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खरा वण मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

पवन डाल क पायल को बजाए<br />

करण फू ल के कुं<br />

तल को खलाए<br />

मर जब चमन को मुरिलया सुनाए<br />

मुझे जब तुहार कभी याद आए<br />

तभी ार आकर तभी लौट जाना,<br />

दय भन मेरा अधूरा-अधूरा।<br />

<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

आदमी डरा-डरा रहता है, यक सभी तो अधूरा-अधूरा है। इस संसार म कभी कु छ पकती<br />

ह नहं और मौत आ जाती है; कभी कु छ पुरा नहं होता और मौत आ जाती है। इसिलए<br />

सब आपाधापी यथ है, सारा म िनरथक है। करना हो कु छ तो असली काज, असली काम<br />

कर लो। जो बैठे नाम-जहाज...उसने कर िलया असली काज।<br />

मुसलमान हंद कहा<br />

ू , षट दरसन रंक राव।<br />

जन दरया हरनाम बन, सब पर जम का दाव।।<br />

जो कोई साधु गृह म, माहं राम भरपूर ।<br />

दरया कह उस दास क, म चरनन क धूर।।<br />

जसको साधु म, असाधु म राम दखाई पड़ने लगे, बस जानना वह पहंचा है। जो कोई<br />

ु<br />

साधु गृह म, माहं राम भरपूर। जो संसार म भी राम को ह देखता है, गृह म भी राम<br />

को ह देखता है, अगृह म भी; संयासी और संसार म जसे भेद ह नहं है; जसे दोन<br />

म एक ह राम दखाई पड़ता है; जसे बस राम ह दखाई पड़ता है--दरया कह उस दास<br />

क, म चरनन क धूर! बस म उसके ह चरण क धूल हो जाऊं, इतना ह काफ है। बस<br />

इतनी आकांा काफ है। जसने राम को जाना हो, उसके चरण तुहारे हाथ म आ जाएं तो<br />

राम तुहारे हाथ आ गए। जसने राम को जाना हो उसक बात तुहारे कान म पड़ जाए तो<br />

राम क बात तुहारे कान म पड़ गई।<br />

दरया सुिमरै राम को, सहज ितिमर का नास।<br />

घट भीतर होय चांदना, परमजोित परकास।।<br />

दरया सुिमरै राम को...बस एक राम क मृित, और सारा अंधकार िमट जाता है--ऐसे जैसे<br />

कोई दया जलाए और अंधकार िमट जाए! इस बात को खूब यान म रख लेना। तुह बार<br />

बार उट ह बात समझाई जाती रह है। तुह िनरंतर नीित क िशा द गई है और धम<br />

से तुह वंिचत रखा गया है। नीित क इतनी िशा द गई है क धीरे-धीरे तुम नीित को ह<br />

धम समझने लगे हो।<br />

नीित और धम बड़े वपरत आयाम ह। नीित का अथ होता है: एक-एक बीमार से लड?◌ो।<br />

नीित का अथ होता है: ोध है तो अोध साधो और लोभ है तो अलोभ साधो और आस<br />

है तो अनास साधो। हर बीमार का इलाज अलग अलग। और धम का अथ होता है: सार<br />

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