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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

याकांड म उलझा हआ ु आदमी इससे यादा ऊपर नहं उठ पाता--सब<br />

थोथा-थोथा! समझ<br />

नहं होती, या कर रहा है। जैसा बताया है वैसा कर रहा है। कतनी आरती उतारनी,<br />

उतनी आरती उतार देता है। कतने चकर लगाने मूित के, उतने चकर लगा लेता है।<br />

कतने फू ल चढ़ाने, उतने फू ल चढ़ा देता है। कतने मं जपने, उतने मं जप लेता है।<br />

कतनी माला फे रनी, उतनी माला फे र देता है। लेकन दय का कहं भी संपश नहं है।<br />

और न कहं कोई बांध है।<br />

राम बना फका लगै! दरया ठक कहते ह: जब तक भीतर का राम न जगे या कसी जागे<br />

हए ु राम के साथ संग-साथ<br />

न हो जाए तब तक सब फका है।<br />

सब करया सातर यान...!<br />

दरया दपक कह करै, उदय भया िनज भान।।<br />

और जब अपने भीतर ह सूरज उग आता है तो फर बाहर के दय क कोई जरत नहं रह<br />

जाती। न शा क जरत रह जाती है, न याकांड क जरत रह जाती है। जब अपना<br />

ह बोध हो जाता है तो फर आवयक नहं होता क हम दसर के उधार बोध को ढोते फर।<br />

ू<br />

दरया दपक कह करै, उदय भया िनज भान।<br />

दरया कहता है: अब तो कोई जरत नहं है। अब उपिनषद कु छ कहते ह तो कहते रह;<br />

ठक ह कहते ह। कु रान कु छ कहती हो तो कहती रहे; ठक ह कहती है। अपना ह कु रान<br />

जग गया। अपने ह भीतर आयत खलन लगीं। अपने भीतर ह उपिनषद पैदा होने लगे।<br />

सदगु िसांत नहं देता; सदगु जागरण देता है। सदगु शा नहं देता; वबोध देता है।<br />

सदगु याकांड नहं देता; वानुभूित देता है, समािध देता है।<br />

दरया नरन पायकर, कया चाहै काज।<br />

राव रंक दोन तर, जो बैठ नाम-जहाज।।<br />

दरया कहते ह: जंदगी िमली है तो कु छ कर लो। असली काम कर लो! कया चाह चाहै<br />

काज! ऐसे ह यथ के काम म मत उलझे रहना। कोई धन इकठा कर रहा है, कोई बड़े<br />

पद पर चढ़ा जा रहा है। सब यथ हो जाएगा। मौत आती ह होगी। मौत आएगी सब पानी<br />

फे र देगी तुहारे कए पर। जस काम पर मौत पानी फे र दे, उसको असली काज मत<br />

समझना।<br />

दरया नरन पायकर, कया चाहै काज।<br />

यह मनुय का अदभुत जीवन िमला है। असली काम कर लो। असली काम या है? राव रंक<br />

दोन तर, जो बैठ नाम-जहाज। भु का मरण कर लो। भु के मरण क नाव पर सवार<br />

हो जाओ। इसके पहले क मौत तुह ले जाए, भु क नाव पर सवार हो जाओ।<br />

मुसलमान हंद कहा<br />

ू , षट दरसन रंक राव।<br />

जन दरया हरनाम बन, सब पर जम का दाव।।<br />

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