़<br />

के आदिमय को तो फं साता ह नहं; उनको तो जाल म लेता ह नहं। लेता ह हं मूयवान<br />

ू<br />

हर को मगर फर हर पर जब काट-छांट करनी होती है तो पीड़ा भी होती है। और जतना<br />

बहमूय ु हरा होता है उतनी ह उस पर काट-छांट<br />

करनी पड़ती है, उतनी ह छैनी चलती है।<br />

तुह पता है, कोहनूर हरा जब िमला था तो उसका वजन जतना आज है उससे तीन गुना<br />

यादा था! बाक वजन या हआ<br />

ु ? दो ितहाई वजन कहां गया? काट-छांट म चला गया।<br />

लेकन जतना कटा उतना बहमूय ु होता गया। जतना िनखारा गया,<br />

जतना साफ कया<br />

गया उतना कमती हो तो गया। तीन गुना वहन था, उसक कोई कमत न थी। एक ितहाई<br />

वजन है, आज दिनया म सब से बहमूय हरा है।<br />

ु ु<br />

तो जन पर मेर नजर है उनको तो बहत काटंगा<br />

ु ू , बहत छाटंगा। और राधा<br />

ु ू , तुझ पर मेर<br />

नजर है। छोट-मोट बात छोड़ो और अहंकार से छोट कोई और बात नहं। ार खुले ह। तुह<br />

बाहर सदा के िलए नहं कर दया गया है--िसफ एक अवसर दया गया है क अब तुम बाहर<br />

और भीतर का भेद देख लो, ताक तुह प हो जाए क या चुनना है। अगर अहंकार<br />

चुनना है तो बाहर ह रहना होगा। फर िशकायत मत करना। िशकायत मुझसे मत करना,<br />

क िशकायत अपने अहंकार से करना।<br />

और अगर तुह भीतर रहना हो तो फर अहंकार को छोड़ने क तैयार दखाओ--और बेशत,<br />

कोई शतबंद नहं क मुझे ऐसा काम िमलेगा तो ह म कं गी। फर कोई शतबंद नहं।<br />

यहां जो पी. एच. ड. ह वे बाथम साफ कर रहे ह। तुम कभी सोच भी न सकोगे क यह<br />

आदमी यूिनविसट म बड़े ओहदे पर था। जो ड. िलट. ह, बतन मांज रहे ह। तुम कभी<br />

सोच ह न सकोगे क कसी ववालय के कसी वभाग म अय था या डन था! यह<br />

सवाल ह नहं है क तुहार योयता या है तुहार योयता का सवाल नहं है। यह तो<br />

एक रासायिनक या है...क तुह तुहार योयता के अनुसार काम िमले, पद िमले,<br />

िता िमले, तो फर वह तो बाहर क दिनया ु ह यहां भी हई। ु यहां तुहार योयता,<br />

पद-<br />

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िता का कोई मूय नहं है। यहां तो िसफ एक बात का मूय है--तुहारे समपण का;<br />

तुहारे बेशत समपण का!<br />

और म जानता हं ू क राधा तू कर पाएगी,<br />

कृ ण मोहमद कर पाएंगे। मेरा भरोसा बड़ा है।<br />

देर-अबेर सह, मगर यह होना है। जद ह तुम वापस परवार म लौट आओगे। मगर सब<br />

तुम पर िनभर है, कतनी देर लगानी, तुम तय कर लो। मगर इस बार जब भीतर आओ<br />

तो खयाल रख कर आना क फर कोई िशकायत नहं। सह भी हो िशकायत तो भी<br />

िशकायत नहं। तुम से जो काम ले रहा हो वह गलत भी हो, तो भी सवाल नहं है। उसक<br />

गलती क फ म कं गा। हो सकता है मने उसे सूचना ह द हो क तुहारे साथ गलत<br />

यवहार करे।<br />

आखर म काम कै से कं गा? म तो कमरे के बाहर िनकलता नहं। म तो इस पूरे आम म<br />

कभी घूमकर भी नहं देखा हं। अगर मुझे कसी का कमरा खोजना पड़े तो म खोज ह न<br />

ू<br />

पाऊं गा। मुझे यह पका नहं है कौन कहां रहता है, कतने लोग रहते ह आम के भीतर।<br />

म काम कै से कं गा? मेरा काम का अपना ढंग है। लोग के ारा म काम ले रहा हं। तो ह<br />

ू<br />

काम बड़ा हो सकता है। काम इतना बड़ा है क अगर म ह उसे करने चलूंगा<br />

सीधा-सीधा तो<br />

बस दस-पांच लोग क जंदगी को बदल पाऊं गा। इरादा है लाख लोग क जंदगी को<br />

बदलने का और इसिलए काम क यवथा अभी से ऐसी है क म सीधा काम करता ह<br />

नहं। म काम ले रहा हं ू और मुझे वह िमलते जा रहे ह,<br />

जो काम कर सक गे; जो कर रहे<br />

ह और ठक काम कर रहे ह!<br />

राधा, तू भी वाहन बन सकती है, मगर तेर शतबंद दकत दे रह है। तेरा तक कठनाई<br />

बन रहा है। पढ़-िलखी है, औहद पर रह है, ितत रह है, कई भाषाओं क जानकार<br />

है। सब मुझे पता है। तेरा बहत उपयोग है। और उससे तुझे कई बार लगता भी होगा क<br />

ु<br />

मेरा कोई उपयोग य नहं कया जा रहा है।<br />

जब पहली बार तू इटली से यहां आई थी तो मने सोचा ह यह था क थोड़े म तू पक जाए<br />

तो तेरा बड़ा उपयोग है। यक यहां इतनी भाषाएं एक साथ जानने वाला कोई य नहं<br />

है। तो यहां तो सार दिनया से लोग आ रहे ह। हम ऐसे लोग चाहए जो बहत सी भाषाएं<br />

ु ु<br />

एक साथ जानते हो। लेकन मुझे तीा करनी पड़, यक कु छ चीज तेरे भीतर टट ू जाएं<br />

तो ह तू मेरा मायम बन सकती है।<br />

लेकन और सब तो ठक, अहंकार नहं टट ू रहा है। उसको छोड?<br />

दे। आज छोड़ दे तो आज<br />

वापस आ जा। थोड़ देर लगानी हो तो थोड़ देर लगा। देर हो तो तेर तरफ से है, मेर<br />

तरफ से नहं है। और बाहर भेजा है तो सजा नहं द है। सजा तो म कसी को देता ह नहं।<br />

दंड म मेरा भरोसा नहं है। बाहर भेजा है तो िसफ एक अनुभव के िलए क तू देख ले, क<br />

अहंकार बचाना है तो फर यह थित है; और अगर मेरे ेम म जीना है और मेर हवा म<br />

जीना है और मेर सनिध को पाना है तो फर अहंकार क कमत चुकाने क तैयार होनी<br />

चाहए।<br />

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अकड़ छोड़! पकड़ छोड़!<br />

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अहंकार बड़ सूम चीज है--इतनी सूम क हम उसका पता भी नहं चलता। और ऐसे<br />

छु पकर काम करता है अहंकार क दखाई भी नहं पड़ता।<br />

मेरे गीत अधर म झूम या मरघट ह म सो जाए,<br />

तुम उनको वरदान न देना,<br />

म एकाक ह गा लूंगा।<br />

दप जल रहे कब से मन के,<br />

फर भी रोती रात अंधेर।<br />

िनमम वर कराहता पंछ,<br />

दर वहंसता खड़ा अहेर।<br />

ू<br />

मेरे थके हए ु पांव म पथ के शूल भले चुभ जाए,<br />

तुम तुझको थान न देना,<br />

म सारे जीवन रो लूंगा।<br />

पलक पर सावन का मेला,<br />

आंख क राह अनजानी।<br />

मचल-मचल सूखे अधर से,<br />

गीत सदा करते मनमानी।<br />

चाहे वन मूित बन जाए या मृित मुझको डस जाए,<br />

तुम अपना मधुमास न देना,<br />

म अधर के पट सी लूंगा।<br />

अहंकार तो परमामा के सामने भी अकड़ता है!<br />

मेरे गीत अधर म झूम या मरघट ह म सो जाए,<br />

तुम उनके वरदान न देना,<br />

म एकाक ह गा लूंगा।<br />

मेरे थके हए ु पांव म पथ के शूल भले चुभे जाएं ,<br />

तुम मुझको थान न देना,<br />

म सारे जीवन रो लूंगा।<br />

चाहे वन मूित बन जाए या मृित मुझको डस जाए,<br />

तुम अपना मधुमास न देना,<br />

म अधर के पट सी लूंगा।<br />

म तो परमामा के तक सामने खड़ा होकर आने को बचाने क चेा करता है। लेकन मेरा<br />

भरोसा है, यक मेरे ित राधा मोहमद और कृ ण मोहमद का कोई अहंकार नहं है।<br />

जब मेरे ित नहं है तो मेरे इस बु-े के ित भी नहं होना चाहए।<br />

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तुमने बौ िभुओं क यह घोषणा सुनी न--बुं शरणं गछािम! यह पहला सू क म बु<br />

क शरण जाता हं। फर दसरा सू या है<br />

ू ू ? सधं शरणं गछािम! म बु के िभुओं के संघ<br />

क शरण जाता हं<br />

ू; जो कठन है। बु जैसे यारे य क शरण जाने म या कठनाई है?<br />

शरण जाने से बचने म कठनाई है। कौन नहं वे पैर पकड़ लेगा? पैर पकड़ने क आकांा<br />

कौन दबा पाएगा? कौन नहं उन पैर म िसर रख देगा? वह तो सरल है। तो बुं शरणं<br />

गछािम, यह तो कोई भी कह सकता है। राधा मोहमद कृ ण मोहमद, तुम दोन ने यह<br />

कह दया है--बुं शरणं गछािम। मगर संधं शरणं गछािम, बु के िभुओं क, बु का<br />

जो संध है, उसक शरण जाता हं ू--यह जरा कठन है। यक संध म बहत ु लोग तुम जैसे<br />

ह ह। संध म बहत ु लोग तुम से भी पीछे हगे। संध म कोई तुम से उ म कम होगा,<br />

कोई<br />

ान म कम होगा, कोई कु शलता म कम होगा। हजार तरह के लोग हगे।<br />

अब अगर एक सर का बूढ़ा आदमी भी आकर बु से दा लेगा तो बु के संघ म अगर<br />

सह साल का युवक संयासी है तो उसके सामने भी उसे झुकना होगा। अगर सह साल का<br />

युवक िभु पहले संयास िलया है और सर साल का य बाद म संयास िलया है, तो<br />

सर साल के िभु को सह साले के संयासी के सामने झुकना होगा। उ शरर क नहं<br />

नापी जाएगी; उ दा से तय होगी, संयास से तय होगी। फर वभावतः कोई साट<br />

आकर संयास लेगा, बु के चरण म झुक जाएगा लेकन बु के संध म बहत ु से दन-हन<br />

जन भी ह, उसक राजधानी के िभखमंगे भी संयासी हो गए ह, वह उनके चरण म कै से<br />

झुके गा? इसिलए दसरा ू सू पहले सू से यादा कठन है और यादा मूयवान है--संघं<br />

शरणं गछािम, क म संघ क शरण जाता हं।<br />

ू<br />

और तीसरा सू और भी महवपूण है--धमं शरणं गछािम। बु तो एक उनक शरण जाता<br />

हं<br />

ू; संध जो मौजूद है अभी, उसक शरण जाता हं<br />

ू; धम, जतने लोग ने पहले धम के<br />

माग पर याा क है और जतने लोग भी धम क याा कर रहे ह और जतने लोग भवय<br />

म धम क याा करगे, उन सबक भी शरण जाता हं। ऐसी शरणागित से ह कभी कोई<br />

ू<br />

बु-े िनिमत होता है।<br />

यह तो रोज यहां क घटना है। लोग आकर मुझसे कहते ह क आपके ित हमारा समपण<br />

पूरा है, मगर हम हर कसी क नहं सुन सकते! फर यह कै सा समपण पूरा हआ<br />

ु ? म<br />

कहता हं<br />

ू: हर कसी क सुनो! तुहारा समपण मेरे ित पूरा है, म कहता हं<br />

ू: हर कसी क<br />

सुनो! और तुम कहते हो हर कसी क नहं सुन सकते। यह समपण कै से पुरा हआ ु ?<br />

एक युवती ने संयास िलया। उसने कहा क बस अब सब समपण, आपके चरण म सब<br />

समपण है! आप जो कहगे वह कं गी।<br />

तो मने कहा क बस, तू यहां यान कर ले दस दन, सीख ले, फर अपने घर जा। उसने<br />

कहा: घर तो कभी न जाऊं गी। मेरा समपण आपके ित है; जो कहगे, वह कं गी!<br />

फर भी दोहरा रह वह वह। मने उससे कहा: म जो कह रहा हं वह तो सुन ह नहं रह। म<br />

ू<br />

कह कह रहा हं ू क यान करना सीख ले और घर वापस<br />

जा।<br />

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उसने कहा: घर क तो आप बात ह मत करना। आप जो कहगे वह कं गी!<br />

अब उसे यह समझ म ह नहं आ रहा क म कह रहा हं ू तू घर जा!<br />

वह मुझसे कह रह है<br />

क यह तो अप बात ह मत करना नहं गई घर। नहं जाएगी, मालूम होता है। अब तो<br />

कोई तीन वष हो गए उसको, यहां से नहं हट। और अब भी कहती है समपण मेरा पूरा है।<br />

और म अभी भी उससे यह कहे चला जा रहा हं<br />

ू, तू घर जा। उसके पता के प आते ह,<br />

उसक मां के प आते ह। वे रो-रोकर िलखते ह क एक ह लड़क है, उसे वापस पहंचा द।<br />

ु<br />

वह यहां आकर संयास से रहे, यान करे, जो उसे करना हो हमार कोई बाधा नहं है।<br />

उसको मने और तरह से भी समझाने क कोिशश क क तू जा तो तेरे पता भी संयासी हो<br />

जाएंगे, तेर मां भी संयासी हो जाएंगी। तेरे जीवन म इतना पांतरण हआ ु है!<br />

मगर वह कहती क आपके चरण, आपक शरण...मेरा समपण तो सम है। मगर उसके<br />

सम का अथ उसक समझ म नहं आता क सम का अथ होता है क अगर म कहं क<br />

ू<br />

घर लौट तो घर लौट जाओ। म कहं नक चले जाओ तो नक चले जाओ। समपण बेशत होता<br />

ू<br />

है।<br />

बेशत हो जाओ राधा! होिशयारयां छोड़ो। मेरे साथ होिशयार से संबंध नहं बनेगा। और<br />

मुझसे बन भी गया तो संध से न बनेगा। और संघ से न बना तो मुझसे भी टटने ू लगेगा।<br />

जोड़ मुकल हो जाएगा।<br />

एक वराट घटना घट रह है। उस म छोटे-छोटे अहंकार को गला दो। जब कसी बड़ घटना<br />

म हम समिलत होते ह छोट-छोट बात को नहं ले जाते। तो ह यह वराट वृ खड़ा हो<br />

सकता है, जसक छाया म अनंत-अनंत लोग को वाम िमले; थको को छाया िमले,<br />

शीतलता िमले; भटक को योित िमले। इस दए म पतंगे क तरह आओ और जल जाओ।<br />

इस से कम म नहं चल सकता है।<br />

चौथा : भगवान!<br />

मेरा जीवन कोरा कागज<br />

कोरा ह रह गया।<br />

भु, आपने बार-बार कहा है क ाथना के वल अनुह कट करना है--कु छ मांगना नहं।<br />

परंतु मन बना मांगे नहं रह पाता। मांगता हं ू भु--एक<br />

ऐसी यास जो तन-मन को धू-धू<br />

कर जला दे। या भु मेर मांग पूर करगे?<br />

अयुत भारती! आग जलनी शु हो गई है। िचनगार है अभी, सारा जंगल भी आग पकड़<br />

लेगा। िचनगार आ गई है तो जंगल भी जलेगा। पहला फू ल खल गया तो वसंत के आगमन<br />

क खबर आ गई, और फू ल भी खलगे। जद न करो।<br />

और म जानता हं<br />

ू, मन जद करता है, मन धीरज नहं बांधता। थोड़ा समय दो िचनगार<br />

को। भभकने का, फै लने का। धू-धू कर के भी जलेगी। लेकन जतना अधैय करोगे उतनी ह<br />

देर हो जाएगी। यह अड़चन है। धीरज रखोगे, जद हो जाएगी घटना; अधैय करोगे, देर<br />

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लग जाएगी। अगर बहत जदबाजी क तो बहत देर लग जाएगी। और अगर बलकु ल<br />

ु ु<br />

जदबाजी न क तो हई ु ह है,<br />

अभी हई ु , अभी हई। ु<br />

समझता हं तुहार ाथना। जनके<br />

ू दय म भी िचनगार पड़ती है उनके भीतर यह भावना<br />

उठनी वाभावक है।<br />

चाहता हं ू म न सावन क घटाएं ,<br />

चाहता हं ू म न मधुवन क लताएं ,<br />

एक ह जलधार के वल चाहता हं<br />

ू,<br />

भावना का यार के वल चाहता हं।<br />

ू<br />

याग से भयभीत कुं<br />

ठत साधनाएं,<br />

यंयमय परहास मंडत मायताएं।<br />

कपट के परधान म िलपट अलंकृ त,<br />

लूटने को सौय कलुषत भावनाएं।<br />

लोक से भयभीत दपक क िशखाएं,<br />

कु चलती अनुराग लजा क िशलाएं।<br />

नत न हो सकतीं वनय के सामने जो,<br />

एंठती उुंग<br />

िगर क शृ ंखलाएं।<br />

चाहता हं ू म न वेद क ऋचाएं ,<br />

चाहता हं ू म न य अिभयंजनाएं ,<br />

सय क मनुहार के वल चाहता हं<br />

ू,<br />

िनकपट यवहार के वल चाहता हं।<br />

ू<br />

वजनतम आद गहर कािलमाएं,<br />

सुखदतम िसंदर संया लािलमाएं।<br />

ू<br />

शु शिश के भाल पर कािलख लगाती,<br />

व से पीड़त अपरिमत वेदनाएं।<br />

लय मेघ क घुमड़ती गजनाएं,<br />

रेत क उथली वभव सर वंदनाएं।<br />

राह म जब कं टक क यारयां ह,<br />

िमत करती चरण को काली दशाएं।<br />

चाहता हं म सपन क दशाएं<br />

ू<br />

वन ह साकार के वल चाहता हं<br />

ू,<br />

भय रहत अिभसार के वल चाहता हं।<br />

ू<br />

अहं के सदय क फै ली छटाएं,<br />

दनता को छल रह बल क भुजाएं।<br />

त को असहाय पाकर खेल करती,<br />

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श रंजत वभव क सोलह कलाएं।<br />

छोड़ मानवता दनुज सी अचनाएं,<br />

ईश कह पाषाण क आराधनाएं।<br />

मनुजता के व पर मंदर बनाती,<br />

भ म अंधी छली अहमयताएं।<br />

चाहता हं ू म न सुख क संपदाएं ,<br />

चाहता हं ू म न डसती वासनाएं ,<br />

मनुज का सकार के वल चाहता हं<br />

ू,<br />

दय का वतार के वल चाहता हं<br />

ू<br />

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उठती है ाथना, उठती है अभीसा--वाभावक है। उसके िलए अपने को दोष न देना। मगर<br />

एक ह बात यान रहे--धीरज, खूब धीरज! मौसमी फू ल तो दो-चार साह म आ जाते ह,<br />

मगर दो-चार साह म वदा भी हो जाते ह। जदबाजी करोगे, मौसमी फू ल जैसी घटनाएं<br />

घटगी--इधर आई, उधर गई, उनसे कु छ तृि न होगी। अगर चाहते हो क आकाश को छू ते<br />

वृ तुहारे भीतर पैदा ह, क बदिलय से गुतगू कर सक, क चांदार क िनकटता पा<br />

सक, तो फर धीरज, तो फर अनंत धैय।<br />

जद भी या है? ाथना है तो तीा और जोड़ो बस।<br />

ाथना-तीा। गहर ाथना है गहर तीा। कह दो परमामा से: जब तेर मज हो! तेर<br />

मज हो, फर जब तेर मज हो! म पुकारता रहंगा ू ! म बहाता रहंगा ू आंसू ! म गाता रहंगा ू<br />

गीत! म नाचता रहंगा<br />

ू ! फर जब पक जाऊं, जब पा हो जाऊं, जब तुझे बरसना हो<br />

बरसना।<br />

इसे ईर पर छोड़ दो। फलाकांा छोड़ दो, साधना आज भी फल ला सकती है। फलाकांा<br />

छोड़ते ह फल लगने शु हो जाते ह।<br />

आखर : भगवान! कु छ पूछना चाहता हं<br />

ू, लेकन पूछने जैसा कु छ भी नहं लगता। बड़<br />

डांवाडोल थित म हं। अभी तो एक मती घेर लेती<br />

ू है और अचानक फर सब वीरान हो<br />

जाता है! कृ पया मागदशन कर।<br />

मह भारती। पूछने को कु छ है भी नहं और फर भी पूछने क आकांा उठती है! नहं<br />

नहं ह भीतर, एक िच है--मा, कोरा िच! और वह िच तुम कसी भी <br />

के पीछे लगा दो; हल हो जाएगा, िच वैसा हो खड़ा रह जाएगा। वह िच तो<br />

तभी िमटता है जब आमजागरण होता है, जब समािध लगती है।<br />

समािध शद पर यान देना। उसी धातु से बना है, उसी मूल से, जस से समाधान।<br />

समािध म समाधान है। समािध म कोई उर नहं िमलता, खयाल रखना। समािध म<br />

िच िगर जाता है। वह तो सतत, शात, िच हमारे ाण म बैठा है, जर है क<br />

वह कसी के पीछे ह लगे। असर वह के पीछे लगता है, यक हम ह को<br />

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अड़चन मालूम होती है बना पीछे लगता है। िच को सहालना, बड़ झझक<br />

मालूम होती है, बड़ा पागलपन मालूम होता है।<br />

अब कसी से कहो, जैसा मह कह रहे ह, क कु छ पूछना चाहता हं<br />

ू, लेकन कु छ पूछने<br />

जैसा लगता भी नहं, तो लगता है क यह बात तो जंचती नहं। जब पूछने जैसा कु छ<br />

लगता नहं तो या पूछना चाहते हो? ऐसा कसी से कहोगे तो समझेगा क पागल हो गए<br />

क नशे म हो? मगर यह असिलयत है। और चूंक,<br />

असिलयत को कट नहं कया जा<br />

सकता, इसिलए हम मनगढ़ंत खड़े कर लेते ह, ताक िच क साथकता मालूम<br />

पड़े। पूछते ह ईर या है। मतलब नहं है ईर से तुह कु छ भी। मतलब तो है िच<br />

से, लेकन िच को अके ला ह खड़ा कर द तो कोई भी कहेगा: पागल हो?<br />

एक झेन फकर मर रहा था। अचानक उसने आंख खोलीं और पूछा क उर या है? िशय<br />

इकठे थे। इधर-उधर देखने लगे क उर या है! तो पूछा ह नहं गया, उर या<br />

खाक होगा! मगर जानते थे अपने गु को। जंदगीभर से उसक ऐसी आदत थीं। बेबूझ था<br />

आदमी। सभी सदगु बेबूझ रहे ह। अब यह भी आखर मजाक; पूछा ह नहं, पूछता<br />

है उर या है! एक िशय ने हमत क। कहा: गुदेव कम से कम जाते व तो हम<br />

दकत म न डाल जाएं! आप तो चले जाएंगे, हम जंदगीभर यह सोचते रहगे क यह या<br />

मामला था--उर या है! या है? पहले तो पूछे फर, उर!<br />

मरते गु ने कहा: चलो ठक, तो यह पूछता हं<br />

ू, या है?<br />

अगर ठक से समझो तो मनुय क अंतरामा म कोई नहं ह, िच है। जासा है।<br />

कसक? कसी क भी नहं। अभीसा है। कस दशा म? कसी दशा म नहं। बस शु एक<br />

िच खड़ा है आमा म, लेकन सीधे िच को पूछने म तो अड़चन होती है, तो हम<br />

उसके सामने कु छ जोड़ देते ह--आमा या है, परमामा या है, म कौन हं<br />

ू, सृ<br />

कसने बनाई? फर तुम हजार बना लेते हो। मगर गौर करना, सारे यथ ह। तुम<br />

पूछना नहं चाहते वे । तुहं थोड़ा सोचोगे तो तुम कहोगे मुझे लेना-देना या, कसने<br />

बनाई दिनया<br />

ु ! बनाई होगी या नहं बनाई होगी, इससे मेरा या योजन है? इस से मेर<br />

जंदगी का या नाता है?<br />

ठक मह क तुमने हमत क और कहा क कु छ पूछना चाहता हं<br />

ू, लेकन पूछने जैसा<br />

कु छ लगता नहं।<br />

इसी हमत से कोई सय के अवेषण म उतरता है।<br />

िच है। और यह िच तभी िमटेगा जब तुहारे भीतर सारे वचार वदा हो जाएं। जब<br />

तक वचार रहगे, यह िच वचार क ओट म अपने को बचाता रहेगा। यह वचार के<br />

छात म अपने को बचाता रहेगा। जब कोई वचार न रह जाएंगे तो िच को मरना ह<br />

होगा, यक इसको भोजन िमलना बंद हो जाएगा। वचार से भोजन िमलता है, पु<br />

िमलती है। एक हल हो जाता है, दसरे ू पर जाकर िच बैठ जाता है;<br />

उसका<br />

शोषण करने लगता है; उसका खून पीने लगता है। उसक तृि हई<br />

ु , वह तीसरे पर बैठ<br />

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जाता है। वह नए-नए खोजता रहता है। वे नई-नई सवारयां ह। लेकन अगर कोई<br />

सवार न िमले, अगर कोई वचार न िमले तो िच अपने से िगर जाता है। वचार के<br />

सहारे न रह जाएं तो िच अपने से भूिमसात हो जाता है।<br />

यान म िमटता है िच, ान म नहं। ान म तो और बड़ा होता जाता है।<br />

दरया ठक कहते ह: यान सान लो, ान क फकर न करो। ान क फकर क क<br />

भटके । सब ान म ले जाएंगे। यान म कौन ले जाएगा? िन दशा। िच है,<br />

रहने दो। वचार को वदा करो, को वदा करो, िच को अके ला रहने दो। और तुम<br />

बड़े चकत होओगे, जैसे क तुम सारे मंदर के खंभे अलग कर लो तो मंदर का छपर िगर<br />

जाए, ऐसे जस दन तुम सारे वचार के खंभे अलग कर लोगे उस दन िच का छपर<br />

िगर जाएगा। न रहगे , न रहेगा िच। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुर। और जहां न<br />

ह िच ह, वह समािध का आवभाव है। उस समािध म समाधान है। उसक ह<br />

तलाश है। उसक ह पीड़ा है। उसक ह यास है।<br />

तुम कहते हो: बड़ डांवांडोल थित म हं। ू सभी ह डांवाडोल थित म। कोई कहता है,<br />

हमत जुटाता है; कोई नहं कहता। मगर सभी डांवाडोल थित म ह, सभी लड़खड़ा रहे<br />

ह। यक मन क आदत ह डांवांडोल होना है। मन यानी डांवांडोल होना। अभी ऐसा अभी<br />

ऐसा। पल भर कु छ, पल भर कु छ। ण म ु , ण म कणा से भर। ण म ेम बह<br />

रहा, ण म घृणा उठ आई। फू ल अभी फू ल था, अब कांटा हो गया। कांटा अभी कांटा था,<br />

अब फू ल हो गया। मन ऐसा ह चलता है। कभी िथर नहं होता। िथर हो जाए तो मर जाए।<br />

अिथरता म ह उसका जीवन है।<br />

और मन अिथर रहने के िलए हर चीज क खंड म बांट देता है, हर चीज को दो म तोड़<br />

देता है तभी तो अिथर रह सकता है। अगर एक ह हो तो फर अिथर कै से होगा? इसिलए<br />

मन ं बनाता है। मन ंामक है। रात और दन एक ह; रात और दन दो नहं, लेकन<br />

मन दो कर लेता है। गम-सद एक ह, इसिलए तो एक ह थमामीटर से तुम दोन को नाप<br />

पाते हो; लेकन मन दो कर लेता है। सफलता-असफलता एक ह, एक ह िसके के दो<br />

पहलू; लेकन मन दो कर लेता है। जम और मृयु एक ह, लेकन मन दो कर लेता है।<br />

जस दन जम उसी दन से मरना शु हो गया। जम क या मृयु क या है।<br />

जरा गौर से देखो, अतव एक है, लेकन मन हर जगह दो कर लेता है। मन ऐसे ह है<br />

जैसे तुमने कांच का म देखा! कांच के म से सूरज क करण क गुजरो; एक<br />

करण, म से गुजरते ह सात हस म बंट जाती है, सात रंग म टट ू जाती है। ऐसे<br />

ह तो इंधनुष बनता है। इंधनुष हवा म लटक हई ु पानी क बूंद<br />

के कारण बनता है। हवा<br />

म पानी क बूंद<br />

लटक होती ह वषा के दन म और सूरज क करण उन पानी क बूंद<br />

से<br />

गुजराती ह। हवा के मय म लटक हई ु पानी क बूंद<br />

म का काम करती ह और सूरज<br />

क करण सात हस म टट ू जाती ह। और तुम एक सुंदर<br />

इंधनुष आकाश म छाया हआ ु<br />

देखते हो।<br />

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ऐसे ह मन है। मन हर चीज को म तोड़ देता है। मन से कोई भी चीज गुजरो, वह दो हो<br />

जाती है। ेम और घृणा एक ह ऊजा के नाम ह, मन दो कर देता है। िमता और शुता<br />

एक ह घटना के दो नाम ह, मन दो कर देता है। मन क तो आदत ऐसी--<br />

एक रात उजली है,<br />

एक रात काली है,<br />

एक बनी मातम तो दसर दवाली है।<br />

ू<br />

एक सजी दहन ु सी चांदनी लुटाती है,<br />

एक दबे घाव को फर-फर सहलाती है।<br />

एक रात तड़पाती जेठ क दपहर ु है,<br />

एक रात वंशी क गुंजत<br />

वरलहर है।<br />

एक मुखर याला है,<br />

एक मूक हाला है,<br />

एक बनी पतझर तो दजी हरयाली है।<br />

ू<br />

एक िलए यतम को िमलन गीत गाती है,<br />

एक वरह मृित सी मन को तड़पाती है।<br />

एक रात दपक सी योित जगमगाती है,<br />

एक अंधकार पीए भावना जगाती है।<br />

एक रात आह क,<br />

एक रात भाव क,<br />

एक जहर वाला तो एक सुधा याली है।<br />

एक रात रो-रोकर शबनम बखरती है,<br />

एक शरद पूनम म डू बी मदमाती है।<br />

एक रात सपन क लोरयां सजाती है,<br />

एक रात ददली नींद चुरा जाती है।<br />

एक रात कुं<br />

दन ह,<br />

एक रात मधुबन है,<br />

एक रात मती तो एक पीर वाली है।<br />

एक रात गाती है ऊं चे ासाद म,<br />

एक रात रोती है गंदे फू टपाथ म।<br />

रात वह होती हर बात वह होती है,<br />

रंग बदल कर के वल जीवन को धोती है।<br />

एक रात बचपन है,<br />

एक रात यौवन है,<br />

एक जरा झंझा तो एक मृयु याली है।<br />

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एक है, लेकन दो होकर मालूम पड़ रहा है। इधर दहे ह बारात सह रह और उधर कसी<br />

ू<br />

क अथ उठ रह। ये दो घटनाएं नहं ह; यह एक ह घटना है। यह सजती बारात, यह<br />

उठती अथ--एक ह िसके के दो पहलू ह। यह मान यह अपमान।<br />

और मन दो करके फर डांवांडोल होता है। जब हो गए तो यह कं क वह कं, ऐसा कं<br />

क वैसा कं ! फर हर चीज म खंडत हो जाता है मन।<br />

मह, ऐसा कु छ तुहारा ह मन नहं है। सबका मन ऐसा है। मन का ऐसा वभाव है। तुम<br />

कहते हो, बड़ डांवांडोल थित म हं। ू जब तक मन को पकड़े रहोगे , डांवांडोल थित<br />

रहेगी। साी बनो! चुनो ह मत, िसफ देखो। िसफ मन के खेल देखो। मन के जटल खेल<br />

पहचानो।<br />

और धीरे-धीरे, साी म जैसे ह ठहर जाओगे वैसे ह मन का ं वदा हो जाएगा। मन<br />

वदा हो जाएगा। सारा डांवांडोल पन चला जाएगा। चंचलता वलीन हो जाएगी। अिथरता खो<br />

जाएगी। तुम िथर हो जाओगे। और िथर होने म आनंद है। िथरता परमामा का वाद है।<br />

आज इतना ह।<br />

मेरे सतगुर कला िसखाई<br />

नौवां वचन; दनांक १६ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

जाके उर उपजी नहं भाई। सो या जानै पीर पराई।।<br />

यावर जाने पीर क सार। बांझ सर या लखे बकार।।<br />

पितता पित को त जानै। बभचारन िमल कहा बखानै।।<br />

हरा पारख, जौहार पावै। मूरख िनरख के कहा बतावै।।<br />

लागा घाव कराहै सोई। कोतगहार के दद न कोई।।<br />

रामनाम मेरा ान-अधार। सोइ रामरस-पीवनहार।।<br />

जन दरया जानेगा सोई। ेम क भाल कलेजे पोई।।<br />

जो धुिनयां तौ म भी राम तुहारा।<br />

अधम कमीन जाित मितहना तुम तौ हौ िसरताज हमारा।।<br />

काया का जं सद मन मुठया सुषमन तांत चढ़ाई।।<br />

गगन-मंडल म धुनुआं बैठा सतगुर कला िसखाई।।<br />

पाप-पान हर कु बुिध-कांकड़ा सहज सहज झड़ जाई।।<br />

घुंड<br />

गांठ रहन नहं पावै इकरंगी होय आई।।<br />

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इकरंग हआ भरा हर चोला हर कहै कहा दलाऊं ।।<br />

ु<br />

म नाह के हनत का लोभी बकसो मौज भ िनज पाऊं ।।<br />

करपा कर हर बोले बानी तुम तौ हौ मन दास।।<br />

दरया कहै मेरे आतम भीतर मेली राम भ-बतास।।<br />

तुम प-रािश म प-रिसक,<br />

अवगुंठन<br />

खोलो, दशन दो,<br />

मानस म मेरे आन बसो,<br />

कु टया मेर जगमग कर दो!<br />

युग-युग से यास िलए मन म,<br />

फरता आया इस-उस जग म,<br />

ठहराव कहं भी पा, न सका,<br />

अिभश रहा हर जीवन म!<br />

ण-भंगुर प दखा इत-उत,<br />

हर जगती म, हर जीवन म,<br />

तृणा-वाला जलती ह रह,<br />

हर जीवन म ितपल मन म।<br />

अब ार तुहारे आया हं<br />

ू,<br />

पिस, खोलो पट, दशन दो!<br />

तुम प-रािश म प-रिसक<br />

अबगुंठन<br />

खोलो, दशन दो,<br />

मानस म मेरे आन बसो,<br />

कु टया मेर जगमग कर दो!<br />

हो मधुप कु सुम सा णम-िमलन,<br />

रसमय पीड़ा का उेलन,<br />

परणम हो ाि कामना का,<br />

ाण-ाण का मधुर िमलन!<br />

सुन पाया मन तव आवाहन,<br />

रसिस, मदर, मृद ु उदबोधन,<br />

वंशी-विन का-सा आवादन,<br />

ज-विनताओं-सा उेलन!<br />

हषत पर शंकत, याकु ल मन,<br />

पिस, खोलो पट, दशन दो!<br />

तुम प-रािश म प-रिसक<br />

अवगुंठन<br />

खोलो, दशन दो<br />

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मानस म मेरे आन बसो<br />

कु टया मेर जगमग कर दो!<br />

युग-युग क संिचत आशाएं,<br />

यकर पावन अिभलाषाएं,<br />

िचर-सुख क सुंदर,<br />

आशाएं,<br />

िचर शांित-मु अिभलाषाएं!<br />

तन, मन, ाण क िनिधयां ले,<br />

मृद आद<br />

ु -काल क सुिधयां ले,<br />

दे सकता जो, वह सब-कु छ ले,<br />

अपना जो कु छ, वह सब कु छ ले--<br />

म अय िलए ारे आया,<br />

पिस, खोलो पट, दशन दो!<br />

तुम प-रािश, म प-रिसक,<br />

अवगुंठन<br />

खोलो, दशन दो<br />

मानस म मेरे आन बसो,<br />

कु टया मेर जगमग कर दो!<br />

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भ का दय एक ाथना है, एक अभीसा है--परमामा के ार पर एक दतक है।<br />

भ के ाण म एक ह अिभलाषा है क जो िछपा है वह कट हो जाए, क घूंघट<br />

उठे,<br />

क वह परम ेमी या परम ेयसी िमले! इससे कम पर उसक तृि नहं। उसे कु छ और<br />

चाहए नहं। और सब चाहकर देख भी िलया। चाह-चाह कर सब देख िलया। सब चाह यथ<br />

पाई। दौड़ाया बहत ु चाह ने,<br />

पहंचाया ु कहं भी नहं।<br />

जम-जम क मृगतृणाओं के अनुभव के बाद कोई भ होता है। भ अनंत-अनंत<br />

जीवन क यााओं के बाद खला फू ल है। भ चेतना क चरम अिभय है। भ तो<br />

के वल उहं को उपलध होती है जो बड़भागी ह। नहं तो हम हर बार फर उहं चकर म<br />

पड़ जाते ह। बार-बार फर कोह के बैल क तरह चलने लगते ह।<br />

ू<br />

मनुय के जीवन म अगर कोई सवािधक अवसनीय बात है तो वह यह है क मनुय<br />

अनुभव से कु छ सीखता ह नहं। उहं-उहं भूल को दोहराता है। भूले भी नई करे तो भी<br />

ठक; बस पुरानी ह पुरानी भूल को दोहराता है। रोज-रोज वह, जम-जम वह। भ का<br />

उदय तब होता है जब हम जीवन से कु छ अनुभव लेते ह, कु छ िनचोड़।<br />

िनचोड़ या है जीवन का?--क कु छ भी पा लो, कु छ भी पाया नहं जाता। कतना ह<br />

इकठा कर लो और तुम भीतर दर ह रहे आते हो। धन तुह धनी नहं बनाता--जब तक<br />

क वह परम धनी न िमल जाए, वह मािलक न िमले। धन तुह और भीतर िनधन कर<br />

जाता है। धन क तुलना म भीतर क िनधनता और खलने लगती है।<br />

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मान-समान, पद-िता, सब धोखे ह, आमवंचनाएं ह। कतना ह िछपाओ अपने भाव<br />

को--अपने घाव के ऊपर गुलाब के फू ल रखो दो; इससे घाव िमटते नहं। भूल भला जाए<br />

ण-भर को, भरते नहं। दसर ू को भला धोखा हो जाए,<br />

खुद को कै से धोखा दोगे? तुम तो<br />

जाने ह हो, जानते ह हो, जानते ह रहोगे क भीतर घाव है, ऊपर गुलाब का फू ल रखकर<br />

िछपाया है। सारे जगत को भी धोखा देना संभव है, लेकन वयं को धोखा देना संभव नहं<br />

है।<br />

जस दन यह थित गाढ़ होकर कट होती है, उस दन भ का जम होता है। और<br />

भ क याा वरह से शु होती है। यक भ के भीतर एक ह यास उठती है अहिनश--<br />

कै से परमामा िमले? कहां खोज उसे? उसका कोई पता और ठकाना भी तो नहं। कससे<br />

पूछ? हजार ह उर देनेवाले, लेकन उनक आंख म उर नहं। और हजार ह शा<br />

िलखनेवाले, लेकन उनके ाण म सुगंध नहं। हजार ह जो मंदर म, मजद म,<br />

गुारे म ाथनाएं कर रहे ह, लेकन उनक ाथनाओं म आंसुओं का गीलापन नहं है।<br />

उनक ाथनाओं म दय का रंग नहं है--खी ह, सूखी ह, मथल सी ह। और ाथना<br />

कहं मथल होती है? ाथना तो मान है; उस म तो बहत ु खलते ह,<br />

बहत ु सुवास<br />

उठती है।<br />

हां, बाहर क आरती तो लोग ने सजा ली है, लेकन भीतर कर दया बुझा है। और बाहर<br />

तो धूप-दप का आयोजन कर िलया है और भीतर सब शूय है, र है। भ तो यह पीड़ा<br />

खलती है। भ झूठ भ से अपने मन को बहला नहं सकता। ये खलौने अब उसके काम<br />

के न रहे। अब तो असली चाहए। अब कोई नई चीज उसे न भा सकती है, न भरमा सकती<br />

है, तो गहन वरह क आग जलनी शु होती है। यास उठती है, और चार तरफ झूठे<br />

पानी के झरने ह। और जतनी झूठे पानी के झरने को पहचाने होती है, उतनी ह यास<br />

और गाढ़ होती है। एक घड़ ऐसी आती है, जब भ धू-धू कर जलती हई एक यास ह<br />

ु<br />

रह जाता है। उस यास के संबंध म ह ये यारे वचन दरया ने कहे ह।<br />

जाके उर उपजी नहं भाई। सो या जाने पीर पराई।।<br />

यह वरह ऐसा है क जस दय म उठा हो वह पहचान सके गा। यह पीर ऐसी है। यह<br />

अनूठ पीड़ा है! यह साधारण पीड़ा नहं है। साधारण पीड़ा से तो तुम परिचत हो। कोई है<br />

जसे धन क यास है। और कोई जसे पद क यास है। िमलता तो पीड़ा भी होती है<br />

बाहर क पीड़ाओं से तो तुम परिचत हो, लेकन भीतर क पीड़ा को तो तुमने कभी उघाड़ा<br />

नहं। तुमने भीतर तो कभी आंख डालकर देखा ह नहं क वहां भी एक पीड़ा का िनवास है।<br />

और ऐसी पीड़ा का क जो पीड़ा भी है और साथ ह बड़ मधुर भी। पीड़ा है। यक सारा<br />

संसार यथ मालूम होता है। और मधुर, यक पहली बार उसी पीड़ा म परमामा क धुन<br />

बजने लगती है। पीड़ा...जैसे छाती म कसी ने छु रा भक दया हो! ऐसा बधा रह जाता है<br />

भ।<br />

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लेकन फर भी यह पीड़ा सौभाय है। यक इसी पीड़ा के पार उसका ार खुलता है, उसके<br />

मंदर के पट खुलते ह। यह पीड़ा खुली भी है और िसंहासन भी। इधर सूली उधर िसंहासन।<br />

एक तरफ सूली दसर ू तरफ िसंहासन। इसिलए पीड़ा बड़ रहयमय है। भ रोता भी है,<br />

लेकन उसके आंसू और तुहारे आंसू एक ह जैसे नहं होते। हां, वैािनक के पास ले<br />

लाओगे परण करवाने, तो वह तो कहेगा एक ह जैसे ह। दोन खारे ह--इतना कम है,<br />

इतना जल है, इतना-इतना या-या है, सब वेषण कर के बता देगा। भ के आंसुओं<br />

म और साधारण दख के आंसुओं म वैािनक को भेद दखाई न पड़ेगा।<br />

ु<br />

इसिलए वैािनक परम मूय के संबंध म अंधा है। तुम तो जानते हो आंसुओं आंसुओं का<br />

भेद। कभी तुम आनंद से भी रोए हो। कभी तुम दख से भी रोए हो। कभी ोध से भी रोए<br />

ु<br />

हो। कभी मती से भी रोए हो। तुह भेद पता है, लेकन भेद आंतरक है। यांक है, बा<br />

नहं है। इसिलए बाहर क कसी विध क पकड़ म नहं आता।<br />

फर भ के आंसू तो परम अनुभूित है, जो दय के पोर-पोर से रसती है। उस म पीड़ा है<br />

बहत ु , यक परमामा को पाने क अभीसा जगी है। और उस म आनंद भी है बहत ु ,<br />

यक परमामा को पाने क अभीसा जगी है। परमामा को पाने क आकांा का जग<br />

जानी ह इतना बड़ा सौभाय है क भ नाचता है। यह तो के वल थोड़े से सौभायशािलय<br />

को यह पीड़ा िमलती है। यह अिभशाप नहं है, यह वरदान है। इसे वे ह पहचान सक गे<br />

जहने इसका थोड़ा वाद िलया।<br />

जाके उर उपजी नाहं भाई! और यह पीड़ा मतक म पैदा नहं होती। यह कोई मतक<br />

क खुजलाहट नहं है। मतक क खुजलाहट से दशन शा का जम होता है। यह पीड़ा<br />

तो दय म पैदा होती है। इस पीड़ा का वचार से कोई नाता नहं है। यह पीड़ा तो भाव क<br />

है। इस पीड़ा को कहा भी नहं जा सकता। वचार य हो सकते ह, भाव अय ह रहते<br />

ह। वचार को दसर से िनवेदन कया जा सकता है और िनवेदन करके आदमी थोड़ा हका<br />

ू<br />

हो जाता है। कसी से कह लो। दो बार कर लो। मन का बोझ उतर जाता है। पर यह पीड़ा<br />

ऐसी है क कसी से कह भी नहं सकते। कौन समझेगा? लोग पागल समझगे तुह।<br />

कल एक जमन महला ने संयास िलया। एक शद न बोल सक। शद बोलने चाहे तो<br />

हंसी, रोई, हाथ उठे, मुाएं बनीं। खुद चक भी बहत<br />

ु , यक शायद पागल समझा जाए।<br />

कहं और होती तो पागल समझी भी जाती। मने उससे कहा भी क अगर जमनी म ह होती<br />

तू, और कसी के उर म ऐसा करती तो पागल समझी जाती। तू ठक जगह आ गई।<br />

यहां तुझे पागल न समझा जाएगा। यहां तुझे धयभागी, बड़भागी समझा जाएगा। रोती है,<br />

डोलती है। हाथ उठते ह, कु छ कहना चाहते ह। ओठ खुलते ह, कु छ बोलना ह। मगर वचार<br />

हो तो कह दो, भाव हो तो कै से कहो?<br />

इसिलए ससंग का मूय है। ससंग का अथ है: जहां तुम जैसे और दवाने भी िमलते ह।<br />

ससंग का अथ है: जहां चार दवाने िमलते ह, जो एक-दसरे ू का भाव समझगे;<br />

जो एक-<br />

दसरे ू के भाव के ित सहानुभूित ह नहं समानुभूित भी अनुभव करगे ; जहां एक के आंसू<br />

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दसरे ू के आंसुओं को छे ड़ दगे;<br />

और जहां एक का गीत, दसरे ू के भीतर गीत क गूंज<br />

बन<br />

जाएगा; और जहां एक नाच उठे गा तो शेष तो भी पूल से भर जाएंगे, जहां एक ऊजा उन<br />

सब को घेर लेगी।<br />

ससंग अनूठ बात है। ससंग का अथ है जहां पयकड़ िमल बैठे ह। अब जहने कभी पी<br />

ह नहं शराब, वे तो कै से समझगे? और बाहर क शराब तो कहं भी िमल जाती है। भीतर<br />

क शराब तो कभी-कभी, मुकल से िमलती है। यक भीतर क शराब जहां िमल सके,<br />

ऐसी मधुशालाएं ह कभी-कभी सैकड़ साल के बाद िनिमत होती ह। कसी बु के पास,<br />

कसी नानक, कसी दरया के पास, कसी फरद के पास, कभी ससंग का जम होता है।<br />

ससंग कसी जात पुष क हवा है। ससंग कसी जात पुष के पास तरंगाियत भाव क<br />

दशा है। ससंग कसी के जले हए दए क रोशनी है। उस रोशनी म जब चार दवाने बैठ<br />

ु<br />

जाते ह और दय जुड़ता है और दय से दय तरंिगत होता है, तभी जाना जा सकता है।<br />

दरया ठक कहते ह। और तुम जरा भी समझ लो इस पीर को, इस पीड़ा का, तो तुहारे<br />

जीवन म भी अमृत क वषा हो जो। अमी झरत, बगसत कं वल! झरने लगे अमृत और<br />

खलने लगे कमल आमा के । मगर इस पीड़ा के बना कु छ भी नहं है। यह सव पीड़ा है।<br />

जाके उर उपजी नहं भाई। सो या जाने पीर पराई।<br />

हर समय तुहारा यान, ये,<br />

मन उेिलत, आकु ल ितपल,<br />

छू पाती मन के तार को,<br />

मेर िनवर मनुहार वकल?<br />

अनुरागमयी, कह दो, कह दो,<br />

आासन के दो शद सरस,<br />

दो बूंद<br />

सह, मधु तो दे दो,<br />

धुल जाए मन म कं िचत दस!<br />

यह यथा क जसका अंत नहं,<br />

यह तृषा क पल भर चैन नहं,<br />

मधु-घट समुख, मधुदान नहं!<br />

यह याय नहं, यह याय नहं!<br />

मधुदान उिचत, ितदान उिचत,<br />

मन ाण तृत, अनुराग वकल!<br />

हर समय तुहारा यान, ये,<br />

मन उेिलत, आकु ल ितपल,<br />

छू पीती मन के तार को,<br />

मेर िनवर मनुहार वकल?<br />

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उठता है यह भ के मन म बहत ु बार,<br />

क जो म कह नहं पाता, वह परमामा तक<br />

पहंचता ु होगा?<br />

जो म बोल ह नहं पाता, वह सुन पाता होगा? जो ाथना मेरे ओठ तक<br />

नहं आ पाती, वह उसके कान तक पहंचती ु होगी?<br />

लेकन जाननेवाले कहते ह: वे ह ाथनाएं पहंचती ु ह के वल,<br />

जो तुहार ओठ तक नहं आ<br />

पातीं। जो तुहारे ओंठ तक आ गई, वे उसके कान तक नहं पहंचती। जो तुहारे शद तक<br />

ु<br />

आ आई, वे यहं पृवी पर िगर जाती ह। जो िनःशद ह, उन म ह प होते ह। वे ह<br />

उड़ती ह। वे ह उड़ती ह आकाश म। जो िनःशद ह, वे िनभार ह। शद का भार होता है।<br />

शद भार होते ह। शद गुवाकषण का भाव होता है। शद को जमीन अपनी ओर खींच<br />

लेती है। यहं तड़फड़ा कर िगर जाता है। उस तक तो िनःशद म ह पहंच सकते हो। उस<br />

ु<br />

तक तो शूय म उठे हए भाव ह याा कर पाते ह।<br />

ु<br />

यावर जाने पीर क सार।...कु छ ांत लेते ह दरया सीधे-सादे आदमी ह। धुिनया ह। कु छ<br />

पढ़े-िलखे नहं ह बहत। ठक कबीर जैसे धुिनया ह। लेकन इन दो धुिनय ने न मालूम<br />

ु<br />

कतने पंडत को धुन डाला है! कु छ बड़े-बड़े शद नहं ह,<br />

शाीय शद नहं ह--सीधे-सादे, लोग क समझ म आ सक ...।<br />

यावर जाने पीर क सार। कहते ह: जसने बचे को जम दया हो, वह ी जानती है<br />

सव क पीड़ा को। और जसने अपने दय म परमामा को जम दया हो वह जानता है<br />

भ क पीड़ा को।<br />

यावर जाने पीर क सार! कठन है! जस ी ने अभी बचे को जम नहं दया, वह<br />

समझ भी तो कै से समझे?--क नौ महने बचे को गभ म ढोना, वह भार...वमन,<br />

उटयां। भोजन का करना मुकल। चलना, उठना बैठना, सब मुकल है। और फर भी<br />

एक आनंद-मगनता!<br />

तुमने गभवती ी क आंख म देखा है? पीर नहं दखाई पड़ती, पीड़ा नहं दखाई पड़ती--<br />

एक अहोभाव, धयभाव। तुमने उसके चेहरे क आभा देखी? एक साद! गभवती ी म एक<br />

अपूव सदय कट होता है। उसके चेहरे से जैसे दो आमाएं झलकने लगती ह। जैसे उसके<br />

भीतर दो दए जलने लगते ह एक क जगह। देह कतनी ह पीड़ा से गुजर रह हो, उसको<br />

आमा आनंदमन हो नाचने लगती है। मां बनने का ण करब आया। फलवती होने का<br />

ण करब आया। अब फू ल लगगे, वसंत आ गया। और वसंत म वृ नाच उठते ह और<br />

मत हो उठते ह--ऐसे ह गभवती ी मत हो उठती है। यप कठन है याा, कपूण है<br />

याा--नौ महने...।<br />

और गभवती ी क तो याा नौ महने म पूर हो जाती है; लेकन जह अपने भीतर बु<br />

को जम देना है, जह अपने भीतर परमामा को जम देना है, उसक तो कोई िनयित-<br />

सीमा नहं है। नौ महने लगगे, क नौ वष लगगे क नौ जम लग जाएंगे, कोई कु छ कह<br />

सकता नहं है। कोई बंधा हआ ु समय नहं है। तुहार वरा,<br />

तुहार तीता, तुहार<br />

तमयता, तुहार समता पर िनभर है।<br />

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कतने ाणपण से जुटोगे, इस पर िनभर है। नौ ण म भी हो सकता है, नौ महने म भी<br />

न हो, नौ जम भी यथ चले जाए। समय बाहर से िनणत नहं है। समय तुहारे भीतर से<br />

िनणत होगा। कतने विलत हो? कतने धू-धू कर जल रहे हो?<br />

यावर जाने पीर क सार। बांझ नार या लखे वकार।।<br />

जसने कभी बचे को जम नहं दया, उसे तो िसफ इतना ह दखाई पड़ता होगा--कतनी<br />

मुसीबत म पड़ गई बेचार गभवती ी को देखकर उसे लगता होगा--कतनी मुसीबत म पड़<br />

गई बेचार! उसे तो पीड़ा ह पीड़ा दखाई पड़ती होगी। वाभावक भी है। लेकन पीड़ा म एक<br />

माधुय ह, एक अंतरनाद है। वह तो उसे नहं सुनाई पड़ सकता। वह तो िसफ अनुभोा का<br />

ह एक है, अिधकार है।<br />

पितता पित को त जानै। जसने कसी को ेम कया है। और जसने कसी को ऐसी<br />

गहनता से ेम कया है उसके ेमी के अितर उसे संसार म कोई और बचा ह नहं है;<br />

जसने सारा ेम कसी एक के ह ऊपर िनछावर कर दया है; जसके ेम म इतनी<br />

आमीयता है, इतना समपण है क अब इस ेम के बदलने का कोई उपाय नहं है--ऐसी<br />

शात है क अब कु छ भी हो जाए, जीवन रहे क जाए, मगर ेम िथर रहेगा। जीवन तो<br />

एक दन जाएगा, लेकन ेम नहं जाएगा। जीवन तो एक दन िचता पर चढ़ेगा, लेकन<br />

ेम का फर कोई अंत नहं है। जसने कसी एक को, इतनी अनयता से चाहा है, इतनी<br />

परपूणता से चाहा है, वह जान सकता है ेम क, ीित क पीड़ा।<br />

बभचारन िमल कहा बखानै! लेकन जसने कभी कसी से आमीयता नहं जानी, कसी से<br />

ेम नहं जाना; जो णभंगुर म ह जीया है...।<br />

वेया से पूछने जाओगे पितता के दय का राज, तो कै से बताएगी? वह उसका अनुभव<br />

नहं है। पितता का राज तो पितता से पूछना होगा। और फर भी पितता बता न<br />

सके गी। या बताएगी? गूंगे<br />

का गुड़! बोलो तो बोल न सको। हां, पितता के पास रहोगे तो<br />

शायद थोड़-थोड़ झलक िमलनी शु हो। उसका अनय ेम-भाव देखो तो शायद झलक<br />

िमलनी शु हो। उसका सम समपण देखो तो शायद झलक िमलनी शु हो।<br />

हरा पारख जौहर पावै। मूरख िनरख के कहा बतावै। हरा हो तो पारखी जान सके गा। मूरख<br />

देख भी लेगा तो भी या बताएगा? यह वचन यारा है।<br />

म तुमसे कहता हं<br />

ू: परमामा को तुमने भी देखा है, मगर पहचान नहं पाए। ऐसा कै से हो<br />

सकता है क परमामा को न देखा हो! ऐसा तो हो ह नहं सकता। हरा न देखा हो, यह हो<br />

सकता है। लेकन परमामा न देखा हो, यह नहं हो सकता। यक हरे तो कभी कहं<br />

मुकल से िमलते ह। परमामा तो सब तरफ मौजूद है। वृ के पे-पे म उसके हतार<br />

ह। कं कड़-कं कड़ पर उसक छाप। पथर-पथर म उसक ितमा। पी-पी म उसके गीत।<br />

हवाएं जब वृ से गुजरती ह, तो उसक भगवदगीता। और आकाश म जब बादल िघर आते<br />

ह और गड़गड़ाने लगते ह, तो उसका कु रान। और झरन म जब कल-कल नाद होता है, तो<br />

उसके वेद! तुम बचोगे कै से? और जब सूरज िनकलता है तो वह िनकलता है। और जब रात<br />

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चांद क चांदनी बरसने लगती है, तो वह बरसता है। मोर के नाच म भी वह है। कोयल<br />

क कु हू-कु ह ू म भी वह है। मेरे बोलने म वह है,<br />

तुहारे सुनने म वह है। उसके अितर<br />

तो कोई और है ह नहं।<br />

ऐसा तो कभी पूछना ह मत क परमामा कहां है। ऐसा ह पूछना क परमामा कहां नहं<br />

है। तो यह तो हो ह कै से सकता क तुमने परमामा को न देखा हो? रोज-रोज देखा है। हर<br />

घड़ देखा है। हर घड़ उसी से तो मुठभेड़ हो जाती है!<br />

कबीर से कसी ने कहा क अब तुम परम ान को उपलध हो गए; अब बंद कर दो यह<br />

दन रात कपड़े बुनना और फर बाजार बेचने जाना।...शोभा भी नहं देता। हजार तुहारा<br />

िशय ह, हम तुहार फकर कर लगे। तुहारा ऐसा खच भी या है? दो रोट हम जुटा<br />

दगे। हमारे मन म पीड़ा होती है क तुम कपड़ा बुनो और फर कपड़े बचने बाजार जाओ।<br />

लेकन कबीर ने कहा क नहं-नहं। फर राम का या होगा? उहने पूछा: कौन राम?<br />

उहने कहां: वे जो ाहक म िछपे हए ु राम आते ह,<br />

उनके िलए कपड़े बुनता हं ू<br />

कबीर जब बनारस के बाजार म बैठकर और कपड़े बेचते थे, तो हर ाहक से कहते थे:<br />

राम! सहालकर रखना। बहत ु ेम से बुना है। झीनी-झीनी<br />

रे बीनी चदरया! इस म बहत ु रस<br />

डाला है। इस म ाण उं डेले ह।<br />

गोरा कु हार ान को उपलध हो गया, लेकन घड़े बनाता रहा सो तो बनाता ह रहा।<br />

कसी ने कहा गोरा कु हार को: अब तो बंद कर दो घड़े बनाने। तुम बुव को उपलध हो<br />

गए। इतने तुहारे िशय ह।<br />

गोरा कु हार ने कहा: म कु हार और परमामा भी कु हार। उसने घड़े बनाने बंद नहं कए,<br />

म कै से कर दंू? वह बनाए जाता है। म भी बनाए जाऊं गा। और घड़े कनके िलए बनाता हं<br />

ू--<br />

उसके िलए ह बनाता हं<br />

ू! जब तक हं<br />

ू, जो भी सेवा बन सके उसक...<br />

गोरा क कसी ने कभी मंदर जाते नहं देखा, पूजा-ाथना करते नहं देखा; लेकन घड़े<br />

बनाते जर देखा। और जब गोरा िमट कू टता था अपने पैर से, िमट रदता था, तो<br />

उसक मती देखने जैसी थी! सैकड़ लोग देखने इकठे हो जाते थे। िमट या कू टता था,<br />

जैसे मीरा नाचते थी ऐसे ह नाचता था! ऐसा ह मत, ऐसा ह दवाना...उस िमट म भी<br />

मती आ जाती होगी! उसके बनाए गए घड़ म शराब भरने क जरत न पड़ती होगी--शराब<br />

भर ह होती होगी। उनके सूनेपन म भी शराब भर होती होगी। उनके खालीपन म भी रस<br />

भरा होता होगा।<br />

हरे को तो पारखी देखेगा, परखी समझेगा! मूख िनरख के कहा बतावै। लेकन कसी मूख<br />

को दखा दया तो वह या बताएगा? देख भी लेगा तो भी चुप रहेगा। उसको तो कं कड़-<br />

पथर ह दखाई पड़ते ह।<br />

आदमी को वह दखाई पड़ता है जतनी उसक देखने क मता होती है। हमार सृ हमार<br />

से सीिमत रहती है। जतनी बड़ उतनी बड़ सृ। जब इतनी असीम होती है<br />

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क उसक कोई सीमा नहं, तब सृ खो जाती है और ा दखाई देता है। जब तुहार<br />

असीम होती है, तो असीम से तुहारा सााकार होता है।<br />

सघन आवेग के बादल दय-आकाश म जब,<br />

सजल अनुभूित लेकर डोलते ह।<br />

रंगीली कपना के तब पपािसत भाव पंछ,<br />

अधर म गीत सा पर खोलते ह।<br />

अधूरे वमरण सा शांितमय वातावरण म,<br />

वचार का पवन जब सहम कर िनास भरता।<br />

नयन क पुतिलय म इंधनुषी रंग लेकर<br />

छली सपना अजाने िच सा बनकर उभरता।<br />

जलन क वेदना से दिमत नीरव नीड़ सूने,<br />

यथा क टस भरकर बोलते ह।<br />

सुहानी गंध जैसी ाण म उछवास भरती,<br />

कसी क याद जब अमराइय सा फू लाती है।<br />

उभरता मौन मधु उलास सावन सा सलोना,<br />

मृदल मन क मधुरता छंद बनकर झूलती है।<br />

ु<br />

सुखद मन के सुकोमल शद विन के पग भरकर,<br />

सधी क सी पं बनकर झूलते ह।<br />

तृषा रत जब कुं<br />

आरा ुध घुटता मौन चातक,<br />

हरत धरती दहन सी मांग भरती देखता है।<br />

ु<br />

णय क अचना म साधना-अंगार खाकर,<br />

वासी वाित को लय म वलय हो टेरता है।<br />

वरह क सांस म भरकर उदासी िचर िमलन क,<br />

िनलय म वन सतरंग घोलते ह।<br />

सघन आवेग के बादल दय आकाश म जब,<br />

सजल अनुभूित लेकर डोलते ह।<br />

रंगीली कपना के तब पपािसत भाप पंछ,<br />

अधर म गीत सा पर खोते ह।<br />

जैसे-जैसे तुहारे भाव क सघनता होती है, जैसे-जैसे तुहारे भाव क गहनता होती है,<br />

वैसे-वैसे अतव रहयमय होने लगता है। वैसे-वैसे पद उठते ह। वैसे-वैसे सय भी नन<br />

होता है। वैसे-वैसे कृ ित अपने भीतर िछपे परमामा को कट करने लगती है।<br />

लागा घाव कराहै सोई। जसको घाव लगा है, वह कराहता है। कोतगहार के दद न कोई।<br />

तमाशा देखनेवाले को तो कोई दद नहं होता तुम जंदगी म अब तक तमाशा देखनेवाले रहे<br />

हो। जंदगी म डुबक मारो। कनारे कब से खड़े हो! कनारे पर ह जीना है और कनारे पर<br />

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ह मरना है? और यह घुमड़ता सागर तुह िनमंण दे रहा है। और ये उठती हई ु तरंग,<br />

चुनौती ह क छोड़ो अपनी नाव। नहं कोई नशा है पास, माना; मगर नशा िसफ नामद<br />

पूछते ह। मद तो अनंत म, अान म, अपनी छोट सी डगी लेकर उतर जाते ह।<br />

खोजने का आनंद इतना है क उसम अगर कोई खुद भी खो जाए तो हज नहं। खोजने का<br />

आनंद ह इतना है क खुद को भी समपत कया जा सकता है। और यह भी समझ लेना,<br />

जो खुद को खोने को राजी नहं है, वह कभी खोज नहं पाएगा। जो इस बात के िलए राजी<br />

है क अगर यह नौका डूब जाएगी मझधार म तो मझधार ह मेरा कनारा होगा--वह के वल<br />

परमामा के वराट सागर म अपनी नौका को छोड़ सकता है और वह अभी उसे पाने मग<br />

समथ हो सकता है।<br />

लागा घाव कराहै सोई। कोतगहार के दद न कोई।।<br />

लेकन लोग िसफ तमाशबीन ह। वे बु को उतरते भी देखते ह सागर म। तरंग पर, लहर<br />

पर जीतते भी देखते ह; फर भी कनारे पर ह खड़े देखते रहे ह। दर से नमकार भी कर<br />

ू<br />

लेते ह, मगर पैर नहं रखते ह। एक कदम नहं उठाते! पैर रखना तो दरू , कनारे पर पैर<br />

गड़ाकर खड़े होते ह क कसी भूल-चूक के ण म, अपने बावजूद, कभी कसी दवाने क<br />

बात म आकर कहं उतर न जाए। तो जंजीर बांध रखते ह। पैर म जंजीर बांध देते ह।<br />

अपने पर इतना भी भरोसा तो नहं है। हो सकता है कसी क बात मन को आंदोिलत कर<br />

दे, कोई तार िछड़ जाए भीतर। कोई साया भाव जगा दे। और कहं ऐसा हो जाए क उतर<br />

ह न जाऊं । फर उतर जाऊं तो पछताऊं । उतर जाऊं तो लौटने का भी तो पता नहं क लौट<br />

जाऊं ।<br />

इसिलए कनारे पर लोग ने पैर गड़ा िलए ह जमीन म। खूंटे<br />

गाड़ िलए ह। खूंट<br />

से जंजीर<br />

बांध ली ह।<br />

तुम जरा खुद ह गौर से देखो, तुमने कतनी जंजीर बांध रखी ह! और लोग जंजीर के<br />

बहाने चुनौितय को इनकार करते रहते ह।<br />

मेरे पास लोग आते ह, वे कहते ह: संयास तो लेना है, मगर अभी नहं ले सकता। अभी<br />

तो बेटे का ववाह करना है। जब बेटे का ववाह हो जाएगा तब लूंगा।<br />

अभी संयास ले लूं<br />

कहं बेटे के ववाह म अड़चन न पड़े। और कल अगर मौत आ गई तो या तुम सोचते हो<br />

क बेटे का ववाह के गा? तो या तुम सोचते हो क तुहार मौत से कु छ बाधा पड़ जाने<br />

वाली है? और मौत आ गई तो फर या करोगे?<br />

नहं, लेकन कोई यह सोचता ह नहं क म कभी मरने वाला हं। लोग सोचते ह सदा दसरे<br />

ू ू<br />

मरते ह। मौत हमेशा कसी और क होती है, मेर नहं। म तो सदा बचता हं। यह तो कोई<br />

ू<br />

सोचता ह नहं क कल मौत हो सकती है। और जसने यह नहं सोचा है क कल मौत हो<br />

सकती है, वह आज के िनमंण को वीकार न कर सके गा, कल पर टालेगा। वह कहेगा:<br />

और कु छ काम-धाम िनपटा लूं।<br />

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बु एक गांव से तीस साल तक गुजरे, कई बार गुजरे। वह उनके राते म पड़ता था,<br />

ावती आते-जाते। उस गांव म एक वणक था। तीस साल म बु नहं तो कम से कम<br />

साठ बार उस गांव से गुजरे। लेकन वह िमलने न जा सकता सो न जा सका; जाना चाहता<br />

था। जवान था जब से जाना चाहता था। बूढ़ा हो गया तब तक नहं गया। जस दन उसे<br />

खबर िमली क अब बु ाण छोड़ रहे ह, देह छोड़ रह ह, उस दन भागा हआ पहंचा।<br />

ु ु<br />

लोग ने पूछा: इस गांव से बु इतनी बार िनकले ह, तू कभी गया नहं? उसने कहा: कोई<br />

न कोई बहाना िमल गया। आज म जानता हं क वे बहाने थे। क घर से िनकल ह रहा था<br />

ू<br />

क कोई ाहक आ गया।<br />

उस समय कोई गुमाता कानून तो था नहं क कतने बजे दकान ु खोलनी है,<br />

कतने बजे<br />

दकान ु बंद करनी है। जब तक ाहक आते रह, दकान ु खुली रहे। अब एक ाहक आ गया,<br />

बंद ह कर रहा था दकान<br />

ु , तो उसने सोचो क अब अगली बार जब बु िनकलगे तब<br />

िनपट लूंगा;<br />

यह ाहक अगली बार आए क न आए...। हाथ आए ाहक को छोड़ना...।<br />

कभी बु गांव आए, घर म मेहमान थे। तो इनक सेवा करनी है क बु से िमलने जाऊं?<br />

कभी बु आए तो पी बीमार थी। कभी बु आए तो बचा हआ था घर म। क बु आए<br />

ु<br />

तो ऐसा, क बु आए तो वैसा...बेट का ववाह था। कभी बु आए तो पड़ोस म कोई मर<br />

गया, तो उसक अथ म जाऊं क बु को सुनने जाऊं? ऐसे आते ह रहे बहाने, आते ह<br />

रहे।<br />

और ये सब तुहारे ह बहाने ह, याद रखना। वह आदमी तुहारे सारे बहान को इकठा<br />

बता रहा है। तीस साल... और लोग चूकते गए! और कभी-कभी तो ऐसी छोट-छोट बात से<br />

चूकते ह जसका हसाब नहं।<br />

लमी अभी दली गई। एक मंी से िमली। तो मंी ने कहा: म आया था आम म ार<br />

तक। ार से मने झांककर भीतर देखा तो वहां चार-छह लोग देखे जो मुझे पहचानते ह।<br />

इसिलए ार से ह लौट पड़ा। दली से िसफ आम के ह िलए आया था। लेकन यह<br />

देखकर क दो दो-चार आदमी वहां मौजूद थे, जो मुझे पहचानते ह..। तो अफवाह उड़<br />

जाएगी, अखबार म खबर पहंच जाएगी।<br />

ु<br />

और मेरे साथ नाम जोड़ना खतरे से खाली नहं है। न मालूम कतने मंी खबर भेजते ह क<br />

हम समझते ह और हम चाहते ह क कसी तरह आपके काम म कसी भी कार से हम<br />

सहयोगी हो सक; लेकन हम कट प से कु छ भी नहं कर सकते।<br />

हम कट प से यह कह भी नहं सकते।<br />

यहां न मालूम कतने संसद-सदय आए और गए। और अभी जब संसद म मेरा संबंध म<br />

ववाद चला, तो उनम उसे एक नहं बोला। मने पूर फे हरत देखी क जो यहां आए और<br />

गए, उनम से कोई बोला क नहं? जो यहां आए और गए, उन म से एक भी नहं बोला।<br />

यहां कहकर गए थे क हम आपके िलए लड़गे। लड़ने क तो बात दरू , बोले नहं। यक<br />

यह भी पता चल जाए क यहां आए थे, या मुझसे कु छ नाता है, या मुझसे संबंध ह, या<br />

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मुझसे कु छ लगाव है--तो खतरे से खाली बात नहं है। जो बोले, उन म से कोई यहां आया<br />

नहं है। उन म से कसी ने कोई मेर कताब नहं पढ़, मुझे सुना नहं है।<br />

अब यह बड़े मजे क बात है, घंटेभर ववाद चला, उस म बोलने वाले एक भी मुझसे<br />

परिचत नहं ह। और जो परिचत ह और बहत ु परिचत ह,<br />

वे चुप रहे। दरवाजे से लौट<br />

जाए कोई--िसफ यह देखकर क कोई पहचान के लोग दखाई पड़ते ह! खबर उड़<br />

जाएगी...कै से-कै से बहाने आदमी खोज लेता है! और कै से ु बहान के कारण कतनी अनंत<br />

संभावनाओं से वंिचत रह जाता है।<br />

अब जो आदमी दली से यहां तक आया कु छ न कु छ यास थी। लेकन यास को दबाकर<br />

लौट गया।<br />

और यह हमार सद तो तमाशबीन क सद है। दिनया इतनी तमाशबीन कभी भी नहं थी।<br />

ु<br />

आधुिनक टेनालाजी ने आदमी को बलकु ल तमाशबीन बना दया। अगर तुम आदवािसय<br />

से िमलने जाओ, तो जब उह नाचना होता ह वे नाचते ह। नाच देखते नहं, नाचते ह।<br />

और जब उह गाना होता है तो गाते ह, अपना अलगोजा बजाते ह। लेकन तुह जब नाच<br />

देखना होता है तो तुम नाचते नहं; तुम फम देखने जाते हो। या कसी नतक को<br />

िनमंत कर देते हो। या अगर टेलीवजन घर म है तब तो कहं जाने क जरत नहं। और<br />

तब तुह गीत सुनने का मन होता है तो तुम ामोफोन रकाड चढ़ा देते या रेडयो खोल देते<br />

हो या रकाड लेयर...। कोई गाता है, कोई नाचता है, तुम िसफ देखते हो। तुम िसफ<br />

तमाशबीन हो। फु टबाल का खेल, लाख लोग चले देखने। के ट का खेल, लाख लोग<br />

दवाने ह। खेलता कोई और है। पेशेवर खलाड़, जनका धंधा खेलना है।<br />

मेरा एक संयासी है यहां। पेशेवर खलाड़ है। पेशेवर खलाड़ है, तो अमरका ने उसे<br />

िनमंण दया है क तुम अमरका ह आकर बस जाओ। तो वह अमरका रहा। फर कसी<br />

तरह मेर सुगंध उसे लग गई। यहां चला आया। अब उसे जाना नहं है। तो अब बड़ मुकल<br />

ह, वह रहे यहां कै से? टेिनस का खलाड़ है, अदभुत खलाड़ है! तो यहां के टेिनस के<br />

खलाड़य ने कहा: तुम फकर मत करो! अगर तुम रहना चाहो, सरकार से हम सब<br />

इंतजाम करवाएंगे। हम सब इंतजाम करगे तुहारे रहने खाने-पीने, तनवाह का। तुम यहं<br />

रह जाओ। तुहारा रहना तो सौभाय क बात है। अब सब चीज पेशेवर हो गई है! दो<br />

पहलवान लड़ रहे ह, सारे लोग चले...। अमरका म लोग पांच-पांच, छह-छह घंटे टेलीवजन<br />

के सामने बैठे ह। बस देख रहे ह! धीरे-धीरे सब चीज देखने क होती जा रह है।<br />

अब ेम तुम करते नहं; फम म देख आते हो लोग को ेम करते। अब तुह करने क<br />

या झंझट? यक ेम क झंझट ह बहत। ु फम म देख आए,<br />

बात खम हो गई।<br />

िनत आकर सो गए।<br />

यह सद तमाशबीन क सद है। और जब सब चीज के संबंध म तुम तमाशबीन हो गए हो<br />

तो परमामा के संबंध म तो बुत ह यादा। यक परमामा तो आखर बात है। मुकल<br />

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से उसक खोज पर कोई िनकलता है। अब तो यहां खोज का सवाल ह नहं है। अब तो हर<br />

चीज कोई दसरा ू तुहारे िलए कर देता है,<br />

तुम देख लो।<br />

परमामा के संबंध म तो तुह तमाशबीन नहं रहना होगा। वहां तो भागीदार बनना होगा।<br />

वहां तो नाचना होगा, गाना होगा, रोना होगा, भाव-वभोर होना होगा। वहां तो संयु होना<br />

होगा।<br />

यहां लोग आते ह। म उनसे पूछता हं<br />

ू: कोई यान कया? वे कहते ह क नहं, अभी तो<br />

हम िसफ देखते ह। या देखोगे? यान कभी कसी ने देखा है? यान कोई वतु है जो तुम<br />

देख लोगे? नहं; वे कहते ह, हम दसर को यान करते देखते ह। दसर को धन करते<br />

ू ू<br />

देखते हो तुम या देखोगे? कोई नाच रहा है, तो नाच दखाई पड़ेगा, यान थोड़ा ह<br />

दखाई पड़ेगा। यान तो अंतर दशा है। वह तो जो नाच रहा है, उसके अंतरतम म घटत<br />

होगा। तुम उसे नहं देख सकोगे। तुम तो नाचने वाले को देखकर लौट आओगे। और तुम<br />

सोचोगे मन म--नाच और यान! ये दोन एक कै से हो सकते ह? नाच का यान से या<br />

लेना-देना है?<br />

तुमने नाचने वाले तो बहत देखे ह। नाच बना यान के हो सकता है। और यान भी बना<br />

ु<br />

नाच के हो सकता है। और यान और नाच साथ-साथ भी हो सकते ह। बु ने िसफ यान<br />

कया, उस म नाच नहं है। मीरा नाची भी और यान भी कया। उस म दोन संयु ह।<br />

मीरा बु से थोड़ा यादा धनी है। उसके यान म एक और लहर, एक और तरंग है। बु<br />

का यान शांत है। बु संगममर क ितमा क भांित शांत ह। इसिलए यह कोई आकमक<br />

नहं है क बु क ितमाएं ह सब से पहले बनीं और संगममर क बनीं। अब तुम मीरा क<br />

ितमा कै से बनाओगे संगममर क? बनाओगे भी तो झूठ होगी। मीरा क ितमा बनानी हो<br />

तो पानी के फवारे से बनानी होगी। तब कहं उस म कु छ नाच जैसा भाव होगा। बु को भी<br />

तुम बैठा देख लोगे वृ के नीच िसासन म, तो या यान देखोगे? िसासन दखाई<br />

पड़ेगा, क हाथ कहां रखे, क पैर कहां रखे, क रढ़ सीधी है, क िसर ऐसा है, क<br />

आंख आधी खुली है क पूर बंद? मगर यान कै से देखोगे? यह तो बैठना है, यह तो<br />

आसन है। ऐसे तो कई बु बैठे हए ह और बु नहं हो पाए ह। यह तो तुम भी सीख सकते<br />

ू ु<br />

हो। यह तो थोड़ा सा अयास कर के तुम भी िसासन मारकर बैठ जाओगे, मगर इससे<br />

तुम बु नहं हो जाओगे। यान तो अंतर क घटना है; देखी नहं जा सकती, के वल<br />

अनुभव क जा सकती है।<br />

लागा घाव कराहै सोई। कोतगहार के दद न कोई।<br />

जसको दद नहं हआ ु है,<br />

वह समझ नहं पाएगा।<br />

ववेक मुझे कहती थी, उसके पता को कभी िसरदद नहं हआ। हआ ह नहं<br />

ु ु , तो लाख कोई<br />

समझाए क िसरदद या है, उसके पता को समझ म नहं आता। कहते ह: िसरदद! कै से<br />

समझाओगे, जस आदमी को िसरदद हआ ु ह नहं ? जसको िसरदद नहं हआ ु , उसे तो<br />

िसर का भी पता नहं चलता। िसरदद तो दर क बात है। िसरदद म ह िसर का पता चलता<br />

ू<br />

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है। नहं; समझाना असंभव है। तुम आंखवाले हो, अंधे क या दशा है, तुम कै से<br />

समझोगे?<br />

आंखवाले असर सोचते ह क अंधे आदमी को अंधेरे ह अंधेरे म रहना होता होगा। तुम<br />

बलकु ल गलत सोचते हो। अंधेरा भी आंखवाले का अनुभव है। अंधे को तो अंधेरा भी दखाई<br />

नहं पड़ सकता। फर अंधेरे को भी नहं देख सकता जो उसे या दखाई पड़ता होगा?<br />

खयाल रखना, आंख ह रोशनी देखती है, आंख ह अंधेरा देखती है। अंधे को न रोशनी<br />

दखाई पड़ती है न अंधेरा दखाई पड़ता है। फर या दखाई पड़ता है? अंधे को कु छ दखाई<br />

ह नहं पड़ता। आंख ह नहं है। तुम सोचते हो बहरे को सनाटा सुनाई पड़ता होगा, तो<br />

तुम गलती म हो। सनाटा सुनने के िलए भी कान चाहए। जैसे संगीत सुनने के िलए<br />

चाहए, ऐसे सनाटा सुनने के िलए भी कान चाहए। सनाटा भी कान का अनुभव है। तो<br />

बहरे तो या सुनाई पड़ता होगा? कु छ भी सुनाई नहं पड़ता। न उसे शद का पता है न<br />

सनाटे का, न संगीत का न शूय का। वह अनुभव का जगत ह नहं है उसका। कोई उपाय<br />

नहं है उसको। अनुभव के अितर कोई समझने का उपाय नहं है।<br />

लोग पूछते ह: हम ईर को समझना चाहते ह और समझ ल तो फर अनुभव भी कर।<br />

उहने तो पहले से ह एक गलत शत लगा द। अनुभव करो तो समझ सकते हो। वे कहते<br />

ह: हम समझ ल तो फर अनुभव कर। लोग चाहते ह क पहले यान को हम समझ ल तो<br />

फर यान कर। गलत शत लगा द।<br />

यह तो तुमने ऐसी शत लगा द क पहले तैरने को समझ ल तो फर हम तैरना सीख। अब<br />

तैरना तुह कै से समझाया जाए? गाकया बछाकर उस पर तुहारे हाथ-पैर तड़फड़ाए<br />

जाएं?<br />

मने सुना है मुला नसन गया था तैरना सीखने। जो उताद उसे ले गए थे िसखाना, वे<br />

तो अभी अपने कपड़े उतार रहे थे, तभी मुला कनारे गया। सीढ़य पर जमी हई ु काई थी,<br />

उसका पैर फस पड़ा। भड़ाम से नीचे िगरा। उठा और भागा घर क तरफ। उताद ने कहा:<br />

कहां जाते हो बड़े िमयां? तैरना ह सीखना?<br />

उसने कहा क अब तो जब तक तैरना न सीख लूं,<br />

नद के पास नहं आऊं गा। यह तो<br />

भगवान क कृ पा है क पैर फसला और पानी म नहं पहंच गया। जान बची और लाख<br />

ु<br />

पाए, बु ू लौटकर घर को आए। उसने कहा:<br />

अब नहं। अब तो तैरना सीख ह लूं,<br />

तभी<br />

पानी के पास कदम रखूंगा।<br />

लेकन तैरना कै से सीखोगे? और बात तो तक यु लगती है, क आखर तैरना बना सीखे<br />

पानी म पैर रखना खतरे खाली नहं है। और ऐसे ह कु छ लोग ह वे कहते ह पहले हम<br />

यान समझ ल, फर हम यान कर। समझोगे कै से? वे कहते ह: हम देख दसर को यान<br />

ू<br />

करते।<br />

हां; देखोगे, कु छ दखाई भी पड़ेगा। कोई पासन लगाकर वपसना कर रहा है। कोई<br />

नाचकर सूफ मती म डूब हआ है। कोई नाच रहा है और उमर खैयाम हो गया है। और<br />

ु<br />

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कोई िसासन म बु क तरह बैठा है। मगर ये तो बाहर क घटनाएं ह जो तुम देख रहे हो।<br />

भीतर या हो रहा है? हो भी रहा है क नहं हो रहा है। यह तो जब तक तुह न हो जाए,<br />

तब तक कोई उपाय नहं है।<br />

रामनाम मेरा ान-अधार। जब तक रामनाम ह तुहारे ाण का आधार न हो जाए, तब<br />

तक तुम यह रस पी न सकोगे।...सोई रामरस-पीवनहार। वह पीएगा इसे जो हमत करेगा<br />

अात म उतर जाने क, अनजान म, अपरिचत म जाने क। जो तमाशबीन नहं है, जो<br />

जुआर है। जो अपने को दांव पर लगा सकता है। जो जोखम उठा सकता है। जो कहता है<br />

ठक है, डूबगे; मगर तैरना सीखना है तो पानी म उतरगे।<br />

जन दरया जानेगा सोई। ेम क भाल कलेजे पोई।।<br />

वह जान सके गा--के वल कहं, जसके कलेजे म ेम का भाला िछद गया हो।<br />

अिलखत ह रह सदा<br />

जीवन क सय-कथी,<br />

जीवन क िलखत कथा<br />

सय नहं, ेपक है!<br />

जीवन का ववध प,<br />

जीवन का वध प,<br />

जीवन क शात लय,<br />

िचर-वरोध िचर-परणाम;<br />

छोटे फल बरगद पर,<br />

शैलखंड पद-पद पर,<br />

जीवन क अर गित,<br />

जीवन क अंत िनयित;<br />

जीवन क रेणु ु,<br />

जीवन के शत समु;<br />

जीवन के गुण अगणत,<br />

जीवन का गुण अवदत;<br />

अिलखत ह रहा सदा!<br />

जीवन का अंडकाय<br />

शंडसय, ेपक है!<br />

अिलखत ह रह सदा<br />

जीवन क सय कथा,<br />

जीवन क िलखत कथा<br />

सय नहं ेपक है!<br />

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शा से न समझ सकोगे। शा। तो ेपक है। एक या है; एक तीक है; एक इशारा है।<br />

लेकन इशारा तुहारे िलए काफ नहं, जब तक क तुहारे भीतर वाद न जमे।<br />

और वाद जमना जरा मंहगा सौदा है--ेम क भाल कलेजे पोई! मरना पड़े, िमटना पड़े।<br />

अहंकार को जाने दो, सूली पर चढ़ जाने दो--तो तुहार आमा को िसंहासन िमले।<br />

म मरने से पहले<br />

मरना नहं चाहता<br />

यह जानते हए भी क<br />

ु<br />

मुझ म लड़ने का<br />

बहत दम नहं<br />

ु<br />

लेकन जीने क इछा<br />

उगते सूरज से कम नहं!<br />

म मरने से पहले<br />

मरना नहं चाहता<br />

यह जानते हए भी क<br />

ु<br />

बहत पास अंधेरा कांप<br />

ु<br />

रहा है<br />

लेकन खयाल के पेड़ से<br />

पे क तरह झगड़ना नहं<br />

चाहता!<br />

म मरने से पहले<br />

मरना नहं चाहता!<br />

और वह जान पाता है परमामा को, जो मरने के पहले मर जाता है। मरते तो सभी ह,<br />

लेकन जीते-जी जो मर जाता है उसके सौभाय क कोई सीमा नहं है। जीते जी नहं हो<br />

जाता है, जो जीते जी अपने भीतर शूय हो जाता है, ना कु छ--उसी शूय म परमामा का<br />

का पदापण है। और वह शूय है जसको दरया कहते ह: भाला! ेम क भाल कलेजे पोई!<br />

जो ेम के िलए अपने को िनछावर कर देता है।<br />

जो धुिनया तो म भी राम तुहारा।<br />

दरया कहते ह क मुझे मालूम है क म ना कु छ हं<br />

ू, धुिनया हं<br />

ू, दन-हन हं<br />

ू; मगर इससे<br />

कु छ फक नहं पड़ता, यक मुझे दसर ू बात भी पता है...तो<br />

म भी राम तुहारा! म<br />

तुहारा हं<br />

ू! धुिनया सह, ना कु छ सह, दन-हन सह; इसको मुझे जरा भी िचंता नहं है।<br />

यह बात मुझे खलती नहं है। यक हं ू तुहारा और तुहारे होने म साट हं। ू तुहारे होने<br />

म सारा सााय मेरा है।<br />

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अधम कमीन जाित मितहना! बहत ु िगरा हं ू, पापी हं। ू मुझ से बुरा आदमी खोजना कठन<br />

है! बुरे को खोजने जाता हं तो मुझसे बुरा नहं पाता। जाित मितहना। मेर बु है ह नहं।<br />

ू<br />

मान ह लो क म मितहन हं।<br />

ू<br />

कबीर ने कहा न, क कभी कागज हाथ से छु आ नहं। मिस कागद छु यो नहं! कभी याह<br />

हाथ म ली नहं। कबीर ने यह भी कहा है: िलखा-िलखी क है नहं, देखा-देखी बात।<br />

...तो न शा जानता हं<br />

ू, न बहत ानी हं<br />

ु ू, न पांडय है कु छ। पका मान लो क<br />

मितहन हं। ू लेकन इससे या फक पड़ता है फर भी म तुहारा हं ू और तुम मेरे हो। तुम<br />

तो हौ िसरताज हमारा। और तुम हो हमारे िसर पर, बस इतना बहत ु है। न बु चाहए,<br />

न<br />

े कु ल चाहए, न धन चाहए, न पद चाहए--तुम िमले तो सब िमला!<br />

ेम क भाल कलेजे पोई! जसने भी ेम क भाल को कलेजे म उतर जाने दया, वह ना<br />

कु छ से सब कु छ हो जाता है; शूय से पूण हो जाता है।<br />

वकल वेदना से याकु ल मन तुह पुकार उठा है।<br />

आज न जाने फर सुिधय का कै सा वार उठा है।<br />

सोती यथा जगी अंतर म नव संदेश िमला है।<br />

सुनकर मृद झनकार दय म मादक सोम घुला है।<br />

ु<br />

युगल पुप अवगुठत कर से सौरभ यु खला है।<br />

रजत चांदनी के काश म अंधा ितिमर धुला है<br />

भूले आकषण के घाव म उदगार उठा है।<br />

आज न जाने फर सुिधय का कै सा वार उठा है।<br />

मुरझाए फू ल को अिल ने फर वसंत म चूमा।<br />

खंडहर सा अतीत का सपना झंझा बनकर झूमा।<br />

कसने मन-मंदर के छल से बंद ार खोला है।<br />

मेर अलसायी आंख म फर सपना घोला है।<br />

वणम लहर म अपनापन हो साकार उठा है।<br />

आज न जाने फर सुिधय का कै सा वार उठा है।<br />

िमटो--और सुिध जमती है! िमटो--और सुरित उठती है! िमटो--और ार खुलता है! िमटो--<br />

और तुम मंदर म व हो गए! िमटो--और आ गया तीथ! िमटो--और वह थान काबा है,<br />

वह कै लाश, वह काशी! लेकन अहंकार को िलए तुम जाओ काबा, तुम जाओ काशी, तुह<br />

जहां जो करना हो तीथयााएं करो, तुम जैसे हो वैसे के वैसे वापस लौट आओगे।<br />

सुना है मने क कु छ याी तीथयाा को जाते थे। एकनाथ के पड़ोसी भी तीथयाा को जाते<br />

थे। तो एकनाथ ने कहा क भाई यह मेर लंबी है, इसको भी तुम तीथयाा करा लाओ। म<br />

तो जाने से रहा। इतनी लंबी याा न कर पाऊं गा। लेकन मेर तूंबी<br />

को ह नान करवा<br />

लाना। कम से कम यह पव हो जाए। इसी के छाती या लूंगा।<br />

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ले गए तीथ-याी तूंबी<br />

को। हर जगह डु बक दलवा द, एक या दस दलवा दं। तूंबी<br />

को<br />

डु बक दलवाने म या दकत! घाट-घाट तीथीथ, सब जगह नान करवा कर ले आए।<br />

लेकन तूंबी<br />

कड़वी थी। जब ले आए तो तूंबी<br />

काट एकनाथ ने और उनको चखने को द।<br />

थूक दया उहने, कड़ तूंबी<br />

थी। कहा क यह कोई चखवाने क चीज थी? एकनाथ ने<br />

कहा: अंध! कु छ तो समझो! यह तूंबी<br />

कड़वी थी। इतनी तीथयाा कर आयी, इतनी गंगा<br />

म, यमुना म, नमदा म न मालूम कतनी जगह डुबक खलाई; यह तक मीठ नहं हो<br />

पायी, जरा अपने भीतर देखो! तुहारा जो कड़वा था, वह भी कड़वा है।<br />

असली ांित भीतर है, बाहर नहं। असली तीथ भी भीतर है, बाहर नहं।<br />

काया का जं...धुिनया ह तो उनक भाषा भी धुिनया क है। कहते ह: काया का जं! काया<br />

क धुनक। शद मन मुठया! और वह जो शद सदगु से सुना है शूय म, वह जो<br />

झनकार, वह जो दय क वीणा कर तार िछड़ गया है! सद मन मुठया...वह मेरा मुठया<br />

है। सुषमन तांत चढ़ाई। और जसको योगी सुमुना नाड़ कहते ह, वह मेर तांत है।<br />

गगन-मंडल म धुनुआं बैठा! म गरब धुिनया, मगर गजब हो गया है क म शूय आकाश<br />

म वराजमान हो गया हं।<br />

ू मेरे पास कु छ यादा नहं था--काया का जं--शरर क धुनक<br />

थी। सद मन मुठया था। सुषमन तांत चढ़ाई। मगर मुझे दन-हन पर भी अपार कृ पा हई<br />

ु<br />

है। यक। हं ू तो आखर राम तुहारा। तुम न फकर करोगे तो कौन फकर करेगा?<br />

तुमने<br />

मुझे धुिनया क भी फकर क।<br />

गगन-मंडल म धुिनया बैठा! गगन-मंडल का अथ होता है--शूय-समािध। जहां सब वचार<br />

शूय हो गए, शांत हो गए। जब सब वासनाएं ीण हो गई। जहां मन रहा ह नहं। जहां<br />

कोरा आकाश रह गया। जहां िनराकार रह गया! गगन-मंडल म धुिनया बैठा, कहते ह म<br />

खुद ह चमकृ त हं क मुझ धुिनया<br />

ू<br />

को कहां बठा दया! यह िसंहासन मेरे िलए? यह शूय-<br />

समािध मेरे िलए? बु के िलए थी, ठक थी; राजपु थे। महावीर के िलए ठक थी;<br />

साट थे। राम को भी ठक होगी, कृ ण को भी ठक होगी; मगर म तो धुिनया, अधम<br />

कमीन जाित मितहन! और मुझे तुमने कहां बठा दया! अब समझ म आया क म भी<br />

आखर तुहारे उतना ह हं ू जतने राम,<br />

जतने कृ ण, जतने बु, जतने महावीर।<br />

तुहार अनुकं पा म भेद नहं। तुहार कणा समान बरसती है।<br />

जो भी अपने पा को खोल देता है, वह भर जाता है। म धुिनया भी भर गया।<br />

गगन-मंडल म धुनुआं बैठा, मेरे सतगुर कला िसखाई। और मेरे सतगुर ने मुझसे कला<br />

िसखा द। या कला िसखा द?--क कै से िमट जाऊं । िमटने क कला िसखा द। ेम क<br />

भाल कलेजे पोई।<br />

सदगु के पास एक ह घटना घटनी चाहए, तो समझना क तुम सदगु के पास होना कोई<br />

भौितक बात नहं है, क शरर से पास रहे। सदगु के पास होने का अथ है क िमटकर<br />

पास रहे; न हो कर पास रहे। अपने को पछ ह दया। अपने को बचाया ह नहं। अपने को<br />

पूरा-पूरा चरण मग चढ़ा दया।<br />

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पाप-मन हर कु बुिध-कांकड़ा, सहज-सहज झड़ जाई।<br />

और तब चमकार पर चमकार होते मने देखे ह, दरया कहते ह। वह जो कला गु ने<br />

िसखाई िमटने क, उस कला के सीखते ह पाप-पान हर कु बुिध-कांकड़...पाप पी पे<br />

अपने-आ झड़ने लगे। जैसे पतझड़ आ गई हो! जह मने लाख-लाख बार छोड़ना चाहा था<br />

और नहं छू ट पाए थे; जह मने तोड़ा भी था तो फर-फर उग आए थे। वे पाप के पे<br />

ऐसे झड़ गए जैसे पतझड़ आ गई। मेरे बना झड़ाए झड़ गए मेरे बना काटे कट गए।<br />

पाप-पान हर कु बुिध-कांकड़!...धुिनये क भाषा है यह, खयाल रखना। मेरे भीतर जो कु बु<br />

का कांकड़ा था, बनौला था, वह कहां खो गया! खोजे से उसका पता नहं चलता अब।<br />

सहज-सहज झड़ जाई! म तो सोचता था बड़ा म करना होगा। मगर सतगु ने ऐसी कला<br />

िसखाई क...जड़ क काट द, पे-पे नहं काटे ह।<br />

पे-पे जो काटते ह, वे तुह नीित क िशा देते ह और नीित क िशा से कोई कभी<br />

धािमक नहं हो पाता है। यप जो धािमक हो जाता है, वह सदा नैितक हो जाता है।<br />

धम जड़ को काटता है; नीित पे-पे काटती है। नीित कहती है: ोध मत करो, लाभ मत<br />

करो। मगर लोग एकदम से लोथ छोड़ने को राजी नहं, ोध छोड़ने को राजी नहं तो<br />

आचाय तुलसी जैसे नैितक लोग समझाते ह, तो चलो अणुत। पूरा नहं छू टता तो थोड़ा-<br />

थोड़ा छोड़ो--अणुत! थोड़ा सा ोध छोड़ो। थोड़ा सा मोह छोड़ो। थोड़ा और, थोड़ा और...धीरे-<br />

धीरे करके छोड़ देना। सब पे एकदम नहं कटते तो एक काटो, एक शाखा काटो, फर<br />

दसर काटना।<br />

ू<br />

लेकन तुहं पता है, शाखा काटोगे वृ क तो जहां काटोगे वहां तीन शाखाएं िनकल आती<br />

ह। अणु-त साधोगे और महापाप कट हगे! इधर से सहालोगे, उधर से पाप बहने लगगे।<br />

जड़ नहं काट जब तक तब तक कु छ भी न होगा।<br />

पाप-पान हर कु बुिध-कांकड़ा, सहज सहज झड़ जाई।।<br />

जड़ के कटते ह...और जड़ या है? अहंकार जड़ है। म हं यह भाव जड़ है। ससंग म बैठने<br />

ू<br />

का अथ है: म नहं हं ू, ऐसे बैठना। बस इतनी सी कला है। बस इतना सा राज है। कुं<br />

जयां<br />

छोट होती ह। ताले कतने ह बड़े ह और कतने ह जटल ह, कुं<br />

जयां तो छोट सी होती<br />

ह। यह छोट सी कुं<br />

जी जीवन के अनंत रहय के ार खोल देती है।<br />

घुंड<br />

गांठ रहन नहं पावै, इकरंगी होय आई।।<br />

वह धुिनया अपनी भाषा म समझाने क कोिशश कर रहा है। घुंड<br />

गांठ रहन नहं पावै! न<br />

तो कहं गांठ रह जाती न कहं उलझन रह जाती है धाग म। सब भी कर लूं<br />

वह भी कर लूं-<br />

-यह जो हजार-हजार दशाओं म दौड़ता हआ ु मन है,<br />

अचानक एक रंग का हो जाता है।<br />

म अपने संयासी को गैरक रंग दे रहा हं। ू मुझसे लोग पूछते ह:<br />

या और रंग बुरे ह; और<br />

रंग बुरे नहं ह। यह तो के वल सूचक है क धीरे-धीरे एक रंग के हो जाना है। कोई भी चुन<br />

सकता था। हरा चुनता, वह भी यारा रंग है--वृ का रंग है, सूफय का रंग है। शांित का<br />

रंग है। शीतलता का रंग है। वह भी यारा रंग है। गैरक चुना; वह सूरज का रंग है; आग<br />

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का रंग है--जसम कोई पड़ जाए तो जल कर राख हो जाए। वह अहंकार को भमी भूत<br />

करने का रंग है।<br />

सफे द भी चुन सकता था। वह पवता का रंग है, िनदषता का रंग है, कुं<br />

वारेपन का रंग<br />

है। सब रंग यारे ह। काला भी चुन सकता था। वह गहराई का रंग है; असीमता का रंग है;<br />

शात का रंग है। काश तो आता-जाता है, अंधेरा सदा रहता है। काश के िलए तो धन<br />

क जरत पड़ती है; बाती लाओ, तेल लाओ। अंधेरे के िलए कोई जरत नहं पड़ती। न<br />

बाती क न तेल क। अंधेरे को बनाना ह नहं पड़ता; वह है ह। काश आता-जाता है;<br />

अंधेरा सदा है।... तो काला रंगी चुन सकता था।<br />

मगर एक रंग चुनना था, ताक भीतर तुह मरण बना रहे क मन बहरंगी ु है,<br />

सतरंगी है-<br />

-इसे एकरंगी कर देना है; इसे एक रंग म रंग देना है। फर गैरक ह चुना यक वह<br />

िचता का रंग है, आग का रंग है। और ससंग तो िचता है; वहां मरना सीखना है; मरने<br />

क कला सीखना है। ेम क भला कलेजे पोई! वहां ेम क वाला म भमीभूत हो जाना<br />

सीखना है।<br />

इकरंग हआ ु भरा हर चोला,<br />

हर कहै, कहा दलाऊं ।।<br />

दरया कहते ह: और जस दन म एकरंग हआ<br />

ु , उसी दन मेरे भीतर हर ह हर भर गया।<br />

जब तक म बटा था,--हर का पता न था। जब म अनबटा हआ ु , अखंड हआ ु , एक हआ ु --<br />

तण वह अखंड मुझम उतर आया।<br />

इकरंग हआ ु भरा हर चोला!...तो<br />

पूरे देह म, तन-ाण म हर ह हर भर गया।...हर कहै,<br />

कहा दलाऊं । और फर मुझसे कहने लगे: या चाहए बोल? या दला दंू?<br />

अब यह भी कोई बात हई। ु अब तो पाने को कु छ रहा नहं। यह तो मजा है:<br />

जब पाने को<br />

कु छ नहं होता, तब परमामा कहता है: बोलो या चाहए? िभखमंग को परमामा कु छ<br />

नहं देता, साट को सब देता है। उससे दोती करनी हो तो िभखमंगापन छोड़ना पड़ता है।<br />

इसिलए तो इस देश ने संयासी के िलए वामी नाम चुना। वामी का अथ होता है:<br />

मािलक, साट। मांगकर नहं कोई उसके ार तक पहंचता। मांगने म तो वासना है। जहां<br />

ु<br />

तक मांगना है वहां तक ाथना नहं है। जहां तक मांगना है वहां तक संसार। जहां सब<br />

मांगना छू ट गया, जहां कु छ मांगने को नहं--कहां अपूव घटना घटती है। परमामा कहता<br />

है: बोलो, या चाहए?<br />

कबीर ने कहा है क म हर को खोजता फरता था और िमलते नहं थे। और जब से िमले<br />

ह, हालत बदल गई है। अब मेरे पीछे -पीछे घूमते ह--कहते कबीर-कबीर! जहां जा रहे कबीर,<br />

या चाहए कबीर, या चाहए कबीर? अब म लौटकर नहं देखता यक मुझे कु छ चाहए<br />

नहं। अब ये और एक झंझट का खड़ा करते ह--या चाहए? न मांगो तो शोभा नहं<br />

देता। न मांगूं<br />

तो ऐसा लगता है क कहं अिशाचार न हो। सो म भागता हं ू और वे मेरे<br />

पीछे पड़े ह--कहत कबीर-कबीर! कहां जा रहे, को! कु छ ले लो!<br />

इकरंग हआ ु भरा हर बोला,<br />

हर कहै, कह दलाऊं ।।<br />

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म नाहं मेहनत का लोभी!...वे कहते ह: मुझे कोई लोभ नहं है। मुझे अब कु छ चाहए नहं<br />

है।...बकसी मौज भ िनज पाऊं । अब अगर नहं ह मानते हो और कु छ मांगना ह है,<br />

मांगना ह पड़ेगा, जद पर हो पड़े हो तो इतना ह करो क मेर भ बढ़े, और बढ़े, क<br />

मेर मौज और बढ़े। इतनी बढ़े, इतनी बढ़े क िनज को पा लूं।<br />

इस संसार म सब वन है--िसफ एक तुम को छोड़कर। इस संसार म सब य झूठे ह--<br />

िसफ एक ा को छोड़कर।<br />

दपक क लौ कांपी<br />

परद मग लहर पड़!<br />

शीशे म अनजाने न के आभास हले<br />

अनदेखे पग म जाद ू के घुंघ<br />

छमके<br />

कालीन म ऊनी फू ल दबे और खले<br />

थाप पड़ पहले कु छ तेजी से फर थमके<br />

कसने छे ड़ पछले जम म सुने हए<br />

ु<br />

एक कसी गाने क पहली रंगीन कड़!<br />

अगहन के कोहरे से िनिमत हलके तन के<br />

टोने सहसा जैसे कमरे म घूम गए<br />

हाथ म ताजी किलय के कं गने खनके<br />

कं ध पर वेणी के फू ल-सांप झूम गए<br />

दपक के हलते आलोक को छे ड़ गई<br />

चंपे क लहराती बाह बड़-बड़!<br />

इन बहक घड़य क गहर बेहोशी<br />

जाने कब रात हई<br />

ु , जाने कब बीत गयी<br />

मन के अंिधयारे म उभरे धीमे-धीमे<br />

रंग के प नए, वाणी क भूिम नयी<br />

मणय के कू ल नए जन पर हम भूल गए<br />

लयहन यााओं क वह सुनसान घड़!<br />

नतन यह खींच कहां मुझ को ले जाएगा<br />

या से सब पछली तट-रेखाएं छू टगी<br />

या दपक गुल होगा, उसव थम जाएगा<br />

गीत क सब कड़यां िससक म टटगी ू<br />

जाने या होना है? सच है या टोना है?<br />

या यह भी खोना है? छलना क एक लड़!<br />

परद म लहर पड़<br />

दपक क लौ कांपी!<br />

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यह संसार बस ऐसा है जैसे--<br />

परद म लहर पड़<br />

दपक क लौ कांपी!<br />

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और दवाल पर छायाएं कं पी गई! बस इतना, बस इससे जरा यादा नहं।<br />

यहां मांगने योय या है? िसफ एक िनजता सय है। िसफ एक आमा सय है। िसफ एक<br />

साी सय है। परमामा अगर कह मांगो, तो बेचारा भ मांगे तो या मांगे? इतना ह<br />

मांगता है--बकसो मौज भ िनज पाऊं !<br />

करपा कर हर बोले बानी, तुम तौ हौ मन दास।।<br />

और जब तुम चुप हो जाओगे तब परमामा बोलता है। जब तक तुम बोलते हो तब तक वह<br />

चुप है या शायद बोलता है लेकन तुहारे बोलने के कारण तुह सुनाई नहं पड़ता।<br />

करपा कर हर बोले बानी, तुम तौ हौ मम दास।।<br />

दरया कहै मेरे आतम भीतर, मेलौ राम भ-बवास।।<br />

जसे ह इतनी सी बात कह द क तुम मेरे दास हो, तुम मेरे हो, तुम मेरे अंग हो, क<br />

तुम मेर ह एक करण हो, क मेर ह एक गंध हो--क बस सब हो गया! दरया कहै मेरा<br />

आतम, भीतर, मेलौ राम भ-बवास।।<br />

उस घड़ ा जमी। उस घड़ जाना परमामा है।<br />

परमामा माण से नहं जाना जाता। कोई माण नहं परमामा का--िसवाय समािध के<br />

अनुभव के ।<br />

द ू गई है योित मुझको,<br />

मोम-सा म गल रहा हं<br />

ू!<br />

मुझ पर असर होता नहं था,<br />

म कभी पाषाण सा था;<br />

म समंदर म पड़ा बहता<br />

बरफ--चटान सा था!<br />

एक दन करण पड़ं िशर पर<br />

अचानक, जल रहा हं<br />

ू!<br />

यह बड़ कड़वी, बड़<br />

मीठ, बड़ नमकन भी है!<br />

इस जलन म अमृत रस है,<br />

साथ ह रस-हन भी है!<br />

हाथ पकड़ा है कसी ने,<br />

और म भी चल रहा हं<br />

ू!<br />

छू गई है योित मुझको,<br />

मोम सा म गल रहा हं<br />

ू!<br />

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परमामा तुह छु ए, इतना उसे अवसर दो। इतना कम से कम अपने भीतर ार-दरवाजा<br />

खुला रखो क उसक धूप आ सके,क उसक हवा आ सके, क उसका पश तुह िमल<br />

सके । फर शेष सब जो तुम जम-जम चाहे थे, मांगे थे, कपना क थी, घटना शु हो<br />

जाता है। और जसने उसे जाना, ण-भर को भी जाना,<br />

फर लौटने का कोई उपाय नहं है। फर तो मत-मगन हो उसके गीत गाता है!<br />

चांद अगर िमल सका न मुझको,<br />

या होगा सारा उजयारा।<br />

ठ गए यद तुम ह मुझसे,<br />

फर जीवन का कौन सहारा।<br />

मने तो जीवन नौका क सपी है पतवार तुहं को,<br />

पार लगाओ या क डुबा दो सारा है अिधकार तुहं को।<br />

पर लगाओ या क डुबा दो सारा है अिधकार तुहं को।<br />

सागर बीच कह रहे मुझसे म तेरे संग अब न चलूंगा,<br />

संभव नहं हमारा िमलन इसीिलए अब िमलन सकूं<br />

गा।<br />

माना चाह मधुर सा सपना,<br />

माना िमलन असंभव अपना।<br />

लेकन तुह छोड़ दं ू कै से,<br />

तुहं भंवर हो तुहं कनारा।<br />

मेरे नयन के दपक म योित तुहार ह पलती है,<br />

आशाओं क बाती बनकर याद तुहार ह जलती है।<br />

भूल नहं पाता दो पल भी मृितय क जलन चुभन को,<br />

आिलंगन का बंद गृह ह भाता है अब मेरे मन को।<br />

इस म कु छ अपराध न मेरा,<br />

इस म कु छ अपराध न तेरा,<br />

मेर ह अंतमन को जब,<br />

भाता कारागार तुहारा।<br />

तुम ह तो मेरे गीत म किलत कपना क काया हो,<br />

कं पत सी कोमल भाव म अनुभाव क अनुछाया हो।<br />

तुहं काय क अमर ेरणा तुहं साधना का साधना हो,<br />

तुहं शद हो तुहं पं हो तुहं सरल वर आराधना हो।<br />

तुहं सुधामय अमर ीित हो,<br />

तुहं िमलन का मधुर गीत हो।<br />

बना तुहारे रह जाएगा।,<br />

मेरा भाव िसंधु ह खारा।<br />

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चांद अगर िमल सका न मुझको,<br />

या होगा सारा उजयारा।<br />

ठ गए यद तुम ह मुझसे,<br />

फर जीवन का कौन सहारा।<br />

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और अभी परमामा तुमसे ठा है, यक तुम परमामा से ठे हो। तुम परमामा क<br />

तरफ पीठ कए खड़े हो। और इसिलए कतना ह उजाला हो, तुहार जंदगी अंधेर रहेगी,<br />

अंधेर ह रहेगी। उस चांद को पाए बना कोई उजयाला काम का नहं है। उस परम धन को<br />

पाए बना सब धन यथ। उस परम पद के पाए बना सब पद यथ।<br />

परमामा परम भोग है। उसको पाए बना सब भोग, भोग के धोखे ह।<br />

हमत करो, साहस करो। एक दन ऐसी घड़ आए क तुम भी कह सको--गगन-मंडल म<br />

धनुआं बैठा, मेरे सतगु कला िसखाई!<br />

आ सकती है घड़। तुहारा अिधकार है। तुहारे भीतर िछपी हई संभावना है। अभी बीज है<br />

ु<br />

माना; मगर बीज कभी भी फू ल बन सकते ह। और जब तक अमृत क वषा न हो और<br />

तुहारे बीज भीतर खल कर कमल बन जाएं, तब तक बैठन मत, तब तक चलना है। तब<br />

तक चलते ह चलना है। याद रखना--अमी झरत बगसत कं वल! अमृत झरे और कमल<br />

खले--यह गंतय है।<br />

आज इतना ह।<br />

यह मशाल जलेगी<br />

दसवां वचन; दनांक २० माच, ी रजनीश आम, पूना<br />

भगवान! आपने एक वचन म कहा है क भारत अपने आयामक मूय म िगरता जा<br />

रहा है। कृ पया बताएं क आगे कोई आशा क करण नजर आती है?<br />

भगवान! आज के वचन म अणुत क आपने बात क। मेरा जम उसी परवार से है, जो<br />

आचाय तुलसी का अनुयायी है। बचपन से ह आचाय तुलसी के उपदेश ने कभी दय को<br />

नहं हआ। ु अभी उहने<br />

अपना उरािधकार आचाय मुिन नथमल को आचाय महा नाम<br />

देकर बनाया है। वे ठक आपक टाइल म वचन देते ह मगर उहने भी कभी दय को<br />

नहं छु आ। और आपके थम वचन को सुनते ह आपके चरण म समपत होने का भाव<br />

पूरा हो गया और समपण कर दया।<br />

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म दख से इतना परिचत हं क सुख का मुझे भरोसा ह नहं आता। एक दख गया क दसरा<br />

ु ु ू<br />

ू<br />

आया, बस ऐसे ह िसलिसला चलता रहता है। या कभी म सुख के दशन पा सकूं<br />

गा? माग<br />

दखाएं क सुख पाने के िलए या कं? म सब कु छ करने को तैयार हं।<br />

ू<br />

भगवान! मुझे वह इक नजर, इक जावदानी सी नजर दे दे, बस एक नजर जो अमृत के<br />

पहचान ले।<br />

पहला : भगवान! अपने एक वचन म कहा है क भारत अपने आयामक मूय म<br />

िगरता जा रहा है। कृ पया बताएं क आगे कोई आशा क करण नजर आती है?<br />

रामानंद भारती! आयामक मूय सदा ह वैयक घटना है, सामूहक नहं। नैितकता<br />

सामूहक है; अयाम वैयक। कोई समाज नैितक हो सकता है, यक नीित बाहर से<br />

आरोपत क जा सकती है, लेकन कोई समाज आयामक नहं होता। य आयामक<br />

होता है। समाज क तो कोई आमा ह नहं है तो संबंध नैितक हो सकते ह, अनैितक हो<br />

सकते ह। अछे हो सकते ह, बुरे हो सकते ह; पाप के हो सकते ह, पुय के हो सकते ह।<br />

अयाम तो अितमण है। अयाम तो वैसी चैतय क दशा है जहां न पाप बचता न<br />

पुय, न लोहे क जंजीर ने सोने क जंजीर। जहां िच ह नहं हो वहां ं कहां? वहां दई<br />

ु<br />

कहां? और िनत ह वैसा अयाम भारत से खोता जा रहा है। बु, महावीर, कृ ण,<br />

कबीर, दादू, दरया, वैसे लोग कम होते जा रहे ह, वैसी योितयां वरल होती जा रह ह,<br />

बहत वरल होती जा रह ह<br />

ु<br />

! धम के नाम पर पाखंड बहत ु ह<br />

, पांडय बहत ु है। उस म कोई<br />

कमी नहं हई ु ; उस म बढ़ती हई ु है। लेकन धम नहं है,<br />

यक धम के िलए जो मौिलक<br />

आधार चाहए वे खो गए ह। लेकन धम पहं है, यक धम के िलए जो मौिलक आधार<br />

चाहए वे खो गए ह।<br />

पहली तो बात तो बात, देश बहत गरब हो<br />

ु<br />

, समाज बहत ु गरब हो तो सारा जीवन,<br />

सार<br />

ऊजा रोट-रोजी म ह उलझी समा हो जाती है। गरब आदमी कब वीणा बजाए, कब<br />

बांसुर बजाए? दन-हन रोट न जुटा पाए तो अयाम क उड़ाने कै से भरे? अयाम तो<br />

परम वलास है; वह तो आखर भोग है, आयंितक भोग! चूंक<br />

देश गरब होता चला<br />

गया, उस ऊं चाई पर उड़ने क मता लोग क कम होती चले गई।<br />

मेरे हसाब म जतना समृ हो उतने ह बु क संभावना बढ़ जाएगी। इसिलए म समृ<br />

के वरोध म नहं हं ू; म समृ के प म हं। ू म चाहता हं ू यह देश समृ हो। यह सोने क<br />

िचड़या फर सोने क िचड़या हो। यह दरनारायण क बकवास बंद होनी चाहए।<br />

लमीनारायण ह ठक ह; उनको दरनारायण से न बदलो।<br />

बु पैदा हए तब देश सच म सोने क िचड़या था। चौबीस तीथकर जैन के<br />

ु<br />

, साट के बेटे<br />

थे--और राम और कृ ण भी, और बु भी। इस देश म जो महाितभाए पैदा हई वे<br />

ु<br />

राजमहल से आई थीं। अकारण नहं नहं, आकमक ह नहं। जसने भोगा है वह वर<br />

होता है। तेन यतेन भुंजीयाः!<br />

वह छोड़ पाता है है जसने जाना है, जीया है, भोगा है।<br />

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जसके पास धन ह नहं है उससे तुम कहो धन छोड़ दो, या खाक छोड़ेगा! जो संसार का<br />

अनुभव ह नहं कया है उससे कहो संसार छोड़ दो, कै से छोड़ेगा?<br />

अनुभव से मु आती है, अनुभव से वर आती है। राग का अनुभव वैराय के मंदर म<br />

वेश करा देता है। भोग म जतने गहरे उतरोगे उतने ह तुहारे भीतर याग क मता<br />

सघन होगी।<br />

ये मेर बात उट लगती ह, उलटबांिसयां मालूम होती ह। जरा भी उट नहं ह। इनका<br />

गणत बहत ु सीधा-साफ<br />

है। जस चीज को भी तुम भोग लेते हो उसे क यथता दखाई पड़<br />

जाती है। जस चीज को नहं भोग पाते उस मग रस बना रहता है, कहां कोने-कतार म,<br />

मन के कसी अंधेरे म वासना दबी पड़ रहती है क कभी अवसर िमले जाए तो भोग लूं।<br />

जाना नहं है। हां, बु कहते ह क असार है; मगर तुमने जाना है असार है? और जब<br />

तक तुमने नहं जाना असार है तब तक लाख बु कहते रह, कस काम का है? बु क<br />

आंख तुहार आंख नहं बन सकती, मेर आंख तुहार आंख नहं बन सकती। तुहार<br />

आंख ह तुहार आंख है, और तुहारा अनुभव ह तुहारा अनुभव है। परमामा क तरफ<br />

जाने के िलए संसार सीढ़ है। और भारत म आयामकता क संभावना क संभावना कम<br />

होती जाती है, यक भारत रोज-रोज दन होता जाता है, रोज-रोज दर होता जाना है।<br />

और कारण? कारण हमार धारणाएं ह।<br />

पहली तो धारणा, हमने मान रखा है क लोग गरब और अमीर भाय से ह। यह बात<br />

िनतांत मूढ़तापूण है। न कोई अमीर है भाय से, न कोई गरब है भाय से। गरबी-अमीर<br />

सामाजक यवथा क बात है। गरबी-अमीर बुमत क बात है। गरबी-अमीर वान<br />

और टेनालाजी क बात है। या तुम सोचते हो सब भायशाली अमरका म ह पैदा होते<br />

ह? मगर तुहारे शा सह ह तो सब भायशाली अमरका म पैदा होते ह। और अब अभागे<br />

भारत म पैदा होते ह। अगर तुहारे शा सह ह तो भारत म िसफ पापी ह पैदा होते ह,<br />

जहने पहले पाप कए ह और अमरका म वे सब पैदा होते ह जहने पहले पुय कए।<br />

तुहारे शा गलत ह, तुहारा गणत गलत है।<br />

अमरका समृ इसिलए नहं है क कहां पुयवान लोग पैदा हो रहे ह। अमरका समृ<br />

इसिलए है क वान है, तकनीक है, बु का योग है। अमरका समृ होता जा रहा है,<br />

रोज-रोज समृ होता जा रहा है। और तुम देखते हो अमरका म कतने जोर क लहर है<br />

आयामक क, कतनी अभीसा है यान क, कतनी आतुरता है अंतयाा क! हजार<br />

लोग पम से पूरब क तरफ याा करते ह, इसी आशा म क शायद पूरब के पास कुं<br />

जयां<br />

िमल जाएं। उह पता नहं पूरब अपनी कुं<br />

जयां खो चुका है। पूरब बहत ु दर है। और इन<br />

दर हाथ म परमामा के मंदर क कुं<br />

जयां बहत ु मुकल ह।<br />

तो पहली तो बात है क भारत पुनः समृ होना चाहए। और समृ होने के िलए जर है<br />

क गांधीवाद जैसे वचार से भारत का छु टकारा हो। बना बड़ टेनालाजी के अब यह देश<br />

समृ नहं हो सकता। अब इसक संया बहत है। बु के समय म पूरे देश क संया दो<br />

ु<br />

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करोड़ थी। िनत देश समृ रहा होगा--इतनी भूिम और दो करोड़ लोग। भूिम अब भी<br />

उतनी है और साठ करोड़ लोग! और यह िसफ अब भारत क बात कर रहा हं<br />

ू, पाकतान<br />

को भी जोड़ना चाहए, बंगला देश को क जोड़ना चाहए यक बु के समय म दो करोड़<br />

म वे लोग भी जुड़े थे। अगर उन दोन को भी जोड़ लो तो असी करोड़। कहां दो करोड़ लोग<br />

और कहां असी करोड़ लोग! और इंचभर जमीन बढ़ नहं। हां, जमीन घट बहत<br />

ु , घट इन<br />

अथ म क इन ढाई हजार साल म हमने जमीन का इतना शोषण कया, इतनी फसल<br />

काटं क जमीन रोज-रोज खी होती चली गई। हमने जमीन का रस कु छ छन िलया।<br />

वापस कु छ भी नहं दया। वापस देने क हम सूझ ह नहं है, लेते ह चले गए, लेते ह<br />

चले गए। जमीन दन-हन होती चली गई, उसके साथ हम दन-हन होते चले गए। और<br />

जतना ह समाज दन-हन होता है उतने यादा बचे पैदा करता है।<br />

इस जगत म बड़े अनूठे हसाब ह! अमीर घर म बचे कम पैदा होते ह, गरब घर म,<br />

बचे यादा पैदा होते ह। य? अमीर को असर, बचे गोद लेना पड़ते ह। कारण है<br />

जतना ह जीवन म सुख-सुवधा होती है, जतना ह जीवन म वाम होता है, जतना ह<br />

जीवन म भोग के और-और अय-अय साधन होते ह, उतनी ह कामवासना क पकड़ कम<br />

हो जाती है। जनके पास और भोग के कोई भी साधन नहं ह उनके बस एक ह मनोरंजन है<br />

कामवासना, और कोई मनोरंजन नहं है। फम जाओ तो पैसे लगते; रेडयो-टेलीवजन,<br />

नृय-संगीत सब म खचा है। कामवासना बेखच मालूम होती है। तो गरब आदमी का एक ह<br />

मनोरंजन है कामवासना। तो गरब आदमी बचे पैदा कए चला जाता है। जतने गरब देश<br />

ह उतने और गरब होते चले जाते ह। जतने अमीर देश ह उतने और अमीर होते चले जाते<br />

ह; यक अमीर देश म बचे पैदा करना बहत सोच वचार कर होता है। कम बचे<br />

ु<br />

चाहए, यादा वान चाहए--और तुहारे िच म भौितकवाद के ित जो वरोध है उसका<br />

अंत चाहए। यक अयाम के वल भौितकता के ह आधार पर खड़ा हो सकता है।<br />

मंदर बनाते हो, वण के िशखर चढ़ाते हो मगर नींव म तो अनगढ़ पथर ह भरने पड़ते<br />

ह, नींव म तो सोना नहं भरना पड़ता। जर जीवन के मंदर म िशखर तो अयाम का<br />

होना चाहए लेकन बुिनयाद तो भौितकता क होनी चाहए। मेरे हसाब म भौितकवाद और<br />

अयामवाद म शुता नहं होनी चाहए, िमता होनी चाहए। हां, भौितकवाद पर ह क<br />

मत जाना। अयथा ऐसा हआ क नींव तो भर लोग और मंदर कभी बनाया नहं।<br />

ु<br />

भौितकवाद नहं। भौितकवाद पर क मत जाना। भौितकवाद क बुिनयाद बना लो फर उस<br />

पर अयाम का मंदर खड़ा करो। भौितकवाद तो ऐसे है जैसे वीणा बनी है लकड़ क, तार<br />

से और अयामवाद ऐसे ह जैसे वीणा पर उठाया गया संगीत। वीणा और संगीत म वरोध<br />

तो नहं है। वीणा भौितक है, संगीत अभौितक है। वीणा को पकड़ सकते हो, छू सकते हो,<br />

संगीत को न पकड़ सकते न छू सकते हो, उस पर मुठ नहं बांध सकते। अयाम जीवन<br />

क बुिनयाद बनाना चाहा, बना वीणा से संगीत को लाना चाहा। हम चूकते चले गए।<br />

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पम क भूल है, वीणा तो बन गई है लेकन वीणा का बजाना नहं आता, नींव तो भर<br />

गई है लेकन मंदर के बनाने क कला भूल गई है, याद ह नहं रहा क नींव य बनायी<br />

थी। पम ने आधी भूल क है, आधी भूल हमने क है। और फर भी म तुमसे कहता हं<br />

ू:<br />

पम क आधी भूल ह तुहार आधी भूल से यादा बेहतर है। नींव हो तो मंदर बन<br />

सकता है; लेकन िसफ मंदर क कपनाएं ह और नींव न हो तो मंदर नहं बन सकता।<br />

भारत को फर से भौितकवाद के पाठ िसखाने हगे। और म तुमसे कहता हं क वेद और<br />

ू<br />

उपिनषद भौितकवाद वरोधी ह ह। कहािनयां तुम उठा कर देखो।<br />

जनक ने एक बहत ु बड़े शााथ का आयोजन कया है। एक हजार गौओं , सुंदर<br />

गौओं को,<br />

उनके सींग को सोने से मढ़ कर, हरे-जवाहरात जड़ कर महल के ार पर खड़ा कया है क<br />

जो भी शााथ म वजेता होगा वह इन गौओं को ले जाएगा।<br />

ऋष-मुिन आए ह, बड़े वान पंडत आए ह। ववाद चल रहा है, कौन जीतेगा पता नहं!<br />

दोपहर हो गई, गौएं धूप म खड़ ह। तब याावय आया--उस समय का एक अदभुत<br />

ऋष, रहा होगा मेरे जैसा आदमी! आया अपने िशय के साथ--रहे हगे तुम जैसे संयासी।<br />

महल म वेश करने के पहले अपने िशय से कहा क सुनो, गौओं को घेरकर आम ले<br />

जाओ, गौएं थक गई, पसीने-पसीने हई जा रह ह। रहा<br />

ु<br />

ववाद, सो म जीत लूंगा।<br />

हजार गौएं, सोने से मढ़े हए ु उनके सींग,<br />

हरे-जवाहरात जुड़े हए ु यावय क हमत<br />

देखते हो! यह कोई अभौितकवाद है? और इसक हमत देखते हो, और इसका भरोसा<br />

देखते हो! यह भरोसा के वल उहं को हो सकता है जहने जाना है। पंडत ववाद कर रहे<br />

थे। वे तो आंख फाड़े, मुंह<br />

फाड़े रह गए--जब उहने देखा क गौएं तो यावय के िशय<br />

घेर कर ले ह गए! उनक तो बोलती बंद हो गई। कसी ने खुसफु साया जनक कोक यह<br />

या बात है, अभी जीत तो हई ु नहं है!<br />

लेकन यावय ने कहा क जीत होकर रहेगी,<br />

म आ गया हं। ू जीत होती रहेगी,<br />

लेकन गौएं य तड़फ?<br />

और यावय जीता। उसक मौजूदगी जीत थी। उसके वय म बल था यक अनुभव<br />

था। अब जसके आम म हजार गौएं ह, सोने के मढ़े हए ु सींग ह,<br />

उसका आम कोई<br />

दन-हन आम नहं हो सकता। उसका आम सुंदर<br />

रहा होगा, सुरय रहा होगा,<br />

सुवधापूण रहा होगा।<br />

आम समृ थे। उपिनषद और वेद म दरता क कोई शंसा नहं है, कहं भी कोई<br />

शंसा नहं है। दरता पाप है, यक और सब पाप दरता से पैदा होते ह। दर बेईमान<br />

हो जाएगा, दर चोर हो जाएगा, दर धोखेबाज हो जाएगा। वाभावक है, होना ह<br />

पड़ेगा।<br />

समृ से सारे सदगुण पैदा होते ह, यक समृ तुह अवसर देती है क अब बेईमानी<br />

क जरत या है? जो बेईमानी से िमलता है वह िमला ह हआ है।<br />

ु<br />

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लेकन एक समय आया इस देश का, जब पम से लुटेरे आए, सैकड़ हमलावर आए--हण<br />

ू<br />

आए, तक आए, मुगल आए, फर अंेज, पुतगीज--और यह देश लुटता ह रहा, लुटता<br />

ह रहा! और यह देश दन होता चला गया।<br />

और यान रखना, मनुय का मन हर चीज के िलए तक खोज लेता है। जब यह देश बहत<br />

ु<br />

दन हो गया तो अब अपने अहंकार को कै से बचाएं! तो हमने दनता क शंसा शु कर द।<br />

हम कहने लगे: अंगूर खटे ह। जन अंगूर तक हम पहंच नहं सकते उनको हम खटे<br />

ु<br />

कहने लगे! और हम कहने लगे अंगूर म हम रस ह नहं है। जैसे हम दर हए वैसे ह हम<br />

ु<br />

दरता का यशोगान करने लगे। यह अपने अहंकार को समझाना था, लीपा-पोती करनी थी।<br />

और अब भी यह लीपा-पोती चल रह है। इसे तोड़ना होगा।<br />

यह देश समृ हो सकता है, इस देश क भूिम फर सोना उगल सकती है। मगर तुहार<br />

बदले तो। तुहारे भीतर वैािनक सूझ-बूझ पैदा हो तो। कोई कारण नहं है दर रहने<br />

का और एक बार तुम समृ हो जाओ तो तुहारे भीतर भी आकाश को छू ने क आकांा<br />

बलवती होने लगेगी। फर करोगे या? जब धन होता, पद होता, िता होती, सब होता<br />

है, फर तुम जीवन के -- आयंितक --उठने शु होते ह...म कौन हं<br />

ू? ये भरे पेट ह<br />

उठ सकते ह। भूखे भजन न होइ गोपाला। यह भजन, यह कतन, यह गीत, यह आनंद<br />

यह उसव भरे पेट ह हो सकता है। और परमामा ने सब दया है। अगर वंिचत हो तो तुम<br />

अपने कारण से वंिचत हो। अगर वंिचत हो तो तुहार गलत धारणाओं के कारण तुम वंिचत<br />

हो।<br />

अमरका क कु ल उ तीन सौ साल है और तीन सौ साल क उ म आकाश छू िलया,<br />

सोने के ढेर लगा दए! और यह देश कम से कम दस हजार साल से जी रहा है और हम<br />

रोज दन होते गए, रोज दर होते चले गए। यहां तक दर हो गए क अपनी दरता को<br />

हम सुंदर<br />

व पहनाने पड़े--दरनारायण! हम दरता के गुनगान गाने पड़े। हमने दरता<br />

को अयाम बनाना शु कर दया।<br />

जमनी का एक वचारक काउट कै सरिलंग जब भारत से वापस लौटा तो उस ने भारत क<br />

याा क अपनी डायर िलखी। उस डायर म उस ने जगह-जगह एक बात िलखी है जो बड़<br />

हैरानी क है। उस ने िलखा: भारत जा कर मुझे पता चला क दर होने म अयाम है।<br />

भारत जा कर मुझे पता चला क बीमार, ण, दन-हन होने म अयाम है। भारत जा<br />

कर मुझे पता चला क उदास, मुदा होने म अयाम है।<br />

तुमसे म कहना चाहता हं<br />

ू: ऐसा चलता रहा तो कोई आशा क करण नहं है रामानंद! आशा<br />

क एक करण है, िसफ एक करण क यह देश समृ होने क अभीसा से भरे। फर उस<br />

अभीसा से अपने-आप अयाम का जम होगा।<br />

हवा म इन दन जहरला सर है।<br />

हवा म इन दन जहरला सर है।<br />

हर एक सर उठाए है गोवधन<br />

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परेशािनय के<br />

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हर एक अधमरा है अिनय आर बेहािलय से हर एक है हर एक से नाराज<br />

पर टहलता है होकर बगलगीर<br />

रता आदमी का आदमी से<br />

चकनाचूर है।<br />

हवा मग इन दन जहरला सर है।<br />

कोई बात है क आदमी सब सह कर भी<br />

बच रहता है<br />

आंसुओं म हंस सकता है, दख मग भी<br />

ु<br />

नच सकता है<br />

दमनी ु के दायर,<br />

दौर म<br />

वह चीते क तरह है चौकना<br />

अपने पे क हद पर जसे<br />

मर जाना मंजूर है।<br />

हवा म इन दन जहरला सर है।<br />

हवा म बहत ु जहर छाया हआ ु है। ेम क जगह घृणा के बीज हमने बोए ह--हंद<br />

ू के ,<br />

मुसलमान के ईसाई के, जैन के ...! खंड-खंड हो गए ह। अयाम अखंड हवा म पैदा होता<br />

है। हमने भाईचारा तक छोड़ दया है, मैी तक भूल गए ह, ाथना कै से पैदा होगी? हम<br />

ेम के दमन हो गए ह<br />

ु , ाथना कै से पैदा होगी? और म अगर ेम क बात करता हं तो<br />

ू<br />

सारा देश गािलयां देने को तैयार है।<br />

ेम न करोगे तो तुम कभी ाथना भी न कर सकोगे। यक यह ेम का ह इ है ाथना।<br />

पी को कया ेम का कया ेम, िमठ को कया, बेटे को, मां को, भाई को, पता को,<br />

बंधु-बांधव को और अब जगह पाया क ेम बड़ा है और ेम का पा छोटा पड़ जाता है।<br />

उं डेलते हो, पा छोटा पड़ जाता है। पूरा तुह झेल नहं पाता। ऐसे अनेक-अनेक अनुभव<br />

हगे तब एक दन तुम उस परम पा को खोजोगे--परमामा को, जसम तुम अपने को<br />

उं डेल दो, तुम छोटे पड़ जाओ, पा छोटा न पड़े, क तुम पूरे के पूरे चुक जाओ। तुम<br />

सागर हो और छोट-छोट गागर म अपने उं डेल रहे हो; तृि नहं िमलती, कै से िमलेगी?<br />

सागर को उं डेलना हो तो आकाश चाहए। मगर सागर आकाश तक आए इसके पहले बहत<br />

ु<br />

गागर का अनुभव अिनवाय है।<br />

ेम करो! जीवन क िनसगता से वरोध न करो, जीवन का िनषेध न करो। जीवन का<br />

अंगीकार करो, अहोभाव से अंगीकार करो। यक उसी अंगीकार से फर एक दन तुम<br />

परमामा को भी अंगीकार कर सकोगे। परमामा यहं िछपा है--इहं वृ म, इहं लोग<br />

म, इहं पहाड़, इहं पवत म। तुम अतव को ेम करना सीखो। तुहारा तथाकिथत<br />

धम तुह अतव को घृणा करना िसखाता है। बाहर जो है िनसग, उसको भी घृणा करना<br />

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िसखाता है और तुहारे भीतर जो है िनसग, उसे भी घृणा करना िसखाता है। िनसग को ेम<br />

करो यक िनसग परमामा का घूंघट<br />

है। िनसग को ेम करो तो घूंघट<br />

उठा सकोगे।<br />

आशा क करण तो िनत है। आशा क करण तो कभी न नहं होती। रात कतनी ह<br />

अमावस क आ गई हो, सुबह तो होगी। सुबह तो हो कर रहेगी। अमावस क रात कतनी<br />

ह लंबी हो, और कतना ह यह देश गलत धारणाओं म डूब गया हो, लेकन फर भी कु छ<br />

लोग ह जो सोच रहे, वचार रहे, यान कर रहे ह। वे ह थोड़े से लोग तो धीरे-धीरे मेरे<br />

पास इकठे हए जा रहे ह।<br />

ु<br />

रोट का मारा<br />

यह देश<br />

अभी कमल को<br />

सह पहचानता है।<br />

माना भूखा है, माना दन-हन है; मगर कु छ आंख अभी भी आकाश क तरफ उठती ह।<br />

कचड़ बहत है मगर कमल क पहचान बलकु ल खो गई हो ऐसा भी नहं है। लाख म कसी<br />

ु<br />

एकाध को अभी भी कमल पहचान म आ जाता है, यिभा हो जाती है। नहं तो तुम यहां<br />

कै से होते? जतनी गािलयां मुझे पड़ रह ह, जतना वरोध, जतनी अफवाह उन सब के<br />

बावजूद भी तुम यहां हो। जर तुम कमल को कु छ पहचानते हो। लाख दिनया ु कु छ कहे,<br />

सब लोक-लाज छोड़कर भी तुम मेरे साथ होने को तैयार हो। आशा क करण है।<br />

रोट का मारा<br />

यह देश<br />

अभी कमल को<br />

सह पहचानता है।<br />

तल के पंक तक फै ली<br />

जल क गहराई से<br />

उपजे सदय को<br />

भूख के आगे झुके बना<br />

--धुर अपना मानता है।<br />

खी रोट पर तह-वह<br />

ताजा मखन लगाकर<br />

कची बुवाले कु छ लोग के<br />

हाथ म थमाकर<br />

कृ ण-कृ ण कहते हए<br />

ु<br />

जो उनका कमल<br />

छन लेना चाहते ह<br />

उनक िनयत को<br />

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भली भांित जानता है।<br />

भोले का भ है<br />

फकड़ है<br />

पका पयकड़ है<br />

बांध कर अंगौछा<br />

यहं गंगा से घाट पर<br />

दोन जून छानता है;<br />

कं तु मौका पड़ने पर<br />

हर हर महादेव कहते हए<br />

ु<br />

लयंकर शूल भी तानता है।<br />

रोट का मारा<br />

यह देश<br />

अभी कमल को<br />

ठक ठक पहचानता है।<br />

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पहचान बलकु ल मर नहं गई है। खो गई है, बहत ु खो गई है। कभी-कभी<br />

कोई आदमी<br />

िमलता है--कोई आदमी, जससे बात करो, जो समझ। मगर अभी आदमी िमल जाते ह<br />

भीड़ अंधी हो गई है, मगर सभी अंधे नहं हो गई ह। लाख दो लाख म एकाध आंख वाला<br />

भी है, कान वाला भी है, दय वाला भी है। उसी से आशा है। अभी भी कु छ लोग तैयार ह<br />

क परमामा क मधुशाला कहं हो तो ार पर दतक द क खोलो ार। अभी कु छ लोग<br />

तैयार ह क कहं बुव क संभावना हो तो हम उस से जुड़ जाए, चाहे कोई भी कमत<br />

चुकानी पड़े। अभी भी कु छ लोग तैयार ह क कहं पयकड़ क जमात बैठे तो हम भी<br />

पीए, हम भी डूब; चाहे दांव कु छ भी लगाना पड़े, चाहे दांव जीवन ह य न लग जाए।<br />

इसिलए आशा क करण है रामानंद! आशा क करण नहं खो गई है। िनराश होने को कोई<br />

कारण नहं है।<br />

सच तो यह है, जतनी रात अंधेर हो जाती है उतनी ह सुबह करब होती है। रात बहत<br />

ु<br />

अंधेर हो रह है, इसिलए समझो क सुबह बहत करब होगी। लोग बहत ु बात के अंधेरे<br />

ु ु<br />

म खो रहे ह, इसिलए समझो क अगर सय कट हआ<br />

ु , कट कया गया तो पहचानने<br />

वाले भी जुड़ जाएंगे, सय के दवाने भी इकठे हो जाएंगे।<br />

और सय संामक होता है। एक को लग जाए, एक को छू जाए, तो फै लता चला जाता<br />

है। एक जले दए से अनंत-अनंत दए जल सकते ह। आशा है, बहत आशा है। िनराश होने<br />

ु<br />

का कोई कारण नहं है। उसी आशा के भरोसे तो म काम म लगा हं। जानता हं क भीड़ नहं<br />

ू ू<br />

पहचान पाएगी, लेकन यह भी जानता हं ू क उस भीड़ म कु छ अिभजात दय भी ह,<br />

उस<br />

भीड़ म कु छ यासे भी ह--जो तड़प रहे ह और जह कहं जल-ोत नहं पड़ता; जहां जाते<br />

ह पाखंड है, जहां जाते ह यथ क बकवास है, जहां जाते ह शा का तोता-रटंत यवहार<br />

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है, पुन है। वैसे कु छ लोग ह। थोड़े से वैसे ह लोग इकठे होने लग क संघ िनिमत हो<br />

जाए। संघ िनिमत होना शु हो गया है। यह मशाल जलेगी। यह मशाल इस अंधेरे को तोड़<br />

सकती है। सब तुम पर िनभर है!<br />

दसरा <br />

ू : भगवान! आज के वचन म अणुत क आपने बात क। मेरा जम उसी परवार<br />

से है, जो आचाय तुलसी के अनुयायी ह। बचपन से ह आचाय तुलसी के उपदेश ने कभी<br />

दय को नहं छु आ। अभी उहने अपना उरािधकार आचाय मुिन नथमल को आचाय<br />

महाा नाम देकर बनाया है। वे ठक आपक ह टाइल से वचन देते ह, मगर उहने<br />

भी कभी दय को नहं छु आ। और आपके थम वचन को सुनते ह आपके चरण मग<br />

समपत होने का भाव पूरा हो गया और समपण कर दया।<br />

भगवान, यह कस जम क यास थी जो आपका इंतजार कर रह थी? बताने क कृ पा<br />

कर।<br />

कृ ण सयाथ! आचाय तुलसी को म भलीभांित जानता हं। दोीन बार िमलना हआ है।<br />

ू ु<br />

िनतांत थोथापन है और कु छ भी नहं। कै से दय को छु एंगे तुहारे! दय हो तो दय को<br />

छु आ जा सकता है। बस बातचीत है, शा क याया है, वेषण है। वह भी मौिलक<br />

नहं; वह भी उधार, उछ।<br />

आचाय तुलसी का िनमंण था मुझे, तो गया िमलने। कहा: एकांत म िमलगे। बहत लोग<br />

ु<br />

उसुक थे क दोन क बात सुन। मगर उहने कहा क नहं, बस िसफ एक मेरे िशय<br />

मुिन नथमल रहगे, और कोई नहं रहेगा। सब लोग को वदा कर दया गया। मने कहा भी<br />

क हज या है, और लोग को भी रहने द। वे भी सुन, चुपचाप बैठे रह। य उह वंिचत<br />

करते ह? बड़ आशा से आए ह।<br />

कोई सौ-डेढ़ सौ लोग क भीड़ थी। मगर वे राजी नहं हए। म थोड़ा हैरान हआ क उह<br />

ु ु<br />

या अड़चन है। लेकन पीछे पता चला क अड़चन थी। लोग जब वदा हो गए तब उहने<br />

पूछा: यान के संबंध म समझाएं, यान कै से कं? तब मेर समझ म आया, दो सौ डेढ़<br />

सौ लोग के सामने पूछना क म यान कै से कं, मुकल बात होती। उसका तो अथ होता<br />

क अभी यान हआ ु ह नहं। सात सौ जैन साधुओं के आचाय ह वे और हजार तेरा-पंिथय<br />

के गु ह। अभी गु को, आचाय को यान नहं हआ<br />

ु ! यह तो खबर आग क तरह फै ल<br />

जाती। इसे एकांत म ह पूछना जर था।<br />

मने कहा: यान नहं हआ ु आपको!<br />

तो फर आप अब तक करते या रहे ह? फर लोग को<br />

या समझा रहे ह? जब आपको ह यान नहं हआ ु तो लोग को या समझाएंगे?<br />

लोग को<br />

या बांटगे?<br />

उहने कहा: इसिलए तो आपको िनमंत कया क समझ लूं<br />

क यान कै से करना है।<br />

लेकन वह बात भी झूठ थी। वह बात भी राजनीित क बात थी। आचाय तुलसी म मुझे<br />

शु राजनीित दखाई पड़। सीखने के िलए नहं उहने मुझे बुलाया था। योजन कु छ और<br />

था, वह पीछे साफ हआ।<br />

ु<br />

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वे मुझसे पूछने लगे यान के संबंध म, म यान के संबंध म उह समझाने लगा और<br />

मुिन नथमल नोट लेने लगे। मने बीच म कहा भी क नोट लेने क कोई जरत नहं है।<br />

आप को भी अवसर िमला है, आप भी चुपचाप बैठकर समझ ल। म मौजूद हं तब समझ<br />

ू<br />

ल। नोट लेने म ह समय खराब मत कर।<br />

नहं, लेकन आचाय तुलसी ने कहा:। उह नोट लेने द, ताक हमारे पीछे काम आ सक ।<br />

समझ क कमी हो तो ह नोट क जरत, नहं तो नोट या लेना है। लेकन योजन और<br />

ह था। तेरा-पंिथय का समेलन था, कोई बीस हजार लोग इकठे थे। दोपहर मुझे तेरा-<br />

पंिथय के समेलन म बोलना था। मुिन नथमल ने सारे नोट ले िलए, जो घंट-डेढ़ घंटे मेर<br />

बात आचाय तुलसी से हई।<br />

ु<br />

अचानक, कायम का यह हसा नहं था; मुझे बोलना था, मेरे बोलने क घोषणा करने<br />

के पहले आचाय तुलसी ने कहा क मुझसे बोलने से पहले मुिन नथमल बोलगे। तब मुझे<br />

पता चला क नोटस लेने का योजन या था।<br />

मुिन नथमल ने शदशः जो मेर डेढ़ घंटे बात हई ु थी वह दोहरायी,<br />

शदशः! न उह यान<br />

का पता है, न उनके गु को यान का पता है--और यान या है, यह समझाया! तब<br />

योजन साफ हआ। ु योजन यह था क म यान के संबंध म लोग को समझाऊं गा,<br />

उसके<br />

मुिन नथमल बोल ताक लोग को जाहर हो जाए क यान तो हम भी जानते ह। कोई ऐसा<br />

नहं क हमारे मुिन यान नहं जानते।<br />

लेकन मुझे तो आप जानते ह क मुझे वरोधाभास म कोई अड़चन नहं है। मने खंडन<br />

कया। दोन चके । दोन आंख फाड़-फाड़कर देखने लगे क बात या हई<br />

ु ! जो म बोला था<br />

डेढ़ घंटे और जसको मुिन नथमल ने दोहराया था, तोते क तरह, उसका मने शदशः<br />

खंडन कया। एक-एक इंच खंडन कया।<br />

रात जब आचाय तुलसी से फर िमलना हआ<br />

ु , उहने कहा क आप हैरान करते ह। आपने<br />

ह तो ये बात कहं थीं। मने कहा: अब आप समझे? मने कहा था लोग को रहने दो। अगर<br />

लोग रहते तो म खंडन न कर पाता। आप राजनीित खेले। म कोई राजनीित नहं हं<br />

ू,<br />

लेकन राजनीित के खेल पहचान सकता हं।<br />

ू<br />

वे नोटस कसिलए िलए गए थे, यह भी जाहर हो गया। अचानक बना पूव कायम के<br />

मुिन नथमल को य मुझसे पहले बुलाया गया, वह भी जाहर हो गया। लेकन एक<br />

अड़चन हई। ु आखर जब तुम कसी और क बात दोहराओ तो उस म ाण नहं होते , उस<br />

म बल नहं होता। ओठ पर ह होती है; उस म तुह दय क धड़कन नहं होती। उस म<br />

तुहारे खून का वाह नहं होता। उस म तुहारे र क गम नहं होती।<br />

तो मुिन नथमल ने दोहरा दया, जैसे तोते दोहराते ह--राम-राम, तोता-राम, सीता-राम!<br />

और तोते को या लेना सीता से, या लेना राम से! उसे पता भी नहं कौन सीता, कौन<br />

राम! मगर तोते को िसखा दया तो तोता दोहराता है। अब तोते को तुम दोहराते सुनकर<br />

राम-राम सोचते हो, तुह एकदम से राम क याद आ जाएगी, क तुम झुक कर तोते को<br />

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णाम करोगे? तो दोहराया तो उहने और सोचा था इस आशा म क जस तरह लोग मेर<br />

बात से आंदोिलत होते ह, भावत होते ह, झंकृ त होते ह--ऐसे ह झंकृ त हो जाएंगे। कु छ<br />

झंकार न हई। ु तो उसके िलए भी बहाना<br />

खोजा क झंकार न होने का कारण यह है क इतने<br />

लोग और मुिन नथमल बना माइक के बोले। तब तक आचाय तुलसी और उनके मुिन माइक<br />

से नहं बोलते थे। यक जैन शा म माइक से बोलना चाहए, इसका कोई उलेख नहं<br />

है। तो उस दन उहने यह बहाना िनकाला क लोग इसिलए भावत नहं हए। यप मुिन<br />

ु<br />

नथमल ने पूर ताकत लगाई जतनी लगा सकते थे, मगर लोग तक आवाज नहं पहंची।<br />

ु<br />

उसी दन तेरा-पंथ म माइक से बोलने का मुिनय ने का शु कया, क शायद माइक क<br />

कमी थी। आमा क कमी थी, माइक क कमी ह थी। माइक से भी तोते को बुलवाओगे तो<br />

माना क बहत ु लोग तक शोरगुल पहंचाएगा ु , यादा लोग तक खबर पहंचेगी ु --सीताराम-<br />

सीताराम! मगर तोता तोता है।<br />

तोते पर भरोसा नहं कया जा सकता। और तोते क आंख म दए नहं जलते। तोता बोलता<br />

तो है, मगर ऐसा नहं लगता क तोता समझता है।<br />

आचाय तुलसी ने तुम कह रहे हो क अब उहं मुिन नथमल को अपना उरािधकार बना<br />

िलया है। तोतेोत को खोज लेते ह। यह बलकु ल वाभावक है। तुम उस घर म पैदा हए<br />

ु ,<br />

उस परवार म पैदा हए<br />

ु , फर भी तुह वे भावत न कर पाए। कारण सीधा-साफ है। तुम<br />

म थोड़ सी बु है, इसिलए। तुम म थोड़ सी चमक है, तुम म थोड़ा वचार है, तुम म<br />

थोड़ धार है-- इसिलए। तुम अगर बलकु ल बोले होते तो तुह भावत करते। लेकन<br />

तुहारे पास आंख ह देखने वाली और इसिलए भावत नहं कर पाए। तुम समझ सकते हो<br />

इतनी बात क दय से आती है या िसफ ओठ से। तुम इतनी बात पहचान सकते हो क<br />

यह गीत अपना है या पराया बासा।<br />

तुम कहते हो क वे आपक ह टाइल म वचन देते ह; यह भी सीखा हआ है। यह<br />

ु<br />

जानकर तुम हैरान होओगे क जो सवािधक मेरे वरोध म ह वे सवािधक मेर कताब पढ़ते<br />

ह। जैन मुिनय के जतने आडर आम को उपलध होते ह कताब के िलए, उतने कसी<br />

और के नहं। ऐसा कोई जैन मुिन क जैन सावी नहं जो मेर कताब न पढ़ती हो। लेकन<br />

उन कताब को पढ़कर तुम यह मत सोचना क वे कु छ समझते ह, या उनके जीवन म<br />

कोई पांतरण होता है, या उनके जीवन म कोई ांित क अभीसा है। नहं, उन कताब<br />

को पढ़ते ह ताक वचन दे सक, ताक शैली पकड़ म आ जाए यक उन सब को खयाल<br />

है क मेर शैली म कु छ बात होगी, इस से लोग भावत ह। शैली म कु छ भी नहं है। मेरे<br />

पास कोई शैली है? मेरे बोलने म कोई ढंग ह? मेरा जैसा बेढंगा बोलने वाला देखा?<br />

मेरा बोलना वैसे ह है जैसे म कु छ दन पहले तुह उलेख कया था क एक कव ने एक<br />

जाट को देखा क िसर पर खाट िलए जा रहा है। कव बोल रहा है: जाट रे जाट, तेरे िसर<br />

पर खाट!<br />

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और जाट भी कै से चुप रह जाए! जाट ने कहा: कव रे कव, तेर ऐसी क तैसी। कव ने<br />

कहा: काफया नहं बैठता, तुकबंद नहं बैठती। जाट ने कहा: तुकबंद बैठे क न बैठे, मुझे<br />

जो कहना था सो कह दया।<br />

ऐसा मेरे कहने का ढंग है, यह कोई शैली है?<br />

शैली के कारण नहं तुम मुझसे जुड़ गए हो। जुड़ने के कारण आंतरक ह, बा नहं ह। मेरे<br />

पास न तो शाीय शद ह, न शाीय िसांत है। न म संकृ त जानता, न ाकृ त, न<br />

पाली, न अरबी, न लैटन, न ीक! लेकन अपने को जानता हं। परमामा को जानता हं।<br />

ू ू<br />

और उस जानने म सब जान िलया गया।<br />

एक जगह म बोल रहा था। मने कहा क महावीर ने ऐसा कहा है। एक जैन पंडत खड़े हो<br />

गए। क बात है। उहने कहा क ऐसा नहं कहा है। आप सुधार कर। मने कहा: म सुधार<br />

करने म भरोसा नहं करता। अगर सुधार ह करना हो तो आप अपनी कताब म जसम<br />

महावीर का वचन हो, वहां सुधार कर लेना।<br />

वे तो एकदम भचके खड़े रह गए। उहने कहा: आप या कहते ह? महावीर क वाणी म<br />

सुधार कर लेना! मने कहा क म अपने को जानकर बोल रहा हं। अगर महावीर ने कहं कहा<br />

ू<br />

है तो कहना चाहए था। जोड़ दो। म गवाह हं क कहना ह चाहए था।<br />

ू<br />

नागपुर म था। एक वचन म मने बु के जीवन म एक कहानी का उलेख कया। बौ-<br />

िभु, एक िस बौ-िभु, मुझे िमलने आए सांझ। उहने कहा: कहानी तो यार थी,<br />

मगर म सब शा पढ़ गया, कहं नहं है। आप कस माण पर, कस आधार पर यह<br />

कहानी कहे?<br />

मने कहा: कहानी खुद अपने म माण िलए ह, वनः माण है। उहने कहा: वतः<br />

माय? मने कहा: नहं घट, तो घटना चाहए थी।<br />

कहानी छोट सी थी क बु एक गांव से गुजर रहे ह। अभी बुव उपलध नहं हआ<br />

ु ,<br />

उसके पहले क बात है। बस दो चार दन पहले क बात है। करब ह करब है सुबह। शायद<br />

भोर के पहले-पहले पी जाग भी गए, आखर तारे डू बने भी लगे। ाचीन लाल हो उठ है,<br />

बस सूरज िनकला-िनकला। ऐसे बस दो-चार दन बचे ह। और बु एक गांव से गुजर रहे ह।<br />

आनंद साथ है। आनंद ने कोई पूछा है, उसका उर दे रहे ह। तभी एक मखी उनके<br />

िसर पर आ बैठ तो उस मखी को हाथ से उड़ा दया। दो कदम चले; फर गए। फर से<br />

हाथ माथे क तरह ले गया। अब वहां कोई मखी नहं है, वह तो कब क उड़ गई। फर से<br />

मखी उड़ाई जो है ह नहं!<br />

आनंद ने पूछा: आप या कर रहे ह? पहली बार तो मखी थी, इस बार म कोई मखी<br />

नहं देखता। आप कस को उड़ा तो रहे ह?<br />

बु ने कहा: पहली बार मने यंवत उड़ा द, वह भूल हो गई। मूिछत उड़ा द। तुमसे बात<br />

करता रहा और मखी उड़ा द। यानपूवक नहं। हाथ क चोट भी लग सकती थी मखी<br />

को। मखी मर भी सकती थी। यह तो जागक िच का यवहार नहं है। चूक हो गई। अब<br />

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इस तरह उड़ा रहा हं जस<br />

ू<br />

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तरह पहले उड़ानी चाहए थी। अब यानपूवक उड़ा रहा हं।<br />

ू<br />

हालांक मखी नहं है, लेकन अयास तो हो जाए; फर कभी मखी बैठे तो ऐसी भूल न<br />

हो। तो अब मखी नहं है, लेकन उड़ा रहा हं यानपूवक। मेरा पूरा हाथ यान भरा हआ<br />

ू ु<br />

है। अब यंवत नहं उड़ा रहा हं।<br />

ू<br />

बौ-िभु ने कहा: कहानी तो बड़ यार लगी, मगर िलखी कहां है? मने कहा: िलखी हो<br />

या न िलखी हो। िलखा-िलखी क बात ह कहा है! िलख लो! और जद ह मेर कसी<br />

कताब म िलख जाएगी, फर पढ़ लेना, अगर िलखे का ह भरोसा है।<br />

नहं, उहने कहा: मेरा मतलब यह नहं। मेरा मतलब यह क ऐितहािसक है या नहं?<br />

मने कहा: इितहास क अगर िचंता करने चलो, तब तो बु भी ऐितहािसक ह या नहं, तय<br />

करना मुकल हो जाएगा। कृ ण ऐितहािसक ह या नहं, तय करना मुकल हो जाएगा। हए<br />

ु<br />

भी इस तरह के लोग कभी या नहं हए<br />

ु , यह तय करना मुकल हो जाएगा। अगर इसिलए<br />

क ह िचंता करते हो तो तो बु भी िस नहं हगे।<br />

और फर, ये अंतर क घटनाएं इितहास क रेत पर चरणिच नहं छोड़ती। ये अंतर क<br />

घटनाएं तो जैसा दरया कहते है--आकाश म जैसे पी उड़े और पैर के िच न छू ट क<br />

पानी म मीन चले और पीछे कोई िनशान न छू टे!<br />

इितहास तो ु क गणना करता है। इितहास का कोई बड़ा मूय नहं है। इितहास तो यथ<br />

का हसाब-कताब रखता है। म तो जो कह रहा हं ू वह इितहास नहं है,<br />

पुराण है। और<br />

पुराण समा नहं होता। पुराण के या है। बु आते रहगे और बु के जीवन म जोड़ते<br />

रहगे--नई कथाएं, नए बोध, नए संग, नए आयाम। हर बु अपने अतीत बु के जीवन<br />

मग नए रंग डाल जाता है, नए जीवन डाल जाता है। फर-फर पुनः-पुनः पुनजीवत कर<br />

जाता है।<br />

तुहारे पास अगर दय है तो कोई उपाय नहं है, तुम मेरे दय के साथ धड़कोगे। और वह<br />

हआ ु कृ ण सयाथ!<br />

धम का कोई संबंध जम से नहं है। काश, धम इतना आसान होता क जम से ह धम<br />

िमल जाता तो सभी दिनया म लोग धािमक होते<br />

ु --कोई ईसाई, कोई हंदू, कोई मुसलमान!<br />

लेकन जम से धम का कोई संबंध नहं है। जम से धम का संबंध जोड़ना वैसा ह<br />

मूढ़तापूण है जैसे कोई कसी कांेसी के घर म पैदा हो और कहे क म कांेसी हं यक म<br />

ू<br />

कांेसी घर मग पैदा हआ। ु तो तुम भी हंसोगे क पागल हो गए हो!<br />

कयूिनट के घर म<br />

पैदा हो गए तो कयूिनट हो गए!<br />

पैदा होने से वचार का कोई संबंध नहं है। धम का भी कोई संबंध नहं है। धम तो और<br />

गहर बात है--िनवचार क बात है। वचार तक का संबंध नहं जुड़ता जम से तो िनवचार<br />

का तो कै से जुड़ेगा?<br />

लेकन तुम सौभायशाली हो क तुम लीक पर न चले। अयथा लोग लीक पर चलते ह।<br />

लीक म सुवधा है। जहां सभी भीड़ रह है, जस भीड़ म तुम पैदा हए ु हो,<br />

अगर तेरा-<br />

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पंिथय क भीड़ है तो चले तुम भी तेरा-पंिथय क भीड़ म, मुसलमान क तो मुसलमान<br />

क, हंदओं क तो हंदओं क<br />

ु ु --चले भीड़ म! भीड़ म सुवधा है, पता भी जा रहे, मां भी<br />

जा रह है, भाई भी जा रहे, िम भी जा रहे, परवार, पड़ोस सब जा रहा। अके ले, तुम<br />

अलग-अलग चलो तो िचंता पैदा होती है, संशय जगते ह, सुवधाएं उठती ह क पता नहं<br />

म ठक कर रहा हं ू क गलत। भीड़ म यह रहता है,<br />

जब इतने लोग कर रहे ह तो ठक ह<br />

कर रहे हगे। और मजा यह है क उनम से हर एक यह सोच रहा है क जब इतने लोग<br />

कर रहे ह तो ठक ह कर रहे हगे।<br />

भीड़ म एक तरह क सुरा है। लेकन भीड़ तुह भेड़ बना देती है। और जो भीड़ बने गया<br />

वह या परमामा को पाएगा, या सय को पाएगा! उसे पाने के िलए तो िसंह होना पड़ता<br />

है, िसंहनाद करना होता है। उसके िलए तो चलना पड़ता है अपना ह राता बनाकर। हां,<br />

कभी-कभी जब तुह कसी िसंह क दहाड़ सुनाई पड़ जाएगी। तो तुहार भीतर सोया हआ<br />

ु<br />

िसंह जग जाएगा।<br />

तोत क बात सुनकर कर यादा से यादा तुम तोते हो सकते हो, बस और कु छ नहं हो<br />

सकते। िसंह क दहाड़ सुनकर शायद तुहार छाती म सोई हुई, सोई जम-जम से जो<br />

ितभा है, अंकु रत हो उठे ।<br />

तुमने उस बूढ़े िसंह क कहानी तो सुनी न, जसने एक दन देखा क एक जवान िसंह भेड़<br />

के बीच घसर-पसर भागा जा रहा है। वह बड़ा हैरान हआ। ऐसा चमकार कभी देखा न था।<br />

ु<br />

और भेड़ उस से परेशान भी नहं ह, उसी के साथ भाग रह ह। इस बढ़े िसंह को देखकर<br />

भाग रह ह और जवान िसंह उहं के बीच म भागा जा रहा है। बूढ़े से रहा न गया। दौड़ा,<br />

बामुकल पकड़ पाया। पकड़ा िसंह को। जवान िसंह ररयाएं, िमिमयाए। यक संयोग से<br />

वह भेड़ के बीच ह बड़ा हआ ु था। उसक मां एक छलांग लगा रह थी एक टले से दसर ू<br />

टले पर और बीच म ह बचे का जम हो गया। मां तो छलांग लगाकर चली गई, बचा<br />

िगर पड़ा नीचे भेड़ के एक झुंड<br />

म। उसी म बड़ा हआ ु , घास-पात चरा। उहं क भाषा<br />

सीखी--ररयाना-िमिमयाना सीखा, डरना-घबराना सीखा। उसे याद भी आए तो कै से आए<br />

आए क म िसंह हं<br />

ू, चेताए तो कौन चेताए।<br />

सार भेड़ भागती थीं िसंह को देखकर तो वह भी भागता था--अपने वाल के साथ। लेकन<br />

इस बूढ़े िसंह ने उसे पकड़ा। वह िगड़िगड़ाए, पसीना-पसीना! जवान िसंह पसीना-पसीना! बूढ़ा<br />

कहे क तू शांत तो हो। मगर वह कहे: मुझे छोड़ो, मुझे जाने दो, मेरे लोग जा रहे ह! वे<br />

सब तेरा-पंथी चले! और तुम मुझे रोक रहे हो। मुझे जान बशो।<br />

मगर बूढ़ा नहं माना। उसे घसीट कर तालाब के कनारे ले गया और कहा क झांक तालाब<br />

म और देख मेरा चेहरा और चेहरा!<br />

दोन ने झांका, बस एक ण म ांित घट गयी।<br />

एक दहाड़ उठ। उस जवान िसंह क छाती म सोई हई ु गजना उठ। पहाड़ कं प गए,<br />

घाटयां<br />

गूंज<br />

उठं।<br />

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कु छ कहा नहं, बस चेहरा दखा दया। जवान िसंह को दखाई पड़ गया क अरे, म भी<br />

भेड़ म जी रहा था। म तो ऐसा ह हं जैसा तुम। म तो वैसा ह हं जैसा यह िसंह। बस<br />

ू ू<br />

इतना बोध!<br />

सदगु का इतना ह काम है क पकड़ ले तुह। तुम चाहे कतने ह िमिमयाओ-ररयाओ,<br />

भागो, वह पकड़ कर तुह ले ह जाए कसी दपण के पास। उसके सारे वय दपण ह।<br />

उसक मौजूदगी दपण है। उसका ससंग दपण है। वह तुह अपना चेहरा पहचाने क<br />

यवथा करा रहा है। और एक ह उपाय है क वह अपनी अंतरामा तुहारे सामने उघाड़<br />

कर रख दे, क तुम देख सको क अरे, यह तो मेरे भीतर भी है! और उठे हंकार और तुम<br />

ु<br />

भी भर जाओ ओंकार के नाद से और तुहारे भीतर भी िसंह क गजना हो।<br />

ऐसा ह कु छ हआ ु होगा,<br />

कृ ण सयाथ! तुम पहली ह बार आए और समपत हो गए,<br />

संयत हो गए। वे लौटकर जाओ तो भेड़ तुह बहत ु दकत दगी। वे कहगी क चलो तेरा-<br />

पंथ म वापस! यह तुह या हआ<br />

ु ? होश गंवा दया? समोहत कर िलए गए! अपने<br />

परवार का धम, अपना धम गंवाया! कु छ तो लोक-लाज का सोचा होता, कु छ तो परवार<br />

क िता क िचंता क होती! अगर संयत ह होना था तो आचाय तुलसी से होते या मुिन<br />

नथमल से होते। तुम कहां इस उपवी आदमी के हाथ म पड़ गए! यह तुह भटकाएगा,<br />

यह तुह खतर म ले जाएगा।<br />

घर जाओगे तो भेड़, थोड़ दकत दगी, तुम घबड़ाना मत। जब भी भेड़ थोड़ दकत द,<br />

तेरा-पंथी इकठे ह, एकदम िसंहनाद करना। आचाय तुलसी भी कं पगे और मुिन नथमल भी<br />

कं पगे।<br />

तीसरा : म दख से इतना परिचत हं क सुख का मुझे भरोसा ह नहं आता है। एक दख<br />

ु ु<br />

ू<br />

गया क दसरा आया<br />

ू , बस ऐसा ह िसलिसला चलता रहता है। या कभी म सुख के दशन<br />

पा सकूं<br />

गा? माग दखावे क सुख पाने के िलए या कं? म सब कु छ करने को तैयार हं। ू<br />

रामवलास! दख अके ला नहं आता। कोई दख अके ला नहं आता। यक कोई दख अके ला<br />

ु ु ु<br />

नहं जी सकता। दख ु क शृ ंखला होती है,<br />

जैसे जंजीर क शृ ंखला होती है। कड़य म<br />

कड़यां पोई होती ह। ऐसे दख के पीछे दख आते ह। एक दख दसरे दख को लाता है। और<br />

ु ु ु ू ु<br />

ऐसे ह सुख क भी शृ ंखला होती है। एक सुख दसरे ू सुख को लाता है। तुहारे हाथ म है क<br />

तुम कौन सी शृ ंखला को शु करो। अगर तुम अपने भीतर सुख जमाओ तो बाहर भी<br />

तुहारे जीवन म सुख ह सुख फै ल जाएगा।<br />

जीसस का बड़ा िस वचन है, और बड़ा अनूठा: जनके पास है उह और दया जाएगा;<br />

और जनके पास नहं है उनसे वह भी छन िलया जाएगा जो उनके पास है! तक यु नहं<br />

मालूम होता। याययु नहं मालूम होता। होना तो दसर ू बात चाहए। कहना था जीसस को:<br />

जनके पास नहं है उह दया जाएगा; और जनके पास है उनसे छन िलया जाएगा। यह<br />

कहते तो बात याययु मालूम होती। मगर यह या बात कह क जनके पास है उह और<br />

दया जाएगा।<br />

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ठक कहा लेकन, जीवन का वह परम िनयम है। तुहारे पास जो हो वह तुहारे ित<br />

आकषत होने लगता है। अगर सुख है तो चार तरफ से सुख क धाराएं तुहार तरफ बहने<br />

लगगी। अगर दख है तो दख क धाराएं बहने लगगी। और अगर तुम बाहर के दख को<br />

ु ु ु<br />

काटने म लग गए और यह याद ह न कया क भीतर दख ु का चुंबक<br />

तुमने बार रखा है तो<br />

तुम काटते रहो बाहर दखु , उससे कु छ अंतर न पड़ेगा; दख ु आते रहगे और तुह और-और<br />

सताते रहगे। तुहारे चार तरफ नक िनिमत हो जाएगा।<br />

लेकन जड़ अगर समझ म आ जाए क भीतर है तो दख को काट देना कठन नहं। एक<br />

ु<br />

तलवार क चोट म दख ु काटा जा सकता है। और मजे क बात,<br />

क दख ु के जाते ह शेष<br />

रह जाता है वह सुख है। सुख दख ु के वपरत नहं है,<br />

सुख दख ु का अभाव है। जहां दख ु<br />

नहं है वहां जो रह गया शेष वह सुख है। इसिलए सुख क कोई परभाषा भी नहं हो<br />

सकती। जैसे वाय क कोई परभाषा नहं हो सकती। पूछो िचकसक से वाय क<br />

परभाषा। वे कहगे: जो बीमार नहं वह वथ। अगर तुम जाओ अपने वाय का परण<br />

करवाने तो या तुम सोचते हो तुहारे कया जाता है वाय का कोई परण हो ह नहं<br />

सकता। अब तक कोई यं नहं है, जो खबर दे सके क यह आदमी वथ है। हां, हजार<br />

यं ह जो खबर देते ह क यह आदमी इस बीमार, उस बीमार से भरा है। जब सभी<br />

बीमार बताने वाले यं कह देते ह क कोई बीमार नहं तो िचकसक कह देता है तुम<br />

वथ हो।<br />

तो वाय का अथ हआ ु : बीमार का अभाव। ऐसे ह सुख का अथ होता है: दख ु का<br />

अभाव।<br />

सब से बड़ा दख ु या है?<br />

सब से बड़ा दख ु यह है क तुम सदा सोचते हो क दख ु बाहर से<br />

आते ह। यह सब से मौिलक आधारभूत बात समझने क है। दख ु बाहर से नहं आते ; तुम<br />

बुलाते हो तो आते ह। कोई अितिथ बना-बुलाए नहं आता। सब मेहमान तुहारे बुलाए आते<br />

ह। हां, यह हो सकता है क तुम जो ेम-पाितयां िलखते हो दखु को, वे इतनी मूछा म<br />

िलखते हो क तुह पता ह नहं चलता क कब तुमने िलख भेजीं। बेहोशी म बुला लेते हो,<br />

फर तड़पते हो।<br />

मुला नसन से कोई कह रहा था: धय है वह युवक जसक मािसक आय के वल<br />

पचहर पए हो, फर भी वह एक भले आदमी क तरह जीवन बता रहा हो।<br />

मुला नसन ने कहा: इतने पए म वह और कर भी या सकता है?<br />

दख ु के खरदने के िलए भी सुवधा चाहए। सुख के खरदने के िलए भी अवसर चाहए,<br />

समय चाहए, अनुकू लता चाहए। दख ु भी मुत नहं िमलता,<br />

बड़ा म करना पड़ता है!<br />

सच तो यह है, सुख मुत िमलता है और दख ु मुत नहं िमलता;<br />

यक सुख तुहारा<br />

वभाव है, कला ह हआ ु है। िसफ दख ु से आछादत न होने दो। और दख ु पर भाव है,<br />

िमला हआ नहं है बाहर से पकड़ना पड़ता है।<br />

ु<br />

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तुम भी पकड़ने को उसुक हो दखु , यक दख म बड़े यत वाथ ह। कई खूबी क बात<br />

ु<br />

ह दुख म, नहं तो हर कोई पकड़े य? बड़ खूबी तो यह है क दखी आदमी पर सभी दया<br />

ु<br />

करते ह, सब सहानुभूित करते ह। दखी आदमी क सब सेवा करते ह। दखी आदमी क कोई<br />

ु ु<br />

िनंदा नहं करता। कोईर ् ईया नहं करता दखी ु आदमी से। जससे जतना बने,<br />

दखी ु क<br />

सेवा ह करते ह सब। ये दख क खूबयां ह। तुम अगर रोओ तो लोग तुहारे आंसू पछते<br />

ु<br />

ह। तुम अगर हंसो तो लोग एकदमर ईया से भर जाते ह।<br />

्<br />

तुहारे मकान म आग लग जाए तो सारा मुहला संवेदना कट करने आता है। जरा गौर से<br />

देखना, उनक संवेदना के भीतर बड़ा रस है, क भीतर-भीतर वे कह रहे ह क धयवाद<br />

भगवान का, क इसी का जला, अपना न जला; और जलना ह था, पाप का भंडाफोड़<br />

होता ह है! भीतर वे यह कह रहे ह, ऊपर यह कह रहे ह: बड़ा बुरा हआ<br />

ु , बड़ा हआ<br />

ु ! बड़<br />

सहानुभूित दखा रहे ह, क फर बन जाएगा, अरे मकान ह है। हाथ का मैल है पैसा तो,<br />

फर कमा लोगे! अब दखी न होओ<br />

ु , जो हआ सो ठक हआ<br />

ु ु ! चलो, कोई रहा होगा पछले<br />

जम का पाप, कट गया, झंझट िमट! मकान तो फर बन जाएगा। बड़ ऊं ची ान क<br />

बात करगे वे। सहानुभूित दखाएंगे। लेकन तुम अगर बड़ा मकान बना लो तो पड़ोस म से<br />

कोई नहं आएगा तुह धयवाद देने क हम खुश ह, हम सन ह क तुमने बड़ा मकान<br />

बना िलया। लोग, राते पर िमल जाओगे तो कनी कट जाएंगे, बचकर िनकल जाएंगे।<br />

म कलके म एक घर म मेहमान होता था। कलके का सब से सुंदर<br />

मकान है वह। बड़ा<br />

बगीचा है, सारा मकान संगममर का है। बचे ह नहं परवार को और धन बहत है। वे सदा<br />

ु<br />

जब भी म उनके घर कता था तो अपना मकान दखलाते, बार-बार, कई दफा दखला<br />

चुके थे। बगीचे म ले जाते, यह दखलाते वह दखलाते।<br />

एक बार म गया, उहने मकान क बात ह न उठाई, तो म थोड़ा िचंितत हआ वे तो<br />

ु<br />

मकान ह मकान से भरे रहते थे। मने कहा। हआ ु या तुह?<br />

एक दम तुम बुव को<br />

उपलध हो गए, या या हआ<br />

ु ? मकान का या हआ<br />

ु ? कु छ बात ह नहं करते इस बार<br />

मकान क! म तो इतने दर से आता हं यह बात सुनने।<br />

ू ू<br />

उहने कहा: अब बात ह नहं करनी मकान क। अभी साल-दो साल बात ह नहं कर<br />

सकता।<br />

बात या है? आखर बात के पीछे कु छ बात होगी?<br />

उहने कहा: बात यह है, देखते नहं पड़ोस म!<br />

उनसे बड़ा मकान उठकर खड़ा हो गया है। और उनका दल बैठ गया, उनक छाती टट ू गई।<br />

मने उनसे कहा: तुहारा मकान तो जैसा है वैसा ह है, तुम य परेशान हो रहे हो?<br />

उहने कहा: अब वैसा ह नहं है, यह बड़ा मकान देखते हो।<br />

तब मुझे याद आई अकबर क कहानी: उसने एक दन अपने दरबार म एक लकर खींची थी<br />

और कहा था दरबारय को: इसे बना छु ए छोटा कर दो। कोई न कर सका था, फर उठा<br />

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बीरबल, उसने एक बड़ लकर उस लकर के नीचे खींच द। उसे छु आ नहं और वह छोट<br />

हो गई।<br />

म उनक पीड़ा समझा। मने उनसे कहा: जाकर कम से कम पड़ोस के आदमी को धयवाद<br />

तो दे आओ।<br />

उहने कहा: धयवाद! कल आप का िनमंण है उसके घर, मुझे भी िनमंण दया है। म<br />

भी जानता हं ू य दया है। दखलाने के िलए। म आनेवाला नहं,<br />

आपको अके ले ह जाना<br />

पड़ेगा। वे नहं गए।<br />

इस संसार म दखी आदमी के िलए सहानुभूित करने वाले लोग िमल जाते ह। सुखी आदमी<br />

ु<br />

से िसफ र ईया करने वाले लोग िमलते ह। तो दख म एक यत वाथ हो जाता है। तुम<br />

् ु<br />

सहानुभूित म रस लेते हो। इसीिलए तो लोग अपने दख ु क गाथाएं कहते ह, एक-दसरे ू से<br />

दख ु क कहािनयां सुनाते ह। न सुनना चाह,<br />

उनको भी सुनाते ह।<br />

एक कव के यहां एक ोता फं सा<br />

पहले तो वह उसे देखकर हंसा<br />

फर उसे दया आई<br />

उसने फौरन दो कप चाय मंगायी<br />

खुद भी पी उसे भी पलायी उसके बाद कव जी मूड म आए<br />

तीन घंटे म बीस मुक और इकस गीत सुनाए<br />

ोता ने जाने के िलए कदम बढ़ाया<br />

तो पीछे खड़े पहलवान का आदेशामक वर आया<br />

उठने क कोिशश बेकार है, वहं बैठे रहए<br />

ोता ने पूछा: आप कौन ह?<br />

म कव जी का नौकर हं<br />

ू,<br />

इसी बात क तनवाह पाता हं<br />

ू<br />

जबरदती गीत सुनवाता हं<br />

ू<br />

जब सुनने वाला बेहोश हो जाता है<br />

तो उसे अपताल भी पहंचाता हं।<br />

ु ू<br />

ोता बोला: दो घंटे और सुनता रहा<br />

तो ाण पखे उड़ जाएंगे।<br />

पहलवान क आवाज आई<br />

कव जी पूरा काय नहं सुनाएंगे तो<br />

यह मर जाएंगे।<br />

एक घंटे बाद ोता कहा:<br />

कव जी आा दजए<br />

अब हम घर जा रहे ह।<br />

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पहलवान क फर आवाज आयी:<br />

आप अभी से घबरा रहे ह<br />

इनके पताजी भी कह ह<br />

इसके बाद वह आ रहे ह।<br />

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फर एक दख के पीछे दसरा दख चला आता है। फर बेटा गया तो पताजी आ रहे ह।<br />

ु ू ु<br />

लेकन शुआत। तुम गए ह काहे को कव जी के घर? और जब वे हंसे थे तभी य न<br />

िनकल भागे? और जब एक कप चाय पलायी थी तब ह य न चके? जब चाय पी ली तो<br />

फर िनकलना मुकल हो जाता है। फर नमक खाओ तो बजाना भी पड़ता है, नहं तो लोग<br />

कहते ह: नमकहराम!<br />

सावधानी पहले से बरतो। दख ु का मूल कहां है?<br />

दख ु का मूल है अहंकार म।<br />

म हं ू, इस भाव म दख ु का मूल है। यह सार बीमारयां<br />

क जड़ है, सार बीमारयां इसी के<br />

पे ह। और इसे तुम छोड़ते नहं, इसे तुम पकड़ कर बैठे हो। और ये बलकु ल सरासर झूठ<br />

है। तुम नहं हो, परमामा है। म नहं हं<br />

ू, परमामा है। लहर समझ रह है अपने को क<br />

म हं<br />

ू, जब क सागर है, लहर कहां? और फर जब तुम झूठ को जीने लगते हो तो फर<br />

उस झूठ को सहालने के िलए और न मालूम या-या झूठ इकठे करने पड़ते ह। एक झूठ<br />

को सहालने के िलए फर हजार झूठ के टेके लगाने पड़ते ह।<br />

मुला नसन एक दन मुझ से कह रहा था: भगवान! आज मने अपनी बीबी को घुटन के<br />

बल चलवा दया।<br />

अछा! मने पूछा--हआ ु या?<br />

कै से यह हआ ु ? यह घटना तो बड़ अनहोनी है। बीबयां घुटन<br />

के बल पितय को सदा चलवाती रहं। तुमने कै से चलवा दया?<br />

नसन मुकु राया, उसने कहा क आखर हम भी कु छ ह।<br />

मने पूछा क जब घुटन के बल बीबी चली तो बोली या?<br />

तो कहा: बोली, खाट के नीचे से िनकलो तो देखती हं तुह।<br />

ू<br />

एक झूठ क म कु छ हं। तो फर पचीस झूठ इकठे करने पड़ते ह। झूठ झूठ के ह भोजन<br />

ू<br />

कर जीता है।<br />

तो मौिलक झूठ को पहचान लो: तुम नहं हो। तुम इस वराट अतव के एक अंग हो। इस<br />

वराट के साथ अखंड हो, एक हो। िभन मानोगे, बस पीड़ा उठे गी। अिभन जानोगे, सुख<br />

ह सुख बरस जाएगा। अमी झरत, बगसत कं वल!<br />

मगर नहं, लाख दकत आए तुम इस म को नहं छोड़ते।<br />

मुला नसन का सुपु काफ देर से मैदान म पथर बीन रहा था। म बहत देर तक तो<br />

ु<br />

चुपचाप देखता रहा। फर मने उससे पूछा: बेटे! यह या कर रहे हो?<br />

कु छ नहं, पथर बीन रहा हं। पताजी का कहना है मैदान के जतने पथर आज बीनोगे<br />

ू<br />

उतनी ह टाफयां तुह दंगा। ू आपको मालूम नहं,<br />

आज उह इसी मैदान म कवता पढ़नी<br />

है--आाकार पु ने उर दया।<br />

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पथर बनवाए जा रहे ह यक पता है कवता का क इधर तुमने कवता पढ़ क ोताओं<br />

ने पथर फ के ।<br />

मुला नसन जब भी कवता पढ़ने जाता है। तो पहले जाता है सजी बाजार म, जतने<br />

सड़े के ले इयाद, टमाटर सब खरद लेता है, यक नहं तो वे भी फक गे कव-समेलन<br />

म। लेकन कवता पढ़ना नहं छोड़ता।<br />

वह दशा है तुहार। अहंकार इतने दख लाता है<br />

ु , इतने सड़े टमाटर तुम पर बरसते ह--कहां<br />

असी झरत! कहां बगसत कं वल! सड़े टमाटर, के ल के िछलके, कं कड़-पथर, मगर अपनी<br />

सुरा कए जतने ह कं कड़-पथर बरसते ह उतने ह अपने अहंकार को बचाए क कहं चोट<br />

न खा जाए, सहाले जी रहे हो--सो दख ु पा रहे हो। तुम कहते हो:<br />

म दख ु से इतना<br />

परिचत हं ू क सुख का मुझे भरोसा ह नहं आता। म समझ सकता हं ू, कै से सुख का<br />

भरोसा आए? दख ह दख जाना है। एक दख गया क दसरा आया। बस ऐसा ह िसलिसला<br />

ु ु ु ू<br />

चलता रहा है। चलता रहेगा जब तक तुम जाओगे नहं।<br />

या कभी म सुख के दशन पा सकूं<br />

गा? िनत पा सकते हो। कभी य, अभी! लेकन मूल<br />

जड़ काट दो।...माग दखावे क सुख पाने के िलए म या कं? म सब कु छ करने को<br />

तैयार हं।<br />

ू<br />

ईमान से कह रहे हो क सब कु छ करने को तैयार हो? सब कु छ करने को म कह भी नहं<br />

रहा, म कह भी नहं रहा, म तो थोड़ा सा कु छ करने को कह रहा हं<br />

ू: यह अहंकार जाने दो<br />

और फर देखो। यह म भाव ीण होने दो। अपने को अतव से िभन न समझो। दशक<br />

और य को एक होने दो। जतने बार हो सके, एक होने दो। सुबह सूरज उगता हो,<br />

देखते-देखते उसी म लीन हो जाओ। न वहां तुम रहो न सूरज, बस एक ह घटना घट जाए-<br />

-सूरज ह सूरज! क सांझ सूरज को डूबते देखते हो, एक हो जाओ। क फू ल को खलते<br />

देखते हो, क दर मत खड़े रहो<br />

ू , फू ल के साथ िलखो। क वृ से िगरते प को देखते हो<br />

क दर मत रहो<br />

ू , पत के साथ िगरो। जतने अवसर िमल चौबीस घंटे म, कोई अवसर मत<br />

चुको, जब तुम अपने को डुबा सको, िमटा सको, िमला सको। पघलो, जैसे धूप म बफ<br />

पघल जाए, ऐसे तुम इस सानय म पघलो। उसी पघलने से एक दन तरल हो जाओ।<br />

और तरल हो गए क चल पड़े सागर क तरफ, क चल पड़े सुख क तरफ। सुख तुहारा<br />

वभाव िस अिधकार है।<br />

आखर : भगवान! मुझे वह इक नजर, इक जावदानी सी नजर दे दे! बस एक नजर,<br />

जो अमृत को पहचान ले, भु।<br />

ससंग! वह नजर रोज-रोज तुह दे रहा हं। ू और वह नजर थोड़-थोड़<br />

तुह िमलनी शु भी<br />

हो गई है। इसीिलए उठा है। वाद लगता है तो और-और पाने क अभीसा जगती है।<br />

पूछता ह वह है ऐसे जसक जीभ पर एकाध बूंद<br />

अमृत क पड़। वह पड़ना शु हो<br />

गई है। बुंदा-बाद<br />

होनी शु हो गई है। अब अपने को बचाना मत, िछपाना मत। ये जो<br />

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अपूव अनुभव उतरने शु हो रहे ह, इनको कसी तरह झुठलाना मत--कपना कह कर,<br />

वन कह कर, ार-दरवाजे बंद मत कर लेना।<br />

लोग आनंद पर भरोसा नहं करते। जब आता है आनंद तो भी उनको संदेह होता है क पता<br />

नहं या हो रहा है। आनंद और मुझे! हो ह नहं सकता, जर म कसी म म पड़ा रहा<br />

हं।<br />

ू<br />

इसीिलए तो यहां आए लोग जैसे-जैसे आनंद म डूबते ह, बाहर के लोग समझते ह<br />

समोहत हो गए। जब बाहर के दशक यहां आते ह, पकार आते ह तो वे यह समझते ह:<br />

ये सारे लोग समोहत हो गए! इतनी मती, आदमी म होती ह कहां है! जर ये होश म<br />

नहं ह। ये कसी नशे म ह, इनको कोई नशा करवा दया है। थूल क सूम, कोई नशे<br />

म डु बा दया गया है।<br />

हजार लोग तुह संदेह उठाएंगे तुहारे आनंद पर। तुहार आंख जो पदा होनी। शु हई है<br />

ु<br />

उस आंख को लोग अंधा कहगे, यक यह ेम क आंख है और ेम को लोग अंधा कहते<br />

ह। गणत को आंख वाला कहते ह, तक को आंख वाला कहते ह, बु को आंख वाला<br />

कहते ह, दय को अंधा कहते ह। तुह लोग अंधा कहगे। तुह लोग दवाना कहगे। तुह<br />

लोग पागल कहगे।<br />

ससंग क वैसी ह हालत हो रह है। घर के लोग ने तो बलकु ल पागल समझ िलया, तो<br />

ससंग को घर छोड़ देना पड़ा। अभी कल मुझे ,बर िमली, क अब ससंग कोई मकान<br />

खोजते ह, मगर कोई मकान कराए पर देने को राजी नहं! पागल को कोई मकान कराए<br />

पर देता है--या भरोसा या करो, नाचो, गाओ क कू दो, क लोग पूछते हगे कुं<br />

डिलनी<br />

धन तो नहं करोगे, सय यान तो नहं करने लगोगे! और दसरे गैरक दवान को तो<br />

ू<br />

घर म न ले आओगे!<br />

बाहर लोग इतने दख ु म जी रहे ह क तुहारे जीवन म जब सुख क झलक आएगी,<br />

पहली<br />

बार फागुन आएगा, पहली बार फाग जमेगी, गुलाल उड़ेगी तो लोग भरोसा नहं करगे और<br />

चूंक<br />

तुम भी सादा लोग पर भरोसा करते रहे हो, तुह भी बड़ िचंता पैदा होगी--इतने<br />

लोग तो नहं हो सकते, कहं म ह गलत नहं हं<br />

ू? अनेक-अनेक बार यह शंका उठे गी।<br />

ससंग! आंख तो पैदा होनी शु हो गई है। मुझे तो दखाई पड़ रह है क आंख थोड़-थोड़<br />

खुलने लगी। हां थोड़ा रं ह अभी खुला है, मगर उतना ह या कम है! उतना खुला है तो<br />

और खुलेगा। जनके पास उह और दया जाएगा।<br />

आया फागुन<br />

अकु लाया मन।<br />

हवा करे अब<br />

बंसी वादन।<br />

झूम रहे ह<br />

पेड़ के तन।<br />

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पतझड़ जीवन<br />

आओ साजन।<br />

तोड़ो आ कर<br />

कसते बंधन।<br />

याद तुहार।<br />

भरती िसहरन।<br />

बड़ हठली<br />

मन क दहन।<br />

ु<br />

युग से तड़पे<br />

बन कर वरहन।<br />

िमलो झूम कर<br />

कहता फागुन<br />

आओ आओ<br />

आया फागुन।<br />

फागुन आ गया! नाचो! पद घुंघ<br />

बांध नाचो!<br />

मौसम ने लगाकर<br />

मती का दांव,<br />

जगा दया नयन म<br />

सुिधय का गांव।<br />

छमछम पजिनयां ह,<br />

पगपग बहार क,<br />

ारे दतक हई<br />

ु<br />

फागुनी बयार क।<br />

पे भी झूमझूम<br />

दे रहे ताल,<br />

सजाया फू ल ने<br />

महकता गुलाल,<br />

मन म घुमड़ रह बात<br />

सौ-सौ यार क,<br />

ारे दतक हई<br />

ु<br />

फागुनी बयार क।<br />

बंसी पर िथरक उठे<br />

फर बखरे बोल,<br />

जल म पंिछय से<br />

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कर रहे कलोल।<br />

चंचल अधर पर<br />

बात आरपार क,<br />

ार दतक हई<br />

ु<br />

फागुनी बयार क।<br />

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ार पर दतक द है फागुन ने, खोलो ार! थोड़ा तुमने खोला है, जरा सा तुमने खोला है।<br />

उतने से रोशनी आनी शु हई ु है। पूरे ार खोल दो,<br />

सब ार खोल दो, सब खड़कयां खोल<br />

दो! यह चार दन का जीवन है, इसे उसव से जीना है, इसे महोसव बनाना है। दिनया<br />

ु<br />

पागल कहे तो कहने दो, यक यह परमामा के राते पर पागल हो जाने से बड़ और<br />

कोई बुमानी नहं है, और कोई बड़ ा नहं है।<br />

साथ हए ु तुम,<br />

लगे ण बहके -बहके,<br />

पोर-पोर चंदन से महके ।<br />

तन को िसहराए है<br />

धूप क कनी,<br />

मांग का िसंदर जब<br />

ू<br />

हर छु अन बनी।<br />

पारस पश<br />

देह कं चन बन दहके ।<br />

बार-बार पर तोले<br />

िततली सा मन<br />

देहर म उग जाए<br />

के शर के वन।<br />

मन का हर फू ल हंसा<br />

जाने या कहे के?<br />

घट रह है घटना। िछटक मत जाना, भटक मत जाना। दशा िमल गयी है, अब नाक क<br />

सीध चले चलो। आंख िमल रह है, िमलती रहेगी। और यह आंख ऐसी है क खुलती है<br />

खुलती जाती है। इसका कोई अंत नहं है। एक दन यह सारा आकाश तुहार आंख बन<br />

जाता है। एक दन परमामा क आंख तुहार आंख होती ह।<br />

यह बड़ लंबी याा है मगर पहला कदम उठ गया है, तुम धयभागी हो। और बहत का भी<br />

ु<br />

उठ गया है, वे सब धयभागी है। मेरे पास बड़ भािगय का मेला जुट रहा है।<br />

आज इतना ह।<br />

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एक राम सारै सब काम<br />

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यारवां वचन; दनांक २१ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

आद अनाद मेरा सांई।<br />

ा न मु है अगम अगोचर, यह सब माया उनहं माई।।<br />

जो बनमाली सींचै मूल, सहजै पवै डाल फल फू ल।।<br />

जो नरपित को िगरह बुलावै, सेना सकल सहज ह आवै।।<br />

जो काई कर भान कासै, तौ िनस तारा सहजह नासै।<br />

गड़ पंख जो घर म लावै, सप जाित रहने नहं पावै।।<br />

दरया सुमरै एक ह राम, एक राम सारै सब काम।।<br />

आद अंत मेरा है राम। उन बन और सकल बेकाम।।<br />

कहा कं तेरा बेद पुरान।। जन है सकल जगत भरमान।।<br />

कहा कं तेर अनुभै-बानी। जन त मेर सु भुलानी।।<br />

कहा कं ये मान बड़ाई। राम बना सबह दखदाई।।<br />

ु<br />

कहा कं तेरा सांख औ जोग। राम बना सब बंदन रोग।।<br />

कहा कं इंन का सुख। राम बना देवा सब दख।।<br />

ु<br />

दरया कहै राम गुरमुखया। हर बन दखी राम संग सुखया।।<br />

ु<br />

आज मम हय-अजर म मन-भावनी ड़ा करो तो,<br />

दरस-रस कसकनमयी तुम लगन-मधु पीड़ा भरो तो;<br />

यह खड़ है दरस-आशा एक कोने मग लजीली,<br />

परस-उकं ठा उठ है झूमती सी यह नशीली,<br />

आज िमलने म कहो य कर रहे हो हठ हठली?<br />

मन-हरण-गज-गमन-गित से चरण मन-मंदर धरो तो;<br />

आज मम हय-अजर म<br />

मन-भावनी ड़ा करो तो;<br />

बहत ह लघु हं<br />

ु ू, परम अणु हं<br />

ू, ससीिमत, संकु िचत हं<br />

ू,<br />

ववश हं<br />

ू, गुणब हं<br />

ू, गित- हं<br />

ू, वमत, वजत हं<br />

ू,<br />

कं तु आशा िनखल संसृित क िलये म िचरयिथत हं<br />

ू<br />

िचर पूण रहय-उदघाटनमयी डा करो तो;<br />

आज मम हय-अजर म<br />

मन-भावनी ड़ा करो तो;<br />

य उलहना दे रहे हो क यह है संकु िचत आंगन,<br />

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गगन सम वतीण कर दगे इसे तव मृद ु पदांकन,<br />

आज सीमा ने दया है तुम असीिमत को िनमंण,<br />

ढल ु पड़ो ेमेश,<br />

सीिमत संकु िचत ीड़ा हरो तो;<br />

आज मम हय-अजर म<br />

मन-भावनी ड़ा करो तो;<br />

एक ह ाथना है। एक ह िनमंण है। एक ह अभीसा है भ क क यह मेरे छोटे से<br />

दय म, यह बूंद<br />

जैसे दय म तू अपने सागर को आ जाने दे। बूंद<br />

म सागर उतर सकता<br />

है। बूंद<br />

ऊपर से ह छोट दखाई पड़ती है। बूंद<br />

के भीतर उतना ह आकाश है, जतना बूंद<br />

के बाहर आकाश है। देर है अगर कु छ तो हादक िनमंण क देर है। बाधा है अगर कु छ तो<br />

बस इतनी ह क तुमने पुकारा नहं।<br />

परमामा तो आने को ितपल आतुर है, पर बन बुलाए आए भी तो कै से आए? और बन<br />

बुलाए आए तो तुम पहचानोगे भी हनीं। बन बुलाए आए तो तुम दतकार दोगे। तुम बुलाओगे<br />

ु<br />

ाणपण से। रोआं-रोआं तुहारा ाथना बनेगा, धड़कन-धड़कन तुहार यास बनेगी। तुम<br />

विलत हो उठोगे। एक ह अभीसा रह जाएगी। तुहारे भीतर उसे पाने क। उसी ण<br />

ांित घट जाती है। उसी ण उसका आगमन हो जाता है। वह तो आया ह हआ ु था,<br />

बस<br />

तुम मौजूद नहं थे। वह तो सामने ह खड़ा था, पर तुमने आंख बंद कर रखी थीं। परमामा<br />

दर नहं है<br />

ू , तुम उससे बच रहे हो। परमामा दर नहं है<br />

ू , तुम सदा उसक तरफ पीठ कर<br />

रहे हो।<br />

और कारण है। तुहारा बचना भी अकारण नहं है। बूंद<br />

डरती है क अगर सागर उतर आया,<br />

तो मेर बसात या! म गई! अगर सागर आया तो म िमट।<br />

वह भय है क कहं म िमट न जाऊं । वह भय है क कहं म समा न हो जाऊं ! कहं मेर<br />

परभाषा ह अंत पर न आ जाए! मेरा अतव ह संकट म न पड़ जाए!<br />

इससे तुम पुकारते नहं ाणपण से। तुम ाथना भी करते हो तो थोथी। तुम ाथना भी करते<br />

हो तो झूठ। तुम ाथना भी करते हो तो औपचारक। और ाथना कहं औपचारक हो सकती<br />

है? ेम कहं उपचार हो सकता है? तुहार औपचारकता ह तुहार उपािध बन गई है,<br />

तुहार बीमार बन गई। कब तुम सहज होकर पुकारोगे? कब तुम सम होकर पुकारोगे?<br />

और बार-बार नहं पुकारना पड़ता है। एक पुकार भी काफ है। लेकन तुम पूरे के पूरे उस<br />

पुकार म समिलत होने चाहए। जरा सा भी अंश तुहारा पुकार के बाहर रह गया, तो<br />

पुकार काम न आएगी।<br />

पानी उबलता है, भाप बनता है, सौ डी पर; िनयानबे डी पर नहं। एक डी क रह<br />

गई, तो भी पानी भाप नहं बनेगा। तुहारे भीतर जरा सा भी हसा संदेह से भरा रह<br />

गया, सकु चाया, अपने को बचाने को आतुर, अलग-थलग, तुहार ाथना म समिलत<br />

न हआ ु , तो तुम वापीभूत न हो सकोगे। और वापी--भूत हए ु बना भ भगवान को नहं<br />

अनुभव कर पाता है। भ को तो िमट ह जाना होता है। उसका िनशान नहं छू टना चाहए।<br />

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उसक लकर भी नहं बचनी चाहए। जैसे ह भ ऐसा िमट जाता है क कु छ भी नहं बचता<br />

उसका, जसको कह सके मेरा जसको कह सके म--उसी ण, तण महाांित घटती है!<br />

ाथना पूण होती है, परमामा उतरता है।<br />

आज मम हय-अजर म मन-भावनी ड़ा करो तो,<br />

दरस-रस-कसकनमयी तुम लगन-मधु पीड़ा भरो तो;<br />

यह खड़ है दरस-आशा एक कोने म लजीली,<br />

परस-उकं ठा उठ है झूमती सी यह नशीली,<br />

आज िमलने म कहो य कर रहे हो हठ हठली,<br />

मन-हरण गज-गमन-गित से चरण मन-मंदर धरो तो;<br />

आज मम हय-अजर म<br />

मन-भावनी ड़ा करो तो!<br />

पुकारो उसे, क आए और खेले तुहारे दय के आंगन म। कह दो क आंगन छोटा है;<br />

मगर तुहारे आते ह बड़ा हो जाएगा। तुम पैर तो रखो, आंगन आकाश बन जाएगा। सागर<br />

आए तो, और बूंद<br />

समथ हो जाएगी सागर को भी अपने म समा लेने म। सच तो यह है,<br />

सागर बूंद<br />

को अपने म समाए क बूंद<br />

सागर को अपने म समाए, यह एक ह बात को<br />

कहने के दो ढंग ह।<br />

उस परम अवथा म--जसक तलाश है, जम-जम से जसक तलाश है--न तो भ<br />

बचता है, न भगवान बचता है। या बचता है? भगवा बचती है। एक तरफ से भगवान खो<br />

जाता है, एक तरफ से भ खो जाता है; जब भ ह खो जाता है तो भगवान कै से<br />

बचेगा? भगवान तो भ क धारणा थी--क म भ हं तो तुम भगवान हो। भगवान तो भ<br />

ू<br />

क ह वचारणा थी। भ ह गया, भगवान भी गया। फर जो बच रहता है उसे हम या<br />

नाम द? म उसे नाम देता हं ू भगवा। सारा जगत चैतमय हो उठता है। रोआं -रोआं<br />

परमामा हो उठता है। कण-कण उस क पुकार देने लगता है। पे-पे पर उसके<br />

हतार िमलने लगते ह। उठो-बैठो, चलो-फरो, सब उसी म है। उठना उसम, बैठना<br />

उसम, चलना उसम, जीना उसम, मरना उसम। फर जीवन क सुगंध और है। मछली जो<br />

तड़पती थी सागर के कनारे पर पड़, उसे िमल गया अपना सागर। अब जीवन का रस और<br />

है, आनंद और है।<br />

और जब तक तुहारे जीवन म ऐसा महोसव न आ जाए, ठहरना मत। पड़ाव बहत है और<br />

ु<br />

हर पड़ाव सुंदर<br />

है। लेकन पड़ाव को पड़ाव समझना। रात क जाना, वाम कर लेना। याद<br />

रखना, सुबह उठना है और चल पड़ना है। पुकार दर क है<br />

ू , पुकार अनंत क है। कु छ भी<br />

तुह उलझाए न, कु छ भी तुह अटकाए न। ऐसी िच-दशा का नाम संयास है। उस परम<br />

क खोज म कोई भी चीज बाधा न बन सके । ऐसी बेशत समपण क अवथा का नाम<br />

संयास है।<br />

दरया के सू यारे ह।<br />

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आद अनाद मेरा साई। ाथना पूर हो गई है। ाथना फल गई। फू ल लग गए ाथना म।<br />

वसंत आ गया। ाथना के फू ल से गंध उठने लगती है।<br />

आद अनाद मेरा सांई।<br />

वह मेरा मािलक, वह मेरा वामी है--दोन है। ारंभ भी वह है, अंत भी वह है। बीज भी<br />

वह है, वृ भी वह है। जम भी वह है, मृयु भी वह है। मेरे उस परम यारे म सारे<br />

ं एक हो गए ह, सारे वरोध अपना वरोध छोड़ दए ह।<br />

तुमने शायद महावीर क मूित देखी हो ऐसी, या ऐसा िच देखा हो--जैन के घर म िमल<br />

जाएगा, जैन मंदर म िमल जाएगा--जसम िसंह और भेड़ साथ-साथ बैठे ह। जैन तो कहते<br />

ह क यह महावीर के भाव का तीक है। उनके भीतर क अहंसा का ऐसा गाढ़ वातावरण<br />

पैदा हआ क िसंह और भेड़ साथ बैठ सके । न तो भेड़ भयभीत है और न िसंह भेड़ को खाने<br />

ु<br />

को आतुर है।<br />

मेरे देखे उस िच का अथ कु छ और है। यह महावीर क अहंसा के संबंध म सूचक नहं है<br />

िच। यह िच और भी बड़ महमा का है। यह तीक है क महावीर अब उस अवथा म<br />

ह, जहां सहज ं समा हो जाते ह; जहां वपरत एक हो जाते ह; जहां शुताएं लीन हो<br />

जाती ह; जहां अितय पर खड़े हए<br />

ु , पास आ जाते ह। यह महावीर क अहंसा के भाव को<br />

बताने के िलए नहं ह िच। यक महावीर क अहंसा का अगर ऐसा भाव होता तो जन<br />

लोग ने महावीर के कान म सलाख ठक दं, पथर मारे, उन लोग पर अहंसा का भाव<br />

न हआ<br />

ु ? मनुय पर भाव न हआ<br />

ु , िसंह पर और भेड़ पर भाव हआ<br />

ु ! यह बात कु छ<br />

जंचती नहं है। बात कु छ और ह है।<br />

परम अवथा म, जब भ भगवान म लीन होता है और भगवान भ म लीन होता है,<br />

जब बूंद<br />

और सागर का िमलन होता है और भगवा शेष रह जाती है--तो उसम कोई ं<br />

नहं रहता। वहां दन और रात एक ह। वहां हर तरह के ं समा हो जाते ह। वह ंातीत<br />

अवथा है। वहां दो नहं बचते। वहां दई नहं बचती। वहां बस एक बचता है। उस एक का ह<br />

ु<br />

गीत गाया है दरया ने।<br />

आद अनाद मेरा सांई।<br />

ा न मु है अगम अगोचर, यह सब माया उनहं माई।<br />

न तो वह दखाई पड़ता है। और ऐसा भी नहं कह सकते क वह गु है। इस परम अवथा<br />

म वह दखाई भी नहं पड़ता और दखाई पड़ता भी है। तक क जो कोटयां ह, अब काम<br />

नहं आतीं। अब तकातीत वय देने हगे। यह वय तकातीत है।<br />

उपिनषद कहते ह: वह दर ू से भी दर ू और पास भी पास है। पूछा जा सकता है:<br />

अगर दर ू से<br />

भी दर ू है,<br />

तो पास से भी पास कै से होगा? और अगर पास से भी पास है तो फर दर ू से<br />

भी कहने का अथ?<br />

सारे ािनय न वरोधाभासी वय दए ह। वरोधाभासी वय देने पड़े है। कोई उपाय नहं<br />

है। परमामा को कट करना हो तो कहना होगा: वह अंधेरा भी है काश भी है। हम अड़चन<br />

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होती है। हमारे तक क तो कोटयां ह--अंधेरा कै से काश होगा, काश कै से अंधेरा होगा?<br />

हमने तो खंड बांट रखे ह, लेबल लगा रखे ह, जम अलग है, मृयु अलग है। मगर सच<br />

म, जरा गौर से देखो, जम मृयु से अलग है? जरा भी अलग है? बना जम के मृयु<br />

हो सके गी? जम के साथ ह तो मृयु आ गई। जम शायद उसी िसके का दसरा पहलू<br />

ू<br />

है, जसका एक पहलू मृयु है।<br />

दरया कहते ह: न तो उसे देख सकते हो, वह य नहं है। लेकन मु भी नहं है, गु<br />

भी नहं है। ऐसा भी नहं है क मुठ म बंद है क कसी को दखाई न पड़े। वह दखाई भी<br />

पड़ता है और दखाई नहं भी पड़ता है। इसका या अथ होगा? इस यारे वरोधाभासी<br />

वय का या योजन है? वह उह दखाई पड़ता है, जो आंख बंद करते ह और उह<br />

नहं दखाई पड़ता, जो आंख खोले बैठे रहते ह। आंख से देखने जो चलते ह, उनके िलए<br />

अगोचर; लेकन दय से जो देखने चलते ह, उनके िलए गोचर। जो बु से सोचते ह,<br />

उनके िलए असंभव है उसका देखना। लेकन जनके जीवन म ेम क तरंग उठने गती है,<br />

उनके िलए इतना सरल, इतना सुगम--जतना सुगम कु छ और नहं, जतना सरल कु छ<br />

और नहं।<br />

ा न मु है अगम अगोचर। उसे नापा नहं जा सकता, इसिलए अगय है। कोई परभाषा<br />

नहं बन सकती। बु उसे समझ पाए, इसका कोई उपाय नहं है। लेकन सौभाय से<br />

तुहारे पास बु ह नहं है, कु छ और भी है। बु से यादा भी कु छ और तुहारे पास है।<br />

तुहारे पास एक दय भी है--अछू ता, कुं<br />

वारा--जसे तुमने छु आ नहं, जसका तुमने<br />

उपयोग नहं कया। यक संसार म उसक जरत नहं है। संसार म बु काफ है।<br />

इसिलए कू ल से लेकर ववालय तक हम बु क िशा देते ह। पचीस वष तक हम<br />

लोग को बु म िनणात करते ह। उनके तक को धार देते ह और उनके दय को बलकु ल<br />

मार देते ह। उनके दय को हम छोड़ ह देते ह। उसक उपेा हो जाती है। जैसे दय है ह<br />

नहं।<br />

यह ऐसे ह समझो, जैसे कोई हवाई जहाज कहं नासमझ के हाथ म पड़ जाए और वह<br />

उसका उपयोग ठेले क तरह कर लग। कर सकते ह। यूिनसपल कमेट का सारा कू ड़ा-कक ट<br />

भर कर गांव के बाहर फ क देने का काम वायुयान से िलया जा सकता है। कु छ थोड़े यादा<br />

समझदार ह, तो शाद बस बना ल। लेकन चले वह जमीन पर ह। जो आकाश म उड़<br />

सकता था, उसके तुमने बस बना िलया है!<br />

ऐसी ह मनुय क दशा है। बु तो जमीन पर चलती है, दय आकाश म उड़ता है। दय<br />

के पास पंख ह, बु के पास पैर ह। बु पािथव है। इसिलए जो लोग बु से ह सोचते<br />

ह, उह परमामा क कोई झलक भी न िमलेगी। वन म भी उसक छाया न पड़ेगी। जो<br />

बु से ह सोचते ह, वे तो एक न एक दन इस नतीजे पर पहंच जाएंगे क ईर नहं है।<br />

ु<br />

उह पहंचना ु ह होगा। अगर वे ईमानदार ह,<br />

तो उह यह िनकष लेना ह होगा क ईर<br />

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नहं है। बु से सोचने वाले लोग िसफ बु से सोचने वाले लोग अगर कहते ह क ईर<br />

है, तो समझ लेना क बेईमान ह।<br />

इस दिनया ु म दो तरह के लोग ह। यहां ईमानदार आतक ह;<br />

वह भी कोई अछ थित<br />

नहं है। बस दखाई पड़ते ह ईमानदार; ईमानदार हो नहं सकते। पाखंड है ईमानदार का।<br />

ऊपर-ऊपर है। सच तो कहना चाहए क इस जगत म बेईमान आतक ह। बु से सोचते<br />

ह, बु से जीते ह। ईर के िलए भी माण जुटाए ह। और ईर का कोई माण नहं हो<br />

सकता। वह वतःमाण है। कौन उसके िलए गवाह होगा? कौन उसके िलए माण देगा?<br />

जो माण देगा, जो माण बनेगा, वह तो उस से भी बड़ा हो जाएगा। यक फर तो<br />

माण पर िनभर हो जाएगा ईर। जो िनभर होता है, वह छोटा हो जाता है। यहां<br />

तथाकिथत ईमानदार आतक ईमानदार नहं ह, हो नहं सकते। यक उनक आतकता<br />

दय से नहं उठ है--िसफ बौक है, संकारगत है, िशण से िमली है।<br />

तो मुझे कहने दो क यहां दिनया ु म बेईमान आतक ह। उनक बड़<br />

संया है। उनक भी<br />

बड़ बुर दशा है। आतक और बेईमान! बेईमान होने से कै से ईर से संबंध जुड़ेगा? यक<br />

ईमान का अथ होता है धम। बेईमान का अथ होता है अधम। अधािमक आतक।<br />

और दसर ू तरफ ईमानदार नातक ह। बड़ पहेली हो गई है मनुय के जीवन म। ईमानदार<br />

नातक! वे कम से कम ईमानदार ह, यक उनक बु कहती है क ईर नहं है। बु<br />

तक खोजती है और कोई तक नहं पाती, तो वे कहते ह ईर नहं है। कम से कम इतनी<br />

ईमानदार है। मगर उनक ईमानदार, उनका धम उह नातकता म िगराए दे रहा है।<br />

ईमानदार नातक हो गए ह, ईर तक नहं पहंच ु पाते। बेईमान मंदर,<br />

मजद, िगरज<br />

म ाथनाएं-पूजाएं कर रहे ह। उनक सब ाथनाएं-पूजाएं झूठ ह, पाखंड ह। यक उनका<br />

ईर ह के वल बु क मायता है।<br />

एक तीसरे तरह के मनुय क जरत है। एक तीसरा मनुय अयंत अिनवाय हो गया है।<br />

यक उसी तीसरे मनुय के साथ मनुयता का भवय जुड़ा है। वह एक आशा क करण<br />

है। एक तीसरा मनुय, जो ईमानदार आतक हो।<br />

मगर तब हम मनुय क पूर या बदलनी पड़े। हम मनुय का पूरा ढांचा बदलना पड़े।<br />

हम मनुय क बु को दय के ऊपर नहं, दय को बु के ऊपर रखना पड़े। इसी ांित<br />

का नाम पांतरण है।<br />

जस दन तुम भावना को वचार से यादा मूय देने लगते हो, उस दन तुहारे जीवन म<br />

धम क पहली-पहली झलक आई। जस दन तुम ेम को तक से यादा मूयवान मानने<br />

लगते हो, उस दन तुहारे पास परमामा का ार खुलने लगा बु क आंख से अगोचार<br />

है, दय क आंख से गोचर है। बु खोजने चले, कोई थाह न पाएगी। और दय खोजने<br />

चले तो तण, अभी और यहं है! अथाह क भी थाह िमल जाती है। असंभव भी संभव हो<br />

जाता है।<br />

जग गया, हां जग गया वह सु अुत राग;<br />

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भर गया, हां, भर गया हय म अमल अनुराग;<br />

खुल गयी, हां, खुल गयी खड़क नयन क आज;<br />

धुल गयी, हां, धुल गयी संिचत दय क लाज;<br />

नेह-रंग भर भर खलाड़ नैन खेल फाग;<br />

जग गया, हां, जग गया वह सु अुत राग।<br />

दे रह, धड़कन दय क, ुत ुपद क ताल;<br />

हचकय से उठ रह है वर तरंग वशाल,<br />

आह क गंभीरता म है मृदंग उमंग;<br />

िनठु र हाहाकार म है चंग-कारण रंग;<br />

रंग-भंग अनंत-रित का दे गया वह दाग;<br />

जग गया, हां, जग गया वह सु अुत राग।<br />

यार-पारावार म अिभसारका सी लीन,--<br />

बावर मनुहार-नौका डु ल रह ाचीन,<br />

ीण, बंधन-हन जजर गिलत दा-समूह,--<br />

पार कै से जाए? है यह गूढ़ दह ु !<br />

वररंग बढ़ रहं, है बढ़ रहा अनुराग;<br />

जग गया, हां जग गया वह सु अुत राग।<br />

मृदल ु कोमल बाहु-वलरयां<br />

डुल कर, बाल,--<br />

कठन संके तार को आज करो िनहाल;<br />

आज िलखवा कर तुहारे पूजक म नाम--<br />

दय क तड़पन हई ु है,<br />

सजिन पूरन काम,<br />

राम के, अनुराग के अब खुल गए ह भाग,<br />

जग गया, हां, जग गया वह सु अुत राग।<br />

तुहारे दय म एक गीत सोया पड़ा है, एक राग सोया पड़ा है। छे ड़ते ह, जाग उठता है<br />

वह सोया राग। उस सोये राग का नाम ह भ है। और भ के िलए ह भगवान है। वचार<br />

के िलए नहं, तक के िलए नहं। जग गया, हां, जग गया वह सु अुत राग! जो कभी<br />

नहं सुना था, जो सदा सोया रहा था, जग गया है। भर गया, हां, भर गया हय म<br />

अमल अनुराग! और उसके जगते ह दय म ीित ह ीित का पारावार आ जाएगा। अभी<br />

झरत, बगसत कं वल। झरने लगेगा अमृत। खलने लगगे कमल!<br />

खुल गयी, हां, खुल गई खड़क नयन क आज;<br />

धुल गई, हां, धुल गई संिचत दय क लाज<br />

नेह-रंग भर भर खलाड़ नैन खेल फाग;<br />

जग गया, हां जग गया वह सु अुत राग।<br />

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और जस घड़ तुहारा दय खुलता है, उमंग से भरता है, आंदोिलत होता है, तरंगाियत<br />

होता है, मदमत होता है, उस ण परमामा है। उस परमामा के िलए फर कोई माण<br />

नहं चाहए। फर सार दिनया ु भी कहे क परमामा नहं है,<br />

तो भी तुहारे भीतर एक<br />

अडग ा का जम होता है, जसे डु लाया नहं जा सकता। शायद हमालय हल जाए,<br />

लेकन तुहारे भीतर क ा नहं हलेगी।<br />

पर ा का जम दय म होता है, इसे फर-फर दोहरा कर तुमसे कह दं। वास बु के<br />

ू<br />

होते ह, ा दय क। इसिलए वास से संतु मत हो जाना। नहं तो तुम कागज के<br />

फू ल से संतु हो गए। असली फू ल तो दय क झाड़ म लगते ह।<br />

ा न मु है अगम अगोचर, यह सब माया उनहं माई।<br />

और एक बार उसक झलक तुह िमलने लगे तो फर सारे जगत म उसके ह लीला है,<br />

उसका ह खेल है, उसक ह माया है, उसका ह जाद ू है। वह िचतेरा है और ये सारे िच<br />

उसने रंगे ह। वह संगीत है, और ये सारे राग उसने छे ड़े ह। वह मूितकार है, और ये सार<br />

ितमाएं उसने गढ़ ह। मगर एक बार उससे पहचान हो जाए। जब तक तुहार उससे<br />

पहचान नहं हई<br />

ु , तब तक तुम उसक ितमाओं म उसक छाप न पा सकोगे? कै से<br />

पाओगे? दखाई भी पड़ जाए तो यिभा न होगी।<br />

जो बनमाली सींचै मूल, सहजै पवै डाल फल फू ल।<br />

बहत ु महवपूण वचन है,<br />

सीधा-सरल। कहते ह क जो माली मूल को खींचता है, फर<br />

साहज ह प को फू ल को, डािलय को रस िमल जाता है, कोई पा-पा नहं सींचना<br />

पड़ता। परमामा को खोजना नहं पड़ता क जाए वृ म खोज, पहाड़ म खोज, नद म<br />

खोज, लोग म खोज। यह तो पे-पे खोजना हो जाएगा। ऐसे तो कब तक खोजोगे?<br />

जनम-जनम िनकल जाएंगे और खोज न पाओगे। नहं, बस मूल म खोज लो--और मूल<br />

तुहारे भीतर है! उसका मूल तुहारे दय म है वहां पहचान लो। वहां क पहचान के बाद<br />

जब तुम आंख खोलोगे, चकत हो जाओगे, अवाक रह जाओगे! वह-वह है। सब तरफ वह<br />

है।<br />

और यह सहज हो जाएगा इसके िलए कोई यास न करने पड़गे। ऐसा बैठ-बैठ कर मानना<br />

न पड़ेगा क यह कृ ण क मूित है! दखाई तो तुह पड़ता है पथर, मानते हो मूित है।<br />

जानते तुम भी भीतर हो क पथर है, मानते मूित हो।<br />

एक झेन फकर एक मंदर म रात का। सद रात थी, बहत सद रात थी। और फकर बड़ा<br />

ु<br />

मत फकर था--अलमत फकर। थोड़े से ह ऐसे फकर हए ु ह!<br />

उसका नाम था इकू ।<br />

जापान म बु क मूितयां लकड़ क बनाई जाती ह। उसने उठाकर एक मूित जला ली। रात<br />

सद थी और तापने के िलए लकड़ चाहए थी। अब रात, और लकड़ खोजने जाए भी कहां?<br />

आग जली। मत होकर उसने आग सक। मंदर मग आग जलती देखकर पुजार जग गया<br />

क मामला या है! एकदम आग जली, तेज रोशनी हई। भागा आया।<br />

ु<br />

देखा, तो एक बु<br />

क मूित तो गयी! बहत नाराज हआ<br />

ु ु --यह तुमने या कया, भगवान बु क मूित जला द!<br />

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तुह शम नहं आती? तुह संकोच नहं लगता? तुम हो म हो क तुम पागल हो! और तुम<br />

बौ िभु हो!<br />

इकू ने पास म पड़ हई ु अपनी लकड़ उठाई और जल गयी,<br />

मूित क राख म लकड़ से<br />

कु छ कु रेदने लगा, खोदने लगा, खोजने लगा। पुजार ने पूछा: अब या खोज रहे हो? अब<br />

वहां राख ह राख है। इकू ने कहा क म भगवान क अथयां खोज रहा हं।<br />

ू<br />

पुजार ने अपना िसर ठोक िलया, उसने कहा: तुम मूढ़ हद दज के हो! एक तो मूित जला<br />

द...और अब लकड़ क मूित म अथयां कहां है?<br />

इकू ने कहा: तो फर रात बहत सद है और मंदर म मूितयां बहत ह। दो चार और उठा<br />

ु ु<br />

लाओ। जब अथयां ह नहं है, तो भगवान कहां है? तो भगवान कै से? तुम भी जानते हो<br />

क लकड़ लकड़ है। मानते भर हो क भगवान है।<br />

जानने और मानने म जब भेद होता है तो तुहारे जीवन म पाखंड होता है। जब जानना और<br />

मानना एक हो जाता ह, तो ा का आवभाग होता है। जानना और मानना िभन हो तो<br />

समझना वास। जानते तो तुम भलीभांित हो क ये रामचं जी जो खड़े ह रामचं जी नहं<br />

ह। जानते तो तुम भलीभांित हो, मगर मानते हो क रामचं जी ह। झुककर नमकार कर<br />

लेते हो। चरण छू लेते हो। तुहारा जानना और मानना इतना िभन होगा तो तुम दो खंड<br />

म नहं टट ू जाओगे ? तुहारे भीतर ैत नहं हो जाएगा? और तुहारे भीतर कै से धम का<br />

जम होगा? तुम तो एकाकार भी नहं हो, तुम तो एक भी ह हो--और एक क तलाश को<br />

चले हो! एक हो जाओ तो उस एक को खोजा जा सकता है। जब तक तुम दो हो तब तक<br />

तुम ं, ैत के जगत म ह डूबे रहोगे। इसी कचड़ म फं से रहोगे, इस कचड़ के बाहर<br />

नहं जा सकते।<br />

ठक कहते दरया--जो बनमाली सींचै मूल, सहजै पवै डा फल-फू ल। सीधे-साधे आदमी ह,<br />

सीधी-साद भाषा म लेकन बात गहर से गहर कह द है। जो समझदार माली है वह प<br />

को नहं खींचता।<br />

माओसुुंग<br />

ने अपने जीवन संमरण म िलखा है क मेर मां को बिगया से बड़ा ेम था।<br />

उसक बड़ यार बिगया थी। दरू -दर ू से लोग उसक बिगया को देखने आते थे। उसके ेम,<br />

उसके म का ऐसा परणाम था क इतने बड़े फू ल हमार बिगया म होते थे क लोग चकत<br />

होते थे! देखने आते थे।<br />

फर मां बूढ़ हो गयी, बीमार पड़ तो उसक िचंता बीमार क नहं थी, अपने मरने क भी<br />

नहं थी; उसक िचंता एक ह थी--मेर बिगया का या होगा? माओ छोटा था। रहा होगा<br />

कोई बारहेरह साल का। उसने कहा: मां, तू िचंता न कर। तेर बिगया म पानी डालना है<br />

न! पानी सींचना है न! वह म कर दंगा।<br />

ू<br />

और माओ सुबह से सांझ तक, बड़ बिगया थी, पानी खींचता रहता। महन बाद जब मां<br />

थोड़ वथ हई<br />

ु , बाहर आकर देखा तो बिगया तो बलकु ल सूख ह गयी थी। एक फू ल नहं<br />

था बिगया म; फू ल क तो बात छोड़ो, पे भी जा चुके थे। सूखे नर-कं काल जैसे वृ खड़े<br />

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थे। उसने माओ को कहा क तू दन-भर करता या है? सुबह से सांझ तक पानी खींचता है।<br />

कु एं से रहट क आवाज मुझे सुनाई पड़ती है दनभर...। बिगया का या हआ ु ?<br />

उसने कहा: म या जानूं<br />

बिगया का या हआ ु ! म तो एक-एक पे को धोता था, एक-एक<br />

फू ल तो पानी देता था। मुझे पता नहं, मने जतना म कर सकता था, कया। म खुद ह<br />

हैरान था क बात या है! एक पा नहं छोड़ा जसको मने पानी न पलाया हो।<br />

मगर प को पानी नहं पलाया जाता, और न फू ल को पानी पलाया जाता है। प और<br />

फू ल को पानी पलाओगे तो बिगया मर जाएगी।<br />

लेकन इस माओ को मा करना होगा। छोटा बचा है, माफ करना होगा। इसे या पता<br />

क भूिम के गभ म िछपी हई ु जड़े ह--अय--उह<br />

पानी देना होता है। उन तक पानी पहंच ु<br />

जाए तो दर आकाश म बदिलय से बात करती हई जो शाखाएं ह उन तक भी जल क धार<br />

ू ु<br />

पहंच ु जाती है। पहंचानी ु नहं पड़ती,<br />

अपने से पहंच ु जाती है। मूल को सहाल लो,<br />

सारा<br />

वृ सहल जाता है।<br />

मूल है तुहारे दय म। दय के अंतरगभ म िछपा है मूल।<br />

अगर सच मग ह खोजना हो परमामा को तो बु से मत खोजने िनकलना। अगर तय<br />

कया हो क िस करना है परमामा नहं है, तो बु से खोजने िनकलना। बु बलकु ल<br />

सयक है पदाथ क खोज म; लेकन चैतय क खोज म बलकु ल ह असमथ है, नपुंसक<br />

है।<br />

जो नरपित को िगरह बुलावै, सेना सकल सहज ह आवा।<br />

दरया कहते ह: साट को िनमंण दे दया, तो उसके वजीर, उसे दरबार, उसके<br />

सेनापित, सब अपने-आप उसके पीछे चले आते ह। एक-एक को िनमंण भेजना नहं पड़ता।<br />

बस साट को बुला लो--राम को बुला लो--शेष सब अपने से हो जाता है। सब अपने-आप<br />

चला आता है। सारा संसार, सारे संसार का वैभव, सारे संसार का सदय, सारे संसार क<br />

गरमा उसक छाया है। मिलक आ गया तो उसक छाया भी आ जाएगी।<br />

तुम कभी कसी क छाया को िनमंण तो नहं देते, क देते हो? क कसी िम क छाया<br />

को कहते हो क आना कभी मेरे घर भोजन करने! छाया को तो कोई िनमंण नहं देता।<br />

छाया यानी माया; जो दखायी पड़ती है क है और है नहं। लेकन िम को िनमंण दे दो<br />

क छाया अपने-आप चली आती है। मािलक आ गया तो माया भी आ जाएगी। जब जादगर<br />

ू<br />

ह आ गया तो उसका सारा जाद ू उसके साथ चला आया,<br />

उसके हाथ का खेल है।<br />

लेकन हम जीवन म ऐसा ह मूढ़तापूण कृ य कए चले जाते ह। हम वैभव खोजते ह, हम<br />

ऐय खोजते ह; ईर को नहं। ये दोन शद देखना कतने यारे ह! एक ह शद के दो<br />

प ह--ईर और ऐय। ऐय क छाया है। ईर आ जाए तो ऐय अपने से आ जाता है।<br />

मगर लोग ऐय खोजते ह। एक तो िमलता नहं, और कभी भूले-चूके कसी तरह छाया को<br />

तुम पकड़ ह लो, तो यादा देर हाथ म नहं टकती। कै से टके गी? मािलक सरक जाएगा,<br />

छाया चली जाएगी।<br />

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एक गांव म एक अफमची ने रात एक िमठाई के दकानदार से िमठाई खरद। पुरानी कहानी<br />

ु<br />

है, आठ आने म काफ िमठाई आयी। पया था पूरा; दकानदार ने कहा क फु टकर पैसे<br />

ु<br />

नहं ह, सुबह ले लेना। अफमची अपनी धुन म था। फर भी इतनी धुन मग नहं था क<br />

पये पर चोट पड़े तो होश न आ जाए। थोड़ा-थोड़ा होश आया क कहं सुबह बदल न जाए।<br />

तो कु छ माण होना चाहए। चार तरफ देखा क या माण हो सकता है। देखा एक शंकरा<br />

जी का सांड िमठाई क दकान ु के सामने ह बैठा हआ ु है। उसने कहा:<br />

ठक है। यह दकान ु<br />

है...। एक तो अपने को भी याद होना चाहए क कस दकान पर<br />

ु ...नहं अपन ह सुबह कहं<br />

और कसी क दकान ु पर पहंच ु गए तो झगड़ा-झांसा<br />

खड़ा हो जाए। यह दकान ु है।<br />

सुबह आया और आकर पकड़ ली दकानदार ु क गदन और कहा:<br />

हद हो गई! मुझे तो रात ह<br />

शक हआ था। मगर इतने दर तक मने भी न सोचा था क तू धंधा ह बदल लेगा आठ आने<br />

ु ू<br />

के पीछे । कहां हलवाई क दकान<br />

ु , कहां नाईवाड़ा। वदयत भी बदल ली! आठ आने के पीछे !<br />

नाई तो कु छ समझा ह नहं। उसने कहा: तू बात या कर रहा है! कहां का हलवाई, म<br />

सदा का नाई!<br />

उसने कहा: तू मुझे धोखा न दे सके गा। देख वह सांड, अभी भी अपनी जगह बैठा हआ ु है!<br />

म िनशान लगाकर गया हं।<br />

ू<br />

अब सांड का कोई भरोसा है! बैठा था हलवाई क दकान ु के सामने सांझ को,<br />

सुबह बैठ गया<br />

नाई क दकान ु के सामने। तुम छाया को पकड़ते हो,<br />

छाया िछटकती है। इधर पकड़े उधर<br />

िछटक आज है, कल नहं है। तुहार जंदगी यथ क आपाधापी म यतीत हो जाती है--<br />

छायाओं को पकड़ने म।<br />

वामी राम ने िलखा है क म एक घर के सामने से िनकलता था, एक छोटा बचा अपनी<br />

छाया को पकड़ने क कोिशश कर रहा था। सुबह थी, सद सुबह! मां काम म लगी थी,<br />

बचा आंगन म धूप ले रहा था। उसको अपनी छाया दखाई पड़ रह थी। तो वह छाया को<br />

पकड़ने के िलए आगे बढ़े, लेकन खुद आगे बढ़े तो छाया भी आगे बढ़ जाए। जतनी बु<br />

बचे म हो सकती है, सब तरकब उसने लगायी। इधर से चकर मारकर गया, उधर से<br />

चकर मारकर गया, लेकन जहां से भी चकर मारकर जाए वह छाया उसके साथ हट<br />

जाए। रोने लगा। उसक मां ने उसे बहत समझाया।<br />

ु<br />

राम खड़े होकर देखते रहे। यह खेल तो वह है जो पूरे संसार म हो रहा है, इसिलए राम<br />

खड़े होकर देखते रहे। उसक मां ने बहत समझाया क पागल ऐसे छाया नहं पकड़ जा<br />

ु<br />

सकती! छाया तो हट ह जाएगी। मगर छोटे बचे को कै से समझाओ? वह कहे म तो<br />

पकडूंगा म पकड़कर रहंगा<br />

ू , कोई तरकब होनी चाहए।<br />

आखर राम आगे बढ़े आगे बढ़े। उहने उस बचे क मां को कहा क तू समझा न सके गी,<br />

यह हमारा धंधा है। हम यह काम करते ह। लोग को यह समझाते ह क कै से।<br />

उस बचे का हाथ िलया, पूछा उससे: तू या पकड़ना चाहता है। उसने कहा क वह छाया<br />

का िसर पकड़ना है। उस बचे का हाथ पकड़कर उसके िसर पर रख दया। बचे के ह िसर<br />

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पर रख दया! खलखलाकर बचा हंसने लगा। उसने कहा: म जानता ह था क कोई न<br />

कोई तरकब पकड़ने क। मां से कहने लगा: देख, पकड़ ली न छाया! अब हाथ अपने िसर<br />

पर पड़ा तो छाया के िसर पर भी पड़ गया।<br />

ईर को बुला लो, सब ऐय चला आता है।<br />

जीसस का बड़ा िस वचन है, मुझे बहत ु यारा है!<br />

सीक यी फट द कं गडम आफ गॉड,<br />

दैन आल ऐस शैल बी ऐडड अट ू यू ...। पहले ईर के राय को खोज लो, फर शेष अब<br />

अपने-आप िमल जाएगा। मगर हम उटे लगे ह। हम कहते ह शेष सब पहले!<br />

मेरे पास लोग आकर कहते ह। वे कहते ह: अभी नहं, अभी तो संसार, घर-गृहथी, अभी<br />

तो सब पहले हम कर ल; संयास तो अंत म लगे। पहले शेष सब, फर परमामा! पहले<br />

छाया पकड़गे, फर छाया के मािलक को पकड़गे।<br />

यह संसार बड़ा बचकाना है!<br />

तुम जरा अपनी ह तरफ सोचो। दौड़े रहते बाहर पकड़ने के िलए, या-या नहं पाना<br />

चाहए हो! िमलता कभी कु छ? हाथ लगता कभी कु छ? और तुहारे भीतर संपदाओं क<br />

संपदा है! तुहारे भीतर सााय का सााय है।<br />

जो नरपित को िगरह बुलावै, सेना सकल सहज ह आवै।<br />

कौन सी सेना है इस साट क? एक और अथ म भी यह सू महवपूण है। कु छ लोग<br />

ोध को वश म करने म लगे ह, कु छ लोग लोभ को वश म करने म लगे ह, कु छ लोग<br />

काम को वश मग करने म लगे ह। और-और हजार बीमारयां ह। लेकन जानने वाले कहते<br />

ह: बस राम, एक औषिध है। रामबाण औषिध है! बीमारयां कतनी ह ह, तुम राम क<br />

औषिध पी लो क सब यािधय से, सब उपािधय से छु टकारा हो जाएगा। तुम राम-नाम क<br />

समािध लगा लो।<br />

तुम ोध को सीधे-सीधे न जीते सकोगे। यक जसके भीतर राम के दया नहं जला,<br />

उसके भीतर ोध न होगा तो और या होगा? वह ु है ह! ु है जीवन पर। ु है,<br />

य म हं<br />

ू, इस पर। ु है, य संसार ऐसा है, इस पर। ु है, पूछता है क कु छ भी<br />

न होता तो या हजा था? अगर म न होता या बगड़ा जाता था? ु है हर छोट-छोट<br />

चीज पर। हां, कभी-कभी ोध फू ट पड़ता है, लेकन ऐसे ोध उसके भीतर सघन है,<br />

पकता ह रहता है। कभी-कभी मवाद बहत ु हो जाती है तो बाहर आ जाती है,<br />

अयथा भीतर<br />

ोध सड़ाता ह रहता है। उसे।<br />

तुम जब कभी-कभी ु होते हो तो यह मत सोचना क ोध का कारण मौजूद हो गया,<br />

इसिलए ु हो गए। ोध तो तुहारे भीतर मौजूद ह था। बाद तो भीतर तैयार ह थी।<br />

बाहर तो िनिम िमल गया, एक बहाना, एक जरा सी िचनगार, क वफोट हो गया।<br />

बु ने कहा है: सूखे कु एं म बांधो बाट रसी म और डालो। खड़खड़ाओ खूब, खींचो, पानी<br />

भरकर नहं आएगा। भरे कु एं म बाट डालो, यादा खड़खड़ाने का सवा ह नहं है, तुहारे<br />

डालते ह बाट भर जाती है। खंचो, जल से भर आ जाएगी। या तुम सोचते हो बाट<br />

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डालने के पहले कु एं म पानी न था? पानी न होता तो बाट म आता ह कै से? पानी तो<br />

भरा ह था, इसिलए बाट म आ गया।<br />

कसी ने तुह गाली द--गाली यानी बाट डाली तुहारे भीतर, खड़खड़ाई--तुहारे भीतर<br />

ोध हो ह न तो बाट खाली लौट आएगी। तुहारे भीतर ोध भरा हो तो बाट भर लौट<br />

आएगी। गािलयां बाटयां ह। परथितयां बाटयां ह। मनःथित तुहारे भीतर जैसी है,<br />

वह भरकर आ जाएगा। वह बाट कसी गंदे नाले म डालोगे तो गंदा जल आएगा और<br />

कसी वछ सरोवर मग डालोगे तो वछ जल आएगा। बु म वह बाट डालोगे तो<br />

बुव को लेकर आएगी।<br />

िनिम बाहर है, लेकन मूल कारण भीतर है। जब तक तुम भीतर सोए हो, भु का मरण<br />

नहं हआ<br />

ु , भीतर गहर नींद म पड़े हो और राम क सुध नहं आयी, अपनी सुध नहं<br />

आयी--तब तक तुम कतना ह लड़ो ोध से मोह से माया से, जीत न सकोगे। एक तरफ<br />

से दबाओगे, दसर तरफ से उभर कर रोग खड़ा हो जाएगा। रोग दबाने से नहं िमटते। रोग<br />

ू<br />

का मूल कारण िमटाना होता है। तुम तो रोग के ऊपर लण से लड़ रहे हो।<br />

सार दिनया<br />

ु मग यह चल रहा है, लोग लण से लड़ रहे ह। लोग जाकर कसम ले लेते ह<br />

मंदर म क अब ोध न करगे। या तुम सोचते हो कसम लेना ोध को रोक पाएगी?<br />

काश इतना आसान होता! काश कसम से बात हल होतीं! लोग त लेते ह--अणुत,<br />

महात! काश त के लेने से जीवन पांतरत होता होता! त टटते ू ह,<br />

और कु छ भी नहं<br />

होता। और यान रखना, िलए गए त जब टटते ू ह तो भयंकर हािन पहंचाते ु ह।<br />

इसिलए म तुमसे कहता हंू: त तो कभी लेना ह मत। यक पह तो बात यह है: त लेने<br />

से कभी कोई पांतरण नहं होता। अगर तुम समझ ह गए हो क ोध यथ है तो त<br />

थोड़े ह लेना पड़ेगा, बात खतम हो गई। तुम समझ गए क ोध यथ है।<br />

तुम दवा से िनकलने क कोिशश थोड़े ह करते हो; दरवाजे से िनकलते हो, यक तुम<br />

जानते हो दवाल है, िसर टटेगा। ू वह जो शंकराचाय को मानने वाला मायावाद<br />

है, जो<br />

कहता है सब माया है, वह भी दवाल से नहं िनकलता। पूर के शंकराचाय भी दरवाजा<br />

खोजते ह! महाराज, आप तो कम से कम दवाल से िनकल जाओ! सब माया है, दरवाजा<br />

भी माया है, दवाल भी माया है; अब माया म या भेद है? जब दवाल है ह नहं, िसफ<br />

आभासती है, तो िनकल ह जाओ न! अगर वहां िसांत काम नहं आते। वह उनको भी पता<br />

है। कहते ह: सय, जगत िमया। मानते कु छ और ह: जगत सय, िमया! कहां<br />

का ! यह जो तुहार त क परंपरा है, यह संभव ह इसिलए हो पाती है क नासमझी<br />

है। ोध जलाता है, दध करता है, पीड़ा देता है, घाव बनाता है--तो कसम खा लेते हो।<br />

मगर कसम से कै से ोध के गा? या करोगे तुम कसम खाकर? जब ोध उठेगा झंझावात<br />

क तरह, तब तुम या करोगे? दबा लोगे, घट लोगे, पी जाओगे। अगर यह पीया गया<br />

ोध तुहारे भीतर जहर बनकर घूमेगा, तुहारे रोएं-रोएं म समा जाएगा। िनकल जाता तो<br />

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अछा ह था, वमन हो जाता, जहर बाहर िनकल जाता यवथा से। अब यह तुहार<br />

यवथा का अंग हो जाएगा।<br />

तुहारे मुिन ऐसे ह अकारण ह तो दवासा ु नहं हो जाते। ोध को खूब दबाते ह,<br />

तब<br />

दवासा हो जाते ह फर छोट<br />

ु -मोट बात क भभके । जरा-सी बात, जस बात से कोई भी न<br />

भभकता, साधारण जन भी न भभकता, उस बात से भी दवासा भभक जाते ह। और ऐसे<br />

ु<br />

भभकते ह क एकाध जम नहं बगाड़ते, आगे के दो-चार जम बगाड़ देने का अिभशाप<br />

दे देते ह!<br />

तुहारे ऋष-मुिन अिभशाप देते रहे! ऋष और मुिन और अिभशाप? ऋष और मुिन का<br />

जीवन तो आशीवाद होना चाहए, बस आशीवाद। अिभशाप? लेकन अिभशाप का कारण है--<br />

वे दबाए गए ोध,र ईयाएं<br />

् , वैमनय, हंसाएं...वे सब कहां जाएंगी? वे सब इकठ होती<br />

ह, सघन होती ह। कामवासनाएं दबाकर बैठ जाते ह तो िच कामवासनाओं से ह भर जाते<br />

ह। फर िच मग कामवासनाओं के ह वचार उठते ह, फर कु छ और नहं उठता। फर<br />

ऊपर वे कतना ह राम-राम जप और माला कतनी ह तेजी से फे र...तेजी से फे रते ह ताक<br />

भीतर जो हो रहा है वह पता न चले, उलझे रह कसी तरह, लगे रह। मगर उससे कु छ<br />

फक नहं पड़ता। वह जो भीतर हो रहा है वह हो रहा है। भीतर एक फम चल रह है<br />

उनके ।<br />

जतनी अील फम तुहारे ऋष-मुिन देखते ह उतनी अील फम कोई नहं देखता।<br />

कोई देख ह नहं सकता! अील फम देखने के िलए कु छ अजन करना होता है;<br />

कामवासना का खूब दमन मरना होता है। कस इं को पड़ है क खे-सूखे बैठे एक ऋष,<br />

ऐसे ह मरे मराए, अब इनको और या मारना है, क इनके पास भेजता असराओं क<br />

जाओ और नाचो! कोई असराओं को दंड देना है? कोई असराओं का कसूर है?<br />

न कोई असराएं कहं से आतीं, न कहं जातीं; ऋष-मुिनय के भीतर ह दबी हई जो<br />

ु<br />

कामवासना है, यह इतनी भयंकर हो उठती है क इसका ेपण शु हो जाता है।<br />

मनोवान कहता है क कसी भी वासना को दबा लो तो उसका हेलूिसलेशन, उसका<br />

ेपण शु हो जाता है। तुम उसी को देखने लगोगे बाहर। पहले रात सपन म देखोगे, फर<br />

खुली आंख देखने लगोगे, दवा-वन म देखने लगोगे। और फर तो तुहारे सामने इतनी<br />

प होने लगगी तवीर, जतना दमन बढ़ता जाएगा उतनी तवीर प होती जाएंगी। जब<br />

दमन पूण होगा तो तवीर ी-डायमशनल हो जाएंगी, बलकु ल यथाथ मालूम हगी। ऋष-<br />

मुिनय क म गलती नहं कहता। उहने बराबर ी-डायमशनल असराएं देखी है--जनको<br />

तुम छू सकते हो, जनसे बात कर सकते हो। दबाया भी खूब था, अजुन कया था।<br />

त लेकर तुम करोगे या? त लेने म समझ बढ़ेगी? समझ ह होती तो त लेते य?<br />

और समझ ह बढ़ सकती है तो त लेने क कोई जरत न पड़ेगी। तुम मंदर म जाकर<br />

कसम तो नहं खाते क म कसम खाता हं क रोज कचरा अपने घर म सुबह इकठा करके<br />

ू<br />

बाहर कचरे घर मग फ कू<br />

ं गा! रोज फ कू<br />

ं गा, िनयम से फ कू<br />

ं गा; कसम खाता हं<br />

ू, कभी िनयम<br />

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नहं तोडूंगा! तुम अगर ऐसी कसम खाओ तो तुहारे मुिन-महाराज भी थोड़े हैरान ह क यह<br />

भी या कसम है!<br />

नर के पता थोड़े झक ह। मत ह! लोग झक समझते ह। वे गए तीथयाा को। वे चल<br />

पड़ते ह जब उनक मौज होती है, बना कसी को खबर कए। बताते ह पूरब जा रहे ह,<br />

चले जाते ह पम ताक घर वाले उनका पीछा न कर सक, पता न लगा सक कहां ह।<br />

िनत भाव से! पहंच ु गए जैन तीथ --िशखरजी। वहां कसी दगंबर जैन मुिन के दशन कए।<br />

वहां और भी लोग थे, सब िनयम ले रहे थे। यक जैन मुिनय का वह खास काम है--त<br />

लो! तीथयाा क, अब त लेकर जाओ; अब यहां कसम खाओ इस तीथ-थल म। सब ले<br />

रहे थे। कोई कसम खा रहा था क रा-भोजन का याग कं गा। कोई कह रहा था क अब<br />

नमक नहं खाऊं गा। कोई कह रहा था अब घी का उपयोग नहं कं गा। कोई कु छ कोई कु छ।<br />

जब उनका नंबर आया तो उहने कहा क महाराज, कसम खाता हं क अब से बीड़<br />

ू<br />

पीऊं गा।<br />

झक ह, मगर बात बड़े पते क कह उहने! मुिन भी थोड़े चके । जंदगी हो गई उनको<br />

भी लोग को त दलवाते, मगर यह त! पूछा क होश म हो, यह कै सा त! तो उहने<br />

कहा क दसरे ू तो त कई लेकर देखे,<br />

टट ू जाते ह;<br />

यह त ऐसा है, कभी नहं टटेगा ू ।<br />

और त के न टटने ू से आमा म बल आता है।<br />

यह बात गहर है! जब भी त टटता ू है तो आमा िनबल होती है। यह बात बड़<br />

मनोवैािनक है। कभी-कभी झक बड़ गहर बात कह जाते ह। बड़ दर क बात कह जाते<br />

ू<br />

ह। यक उह फकर तो होती नहं है क या कह रहे ह। जैसा उह सूझता है वैसा कह<br />

देते ह। लोकलाज क फकर नहं। लोकलाज क फकर हो तो कोई ऐसी कसम खाए क<br />

कल से बीड़ पीएंगे! और तब से वे बीड़ पीते ह, िनयम पूवक पीते ह। धािमक िनयम हो<br />

गया! अब तो उनसे कोई छु ड़वा भी नहं सकता। त उहने ऐसा िलया, जो पूरा हो सके ।<br />

परमामा अगर कहं होगा तो जर उन पर सन होगा क कम से कम एक तधार तो<br />

है। हालांक यह अणुत है, बीड़ कोई बड़ चीज नहं है। छोटा ह त है मगर पूरा तो कर<br />

रहे ह, िनयम से पूरा कर रहे ह।<br />

लोग त ले लेते ह और टट ू -टट ू जाते ह। परणाम या होता है? एक आमहनता पैदा होता<br />

है। एक त िलया, फर टट ू गया,<br />

पूरा न हो सका। लािन पैदा होती है। अपने ह ित<br />

िनंदा पैदा होती है। अपराध-भाव पैदा होता है। और इस जगत म सब से बुर बात है<br />

अपराध-भाव पैदा हो जाना। जसके मन म अपना ह समान न रहा, उसके जीवन म<br />

परमामा क तलाश करनी बड़ असंभव हो जाएगी। जसका आम-गौरव खंडत हो गया;<br />

जसे यह समझ म आ गया क म दो कौड़ का भी नहं हं ू--जो भी करता हं ू वह टट ू जाता<br />

है; जो भी करना चाहता हं वह नहं कर पाता हं<br />

ू ू--उसके जीवन म तो पैर लड़खड़ा जाएंगे।<br />

वह तो यह आशा ह छोड़ देगा क म क परमामा को पाने का अिधकार हो सकता हं। तुम<br />

ू<br />

लाख उससे कहो क आमा परमामा िछपा है, तुम ठक-ठककर समझाओ उसे क तुहारा<br />

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वभाव ह मो है, िनवाण है; पर नहं उसे कु छ समझ म आएगा। वह तो अपने को<br />

तुमसे कहं यादा भलीभांित जानता है। वह जानता है छोटे-छोटे काम तो सधते नहं। तीस<br />

साल हो गए, धूपान छोड़ना चाहता हं<br />

ू, वह नहं छू टता--और मुझसे या होगा! म तो<br />

पापी हं<br />

ू! नक ह मेरा थान है! वग क आशा करना ह यथ है!<br />

उसके जीवन म गहन िनराशा पैदा हो जाती है। और इस सब के पीछे मौिलक कारण या<br />

है? मौिलक कारण यह है क तुम प-प पर जाते हो, जड़ नहं काटते<br />

दरया ठक कहते ह: जो नरपित को िगरह बुलावै!<br />

यान को पकड़ो! यान है िनमंण परमामा के िलए। आने दो राम क थोड़ झलक तुहारे<br />

भीतर और उस झलक के साथ ह तुम पाओगे: जो छोड़ना था, सदा छोड़ना था, छू ट गया;<br />

और जो पकड़ना था, सदा पकड़ना था, अपने-आप हाथ म आ गया है। न छोड़ना पड़ता है<br />

कु छ, न तोड़ना पड़ता है कु छ, न पकड़ना पड़ता है कु छ। जीवन म एक सहज सरलता से<br />

ांित घटनी शु हो जाती है। और सहज ांित का सदय ह और है।<br />

जो कोई कर भान कासै, तौ िनस तारा सहजह नासै।।<br />

जसके भीतर काश हो गया उसके भीतर रात का आखर तारा अपने-आप डूब जाता है,<br />

डु बाना नहं पड़ता। सुबह सूरज िनकल कर घोषणा नहं करता क भाइयो एवं बहनो! अब<br />

रात समा हो गई! अब तारागण अपने घर-घर जाएं! इधर सूरज िनकला उधर तारे गए,<br />

िनकलता ह िनकलता...सूरज का िनकलना और तारागका जाना एक साथ, युगपत घटत<br />

होता है। सूरज िनकलकर अंधेरे से िनवेदन नहं करता क अब आप अपने घर पधारए<br />

अबट आइंटन के संबंध म मने सुना है। भुलकड़ वभाव का आदमी था। असर ऐसा हो<br />

जाता है, जो लोग जीवन क बड़ गहन समयाओं म उलझे होते ह उह छोट-छोट बात<br />

भूल जाती ह। जो आकाश चांदार म उलझते होते ह उह जमीन भूल जाती है। इतनी<br />

वराट समयाएं जनके सामने ह, उनके सामने कई दफे अड़चन हो जाती है। जैसे एक बार<br />

यह हआ ु क उसको लगा,<br />

अलबट आइंटन को, क आ गई बीमार जसक क डाटर ने<br />

कहा था। डाटर ने उसको कहा था क कभी न कभी डर है, तुहार रढ़ कमजोर है, तो<br />

यह हो सकता है क बुढ़ापे म तुह झुककर चलना पड़े, तुम कु बड़े हो जाओ। एक दन उसे<br />

लगा, सुबह ह सुबह बाथम म से िनकलने को ह था क आ गया वह दन। वहं बैठ<br />

गया। घंट बजाकर पी को बुलाया, कहा डाटर को बुलाओ, लगता है म कु बड़ा हो गया।<br />

चलते ह नहं बन रहा है मुझसे। िसर सीधा करते नहं बन रहा है। रढ़ झुक गई है।<br />

डाटर भागा गया। डाटर ने गौर से देखा और कहा क कु छ नहं है, आपने ऊपर का बटन<br />

नीचे लगा िलया है। अब उठना चाहते हो तो उठोगे कै से?<br />

आकाश क बात म उलझा हआ ु आदमी असर इधर-उधर<br />

के बटन हो जाएं कोई आय क<br />

बात नहं।<br />

एक िम के घर अबट आइंटन गया था िम ने िनमंण दया था। फर गपशप चली।<br />

खाना चला, फर गपशप चली, िम घबड़ाने लगा, रात देर होने लगी, यारह बज गए<br />

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बारह बज गए। आइंटन िसर खुजलाए, जहाई ले, घड़ देखे, मगर जो बात कहनी<br />

चाहए क अब म चलूं<br />

वह कहे ह नहं। एक बज गया, िम भी घबड़ा गया क यह या<br />

रात भर बैठे ह रहना पड़ेगा! अब अबट आइंटन जैसे आदमी से कह भी नहं सकते क<br />

अब आप जाइए, इतना बड़ा मेहमान! और देख भी रहा है क जहाई आ रह है अबट<br />

आइंटन को, आंख झुक जा रह ह, घड़ भी देखता है; मगर बात जो कहनी चाहए वह<br />

नहं कहता। आखर िम ने कहा क कु छ परो प से कहना चाहए। तो उसने कहा क<br />

मालूम होता है, आपको नींद आ रह है, जहाई रहे ह, घड़ देख रहे ह, काफ नींद<br />

मालूम होती है आपको आ रह है।<br />

अबट आइंटन ने कहा क आ तो रह है, मगर जब आप जाएं तो म सोऊं । िम ने<br />

कहा: आप कह या रहे ह? यह मेरा घर है!<br />

तो अबट आइंटन ने कहा। भले मानुष! पहले से य नहं कहा? चार घंटे से िसर के<br />

भीतर एक ह बात भनक रह है क यह कब कमबत उठे और कहे क अब हम चले!<br />

इतनी दफे घड़ देख रहा हं<br />

ू, फर भी तुह समझ म नहं आ रहा। म यह सोच रहा क<br />

बात या है! जहाई भी लेता हं<br />

ू, आंख भी बंद कर लेता हं<br />

ू, सुनता भी नहं तुहार बात<br />

क तुम या कह रहे हो। और यह भी देख रहा हं ू क तुम भी जहाई ले रहे हो,<br />

घड़ तुम<br />

भी देखते, जाते य नहं, कहते य नहं क अब जाना चाहए।<br />

आदमी करब-करब एक गहरे वमरण म जी रहा है, जहां उसे अपने घर क याद ह नहं<br />

है; जहां उसे भूल ह गया क म कौन हं<br />

ू; जहां उसे भीतर जाने का माग ह वमृत हो<br />

गया है। और इसिलए सार अड़चन पैदा हो रह है। एक काम कर लो: भीतर उतरना सीख<br />

जाओ। और भीतर योित जल ह रह है, जलानी नहं है--बन बाती बन तेल! वह दया<br />

जल ह रहा है।<br />

जो कोई कर भान कासै..और जसके भीतर काश हो गया...तौ िनस तारा सहजह नासै।<br />

गड़ पंख जो घर मग लावै, सप जाित रहने नहं पावै।<br />

इसिलए अंधेरे से मत लड़ो, काश को लाओ। और तुम अंधेरे से लड़ रहे हो! अंधेरे से लोग<br />

लड़े जा रहे ह। कोई कहता है कामवासना िमटाकर रहगे। कोई कहता है ोध िमटाकर रहगे।<br />

कोई कहता है लोभ िमटाकर रहगे तुम िमट जाओगे, लोभ नहं िमटेगा, कामवासना नहं<br />

िमटेगी। तुम अंधेरे से लड़ रहे हो; ये सब नकार ह। दया जलाओ!<br />

इसिलए म कहता हं<br />

ू: यान, यान और यान! िसफ दया जलाओ और शेष सब चीज<br />

अपने-आपे वदा हो जाएंगी।<br />

दरया सुमरै एकह राम, एक राम सारे सब काम।।<br />

जसको म यान कह रहा हं<br />

ू, उसको दरया कहते ह राम का सुमरण। एक ह बात है। एक<br />

राम सारै सब काम! फर इतने-इतने उपव जो तुम अलग-अलग उलझे हए हो और पागल<br />

ु<br />

हए ु जा रहे हो,<br />

ये सब सहल जाते ह।<br />

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आद अंत मेरा है राम...। दरयार कहते ह: जब से जाना,जब से जागा, तब से एक बात<br />

साफ हो गई क वह मेरा ारंभ है, वह मेरा अंत है, वह मेरा मय है।...उन बन और<br />

सकल बेकाम! उनके बना और सब यथ है।<br />

मेरे इस सूने जीवन म<br />

तुम आशा बनकर आते हो!<br />

आ जाती जब नैराय-िनशा<br />

छा जाती है तब आस पास,<br />

जीवन का पथ िछप िछप जाता<br />

हो जाता मेरा मन उदास,<br />

ऐसे म तुम राका-शिश से<br />

आ मंद-मंद मुसकाते हो!<br />

जीवन के इस सूने नभ म<br />

घनघोर घटा छा जाती है,<br />

सजधज कर नूतन साज सजा<br />

जब अमा-िनशा आ जाती है,<br />

ऐसे म तुम खोत बने<br />

जगमग जग योित जगाते हो!<br />

जीवन के नीरव सपन को<br />

दशु -िशिशर शूय कर जाता है,<br />

दावा क जलती लपट से<br />

जब मृद ु उपवन जल जाता है,<br />

ऐसे म तुम ऋतुराज बने<br />

कोयल सी कू क सुनाते हो!<br />

आतुर जग के सब साज णक<br />

नरता का नतन होता,<br />

यह देख चकत हो मेरा मन<br />

जग क नादानी पर रोता,<br />

तब तुहं ेरणा-राग छे ड़<br />

नवजीवन-गित सुनाते हो!<br />

उसक तरफ आंख उठाओ। अभी झरत, बगसत कं वल! उसक तरह दय को खोलो--और<br />

मृयु गई, अंधकार गया, पाप गया!<br />

कहा कं तो बेद पुराना...। सुनो, ांित का उदघोष है दरया के इस वचन म! कहा कं<br />

तेरा बेद पुराना...या कं तेरे वेद का और तेरे पुराण का? मुझे तो तू ह चाहए! ये खलौने<br />

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देकर मुझे न समझा। तू मुझे इतना नासमझ न समझ। पंडत को भुला िलया भुला ले, म<br />

कोई पंडत नहं हं।<br />

ू<br />

कहा कं तेरा बेद पुराना। जन है सकल जगत भरमाना।<br />

वेद और पुराण म सारा जगत उलझा हआ ु है--कोई<br />

कु रान म कोई बाइबल म, कोई<br />

धमपद म। सारा जगत उलझा हआ है। लोग शद के<br />

ु जाल म लगे ह; शद क खाल<br />

िनकाल रहे ह। बात म से बात िनकालते जाते ह। बड़ा ववाद खड़ा कया हआ है। फु सत ह<br />

ु<br />

नहं कसी को राम क तरफ नजर उठाने क।<br />

िसमंड ायड के जीवन म उलेख है क जीवन के अंितम वष म उसने अपने सारे<br />

सहयोिगय को, सारे िम को, िशय को अपने घर िनमंत कया क शायद यह आखर<br />

दन है अब। सार दिनया ु म उसके िशय थे,<br />

वे सब इकठे हए। ु खास खास!<br />

उनको भोजन<br />

पर आमंत कया। ायड बैठा है, भोजन चल रहा है, ववाद िछड़ गया। ायड के ह<br />

कसी िसांत के संबंध म ववाद िछड़ गया क ायड का या मतलब है। एक कहता कु छ,<br />

दसरा कहता कु छ<br />

ू , तीसरा कहता और ह कु छ तूू म-म होने लगी। बात यहां तक बढ़ गई<br />

क मारपीट हो जाए, ऐसी संभावना आ गई। ायड ने जोर से टेबल पीट और कहा क<br />

सजन, म अभी जंदा हं<br />

ू, यह तुम भूल ह गए। म मर जाऊं, फर तो यह गित होगी<br />

ह, मुझे पता है; मगर मेरे सामने यह गित कर रहे हो तुम! म मौजूद हं<br />

ू, तुम मुझसे<br />

पूछते भी नहं क आपका या योजन है कम से कम जब तक म मौजूद हं तब तक तो<br />

ू<br />

मुझ से पूछ लो। आपस म ह लड़े जा रहे हो! परमामा सदा मौजूद है, उससे ह पूछो।<br />

या वेद पुराण कु रान म उलझे हो? जो मोहमद के कान म गुनगुना गया, वह तुहारे<br />

कान म भी गुनगुनाने को राजी है। जो वेद के ऋषय के दय म तरंग उठा गया, तुम पर<br />

उसक अनुकं पा कु छ कम नहं है। तुम भी उसके उतने ह हो। देखा नहं, दरया ने कहा क<br />

जो म धुिनया तो भी हं ू राम तुहारा माना क धुिनया हं ू, इससे या होता है; हं ू तो<br />

तुहारा! तुम मेरे उतने ह हो जतने कसी और के ! म तुहारा उतना ह हं जतना कोई<br />

ू<br />

और तुहारा। दन-हन सह, अपढ़-अानी सह; लेकन हं ू तो तुहारा!<br />

बस इतना ह<br />

काफ है। तो भरोसा है क तुहार अनुकं पा मुझ पर उतनी ह है जतनी कसी और पर।<br />

कहा कं तेरा बेद पुराना। जन है सकल जगत भरमाना।।<br />

कहा कं तेर अनुभै-बानी। जनत मेर सु भुलानी।।<br />

और सभी कहते ह क अनुभव क वाणी है। वेद भी यह कहते, धमपद भी यह कहता,<br />

कु रान, बाइबल भी यह कहते क सब अनुभव क वाणी है। और मेर सुिध इन सब<br />

अनुभवय क वाणी म भट गई। मुझे मेरा पता ह नहं िमल रहा है। इतने िसांत, इतने<br />

िसांत के जाल, इनम से बाहर िनकलना मुकल हआ जा रहा है। मछली क तरह फं स<br />

ु<br />

गया हं िसांत के जाल म।<br />

ू<br />

और यह भी नहं कहते दरया क यह अनुभव क वाणी न होगी, लेकन कसी दसरे क<br />

ू<br />

अनुभव क वाणी तुहारा अनुभव नहं बनती, नहं बन सकती! अनुभव हतांतरणीय नहं<br />

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है। अनुभव जैसे ह तुमसे कहा गया, झूठ हो जाता है। मेरा अनुभव मेरा अनुभव है, कोई<br />

उपाय नहं है क इसे म तुहारे म दे दं। देना<br />

ू चाहता हं तो भी कोई उपाय नहं है। जैसे ह<br />

ू<br />

शद म बांधूंगा,<br />

आधा तो मर जाएगा। और फर तुम तक पहंचते ु -पहंचते ु जो आधा बचा है<br />

वह भी मर जाएगा। और तुम जो समझोगे वह कु छ और ह होगा। तुम वह समझोगे तो<br />

तुम समझ सकते हो।<br />

तुहार अपनी अपेाएं ह। तुहार अपनी धारणाएं ह। तुहारा अपना बांध हआ िच है।<br />

ु<br />

तुहारे पास एक मन है; उस मन से ह तुम सुनोगे।<br />

मने सुना है, मुला नसन एक होटल म ठहरा था। ेन पकड़नी थी। भागा भागा नीचे<br />

आया टैसी म सामान रखा। सब सामान रख गया, एक नजर डाली, तभी देखा क छाता<br />

भूल आया है ऊपर ह। फर भागा। चौथी मंजल, पुराने दन क कहानी िलट भी नहं।<br />

चढ़ा सीढ़यां हांफता-हांफता, तब तक अपने कमरे पर पहंचा तब तक वह कमरा कसी और<br />

ु<br />

को दया जा चुका था। तो ताले के छे द म से देखा क भीतर या हो रहा है। छाते का या<br />

हआ<br />

ु ! मगर भीतर एक रंगीन य है। छाता-वाता भूल गया। एक नया-नया ववाहत जोड़ा<br />

हनीमून मनाने आया है। पित पूछ रहा है पी से: ये यार-यार आंख, ये मीनाी जैसी<br />

आंख, कसक ह? मुला आतुर होकर सुनने लगा, सांस रोककर सुनने लगा। पी ने कहा:<br />

तुहार, तुहार! और कसक?<br />

और यह सुए जैसी लंबी नाक, यह कसक है?<br />

तुहार, तुहार! और कसक?<br />

और ये लाल सुख ओंठ...और ऐसी याा चलने लगी पूरे शरर पर, पूरा भूगोल...! इधर<br />

मुला क ेन, इधर नीचे खड़ टैसी, वह भपू बजा रहा, इधर भूगोल रसपूण से रसपूण<br />

हआ ु जा रहा। और छाता!<br />

उसक तुम मुसीबत समझ सकते हो। आखर उससे रहा नहं<br />

गया, जब भपू बहत ु बजा और उसने देखा घड़ म क अब चूकने क थित है,<br />

जोर से<br />

दरवाजा खटखटाया और कहा क एक बात मेर भी सुन लो, जब छाते का नंबर आए तो<br />

खयाल रखना, वह मेरा है।<br />

अपनी-अपनी िच क धारणा है। अब वह छाता ह छाता छाया हआ ु है!<br />

तुम जब सुनते हो कु छ तो तुम खाली थोड़े ह सुनते हो, शूय थोड़े ह सुनते हो, मौन थोड़े<br />

ह सुनते हो। हजार तुहारे वचार ह...हंद है<br />

ू , मुसलमान है, ईसाई है, सब वहां खड़े ह।<br />

जो तुमने पढ़ा है, सुना है, वहां खड़ा है। उस सब भीड़-भाड़ म से जब अनुभव क वाणी<br />

गुजरती है, खंड-खंड हो जाती है, टकड़े ु -टकड़े ु हो जाती है। उस पर न मालूम कै से-कै<br />

से रंग<br />

चढ़ जाते ह, न मालूम कै से-कै से ढंग चढ़ जाते ह! तुम तक पहंचते ु -पहंचते ु कु छ का कु छ हो<br />

जाता है।<br />

एक मकड़ के उलझते हए ु जाल क तरह,<br />

जंदगी हो गई अनबूझ सवाल क तरह।<br />

छलछलाती है भर आंख कसी खंडहर क,<br />

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कोई अहसास गुजरता है कु दाल क तरह।<br />

जब से देखे ह फटे पांव पहाड़ के कहं<br />

हर नद दखती रसते हए छाल क तरह<br />

ु<br />

रोज सहा हं ू कोई दद जलावती का,<br />

दौरेाजीर म आजाद खयाल क तरह।<br />

म तेरे शहर म जब भी गया हं<br />

ू, पाया है,<br />

कोई आवाज उफनती है उबाल क तरह।<br />

दफन ह वाब कई जेहन के तहखाने म,<br />

जुम के व जमींदोज रसाल क तरह।<br />

दखता है मुझे हर शस पटे मोहरे-सा,<br />

दौर ये है कसी शतरंज क चाल क तरह।<br />

अंधेर रात सचाई का गला घट रह,<br />

कोई फरब उभरता है उजाल क तरह।<br />

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तुहारे शा फरेब ह। और ऐसा नहं है क जहने कहा है वे अनुभवी नहं थे। जहने<br />

कहा है वे अनुभवी थे। बु ने धमपद म अपने को उं डेल दया है और पवत के वचन म<br />

जीसस ने अपने ाण डालने क चेा क है और भगवदगीता म कृ ण ने गा दया है गीत<br />

जतना ेता से गाया जा सकता है। मगर तुम तक पहंचते ु -पहंचते ु कु छ का कु छ हो जाता<br />

है।<br />

एक मकड़ के उलझते हए ु जाल क तरह,<br />

जंदगी हो गयी अनबूझ सवाल क तरह।<br />

अंधेर रात सचाई का गला घट रह,<br />

कोई फरेब उभरता है उजाल क तरह।<br />

शद बड़े फरेब िस हए ु ह। शद से सावधान!<br />

शूय को गहो, मौन को पकड़ो यक मौन<br />

म ह, शूय म ह परमामा तुम से बोलेगा, तुहारा वेद जमेगा, तुहारा कु रान<br />

जमेगा, तुहार बाइबल पैदा होगी! और जब तुहार होगी, अपनी होगी, िनजता क<br />

होगी, तुहारे दय का उस पर रंग होगा, तुहार धड़कन होगी उस म, तुम उस म सांस<br />

लेते हए ु होओगे--वैसा<br />

जीवन सय ह मु करता है। उधार सय मु नहं करते, बंधन बन<br />

जाते ह।<br />

और िचंता न करना क तुम अपढ़, तुम अानी, तुहारे वचन वेद जैसे शु कै से हो<br />

पाएंगे; िचंता न करना क तुहार वाणी म बु जैसी खरता कै से होगी? िचंता न करना।<br />

तुतलाया ह तुमने तो ह अगर सय तुहारा है तो बु के फटकमणय जैसे दए गए<br />

सय भी तुहारे तुतलाते सय के सामने फके पड़ जाएंगे। तुहारा अपना अनुभव ह...।<br />

अंधे से कतने ह काश क बात कर, या होगा? और बड़े-बड़े महाकव काश के गीत<br />

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गाए अंधे के सामने या होगा? और अंधे क आंख खुले और अंधा रोशनी को देख ले, सब<br />

हो जाएगा।<br />

मेरा वर सीिमत रहने दो!<br />

कसो न इतने तार टट ू कर<br />

ह रह जाए जीवन-वीणा!<br />

इसके जजर तार का वर,<br />

अफू ट है अफू ट ह रहने दो!<br />

मेरा वर सीकत रहने दो!<br />

नहं साध मेर वर-लहर,<br />

धरती अंबर को छू पाए!<br />

के वल इसे तुहं सुन पाओ,<br />

इसको अपने तक रहने दो!<br />

मेरा वर सीिमत रहने दो!<br />

मेर इस िनरहता क िनज,<br />

मता से तुलना मत करना!<br />

मेरे अंतर क साध को,<br />

िनज पर अवलंबत रहने दो!<br />

मेरा वर सीकत रहने दो!<br />

मने अपने ा से य,<br />

तुमको पूजत देव बनाया!<br />

तुम के वल इतना ह कर दो,<br />

मुझको भी कु छ तो रहने दो!<br />

मेरा वर सीिमत रहने दो!<br />

िचंता न करना, तुहारा वर सीकत होगा--वर तुहारा हो! तुतलाया हो, मगर तुहारा<br />

हो! अनगढ़ हो, मगर तुहारा हो! तो मुदायी है। नहं तुम गा सकोगे गीत उपिनषद<br />

जैसे। दरया नहं गा सके । नहं गा सकोगे तुम गीत बु जैसे। िचंता नहं है। यह कला<br />

का नहं है, न भाषा का है, न याकरण का है, न शैली का है, न छं द का है। यह <br />

तो आम-अनुभव का है। और दसर ू क वाणी म अगर उलझ गए और दसर ू क वाणी को<br />

ह अगर अपनी वाणी मान िलया तो फर तुहारा सय तुह कभी भी न िमलेगा। फर तुम<br />

उलझे रहोगे मकड़ के जाल म। सब िसांत, सब शा मकड़ के जाले ह। सावधान!<br />

कहा कं यह मान बड़ाई, राम बना सब कह दखदाई।<br />

ु<br />

दरया कहते ह: बहत ु समान िमलता है,<br />

मान िमलता है; लेकन इस सब का कोई मूय<br />

नहं है। राम के बना कु छ भी िमल जाए, दख ु ह लाता है,<br />

सुख ह लाता।<br />

कहा कं तेरा साख और जोग।<br />

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सांय भारत म पैदा हआ ु सब से यादा सूम शा है,<br />

सब से यादा बारक दशन है। तो<br />

कहते ह: या कं तेरे सांय का और या कं तेरे योग का? योग भारत म पैदा हआ<br />

ु<br />

अयास का सबसे यादा वैािनक म है। सांय वचार का और योग अयास का। सांय<br />

मनन का और योग साधन का। ये चरमोकष ह। मगर दरया कहते ह: मेरे कस काम के?<br />

जब तक मेरे भीतर सांय पैदा न हो, जब तक मेरा योग न जमे, जब तक मेरा तुझसे<br />

योग न हो, तब तक तू मेरा सांय न बने--तब तक म राजी नहं।<br />

कहा कं तेरा साख और जोग, राम बना सब बंदन रोग।<br />

तेरे बना तो मने सार वंदनाओं को रोग जाना है, सार ाथनाओं को दो कौड़ का माना है।<br />

तू है तो सब है, तू नहं तो कु छ भी नहं।<br />

इंधनुषी सांझ के सूने ण म<br />

ाथना म झुक गया है शीश मेरा!<br />

शांत हलचल हो गयी सूने गगन क,<br />

शांत हलचल हो गयी है यिथत मन क,<br />

राग-रंजत सी दशाएं शांत िनरव,<br />

वकला पांखी ले चुके त पर बसेरा!<br />

ाथना म कु छ न कहने को दय क बात,<br />

ाथना म मन नहं है प-गुण-लय-नात,<br />

शेष के वल शांत नीरव तृि-सुख का भाव<br />

छू नहं सकता जसे मन का अंधेरा!<br />

इंधुषी सांझ के<br />

सूने ण म<br />

ाथना म झुक गया है<br />

शीश मेरा!<br />

न तो शद क कोई बात है ाथना, न याकांड का इससे कोई संबंध है। भाव के, ेम<br />

के कसी ण म कहं भी िसर झुक जाए, वहं ाथना हो जाती है। मगर राम क तीित के<br />

बना कै से झुके िसर, कहां झुके िसर? राम क उपथित के बना कै से यह अनुह का भाव<br />

पैदा हो, क िसर झुकाऊं क धयवाद दंू?<br />

इसिलए तुहार ाथनाएं िसफ औपचारकताएं है। तुम समय खराब कर रहे हो तुहार<br />

ाथनाओं म। पंडत-पुजारय के साथ तुम जीवन का अमूय अवसर यथ कर रहे हो। अपने<br />

एकांत म, अपने ह ढंग से--पुकारो! अपने एकांत म, अपने ह ढंग से, उससे दो बात कर<br />

लो। दो बात करनी ह तो दो बात कर लो, न करनी ह चुप बैठ रहो मौन बैठ रहो। और<br />

ाथना को कोई बंधी-बंधाई लकर मत बनाना, क वह-वह ाथना रोज दोहरा रहे ह। वह<br />

मुदा हो जाएगी, यांक हो जाएगी। इतना ह नहं कर सकते या, परमामा से कहने को<br />

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दो शद रोज उसी ण नहं खोज सकते? वहां भी तुम तैयार कए हए<br />

ु , पूव-िनयोजत,<br />

शद का ह यवहार, जार रखोगे! कम से कम उससे तो हादकता का नाता जोड़ो!<br />

कहां कं इंन का सुख। राम बना देव सब दख।<br />

ु<br />

दरया कहते ह: मने तो िसवाय दख ु के और कु छ नहं पाया। इंय ने आशाएं बहत ु दं,<br />

आासन बहत दए<br />

ु<br />

दंगी और हर इंय ने दख दया।<br />

ू ु<br />

, वचन बहत ु दए,<br />

मगर वचन पूरे न कए। हर इंय ने कहा सुख<br />

इस संसार म हर नक के दरवाजे पर वग क तती लगी है। वग क तती देखकर तुम<br />

भीतर चले जाते हो। तुहारा ततय पर बड़ा भरोसा है। फर भीतर फं स गए, फर<br />

िनकलना आसान नहं है। कब समझोगे? कतने बार तो उलझ चुके हो! ऐसे भी तो बहत देर<br />

ु<br />

हो चुक है, अब जागो!<br />

राम बना देवा सब दख ु ...। राम के बना िसवाय दख ु के और कु छ भी नहं देखा है।<br />

म एक बूंद<br />

जस सागर क<br />

वह सागर अब तक पा न सक!<br />

जाने कस ण कस रव ने िनज<br />

उ करण से वाप बना<br />

मुझको सागर से अलग कया<br />

दखला अनुपम मोहक सपना!<br />

म उड़ छोड़ भू, अंबर म,<br />

पाने जीवन का नव वकास,<br />

था ात कसे बन जाएगा<br />

ण-भर का उड़ना िचर वास!<br />

जो छोड़ चली सागर असीम<br />

उस सागर म फर आ न सक,<br />

म एक बूंद<br />

जस सागर क<br />

वह सागर अब तक पा न सक!<br />

या ात मुझे कब तक मुझको<br />

जग म य ह मना होगा,<br />

या ात मुझे कब या या<br />

जग म वप धरना होगा!<br />

पर इतना ढ़ वास मुझे<br />

जो सागर उस दन छोड़ चली,<br />

उसक लहर म एक दवस<br />

फर लय जीवन अपना होगा!<br />

वास मुझे यह िचर महान<br />

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यप अब तक पथ पा न सक!<br />

म एक बूंद<br />

जस सागर क<br />

वह सागर अब तक पा न सक!<br />

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सुख है या? तुहारे बीच और अतव के बीच छंद का िछड़ जाना सुख है। तुहारे बीच<br />

और अतव के बीच नृय का िछड़ जाना सुख है। तुहार बीच और अतव के बीच जब<br />

कोई वरोध नहं होता, तब सुख है।<br />

सुख एक संतुलन है, एक संगीत है, एक समवय है, एक लयबता है! बूंद<br />

जब तब<br />

सागर म एक न हो जाए जब तक सुख नहं। राम सागर है, तुम बूंद<br />

हो।<br />

दरया कहै राम गुरमुखया। हर बन दखी राम संग सुखया।।<br />

ु<br />

कहते ह: बस एक बात, एक पते क बात आखीर म कह देते ह; सारे गुओं ने यह कह<br />

है। सारे गुओं का सारा यूं<br />

कह देते ह। सारे गु-मुख से यह गंगा िनकली है--हर बन<br />

दखी ु , राम संग सुखया!...जो राम के बना है, वह दख ु म जी रहा है,<br />

नक म जी रहा है;<br />

जो राम के साथ है वह सुख म जी रहा है, वह वग म जी रहा है।<br />

और चाहो तो अभी राम के साथ हो जाओ। चाहो तो इसी ण राम के साथ हो जाओ। चाहो<br />

तो इसी ण तुहारा जीवन एक गीत बने, एक नृय बने, एक उसव बने। चाहो तो इसी<br />

ण हजार-हजार फू ल िलख!<br />

सतरंगी सपन ने<br />

पाया है जीवन।<br />

याद के झूले म<br />

आ कर कोई झूला,<br />

आंगन म हंसता<br />

गुलमोहर फू ल।<br />

फू ल से महका है<br />

छोटा सा आंगन।<br />

िसंदर संया म<br />

ू<br />

कोयल क कू क,<br />

उठ आई जयरा म<br />

मीठ सी हक<br />

ू<br />

आएगा कब वो<br />

मदमाता सावन।<br />

मौसम ने छे ड़ा है<br />

सपनीले मन को,<br />

छू कर जगाया है<br />

सोए यौवन को।<br />

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सदय से यास है<br />

मेरा ये उपवन!<br />

पुरावा के झोक से<br />

उड़ता है आंचल,<br />

रह रह कर होती है<br />

सांस म हलचल।<br />

जैसे कसी ने<br />

थामा है दामन।<br />

सतरंगी सपन ने<br />

पाया है जीवन।<br />

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अभी उतर आएं सारे इंधनुष तुहारे ाण म! अभी शा छोड़ो, शद छोड़ो--शूय गहो!<br />

हंदू, मुसलमान, ईसाई होना छोड़ो--भ बनो!<br />

अमी झरत, बगसत कं वल!<br />

आज इतना ह।<br />

नया मनुय<br />

बारहवां वचन; दनांक २२ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

भगवान! मेरे आंसू वीकार कर। जा रह हं ू आपक नगर से। कै से जा रह हं ू, आप ह जान<br />

सकते ह। मेरे जीवन म दख ु ह दख ु था। कब और कै से या हो गया,<br />

जो म सोच भी नहं<br />

सकती थी; अंदर बाहर खुशी के फवारे फू टे रहे ह! आपने मेर झोली अपनी खुिशय से भर<br />

द है, मगर दय म गहन उदासी है और जाने का सोचकर तो सांस कने लगी ह। आप<br />

हर पल मेरे रोम-रोम म समाए हए ु ह। मुझे बल द क जब तक आपका बुलावा नहं आता,<br />

म आपसे दर ू रह सकूं<br />

।<br />

म परमामा को पाना चाहता हं<br />

ू, या करना आवयक है?<br />

भगवान! आपके वचन म सुना क एक जैन मुिन आपक शैली म बोलने क कोिशश करते<br />

ह तोते क भांित। पर यह मुिन ह नहं, बहत ु -बहत ु से महानुभव को यह करते देख रहे ह।<br />

चुपके -चुपके वे आपक कताब पढ़ते ह, फर बाहर घोर वरोध भी करते ह। और बुरा तो<br />

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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

तब बहत ु लगता है जब आपके वचार को अपना अहंकार बताते ह,<br />

छपवाते ह--फर इतराते<br />

ह। ऐसे तथाकिथत ितभाशािलय के पाखंड को सहा नहं जाता तो या कर?<br />

भगवान! आपको सुनते-सुनते आंसू य बहने लगते ह?<br />

पहला : भगवान! मेरे आंसू वीकार कर! जा रह हं ू आपक नगर से। कै से जा रह हं ू,<br />

आप ह जान सकते ह। मेरे जीवन म दख ु ह दख ु था। कब और कै से या हो गया,<br />

जो म<br />

सोच भी नहं सकती थी! अंदर-बाहर खुशी के फवारे फू ट रहे ह! आपने मेर झोली अपनी<br />

खुिशय से भर द है, मगर दय म गहन उदासी है और जाने का सोचकर तो सांस कने<br />

लगती है। आप हर पल मेरे रोम-रोम म समाए हए ह। मुझे बल द क जब तक आपका<br />

ु<br />

बुलावा नहं आता, म आपसे दर ू रह सकूं<br />

।<br />

ेम श! मनुय का वयं से जुड़ जाना--और बस सुख के फवारे फू टने शु हो जाते ह!<br />

मनुय का वयं से टटे ू रहना--और<br />

जीवन वषाद है, दख ु है,<br />

नक है। सुख बाहर से नहं<br />

आता।<br />

मने तेर झोली सुख से नहं भर द है; तेर झोली सदा से ह सुख से भर रह है। सुख<br />

हमारा वभाव है, पर नजर नहं जाती! लोक-लोक म भटकती है , अपने पर नहं<br />

जाती। और सबको हम देखते ह, अपने को बना देखे रह जाते ह। सब जगह खोजते ह, हर<br />

कोने-कातर म तलाशते ह--बस एक अपने अंततल म नहं खोजते।<br />

मने तेर झोली खुिशय से नहं भर द है; िसफ तेर आंख तेर भर हई झोली क तरफ<br />

ु<br />

मोड़ द ह! एक झलक िमल जाए क फर सारा अतव एक महोसव है।<br />

और बड़ आय क बात तो यह है क येक य का यह वप-िस अिधकार है! तुम<br />

पैदा हए ु हो आनंद के एक गीत होने को!<br />

तुहार वीणा तैयार है क छे ड़ो और संगीत जमे।<br />

मगर वीणा पड़ रह जाती है, संगीत पैदा नहं होता। भीतर आंख नहं जाती। गीत बीज ह<br />

रह जाते ह, कभी फू ल नहं बन पाते।<br />

सार पृवी दख ु म है। जैसे दख ु म तू थी ेम श,<br />

वैसे दख ु म सारे लोग ह। और दख ु<br />

अवाभावक है। दख ु अाकृ ितक है। दख ु होना नहं चाहए--और<br />

है। सुख होना चाहए--और<br />

नहं है। ऐसी वडंबना है।<br />

लेकन वभावत; जब पहली दफे अपने भीतर सुख के फवारे फू टते ह तो हम भरोसा ह<br />

नहं आता क ये हमारे ह भीतर फू ट रहे ह! इसिलए हम सदा सोचते ह: कहं और से यह<br />

जलधार आयी है।<br />

मेरे पास तू है तो वभावतः जब तेरा वभाव अंगड़ाई लेगा और जब तेरे भीतर पड़ हई<br />

ु<br />

सु संभावनाएं वातवक बनगी, तो नजर मुझ पर जाएगी, लगेगा मने कु छ कया है।<br />

उस भूल म मत पड़ना। यक अगर कोई दसरा सुख दे सके तो कोई दसरा सुख छन भी<br />

ू ू<br />

ले सकता है। अगर मने तेर झोली भर द तो कोई तेर झोली लट भी ले सकता है। फर तो<br />

हम परवश हो गए। होता। भीतर आंख नहं जाती। गीत बीज ह रह जाते ह, कभी फू ल नहं<br />

बन पाते।<br />

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सार पृवी दख ु म है। जैसे दख ु म तू थी ेम श,<br />

वैसे दख ु म सारे लोग ह। और दख ु<br />

अवाभावक है। दख ु अाकृ ितक है। दख ु होना नहं चाहए--और<br />

है। सुख होना चाहए--और<br />

नहं है। ऐसी वडंबना है।<br />

लेकन वभावतः, जब पहली दफे अपने भीतर सुख के फवारे फू टते ह तो हम भरोसा ह<br />

नहं आता क ये हमारे ह भीतर फू ट रहे ह! इसिलए हम सदा सोचते ह: कहं और से यह<br />

जलधार आयी है।<br />

मेरे पास तू है तो वभावतः जब तेरा वभाव अंगड़ाई लेगा और जब तेरे भीतर पड़ हई<br />

ु<br />

सु संभावनाएं वातवक बनगी, तो नजर मुझ पर जाएगी, लगेगा मने कु छ कया है।<br />

उस भूल म मत पड़ना। यक अगर कोई दसरा सुख दे सके तो कोई दसरा सुख छन भी<br />

ू ू<br />

ले सकता है। अगर मने तेर झोली भर द तो कोई तेर झोली लट भी ले सकता है। फर तो<br />

हम परवश हो गए।<br />

सदगुओं ने सदा यह कहा है: न तो सुख दया जा सकता है, न िलया जा सकता है। चोर<br />

चुरा नहं सकते, लुटेरे लूट नहं सकते। मृयु भी नहं छन सकती, लुटेर क तो बात ह<br />

या है?<br />

लेकन तेरा भाव ठक है, तेरा भाव ीितपूण है। तू दख ु ह दख ु म जीयी है,<br />

तेरे दख ु का<br />

मुझे पता है। पहली बार जब तू आयी थी तब क तेर आंख और आज क तेर आंख, एक<br />

ह य क आंख नहं ह। जब तू आयी थी तो तेर आंख गहन वषाद से दबी थीं, एक<br />

अमावस क रात थी तेर आंख म। अब पूरा चांद खला है, चांदनी ह चांदनी है! तुझे भी<br />

भरोसा नहं आता क इतना पांतरण कै से हो गया।<br />

लेकन फर भी म तुझे याद दलाता हं<br />

ू: मेरे कए पांतरण नहं हआ<br />

ु , पांतरण तेरे भीतर<br />

ह हआ है। म उसका कारण नहं हं<br />

ु ू, िनिम भला होऊं । िनिम और कारण का यह फक<br />

है। िनिम का अथ होता है--बहाना। मेरे बहाने तेर नजर अपने भीतर चली गयी, कसी<br />

और बहाने भी जा सकती थी।<br />

कारण सुिनत होता है। सौ डी तक पानी को गरम करोगे तो ह भाप बनेगा; यह कारण<br />

है। कसी और तरह से भाप नहं बन सकता। यह िनिम नहं है, यह कारण है। लेकन<br />

सुबह उगते सूरज को देखकर भी भीतर सूरज उग सकता है। झील म खले कमल को खुलते<br />

देखकर तेरे भीतर का कमल भी खुल सकता है। रात तार से भर हो और तेरे भीतर का<br />

आकाश भी तार से भर सकता है।<br />

नानक के जीवन म ऐसा हआ ु : रात है और दर ू जंगल म पपीहा पी कहां , पी कहां, पी कहां<br />

क पुकार लगा रहा है और बस चोट पड़ गयी! पपीहा सदगु हो गया। पपीहा ने भर द<br />

झोली नानक क सुख से। चोट पड़ गयी--पी कहां! याद आ गयी, अपने पया क याद आ<br />

गयी! अपने पया के गांव क याद आ गयी। पुकारने लगे--पी कहां! मां ने समझा क पागल<br />

हो गए ह। आकर कहा, लेकन आनंद के आंसू बह रहे ह और एक ह रट लगी है--पी कहां!<br />

और मां ने कहा: अब सो भी जाओ, थोड़ा वाम कर लो! यह या लगा रखा है?<br />

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तो नानक ने कहा: जब तक पपीहा चुप न हो, तब तक म कै से चुप हो जाऊं? पपीहा भी<br />

अभी पुकारे जा रहे ह। और उसका पया तो शायद बहत दर भी न होगा। और मेरे पया का<br />

ु ू<br />

गांव तो कहां है, मुझे पता नहं; शायद जंदगी भर मुझे पुकारना होगा।<br />

तो पपीहा से भी झोली पर गयी। िनिम! िनिम कु छ भी हो सकता है।<br />

नानक के जीवन म दसर िनिम भी है। एक नवाब के घर नौकर लगा द बाप ने। ये<br />

ू<br />

यादा साधु-ससंग करते, इसको बचाने क जरत थी, बगड़ न जाए। और बगड़ने के<br />

सब आसार थे। सब तरह से बचाने क कोिशश क। पहले धंधे म लगाया। भेजा क जा पास<br />

के शहर से कं बल खरद ला, सद के दन आते ह, अछ ब हो जाएगी, कु छ लाभ हो<br />

जाएगा। अब तू जवान हो गया है, अब कु छ कर। यह राम के िलए बैठा कब तक...या होने<br />

वाला है? और खयाल रखना, कमाई करनी है! कमाई पर यान रहे। कं बल खरदना है और<br />

कमाई करनी है।<br />

और नानक नाचते हए ु वापस लौटे। कं बल तो एक भी न था। पता ने पूछा:<br />

कबल का या<br />

हआ ु ? कहा: कमाई करके लौटा हं। ू<br />

तो पए कहां ह?<br />

तो नानक ने कहा: पए! राते म देखा फकर का एक झुंड,<br />

वृ के नीचे ठहरा था। सद<br />

रात! बांट दए कं बल। मने कहा, इससे बड़े कमाई और या होगी! पुय लेकर लौटा हं<br />

ू,<br />

पुय ह तो कमाई है न! पुय ह तो असली संपदा है न!<br />

ऐसे बेटे से परेशान हो गई हगे, तो नवाब के घर लगा दया एक नौकर पर। नौकर भी<br />

ऐसी जसम यादा कु छ उपव नहं। कु छ पैसे का लेन-देन भी नहं। सैिनक के िलए रोज<br />

अनाज तौलकर दे देना है। बस वह एक दन िनिम हो गया ेम श!<br />

कारण तो इसको नहं कह सकते। खयाल रखना, कारण और िनिम का भेद तुह समझा<br />

रहा हं। ू तौल रहे थे एक दन,<br />

रोज तौलते थे; रोज नहं हआ ु , उस दन हो गया। अगर<br />

कारण होता तो रोज होता। पानी तो रोज तुम गरम करो सौ डी तक तो भाप बनेगा; ऐसा<br />

नहं क कभी बने कभी न बने; कभी मौज तो बने कभी मौज नहं तो न बने; कभी कहे<br />

रहने भी दो, आज बनना ह नहं है भाप।<br />

िनिम हो तो वतंता होती है। कारण म कोई वतंता नहं है, कारण म बंधन है। कारण<br />

बलकु ल जड़ है।<br />

तौल रहे थे एक सैिनक को आटा। तौला, तराजू म डाला--एक, दो, पांच, छह दस,<br />

यारह, बारह...और जब तेरह पर आए तो हंद म तो तेरह है, पंजाबी म तेरा। तो बस<br />

जैसे ह तेरा कहा, क परमामा क याद आ गयी--पी कहां! फर भूल हो गए, फर धुन<br />

बंध गयी। इसको कहते ह भजन! इसको कहते ह भजन!! धुन बंध गयी--तेरा! तेरा!! तौलते<br />

गए, चौदह आए ह न। तौलते ह जाएं--तेरा! तेरा!! सैिनक भी थोड़ा चका, और लोग भी<br />

खड़े वे भी चके । उहने नवाब को खबर द क वह आदमी पागल हो गया है। वह तौले जा<br />

रहा है, न मालूम सबको दए जो रहा है और कहा है--तेरा!<br />

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नवाब ने पूछा क या हआ<br />

ु ? लेकन देखा, नवाब को यह देखकर भी लगा क इस आदमी<br />

को पागल कहना ठक नहं। और अगर यह पागलपन है तो शुभ है। आंख से आंसुओं क<br />

धार बह रह है। आनंदमन नानक! और नवाब म सभी कहने लगे क आज घट गयी घड़,<br />

जसक तीा थी! आज उसक याद आ गयी तौलतेौलते!<br />

यह िनिम है। रोज तौलते थे, नहं हआ। आज कोई भावदशा ऐसी तरंग म थी क हो<br />

ु<br />

गया।<br />

ेम श, तू भी सुन रह है यहां और भी लोग सुन रहे ह; बहत ु क झोली भर गयी,<br />

बहत ु क नहं भर। और म तो एक सा ह उंडेल रहा हं। ू यह िनिम है,<br />

कारण नहं। अगर<br />

कारण हो तो जो यहां आए उसक झोली भर जानी चाहए; जो यहां आए वह आनंद मन<br />

हो जाना चाहए। जर नहं है। कु छ तो खन होकर लौटते ह, कोई नाराज होकर लौटते<br />

ह, कोई दमन होकर लौटते ह।<br />

ु<br />

तेर झोली फू ल से भर गयी, कमल से भर गयी। मने नहं भर है; िसफ िनिम हं। ू पी-<br />

कहां क मने आवाज द और तूने सुन ली। तेरा क संया आयी और तेरे भीतर सोई हई<br />

ु<br />

कोई मृित जग गई जम-जम क।<br />

तूने पूछा है: मेरे आंसू वीकार कर! वीकार ह तेरे आंसू यक वे आंसू दख ु के नहं ह,<br />

आनंद के ह। यक वे आंसू संताप के नहं ह, संतोष के ह। यक वे आंसू परम तृि के<br />

ह।<br />

और इस जगत म जब आंसू तृि के होते ह, आनंद के होते ह, अहोभाव के होते ह, तो<br />

उनसे सुंदर<br />

कोई फू ल नहं होते। अभी झरत, बगसत कं वल! उन आंसुओं म अमृत भी<br />

झरता है और कमल भी वकिसत होते ह।<br />

इस जगत म आंसू से सुंदर<br />

कु छ भी नहं है, अगर वह आनंद म डूबा हआ ु हो। आंसू इस<br />

जगत क सबसे बड़ कवता है, महाकाय है! सबसे बड़ा संगीत है! सबसे बड़ ाथना है,<br />

अचना है, पूजा है। सब पूजा के थाल दो कौड़ के ह। जसके थाल मग आंसू ह आनंद के,<br />

उसक अचना पहंचेगी। ु पहंच ु गयी!<br />

चलने के पहले पहंच ु गयी!<br />

बोले नहं क पहंच ु गई!<br />

पाती<br />

िलखी नहं क पहंच ु गयी!<br />

तू कह रह है: जा रह हं ू आपक नगर से ! अब जाना नहं हो सकता, यक मेर नगर<br />

कोई थान म आब नहं है। मेर नगर तो ेम-नगर का ह दसरा नाम है। ेम का कोई<br />

ू<br />

संबंध थान से नहं है, काल से नहं है। तू जहां रहेगी मेर नगर म रहेगी।<br />

और म चाहता हं क लोग जाएं दर<br />

ू ू -दरू , ताक मेर नगर फै ले। ले जाओ ेम का यह रंग,<br />

उं डेलो! ले जाओ आनंद क यह गुलाल, उड़ाओ!<br />

तुझे नाम भी मने दया है--ेम श! यक मेरे िलए ेम से बड़ कोई और श नहं है।<br />

ेम परमामा है। बांटो! जब तुहार झोली भर जाए तो बांटना सीखो, यक जतना तुम<br />

बांटोगे उतनी झोली भरती जाएगी।<br />

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यह जीवन का अंतस का गणत बड़ा अनूठा है। बाहर क दुिनया म, बाहर के अथशा म<br />

तुम अगर बांटोगे तो आज नहं कल दन-दर हो जाओगे।<br />

मुला नसन ने एक िभखार को कसी धुन मग आकर पांच पए का नोट दे दया।<br />

मती म था। लाटर हाथ लग गयी थी। आज दल देने का था। िभखमंगे को भी भरोसा नहं<br />

आया। उसने भी उलट-पुलट कर नोट देखा क असली है क नकली! फर मुला नसन<br />

क तरफ देखा। नसन ने भी उसे गौर से देखा। आदमी भला मालूम पड़ता है, चेहरे से<br />

सुिशत भी मालूम पड़ता है, संकार मालूम पड़ता है, कु लीन मालूम पड़ता है; कपड़े भी<br />

यप फटे ह, पुराने ह, मगर कभी कमती रहे हगे। पूछा: यह तेर हालत कै से हई<br />

ु ? वह<br />

िभखमंगा हंसने लगा। उसने कहा: यह हालत आपक हो जाएगी। ऐसे ह म बांटता था। बाप<br />

तो बहत ु छोड़ गए थे,<br />

मगर मने लुटा दया। आप भी अब यादा दन फकर न करो। और<br />

जब यह हालत हो जाए तो मेरे झोपड़े म आ जाना; वहां जगह काफ है: ऐसे ह बांटते रहे<br />

तो यादा देर नहं है, यह हालत आ जाएगी आपक भी।<br />

बाहर क दिनया ु म अगर बांटोगे तो घटता है। भीतर क दिनया ु म िनयम उटा है:<br />

रोकोगे<br />

तो घटना है; बांटोगे तो बढ़ता है।<br />

अयाम का अथशा और है, गणत और है। तुहारे भीतर ेम उठे तो ार-दरवाजे बंद<br />

करके उसे भीतर िछपा मत लेना, अयथा सड़ जाएगा; अयथा जहरला हो जाएगा,<br />

वषा हो जाएगा। झरने बहते रह तो वछ रहते ह, ताजे रहते ह। ेम उठे, बांटना! और<br />

बांटते समय शत मत लगाना, यक शत बांटने म बाधा बनती ह। आनंद उठे लुटाना!<br />

दोन हाथ उलीिचए! फर यह भी फकर मत देखना क कौन पा है कौन अपा है। यह तो<br />

कं जूस देखते ह पा और अपा।<br />

मेरे पास लोग आ जाते ह और पूछते ह: न आप पा देखते न अपा, आप कसी को भी<br />

संयास दे देते ह! म कहता हं<br />

ू: म लुटा रहा हं<br />

ू! पा-अपा...म कोई कं जूस हं<br />

ू? इसको दगे<br />

उसको दगे, इसको नहं दगे, यह आदमी ऐसा सुबह पांच बजे उठता है क नहं तो दगे,<br />

मुहत ू म उठता है तो दगे...या<br />

बकवास लगा रखी है? सात बजे उठेगा तो संयासी नहं<br />

हो सकता? दन भर भी सोया रहे तो भी संयासी हो सकता है। िनशाचर हो तो भी चलेगा।<br />

यक संयास का या संबंध कब सो कर उठे, कब नहं उठे?<br />

संयास का तो कु छ आंतरक भाव-दशा से संबंध ह: जो जागे म भी जागा रहे! दरया ने<br />

कहा न, जागे म जो जागे! सोए म तो जागेगा ह--जागे म जो जागे! जागता ह रहे।<br />

चौबीस घंटे जसके भीतर जागरण का िसलिसला हो जाए। फर कब उठता है कब नहं<br />

उठता, या फक पड़ता है? उसके िलए सभी मुहत ू मुहत ू ह। यक से जुड़ा है,<br />

और कोई मुहत हो ह नहं सकते।<br />

ू<br />

तो म पा-अपा नहं देखता। पा-अपा० कं जूस देखते ह। आनंद जब फलता है, कौन पा-<br />

अपा देखता है! बादल जब िघरते ह तो पापय के घर पर भी उतने ह बरसते ह जतने<br />

पुयामाओं के घर पर। और फू ल जब खलते ह तो एक-एक नासापुट क परा नहं करते<br />

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क पापी का है क पुयामा का, क कसके नासापुट तक सुगंध को भेजे और कसके<br />

नासापुट तक जाती-जाती सुगंध को वापस लौटा ल! और जब दया जलता है तो रोशनी<br />

सबको िमलती है, बेशत!<br />

तेर झोली भर ेम श, बांटना! लुटाना! बेशत बांटना और चकत होकर तू पाएगी,<br />

अवाक तू रह जाएगी क जतनी बांटा जाता है उतना बढ़ता है। इधर तुम बांटो इधर भीतर<br />

के अनंत ोत बहने शु हो जाते ह। कु एं और हौज का यह फकर है। हौज म से कु छ<br />

िनकालोगे तो कु आं नया हो जाता है, खाली नहं; नई जलधारा बह रह है! पांडय हौज<br />

जैसा है, ा कु एं जैसी है।<br />

तेरे भीतर ा का जम ह हो रहा है, बोध का जम हो रहा है, यान क पहली हवाएं<br />

आने लगी ह, वसंत के पहले-पहले फू ल खल गए ह। सूचक ह, बड़े सूचक ह! बांटो!<br />

जतना बांट सको उतना कम है।<br />

और मेर नगर से जाने का कोई उपाय नहं है। मेर नगर तो दय क नगर है। ेम<br />

श, तू उसम समिलत हो गयी है, उसका अंग हो गयी है, भाग हो गयी है, उस मग<br />

लीन हो गयी है। अब टटने ू का कोई उपाय नहं है,<br />

टटना ू असंभव है। ेम क टटता ू है?<br />

जो<br />

टट ू जाए,<br />

जानना क ेम ह न था; कु छ और रहा होगा तुमने ेम समझ िलया होगा। वह<br />

ांित थी। ेम क टटता ू नहं। और ेम जब आनंद से जुड़ जाता है,<br />

तब तो कोई टटने ू क<br />

संभावना ह नहं है।<br />

तू कहती है: आपक नगर से जा रह हं ू, कै से जा रह हं ू आप ह जान सकते ह!<br />

यह सच<br />

है। दर जाना रोज<br />

ू -रोज संयािसय का कठन होता जाता है, रोज-रोज कठन होता जाता है।<br />

इसिलए जद यवथा कर रहा हं ू क यहां सदा ह रह जाना<br />

चाह वे सदा ह यहां रह जाएं।<br />

और तेरे िलए तो पहले से ह इंतजाम कया हआ ु है। जैसे ह नया कयून बनेगा,<br />

जो लोग<br />

सबसे पहले वेश करगे उन म तू भी होने वाली है। तू चुन ली गयी है।<br />

तूने िलखा: आपने मेर झोली अपनी खुिशय से भर द। अंदर-बाहर खुशी के फवारे फट रहे<br />

ह मगर दय म गहन उदासी है और जाने का सोचकर तो सांस कने लगती है।<br />

वाभावक है। जो मुझसे जुड़गे, उनक सांस मेर सांस से जुड़ गई। मुझसे दर होना<br />

ू<br />

पीड़ादायी होगा। लेकन सहालना। इस पीड़ा म डू बना नहं। इस पीड़ा को चुनौती समझना<br />

इस पीड़ा को भी वकास का एक आधार बनाना, एक सीढ़ बनाना।<br />

मेरे जीवन का दद न आएगा<br />

चाहे जतना भी मन घबराएगा<br />

मुझ को कु छ यान तुहारा भी तो है<br />

वैसे तो घायल दल कु छ गाता ह<br />

दिनया को अपना दद सुनाता ह<br />

ु<br />

पर फू ट न पाएंगे अब वर मेरे<br />

मयादा ने सी दए अधर मेरे<br />

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अधर पर कोई गीत न आएगा<br />

जो तुह दर से पास बुलाएगा<br />

ू<br />

संयम का मुझे सहारा भी तो है<br />

मुझको दवाना कया बहार ने<br />

अहसान कया है मुझ पर तार ने<br />

जसक मुझको हर बात सुहाती है<br />

चांदनी गीत मुझ पर बरसाती है<br />

तुम कहां चांद से पास न जाऊं गा<br />

अंिधयारे चुप हो जाऊं गा<br />

मुझ पर अहसान तुहारा भी तो है<br />

चांदनी सभी तो पास बुलाती है<br />

म ह या सार दिनया गाती है<br />

ु<br />

कु छ तो गीत से मन बहलाते ह<br />

कु छ घाव समय से खुद भर जाते ह<br />

बेहोशी है चंदन क छाह म<br />

है मौन अगर फू ल के गांव म<br />

जीने के िलए इशारा भी तो है<br />

जो फू ल औ मर पर छाई है<br />

कांट ने वह तकदर बनाई है<br />

पर फू ल जसे भी पास बुलाते ह<br />

कांटे खुद उनक राह बनाते ह<br />

कै से न सभी अवरोध पर छाऊं<br />

या कं तुहारे ार न जो आऊं<br />

तुमने फर मुझे पुकारा भी तो है<br />

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पुकार तुझे दे द गयी है, पुकार तुने सुन भी ली है। आना जद ह हो जाएगा। जद ह<br />

एक बु-े िनिमत होने क तैयार म लगा है, जहां चाहता हं कम से कम पांच से लेकर<br />

ू<br />

दस हजार संयािसय का आवास हो। दस हजार लोग आनंदमन हो एक इतनी बड़ ऊजा<br />

को पैदा कर सक गे, जो सार पृवी क हवा को बदल दे। अगर एक अणु-वफोट हरोिशमा<br />

जैसे बड़े नगर को पांच ण मग वन कर सकता है, एक लाख लोग को राख कर सकता<br />

है, तो दस हजार आमाओं का आनंद-वफोट इस सार पृवी पर एक नए युग का सू<br />

पा हो सकता है।<br />

एक नए मनुय को जम देना है। तुम सब बड़े भागी हो, यक उस नए मनुय को जम<br />

देने म तुहारा हाथ होगा, तुहारे हाथ क छाया होगी। कठनाइयां तो आएंगी।<br />

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ेम श, तेर तरफ से िनमंण तो िमल गया है। आना भी तुझे है। आना ह पड़ेगा। आना<br />

ह होगा। आए बना कोई उपाय नहं है। लेकन अड़चन भी हगी, बाधाएं भी पड़ेगी। परवार<br />

है, समाज है, संबंधी ह, सब तरह को बाएं हगी। उन सब बाधाओं को भी बहत आनंद से<br />

ु<br />

वीकार करना; वे भी तुहारे अंत-वकास म सहयोगी ह।<br />

िछप-िछपकर चलती पगडंड धनखेत क छांव म।<br />

अनगाए कु छ गीत गूंजते<br />

ह करन के हास म<br />

अकु लाई सी एक बुलाहट<br />

पुरवा क हर सांस म!<br />

सूनापन है उसे छे ड़ता छू आंचल के छोर को,<br />

जलखाते भी बुला रहे ह बादल वाली नाव म!<br />

अंग-अंग म लचक, उठ य<br />

तणाई क भोर म<br />

नभ के सपन क छाया को<br />

आंज नयन क कोर म,<br />

राह बनाती अपनी कु स-कांट म संख िसवार म,<br />

कांद-कच पड़े रह जाते िलपट-िलपटकर पांव म!<br />

पांतर पार धुंवार<br />

भह<br />

क य चढ़ कमान है,<br />

मार रहा यह कौन अहेर<br />

सधे करन के बान है?<br />

रोम-रोम य चुभे तीर, टट ू सीमा मरजाद क,<br />

सुध-बुध खो चल पड़ अचीहे अपने पी के गांव म!<br />

नझुन बिछया झींगुर वाली<br />

कं कन य बक-पांत है,<br />

वयंवरा बन चली बावर<br />

या दल है या रात है?<br />

पह से कु छ पीला कलंगी वाले पड़े बबूल के<br />

बरज रहे, र पांव न धरना भोर कहं कु ठांव म;<br />

अपना ह आंगन या कम जो चली पराए गांव म!<br />

बहत ु बबूल जैसे लोग,<br />

बबूल के वृ जैसे कांट भरे लोग कावट डालगे, बाधा डालगे।<br />

अात याा पर िनकलते याी को सभी भयभीत, डरे हए लोग रोकना चाहते ह। उनके भी<br />

ु<br />

रोकने के पीछे कारण है। जब कोई एक य भीड़ से छू टता है भेड़ क भीड़ से छू टता है<br />

और चल पड़ता है कसी अनजानी पगडंड पर...और म एक अनजानी पगडंड हं<br />

ू! मेरा<br />

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िनमंण अात का िनमंण है। म तुह कसी एक ऐसे लोक म ले चलना चाहता हं जसक<br />

ू<br />

तुह कोई भी खबर नहं है और म चाहं भी तो भी उसका कोई माण नहं दे सकता। तुम<br />

ू<br />

जाओगे तो ह जानोगे; अनुभव करोगे तो ह पहचानोगे; पीओगे तो ह वाद पाओगे। वाद<br />

के पहले म कोई माण नहं दे सकता, कोई गारंट भी नहं दे सकता। कोई उपाय नहं है<br />

गारंट देने का।<br />

मेरे साथ चलने के िलए हमत चाहए, दसाहस चाहए। तो हजार तरह क बात लोग<br />

ु<br />

कहगे। लोग समझगे पागल। लोग समझगे वछंद। लोग समझगे अखल। लोग सब तरह<br />

क अड़चन पैदा करगे। उन अड़चन को भी ेम श, बड़ ित से बड़े आनंद से, बड़े<br />

अहोभाव से वीकार करना। यक मेरे देखे राह म पड़ सार बाधाएं सीढ़यां बन सकती ह,<br />

बननी ह चाहए; वह तो जीवन क कला है।<br />

तूने कहा: आप हर पल मेरे रोम-रोम म समाए हए ह। मुझे बल द क जब तक आपका<br />

ु<br />

बुलावा नहं आता म आपसे दर ू रह सकूं<br />

। बुलावा तो दे ह दया गया है। दर ू रहने क अब<br />

कोई जरत नहं है। दर अब दर मालूम होगी भी नहं। एक तो िनकटता होती है शरर क।<br />

ू ू<br />

और यह हो सकता है तुम कसी के पास बैठे हो शरर से लगा है शरर और फर भी हजार<br />

कोस का फासला हो; और यह भी हो सकता है हजार कोस क दर हो और फासला जरा<br />

ू<br />

भी न हो। जीवन ऐसा ह रहय है। यह सीधे-सीधे गणत से हल नहं होता। हजार मील के<br />

दर पर भी ेम पास ह होते ह और शरर से शरर लगाए हए लोग भी अगर ेम म नहं ह<br />

ू ु<br />

तो दर ह होते ह।<br />

ू<br />

ेम िनकटता है। और वैसे ेम का तेरे भीतर जम हो गया है। तो दर ू कतने दर ू रहेगी?<br />

सामीय बना ह रहेगा। म सब तुझे छाया क तरह घेरे ह रहंगा। म एक गंध क तरह तेरे<br />

ू<br />

चार तरफ मौजूद ह रहंगा। ू तेर ास-ास<br />

म मृित उठती रहती, सुरित जगती रहेगी।<br />

िचंता लेने क कोई भी जरत नहं है।<br />

और यादा देर भी नहं है। सार बाधाओं के बावजूद भी संयािसय का ाम तो बसेगा ह।<br />

जद ह बसेगा! यक वह काम मेरा नहं है, वह काम परमामा का है; उसम बाधा पड़<br />

नहं सकती<br />

और जतनी बाधाएं पड़गी उतना ह लाभ होगा। शायद जतनी देर हो रह है, वह भी जर<br />

है। और तुम पक जाओ। और तुम परपव हो जाओ। लेकन जस घड़ तुम राजी हो, उसी<br />

घड़ नया ाम बस जाएगा। और कोई बाधा कावट नहं डाल सकती।<br />

और ऐसा वराट योग पृवी पर पहले कभी हआ नहं है क दस हजार संयािसय ने एक<br />

ु<br />

जगह रहकर एक ेम म आब होकर संयु ाथना का, यान का वर उठाया हो। उसक<br />

जरत हो गई है अब। यह पृवी अयंत डांवांडोल है। यहां घृणा क शयां तो बहत बल<br />

ु<br />

ह और ेम क श बहत ीण हो गयी है। यहां ेम को विलत करना है। यहां ेम क<br />

ु<br />

बुझती-बुझती लौ का उकसाना है, सहालना है, मशाल बनानी है। और दस हजार लोग<br />

अगर सब भांित समपत होकर, अलग-अलग न रहकर एक वराट ऊजा का तंभ बन जाएं<br />

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तो इस पृवी को बचाया जा सकता है, इस पृवी पर नए मनुय का सू-पा पर नए<br />

मनुय का सू-पा हो सकता है। होना ह चाहए।<br />

मनुय बहत दन तक अंधेरे म जी<br />

ु<br />

आवयक है।<br />

िलया, अब रोशनी को लाने का कोई महत आयोजन<br />

ेम श, तेरे िलए िनमंण है, बुलावा है। तुझे उस महत आयोजन म समिलत होना है।<br />

थोड़-बहत देर लगे तो उसे भी आनंद से गीत गाकर ेम से गुजार लेना। उसे भी वागत<br />

ु<br />

करके गुजार लेना।<br />

वषाद क भाषा ह मेरे संयासी छोड़ द। आनंद क भाषा बोलो, आनंद क भाषा जयो।<br />

वषाद से सारे संबंध तोड़ लो। इस जगत म वषाद-योय कु छ भी नहं है, यक परमामा<br />

सब जगह मौजूद है, कण-कण म भरा है, कण-कण म बह रहा है। होना ह इतना बड़ा<br />

आनंद है क कसी और आनंद क आवयकता नहं है। ास लेना ह इतना बड़ा आनंद है,<br />

कस और आनंद क आकांा करो, अभीसा करो।<br />

दसरा <br />

ू : म परमामा को पाना चाहता हं<br />

ू, या करना आवयक है?<br />

सहजानंद! पहली बात, परमामा को पाने क चेा भी अहंकार का हसा है। य पाना<br />

चाहते हो परमामा को? या जरत आ पड़ है? कौन सी अड़चन हो रह है? कु छ लोग<br />

धन पाना चाहते ह, कु छ लोग पद पाना चाहते ह, तुम परमामा पाना चाहते हो! जनके<br />

पास धन है, जनके पास पद है, उनको भी हराना चाहते हो? उनको भी तुम कहना चाहते<br />

हो: अरे तुम ु सांसारक जीव, आयामक! म छोट-मोट चीज क तलाश नहं करता,<br />

म िसफ परमामा को खोजता हं<br />

ू!<br />

अहंकार के राते बड़े सूम ह। एक बात खयाल म रखना: जहां चाह है वहां अहंकार है।<br />

परमामा को चाहा नहं जाता, परमामा को पाया जर जाता है; लेकन परमामा को<br />

चाहा नहं जाता। और परमामा को पाने क शत यह है क चाह नहं होनी चाहए, कोई<br />

चाह नहं होनी चाहए--न धन क, न पद क, न परमामा क; चाह मा नहं होनी<br />

चाहए। जहां सब चाह िगर जाती ह वहां जो शेष रह जाता है वह परमामा है। परमामा क<br />

चाह म और धन क चाह म कु छ भी भेद नहं है। जरा भी भेद नहं है। चाह तो चाह है।<br />

चाह का वभाव तो एक है। तुमने चाह कस चीज पर लगायी--कसी ने अ पर लगायी कसी<br />

ने ब पर लगायी, कसी ने स पर लगायी--इससे या फक पड़ेगा? चाह के वषय से चाह<br />

के वभाव म अंतर नहं पड़ता। चाह तो चाह ह रहती है। वह तो वासना ह है। वह तो मन<br />

का ह खेल है। वह तो अहंकार क हो दौड़ है। वह तो महवाकांा है।<br />

परमामा जर िमलता है, लेकन उहं िमलता है जनके िच म कोई चाह नहं होती।<br />

जहां चाह नहं जहां िच नहं। जहां चाह नहं वहां तुम नहं।<br />

जरा सोचो। जरा णभर को याओ। अगर कोई चाह न हो तो तुम बचोगे? एक सनाटा<br />

रहेगा। एक वराट शूय तुहारे भीतर होगा। गहन मौन होगा। लेकन तुम न होओगे। उसी<br />

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गहन मौन म, उसी शूय म परमामा का पदापण होता है, आवभाव होता है। सच तो यह<br />

है, वह शूय पूण है। चाह बाधा डाल रह है। चाह याघात डाल रह है।<br />

तुम चाहे तो बदल लेते हो, लेकन चाह नहं छोड़ते। सांसारक चाह क जगह पारलौकक<br />

चाह आ जाती ह। साधारण चाह क जगह असाधारण चाह आ जाती ह। अगर चाह जार<br />

रहती ह। और जहां चाह है वहां बाधा है। जहां चाह है वहां दवाल है। अचाह म सेतु है।<br />

तो सहजानंद! पहली बात परमामा के चाहे मत। अगर पाना हो तो चाहो मत। अब दसर<br />

ू<br />

बात तुमसे कह दंू: मन बहत ु चालाक है। मन कहेगा:<br />

अछा! मन कहेगा: ठक सहजानंद,<br />

अगर पाना है तो चाहो मत! चाह छोड़ दो अगर पाना है!<br />

तो मन यह भी कर सकता है क चाह छोड़ने लग जाए, यक पाना है। मगर यह चाह का<br />

नया प हआ। यह पीछे दरवाजे से चाह आ गयी। तुमने बाहर के दरवाजे से वदा कया क<br />

ु<br />

नमकार मेहमान पीछे के दरवाजे से आ गया।<br />

समझना होगा। चाह क वकृ ित समझनी होगी, ताक चाह पीछे के दरवाजे से न आ जाए।<br />

चाह जब पीछे के दरवाजे से आती है तो और भी खतरनाक हो जाती है, यक अब क<br />

बार वह मुखौटे ओढ़कर आती है। सामने के दरवाजे पर तो थूल होती है; भीतर के पीछे के<br />

दरवाजे पर सूम हो जाती है। और चूंक<br />

तुहारे पीछे से आती है, पीठ के पीछे िछपी होती<br />

है, इसिलए तुम देख भी नहं पाते। आंख के सामने हो तो दमन ु बेहतर,<br />

कम से कम<br />

सामने तो है! दमन ु पीछे िछपा हो तो तुम बड़े असहाय हो जाते हो। तुहारे साधु -संत इसी<br />

तरह क चाह से पीड़त ह। तुहार चाह सामने खड़ है, बाजार म खड़ है; उनक चाह<br />

उनके पीछे िछपी है, पीठ के पीछे िछपी है। उह दखाई ह नहं पड़ती। वे लौटकर खड़े भी<br />

हो जाएं तो भी कोई फक नहं पड़ता, यक चाह उनक पीठ से ह जड़ गयी है। वे जब<br />

भी लौटते ह, चाह उनक पीठ के पीछे पहंच ु जाती है। चाह उनके सामने कभी आती नहं,<br />

उह कभी दखाई पड़ती नहं।<br />

तो दसर बात<br />

ू , कहं चाह को ऐसे मत बचा लेना क मने कहा क अगर पाना है तो चाह<br />

छोड़नी होगी। म यह नहं कह रहा हं। पाना घटता है जब चाह नहं होती। छोड़ने को नहं<br />

ू<br />

कह रहा हं। ू छोड़ोगे तो तुम तभी जब तुह कोई और बड़ चाह िमलने को हो,<br />

नहं तो तुम<br />

छोड़ोगे कै से? एक कांटे को िनकालना हो तो दसरे कांटे से िनकालते ह। और यह हालत चाह<br />

ू<br />

क है, एक चाह िनकालनी है, दसर ू चाह से िनकालते ह। और यान रखना,<br />

कमजोर कांटे<br />

को िनकालना हो तो भी जरा मजबूत कांटा चाहए तो पहली चाह को िनकालना हो तो और<br />

जरा मजबूत चाह चाहए, जो उसे िनकाल बाहर कर दे। अगर दसर चाह म फे स गए।<br />

ू<br />

चाह को समझना है। न िनकालना है न यागना है--िसफ समझना है। चाह का वभाव<br />

समझना है क चाह का वभाव या है, चाह करती या है?<br />

चाह कु छ काम करती है। पहली बात: तुह कभी वतमान म नहं जीने देती, हमेशा भवय<br />

म रखती है--कल! चाह का अतव कल म है। और कल कभी आता नहं है, इसिलए चाह<br />

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कभी पूर होती नहं है। तुम आज हो, चाह कल है। इसिलए चाह तुह अपने साथ ह एक<br />

नहं होने देती, तोड़कर रखती है, तुह खंड म बांट देती है।<br />

सय अभी है, यहं है--और चाह तुह कल म अटकाए रखती है। ऐसे तुम सय से वंिचत<br />

रह जाते हो, अतव से वंिचत रह जाते हो, परमामा से वंिचत रह जाते हो, अपने से<br />

वंिचत रह जाते हो। ार है वतमान म और चाह टटोलती है भवय म; वहां िसफ दवाल है<br />

और दवाल है।<br />

चाह को समझो। चाह का अथ या है? चाह का अथ यह है क तुम जैसे हो उससे संतु<br />

नहं हो। तुम परमामा को य चाहते हो? यक पी से संतु नहं हो, पित से संतु<br />

नहं हो, बेटे से संतु नहं हो, भाई से संतु नहं हो। संसार से असंतु हो, इसिलए<br />

परमामा को चाहते हो। तुहारे परमामा क चाह के पीछे िसफ तुहारा असंतोष िछपा है।<br />

और वहं भूल हो गयी। परमामा उह िमलता है जो संतु ह। परमामा उह िमलता है<br />

जनके जीवन म गहन परतोष है; जो ऐसे परतु ह क परमामा ने िमले तो भी चलेगा;<br />

तो इतने परतु ह क परमामा न िमले तो कोई अड़चन नहं है। उनको परमामा िमलता<br />

है!<br />

परमामा का िनयम करब-करब वैसा है जैसा बक का िनयम होता है। अगर तुहारे पास<br />

पए ह, बक पए देने को राजी होता है। अगर तुहारे पास पए नहं ह, बक मुंह<br />

फे र<br />

लेता है--क राता लो, कहं और जाओ। जसक राख है बाजार म, उसको बक पए देता<br />

है। उसको जरत नहं है पए क, इसीिलए पए देते ह। ये बड़े अजीब िनयम ह, मगर<br />

यह िनयम ह! जसको पए क कोई जरत नहं है, बक उनके पीछे घूमता है। बक के<br />

मैनेजर खुद आते ह क कु छ ले ल, फर कु छ हमार सेवा ले ल। और जसको जरत है<br />

वह बक के चकर लगाता है, उसे कोई देता नहं।<br />

परमामा का िनयम भी कु छ ऐसा ह है तुम अगर संतु हो, परमामा कहता है ले ह लो,<br />

मुझे, आ जाने दो मुझे भीतर। तुहारे संतोष म अपना घर बनाना चाहता है।<br />

संतोष म ह तुम मंदर होते हो और मंदर का देवता ार पर दतक देता है, क आ जाने<br />

दो। अब तुम राजी हो गए। अब तुम मंदर हो, अब म आ जाऊं और वराजमान हो जाऊं ।<br />

िसंहासन बन चुका, अब खाली रखने क कोई जरत नहं है।<br />

लेकन तुम हो असंतोष क लपट से भरे हए। ु मंदर तो है ह नहं;<br />

तुम एक िचता हो, जो<br />

धू-धूकर जल रह है। परमामा आए तो कहां आए?<br />

तुम कहते हो: म परमामा को पाना चाहता हं<br />

ू!<br />

य पाना चाहते हो? जरा कारण म खोजो। अजीब-अजीब कारण ह। कसी क पी मर<br />

गयी, वे परमामा क तलाश म लग गए। कसी का दवाला िनकल गया, मुंड़<br />

मुड़ाए भये<br />

संयासी! अब दवाला ह िनकल गया है तो अब करना भी या है दकान ु पर रहकर!<br />

अब<br />

संयासी होने का ह मजा ले लो!<br />

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लोग जरा कारण तो देख क कसिलए परमामा को खोजने िनकलते ह! तुमने देखा जब तुम<br />

देख मग होते हो तब परमामा क याद करते हो। जब तुम सुख म होते हो, तब? बलकु ल<br />

भूल जाते हो।<br />

और म तुमसे यह कहना चाहता हं क सुख म पुकारो तो आए<br />

ू ; दखु म पुकारो तो नहं<br />

आएगा। यक दख ु क पुकार ह झूठ है। दख ु क पुकार सांवना के िलए है,<br />

सहारे के<br />

िलए है। दख ु क पुकार म तुम परमामा का शोषण कर लेना चाहते हो,<br />

उसका उपयोग कर<br />

लेना चाहते हो, उसक सेवा लेना चाहते हो। तब तुम सुख से भरो तब पुकारो।<br />

म अपने संयािसय को कहना चाहता हं ू: जब तुम आनंदत होओ तब ाथना करो। दख ु को<br />

या उसके ार पर ले जाना। ार-दरवाजे बंद करके दख ु को रो लेना;<br />

या परमामा के<br />

चरण म चढ़ाना! हां, जब आनंद उठे, मन भाव उठे, तो नाचना, तो पहन लेना पैर म<br />

घूंघर,<br />

तो देना थाप मृदंग पर! उसव म उससे िमलन होगा, यक उसव म ह तुम<br />

अपनी पराकाा पर होते हो। उसव के ण म ह तुहारे भीतर के सारे ं चले जाते ह,<br />

तुम िनं होते हो। उसव के ण म ह तुहारे भीतर दया जलता है रोशनी होती है।<br />

और जो उसव से भरा है, उससे कौन गले नहं लगना चाहता! परमामा भी उससे गले<br />

लगना चाहता है जो उसव से भरा है। रोती शल से तुम भी बचते हो, परमामा भी<br />

बचता है। आखर उस पर भी कु छ दया करो, उसका भी कु छ यान रखो। और तुम एक ह<br />

नहं हो, जमीन भर है रोती लगी शल से, उदास शल से। परमामा इनसे बचता है।<br />

म तुमसे कद देना चाहता हं ू: ये जहां पहंच ु जाते ह परमामा वहां से भाग िनकलता है।<br />

परमामा तो वहां आता है जहां कोई गीत गूंजता<br />

है, कहं नाच होता है, कहं वीणा के वर<br />

छे ड़े जाते ह। परमामा तो वहां आता है जहां मौज तरंग लेती है। परमामा तो वहां आता है<br />

जहां ेम हलोर लेता है। परमामा तो वहां आता है जहां तुहार आमा का कमल खलता<br />

है।<br />

परमामा अपने से आ जाएगा, तुम िचंता ह न करो। तुम मत परमामा को खोजो; म<br />

तुह एक ऐसी राह बताता हं क परमामा तुह खोजे। और<br />

ू तब मजा और है। खोज सकता<br />

है परमामा तुह--तुम शांत होओ, आनंदत होओ, फु लत होओ, मत होओ। खोजना<br />

ह पड़ेगा उसे।<br />

साधना देवव क करता रहा म,<br />

पर दय का शूय ह भरने न पाया।<br />

नील अंबर के िनलय का,<br />

रह गया संधान करता।<br />

के उर न आया,<br />

रह गया अनुमान करता।<br />

कृ पणता के कू ट से भी,<br />

िशखर तक चढ़ते न पाया।<br />

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सामने मंजल खड़ थी,<br />

पांव पर बढ़ने न पाया।<br />

अचना पुषव क करता रहा म,<br />

कं तु भय का बीज ह मरने न पाया।<br />

खोखले गुफन म कसकर,<br />

वासना का शव उठाए।<br />

आमा क घुटन पीकर,<br />

नैन मेरे छटपटाए।<br />

खो गया िनवा पावन,<br />

भटक अंधी सी गली म।<br />

लग गए कु छ कट काले,<br />

शु काया क कली म।<br />

कामना अमरव क करता रहा म,<br />

वासना का वेग ह िथरने न पाया।<br />

चाहता था व सारा,<br />

फू ल मुझ पर ह चढ़ाए।<br />

मानकर ितमान मुझको,<br />

ेम का चंदन लगाए।<br />

कं तु मन दभावनाओं<br />

ु<br />

म फं सा, अतव कहकर।<br />

मूढ़ता मेर वयं ह,<br />

छल गयी यव बनकर।<br />

वांछना अखलव क करता रहा म,<br />

कं तु सब से यार करना ह न आया।<br />

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छोड़ो परमामा क फकर। खोजोगे भी कहां उसे? उसका पता ठकाना भी तो नहं है। उसे<br />

रंग-प का भी तो कोई िनणय नहं है। िमल भी जाए अचानक तो पहचानोगे कै से? कोई<br />

तवीर नहं है उसक, कोई आकृ ित नहं, आकार हनीं उसका। कोई नाम-धाम नहं है<br />

उसका। कहां जाओगे, कै से तलाशोगे? कससे पूछोगे? है तो सभी जगह है, तो फर खोजने<br />

क कोई जरत नहं है। और नहं है तो कहं भी नहं है, तो फर भी खोजने क कोई<br />

जरत नहं है। खोजने का कोई सवाल ह नहं है।<br />

खोज छोड़ो। खोज म दौड़ है। दौड़ म तनाव है। खोज म मन है। मन म अहंकार है। खोज<br />

छोड़ो।<br />

यान का इतना ह अथ है क घड़ दो घड़ रोज सब खोज छोड़कर चुपचाप बैठ जाओ, कु छ<br />

भी न करो। कु छ भी न करो! मत बैठो--अलमत! डोलो! कोई गीत उठ जाए, सहज<br />

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गुनगुनओ। बांसुर बजानी आती हो बांसुर बजाओ, क अलगोजे पर तान छे ड़ दो। कु छ भी<br />

न आता हो, एड़ा-टेड़ा नाच सकते हो नाचो! बैठ तो सकते ह हो!<br />

एक घंटा अगर चौबीस घंटे म तुम सब खोज सब चाह छोड़कर बैठ जाओ, जैसे न कु छ<br />

करने को है न कु छ करने योय है, तो बैठते-बैठते-बैठते तुहारे मन म एक दन एक ऐसा<br />

सनाटा आ जाएगा, जससे तुम अपरिचत हो। वह सनाटा परमामा के आगमन क खबर<br />

है। उसके पीछे ह परमामा चला आ रहा है। गहन शांित होगी, शूय होगा। और उसी के<br />

पीछे पूण भर आएगा।<br />

सहजानंद! पूछते हो: या करना आवयक है? कु छ भी करना आवयक नहं है। यक<br />

परमामा है ह, बनाना नहं है, िनमाण नहं करना है। उघाड़ना भी नहं है--उघड़ा ह है।<br />

नन खड़ा है। िसफ तुहार आंख बंद ह। और आंख बंद कै से ह? चाह के कारण बंद ह।<br />

वासना के कारण बंद ह। कामना के कारण बंद ह। यह िमल जाए वह िमल जाए, ये सब<br />

वचार क परत पर परत तुहार आंख को अंधा कए ह।<br />

नहं कु छ चाहए; जो है, पया है--ऐसे भाव म डु बक मारो। जो है जरत से यादा है--<br />

ऐसे परतोष को सहालो। जो है उसके िलए धयवाद दो। जो नहं है उसक मांग न करो।<br />

और म तुह आासन देता हं<br />

ू: परमामा तुह खोजता आ जाएगा। िनत आ जाएगा! ऐसा<br />

ह सदा खोजता आया है।<br />

तीसरा : भगवान! आपके वचन म सुना क एक जैन मुिन आपक शैली म बोलने क<br />

कोिशश करते ह, तोते क भांित पर यह मुिन ह नहं, हम बहत ु -बहत ु से महानुभाव को<br />

यह करते देख रहे ह। चुपके -चुपके वे आपक कताब पढ़ते ह, फर बाहर घोर वरोध भी<br />

करते ह। और बुरा तो बहत ु तब लगता है,<br />

जब आपके वचार को अपना कह कर बताते ह,<br />

छपवाते ह--फर इतराते ह। ऐसे तथाकिथत ितभाशािलय के पाखंड को सहा नहं जाता, तो<br />

या कर?<br />

माधवी भारती! यह वाभावक है। इससे िचंितत होने क कोई भी आवयकता नहं है। इस<br />

तरह परो प से वे मुझे वीकार कर रहे ह। अभी परो कया है वीकार, हमत बढ़ते-<br />

बढ़ते कसी दन य भी वीकार कर सक गे। और ऐसे धोखा कतने दन तक दे सकते<br />

ह? लाख लोग मेर कताब पढ़ रहे ह, मेरे वचन सुन रहे ह; उहं के बीच बोलगे, कब<br />

तक यह धोखा चला सकते ह? इसक िचंता न करो।<br />

और यह बलकु ल वाभावक है। जब भी कोई चीज लगती है क लोग को आकषत कर रह<br />

है तो उसक नकल पैदा होनी वाभावक ह। असली िसके ह, इसिलए नकली िसके होते<br />

ह। असली िसके न ह तो नकली िसके भी िमट जाएं।<br />

और जर है क वे मेरा वरोध कर, यक अगर वे वरोध न कर और फर मेर बात को<br />

दोहराएं, तब तो बलकु ल पकड़े जाएं। तो पहले वरोध करते ह ताक एक बात साफ हो गयी<br />

क वे मेरे वरोधी ह; ताक कोई शक भी न कर सके क वे जो कह रहे ह वह घूम-फर<br />

कर मेर ह बात कह रहे ह।<br />

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मने जन मुिन क बात क, मुिन नथमल--म तो उनका नाम रखता हं<br />

ू: मुिन थोथूमल!<br />

बलकु ल थोथे! सब उधार! लेकन दोहराने म कु शल ह। दोहराने क भी एक कु शलता होती है।<br />

सभी नहं दोहरा सकते। और दोहराना कोई आसान काम नहं है, बड़ा कठन काम है।<br />

अपनी बात तो बड़ा आसान है; अड़चन ह नहं होती कु छ, अपनी ह बात है। सहज आती<br />

है।<br />

तो मुिन थोथूमल का तो म बहत समान करता हं। समान इसिलए करता हं क वे<br />

ु ू ू<br />

बलकु ल दोहरा लेते ह। बड़ मेहनत करनी पड़ती होगी। बड़ा म उठाना पड़ता होगा। उनक<br />

कु शलता तो माननी होगी। और तेरा-पंथ के जैन साधुओं म सदय से एक योग जार रहा;<br />

वह मृित का योग है--शतावधान। उस मग मृित को िनखारने क कोिशश क जाती है।<br />

और यादा से यादा चीज कै से याद रखी जाएं, इसके योग कए जाते ह। सौ चीज<br />

इकठ याद रखी जा सक, जैसे तुम सौ नाम लो तो जैन मुिन सौ ह नाम इकठे दोहरा<br />

देगा उसी म म, जस म म तुमने िलए थे। तुम खुद ह भूल जाओगे क ये सौ नाम<br />

मने कस म म िलए थे। तुह फे हरत रखनी पड़ेगी रखने के िलए क मुिन जब कहे तो<br />

िमला लूं<br />

क ठक।<br />

लेकन तेरा-पंथ म यह या जार रह है। मृित का एक योग है। याददात को िनखारने<br />

क एक अयास-यवथा है। पुराने दन म इसका उपयोग भी था, यक शा छपते नहं<br />

थे, लोग को याद रखने पड़ते थे। सदय तक लोग ने शा याद रखे िसफ मृित के बल<br />

पर। तो उसी पुरानी या को अभी भी दोहराए चले जा रहे ह। अब कोई जरत नहं है।<br />

मगर उसका उपयोग और तरह से भी हो सकता है।<br />

जब घंटे डेढ़ घंटे डेढ़ घंटे म आचाय तुलसी से बात कया और मुिन थोथूमल ने पूर क पूर<br />

बात, वैसी क वैसी शदशः दोहरा द, तो एक बात तो माननी होगी क मृित सुंदर<br />

है,<br />

मृित अछ है। बु नहं है!<br />

बु और मृित का कोई अिनवाय नाता नहं है। सच तो यह है, अगर तुह अपनी ह बात<br />

कहनी है तो मृित क कोई जरत नहं रहती। तुम कभी भी कह सकते हो, तुहार ह<br />

बात है। तब तुह सय ह कहना है तो मृित क कोई जरत नहं रहती। झूठ बोलने वाले<br />

आदमी को मृित को िनखारना पड़ता है, यक उसे याद रखना पड़ता है क झूठ बोला<br />

हं<br />

ू, कससे बोला हं<br />

ू, या बोला हं<br />

ू, कहं उसके वपरत कु छ न बोल जाऊं, उससे िभन<br />

कु छ न बोल जाऊं ! उसे सब तरह क िचंता रखनी पड़ती है।<br />

जो दसर क बात दोहराते ह<br />

ू , उन पर दया करो, उसके म पर दया करो। उनक मेहनत<br />

बड़ ह। माधवी, नाराज होने क कोई जरत नहं है। नाराजगी आती है, यह वाभावक<br />

है।<br />

मुला नसन एक दन मुझे कह रहा था क मेरे भाई से मेर लड़ाई हो गई और आज<br />

जरा बात यादा हो गयी। बातचीत तो कई दफे हई ु थी,<br />

आज हाथापाई हो गयी। ऐसा मुझे<br />

ोध आया क दो-चार चांटे रसीद कर दए। अब िच जरा मिलन है।<br />

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मने कहा: आखर मामला या हआ<br />

ु ? तुम दोन म तो काफ बनती है।<br />

कहा: उसी बनती-बनती के कारण तो यह उपव बढ़ता गया।<br />

मुला नसन बोला: अजी, साल से वह मेरे कपड़े पहन रहा था। जुड़वां भाई ह। मेरे जूते<br />

काम म ला रहा था। म कु छ नहं बोला। यहां तक तक मेर ेयसी भी उसने मुझसे छन<br />

ली, फर भी म कु छ नहं बोला। बक से मेरे नाम से पैसे िनकाल जाता है, फर भी म<br />

बदात करता रहा। मेरे नाम से लोग से पैसा उधार ले लेता, जो मुझे चुकाने पड़ते ह।<br />

लेकन बदात क भी एक हद होती है। कल वह मेरे दांत लगाकर मेर ह खली उड़ाने<br />

लगा! फर मने रसीद कर दए दो हाथ। एक सीमा होती है हर चीज क।<br />

तो माधवी, तेरा दख म<br />

ु समझा, तेर पीड़ा समझा। ऐसा पाखंड मेरे संयािसय को अखतरा<br />

है यक मेरे संयासी जानते ह म या कह रहा हं और जब वे सुनते ह उहं बात को<br />

ू<br />

कहं से दोहराया जाता...। और इतनी भी ईमानदार नहं क प कह सक क ये वचार<br />

कहां से आए ह। न के वल इतनी ईमानदार नहं, इतनी सौजयता भी नहं क कम से कम<br />

वरोध न कर। लेकन वरोध के पीछे भी तक है। वरोध करने से पका हो जाता है क ये<br />

वचार कम से कम मेरे तो नहं हो सकते। जसका वरोध कर रहे ह, उसके तो नहं हो<br />

सकते।<br />

बटड रसेल ने िलखा है क अगर कहं कसी क जेब कट जाए और जो आदमी बहत जोर से<br />

ु<br />

चोर के खलाफ बोले और कहे, मारो, पकड़ो, कसने काटा, उसको पकड़ लेना; जहां तक<br />

संभावना है उसी ने काटा है। उसको एकदम पकड़ लेना। यह ठक बात है। इसको म अनुभव<br />

से जानता हं।<br />

ू<br />

मेरे गांव म, मेरे बचपन म यादा कु छ चीज चुराने को थीं भी नहं। लेकन तरबूज-खरबूज<br />

नद पर होते और उनको चुराना भी आसान है; यक रेत म ह बागुड़ लगायी जाती है,<br />

कहं से भी बागुड़ को रेत से उखाड़ लो, कोई उखाड़ने म भी अड़चन नहं है, रेत ह है,<br />

कहं से भी घुस जाओ बागुड़ म। तो दो-चार िम घुस जाते थे। लेकन मने एक बात बहत<br />

ु<br />

जद सीख ली क अगर आ जाए मािलक तो भागना नहं है। बाक तो भागते थे, म<br />

िचलाता था: पकड़ो! म कभी नहं पकड़ा गया! यक मािलक समझता अपने साथ म है,<br />

यह आदमी अपने साथ म है। वभावतः जब म भाग ह नहं रहा हं तो बात जाहर है क<br />

ू<br />

मने चोर नहं क है।<br />

मेरे वरोध मग वे बोलते ह; वह िसफ भूिमका है, ताक फर वे मेर बात को देहराए तो<br />

तुह कपना म भी यह बात न उठ सके क चोर क गयी है। लेकन वे कतनी ह<br />

यवथा से दोहराए और ह शदशः दोहराएं, मेर बात के आधार तंभ उनके जीवन-<br />

आधार-तंभ से बात अयंत फू हड़ हो जाती ह। और उह उनम कु छ-कु छ िमलाना पड़ता है,<br />

नहं तो उनक जीवन- से तालमेल नहं बैठेगा।<br />

अब जैसे म जीवन का पपाती हं<br />

ू, तुहारे साधु-संयासी जीवन-वरोधी ह। मेर सार बात<br />

क संगित जीवन के ेम से जुड़ है और उन सबके वचार का आधार, जीवन याय है,<br />

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इस बात पर खड़ा है। अब मेर बात दोहराएंगे तो बड़ अड़चन आती है। उसम वसंगित आती<br />

है। तो या तो मेर बात को तोड़ना-मरोड़ना पड़ता है, यहां-वहां से जोड़ना पड़ता है; और या<br />

फर मेर बात प प से ह उनके मुंह<br />

पर एकदम अथहन हो जाती ह।<br />

मुला नसन पोट-आफस गया और पोट माटर के पास जाकर उसने कहा क जरा<br />

मेरा यह काड िलख द, पता िलख द इस पर। पोट माटर ने पता िलख दया।<br />

धयवाद!--नसन ने कहा--अब जरा चार पंयां मेर खैरयत क भी िलख द। पोट<br />

माटर ऐसे तो सन नहं था क वह इस काम के िलए पोट माटर नहं है, लेकन अब<br />

यह बूढ़ा आदमी, अब पता िलख ह दया, चार पंयां और। कसी तरह झुंझलाते<br />

हए ु<br />

उसने चार पंयां और िलख दं और फर पूछा: और कु छ? मुला नसन ने कहा: बस<br />

एक पं और िलख द, इतना और िलख द क गंदे और फू हड़ हडराइटंग के िलए मा<br />

करना।<br />

म जो कह रहा हं<br />

ू, उसका मेरे साथ एक तारतय है, उसका एक तालमेल है। म जो कह<br />

रहा हं ू वे वीणा के तार ह;<br />

उन तार को लेकर तुम कसी और वा म जोड़ दोगे, बेसुरे हो<br />

जाएंगे, फू हड़ हो जाएंगे। म जो कह रहा हं ू वह एक पूर जीवन-<br />

है, एक पूरा जीवन<br />

दशन है। उसम से तुमने कु छ भी टकड़े ु िनकाले,<br />

चाहे वे टकड़े ु कतने ह ीितकर लगते ह,<br />

उनके संदभ से उनको अलग कया क वे बेजान हो जाएंगे।<br />

तुह एक बचे क आंख बड़ यार लगती ह--शांत, िनमल, िनदष! इससे यह मत<br />

सोचना क बचे क आंख िनकाल लोगे और टेबल पर सजाकर रखोगे तो बहत अछ<br />

ु<br />

लगगी। खून-खराबा हो जाएगा। सार सादगी बचे क आंख क, िनदषता खोज जाएगी।<br />

मुदा हो जाएंगी आंख, पथरा जाएंगी। वह तो उसके पूरे यव के साथ ह उनका तालमेल<br />

है, संगित है, संदभ है। और पूरे ाण से उनका जोड़ है।<br />

मेरा एक-एक शद मेर पूर जीवन- से जुड़ा हआ है। उसे तुम तोड़ ले सकते हो। उसको<br />

ु<br />

तुम अलग-अलग वा पर बजाने क कोिशश कर सकते हो। लेकन बात जमेगी नहं।<br />

मुला नसन ने बढ़या सा कपड़ा खरदा और सूट िसलवाने के िलए दज के पास गया।<br />

दज ने कपड़ा लेकर मापा और कु छ सोचते हए ु कहा:<br />

कपड़ा कम है। इसका एक सूट नहं<br />

बन सकता।<br />

वह दसरे ू दज के पास चला गया। उसने माप लेने के बाद कहा:<br />

आप दस दन बाद आइए<br />

और सूट ले जाएगा। िनत समय पर मुला नसन दज के पास गया। सूट तैयार था।<br />

अभी िसलाई के पैसे चुका ह रहा था क दकान म दज का पांच वषय लड़का व हआ।<br />

ु ु<br />

उस बचे ने बलकु ल उसी कपड़े का सूट पहन रखा था, जसका मुला नसन ने सूट<br />

बनवाया था। मुला चका। उसने कहा: मामला या है? तुमने कपड़ा चुराया है।<br />

थोड़ सी बहस के बाद दज ने वीकार कर िलया। अब मुला नसन पहले दज के पास<br />

गया और फुं<br />

कराते हए ु बोला:<br />

तुम तो कहते थे कपड़ा कम है, पर तुहारे ितं दज ने<br />

उसी कपड़े से न के वल मेरा बक अपने लड़के का भी सूट बना िलया।<br />

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दज धीरज से सुनता रहा। फर कु छ सोचते हए ु बोला:<br />

लड़के क उ या है। पांच वष।<br />

दज चहक कर बोला: म भी कहं कारण या है। ीमान मेरे लड़के क उ अठारह वष है।<br />

ू<br />

एक संदभ म बात लग जाए, दसरे ू संदभ म न लगे। लगती ह नहं!<br />

म भी देखता हं ू मेरे<br />

पास लोग भेज देते ह, मेरे संयासी लेख भेज देते ह, कताब भेज देते ह क ये बलकु ल<br />

बात आपसे चुराई हई ह। कहं उनका तालमेल नहं बैठता। लेकन इस आशा म क ये बात<br />

ु<br />

लाख लोग को भावत कर रह ह तो इन बात म कु छ बल है, इसिलए इन बात को<br />

कहं भी डाल दो तो शायद लोग भावत हगे।<br />

म उन सब थोथूमल से कह देना चाहता हं<br />

ू: बात म बल नहं होता, बल यव म होता<br />

है। बात म या होता है? शद तो म वह बोल रहा हं जो तुम सब बोलते हो। कु छ यादा<br />

ू<br />

शद मुझे आते भी नहं। शद क कोई बहत बड़ संया भी मेरे<br />

ु पास नहं है। मेर<br />

शदावली बहत ु छोट है। अगर तुम हसाब लगाने बैठो तो चार सौ,<br />

पांच सौ शद से<br />

यादा शद म उपयोग म नहं लाता। लेकन टन-ओवर! काफ है! असली सवाल टन-ओवर<br />

है।<br />

शद तो म कोई अनूठे नहं बोल रहा हं<br />

ू--कामचलाऊ ह, रोजमरा के ह, बातचीत के ह।<br />

लेकन पीछे कोई और है। शद के पीछे िनःशद का ाण है। शद के पीछे शूय का<br />

संगीत है। शद के पीछे सााकार है।<br />

मुला नसन एक दन आया और अपने याा के कस को बढ़ा-चढ़ाकर लोग को सुनाने<br />

लगा। और मुझे पता है वह कहं गया नहं है। मेरे सामने ह सुनाने लगा। कहने लगा:<br />

अमरका गया, इंलड भी गया, अका भी गया। अका के जंगली देख देखे। बफानी<br />

देश म भी फं सा। ऐसा िशकार कया वैसा कया। म चुपचाप सुनता रहा। मने उससे इतना<br />

ह पूछा क नसन फर तो आपको भूगोल क अछ-खासी जानकार हो गयी होगी?<br />

उसने कहा: जी नहं, म वहां गया ह नहं।<br />

तुह जब कोई थोथूमल िमल जाएं तो उनसे जरा कु छ पूछा करो, क भैया भूगोल गए? वे<br />

कहगे: नहं, वहां गए ह नहं।<br />

नाराज मत होना माधवी। मजा लो! इन सब बात का भी मजा लो। यह सब भी होता है।<br />

यह सब वाभावक है। ये अछे लण ह। ये इस बात के लण ह क जो मेरे वरोध म ह<br />

वे भी अपने को मुझसे बचा नहं पा रहे ह। कताब म िछपा-िछपाकर कताब बढ़ रहे ह।<br />

मेरे एक िम जैन के एक बड़े संत कानजी वामी को िमलने गए। वे कु छ पढ़ रहे थे,<br />

उहने जद से कताब उलटाकर रख द। मेरे िम को गैरक व म देखा, माला देखी,<br />

बस एकदम मेरे खलाफ बोलने लगे। इसीिलए तो तुम को व और माला पहना द है। जैसे<br />

सांड एकदम बचक जाता है न लाल झंड देखकर...ऐसे लोग को बचकाने के िलए तुह यह<br />

लाल झंड दे द है क जहां देखी झंड क वे बचके एकदम! एकदम मेरे खलाफ बोलने<br />

लगे! लेकन मेरे िम को वह कताब देखकर शक हआ। ु उट तो रख द थी उहने,<br />

लेकन तुम देखते हो म दोन तरफ फोटो छपवा देता हं<br />

ू! उट भी रखोगे तो कै से रखोगे?<br />

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उहने कहा: आप खलाफ तो बड़ा बोल रहे ह, फर यह कताब य पढ़ रहे ह? अगर ये<br />

यथ क ह बात ह तो आप समय खराब य कर रहे ह? साथक बात य नहं पढ़ते?<br />

समयसर पढ़ए। जैन शा पढ़ए, यह य कताब...आप समय खराब कर रहे ह? और<br />

या म देख सकता हं ू यह कताब?<br />

यक मुझे शक है क तीन दन से आपको सुन रहा<br />

हं<br />

ू, वह इसी कताब म से बोला जा रहा है।<br />

हालांक सब वकृ त हो जाता है। हो ह जाएगा। तुम कसी सुंदर<br />

से सुंदर<br />

गीत से शद चुन<br />

लो तो उन शद म सदय नहं रह जाता। सदय सदा संपूण संदभ म रहता है। एक फू ल<br />

तुम तोड़ लो वृ से, तोड़ते ह मर जाता है। वृ म जीवंत था, रसधार बहती थी।<br />

मगर यह चलेगा। इसको रोकने का एक ह उपाय है: मेर कताब को यादा से यादा लोग<br />

तक पहंचाओ। ु इसके रोकने का एक ह उपाय है:<br />

लोग मुझसे यादा से यादा परिचत हो<br />

जाएं। यह आप क जाएगा। या तो के गा या फर जन लोग को यह बात ठक ह लग<br />

रह है उनको हमतपूवक वीकार करना पड़ेगा।<br />

मेरे पास लोग आते ह। वे कहते ह: फलां मुिन महाराज बस आपक ह बात बोलते ह। मने<br />

कहा: मेरा नाम लेते ह कभी? कहा: नाम आपका कभी नहं लेते! मगर बात तो आपक ह<br />

बोलते ह। कताब तो आपक ह पढ़ते ह।<br />

तो मने कहा: जब तक वे मेरा नाम न ल तब तक समझना क बेईमान ह। कताब पढ़ना<br />

और बात मेर बोलना...। लेकन इस तरह क ांित खड़ करना क वह बात उनक है। मुझे<br />

कु छ अड़चन नहं है, लेकन इससे वे खुद ह धोखा खा रहे ह। खुद भी जो लाभ उठा सकते<br />

थे, वह भी नहं उठा पा रहे ह।<br />

और दसर को कब तक धोखा दोगे<br />

ू ? थोड़े से लोग को थोड़े दन धोखा दया जा सकता है,<br />

लेकन कब तक? धोखे टट ू जाते ह। धोखे टटकर ू ह रहगे।<br />

अब मेरे एक लाख संयासी ह सार दिनया म। ये जगह<br />

ु -जगह धोखे तोड़गे। और ये एक<br />

लाख पर कने वाले नहं ह, ये जद दस लाख हो जाएंगे। यह फै लता हआ<br />

ु ...जैसे पूरे<br />

जंगल म आग लग गयी है! एक िचनगार से लगी है, मगर पूरा जंगल जल उठा है! कतनी<br />

देर तक यह धोखा-धड़ चलेगी?<br />

इसिलए माधवी, इसक िचंता म मत पड़ो। इतराने दो, बोलने दो, दोहराने दो। तोते ह,<br />

इन पर नाराज होना नहं चाहए। तोते ह, तोत के साथ तोत जैसा यवहार करो, बस।<br />

बु नाममा को नहं है। ामोफोन रकाड ह--हज माटस वाइस। वह हज माटस वाइस<br />

वाल ने भी खूब तरकब क--चगे से सामने कु े को बठा दया! यक कु े से यादा<br />

सेवक और मािलक का कौन है! हज माटस वाइस! मािलक कहे पूंछ<br />

हलाओ तो पूंछ<br />

हलाता है। मािलक कहे भको तो भकता है। कभी-कभी कु ा संदेह म होता है तो दोन<br />

करता है।<br />

तुमने देखा तुम कसी के घर गए, कु ा सामने िमला। और कु े को पका नहं है क<br />

मािलक के दोत हो क दमन हो<br />

ु , अपने हो क पराए हो, क तुमसे कै सा यवहार करना!<br />

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तो कु ा दोन काम करता है--भकता भी है, पूंछ<br />

भी हलाता है। यह राजनीित है। वह देख<br />

रहा है क जैसी थित होगी, जस तरफ ऊं ट करवट लेगा, उसी तरफ हम भी हो जाएंगे<br />

पूंछ<br />

से जय-जयकार बोल रहा है। पूंछ<br />

से कह रहा है जंदाबाद, मुंह<br />

से कह रहा है मुदाबाद!<br />

और देख रहा है, तीा क थित साफ हो जाए क मामला या है!<br />

फर घर का मािलक आ गया और तुह गले लगा िलया, भकता बंद हो गया, पूंछ<br />

हलती<br />

रह। घर का मािलक आ गया, उसने कहा आगे बढ़ो, और दरवाजा देखो--क पूंछ<br />

हलना<br />

बंद हो जाएगी कु े क, भकना बढ़ जाएगा!<br />

अभी ये जो लोग मेर बात दोहरा रहे ह, ये दोहर थित म ह--भकते भी ह, पूंछ<br />

भी<br />

हलाते ह। इनको अभी पका नहं है क म जो कह रहा हं<br />

ू, उसके साथ या िनणय लेना?<br />

या मानकर चल पड़ना, इतना साहस करना? बन माने भी नहं रह सकते। कु छ बात है<br />

क दल म चोट भी करती है। कु छ बात है क झकझोरती भी है।<br />

कतने साधु-संयािसय और मुिनय के पा आते ह क हम छोड़ने को राजी ह। हम इस<br />

जाल से छू टना चाहते ह। लेकन या आपके आम म जगह िमलेगी?<br />

अब म जानता हं<br />

ू, ये जो जैन मुिन ह, हंद साधु ह<br />

ू , ये कसी काम के नहं ह। और मेरा<br />

आम सृजनामक होने वाला है। इनको बठाकर वहां या करगे? कोई मखयां मरवानी<br />

ह? कस काम के ह? यादा से यादा सेवा ले सकते ह, और तो कु छ काम के ह नहं।<br />

और इनक आदत खराब हो गई ह, यक इनक सेवा चल रह है। कु छ गुण नहं ह, कु छ<br />

ितभा नहं है। कोई इसिलए पूजा जा रहा है क उसने मुंह<br />

पर पट बांध रखी है। कोई<br />

इसिलए पूजा जा रहे है क वह नन खड़ा है। कोई इसिलए पूजा जा रहा है क वह अपने<br />

बोल लचता है, के श लुंज<br />

करता है। कोई इसिलए पूजा जा रहा है क वह उपवास करता है।<br />

मगर इन बात का मेरे आम म तो कोई मूय नहं है। तुम कतना ह के श लचो, कोई<br />

खड़े होकर देखेगा भी नहं, कोई फकर भी नहं करेगा--लचते रहो, तुहार मज! लोग<br />

समझगे कै थािसस कर रहे हो, क सय यान क कोई भाप-मुा आ गयी, क करो<br />

भाई, क कुं<br />

डिलनी ऊजा शायद िसर म पहंच ु गयी!<br />

यहां कौन तुमको समझेगा क तुम के श-<br />

लुंज<br />

कर रहे हो? और कोई तुहारे पैर नहं छु एगा।<br />

यहां तुम उपवास करोगे तो कोई तुह समान नहं िमलेगा। यक भूखे मरने म कौन-सा<br />

समादर है? न तो यादा खाने म कु छ है, न कम खाने म कु छ है। सयक आहार! जतना<br />

जर है उतना सदा लेना उिचत है। तुम यहां नंगे खड़े हो जाओगे क धूप सहोगे क सद<br />

सहोगे, लोग समझगे थोड़े झक हो। और काम के तो तुम कु छ भी नहं हो।<br />

और म नहं चाहता क मेरा संयासी गैर-सृजनामक हो। गैर-सृजनामक होने के कारण। ह<br />

संसार म संयासी क िता नहं बन पायी। यहां तो कु छ करना होगा। यहां जतने संयासी<br />

ह--तीन सौ संयासी आम म ह, शायद भारत के कसी आम म तीन सौ संयासी नहं<br />

ह--लेकन सब काय म संलन ह। कु छ बनाने म लगे ह। और वभावतः कु छ ऐसा बनाना है<br />

जो क सांसारक न बना सकते ह, तो तुहारे कु छ खूबी है।<br />

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जैसे ह संयािसय का गांव बसेगा, तुम देखोगे क हम इस देश को हजार तरह क<br />

सृजनामक दशाएं दे सकते ह। छोट से लेकर बड़ चीज तक हम बना सकते ह। बनानी<br />

ह, यक यह देश गरब है इसको समृ करना है। छोटे-छोटे काम इस देश के जीवन म<br />

ांित ला सकते ह। जरा-जरा सी बात से बहत फक हो जाता है।<br />

ु<br />

फर जगत को सुंदर<br />

बनाने के अितर और धािमक आदमी का कृ य या होगा? जैसा तुम<br />

आए थे वैसा ह संसार को मत छोड़ जाना। थोड़ा सुंदर<br />

बना जाना। थोड़ा गीत क एक कड़<br />

जोड़ जाना। संगीत का वर जोड़ जाना। नृय क एक धुन बजा जाना।<br />

तो म इन मुिनय को लेकर यहां कं या? तो अड़चन है। छोड़कर आने को कई उनम से<br />

राजी ह। बात उनके दय को छु ई है, लेकन रहना जनके बीच ह...यक रोट-रोजी उन<br />

पर िनभर है।<br />

तुम जानकर चकत होओगे क तुहारे साधु-संयािसय से यादा गुलाम इस देश म कोई<br />

भी नहं ह। उसक गुलामी बड़ गहर है। वह रोट-रोजी पर िनभर है। तुम उसे खलाओ तो<br />

खो, तुम उसे पलाओ तो पीए। उसे तुमने बलकु ल अपंग बना दया है। और जतना अपंग<br />

होता है उतना ह उसको तुम समादर देते हो।<br />

तो मेर बात उसक समझ म भी आ जाए तो सवाल यह है क छोड़े कै से? छोड़े तो फर<br />

उसको हो या? तुम चकत होओगे यह जानकर क गृहथ य अपने घर छोड़ने म<br />

इतनी यादा िचंता अनुभव नहं करता जतना जैन मुिन अनुभव करेगा अपना मुिन वेश<br />

यागने म, यक वह तो बलकु ल ह समाज-िनभर है। उसके पास और तो कोई गुणवा<br />

नहं है, िसवाय इसके क वह मुिन है तो समान िमलता है।<br />

एक जैन मुिन ने छोड़ दया मुिन वेश म हैदराबाद म था। उह मेर बात ठक लगी। उहने<br />

मुिन वेश छोड़कर म जहां का था वहां आ गए। उनका बड़ा समादर था। मगर जैन बड़े<br />

नाराज हो गए--वभावतः क जसको इतना समादर दया वह इस तरह धो कर जाए।<br />

दगाबाजी हो गयी यह तो। तो वे उनको मरने के पीछे पड़े, क उनक पटाई करनी है।<br />

उहं क पटाई! पहले एक तरह क सेवा क थी, अब दसर ू तरह क सेवा करनी है।<br />

मने उनको कहा भी क तुह इससे या योजन? उस आदमी को मुिन रहना था तो रहा,<br />

नहं रहना तो नहं रहा, तुम य पीछे पड़े हो? तुह मुिन होना हो तुम हो जाओ।<br />

उहने कहा: नहं, हम ऐसे नहं छोड़ दगे। इससे हमारे धम का अपमान होता है। उनका<br />

धम को छोड़कर जाना और लोग के मन म संदेह पैदा करता है।<br />

म एक सभा म बोलने गया तो वे भी, भूतपूव जैन मुिन, मेरे साथ गए। पुरानी आदत मंच<br />

पर बैठने क, तो वे मेरे साथ मंच पर चले गए। बस जैन खड़े हो गए। उहने कहा क<br />

पहले इनको मंच से नीचे उतारा जाए। इनको हम मंच पर न बैठने दगे।<br />

मने कहा क मुझे तुम बैठने दे रहे हो, म तुहारा कभी मुिन नहं रहा, न कभी होने क<br />

आशा है, तो इस बेचारे ने या बगाड़ा है? यह कम से कम भूतपूव मुिन है, कु छ तो रहा<br />

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है। नहं, लेकन उहने कहा क इह तो उतरना ह पड़ेगा। इह हम मंच पर बदात ह<br />

नहं कर सकते। इहने धोखा दया है।<br />

जैन को तुम अहंसामक समझते हो, उतने अहंसामक नहं ह। वे उनको खींचने लगे।<br />

कसीने पैर पकड़ िलया, कसी ने हाथ पकड़ िलया। मगर मुिन भी मुिन! वे मंच पकड़!<br />

मने कहा: हद हो गयी! अब तुमने मुिन वेश छोड़ दया, कम से कम मंच छोड़ दो! चलो<br />

इन बेचार का मन भर दो, इहं के पास बैठ जाओ जाकर। इनको काफ दन क दया<br />

मंच पर बैठकर, नीचे बठा रखा; अब इनको भी थोड़ा मजा ले लेने दो, इहं के बीच बैठ<br />

जाओ, या बगड़ेगा?<br />

मगर वे मंच न छोड़। उनका भी समान का सवाल। और उनका समाज उनके पैर न छोड़े।<br />

इस खींचातानी म मने कहा क फर म यहां से चला। फर आप लोग िनपट। इसम कोई<br />

अथ नहं है। यह बलकु ल पागलपन है। तुम भी पागल हो, तुहार मुिन भी पागल है। वह<br />

चाहता है पूरनी ह समान िमले। वह कै से िमलेगा? जस कारण से वे समान देते थे वह<br />

कारण खतम हो गया। और तुम म इतनी भलमनसाहत नहं है क बैठ रहने दो बेचारे को,<br />

या बगाड़ रहा है! मंच बड़ा है, बैठा है, एक कोने म बैठा रहने दो। तुम भी बदात नहं<br />

कर सकते!<br />

जैन मुिन या हंद ू संयासी...हंद<br />

ू संयासी यहां आ जाते ह कभी। कहते ह: आने को तो मन<br />

होता है, मगर फर हंदू...<br />

म अमृतसर गया, एक हंद संयासी और सारे लोग के साथ मेरे वागत को आ गए। मेर<br />

ू<br />

कताब पढ़ं, मेरे ेम म थे। राीय वयंसेवक संध के लोग ने मेरे वरोध म टेशन पर<br />

एक हंगामा खड़ा कया था, कोई दो सौ वयंसेवक काले झंडे लेकर इकठे हए ु थे। ठक है,<br />

उस म तो कु छ हजा नहं। झंडे तुहारे ह, तुह काले लेना ह काले लो, सफे द लेना ह<br />

सफे द लो, तुहार मौज, मेरा या बनता-बगड़ता है! वे िचलाते रहे, शोरगुल मचते रहे।<br />

म तो चला गया, लेकन उस हंद संयासी<br />

ू को पकड़ िलया उन लोग ने--क तुम य<br />

वागत के िलए आए? हंद ू संयासी होकर,<br />

हंदव ु का अपमान!<br />

जब दसरे ू दन वह संयासी मुझे िमलने आए तो पट इयाद बंधी,<br />

तो मने कहा: तुह<br />

या हआ<br />

ु ? उहने कहा: यह आपका वागत करने जाने का फल है। मने कहा: पर उहने<br />

मुझे नहं चोट पहंचायी<br />

ु<br />

, तुह य चोट पहंचायी ु ? उहने कहा क चोट इसिलए पहंचायी ु<br />

क म हंद ू संयासी,<br />

हंद ू होकर और म ऐसे य के वागत को गया जो सारे हंद ू धम<br />

क जड़ काट रहा है!<br />

न मालूम कतने संयासी आना चाहते ह! एक मुसलमान फकर ने िलखा था आना चाहता है<br />

लेकन मुसलमान का डर लगता है। जैन आना चाहते ह, जैन का डर लगता है। हंद आना<br />

ू<br />

चाहते ह, हंदओं का डर लगता है। मेर बात तो उनक समझ म आ रह ह। तो उनक<br />

ु<br />

हालत ऐसी हो गयी है क मेर बात समझ म आती है, भावत करती है, दय को छू ती<br />

है, तो जाने-अनजाने िनकल भी जाती है। मगर तभी उनको खयाल आता है अपने सुनने<br />

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वाले ावक का और तण वे मेरा वरोध भी करने लगते ह। मेरा वरोध भी करना पड़ेगा<br />

उनको, अगर उनके बीच रहना है। और मेर बात से भी नहं बच सकते, यक बात म<br />

कु छ बल है जो उनके ाण को पश कर रहा है।<br />

माधवी, इस सब म दखी ु होने क कोई भी जरत नहं है। आनंदत हो!<br />

यह सब वाभावक<br />

है।<br />

आखर : भगवान! आपको सुनते-सुनते आंसू य बने लगते ह?<br />

वजय सयाथ! आनंद हो तो आंसू न बह तो और या बह? तुहारा दय मेरे दय से<br />

मेल खाए तो आंसू अिभय न कर तो और कै से अिभय हो?<br />

मुझे समझ न कसी ददे-गरब का अक<br />

जो लब तक आ न सक है, वोह इतजा म हं<br />

ू<br />

वे तुहार ाथनाएं ह, वे तुहार दनता नहं ह तुहारे आंसू। वे तुहार ाथनाएं ह, वे<br />

तुहार इतजाएं ह। तुहारा दय कु छ िनवेदन करना चाहता है। शद नहं िमलते। भाषा<br />

छोट पड़ जाती है। कै से कहो? आंख गोली हो जाती ह! वह गीलापन तुहारे ेम का तीक<br />

है।<br />

जतनी अधर म कै द हई ु पीड़ा,<br />

उतना नैन से जल रह-रह छलका।<br />

जब हर अभाव का भाव बना पाहन<br />

ु ,<br />

ारे से लौटा गीत का सावन।<br />

हर सांस घुट मलयािनल को छू कर,<br />

पतझार हआ किलय का उमीलन।<br />

ु<br />

जतनी सपुट म बंद हई ु आशा,<br />

उतना मन का भंवरा रह-रह तड़पा।<br />

जतनी अधर म कै द हई ु पीड़ा,<br />

उतना नैन से जल रह-रह छलका।<br />

जब घने हो गए संयम के ताले,<br />

रस रस कर फू टे अंतर के छाले।<br />

उमाद िलए याकु ल सी छायी,<br />

हाथ से छू टे मंदर के याले।<br />

जतनी बंधन म लाज बंधी मन क,<br />

उतना वांरा, आंचल रह-रह ढलका।<br />

जतनी अधर म कै द हई पीड़ा।<br />

ु<br />

उतना नैन से जल रह-रह छलका।<br />

जब चाह लुट हर लौट पाती म,<br />

सब वन जले दपक क बाती म।<br />

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अंगार सी मृितय सी लेट, छाती म,<br />

जतना सपन का बंब हआ ु धूिमल,<br />

उतना दपक का छल रह-रह झलक।<br />

जतनी अधर म कै द हई पीड़ा<br />

ु<br />

उतना नैन से जल रह-रह छलका।<br />

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एक ेम का जम हो रहा है। मेरे पास इस ससंग म, इस बु-ऊजा के े म, एक ेम<br />

का जम हो रहा है। तुहारे दय गीत गा रहे ह, नाच रहे ह, गुनगुना रहे ह।<br />

जतनी अधर म कै द हई ु पीड़ा,<br />

उतना नैन से जल रह-रह छलका।<br />

ेम क एक सघन पीड़ा तुहारे भीतर इकठ हो रह है। और जब बादल सघन हगे तो<br />

बरसगे। आंसू से यादा बहमूय ु अिभय का कोई उपाय<br />

नहं है। ेम को जतनी सरलता<br />

से, जतनी सुगमता से आंसू कह जाते ह, और कोई भी नहं कह पाता।<br />

वजय सयाथ! शुभ हो रहा है। सदभाय है। अभागे ह वे, जनक आंख गीली नहं हो<br />

पातीं। अभागे ह, यक उनके दय गीले नहं ह।<br />

आज इतना ह।<br />

अमी झरत, बगसत कं वल<br />

तेरहवां वचन; दनांक २३ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

नाम बन भाव करम नहं छू टै।।<br />

साध संग औ राम भजन बन, काल िनरंतन लूटै।।<br />

मल सेती जो मल को धोवै, सो माल कै से छू टै।।<br />

ेम का साबुन नाम का पानी, दोय िमल तांता टटै।। ू<br />

भेद अभेद भरम का भांडा, चौड़े पड़-पड़ फू टै।।<br />

गुरमुख सद गहै उर अंतर, सकल भरम से छू टै।।<br />

राम का यान तूं<br />

धर रे ानी, अमृत का मह बूटै।।<br />

जन दरयाव अरप दे आपा, जरा मरन तब टटै।। ू<br />

राम नाम नहं हरदे घरा। जैसा पसुवा तैसा नरा।।<br />

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पसुवा नर उम कर खावै। पसुवा तो जंगल चर आवै।।<br />

पसुवा आवै वसुवा जाय। पसुवा चरै व पसुवा खाय।।<br />

रामयान याया नहं माई। जनम गया पसुवा क नाई।।<br />

रामनाम से नाहं ीत। यह सब ह पसुव क रत।।<br />

जीवत सुख दख म दन भरै। मुवा पछे चौरासी परै।।<br />

ु<br />

जन दरया जन राम न याया। पसुवा ह य जनम गंवाया।।<br />

अमी झरत, बगसत कं वल।<br />

अमृत झरता है, िनत झरता है। कमल भी खलते ह, िनत खलते ह। पर भूिमका<br />

िनिमत करनी जर है।<br />

घास-पात भी उगता है। उसी भूिम म, जहां गुलाब के फू ल खलते ह। दोन म एक अथ म<br />

कु छ भेद नहं। दोन एक ह भूिम से रस लेते ह और दोन म कतना भेद है फर भी! एक<br />

घास-पात ह रह जाता है, एक गुलाब का फू ल पृवी का काय बन जाता है। अगर गुलाब<br />

के फू ल को देखकर परमामा का माण तुह नहं िमला तो कहं और न िमल सके गा।<br />

अगर गुलाब का फू ल देखकर तुम अचभत न हए ु , चमकृ त न हए ु , अवाक न हए ु ,<br />

ठठक न गए, मन एक ण को िनवचार न हो गया--तो साव मंदर-मजद यथ ह।<br />

मगर एक ह भूिम से घास-पात पैदा होता है, उसी भूिम से गुलाब पैदा होते ह, दोन म<br />

रस एक बहता है; लेकन पांतरण बड़ा िभन है। दोन के बीज होते ह, दोन को सूरज<br />

चाहए, दोन को पानी चाहए, दोर को भूिम चाहए। दोन क जरत बराबर ह। फर भेद<br />

कहां पड़ जाता है? भेद माली म है। घास-पात को उखाड़ फ कता है; गुलाब को सहाल<br />

लेता है, जमा लेता है।<br />

संसार तो यह है; इसी म कोई बु हो जाता है और इसी म कोई यथ जी लेता है। भेद<br />

तुहारा है। माली जगाओ, माली सोया पड़ा है और तुहार बिगया म घास-पात उग रहा है।<br />

जहां फू ल होने थे, जहां सुगंध होनी था, वहां के वल सड़ांघ है जीवन क। जो ऊजा आकाश<br />

क तरफ याा करती वह अंधी खड म, खोह म भटक रह है। जो ऊजा अमृत बनती वह<br />

जहर हो गयी है। जो िसंहासन बनती वह सूली हो गयी है।<br />

कै से यह माली जागे? कौन सी पुकार इस माली को उठा देगी? उस पुकार का नाम ह राम-<br />

नाम है; कहो उसे ाथना, कहो उसे यान!<br />

बीहड़ व-वजन-पथ म चल<br />

चरण िशिथल हो गया हमारे!<br />

कै से गाऊं गीत तुहारे?<br />

घनीभूत पीड़ा का कलरव<br />

दर ू न मुझ से पल का कलरव<br />

दर ू न मुझ से पल भर रहता,<br />

अधर म िनत यास जगा कर<br />

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आंसू घन-सा बरसा करता,<br />

धूिमल संयान वरह घोल कर<br />

मौन पलाती आंसू खारे!<br />

कै से गाऊं गीत तुहारे?<br />

वन सृजन भी कभी न होता<br />

चाहे चंदा मुसकाता हो,<br />

सुिध का दप न जल पाता है<br />

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चाहे शुलभ मचल गाता हो, आशाओं का मौन िनमंण<br />

पहंच ु न पाता सुिध के ार!<br />

कै से गाऊं गीत तुहारे?<br />

झूठे वास के बल पर<br />

म को पार कौन करता है,<br />

जीवन-राह बना पहचाने<br />

आगे चरण कौन धरता है,<br />

थके पाल के पंख संजोकर<br />

पहंचा ु कोई नहं कनारे!<br />

कै से गाऊं गीत तुहारे?<br />

एक ह महवपूण है, पूछ लेने जैसा है, रोएं-रोएं म कं पत कर लेने जैसा है--कै से<br />

तुहारे गीत गाऊं? कै से तुह पुकां? कै से तुम मेरे मन-मंदर म वराजमान हो जाओ?<br />

कै से तुहारा जागरण, तुहार ऊजा, तुहार चेतना मेरा भी जागरण बने, मेर भी ऊजा<br />

बने, मेर भी चेतना बने? मेरे भीतर सोया मािलक, मेरे भीतर सोया माली कै से जगे, क<br />

मेर बिगया म भी फू ल ह, चंपा के हो, चमेली के ह, गुलाब के ह और अंततः कमल के<br />

फू ल खल! यह मेरा जीवन कचड़ ह न रह जाए। यह कचड़ कमल म पांतरत होनी<br />

चाहए। और यह कमल म पांतरत हो सकती है। किमया कठन भी नहं है। जरा सी<br />

जीवन मग समझ क बात है। बेसमझे सब यथ होता हो जाता है। और जरा सी समझ,<br />

बस जरा सी समझ--और िमट सोना हो जाती है। अमी झरत, बससत कं वल! एक थोड़<br />

सी ांित, एक थोड़ सी िचनगार।<br />

नाम बन भाव करम नहं छू टै।।<br />

उस िचनगार का इशारा कर रहे ह दरया क जब तक तुहारा कता का भाव न छू ट जाए<br />

तब तक तुम परमामा को मरण न कर सकोगे; या परमामा का मरण कर लो तो कता<br />

का भाव छू ट जाए। कता के भाव म ह हमारा अहंकार है। कता का भाव ह हमारे अहंकार<br />

का शरण थल है--यह कं वह कं, यह कर िलया वह कर िलया, यह करना है वह<br />

करना है। कृ य के पीछे ह कृ य के धुएं म िछपा है तुहारा दमन। और अगर इस अहंकार<br />

ु<br />

के कारण ह तुमने मंदर म पूजा क और मजद म नमाज पढ़ और िगरजे म घुटने टेके,<br />

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सब यथ हो जाएगा, यक वह अहंकार इन ाथनाओं से भी पु होगा। यक ये<br />

ाथनाएं भी उसी मूल िभ को सहाल दगी, नयी-नयी ट चुन दगी--म कर रहा हं<br />

ू!<br />

ाथना क नहं जाती, ाथना होती है--वैसे ह जैसे ेम होता है। ेम कोई करता है, कर<br />

सकता है? कोई तुह आा दे क करो ेम, जैसे सैिनक को आा द जाती है बाएं घूम<br />

दाएं, घूम, ऐसे आा दे द जाए करो ेम। दाएं-बाएं घूमना हो जाएगा, देह क याएं<br />

ह; अगर ेम? ेम तो कोई या ह नहं है, कृ य ह नहं है। ेम तो भट है वराट क<br />

ओर से। ेम तो अनंत क ओर से भट है। उह िमलती है जो अपने दय के ार को<br />

खोलकर तीा करते ह।<br />

ेम तो वषा है। अभी झरत! यह तो ऊपर से िगरता है आकाश से इसिलए इशारा है। एक क<br />

अमृत तो आकाश से झरता है और कं वल जमीन पर खलाता है। आकाश से परमामा<br />

उतरता है और भ पृवी पर खलता है। भ के हाथ म नहं है क अमृत कै से झरे,<br />

लेकन भ अपने पा को तो फै लाकर बैठ सकता है! भ बाधाएं तो दर ू कर सकता है!<br />

पा<br />

ढकन से ढका रहे, अमृत बरसता है, तो भी पा खाली रह जाएगा। पा उटा रखा हो,<br />

तो भी पा खाली रह जाएगा। पा फू टा हो तो भरता-भरता लगेगा और भर नहं पाएगा। क<br />

पा गंदा हो, जहर से भरा हो, क अमृत उसम पड़े भी तो जहर म खो जाए। पा को शु<br />

होना चाहए, जहर से खाली।<br />

और ान पांडय--जहर है। जतना तुम जानते हो उतने ह बड़े तुम अानी हो। यक<br />

जानने से भी तुहारा अहंकार बल हो रहा है क म जानता हं<br />

ू! जतने शा तुहारे पा म<br />

ह उतना ह जहर है। पा खाली करो। पा बेशत खाली कर। यक उस खाली शूयता म<br />

ह िनदषता होती है, पवता होती है।<br />

और तुहारे पा म बहत ु छे द ह,<br />

यक बहत ु वासनाएं ह। पूरब ले जाती एक वासना,<br />

दण ले जाती, उर ले जाती। छे द ह छे द ह, जनम से तुहार जीवन धारा बहती जाती<br />

है, ीण होती जाती है। एक ह वासना को बचने दो ताक पा का एक ह मुंह<br />

रह जाए।<br />

सार वासनाओं को, सारे िछ को एक ह मुंह<br />

म समाहत कर दो। एक परमामा को पाने<br />

क अभीसा बचने दो। एक सय को पाने क गहन आकांा, एक वरा, एक तीता!<br />

भभक उठो मशाल क तरह। एक आकाश को छू लेने क आकांा! तो सारे िछ बंद हो<br />

जाएं।<br />

और पा को उटा मत रखो। िछ भी बंद ह, पा शु भी हो और उटा रखा हो...और<br />

लोग पा को उटा रखे ह। संसार के तरफ तो उनक आंख ह और परमामा क तरफ पीठ<br />

ह; यह तो पा का उटा होना है। संसार समुख और परमामा के वमुख।...परमामा के<br />

समुख होओ, संसार क तरफ पीठ करो। और म नहं कह रहा हं क संसार छोड़ दो या<br />

ू<br />

भाग जाओ, लेकन पीठे करके काम करते रहे। मगर पीठ रहे। आंख अटकाए न संसार पर।<br />

संसार ह सब कु छ न हो। दकान भी करो<br />

ु , बाजार भी जाओ, काम भी जाओ, काम भी<br />

करो। परमामा ने जो दया है, जहां तुह छोड़ा है, उन सारे कतय को िनभाओ; मगर<br />

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एक बात यान रहे--आंख उस शात पर अटक रहे! चाहे चलो जमीन पर मगर याद<br />

आकाश क बनी रहे। फर कोई िचंता नहं है। फर तुहारा पा भु क तरफ उमुख है।<br />

फर देर नहं लगेगी, अमृत झरेगा।<br />

और अमृत झरे तो णभर नहं लगता के खलने म। जैसे सुबह उगा सूरज और खला<br />

कमल! इधर उगा सूरज उधर पंखुड़यां खुलीं। इधर वषा अमृत उधर तुहारे भीतर का कमल<br />

खला। तुहारे भीतर के कमल के खलने का नाम ह ाथना है। ाथना म ह तुम फू ल<br />

बनते हो। ाथना के बना जीवन शूल ह शूल है।<br />

नाम बन भाव करम नहं छू टै।।<br />

ये एक ह िसके के दो पहलू ह। या तो भु का मरण करो...। कै से भु का मरण करो?<br />

जाएं मंदर म? बजाएं मंदर क घंटयां? पूजा के थाल सजाएं? बहत ु लोग कर रहे ह,<br />

ईर-मरण नहं आ रहा है। या कर? शा कं ठथ कर? तोते बन जाएं? बहत लोग बन<br />

ु<br />

गए ह। ईर-मरण नहं आ रहा है।<br />

पंडत से ईर क जतनी दर है उतनी<br />

ू पापय से भी नहं पापी भी अपने कसी गहन पीड़ा<br />

के ण म परमामा को याद करता है। पंडत कभी नहं करता है। परमामा के संबंध म<br />

बकवास करता है। परमामा के संबंध म दसर ू को समझा देता होगा,<br />

क शा िलखता<br />

होगा बड़े-बड़े, लेकन परमामा क याद नहं करता। पापी तो कभी रोता भी है। जार-जार<br />

रोता भी है! लािन से भी भरता है। पीड़ा भी उठती है। कहं ण म आकाश क तरफ<br />

आंख उठाकर कहता भी है क कै से मुझे छु टकारा हो, कब मुझे बचाओगे?<br />

और इसिलए म तुमसे कहता हं ू: पापी क ाथनाएं भी पहंच ु जाएं , पंडत क ाथनाएं नहं<br />

पहंचतीं ु , यक पंडत क ाथनाएं ाथनाएं ह नहं होतीं। हां, पंडत क ाथना शु होती<br />

है--भाषा, याकरण, छंद, माा, सब तरह से। और पापी क ाथना तो ऐसी होती है जैसे<br />

छोटे बचे का तुतलाना, न भाषा है न अिभय करने क मता है। पंडत क ाथना बड़<br />

मुखर होती है, पापी क ाथना मौन होती है।<br />

तुम पंडत बनना। उस तरह से कोई परमामा को कभी याद नहं कया है। और तुम<br />

औपचारक मत बनना। सीख मत लेना क ाथना कै से क जाए। यह कोई कवायद नहं है,<br />

कोई योगायास है, क िसर के बल खड़े हो गए, क सवागासन लगा िलया, क मयूरासन<br />

लगा िलया। ये कोई शरर के अयास नहं ह। ाथना तो बड़ा संवेदनशील दय अनुभव कर<br />

पाता है।<br />

तो संवेदना जहां बढ़े उन-उन ण को साधो। संवेदना जहां बढ़े उन-उन ण म डू बो।<br />

आकाश तार से भरा है और तुम मंदर म बैठे हो? और उसका सारा मंदर अपनी सार<br />

शोभा से आकाश को सजाए है, उसका मंडप सजा है तार से--और तुम आदमी क बनायी<br />

हई ु दवाल को देख रहे हो?<br />

लेट जाओ पृवी पर, पृवी भी उसक है। देखो आकाश के<br />

तार को, लीन हो जाओ। ा और य कु छ ण को एक हो जाएं। न वहां कोई तारे ह,<br />

न यहां कोई देखने वाला हो। करब आओ, िनकट आओ, और िनकट, और िनकट--इतने<br />

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समीप क तारे तुम म डू ब जाएं, तुम तार म डू ब जाओ। या क सुबह उगते सूरज को<br />

देखकर या कसी पी को सांझ आकाश म उड़ते देखकर, या कसी झरने क कल-कल<br />

आवाज या सागर म उठती हई ु तरंग का नाद,<br />

या कसी मोर का नृय या कसी कोयल क<br />

कु हू-कु हू! ऐसे तो तुम कसी दन शायद ाथना को उपलध हो जाओ, अगर तुम इन<br />

संवेदनाओं के ोत को उपयोग करो तो।<br />

ाथना कव-दय म उठती है। कव बनो! ाथना चाहती है एक कलामक जीवन-; एक<br />

सदय का बोध। सदय को परखो तो तुहार आंख कसी दन परमामा को भी परख लेगी,<br />

यक सदय म परमामा क झलक है, सुनो संगीत को और डुबो। मंदर-मजद म कु छ<br />

भी नहं िमलेगा। इतना वराट अतव तुह चार तरफ से घेरे खड़ा है! वृ इतने हरे ह<br />

और इनक हरयाली म नहं डु बक मारते! और फू ल इतने सुवािसत ह और तुम इनके पास<br />

नाचते भी नहं कभी! यह अतव इतना यारा है! तुम इस य अतव को ेम नहं कर<br />

पाते, तुम अय परमामा को कै से ेम कर पाओगे?--जो इतना िनकट है, इतना समीप<br />

है, उससे तुम ऐसे खड़े हो दरू -दरू ; तो जो य ह नहं है उससे तो तुहारा कोई नाता<br />

कभी न बनेगा।<br />

और म तुमसे यह कहना चाहता हं<br />

ू: अगर तुम य से नाता बना लो तो इसी म अय<br />

िछपा है। इहं फू ल म कहं परमामा झांकता हआ िमलेगा। इहं तार म कसी दन तुम<br />

ु<br />

उसक रोशनी क झलक पा लोगे। इसी उड़ते हए पी के पंख म कभी तुह परमामा क<br />

ु<br />

वराट योजना का अनुभव हो जाएगा। यह सारा अतव इतने अपूव आयोजन म आब है।<br />

यह कोई दघटना ु नहं है। यह कोई संयोग भी नहं है। यहां बड़ा संगीत है!<br />

अहिनश संगीत<br />

का नाद उठ रहा है। उस नाद को सुनो। उस नाद को पहचानो।<br />

और खयाल रखना, य से ह शु करो। अय से तो कोई शु कर नहं सकता। जो<br />

अय से शु करेगा, झूठ होगा उसका उसका ारंभ। यक अयम पर तुम भरोसा ह<br />

कर सकते हो, वास कर सकते हो; जाना तो नहं है। जो दखाई पड़ रहा है, य न<br />

हम उसी पर चरण रख, और उसक सीढ़यां बनाएं? और म तुमसे कहता हं<br />

ू, तुह<br />

परमामा क याद आने लगेगी। असंभव है क न याद आए।<br />

संवेदनशील बनो। दय को थोड़ा तरल बनाओ। कठोरता छोड़ो। पथर क तरह अकड़े मत<br />

खड़े रहो। सदय-सदय से तुहारे साधु-संयािसय ने पथर होने को तपया समझा है!<br />

सब चीज से अछते खड़े रहना है, दर खड़े रहना है<br />

ू , अपने को कसी चीज म डुबाना नहं<br />

है--इसको साधना समझा है! यह साधना नहं है, यक यह तुह परमामा के िनकट न<br />

लाएगी।<br />

तो के तो राता यह संवेदनशील बनो, ताक धीरे-धीरे जो थूल आंख से नहं दखाई<br />

पड़ता, वह संवेदनशील सूम आंख से दखाई पड़े; जो हाथ से नहं छु आ जाता है, वह<br />

दय से छू िलया जाए। या दसरा ू उपाय है क यह जो कता का भाव है,<br />

यह छोड़ दो। यह<br />

म कता हं<br />

ू, यह भाव छोड़ दो। कु छ लोग दकान करते ह<br />

ु , कु छ लोग याग करते ह; भाव<br />

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वह का वह है। कु छ लोग धन इकठा करते ह, कु छ लोग धन का याग करते ह; भाव<br />

वह का वह है। कोई ऐसे अकड़ा है कोई वैसे अकड़ा है। कोई दाएं कोई बाएं। इससे कु छ फक<br />

नहं पड़ता। अकड़ नहं िमटती। रसी जल भी जाती है तो भी एंठ नहं जाती।<br />

वह तुहारे तथाकिथत महामाओं के साथ हो जाता है; रसी जल भी गयी अगर एंठ नहं<br />

जाती। पहले धन कमाते थे, अब पुय कमा रहे ह; अगर खाता-बह जार है! हसाब<br />

लगाकर रखा हआ ु है। कता नहं जाता,<br />

और कता न जाए तो उस महाकता का आगमन<br />

कै से हो? जब तुम खुद ह कता बन बैठे हो, उसके िलए जगह ह तुहारे भीतर नहं है। ये<br />

दोन एक ह िसके के दो पहलू ह। अगर एक हो जाए तो दसरा अपने से हो जाता है। अगर<br />

ू<br />

तुम बहत ु गहन प से संवेदनशील हो जाओ तो कता का भाव अपने-आप<br />

मर जाता है,<br />

यक यह झूठ है। भाव। संवेदनशील के सम यह असय टक नहं सकता, बह जाएगा।<br />

संवेदना क आएगी बाढ़ और ले जाएगी सारा कू ड़ा-कक ट। उसी कू ड़ा-कक ट म तुहारा यह<br />

कता का भाव भी बह जाएगा। तुह छोड़ना भी न पड़ेगा, बह जाएगा। एक दन तुम<br />

अचानक पाओगे, तुम नहं हो। और जस दन तुम पाया म नहं हं उसी दन पाया क<br />

ू<br />

परमामा है।<br />

या फर कता का भाव छोड़ दो, तो कता का भाव छू टते ह तुम संवेदनशील हो जाओगे। यह<br />

कता का भाव ह तुह पथर बनाए हए ह। इस कता के भाव क पत ह तुहारे चार तरफ<br />

ु<br />

लोहे क दवाल क तरह खड़ हो गयी है। गलो, पघलो, बहो!<br />

नाम बन भाव करम नहं छू टै।।<br />

भु-मरण अपने लगे तो कता का भाव छू ट जाता है; या कता का भाव छू ट जाए तो भु-<br />

मरण आने लगता है। ानी नहं पाता, तपवी नहं पाता। या तो यानी पाता है या ेम<br />

पाता है। और यानी वह वह है जो पहले कता का भाव छोड़ता है और तब परमामा को<br />

पाता है। और ेमी वह है जो पहले संवेदनशील होता है, ीित से भरता है, परमामा को<br />

मरण करता है और उसी मरण म कता का भाव छू ट जाता है। बस दो ह वकप है तो<br />

िसफ दो ह वकप ह। यादा चुनाव करने का उपाय भी नहं है, तुह जो च जाए। अगर<br />

तुहारे पास कायपूण दय हो, एक िचकार क मनोदशा हो, एक संगीत का झुकाव<br />

हो, तो भ बन जाओ। और अगर तुहारे पास ये कोई झुकाव न ह, गणत क हो,<br />

ग क तुहार जीवन-शैली हो, भाव नहं बु और वचार पर तुहारा आह हो--तो<br />

यानी बन जाओ।<br />

यान म बु िमट जाती है, भाव म दय डू ब जाता है। कहं से टटो ू , कहं से ार खोलो।<br />

तुहारे भीतर दो ार ह। एक ार है जो यान से खुलता है, वह बु के ार से खुलता है।<br />

और एक ार है जो ेम से खुलता है, वह दय से खुलता है। मगर दोन ार एक ह मंदर<br />

म ले आते ह।<br />

और जद करो, कहं इस जंदगी के वाब म, कहं ु सपन म ह सार ऊजा, सारा<br />

समय यतीत न हो जाए।<br />

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जंदगी यह कह के द, रोज-अजल, उसने मुझे--<br />

यह हककत गम क ले, और राहत के वाब देख।।<br />

सृ के ारंभ ने यह जंदगी हमसे साफ-साफ कह कर द है...<br />

जंदगी यह कह के द, रोजे-अजल, उसने मुझे--<br />

यह हककत गम क ले...<br />

यह दख ु तुझे देता हं ू और राहत के वाब देख और सपने देता हं ू बड़े सुंदर।<br />

उन सपन से<br />

राहत िमलती रहेगी। दख तू भोगता रहेगा<br />

ु , सपने राहत देते रहगे। सपने महम-पट करते<br />

रहगे, दख घाव<br />

ु बनाते रहगे और ऐसे ह हम बता रहे ह।<br />

जंदगी दख ु है और सपन क आशा है। कल कु छ होगा,<br />

कल जर कु छ होगा! कल न कभी<br />

कु छ हआ ु है न होगा। जो आज हो रहा है,<br />

वह कल भी होगा। अगर बदलना हो तो आज<br />

बदलो, अयथा कल भी बन बदला रह जाएगा। कु छ करना हो तो अभी करो, इस ण<br />

करो। यक इसी ण से आनेवाले ण क शुआत है, जम है। इसी ण के गभ म<br />

आने वाला ण िछपा है।<br />

साध संग औ राम भजन बन, काल िनरंतर लूटै।।<br />

जीवन के इन सपन म ह खोए रहे तो मौत तुह लुटती ह रहेगी, लुटती ह रहेगी। तुम<br />

इकठा करोगे और मौत लुटगी। कतनी बार तो इकठा कया और कतनी बार मौत ने<br />

लूटा। कब चेतोगे? साध संग औ राम भजन बन...। साध संग का अथ है, जहां राज को<br />

याद करने वाले लोग इकठे हए ु ह;<br />

जहां उसक याद चल रह हो; जहां अय को छू ने<br />

का अिभयान चल रहा हो।<br />

साध-संग का अथ है, जहने कु छ-कु छ घूंट<br />

पीए ह; जह थोड़ मती आ गयी हो और<br />

आंख पर लाली छा गयी हो; जह जीवन जतना तुम जानते हो उससे यादा दखाई देने<br />

लगता हो; जनक आंख थोड़ पैनी हो गयी हो; जनक ितभा म थोड़ धार आ गयी हो;<br />

जो थोड़े से जागने लगे ह; करवट लेने लगे ह; सुबह जनक करब हो, नींद टटने ू को हो<br />

या टट ू गयी हो।<br />

ऐसे लोग क संगित म बैठो, यक जाग के पास बैठोगे तो यादा देर सो न पाओगे।<br />

सोय के पास बैठे तो बहत संभावना है क तुम भी सो जाओगे। सब चीज संामक होती ह।<br />

ु<br />

तुमने कभी खयाल कया, तुहारे पास बैठा हआ आदमी उबासी लेने लगे और तुह याद<br />

ु<br />

नहं आता कब तुमने भी उबासी लेनी शु कर द! तुहारे पास बैठा आदमी झपक लेने लगे<br />

और तुहार आंख म तंा उतरने लगती है। मनुय इतना टटा ू नहं है एक-दसरे<br />

ू से जुड़ा है।<br />

हमारे भाव एक-दसरे ू को आंदोिलत करते ह। चार लोग<br />

सन बैठे ह, तुम उदास आए थे,<br />

लेकन उनक हंसी, उनका आनंद और तुहार उदासी गयी; तुम भी हंस उठे । और चार<br />

लोग उदास बैठे थे, तुम हंसते चले आते थे, बड़े सन थे और उनक उदासी के घेरे म<br />

आए, उनक उदासी के ऊजा-े म आए, क तुम भी उदास हो गए। हम अलग-थलग नहं<br />

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ह, हम जुड़े-जुड़े ह। हम छोटे-छोटे प नहं है, हम महाप ह। हम एक-दसरे को<br />

ू<br />

आंदोिलत करते ह। हम एक-दसरे म वेश कए हए ह।<br />

ू ु<br />

इसिलए साध-संग का मूय है। जहां जागे लोग बैठे ह वहां बैठकर सोना मुकल हो<br />

जाएगा। जहां परमामा क याद चल रह हो वहां तुम भी धीरे-धीरे टटोलने लगोगे। और जहां<br />

इतनी मती परमामा क याद के कारण, तुहारे भीतर अभीसा न उठेगी क कब होगा<br />

वह सौभाय का दन क ऐसी मती मेर भी हो! दरया को देखकर तुहारा दल डांवाडोल<br />

नहं होगा? कबीर के पास बैठकर तुहारे भीतर का कबीरा जागने नहं लगेगा? मीरा क<br />

झनकार सुनकर तुम सोए ह रहोगे? तुम पथर नहं हो। कहते ह पथर क हई अहया<br />

ु<br />

भी राम के चरण के पश से पुनजीवत हो उठ। साध-संग! पथर भी ाणवान हो जाए,<br />

तुम ाणवान न हो सकोगे? तुम अहया से भी यादा पथर हो गए हो?<br />

नहं; इतना पथर न कोई कभी हआ है और न कभी हो सकता है। हमारा मौिलक प कभी<br />

ु<br />

भी न नहं होता। कतने ह सो जाओ, पत दर पत कतने ह दब जाओ, कतने ह खो<br />

जाओ, मगर हरा तुहारा है। और पत दर पत कतना ह खोया हो, तोड़ा जा सकता है।<br />

साध-संग का अथ है, जहां हथौड़ चल रह है; जहां पत तोड़ जा रह है; जहां बीज फू टे<br />

रहे ह, अंकु रत हो रहे ह; जहां नया-नया आवभाव हो रहा है: जहां तुम देखते हो अभी जो<br />

पास म सोया था वह जाग गया; अभी जो रोता था हंसने लगा; अभी जो उदास था नाचने<br />

लगा। तुहारे पैरा म ताल बजने लगेगा। तुहारे हाथ भी थपक देने लगगे।<br />

ीितकर संगीत को सुनकर तुहारे पैर िथरकते ह या नहं? ीितकर संगीत को सुनकर तुम<br />

ताली बजाने लगते हो या नहं? ीितकर संगीत को सुनकर तुम डोलने लगते हो या नहं?<br />

बस साध-संग उस परमामा का संगीत है। जहां गाया जा रहा हो...वसे अवसर को चूकना<br />

मत, यक वह एक संभावना है। पृवी परमामा से बहत खाली हो गयी है। अब तो कहं<br />

ु<br />

जहां ससंग चल रहा हो, जीवंत ससंग चल रहा हो, उन अवसर को चूकना मत। लेकन<br />

होता यह है क लोग मुदा तीथ पर इकठे होते ह। कभी वहां ससंग था, यह बात सच<br />

है, नहं तो तीथ ह न बनता। जब मोहमद जंदा थे तो काबा तीथ था; अब नहं है, अब<br />

िसफ पथर है। जब बु जीवत थे तो गया तीथ था; अब नहं है, अब तो िसफ याददात<br />

है। समय के पथर पर छोड़े गए अतीत के िच मा ह। बु तो जा चुके, पैर के िच ह।<br />

पैर के िच क तुम कतनी ह पूजा करो, तुम बु न हो जाओगे।<br />

यह तो बु के पास ह ांित घटती है। लेकन मनुय का दभाय ऐसा है क जब तक उसे<br />

ु<br />

खबर िमलती है, जब तक उसे खबर िमलती है, तब तक बु वदा हो जाते ह। जब तक<br />

वह अपने को राजी कर पाता है तब तक बु वदा हो जाते ह। जब तक वह आता है, आता<br />

है, आता है, टालता है, टालता है, फर कभी आता है--तब तक तीथ तो रह जाता है,<br />

लेकन तीथकर जा चुका होता है। फर पथर पूजे जाते ह। फर सदय तक पथर पूजे<br />

जाते ह।<br />

साध-संग! पथर क मूितय से साथ करने से कु छ भी न होगा।<br />

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और यान रखना परमामा महा कणावान है। ऐसा कभी भी नहं होता पृवी पर क दो-<br />

चार दए न जलते ह। ऐसा कभी नहं होता क कहं न कहं तीथ न जमता हो। ऐसा कभी<br />

नहं होता क कहं न कहं अमृत न झरता हो और कमल न खलते ह। जरा तलाशो! जरा<br />

पुरानी धारणाओं को छोड़कर तलाशो। िमल जाएगा तुह तीथ।<br />

और नहं तो मौत तुह लुटगी। तो साधुओं के साथ अपने को लुटा दो, नहं तो मौत तुह<br />

लुटगी। और साधुओं के साथ लुटने म तो एक मजा है, यक जो लुटता वह कू ड़ा-कक ट है<br />

और जो िमलता है वह हरे-जवाहरात ह। और मौत के हाथ लूटने म बड़ पीड़ा है। यक<br />

जसको हर-जवाहरात समझा था, था तो नहं, मौत उस कचरे को ले जाती है और हम<br />

तड़फाती छोड़ जाती है। इतना तड़फाता छोड़ जाती है और हर क ऐसी आस और ऐसी<br />

आकांा छोड़ जाती है--कचरा ह था, अगर हम तो हरा समझकर पकड़े थे--क हम मरते<br />

व उसी कचरे क फर आकांा को लेकर मरते ह और उसी आकांा म से हमारा नया<br />

जम होता है। फर दौड़ शु हो जाती है। तुमने एक बात खयाल क, मनोवैािनक कहते<br />

ह क रा जब तुम सोते हो, तो तुहारा जो आखर, बलकु ल आखर खयाल होता है,<br />

वह सुबह उठते व तुहारा पहला खयाल होगा। नहं सोचा हो तो योग करके देखना।<br />

इसम तो कसी मनोवैािनक से पूछने जाने क जरत नहं है। रात बलकु ल आखर-<br />

आखर जब नींद आने ह लगी, आने ह लगी, आ ह गयी--तब तुहारा जो आखर<br />

खयाल हो, जरा उसको खयाल म रख लेना। और सुबह नींद टट ू -टट ू , बस टट ू ह रह है,<br />

होश आया क नींद टट ू गयी--तण<br />

देखना, तुम चकत होकर हैरान हो जाओगे: जो<br />

आखर खयाल था रात वह पहला खयाल होता है सुबह। यह जंदगी का भी राज है। मरते<br />

व जो आखर खयाल होता है, वह गभ म जाते व पहला खयाल हो जाता है। यक<br />

मौत भी एक लंबी नींद है। अगर तुम धन क वासना म मरे तो बस पैदा होते से ह धन क<br />

वासना तुह फर पकड़ लेगी।<br />

इसिलए तो बचो-बच म इतना भेद है। कोई छोटा बचा ह संगीत म ऐसा कु शल हो<br />

जाता है क भरोसा नहं आता।<br />

बीथोवन के संबंध म कहा जाता है क जब वह सात साल का था तो उसने अपने देश के<br />

बड़े-बड़े संगीत महारिथय को पानी पला दया। सात ह साल का था! तो हम कहते ह<br />

ितभाएं ह ऐसे लोग को। लेकन सात साल के बचे म यह ितभा आकमक नहं है,<br />

यक न बाप संगीत थे, न मां संगीत थी, न घर का वातावरण संगीत का था। सच<br />

तो यह है बाप भी खलाफ था, मां भी खलाफ थी, परवार भी खलाफ था--क यह या<br />

दन-रात मचा रखा है। पढ़ना-खलाफ थी, परवार भी खलाफ था--क यह या दन-रात<br />

मचा रखा है। पढ़ना िलखना है क नहं? होमवक करना है क नहं? और बीथोवन है क<br />

लगा है अपनी धुन म! सात वष क उ म ऐसी अनूठ ितभा!<br />

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वैािनक के पास और सुलझाने समझाने का उपाय भी नहं है। लेकन हमारे पास उपाय है।<br />

यह मरते ण संगीत को ह पकड़कर मरा होगा। शायद मरते व भी इसके हाथ म वा<br />

रहा होगा। शायद मर जाने के बाद ह इसके हाथ से वा छना गया हो।<br />

कोई बचे जम से ह गणत हो जाते ह। कोई बचे जम से ह चोर हो जाते ह--जनके<br />

घर म सब कु छ है, जह चोर क कोई जरत नहं है; लेकन चोर बना उनसे नहं रहा<br />

जाता।<br />

म ववालय म िशक था। मेरे एक िम ोफे सर, बहत ु सन परवार के थे,<br />

लेकन<br />

एक ह लड़का और एक ह परेशानी--चोर! सब है। जो चाहए उसे देने को राजी ह। लड़के के<br />

िलए कार ले कर द है, लड़के को कमरा अलग दया हआ है। लड़के क सार सुवधाएं पुर<br />

ु<br />

क ह। और चुराए या वह छोट-मोट चीज! कसी का बटन ह चुरा ले। अगर तुहारा कोट<br />

टंगा है, बटन ह तोड़ ले। कसी के घर भोजन करने जाए, चमच ह खीसे म सरका ले।<br />

बलकु ल फजूल, जनका कोई आिथक मूय नहं है। समझा-समझा कर परेशान हो गए।<br />

वह माने ह नहं।<br />

मुझे उहने कहा क या करना?...ऐसे लोग से मेर दोती बड़े जद बन जाती है।<br />

उनके लड़के को मने कु छ कहा नहं, लेकन उससे मैी बनायी। वह कसी से कहना तो<br />

चाहता ह था, यक उसके िलए यह चोर नहं थी। दिनया ु इसे चोर समझती हो,<br />

वह<br />

इस म रस लेता था। वह कहता था, आज फलाने को धोखा दया, आज उसको राते पर<br />

लगा दया। जब मुझसे उसक दोती हो गयी तो वह मुझे आ आकर मुझे सुनाने लगा क<br />

बड़े बुमान बने ह, आज वाइस चांसलर के घर भोजन करने गया था, मार द चमच!<br />

बैठे रहे बुढ़ऊ सामने, समझ न पाए। नजर रखे हए ु थे,<br />

यक सबको पता है। मगर<br />

आखर म भी अपने काम म कु शल हं<br />

ू।<br />

म कहा: कभी तू अपनी चीज तो दखा, तूने कहां सब िछपा रखी ह! उसने कहा: मने एक<br />

अलमार म सब बंद कर रखी ह, आप आएं। और मय इितहास के !<br />

उसक अलमार देखने जैसी थी। छोट-छोट चीज--बटन, चमच, मािचस, िसगरेट क<br />

डबी, खाली डबी! सबके नीचे उसने िलख रखा था--ोफे सर का लड़का था--क इस फलां-<br />

फलां ोफे सर को फलां-फलां दन धोखा दया! इस-इस तारख को इस-इस समय उनक जेब<br />

से यह डबी मार द! उसने उनको सजा कर रखा था। उसने बड़े गौरव से मुझे दखाया।<br />

मरा होगा चोर। चोर के भाव म ह दबा-दबा मरा होगा। वह भाव साथ चला आया है। देह<br />

तो छू ट जाते है, िच साथ चला आता है। अब सब है, इसिलए चोर का कोई कारण नहं<br />

है, तो चोर के िलए नया कारण खोज रहा था, उस म रस ले रहा उसको भी अहंकार क<br />

पूित बना रहा है क देखो कसको धोखा दया!<br />

मने सुना है एक पादर ने--एक दयावान पादर ने--रात क सद म एक आदमी को जेलखाने<br />

से िनकलते देखा। वह अपनी कार से िनकल ह रहा था। कोई जेलखाने से कै द छोड़ा गया<br />

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था। उसे बड़ दया आ गयी। उसने गाड़ रोक और उसको कहा क तुह कहां जाना है? अब<br />

इतनी रात, तुम कहां राता खोजोगे? कतने दन जेल म रहे?<br />

उसने कहा: म कोई बारह साल जेल म था।<br />

कसीिलए जल गये?<br />

चोर के कारण जेल गया।<br />

बठाया उसने अपने पास। कहा: तुहारे घर छोड़ देता हं। ू कहां तुहारा घर है,<br />

तुह ले<br />

चलता हं। ू जब घर चोर को उतारने लगा वह--और<br />

चोर से उसने कहा क अगर कभी कोई<br />

जरत पड़े तो मेरे पास िनसंकोच चले आना, पास ह मेरा चच है। चोर को भी दया<br />

आयी। उसने खीसे से एक मनी बैग िनकाला और कहा क यह आपका मनी बैग। राते म<br />

मार दया उसने! उसी पादर का, जो उसके घर छोड़ने जा रहा है! मगर बारह वष का<br />

अयासी। उसने कहा क धयवाद-वप आपका यह मनी-बैग आपको वापस देता हं। तब<br />

ू<br />

पादर को खयाल आया, इसक जेब खाली है। पादर ने कहा: बारह वष जेल म रहे, फर<br />

भी चोर नहं छू ट। उसने कहा: छोड़ने क बात कर रहे हो, वहां महागु-घंटाल के साथ<br />

रहा, और सीख कर लौटा हं। ू वहां मुझसे भी पहंचे ु -पहंचे ु लोग थे। म तो कु छ भी नहं था,<br />

एक िसखड़ समझो। उहने मुझे और कलाएं िसखा द ह। अब देखना है क कोई मुझे कै से<br />

पकड़ाता है!<br />

मनुय का िच अदभुत है, दंड से भी कु छ अंतर नहं पड़ते। म नहं सोचता क नक को<br />

जो लोग लौटते हगे, अगर कहं कोई नक है और दंड पाकर लौटते हगे, तो कु छ सुधर<br />

कर लौटते हगे। कसी पुराण म ऐसा उलेख तो नहं है, क नक से कोई लौटा और सुधर<br />

कर लौटा। नरक से लौटता होगा तो और महा शैतान होकर लौटता होगा यक नक म तो<br />

एक से एक सदगु, एक से एक पहंचे हए पुष उपलध होते हगे<br />

ु ु --जो उसक भूल-चूक<br />

बता देते हगे क कहां-कहां तू भूल-चूक कर रहा था, य पकड़ा गया! अब दबारा नहं<br />

ु<br />

पकड़ाएगा।<br />

पादर को तो छोड़ दो, नक म चोर को अगर परमामा भी िमल जाए तो वह जेब काट ले।<br />

इस िसफत से काटे क उसको भी पता न चले। िसफत का भी मजा हो जाता है। कु शलता<br />

का भी मजा हो जाता है। खयाल रखना, इस जंदगी म तुम जो भी पकड़े रहते हो, जरा<br />

गौर कर लो एक बार, उस म साथक कु छ है?<br />

मामरए फना क कोताहयां तो देखो।<br />

इक मौत का भी दन है दो दन क जंदगी म।।<br />

और जरा यह भी तो गौर करो, असार संसार क संकणता तो देखो! मामूरएफना क<br />

कोताहयां तो देखो! इस असार संसार क कं जूसी पर भी तो खयाल करो। इक मौत का भी<br />

दन है दो दन क जंदगी म! यह दो दन क तो जंदगी है कल, उस मग एक मौत का<br />

दन भी तय है। और बाक एक दन तुम यथ म गंवा दोगे। राम-भजन कब होगा? साध-<br />

संगत कब होगी?<br />

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अंधकारमय दगम ु पथ है,<br />

अंत कहा है?<br />

म या जानूं!<br />

म जीवन क योित जलाये,<br />

आशाओं के दप िलए।<br />

चलता ह जाता हं ू ितदन,<br />

सांस म उलास िलए।<br />

सदा पराजय गित बनी है,<br />

जीत कहां है?<br />

म या जानूं!<br />

अनजाना हर माग-दशक<br />

इंिगत करता मुझको मौन।<br />

नहं जानता म कसका हं<br />

ू,<br />

नहं जानता मेरा कौन?<br />

नेह कया है मने के वल,<br />

रत कहां है?<br />

म या जानूं!<br />

गहन साधना अचन पूजन,<br />

धूप दप नैवे नहं।<br />

िनछल उर ह मेरा वंदन,<br />

मन-वाणी म भेद नहं।<br />

कम साधना मेरा जीवन,<br />

कित कहां है?<br />

म या जानूं!<br />

दर ू लय क करण देखकर,<br />

बढ़ते मेरे याकु ल पांव।<br />

दर ू से म रहा अपरिचत,<br />

तम म डू बा था हर गांव।<br />

मने तो चलना सीखा है,<br />

नीित कहां है?<br />

म या जानूं!<br />

शूल ने िसखलायी गरमा,<br />

कर सुमन पर शात छांह।<br />

फू ल ने बतलायी महमा,<br />

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पाकर शूल क हर राह।<br />

छलना ह सौगात मनोहर,<br />

ीित कहां है?<br />

म या जानूं!<br />

एक अंधेरा है!<br />

अंधकारमय दगम ु पथ है,<br />

अंत कहां है?<br />

म या जानूं!<br />

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टटोलते हम चल रहे ह। अंधेरे म जो भी िमल जाता है, बटोरते हम चल रहे ह। न पता है<br />

क या हम बटोर रहे, न पता है क य हम बटोर रहे ह, न पता है कहां हम जा रहे,<br />

न पता है य हम जा रहे ह, न पता है क म य हं। न हमार ीित के लय का कोई<br />

ू<br />

हम बोध है, न हमार ित के अथ का हम कोई बोध है। कु छ हो रहा है। क लहर पर जैसे<br />

लकड़ का टकड़ा ु ितर रहा हो,<br />

ऐसे हम ितर रहे ह। न कोई दशा है न कोई गंतय है। ऐसी<br />

थित म तुमने जो भी पकड़ रखा है, इस अंधेपन म और अंधेरे म तुमने जो भी संह कर<br />

रखा है--<br />

मौत लूट लेगी।<br />

साध संग औ राम भजन बन, काल िनरंतर लूटै।।<br />

मल सेती जो मल को धोवै, सो मल कै से छू टै।।<br />

और लोग मल से ह मल को धोने म लगे ह। बीमार से ह बीमार को सुधारने म लगे ह।<br />

तुम सोचते हो क धन कम है, इसिलए परेशान हो रहे हो; थोड़ा और यादा हो जाए तो<br />

ठक जो जाएगा। जनके पास थोड़ा और यादा है उनसे भी तो पूछ लो! वे सोच रहे ह:<br />

थोड़ा और यादा हो जाए तो ठक हो जाएगा। और भी ह जनके पास थोड़ा और यादा है,<br />

उनसे तो पूछ लो! लोग ऐसे ह सोचते ह: और थोड़ा यादा हो जाए। इतने से न हआ<br />

ु , और<br />

यादा से कै से हो जाएगा? लाख जसके पास ह वह बेचैन है--उतना ह बेचैन है जतना<br />

करोड़ जसके पास ह। जसके पास लाख ह वह करोड़ चाहता ह, जसके पास करोड़ है वह<br />

अरब चाहता है। बेचैनी का अनुपात एक जैसा है। तुम मल से मल को धोने म लगे हो।<br />

मल सेती जो मल को धावै, सो मल कै से छू टै।।<br />

ेम का साबुन नाम का पानी, दोय िमल तांता टटै।। ू<br />

दो चीज जमा लो तो यह तांता टट ू जाए,<br />

यह चौरासी का तांता टट ू जाए। यह भटकाव िमटे।<br />

ेम का साबुन नाम का पानी! दरया तो सीधे-सादे आदमी ह, तो गांव के तीक म बोल<br />

रहे ह। मगर तीक यारे ह और साथक ह, उदबोधक ह। ेम का साबुन, नाम का पानी!<br />

सबसे महवपूण बात खयाल म रखनी यह है क जब तुम साबुन से कपड़ा धोते हो तो िसफ<br />

साबुन से कपड़ा धोने से कु छ नहं होगा; फर साबुन को भी पानी से धोना पड़ेगा। इसिलए<br />

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अके ला ेम काफ नहं है। ेम को परमामा से जोड़कर ाथना बनाना पड़ेगा। नहं तो साबुन<br />

तो खूब रगड़ ली कपड़े पर, फर पानी से धोया नहं, तो साबुन ह गंद हो जाएगी।<br />

और ऐसा ह हआ ु है। म तो ेम के िनरंतर गुणगान गाता हं। ू मेर<br />

बात को गलत मत<br />

समझ लेना। ेम महवपूण है। साबुन बड़ा जर है। अके ले पानी से ह धोते रहोगे, तो भी<br />

कु छ नहं होने वाला है। साबुन जर है, तो ह कटेगा मैल। लेकन जब साबुन मैल काट दे<br />

तो मैल को भी धो डालना है आर साबुन को भी धो डालना है।<br />

दिनया म दो तर<br />

ु ह के लोग ह। जनको तुम संसार कहते हो वे ेम का साबुन तो खूब रगड़<br />

रहे ह, रगड़े ह जा रहे ह, कपड़े का तो पता ह नहं रहा है, साबुन क पत पर पत जम<br />

गई ह। और तुम संयासी समझते रहे हो अब तक, पुराने ढब के संयासी, साबुन को तो<br />

छू ते ह नहं, साबुन क तो दकान ु देखकर ह एकदम भागते ह। साबुन नहं,<br />

वे पानी से ह<br />

रगड़ रहे ह। अके ले पानी से जम-जम क जमी हई ु कचड़ और जम-जम<br />

का जमा<br />

हआ मैल कटने वाला नहं है।<br />

ु<br />

इसिलए दिनया ु म धम पैदा नहं हो पाया। आधे-आधे<br />

लोग ह। कु छ लोग साबुन रगड़ रहे ह;<br />

उन से साबुन ह साबुन क बास आती है, अगर कोई वछता नहं मालूम होती। और एक<br />

तरफ लोग पानी से ह धो रहे ह; साबुन क तो बास नहं आती, अगर अके ले पानी से धोने<br />

से जमा हआ ु , जम-जम का जमा हआ ु मैल कटता नहं है।<br />

मेरा संयासी दोन का उपयोग करे, यह मेर आकांा है। ेम के साबुन से धोओ जीवन<br />

को, लेकन राम के जल को भूल मत जाना। और जस दन ेम का साबुन और राम-नाम<br />

का जल दोन का तुम उपयोग कर लेते हो, उस दन ाथना फलती है। जब ेम राम से<br />

जड़ जाता है तो ाथना बन जाता है। और ाथना पव करती है।<br />

भेद अभेद भरम का भांडा, चौड़े पड़-पड़ फू टै।।<br />

और फर तुहारे ये िसांत इयाद--भेद और अभेद, ैत-अैत, ैताैत, न मालूम कतने<br />

िसांत! इन सबका भांडा फू ट जाता है। फर तो कोई िसांत क चचा करने क जरत नहं<br />

रह जाती है। यह तो अनुभवहन सैांितक अनुमान म पड़े रहते ह। सब िसांत अनुमान ह,<br />

अनुभव नहं। और का कोई िसांत म ढाला नहं जा सकता है।<br />

खुशी के सैकड़ खाके बनाए अहले-दिनया ने।<br />

ु<br />

अगर जब खो-खाल उभरे वह तसवीरे गम आई।।<br />

आदमी ने बड़ तवीर बनाई ह, सैकड़ खाके और नशे बनाए ह--आनंद कै सा होना<br />

चाहए, परमामा कै सा है, आमा कै सी है, मो कै सा है। मगर जब भी तुम जरा कु रेद<br />

कर देखोगे तो तुम पाओगे वहां कु छ भी नहं है।<br />

खुशी के सैकड़ खाके बनाए अहले-दिनया ने।<br />

ु<br />

अगर जब खो खाल उभरे वह तसवीरे गम आई।।<br />

हर चीज के पीछे तुम आदमी के दख ु को िछपा हआ ु पाओगे,<br />

जरा कु रेदो। चमड़ के बराबर<br />

भी मोटाई नहं है तुहारे िसांत क; जरा कु रेदो और खून झलक आएगा, दख का बहने<br />

ु<br />

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लगेगा। आदमी दखी ु है और दख ु को बचाने के िलए न मालूम कै से -कै से िसांत का आवरण<br />

लेता है। लोग दख ु के कारण परमामा को मानते ह,<br />

नक को मानते ह, वग को मानते<br />

ह, पाप-पुय को मानते ह, जम पुन जम को मानते ह। दख के कारण। सुख म सब<br />

ु<br />

भूल जाते ह।<br />

तुम जरा सोचो, तुहार जंदगी म कोई दख ु न हो तो परमामा को याद करोगे ? मौत भी<br />

छन ली जाए तुमसे, तुम परमामा को याद करोगे? कसिलए याद करोगे? य याद<br />

करोगे? अब वैािनक कहते ह क जद ऐसी घड़ आ जाएगी क आदमी के शरर को मरने<br />

क जरत न रहेगी। यक आदमी के शरर के अलग-अलग हसे लाटक के बनाए जा<br />

सकते ह। और जब एक हसा खराब हो जाए, तुहारा फे फड़ा खराब हो गया, उसको<br />

िनकाल कर लाटक का बठा दया। चले गए गैरज म, बढ़ा दए गए मशीन पर, लगा<br />

दया लाटक का। अब लाटक का फे फड़ा कभी खराब नहं होगा। धीरे-धीरे यह हालत हो<br />

जाएगी क सभी लाटक का हो जाएगा, यक लाटक क एक खूबी है क खराब नहं<br />

होता । और फर बदला जा सकता है आसानी से। और राता है।<br />

अगर तुहार जंदगी ऐसी लाटक क जंदगी हो गयी, चाहे तुम हजार साल रहो और<br />

तुहार जंदगी म कोई दख भी नहं होगा। अगर दय तक लाटक का होगा तो पीड़ा<br />

ु<br />

कहां, दख ु कहां?<br />

तुम एक सुंदर<br />

मशीन हो जाओगे। फर परमामा क याद कोई करेगा?<br />

फर कोई पूजा करेगा? फर कोई जरत न रह जाएगी। लेकन वह दन कोई सौभाय का<br />

दन न होगा। अभी आदमी पशु है, तब आदमी पशु से भी नीचे िगर जाएगा--मशीन हो<br />

जाएगा। उठना है पशु से ऊपर।<br />

वान मनुय को पशु से नीचे िगराए दे रहा है। धम क अभीसा है मनुय को पशु के<br />

ऊपर उठाने क आगे के सू इसी क बात कर रहे ह।<br />

भेद अभेद भरम का भांड़ा, चौड़े पड़-पड़ फू टै।<br />

खुले मैदान म सब भदे-अभेद िगर जाएंगे, न कोई हंद रहेगा न कोई मुसलमान रहेगा। जरा<br />

ू<br />

ेम का साबुन िघसो और जरा राम के जल से उसे धोओ।<br />

नींद भर हम सो न पाए जंदगी भर म।<br />

इस फकर म, दाग न लग जाए चादर म।<br />

इस कदर कमरा सजाया है उसूल से।<br />

पांव फै लाना मना अब हो गया घर म।<br />

हाथ अपना कलम अपनी, कमत अपनी।<br />

िलख िलया जैसा बन हमने मुकर म।<br />

खुद सजायी ह अदब क महफल हमने।<br />

जोश क बात जहां होतीं दबे वर म<br />

खोलकर कु छ कह न पाने का नतीजा है।<br />

आग, पानी से िनकलती है समंदर म।<br />

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इस कदर कमरा सजाया है उसूल से।<br />

पांव फै लाना मना अब हो गया घर म।<br />

नींद भर हम सो न पाए जंदगी भर म।<br />

इस फकर म, दाग न लग जाए चादर म।<br />

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लोग िसांत को सहाल रहे ह, जंदगी को नहं! कोई जैन है, कोई हंद है<br />

ू , कोई बौ है,<br />

कोई मुसलमान है। लोग िसांत को सहाल रहे ह, जैसे आदमी िसांत को जीने के िलए<br />

पैदा हआ है।<br />

ु<br />

नहं-नहं; ठक बात उट है: सब िसांत तुहारे काम के िलए ह, तुम कसी िसांत के<br />

िलए नहं हो। सब शा साधन ह, तुम साय हो।<br />

चंडदास का--एक अदभुत फकर का और कव का--यह वचन ीितकर है। साबार ऊपर<br />

मानुस सय, ताहार ऊपर नाहं! मनुय का सय सब से ऊपर है, उसके ऊपर कोई सय,<br />

कोई शा, कोई िसांत नहं। सब तुहारे िलए है, यह याद रहे। कभी भूल कर भी यह<br />

मत सोचना क तुम कसी और चीज के िलए हो। जस दन तुमने ऐसा सोचा उसी दन तुम<br />

गुलाम हए ु , उसी दन तुहार आमा पितत हई। ु<br />

गुरमुख सद गहै उर अंतर, सकल भरम से छू टै।।<br />

इस सारे जाल से छू टना हो तो जहां कोई योितमय पुष हो, उसके शद को मौन से अपने<br />

दय म पी लेना।<br />

गुरमुख सद गहै उर अंतर...! बु से मत सुनना। बु से सुनना तो सुनने का धोखा है।<br />

दय से सुनना। बु को तो सरका कर रख देना एक तरफ। बु से ह हल होता होता तो<br />

तुमने हल कभी का कर िलया होता। नहं होता बु से हल, अब तो इसे सरका कर रख<br />

दो। अब तो दय से सुन लो! अब तो ीित भर आंख से सुन लो! अब तो ाथना भरे भाव<br />

से सुन लो!<br />

गुरमुख सद गहै उर अंतर, सकल भरम से छू टै।।<br />

साध-संगत बैठ जाए, मतवाल से िमलना हो जाए, कोई जो जाग गया है, उसके हाथ म<br />

तुहारा हाथ पड़ जाए, तो इससे बड़ा और कोई सौभाय नहं है। हाथ को छु ड़ाकर भागना<br />

मत।<br />

राम का यान तू धर ानी, अमृत का मह बूटै।।<br />

बरसेगा अमृत, जर बरसेगा! राम का यान तू घर रे ानी, अमृत का मह बूटै! खूब<br />

बरसेगा, घनघोर बरसेगा। मगर राम का यान! राम का यान उहं से िमल सकता है,<br />

जह राम का यान हआ हो। वह तो<br />

ु<br />

हम दे सकते ह जो हमारे पास हो। म तुह वह दे<br />

सकता हं ू जो मेरे पास है;<br />

वह तो नहं जो मेरे पास नहं है। जसके भीतर राम कट हआ ु<br />

हो, उससे ह तुहारे भीतर सोए हए राम को पुलक जागने क आ सकती है।<br />

ु<br />

जन दरयाव अरप दे आपा, जरा मरन तब टटै।। ू<br />

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और अगर िमल जाए कोई गु तो बस एक काम तुह करना है, अपने आप को सप देना,<br />

समपत कर देना, अपत कर देना।<br />

जन दरयाव अरप दे आपा, जरा मरन तब टटै।। ू<br />

उसी ण म, जस ण तुम कसी सदगु को अपना सारा आपा सप दोगे, अपना अहंकार<br />

सप दोगे, जम-मरण छू ट गया! फर न दबारा ु पै दा होना है, फर न दबारा ु मरना है। फर<br />

तुम शात के मािलक हए। फर शात का सााय तुहारा है।<br />

ु<br />

जब नयन म बदली छायी,<br />

गीत म सावन िघर आया।<br />

शूल से बंध गए फू ल के,<br />

आंचल क कसकन जब हार।<br />

मौन यथाओं क झंझा म,<br />

उपवन क जड़ता भी भार।<br />

दबी आग जब सुलग उठ फर,<br />

उपवन को पतझर मन भाया।<br />

वरह वेदना छलक पड़ तो,<br />

अधर को छू लय तणाई<br />

नयन मथल से सूखे पर,<br />

भरे िसंधु को लाज न आयी।<br />

घाव कसी ने मसल दए जब,<br />

सोया उपीड़न बौराया।<br />

छलने लगीं महाछलना सी,<br />

घूंघट<br />

पट क मृद ु मुकान।<br />

खली सुधाकर मत लेकन,<br />

के वल दो पल को बहलाने।<br />

मूक हई ु जब मन क वंशी,<br />

तभी कोकला ने दोहराया।<br />

बहक उठं उर तरल तरंग,<br />

उमस भर आयी अंगड़ाई।<br />

शुक कपना मचल उठ जब,<br />

उलझन क आंधी बौराई।<br />

अपनी ह सांस ने छल से,<br />

अपना कहकर फर ठु कराया।<br />

छू ट गए हाथ के बंधन,<br />

महद सूखी नहं सुखाए। चाह तो लूट गयीं अजाने,<br />

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मांग रह िसंदर सजाए।<br />

ू<br />

दर ू बजी भी शहनाई,<br />

दपण ने फर पास बुलाया।<br />

मूक हई ु जब मन क वंशी,<br />

तभी कोकला ने दोहराया।<br />

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कोकल तो गा रह है, अगर तुहारे मन का शोरगुल इतना है क सुनाई नहं पड़ता। तुम<br />

जरा चुप हो जाओ, शांत हो जाओ, मौन हो जाओ और कोकल क आवाज तुह भर दे।<br />

सदगु तो बोलते रहे ह, बोलते रहगे, मगर तुम चुप हो जाओ जरा, तुम चुप हो कर सुन<br />

लो जरा!<br />

दर ू बजी जब भी शहनाई,<br />

दपण ने फर पास बुलाया।<br />

शहनाई तो बजती रह है। ऐसा कभी नहं हआ क पृवी पर कहं न कहं कोई दया न जला<br />

ु<br />

हो, कोई कमल न खला हो। इसिलए जनके मन म सच म ह खोज है वे पा ह लेते ह।<br />

वे अनंत-अनंत याा करके पा लेते ह, वे दरू -दर देश से याा करके पा लेते ह। खोज है तो<br />

ू<br />

सरोवर िमलकर रहेगा, यक इस जगत का एक आयंितक िनयम है क यास के पहले<br />

ह जल बना दया जाता है।<br />

तुम देखते हो, अभी-अभी चार तरफ बगीचे म िचड़य ने घसले बनाने शु कर दए। दन<br />

करब आ रहे ह। अभी िचड़य को कु छ पता नहं; लेकन दन करब आ रहे ह, जब अंडे<br />

हगे, जब बचे हगे। घसले बनने शु हो गए ह! अभी बच का आगमन नहं हआ है।<br />

ु<br />

अभी िचड़य को कु छ पता भी नहं क या होने वाला है। अगर घसले बनने शु हो गए।<br />

ऐसा ह है जगत का आयंितक िनयम। तुहारे भीतर यास है, उसके पहले जल िनिमत है।<br />

बस तुम अपनी यास को जगा लो। सरोवर कहं पास ह पा लोगे। अगर गहन यास होगी<br />

तो सरोवर खुद तुह खोजता हआ चला<br />

ु आएगा। अगर गाढ़ होगी यास तो जलधार तुह<br />

खोज लेगी।<br />

राम नाम नहं हरदे धरा। जैसा पसूवा तैसा नरा।।<br />

दरया कहते ह: अगर राम नाम दय म नहं है तो पशु म और मनुय म फर कोई भेद<br />

नहं है। बहत भेद कए गए ह<br />

ु<br />

, बहत ु सी परभाषाएं क गई ह। अरतु ने परभाषा<br />

क है<br />

क मनुय बुमान ाणी है। भेद है बु का। वह परभाषा अब गलत हो गया, यक<br />

वैािनक ने बहत खोज क है और पाया क पशुओं म भी बु है। पशुओं क तो बात छोड़<br />

ु<br />

दो, पौध म भी बु है। और अगर कोई अंतर है तो माा का है, गुण का नहं है। और<br />

माा का अंतर कोई अंतर होता है क कसी म पाव भर है और कसी म डेढ़ पाव है! माा<br />

का अंतर कोई अंतर नहं होता।<br />

और अभी तो बड़े संदेह पैदा कर दए ह एक वैािनक ने। जान िलली ने डोफन नाम क<br />

मछिलय पर वष तक काम कया है और उसका कहना है क डोफन के पास मनुय से<br />

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यादा बड़ा मतक है। कई अथ म बात सह है। मनुय के पास सबसे यादा बड़ा<br />

मतक है। पशुओं म हाथी बहत ु बड़ा है,<br />

लेकन उसके पास भी मतक इतना बड़ा नहं<br />

है, देह ह बड़ है। अगर डोफन के पास मनुय से यादा बड़ा मतक है। जान िलली<br />

क खोज यह कहती ह क इस बात क संभावना है क कु छ बात डोफन को पता है जो<br />

हमको नहं ह--जो हमको पता हो ह नहं सकतीं, यक उसके पास बहत बड़ा मतक<br />

ु<br />

है।<br />

अभी तो यह परकपना है, अगर मतक का बड़ा होना तो ामाणक है। और अगर बड़े<br />

मतक से कु छ तय होता है तो हो सकता है डोफन को कु छ बात पता ह जो हम पता<br />

नहं ह। डोफन अके ली मछली है जो हंसती है। और डोफन अके ली मछली है जसको<br />

भाषा िसखायी जा सकती है; जससे संके त म बातचीत क जा सकती है।<br />

फर यह तो एक छोट सी पृवी है। ऐसी वैािनक कहते ह कम से कम पचास हजार<br />

पृवय पर जीवन है। पता नहं कै सा-कै सा वकास हआ ु होगा!<br />

कतनी िभन-िभन बु क<br />

अिभययां हई हगी।<br />

ु<br />

नहं; अरतु का मापदंड पुराना पड़ गया, काम नहं आता अब। पशुओं म भी बु है,<br />

कम होगी। वृ म भी बु है। और कौन तय करे क कम है? यक अभी हम वृ क<br />

पूर बु को जानते भी नहं ह, हमारे पास उपाय भी नहं ह। अभी नयी-नयी खोज दो चार<br />

वष के भीतर हई ु ह,<br />

जनने पहली दफे महावीर जैसे य क वाणी को वैािनक आधार<br />

दे दए।<br />

तुम बैठे हो, कोई आदमी छु रा लेकर तुहारे पास आता है, छु रा िछपाए हए है। ऐसे जय<br />

ु<br />

राम जी करता है, मुख म राम बगल म छु र! तुह पता भी नहं चलता क यह आदमी<br />

मारने आया है। लेकन तुम जानकर हैरान हो जाओगे क वृ को पता चल जाता है। वृ<br />

को तुम धोखा नहं दे सकते--मुख म राम, बगल म छु र! वृ को धोखा नहं दे सकते।<br />

वृ पर जो योग हए ु ह,<br />

वे बड़े हैरानी के ह। अगर कोई आदमी वृ काटने क इछा<br />

लेकर जंगल म आता है तो सारे वृ को खबर हो जाती है। इछा से! उसने चाहे अपनी<br />

कु हाड़ िछपा रखी हो, िसफ भाव और वचार उसके तरंिगत हो जाते ह और वृ पकड़ लेते<br />

ह।<br />

इतना ह नहं, और एक हैरानी का वैािनक ने योग कया है क वृ क तो बात छोड़<br />

दो, जब तुम जंगल म िशकार करने जाते हो, वृ को काटते ह नहं, कोई िसंह को<br />

मारता है, कोई हरने को मारता है--तब भी वृ उदास और दखी<br />

ु हो जाते ह, पीड़त हो<br />

जाते ह। तो कौन कहे आदमी के पास यादा बु है! कै से कहे? आदमी तो मार रहा है,<br />

पु-पी काट रहा है। भोजन के िलए इंतजाम बना रहा है। और वृ रो रहे ह और वृ कं प<br />

रहे ह और पीड़त हो रहे ह। कसके पास यादा बु है?<br />

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और वृ तुहारे भाव क तरंग को पकड़ लेते ह। तुम खुद नहं पकड़ पाते मनुय क<br />

भावरंग को। कोई भी तुह धोखा दे जाता है। अगर भावरंग पकड़ सको तो धोखा कै से<br />

देगा?<br />

ायड ने कहं कहा है: अगर दिनया के लोग चौबीस घंटे के िलए एक बात तय कर ल क<br />

ु<br />

चौबीस घंटे म झूठ बोलगे ह नहं तो उसका कु ल परणाम इतना होगा क दिनया म सब<br />

ु<br />

दोतयां टट ू जाएंगी। सब तलाक हो जाएंगे। और यह बात सच है,<br />

चौबीस घंटे अगर तुम<br />

झूठ बोलो ह नहं, बलकु ल सच-सच ह बोलो जैसा तुहारे दय म है...क पी को कह दो<br />

क माता जी, तुह देखकर मुझे भय लगता है, क अब मुझे बशो, क अब मुझे छु ट<br />

दो! क बेटा बाप से कह दे क अब नाहक य जीए जा रहे हो, कस काम के हो? पी<br />

पित से कह दे क यह सब बकवास है क पित परमेर है, तुम जैसा बेहदा और फू हड़<br />

ू<br />

आदमी देखा ह नहं! लंपट हो तुम, परमामा नहं! उचके हो!...अगर हर य हरेक से<br />

वह कह दे जो उसके भाव म है, तो यह बात सच मालूम पड़ती है क शायद ह कोई<br />

दोती टके ।<br />

मुला नसन एक दन मुझसे कह रहा था। मने कहा: बहत दन से तुहारे दोत फरद<br />

ु<br />

दखाई नहं पड़ते! उसने कहा: नौ साल हो गए। बोलचाल बंद है।<br />

हआ ु या?<br />

कहा क नौ साल पहले हमने एक दन तय कया क हम इतने गहरे दोत ह, अब एक-<br />

दसरे ू के साथ ईमानदार बरतगे,<br />

सच-सच कहगे। बस उसी दन से बोल-चाल बंद हआ ु है सो<br />

नौ साल हो गए, हम शल नहं देखते एक-दसरे ू क। उसने भी सच बोल दया,<br />

मने भी<br />

सच बोल दया।<br />

यहां सारा जगत झूठ पर चल रहा है। झूठ पर दोती है। झूठ पर ववाह है। झूठ पर ेम है।<br />

झूठ पर सारे संबंध ह। सब झूठ का फै लाव है। काश, मनुय म इतनी ितभा हो क दसरे<br />

ू<br />

के भाव पढ़ ले, फर या होगा? तो तुम जब कह रहे हो मेहमान से क आइए, वराजए,<br />

पलक पांवड़े बछाता हं<br />

ू! और भीतर कह रहे हो कमबत, तुह आज का दन सूझा आने के<br />

िलए! अगर वह भाव पढ़ ले...! वृ पढ़ लेते ह। कौन यादा बुमान है?<br />

नहं; अरतु क परभाषा तो गयी। अब उसका कोई मूय नहं है। अब तो दरया क<br />

परभाषा यादा महवपूण मालूम पड़ती है। और संत ने सदा यह परभाषा क है क पशु<br />

म और मनुय म एक ह फक है: राम-नाम का मरण। भ कहो, यान कहो। कोई पशु<br />

यान नहं करता और कोई पशु भ नहं करता। बस इतना ह फक है। मनुय भ करता<br />

है, यान करता है। मनुय अपना अितमण करने क अभीसा रखता है। ऊपर जाना होता<br />

है। य के पार अय को छू ना चाहता है। सारे रहय के अवगुंठन<br />

खोलना चाहता है,<br />

घूंघट<br />

उठाना चाहता है कृ ित के मुंह<br />

पर से--ताक देख ले क भीतर कौन िछपा है! कौन है<br />

असली मािलक! उस मािलक से दोती बांधना चाहता है।<br />

राम नाम नहं हरदे धरा। जैसा पसुवा तैसा तैसा नरा।।<br />

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पसुवा नर उम कर खावै। पसुवा तो जंगल चर आवै।।<br />

तो आदमी और जंगली पशु म जंगल जाने वाले पशु म, जंगल म चर कर लौट आने वाले<br />

पशु म भेद या है? पसुवा नर उम कर खावै! इतना ह फक कर सकते हो बहत क<br />

ु<br />

आदमी ऐसा पशु है जो उम करके खाता है, और पशु ऐसे पशु ह जो जंगल से चर कर आ<br />

जाते ह। यह को बड़ गुणवा नहं हई आदमी क। यह तो ऐसे ह लगा क इससे तो पशु<br />

ु<br />

ह बेहतर ह। तुमको मेहनत करके खानी पड़ती है, वे बना मेहनत खा लेते ह। तुह खुद ह<br />

िचंता उठानी पड़ती है, वे िनत ह। यह तो कोई बड़ महा न हई ु , कोई उपलध न हई। ु<br />

पसुवा आवै पसुवा जाय। पशु पैदा होते ह, पशु मर जाते ह। ऐसे ह तुम पैदा होते हो तुम<br />

मर जाते हो। तुहारे जमने और मरने के बीच म ऐसे घटता है जसको तुम कह सको क<br />

जो पशु को जीवन म नहं घटा और मेरे जीवन म घटा? हां, कोई बु कह सकता है क म<br />

ऐसे ह आया और ऐसे ह नहं गया। आया कु छ था, जाता कु छ हं। जो आया था वह जाता<br />

ू<br />

नहं हं। जो जाता है वह आया नहं था।<br />

ू<br />

ऐसा तो कोई बुपुष कह सकता है क म जागकर जा रहा हं<br />

ू: सोया आया था, मुदा आया<br />

था, जीवंत होकर जा रहा हं। ू नया जीवन,<br />

शात जीवन लेकर जा रहा हं ू! अमी झरत,<br />

बगसत कं वल! झर गया अमृत, मेरा कमल खल गया है। आया था तो कमल का भी पता<br />

नहं था, कचड़ ह कचड़ था। जाता हं ू तो कमल जाता हं। ू आया तो अमृत क कौन कहे,<br />

जहर ह जहर से लबालब था। अब अमृत का झरना होकर जाता हं।<br />

ू<br />

कह सकोगे तुम ऐसा जाते व क जैसे आए थे, वैसे ह जा रहे हो या जैसे आए थे उससे<br />

कु छ नये होकर जा रहे हो? इतना ह फक है। नहं तो पशु भी आए, पशु भी गए।<br />

पसुवा चरै व पसुवा खाय। पशु भी खाता है, पशु भी पचाता है। पशु भी जवान होता है,<br />

बूढ़ा होता है ेम भी करता, ववाह भी करता है, बचे भी पैदा करता है। तुम भी सब वह<br />

करते हो। लड़ता भी, झगड़ता भी,र ् ईया भी करता,<br />

वैमनय भी करता, दोती-दमनी ु<br />

सब करता; फक या है?<br />

दरया ठक कहते ह: फक एक है। पशु राम का मरण नहं करता। उसके दय म कभी<br />

आकाश क अभीसा पैदा नहं होती। वह पृवी पर ह सरकता रहता है। तार को छू ने क<br />

आकांा नहं जगती। उसके भीतर अितमण क अभीसा नहं है।<br />

राम यान याया नहं माई। जसने अपने भीतर राम का यान नहं जगाया, जनम गया<br />

पसुवा क नाई! वह समझ ले क वह कु े क मौत जया, कु े क मौत मरा। उसक<br />

जंदगी भी मौत है, इसिलए म कह रहा हं<br />

ू: कु े क मौत जया और कु े क मौत मरा।<br />

कहा मने कतना है गुल का सबात?<br />

कली ने यह सुनकर तबसुम कया।।<br />

देर रहने क जा नहं यह चमन।<br />

बूए-गुल हो सफरे-बुलबुल हो।।<br />

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कहा मने कतना है गुल का सबात? मने पूछा क फू ल कतनी देर टके गा। इसका थाियव<br />

कतना है? कहा मने कतना है गुल का सबात? इसका जीवन कतना है? कली ने यह<br />

सुनकर तबसुम कया। कली यह सुनी और हंसी और मुकु रायी। देर रहने क जा नहं यह<br />

चमन। और कली ने कहा: यहां कोई देर टकता नहं। देर रहने क जा नहं यह चमन। यह<br />

बगीचा कोई थान नहं क जहां ठहर जाओ। यह सराय है, िनबास नहं। बूए-गुल हो,<br />

सफरे-बुलबुल हो। फर चाहे फू ल होओ तुम और चाहे बुलबुल का गीत होओ, कु छ फक नहं<br />

पड़ता। यहां सब णभंगुर है। अगर णभंगुर म ह जए तो पशु क तरह जए। अगर<br />

शात क तलाश शु हए तो तुहारे भीतर मनुयव का जम हआ।<br />

ु ु<br />

इसिलए सचे मनुय को हमने ज कहा है, दबारा जमा। जीसस ने िनकोडेमस से कहा<br />

ु<br />

था: जब तक तेरा फर से जम न हो जाए, इसी जम म, तब तक तू मेरे भु के राय<br />

म वेश न पा सके गा। हम तो ाण को ज कहते ह। सभी ज ाण होते ह, लेकन<br />

सभी ाण ज नहं होते। यह खयाल रखना। सभी ज ाण होते ह। मोहमद ाण<br />

ह यक ज ह। और ाइट ाण ह यक ज ह। और महावीर ाण ज ह। और<br />

बु ाण ह यक ज ह। लेकन सभी ाण ज नहं है। वे तो नाममा के ाण ह<br />

ाण घर म जम होने से कोई ाण नहं होता। जब तक म जम न हो जाए तब<br />

तक कोई ाण नहं होता।<br />

राम यान याया नहं माई। जनम गया पसुवा क नाई।।<br />

रामनाम से नाहं ीत। यह सब ह पशुओं क रात।।<br />

और जागो! कब तक पशुओं क तरह जए चले जाओगे--खा िलया, पी िलया, सो गए, उठ<br />

आए, फर खा िलया, फर पी िलया, फर सो गए, फर उठ आए! यह कोह के बैल क<br />

ू<br />

तरह कब तक चलते रहोगे? कोह ू के बैल भी कभी-कभी<br />

सोचते हगे।<br />

मने सुना है एक दाशिनक तेली क दकान ु पर तेल खरदने गया। चका!<br />

दाशिनक था। हर<br />

चीज से वचार उठ आते ह दाशिनक को। दाशिनक वह जो हर चीज से उठा ले। म<br />

से उठा ले। उतर भी ह तो उस म से भी दस िनकल आएं। तेली तो तेल तोल रहा<br />

था, दाशिनक ने कहा: ठहर भाई, एक पहले का उर दे। तू तो तेल तोल रहा है, तू<br />

तो पीठ कए बैठा है और कोह बैल चला रहा है। बैल को कोई हांक भी नहं रहा है और<br />

ू<br />

बैल कोह ू खुद ह चला रहा है,<br />

गजब का धािमक बैल तूने खोज िलया है! ऐसे ालु बैल<br />

आजकल िमलते कहां ह! हड़ताल कर, िघराव कर, मुदाबाद के नारे लगाएं! यह कोह का<br />

ू<br />

बैल तुझे िमल कहां गया इस जमाने म? और भारत म! न कोई हांक रहा, न कोई चला<br />

रहा और कोह ू का बैल चला जा रहा है!<br />

मुकु राया तेली। उसने कहा: तुमने मुझे या समझा है? अरे यह बैल क खूबी नहं, यह<br />

खूबी मेर है। देखते नहं, उसका आंख पर पटयां बांध द ह। जैसे तांगे के घोड़े क आंख<br />

पर पटयां बाद देते ह, कसिलए बांध देते ह। ताक उसको चार तरफ दखाई न पड़े। नहं<br />

तो पास म ह लगी हर झाड़ और दल हो जाए चरने का, चला छोड़कर राता! क पास म<br />

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ह खड़ है उसक ेयसी कोई घोड़, मारे छलांग, फ के याय को और पहंच ु जाए!<br />

तो<br />

उसको देखने नहं देते इधर-उधर, दोन तरफ आंख पर पट बांध द, उसको बस सामने<br />

ह दखाई पड़ता है। उतना ह दखाई पड़ता है जतना उसको चलाने वाला उसको दखाना<br />

चाहता है।<br />

ऐसे ह उसने कोह के बैल<br />

ू पर भी पटयां बांध दं। उसने कहा: देखते नहं, पटयां बांध<br />

द ह, उसको दखाई नहं पड़ता। उसको पता नहं चलता क कोई पीछे चलाने वाला है या<br />

नहं। दाशिनक भी ऐसे राजी तो न हो जाए। उसने कहा: यह म समझ गया, लेकन कभी-<br />

कभी कोह का बैल ककर देख तो सकता है क<br />

ू कोई चला रहा है क नहं? कभी जरा<br />

ककर देख लो, जांच कर ले क पीछे कोई है भी फटकारने वाला, कोड़ा मारने वाला?<br />

तेली और भी मुकु राया, और भी लंबी मुकान। उसने कहा: तुम समझे नहं। तुमने या<br />

मुझे बलकु ल बु समझा है<br />

ू ? अगर ऐसा होता तो हम बैल होते और बैल तेली होता। तुमने<br />

हम समझा या है? कोई धंधा ऐसे ह कर रहे ह! देखते नहं बैल के गले म घंट बांध द<br />

है। घंट बजती रहती है जब तक बैल चलता है। जैसे ह के बचू क म उचका। और दया<br />

एक फटकारा और हांका। उसको पता ह नहं चल पाता क म नहं था। घंट सुनता रहता<br />

हं। ू जब तक बजती रहती है तब तक म भी िनत। जैसे ह घंट क,<br />

इधर घंट क<br />

नहं क मने आवाज द नहं, क मने हांका नहं। तो भेद नहं पड़ता उसे, कभी पता नहं<br />

चलता।<br />

मगर दाशिनक भी दाशिनक, बस उसने कहा कहा एक और: बैल कभी यह भी तो कर<br />

सकता है, खड़ा हो जाए और िसर को हलाहलाकर घंट बजाए? अब थोड़ा तेली िचंितत<br />

हआ। ु उसने कहा:<br />

जरा धीरे महाराज, कहं बैल न सुन ले! और आगे से तेल और कह ले<br />

िलया करना। दो पैसे का तो तेल ले रहे हो और जंदगी मेर खरा कए दे रहे हो। ऐसी बात<br />

खतरनाक ह। नसलवाद मालूम होते हो या या बात है? कयूिनट हो? बैल को भड़काते<br />

हो! शम नहं आती क मेरा ह तेल पीते हो और मुझे ह से दगा कर रहे हो?<br />

बैल भी कभी-कभी सोच सकते ह। तेली ठक कह रहा है। अगर ऐसे तुम कयूिनट<br />

मेनीफे टो पढ़ते रहो बैल के सामने, तो बैल को भी आखर सोच आ सकता है क बात तो<br />

जंचती है। लेकन आदमी सोचता ह हनीं, वचारता ह नहं, जए चला जाता--है बस कोह<br />

ू<br />

के बैल क तरह। और न कसी ने तुहार आंख पर पटयां बांधी ह, िसवाय क तुमने<br />

वयं बांध ली ह। और न तुहारे गले म कसी ने घंट बांधी है, िसवाय इसके तुमने खुद<br />

लटका ली है। यक और लोग भी लटकाए ह; घंट बजती है, अछ लगती है। और और<br />

लोग भी आंख पर पटयां बांध ह तो तुमने भी बांध ली ह, यक बना पटयां बांध<br />

ठक नहं। पटयां सुरा है। अजीब-अजीब बात लोग म चलती ह।<br />

कल म एक इितहास क कताब पढ़ रहा था। आज से सौ साल पहले, जब पहली दफा<br />

बाथ-टब बना अमरका म तो अमरका के एक राय ने कानून पाबंद लगा द। क कोई<br />

बाथ-टब अपने घर म नहं रख सकता, यक इस म नहाने से हजार तरह क बीमारयां<br />

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पैदा हगी, लोग मर जाएंगे, ठंड से िसकु ड़ जाएंगे। यह शैतान क ईजाद है! और जो लोग<br />

बाथ-टब घर म लगाएंगे उनको सजाएं हो जाएंगी।<br />

बाथ-टब जैसी िनदष चीज, मगर नई नहं थी तो शैतान क थी। पुराने को पकड़ने का मन<br />

होता है। और तुम देखते हो, आज हम हंस सकते ह। जन पािलयामट के सदय ने बैठकर<br />

यह िनणय कया होगा, बड़ गंभीरता से कया होगा। बाथ-टब पर कानूनी रोक क कोई<br />

नहा नहं सकता बाथ-टब म। उस राय म कु छ बगड़े दल लोग रहे, वे चोर से बाथ-टब<br />

लाते थे मगल करके और घर म िछपाकर रखते थे। उनम से कई पकड़े भी गए और<br />

उनक सजाएं भी हई। ु यक तुमने एक जघय अपराध कया। अगर<br />

बाथ-टब बनाना ह था<br />

तो भगवान ने य नहं बनाया? बात भी ठक है! सब चीज का उलेख है बाइबल म क<br />

या-या बनाया, बाथ टब का कहं उलेख नहं है। यह शैतान क तरकब है। इससे<br />

गठया लगेगा। इस से तुम बीमार पड़ोगे। इस से तुम मर जाओगे। इससे दय क धकधक<br />

बंद हो जाएगी, हाट-अटैक होगा। न मालूम कतनी बात! डाटर ने भी सहायता द,<br />

कानूनवद ने भी सहायता द। अजीब लोग ह! हर नयी चीज का वरोध करते ह, पुराने को<br />

पकड़ते ह।<br />

तुम भी देखते हो सब लोग आंख पर पटयां बांधे, तुम भी जद से बांध लेते हो पटयां<br />

क कहं आंख खराब न हो जाएं। जब इतने लोग बांधे ह तो ठक ह बांधे हगे। हां; लेबल<br />

अलग-अलग ह। कसी ने हंदओं को पटयां बांधी ह<br />

ु , कसी ने मुसलमान क, कसी ने<br />

ईसाइय क; मगर पट तो होनी ह चाहए। मंदर जाओ क मजद क गुार, मगर<br />

कहं न कहं जाना चाहए। कु रान पढ़ो क बाइबल क गीता, मगर कोई न कोई तोते क<br />

तरह रटना चाहए।<br />

पटयां तुमने बांध ली ह। इस जमेवार को समझो, यक इस जमेवार म ह तुहार<br />

वतंता िछपी है। अगर यह तुह समझ म आ जाए क पटयां मने बांधी ह, कसी और<br />

तेली ने नहं, तो तुम आज इन पटय को िगरा दे सकते हो। और यह घंट तुमने बांधी<br />

है, इस घंट को तुम आज काट दे सकते हो।<br />

मेरे देखे ितभाशाली य एक ण म समाज क सार झंझट और जाल से मु हो<br />

सकता है। यह ितभा का लण भी है। देर न लगे, दखाई पड़ जाए बात और तण टट ू<br />

जाए--जो भी गलत है, जो भी असार है। रान नाम से नाहं ीत। यह सब ह पसुव क<br />

रात।।<br />

पशुओं क तरह जी रहे हो। मनुय का तुहारे भीतर आवभाव नहं हआ। अभी मनन ह<br />

ु<br />

पैदा नहं हआ ु तो मनुय कै से पैदा हो?<br />

जीवत सुख दख ु म दन भरै। मुवा पदे चौरासी परै।।<br />

और तुहारा जीवन या है? कसी तरह सुख-दख म दन को भरते रहो। हजार लोग के<br />

ु<br />

जीवन म झांकने के बाद मेरा भी यह िनकष है क लोग कु छ एक ह काम म लगे ह--<br />

कसी तरह यत रहो, आकु पाइड रहो! एक काम छू टे तो दसरा ू पकड़ो,<br />

दसरा ू<br />

छू टे तो<br />

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तीसरा पकड़ो! दतर से आए तो चले के ट देखने। रववार को छु ट हो गयी तो चले<br />

गोफ खेलने। कु छ न हो, चलो मछिलयां ह मार आओ। मगर कु छ न कु छ करो।<br />

रववार के दन पयां िचंितत रहती ह, यक पित घर आएगा तो कु छ न कु छ करेगा।<br />

छह दन बचे भी कू ल रहते ह तो पयां थोड़ िनंत रहती ह; पित भी दतर म रहता<br />

है तो िनंत रहती ह। सातव दन उपव आता है। सारे बचे भी घर म, सब तरह के<br />

उपव और पित भी घर म, वह भी खाली नहं बैठ सकता। ठक-ठक चलती घड़ को<br />

खोलकर बैठ जाएगा क इसको ठक कर रहे ह, क ठक-ठक चलती कार को ह बािनट<br />

उघाड़ कर बैठ जाएगा क इसक सफाई कर रहे ह! और कु छ न कु छ गड़बड़ कए बना नहं<br />

मानेगा। उसक भी तकलीफ है। यत न रहो तो एकदम से याद आती है क जंदगी बेकार<br />

जा रह है। तो टेलीवजन के सामने बैठे रहो क रेडयो खोल लो, क अखबार पढ़ते रहो।<br />

वह अखबार, जसको सुबह से तुम तीन बार पढ़ चुके, फर-फर पढ़ो, शायद कोई चीज<br />

चूक गयी हो!<br />

कसी भी कारण से, कसी भी िनिम से यतता चाहए। दो लोग शांत नहं बैठ सकते,<br />

बातचीत म लग जाएंगे। ेन म आते से ह आदमी पूछे गा: कहए, आप कहां जा रहे ह?<br />

अपनी बताने लगेगा क म कहां जा रहा हं। लोग सफर म अजनबी याय से ऐसी बात कह<br />

ू<br />

देते ह, जो उहने कभी अपने िम से भी नहं कहं। या कर खाली बैठे -बैठे, कु छ तो<br />

कहना ह होगा!<br />

कसी बात को गु बड़ा कठन होता है। कसी से कह दो क जरा इस बात को गु रखना<br />

बड़ा कठन होता है। कसी से कह दो क जरा इस बात को गु रखना, फर तुम पका<br />

समझो क पूरा गांव जान लेगा। बस कह भर दो कसी से क इसको गु रखना। कसी भी<br />

बात का चार करवाना हो तो सब से सरल बात यह है क कान म कह देना: भैया, जरा<br />

इसको गु रखना, खतरनाक है। फर उसको चैन ह नहं। वह तुम से कहेगा: अछा अब<br />

चले!<br />

कहां जो रहे हो?<br />

और भी काम ह। अब काम कु छ नहं है, अब आदमी खोजना है जनको यह बताना है क<br />

भैया जरा गु रखना। यह बात बड़ कठन है। यह बड़ खतरनाक बात है। तुमसे तो कह<br />

द, अपने वाले हो, मगर तुम कसी और से मत कहना। और यह वह दसर ू से कहेगा!<br />

तुम सांझ तक तुम पाओगे क बात पूरे गांव म पहंच गयी। हर आदमी जानता है और हर<br />

ु<br />

आदमी मानता है क वह गु रखने क कोिशश कर रहा है।<br />

य आदमी कसी बात को गु नहं रख पाता? कोई भी चीज यतता के िलए चाहए।<br />

तुम भी वह अखबार पढ़ते हो, पड़ोसी भी वह अखबार पढ़ता है। तुम भी उससे वे ह बात<br />

कहते हो, वह भी तुमसे वह बात कहता है। तुम भी उनको सुन चुके बहत ु बार,<br />

वह भी<br />

तुम को सुन चुका बहत ु बार। फर या जार है?<br />

फर य बातचीत म लगे हो?<br />

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मने सुना है, चीन म एक बार ितयोिगता हई क जो<br />

ु सबसे बड़ा झूठ बोलेगा, उसे सबसे<br />

बड़ा पुरकार दया जाएगा। बड़े-बड़े झूठ बोलने वाले इकठे हए<br />

ु ! और जसको पुरकार िमला<br />

वह चकाने वाली बात है। बड़े-बड़े झूठ बोले गए। एक आदमी ने कहा: मने इतनी बड़<br />

मछली देखी क उसको पूंछ<br />

देखो तो िसर न दखाई पड़े और िसर देखो तो पूंछ<br />

न दखाई<br />

पड़े! कसी ने कहा क मने एक मछली मार...। मछलीमार असर बकवासी हो जाते ह,<br />

यक और तो कु छ रहता नहं, मछली मारते ह!...जब मने मछली काट तो उसम मुझे<br />

एक लाल टेन िमली, जो मछली िनगल गयी होगी। मगर और ने कहा: यह कोई खास बात<br />

नहं। उसने कहा: पहले पूर बात सुन लो। लालटेन नेपोिलयन क थी, उस पर दतखत थे<br />

लोग ने कहा: यह भी कोई बात नहं। उसने कहा: पहले पूर बात तो सुन लो। लालटेन अभी<br />

जल रह थी।<br />

इसको भी थम पुरकार न िमला। थम पुरकार िमला एक आदमी को, उसने कहा: म<br />

एक बगीचे म गया, दो औरत एक बच पर बैठ थीं और चुप बैठ रह घंटे भर। एक शद<br />

न बालो गया, न सुना गया।<br />

उसको थम पुरकार िमला। यह हो सकता है क नेपोिलयन क लालटेन अभी भी कसी<br />

मछली के पेट म जल रह हो; मगर दो य के पेट म बात जलती रह, असंभव है। दो<br />

यां और चुपचाप बैठ रह!<br />

एक सभा म एक उपदेशक यायान दे रहा था। नार-समाज क सभी थी और जो होना था<br />

हो रहा था। उपदेशक बोल रहा था और नारयां भी बोल रह थीं। चचा चल रह थी गहन।<br />

उपदेशक बड़ा परेशान हो रहा था। करना या? आखर उसने जोर से िचलाकर कहा क<br />

सुनो, एक बात बड़ गहर, य के काम क! सुंदर<br />

यां कम बोलने वाली होती ह।<br />

एकदम सनाटा हो गया। अब कौन बोले!<br />

लोग यतता खोज रहे ह, तरहरह क यतता खोज रहे ह। जीवंत सुख दख म दन<br />

ु<br />

भरै! बस कसी तरह दन भर लेना है, जंदगी भर लेना है। लोग काट रहे ह जंदगी। बड़ा<br />

मजा है! एक तरफ चाहते ह क लंबी उ। बुजुग से ाथना करते ह आशीवाद दो, लंबी उ<br />

िमले। और उनसे खुद पूछो: करोगे या लंबी उ का? ताश खेल रहे ह, या कर रहे हो?<br />

समय काट रहे ह। समय काट रहे ह मतलब उ काट रहे ह। िसनेमा जा रहे ह, कसिलए<br />

जा रहे ह?<br />

समय काटना है।<br />

म एक सजन को जानता हं ू जो एक ह फम को...छोटा<br />

गांव है, तीन चार दन फम<br />

चलती है वहां, दो शो होते ह फम के ...एक ह फम के दोन शो देखते ह, चार दन<br />

देखते ह। मने उनसे पूछा: तुम भी गजब के आदमी हो! उसने कहा: और कर या? समय<br />

कटता नहं। बैठे -बैठे या कर? ऐसे समय कट जाता है।<br />

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जंदगी चाहए लंबी और करोगे या? समय काटोगे! बड़ आकांाओ वासनाओं, कामनाओं<br />

से इसीिलए लोग भरे हए ु ह,<br />

बड़ महवाकांा से लोग भरे हए ु ह। और िमलता या है सुख<br />

के नाम पर? धोखे, वंचनाएं।<br />

मुतसर अपनी हदसे-जीत ये ह इम म<br />

पहले थोड़ा सा हंसे, फर उ भर रोया कए<br />

बस जरा सी मुकु राहट और फर पीछे रोना। यह तुहार जंदगी का ेम है। इस जंदगी के<br />

ेम म तुह बस इतना िमलता है: मुतसर अपनी अपनी हदसे-जीत ये ह इम म! जीवन<br />

क यह कु ल गाथा: पहले थोड़ा सा हंसे, फर उ भर रोया कए! मगर लोग रोना पसंद<br />

करगे खाली बैठने क बजाए, यह खयाल रखना। कु छ भी पसंद करगे नाकु छ क बजाए,<br />

यह खयाल रखना। दख ु आ जाए,<br />

यह पसंद करगे बजाए इसके क कु छ न आए। दमन ु<br />

िमल जाए, यह पसंद करगे बजाए इसके क कोई न िमले, सनाटा रहे। बस भरना है<br />

कसी तरह। य?<br />

य इतनी वता है भरने क? यक डर लगता है क कहं भीतर का शूय कट न<br />

हो जाए! कहं जीवन का असली खड़ा न हो जाए क म कौन हं<br />

ू, कहां से हं<br />

ू, कसिलए<br />

हं<br />

ू, या कर रहा हं<br />

ू? कहं यह असली आमने-सामने न आ जा! यक इस के उठ<br />

जाने के बाद जीवन म ांित अिनवाय हो जाती है, अपरहाय हो जाती है। इस के बाद<br />

धम क शुआत है। और इस तरह जंदगी काट-काट कर लोग जाते कहां ह? बस चौरासी के<br />

चकर म भटकाते रहते ह। इस जंदगी से दसर ू जंदगी,<br />

दसर ू जंदगी से तीसर जंदगी।<br />

घबड़ा भी जाते ह जंदगी से। मरना भी चाहते ह।<br />

बहत ु लोग आमहयाय करते ह!<br />

लाख लोग आमहयाय करते ह। करोड़ लोग यास करते<br />

ह। यास करने वाले भी बड़े मजेदार यास करते ह। शायद मन म पका नहं होता क<br />

करना क नहं करना। जैसा क मन क आदम है, कसी चीज म पका नहं होता। तो<br />

करते भी ह और बचाव भी रखते ह। लोग नींद नहं गोिलयां खा लेते ह मगर हमेशा इतनी<br />

खाते ह जतने म बच जाएं। हां, शोरगुल मच जाता है मोहले म, घर वाले लोग परेशान<br />

हो जाते ह, डाटर आ जाता है। मगर इतनी खाते ह जतने म बच जाएं। दस आदमी<br />

आमहया के यास करते ह, उनम एक ह मरता है, तो नौ जर इंतजाम करके यास<br />

करते ह। तो करते ह काहे को हो? लेकन यह मनुय का मन है--डांवाडोल, अिनत,<br />

करना क नहं करना। एक पैर इधर एक पैर उधर। जंदगी से ऊब जाते ह तो मरने को<br />

राजी ह, अगर जागने को राजी नहं ह।<br />

जंदगी दरयाये-बेहािसल है और कती खराब,<br />

म तो घबराकर दआ करता हं तूफां के िलए।<br />

ु ू<br />

तूफान क बाढ़ म फं सी है नाव। जंदगी या है--एक तूफान है, एक आंधी है, अंधड़ है!<br />

जंदगी दरयाये-बेहािसल है और कती खराब। और नाव है बड़ जराजीण। म तो घबरा कर<br />

दआ करता हं तूफां के िलए। और म तो ाथना करता हं क अब तूफान आ ह जाए।<br />

ु ू ू<br />

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अगर ये ाथनाएं ह ह।<br />

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मने सुनी है एक सूफ कहानी। एक लकड़हारा। सर साल क उ का ढोता है अपनी<br />

लकड़य को। ले आ रहा है शहर क तरफ। कई बार उसने ाथना क: हे परमामा! अब<br />

उठा ह ले। कसीिलए यह दख दलवा रहा है<br />

ु ? बुढ़ापा, बीमार, कमर झुक गयी, अब भी<br />

लकड़यां काटो, अब भी बेचो। कसीिलए? कसके िलए? कभी बीमार हो जाता हं तो भूखा<br />

ू<br />

मरता हं। ू जैसे ह बीमार<br />

थोड़ ठक हई ु , फर चला लकड़ काटने। लकड़ काटने क भी<br />

सामय नहं रह। बहत ु बार ाथना क क परमामा अब उठा ले , अब कोई सार नहं।<br />

अगर ाथना कभी सुनी नहं गयी।<br />

बड़ कृ पा है परमामा क क तुहार सब ाथनाएं सुनी नहं जाती, नहं तो तुम बड़<br />

मुकल म पड़ जाओ। उस दन संयोग क बात, मौत करब से गुजरती थी और लकड़हारे<br />

ने कहा: हे मौत! अब और कब तक? जवान उठ गए मेरे सामने। मेरे देखते-देखते मेरे पीछे<br />

आए हए ु लोग उठ गए,<br />

और मुझे कब उठाएगी? या मुझे सदा-सदा यह बोझ लेना पड़ेगा?<br />

मौत को भी कहते ह दया आ गयी। मौत आकार सामने खड़ हो गयी। उसने कहा: म मौजूद<br />

हं। ू बोलो या इरादा है?<br />

बूढ़े ने दख ु म और पीड़ा म अपनी लकड़ का गठर नीचे डाल दया था। मौत को देखा,<br />

होश आया। कहा क और कु छ नहं, जरा यह गठर मने नीचे िगरा दया है, इसे उठाकर<br />

मेरे िसर पर रख दे। यहां कोई और दखाई पड़ता नहं, तो मने तुझे पुकारा। और अब ऐसी<br />

ाथना कभी न कं गा।<br />

लोग कहते ह क मर ह जाएं तो अछा, मरना कोई चाहता नहं! यह भी भर लेने का<br />

बहाना है अपने को। जो सच म ह मरना चाहता है उसके िलए तो मरने का एक ह उपाय<br />

है--वह यान है। यक यान म जो मरा फर वह पैदा नहं होता।<br />

मरौ हे जोगी मरौ! एक ऐसा भी मरना है क उसके बाद फर कोई जम नहं।<br />

मरौ हे जोगी मरौ, मरौ मरण है मीठा!<br />

ितस मरणी मरो जस मरणी मर गोरख दठा।<br />

उस तरह मरो जस तरह से गोरख ने मर कर और देखा। जहने भी देखा है, मर कर<br />

देखा है। जो मरे ह उहने देखा है, उहं को दशन हआ ु है। अहंकार को मरने दो,<br />

िच को<br />

मरने दो। म भाव को मरने दो। शूय म लीन हो जाओ। और उसी शूय म बजेगा नाद राम<br />

के नाम का, उठेगा ओंकार!<br />

जन दरया जन राम न याया। पसुवा ह य जनम गंवाया।।<br />

मत गंवाओ जीवन को! मत गंवाओ जनम को! उपयोग कर लो। और या है उपयोग? मरौ<br />

हो जोगी मरौ! उपयोग एक ह है क जीते जी तुहारे भीतर जो अहंकार है वह मर जाए,<br />

तो खुल जाए, आंख खुल जाए, ार िमल जाए।<br />

अमी झरत, बगसत कं वल!<br />

आज इतना ह।<br />

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अंतर जगत क फाग<br />

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चौदहवां वचन; दनांक २४ माच, १९७९; ी रजनीश आम, पूना<br />

आधुिनक मनुय क सब से बड़ कठनाई या है?<br />

साधु-संत को देखकर ह मुझे िचढ़ होती है और ोध आता है। म तो उन म िसवाय पाखंड<br />

के और कु छ भी नहं देखता हं<br />

ू, पर आपने न मालूम या कर दया के ा उमड़ती है!<br />

आपका भाव का रहय या है?<br />

भगवान! बुरे काम के ित जागरण से बुरे काम छू ट जाते ह तो फर अछे काम जैसे ेम,<br />

भ के ित जागरण हो तो या होता है, कृ पया इसे प कर।<br />

भगवान! भु-िमलन म वतुतः या होता है? पूछते डरता हं। पर जासा बना पूछे मानती<br />

ू<br />

भी नहं। भूल हो तो मा कर।<br />

पहला : भगवान! आधुिनक मनुय क सब से बड़ कठनाई या है? राके श! पुरानी सार<br />

कठनाइयां तो मौजूद ह ह, कु छ नई कठनाइयां भी मौजूद हो गई ह। पुरानी कठनाइयां<br />

कट नहं ह। बु के समय मग या कृ ण के समय म आदमी के िलए जो समयाएं थीं वे<br />

आज भी ह। उतनी ह ह। उन म से एक भी समया वदा नहं हई। यक हमने<br />

ु<br />

समयाओं के जो समाधान कए वे समाधान नहं िस हए। ु हमारे समाधान थोथे थे,<br />

ऊपर<br />

थे। समयाओं क जड़ को उहने नहं काटा। हम के वल ऊपर ह लीपापोती करते रहे।<br />

ोध था कसी के भीतर, तो हमने ोध का दमन िसखाया। लेकन दिमत ोध न नहं<br />

होता। दिमत ोध और भी विलत होकर भीतर जलने लगता है। साधारण आदमी जो<br />

कभी-कभी ोध कर लेता है, बेहतर है उस आदमी से जो ोध को दबाकर बैठ रहता है<br />

यक साधारण आदमी का ोध रोज-रोज बह जाता है, संगृहत नहं होता। जसने दमन<br />

कया हो उसके भीतर बहत संह हो जाता है। और तब उसका वफोट होगा तो भयंकर<br />

ु<br />

होगा।<br />

हमने दमन िसखाया सदय तक; इससे आदमी पांतरत नहं हआ<br />

ु , सड़ गया। इससे<br />

आदमी आमवान नहं हआ ु , वकृ त हआ ु , व हआ। ु वमु के<br />

ना पर हमने जो बात<br />

लोग को िसखायी उहने के वल पंखड़ बनाया। बाहर कु छ भीतर कु छ। दखाने के दांत और,<br />

खाने के दांत और। ऐसे हमने आदमी के जीवन म ैत पैदा कर दया।<br />

वे सार समयाएं वैसी क वैसी खड़ ह। और वे सार समयाएं समाधान मांगती ह। नई<br />

समयाएं भी खड़ हो गई ह; जनका अतीत के मनुय को कु छ भी पता न था। जैसे एक<br />

नई समया खड़ हो गई है क मनुय का संबंध िनसग से वपन हो गया है। जैसे कसी<br />

वृ क कोई जड़ उखाड़ ले, फर वृ कु हलाने लगे, फू ल झड़ने लग, पे हरे न रह<br />

जाए--ऐसे मनुय को हमने कृ ित से तोड़ िलया है।<br />

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और जो मनुय कृ ित से टट ू गया उसका परमामा से जुड़ने का उपाय ह नहं रह जाता है।<br />

यक कृ ित म ह परमामा क पहली झलक िमलती है। आदमी क बनाई हई चीज के<br />

ु<br />

बीच आधुिनक आदमी रहा है। सीमट के वशाल राते ह। इह देखकर परमामा क याद<br />

नहं आ सकती। कै से आएगी! घास का एक ितनका भी उसक याद दलाता है और सीमट के<br />

वशाल राजपथ भी उसक याद नहं दलाते। ये तो आदमी के बनाए ह, उसक याद दलाएं<br />

तो दलाएं कै से?<br />

एक छोटा-सा फू ल भी राह के कनारे खल जाता है, तो अात क खबर लाता है, संदेश<br />

लाता है। परमामा के ेम पाती है वह। और तुम मकान बनाओ, जो आकाश को छू ने लग,<br />

गगन चुंबी<br />

ह, तो भी उसक याद नहं दलाते; िसफ आदमी क कारगर, आदमी क<br />

तकनीक, आदमी क होिशयार, इन सबका मरण दलाते ह। और इनके मरण से अहंकार<br />

मजबूत होता है। आदमी क बनाई हुई कोई भी चीज बढ़ती नहं; ठहर रहती है यक मुदा<br />

है। परमामा क बनाई सार चीज बढ़ती ह, यक जीवंत ह। पौधा बड़ा होगा, वृ होगा।<br />

नद सागर होगी। सब गितमान है। आदमी क बनाई चीज सब ठहर हई ु ह;<br />

उनम कोई<br />

वकास नहं होता। वे जैसी ह वैसी ह। वतुएं ह। उनम ाण नहं ह। जनम ाण नहं ह<br />

उनसे महााण क कै से मृित आएगी?<br />

तो मनुय के जीवन का जो सब से बड़ा अिभशाप है आज: पुरानी सार बीमारयां मौजूद ह,<br />

और एक नई बीमार खड़ हो गई है, क हमने एक कृ म वातावरण बना िलया है। और<br />

कृ म वातावरण बड़ा-बड़ा होता जा रहा है।<br />

लंदन म एक सव कया गया, दस लाख बच ने गाय नहं देखी और लाख बच ने खेत<br />

नहं देखे। जन बच ने खेत नहं देखे और पवन के झकोर म डोलती हई गेहं क बाल<br />

ु ू<br />

और बाजरे और वार को नहं देखा, उन बच के जीवन म कु छ चीज क कमी रह<br />

जाएगी। कु छ बड़ मौिलक कमी रह जाएगी। उहने कार देखी ह, बस देखी ह, रेलगाड़<br />

देखी ह।<br />

मने सुना है, एक चच म एक पादर बच को समझा रहा था। रववार का धािमक कू ल<br />

लगा था। बाइबल म एक वचन आता है क सब सरकती हई ु चीज उसी ने बनायीं--अथात<br />

सांप इयाद। एक छोटे बचे ने खड़े होकर कहा क उदार है दजए। पादर भी थोड़ा चका,<br />

यक सांप उस बचे ने देखा नहं; और कोई सरकती चीज देखी नहं, तो उसने कहा क<br />

रेलगाड़। जैसे रेलगाड़। तो बचा िनत हो गया।<br />

पादर भी करे तो या करे? सरकती हई<br />

ु चीज के िलए रेलगाड़ का उदाहरण! यह भी<br />

परमामा ने बनायी है!<br />

हमारे पास उदाहरण भी खोते जाते ह। जतना आधुिनक मनुय है उतना ह यादा कम<br />

ाकृ ितक, उतना ह यादा कृ म, उतना ह यादा लाटक; असली नहं, नकली।<br />

उसक गंध नकली, उसका रंग नकली, उसका सब नकली! ओंठ रंग िलए ह िलपटक से,<br />

वह उसका रंग है ओठ का; असली ओठ का को पता ह चलना मुकल हो गया है। कपड़े<br />

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पहन िलए ह इस ढंग से क असली शरर का पता चलना मुकल हो गया है। जनक<br />

छाितयां नहं ह, उहने कोट म ई भरवा ली है।<br />

हम सब तरफ से कृ म म जी रहे ह। और यं बढ़ते जा रहे ह। और मनुय क सब से<br />

बड़ कठनाई सदा से यह रह क मनुय मूछत है। यं के बीच और भी मूछत हो<br />

गया, और भी यांक हो गया है।<br />

तुम मुझसे पूछते हो: आधुिनक मनुय क सब से बड़ कठनाई या है? यांकता यं के<br />

साथ रहोगे तो यांक हो ह जाना पड़ेगा। यद बहत ु जागक न रहे,<br />

तो सुबह सात बजे<br />

क गाड़ पकड़नी है तो उसी ढंग से भागना होगा। कोई गाड़ तुहारे िलए क नहं रहेगी।<br />

तुम अपनी िनतता क चला नहं चल सकते। तुम पय के गीत सुनते हए नहं जा<br />

ु<br />

सकते। आपाधापी है, भाग-भाग है।<br />

वासागर ने िलखा है, एक सांझ वह घूमकर लौट रहे थे और उनके सामने ह एक<br />

मुसलमान सजन अपनी सुंदर<br />

छड़ िलए हए ु , टहलते हए ु वे भी आ रहे थे। मुसलमान<br />

सजन का नौकर भागा हआ ु आया और उसने कहा:<br />

मीर साहब, जद चिलए, घर म<br />

आग लग गई है। लेकन मीर साहब वैसे ह चलते रहे। नौकर ने कहा: आप समझे या नहं<br />

समझे? आने सुना या नहं सुना? घर जल रहा है, धू-धू कर जल रहा है! तेजी से चिलए!<br />

यह समय टहलने का नहं है। दौड़ कर चिलए।<br />

लेकन, मीर साहब ने कहा: घर तो जल ह रहा है, मेरे दौड़ने से कु छ आग बुझ न<br />

जाएगी। और यहां तो सभी कु छ जल रहा है। और सभी को जल जाना है। जीवन भर क<br />

अपनी मती क चाल इतने सते म नहं छोड़ सकता।<br />

वासागर तो बहत ु हैरान हए। ु मीर साहब उसी चाल से चलते रहे!<br />

वह छड़ क टेक। वह<br />

मत चाल। वह लखनवी ढंग और शैली। वासागर के जीवन म इससे ांित घटत हो<br />

गई, यक वासागर को दसरे ू दन वाइसराय क किसल म , महापंडत होने का समान<br />

िमलने वाला था। और िम ने कहा क इहं अपने साधारण सीधे-सादे, फटे-पुराने व म<br />

जाओगे, अछा नहं लगेगा। तो हम ढंग के कपड़े बनवाए देते ह, जैसे दरबार म चाहए।<br />

तो वे राजी हो गए थे, तो चूड़दार पाजामा, और अचकन और सब ढंग क टोपी और जुते<br />

और छड़, सब तैयार करवा दया था िम ने। लेकन इस मुसलमान, अजनबी आदमी क<br />

चाल, घर म लगी आग, और यह कहता है क या जंदगी भर क अपनी चाल को,<br />

अपनी मती को एक दन घर मग आग लग गई तो बदल दंू? दसरे दन उहने फर वे<br />

ू<br />

बनाए गए कपड़े नहं पहने। वाइसराय क दिनया ु म पहंच ु गए वैसे ह अपने सीधे-सादे<br />

कपड़े<br />

पहने। िम बहत चकत हए। उहने कहा<br />

ु ु : कपड़े बनवाए, उनका या हआ<br />

ु ? उहने कहा:<br />

वह एक मुसलमान ने गड़बड़ कर दया। अगर वह मकान म आग लग जाने पर अपनी<br />

जंदगी भर क चाल नहं छोड़ता, तो म भी य अपनी जीवन के ढंग और शैली छोडू,<br />

जरा सी बात के िलए क दरबार जाना है? देना हो पदवी दे द, न देना हो न द। लेकन<br />

जाऊं गा अब अपनी ह शैली से।<br />

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मगर आज सब तरफ यं कसे हए ु ह। यहां शैली नहं बच सकती,<br />

यव नहं बच<br />

सकता, िनजता नहं बच सकती। यद तुम अयिधक होश से न जयो, तो यं तुम पर<br />

हावी हो जाएगा, तुम पर छा जाएगा। तुम घड़ के कांटे क तरह चलने लगोगे और मशीन<br />

के पहय क तरह घूमने लगोगे। और धीरे-धीरे तुह भूल ह जाएगा क तुहारे भीतर कोई<br />

आमा भी है! एक तो कृ ित से संबंध टट ू जाना और दसरा ू यं से संबंध जुड़ जाना,<br />

दोन<br />

बात महंगी पड़ जा रह ह।<br />

मुकु र के लोचन खुले ह।<br />

बंद है आधार के ग;<br />

जड़ हआ ु आधार का अतव,<br />

छाया चल रह है!<br />

मा दपण है, न दशन;<br />

पूजता पाषाण चेतन!<br />

चेतना खो चुका जीवन;<br />

आंजते गहन अंजन,<br />

ितिमर माया छल रह है।<br />

मान धन मन के िनधन को;<br />

खोजता जीवन मरण को--<br />

अन-कण, ण-त ण को!<br />

दया तज रव ने गगन को,<br />

आय दन क ढल रह है!<br />

मं का दपक बुझा कर,<br />

तं-बल को बाह ु म भर,<br />

ौढ़ कर मोहत धरा पर,<br />

यं क माया िनरंतर फू लती है,<br />

फल रह है!<br />

और सब तो गया--मं गया तं गया--यं िसंहासन पर आढ़ हो गया है।<br />

यं क माया िनरंतर फू लती है,<br />

फल रह है।<br />

और मनुय भी धीरे-धीरे यांक होता जा रहा है। वैािनक तो मानते भी नहं क मनुय<br />

यं से कु छ यादा है। और वान क छाप लाग के दय पर बैठती जा रह है, यक<br />

वान का िशण दया जा रहा है। दय का तो कहं कोई िशण नहं है। ेम गीत तो<br />

कहं िसखाए नहं जा रहे ह। दय क वीणा तो कहं कोई बजाई नहं जा रह है। तक<br />

िसखाया जा रहा है, गणत िसखाया जा रहा है। यं को कै से कु शलता से काम म लाया<br />

जाए, यह िसखाया जा रहा है। और धीरे-धीरे इस सब से िघरा हआ ु आधुिनक मनुय,<br />

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कृ ित से टट ू गया,<br />

परमामा से टट ू गया,<br />

अपने से टट ू रहा है। सारे संबंध जीवन के<br />

वराट से, उखड़े जा रहे ह।<br />

यह आज क सब से बड़ कठनाई है। और इसिलए आज के िलए सवािधक महवपूण और<br />

जर हो गई है एक बात क यान का, जतनी दरू -दर ू तक चार हो सके , जतने लोग<br />

तक--करना जर है। यक यान क अब एक मा उपाय है क तुह फर याद दला<br />

सके अपनी आमा क। और यान ह एकमा उपाय है क फर तुह वृ म, चांदार म<br />

परमामा क झलक िमल सके । यान ह एकमा उपाय है, जो तुह वापस कृ ित क<br />

तरफ ले चले। और यान ह एकमा उपाय है, क यं के बीच रहते हए ु भी,<br />

तुह यं<br />

का मािलक बनाए रखे, यं का गुलाम न हो जाने दो।<br />

मने एक झक नवाब के संबंध म सुना है। बीमार था। लेकन पुरानी आदत...रात दोीन<br />

बजे तक तो नाच-गाना चलता। फर सोता। तो उठता सुबह दस बजे, यारह बजे, बारह<br />

बजे। िचकसक ने कहा: यह अब न चलेगा। अब इस योय वाय न रहा। अब तो सुबह<br />

मुहत ू म उठना पड़ेगा,<br />

छह बजे उठना पड़ेगा। तो ह तुम वथ हो सकते हो। तो उसने<br />

कहा: यह कौन अड़चन क बात क है, छह बजे उठगे।<br />

भरोसा िचकसक को नहं आया, यक वह आदमी कभी जीवन म छह बजे नहं उठा<br />

था। इतनी जद राजी हो जाएगा! नानुच भी न करेगा! आना-कानी नहं करेगा, सौदा नहं<br />

करेगा, क भई दस बजे नहं तो आठ बजे, सात बजे। और सीधा बोला, छह बजे तो छह<br />

बजे। उसके घर के लोग भी हैरान हए। ु बेगम भी हैरान हई ु , वजीर भी हैरान हआ। ु लेकन<br />

बाद म राज खुल गया। राज यह था क नवाब ने कहा: ऐसा करो क जब भी म उठूं तब<br />

घड?◌ी म छह बजा देना, बात खतम हो गई। बात खतम हो गई। बारह बजे उठूं क दस<br />

बजे उठूं, जब भी उठूं, मगर घड़ म छह बजने चाहए। जैसे ह म करवट लूं,<br />

जद से<br />

घड़ म छह बजा देना।<br />

ऐसे तो वह झक था, लेकन एक बड़ महवपूण बात है उसके इस झकपन म क घड़<br />

को मािलक नहं होने दया, मािलक खुद ह रहा। उसने कहा: घड़ मािलक ह क म मािलक<br />

हं ू? घड़ के हसाब से म चलूंगा<br />

क मेरे हसाब से घड़ चलेगी? घड़ ने मुझको खरदा है<br />

क मने घड़ को खरदा है? मेरे हसाब से घड़ चलेगी!<br />

यं तुहारे हसाब से चलने चाहए। यं तुह गुलाम न बना ल। तुहार मालकयत बनी<br />

रहे। यह अब के वल यान से ह संभव हो सकता है।<br />

राके श! आधुिनक मनुय क सब से बड़ पीड़ा और सब से बड़ चुनौती, सब से बड़ा खतरा<br />

सब से बड़ समया, एक ह है: कृ ित से टट ू जाना और यं से जुड़ जाना। यान इतना<br />

जर कभी नहं था जतना आज है, यक यान के बना भी परमामा क याद आ<br />

जाती थी। कृ ित चार तरफ लहलहा रह थी। कब तक बचते, कै से बचते? पपीहा पी-पी<br />

पुकारता और तुह अपने पया क याद न आती? और कोयल कु हू-कु ह क धुन मचाती और<br />

ू<br />

तुहारे ाण म कोई कु हू-कु ह ू क ितविन न पैदा होती?<br />

फू ल पर फू ल खलते, ऋतुएं<br />

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घूमतीं, ऋतुओं का च चलता--और तुह यह याद न आती क जगत सुिनयोजत है,<br />

अराजक नहं है? चांद तारे समय पर आते ह। वष आती है। गम आती है। शीत आती है।<br />

या इस सार वतुलाकार कृ ित को घूमते देखकर तुह यह याद न आता क कोई रहयपूण<br />

िछपे हुए हाथ इसके पीछे होने चाहए? बचना मुकल था। चार तरफ उसक गंध थी। हमने<br />

धीरे-धीरे उसक गंध बलकु ल बंद कर द है।<br />

जतना आधुिनक मनुय है उतना ह हटता चला गया है दर। दनभर मशीन के साथ जीता<br />

ू<br />

है। घर आ जाए तो भी रेडयो खोल लेता है, टेलीवजन के सामने बैठ जाता है। फु रसत हो<br />

तो िसनेमा हो आता है। समय ह नहं क कभी तार से भी गुतगू हो। अवसर ह नहं,<br />

कभी नदय के साथ भी दो बात हो जाएं। आकांा ह नहं क कभी पहाड़ से भी िमलन<br />

हो। और इतने आवरण ओढ़ रखे ह क जब दो आदमी िमलते ह तो भी िमलना नहं हो<br />

पाता।<br />

मनोवैािनक कहते ह क एक बतर पर जब पित और पी सोते ह, तो तुम यह मत<br />

समझना क दो आदमी वहां सो रहे ह। वहां चार भी सो सकते ह; छह भी सो कहते ह--क<br />

एक तो पित वह है, जो वह है; और एक पित वह है जैसा वह पी को दखलाता है। और<br />

एक पित वह है जैसा वह दखलाता तो है लेकन दखला नहं पाता; दखलाना चाहता है।<br />

तो तीन पित हो गए, तीन पयां हो गई, छह आदमी सो रहे ह। छोटा बतर, वैसे ह<br />

है भीड़-भाड़ हो जाती है।<br />

तुम जो कहना चाहते हो, कहते हो? कु छ और ह कहते हो! और जो तुम कहते हो, उससे<br />

तुहारा कोई भी नाता नहं होता। उसक जड़, तुहारे ाण म नहं होती, तुहारे वर का<br />

उसके साथ संबंध नहं होता। तुम जरा लोग के चेहर पर गौर करो। तुम जरा लोग के शरर<br />

क भाषा सीखो। और तुम चकत हो जाओगे, उनके ओंठ कु छ कहते ह, उनक आंख कु छ<br />

कहती ह। उनके ओंठ कहते ह वागत! उनक आंख कहती ह क कहां सुबह-सुबह ये<br />

शनीचर चेहरे के दशन हो गए। ओंठ कु छ कहर हे ह, आंख कु छ कह रह ह। लोग कहते ह<br />

क बड़ा आनंद हआ ु आपके आने से , लेकन पूरा शरर कु छ और कह रहा है।<br />

शरर क भाषा पर बड़ शोध-बीन हो रह है। छोटे-छोटे इशारे शरर कहता है, जनका तुह<br />

भी पता नहं होता। जब तुम कसी आदमी से िमलना चाहते हो तो तुम उसके पास झुककर<br />

खड़े होते हो; तुम उसक तरफ झुके हए होते हो। और जब तुम उससे नहं िमलना चाहते तो<br />

ु<br />

तुम पीछे क तरफ खंचे हए खड़े होते हो।<br />

ु<br />

तुम जरा लोग को गौर से देखना। जो ी तुमम उसुक है, वह तुहार तरफ झुक हई<br />

ु<br />

होगी। जो ी तुमसे बचना चाहती है, वह तुहारे से दसर तरफ तनी हई होगी। जो ी<br />

ू ु<br />

तुमम उसुक है वह तुहारे पास सरक कर बैठेगी; जो तुम म उसुक नहं है वह जस तरह<br />

बच सके, जतनी बच सके, उतनी दर तुम से सरक कर<br />

ू बैठेगी। शायद उसे भी साफ न<br />

हो।<br />

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लेकन शरर क भाषाएं ह। ओंठ कु छ कहते ह, शरर कु छ कहता है। शरर यादा सच<br />

कहता है, यक अभी शरर को झुठलाने क कला हमने नहं सीखी। आंख कु छ और कहती<br />

ह, तुम कु छ भी कहो।<br />

मनोवैािनक ने एक योग कया आंख के ऊपर। कु छ नंगी तवीर और कु छ साधारण<br />

तवीर म िमला द। और कु छ लोग को उन तवीर का अययन करने के िलए कहा। िसफ<br />

देखने के िलए, एक नजर देखते जाना है और उनक आंख पर यं लगाए गए ह। उनक<br />

आंख क जांच क जा रह है। उससे कु छ...वे या कहते ह यह नहं पूछा जा रहा है, िसफ<br />

उनक आंख क जांच क जा रह है। और एक बड़ हैरानी का अनुभव हआ। साधारण<br />

ु<br />

तवीर एक ढंग से देखती है। आंख। अगर नन ी क तवीर हो तो आंख क पुतिलयां<br />

एकदम बड़ हो जाती ह। तो जो यं से आंख देख रहा है, उसे तवीर का पता नहं है।<br />

लेकन वह आंख देखकर यं से कह सकता है क यह आदमी अभी नंगी तवीर देख रहा है।<br />

यह तो बड़ खतरनाक चीज है। तुम अपने साधु-संत क जांच कर सकते हो। और आंख पर<br />

बस नहं है तुहारा वेछा से, क तुम जब चाहो फै ला लो, जब चाहो िसकु ड़ा लो। खयाल<br />

भी नहं है तुह।<br />

जस चीज को तुम देखना चाहते हो उस आकांा के कारण ह, वह दबी आकांा ह<br />

कतनी य न हो, तुहार आंख क पुतिलयां बड़ हो जाती ह। य? तुम उसे पूरा<br />

आमसात कर लेना चाहते हो।<br />

फम देखने तुम बैठे हो जाकर िसनेमा-गृह म। जब कोई ऐसी घटना घटती है जसम तुम<br />

उसुक हो, तुम कु स छोड़ देते हो, एकदम तुहार रढ़ सीधी हो जाती है। तुम एकदम<br />

सजग होकर देखने लगते हो। तब कोई चीज ऐसी ह चल रह है। तो तुम आराम से कु स<br />

पर बैठ जाते हो; चूक भी गए तो कु छ हज नहं।<br />

तुहारे शरर क भाषा है। तुम कहते कु छ हो, तुहारा शरर कु छ और ह कहता है। असर<br />

उटा कहता है। तुहारे ओंठ कु छ बोलते ह और ओठ का ढंग कु छ और बोलता है। ओंठ<br />

कु छ बोलते ह, नाक कु छ बोलती है, आंख कु छ बोलती है। ऐसे खंड-खंड हो गया है आदमी।<br />

और यह खंडन बढ़ता जा रहा है, टकड़े ु -टकड़े ु होता जा रहा है। इसी टकड़े ु -टकड़े ु म फं सा हआ ु<br />

है।<br />

यान का अथ होता है अखंड हो जाओ; एक चैतय हो जाओ। और उस एक चैतय के<br />

िलए जर है क तुम अपने जीवन से यांकता छोड़ो। यं तो नहं छोड़े जा सकते, यह<br />

पका है। अब कोई उपाय नहं है। अब लौटने क कोई जगह नहं है। अब तुम चाहो लाख<br />

क हवाई जहाज न हो, लोग फर बैलगाड़ म चल--यह नहं होगा। अब तुम लाख चाहो क<br />

रेडयो न हो, यह नहं होगा। अब तुम लाख चाहो क बजली न हो, यह नहं होगा। होना<br />

भी नहं चाहए। लेकन मनुय यांक न हो, यह हो सकता है।<br />

और अब तक तो खतरा न था, अब खतरा पैदा हआ है। यं<br />

ु से बु के जमाने का आदमी<br />

नहं िघरा था, तो भी बु ने अमूछा िसखायी है, ववेक िसखाया है, जागृित िसखायी है,<br />

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होश िसखाया है। और आज तो और अड़चन बहत हो गई है। आज तो एक ह बात िसखाई<br />

ु<br />

जानी चाहए--मूछा छोड़ो, होशपूवक जयो। जो भी करो, इतनी सजगता से करो क<br />

तुहारा कृ य मशीन का कृ य न हो। तुम म और मशीन म इतना ह फक है अब क तुम<br />

होशपूवक करोगे, मशीन का कसी होश क जरत नहं है। अगर तुम म भी होश नहं है तो<br />

तुम भी मशीन हो।<br />

पुराने समय के ािनय ने मनुय को चकाया था, बार-बार एक बात कह थी, कल दरया<br />

ने भी कह--क देखो, आदमी रहना, पशु मत हो जाना! आज खतरा और बड़ा हो गया है।<br />

आज खतरा है क देखो, देखा आदमी रहना, यं मत हो जाना। यह पशुओं से भी यादा<br />

बड़ा पतन है। यक पशु फर भी जीवंत ह। पशु फर भी यं नहं ह। बु ने नहं कहा है<br />

क यं मत हो जाना, यक यं नहं थे।<br />

लेकन म तुमसे कहना चाहता हं क खतरा बहत बढ़ गया है। खाई और गहर हो गई है।<br />

ू ु<br />

पहले पुराने जमाने म िगरते तुम तो बहत से बहत पशु हो जाते<br />

ु ु , लेकन अब िगरोगे तो यं<br />

हो जाओगे। और यं से नीचे िगरने का और कोई उपाय नहं है। और यं से बचने क ह<br />

औषिध है: जागे हए ु जीयो। चलो तो होशपूवक बैठो तो होशपूवक,<br />

सुनो तो होशपूवक, बोलो<br />

तो होशपूवक। चौबीस घंट जतना बन सके उतना होश साधो। हर काम होशपूवक करो। छोटे-<br />

छोटे काम, यक सवाल काम का नहं है। सवाल तो होश के िलए नए-नए अवसर खोजने<br />

का है। नान कर रहे हो, और तो कु छ काम नहं है, होशपूवक ह करो। फवारे के नीचे<br />

बैठे हो, होशपूवक, जागे हए ु , एक-एक बूंद<br />

को अनुभव करते हए ु बैठा। भोजन कर रहे हो,<br />

जागे हए।<br />

ु<br />

लोग कहां भोजन कर रहे ह जागे हए<br />

ु ! गटके जाते ह। न वाद का पता है, न चबाने का<br />

पता है, न पचाने का पता है--गटके जाते ह। पानी भी पीते ह तो गटक गए। उसक<br />

शीतलता भी अनुभव करो। तृ होती हई यास भी अनुभव करो। तो तुहारे भीतर यह<br />

ु<br />

अनुभव करने वाला धीरे-धीरे सघन होगा, क भूत होगा। और तुम जागकर जीने लगो, तो<br />

फर हो जाए जगत, यं से भरा जाए कतना ह, तुहारा परमामा से संबंध नहं टटेगा। ू<br />

जागरण या यान परमामा और तुहारे बीच सेतु है। और जतना तुहारे जीवन म यान<br />

होगा, उतना ह तुहारे जीवन म ेम होगा। यक ेम यान का परणाम है। या इससे<br />

इटा भी हो सकता है: जतना तुहारे जीवन म ेम होगा; उतना यान होगा।<br />

यं दो काम नहं कर सकते--यान नहं कर सकते और ेम नहं कर सकते। बस इन दो<br />

बात मग ह मनुय क गरमा है, महमा है, महा है, उसक भगवा है। इन दो को<br />

साध लो, सब सध जाएगा। और दोन को इकठा साधने क भी जरत नहं है; इनम से<br />

एक साध, लो दसरे अपने<br />

ू -आप सध जाएगा।<br />

दसरा <br />

ू : साधु-संत को देखकर ह मुझे िचढ़ होती है और ोध भी आता है। म तो उनम<br />

िसवाय पाखंड के और कु छ भी नहं देखता हं। पर आपने न मालूम या कर दया है क<br />

ू<br />

ा उमड़ती है! आपके भाव का रहय या है?<br />

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सतीश! बात सीधी-साद है: म कोई साधु-संत नहं हं। ू और ठक ह है क साधु -संत पर<br />

तुह िचढ़ होती है। िचढ़ होनी चाहए अब। हजार साल हो गए! इन मुद से कब छु टकारा<br />

पाओगे? इन लाश को कब तक ढोओगे? अगर तुम म थोड़ भी बु है, तो िचढ़ होगी ह।<br />

तोत क तरह यह तुहारे तथाकिथत साधु-संत दोहराए जा रहे ह--रमा क कथा,<br />

उपिनषद,वेद, सयनारायण क कथा। न इनके जीवन म सय का कोई पता है न नारायण<br />

का कोई पता है। न इनके जीवन म राम क कोई झलक है, न कृ ण का कोई रस बहता<br />

है। न तो बांसुर बजती है इनके जीवन म कृ ण क, न मीरा के घुंघओं<br />

क आवाज है।<br />

इनके जीवन म कोई उसव नहं है, कोई फाग नहं है, कोई दवाली नहं है। इनके जीवन<br />

म कु छ भी नहं है। इहने तो िसफ धम के नाम पर तुहारा शोषण करने क एक कला<br />

सीख ली है। ये पारंगत हो गए ह। और ये उन बात को उपयोग करते ह, जन बात से<br />

सहज ह तुहारा शोषण हो सकता है।<br />

िभखमंगे भी इस देश म ान क बात कहते ह, मगर उसका योजन कु छ ान से नहं है।<br />

िभखमंगे भी कहते ह क दान से बड़ा पुय नहं है। कोई न उह पुय से मतलब है, न<br />

दान से मतलब है। मतलब तुहार जेब से है। वे तुहारे अहंकार को फु सला रहे ह क दान<br />

से बड़ा पुय नहं है, कहां जा रहे हो हो, दान करो! और लोथ पाप का बाप बखाना। वह<br />

तुमसे कह रहे ह क लोभ पाप का बाप है, बचो इससे! दे दो, हम तुह हलका कए देते<br />

ह। और मांग रहे ह। िभखमंगे ह। और मांगना लोभ से हो रहा है, लेकन िशा वे अलोभ<br />

क दे रहे ह!<br />

तुहारे िभखमंग म और तुहारे साधु-संत म कु छ बहत फक नहं है। तुहारे िभखमंगे म<br />

ु<br />

और तुहारे साधु-संत म इतना ह फक है क िभखमंगे गरब और साधु-संत थोड़े<br />

सुिशत, थोड़े सुसंकृ त। िभखमंगे थोड़े दन-हन, और तुहारे साधु-संत तुहारा शोषण<br />

करने म यादा कु शल ह।<br />

कल ह म एक कवता पढ़ता था--<br />

दवानी के दन<br />

एक साधु बाबा बोले,<br />

बचा! तेर रा करेगा भोले,<br />

आज दवाली है।<br />

हमारा कमंडल खाली है।<br />

भरवा दे<br />

यादा नहं बस<br />

पांच पए दलवा दे।<br />

हमने कहा: बाबाजी!<br />

दलवाना होता तो पांच या<br />

पांच लाख दलवा देते<br />

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सारा हंदतान<br />

ु<br />

आपके नाम करवा देते<br />

हम भारतीय नौजवान ह;<br />

हमारे पास अंधा भवय<br />

लंगड़ा वतमान और गूंगे<br />

बयान ह,<br />

सरकार काम नहं देती<br />

बाप पैसा नहं देता<br />

दिनया इजत नहं देती<br />

ु<br />

महबूबा िचट नहं देती<br />

लोग दवाली के दन<br />

दए जलाते ह<br />

हम दल जला रहे ह,<br />

इछाओं को आंसुओं म तल कर<br />

योहार मना रहे ह।<br />

लोग हंदतान म रहकर<br />

ु<br />

लंदन को मात करते ह।<br />

हंद क झंडा थाम कर<br />

अंेजी क बात करते ह।<br />

और हमसे कहते ह क<br />

अपनी संकृ ित को अपनाओ<br />

अब हम आजाद ह<br />

योहार मनाओ<br />

योहार आदमी को<br />

देश क संकृ ित से जोड़ता है।<br />

और संकृ ित<br />

जोड़ती है आदमी को रोशनी से<br />

मगर बाबा जी!<br />

कथनी और करनी म बड़ दर है।<br />

ू<br />

जस देश क रोशनी कमर म बंद हो<br />

उस देश म योहार<br />

थोपी हई मजबूर है।<br />

ु<br />

बाबा जी बोल,<br />

दखी मत हो बचा<br />

ु<br />

तू कमत बाला है<br />

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दवाली के दन<br />

हमारे दशन कर रहा है<br />

तुझे आशीवाद देने का<br />

मन कर रहा है।<br />

हमने कहा: अपने मन को रोकए<br />

आशीवाद दाताओं के पैर छू ते-छू ते<br />

कमर झुक गयी है<br />

जीवन क गाड़<br />

आगे बढ़ने से क गयी है।<br />

वे बोले:<br />

तू हमारे आशीष का अपमान कर रहा है<br />

हम कालदश ह<br />

वेदांती ह<br />

देख! हमारे मुंह<br />

म एक भी दांत नहं<br />

बचा, हंसने क बात नहं<br />

लोग इस जमाने म<br />

कपड़े पहन कर भी नंगे ह<br />

हम एक लंगोट म नंगापन ढांक रहे ह<br />

संत के देश म धूल फांक रहे ह।<br />

खाली कमंडल हाथ म लेकर<br />

घर-घर अलख जगाते ह<br />

और लोग हम चोर समझ कर भगाते ह<br />

सूरदास को चैन नहं िमला<br />

तो नैन फोड़ िलए<br />

हम अन नहं िमला<br />

तो दांत तोड़ िलए<br />

वे सूरदास<br />

हम पोपलदास<br />

वे अतीत के गौरव<br />

हम वतमान के संास!<br />

हमने कहा: बाबा जी!<br />

आप तो साहयकार को मात कर रहे ह<br />

साधु होकर संास क बात कर रहे ह।<br />

वे बोले: तू हम नहं पहचानता<br />

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हमारा वतमान देख रहा है<br />

भूतकाल को नहं जानता<br />

आज से दस बरस पूव<br />

हम अखल भारतीय कव थे<br />

लोग हमार बकवास को अनुास<br />

और अीलता को अलंकार कहते थे<br />

बड़े-बड़े संयोजक हमार अंट म रहते थे<br />

हमने शद से अथ कमाया है<br />

कवता को मंच पर नंगा नाच नचाया है<br />

उसी का फल चर रहे ह<br />

तन पर भभूत मल रहे ह<br />

खाली कमंडल िलए फर रहे ह।<br />

हमने कहा: दखी मत होओ बाबा<br />

ु<br />

आपका कमंडल खाली<br />

हमार जेब खाली<br />

भाड़ म जाए होली<br />

और चूहे म जाए दवाली।<br />

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नाराजगी वाभावक है। िचढ़ होती होगी सतीश, िचढ़ होनी चाहए। ोध भी आता होगा,<br />

आना ह चाहए। न तो सभी िचढ़ यथ होती है, न सभी ोध यथ होते ह। कभी तो ोध<br />

क भी साथकता होती है। इस देश को थोड़ा ोध भी आने लगे, तो भी सौभाय है। यह<br />

देश तो भूल ह गया है सार तेजवता। यह तो गुलामी म ऐसा पक गया है, ऐसा रंग गया<br />

है, क िघसता जाता है, कहं भी जोत दो, कसी भी कोह ू म जो दो,<br />

और इस देश का<br />

आदमी चलने को राजी हो जाता है।<br />

सदय से भाय िसखाया गया है, िनयित िसखाई गई है, सदय से एक ह बात िसखायी<br />

गई है क सब कमत म िलखा है। जो होना है वहं होता है। तो अगर कोह म बंधना है<br />

ू<br />

तो कोह ू म बंधना है!<br />

और साधु-संत का ऐसा समान िसखाया है...। िसखाया कसने?<br />

उहं ने िसखाया है। वह तुहारे िशक रहे ह। वह तुह बताते रहे ह।<br />

मुला नसन ने एक दन जाकर बाजार मग कहा क मेर ी से यादा सुंदर<br />

और कोई<br />

ी दिनया म नहं है। नूरजहां भी कु छ नहं थी। मुमताज महल भी कु छ नहं थी। और यह<br />

ु<br />

आजकल क हेमामािलनी इयाद का तो कोई मूय ह नहं है।<br />

कसीने पूछा: मगर मुला नसन, अचानक तुह इस बात का पता कै से चला? उसने<br />

कहा: पता कै से चला, मेर ह पी ने मुझसे कहा है।<br />

कौन तुह समझता रहा क साधु-संत को समान दो, सकार दो, सेवा करो? यह साधु-<br />

संत तुह समझाते रहे। सदय-सदय का संकार उहने डाला है। तुम उह देखकर झुक<br />

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जाते हो। झुकना यांक है, औपचारक है। तुहारे बाप भी झुकते रहे, बाप के बाप भी<br />

झुकते रहे, सदयां झुकती रह; तुम भी झुक जाते हो। उसी शृ ंखला म बंधे, कड़य म<br />

बंधे, झुक जाते हो।<br />

अछा है सतीश क िचढ़ होती है। इस देश के जवान म थोड़ िचढ़ पैदा होनी चाहए। तो<br />

कु छ टटे ू , कु छ नया बने! नहं तो तथाकिथत बड़-बड़ ांितयां हो जाती ह। देखा अभी,<br />

सम ांित सम प से असफल गयी! ांित बकवास है यहां, यक लोग के ाण म<br />

ांित का भाव नहं है। ांित ऊपर-ऊपर लीपा-पोती है! एक आदमी को हटाओ, दसरे को<br />

ू<br />

बठा दो, मगर वह दसरा ू आदमी पहले से भी बदतर हो सकता है;<br />

या तो पहले ह जैसा<br />

होगा। बहन जी नहं हगी तो भाई जी हगे, कु छ खास फक नहं पड़ेगा। कोई अंतर नहं<br />

होगा। एक लाश हटेगी, दसर ला वराजमान कर द जाएगी। नाम ांित का होगा। लेकन<br />

ू<br />

ांित क भाषा नहं हम आती। ांित का हमारे पास बोध नहं है। ांित का पहला बोध यह<br />

है क हम देखना तो शु कर क हम कतनी सदय से कतनी गलत धारणाओं म आब<br />

ह।<br />

संत कौन है? हमार परभाषा या है संत क? अगर हंद से पूछो तो उसक एक परभाषा<br />

ू<br />

है क भभूत रमाए बैठा हो, धूनी लगाए बैठा हो, तो संत हो गया। अब भभूत रमाए बैठा<br />

हो, धूनी लगाए बैठा हो, तो संत हो गया। अब भभूत लगाने से और धूनी रमाने से कोई<br />

संत होता है? सक स म भत हो जाना था; संत य?<br />

जैन से पूछो, उसक यह परभाषा नहं है। वह तो जो भभूत लगाए है और धूनी जलाए है,<br />

उसको संत तो मान नहं सकता, असंत मानेगा। यक आग जलाने से तो हंसा होती है।<br />

कड़े मरगे; आग पैदा होगी। आगे जलाना तो जैन मुिन कर ह नहं सकता। तो उसक और<br />

परभाषा है--उपवास के कोई। लंबे-लंबे उपवास करे, भूखा मरे! खुद को सताए, तरहरह से<br />

सताए, तो मुिन है।<br />

मगर यह ेतांबर जैन क परभाषा है। दगंबर से पूछो, तो जब तक यह नन न हो तब<br />

तक मुिन नहं है, चाहे कतने ह लाख उपवास करे। मुिन तो वह तभी होगा, जब नन<br />

खड़ा हो जाए, जब व का याग कर दे।<br />

ईसाइय से पूछो, तो उनक कु छ और परभाषा है, मुसलमान से कु छ और, और बौ से<br />

कु छ और। दिनया ु म तीन सौ धम ह और तीन हजार परभाषाएं ह। यक तीन सौ धम के<br />

कम से कम तीन हजार संदाय ह।<br />

संत कौन है? इन परभाषाओं से तय होने वाला नहं है। ये परभाषाएं काम न पड़गी। संत<br />

तो म उसे कहता हं<br />

ू, जसने सय को जाना। संत शद ह सय को जानने से बनता है।<br />

जसने अनुभव कया, पया सय को। जसक मौजूदगी म, जसक सनिध म तुहारे<br />

भीतर भी सय क हवाएं बहने लग, सय क रोशनी होने लगे। जसक मौजूदगी म,<br />

जसके संग-साथ म तुहारा बुझा दया जल उठे। संत वह है।<br />

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जब तक तुहारा दया न जल जाए, तब तक कसी को संत कहने का कोई कारण नहं है।<br />

हां, तुहारा दया कहं जल जाए और तुहारे भीतर आनंद का काश हो और तुह परमामा<br />

क सुिध आने लगे, तो जसके पास जाए वह संत है। फर वह नन हो क कपड़े पहने<br />

हो, महल म हो क झोपड़े म हो, उपवास कर रहा हो क सुवाद ु भोजन कर रहा हो,<br />

कु छ<br />

फक नहं पड़ता। इन सार बात से कोई संबंध नहं है। फर वह हंद हो क मुसलमान क<br />

ू<br />

ईसाई; ी हो क पुष, कोई फक नहं पड़ता। एक ह बात िनणायक है क जसके<br />

सनिध म, तुहारे भीतर सोया हआ ु जो परमामा है,<br />

वह करवट लेने लगे। तुहारे भीतर<br />

धुन बजने लगे--कोई, जो कभी नहं बजी थी! तुहार आंख गीली हो जाए कसी नए आनंद<br />

से--अपरिचत, अछू ते आनंद से! तुहारे पैर िथरकने लग--एक नए उलास से! तुहारे दय<br />

धड़कन लग--एक नए संगीत से! तुम आतुर हो जाओ--अपना अितमण करने को! वह संत<br />

है।<br />

और सतीश, जब भी ऐसा कोई संत िमलेगा तो िचढ़ कै से होगी? जब ऐसा कोई संत िमलेगा<br />

तो ा होगी। तो झुक जाने को मन होगा। नहं क झुकाओगे तुम अपने को; अचानक<br />

पाओगे क झुक गए हो। नहं क चेा करनी पड़ेगी झुकने क; नहं-नहं जरा भी नहं।<br />

झुका हआ अनुभव करोगे<br />

ु<br />

बह गया, बाढ़ म बह गया।<br />

! झुका हआ ु पाओगे!<br />

अचानक पाओगे क तुहारा अहंकार गया,<br />

मेरे पास तो के वल वे ह लोग आ सकते ह, जो तुहारे जैसे ह। जह अभी पुराने, सड़े-<br />

गले धम म भरोसा है, वे तो यहां आ भी नहं सकते। मेरे पास तो वे ह आने क हमत<br />

जुटा सकते ह, जहने देख िलया पुराने धम का सड़ा-गला पन; जहने देख ली उसक<br />

असिलयत और जो तलाश पर िनकल पड़े ह; जो खोज म िनकल पड़े ह। जो कहते ह क<br />

अब लीक पर चलने से कु छ न होगा; हम तलाश करगे, अपनी पगडंड तोड़गे--कहं तो<br />

होगा परमामा का कोई काश! कहं तो अभी भी कसी एकाध रं से उसक रोशनी आती<br />

होगी पृवी तक, हम उस रं को खोजगे। सदय-सदय पूजे गये पाखंड, यथ हो गए ह।<br />

सदय-सदय बनाए गए मंदर, खाली पड़े ह।...अब हम चलगे खुद ह तलाश पर। अब<br />

भीड़-भाड़ क न मानगे। अब तो िनज का ह अनुभव होगा तो वीकार करगे।<br />

मेरे पास, तुम कहते हो क तुह ा अनुभव होती है। तो मेरे रहय का, मेरे राज का<br />

कारण पूछा है। न कोई रहय है न कोई राज है। बात सीधी-साफ है; दो और दो चार जैसी<br />

साफ है। म कोई बंधी-बंधाई परंपरा का ितिनिध नहं हं। ू म कसी का साधु नहं हं ू, कसी<br />

का संत नहं हं। म अपनी िनजता म<br />

ू<br />

जी रहा हं। जो मेरा आनंद है<br />

ू<br />

, वैसे जी रहा हं। ू री-<br />

भर मुझे कसी और क परवाह नहं है। जह और क परवाह है, उनसे मेरा नाता नहं<br />

बनेगा। मुझसे तो नाता उनका बनेगा जहने कसी क परवाह नहं है; जह िसफ एक<br />

बात क िचंता है क सय को जानना है, चाहे दांव पर कु छ भी लगाना पड़े। संकृ ित लगे<br />

दांव पर तो लगा दगे। धम लग दांव पर तो लगा दगे। ाण लग जाए दांव पर तो लगा दगे।<br />

सहगे अपमान। सहगे असमान। सहगे िनंदा। लोग पागल कहगे तो सहगे, लेकन सय को<br />

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खोजकर रहगे! ऐसे जो लोग ह वे ह। म उनका हं। ू म उन थोड़े से लोग के िलए हं ू,<br />

जनका ऐसा दसाहस है।<br />

ु<br />

लेकन सय क खोज के िलए दसाहस ु चाहए ह। भीड़ के पास झूठ होता है,<br />

यक भीड़<br />

सय से कु छ लेना नहं है। सांवना चाहए। सांवना झूठ से िमलती है। सय से तो सब<br />

सांवनाएं टट ू जाती ह। सय तो आता है तलवार क धार क तरह और काट आता है तुह।<br />

सय तो िमटा देता है तुह। और जब तुम िमट जाते हो तब जो शेष रह जाता है, वह<br />

परमामा है। अहंकार जहां नहं है, वहं परमामा अनुभव है।<br />

लेकन, सय को खोजो, पर अकारण साधु-संत के ित िचढ़ को ह अपने जीवन क शैली<br />

मत बना लेना। उससे या लेना-देना? उसक वे जान। अगर कसी को पाखंड होना है, तो<br />

उसे हक है। पाखंड होने का। और कसी को अगर झूठ म जीना है तो यह भी उसक आमा<br />

क वतंता है क वह झूठ म जए। कसी को दोहर जंदगी जीनी है, उसक मज। तुम<br />

अपने को इसी पर आरोपत मत कर देना। नहं तो तुहारा समय इसी म न होगा--इसको<br />

घृणा करो, उसको घृणा करो; इससे िचढ़ करो, उससे ोध करो, इससे लड़ो-झगड़ो। तुम<br />

अपनी तलाश कब करोगे?<br />

और उन सौ साधु-संयािसय म कभी एकाध ऐसा भी हो सकता है, जो सचा हो। तो कहं<br />

ऐसा न हो क कू ड़ा-कक ट के साथ तुम हरे को भी फ क दो।<br />

इसिलए तुम इसक िचंता छोड़ो। तुम तो सय क तलाश म ह अपनी सार श को<br />

िनयोजत कर दो। श को बांटो मत। इस भेद को खयाल म रख लो। नहं तो तुम<br />

ितयावाद हो जाओगे, ांितकार नहं। कु छ लोग ह, जो गलत को तोड़ने म ह जंदगी<br />

गंवा देते ह। मगर गलत को तोड़ने से ह ठक थोड़े ह बनता है। तुम अगर उठा लो कु दाली<br />

और गांव म जतने भी गलत मकान ह सब िगरा दो, तो भी इससे मकान तो नहं बन<br />

जाएगा। िगरने से तो मकान नहं बन जाएगा। अछा तो यह हो क तुम पहले मकान<br />

बनाओ, सयक मकान बनाओ, मंदर बनाओ, ताक गलत अपने-आप गलत दखाई पड़ने<br />

लगे। फर िगराना भी आसान होगा। और फर इस भूल क भी संभावना नहं है क कहं<br />

गलत क चपेट म तुम ठक को भी बरा जाओ। असर ऐसा हो जाता है।<br />

अंेजी म कहावत है न क टब के गंदे पानी के साथ कहं बचे को न फ क देना! असर<br />

ऐसा हो जाता है क जब लोग ोध म आ जाते ह, तो कचरा तो फ कते ह फ कते ह, हरे<br />

भी फ क देते ह। हरे भी पड़े ह। सौ म एक ह होगा हरा।<br />

तब तुमको पहचान न पाया!<br />

पाले क ठंड अंिधयाली<br />

िनिश म जब तुम एक ठठु रते<br />

िभखमंगे का प बनाकर<br />

आए मेरे गृह पर डरते<br />

मने तुम को शरण नहं द उटे जी भर कर धमकाया।<br />

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तब तुमको पहचान न पाया!<br />

अंगारे नभ उगल रहा था<br />

बने पिथक तुम यासे पथ पर<br />

पानी थोड़ा मांग रहे थे<br />

राह कनारे बैठे थक कर,<br />

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पानी मेरे पास बहत था फर भी था तुमको तरसाया।<br />

ु<br />

तब तुमको पहचान न पाया!<br />

भूखा बालक बनकर उस दन<br />

खंडहर म तुम बलख रहे थे,<br />

मेरे पास अनाज के जाने<br />

कतने भंडार भरे थे,<br />

तब भी मने उठा ेम से नहं तुह िनज कं ठ लगाया!<br />

तब तुमको पहचान न पाया।<br />

आज तुहारे ार खड़ा म<br />

जाने ले कतनी आशाएं,<br />

बेशम क भी तो हद है<br />

कै से ये ग पलक उठाएं!<br />

म लघु पर तुम तो महान, वास यह मुझको ले आया।<br />

तब तुमको पहचान न पाया!<br />

कौन जाने, परमामा कस प म आ जाए! कौन जाने परमामा कस प म िमल जाए!<br />

इसिलए कसी प से कोई जद मत बांध लेना। आह मत कर लेना। फर वह प चाहे<br />

साधु-संत का ह य न हो। तुह या पड़? अपने सय क तलाश म लगो। तुहारा सय<br />

कट हो जाए, उसी घड़ तुह पता चल जाएगा कहां-कहां सय है और कहां-कहां सय नहं<br />

है। उसके पहले पता भी नहं चल सकता। तोड़ने का भी एक मजा होता है। वरोध का भी<br />

एक मजा होता है। िनंदा का भी एक रस होता है। उस मग मत पड़ जाना। नहं तो कई<br />

बार, ार के करब आते-आते भी चूक जा सकते हो।<br />

सय के तलाशी को पपात-शूय होना चाहए। सय के खोजी को धारणा शूय होना<br />

चाहए। पूव-धारणाएं लेकर तुम जहां भी जाओगे, वहां तुम वह नहं देख पाओगे जो है;<br />

वह देख लोगे जो तुम देखने गए थे।<br />

और जीवन सच म ह बड़ा रहयपूण है। यहां कभी-कभी ऐसी अनहोनी घटनाएं घटती ह,<br />

जनक तुम कपना भी नहं कर सकते थे। यहां इस-इस प म सय क उपलध हो<br />

जाती है, जसक तुम वन म भी धारणा नहं कर सकते थे। इसिलए मन को जद म<br />

मत बांधो सतीश! न ोध मग बांधो।<br />

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बात तो तुहार ठक है। बहत ु धोखा हआ ु है,<br />

बहत ु पाखंड हआ ु है। धम के नाम पर बहत ु<br />

उपव चला है, बहत शोषण चला है। मगर यह शोषण ऐसे ह नहं चलता रहा है। इस<br />

ु<br />

शोषण क जमेवार शोषण करने वाल पर ह नहं है। इसक बड़ जमेवार तो उन पर है<br />

जो इसे चलने देते ह। शायद उनक जरत है। शायद इसके बना वे जी नहं सकते।<br />

िसमंड ायड ने कु छ महवपूण बात म से एक महवपूण बात यह भी कह है क चालीस<br />

वष के मनुय के मनोवान के अययन के बाद, अनेक-अनेक लोग के िनरण के<br />

बाद, मेरा िनकष है क आदमी, कम से कम अिधकतम आदमी, बना झूठ के नहं जी<br />

सकते। अिधकतम लोग के िलए म के जाल चाहए ह चाहए। यक सय क चोट<br />

झेलने क मता कतने लोग क है?<br />

े क नीसे ने भी बड़ गहर बात कह है, ठक-ठक ऐसी ह ऐसी। े क नीसे ने कहा<br />

है क कृ पा करो, लोग के म मत छनो! यक लोग बना म के मर जाएंगे। म<br />

उनके जीवन का आधार है। तो शोषण यूं<br />

ह नहं चलता है। कोई है जो शोषण के बना जी<br />

नहं सकता है, इसिलए शोषण चलता है।<br />

अथशा का एक िनयम है, अब हालांक वह िनयम उतना काम नहं आता। अब तो<br />

अथशा भी शीषासन कर रहा है। लेकन पुराना िनयम यह है क जहां-जहां मांग होती है,<br />

वहां-वहां पूित होती है। जब तक कसी चीज क मांग न हो, तब तक पूित नहं होती। अगर<br />

पाखंड िसर पर बैठे ह, तो जर तुम चाहते होओगे क तुहारे िसर पर कोई बैठे। बना<br />

तुहार मांग के तुम य उह िसर पर बठाओगे? तुहारे भीतर जर उनके कारण कु छ<br />

सहारा िमलता होगा; कोई सांवना िमलती होगी, कोई सुरा िमलती होगी। तुहारे भीतर<br />

कु छ जर उनके कारण तृ होता होगा। तुहार कोई न कोई जरत वे जर पूर कर रहे<br />

ह।<br />

हालांक, अब अथशा का िनयम थोड़ा बदला है अब ऐसा, और बदलना पड़ा है वापन<br />

के कारण। यह जब िनयम बना था तब वापन इतना वकिसत नहं हआ था। अब<br />

ु<br />

वापन ने हालत बदल द है। अब वापन कहता है: पहले पूित करो, फर मांग तो पैदा<br />

हो ह जाएगी। अब वापन क दिनया ु ने ांित कर द एक। पहले तो ऐसा था--लोग<br />

क<br />

जरत होती, तो लोग मांग करते थे; मांग होती तो कोई खोज करता, पूित करता। समझो<br />

क लोग को ठंड लग रह है, कं बल क जरत है, तो कं बल बाजार म आ जाते। अब<br />

हालत उट है। अब पहले कं बल बाजार म ले जाओ। खूब चार करो क कं बल पहनने से<br />

शरर सुंदर<br />

होता है, कं बल ओढ़ने से ऐसे-ऐसे लाभ होते ह, उ लंबी होती है, आदमी<br />

यादा देर तक जवान रहता है। खूब जो-जो चार करना हो करो।...क जसके पास यह<br />

कं बल होगा, उसके पास सुंदरयां<br />

आती ह! क इस कं बल को देखकर सुंदरयां<br />

एकदम मोहत<br />

हो जाती ह! इस कं बल को देखते ह जाद छा जाता है<br />

ू ! बस फर चाहे सद हो या न; फर<br />

गम म लोग को तुम देखोगे क कं बल ओढ़े बैठे ह। पसीने से तरबतर हो रहे ह, लेकन<br />

सुंदरय<br />

क तीा कर रहे ह। अब हालत बदल गई है।<br />

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तुम ने कहावत सुनी है अंेजी क, क आवयकता आवकार क जननी है। अब उसको<br />

बदल दो। अब कहावत कर लो: आवयकता आवकार क जननी नहं; आवकार<br />

आवयकता का पता है। पहले आवकार कर लो, फर आवयकता क फकर करना;<br />

वापन करना जोर से। इसिलए अमरका म तो ऐसा है क कोई भी चीज तो लोग वापन<br />

से जीते ह! जन बात क लोग को खबर ह नहं थी, जनक उह कभी जरत नहं थी,<br />

वापन उनको जरत िसखा देता है। बस ठक से चार करो। लोग को जंचा दो क इसके<br />

बना चलेगा नहं। लोग खरदने लगगे।<br />

तो पहले तो पुरोहत आदमी क जरत से पैदा हआ। ु जरत या थी आदमी क?<br />

जरत<br />

थी क आदमी डरा हआ ु था,<br />

भयभीत था। मौत थी सामने। मौत के पार या है? यह <br />

था सामने। जंदगी म हजार-हजार मुसीबत थीं, बीमारयां थीं। य ह ये बीमारयां, इनके<br />

उर चाहए थे। तो साधु-संत पैदा हो गए। उहने उर दे दए। कसी ने उर दे दया क<br />

तुमने पछले जम म पाप कम कए थे। पछले जम का पका ह नहं अभी; लेकन<br />

पछले जम म पाप-कम कए थे, उनका फू ल भोग रहे हो! और वह जो धन िलए बैठा है<br />

और मजा कर रहा है, उसने पछले जम म पुय कए थे, इसिलए वह पुय का फल<br />

भोग रहा है! उर िमल गया। सांवना िमली। थोड़ राहत िमली। थोड़ बेचैनी कट--बड़<br />

बेचैनी कट! अहंकार को बड़ा सहारा िमला। नहं तो ऐसा लगता है क हम भी मेहनत कर<br />

रहे ह, दसरा भी मेहनत कर रहा है<br />

ू ; वह सफल होता है, हम असफल होते ह। जर हमारे<br />

पास बु क कमी है। लेकन अब बु या करे? बु तो हमारे पास उससे भी अछ है।<br />

मगर पछले जम के कम के कारण अड़चन आ रह है। राहत िमल गयी! सय के बाद<br />

घबड़ाओ मत, आमा अमर है। यह तो हम चाहते थे सुनना क कोई कह दे, कसी तरह<br />

समझा दे क आमा अमर है। हम मरना न पड़े। कोई मरना नहं चाहता। कोई समझा दे<br />

यह क भरने के बाद जो दिनया है<br />

ु , वह बड़े वग क है, सुख क है।<br />

थोड़ सी शत लगाई साधु-संत ने, वह भी ठक, क जो हमार सेवा करेगा वह मेवा<br />

पाएगा। ठक भी है। आखर वे तुहार सेवा कर रहे थे, थोड़ तुम से सेवा ली, तो दिनया<br />

ु<br />

तो लेन-देन का मामला है। कु छ तुमने दया, कु छ उनने िलया। कु छ उनने दया, कु छ<br />

तुमने िलया। सादा जब गया। उहने कहा, तुम हमार यहां सेवा करो, हम तुह पका<br />

भरोसा दलाते ह क वग म तुहार असराएं सेवा करगी। तब एक अय का धंधा हआ।<br />

ु<br />

तुह जो चाहए वह वग म िमलेगा। यहां दो, वहां लो।<br />

मगर यह बात जरा गड़बड़ क तो थी। यक यहां देना पड़े कट और करने के बाद िमलोगे<br />

क नहं िमलेगा! तो साधु-संत ने कहा क एक पैसा यहां दो, वहां एक करोड़ गुना लो।<br />

देखते हो लोभ दया! पंडे-पुजार, तीथ म बैठकर लोग को समझाते ह क तुम एक दो,<br />

एक करोड़ गुना िमलेगा। कौन नहं इस लोभ म आ जाएगा! एक पैसा दान दे दया और एक<br />

करोड़ िमलेगा, यह तो सरकार लाटर से भी बेहतर हआ<br />

ु ! यह है लाटर, असली<br />

आयामक लाटर! एक पैदा दे दया और करोड़ गुना! एक पया दे दया और करोड़<br />

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गुना...। यह कमाई कौन छोड़ेगा! और गया भी तो एक ह पया, कोई बहत बड़ा चला नहं<br />

ु<br />

गया। और अगर िमला...कौन जाने िमले ह! तो इतना लोभ दया! उस लोभ ने तुह राहत<br />

द।<br />

वग के कै से-कै से सुख के वणन ह! और फर तुह डरवाया भी। यक जो उनक न<br />

मानगे, वे नक म सड़गे। और नक म फर कै से-कै से सड़ाने का वणन है! जहने कए ह,<br />

बड़े कपना-जीवी लोग रहे हगे। कस-कस कार क ईजाद क ह नक म सड़ाने क,<br />

परेशान करने क! और वग म सब सुख। और भेद कतना? जो मानेगा इन साधु-संत<br />

को...।<br />

अब बड़ अड़चन हो गई, यक दिनया ु म बहत ु तरह के साधु -संत ह, बहत ु तरह के<br />

संदाय ह। सब के दावे ह। ईसाई कहते ह, जो ईसा को मानेगा बस वह जाएगा वग,<br />

शेष सब नक म पड़गे। जब तक पता नहं था एक धम का दसरे ू धम को,<br />

तब तक तो ये<br />

दकान चलती थीं आसा<br />

ु नी से। अब बड़ बगूचन हो गई, बड़ बडंबना हो गई। अब बड़<br />

घबड़ाहट पैदा होती है लोग को क करना या है, पता नहं कौन सचा हो! कहं ऐसा न<br />

हो क वहां पहंचे ु और जीसस इंकार कर द,<br />

यक ईसाई कहते ह जीसस पहचानते ह कौन<br />

उनका है। वे अपन-अपन को चुन लगे। वे अपनी भेड़ को चुन लगे। वे रखवाले ह, गड़रए<br />

ह; वे अपनी भेड़ को चुन लगे, बाक भेड़ जाएं भाड़ म।...तो लोग को खूब डरवाने के<br />

उपाय कए गए।<br />

मने सुना है एक आदवासी गांव म...आदवािसय को तो, सीधे-सादे भोले-भाले लोग! और<br />

बदलने के िलए भी भोली-भाली, सीधी-साद कोई तरकब खोजनी पड़ती ह, जो उनके काम<br />

आ सक । अब बड़े तक तो वे समझ नहं सकते। बाइबल और वेद का तो उह पता नहं। तो<br />

पादर ने पूरा गांव बदलने क पूर तैयार कर ली थी। ईसाई होने को गांव तैयार था। और<br />

तरकब या थी, तरकब बड़ सीधी-सरल थी। मगर तुहार तरकब भी बहत िभन नहं<br />

ु<br />

ह। कतनी ह जटल ह, उनका मौिलक ढंग वह है।<br />

तरकब यह थी क उसने एक दन सारे गांव को इकठा कया। आग जलाई एक तरफ और<br />

पानी से भरा हआ ु एक मटका रखा दसर ू तरफ। और उसने कहा क देखो,<br />

कौन सचा है?<br />

कससे परख क जाए? आदवासी कहते ह भवसागर कहा है संसार को, तो सचा वह जो<br />

ितरा दे। तो पानी म जो डू ब जाए, वह झूठा और जो बच जाए वह सचा। उसने दो मूितयां<br />

बना रखी थीं। एक राम क मूित, वह लोहे क और एक जीसस क मूित, वह लकड़ क।<br />

और एक ने एक दसरा ू सेट भी अपनी झोले म तैयार रखा था,<br />

अगर आग से परा करनी<br />

हो तो उटा वहां जीसस लोहे के और राम लकड़ के । मटके म उसने डाल दं दोन मूितयां।<br />

राम जी तकाल डूब गए। लोहे के थे तो बचते कै से? जीसस तैरने लगे। तािलयां बज गई।<br />

गांव के लोग ने कहा क अब इससे यादा य माण और या? संसार भव-सागर है!<br />

ये राम जी के साथ गए तो खुद भी डू बे। आप डूबते, ले डू बे जजमान! खुद तो डूबगे<br />

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महाराज, और हम भी डु बाएंगे। जीसस ह बचावनहार! देखो या तैर रहे ह! तुह भी ितरा<br />

दगे।<br />

वह तो सब गड़बड़ हो गयी एक आदमी क वजह से। एक हंद ू संयासी भी गांव म ठहरा<br />

हआ ु था। उसको यह खबर लगी। वह भागा हआ ु पहंचा। ु उसने यह सब हालत देखी;<br />

सब<br />

समझ गया राज। उसने कहा: भाई, परा तो अन से होगी, यक अन-परा ह<br />

हंदतान ु म चलती रह है। राम जी भी जब सीता जी को लेकर आए थे तो अन-परा<br />

ली<br />

थी। जल-परा सुनी कभी?<br />

गांव के लोग ने कहा। यह बात तो यह ठक है। जल-परा तो सुनी ह नहं। अन-परा!<br />

पादर थोड़ा डरा। उसने कोिशश तो क कसी तरह झोले म िछपी दसर ू मूितयां िनकाल ले ,<br />

लेकन अब इस संयासी को धोखा देना मुकल था। उसने तो मटके म डली हई मूितयां<br />

ु<br />

बाहर िनकाल लीं और उसने कहा क अब असली परा होती है देखो। डाल दं दोन को<br />

आग म। राम जी तो मजे से खड़े रहे, जीसस महाराज भभक कर जल गए। संयासी ने<br />

कहा: देखो, अन-परा होगी, उस मग जो पार उतरेगा, वह ह तुह पार उतारेगा।<br />

आदमी के साथ यह खलवाड़ चलता रहा है। उसे ऐसे ह तक दए जाते रहे ह। उसे इसी<br />

तरह के गणत समझाए जाते रहे ह। आदमी भयभीत है; बचना चाहता है। मौत सामने खड़<br />

है। साधु-संत ने यह मौका नहं छोड़ा। उहने इसका शोषण कर िलया है। उहने हजार-<br />

हजार िसांत खड़े कर िलए। लेकन आज अड़चन खड़ हो गई है, यक दिनया के सारे<br />

ु<br />

धम, पहली बार एक-दसरे ू से परिचत हए ु ह। इसके पहले तो सब अपने-अपने<br />

कु एं म बंद<br />

थे। वान ने कु एं तोड़ दए, सीमाएं तोड़ दं। संसार छोड़ा हो गया; एकदम छोटे गांव<br />

जैसा हो गया। आज यूयॉक म और पूना म अंतर ह या है? घंट का फासला रह गया।<br />

इतने करब हो गया है सब क यूयॉक म नाता लो, लंदन म भोजन करो, और पूना म<br />

बदहजमी झेलो! सब इतना करब हो गया है। एकदम जुड़ गया है। इतनी दिनया करब आ<br />

ु<br />

गई इस करब दिनया ु म अब मन बहत ु वांत है क कौन सह कौन गलत?<br />

म तुमसे कहना चाहता हं<br />

ू: ये यार धारणाएं ह यथ। इससे सह और गलत चुनना ह मत।<br />

इनम कु छ गलत नहं, कु छ सह नहं। ये अलग-अलग दकान ु के अलग-अलग<br />

इतहार थे।<br />

ये दकान ह गलत थीं। धम का कोई संबंध परलोक से नहं है। धम को संबंध वतमान से है।<br />

ु<br />

धम का कोई संबंध मृयु के पार से नहं ह, धम का मौिलक संबंध जीवन के िनखार से ह।<br />

धम का कोई संबंध पाप और पुय से नहं है, धम का संबंध है मूछा और जागरण से।<br />

तुम जागो! और जागोगे तो अभी ह जाग सकते हो, कल नहं। इस ण का जागरण का<br />

ण बना लो। इस ण को िनखार लो। इस ण को उसव, रसमय कर लो। फर सब शेष<br />

अपने आप ठक हो जाएगा। यक दसरा ण इसी ण से पैदा होगा। वह और भी रसपूण<br />

ू<br />

होगा। और अगर कोई जम है...और म जानता हं ू क मृयु के बाद जम है,<br />

जीवन है।<br />

लेकन तुमसे कहता नहं क मेर बात पर भरोसा करो। मेरा जानना मेरा मानना; उस पर<br />

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तुह कोई अपने आधार खड़े नहं करने ह। लेकन अगर यह जीवन तुहारा सुंदर<br />

हआ ु , तो<br />

आने वाला जीवन इसी जीवन से तो उमगेगा, और भी सुंदर<br />

होगा।<br />

और तुम पाप-पुय म चुनने के बजाय जागृित और मूछा म चुनो। यक पाप और पुय<br />

तो सभी धम के अलग-अलग ह, लेकन जागृित और मूछा सभी धम क अलग-अलग<br />

नहं हो सकती। ईसाई जागे तो भी जागे और हंद जागे तो भी जागे और जैन जागे तो भी<br />

ू<br />

जागे। जागरण हंद नहं होता और न मुसलमान होता है। जागरण तो बस जागरण है और<br />

ू<br />

मूछा मूछा है। हां, पाप-पुय म बड़े भेद ह। अगर मांसाहार करो तो मुसलमान के िलए<br />

पाप नहं है, ईसाई के िलए पाप नहं है। और ईसाई अपनी कताब के उदाहरण देने को<br />

तैयार ह क ईर ने सारे पशु-पी बनाए मनुय के उपयोग के िलए। वह तो ईर का<br />

वय बाइबल म दया हआ ु है मनुय के उपयोग के िलए सारे<br />

पशु-पी बनाए; और तो<br />

कोई इनका उपयोग ह नहं है।<br />

अगर जैन से पूछो तो मांसाहार महापाप है। उससे बड़ा कोई पाप नहं। लेकन रामकृ ण<br />

मछली खाते रहे और मु हो गए। जैन क हसाब से नहं हो सकते। जैन के हसाब से<br />

रामकृ ण को परमहंस नहं कहना चाहए। हंसा तो मोती चुग।...और ये मछली चुग रहे ह!<br />

और परमहंस हो गए मछली चुग-चुग कर। और बंगाली मछली न चुगे तो चले नहं काम।<br />

कठनाई है बहत<br />

ु , पाप कौन तय करे, पुय कौन तय करे! ईसाइय का एक समूह है स<br />

म, अब तो समा होने के करब हो गया, लेकन उसक मायता यह थी क जस पशु-<br />

पी को तुम खा लेते हो, उसक आमा को तुम मु कर देते हो बंधन से। न के वल पाप<br />

तो कर ह नहं रहे, पुय कर रहे हो। उसक आमा को मु कर रहे हो। जैसे कोई पी<br />

बंद है, तोता बंद है पंजड़े म, तुमने पंजड़ा खोल दया और तोते को उड़ा दया। इसको<br />

तुम पाप कहोगे? उस संदाय क यह मायता थी क तुमने एक तोते को खा िलया, तो<br />

वह जो वह शरर था तोते का, वह पंजड़ा था। वह पचा गए। पंजड़े ह पचाओगे, आमा<br />

तो मु हो गई। तो तुमने कृ पा क तोते पर! तुमने तोते का बड़ा कयाण कया। अब उसक<br />

आमा बंधन से मु हो गई। और चूंक<br />

मनुय ने उसे पचा िलया, अगला जम उसका<br />

अछा जम होगा।<br />

इसी आशा म तो हंद भी नरबिल करते रहे<br />

ू ; आज भी देते ह! आज भी मूढ़ क कमी नहं<br />

है। इस देश म अमेध य हए। ु अमेध,<br />

और गऊ माता क पूजा करने वाले गो-मेध<br />

करते रहे। वे ऋष-मुिन! गऊ-मेध क तो बात ह छोड़ दो नर-मेध भी करते रहे। लेकन य<br />

क वेद पर चढ़ाई गई गऊ, सीधी वग जाती है!<br />

बु ने मजाक कया है। एक गांव म य हो रहा है, भेड़-बकरयां काट जा रह ह, और<br />

बु आ गए, बस ठक समय पर आ गए। उहने पूछा उस पंडत को, पुरोहत को, जो<br />

यह कर रहा है हया का काय। खास पंडत-पुरोहत होते थे, जो यह काम करते थे। तुम<br />

जानकर चकत होओगे, तुम म कोई शमा यहां मौजूद ह तो नाराज न ह। शमा उहं<br />

पंडत-पुरोहत का नाम है। शमा का अथ होता है शम न करने वाला, काटने वाला। जो य<br />

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म पशु-पय का काटता था, वह शमा कहा जाता था। अब तो लोग-भूल गए ह। अब तो<br />

शमा बड़ा समात शद है। इनका समात क वमा इयाद भी अपने को छोड़कर शमा<br />

िलखते ह। शमा का मतलब होता है हयारा। लेकन हयारा साधारण नहं--असाधारण!<br />

आमाओं को वग पहंचाने लगा।<br />

ु<br />

तो बु ने कहा क यह तुम या कर रहे हो? तो उहने कहा क यह कोई हया नहं है,<br />

हंसा नहं है। ये जो पशु-पी काटे जाएंगे, इन सब क आमाएं वग चली जाएगी। तो बु<br />

ने बड़ा मजाक कया! और बु ने कहा: तो अपने माता-पता को य नहं काटते? वग ह<br />

भेद दो। यह अवसर िमला, वग भेजने का ार खुला और तुम इन पशु-पय को भेज रहे<br />

हो, माता-पता को भेद दो। पी-बच को भेद दो। फर सब को भेज कर खुद भी चले<br />

जना। मगर इन पशु-पय को तो न भेजो। ये तो जाना भी नहं चाहते। ये तो तड़फ रहे<br />

ह। ये तो भागना चाहते ह। ये तो कहते ह मा करो! बोल नहं सकते। जरा इनक आंख तो<br />

देखो, िगड़िगड़ा रह ह। िमिमया रहे ह; ये कह रहे ह हम जाने दो। ये तो वग नहं जाना<br />

चाहते, इनको तुम भेज रहे हो। और जो जाना चाहते ह...। जस यजमान ने यह करवाया है<br />

य, वह वग जाना चाहता है, उसी को भेज दो।<br />

खूब चालबाज लोग दिनया म थे। चालबाजयां चलती रहं। चालबाजयां हम सहते रहे। पाप<br />

ु<br />

और पुय का िनणय करना मुकल है। एक तरफ ह अमेजान नद के कनारे के बसे हए<br />

ु<br />

लोग, जो आदिमय को भी जाते ह और इसम कोई पाप नहं। मनुय का आहार कर जाते<br />

ह, भण कर जाते ह, और इसम जरा भी कोई पाप नहं है। और एक तरफ वेकर ह,<br />

जो दध ू भी नहं पीते। यक दध ू भी,<br />

आता तो शरर से है। खून से छन-छनकर आता है।<br />

र का ह हसा है। देह का अंग है। चाहे हाथ को काट कर खाओ और चाहे मां के तन<br />

से दध को ले कर पी<br />

ू लो, है तो इसम हंसा ह।<br />

और गाय का तुम दध पीते हो<br />

ू ; वह तुहारे िलए बनाया नहं गया है। वह तो गाय के बछड़े<br />

के िलए बनाया गया है। बछड़े से छन कर तुम पी रहे हो, तो तुम पाप ह कर रहे हो। फर<br />

दध ू िसवाय आदमी को छोड़कर कोई पशु एक उ के बाद नहं पीता,<br />

इसिलए यह<br />

अाकृ ितक भी है। छोटे बचे दध पीए मां से<br />

ू , ठक है। लेकन जैसे ह उनके दांत ऊग<br />

आए, अन पचाने लगे, फर दध छू ट जाना चाहए।<br />

ू<br />

तो एक तरफ वेकर ह, जो दध भी नहं पीते। एक वेकर मेहमान मेरे घर के सुबह मने<br />

ू<br />

उनसे पूछा: आप चाय लगे, काफ लगे, दध लगे<br />

ू ? उहने मुझे ऐसे चककर देखा, जैसे<br />

कसी जैन-मुिन से तुम पूछो क अंडा लगे, क मछली लगे, क गऊ-मांस, या वचार<br />

है? ऐसे चककर देखा, कहा: आप और इस तरह क बात पूछते ह! मने कहा: कु छ भूल<br />

हई ु ? उहने कहा क वेकर और दधू , चाय, काफ। दध ू तो हम छू नहं सकते। दध ू तो<br />

पाप है। दध ू तो हंसा है,<br />

मांसाहार का हसा है। बड़ अजीब दिनया ु है। हंदतान ु म तो<br />

लोग समझते ह दध सबसे यादा शु है। बड़ अजीब दिनया है। हंदतान म तो लोग<br />

ू ु ु<br />

समझते ह दध ू सब से यादा शु आहार,<br />

सावक आहार। अगर कोई आदमी िसफ दधू ह<br />

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दध ू पीकर रहे,<br />

दधार ु हो जाए,<br />

तो उसको लोग महामा मानते ह। वेकर क म इस<br />

आदमी से बड़ा पापी नहं। दध ह दध पी रहा है<br />

ू ू , शु मांसाहार है! तो या पाप है, या<br />

पुय है? मेर म ये सब पाप-पुय सामाजक यवथाएं ह। ये पाप-पुय वतुतः<br />

मूयवान नहं ह। ये ऐसे ह ह जैसे राते के िनयम। बाएं चलो क दाएं चलो। बाएं चलो तो<br />

भी ठक है...और दाएं चलो तो भी ठक है। हंदतान ु म िलखा होता है बाएं चलो,<br />

अमरका<br />

म िलखा होता है दाएं चलो। िनयम कु छ न कु छ चाहए। राते पर सभी तरफ लोग चले तो<br />

दुघटनाएं हो जाएंगी, बहत ु दघटनाएं ु हो जाएंगी। शायद कोई भी अपने घर नहं पहंच ु<br />

पाएगा। ैफक जाम हो जाएगी। तो िनयम बनाना पड़ता है। िनयम उपयोगी है, लेकन<br />

िनयम क कोई शातता नहं है।<br />

ऐसे ह ये तुहारे पाप-पुय के िनयम ह। जन लोग के साथ रहते हो, जनक सड़क पर<br />

चलते हो, बाएं चलो क दाएं चलो, वैसा मानकर चल लेना। मगर इनका कोई वातवक<br />

मूय नहं है। फर वातवक मूय बात का है? दो ह बात का। मूछा से जयो तो पाप<br />

और होश से जयो तो पुय। और मेरे देखे यह समझ म आता है क जो आदमी जतना<br />

होश से जीएगा, चकत हो जायेगा। जो-जो गलत है, वह अपने आप छू टता चला आता है!<br />

अपने-आप! जो-जो गलत है, छोड़ना नहं पड़ता, छू ट जाता है। यक होश से भरा हआ<br />

ु<br />

आदमी कै से कर सकता है गलत को! जैसे अंधा आदमी तो शायद कभी दवाल से िनकलने<br />

क कोिशश करे, आंख वाला कै से दवाल से िनकलने क कोिशश करेगा? आंख वाला तो<br />

दरवाजे से िनकलता है। ऐसे ह जसके पास जागरण के चु ह, यान क आंख है, वह<br />

जो भी करता है ठक करता है।<br />

मुझसे जब लोग पूछते ह क ठक या है, तो उनको म कहता हं क योरे म मत जाओ।<br />

ू<br />

यक योरे का तो तय करना बहत मुकल है। एक<br />

ु तरफ ईसाई ह, जो कहते ह सेवा<br />

करो; जतनी सेवा करोगे, उतना ह वग िनकट है। अपताल खोलो, कोढ़य के हाथ-पैर<br />

दबाओ, कू ल चलाओ। और एक तरफ तेरापंथी जैन ह, जो कहते ह क राते के कनारे<br />

कोई यासा भी मरता हो तो तुम चुपचाप अपने राते पर चले जाना, उसको पानी भी न<br />

पलाना। य? उनका भी हसाब है। वे कहते ह वह आदमी जो राते कनारे तड़फ कर मर<br />

रहा है, जर कसी पछले जम के पाप का हल भोग रहा है। अब तुम उसको पानी पला<br />

दो, तो पाप का फल भोगन से वंिचत करने का मतलब यह है क फर कभी भोगना पड़ेगा।<br />

तुमने उसक और याा बढ़ा द। उनका गणत समझो। उसको फल भोग लेने दो बेचारे को<br />

तो झंझट खम हो जाए। एक पाप कटे। कटा जा रहा था पाप, आप पानी लेकर आ गए!<br />

कटते-कटते पंजड़े के बाहर हो रहा था पी, फर तुमने दरवाजे पर सांकल लगा द, फर<br />

पानी पला दया। फर उसको क से बचा दया।<br />

और दसरा खतरा भी है। वह जो और भी बड़ा है। वह यह क इसको तुमने पानी पला कर<br />

ू<br />

बचा दया। पता नहं यह आदमी कौन हो, डाकू हो, हयारा हो, चोर हो, बेईमान हो,<br />

राजनेता हो, लुचा-लफं गा कौन हो या पता! और कल जाकर यह कसी क हया कर दे,<br />

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तो फर तुम ह पाप के भागीदार होओगे। न तुम पलाते पानी, न यह बचता, न हया<br />

होती। तो तुम शृ ंखला के हसे हो गए। सावधान! यह कल राजनेता हो जाए! कोई भी हो<br />

सकता है।<br />

जब म कू ल म पढ़ता था, तो जो मुझे नागरक शा पढ़ाते थे अयापक, उनसे मेरा बड़ा<br />

ववाद हो गया। ववाद इस बात पर हो गया था क वे कहते क वतं लोकतं म कोई भी<br />

य देश का धानमंी हो सकता है। म उनसे कहता था, यह कै से हो सकता है, कोई भी<br />

य? कोई योयता चाहए। कोई भी कै से हो सकता है? कोई कु शलता चाहए।<br />

फर वे तो चल बसे। लेकन जब मोरारजी देसाई धानमंी हए<br />

ु , तो मने उनक चल बसी<br />

आमा से मा मांगी। मने कहा: माफ करो, हे मेरे नागरक शा को पढ़ाने वाले िशक!<br />

तुम ठक कहते थे। जब मोरारजी देसाई भी हो सकते ह तो कोई भी हो सकता है। मेर<br />

गलती थी। तुमने ठक ह कहा था। मेरा ववाद करना उिचत न था।<br />

अब या पता इसको पानी पला दो और वह कल देश का धानमंी हो जाए और फर<br />

हजार तरह के उपव करे, हजार तरह के उपव करवाए! सबका पाप कस पर लगेगा? तो<br />

तेरापंथ मानता है क राह म पड़े हए यासे आदमी को पानी भी मत पलाना। और एक<br />

ु<br />

तरफ ईसाई ह, वे मानते ह क हमेशा डोर और बाट साथ म रखो क कहं कोई यासा<br />

िमल जाए, जद से कु एं म डालो डोर, िनकालो पानी, पलाओ। सब इंतजाम पास म<br />

रखो।<br />

मने सुनी है चीन क एक कहानी। एक मेला भरा है। और एक आदमी िगर पड़ा कु एं म।<br />

शोरगुल बहत है। बहत िचलाता है<br />

ु ु , मगर कोई सुनता नहं। तब एक बौ-िभु उसके पास<br />

आकर का। उसने नीचे नजर डाली। वह आदमी िचलाया क बचाओ महाराज! हे िभु<br />

महाराज मुझे बचाओ! म मरा जा रहा हं। ू िभु ने कहा:<br />

भगवान ने कहा है क जीवन तो<br />

जरा है, मरण है। मरना तो होगा ह। मरना तो सभी को है। यहां जो भी आए सभी को<br />

मरना है।<br />

उस आदमी ने कहा: वह सब ठक है, अगर अभी, अभी फलहाल तो िनकालो, फर जब<br />

मरना है मरगे। मगर बौ-िभु भी ानी था, उसने कहा क या समय से भेद पड़ता है,<br />

आज मरे क कल मरे! अरे जब मरना ह है तो मर ह जाओ। और जय जीवन क आशा<br />

छोड़कर मरोगे, तो फर पुनजम नहं होगा। और यह जीवन क आशा लेकर मरे, फर<br />

सड़ोगे। चौरासी का चकर है!<br />

वह आदमी वैसे ह तो मरा जा रहा है, उसको और चौरासी का चकर! बौ िभु तो आगे<br />

बढ़ गया। ान क बात कह द, मतलब क बात कह द; सुनो सुनो, समझो, न समझो<br />

न समझो। उसके पीछे एक कयूिशयन िभु आकर का। उसने भी देखा नीचे। वह आदमी<br />

िचलाया क महाराज, तुम बचाओ। कयूिशयस को मानने वाले ने कहा: घबड़ा मत,<br />

कयूिशयस ने अपनी कताब म िलखा है क हर कु एं पर पाट होनी चाहए, आज यह<br />

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माण हो गया। इस कु एं पर पाट नहं है, इसिलए तू िगरा। अगर पाट होती, कभी न<br />

िगरता। हम सारे देश म आंदोलन चलाएंगे क हर कु एं पर पाट होने चाहए।<br />

उसने कहा: यह सब तुम करना पीछे । म मर जाऊं गा। और अब पाट भी बन जाएगी। तो<br />

या होगा? म तो िगर ह चुका हं।<br />

ू<br />

उसने कहा: तू तो फकर ह मत कर; यह सवाल यय का नहं है। य तो आते रहते<br />

ह, जाते रहते ह; सवाल समाज का है।<br />

वह गया और मंच पर खड़ा हो गया और मेले म लोग को समझाने लगा क भाइयो! हर<br />

कु एं पर पाट होने चाहए।<br />

तब एक ईसाई पादर भी आकर का। उसने जद से अपने झोले म से बाट िनकाली,<br />

रसी िनकाली। बाट डाली, रसी डाली। आदमी को कहा क पकड़ ले रसी, बैठ जा<br />

बाट म। खींच िलया उसे बाहर। वह आदमी पैर पर िगर पड़ा और उसने कहा क तुहं<br />

सचे धािमक आदमी हो। बौ-िभु आया, वह मुझे धमपद क गाथाएं सुनाने लगा।<br />

कयूिशयसी आया, वह मुझे कहने लगा क सब कु ओं पर पाट बनवा दगे, तू मत घबड़ा।<br />

तेरे बचे कभी भी नहं िगरगे। एक तुहं, सचे, जो तुमने मुझे बचाया। मगर एक बात<br />

मेरे मन म उठती है क एकदम से बाट-रसी कहां से ले आए?<br />

उसने कहा: म ईसाई हं। हम सब इंतजाम पहले ह करके चलते ह। सेवा हमारा धम है। और<br />

ू<br />

हमार तुमसे इतनी ह ाथना है, न तो जरत है कु ओं पर पाट बनाने क, न जरत है<br />

धमपद क गाथाओं को याद करने क। ऐसे ह िगरते रहना, ताक हम भी बचाएं, हमारे<br />

बचे भी बचाए। अपने बच को भी समझा जाना क िगरते रहना। यक न तुम िगरोगे<br />

न हम बचाएंगे, तो फर वग कै से जाएंगे?<br />

यहां सबके अपने हसाब ह। यहां कसी को कसी और से योजन नहं है। यहां या पुय<br />

या पाप! मेरे हसाब म एक ह पाप है--मूछत जीना। ऐसे जीना जैसे तुम शराब पी कर<br />

जी रहे हो। और ऐसे ह लोग जी रहे ह। दरया कहता है; जागे म जागना है। और हम तो<br />

जागे म सोए ह! सोये मग तो सोए ह ह, जागे म सोए ह। हम जागे म जागना है और<br />

फर सोए म भी जागना है।<br />

कृ ण ने कहा है: या िनशा सवभूतायां तयां जागित संयमी। जब सारे लोग सोए होते ह,<br />

तब भी जो वतुतः योगी है, यानी है, जागा होता है। गहर से गहर नींद म भी उसके<br />

यान का दया नहं बुझता है। उसका यान का दया जलता रहता है।<br />

तो म तुमसे कहता हं<br />

ू: जागो! होश को संभालो। फर तुम जो भी करोगे, वह ठक होगा।<br />

ठक करने से होश नहं सहलता; होश सहल ने से ठक होता है। गलत छोड़ने से होश<br />

नहं सहलता, होश सहलने से गलत छू टता है। म अपने सारे धम को एक ह शद म<br />

तुमसे कह देना चाहता हं<br />

ू--वह यान है। और यान का अथ--होश, ा, जागरण।<br />

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तीसरा : भगवान! बुरे काम के ित जागरण से बुरे काम छू ट जाते ह तो फर अछे<br />

काम जैसे ेम, भ आद के भी ित जागरण हो, तो या होता है? कृ पया इसे प<br />

कर।<br />

रामछव साद! जागरण क तीन सीढ़यां ह। पहली सीढ़--ाथिमक जागरण। बुरे का अंत हो<br />

जाता है और शुभ क बढ़ती होती है। अशुभ वदा होता होता है, शुभ घना होता है। तीय<br />

चरण--शुभ वदा होने गलता है, शूय घना होता है। और तृतीय चरण--शूय भी वदा हो<br />

जाता है। तब जो सहज...तब जो सहज अवथा रह जाती है, जो शु चैतय रह जाता है<br />

बोधमा, वह बुावथा है, वह िनवाण है।<br />

शु करो जागना, तो पहले तुम पाओगे जो गलत है छू टने लगा। जागकर िसगरेट पयो,<br />

तुम न पी सकोगे। इसिलए नहं क िसगरेट पीना पाप है। कसी का या बगड़ रहा है?<br />

िसगरेट पीने म या पाप हो सकता है? कोई आदमी धुआं बाहर ले जाता है, भीतर ले<br />

आता है; बाहर ले जाता है, भीतर ले जाता है। इसम या पाप है? िसगरेट पीने म पाप<br />

नहं है। बुपन जर है<br />

ू , मगर पाप नहं है। मूढ़ता जर है, लेकन पाप नहं है। मूढ़ता<br />

इसिलए है क शु हवा ले जा सकता था और ाणायाम कर लेता। ाणायाम ह कर रहा है।<br />

लेकन नाहक हवा को गंद करके कर रहा है। धूपान एक तरह का मूढ़तापूण ाणायाम है।<br />

योग साध रहे ह, मगर वह भी खराब करके । शु पानी था, उसम पहले कचड़ िमला लीख<br />

फर उसको पी गए।<br />

अगर तुम जरा होशपूवक िसगरेट पयोगे पीना मुकल हो जाएगा। यक तुह मूढ़ता<br />

दखाई पड़ेगी। इतनी कटता से दखाई पड़ेगी क हाथ क िसगरेट हाथ म रह जाएगी।<br />

पहले ऐसी यथ क चीज छू टनी शु हगी। फर धीरे-धीरे तुम जो गलत करते थे, जरा-जरा<br />

सी बात पर ु हो जाते थे, नाराज हो जाते थे--वह छू टना शु हो जाएगा। यक बु ने<br />

कहा है: कसी दसरे क भूल पर तुहारा ु होना ऐसे ह है जैसे कसी दसरे क भूल पर<br />

ू ू<br />

अपने को दंड देना। जब जरा बोध जगेगा, तो तुम यह देखोगे क गाली तो उसने द और<br />

म भुनभुनाया जा रहा हं ू और म जला जा रहा हं ू और म वमुध हआ ु जा रहा हं ू! यह तो<br />

पागलपन है! गाली जसने द वह भोगे। न मने द न मने ली।<br />

जैसे ह तुम जागोगे, गाली का देना-लेना बंद हो गया। अब तुहारे भीतर ोध नहं उठे गा,<br />

दया उठे गी। मा-भाव उठे गा--बेचारा! अभी भी गाली देने म पड़ा है। वे ह शद जो गीत<br />

बन सकते थे, अभी गाली बन रहे ह। वह जीवन-ऊजा-जो कमल बन सकती थी, अभी<br />

कचड़ है। तो पहले तो बुरा छू टना शु हो जाएगा। और जैसे-जैसे ह बुरा छु टेगा, तो जो<br />

ऊजा बुरे म िनयोजत थी वह भले म संलन होने लगेगी। गाली छू टेगी तो गीत जमेगा।<br />

ोध छू टेगा, कणा पैदा होगी। यह पहला चरण है। घृणा छू टेगी, ेम बढ़ेगा।<br />

फर दसरा चरण<br />

ू --भले क भी समाि होने लगेगी। यक ेम भी बना घृणा के नहं जी<br />

सकता। वह घृणा का ह दसरा पहलू है।<br />

ू इसिलए तो कभी भी तुम चाहो तो घृणा ेम बन<br />

सकती है और ेम घृणा बन सकता है। ोध कणा बन सकती है, कणा ोध बन सकता<br />

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है, वह परवतनीय है। वे एक ह िसके के दो पहलू ह। तो पहले बुरा गया, िसके का<br />

एक पहलू वदा हआ ु ; फर दसरा ू पहलू भी वदा हो जाएगा,<br />

फर भला भी वदा हो जाएगा।<br />

और शूय क बढ़ती होगी। तुहारे भीतर शांित क बढ़ती होगी। न शुभ न अशुभ। तुम<br />

िनवषय होने लगोगे, िनवकार होने लगोगे।<br />

और तीसरे चरण म, अंितम चरण म, यह भी बोध न रह जाएगा क म शूय हो गया हं<br />

ू,<br />

यक जब तक यह बोध क म शूय हं<br />

ू, तब तक एक वचार अभी शेष है--म शूय हं<br />

ू,<br />

यह वचार शेष है। यह वचार भी जाना चाहए। यह भी चला जाएगा। तब तुम रह गए<br />

िनवचार, िनवकप। उस को ह पतंजिल ने कहा है िनबज समािध; बु ने कहा है<br />

िनवाण; महावीर ने कहा है कै वय क अवथा। जो नाम तुह ीितकर हो, वह नाम तुम<br />

दे सकते हो।<br />

अंितम : भगवान! भु-िमलन म वतुतः या होता है? पूछते डरता हं<br />

ू, पर जासा<br />

बना पूछे मानती भी नहं। भूल हो तो मा कर!<br />

रामदलारे<br />

ू ! भूल जरा भी नहं है जासा वाभावक है। जसे खोजने चले ह, उसे खोजकर<br />

या होगा? जसक तलाश पर िनकले ह, उसे िमलने से या होगा? यह सहज भाव है मन<br />

मग उठने वाला। जब कमल खलगे तो कै सी सुवास होगी, कै सा रंग होगा, कै सा प होगा?<br />

अमी झरत, बगसत कं वल! जब अमृत बरसेगा, नहा-नहा जाएंगे, तो कै सी अनुभूित होगी,<br />

कै सी गदगद अवथा होगी? यह जासा बलकु ल वाभावक है।<br />

नहं कोई भूल है, फर भी इस जासा को शांत करने का कोई उपाय नहं है। बना<br />

अनुभव के यह शांत नहं होगी। म कतना ह कु छ कहं ू, वह तो गूंगे<br />

का गुड़ है: जसे होता<br />

है बस वह जानता है। हां, तुह खूब तड़फा सकता हं। ू तुह खूब यासा<br />

कर सकता हं ू मगर<br />

यह नहं कह सकता क जब तुम सरोवर पर पहंच ु जाओगे और अंजुली भर-भर<br />

कर पीओगे,<br />

तो जो तृि होगी वह कै सी होती है!<br />

वह तृि हई मुझे। वह तुि तुह भी हो सकती है। मगर उस तृि को शद म कट करने<br />

ु<br />

का कोई उपाय नहं है। तुहार जासा ठक। जरा भी भूल नहं। मा मांगने का कोई<br />

कारण नहं; लेकन मेर असमथता भी समझो, मेर ववशता भी समझो। और वह मेर ह<br />

असमथता ह नहं है, समत बु क है। कौन उसे आज तक कह पाया क भु-िमलन म<br />

वतुतः या होता है? और जो भी कहा गया है, वह बहत ु दरू<br />

पड़ जाता है, बहत ु ओछा<br />

पड़ जाता है। जो भी कहो, छोटा पड़ जाता है। मुठ म आसमान को बांधो, तो कै से<br />

बांधो? साधारण से कामचलाऊ शद म िनःशद को कै से कट करो? बहत कठनाई है।<br />

ु<br />

असंभावना है।<br />

लपट का अंशुक ओढ़ यािमनी आई<br />

धुनकर तारे कर िलए तूल से झीने<br />

फर बुने तार िसतयाम चांदनी भीने<br />

चंदन बूंद<br />

से सजा सुरमई चूनर,<br />

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पघली वाला के रंग म रंगवाई।<br />

घन अग धूमलेखा से लहरे कुं<br />

तल<br />

उजली िचतवन म उड़े बलाक के दल<br />

सांस म वािसत रह-रह िसहर-िसहर कर<br />

सरसर बहती है आभा क पुरवाई।<br />

आंिधयां पीत पलव सी झर बछ जातीं,<br />

तम क हलोर संदेश दवस का लातीं,<br />

पस गई बजिलयां पथ म रथ च से<br />

उड़-उड़कर पीली रेणु ितज पर छाई,<br />

नभ का कदंब दपक-फू ल म फू ला,<br />

दख ु का वहंग भू के नीड़ को भूला,<br />

आतप तन दन क सरंिगणी छाया,<br />

िनिश बन, कण-कण ाण म आज समाई।<br />

जल उठे नयन म वन, भाल पर म-कण,<br />

दपत भात क सुिध म जलता है मन,<br />

जीवन मेरा िनकं प िशखा दपक क<br />

लौ से िमल लौ ने अब असीमता पाई।<br />

लपट का ओढ़ दकू ल िनशा मुकाई।<br />

ु<br />

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इतना ह कहा जा सकता है--जीवन मेरा िनकं प िशखा दपक क, लौ से िमल लौ अब<br />

असीमता पाई!<br />

बूंद<br />

सागर म िमल जाती है और असीम हो जाती है। छोट सी लौ अनंत रोशनी म एक हो<br />

जाती है। लहर सागर हो जाती है। सीमा टटती ू है,<br />

असीम कट होता है। मृयु िमटती है,<br />

अमृत का अनुभव होता है। खूब रंग बरसता है। खूब फाग खेली जाती है--ऐसे रंग क जो<br />

िमटते नहं। खूब गुलाल उड़ती है--ऐसी गुलाल जो न देखी, जो न सुनी--जो इस जगत क<br />

नहं है!<br />

पचकार ने खला दया है<br />

नई ीत का रंग<br />

क फागुन के दन आये रे!<br />

कसने मला गुलाल<br />

लाल गोर के सारे अंग<br />

क फागुन के दन आए रे!<br />

ताल दे रह मन ह धड़कन<br />

ठु मक रहे ह पांव<br />

झूम रहा है सारा मौसम<br />

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नाच रहा है गांव,<br />

घुंघ,<br />

कं गन, ढोल मंजीरे<br />

बजने लगा मृदंग<br />

क फागुन ने दन आए रे!<br />

हाव भाव चलने फरने के<br />

बदल गए सब ढंग<br />

क फागुन के दन आए रे!<br />

उड़ा अबीर, कबीर गूंजता<br />

हाल हआ बेहाल<br />

ु<br />

सरस सी पीली चूनर<br />

यौवन टेसू सा लाल,<br />

गंध भर सांस, जीवन म--<br />

उठती नई उमंग<br />

क फागुन के दन आए रे!<br />

याद के उमु गगन म<br />

उड़ता दय वहंग<br />

क फागुन के दन आए रे!<br />

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एक अंतर जगत क फाग! एक अंतर जगत म रंगो का वफोट! अभी झरत, बगसत<br />

कं वल!<br />

आज इतना ह।<br />

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