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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

दो ािनय म चचा हो ह नहं सकती। दो अािनय म खूब होती है, मगर कसी मतलब<br />

क नहं। ानी और अानी के बीच जो चचा होती है, कठन तो बहत है<br />

ु<br />

मगर उसम ह से कु छ वकास, उसम ह से कु छ जम होता है।<br />

, बहत ु कठन है;<br />

जीवन तो सपना है न सय। सपना रह जाएगा अगर सपन के पीछे दौड़ते रहे; सय हो<br />

जाएगा अगर सय को खोजो। और सय तुहारे भीतर है, सपने तुहारे बाहर ह।<br />

तुम उखड़ती सांस क अनुगूंज<br />

सांस क अनुगूंज,<br />

जीवन का अडंग वास वाला<br />

गीत म हं<br />

ू,<br />

यह नहं, संघष म<br />

झेली यथा तुमने,<br />

रहा म झुलता<br />

रंगीन झूलो म!<br />

यथा का भाग<br />

पाया हम सभी ने!<br />

कं तु वष बन<br />

छा गया है<br />

वह तुहार चेतना पर,<br />

जब क मने झेल उसको<br />

ाण म पाया नया उमेष<br />

जीवन क भा का!<br />

इसिलए ह<br />

तुम उखड़ती<br />

सांस क अनुगूंज<br />

जीवन का अडंग वास वाला<br />

गीत हं ू म !<br />

जीवन म ोध है, घृणा है, वैमनय है,र ईया है<br />

् ; ये जहर ह। अगर इहं जहर को पीते<br />

रहे तो तुहारा जीवन जहरला हो जाएगा, वषा हो जाएगा। लेकन ये जहर पांतरत भी<br />

हो सकते ह। ये जहर अमृत भी बन सकते ह। उसी कला का नाम धम है जो तुहारे भीतर<br />

के जहर को अमृत बना दे। िमट को छू दे और सोना हो जाए--उसी कला का नाम धम है।<br />

ोध को कणा बनाया जा सकता है। काम को राम बनाया जा सकता है। संभोग को समािध<br />

बनाया जा सकता है।<br />

देखते नहं, बाजार से खाद खरद कर लाते हो, दगध ु हो दगध ु फै ल जाती है घर म!<br />

अब<br />

इस खाद को अगर अपने बैठकखाने म ढेर लगा कर रख लो तो एक ह काम रहेगा क कोई<br />

Page 46 of 359 http://www.oshoworld.com

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