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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

Videha_15_03_2009

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist MaithiliFortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका १५ माचर् २००९ (वषर् २मास १५ अंक ३०) http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्साि<strong>ह</strong>त् य मे एकर एि<strong>ह</strong> <strong>िव</strong>िशष् टता पर काश दैत अिछ। ा. वाणीकान् त कातकी क कथन छिन,‘जाि<strong>ह</strong> कारेँ चण् वात् या वन मं लागल दत् वािगन केँ ज् विलत करबा मे स<strong>ह</strong>ायक <strong>ह</strong>ोइत अिछओ<strong>ह</strong>ी कारेँ साि<strong>ह</strong>त् य जातीय एवं म<strong>ह</strong>ाजातीय आन् दोलन केँ ेिरत करैछ। नाटक, गीत एवं पद ईतीनू शंकर <strong>दे</strong>वक वैष् णव-आन् दोलन केँ शाक् त <strong>दे</strong>श मे एतेक व् यापक आ लोकिय बनौलक जाि<strong>ह</strong>कारेँ मरूभूिमक ऊँ ट जलक गन् ध-सू पकि क’ जलाशयक खोल मे चिल पैछ ओ<strong>ह</strong>ी कारेँतृिषत जनता परगीतक सौरभसँ आकृ ष् ट भ’ कए शंकर माधवक शरणापन् न भेला<strong>ह</strong> ‘असिमयासाि<strong>ह</strong>त् य, 510 वाणी कान् ता काकती)।युगपुरूष शंकर<strong>दे</strong>व अपन तीथर्-यााक म मे <strong>िव</strong>ापित क वैष् णव-वंश् क गुरूमािन िमिथलाअयला<strong>ह</strong>। ओि<strong>ह</strong> समय मैिथली-काव् य आ नाट्य-साि<strong>ह</strong>त् य <strong>िव</strong>कासक अपन चरमपर छल। उमापितउपाघ् याय रिचत ‘पािरजात<strong>ह</strong>रण’ क अिभनय अत् यिधक भ’ र<strong>ह</strong>ल छल। एकर <strong>िव</strong>षय-वस् तु से<strong>ह</strong>ोराधाकृ ष् ण छल। पािरजात<strong>ह</strong>रण अिभनीत <strong>ह</strong>ोइत <strong>दे</strong>िखक’ योक् ता शंकर<strong>दे</strong>व अत् यािधक भा<strong>िव</strong>तभेला<strong>ह</strong>। एस. के . भूइयॉंक मतानुसार, ‘आङ्कीयानाटक भाषा मैिथलीक तथा आसिमयाक िमणक<strong>िव</strong>लक्षण उदा<strong>ह</strong>रण स् तुत करैत अिछ। ‘ (Oh Anita NAT, She. BHUYAN, Page 288-289)(शंकरा<strong>दे</strong>व अपन अितीय ितभा आ अितभ बैदुष्यक बल पर असिमया साि<strong>ह</strong>त् य मेअङ्कीयानाटक जनकक रूप मे ख् यात छिथ। नाटककार लोकिन पुराणािद सँ उपादान क चयनकयलिन आ एि<strong>ह</strong> सन् दभर् मे भागवत पुराण, <strong>ह</strong>िरवंश पुराण एवं रामायण <strong>ह</strong>ुनक धान उपजीव् यर<strong>ह</strong>ल। शंकर<strong>दे</strong>वक िनम् नांिकत नाटक कािलदमन (1518), पत् नी साद (1521), के िलगोपाल(1540), राम<strong>िव</strong>जय (1568), रूिक्मणी <strong>ह</strong>रण (1568) संतपािरजात <strong>ह</strong>रण (1568) आ माधव<strong>दे</strong>वकभोजजन<strong>िव</strong><strong>ह</strong>ार, भूिम लोखा, अजुर्न भंजन (1538), <strong>िव</strong>म् परा-गुचोबा, रासझुमरा, चोरधरा, कटोरा-खेलोबा, भूषण <strong>ह</strong>ेरोवा एवं <strong>ह</strong>मा-मो<strong>ह</strong>न आिद कािशत आिछ। एकर अितिरक् त गोपाल अता(1533-1688), िजराजभूषण (1507-1571), रामचरन ठाकु र (1521-1600) आ दैत् यािर ठाकु र(1564-1622) आिद नाटककार उल् लेखनीय छिथ। यिप एि<strong>ह</strong> नाटक सभक कथा-वस् तु पौरािणकर<strong>ह</strong>ल, िकन् तु संस् कृ त और ाकृ तक स् थान पर मैिथली-असिमया-िमित गक योग भेल। गीतकिस्थित यथावता र<strong>ह</strong>ल, िकन् तु संस् कृ त-ाकृ तक योग नि<strong>ह</strong> कयल गेल जतय ओ अिनवायर् छल।एि<strong>ह</strong> नाटकािदक उेश् य मनो<strong>िव</strong>नोद नि<strong>ह</strong>, त् युत वैष् णव धमर् चार करब छल। एि<strong>ह</strong> लेल अिधकांशनाटकािद मे कृ ष् णक वात् सल् यमय आ दासत् व भावक पूणर् लीलाक रूप मे वणर्न कयल गेल।रंगमंचक दृिसँ ई अिधक सुव् यविस्थत अिछ।17

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