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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

एक बार एक आदमी ने आपके ऊपर आकर थूक दया था तो म आगबबूला हो गया था।<br />

थूका आप पर था, लेकन म भभक उठा था। मेरा पुराना य जाग उठा। अगर मेरे हाथ<br />

म तलवार होती तो मने उसक गदन काट द होती। लेकन गदन काटने का वचार तो मेरे<br />

भीतर तलवार क तरह कध गया था। वह तो आपके संग का...आपक तरफ देखकर चुप<br />

रहा। कस तरह अपने को चुप रख सका यह भी आज कहना कठन है। एक ण तो आप<br />

भी भूल गए थे। मगर फर खयाल आया था, संकोच आया था क आपसे आा ले लूं,<br />

फर इसे आवाज दं। लेकन आपने िसफ चादर से थूक को पछ िलया था और उस आदमी<br />

ू<br />

से कहा था: भाई कु छ और कहना है? तब तो म बहत चका था। तब मुझे भेद दखाई पड़ा<br />

ु<br />

था। म तो आग से जल उठा। म तो भूल ह गया संयास। म तो भूल ह गया यान! म तो<br />

भूल ह गया सब ान। एक ण म वष-वष पुंछ<br />

गए। म वह का वह था। और आपसे पूछा<br />

था क या इस आदमी को सजा दंू? यह आदमी सजा का हकदार है। इसको दंड िमलना ह<br />

चाहए।<br />

तो आप हंसे थे और आपने कहा था: उसके थूकने से म इतना परेशान नहं हं<br />

ू, जतना तेरे<br />

दखी ु और परेशान होने से परेशान हं। ू यह तो अानी है,<br />

य है; मगर तू तो कतने दन<br />

से यान क चेा म लगा है, अभी तेरा यान इतना भी नहं पका? यह मनुय कु छ कहना<br />

चाहता है। तुम थकने को देख रहा है। यह कु छ ऐसी बात कहना चाहता है जो शद से नहं<br />

कह जा सकती।<br />

ऐसा असर ेम म और घृणा म हो जाता है--इतने गहरे भाव क शद म नहं आते। कसी<br />

से ेम होता है तो तुम गले लगा लेते हो। य? यक भाषा म कहने से काम नहं<br />

चलेगा। भाषा छोट पड़ जाती है। गले लगाकर तुम यह तो कहते हो क भाषा असमथ है।<br />

कु छ कृ य करते हो। ऐसे ह यह आदमी ोध से जल रहा है। मेर मौजूदगी से इसे पीड़ा है।<br />

मेरे शद से इसे चोट लगी है। मेरे वय ने इसक धारणाओं को खंडत कया है। यह<br />

विलत है। यह इतना विलत है क कोई गाली काम नहं करेगी। इसिलए इस बेचारे को<br />

थूकना पड़ा है। इस पर दया करो। इसिलए म इससे पूछता हं ू क भाई,<br />

कु छ और कहना है?<br />

यह तो म समझ गया, अब और भी कु छ कहना है या बस इतना ह कहना है? यह वय<br />

है इसका। थूकने को मत देखो।<br />

तो आनंद ने कहा: मने वह दन तो देखा। ऐसे बहत ु दन देखे। जागने म तो भेद है,<br />

पर<br />

यह मने न सोचा था क सोने म भी भेद होगा। लेकन कल रात देर तक नींद न आई,<br />

बैठकर म आपको देखता रहा, पूरा चांद आकाश म था, वृ के नीचे आप सोए थे। उस<br />

चांद क रोशनी म आप अदभुत सुंदर<br />

मालूम होते थे। तब अचानक बजली जैसे कध गई,<br />

ऐसा मुझे खयाल आया: कतने वष हो गए, आपको सोते देखकर--यह बात मुझे कभी पहले<br />

य न याद आई क आप जस आसन म सोते ह, रात-भर उसी आसन म सोए रहते ह,<br />

बदलते नहं! जहां रखते ह पैर सोते समय, वहं रहता है रात-भर पैर। जहां रखने ह हाथ<br />

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