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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

'िवदेह' ५५ म अंक ०१ अ ैल २०१० (वष र् ३ मास २८ अंक ५५)

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५५ म अंक ०१ अैल २०१० (वषर् ३ मास २८ अंक ५५)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्सलाइ रख र<strong>ह</strong>ै। िन रधनक कन ्<strong>ह</strong>ामे ि◌ मरदंग लटकल। स<strong>िव</strong> या आ सैिन याक <strong>ह</strong>ाथमेझािल । सोमनाथ <strong>ह</strong>ाथमे एकटा बसनी; सर<strong>ह</strong>ी आमक पल ्लो आ पान-सातटा सुखलकुश। ब ुधबाक कान ्<strong>ह</strong>पर एकटा मुँठवासी बॉ◌ंस, जेकरा छीपमे आठ र ंगक पताका आतीन <strong>ह</strong>ाथ जड़ि◌ सँ उपर ओ<strong>ह</strong> र ंगक कपड़◌ा टुकड़◌ा बान ्<strong>ह</strong>ल। सभ एक स ूरे ‘ कालीम<strong>ह</strong>रानीक जय’ क नारा लगबैत।प ूजा सिम ित क सदस ्य बैिस अपन काजक ि◌ <strong>ह</strong>साब लगबैत र<strong>ह</strong>ै। छलगोिर यामुरतीक अंित म परीक्षण म ंडपमे करैत र<strong>ह</strong>ए। भगतजीक ि◌ या-कलाप <strong>दे</strong>खए लेलएक् के-द ुइये लोक जमा <strong>ह</strong>ुअए लगल। प ूजा सिम ित क सदस ्य अपन ि<strong>ह</strong> साब-वारी रोिकभगतजी सभकेँ <strong>दे</strong>खए लगल। काली म ंडपक ओसारपर भगतजीक मेड़ि◌ या सभअपन-अपन समान रिख <strong>ह</strong>ाथ-पएर धोय लेल बगलेक पोखिर <strong>िव</strong> दा भेल। अछीजलभरै लेल सोनमा वसनी लऽ लेलक। भगतजीक <strong>ह</strong>ाथमे लोटा। <strong>ह</strong>ाथ-पएर धोय सभि◌ कयो काली म ंडपक आग ू िआ ब एकट ंगा दऽ दऽ गोड़ लगलकिन । गोड़ लाि◌ गिन रधन िम रदंग चढ़बए लगल। सैिन यॉ◌ं, र<strong>िव</strong> या झािल बजबए लगल। पोखिर सँ िआ बभगतजी <strong>ह</strong>ाथमे लोटा ठोर पटपटबैत म ंउपक आग ू ठाढ़ भऽ ऑ◌ंिख बन ्न कऽसुिम रन करए लगल। ब ुधवा म ंडपक आग ूमे थोड़◌े <strong>ह</strong>िट कऽ ध ुजा गाड़ए लगल।बरसपित या भगैत उठौलक- ‘ ‘<strong>ह</strong>े काली मैया।’ ’ जना सभ काजक ब ँटबारा पि<strong>ह</strong> कऽ <strong>ह</strong>ुअए ति<strong>ह</strong> ना। ठाढ़◌े-ठाढ़ भगतजी <strong>दे</strong><strong>ह</strong> थरथरबए लगल। गोसा ँइ आिबगेलिख न। भगतजीक आग ूमे डिल बा<strong>ह</strong> द ुन ू <strong>ह</strong>ाथे डाली पकड़। थोड़◌े कालक बादभगतजी चंगेरीमे सँ फूल-अछत लऽ उर मुँ<strong>ह</strong>े ख ूब ज ुमा कऽ फेकलक। फेिरफूल-अछत लऽ गंगाजीक नाओ लऽ दिछ न मुँ<strong>ह</strong>े फेकलक। चाि◌ र मुी चा िद सफेि◌ क पॉ◌ंचम मुी उपर फेिक जोरसँ बाजल- ‘‘ओ..... ओ.....। कि<strong>ह</strong> अपन पिर चएकालीक नाओसँ <strong>दे</strong>लक। कालीक नाओ सुि◌ न डिल बा<strong>ह</strong> बाजल- ‘‘<strong>ह</strong>े माए, ि◌ कछु वाक्िद औ ?’’भगत- ‘‘अइ जग<strong>ह</strong>क भाग ्य जिम गेल। एकरा िन च् चॉ◌ंमे साक्षात् गंगाजी ब<strong>ह</strong>ैछिथ न ई स ्थान बन, गाममे को डाइन-जोिग नक ि◌ कछु नि<strong>ह</strong> चलत। एते िद नगामक लोक बड़ कल<strong>ह</strong>न ्तमे र<strong>ह</strong>ै छलै मुदा, आब सभ ख ुशीसँ र<strong>ह</strong>त। को कुशककलेप ककरो लगत।’ ’गामक ख ुश<strong>ह</strong>ाली सुिन प ूजा सिम ित क सभ सदस ्यक मनमे नव आनन ्दक जन ्मभेल। <strong>दे</strong>वनाथ प ूछलक- ‘‘<strong>ह</strong>े माए, अ<strong>ह</strong>ॉ◌ं की चा<strong>ह</strong>ै छी ?’’51

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