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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

Videha_15_03_2009

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist MaithiliFortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका १५ माचर् २००९ (वषर् २मास १५ अंक ३०) http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्साि<strong>ह</strong>ित्यक िया-कलाप मे कोनो तर<strong>ह</strong>क व्यवधान नि<strong>ह</strong> भेल। एि<strong>ह</strong> कारेँ नेपाल मे मैिथलीनाटकक सूपात भेल जे एक भाग अपन नव-िशल् पक उत् थान मे लागल र<strong>ह</strong>ल आ दोसर भागाचीन संस् कृ त-ाकृ त-मैिथली िमित िभािषक नाट्य स् वरूप केँ िकछु िदन धिर अपन पूवर्वतस् वरूप केँ सुरिक्षत राखलक। नेपाल मे मैिथली नाटकक जे ृ ंखला स् थािपत भेल ओकर सब ेयमल् ल राजवंश केँ छैक। भातगॉव मे चुर पिरमाण मे नाटक िलखल गेल आ उल् लेखनीयनाटककार मे जगज् योितमर्ल् ल (1613-1633), जगत् काश मल् ल (1637-1672), सुमितिजतािममल् ल (1672-1696), रणजीत मल् ल (1722-1772),भूपतीन् मल् ल (1696-17क22) आीिनवास मल् ल (1658-1685) छिथ। रणजीतमल् ल सबसँ बेसी नाटकक रचना कयलिन।काठमाण् ू आ पाटनक उल् लेखनीय नाटककार मे वंशमिण आ िस नरिसं<strong>ह</strong> <strong>दे</strong>व (1622-1657) कनाम लेल जाइत अिछ। ई नाटककार लोकिन चुर पिरमाण मे नाटकक रचना कयलिन जाि<strong>ह</strong> मेजगत्ज्योितम्मर्लक ‘<strong>ह</strong>रगौरी <strong>िव</strong>वा<strong>ह</strong>’ (1970). <strong>िव</strong>श् वमल् लक ‘<strong>िव</strong>ा<strong>िव</strong>लाप’ (1965) आ जगत् काशमल् लक ‘भावती <strong>ह</strong>रण’ नाट्क अािप कािशत भ’ पाओल अिछ। शेष अन् य नाटककार लोकिनकनाटकक काशन अािप नि<strong>ह</strong> भ’ पाओल अिछ जे नेपाल दरबार लाईेरी मे संरिक्षत अिछ। शेषअन् य नाटकािदक काशनसँ मैिथली नाटकक उदय आ <strong>िव</strong>कास पर नव काश पि सकै छ। एि<strong>ह</strong>नाटकािद मे गीतक धानता अिछ, कथानक पौरािणक अिछ, नाटककार क् यो <strong>ह</strong>ोथु, िकन् तु ओि<strong>ह</strong> मेयुक् त गीतािद अन् य क<strong>िव</strong> लोकिनक उपललब्ध <strong>ह</strong>ोइछ। सभ नाटक अिभनीयता सँ पूणर् अिछ आओकर भाषा मानक मैिथलीक ितमान स् तुत करैत अिछ। म<strong>ह</strong>ाराज पृथ् वीनारायण सा<strong>ह</strong> (1768-1775) क आमणक फलस् वरूप मल् ल राजवंश ारा स् थािपत परम् परा समाप् त भ’ गेल आओकरा स् थान पर गोरखा राजवंशक स् थापना भेल। एकर फलस् वरूप काठमाण् ू आ पाटन मेनाटकक परम् परा क समाि भ’ गेल, िकन् तु भातगॉव मे अािप ई परम् परा सुरिक्षत अिछ।नेपालक उपयुर्क् त परम् पराक क्षीण आलोक िमिथला मे से<strong>ह</strong>ो भेटैत अिछ। िमिथला मे जे नाटकिलखल गेल ओकर नाम केँ ल’ कए <strong>िव</strong>ान लोकिन मे मतैक् यक अभाव अिछ। ा. जयकान् तिम (1922) एकरा ‘कीतनयॉं नाटक’ रमानाथ झा (1906-1971) ‘कीतर्िनयॉं नाच’ आ ा.ेमशंकर िसं<strong>ह</strong> (1942) ‘लीला नाटक’ नामसँ अिभि<strong>ह</strong>त कयलिन अिछ। एि<strong>ह</strong> नाटककािदमे मूलरूपसँ िशव तथा <strong>िव</strong>ष् णु क लीला स् तुत कयल गेल अिछ। एि<strong>ह</strong> नाटकािद केँ नाट्य मण् ली आिदकृ ष् ण आ िशवसम् बन् धी <strong>िव</strong><strong>िव</strong>ध कथािद केँ आधार बना क’ दशर्न करैत छल. एि<strong>ह</strong> कोिटक नाटकमे उपलब्ध सामी सभकेँ तीन काल खण् मे बा◌टल जा सकै छ: थम उत् थान, ितीय उत् थानआ तृतीय उत् थान । थम उत् थानक नाटक कार मे गो<strong>िव</strong>न् दक ‘नलचिरतनाटक’ रामदास (1644-1671) क ‘आनन् द <strong>िव</strong>जय नाटक’, <strong>दे</strong>वानन् दक ‘उषा<strong>ह</strong>रण’ आ रमापितक ‘रूिकमणी<strong>ह</strong>रण’ इत् यािदक15

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