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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

नाटक म एक अिभनय कर लेते हो, ऐसा ह सारे जीवन को समझता है संयासी। जो<br />

अिभनय परमामा दे दे, कर लेता है। अगर उसने कहा क चलो दकानदार बनो तो<br />

ु<br />

दकानदार बन गए। और उसने कहा क िशक बनो तो िशक बन गए। उसने कहा क<br />

ु<br />

टेशन माटर बन जाओ तो टेशन माटर बन गए; ले ली झंड और बताने लगे। मगर<br />

अगर एक बात याद बनी रहे क खेल उसका, हम िसफ खेल खेल रहे ह जब उसका बुलावा<br />

आ जाएगा क अब लौट आओ घर, पदा फर जाएगा, घंट बज जाएगी, घर वापस लौट<br />

जाएंगे।<br />

खेल छोड़ने क ह बात नहं है; खेल को खेल जानने म ह उसका छू ट जाना है। जानना<br />

मु है।<br />

इसिलए म तुमसे यह नहं कहता क तुम जहां हो वहां से भाग जाओ, यक अगर तुम<br />

भाग गए वहां से तो तुम भागने का खेल खेलोगे। तुहारे साथ बड़ मुसीबत है। कु छ लोग<br />

गृहथी का खेल खेल रहे ह, कु छ लोग संयास का खेल खेलने लगते ह। अब जो पी को<br />

छोड़कर भागा है, उसे एक बात तो पक है क वह यह नहं मानता क पी के पास रहना<br />

खेल था। खेल था तो भागना या था? खेल होता तो भागना या था? खेल ह है तो जाना<br />

कहां है? तो बचे थे, पी थी, ार, घर, सब ठक था; खेल था, चुपचाप खेलता रहता<br />

था छोड़कर भागा तो एक बात तो पक है क उसने खेल को खेल न माना, बहत असली<br />

ु<br />

मान िलया। अब यह भागकर जाएगा कहां? वह जो असली मानने वाली बु है, वह तो<br />

साथ ह जाएगी न! मत तो छू ट नहं जाएगा। घर छू ट जाएगा, पी छू ट जाएगी; मगर<br />

पी और घर को असली मानने वाला मन यह कहं जाकर आम बना लेगा तो आम का<br />

खेल खेलेगा।<br />

मेरे एक िम ह। उनको मकान बनाने का शौक है। अपना मकान तो उहने सुंदर<br />

बनाया ह<br />

बनाया; यह उनक हॉबी है। कसी िम का भी मकान बनता हो तो वे उसम भी दन-रात<br />

लगाते। एक दन मुझे खबर आई क वे संयासी हो गए। मने कहा: यह तो बड़ा मुकल<br />

पड़ेगा उनको। हॉबी का या होगा? संयासी होकर या करगे? कोई दस साल बीत गए,<br />

तब म उस जगह से गुजरा जहां वे रहते थे पहाड़ पर। तो मने कहा क जरा मोड़ तो होगा,<br />

दस बारह मील का चकर लगेगा, लेकन देखता चलूं<br />

क वे कर या रहे ह, हॉबी का या<br />

हआ<br />

ु ! हॉबी जार थी। छाता लगाए भर दोपहर म खड़े थे। मने पूछा: या कर रहे हो?<br />

उहने कहा: आम बनवा रहे ह! वह का वह आदमी है, वह का वह खेल। तो मने कहा:<br />

तुम वहं से य आए? यह काम तो तुम वहं करते थे। और सच पूछो तो जब तुम िम<br />

के मकान बनवाते थे तो उसम कम आस थी; तुम यह अपना आम बनवा रहे हो,<br />

इसम आस और यादा हो जाएगी।<br />

वे कहने लगे: बात तो ठक है। मगर यह मकान बनाने क बात मुझसे छू टती ह नहं। बस<br />

इसके ह सपने उठते ह--ऐसा मकान बनाओ वैसा मकान बनाओ...<br />

Page 22 of 359 http://www.oshoworld.com

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