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<strong>vHkh</strong> ><strong>jr</strong> <strong>fcxlr</strong> <strong>daoy</strong><br />

माना कहना है कठन, कं तु है मौन कठनतर।<br />

कवता साधन ह नहं, साधना, साय सभी कु छ,<br />

मंदर, वंदना, साद और आराय सभी कु छ।<br />

म है कहना िनमाण कया कवता का कव ने,<br />

रचना क थी या जगा दया कमल को रव ने?<br />

यह दर ू हटा दो शद कोष,<br />

है यथ खोजना--<br />

इस मुत पुतक म यह जागृत शद योजना;<br />

मेर कवता का आशय तुम इस ण से पूछो,<br />

सुन सको ितविन मन म यद तो मन से पूछो।<br />

िमल सकता तुमसे यद म इतनी दर ू न होता,<br />

शद का आय लेने पर मजबूर न होता--<br />

सांस म आकार वयं बन जाती कवता,<br />

तुम सुनते मेर बात वयं बन जाती कवता।<br />

सदगु के शद तो वे ह ह जो समाज के शद ह। और कहना है उसे कु छ, जसका समाज<br />

कोई पता नहं। भाषा तो उसक वह है, जो सदय-सदय से चली आई है। जरा जीण,<br />

धूल धूसरत। लेकन कहना है उसे ऐसा कु छ िनत नूतन, जैसे सुबह क अभी ताजीाजी<br />

ओस, क सुबह क सूरज क पहली-पहली करण! पुराने शद बासे, सड़े-गले, सदय-<br />

सदय चले, थके -मांदे--उनम उसे डालना है ाण। उनम उसे भरना है उस सय को जो<br />

अभी-अभी उसने जाना है--और जो सदा नया है और कभी पुराना नहं पड़ता।<br />

कल के नीरस शद म करनी है बात आज क,<br />

अिभय भावना अपनी भाषा म समाज क--<br />

है ववश कं तु कर देता कव को उसका वर,<br />

लेकन कहना तो होगा ह...<br />

है ववश कं तु कर देता कव को उसका वर,<br />

माना कहना है कठन, कं तु है मौन कठनतर।<br />

कहना कठन है; लेकन मौन चुप रह जाना और भी कठन है। जसने जाना है उसे कहना<br />

ह होगा। सुने कोई सुने, न सुने कोई न सुने; उसे कहना ह होगा। उसे अंध के सामने<br />

दए जलाने हगे। उसे बहर के पास बैठ कर वीणा बजानी होगी। मगर सौ म कोई एकाध<br />

आंख खोल लेता है और सौ म कोई एकाध पी जाता है उस संगीत को। पर उतना काफ है।<br />

उतना बहत ु है। और ऐसा मत सोचना क ये जो शद संत से उतरते ह,<br />

संत के ह। संत<br />

तो के वल मायम ह।<br />

कवता साधन ह नहं, साधना, साय भी कु छ,<br />

मंदर, वंदना साद और आराय सभी कु छ।<br />

म है कहना िनमाण कया कवता का कव ने,<br />

Page 8 of 359 http://www.oshoworld.com

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